________________ 38 एकोन बत्रिस लाखना रे घंटनाद विशाल निसुणि परीकर परवर्या कांइ आवे ए आवे ए इंद्र अनुसार तो ज० // 2 // पालक मुंकी नंदिस्वरे रे बीजुं रचिय विमान मंदिर जिन जननि भणि कांई त्रिण ए त्रिण ए प्रदक्षणा दान तो ज० // 3 // इंद्र कहे जिन जनम महोछव करवो जे तुझ जात अवस्वापिनि प्रतिबिंब ठवी पंचरूपें ए पंचरूपें ए ग्रहे जगतात तो ज० // 4 // मेरू पंडुकवन विषे रे लेई उछंगे स्वामि शक्र सिंहासन बेसीने कांई भक्तिथी भक्तिथी सेवन काम तो ज० // 5 // इम निज निज थांनक थकि रे आविया चोसठ इंद पेहेलो अभिषेक आदरे कांई मनमोदें ए मनमोदे अच्युत इंद तो ज० // 6 // सेवक सुर आदेशथी रे लावे तीरथनां नीर चंदन फुल कलश घणां कांई मेले ए मेले ए जिनवर तीर तो ज० // 7 // नाटक गीत मोटे स्वरे रे वाजिबना धोकार थेई थेई सुरनारि करे रे कांई भूषण भूषण नो झलकार तो ज० // 8 // त्रेसठ सुरपति स्नात्र महोछव किधो मन उल्लास ईशांन पंच रुपें करी काई अंके ए अंके धरे जिन खास तो ज० // 9 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org