Book Title: Shrutsagar 2014 12 Volume 01 07
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर श्रुतसागर SHRUTSAGAR (MONTHLY) December 2014 Volume :01, Issue :07 Annual Subscription Rs. 150/- Price Per copy Rs. 15/Editor : Hiren Kishorbhai Doshi IA ILAL न नाकोडातीर्थे पूज्य गुरुदेवश्री की पुनित निश्रा में सूरिपदारोहण महोत्सव के चिरस्मरणीय क्षण - आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पू. गुरुदेवश्री की पुनित निश्रा में पचपदरा महोत्सव के कुछ पावन पल For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतसागर आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का मुखपत्र શ્રુતસાગર SHRUTSAGAR (Monthly) वर्ष १, अंक 7, कुल अंक-7, दिसम्बर २०१४ वार्षिक सदस्यता शुल्क रू. १५०/ अंक शुल्क रू. १५/ - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Year-1, Issue-7, Total Issue-7, December-2014 Yearly Subscription - Rs.150/ Issue per Copy Rs. 15/ आशीर्वाद राष्ट्रसंत प. पू. आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. * संपादक हिरेन किशोरभाई दोशी एवं ज्ञानमंदिर परिवार १५ दिसम्बर, २०१४, वि. सं. २०७१, मागशर वद-८ अमृतं तु विद्या प्रकाशक आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर-३८२००७ फोन नं. (०७९) २३२७६२०४, २०५२५२ फेक्स: (०७९) २३२७६२४९ Website : www.kobatirth.org Email: gyanmandir@kobatirth.org For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुक्रम १ संपादकीय हिरेन के. दोशी २ गुरुवाणी आचार्य बुद्धिसागरसूरिजी Beyond Doubt Acharya Padmasagarsuri ४ सत्यावीस साधु गुण गर्भित. जंबूस्वामी गुरु गहुंली डॉ. भानुबेन शाह १० ५ कथानकोनी विराट सृष्टि आपणी अमूल्य संपदा छे डॉ. गुणवंत बरवाळिया ६ हस्तलिखित पुस्तकोमा आवेला चौलुक्य राजाओना संवतो दत्तात्रेय बाळकृष्ण डिस्कळकर ७ पुस्तक समीक्षा डॉ. हेमंत कुमार ८ समाचार सार डॉ. हेमंत कुमार प्राप्तिस्थान: आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर तीन बंगला, टोलकनगर परिवार डाईनिंग हॉल की गली में पालडी, अहमदाबाद - ३८०००७ फोन नं. (०७९) २६५८२३५५ *प्रकाशन सौजन्य* पूज्य मुनिवर श्री पुनीतपद्मसागरजी म.सा.की प्रेरणा से संघवी शा.गणपतराज राजेशकुमार-पंकजकुमार चौपड़ा परिवार कल्पवृक्ष-कल्पतरु पाटोदी रोड, पचपदरा, जिल्ला-बाड़मेर(राज.) For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acharya Shrik संपादकीय हिरेन के. दोशी श्रुतसागरनो सातमो अंक तमारा हाथमा छे. नाकोडा तीर्थमां सूरिसिंहासनारोहण महोत्सव सोनेरी अक्षरोमां लखाई जाय ए रीते उजवाई गयो. प्रसंगनी विशेषताओना साक्षी बनी सहु प्रभुभक्तो अने गुरुभक्तो भावविभोर बन्या. महोत्सव तो उजावई गयो पण स्मृत्तिमां आजेय एनी छाप अमीट रही छे. केटलीक क्षण सोना जेवी होय छे क्यारेय एने विस्मृतिनो काट लागतो नथी. वरसो वरस ए तेज स्मृत्तिमां चळकतुं रहे छे. एवो ज आ प्रसंग रह्यो. पूज्यपाद गुरुदेवश्रीनी पुनित छत्रछायामां अने एमना द्वारा आ प्रसंग खूब सुंदर रीते संपन्न थयो. आ अंकनी वात:___ आ अंकथी पूज्यपाद योगनिष्ठ आचार्यदेवश्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. द्वारा लिखित तीर्थयात्रानुं विमान ए पुस्तकमाथी चूंटेला अंशने गुरुवाणी हेठळ प्रकाशित करवामां आव्यो छे. तो साथे साथे पू. बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. द्वारा रचित आत्मश्रद्धा काव्य आ अंकमां प्रकाशित करेल छे. तो साथे साथे आ अंकमांवाचकोनी मांगणीने अनुसार अंग्रेजी भाषामां पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. द्वारा अपायेल गणधरवाद विषयक प्रवचनना अंश आ अंकमां प्रकाशित कर्या छे. अप्रकाशित कृतिनी श्रेणिमां आ वखते उत्तमविजय कृत एक लघु कृति 'गुरु गुण गंहुली' अत्रे प्रकाशित करी छे. कृतिनी प्रस्तावनामां कृतिनो परिचय, कर्तानो परिचय, अने एनी विशेषताओनी नोंध थवा पामी छे. जे वाचकोने उपयोगी बनशे. कथा विषयक के कथा साहित्यने आवरी लेतुं साहित्य जीवननी आध्यात्मिक संपदामां घणुं उपयोगी अने प्रबळ रीते लाभकारी सिद्ध थयुं छे. अन्य त्रण अनुयोगनी अपेक्षाए कथानुयोग सुगम छे. कथानुयोगनी विशेषताओने वाचा आपतो लेख 'कथानकोनी विराट सृष्टि आपणी अमूल्य संपदा छे' आ अंकमां प्रकाशित करेल छे. जूना मेगेझिनोमाथी पुनः प्रकाशित थता लेखोनी श्रेणिमा पुरातत्त्व नामना मेगेझिनमांथी 'हस्तलिखित पुस्तकोमा आवेला चौलुक्य राजाओना संवतो' आ अंकमा प्रकाशित करेल छे. हजु पण आ संवतोनी यादीमां उमेरो थई शके छे. आ प्रकारनो उमेरो थशे तो लेखनु प्रकाशन सार्थक थयु गणाशे. दर अंके प्रकाशित थती पुस्तक समीक्षामां आ वखते सूत्र संवेदनाना भाग एकथी सातनो संक्षिप्त परिचय प्रकाशित थयेल छे. For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी आचार्य बुद्धिसागरसूरिजी तत्त्वज्ञान तत्त्वज्ञान विनाना जैनो पोतानु तथा परनुं भलं करी शकता नथी. ज्ञान विना कयु सत्य अने कयु असत्य ते जणातुं नथी. ज्ञान विना जगत्तुं स्वरूप समजातुं नथी. ज्ञान विना तीर्थंकरोनां लक्षण तथा गुरुनु तथा धर्म- लक्षण जाणी शकातुं नथी. ज्ञान विनानी धर्मक्रियाओ अंधनी क्रियाओनी माफक अल्प फळ देनारी थाय छे. पंच प्रतिक्रमण पोपटनी पेठे गोरखी गया, नवस्मरण गोखी गया, अर्थ विना शुद्ध उच्चार करी प्रतिक्रमणना सूत्रोने बोली गया, एटला मालथी कंई जैनतत्त्वज्ञानना प्रोफेसर बनी शकातुं नथी, माटे पोपटनी पेठे गोखणीयु भणी कोईए पोताने जैनतत्त्वज्ञानी मानी लेवानी अहंदशा करवी योग्य नथी. ___ नवतत्त्व, कर्मग्रंथ, सूत्रोना आशयो, नय, निक्षेपा, सप्तभंगी अने अध्यात्मज्ञाननां तत्त्वो समजवाथी जैन बनी शकाय. जैनतत्त्वज्ञान विना केटलाक क्रियाओ करे छे, पण हृदयनी उच्च दशा करी शकता नथी. करोडो वर्ष पर्यंत तप जप करीने पण अज्ञानी, जे आत्मानी शुद्धि करी शकतो नथी, तेटली आत्मानी शुद्धि ज्ञानी श्वासोश्वासमां करे छे. का छे के : ज्ञानी श्वासोधासमां, करे कर्मना खेह ज्ञानविना व्यवहारको, कहा बनावत नाच रत्न कहो कोइ काचकुं अन्त काचको काच क्रिया शून्यं च यज्ज्ञानं, ज्ञानशून्यं या क्रिया। अनयोन्तरं ज्ञेयं, भानुखद्योतयोरिव ॥१॥ देश आराधक किरिया कही, सर्व आराधक ज्ञान ॥ ज्ञानतणो महिमा घणो, अंग पंचमे भगवान् । पढमं नाणं तओ दया, पढमं नाणं तओ किरिया॥ ईत्यादि वाक्यो पण क्रिया करतां ज्ञाननी महत्तामा साक्षी पुरे छे. ज्ञान सूर्य समान For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 5 दिसम्बर - २०१४ श्रुतसागर छे अने क्रिया खद्योत (आगीया) जेवी छे. क्रियाथी भ्रष्ट ज्ञानी, देशथी विराधक छे अने सर्वथी आराधक छे, अने ज्ञानथी भ्रष्ट क्रिया करनार, देशथी आराधक छे पण सर्वथी विराधक छे, एम भगवती सूत्रमां कह्युं छे. ज्ञान विना मनुष्य रोझ समान छे. अज्ञानी शुं करशे? शुं लेशे ? अज्ञानी शी रीते तप, जप, प्रभुनी आराधना करी शकशे? आ प्रमाणे ज्ञाननी उत्तमता यात्राळुओ विचारशे तो मालुम पडशे के, पहेलुं ज्ञान प्राप्त कर्या बाद प्रभुनी पूजा, भक्ति, यात्रा, वगेरे करवामां आवे तो दूधमां साकर मळ्या बरोबर थाय !!! एक ज्ञानी हजारो वा लाखो मनुष्योने बोध आपी शके छे, पोते तरे छे अने बीजाओने तारी शके छे. ज्ञानीनी संगति समान जगत्मां कोईनी संगति उत्तम नथी. जैन तत्त्वज्ञान प्राप्त कर्या विना भाव जैनपणु प्राप्त थई शकतुं नथी. जेओए तत्त्वज्ञान प्राप्त कर्तुं नथी, एवा यात्राळुओए मनमां संकल्प वा प्रतिज्ञा करवी के, कोई ज्ञानी सद्गुरु पासे तत्त्वज्ञान प्राप्त करवुं, तेम पोताना पुत्र अने पुत्रीओने जैन तत्त्वज्ञान प्राप्त कराववुं ज्ञान विनानुं जीवन शून्य छे. ज्ञानीने सूर्यनी उपमा आपवामां आवे छे. धर्मनी क्रियाओ पण ज्ञानीनी पासे छे. चंद्र, समुद्र, मेरूपर्वत, अने कल्पवृक्ष, पारसमणि आदिनी उपमाओ ज्ञानीओने ज आपवामां आवे छे. दररोज ज्ञाननो अभ्यास करवो ए पण श्रुत ज्ञान रूप तीर्थनी यात्रा समजवी -जो श्रुत ज्ञान रूप तीर्थनी यात्रा न करवामां