Book Title: Aagam 33 MARAN SAMAADHI Moolam evam Chhaayaa
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 28
________________ आगम (३३) “मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया) -------------- मूलं [१६५]-------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [३३], प्रकीर्णकसूत्र - [१०] "मरणसमाधि" मूलं एवं संस्कृतछाया प्रत सूत्रांक ||१६५|| पइण्क्य- दसए १० मरणस माही ॥१०॥ 452-5 -- परीसहसहा विसयसुहपमोइया अप्पा ॥ १६५ ॥ १४०० ॥ इंदिगमुहसाउलओ घोरपरीसहपराइयपरझो।। परिकर्मण अकपपरिकाम कीवो मुज्झह आराहणाकाले ॥१६६ ॥ १४०१ ।। वाहंति इंदियाई पुषिं दुन्नियमियप्पयाराई आवश्यता अकयपरिकम्मकीवं मरणे सुअसंपउत्तंपि ॥१६७ ॥ १४०२॥ आगममयप्पभाविय इंदियमुहलोलुयाप:हस्स । जइवि मरणे समाही हुजन सा होइ बहुयाणं ॥१६८॥ १४०३ ।। असमत्तसुओऽवि मुणी पुचिं सुकयपरिकम्मपरिहत्यो। संजमनियमपन्नं सुहमत्तहिओ समपणेइ ।। १६९ ॥ १४०४ ॥ न चति किंचि का पुषि सुकयपरिकम्मजोगस्स । खोहं परीसहचमू धिईबलपराइया मरणे ॥ १७० ॥ १४०५ ॥ तो तेऽवि [पुषचरणा जयणाए जोगसंगहविहीहिं । तो ते करिति दसणचरित्तसइ भावणाहेउं ॥ १७१ ॥ १४०६ ॥ जा पुषभाविया किर होइ सुई चरणदसणे यहा । सा होइ बीयभूया कयपरिकम्मस्स मरणम्मि ॥१७२॥१४०७॥ परीपहसहाः विषयसुखप्रमो(नो)दितात्मानः ॥१६५।। इन्द्रियमुन्नसाताकुलो घोरपरीपहपराजितः अपराधः(परायत्तः) । अकृतपरिकर्मा लीवो | | मुह्यति आराधनाकाले ॥१६६।। याधन्ते इन्द्रियाणि पूर्व दुर्नियमितत्रचाराणि । अकृतपरिकर्माणं ठीचं मरणे स्व(थुन)प्रसंयुक्तमपि ॥१६॥ | आगममयाभावितस्य इन्द्रियमुखलोलताप्रतिष्ठस्य । यद्यपि मरणे समाधिर्भवेन न सा भवति बहुकानां ॥ १६८ ॥ असमाप्रभुतोऽपि | मुनिः पूर्व सुकृतपरिकर्मनिपुणः । संयमनियमप्रतिज्ञा सुखमात्महितः समन्वेति ॥ १६९ ॥ न शक्नोति किंचित कर्नु पूर्व सुकृतपरिकर्मयो-12 गस्य । क्षोभं परीपहचमूः धृतिवलपराजिता मरणे ॥ १७० ।। ततस्तेऽपि पूर्वचरणा(भवन्ति)यतनया बोगसंग्रहविधिभिः । ततस्तेऽपि भाव-100७॥ नाहे तोर्दर्शनचारित्रस्मृतिं कुर्वन्ति ॥ १७१ ।। या पूर्व भाविता किल भवति श्रुतिश्वरणे दर्शने च बहुधा । सा भवति बीजभूना कृतपरिक-10 दीप ----- अनुक्रम [१६५] HEA - ROCESS Jantsritimimmine ~ 27~

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