Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 27
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची (खंड-१.१.२७) जैन हस्तलिखित साहित्य KAILASA ŚRUTASAGARA GRANTHASUCI Descriptive Catalogue of Jain Manuscripts (Vol 1.1.27) बुदाणादादयामासा बदरिमीणासिवमा वादमणरावण आणानामााणति सामागका GY /नपालिका कोबा तीर्थ मला सपा ठरत रामनाawarनयार सिपात्राग्राष्ट्राम 1210211157 For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न २७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची (१.१.२७) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर (जैन व प्राच्यविद्या शोध संस्थान एवं ग्रन्थालय) श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों की विस्तृत सूची • आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी आराधना के महावीर जैन Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अमृतं व विद्या प्रकाशक श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ, गांधीनगर वीर सं. २५४५० वि.सं. २०७५० ई. २०१९ For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न २७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची (१.१.२७) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर (जैन व प्राच्यविद्या शोध संस्थान एवं ग्रन्थालय) श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों की विस्तृत सूची से आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी 15 अपतं तव प्रकाशक 6 श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ, गांधीनगर वीर सं. २५४५० वि.सं. २०७५ ० ई. २०१९ For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पं. संजयकुमार आर. झा पं. नवीनभाई वी. जैन www.kobatirth.org आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न २७ Aacārya Shrī Kailāsasāgarasūri Smṛti Granthasūcī - Ratna 27 कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची : १.१.२७ Kailāsa Srutasāgara Granthasūcī : 1.1.27 पं. अरुणकुमार झा पं. राहुल त्रिवेदी डॉ. जागृति बी. प्रजापति * संपादक मंडल * * संयोजक * डॉ. हेमन्त कुमार पं. संजयकुमार आर. झा * संपादन सहयोग परबत ठाकोर संजय गुर्जर Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only पं. रामप्रकाश झा पं. गजेन्द्रभाई शाह * कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग * केतन डी. शाह पं. भाविन पंड्या पं. पंकज शर्मा श्रीमती मीनाक्षी शिंदे Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न २७ श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर स्थित श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखितग्रंथानां विस्तृत सूची विभाग - १ : हस्तप्रत सूची वर्ग - ९ : जैन साहित्य खंड- २७ आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Descriptive Catalogue of Manuscripts Preserved in Śrī Devarddhigaṇi Kṣamāśramaṇa Hastaprat Bhāṇḍāgāra Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir (Jain, Indological Oriental Research Institute and Library) under the auspices of Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth Section - I : Manuscripts Catalogue Class - I : Jain Literature Volume - 27 Blessings & Inspiration Acharya Shri Padmasagarsurishwarji Publishers Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth, Gandhinagar, (Guj.) India 2019 For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acharya Shri Kailasasagarsuri Memorial Catalogue Series - 27 Kailāsa Śrutasāgara Granthasūcī: 1.1.27 Descriptive Catalogue of Manuscripts - 1.1.27 Preserved in Śrī Dēvarddhigaại Kșamāśramaņa Hastaprat Bhāņdāgāra Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir 00:Publisher o Vir Samvat 2545, Vikram Samvat 2075, A.D. 2019 O Edition : First 0 प्रकाशन सौजन्य : शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार, अहमदाबाद Sheth Shri Samvegbhai Lalbhai Parivar, Ahmedabad © Available at: Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth OPublisher: Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar 382007. (Guj.) INDIA Tel: (079) 23276204,23276205, 23276252, What'sApp : 07575001081 Web site: www.kobatirth.org E_mail : gyanmandir@kobatirth.org OPrice: Rs. 1500/O ISBN: 81-89177-00-1 (Set) 978-93-85803-28-4 (Vol.27) OPrinter : Navprabhat Printing Press, Ahmedabad * उपलक्ष * श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. की पावन निश्रा में श्री शौरीपुरतीर्थ में परम पवित्र प्रतिष्ठा महोत्सव __ के पुनीत प्रसंग पर वि.सं. 2075, माघ कृष्ण, 6, रविवार दि. 24-02-2019 For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अर्हम् नमः ॥ मंगल कामना तीर्थंकरों की वाणी में सरस्वती का निवास है. श्री तीर्थंकर परमात्मा के श्रीमुख से निकली वाणी, जिसे गणधर भगवंतों ने सूत्ररूप में गुंफित किया है; ऐसे जिनागम की परंपरा को वाचना के द्वारा आज तक अविच्छिन्न रखनेवाले सभी आचार्य भगवंतों को वंदन. जिनागम को समर्पित नियुक्तिकार-भाष्यकार-चूर्णिकार-टीकाकार एवं ग्रंथों के प्रतिलेखक आदि श्रमण समूह का भी मैं ऋणस्वीकृतिपूर्वक पुण्य स्मरण करता हूँ. अनेक जैन संघों, श्रेष्ठियों तथा यतिवर्ग ने आज तक जैन साहित्य का संग्रह-संरक्षण करके अनुमोदनीय कार्य किया है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं. समय परिवर्तन के साथ परिस्थितिवश लोगों का गाँवों से शहर की ओर जाना प्रारंभ हुआ. यतिवर्ग भी लुप्तप्राय हुए. इन सभी कारणों से ग्रन्थभंडारों की स्थिति चिंतनीय बन गई. बहुत से ग्रन्थ विदेश जाने लगे, कुछ भंडार लोगों की उपेक्षा से नष्टप्राय होने लगे, ग्रन्थों की सुरक्षा भी एक समस्या बन गई. इन सब बातों को देखकर सर्वप्रथम सन् १९७४ में अहमदाबाद के चातुर्मास दौरान ग्रन्थ भंडारों को सुव्यवस्थित करने का मुझे विचार आया. परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्रीमद कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. से इस विषय में चर्चा करके उनके मंगल आशीर्वाद से कार्य प्रारंभ करने का संकल्प किया. श्रेष्ठीवर्य स्व. कस्तुरभाई लालभाई आदि ने भी इस कार्य में सहयोग देने की भावना दर्शाई. सन् १९७९ में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के नाम से कोबा में संस्था की स्थापना हुई. अनेक स्थानों व विविध प्रान्तों में विहार करके ग्रन्थों को संग्रह करने का कार्य प्रारंभ हुआ और धीरे-धीरे संग्रह समृद्ध बनता गया. आचार्य श्री कैलाससागरसरि ज्ञानमंदिर आज भारत का एक सव्यवस्थित-समद्ध ज्ञानभंडार है. प्राचीन प्रणाली को कायम रखते हुए भी इस ज्ञानमंदिर में आधुनिक साधनों का सुभग समन्वय हुआ है. ज्ञानभंडार को व्यवस्थित करने के साथ-साथ इस खंड से पूर्व की सूचियों में समाविष्ट अधिकांश ग्रंथों की मूलसूची बनाने का जो भगीरथ कार्य मुनि श्री निर्वाणसागरजी ने किया है तथा इस कार्य के लिए योग्य मार्गदर्शन देकर आचार्य श्री अजयसागरसूरिजी ने जो सहयोग दिया है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. अन्य मुनिराजों ने भी जो यथायोग्य बहुमूल्य सहयोग दिया है, उन सबकी मैं हार्दिक अनुमोदना करता हूँ. ज्ञानमंदिर के पंडितवर्ग ने जिस सूझ व धैर्य के साथ अस्तव्यस्त हस्तप्रतों को व्यवस्थित करने एवं प्रतों के बारीक अध्ययनपूर्वक अतिविवरणात्मक सूचीकरण के इस कार्य को उत्तरोत्तर गति प्रदान की, वह अपने आप में अनूठा व इतिहाससर्जक कार्य है. डॉ. हेमन्त कुमार, श्री संजयकुमार झा, श्री रामप्रकाश झा, श्री नवीनभाई जैन, श्री गजेन्द्रभाई शाह, श्री अरुणकुमार झा, श्री भाविन पंड्या, श्री राहल त्रिवेदी, श्री पंकज शर्मा, डॉ. जागति बी. प्रजापति, श्रीमती मीनाक्षी शिंदे आदि सभी पंडितवरों, प्रोग्रामर श्री केतनभाई शाह एवं सभी सहयोगी कार्यकर्ताओं को मेरा हार्दिक धन्यवाद है. संस्था के अध्यक्ष श्री सुधीरभाई मेहता, ज्ञानमंदिर में चल रही विविध गतिविधियों की देख-रेख करनेवाले अन्य ट्रस्टीगण व कारोबारी सदस्य सभी को उनकी बहुमूल्य सेवाओं के लिए हार्दिक आशीर्वाद देता हूँ. अनेक श्रीसंघों, व्यक्तियों और जैन-जैनेतर लोगों ने भी इस कार्य में मुझे पूर्ण सहयोग दिया है, जिन्हें मैं धन्यवाद देता हूँ. ग्रन्थों के संरक्षण, सूचीकरण व प्रस्तुत २७वें खंड के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करनेवाले शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार, अहमदाबाद के प्रति भी धन्यवाद देता हूँ. बड़ी संख्या में पूज्य साधु-साध्वीजी तथा विद्वान-शोधकर्ताओं द्वारा यहाँ के ग्रंथसंग्रह का सुंदर लाभ लिया जा रहा है, जो बड़ी ही प्रसन्नता का विषय है. इस ज्ञानभंडार के हस्तप्रतों के अपने-आप में विशिष्ट प्रकार के सूचीपत्र कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची का २७वाँ खंड प्रकाशित हो रहा है, जो ज्ञानमंदिर के कार्य की सफलता का एक नया सोपान है. मुझे विश्वास है कि विश्वभर के विद्वज्जन इस ग्रंथसूची से महत्तम लाभान्वित होंगे. संस्था अपने विकासपथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रहे, यही मेरी मंगल कामना है. समसार करि For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org * प्रकाशकीय जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, श्रुतप्रवाहक पूज्य गणधर भगवंतों, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के २७वें खंड को चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में समर्पित करते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबातीर्थ परिवार अपार हर्ष की अनुभूति कर रहा है. विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं के रक्षक ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर (जैन व प्राच्यविद्या शोध संस्थान एवं ग्रंथालय ) में हस्तलिखित ग्रंथों का बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है. यह ज्ञानभंडार इस भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रख-रखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में राष्ट्रसंत पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरिजी के अधिकतर शिष्य - प्रशिष्यों का अपना योगदान रहा है. तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी हस्तप्रतों के सूचीकरण हेतु वर्षों तक अहर्निश भगीरथ परिश्रम किया है. इस सूचीकरण की अवधारणा को और विकसित करने में तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सूझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने हेतु आचार्य श्री अजयसागरसूरीश्वरजी तथा यहाँ के पंडितवर्गों, प्रोग्रामरों और कार्यकर्ताओं ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. इसी तरह पूज्य आचार्य भगवंत के अन्य विद्वान एवं प्रज्ञाशील शिष्यों का भी इस पूरी प्रक्रिया में विविध प्रकार का सहयोग