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सत्यावीस साधुगुण गर्भित जंबूस्वामी गुरु गहुंली
___ डॉ. भानुबेन शाह प्रस्तुत नव कडी प्रमाण आ कृति गुरुनी लाक्षणिकता दर्शावती गुरुभक्तिनी एक सुंदर रचना छे. प्रस्तुत कृतिमा रचना साल नोंधायो नथी. प्रस्तुत कृतिनुं शीर्षक 'सत्यावीस साधु गुण गर्भित जंबूस्वामी गुरु गहुंली छे. तेमज गाथा नं.७ मां गहुंली' शब्दनो प्रयोग थयो छे. मध्यकालीन विविध काव्य प्रकारोमां गहुंली प्रकार महत्त्वनुं स्थान धरावे छे. गहुंलीनुं स्वरूप :
गहुंली एक लोकप्रिय गेय काव्य प्रकार छे. पर्वना दिवसो, चोमासी चौदश, पर्युषण, संवत्सरी, शाश्वती आयंबिलनी ओळी, दिवाळी, अक्षयतृतीया, महोत्सव प्रसंग, तपनुं उजमणु, गुरु भगवंतनुं आगमन अने विहार, जिनवाणी श्रवण,अने संघयात्रा वगेरे प्रसंगोमां गहुंली गवाय छे. गहुंलीनी विषय वस्तुमां वैविध्य जोवा मळे छे. 'श्री भगवतीसूत्र', 'श्री बारसासूत्र, 'श्री उत्तराध्ययनसूत्र' जेवा ग्रंथोनो महिमा, जिनवाणीनो महिमा अने गुरुभगवंतोना गुणकीर्तन करती गहुलीओ रचाई छे.
श्री कविनभाई जैन साहित्यना काव्य प्रकारोमा जणावे छे के “गहुंली गेय काव्यप्रकार छे तेमा मात्र गुरुस्तुतिनो विचार केन्द्र स्थाने नथी, पण विविध प्रसंगोने अनुरूप विचारो गहुंलीमां गुंथी लेवामां आवे छे. तेनु विषय वैविध्य नोंधपात्र छे. ___ गुरुभक्तिनी गहुंलीमां गुरुवाणीनो प्रभाव अने एमना व्यक्तित्व -आचारशुद्धिने लगता गुणोनो उल्लेख थाय छे. तीर्थ महिमानी गहुंली स्तवन साथे साम्य धरावे छे. तीर्थमां गवाय छे. तथा गामे-गाम तीर्थनी सालगीरी निमित्ते पण आवी गहुंलीओ गावानो रिवाज छे."
गहुँलीमा ‘साथीयों करवामां आवे छे. तेना चार छेडा चार गतिनुं सूचन करे छे. चार गतिनो क्षय करवाना प्रतिकरूपे जिनमंदिरमा भक्तो साथीयो करे छे. साथीया उपर अक्षतनी त्रण ढगली ज्ञान, दर्शन अने चारित्रना प्रतीकरूपे स्थापवामां आवे छे.
रत्नत्रयीनी आराधना चार गतिनो क्षय करी सिद्धिपद प्राप्त करावे छे. सिद्धिपदना प्रतिकरूपे त्रण ढगलीनी उपर मोक्ष रूपी फळ प्राप्त करवा सिद्धशिला स्थापवामां आवे
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