Book Title: Vasupujya Swami Pratishtha Vidhi Suchak Stavan
Author(s): Diptipragnashreeji
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 26 श्रीवासुपूज्यस्वामी - प्रतिष्ठाविधिसूचक स्तवन १९मा सैकाना प्रभावक तथा विद्वान् जैन आचार्य श्रीसौभाग्यलक्ष्मीसूरि महाराजना शिष्य मुनि प्रेमविजयजी महाराजे रचेल श्रीवासुपूज्यस्वामिप्रतिष्ठाविधिसूचक स्तवन अत्रे रजू करतां आनंद थाय छे. संपादननी दिशाभां अज्ञ तथा अणघड होवा छतां पूज्य आचार्यादि गुरुभगवंतोना मार्गदर्शनना टेके टेके आ एक प्रयास मारी अल्पमतिथी कर्यो छे. आमां क्षतिओ रही हशे ज तेनी मने खातरी छे. ते क्षम्य गणवानी तथा ते तरफ ध्यान दोरवानी विनंति करूं छु. सूरतमां गोपीपुरा विस्तारमां आजे पण आ स्तवनमां वर्णित श्रीवासुपूज्यस्वामीनुं भव्य जिनालय मोजूद छे; ते त्यां लालमणिदादाना देरासर तरीके पण ओळखाय छे. ते देरासरना प्रणेता शाह रतनचंदना वंशपरंपरागत वारसदारो आजे पण विद्यमान छे. अने तेमणे आ देरासरनो जीर्णोद्धार करावी थोडांक वर्षों पूर्वे (सं.२०३२ मां) तेनी पुनः प्रतिष्ठा पण करावी छे. ढाल १ मां (कडी - ११) उल्लिखित माणिभदेवनी प्रभावक प्रतिमा पण त्यां छे, जेने कारणे ज लालमणिदादा - एवं नाम प्रसिद्ध थयुं जणाय छे. 1 सं. साध्वी दीप्तिप्रज्ञाश्री स्तवनां प्राप्त थती ऐतिहासिक हकीकत ए ले के आ देरासर बनाबनार श्रावक स्तनचंद, शत्रुंजयतीर्थनो पदरमो जीर्णोद्धार करावनार समराशा ओसवालनी वंशपरंपरामां आवे छे तेवुं आ स्तवनमा (ढाल १, कडी १) जणावायुं छे. स्वननो मुख्य विषय, वासुपूज्य देरासरनी प्रतिष्ठा- अंजनशलाकाना रतनचंद शेठे करेल दशा दिवसना महोत्सवनुं विशद वर्णन छे. उत्सवमां कया दिवसे कई क्रिया थई, तेनुं चित्र स्तवनकारे रूडी रौते आलेखी बताव्युं छे. एम जैन आगमो तथा शास्त्रमां वर्णित, तीर्थंकरना जीवननी घटनाओनुं पण वर्णन कर्तुं छे, अने साधे साथै उत्सवमां ते ते घटनाओ परत्वे केवी केवी क्रियाओ करी हती तेनुं पण चित्र आप्युं छे. आमां देरासरनी प्रतिष्ठानी संवत / तिथि ( ढाल - १०, कड़ी ६) पण मळी आवे छे, ते जोता आकृति धर्मपरक होवा छतां ऐतिहासिक पण गणाय तेवी छे. प्रतिष्ठाकारक आचार्यमहाराजनुं जुदुं नाम क्यांय देखातुं नथी, तेथी संभव Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 27 छे के सौभाग्यलक्ष्मीसूरि महाराजे ज प्रतिष्ठा करावी होय. तेनो साचो ख्याल तो ते प्रतिमा परना लेख वांचीए त्यारे ज आवी शके. १३ ढाल अने १२४ कडीमां पथरायेलुं आ स्तवन पूज्य आचार्य श्रीशीलचंद्रसूरिजी म. पासेथी मने मळेल ३ पानांनी अने सं. १८५२ मां लखायेली प्रति उपरथी तेओनी दोरवणी अनुसार ऊतायुं छे. ते प्रतिनां पानां एक तरफथी पाणीमां के तेलमां खरडायेला होवाथी अमुक भाग उकेली शकायो नथी. ते ते स्थाने जया खाली राखी छे. श्रीवासुपूज्य स्तवन (प्रतिष्ठा सूचक)॥ ॥ श्री जिनाय नमः ॥ श्रीवासुपूज्यजिणंदने प्रणमुं गुण अभिराम जेहनें नामे संपजे सफल मनोरथ धाम ॥