प्राप्त होता रहा है, जिससे ज्ञानमंदिर की प्रवृत्तियों को विशेष बल एवं वेग मिलता रहा है. इस अवसर पर संस्था ज्ञात-अज्ञात सभी सहयोगियों व शुभेच्छुकों की अनुमोदना करते हुए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती है. सभी के मिले-जुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था. पंडितों के साथ-साथ करीब पचास कार्यकर्त्ताओं के माध्यम से, श्रीसंघ के व्यापक हितों से संबद्ध ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों के संचालन के लिए निरंतर बड़ी मात्रा में धनराशि की आवश्यकता रहती है. किसी भी प्रकार के सरकारी या अन्य किसी भी अनुदान को न लेकर मात्र संघों व समाज की ओर से मिलनेवाले आर्थिक व अन्य सहयोग के द्वारा कार्यरत इस संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियाँ निरंतर गतिशील रहती हैं. इस भगीरथ कार्य हेतु भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं व महानुभावों का आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो इस कार्य को आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर साभार- धन्यवाद दिया जाता है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में चल रहे श्रुतभक्ति के प्रत्येक कार्य में हमारे वर्तमान ट्रस्टीगण एवं कारोबारी सदस्य तो अत्यन्त उत्साही व सक्रिय रहे ही हैं, साथ-साथ ज्ञानमंदिर को उन्नति के शिखर तक पहुँचाने में भूतपूर्व ट्रस्टियों एवं कारोबारी सदस्यों का भी जो महत्त्वपूर्ण योगदान प्राप्त हुआ है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची - जैन हस्तलिखित साहित्य के इस २७वें खंड के वित्तीय सहयोग प्रदाता शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार, अहमदाबाद के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस २७वें रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है. श्री सुधीरभाई यु. महेता - प्रमुख श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट - कोबातीर्थ, गांधीनगर II For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir roorroorrporroorroorriorrporrporrporrgies कत्थ अम्हारिसा पाणी, दुसमा दोसदूसिआ । हा अणाहा कहं हुंता, न हुंतो जइ जिणागमो ।।३४।। -- संबोधसित्तरी स्व. नरोत्तमभाई लालभाई जन्म - ७-९-१८९६ स्वर्गारोहण - १३-१२-१९७५ . स्व. सुलोचनाबेन नरोत्तमभाई लालभाई जन्म - १३-२-१९०२ स्वर्गारोहण - २४-४-१९७९ : : : : : : For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir *प्राक्कथन* कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची प्रकाशन के अविरत सिलसिले में प्रकाशित हो रहे इस २७वें रत्न का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है. प्रस्तुत भाग में संस्कृत, प्राकृत व देशी भाषाओं के आगमिक साहित्य समाहित हैं. इस खंड की खासियत यह है कि इस खंड में खास उल्लेखनीय अकेले जैन कवि द्यानतराय अग्रवाल के द्वारा रचित ५४६ कृतियों का समावेश है. जो अद्यावधि अप्रकाशित प्रतीत होती है. इस तरह संस्कृत, प्राकृत भाषा की कृतिओं के अतिरिक्त देशी भाषाओं की रास, कथा, औपदेशिक-सुभाषित पद आदि अनेक कृतियाँ भी अप्रकाशित प्रतीत हो रही हैं. जिसमें संस्कृत-प्राकृत ग्रंथों में मेघराज कृत स्थानांगसूत्र दीपिकाटीका, पद्मसागर गणि रचित उत्तराध्ययनसत्र का कथासंग्रह, श्रीसार व सहजकीर्ति कर्ताद्वय रचित कल्पसन की कल्पमंजरी टीका, रत्नचंद्र कृत नैषध चरित्र की टीका एवं सहजकुशल रचित सिद्धांत हंडी आदि उपलब्ध है. देशी कृतियों में हीरविजयसूरि कृत द्रौपदीसती चौपाई, कवियण रचित १७५६ वर्षीय दुष्काल वर्णन रास व चतुरकुशल रचित शतजयतीर्थमाला रास आदि अनेक कृतियाँ संशोधन संपादन हेतु विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं. हस्तप्रतों के वर्गीकरण से लेकर सूचीकरण तक का संपूर्ण कार्य बडा ही जटिल व कष्टसाध्य होता है, परंतु उनमें समाहित महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ, जो अद्यावधि विद्वद्वर्ग की नजरों से ओझल थी, उन्हें आपके कर-कमलों में समर्पित करने का यह सुंदर परिणाम हमारे लिये अपार संतोषदायक सिद्ध हो रहा है. जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण करना; एक बहुत ही जटिल व महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रंथालयों में अपनायी गई, मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक पर ही आधारित द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर, यहाँ विविधस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कृति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व पुरासामग्री; इस तरह छः भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. इसमें प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री; इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्त्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर मिलाकर एकीकरण का कार्य कर दिया गया है. हस्तप्रत लेखन पद्धति में पंचपाठ, त्रिपाठ, द्विपाठ के साथ-साथ खड़ा लेखन युक्त पत्र को भी योग्य रूप से स्थान दिया है. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची खंड-२२ से पूर्व के सभी खंडों में समाविष्ट अधिकांश प्रतों की मूल सूची श्रुतसेवी पूज्य मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने वर्षों की मेहनत से बनाई थी. उसी का अनुसरण करते हुए हमने यह संपादनकार्य किया है. मुनिश्री के हम चिरकृतज्ञ हैं. समग्र कार्य के दौरान श्रुतोद्धारक पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. तथा श्रुताराधक आचार्य श्री अजयसागरसूरीश्वरजी म. सा. की ओर से मिली प्रेरणा व मार्गदर्शन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के अन्य शिष्य-प्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए संपादक मंडल सदैव आभारी रहेगा. इस ग्रंथसूची के आधार से सूचना प्राप्त कर श्रमणसंघ व अन्य विद्वानों के द्वारा अनेक बहुमूल्य अप्रकाशित ग्रंथ प्रकाशित हो रहे हैं, यह जानकर हमारा उत्साह द्विगुणित हो जाता है; फलतः हमें अपना श्रम सार्थक प्रतीत होता है. प्रतों की प्राथमिक सूचनाओं की कम्प्यूटर में प्रविष्टि तथा सन्दर्भ हेतु पुस्तकें आदि शीघ्रतापूर्वक उपलब्ध कराने हेतु ज्ञानमन्दिर के सभी कार्यकर्ताओं को हार्दिक धन्यवाद. इस कार्य में हमारे उत्साह को सतत बढ़ाए रखनेवाले ट्रस्टीमंडल के भी हम अंतःकरण से आभारी हैं. सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानीपूर्वक किया गया है. फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के कारण क्वचित् भूलें रह गई होंगी. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रह गई भूलों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करें, जिससे भविष्य में प्रकाशित होनेवाले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें. - संपादक मंडल III For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुक्रमणिका मंगलकामना. प्रकाशकीय........................................... ....................11 .................... iii प्राक्कथन......................................................................................... अनुक्रमणिका ............................................................ ............iv प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत......................................... तपूना सदानपतपत........................................................................................... V-VI हस्तप्रत सूचीकरण सहयोग सौजन्य एवं सादर ग्रंथ समर्पण.................... .....vii-viii हस्तप्रत सूची...................... ............................................. ...................१-४६८ परिशिष्ट : कृति परिवार अनुसार प्रत-पेटाकृति अनुक्रम संख्या.... ..४६९-५९६ १. संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से कृति परिवार सह प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १. .........४६९-५११ २. देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से कृति परिवार सह प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २. .......५१२-५९६ इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सबका विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग संबंधी सूचनाएँ भाग 7 के पृष्ठ VI एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग 7 के पृष्ठ 454 पर हैं. कृपया वहाँ पर देख लें. प्रस्तुत खंड २७ में निम्नलिखित संख्या में सूचनाओं का संग्रह है. * प्रत क्रमांक - १२०१६१ से १२४०२५ * इस सूचीपत्र में मात्र जैन कृतियों वाली प्रतों का ही समावेश किए जाने के कारण वास्तविक रूप से इस खंड में २७१८ प्रतों की सूचनाओं का समावेश हुआ है. * समाविष्ट प्रतों में कुल ३७५६ कृति परिवारों का समावेश हुआ है. * इन परिवारों की कुल ४४०२ कृतियों का इस सूची में समावेश हुआ है. * सूची में उपरोक्त कृतियाँ कुल ६१२३ बार आई हैं. ___ IV For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir # * प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेपवसंकेत* कृति नाम के अंत में, विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तक, अनेक अस्थिर टबार्थ व श्लोक संग्रह जैसी समान कृतियों के समुच्चय रूप या फुटकर कृति दर्शक संकेत. - ............ कृति/प्रत/पेटांक नाम के बीच : का, की, के, इत्यादि विभक्ति सूचक. (-)... .... प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में - दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ - सूचक. (+)........ .प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में - प्रत की महत्ता सूचक. - इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. कर्ता-कर्ता के शिष्य-प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित, रचना के समीपवर्ती काल में लिखित, संशोधित - शुद्धप्राय - टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पाठ में सुगमता हेतु विविध प्रकार के चिह्नयुक्त प्रत, यथा- अन्वय दर्शक अंक युक्त, पदच्छेद - संधि सूचक - वचन विभक्ति - क्रियापदसूचक चिह्न आदि वाली प्रत. ......... कृति नाम के बाद प्रयुक्त होने पर संयुक्त कृति की पहचान - यथा आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व तीनों की लघुवृत्ति. (#)... प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में. प्रत की अवदशा, पाठ नष्ट हो जाने से प्रत की उपयोगिता में कमी का सूचक. इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. मूल पाठ का, टीकादि का, मल व टीका का, टिप्पणक का अंश नष्ट है. अक्षर फीके पड़ गये हैं, मिट गये हैं. पन्नों पर आमने-सामने छप गये हैं. अक्षर की स्याही फैल गई है. पत्र जीर्णतावश नष्ट होने लगे हैं, हो गये हैं. ($).......... कृति परिशिष्टों में प्रत क्रमांक के अंत में ऊर्ध्वाक्षरों से प्रत की अपूर्णता सूचक. अपूर्ण, त्रुटक, प्रतिअपूर्ण हेतु. (--)......... आदिवाक्य अनुपलब्ध. अप........... अपभ्रंश (कृति भाषा) अंति:......... अंतिमवाक्य (कृतिमाहिती) आ............ आचार्य (विद्वान स्वरूप) आदिः........ आदिवाक्य (कृतिमाहिती) उप............ प्रत प्रतिलेखन उपदेशक. (प्र. ले. पु. विद्वान) उपा.......... उपाध्याय (विद्वान स्वरूप) ऋ........ ऋषि (विद्वान स्वरूप) क............. कवि (विद्वान स्वरूप) कुं............. कुंडली (कृति स्वरूप) कुल ग्रं....... मूल व टीका आदि का संयुक्तरूप से सर्वग्रंथाग्र परिमाण - प्रत व पेटाकृति विशेष में. कुल पे....... कुल पेटाकृति (प्रतमाहिती स्तर) क्रीत.......... प्रत को खरीदनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) को........... कोष्टक (कृति स्वरूप) ग............. गणि (विद्वान स्वरूप) गडी.......... गडी किए हुए पत्रों वाली प्रत. गद्य........... गद्यबद्ध (कृति प्रकार) गा............ गाथा (कृति परिमाण) गु............. गुजराती (कृति भाषा) गुभा. ....... गुरुभ्राता (प्र. ले. पु. विद्वान) गृही........... गृहीत. आदान-प्रदान में प्रत को प्राप्त करने वाला (प्र. ले. प. विद्वान) For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जै... यं............. गोटका....... बंधे पत्रों वाली प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) क्वचित् | प्रतलेखन प्रेरक. (प्र. ले. पु. विद्वान) गोटका शब्द भी प्रयुक्त होता है. बौ............. बौद्ध कृति (कृति परिशिष्ट) गोल.......... गोल कुंडलाकार प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) म............. मराठी (कृति भाषा) ग्रंथाग्र (कृति परिमाण) महा. ......... महाराष्ट्री प्राकृत (कृति भाषा) जैन कृति (कृति परिशिष्ट) मा. ........... मागधी प्राकृत (कृति भाषा) जै.क.........जैन कवि (विद्वान स्वरूप) मा.गु......... मारुगुर्जर (कृति भाषा) जैदे...........जैन देवनागरी (प्रत लिपि) मु......... मुनि (विद्वान स्वरूप) ते............. जैन श्वेतांबर तेरापंथी कृति. (कृति परिशिष्ट) | मु............. ... मुस्लिम धर्म (कृति परिशिष्ट) दत्त........... आदान-प्रदान में प्रत देनेवाला. (प्र. ले. प. जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक कृति (कृति परिशिष्ट) विद्वान) यंत्र (कृति स्वरूप) दि.............जैन दिगंबर कृति. (कृति परिशिष्ट) रा............. राजा (विद्वान स्वरूप) देना........... देवनागरी (प्रत लिपि) रा............. राजस्थानी (कृति भाषा) पं.............. पंजाबी (कृति भाषा) राज्यकाल ... जिस राजा के राज्य शासनकाल में प्रत लिखी गई हो. पं.......... ..पंन्यास, पंडित (विद्वान स्वरूप) राज्ये..... जिस आचार्य के गच्छनायकत्व काल में प्रत का पठ........... पठनार्थ. जिसके पढ़ने हेत प्रत लिखी या लिखवाई। लेखन हुआ हो. गई हो. (प्र. ले. पु. विद्वान) लिख......... प्रत लिखवाने वाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) प+ग......... पद्य व गद्य संयुक्त (कृति प्रकार) ले. स्थल..... लेखन स्थल (प्रतिलेखन पुष्पिका) पद्यबद्ध (कृति प्रकार) वा..... वाचक (विद्वान स्वरूप) पा............ पाठक (विद्वान स्वरूप) वि.............विक्रम संवत् (वर्ष माहिती) (प्र. ले. पु., कृति पु. हिं......... पुरानी हिंदी (कृति भाषा) रचना वर्ष) पू. वि......... पूर्णता विशेष (प्रतमाहिती, पेटाकृति माहिती व | विक्र........ विक्रेता - प्रत का. (प्र. ले. पु. विद्वान) कृतिमाहिती स्तर) वी............. वर्ष संख्या के पूर्व होने पर 'वीर संवत' यथा वी. कृतिमाहिती में वर्ष प्रकार सूचक 'वि. 'श. आदि २०००. वर्ष संख्या पश्चात् होने पर 'वी सदी' के बाद संवत् प्रवर्तन के पूर्व का वर्ष दर्शक. यथा- ८वी सदी. (७१०-८००) (प्र. ले. पु., कृति .......... ... पृष्ठ सूचना (प्रत माहिती स्तर पर व पेटाकृति स्तर रचना वर्ष) पर) वै............. वैदिक कृति. (कृति परिशिष्ट) । पे. नाम...... प्रतगत पेटाकृति नाम व्या.प........ व्याख्याने पठित -विद्वान द्वारा. (प्र. ले. पु. विद्वान) पे. वि......... प्रतगत पेटाकृति विशेष श............. शक संवत् (वर्ष माहिती - प्र.ले.पु. कृति रचना वर्ष) पै............ पैशाची प्राकृत (कृति भाषा) श्राव.......... श्रावक (विद्वान स्वरूप) प्र. वि......... प्रत विशेष. श्रावि......... श्राविका (विद्वान स्वरूप) प्रले.......... प्रतिलेखक, लहिया, (प्रतिलेखन पुष्पिका. प्रत, श्रु............. श्रोता द्वारा व्याख्यान में श्रुत. (प्र. ले. पु. विद्वान) पेटाकृति, कृति माहिती स्तर पर.) श्वे.............जैन श्वेतांबर कृति (कृति परिशिष्ट) प्र. ले. पु..... प्रतिलेखन पुष्पिका की-(प्रत/पेटाकृति/कृति स्तर) | संस्कृत (कृति भाषा) ('सामान्य, मध्यम' आदि उपलब्धता सूचक.) समर्पक. ज्ञानभंडार को प्रत समर्पित करनेवाला. प्र.ले.श्लो.... प्रत, पेटाकृति व कृति हेतु प्रतिलेखक द्वारा लिखित (प्र. ले. पु. विद्वान) प्रतिलेखन श्लोक (जलात् रक्षेत्... इत्यादि) साध्वीजी (विद्वान स्वरूप) प्र.सं......... प्रति संशोधक ...........जैन श्वेतांबर स्थानकवासी (कृति परिशिष्ट) प्रा............. प्राकृत (कृति भाषा) हिंदी (कृति भाषा) ........... साध्वाजा ...........हिदा VI For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ooooo लललललललललललललललललल मुंबई (* सुकृत के सहभागी *) * हस्तप्रत सूचीकरण में विशिष्ट आर्थिक सहयोगियों की नामावली * १.शेठ आणंदजी कल्याणजी (धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट), २६. श्री शांतिनाथ देरासर जैन पेढी, श्री शंखे. पार्श्व., पालडी अहमदाबाद ॥ बावन जिनालय, देवचंदनगर रोड, भायंदर (वे.) थाणा मुंबई २. श्री शांतिलाल भुदरमल अदाणी परिवार, अहमदाबाद २७. श्री जैन पंच महाजन मांडाणी (राज.) ३. बाबु श्री अमीचंद पन्नालाल आदीश्वर ट्रस्ट, वालकेश्वर मुंबई २८. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर (राज.) ४. शेठ श्री झवेरचंद प्रतापचंद सुपार्श्वनाथ जैन संघ, २९. श्री संभवनाथ जैन ट्रस्ट बिसलपुर (राज.) ___ वालकेश्वर मुंबई ३०. श्री पुष्पदंत श्वे. मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद ५. श्री प्लेजेंट पैलेस जैनसंघ मुंबई ३१. श्री सेटेलाईट श्वे. मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद ६. श्री गोवालिया टैंक जैनसंघ मुंबई ३२. श्री वेपेरी श्वे. मू. पू. जैन संघ चेन्नई ७. श्री प्रेमलभाई कापडिया मुंबई ३३. श्री शाहीबाग-गीरधरनगर जैन श्वे. मू. पू. संघ अहमदाबाद ८. श्री जवाहरनगर जैन श्वे. म. प. जैन संघ, गोरेगांव मुंबई ३४. श्रीमद यशोविजय जैन संस्कृत पाठशाला महेसाणा ९. जैन सेन्टर ऑफ नॉर्दर्न केलिफोर्निया अमेरिका ३५. श्री जैन सोसायटी जैन संघ अहमदाबाद १०. श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बोर्डिंग अहमदाबाद ३६. शेठ नवलचंद सुप्रतचंद जैन देवकी पेढी पाली-राज. ११. श्री शंभुकुमार कासलीवाल ३७. श्री माटुंगा जैन श्वे. मू. पू. तपगच्छ संघ मुंबई १२. शेठ मोतीशा जैन रिलीजियस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट मुंबई ३८. श्री दशापोरवाड सोसायटी जैन संघ अहमदाबाद १३. फेडरेशन ऑफ जैन एसोसिएसन इन नॉर्थ |३९. श्री विले पार्ले (वे.) श्वे. मू. पू. संघ मुंबई अमेरिका, 'जैना' हस्ते डॉ. प्रेमचंदजी गडा | ४०. श्री जैन श्वे. मू. पू. संघ, शिव, सायन अमेरिका ४१. श्री सीमंधरस्वामी जिनमंदिर पेढी महेसाणा १४. श्री एम. जे. फाउन्डेशन ४२. श्री अदाणी फाउन्डेशन अहमदाबाद १५. श्री कल्याण पार्श्वनाथ जैन संघ, चौपाटी ४३. श्री शेखंजय तीर्थधाम, भुवनभानु मानसमंदिर १६. श्री सांताक्रुज जैन तपगच्छ संघ, श्री कुंथुनाथ ४४. श्री घाटलोडीया जैन श्वे.मू.पू.संघ अहमदाबाद जैन देरासर मार्ग, सांताक्रुज (वे.) ४५. श्री नवजीवन जैन श्वे.मू.पू. संघ, लेमीग्टन १७. श्री महावीर जैन श्वे. मू. पू. संघ, पालडी अहमदाबाद ४६. श्री बोरीवली जैन श्वे.मू.पू.तपा.संघ मुंबई १८. श्री श्वे. मू. पू. जैन संघ, नानपुरा, | ४७. श्री एरोमा केमीकल एजन्सी (इ) प्रा.ली. पारले १९. श्री आंबावाडी मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद | ४८. श्री पार्श्वनाथ जैन श्वे. टेम्पल बेल्लारी २०. श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ श्वे. मू. पू. जैन संघ, ४९. श्री शांतिनाथ जैन संघ, मलाड (पू.) मुंबई आरे रोड, गोरेगाँव ५०. आ.बुद्धिसागरसूरि समुदायना पू.ज्योतिप्रभाश्रीजी तथा २१. श्री राजस्थान जैन श्वे. मू. पू. संघ, जयनगर, बेंग्लोर पू.जयरक्षिताश्रीजीना सदउपदेशथी भक्तगणो तरफथी २२. श्री आदिनाथ जैन श्वे. मंदिर ट्रस्ट, चिकपेट, बेंग्लोर ||५१. श्रीमति अमिताबेन अशोकजी महेता, हस्ते-नीतिनकुमार २३. श्री महुडी जैन श्वे. मू. पू. ट्रस्ट, महुडी कोईम्बतूर २४. श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज़, मुंबई | ५२. श्री पंकजकुमार ज्ञानचंदजी गांधी, चार्टर्ड स्पीड प्रा.लि. २५. श्री जुह स्कीम जैन संघ, विलेपार्ले (वे.) मुंबई अहमदाबाद * हस्तप्रत सूचीकरण में आर्थिक सहयोगियों की नामावली * मुंबई मुंबई मुंबई मुंबई मुंबई मुंबई सुरत मुंबई मुंबई थाणे १. एक श्रुतभक्त परिवार २. श्रीमती पुष्पाबेन रमेशचंद्र शाह चेन्नई | ३. श्री पार्श्व प्रेम श्वे.मू.पू.जैन संघ, भायंदर (वे.) साबरमती VII For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (* सुकृत के सहभागी * ) हस्तप्रत सूचीकरण में 9 से २७ भाग के आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. रमेशकुमार चोथमलजी, तारादेवी रमेशकुमार : सन्स नोवी, हाल शिवगंज २. श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ३. घाणेराव (राजस्थान) निवासी श्रीमती मोहिनीबाई एस. देवराजजी जैन चेन्नई ४. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ५. मांडवला (राज.) निवासी संघवी मुथा ___मोहनलालजी रघुनाथमलजी सोनवाडीया परिवार चेन्नई ६. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ७. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ८. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ९. शेठ श्री आणंदजी कल्याणजी पेढी अहमदाबाद १०. श्री भवानीपुर मूर्तिपूजक जैन श्वेताम्बर संघ कोलकाता ११. श्रीमती तारादेवी हरखचंदजी कांकरिया परिवार कोलकाता १२. श्री सांताक्रुज जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ मुंबई १३. डॉ. विनय के. जैन - प्रेसीडेन्ट (जीवदया फाउन्डेशन) यु.एस.ए. १४. डॉ. विनय के. जैन - प्रेसीडेन्ट (जीवदया फाउन्डेशन) यु.एस.ए. । १५. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद १६. श्री विजय देवसूर संघ श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज, पायधुनी मुंबई १७. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर १८. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद १९. श्रीमती छगनकंवर अमृतलालजी गांधी परिवार सिरोही-जोधपुर २०. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद २१. शेठ श्री देवीचंद, विकासकुमार, अनिलकुमार चोपड़ा परिवार (बच्छराज डेवलपर्स) मुंबई २२. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद २३. शेठ श्री सोहनराजजी बच्छराजजी सिंघवी परिवार कोलकाता २४. श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ बावन जिनालय तीर्थ पेढी, भायंदर, मुंबई २५. शेठ श्री नरेन्द्र लालचंदजी महेता परिवार देसुरी (राज.) हाल मीरा, भायंदर, मुंबई २६. स्व. शेठ श्री कन्हैयालालजी चपलोत परिवार ह. पारस कन्हैयालालजी चपलोत, मीरा रोड़, मुंबई | २७. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद *सादरसमर्पण* कल्याणस्वरूप तीर्थंकरों द्वारा स्थापित श्रमणप्रधान चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में... जिनके द्वारा यह श्रुतपरंपरा अक्षुण्ण रही. ००० VIII For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥श्री महावीराय नमः॥ ॥श्री बुद्धि-कीर्ति-कैलास-सुबोध-मनोहर-कल्याण-पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः॥ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२०१६१. (#) सत्यासीयाछतीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. बालचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १७७५७). सत्यासीयाछतीसी, उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., पद्य, वि. १६८७, आदि: गरूई श्रीगुजराति देस; अंति: समयसुंदर० कल्लोल आणंद करउ, गाथा-३६. १२०१६२. नेम स्तति व चंद्रप्रभ थई, संपर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, कल पे. २, जैदे., (२४.५-२५.०x१०-१०.५, १०x १.पे. नाम. नेम स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, आ. महिमासागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिण परम मुनिवर संघ सुखकर; अंति: महिमा० दहदिसि ____ अति घणी, गाथा-४. २. पे. नाम, चंद्रप्रभु थुई, पृ. १आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तुति, आ. महिमासागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रप्रभु जिण राजइ ए; अंति: जस करइ ___ महिमासागरसूरिजी ए, गाथा-४. १२०१६३. (#) सारदाजीरो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०, १७४६१). सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सरस वचन हुं मागुं; अंति: सफल फले स्वामिण ताहरी, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) १२०१६४. साधारणजिन विनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, १३४३७). साधारणजिन विनती स्तवन, मु. भुधर, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनगुरु स्वामीजी; अंति: भूधर० कीजीयै जी, गाथा-१८. १२०१६५. ग्यानपचीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पुर, प्रले. मु. मनोहरदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में वर्षहेतु मात्र "संवत्-१७" ऐसा लिखा है., जैदे., (२३.५४१०.५, १३४४०). ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिर्यग जग जोनि; अंति: बनारसी० कर्म के हैत, गाथा-२५. १२०१६६. चिंतामणिपार्श्वनाथवृद्धि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४०). पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि बरहानपुर, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलउ साहिब माहराजी एक; अंतिः जिनरंग० जीवत जनम प्रमाण, गाथा-१५. १२०१६७. औपदेशिक व अइमत्तारिषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०, १६x४८). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. साधुहंस, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि जीव पहिलु उपशम आणी; अंति: भणइ साधुहंस तरीए संसारि, गाथा-१५. २. पे. नाम. अइमत्तारिषि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अइमत्तामुनि सज्झाय, म. कहानजी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन रिति वरसातनी आवी; अंति: एम बोलि सेवक कन्ह रे, गाथा-१७. १२०१६८. शांतिनाथवृद्ध स्तवन व गुरुगीतादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. खडा लेखन., जैदे., (२५४९.५, ३९x१७). १.पे. नाम. शांतिनाथवृद्ध स्तवन, प. २अ, अपर्ण, प.वि. मात्र अंतिम पत्र है. For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शांतिजिन स्तवन-विरमपुर मंडण, आ. जिनरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनरत्नसूरि० सुख पावए, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वनाथलघु स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धिमंडण, आ. जिनरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिनेसर प्रणमीयइ मनधरि; अंति: जिनरतन० पूजइ मननी आस, गाथा-७. ३. पे. नाम. गुरुगीत, पृ. २अ, संपूर्ण. जिनदत्तसूरि गुरुगण गीत, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आसति अंगि घणी वडओ अनुलीछल; अंति: चंद० प्रतपओ राजसूरिरइ पाट, गाथा-५. ४. पे. नाम, गुरुगीत, पृ. २आ, संपूर्ण. जिनरत्नसूरि गीत, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आवओ हे म्हारी सखी सहेली; अंति: चंद भणइ चढती कला सहीयां, गाथा-७. १२०१६९. कृष्ण लावणी, नमस्कार महामंत्र का बालावबोध व सीमंधरजिन खमासमण दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, १८४४४). १. पे. नाम. कृष्ण लावणी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. कंसकृष्ण विवरण लावणी, मु. विनयचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: गाफल मत रह रे मेरी ज्यान; अंति: विनयचंद० सुणता मनही आणंद, ढाल-२७, गाथा-४३. २. पे. नाम, नमस्कार महामंत्र का बालावबोध, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: जघनतो विस विहरमाण उतकष्टा; अंति: वंदणा निमस्कार हुज्यो. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन खमासमण दहा, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोवीशी जिन नमु; अंति: साध वंदु निसदीस, गाथा-२. १२०१७० (+) महावीरजिनोपरि गौशालाकृतोपसर्ग वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:गोसाला., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०,१९४५५). महावीरजिनोपरि गौशालाकृतोपसर्ग वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: उपसर्ग कैवलज्ञान पाम्या; अंति: पहिलो अच्छेरो कह्यो. १२०१७१. ज्ञानपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०, ११४४४). ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिरय गयौ नमै नरय; अंति: बनारसी० उदै करम के हेत, गाथा-२५. १२०१७३. (#) हरियालीद्वय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. पं. देवेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ४४३४). १. पे. नाम. हरिआली सह टबार्थ, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.. प्रज्ञापनासूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कह्यो पंडित ते कुणनारी; अंति: वाचक जस कहे ते सुख लहेसे, गाथा-१४. प्रज्ञापनासूत्र-सज्झाय का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हरीयाली दीसें जाणेते; अंति: अर्थ विचारी कहीजौजी. २. पे. नाम. हरियाली सह टबार्थ, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.ग., पद्य, वि. १६वी, आदि: सुडा डालें पीपल वासइं; अंति: देपाल तस त्रिभुवन सूझई, गाथा-११. आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सूडा डालें कहीइं काया; अंति: देपाल० त्रिभूवन सूझई. १२०१७४. (+) पंचजिन आरती व वीर स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १४४४८). १. पे. नाम. पंचजिन आरती, पृ. १अ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ पुहिं., पद्य, आदि: जै जै आरति आदि तुम्हारी; अंति: मंगल दिवो सेवक कंदा, गाथा-११. २. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिनविनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: थुण्यो त्रिभुवन तिलो, गाथा-२०. १२०१७५. कर्मभूमि देश खंड विचार, संपूर्ण, वि. १९७९, चैत्र कृष्ण, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४१०.५, १५४४०). १५ कर्मभूमि देशखंड विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीपमें १० लाख ८८; अंति: १६० खंड अनार्य जाणवा. १२०१७६. (+) जिनप्रतिष्ठा विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. मु. स्वरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चैतप्रतिष्ठा., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १४४३३). जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: प्रथम वर्ष मास दिन सुद्धि; अंति: चंदन चडावै फूल चढावै. १२०१७७ (+#) पुद्गलविचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १६४५०). १.पे. नाम, पुद्गल विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले.पं. आनंदरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., गद्य, आदि: पुद्गल परावर्त्तन भेद २; अंति: फरसे तेना थकी सूक्ष्म. २. पे. नाम. सूतक विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. सूतक विचार श्लोक, सं., पद्य, आदि: सूतकं वृद्धिहानिभ्यां; अंति: क्षीरं प्रवर्त्तते, श्लोक-६. ३. पे. नाम. प्रासुकजल विचार श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: मुहर्त गालितं तोयं; अंति: सम्मळुना भवेत, श्लोक-१. ४. पे. नाम. द्वादशांगीपुरुष विचार, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. अन्त में पर्युषण की अट्ठाई का फल दिया हुआ है. सं., गद्य, आदि: पुरुषद्वादशांगानि यथा; अंति: बाहुग्रीवाशिरश्चेति. ५. पे. नाम. आयुष्य विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. आयष्यविचार गाथा, अप., पद्य, आदि: मणुआण वीसोत्तरसयं; अंति: ते दोसासंकड मुहंमि, गाथा-६. ६. पे. नाम, विगय कालमान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: बरसालै दिन १५ सीआले ३०; अंति: एता कालनी अचित्त कही. १२०१७८. हरियाली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. रायकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५, ९४२३). प्रहेलिका हरियाली-सज्झाय, मु. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सुणज्यो पंडितराय०; अंति: ऋषभसागर० गीतामाहि गाइयो, गाथा-७. १२०१७९. सौधर्मगणधर भास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२४.५४१०.५, ८x२२). सौधर्मगणधर भास, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानयरी उद्यान रे; अंति: घुअली गीत भणेरी, गाथा-७, (संपूर्ण, वि. पत्रांक-२अ पर केशीगौतमगणधर गहुँली नामक कृति की पूर्णतासूचक उल्लेख मिलता है.) १२०१८० गूढार्थ हरियाली पद, नेमिजिन गीत व प्रास्ताविक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५४१०, ९४३२). १. पे. नाम. गूढार्थ हरियाली पद, प. १अ, संपूर्ण. म. शांति, मा.गु., पद्य, आदि: एक नानकडी कामिनी निजनाहज; अंति: शांति० तेनी मति सारी, गाथा-३. २. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: सांभली रे सांवलीया सांमी; अंति: सदाई किम विरचइ वरादाई रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अज्जवि बीयादिवसे बाला; अंति: कीसत्तणो विम्महो कीस, गाथा-२. For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२०१८१. अजितजिन स्तवन व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. खडा लेखन., जैदे., (२४४१०, २९x१८). १. