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कथानकोनी विराट सृष्टि आपणी अमूल्य संपदाछे
डॉ. गुणवंत बरवाळिया जगतभरमां कथासाहित्य स्थान अद्वितीय अने अनुपम छे. कहा-बंधे तं णत्थि जयम्मि जं कह वि चुक्का।
(कुवलयमाला) जगतमां एवो कोई पदार्थ नथी जेने कथारचनामां स्थान मळ्युं न होय. प्रत्यक्ष दुनियामांजे मानवप्रजा वसे छे तेमां भणेला, कुशाग्रबुद्धिवाळा अल्प छे के जे विज्ञान, तत्त्वज्ञान, भूगोळ, खगोळ, गणित, आयुर्वेद, अध्यात्म, योग, प्रमाणशास्त्र, जेवा गहन अने तात्त्विक विषयोमा रस लई ऊंडा ऊतरी शके.
आथी तेओने स-रस ने समज पडे तेवा अने ते समज द्वारा जीवननो रस माणी शकाय तेवा साहित्यनी अपेक्षा छे. आथी आपणा पूर्व ऋषिमुनिओए विपुल प्रमाणमां कथाओ द्वारा तेमनी अपेक्षाने पूर्ण रीते संतोषी छे. तेओना सप्तरंगी मेघधनुष्यनी विविधता अने भातीगळ मनोरंजनथी भर्यु कथासाहित्य आपणी जातनी सूध-बूध विसरावी कथारसना अलौकिक प्रदेशमा दोरी जाय छे.
विश्वना कोई पण धर्म-दर्शन, शिक्षण के समाजना क्षेत्रमा सिद्धांतो के नियमो समजाववा के जे ते क्षेत्रना सहेतु बर लाववा प्रेरकबळ तरीके कथानकोनो उपयोग अनिवार्य रीते करवामां आव्यो छे. जेमां जीवनमां घटित थयेला प्रेरक प्रसंगो, उपनय कथाओ, दृष्टांतकथाओनो समावेश करवामां आव्यो छे.
समाजना विविध वर्गमां सदाचार- सिंचन करवा माटे विविध जाति, संप्रदाय के धर्मना लोकोने धर्माभिमुख करवा माटे विविध प्रकारनी कथाओनो आश्रय लेवामां आव्यो छे. आपणां पुराणो, वेद, उपनिषदो, आगम उपरांत आपणां महाकाव्यो, रामायण-महाभारतमां पण भरपूर कथानको संग्रहीत छे.
कथाओमां पंचतंत्र, हितोपदेश, जैन कथा साहित्यमा आगमयुगनी कथाओ, बालावबोध, उपदेशमालानां कथानकोनो समावेश थाय छे. धर्ममां श्रद्धा वधारवा माटे पर्वकथाओ, व्रतकथाओ, अने तत्त्वबोधकथाओनो फाळो नोंधपान छे.
जैनधर्ममां ज्ञानप्राप्ति माटेना मार्ग-अनुयोगद्वारना चार प्रकार बताव्या छे.
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