१॥ त्रिभुवन वंदन पावनो वसुपूज्यनंदन देव वंदन भाव सहित करी तवन करुं ततखेव ॥२॥ (आदिजिणंद मया करो-ए देशी II) पुन्य प्रभावक उपना ओसवाल वंश प्रसिधो रे समरासारंग सेत्तुंजातणो . जिणें पनरमो उद्धार कीधो रे ॥१॥ धन धन श्री जिनसाशनें ॥ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवलख बंदिवाननें छोडावि यस लिधो रे तसु वंशें सुरतबिंदरे वसतां कारिज सिधो रे ॥२॥ ध० । 28 खेमराज मेघराजना झवेरसा व्यवहारी रे तस सुत पुण्य पवित्र जयो रतनचंद सुखकारी रे ॥३॥ ध० । एकदा गुरुमुखें सांभलि वासुपूज्य संबंध रे । रोहिणीचरीत्रनें धारीनें हर्षथयो पूण्यबंध रे ॥ ४ ॥ ध० । वासुपूज्य महाराजनो निपजावुं प्राशाद रे मोंहमांग्या धन खरचिनें भूमिका शुद्धि आह्लाद रे ॥५ ॥ ६० । रंगमंडप रलियांमणो कोणि मेढि उदार रे भारो तेजें झलहले गर्भावास निवारे रे ॥६॥ ६० । धन खरच्युं मोटें मनें जिनमंदिर सुभ काज रे देवविमान समो देखी हरख्यां संघ समाज रे ॥७॥ ध० । Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंद्र परे उज्वल कांति पाषाण दल मंडाव्यां रे दूर देस थी आंणियां शिलावट मन भाव्यां रे ॥८॥ ध० । 29 पंचसूत्तर सित्तेर भागनि पडिमा जिननी भरावि रे करण चरणनि सित्तरि पांमवा जेह जणावि रे ॥ ९ ॥ ध० | मांन प्रमांणें बिंब तें सवि जननें सुखदाइ रें संपूरण मूरति थई रतनसा हरख वधाइ रे ||१०|| ध० । कुमार यक्ष चंडा देवि वासुपूज्यपद-रागिरे यलें विघन मांणिभद्रजि दिई सांति पुष्टि सोभागि रे ॥ ११ ॥ हवे प्रतिष्ठा कारणें ए पुरव सन्मुख सार तो ( ॥ भरत नृप भावस्यूं ए - ए देशी ।। ) वेदिका सुभ रचि ए । दोढ हाथ उन्नत भलि ए पुरीत वस्तु उदार तो वे० ॥२॥ पंच स्वस्तिक श्रीफल ठवो ए पंचरतन भूपीठ तो अष्ट सुगंधे विलेपीयो ए वे० । करीइं धूप उकिट्ठ तो ॥२॥ वे० । ध० | Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 30 बार अंगुलमां ग्रंथी नहि ए उन्नत सरल उत्तम तो वे० । चउ विदिशि चउ वंसनें ए थापे मन उछरंग तो ॥३॥ वे० । वंसपात्रमा जवारका ए . चउ वंशे सात सात तो वे० । पुन्य अंकूर जाणे उगीया ए वितान तोरण पांति तो ॥४॥ वे० । समोसरणने प्रथम समें ए पीठ रचे सुरराज तो वे० । तिम इहां सुभ मुहुरत-दिने ए भूमी शुद्ध महाकाज तो ॥५॥ वे० | हवे जल लेवा कारणे ए थयो उजमाल पून्यवंत तो। जलयात्रा भणि ए हयवर सिणगार्या घणा ए मयगल मदमलपंत तो ॥६॥ ज० । देवानंदा जिम विरने ए वृषभ रथ कर्या सझ तो ज०। पंचमा अंगमां वरणव्यां ए तिम इहां रथ घन गज्ज तो ॥७॥ ज० । भेरी भुंगल सरणाइओ ए ढोल निशांन वाजिंत्र तो ज० । संघ चतुर्विध बहू मल्या ए ध्वजा लहकंत पवित्र तो ॥८॥ ज० । Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 सोहव गीत मंगल भणे ए नरनारिना थोक तो ज०। प्रसन्न करि जलदेवता ए मंत्र सनाथ सलोक तो ॥९॥ ज० । सोल सिणगारे सोभती ए रुविवंति चउ नारि तो ज० । सजल कलस शिर पर ठवि ए आवे जिन दरबार तो ॥१०॥ ज० । प्रभुने जिमणि दिशि ठवे ए देइ प्रदक्षणा मान तो ज० । संघ सत्कार आडंबरे ए रतनसा हरख प्रमाण तो ॥११॥ ज० । ढाल [३] ॥ (देव नाहना छोकरां थावे वीरनें खंधोले चढावें – ए देशी 1) हवे मंगलकलशनि रचना करिइ विधियोग नि यतना - - - - - - - अड चित्र मध्ये कुंकुमसाथीओ मंत्र ॥१॥ पंच रतननें द्रव्य अभंग माहिं ठविइं मन उछरंग मोटो सनाथमहोच्छव कीजे तथा बिंबप्रवेस तिहां किजे ॥२॥ नवा बिंब प्रतिष्ठां हौवे तिहां कुंभथापन धुरी जोवे प्रभु जिमणि दिसें मनोहार दीपक जयणा सुखकार ॥३।। Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 32 कुंभचक्रे नक्षत्र आवे सवि पाप ताप संमावे कंठे फुल माल नालेर सुभ वस्त्र आछादित सार ॥४॥ शालि-स्वस्तिक उपर था सुंदरी गीत ग्यांन आलापे जिन साशनमां ए करणी निरविघन तणि ए नीसरणी ॥५॥ सवि अंकमां अक्षय अंक तेह मानें गणवो निस्संक सोहव पुत्रवंति नारी नवपदनो मंत्र संभारी ॥६॥ थिर सासें अखंड धारे जल पुरीजें सुभवारे लघुस्नात्र ते दिनथी सोहिई शांति स्मरण त्रिसंझ जोइइं ॥७॥ एह किरीयामां हुसीयारी त्रिकरण योगें व्रतधारी उज्वल तास वछि गवरी (?) घृतदीप पूरे शुभ कुंमरी ॥८॥ सूर्यकांतिनो देवता योगें धर्मदीपक प्रगटें उद्योगे इम कुंभथापन दीपयुगति । सौभाग्यलक्ष्मिसूरी शक्ति ॥९॥ इति कुंभथापना-भास। Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 33 ढाल [4] // (फतमल गइथी हुं पाणीडे तलाव ए देशी // ) सुरिजन बीजे दीवसे सुजांण सोवन-पट्टे सोहतो सूरिजन सुगंधना सात लेप सोवन लेखनि दिपतो // 11 // सु० नंदावर्त लिखंत कल्यांण वेलनो कंद ए सु० जन जननि गढ त्रिण (?) राजित परमानंद ए // 2 // सु० खेत्रपाल आहवान त्रिजे दिवसें किजीए सु० नवग्रह दश दिगपाल आठ मंगल थापी पुंजीए // 3 // सु० सिद्धचक्रनि सेव चोथें पांचमें दिहाडले सु० वीसथांनिकनि भक्ति धरता रतनचंद हियडले // 4 // जगपति वासुपूज्यनो जीव पदमोत्तर भूप संयमी जगपति ‘वीसथांनिक तप' कीध. भव त्रिजे गुण अभिरांमी // 5 / / ज० बांधी तिर्थंकर गोत्र प्रांणत स्वर्गे सुधामिया ज० विस सागरनुं आय भोगवि जयाकुखे पांमीया // 6 / / Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 34 ज० चंपानगर मझार वसुपूज्य भूपति गुंणनिलो ज० जयारांणि गुणखांण सर्व स्त्रीजातिमां सीरतीलो // 7|| ज० जेठ सुदि नवमी जांण गर्भावासें अवतर्या ज० पोढि पल्यंग मझार सुख निंद्राइं अलंकर्या // 8 // ज० चउद सुपन तिहां दीठ तस फल शास्त्रमा दाखीओ ज० चवनकल्यांणक धारि प्रांणथापन बिंबे भाखिओ // 9 // ज० इंद्र आवी ततखेव वंदि जननि कुशल पूछे ज० त्रिण ज्ञान भगवान उगतो रवि सम रूप छे // 10 // सु० छठे दिवसें ए काज किजे किरिया अतिभलि सु० रतनसा हरख अपार धन खरचिजें मन रलि // 11|| // ढाल // [5] ( आवो जमाई प्रांहूणा जयवंताजी ए देशी / / ) ऐरावण गजपति कहे सुणो मातजी करसें मुझ स्वामि सेव तव सुत जातजी मुझ परे क्षमाभार वहस्ये तुम नंदनजी इम कहीतो धोरी दीठ नयनानंद[न]जी // 1 // Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 35 रागद्वेष-गजगंजनो कहे सीहोजी दीठो जया रांणि तेह धर्मसमीहोजी माहरो चपल दोष वारस्ये पुत्र सेवाजी सीरीदेवी विनवें एम तत्व कहेवाजी // 2 // जांणिइं फूलमाला वदे देखे देविजी पसरसें मुझ परे वास किरती तहेविजी चंद्र कहे मुझ ओपमा सुत मुखनेजी चंद्रमुखी मन धारी पुरण सुखनेजी // 3|| मोहनीशाने चूरसें जायो नाथजी जणावतो सुरय दीठ सुत जगनाथजी - - - - सहस जोयणी जसु होसेजी इम जांणी ध्वज जलपंत जग दुख खोसेंजी // 4 // थांनक ए गुण रयणनुं सहिजायोजी कहेवा आव्यो निधि कुंभ निसुणो मायोजी मुझ परे त्रिभुवन जीवनजी तृखा हरसेंजी जांणीइं सरोवर पद्म वांणि वरस्येजी // 5 / / सायर कहे एह मुझ थकी महागंभीरोजी कहेवा आव्यो छु मात पुण्यमंदीरोजी वैमानिक नमस्यें सुरा मांन मोडीजी वदतो एम विमान निरखे माडीजी // 6 // जगदाभरण शोभा वधस्ये विश्वानंदीजी उचरंती रयणभार]थाल जोवे आनंदेजी तव सुत कर्म इंधण दहस्यें ध्यान अगर्नेजी इम कहे मानिइं मात चउदमें स्वप्नेजी // 7 // Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 36 चउद स्वप्न देखी जागीया जया राणीजी तेहनो अरथ सुणी साच मन हरखांणी जी चउद सुपन महोच्छव कियो रतनचंदेजी हरखें मनह मझार प्रभु पद वंदेजी // 8 // ढाल [6] // ( मधुकर माधवने कहीजे रे - ए देशी / ) फागुण वदि चउदस रजनि रे सुत प्रशवे जयादेवि जननी रे हरखे सवि मेदनी सजनी रे जिनपति जगगुरुजी जाया रे दिशिकुंमरीइं हुलराया रे // 1 // अधोलोकवाशि दिशिकुमरी रे जिन जन्म अवधिनांणे समरी रे आवी आठ तसें अमरी रे जिन० // 2 // समीरे जोयण भूमि समारी रे ईशानें सूति घर विस्तारी रे उभी गुण गाइं ते सारी रे जि० // 3 // उर्द्धलोकथी आठ देवी रे आवी जल-फूलने वरसेवी रे भूमी योजनमित्त करेवि रे जि० // 4 // पूर्व रुचकथी आठ देवी रे आठ दर्पण हाथमा ल्यावी रे प्रणमि पूर्व दिशि ठावी रे जि० // 5 // दक्षिण रुचकथी दिगकन्या रे Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 37 आठ कलश ग्रहि धनमन्या रे जिन माय नमि गीत भण्या रे जि० // 6 // आठ पश्चिम रुचकथी आवे रे वायु विजणे हाथ सोहावे रे ते दिशि रहि जीनगुण गावे रे जि० // 7 // चामर चतुरा अड धरती रे उत्तर रुचकथी अवतरति रे दोइं नमि भवदूख हरती रे जि० // 8 // च्यार विदिशि थकी दिशिसुरी रे दीपक कर कांति पूरी रे प्रभुनु मुख जीवा सनुरी रे जि० // 9 // मध्य रुचकनी च्यार देवी रे नालच्छेदनि किरिया करेवि रे खांनि रतनपूरीत धरेवि रे जि० // 10 // केलनां घर त्रिणे विरचि रे नवरावे पहेरावि अरचि रे जनम मंदिर थापे चरचि रे जि० // 11 // छपन दिशि कुंमरी जेहवो रे रतनसा करे ओछव तेहवो रे यश तसु बहुमांने केहवो रे जि० // 12 // ॥