आवे तो, स्थावर तीर्थनी यात्रा बराबर थई शकवानी नथी. हालमां सकळ संघने श्रुत ज्ञानरूप तीर्थनो आधार छे. जे श्रुत ज्ञानरूप तीर्थनी तन मन अने धनथी सेवा करतो नथी, ते तीर्थनी यात्रानो परिपूर्ण अर्थ समजी शकतो नथी. श्रुत ज्ञानरूप तीर्थनी उन्नति माटे जेओ पोताना प्राण आपे छे अने ते माटे पोतानुं सर्व समर्पण करे छे, तेओ तीर्थंकरादि पदनी प्राप्ति करे छे; आ उपरथी सहेजे समजवामां आवशे के श्रुतज्ञानरूप तीर्थ विना कदी जैन शासन चालवानुं नथी. श्रुत ज्ञाननी बलिहारी छे. साधुओ अने साध्वीओने जे श्रुतज्ञान भणावे छे, भणतां तन, मन अने धनथी जेओ मदद करे छे, तेओ श्रुतज्ञानरूप तीर्थनी यात्रा करनारा समजवा. जे श्रावको अने जे श्राविकाओ प्रतिदिन कंईपण जैन सिद्धांतोनो अभ्यास करता नथी, तेओनो जन्म थयो तो शुं? अने न थयो तो पण शुं? आपणा साधुओए अने साध्वीओए श्रावक अने श्राविकाओने भणाववानो For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR DECEMBER-2014 रीवाज छोडवा मांड्यो छे. पण जैनशाळाओ माटे पान वा अपान गोखणपटीया मास्तरो रखाववा अने पोते श्रावकोने भणाववा माटे उद्यम न करवो, आ कंई जैनोनी सनातन रीत नथी. हालमां ईंग्लीश विद्या वगेरेना अभ्यासमां नवीन युवान श्रावक पुत्रो तथा पुत्रीओ प्रवृत्ति करे छे, तेथी तेओने भणाववानी शैली कढंगी थई पडी छे. साध्वीओ फक्त जूनी रीत प्रमाणे, ते पण थोडी महेनतमा घणो बोध न थाय तेवी पद्धतिए श्राविकाओने अभ्यास करावे छे, तेथी श्राविकाओनी तर्कशक्ति तथा चारित्रशक्ति बराबर खीली शकती नथी; माटे नवो अनुभव लई धार्मिक शिक्षणनी पद्धति चलाववानी आवश्यकता छे. _____ जो साधुओ अने साध्वीओ भणाववानी पद्धति छोडी देशे तो, श्रावको तथा श्राविकाओनी साधुवर्ग प्रति प्रीतिभावना तथा भक्ति-भावना ओछी थशे अने तेथी नवा साधुओ तथा साध्वीओ थई शकशे नहि, अने तेथी साधु अने साध्वी तीर्थनी न्यूनता थवानो प्रसंग आवशे. हालना वखतमा गोखणपटिया ज्ञान अने हृदयना भावज्ञान विनानी उपर उपरथी अन्ध श्रद्धाथी करवामां आवती क्रियाओ थकी जैनोनी उन्नति थवानी नथी. ज्ञान अने क्रियामां सुधारो करवानी जरूर छे अने ते श्रुतज्ञानना पूर्ण अभ्यासी थया विना समजाशे नहि. हवे श्रावको अने श्राविकाओने स्वार्थने लीधे व्यावहारिक विद्या भणवानो प्रेम थयो छे. जो ते खरेखर भणशे तो तेओनी स्थिति, व्यवहारमा उच्च रहेशे अने जो ते नहि भणे तो बीजी कोमोनी सेवाचाकरी करी पेट भरवानी क्षुद्र दशा प्राप्त करी शकशे. विशेषमांजणाववायूँ के, जो जैनो धार्मिक तत्त्वज्ञाननो साधुओनी पासे अभ्यास नहि करशे तो, साधुओने तथा साध्वीओने उकाळेला पाणी पण मळी शकशे नहि, कारण के तेओ गुरुओनी पासे अभ्यास नहि करे अने श्रावको वगेरे के जे फक्त जाणवानी क्रिया करनारा छे, तेओनी पासे वा अन्यदर्शनी पासे भणशे तो धर्मना आचार पाळशे नहि अने अन्ते भविष्यना साधुओने चारित्र पाळवामां अपवादो वेठवा पडशे. (तीर्थयात्रानुं विमान' पुस्तकमांथी साभार) For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir આત્મશ્રદ્ધા કાવ્ય આચાર્ય બુદ્ધિસાગરસૂરિજી (રાગ : તાર હો તાર) આત્મશ્રદ્ધા વડે કાર્ય કર માનવી, આત્મશક્તિ પ્રથમ તવ વિચારી; આત્મશ્રદ્ધા થકી સ્વોન્નતિ થાય છે, જગત્માં દેખશો ભવ્ય ભારી. આત્મશ્રદ્ધા વડે.. ૧ આત્મશ્રદ્ધા થકી ધાર્યું જગમાં થતું, મેરુ કંપાવતાં તેહ ચાલે; કૃષ્ણકેશી અને માનવી સહુ કરે, સ્વાંગણે સિંહને શીધ્ર પાળે. આત્મશ્રદ્ધા વડે.... ૨ કોટિ વિદનો પડે સૂર્ય સાહમો અડે, તોયે શ્રદ્ધા વડે કાર્ય કરવું, કાર્ય કરતાં થકાં સ્વાધિકારે ખરે, શ્રેય છે મૃત્યુથી વિશ્વ મરવું. આત્મશ્રદ્ધા વડે. ૩ મરજવો થઈ અરા કાર્ય કર તાહરૂં, નામ ને રૂપનો મોહ ત્યાગી; ફર્જ હારી અદા કર અને માનવી, આત્મશ્રદ્ધા બળે નિત્ય જાગી. આત્મશ્રદ્ધા વડે.. ૪ કાર્ય કરવા તણી શક્તિઓ આત્મમાં, અન્ય આશ્રય ચહે કેમ ભોળા? આત્મશ્રદ્ધા ત્યજે તે કરી શું શકે?, મારતા જે અરે ગપ્પ ગોળા. આત્મશ્રદ્ધા વડે... ૫ કથની મીઠી અને કડવી કરણી અરે, સ્વાધિકારે કરો કાર્ય બોધી; આત્મશક્તિ વડે સિદ્ધિઓ સાંપડે, કાર્ય કર યુક્તિઓ સત્ય શોધી. આત્મશ્રદ્ધા વડે... ૬ ઉઠ જાગ્રતુ બની કાર્ય કર યત્નથી, બોલ બીજું કશું ના મુખેથી; બુદ્ધિસાગર સદા કાર્ય કર તાહરા, મોહનાં દ્વાર રૂંધી હવેથી. આત્મશ્રદ્ધા વડે... ૭ For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Beyond Doubt Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acharya Padmasagarsuri some parched grains remain uncooked and unroasted and while peeling fruits a small portion may remain unpealed or while a sesame seed remains uncrushed in the oil mill, so also I suppose this one speaker has been left unconquered by me. Unless and until I conquer Him, I cannot, in true terms, be an absolute conqueror. Just as a woman ceases to be chaste and pious even if she degenerates from her vow even for a moment so also I cannot be entitled to real credit unless He remains unconquered, Until then my reputation and fame will remain stained and tarnished. Just as asmall hole causes the entire boat to sink and the breaking of a single brick causes the wall to fall, so also if one scholar remains undefeated, then my success will all be in vain. Hence I myself will go ahead with debating and conquer Him". Chapter-2 Indrabhuti told Agnibhuti of his decision to go and defeat Him and he started for the visit. He drew a tripunda on his forehead, clad himself in a new dhoti, a silken scarf, wore a dazzling turban and the Yagyopaveet2 adorned his chest: he also took with him a book of classical and authentic illustrations, to support his arguments while debating. His fivehundred students too followed him, praising him and echoing the whole pathway singing his glories: "Thou art the blessed son of Goddess Saraswati [ सरस्वती कण्ठाभरण] and a favourite of the Goddess of Victory, [वादिविजयलक्ष्मी शरण] Thou art a Master of Vedas and Puranas [ ज्ञातसर्वपुराण ] 1. Tripunda - sacred marking on the forehead. 2. Yagyopaveeth - sacred thread. For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर दिसम्बर-२०१४ and like the axe to destroy the banyan trees which have assumed the form of scholars and a gem among scholars [पण्डित श्रेणी शिरोमणि] Thou art' the sun who destroyeth the darkness of ignorance (9491 PR 797419] and conqueror of all scholars and debators [जितवादिवृन्द] Thou art like Sri Krishna riding the chariot of scholars (aigurasoillaaa] and like the hammer destroying the pots of debators (afgHCHF) Thou art like the sun for the speakers who are like owls [वादिघूक भास्करः] and are like the Agastya sage for the ocean of speakers [वादि समुद्रागस्त्य Thou art like the elephant uprooting the trees of debators (araquara) and you work like a spade digging the roots of opponents (aifa Tong TAT] Thou artlike the lion deteating the elephants [वादिगजसिंह] and the Goddess of Saraswati is most pleased with you [सरस्वती लब्धप्रसाद] may you be victorious and may your fame and glory spread in all directions.” While the disciples were singing his glory, Indrabhuti on his way to the “samavasarana"i thought that the omniscient whom he was going to visit has unnecessarily provoked him due to false pride of His omniscience, He was in no way going to be benefited by doing so. Indrabhuti said to his disciples “His effort to challenge me by declaring the omniscience is as dangerous and ridiculous as a frog challenging a snake and a mouse making an attempt to count the teeth of a cat. (Continue...) 