Book Title: Aagam 33 MARAN SAMAADHI Moolam evam Chhaayaa
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ आगम (३३) “मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया) -------------- मूलं [९८]---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३३], प्रकीर्णकसूत्र - [१०] "मरणसमाधि" मूलं एवं संस्कृतछाया प्रत सूत्रांक ||९८|| दीप कण काल । लजाय गारवेण य नहु सो आराहओ भणिओ ॥ १८ ॥ १३३३ ॥ तिविहंपि भावसलं समु-12 द्वरिता उ जो कुणइ कालं । पञ्चजाई सम्मं स होइ आराहओ मरणे ॥ ९९ ॥ १३३४ ॥ तम्हा सुत्तरमूलं | अविकूलमविदुयं अणुविग्गो । निम्मोहियमणिगृढं सम्मं आलोअए सवं ॥ १०० ॥ १३३५ ॥ जह पालो जंपतो कजमकलं च उजु भणइ । तं तह आलोएजा मायामयविष्पमुको य॥१०१ ॥ १३३६ ॥ कयपावो । वि मणूसो आलोइय निंदिर गुरुसगासे । होइ अइरेगलहुओ ओहरियभरोष भारवहो ॥१०२॥१३३७ ॥ लजाइ गारवेण प जे नालोयंति गुरुसगासम्मि । धंतपि सुयसमिद्धा न हु ते आराहगा हुंति ॥१०३।१३३८ जह सुकुसलोऽवि विज्जो अन्नस्स कहेइ अत्तणो बाहिं । तं तह आलोयचं सुदृषि ववहारकुमलेणं ॥ १०४ ॥ ॥ १३३९ ।। जं पुर्व तं पुर्व जहाणुपुर्वि जह कम सबं । आलोइज्ज सुविहिओ कमकालविहिं अभिदंतो भावशल्यमनुदल तु वः कुर्यात् कालं । लजया गौरवेण प नैव स आराधको भणितः ।। ९८ ॥ त्रिविधमपि भाषशय समुदत्य तु| | यः करोति फालं। प्रवग्यादौ सम्यक् स भवति आराधको मरणे ॥ ९९ ॥ तस्मान् सोत्तरमूलं अपिकूलं अविहुतमनुद्विसः । निमाहिती |अनिगृहितं सम्यक आलोचयेत् सर्व ॥ १०॥ वथा बालो जल्पन् कार्यमकार्य च मजुर्फ भणति । तत् तथा आलोचवेन् मायामरविप्रमुक्तश्च ।। १०१ ॥ कृतपापोऽपि मनुष्य आलोच्य निन्दवित्वा गुरुसकाशे । उत्तारिनभर इव भारवाहो भवत्यतिरेकलघुतरः ॥१२॥ जया गौरवेण च ये नालोचयंति गुरुसकाशे । मद्धमपि श्रुतसमृद्धा नैव ते बाराधका भवन्ति ॥ १०३ ॥ यथा सकालोऽपि वैयः। च. स.१८18 अन्यस्मै कययति आत्मनो व्याधि । तत् तदाऽऽलोचयितव्यं मुठपि व्यवहारकुशलेन ॥१०४।। बन पातन पूर्व यधानुपपि यथाक्रम सर्व । । अनुक्रम [९८] ~ 18~

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98