________________ 42 सुरवर नरवर बहु मलिजी वाजिबनो नही पार तृतिय कल्यांणिक इण परेजी रतनसा हर्ख उदार // 3 // व० / एह विधि नवमें दिवसें करयोजी अधिवासना सुखकार रजनी समें सदगुरु तिहांजी मंत्र पवित्र विस्तार ||4|| व० / प्रणवमय तीर्थनायक प्रभुजी अतिशय रयण भंडार त्रिभूवन पावन सुरतरुजी करो एह मुरति अवतार // 5 // व० / वरस दिवस छदमस्थपणेजी विचरी लडं केवलनांण माहा सुदि बिज दीवसें भलोजी वरतता सुकलध्यान // 6 // व० / अतिशय शोभा पूरण थइजी सकल पदारथ जांण गणधर संघनी थापनाजी बेठा त्रिगडे जीनभाण // 7 // व० / ढाल / [10] ( मोह्या मोह्या रे त्रिभुवन लोक गुरुनें बोलडीइं - ए देशी / ) हिवें दशमें दीन अंजन सीलाका शुभ मुहुरत थीर योगे रें विधि सहीत करीइं उछरंगें द्रव्यभाव संयोगें अंजन शिलाका रे किजे किजे रे अति उल्लास प्रभु गुण धारी रे // 1 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org