Book Title: Aagam 33 MARAN SAMAADHI Moolam evam Chhaayaa
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(३३)
“मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
------------- मूलं [४६]--------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३३], प्रकीर्णकसूत्र - [१०] "मरणसमाधि" मूलं एवं संस्कृतछाया
पइण्णय- दसए १० मरणसमाही
प्रत सूत्रांक ||४६||
॥९९॥
धिईए । सवेसु कसाएसु य निहंतु परमो सया होहि ॥ ४६ ॥ १२८१ ॥ चइऊण कसाए इंदिए य सचे
य आराधकागारवे हंतुं । तो मलियरागदोसो करेह आराहणासुद्धिं ॥४७॥१२८२॥ दंसणनाणचरित्ते पञ्चज्जाईसुनाराधक जो य अइयारो। तं सर्व आलोपहि निरवसेसं पणिहियप्पा ॥४८॥ १२८३ ॥ जह कंटएण विद्धो सवंग वेय- स्वरूपम् दिओ होइ । तह चेव उद्वियंमि उ निसल्लो निवओ होइ ॥ ४२ ॥ १२८४ ॥ एवमणुद्धिपदोसो माइलो तेण दुक्तिओ होइ । सो चेव चसदोसो सुविसुद्धो निधओ होइ ॥ ५० ॥ १२८५ ।। रागहोसाभिहया सस-8
हमरणं मरंति जे मूढा। ते दुक्खसल्लयहुला भमंति संसारकतारे ॥५१॥ १२८६ ॥ जे पुण तिगारवजदा ४|निस्सला सणे परित्ते य । विहरंति मुक्कसंगा खवंति ते सबदक्खाई॥५२॥१२८७ ।। सुचिरमधि संकि-18 सालिटुं विहरितं झाणसंवरविहीणं । नाणी संवरजुत्तो जिणइ अहोरसमित्तेणं ॥५३ ॥ १२८८ ॥ जं निजरेइ साभव ॥ १६ ॥ त्यक्त्वा कषायान इन्द्रियाणि च सर्वाणि च गौरवामि हत्या । ततो मर्दितरागद्वेपः कुरुध्वाराधनाशुद्धिं ॥ ४७ ॥ दर्श-16
नज्ञानचारित्रेषु प्रत्रग्यादिषु यथातिचारः । तं सर्व आलोचय निरवशेष प्रणिहितात्मा ॥ ४८ ॥ यथा कण्टकेन विद्धः सर्वेष्वंगेषु थेदनाहार्दितो भवति । नथैव उद्धृते निदशल्यो निर्वृतो (निर्वातः) भवति ॥४९।। एवमनुवृतदोषो मायावी तेन दुःखिनो भवति । स एव त्यक्तदोषः ।
मुविशुद्धो निर्दृतो (निर्वातः) भवति ॥५०॥ रागद्वेपाभिहताः सशल्यं मरणं म्रियन्ते ये मूढाः । ते दुःखिनो बहुशल्या भ्राम्यन्ति संसारकान्तारे 31॥५१॥ ये पुनखिगौरवरहिता निश्शल्या दर्शने चारित्रे च । विहरन्ति मुक्तसंगाः क्षपयन्ति तानि सर्वदुःखानि ॥ ५२ ॥ सुचिरमपि 3॥ ९९॥
संक्लिष्टं विहनं ध्यानसंवरविहीनं । ज्ञानी संवरयुक्तो जयति अहोरात्रमात्रेण ।। ५३ ॥ यद् निर्जरयति कर्म असंवृतः सुबहुनाऽपि कालेन ।
दीप
अनुक्रम [४६]
Jamluridianimamtiaria
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