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तार किरतार संसार; अंतिः जिनराज० जे रहे प्रभु पासो, गाथा-४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, म. जिनवर्द्धमान, मा.गु., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: जिनवर्धमान अरदास, गाथा-६. ३. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन पद-लाहोरमंडन, मु. भानुचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मात कहे भोर भयो जाग हो; अंति: भानुचंद० अति हे ___ मनमोहन०, गाथा-४. ४. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन पद-लाहोरमंडन, मु. भानुचंद, मा.गु., पद्य, आदि: भव भय भंजन जन मनरंजन; अंति: भानुचंद० निरखे आज, गाथा-३. ५.पे. नाम, संभवजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. म. लब्धिविजय, पुहिं., पद्य, आदि: तोसे तनमन लागो रे जिन; अंति: लबधीविजय० में पागोरे, गाथा-३. ६. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: आंगणे कल्प फल्योरी; अंति: हुं रहेस्यु सोहेलेरी, गाथा-४. १२०१८२. काठिया सज्झाय व चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७८, पौष कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ९, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. पं. कस्तूरचंद; पठ. श्रावि. मखूजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०, ९४२८). १. पे. नाम, काठिया सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. १३ काठिया सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: साधु समीपै आवताजी आलस; अंति: सीस उत्तम गुण गेह, गाथा-१५. २. पे. नाम. रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पुण्यसंजोगे नरभव लाध्यो; अंति: मोक्षतणा अधिकारी रे, गाथा-१३. ३. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जय जय हे देवाधिदेव; अंति: कृपा करो भव लीला दुःख जाय, गाथा-३. ४. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: हे स्वामी मुझ तारितार; अंति: कृपा करो भयभंजन भगवंत, गाथा-३. ५. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. ३आ, संपूर्ण. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीसीमंधर वीतराग; अंति: विनय धरे तुम ध्यान, गाथा-३. ६. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन, पृ. ४अ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: पद्मप्रभुने वासुपूज्य दोय; अंति: तणौ ग्यांनविमल कहै सीस, गाथा-३. ७. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन, पृ. ४अ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-देहमानगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचसया धनुमान जाण; अंति: नय प्रणमै निसदीस, गाथा-३. ८. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-दीक्षातपगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुमतिनाथ एकासणुं करी; अंति: पार| अवर जिनेस, गाथा-३. ९. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन, पृ. ४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २४ जिन चैत्यवंदन-दीक्षास्थानादिगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विनितानयरीइं लीइं; अंति: ज्ञानविमल गुण गेह, गाथा-३. १२०१८३. २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४१०, १०x४०). २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती देव नमुनीसदिस; अंति: रतनविजय० बृद्ध गुण गाय, गाथा-९. १२०१८४.(+) दशारणभद्र व इलाचीकुमार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १७८९, आश्विन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. उटालाग्राम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०, १४४३२). १.पे. नाम. दशारणभद्र सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, म. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: इम बोलइ लालविजय निसदीस, गाथा-१८, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम एलापुत्र जाणिये; अंति: सुर करि लबधविजय गुण गाय, गाथा-९. १२०१८५. सित्तरसोजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, १४४२७). १७० उत्कृष्टजिन स्तवन, मु. आणंदरुचि कवि, मा.गु., पद्य, आदि: विवरोए गाथा तणो कवि; अंति: पुण्यरुचिशिष्य कहे करजोडि, गाथा-१९. १२०१८६. चक्रवर्ती आयु देहमानादि विवरण कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४१०, ११४४७). चक्रवर्ती आयु देहमानादि विवरण कोष्ठक, मा.ग., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२०१८७. (+) श्रेयांसजिन व विमलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०, १३४३९). १. पे. नाम, श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, वि. १८५१, आदि: श्रीहंसनाथ प्रभूजी बंस; अंति: प्रभूजी जोड्यो छ तवनराज, गाथा-११. २. पे. नाम, विमलजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: घर आंगण सुरतल फल्योजी कुण; अंतिः जिनराज० देव प्रमाण हो, गाथा-४. १२०१८८.(+) नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. कहांबाई, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, ११४४८). नेमिजिन स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: आलालुं छोरे महारा मन तणो; अंति: लबधि कहइ करजोडि, गाथा-१५. १२०१८९ (+) ठाकुरसी धर्मबोध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०, १२४४०). ठाकरसी धर्मबोध सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: क्षित्रीवंश वखाण राय; अंति: मानीयो ते ऊपर कोई नही, गाथा-१०. १२०१९०. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १८४६२). महावीरजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, वि. १७००, आदि: सकल जिण रे वांदं मुनि; अंति: सेवक० प्रभू पूरवउ मन आसए, गाथा-२०. १२०१९१ (#) सम्मेतशिखरतीर्थ पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. खडा लेखन. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४१०, ३७४२५). १. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: दरसण कीयो आज शिखरगिर; अंति: आयौ रस मे पायौ मुगत पदकौ, गाथा-४. २. पे. नाम. धर्मजिन होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: मधुवन मै जाय मची; अंति: साधु क्षिमा कहे करजोडी, पद-८. ३. पे. नाम. नेमिजिन होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: ऐसे स्यांम सलूंणो प्रभू; अंति: मिट गए दरित जंजाल, गाथा-८. ४. पे. नाम, नेमिजिन होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., पद्य, आदि: होरी खेलोने कानईया; अंति: रंग वध शिव कं वरीया, गाथा-४. ५. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नित ध्यावो ऋषभ; अंति: गावो नित जिनवर को, गाथा-५. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. रत्नसागर, पुहिं., पद्य, आदि: रंग मच्यो जिनद्वार; अंति: रत्नसागर० बोले जयकार, गाथा-८. १२०१९२ (#) सीमंधरस्वामी स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०, १२४३०). १. पे. नाम. सीमंधरस्वामि स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १६९७, चैत्र कृष्ण, ४, बुधवार, ले.स्थल. मालपुरा, प्रले. मु. केसर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतारहुं ए; अंति: पूर आस्या मन तणी, गाथा-१८. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण.. म. भवनकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: चतुर विहारी रे आतम; अंति: बलिहारी नाम तिहारइ, गाथा-८. १२०१९३. सीमंधरजिन व धर्मजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०.५, १४४४५). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर ज्योतिसर जिनजात्र; अंति: वास प्रभुपद थापीइं, गाथा-१६. २.पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धरम जीणंद तुम्हे लायक; अंति: वाचकविमल तणो कहे राम, गाथा-५, (वि. अंत में अस्पष्ट रूप से दोहा आदि लिखा है.) १२०१९४. काठिया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९७५, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. म्हामिंदर, प्रले. मु. मूलचंद ऋषि; पठ. श्राव. श्रीसजनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:१३ काठिया., दे., (२४४१०, १३४४८). १३ काठिया सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, रा., पद्य, वि. १८६१, आदि: रतनचिंतामण एहवो पामीयो; अंति: ___ आसकरणजी० सुख निरवांणो जी, गाथा-२२. १२०१९५. कलियुग सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२२४१०, ९x१८). कलियुग सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सांमण पाय नमीने उलट; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-११ तक लिखा है.) १२०१९६ (#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. खडा लेखन. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०, ३६४१६). औपदेशिक सज्झाय, मु. कुंअर, पुहि., पद्य, आदि: पभणें प्रीतम कुं प्यारी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., गाथा-१४ अपूर्ण तक लिखा है.) १२०१९७. शिखामण विचार व अनाथीमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२२४१०.५, १३४३८). १.पे. नाम. शिखामण विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. लाकडिआ नगर. __ अकर्मी उपदेश सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: एक सीखामण कहुं छु सार; अंति: ते सुख पामे घणु अपार, गाथा-२१. २.पे. नाम, अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रयवाडी चड्यो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) १२०१९८. (#) २० स्थानकतप विधि व २० स्थानकतप गणगुं, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. उदेपुर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१०, १३४३३). १.पे. नाम. २० स्थानकतप विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८०५, पौष शुक्ल, १२, ले.स्थल. उदेपुर. प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: १ ॐ नमो अरिहंताणं २०००; अंति: सचित्त परिहार कीजें. For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ मु. २. पे. नाम. २० स्थानकतप गणj, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं का.२४ नमो; अंति: नमो तित्थस्स काउसग लोगस ५. १२०२०० (#) सं.१८८३ वर्ष श्रीखंभतीर्थना संघनी घरनी संख्या, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. खडा लेखन. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१९.५४१०, २५४१९). खंभात इतिहास-सं.१८८३ जैन घरों की संख्या, मा.गु., गद्य, आदि: सोमचंद जिवराज घर४; अंति: देवकरण घर ५ सालवी माणकचंद. १२०२०२. श्रावकनी करणीनी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८३७, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वेलाग्राम, पठ. मु. धनजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१०, १४४४४). श्रावककरणी सज्झाय, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठी परभाति; अंति: कांत० जीव पालो धरी नेह, गाथा-२०. १२०२०३. (+#) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, नमस्कार महामंत्र व साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०.