ढाल // [7] ( पुण्ये विमळा दोहला रे जया सफला होय - ए देशी // ) अवधिनांणे जांणीओ रे सोहमपति जिन जन्म घंट सुधोषा वजडावीयो कांइ सेनानी सेनानीनो ए कांमतो जन्माभिषेक करो प्रांणीया ए // 1 // Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 38 एकोन बत्रिस लाखना रे घंटनाद विशाल निसुणि परीकर परवर्या कांइ आवे ए आवे ए इंद्र अनुसार तो ज० // 2 // पालक मुंकी नंदिस्वरे रे बीजुं रचिय विमान मंदिर जिन जननि भणि कांई त्रिण ए त्रिण ए प्रदक्षणा दान तो ज० // 3 // इंद्र कहे जिन जनम महोछव करवो जे तुझ जात अवस्वापिनि प्रतिबिंब ठवी पंचरूपें ए पंचरूपें ए ग्रहे जगतात तो ज० // 4 // मेरू पंडुकवन विषे रे लेई उछंगे स्वामि शक्र सिंहासन बेसीने कांई भक्तिथी भक्तिथी सेवन काम तो ज० // 5 // इम निज निज थांनक थकि रे आविया चोसठ इंद पेहेलो अभिषेक आदरे कांई मनमोदें ए मनमोदे अच्युत इंद तो ज० // 6 // सेवक सुर आदेशथी रे लावे तीरथनां नीर चंदन फुल कलश घणां कांई मेले ए मेले ए जिनवर तीर तो ज० // 7 // नाटक गीत मोटे स्वरे रे वाजिबना धोकार थेई थेई सुरनारि करे रे कांई भूषण भूषण नो झलकार तो ज० // 8 // त्रेसठ सुरपति स्नात्र महोछव किधो मन उल्लास ईशांन पंच रुपें करी काई अंके ए अंके धरे जिन खास तो ज० // 9 // Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 39 सोहम वसह ने च्यार रूपें रे आठ सिंगे पयपुर करे सनाथ जगनाथर्नु कांइ निरमल निरमल जिनवर नुर तो ज० // 10 // मंगल आठ आलेखियां रे आरति मंगल दीप करे स्तवना वासुपूज्यनि कांई आणी ए आंणिने भाव समीप तो ज० // 11 // नमि स्तवि सोहमधणि रे मात पासे ठवंत हेम रयण वुठि करी कांई ठांमे ए ठांमे ए निज उलसंत तो ज० // 12 // महोछव चोसठ इंद्रनो रे रचिओ मनने उदार रतनसाइं निज धनतणो कांई लोहो ए लोहो ए लीधो अपार तो ज० // 13 // सुगंध चूर्णादिकतणां रे आठमें वासर सार अढार सनाथ ते नवनवा रे कांइ किधां ए किधां ए मंत्र उचार तो ज० // 14 // ढाल / / [8] ( पीठी चोले पीठी चोले य(वीसराणी?) ए देशी / / ) अतिसय सहेजना च्यार रे लक्षण अंग अपार रे आठ एक सहस विराजे रे अमीय अंगुठडे छाजे रे // 1 // त्रिभुवन आनंद कंद रे काइ कांति वधे जिम चंद रे भणवा योग वय जांणि रे निशाले ओछव आणि रे // 2 // Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 40 पाठिक दिलना संदेह रे टाले अवधिथी तेह रे त्रणस्युं ज्ञाने निरमला रे मुख मुख वाणि रशाला रे // 3 // यौवन प्रभुजीने देह रे धारे मातपीता म-मेह रे पद्मावति राजकन्या रे सम्मुख आवी लावण्या रे // 4 // सुभ वेला शुभ लगने रे जोवे विवाह सुर गगने रे इंद्र इंद्राणी ओहीनांणे रे करे (वीनती?) तेह टाणे रे // 5 // मोक्ष रोधी भोगकर्म रे भेदेवा करग्रह मर्म रे कामिनी करवाल साही रे कांमे आण मनाइ रे / / 6 / / पहेलू मंगल होवे रे लाख तुरंगम देवे रे बीजु मंगल आवे रे गज बहुला प्रभुने आवे रे // 7 // त्रिजुं मंगल वरते रे कोड़ी भूसण दान देवे रे मणिमुगता फल - - - - चोथे मंगल - -- - -- // 8 // Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवाह ओछव कीधो रे मोटे मंडाणे जश लीधो रे निरागपणे