1. Thou art - you are. For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्यावीस साधुगुण गर्भित जंबूस्वामी गुरु गहुंली ___ डॉ. भानुबेन शाह प्रस्तुत नव कडी प्रमाण आ कृति गुरुनी लाक्षणिकता दर्शावती गुरुभक्तिनी एक सुंदर रचना छे. प्रस्तुत कृतिमा रचना साल नोंधायो नथी. प्रस्तुत कृतिनुं शीर्षक 'सत्यावीस साधु गुण गर्भित जंबूस्वामी गुरु गहुंली छे. तेमज गाथा नं.७ मां गहुंली' शब्दनो प्रयोग थयो छे. मध्यकालीन विविध काव्य प्रकारोमां गहुंली प्रकार महत्त्वनुं स्थान धरावे छे. गहुंलीनुं स्वरूप : गहुंली एक लोकप्रिय गेय काव्य प्रकार छे. पर्वना दिवसो, चोमासी चौदश, पर्युषण, संवत्सरी, शाश्वती आयंबिलनी ओळी, दिवाळी, अक्षयतृतीया, महोत्सव प्रसंग, तपनुं उजमणु, गुरु भगवंतनुं आगमन अने विहार, जिनवाणी श्रवण,अने संघयात्रा वगेरे प्रसंगोमां गहुंली गवाय छे. गहुंलीनी विषय वस्तुमां वैविध्य जोवा मळे छे. 'श्री भगवतीसूत्र', 'श्री बारसासूत्र, 'श्री उत्तराध्ययनसूत्र' जेवा ग्रंथोनो महिमा, जिनवाणीनो महिमा अने गुरुभगवंतोना गुणकीर्तन करती गहुलीओ रचाई छे. श्री कविनभाई जैन साहित्यना काव्य प्रकारोमा जणावे छे के “गहुंली गेय काव्यप्रकार छे तेमा मात्र गुरुस्तुतिनो विचार केन्द्र स्थाने नथी, पण विविध प्रसंगोने अनुरूप विचारो गहुंलीमां गुंथी लेवामां आवे छे. तेनु विषय वैविध्य नोंधपात्र छे. ___ गुरुभक्तिनी गहुंलीमां गुरुवाणीनो प्रभाव अने एमना व्यक्तित्व -आचारशुद्धिने लगता गुणोनो उल्लेख थाय छे. तीर्थ महिमानी गहुंली स्तवन साथे साम्य धरावे छे. तीर्थमां गवाय छे. तथा गामे-गाम तीर्थनी सालगीरी निमित्ते पण आवी गहुंलीओ गावानो रिवाज छे." गहुँलीमा ‘साथीयों करवामां आवे छे. तेना चार छेडा चार गतिनुं सूचन करे छे. चार गतिनो क्षय करवाना प्रतिकरूपे जिनमंदिरमा भक्तो साथीयो करे छे. साथीया उपर अक्षतनी त्रण ढगली ज्ञान, दर्शन अने चारित्रना प्रतीकरूपे स्थापवामां आवे छे. रत्नत्रयीनी आराधना चार गतिनो क्षय करी सिद्धिपद प्राप्त करावे छे. सिद्धिपदना प्रतिकरूपे त्रण ढगलीनी उपर मोक्ष रूपी फळ प्राप्त करवा सिद्धशिला स्थापवामां आवे For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर दिसम्बर-२०१४ छे, अने एनी उपर फळ मूकवामां आवे छे. गहुँलीने आकर्षक बनाववा बदाम, फळ, सोना-चांदीना सिक्काओथी अलंकृत करवामां आवे छे. आम, गहुंलीमा धर्म अने कळानो समन्वय सघायो छे. गहुंली मात्र मानवसमाजनी प्रवृत्ति नथी परंतु स्वर्गना देवो पण हीरा, माणेक वगेरेथी प्रभुनी गहुंली करी सत्कारे छे. कविवर श्री समयसुंदरे सीमंधर स्तवन मां इन्द्राणी गहुंली करे छे, तेवो उल्लेख कर्यो छे. 'ईन्द्राणी काढे गहुंली की, मोतीना चोक पूराय.' गहुंली गानार श्राविका बहेनो होय छे. गहुंलीमा प्रचलित गीतोना रागो अने देशीओनो वपराश जोवा मळे छे. गुरुमहिमा, रससमृद्धि, अलंकार योजना, उर्मिनी अभिव्यक्ति अने गेयता जेवा लक्षणोथी गहुंली एक स्वतंत्र काव्य प्रकार तरीके स्थान धरावे छे. मध्यकालीन जैन साहित्यमां आ प्रकारमा रचायेली कृतिनी संख्या पण अधिक छे. तो साथे साथे गहुंली साहित्य प्रकारमा रचायेली कृतिओ गाथा प्रमाणनी दृष्टिए संक्षिप्त के लघु होवा छतां एमां व्यक्त थतां भाव अने वर्णन काव्य प्रकारमा नोखी भात पाडे छे. अंत्यानुप्रास अलंकारथी गूंथायेली आ गुरुभक्तिनी गहुंलीमा प्रथमनी चार गाथाओमां गुरुना सत्यावीश गुणोनो उल्लेख को छे. पांचमी गाथामां भगवान महावीरथी केवळज्ञाननी परंपरा, छठ्ठी गाथामां शियळनो महिमा, सातमी गाथामां गुरुपूजन, आठमी अने नवमी गाथामां जिनवाणीनुं स्वरूप अने तेनुं फळ दर्शाव्यु छे. प्रतपरिचय : आ हस्तप्रत श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, अमदावाद(कोबा)थी प्राप्त थई छे. ह. प्र. नं. ०४८६३१ माप २४.५०x११.५० से.मी.; कुल पत्र-१; प्रति पत्र-१६ पंक्तिओ; प्रति पंक्ति-३६ अक्षरो छे. अक्षरो झीणां छतां सुवाच्य छे. कडी क्रमांक अने दंड व्यवस्था नियमित छे. 'मुनिवर सोभागी अने गुणवंताने गुणना रागी जेवी आंकणीना शब्दो लाल अक्षरे आलेखायां छे. प्रस्तुत प्रतमा उत्तमविजयजीनी त्रण गहुंलीओनो संग्रह थयो छे. १. आपणा अभ्यासनी कृति (सत्यावीस साधुगुणगर्भितजंबूस्वामीमुरुगहुली) जे(नव कडीनी) छे; २. सुधर्मास्वामीनी गहुंली, (सात कडीनी); ३. साधुगुण गहुंली (पांच कडीनी) गहुँली छे. For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR DECEMBER-2014 कवि परिचय : प्रस्तुत कृतिना रचयिता अंतिम पंक्तिमा पोतानो तथा पोतानी गुरु परंपरानो उल्लेख करे छे. जिनशासन उन्यत करे मुनिवर सोभागी उत्तम लहीय नीमित्त रे गुणवंताने गुणना रागी. कविश्रीए कृतिमां पोतानो मीताक्षरी परिचय आप्यो छे. जै.गू.क.भा-६, पृ.-२ अने ३ उपर विशेष परिचय उपलब्ध छे. ___अमदावादनी शामळपोळमां रहेता वणिक परिवारमा सं.१७६० मां कविश्रीनो जन्म थयो छे. तेमना पितानुं नाम लालचंदभाई अने माता नाम माणेकबेन हतुं. कविश्री बाळपण- नाम पूजाशा हतुं. ___अढार वर्षनी वये सं.१७७८ मां खरतरगच्छना श्री देवचंद्रजी पासे धार्मिक अभ्यास कर्यो त्यारपछी श्री ज्ञानविमलसूरिनी परंपराना योगविमलगणि अने सत्यविजय पंन्यासना श्री जिनविजयगणि, अमदावादमा आगमन थतां पूजाशा नित्य जिनवाणीनुं श्रवण करवा जता हता. गुरुए पूंजाशाने धार्मिक अभ्यास करावी उपकार कर्यो. सत्संगथी वैराग्यनो रंग लाग्यो. सं. १७९६, वैशाख सुद छठूना शुभ दिवसे पूंजाशाए दीक्षा लीधी. तेमनुं नाम मुनि श्री उत्तमविजयजी पड्यु. तेमणे सुरतमा भट्टारक विजयदयासूरिनी अनुज्ञा मेळवी पादरामां भगवतीसूत्रनी वांचना करी. गुरुएशिष्यने नंदीसूत्र शीखव्यु.सं.१७९९ मां तेमना गुरु श्रीजिनविजयजी काळधर्म पाम्या. त्यार पछी विहार करी भावनगर पहोंच्या. त्यां तेमणे पूर्वना धर्मबोधक श्री देवचंद्रने बोलावी तेमनी पासे श्री भगवतीसूत्र, श्री अनुयोगद्वारसूत्र, श्री पन्नवणासूत्र' वगेरेनो अभ्यास कर्यो. सं. १८०८ मां कचरा कीका नामना श्रावक द्वारा सिद्धाचल यात्रानो संघ नीकळ्यो. तेमां कविश्री जोडाईने तेमनी साथे पालीताणा गया. तेमणे गुजरात अने सौराष्ट्रनी भोमका पर विविध प्रांतोमां पादविहार करी जैनधर्मनी अद्भुत प्रभावना करी. घणां स्थळोए जिनबिंबोनी प्रतिष्ठा पण करावी. For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 13 श्रुतसागर दिसम्बर-२०१४ सुरतमा पोताना गुरुभाई पंन्यास श्री खुशालविजयजी साथे चातुर्मास रह्या. ते समये असह्य नेत्र पीडा थतां राजनगर आव्या. सं.१८२७, महा सुद आठमना दिवसे सडसठ वर्षनी वये स्वर्गारोहण थया. तेमनो हरिपुरामां स्थूभ छे. कविश्रीनुं साहित्य सर्जन : (जै.गू.क.भा-६, पृ.२-६) * संयम श्रेणी गर्भित महावीर स्तव स्वोपज्ञ टबा सहित (सं.१७९९, ढा-४) जेमा पोतानी अथथी इति सुधीनी गुरुपरंपरा विस्तारपूर्वक आपी छे. श्री वीरप्रभुना पांचमा गणधर सुधर्मा स्वामीथी शरू थयेली पाट परंपरा, चंद्रगच्छ, वडगच्छ अने तपागच्छनो उद्भव वगेरेनो रसप्रद इतिहास आ कृतिमां छे. * जिन विजय निर्वाण रास (सं. १७९९, ढा-१६) पोताना गुरुनी स्मृति अने भक्तिरूपे आ रास रचायो छे. * अष्टप्रकारी पूजा (सं. १८१३/१८१९) * जिन स्तवन चोवीसी आ प्रत लींबडीना भंडारमा उपलब्ध छे. जेनो डा.क्र.२२७८२ छे. आ कृति जै.गू.साहित्य रत्नो, भा.-२ मा प्रकाशित छे, जेमां पांच स्तवनो छे. ईत्यादि अनेक साहित्य सर्जन कविश्रीनी प्रखर प्रतिभाथी संपन्न थया छे. सत्यावीस साधुगुण गर्भित जंबूस्वामी गुरुगहुंली षट व्रत सुधा पालतां मुनिवर सोभागी, षट्काय रक्षण सार रे गुणवंताने गुणना रागी। पंचं()द्रीय दमे विषयथी मुनिवर सोभागी लोभना जीतनहार रे गुणवंताने गुणना रागी॥१॥ क्रोध तजी समता भजें मुनिवर सोभागी, निर्मल चित्त सदाय रे गुणवंताने गुणना रागी। विधिपूर्वक प्रतिलेखना मुनिवर सोभागी, करता मुनि सुखदायरे गुणवंताने गुणना रागी ॥२॥ For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 14 SHRUTSAGAR DECEMBER-2014 संयम योगे रति सदा मुनिवर सोभागी, नही मनमां कुध्यान गुणवंताने गुणना रागी। निरवद्य वचन वदे सदा मुनिवर सोभागी, तनुं जतनाइं जाणरे गुणवंताने गुणना रागी॥