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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 18 DECEMBER-2014 माटे अहीं जीवनमां कलानी आवश्यकता ज नहि, परंतु अनिवार्यता स्वीकाराई छे, परंतु जीवननी सभरता अने मधुरतानुं शु? मात्र कल्पनामां विहार करवाथी जीवनमां सभरता अने मधुरता आवी शके? सर्जनशक्ति खीलववा माटे कल्पनाना विकासनी एक निश्चित हद छे ए सरहद पार कर्या पछी निरर्थक छे.. कथा, काव्य, साहित्य के संगीत विगेरे कलाओ मात्र भक्ति प्रयोजनरूप न होय, सदाचारप्रेरक न होय तो मात्र कल्पित अने निरर्थक बनी रहेशे. जे कला द्वारा आत्मगुणोनो विकास थाय ते कला ज सार्थक. जे सर्जनमा निज स्वरूपने पामवानी झंखना नथी ते इन्द्रियोना मनोरंजन करनारी नीवडे छे. जेनुं परिणाम भोग-उपभोग अने तृष्णा वधारनारं, राग-द्वेष ने संसार वधारनार छे. पू. हरिभद्रसूरि, कलिकाल सर्वज्ञ हेमचंद्राचार्य, पू. आनंदघनजी म., पू. यशोविजयजी आदिनुं साहित्य आत्मार्थे होवाथी चिरंजीव बनी अमरत्वने पाम्यु. प्राचीन के मध्यकालीन कथामंजुषा खोली साहित्यसर्जको, कथाओना श्रद्धातत्त्वने अकबंध राखी सांप्रत प्रवाह प्रमाणे आधुनिक-वैज्ञानिक अभिगमथी ए कथाओ नवी पेढी समक्ष रजू करशे तो युवानोने धर्माभिमुख थवानी नवी दिशा मळशे. जैन कथानुयोगमां श्रावक, श्राविका, साधु-साध्वी वगेरेनां जीवनना आदर्श पासांनुं निरूपण तो करवामां आवे ज छे, परंतु जैन कथाओनी विशिष्टता ए छे के ते पशुपंखीनां पात्रोने, तेना जीवनना आदर्शने रजू करी प्रेरणा पूरी पाडे छे. सिंहना जीवन, परिवर्तन थतां ते भूख्यो रहेवा छतां हिंसा करतो नथी. चंडकौशिक सर्पने जातिस्मरण थतां ते कीडीने पण नुकशान करतो नथी. आम जैन कथानुयोगनी कथाओनुं जीवनघडतरमा मूल्यवान योगदान रह्यं छे. For Private and Personal Use Only
SR No.525296
Book TitleShrutsagar 2014 12 Volume 01 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size6 MB
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