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DECEMBER-2014 थे. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर, कोबा द्वारा शेष ३ भवों का भी हिन्दी में अनुवाद करवा दिया गया है, जिसे श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा द्वारा प्रकाशित किया गया है.
श्री नाकोडाजी तीर्थ पर सूरि-सिंहासनारोहण महोत्सव के पावन अवसर पर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा द्वारा प्रकाशित समरादित्य महाकथा के संपूर्ण नौ भवों का विमोचन श्री अंधेरी शांतावाडी जैनसंघ, मुंबई द्वारा किया गया. ___ समरादित्य महाकथा के संपूर्ण भाग का हिन्दी में प्रकाशन हो जाने से हिन्दी भाषा-भाषी महानुभावों को इस महाकथा के रसास्वादन का लाभ मिलेगा. इस पुस्तक की कथावस्तु वैराग्यवर्द्धक एवं संस्कारवर्द्धक है. यह सभी वाचकों के लिए समान रूप से उपयोगी ग्रन्थ है.
रासपद्माकर भाग ३ का विमोचन किया गया आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, में संगृहीत हस्तप्रतों में रही हुई अप्रकाशित देशी भाषा के रासों का प्रकाशन रासपद्माकर के रूप में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा द्वारा विगत वर्षों से किया जा रहा है. इसी शृंखला की तीसरी कड़ी के रूप में रासपद्माकर भाग-३ का विमोचन श्री नाकोड़ाजी तीर्थ पर सूरिसिंहासनारोहण महोत्सव के पावन अवसर पर श्री दीपकभाई नवलखा, अजीमगंज, पश्चिम बंगाल के कर कमलों से सम्पन्न हुआ.
श्रीमती जागृतिबेन दीपकभाई वोरा, अहमदाबाद द्वारा संपादित एवं ज्ञानमंदिर के पंडितवर्य श्री संजय कुमार झा द्वारा संशोधित इस भाग में नवकार के ९ पद के समान, नवरत्नतुल्य एवं नवनिधि समान ९ अप्रकाशित कृतियाँ प्रकाशित की गई हैं. इन ९ कृतियों के अंदर स्तुति, स्तवन, प्रभुभक्ति में समर्पण, कर्मनिर्जरा का परिणाम, शीलसम्पन्न चरित्र आदि सभी विषयों का एक सुंदर संयोग है. वास्तव में इन विषयों का संकलन भी अपने आपमें एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है. अर्थसंकेत, पाठभेद, कठिन शब्दों का अर्थ आदि दिए गये हैं, जो पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा. कृति के आधार प्रत की प्रथम पत्र की छायाप्रति कृति प्रारंभ में दी गई है. अप्रकाशित कृतियों को प्रकाश में लाकर जिनशासन को समर्पित करने का अनुमोदनीय एवं प्रशंसनीय कार्य हुआ है.
श्रीतपागच्छ गुर्वावली-सागरस्मरणावली ग्रंथ परम पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब
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