३॥ सितादिक परिस(ष)ह सहें मुनिवर सोभागी, अंस(श) नवि करता मात(न) रे गुणवंताने गुणना रागी। मरण कष्ट आवी पडे मुनिवर सोभागी, बीक नहीं ती(ति)लमात(त्र) रे गुणवंताने गुणना रागी ॥४॥ वीर वि(वी)भुनो पाटवी मुनिवर सोभागी, सुधर्मा श्रुतभाण रे गुणवंताने गुणना रागी। तस अंतेवासी भलो मुनिवर सोभागी, जंबु जुगपरधान रे गुणवंताने गुणना रागी॥५॥ सील सुगंधी चूनडी मुनिवर सोभागी, ओढी अधिकें रंगरे गुणवंताने गुणना रागी। रत्नत्रयी रुचि दीपतो मुनिवर सोभागी, पहरी घाट सुचंग रे गुणवंताने गुणना रागी॥६॥ धर्मे वासित श्राविका मुनिवर सोभागी, गुहली ग(गु)णि बहुमान रे गुणवंताने गुणना रागी। अनुभव उज्जवल फूलडे मुनिवर सोभागी, वधा गुणवान रे गुणवंताने गुणना रागी॥७॥ नय-निक्षेपें अति भली मुनिवर सोभागी, सप्तभंगी वी(वि)ख्यात रे गुणवंताने गुणना रागी। अनंत गम पर्यायथी मुनिवर सोभागी, पद अक्षत संख्यात रे गुणवंताने गुणना रागी॥८॥ वाणी जिननी सांभळे मुनिवर सोभागी, अति भगते एक चित्त रे गुणवंताने गुणना रागी। जिनशासन उन्यत करें मुनिवर सोभागी, उत्तम लहीय नी(नि)मित्त रे गुणवंताने गुणना रागी ॥९॥ For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कथानकोनी विराट सृष्टि आपणी अमूल्य संपदाछे डॉ. गुणवंत बरवाळिया जगतभरमां कथासाहित्य स्थान अद्वितीय अने अनुपम छे. कहा-बंधे तं णत्थि जयम्मि जं कह वि चुक्का। (कुवलयमाला) जगतमां एवो कोई पदार्थ नथी जेने कथारचनामां स्थान मळ्युं न होय. प्रत्यक्ष दुनियामांजे मानवप्रजा वसे छे तेमां भणेला, कुशाग्रबुद्धिवाळा अल्प छे के जे विज्ञान, तत्त्वज्ञान, भूगोळ, खगोळ, गणित, आयुर्वेद, अध्यात्म, योग, प्रमाणशास्त्र, जेवा गहन अने तात्त्विक विषयोमा रस लई ऊंडा ऊतरी शके. आथी तेओने स-रस ने समज पडे तेवा अने ते समज द्वारा जीवननो रस माणी शकाय तेवा साहित्यनी अपेक्षा छे. आथी आपणा पूर्व ऋषिमुनिओए विपुल प्रमाणमां कथाओ द्वारा तेमनी अपेक्षाने पूर्ण रीते संतोषी छे. तेओना सप्तरंगी मेघधनुष्यनी विविधता अने भातीगळ मनोरंजनथी भर्यु कथासाहित्य आपणी जातनी सूध-बूध विसरावी कथारसना अलौकिक प्रदेशमा दोरी जाय छे. विश्वना कोई पण धर्म-दर्शन, शिक्षण के समाजना क्षेत्रमा सिद्धांतो के नियमो समजाववा के जे ते क्षेत्रना सहेतु बर लाववा प्रेरकबळ तरीके कथानकोनो उपयोग अनिवार्य रीते करवामां आव्यो छे. जेमां जीवनमां घटित थयेला प्रेरक प्रसंगो, उपनय कथाओ, दृष्टांतकथाओनो समावेश करवामां आव्यो छे. समाजना विविध वर्गमां सदाचार- सिंचन करवा माटे विविध जाति, संप्रदाय के धर्मना लोकोने धर्माभिमुख करवा माटे विविध प्रकारनी कथाओनो आश्रय लेवामां आव्यो छे. आपणां पुराणो, वेद, उपनिषदो, आगम उपरांत आपणां महाकाव्यो, रामायण-महाभारतमां पण भरपूर कथानको संग्रहीत छे. कथाओमां पंचतंत्र, हितोपदेश, जैन कथा साहित्यमा आगमयुगनी कथाओ, बालावबोध, उपदेशमालानां कथानकोनो समावेश थाय छे. धर्ममां श्रद्धा वधारवा माटे पर्वकथाओ, व्रतकथाओ, अने तत्त्वबोधकथाओनो फाळो नोंधपान छे. जैनधर्ममां ज्ञानप्राप्ति माटेना मार्ग-अनुयोगद्वारना चार प्रकार बताव्या छे. For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 16 DECEMBER-2014 द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, चरणकरणानुयोग अने धर्मकथानुयोग छे. धर्मकथानुयोगमां त्रिषष्टिशलाकापुरुष आदि महात्माओ दानी, श्रावक श्रेष्ठीओ, सती स्त्रीओना प्रेरक जीवनने कथानको द्वारा वर्णववामां आव्या छे. जैन कथासाहित्यमा ज्ञाताधर्मकथा आगममां साडा त्रण करोड कथाओ हती तेवी श्रुतपरंपराथी माहिती मळे छे. परंतु आजे आटली मोटी संख्यामां कथाओ उपलब्ध नथी. ____ कथानुयोग ए सामान्य जनसमूह माटे धर्ममार्गमा प्रवेशद्वारनी भूमिका पूरी पाडे छे. कथा-लोककथा ए साहित्य- हृदय छे. आबालवृद्ध गरीब-तवंगर, साक्षर, निरक्षर सर्व कोईने कथा समस्वरूपे एकसूत्रताथी जकडी बांधी राखे छे. आ उपरांत तेनी विशेषता ए छे के एने जेटली सांभळवा के वांचवामां आवे एटलीज सहेलाइथी, सरळताथी ते हृदयंगम थई शके छे. आथीज प्रत्येक धर्माचार्योए पोतानो धर्मोपदेश कथाना माध्यम द्वारा करवान योग्य, उचित मान्यु छे. मानवजीवनमा धार्मिक संस्कारोना सिंचन माटे कथाथी उत्तम सरळ, सहज अने योग्य कोई माध्यम नथी अने आथी ज विश्वना प्रत्येक धर्ममा कथासाहित्यनी लोकप्रियता, प्रचलितता व्यापकपणे जणाय छे. भगवान महावीरे धर्मोपदेश दरमियान धर्म, विज्ञान अने तत्त्वदर्शन जेवां गूढ अने गंभीर तत्त्वोने अधिक सरळ, सुगम, सुबोध अने रुचिकर बनाववा माटे कथानो आश्रय लीघो जेने आगमसाहित्यमां संग्रहीत-संकलित करवामां आव्यो. __ आगम साहित्य पछी क्रमशः थती कथारचनामा परिवर्तन आवतुं गयु. आगममांथी प्राप्त कथाओ, चरित्र अने महापुरुषोना जीवनना नाना-मोटा अनेक प्रसंगोमाथी मूळ कथावस्तुमा अवांतर कथाओनु संयोजन अने मूळ चरित्रना पूर्वजन्मोनी घटनाओने समृद्ध करवी, एनी कथावस्तुनो विकास अने विस्तार करवानी पश्चाद्वर्ती शैली बनी गई. जे शैलीनो प्रभाव रामायण, महाभारत के जातकथी मांडीने चारित्रो, पारायणो, आख्यायिका, कथाकोशो ईत्यादिमां परंपरागत रीते जणाई आवे छे. विश्वभरनां धर्म अने साहित्यए दृष्टांतकथानो सहारो लीधो छे. बाळदशाना श्रोताओ अने वाचकोने धर्म अने तत्त्वनां गहन रहस्यो सरळताथी रसमय रीते समजाय एतेनो मुख्य उद्देश छे. कथाओ द्वारा परिचिततानी माधुरी अने अपरिचिततानो आनंद आपी शकाय छे. For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 17 श्रुतसागर दिसम्बर-२०१४ द्रव्यानुयोगनां गहन तत्त्वो प्राथमिक दशाना वाचको माटे समजवा मुश्केलअघरां छे, परंतु द्रव्यानुयोग कथानुयोग पर सवार थई वाचकनां हृदय सुधीनी यात्रा सरळताथी करी शके छे. ___ जैन कथानकोनी विराट सृष्टि आपणी अमूल्य संपदा छे. धर्म अने दर्शनने जगत सुधी पहोंचाडवा कथानुयोग सौथी वधु उपकारक बने छे. आगममां कथानुयोग अभिप्रेत छे. कादम्बरीनो भावानुवाद करनार कवि भालणनी उक्ति अमारा हृदयभावने वाचा आपे छे. "मुग्ध हृदय सांभळवा ईच्छी पण प्रीच्छी नव जाय तेहने प्रीच्छवा कारणे कीधुंभालणे भाषा बंध" मुग्ध रसिक श्रोता सांभळवा अने समजवा ईच्छे छे. परंतु समजी शकता नथी एने सरळ रीते समजाववा भालणजे रीते आस्वाद-भावानुवादनो पुरुषार्थ करे छे तेम आपणे पण कथानको द्वारा आस्वादनो पुरुषार्थ करवो जोईए. विश्वना कथासाहित्यमां जासूसी कथाओ, जुगुत्साप्रेरक कथाओ, बीभत्सकथाओ, हिंसात्मक वीरकथाओ पुष्कळ छे. परंतु धर्म के दर्शन साहित्यमां आवी कथाओने स्थान नथी. ___अहीं नीति-सदाचार, प्रेरक-कथाओ, चारित्य-कथाओ, तप-त्यागनी कथाओ ज धर्मकथाओ छे जे मानवजीवनने ऊर्ध्वगामी करी शके छे. वळी ज्ञानीओए चार विकथानो त्याग करवा जणाव्यु छे जेमां पाप हेतुभूत स्त्री-पुरुषनी कथा छे. ए ज रीते राजकथा अने देशकथा करवाथी निंदा द्वारा आत्मा अनर्थदंडथी दंडाय अने कर्मबंध करे छे, तो वळी क्यारेक आर्तध्यान के रौद्रध्यानमा फसाई जाय छे. ज्यारे भोजनकथामां आसक्ति अभिप्रेत छे. ___आवी विकथानो आराधक आत्माओए त्याग करी मात्र धर्मकथानो ज आश्रय लेवो जोईए. आसक्ति अने संज्ञाओने पातळी पाडवा आ कथानको पायाचें काम करे शास्त्रकार परमर्षिओ, जैन दार्शनिको, मुनिओ के जैन सर्जक साहित्यकारो एम दृढपणे माने छे के साहित्य अने कलाना सर्जननो उद्देश शुभतत्त्वोनां दर्शननो होय तो ज सार्थक. कथा, काव्य, साहित्य, संगीत, अने ललितकळाओथी जीवन सभर बने छे. For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 18 DECEMBER-2014 माटे अहीं जीवनमां कलानी आवश्यकता ज नहि, परंतु अनिवार्यता स्वीकाराई छे, परंतु जीवननी सभरता अने मधुरतानुं शु? मात्र कल्पनामां विहार करवाथी जीवनमां सभरता अने मधुरता आवी शके? सर्जनशक्ति खीलववा माटे कल्पनाना विकासनी एक निश्चित हद छे ए सरहद पार कर्या पछी निरर्थक छे.. कथा, काव्य, साहित्य के संगीत विगेरे कलाओ मात्र भक्ति प्रयोजनरूप न होय, सदाचारप्रेरक न होय तो मात्र कल्पित अने निरर्थक बनी रहेशे. जे कला द्वारा आत्मगुणोनो