Book Title: Aagam 33 MARAN SAMAADHI Moolam evam Chhaayaa
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 14
________________ आगम (३३) “मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया) ------------- मूलं [६१]---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३३], प्रकीर्णकसूत्र - [१०] "मरणसमाधि" मूलं एवं संस्कृतछाया प्रत सूत्रांक ||६१|| SSCR A परण्याय- कंदप्पं भावणं कुणइ ।। ६१ ॥ १२९६ ॥ नाणस्स केवलीणं धम्मायरियस्स संघसाहणं । माई अवपणवार्ड कि टम १०किविसिय भावणं कुणइ ।। ६२॥ १२९७ ॥ मंताभिओगं कोउग भूईकम्मं च जो जणे कुणइ । सायरसइहि- वर्जनम मरणस- हे अभिओगं भावणं कुणइ ॥ ६३ ॥ १२९८ ॥ अणुबद्धरोसबुग्गहसंपत्त तहा निमित्तपडिसेवी । एएहि || माही INकारणेहिं आसुरियं भावणं कुणइ ॥ १४ ॥ १२९९ ।। उम्मग्गदेसणा नाण(मग्ग)दसणा मम्गविपणासो अ। मोहेण मोहयंतसि भावणं जाण सम्मोहं ॥६५॥ १३०० ॥ एयाउ पंच वज्जिय इणमो छट्ठीइ बिहर तं| ॥१०॥ धीरा पंचसमिओ तिगुत्तो निस्संगो सवसंगेहिं ।। ६६ ॥१३०१ ।। एयाए भावणाए विहर विसुद्धाइ दीह कालम्मि । काऊण अंत सुद्धिं दंसणनाणे चरित्ते य ॥ ६७ ॥१३०२ ॥ पंचविहं जे सुद्धिं पंचविहविवेगसंजुयमका । इह उवणमंति मरणं ते उ समाहिं न पाविति ॥ ६८॥ १३०३ ॥ पंचयिह जे सुद्धि पत्ता निखि-1 ज्ञानस्य केवलिनां धर्माचार्यस्य संघस्य साधूनां च । मायी अवर्णवादी किस्विषिकी भावनां करोति ॥६२॥ मंत्राभियोगी कौतुकं भूतिकर्म च | यो जनेषु करोति । सातरसदिहतोराभियोगी भावनां करोति ॥६३।। अनुबद्धरोपव्युगृहसंप्राप्तास्तथा निमित्तालिसे विनः । एतैः (एव) कारणेरामरी भावनां करोति ।।६४॥ उन्मार्गदेशना ज्ञान(मार्ग)दूषणं मार्गविप्रणाशन (तान् कुर्वति) 1 मोहेन च मोहयति भावना जानीहि संमोहीम ॥६५।। एताः पंच वर्जयित्वा अनया पष्ठषा विहर त्वं धीर! । पञ्चसमितस्त्रिगुप्तो निस्संगः सर्वसंगैः ॥६६॥ एतया भावनया विशुद्धया | दीर्घकालं विहर । कृत्वा अन्त्ये शुद्धि दर्शनज्ञानचारित्रेषु च ।। ६७ ।। पंचविधां ये शुद्धि पंचविधविवेकसंयुतामकृत्वा । इहोपगच्छन्ति ॥१० ॥ मरण ते समाधि न प्राप्नुवन्ति ॥ ६८ ॥ पंचविधां ये शुद्धि प्राप्ता निखिलेषु निश्चयमतिकाः । पञ्चविधं च विवेक ते एव समाधि परंI दीप अनुक्रम [६१] JITEludinamaineKI FINDORISPoimueOfr ~ 13~

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