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सोहव गीत मंगल भणे ए नरनारिना थोक तो ज०। प्रसन्न करि जलदेवता ए मंत्र सनाथ सलोक तो ॥९॥ ज० । सोल सिणगारे सोभती ए रुविवंति चउ नारि तो ज० । सजल कलस शिर पर ठवि ए आवे जिन दरबार तो ॥१०॥ ज० । प्रभुने जिमणि दिशि ठवे ए देइ प्रदक्षणा मान तो ज० । संघ सत्कार आडंबरे ए रतनसा हरख प्रमाण तो ॥११॥ ज० ।
ढाल [३] ॥ (देव नाहना छोकरां थावे वीरनें खंधोले चढावें – ए देशी 1) हवे मंगलकलशनि रचना करिइ विधियोग नि यतना - - - - - - - अड चित्र मध्ये कुंकुमसाथीओ मंत्र ॥१॥ पंच रतननें द्रव्य अभंग माहिं ठविइं मन उछरंग मोटो सनाथमहोच्छव कीजे तथा बिंबप्रवेस तिहां किजे ॥२॥ नवा बिंब प्रतिष्ठां हौवे तिहां कुंभथापन धुरी जोवे प्रभु जिमणि दिसें मनोहार दीपक जयणा सुखकार ॥३।।
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