विकास थाय ते कला ज सार्थक. जे सर्जनमा निज स्वरूपने पामवानी झंखना नथी ते इन्द्रियोना मनोरंजन करनारी नीवडे छे. जेनुं परिणाम भोग-उपभोग अने तृष्णा वधारनारं, राग-द्वेष ने संसार वधारनार छे. पू. हरिभद्रसूरि, कलिकाल सर्वज्ञ हेमचंद्राचार्य, पू. आनंदघनजी म., पू. यशोविजयजी आदिनुं साहित्य आत्मार्थे होवाथी चिरंजीव बनी अमरत्वने पाम्यु. प्राचीन के मध्यकालीन कथामंजुषा खोली साहित्यसर्जको, कथाओना श्रद्धातत्त्वने अकबंध राखी सांप्रत प्रवाह प्रमाणे आधुनिक-वैज्ञानिक अभिगमथी ए कथाओ नवी पेढी समक्ष रजू करशे तो युवानोने धर्माभिमुख थवानी नवी दिशा मळशे. जैन कथानुयोगमां श्रावक, श्राविका, साधु-साध्वी वगेरेनां जीवनना आदर्श पासांनुं निरूपण तो करवामां आवे ज छे, परंतु जैन कथाओनी विशिष्टता ए छे के ते पशुपंखीनां पात्रोने, तेना जीवनना आदर्शने रजू करी प्रेरणा पूरी पाडे छे. सिंहना जीवन, परिवर्तन थतां ते भूख्यो रहेवा छतां हिंसा करतो नथी. चंडकौशिक सर्पने जातिस्मरण थतां ते कीडीने पण नुकशान करतो नथी. आम जैन कथानुयोगनी कथाओनुं जीवनघडतरमा मूल्यवान योगदान रह्यं छे. For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित पुस्तकोमां आवेला चौलुक्य राजाओना संवतो दत्तात्रेय बाळकृष्ण डिस्कळकर गुजरातना इतिहासमां चौलुक्यकाळ एटले के वि. सं. १००० थी १३६० सुधीनो साडा सो वरसनो काळ सर्व बाजुथी उज्ज्वळ हतो एमां कोइ शंका नथी. राजकीय धार्मिक, आर्थिक, कला-कौशल्यात्मक, वगेरे हर एक बाबतमां ते वखते बृहद्गुजरात उच्च कोटीए पहोंच्यो हतो. ते काळमां संस्कृत भाषामा अने प्राकृत भाषामां पण भिन्न-भिन्न विषयो उपर उच्च कोटीना जेटला ग्रंथो निर्माण थया तेटला ते पहेलाना काळमां अथवा त्यार पछीना काळमां पण गुजरातमां निर्माण थयेला लागता नथी. 'सादुं जीवन अने उंचुं चिंतन' आ ध्येय राखी सर्वकाळ विद्याव्यासंग करनारा जैन साधुओए ते कार्यमा मोटो फाळो आप्यो छे. ते ग्रंथोमांना घणा खरा अत्यार सुधी प्रगट थयेला नथी. केटलाकोनुं तो नाम पण घणा खरा लोकोने मालुम नथी तो पछी तेमां शुं शुं छे तेनी खबर तो क्यांथी ज होय? कोइ पंडित अथवा पंडितवर्ग गुजरातमां अत्यार सुधी रचवामां आवेला सर्व ग्रंथोनी यादी, आउफ्रेक्ट साहेबनी संस्कृत ग्रंथसूची प्रमाणे ( Aufrecht's Catalogus Catalogorum) आपणी भाषामां, टुंका विवेचन साथे कालानुक्रमथी तैयार करशे तो गुजरात राजकीय, वाङ्मयात्मक, धार्मिक, वगेरे विषयनो इतिहास तैयार करवा माटे तेनो अत्यंत उपयोग थशे. ते यादी नीचे बतावेली पद्धति प्रमाणे होवी जोइए एम मारो मत छे. २. ग्रंथकर्त्तानुं नाम, ४. तत्कालीन राजानुं नाम, ६ ते मुद्रित छे के नहि, १. ग्रंथनुं नाम, ३. ग्रंथरचनानो काळ, ५. ग्रंथनी भाषा, ७. मुद्रित होय तो क्यां अने कइ भाषामां वगेरे, ८. ते ग्रंथमां शुं छे तेनी चार पांच वाक्योमां ओळखाण आपी होय एवी टिप्पणी ९. अने ते ग्रंथ अप्रकट होय तो तेनी माहिती क्यां आपेली छे तेनी नोंध. उपर सूचित करेली ग्रंथसूचि प्रमाणे बीजी पण एक यादी करवानी जरूर छे, For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 20 DECEMBER-2014 जेमां उपर बतावेला ग्रंथोमां आवनारा जुदा जुदा प्रसंगो संबंधना संवतोनी नोंध होय. आवी वर्षावली आपणने अनेक रीते मळी शके. केटलाक ऐतिहासिक काव्यग्रंथोमां साहजिक रीते ज जुदा-जुदा राजकीय प्रसंगोना संवतो आपेला होय छे. बीजा ग्रंथकारो करतां जैन ग्रंथकारोनी आ एक विशेषता होय छे के तेओ घj करीने पोताना ग्रंथना छेवटे-भले ते ग्रंथ ऐतिहासिक स्वरूपनो होय अथवा धार्मिक स्वरूपनो होय-ग्रंथ समाप्तिनो काळ पोतानी टुंकी माहिती साथे आपे छे. ___ केटलाक ग्रंथकारो पोताना ग्रंथना प्रारंभमां अथवा अंतमां, जेने आपणे 'प्रशस्ति' कहीए छीए ते लखे छे अने तेमां ऐतिहासिक माहिती संवत साथे आपेली होय छे. तेमज एकाद ग्रंथनी कालांतरे ज्यारे प्रतिकृति करवामां आवती हती त्यारे ते लेखक प्रतिकृति कर्यानुं वरस आपे छे, एटलं ज नहि पण ग्रंथरचना अने ते ग्रंथनी नकलना काळ दरमियान जे जे जाणवा जेवी वातो थइ होय ते पण कोइ वखते संवत साथे आपेली होय छे. बीजा प्रकार- साहित्य ‘पट्टावलीओ' छे जेमां अमुक गच्छना साधुओनी शिष्यपरंपरा आपेली होय छे अने तेमां घणी वखत अमुक प्रसंगोमां संवतो आपेला होय छे. मारा कहेवानुं स्पष्टीकरण करवा माटे 'पुरातत्त्व' ना ज पाछला एक अंकमाथी दाखलो आपुंछु. ते त्रैमासिकना प्रथम अंकमां मुनि पुण्यविजयजीए एक ऐतिहासिक जैन प्रशास्ति' छपावी छे. तेमां केटला बघा उपयोगी संवतो आवेला छे! गुजरातना राजकीय इतिहासने अत्यंत उपयोगी पडी शके एवो करणवाघेला संबंधनो सं. १३६० तेमां आप्यो छे. ते राजा विशेनो मळेलो छेल्लो संवत् १३५४ नो इडरना शिलालेखमांथी मळ्यो छे. सं. १३५६मां अलाउद्दीने गुजरात उपर आक्रमण कर्यु. तथापि ते देश तेना ताबामां ते वखते पूर्णपणे आव्यो न हतो, अने कर्णराजा सं. १३६० सुधी पाटणमां राज्य करतो हतो आ कथनने उपरना संवतथी पुष्टि मळे छे. ते ज प्रमाणे गुजरातनी प्राचीनकालीन आर्थिक स्थितिनुं एक नानुं चित्र दुष्काळना १३७७ अने १४६८ आ बे संवतो उपरथी उभं थाय छे. ते सिवाय अमुक आचार्य अमुक वखते हता वगेरे धार्मिक माहिती पण आपणने संवत साथे मळी आवे छे. हस्तलिखित ग्रंथोमाथी मळेला आवा संवतोनो कोइ वखत अमुक राजानो राज्यकाल ठराववामां पण उपयोग थाय छे ए उपर बताव्युज छे. १. आ प्रशस्ति आ ज वर्षना श्रुतसागर अं. नं. ०१मा प्रकाशित थयेल छे. For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतसागर दिसम्बर २०१४ द्वयाश्रयकाव्य, सुकृतसंकीर्तन, कुमारपाळचरित्र, वगेरे चरित्रात्मक अने काव्यात्मक इतिहास ग्रंथोमां घणा ऐतिहासिक प्रसंगोना विषयमां विसंगतता देखाय छे. अमुक राजाना वखतना अमुक प्रसंग संबंधमां तो शुं पण ते सिंहासन उपर क्यारे आव्यो तेणे बराबर केटला वर्ष सुधी राज्य कर्तुं वगेरे स्थूल बाबतोमां पण मत-भिन्नता देखाय छे. 21 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वीस्थितिमा एकाद राजानो राज्यकाळ अथवा बीजा कोइ प्रसंगनो काळ नक्की करवा माटे जेम तत्कालीन उत्कीर्ण लेखनो सारो उपयोग थाय छे तेमज तत्कालीन रचायेला अथवा लखायेला ग्रंथोमां आपेला ते राजा संबंधना संवतोनो पण थाय छे. जे महत्त्वना कार्य संबंधमां उपर विवेचन करवामां आव्युं छे तेना उपक्रम तरीके हुं हस्तलिखित पुस्तकोमां आवेला गुजरातना चौलुक्य राजाओनी संवतोनी मारी अल्प माहिती प्रमाणे अने मने मळी आवेला पुस्तकोनी मददथी बनावेली यादी नीचे आएं छं. अमुक राजानो राज्यारोहणनो संवत् जे आपणे जुदा जुदा प्रबंधो तथा उत्कीर्ण लेखो वगेरे साधनोथी नक्की करी शकीए ते मात्र आ यादीमां आपेलो नथी. अमुक राजाना वखतमां कोइ ग्रंथ बनाववामां आव्यो होय परंतु तेमां ते राजानो उल्लेख कर्यो न होय तो ते ग्रंथमांनो संवत आमां न ज आवे. हुं जाणं छु के आ यादी घणी ज अपूर्ण हशे परंतु ते पूर्ण करवानुं काम विद्याविलासी पंडितोनुं छे. परिशिष्टमां वडोडराना विद्वान् जैन पंडित लालचंदजीए तैयार करेली मारी यादीमां न आवेला केटलाक संवतोनी यादी आपेली छे. ते उपरथी पण स्पष्ट जणाशे के आवा केटलाक संवतो हजी पण मळी आवशे. १. कर्ण - १ विक्रम संवत् ११४५ ज्येष्ठ वदि १४ जिनदासगणिकृत निशीथसूलचूर्णि विशेषनाम्नी आ ग्रंथ लखाववामां आव्यो. (जुओ पीटर्सननो संस्कृत ग्रंथो माटे शोधनो रिपोर्ट सने १८८०-८१ पा. २२) २. सिद्धराज जयसिंह ÷ सं. ११६९-मेरुतुंगकृत लघुशतपदी ग्रंथ रचाववामां आव्यो. (जुओ भांडारकरनो सं. ग्रं. शो. री. १८८३-८४ पा. ५) १. आ संवत मेरुतुंग जे गच्छमां थया ते गच्छनी स्थापनानो छे. शतपदीसारोद्धार वि. सं. १४४४ थी वि. सं. १४७१ वच्चे रचायेल होवानुं मारूं अनुमान छे.- लालचंद . For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR DECEMBER-2014 * सं. (११७)८? फागण वदि १२ रवौ - प्राकृत पञ्चवस्तुकम् लखायु. (पीटर्सन सं. ग्रं. शो. रि. १८८०-८१ पा. २५) * सं. ११७९ चैत्र वदि ७ भौमे श्वेतपदाचार्य गोविंदगणिकृत कर्मस्तवटीका लखाई (पीटर्सन सं.ग्रं. शो.