________________ 45 देहरा उपर मनमोहनजी पास प्रभु पधरावे खरचे धन तस पूजा कामे जिनशासन शोभावे ||3|| भ० // त्रिभुवनना जिन समरण काजे त्रिहुं ठांमे जिन छाजे जसु नामे दुख दोहन भाजे संपद धर्म विराजे // 4 // भ० // धन झकुंबाइनें कुखे उदया रतनचंद कुलचंदा जेहनें धननो लाहो लीधो पांमे महोदय वृंदा // 5 // भ० // संघ चतुर्विध साहमीवछल करतां मन नवि खोभे बहु पकवांन-मेवानि-वडाई दांन माने घणुं सोभे // 6 // भ० // याचक जन बहु याचवा आव्या पंच पसाउ ते पांम्या मेघतणी परें वरसें दांने साधु भगति थिर धांमा // 7 // भ० // ढाल // [13] ( राग-धन्याशि / / ) श्रीवासुपूज्य प्रभुना गुण गावो मिथ्या दूरीत मिटावो रे मुगता फलना थाल भरीने मुरति प्रभुनें वधावो रे // 1 // श्री० / सुख संपद गुंणग्यान विशाला सद्दहणा दिल लावो रे आनंद रंग रसाल महोदय पुण्य कारण प्रभु ध्यावो रे // 2 // श्री० / सुरतरु सुरमणि कामगवि शुभ कांमकुंभ जणावो रे पुण्यरतनागर जिन-प्रतिमानें त्रिभुवन वंदन आवो रे // 3 // श्री० / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org