५, १७४३१). १. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर रहण चोमासे; अंति: ऋषि लालचंद०सुख सवाया, गाथा-११. २.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: भजो भजो भाइ मंत्र; अंति: लालचंदनमो नमो श्रीनोवकार, गाथा-९. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लालचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: प्रभुजी थारा दरसण; अंति: लालचंद० एक त्यारी, गाथा-६. १२०२०४. ७ कुबिसन की सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:सातकुबि०., दे., (२२.५४९.५, ११४३७). ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. जयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: प्रउपगारी साधु सुगुर; अंति: जेतसी० प्राणी इम चेतसी, गाथा-९. १२०२०५ (#) साधारणजिन पद व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८९, पौष कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. माणकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१०,८-९४२४). १.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, म. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रक्षा जिनराज आनंद; अंति: जिनदास रहेत जगतसु उदासी, गाथा-५. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: रिषभ जिनेसर प्रीतम; अंति: फल कह्यो पुजौ अखंडित एह, गाथा-६. १२०२०७. (#) कुंडलियाबावनी व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०, १४४४२). १.पे. नाम. कुंडलियाबावनी, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: ॐनमो कहि आदिथी अक्षर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कुंडलिया-३ अपूर्ण तक लिखा है.) २.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पुरूषादानीय, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष परमातमा; अंति: प्रगटे झाकझमाल हो, गाथा-७. १२०२०८. (#) ८ प्रकारी पूजा रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०, ९४३६). ८ प्रकारी पूजा रास, उपा. उदयरत्न, मा.ग., पद्य, वि. १७५५, आदि: अजर अमर अविनाश जे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभ की गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है व अंत में पूर्णतासूचक 'श्री' लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२०२०९ (#) स्तवन, सज्झाय व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ९, प्र.वि. पत्र-१४२=१., खडा लेखन. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०, ३१४२१). १. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: एंसी आय बनी प्रभु मेरे; अंति: जसकुं० अपने दास भनी, गाथा-४. २.पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रभु मेरे अइसी आय; अंति: सो पावे सुख जस लील घनी, गाथा-६. ३. पे. नाम. स्थूलिभद्ररूपकोशा गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. माल, पुहिं., पद्य, आदि: आवत कोस्यो सिंगार; अंति: माल कहे धन जनम तीहेरी, गाथा-३. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पहिं., पद्य, आदि: मेरे साहिब तुम ही हो; अंति: जस० तुंही तारणहारा, गाथा-५. ५. पे. नाम, जिनप्रतिमा अधिकारसाख्यि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जिन २ प्रतिमा वंदन द; अंति: किजै तास वखाण रे, गाथा-१५. ६. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन अब कछु चेतीइं; अंति: कहे नय निरधारी, गाथा-५. ७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नरभव नगर सोहामणो हो; अंति: पामे अविचल ठाम रे, गाथा-५. ८. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. जीतचंद, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीवासपज्यजिन; अंति: जीत नमें नितमेवरे, गाथा-५. ९. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पंडित. देवचंद्र, मा.ग., पद्य, आदि: ए दीवाली परव पनोत: अंति: सकल संघ आणंदा जी. गाथा-४ १२०२१०. (+) पद व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ८, प्र.वि. पत्र-१४४=१., संशोधित-खडा लेखन., जैदे., (२४४१०.५, १०४३०). १. पे. नाम, महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: माधुरी जिनवांण चालोरी; अंति: जग प्रभुसुं हित आण, गाथा-३. २. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हरखचंद, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभुपास दयाल लगा मेंडा; अंति: हरख०अपनेकुं दुर करो भवजाल, गाथा-३. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. श्राव. वखतराम, पुहिं., पद्य, आदि: पया नीं में प्रभुदा दरसण; अंति: वखतरांम० भवभव हंदी लाज, गाथा-३. ४. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. कांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि वीनहं; अंति: क्रांति०सफल करो सह काज्य, गाथा-९. ५. पे. नाम, महावीरजिन प्रभाति, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. कांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चरण कमल श्रीवीरजिणेश; अंति: कांतिसूरि गुण गावै, गाथा-७. ६. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन-पुरिसादानी, पृ. १अ, संपूर्ण.. म. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारि हो साहिब सांवरो; अंति: लाभवरधनसेवक जांण मया करो, गाथा-४. ७. पे. नाम, साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मु. रतन, पुहि., पद्य, आदि: तारो जिनेसर स्वामि हमकुं; अंति: रतनकुं० मेरी अरज ये ही है, गाथा-३. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-सम्मेतशिखरतीर्थमंडन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: डगरो बताई दे पहाडिया; अंति: हरखचंद के०कीयो ह मुकांमें, गाथा-८. १२०२११. (+) गोडीजीरो छंद, संपूर्ण, वि. १८८६, माघ शुक्ल, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. व्यालपुर, प्रले. पं. सरूपचंद (गुरु पं. गेनचंद, खरतरगच्छ); गुपि.पं. गेनचंद (खरतरगच्छ); पठ. मु. जेताजी (गुरु पं. सरूपचंद, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पार्श्व०अष्टकं., संशोधित., जैदे., (२३.५४१०, १०४२८). पार्श्वजिन अष्टक-गोडीजी, म. नैनसिंह, मा.ग., पद्य, आदि: ॐनमो अनादि सो अनंत ओपमा; अंति: (१)नैन०प्रसन्न हो हं नाथनाथ, (२)पार्श्वनाथ पार्श्वनाथ, गाथा-८. १२०२१२ (#) मुनिसुव्रतजिन , पद्मप्रभजिन स्तवन व नेमराजिमती पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १२४३७). १. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. रामविजय, मा.ग., पद्य, आदि: मनिसव्रतजीसं मोहन; अंति: इम राम कहे शभशीस हो, गाथा-६. २. पे. नाम, पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मप्रभु मुझ सीख वतावो; अंति: रांम० सघली वात सुधारो रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हरखचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजी थे काई हठ माड; अंति: वस्या मुगति रे वास, गाथा-७. १२०२१४. चैत्यवंदनभाष्य का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४१०, १४४३८). चैत्यवंदनभाष्य-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: ऐंद्रश्रेणिनुतं; अंति: (-), (पृ.वि. २४ द्वारवर्णन कोष्ठक तक है.) १२०२१५. औपदेशिक पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७९, वैशाख कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, ले.स्थल. जोधाणा, प्रले. मु. केसराय; पठ. सा. माना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ढालापत्रम्., जैदे., (२२४१०.५, १६x४४). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: बावो रे बावो थारो मीट्यो; अंति: खायो कामदेवरो कावो, पद-५. २. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: माटी की गणगोर बनाइ; अंति: चले जब जंगलै कर दिया वासा, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-निंद्रापरिहार, भरतरि, मा.गु., पद्य, आदि: वरणै नीदडली तोन अरिहंत; अंति: तजीया मकति जावणरी आसा, गाथा-६. ४. पे. नाम. रावण सैन्यमान कवित्त, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वीस कीरोड गजबंध अडब दस; अंति: कोहो रावण किणे दिसे गयो, पद-१. ५. पे. नाम. गुरुमहिमा दूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. गुरुमहिमा दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: भली हुइ गुरु मील्या भागा; अंति: नींदता केवलज्ञान जै लीध, गाथा-७. ६. पे. नाम. अणगारगुणवंदन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: पाप पंथ परिहरे मोक्ष पंथ; अंति: अणगारता कुं वनणा हमारी है, गाथा-३. १२०२१६. देवकी सज्झाय व सुबाहुजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:तवन., दे., (१९.५४१०, १६४३२). १.पे. नाम. देवकी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. देवकी सज्झाय-परिवारवर्णन, म. रायचंदजी ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४७, आदि: श्रीवसुदेवनी पट्ट; अंति: रायचंद० काठ कानी आया, गाथा-१७. २.पे. नाम, सुबाहुजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. नथमल, पुहि., पद्य, आदि: उचीनीची हो प्रभुजी चोरासी; अंति: नथमल. एक गडी यक नाम, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२०२१७. (१) चिंतामणिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२०.५X१०, १०X२६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि सुध मन आणी आसता देव, अंति समयसुंदर० चिंता चूर, गाथा- ७. " १२०२१८. नेमराजिमती गीत व होरीपद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२३१०.५, १७३७). १. पे नाम. नेमगीत सज्झाय, पू. १अ १आ, संपूर्ण, नेमराजिमती गीत, ग. जीतसागर, पुहिं., पद्य, आदि: तोरण आया हे सखी; अंति: अजित०प्रीत करें जि के जी, गाथा - १८. २. पे नाम. नेमराजिमती होरीपद, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. मु. मलूक, पुडिं, पद्य, आदि सिचपुर सेती खेलण न कव; अति मलुक०सेवग चरण चत लाइवा बे, गाथा ६. १२०२१९. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२२.५x१०, ७X२८). पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: वंछित फलदायक स्वामी; अंति: जयो उत्तम जिनगुण गावे, गाथा - ९. १२०२२०. औपदेशिक सज्झाय व प्रास्ताविक दोहा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२०X१०.५, १७X३८). १. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण मु. रेखराज, रा., पद्य, वि. १९४२, आदि: ख्याल तमासा कि सुणो नर; अंतिः धर्मध्यान चीत ल्याव रे, गाथा -१६. २. पे नाम. प्रास्ताविक दोहा, पू. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह दोहा लिखावट के आधार से अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखा हुआ प्रतीत होता है. पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि जल उखल घरटी अगन सेज, अति: नवे चंद्रवा धाम, दोहा-१. १२०२२१. १३ काठियानि सज्झाय व आदिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (२२.