________________ सोविरंजन माणिक्यवरणे कस्तुरी घृत सार रे घनसारादिक जोइइं वस्तु मेलवीइं मनोहार // 2 // अं० // सोहव पंचनारी गुणवंति ए अंजननें समारे रे कंचन भाजनमें ते थापें पवित्र पणो मन धारे // 3 // अं० / / प्रतिष्ठा विधिनुं सार ए जांणि सुरीस्वर गुणधारी रे कंचन रुप्य सिलाका ग्रहीनें मंत्र स्वरोदय संभारी // 4 // अं० / / केवलज्ञान में केवलदर्शन प्रगट्यो परम उद्योत रे थापना सत्य कही ठाणंग सुत्रे जिन प्रतिमा जिन होत // 5|| अं० // वैशाख सुदि नंदा तिथीं बिजी शशी सींह लगनें आवे रे संवत अढार त्रेतालिस वरसें बेठ भग्वंत सोहावे // 6 // अं० / / लक्ष्मिसूरि ते समयें विनवें वासुपूज्य महाराया रे थिरभावे समोसरणे बेठा भगतवछल सुखदाया // 7 // अं० / / सर्वाभरणस्युं अंगि अनोपम रतनसा सर्व बनावे रे जनम सफल करवाने कारण समकित तत्व दीपावे // 8 // अं० / / एकसों आठ जें तिरथना जल सनाथ काव्य उचारे रे मंगल दीप नैवेद्य धरीने सिव कल्यांणिक धारे // 9 // अं०॥ ढाल / / [11] . ( आसणरा योगी ए देसी / / ) श्रीवासुपूज्य प्रभुने वयणे थया व्रतधारी संघ रे जिनवर गुणगेहा मुनीवर बहुतेर सहस सोभंता साधवी लक्ष निसंगा रे प्रणमो जिनराया // 1 // दोय लक्ख पन्नर सहस उपासक चउलक्ख बत्रिस सहसा रे जयासुत जयवंता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org