________________ 35 रागद्वेष-गजगंजनो कहे सीहोजी दीठो जया रांणि तेह धर्मसमीहोजी माहरो चपल दोष वारस्ये पुत्र सेवाजी सीरीदेवी विनवें एम तत्व कहेवाजी // 2 // जांणिइं फूलमाला वदे देखे देविजी पसरसें मुझ परे वास किरती तहेविजी चंद्र कहे मुझ ओपमा सुत मुखनेजी चंद्रमुखी मन धारी पुरण सुखनेजी // 3|| मोहनीशाने चूरसें जायो नाथजी जणावतो सुरय दीठ सुत जगनाथजी - - - - सहस जोयणी जसु होसेजी इम जांणी ध्वज जलपंत जग दुख खोसेंजी // 4 // थांनक ए गुण रयणनुं सहिजायोजी कहेवा आव्यो निधि कुंभ निसुणो मायोजी मुझ परे त्रिभुवन जीवनजी तृखा हरसेंजी जांणीइं सरोवर पद्म वांणि वरस्येजी // 5 / / सायर कहे एह मुझ थकी महागंभीरोजी कहेवा आव्यो छु मात पुण्यमंदीरोजी वैमानिक नमस्यें सुरा मांन मोडीजी वदतो एम विमान निरखे माडीजी // 6 // जगदाभरण शोभा वधस्ये विश्वानंदीजी उचरंती रयणभार]थाल जोवे आनंदेजी तव सुत कर्म इंधण दहस्यें ध्यान अगर्नेजी इम कहे मानिइं मात चउदमें स्वप्नेजी // 7 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org