५४१०.५, ११x२५). १. पे. नाम. तेरकाठियानि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. १३ काठिया सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि आलस पहेलो काठीयो धरम; अंतिः भाव साधु धन तेह, गाथा- ७. २. पे. नाम. जिवाजिवगर्भित ऋषभदेव स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-भुजनगरमंडन नवतत्त्वगर्भित, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिवा रे जिवा पुंन्यनें; अंतिः समकितगुण चित धरजो जी गाथा ४. १२०२२२. (+) क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पू. २. प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जै... " ( २३X१०, १२X३४). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि : आदिरि जीव क्षमागुण; अंति: चतुर्विध संघ जगीस जी, गाथा - ३६. १२०२२३. (+) चतुर्दसगुणस्थानक विषै सत्ता की प्रकृति को विवरो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. क्षमासागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५X१०, १७५५). १४ गुणस्थानके सत्ता विचार, मा.गु., गद्य, आदि १मिध्यातगुणस्थानक विषैः अति गुणस्थान० अंत्यसमये खपावइ. १२०२२४. (+) १० श्रावक सज्झाच, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. हुंडी आंनद, संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२३.५x१०, १३x२२). "" १० श्रावक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८२९, आदि आणंदजी रे सिवानंदा, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- १४ अपूर्ण तक लिखा है.) १२०२२५. (+#) नंदीश्वरद्विप शाश्वतजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४४१०, ११४४९). " For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ शाश्वतजिन स्तवन-नंदीश्वरद्वीप, मा.गु., पद्य, आदि: नंदीसरवर दीव मझारि सासतां; अंति: अनेवि सासय नमुं सव्वेवि, गाथा-११. १२०२२६. औपदेशिक गहली सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. खडा लेखन., दे., (२३.५४९.५, २४४१७). औपदेशिक गहुंली-कालमानगर्भित, मु. चतुर, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक वंदीने; अंति: गुंहलि चतुर लहे शीव स्वाद, गाथा-९. औपदेशिक गहुंली-कालमानगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: वरश शोना छत्रीसहजार दीवस; अंति: पंचासी एटला पलोपम थाए. १२०२२७. (+#) सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०, १०४२३). सिद्धचक्र स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद वखाण्यौ; अंति: कांतिसा० सुख पाया रे, गाथा-९. १२०२२८. सीमंधरजिन स्तवन, गणेशजीरो व खारिनदी को सपंखरो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३४१०, १२४४०). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. जिनसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामि सीमंधर विनती; अंति: जीनसागर० पामो परमानंदन रे, गाथा-५. २.पे. नाम. गणेशजीरो सपंखरो, पृ. १अ, संपूर्ण. गणेशभक्ति गीत-सपंखरो, मु. पेम, मा.गु., पद्य, आदि: सदा सेवियै सुचंगो रंगो; अंति: सुरानरीनांगां सिवाकरंदो, गाथा-४. ३. पे. नाम. खारिनदी को सपंखरो, पृ. १आ, संपूर्ण. खारिनदी कवित्त, रा., पद्य, आदि: सारि नदियासू न्यारि तु; अंति: चारि खारि रावता ज्यु रंग, गाथा-१. १२०२२९ (#) शीतलजिन स्तवन व नेमराजिमती गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. जालोरगढ, अन्य. श्राव. दर्गा साह, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०, १२४३७). १.पे. नाम. शीतलजिन तवन, पृ.१अ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन-उदयापुरमंडन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन सहिज सुरंगा; अंति: कुशल गुण गाया रे, गाथा-१०, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गिना है.) २. पे. नाम, राजीमती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. नेमराजिमती गीत, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: होजी रथ फेरी चाल्या; अंति: कहै जिनहरख भली परे हो लाल, गाथा-११. १२०२३० (+#) माणिभद्रवीर व सरस्वतीदेवी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. श्राव. रामचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०x१०.५, १०४२५). १. पे. नाम. माणिभद्रजिनो छंद, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:माणीभद्रछंद. माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दे सरसति; अंति: लाख लाख मोजा लहे, गाथा-२६. २. पे. नाम. सरस्वतिमातानो छंद, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकार धुरा उच्चरणं; अंति: वदे हेम इम वीनती, गाथा-१६. १२०२३१. औपदेशिक होरी व पार्श्वजिनादि पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, दे., (२०.५४१०.५, ११४२३). १. पे. नाम. पार्श्वनाथजी रो स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, म. हर्षचंद-शिष्य, मा.ग., पद्य, आदि: तारो तारो चिंतामण स्वामी; अंति: गावैरे दोलत रीध सिध पावै, गाथा-३. २.पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. हर्षचंद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: जिनराज सूनीयौ मोरी रे; अंति: गावे रे दोलत सिव सूख पावे, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. म. हर्षचंद-शिष्य, पुहिं., पद्य, आदि: वालमजी मोरी नेम खबरीया न; अंति: आवें मोरे आंगन वरसै मेह, गाथा-३. ४. पे. नाम. सुमतिकुमति पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद-शिष्य, पुहिं., पद्य, आदि: भला मोय सुमता सुहावे रे; अंति: हरकसूत० सिवपूर जावे रे, गाथा-२. ५. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वालमजी मोरी नेमजी गया; अंति: रूपचंद० मोरी आवागमण निवार, गाथा-४. ६. पे. नाम, औपदेशिक होरी, पृ. २आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक होरी, मु. चतुरकुशल, पुहि., पद्य, आदि: फागुण मै फाग रमौ प्यारे; अंति: निगोदसुं रहो न्यारे, गाथा-२. १२०२३२. (#) शत्रंजयतीर्थ, महावीरजिन स्तवन व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. खडा लेखन. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४१०, २५४१८). १.पे. नाम. शेजय ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, आश्विन कृष्ण, ९, सोमवार. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, म. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: विमलाचल मन मोहियो जिम; अंति: जेनेंद्र करै परमाण, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गिना है.) २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरवा हो गुण तुम तणा; अंति: जस० जीवन जीव आधारो रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. पारसनाथ स्तुती, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर पूजा करुं त्रण; अंति: श्रीसासन की० विगन नीवारो, गाथा-४. १२०२३३. सालभदर की सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८९, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. कीसनगढ, प्रले.सा. रायकवरी (गुरु सा. पाराजी); गुपि. सा. पाराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सालभ०., जैदे., (२०x१०, १५४२८). शालिभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगरीनग्रीय्या सोभती जी; अंति: सालभद्र सवारथ संघ गयो जी, गाथा-१७. १२०२३४. (#) औपदेशिक पद व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (१९.५४१०, १३४२७). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: क्यु रे अग्यांनी जीवकुं; अंतिः जिनराज० सेज मीटावे, गाथा-३. २. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: आजकाल करत प्यारे; अंति: रूपचंद और वात की वात रे, गाथा-४. ३. पे. नाम, संतीजीन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-शांतिजिन स्तवन, संबद्ध, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: तुं मेरा मन में तुं; अंति: जिनरंग० में हो जीनजी, गाथा-४. १२०२३५ (#) २४ जिन स्तवन व १४ श्रावकनियम गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९.५४१०.५,१३४३०). १. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, कार्तिक शुक्ल, ७, गुरुवार. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, म. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणम; अंति: तास सीस पभणे आणंद, गाथा-२९. । २.पे. नाम. १४ श्रावकनियम गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सचित्त १ दव्व २ विगइ; अंति: नाण१३ भत्तेसु१४, गाथा-१, (वि. यह गाथा दो बार लिखी है.) १२०२३६. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२१.५४१०.५, १४४३५). For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ पार्श्वजिन बारमासा, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सांवण पावस उलो सखी; अंति: जिनहर्ष सदा आणंद रे, गाथा-१३. १२०२३७. पार्श्वजिन लघुस्तवन व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२२४१०.५, ११४३६). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ लघुस्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९३४, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ३, अन्य.पं. सरूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन लघुस्तवन-मूलताणमंडन, पंन्या. हर्षवल्लभ वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमूलतांणै सोभता रे लाल; अंति: हरषवलभ० कुंडल हार विसाल, गाथा-७. २.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पंन्या. हर्षवल्लभ वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर रूप सोहामणो रे लाल; अंति: हरषवल्लभ० नवनीध सीध दातार, गाथा-५. १२०२३८. (#) ५ महाव्रत सज्झाय-ढाल १, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१x१०, ९४२२). ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवे रे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १२०२३९ (-) पार्श्वजिन स्तोत्र व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ६, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२०.५४१०, ९४२६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-फलवद्धि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वंछित फलदायक सांमी अंतरगत; अंति: फलोधीपासजी प्रभु पुजो, गाथा-८. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयमंडन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रंजयतीर्थमंडन, श्राव. मूलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल आद प्रभु तिहां; अंति: मूलचंद प्रभु गुण गावै, गाथा-९. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाती, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदि: उठौनी मेरे आतमराम जिनमुख; अंति: वरतु सदा बधाइ रे, गाथा-६. ४. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. ___ पुहिं., पद्य, आदि: वाला वाला डारीडा चंपौ फुल; अंति: हरि चरणी बलिहारी रे, गाथा-३. