Book Title: Aagam 33 MARAN SAMAADHI Moolam evam Chhaayaa
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(३३)
“मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया)
-------------- मूलं [७६]---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३३], प्रकीर्णकसूत्र - [१०] "मरणसमाधि" मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत सूत्रांक ||७६||
द्वाराणि
पडण्णय- लो अह जम्मो धम्मरुकखाणं ॥ ७॥ १.१॥ दिक्त्रं मइले. णा मोहमहावत्तसागराभिहया । तस्स परिकर्मणा दसए १०16 अपडिकमंता मरंति ते यालमरणाई ।। ७७॥ १३१२ ॥ इय अघि मोहपउत्ता मोहं मोजूण गुरुसगासम्मि आलोचमरणस- आलोइय निस्सल्ला मरि आगहमा नेऽथि ।। ७८ ॥ १३१३॥ विसेमो भषणइ छलणा अवि नाम हुज नादीनि माही जिणकप्पो। किं पुण इयरमुणीणं तेज विही देसि ओ इणमो ७९॥ १३१४ ।। अप्पविहीणा जाहे धीरा
सुपसार झरियपरमत्था । ते आयरिय विद्विग्नं उचिंति अन्भुत मरणं ॥ ८० ॥ १३१५ ॥ आलोयणाइ ॥१०१॥
संलहणाइ २ खमणाइ ३ काल ४ उस्सगे। उग्गासेमंधार निसग्ग ८ वेरग्ग मुक्खाए १० ॥८॥
॥१३१३॥ झाणविसेसो ११ मा १२ सम्म १३ पायगमण १४ चेव । चउदसओ एस विही पढमो ४मरणमि नायवो ।। ८२॥१७॥ विणोधार माणस भंगा पूयणा गुरुजणस्स । तित्थयराण य हनीपत परलोकमठेकः संयमय न कृतः द्विपन्नोऽपि नतो विफल गिर जन्म धर्मक्षाणां ॥ ४६॥ दशा मलिनयन्तो
मोहमहावर्तसागरानिहताः । तस्माइतिकान्लो किन्ने ते दलमरणानि ॥ ४ ॥ एवमपि मोहमायुक्ता मोई मुक्त्वा गुरुसका। आलोच्य निश्शल्या मर्तुं (प्रहालाः ) अराधकान्लेऽपि । ८ अप्र विशेषो मप्यते छलनमपि नाम भवेन जिनकल्पे । किं पुनरितरमुनीनां? तेन विधिदर्शितोऽयम् ॥ ३१ ॥ परीयां) सविडीनानदा श्रीगः स्मृनथुन सागरपरमार्थाः । ते आचार्य विदत्तं मरणम
युगतमुपयान्ति ।। ८ ।। आलोचना संले आमा काल सर्गः । भवन याः संसारकः निसगों बैगम्ब मोक्षः ॥ ८१ ॥ ध्यान- ॥११॥ 8 बिशेषो लेइया मन्यनत्वं पाइपोपाननं चव चतुराक एष विधिः प्रथम भरणे ज्ञातव्यः ।। ८२ ।। बिनय उपचारो मानस्य भंगः।
दीप अनुक्रम
[७६]
JINElustimimmin
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