वितराग रे भोगवता पुन्य भाग रे // 9 // पद्मावति सुत जायो रे मघवा नाम गवायो रे सुतनी सुता पुण्यवंति रे रोहिणी अशोक विलसंति रे // 10 // जन्मथी वरस अढार लक्ष रे कर्म फल जांणि नांणे प्रत्यक्ष रे जया-वसुपूज्य समझावी रे संयम दिलमांहे लावि रे // 11 // ढाल // [9] ( वीर वखांणि रांणि चेलणाजी - ए देशी // ) पंचम स्वर्गथी आवीयाजी देव लोकांतिक जेह वीनती करे वासुपूज्यनें जी संयम लहो गुंण गेह // 1 // वसुपूज्यनंदन वंदिइंजी // दांन संवच्छर देइनेंजी / खटसय नरवर साथ अमावासिं फागुणनी भलीजी दीक्षा लीइं जगनाथ // 2 // व० / Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 42 सुरवर नरवर बहु मलिजी वाजिबनो नही पार तृतिय कल्यांणिक इण परेजी रतनसा हर्ख उदार // 3 // व० / एह विधि नवमें दिवसें करयोजी अधिवासना सुखकार रजनी समें सदगुरु तिहांजी मंत्र पवित्र विस्तार ||4|| व० / प्रणवमय तीर्थनायक प्रभुजी अतिशय रयण भंडार त्रिभूवन पावन सुरतरुजी करो एह मुरति अवतार // 5 // व० / वरस दिवस छदमस्थपणेजी विचरी लडं केवलनांण माहा सुदि बिज दीवसें भलोजी वरतता सुकलध्यान // 6 // व० / अतिशय शोभा पूरण थइजी सकल पदारथ जांण गणधर संघनी थापनाजी बेठा त्रिगडे जीनभाण // 7 // व० / ढाल / [10] ( मोह्या मोह्या रे त्रिभुवन लोक गुरुनें बोलडीइं - ए देशी / ) हिवें दशमें दीन अंजन सीलाका शुभ मुहुरत थीर योगे रें विधि सहीत करीइं उछरंगें द्रव्यभाव संयोगें अंजन शिलाका रे किजे किजे रे अति उल्लास प्रभु गुण धारी रे // 1 // Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोविरंजन माणिक्यवरणे कस्तुरी घृत सार रे घनसारादिक जोइइं वस्तु मेलवीइं मनोहार // 2 // अं० // सोहव पंचनारी गुणवंति ए अंजननें समारे रे कंचन भाजनमें ते थापें पवित्र पणो मन धारे // 3 // अं० / / प्रतिष्ठा विधिनुं सार ए जांणि सुरीस्वर गुणधारी रे कंचन रुप्य सिलाका ग्रहीनें मंत्र स्वरोदय संभारी // 4 // अं० / / केवलज्ञान में केवलदर्शन प्रगट्यो परम उद्योत रे थापना सत्य कही ठाणंग सुत्रे जिन प्रतिमा जिन होत // 5|| अं० // वैशाख सुदि नंदा तिथीं बिजी शशी सींह लगनें आवे रे संवत अढार त्रेतालिस वरसें बेठ भग्वंत सोहावे // 6 // अं० / / लक्ष्मिसूरि ते समयें विनवें वासुपूज्य महाराया रे थिरभावे समोसरणे बेठा भगतवछल सुखदाया // 7 // अं० / / सर्वाभरणस्युं अंगि अनोपम रतनसा सर्व बनावे रे जनम सफल करवाने कारण समकित तत्व दीपावे // 8 // अं० / / एकसों आठ जें तिरथना जल सनाथ काव्य उचारे रे मंगल दीप नैवेद्य धरीने सिव कल्यांणिक धारे // 9 // अं०॥ ढाल / / [11] . ( आसणरा योगी ए देसी / / ) श्रीवासुपूज्य प्रभुने वयणे थया व्रतधारी संघ रे जिनवर गुणगेहा मुनीवर बहुतेर सहस सोभंता साधवी लक्ष निसंगा रे प्रणमो जिनराया // 1 // दोय लक्ख पन्नर सहस उपासक चउलक्ख बत्रिस सहसा रे जयासुत जयवंता। Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 44 // 3 // श्राविका शिलवंति गुणवंति मनमां न पाप प्रवेशा रे संयम गुणवंता // 2 // चंपापुरीमां शिवपद पांम्या छसे पुरुष परवरीया रे अविनासी आनंदा आषाढ सदि चउदिशि दिन लायक सादि अनंत अनुसरीया रे सुख परम आनंदा // 3 // चोपन लाख वरस संयमधरी सुखभर भोगवि आयु रे वसुपूज्य सुत वंदो बहोत्तेर लाख वरसनुं निरूपम सहजानंद पद थाय रे चिदानंद महेंदो // 4 // पंचकल्यांणिकना बहु ओछव करीने पडिमा थपावे रे श्रावक पून्यवंता रतनसा नितनीत नवलि भक्ति करता धर्म दीपावे रे शासन जयवंता // 5 // जिन प्रतिमा जिनसरखि धारी समकित तत्त्व सुधारे रे अनुभवना रसिया विजयसौभाग्यलक्ष्मीसूरि भावें प्रभुगुंण अनंत संभारे रे जिनमंदिर वसीया // 6 // ढाल // [12] ( आवो आवो रे सयणां भगवति सुत्रने सुणीई - ए देशी // ) श्रीजीनमंदिर तखते दिवाजे वासुपूज्य जयवंता प्रासाद बिंब प्रतिष्ठा ओछव रतनसा हरखें करंता / भवि तुमे वंदो रे वासुपूज्य जिनराया // 1 // मलुकसा बांधव निज हेते ऋषभदेवनी प्रतिमा भूमिघरमा थपावे मोटो आनंद अधिको महिमा // 2 // भ० // Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 45 देहरा उपर मनमोहनजी पास प्रभु पधरावे खरचे धन तस पूजा कामे जिनशासन शोभावे ||3|| भ० // त्रिभुवनना जिन समरण काजे त्रिहुं ठांमे जिन छाजे जसु नामे दुख दोहन भाजे संपद धर्म विराजे // 4 // भ० // धन झकुंबाइनें कुखे उदया रतनचंद कुलचंदा जेहनें धननो लाहो लीधो पांमे महोदय वृंदा // 5 // भ० // संघ चतुर्विध साहमीवछल करतां मन नवि खोभे बहु पकवांन-मेवानि-वडाई दांन माने घणुं सोभे // 6 // भ० // याचक जन बहु याचवा आव्या पंच पसाउ ते पांम्या मेघतणी परें वरसें दांने साधु भगति थिर धांमा // 7 // भ० // ढाल // [13] ( राग-धन्याशि / / ) श्रीवासुपूज्य प्रभुना गुण गावो मिथ्या दूरीत मिटावो रे मुगता फलना थाल भरीने मुरति प्रभुनें वधावो रे // 1 // श्री० / सुख संपद गुंणग्यान विशाला सद्दहणा दिल लावो रे आनंद रंग रसाल महोदय पुण्य कारण प्रभु ध्यावो रे // 2 // श्री० / सुरतरु सुरमणि कामगवि शुभ कांमकुंभ जणावो रे पुण्यरतनागर जिन-प्रतिमानें त्रिभुवन वंदन आवो रे // 3 // श्री० / Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 46 पुत्र कलत्र हय गय रथमंदिर सुंदर धरमसुं दावो रे प्रभुपद भक्ति शक्तिथी लहीए नरभव पुण्य दीपावो रे // 4|| श्री० / श्रीविजयसौभाग्यसूरि तपागच्छे ते गुरुनो सुप्रभावो रे तस सीस प्रेमविजय स्तवना करी परमानंद सुख पावो रे // 5 // श्री० / कलश // श्री वासुपूज्य जिनेंद्र साहिब थापीय जिन मंदिरें रतनचंदे मन आनंदे पुत्र कलत्र धन परीकरे थापना थापक तवन कारक रवि शशि लगे थीर रहो प्रेमविजय कहे प्रभुं पसायें सकलसंघ मंगल लहो // 10 // _इति श्रीवासूपूज्य जिन स्तवनं संपूर्ण // सं-१८५२ ना फागुण वदि 13 तिथौ रविवासरे पं. खिमाविजयगणिलिखितं श्रीस्यांणामध्ये स्वअर्थे / विहारमध्ये // इति श्रीप्रतिष्ठाविधिसूचकं स्तवनमे 卐