________________ 46 पुत्र कलत्र हय गय रथमंदिर सुंदर धरमसुं दावो रे प्रभुपद भक्ति शक्तिथी लहीए नरभव पुण्य दीपावो रे // 4|| श्री० / श्रीविजयसौभाग्यसूरि तपागच्छे ते गुरुनो सुप्रभावो रे तस सीस प्रेमविजय स्तवना करी परमानंद सुख पावो रे // 5 // श्री० / कलश // श्री वासुपूज्य जिनेंद्र साहिब थापीय जिन मंदिरें रतनचंदे मन आनंदे पुत्र कलत्र धन परीकरे थापना थापक तवन कारक रवि शशि लगे थीर रहो प्रेमविजय कहे प्रभुं पसायें सकलसंघ मंगल लहो // 10 // _इति श्रीवासूपूज्य जिन स्तवनं संपूर्ण // सं-१८५२ ना फागुण वदि 13 तिथौ रविवासरे पं. खिमाविजयगणिलिखितं श्रीस्यांणामध्ये स्वअर्थे / विहारमध्ये // इति श्रीप्रतिष्ठाविधिसूचकं स्तवनमे 卐 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org