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श्रुतसागर
दिसम्बर-२०१४ छे, अने एनी उपर फळ मूकवामां आवे छे. गहुँलीने आकर्षक बनाववा बदाम, फळ, सोना-चांदीना सिक्काओथी अलंकृत करवामां आवे छे. आम, गहुंलीमा धर्म अने कळानो समन्वय सघायो छे.
गहुंली मात्र मानवसमाजनी प्रवृत्ति नथी परंतु स्वर्गना देवो पण हीरा, माणेक वगेरेथी प्रभुनी गहुंली करी सत्कारे छे. कविवर श्री समयसुंदरे सीमंधर स्तवन मां इन्द्राणी गहुंली करे छे, तेवो उल्लेख कर्यो छे.
'ईन्द्राणी काढे गहुंली की, मोतीना चोक पूराय.'
गहुंली गानार श्राविका बहेनो होय छे. गहुंलीमा प्रचलित गीतोना रागो अने देशीओनो वपराश जोवा मळे छे. गुरुमहिमा, रससमृद्धि, अलंकार योजना, उर्मिनी अभिव्यक्ति अने गेयता जेवा लक्षणोथी गहुंली एक स्वतंत्र काव्य प्रकार तरीके स्थान धरावे छे. मध्यकालीन जैन साहित्यमां आ प्रकारमा रचायेली कृतिनी संख्या पण अधिक छे. तो साथे साथे गहुंली साहित्य प्रकारमा रचायेली कृतिओ गाथा प्रमाणनी दृष्टिए संक्षिप्त के लघु होवा छतां एमां व्यक्त थतां भाव अने वर्णन काव्य प्रकारमा नोखी भात पाडे छे.
अंत्यानुप्रास अलंकारथी गूंथायेली आ गुरुभक्तिनी गहुंलीमा प्रथमनी चार गाथाओमां गुरुना सत्यावीश गुणोनो उल्लेख को छे. पांचमी गाथामां भगवान महावीरथी केवळज्ञाननी परंपरा, छठ्ठी गाथामां शियळनो महिमा, सातमी गाथामां गुरुपूजन, आठमी अने नवमी गाथामां जिनवाणीनुं स्वरूप अने तेनुं फळ दर्शाव्यु छे. प्रतपरिचय :
आ हस्तप्रत श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, अमदावाद(कोबा)थी प्राप्त थई छे. ह. प्र. नं. ०४८६३१ माप २४.५०x११.५० से.मी.; कुल पत्र-१; प्रति पत्र-१६ पंक्तिओ; प्रति पंक्ति-३६ अक्षरो छे. अक्षरो झीणां छतां सुवाच्य छे. कडी क्रमांक अने दंड व्यवस्था नियमित छे. 'मुनिवर सोभागी अने गुणवंताने गुणना रागी जेवी आंकणीना शब्दो लाल अक्षरे आलेखायां छे.
प्रस्तुत प्रतमा उत्तमविजयजीनी त्रण गहुंलीओनो संग्रह थयो छे. १. आपणा अभ्यासनी कृति (सत्यावीस साधुगुणगर्भितजंबूस्वामीमुरुगहुली) जे(नव कडीनी) छे; २. सुधर्मास्वामीनी गहुंली, (सात कडीनी); ३. साधुगुण गहुंली (पांच कडीनी) गहुँली छे.
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