रि. १८८०-८१ पा. २५) * सं. ११७४'जिनचंद्रगणिकृत नवतत्त्वप्रकरण लखायु. __ (जुओ पीटर्सननो सं. ग्रं. शो. रि. १८८४-८६, पा. २८३) * सं. ११७९ फाल्गुन वदी १२ रवौ (जुओ किलहॉर्ननो सं. ग्रं. शो. रि. १८८०-८१ पा. २३१) * सं. ११८१ - कृत प्रभावकाचार लखायो (जुओ इंडियन अॅटीक्वरी ११-२५४) * सं. ११९० - अम्मस्वामीकृत रत्नसूरिजीवनचरित लखायु (जुओ भारतके प्राचीन राजवंश भाग. १. पा. १४४) * सं. ११९८ एक पट्टावली-रुद्रमाळ बनाव्यो. (जुओ भांडारकर सं. ग्रं. शो. रि. १८८३-८४ पा. १४) ३.कुमारपाळ * सं. १२१८ द्विआषाढ शुदि५गुरौ-कल्पचूर्णी नामना ग्रंथनी नकल करवामां आवी. (जुओ इंडियन अॅटीक्वरी २०-१३२) (जुओ पीटरसन सं. ग्रं. शो. रि. ११८०-८१ पा. १०) * सं. १२२१ देवेंद्रगणिकृत तिलयसुंदरि-रयणचूडकहा (प्राकृत ग्रंथ) लखायो. (जुओ पीटरसन सं. ग्रं. शो. रि. ३.६९) ४. अजयपाल * सं. १२२९ वैशाख शुदि ३ सोमे - हेमचंद्रकृत प्राकृत व्याश्रय ग्रंथ लखायो. (जुओ गुजरात गेझेटीयर पा. १९३ पदटिप्पणी.) * सं. १२३२ चैत्र शुदि १ भौमे - नरपतिजयचर्या नामनो ग्रंथ रचायो. (भांडारकर. सं. ग्रं. शो. रि. १८८२-८३ पा. २२०) * सं. लखेल नथी - मोहपराजय नाटक (पीटर्सन १८८०-८१ पा. ३२) भीम (२) १. आ संवत प्रस्तुत ग्रंथनी यशोदेव उपाध्याये रचेल बृहद् वृत्तिनो छे. मूळ वि. सं. १०७३ मां रचायेलुं छे. - लालचंद. For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर दिसम्बर-२०१४ * सं. १२५१ कार्तिक शुदि १२ शुक्रे-हेमचंद्रकृतयोगशास्त्र अथवा अध्यात्मोपनिषत् लखाव्यु (जुओ पीटरसननो सं. ग्रं. शो. रि. १८८४-८६ पा. ७७) *सं. १२६१ आश्विन शुदि७ रवौ - मानतुङ्गसूरिकृत सद्धजयंतीचरित लखावायु. (जुओ पीटरसननो सं. ग्रं. शो. री. १८८४-८६ पा. ४५) * सं. १२८८' - गुणपालकृत(प्राकृत)ऋषिदत्तचरितम् (जुओ पीटरसन सं. ग्रं. शो. रि. १८८०-८१. पा. ९) ५. वीसलदेव * सं. १३०३ मार्गशिर वदि १२ गुरौ-आचारांगसूत्र लखावामां आव्यु. (जुओ पीटर्सननो सं. ग्रं. शो. रि. १८८२-८३ पा. ४०) * सं. १३१५ - पट्टावली त्रण वरसनो दुकाळ पड्यो. (जुओ भांडारकर सं. ग्रं. शो. रि. १८८३-८४ पा. १५) ६. सारंगदेव * सं. १३५० ज्येष्ठ वदि३ रवौ - जयन्तकृतकाव्यप्रकाशदीपिका लखावामां आवी (भां.सं.पं.शो.रि. १८८३-८४ पा. ३२६) ७. कर्णदेव-२ * सं. १३६०-जैनप्रशस्ति-पेथडनामना श्रेष्ठीए महावीरनी मूर्ति करावी. (जुओ पुरातत्त्व १. १. पा. ६३) परिशिष्ट पं. लालचंद भगवानदास गांधी १. कर्ण-१ *सं. ११४१(३९) नेमिचंद्रसूरिए ‘महावीरचरिय' रच्यु. (जूओ जैनआत्मानंदसभा, भावनगर तरफथी छपायुं छे.) १. आ संबंधमां पीटर्सन साहेब लखे छे के १२८८नी संख्या अर्वाचीन हस्ताक्षरोमा लखेली देखाय छे अने मूळ संख्या १२६४ हशे. २. अहीथी आगळ सर्वत्र विक्रम संवत् जाणवो. For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR DECEMBER-2014 * सं. ११४६ हरिभद्रसूरि रचित योगदृष्टिसमुच्चय पुस्तक लखायु. (जूओ पिटर्सन रिपोर्ट ५, ५९.) २. सिद्धराज जयसिंह * सं. ११६० वर्धमानसूरिए आदिनाथचरित्र (प्रा.) रच्यु. (पि.रि. ५, ८१) * सं. ११६४ मलधारी हेमचंद्रसूरिए जीवसमासवृत्ति लखी (रची) (पि.रि. १, १८) * सं. ११६६ आवश्यकसूत्र लखायु. (जेसलमेर भांडागारीय ग्रंथसूची, गा. ओ. सिरीझ, वडोदरा तरफथी मुद्रित पृ. २४) * सं. ११७१ खरतर पट्टावली लखाइ. (जेसलमेरभां. सूची पृ. १७) * सं. ११७२ हरिभद्रसूरिए आगमिकवस्तुविचारसार (षडशीति) वृत्ति रची (जैन आ. सभा, भावनगर तरफथी प्रकाशित) * सं. ११७४ यशोदेव उपाध्याये नवतत्त्वभाष्यविवरण रच्यु. (जैन आ. सभा, भावनगर तरफथी प्रकाशित) * सं. ११७५ मलधारी हेमचन्द्रसूरिए विशेषावश्यकभाष्य विवरण रच्यु. (यशोविजयजैनग्रंथमाळा, बनारस तरफथी प्रकाशित) * सं. ११७८ यशोदेव उपाध्याये चन्द्रप्रभचरित (प्रा.) रच्यु. (जेसलमेरभां. सूची. पृ. ३३) * सं. ११८० यशोदेवसूरिए पाक्षिकसूत्र वृत्ति रची. (जुओ पीटर्सन सं. ग्रं. शो. रि. १८८०-८१ पा. २६) (शेठ दे. ला. जै. पु. फंड, सुरतथी प्रकाशित) * सं. ११८१ श्वेतांबर वादीदेवसूरि दिगंबरवादी कुमुदचंद्र साथे वाद थयो. (प्रभावकचरित्रवादीदेवसूरिप्रबंध) * सं. ११८४ ज्ञाताधर्मकथांगवृत्ति लखाइ. (पि.रि. १, ३७) * सं. ११८५ सज्जनदंडाधिपे गिरनार पर नवु मंदिर कराव्यु. रैवतकल्प) प्रा. गू. काव्यसंग्रह परि. ५ मुद्रित) For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 25 श्रुतसागर दिसम्बर-२०१४ * सं. ११८५ हरिभद्राचार्ये प्रशमरति विवरण रच्यु. (जैनधर्मप्रसारकसभा, भावनगर तरफथी मुद्रित) * सं. ११८७ भगवतीसूत्र वगेरे पुस्तको लखायां. (पि.रि. ५,५८) * सं. ११९० आम्रदेवसूरिए आख्यानकमणिकोश वृत्ति समाप्त करी. (पि.रि. ३, ८२) * सं. ११९८ पउमचरिय लखायु. (जेसलमेरभां. सूची पृ. १७) ३. कुमारपाल *सं. १२१५ काव्यप्रकाश लखायु. (जेसलमेरभां. सूची पृ. १८) * सं. १२१६ हरिभद्रसूरिए नेमिनाथचरित्र (अपभ्रंश) रच्यु. (जेसलमेरभां. सूची पृ. २८) * सं. १२२० सोरठना दंडाधिप श्रीमाली अंबडे (आम्रभटे) गिरनार पर पाज करावी. रैवतकल्प प्रा. गू. का. सं. परि. ५) * सं. १२२५ शांतिसूरिरचित पृथ्वीचंद्रचरित्र (प्रा.) लखायु. (जेसलमेरभां. सूची पृ. १७) * सं. १२२७ शीलाचार्यरचित महापुरिसचरिय (प्रा.) लखायु. (जेसलमेरभां. सूची पृ. ३९) ४. भीमदेव * सं. १२४७ अषाढ सुदि ९ बुधे कल्पसूत्र लखायु. (पि.रि. ३.५१) ५. कर्णदेव * सं. १२७४ अमरकीर्तिए छकम्मुवएसो (अपभ्रंश) रच्यो. (सेन्ट्रल लाइब्रेरी,वडोदरामांप्रति छ) १. आ संवत् भूलभरेलो देखाय छे केमके आंबडे सं. १२२२ अने १२२३मां पाज करावी एम गिरनार उपरना बे शिलालेखो बतावे छे. (जुओ प्रा.जै. ले. सं. ५०-५१)- डीस्कळकर. For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra SHRUTSAGAR www.kobatirth.org 26 ६. भीमदेव * सं. १२९६ संग्रहणीटीका (मलयगिरीया) लखाइ. * सं. १२९६ उपदेशकंदलीवृत्ति पुस्तक लखायुं. * सं. १२९८ देशीनाममाला प्रति लखाइ. * सं. १२९५' योगशास्त्र पुस्तक लखायुं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir DECEMBER-2014 (जेसलमेरभां. सूची पृ. ३५) * सं. १३१० उपदेशमालादि प्रकरण पुस्तिका लखाइ. * सं. १३१३ ज्ञानपंचमी पुस्तिका लखा. ७. अर्जुनदेव * सं. १३२७ वासुपूज्यचरित्र पुस्तक लखायुं. (संघवीना भंडारनी प्रति, पाटण) (संघवीना पाडानो भंडार, पाटणनी प्रतिपर उल्लेख.) For Private and Personal Use Only (पि. रि. ५.५०) (जेसलमेरभां. सूची पृ. ३७) (संघवीना भंडारनी प्रति, पाटण) ८. सारंगदेव * सं. १३३६ पर्युषणाकल्प पुस्तक लखायुं. * सं. १३३९ आदिनाथचरित्र पुस्तक लखायुं. * सं. १३४३ उत्तराध्ययनसूत्र- निर्युक्ति-वृत्ति पुस्तक लखायुं. (जेसलमेरभां. सूची पृ. २४) (पि.रि. ५,५३) (जेसलमेरभां. सूची पृ. ४२) (पि.रि. ५, ५० ) (पुरातत्त्व वर्ष- २, अंक - ४मांथी साभार) १. आ बे संवतो वीसलदेव पाटणनी गादी उपर आव्या ते पहेलाना छे, केमके त्यां १२९८ सुधी भीम (बीजो) अने १२९९ थी १३०२ सुधी त्रिभुवनपाळ राज्य करतो हतो अने वीसलदेव सं. १३०२ मां गादी उपर आव्यो. - डीस्कळकर. Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुस्तक समीक्षा डॉ. हेमन्त कुमार पुस्तक नाम : सूत्र संवेदना मूल कृति नाम : आवश्यकसूत्र विवेचक साध्वी श्री प्रशमिताश्रीजी प्रकाशक : सन्मार्ग प्रकाशन, अहमदाबाद प्रकाशन वर्ष : विक्रम संवत्-२०५७ से २०७० भाग मूल्य ५००/- (सेट की कीमत) भाषा : गुजराती जैनधर्म का सिद्धांत मूलतः कर्म पर आधरित है. संपूर्ण कर्मों का क्षय हुए बिना मानव जीवन का चरम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति असंभव है, यह निर्विवाद है. अपनी आत्मा कर्म से आच्छादित है. इन सभी कर्मों का क्षय करने के पश्चात् ही परम ऐश्वर्य की प्राप्ति की जा सकती है. अतः समस्त साधना एवं क्रियाओं का मूल उद्देश्य एक ही होना चाहिए कि किस प्रकार कर्मों को क्षय किया जाए. हमें यह भी विचार करना चाहिए कि आज तक इतनी साधना-आराधना करने के बाद भी हम अपने समस्त कर्मों को क्षय क्यों नहीं कर सके? इसका कारण क्या है? हमारी आत्मा कर्म रहित बने इस हेतु से ही पूज्य विदुषी साध्वी श्री प्रशमिताश्रीजी म. सा. ने सूत्र संवेदना नामक विशिष्ट ग्रंथ की रचना करके मुमुक्षुओं के मोक्ष मार्ग को सुलभ बनाने का प्रयास किया है. सूत्र संवेदना एक अति उपयोगी ग्रन्थ है, क्योंकि इसमें मोक्ष मार्ग के आराधकों के लिए बहुत ही सुन्दर ढंग से कर्म क्षय करने के उपाय बताए गए हैं. इस पुस्तक में नित्यप्रति किए जानेवाले प्रतिक्रमण आदि आवश्यकसूत्रों का सामान्य अर्थ तो दिया ही गया है साथ ही यह भी बताया गया है कि इस सूत्र को बोलते समय हृदय का भाव किस प्रकार का होना चाहिए. इन सूत्रों का अर्थ पूर्णतः शास्त्रसम्मत एवं शास्त्राधारित है. शब्द एवं भाषा की मर्यादा होते हुए भी यथाशक्य हृदय के अनेक भावों को प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है. सभी आवश्यक क्रियाओं को मुमुक्षु उपयुक्त भाव के साथ करें इस हेतु से सूत्रों का अर्थ किया गया है. विदुषी पूज्य साध्वीश्रीजी ने प्रत्येक सूत्र का प्रथमतः सामान्य परिचय कराया है, फिर मूल सूत्र दिया है, उसके बाद सूत्रों For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR DECEMBER-2014 का अन्वय, संस्कृत छाया, गुजराती शब्दार्थ किया है, फिर उन सूत्रों का विशेषार्थ विस्तारपूर्वक बताया है. यह सत्य है कि प्रत्येक धार्मिक क्रियाओं के साथ संलग्न आवश्यकसूत्रों का अर्थ, विधिपूर्वक उच्चारण और उनके साथ अपने हृदय में उत्पन्न होने वाले भाव क्षणिक न रहे, वह लम्बे समय तक टिका रहे, उसकी तारतम्यता बनी रहे, तभी तत्त्व संवेदना स्थिर हो पाती है और यही तत्त्व संवेदना आत्मा को मुक्तिधाम तक पहुँचाने में सहायक होती है. इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए पूज्य साध्वी श्री चंद्राननाश्रीजी की शिष्या परम विदुषी शिष्या साध्वी श्री प्रशमिताश्रीजी म. सा. ने सूत्र संवेदना नामक पुस्तक की रचना कर ७ भागों में प्रकाशित करवाया है. विक्रम संवत् २०५७ से २०७० के मध्य इस पुस्तक के ७ भागों का प्रकाशन पूज्यश्रीजी ने बहुत ही चिंतन-मनन के पश्चात् पूर्ण करवाया है. प्रत्येक सूत्रों का गुजराती भाषा में विवेचन बड़ी ही सूक्ष्मता पूर्वक करते हुए मुमुक्षु जीवों के लिए आराधना मार्ग स्पष्ट और सुलभ कर दिया है. यह पुस्तक मुमुक्षु जीवों के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगा. धार्मिक आराधना जिन सूत्रों के सहारे की जाती है, उन सूत्रों के रचयिता गणधर भगवन्त हैं, हमारे सद्भाग्य से ये सूत्र आज तक हमको उपलब्ध हैं. इन्हीं सूत्रों के आधार पर हम अपनी सभी धार्मिक क्रियाएँ करते हैं, किन्तु आज कठिनाई यह है कि इन सूत्रों का अर्थ समझे बिना ही रटते रहते हैं, जिसके कारण उन सूत्रों से जो शक्ति जितने प्रमाण में उत्पन्न होनी चाहिए वह नहीं हो पाती है. परिणाम स्वरूप अपेक्षित कर्म क्षय नहीं हो पाता है. मात्र सूत्रों को रटने से जीव को लाभ तो होता है, किन्तु बहुत सामान्य होता है. यह तो वही बात हुई कि जिस कार्य से हमें करोड़ों की आमदनी होनी चाहिए वहाँ से मात्र कौड़ी लेकर ही घर वापस आने जैसी है. यदि हम पूर्ण सावधानी पूर्वक एवं विधिपूर्वक इन सूत्रों की आराधना करें तो अवश्य ही हमें अपेक्षित लाभ प्राप्त होगा और अपने कर्मों की निर्जरा कर सकेंगे. पूज्य विदुषी साध्वीश्रीजी ने इसी बात को समझाने का सफल प्रयास किया है. पूज्य साध्वीश्रीजी ने संपूर्ण आवश्यकसूत्र का गुजराती भाषा में अनुवाद कर गुजराती भाषा-भाषी मुमुक्षुओं-वाचकों के लिए सरल एवं सुबोध बनाने का जो अनुग्रह किया है, वह सराहनीय एवं स्तुत्य कार्य है. भविष्य में भी जिनशासन की उन्नति एवं श्रुतसेवा में समाज को इनका अनुपम योगदान प्राप्त होता रहेगा, ऐसी प्रार्थना करता हूँ. पूज्य साध्वीश्रीजी के इस कार्य की सादर अनुमोदना के साथ कोटिशः वंदन. For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूरि - सिंहासनारोहण महोत्सव सम्पन्न डॉ. हेमन्त कुमार श्री नाकोड़ा तीर्थ की पावन भूमि पर परम पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब की पावन निश्रा में इस महा महोत्सव का प्रारम्भ विक्रम संवत् मार्गशीर्ष शुक्ल ८, शनिवार, दिनांक २९/११/२०१४ को हुआ जो विक्रम संवत् मार्गशीर्ष शुक्ल १०, सोमवार, दिनांक ०१/१२/२०१४ के पावन दिन समाप्त हुआ. पूज्य राष्ट्रसन्त के वरद हस्त से एक साथ पाँच पूज्यों को आचार्यपद पर सुशोभित किया गया. मुनिपद से सूरिपद पद पर जिन्हें बिराजमान किया गया वे मुनि भगवन्त पंन्यासप्रवर श्री देवेन्द्रसागरजी म. सा., पंन्यासप्रवर श्री हेमचन्द्रसागरजी म. सा., पंन्यासप्रवर श्री विवेकसागरजी म. सा., पंन्यासप्रवर श्री अजयसागरजी म. सा. एवं मुनिप्रवर श्री विमलसागरजी म. सा. थे.. दिनांक १/१२/२०१४ को भव्य समारोह पूर्वक विराट जनसमूह के बीच भारतभर से पधारे अनेक गणमान्य लोगों की उपस्थिति में आचार्यपदवी प्रदान का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ जिसमें परम पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब ने पाँचों पूज्यों को आचार्य पद से विभूषित किया. परम पूज्य राष्ट्रसन्त ने पाँचों पूज्य भगवन्तों का नामकरण किया जो क्रमशः आचार्य श्री देवेन्द्रसागरसूरिजी, आचार्य श्री हेमचंद्रसागरसूरिजी, आचार्य श्री विवेकसागरसूरिजी, आचार्य श्री अजयसागरसूरिजी एवं आचार्य श्री विमलसागरसूरिजी महाराज के नाम से घोषित हुए. इस महा महोत्सव के शुभ अवसर पर श्री नाकोड़ाजी तीर्थ रंग-बिरंगे प्रकाशपुंजों से जगमगा उठा था. जगह-जगह तोरण द्वार बनाए गए थे. अतिथियोंयात्रियों के आवास एवं भोजन की समुचित व्यवस्था की गई थी. अनेक गुरुभक्तों ने इस पावन अवसर पर अपना सहयोग प्रदान कर पुण्य लाभ लिया. देश-विदेश के हजारों गुरुभक्त इस कार्यक्रम में उपस्थित थे. सभी कार्यक्रम श्री जैन श्वेताम्बर नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ ट्रस्ट, मेवानगर, जिला बाड़मेर, राजस्थान के तत्त्वावधान में पूर्ण धार्मिक वातावरण में सम्पन्न हुए. समरादित्य महाकथा संपूर्ण अब हिन्दी में उपलब्ध पूज्य आचार्य श्री भद्रगुप्तसूरिजी (प्रियदर्शन) द्वारा गुजराती भाषा में लिखित एवं विश्वकल्याण प्रकाशन, महेसाणा द्वारा प्रकाशित समरादित्य महाकथा संपूर्ण अब हिन्दी भाषा में उपलब्ध हो गया है. पूर्व में इस महाकथा के ६ भव हिन्दी में प्रकाशित For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 30 DECEMBER-2014 थे. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर, कोबा द्वारा शेष ३ भवों का भी हिन्दी में अनुवाद करवा दिया गया है, जिसे श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा द्वारा प्रकाशित किया गया है. श्री नाकोडाजी तीर्थ पर सूरि-सिंहासनारोहण महोत्सव के पावन अवसर पर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा द्वारा प्रकाशित समरादित्य महाकथा के संपूर्ण नौ भवों का विमोचन श्री अंधेरी शांतावाडी जैनसंघ, मुंबई द्वारा किया गया. ___ समरादित्य महाकथा के संपूर्ण भाग का हिन्दी में प्रकाशन हो जाने से हिन्दी भाषा-भाषी महानुभावों को इस महाकथा के रसास्वादन का लाभ मिलेगा. इस पुस्तक की कथावस्तु वैराग्यवर्द्धक एवं संस्कारवर्द्धक है. यह सभी वाचकों के लिए समान रूप से उपयोगी ग्रन्थ है. रासपद्माकर भाग ३ का विमोचन किया गया आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, में संगृहीत हस्तप्रतों में रही हुई अप्रकाशित देशी भाषा के रासों का प्रकाशन रासपद्माकर के रूप में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा द्वारा विगत वर्षों से किया जा रहा है. इसी शृंखला की तीसरी कड़ी के रूप में रासपद्माकर भाग-३ का विमोचन श्री नाकोड़ाजी तीर्थ पर सूरिसिंहासनारोहण महोत्सव के पावन अवसर पर श्री दीपकभाई नवलखा, अजीमगंज, पश्चिम बंगाल के कर कमलों से सम्पन्न हुआ. श्रीमती जागृतिबेन दीपकभाई वोरा, अहमदाबाद द्वारा संपादित एवं ज्ञानमंदिर के पंडितवर्य श्री संजय कुमार झा द्वारा संशोधित इस भाग में नवकार के ९ पद के समान, नवरत्नतुल्य एवं नवनिधि समान ९ अप्रकाशित कृतियाँ प्रकाशित की गई हैं. इन ९ कृतियों के अंदर स्तुति, स्तवन, प्रभुभक्ति में समर्पण, कर्मनिर्जरा का परिणाम, शीलसम्पन्न चरित्र आदि सभी विषयों का एक सुंदर संयोग है. वास्तव में इन विषयों का संकलन भी अपने आपमें एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है. अर्थसंकेत, पाठभेद, कठिन शब्दों का अर्थ आदि दिए गये हैं, जो पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा. कृति के आधार प्रत की प्रथम पत्र की छायाप्रति कृति प्रारंभ में दी गई है. अप्रकाशित कृतियों को प्रकाश में लाकर जिनशासन को समर्पित करने का अनुमोदनीय एवं प्रशंसनीय कार्य हुआ है. श्रीतपागच्छ गुर्वावली-सागरस्मरणावली ग्रंथ परम पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 31 श्रुतसागर दिसम्बर-२०१४ के प्रशिष्य आचार्य श्री विवेकसागरसूरीश्वरजी महाराज के शिष्य मुनिप्रवर श्री कल्याणपद्मसागरजी म. सा. द्वारा संकलित एवं संपादित श्री तपागच्छ गुर्वावली का विमोचन श्री नाकोडाजी तीर्थ पर सूरि-सिंहासनारोहण महोत्सव के पावन अवसर पर श्री प्रेमचंदजी गोलिया एवं श्री चांदमलजी गोलिया के कर कमलों से सम्पन्न हुआ. जिनशासन की पट्टपरम्परा के इतिहास को और उसमें भी तपागच्छ की गुर्वावली पर ध्यान केन्द्रित करते हुए प्रस्तुत ग्रंथ में विजय हीरसूरीश्वरजी महाराज की पट्टपरम्परा में उपाध्याय सहजसागरजी म.सा. की पट्टपरम्परा को विशेषरूप से उजागर करते हुए महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्यों को प्रस्तुत किया गया है. अन्त में योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज की पट्टपरम्परा की सूचनाएँ जो अन्यत्र अनुपलब्ध हैं, का भी सुन्दर संकलन किया गया है. राष्ट्रसन्त आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के आशीर्वाद एवं तपोमूर्ति आचार्यदेव श्री वर्धमानसागरसूरीश्वरजी म. सा. की प्रेरणा से संकलित एवं संपादित इस ऐतिहासिक ग्रंथ का प्रकाशन श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा द्वारा किया गया है. __ जैन गच्छमत प्रबंध का पुनः प्रकाशन सम्पन्न हुआ पूज्य योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. द्वारा लिखित जैन गच्छमत प्रबंध का विमोचन श्री नाकोड़ाजी तीर्थ पर सूरि-सिंहासनारोहण महोत्सव के पावन अवसर पर श्री महुडी जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक ट्रस्ट के ट्रस्टीश्रीयों के कर कमलों से सम्पन्न हुआ. इस ग्रंथ का पुनः संपादन आचार्य श्री कैलाससागरसूरी ज्ञानमंदिर, एवं प्रकाशन श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा द्वारा किया गया है. जिसके संयोजक मुनिप्रवर श्री कल्याणपद्मसागरजी म. सा. हैं. इस ग्रंथ का प्रकाशन विक्रम संवत् १९७३ में अध्यात्म ज्ञान प्रसारक मंडल, मुबई द्वारा किया गया था. लगभग एक शताब्दी के बाद मुनिप्रवर श्री कल्याणपद्मसागरजी ने सत्प्रयास से यह ग्रंथ पुनः संपादित होकर श्रीसंघ के समक्ष प्रस्तुत हुआ है. इस ग्रंथ में योगनिष्ठ आचार्यश्रीजी ने प्रभु महावीरस्वामी के शिष्य श्री सुधर्मास्वामीजी की प्रवाहित पाट परम्परा में विशिष्ट शक्तियों एवं प्रतिभा के आधार से जो भिन्न-भिन्न गच्छ उत्पन्न हुए उनका वर्णन उस समय उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर किया है. श्री नाकोड़ाजी तीर्थ पर सूरि-सिंहासनारोहण महोत्सव के पावन अवसर पर ग्रंथों के विमोचन की शृंखला में पूज्य आचार्य श्री विमलसागरसूरीश्वरजी म. सा. द्वारा संकलित एकाधिक C. D. का भी विमोचन किया गया जिसमें महुडी के गुरुदेव, मंत्र सागर एवं विमल वाणी के नाम प्रमुख हैं. For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 32 DECEMBER-2014 पचपदरा में पूज्य गुरुदेवश्री की निश्रा में जीवितोत्सव सम्पन्न परम पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब की पावन निश्रा में पचपदरा निवासी श्री राजेश-सुजीता चौपड़ा एवं श्री पंकज-नूतन चौपड़ा ने अपने पूज्य पिताश्री श्रीमान गणपतराजजी चौपड़ा एवं पूजनीया माताश्री श्रीमती पुष्पादेवी चौपड़ा के उज्ज्वल-सुभाषित, सामाजिक-धार्मिक जीवन के अनुमोदनार्थ दिनांक ११ दिसम्बर, २०१४ से १५ दिसम्बर, २०१४ तक पंचदिवसीय जीवित महोत्सव का अनुठा आयोजन किया, जो पूर्ण धार्मिक वातावरण में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ हर्षोल्लास पूर्वक सम्पन्न हुआ. पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्यदेव का भव्य सामैया के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ. उपस्थित जनसमूह ने प्रतिदिन पूज्यश्री के प्रवचन का लाभ लिया. तीन दिन तक मध्याह्न में श्री अर्हत् महापूजन में उत्कृष्ट २५ कुसुमांजलि, देव-देवियों की पूजनहवन और १०८ अभिषेक विधान किया गया. चौथे दिन श्री शनुजय गिरिराज की भावयात्रा की गई. पाँचवें दिन चौपड़ा परिवार के निवास स्थान से बैंड-बाजे के साथ भव्य शोभा यात्रा निकाली गई, जिसमें हजारों लोगों ने भाग लिया. प्रतिदिन संध्या में प्रभुभक्ति, सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि का आयोजन किया गया जिसमें २५ पुष्पांजली का विधान, श्री संभवनाथ मंदिर में पूजा-भक्ति, श्री मातृ देवो भवः -पितृ देवो भवः नाटक, मातृ-पितृ वन्दना आदि धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रमुख थे. , पूज्य आचार्यदेवश्री की पावन प्रेरणा से प्रेरित होकर श्रीमान गणपतराजजी एवं श्रीमती पुष्पादेवीजी ने सकल श्रीसंघ के समक्ष चतुर्थव्रत को अंगीकृत किया. जिसकी अनुमोदना एवं प्रशंसा उपस्थित श्रीसंघ ने हर्षध्वनि के साथ की. श्रीमान गणपतराजजी परिवार ने सातों क्षेत्रों में अपने लक्ष्मी का सदुपयोग किया, इसी क्रम में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा में संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में श्रुतभक्ति हेतु उदार सहयोग राशि घोषित की. ___ परम पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब का दर्शन एवं आशीर्वाद ग्रहण करने हेतु राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमान अशोकजी गहलोत जोधपुर से यहाँ पधारे. उन्होंने पूज्य आचार्यश्री की कुशलपृच्छा की, मांगलिक सुना एवं आशीर्वाद ग्रहण किया. ___ इस पंचदिवसीय कार्यक्रम में श्री राजेश-सुजीता, श्री क्रिशा-अंश चौपड़ा, श्री पंकज-नूतन, दर्शिल, ऐकांश चोपड़ा की ओर से उपस्थित सभी लोगों के लिए खूब सुन्दर आवास, स्वामीवात्सल्य, नवकारसी आदि की व्यवस्था की गई थी. संपूर्ण पचपदरा नगर को रंग-बिरंगे ध्वज-पताकाओं एवं रौशनी से दुल्हन की तरह सजाया गया था. संपूर्ण कार्यक्रम पूर्ण धार्मिक वातावरण में सम्पन्न हुआ, For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir JOIODOA FOROLO (OPOROMOTOROND ROACADAONLOPOROADS PRIOR पू. गुरुदेवश्री की पूनित निश्रा में पचपदरा महोत्सव के कुछ पावन पल For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir TITLE CODE : GUJ MUL 00578. SHRUTSAGAR (MONTHLY). POSTAL AT. GANDHINAGAR. ON 15TH OF EVERY MONTH. PRICE : RS. 15/- DATE OF PUBLICATION December 2014 नाकोडातीर्थे पूज्य गुरुदेवश्री की पुनित निश्रा में सूरिपदारोहण महोत्सव के चिरस्मरणीय क्षण प्रकाशक आचार्य श्री कैलाससागरसरि ज्ञानमंदिर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर 382007 फोन नं. (079) 23276204, 205, 252, फेक्स (079) २३२७६स Website : www.kobatirth.org email : gyanmandir@kobatirth.org BOOK-POST / PRINTED MATTER PRINTED, PUBLISHED AND OWNED BY : SHRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA, PRINTED AT : NAVPRABHAT PRINTING PRESS. 9-PUNAJI INDUSTRIAL ESTATE, DHOBHIGHAT, DUDHESHWAR, AHMEDABAD-380004 PUBLISHED FROM : SHRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA, NEW KOBA, TA. & DIST. GANDHINAGAR, PIN: 382007, GUJARAT. EDITOR : Hiren Kishorbhai Doshi For Private and Personal Use Only