Book Title: Aagam 33 MARAN SAMAADHI Moolam evam Chhaayaa Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Deepratnasagar View full book textPage 5
________________ आगम (३३) “मरणसमाधि” - प्रकीर्णकसूत्र-१० (मूलं+संस्कृतछाया) ----................-- मूल [१]-.. ..---- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३३], प्रकीर्णकसूत्र - [१०] "मरणसमाधि" मूलं एवं संस्कृतछाया प्रत सुत्रांक ॥९॥ SAGAR अथ मरणसमाधिः ॥१०॥ तिहुयणसरीरिवंदं सप्प (संघ) वयणरयणमंगलं नमिउं । समणस्स उत्तमढे मरणविहीसंगहं बुच्छ॥१॥ है॥१२३६ ।। सुणह सुयसारनिहसं ससमयपरसमयवायनिम्मायं । सीसो समणगुणहूं परिपुच्छइ वायगं कंचि ॥२॥१२३७ ॥ अभिजाइसत्तविकमसुयसीलविमुत्तिखंतिगुणकलियं । आयारविणयमवविजाचरणागर दीप अनुक्रम अथ मरणसमाधिः ॥ त्रिभुवनशरीरिवन्धं सत्प्रवचनरचनामंगलं नत्वा । श्रमणस्योत्तमार्थाय मरणविधिसंमहं वक्ष्ये ॥ १ ॥ शृणुत।। Rधुतसारनिकर्ष खसमयपरसमयवादनिष्णातं । श्रमणगुणाढ्य कंचित् वाचकं शिष्यः परिपृच्छति ॥२॥ ममिजातिसरवविक्रमातशीलविमु-पद अथ मरणविधिः आरभ्यते ~ 4~Page Navigation
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