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मूलचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो मन मोयो छै; अंति: मूलचंद० चरण कै पास, गाथा-३. ६.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-करैडातीर्थमंडन, म. विद्याकशल, मा.गु., पद्य, आदि: आज श्रीजिनराज वंदे; अंति: दिन दिन इधकी दीजै, गाथा-७. १२०२४०. (#) तेरकाठीया स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०, १३४३६). १३ काठिया सज्झाय, म. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: सोभागी भाई काठीया; अंति: सीस उत्तम गुण गेह, गाथा-१५. १२०२४१ (-2) औपदेशिक पद व रावणमंदोदरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१०, १३४४४). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: संसार असार रे दुकको भाडार; अंति: सुकरत धीर इन में एही, गाथा-३. २.पे. नाम. रावणमंदोदरी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म.खशालचंद, पहिं., पद्य, वि. १८८१, आदि: कहे मंदोधरि सण हो प्रीतम: अंति: गांव आसौपमाहे जोड कहे. गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ सपूर्ण कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२०२४२. (+) गुरुगुण सज्झाय व नेमराजिमती पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१४१०, १५४३०). १.पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. पाली, अन्य. सा. फुलाजी, प्र.ले.पु. सामान्य. गुरुगुण सज्झाय-गुरुभक्ति, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: बोत नीहाल कीया प्रमगुर; अंति: रायचंद०गुरांने रीझाय लीया, गाथा-१३, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गिना है.) २.पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. शिवरतन, मा.गु., पद्य, आदि: बावीस सुभटने जीपवा; अंति: नेम न जाणै मोरी पीर पीर, गाथा-५. १२०२४३. गुरुगुण वीनती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:वीनती., दे., (२०.५४१०, १५४३२). औपदेशिक सज्झाय-गुरुगणमहिमा, रा., पद्य, आदि: आजरो दीयाडो जी भलाई सूरज; अंति: अरज करुं महाराज, गाथा-१३. १२०२४४. (#) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. खडा लेखन. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०७१०, १८x११). शांतिजिन स्तवन-अक्षयनिधितपगर्भित, ग. आणंदसंदर, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: वंद श्रीजिन सोलमा; अंति: लहिइं भवजल छेह, गाथा-११. १२०२४५. (+#) महावीरजिन स्तवन व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०x१०, १५४३९). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. भावप्रभसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: मोहरा संलडीइया बें; अंति: भावप्रभ० वातडीयां बें, गाथा-२२. २. पे. नाम. आध्यात्मिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनहरख, पुहिं., पद्य, आदि: कीरी राम कहे राम कौ; अंति: जिनहरख० हेरानमांजि रोत हे, गाथा-१. ३. पे. नाम. सीतासती सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. केशव, पुहिं., पद्य, आदि: सीता सती कुमती ठायो चोर; अंति: केशव कहे सुणो कुलं सतं, गाथा-१. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक सवैया संग्रह, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: ठाली वात करै सब आइके; अंति: मुंह की बातसुं काम न होई, गाथा-१. १२०२४६. (#) पार्श्वजिन स्तवनद्वय व नेमराजिमती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, पठ. मु. जयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०, १४४३९). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८६३, श्रावण कृष्ण, १२, ले.स्थल. धाक. ___ पार्श्वजिन स्तवन, मु. चंद, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिनेसर तुं अलवेसर; अंति: कहै कवीसर चंदो रे, गाथा-५. २.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. खूबचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभू थे कासीनगरीनो वासी; अंति: खूबचंद० गोडीजी ध्याया, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमराजीमती सिझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवल गोखने अवल झरोखा; अंति: स्वामी देवविजय जैकारी, गाथा-७. १२०२४७. (+) औपदेशिक व साधारणजिन पद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१९.५४१०.५, ८x२९). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-असारसंसार, म. कालुराम, रा., पद्य, आदि: मनवा नांह विचारी रे लोभी; अंति: कालुराम० सरण तीहारी रे, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: चेताले चालो तो सही मारा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ तक है.) १२०२४८. (#) इरियावही व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. चतुरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. खडा लेखन. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१x१०.५, २७४२२). १. पे. नाम. मिछामिदूक्कड सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. इरियावही सज्झाय, म. मेघचंद्र-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नारी मे दीठी कोय आवती रे; अंति: मेघचंद० एहनी सेवरे, गाथा-७. २. पे. नाम, निंद्या उपरे सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निंदापरिहार, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: निंद्या न कीजे कोइनी; अंति: सहजसुंदर कहे सार रे,गाथा-५. १२०२४९. धन्नाशालिभद्र व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, दे., (२१.५४१०, १६४२८). १.पे. नाम, धन्नाशालिभद्र सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: राजग्री मै गोमद सेठौ; अंति: रायचंद० हीवडो ही रे, गाथा-१६. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. संभवतः प्रारंभ के पत्रों में अपूर्ण कृति पत्रांक-५अ पर लिखी होगी. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: (-); अंति: निश्चल पद निरवांणि, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से १२०२५०. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, ले.स्थल. दीव, प्र.वि. पत्र-१आ पर महाजनी लिपि में दीवबंदर, मोरबीबंदर आदि के देवमंदिर के रखरखाव संबंधी सूचि दी है., खडा लेखन., जैदे., (२१.५४१०, २१४१४). पार्श्वजिन स्तवन, मु. गंग, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवरह हो जिनवर आदेशर; अंति: मनी गंग करे गुणग्राम हो, गाथा-६. १२०२५१ (#) सिद्धगिरी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१९.५४१०, १०४२९). शत्रंजयतीर्थ स्तवन, म. शांतिरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १९३२, आदि: छबीला सिद्धाचल उजवाल; अंति: शांतिरतन चिंत, गाथा-१३. १२०२५२. बुद्धिप्रपंच दृष्टांत सज्झाय व उत्तम चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (१९.५४१०, २६४४१). १. पे. नाम. बुद्धिप्रपंच दृष्टांत सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बुद्धिप्रपंच. मु. सावन, मा.गु., पद्य, आदि: संप्रति सुख परीकर सदा; अंति: सावन० हरख धरीने सुणाया हो, ढाल-४. २. पे. नाम, उत्तम चरित्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: शासनपती सीर नामीने गोतम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा १२०२५३. (-2) औपदेशिक सज्झाय-नारि परिहार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. नोली (गुरु सा. जतुजी); गुपि. सा. जतुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२२४१०, १७४३८). औपदेशिक सज्झाय-नारी परिहार, मा.गु., पद्य, आदि: घरम आव हकम चलाव देखो कामण; अंति: जब हसी तमारी नार, गाथा-२२. १२०२५४. (#) २२ परिसह सज्झाय-ढाल १, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. सा. महाकवरी आर्या, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:षुद्याढ०., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४९, १३४३३). २२ परिसह सज्झाय, म. रायचंद ऋषि, मा.ग., पद्य, वि. १८२२, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. प्रारंभिक दोहे नहीं लिखे हैं.) For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२०२५५. (+#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७२६, पौष कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. नांदसमा, प्रले. मु. दीपसागर (गुरु मु. हीरसागर, अंचलगच्छ); गुपि. मु. हीरसागर (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : गीतपत्रं., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै. (२३.५४१०.५, १३४३६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " " औपदेशिक सज्झाय-समता, मा.गु., पद्य, आदि देहकोट बधन कारिमो कारिमो अंतिः तिमतिम सुखनिधान, गाथा-१७. १२०२५७. पच्चक्खाणपगलामान यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. हुंडी पगला. दे. (२३.५x१०.५, ४४२८). पच्चक्खाणकल्पमान यंत्र, मा.गु., ., को., आदि: (-); अंति: (-). १२०२६०. चौवीसजिनांतरा स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२४.५४१०.५, ९४३७). , २४ जिन आंतरा स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि सारद सारदना सुपरे; अंति: रामे० वर्यो जयकार ए, ढाल ४, गाथा - ३५. १२०२६१. (+#) कल्पसूत्र की पीठिका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) १, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४४१०.५, १५X४०). कल्पसूत्र पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. कल्प- ३ अपूर्ण से उत्कृष्ट क्षेत्र १३ गुण अपूर्ण तक है.) १२०२६३. (+०) वैद्यवल्लभ सह बालावबोध-विलास २ से ९, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २७, प्र. वि. हुंडी वैदव०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X१०.५, १०x२६). वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कर्णपीडा रोग निवारण वर्णन तक लिखा है., वि. विलास - ९ में साक्षीपाठरूप प्रक्षिप्त श्लोक समाहित है.) वैद्यवल्लभ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-), प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १२०२६४ (+) पार्श्वजिन स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६-१५ (१ से १५ ) = १, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, ११४३७) १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. चरणप्रमोद - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जपे पुरो मनह जगीस ए, गाथा-३, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. कोकुपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- कोकातीर्थमंडन, आ. विनयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नीलकमल काया कूअली रे; अति विनयदेव० मनवंछित पर रे, गाथा- ६. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १६अ -१६आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय शुद्धाचार, आ. रत्नकीर्तिसूरि, मा.गु. पच, आदि अटवी मांहिं एकद्र हछि; अतिः रत्न० करु शुधुधर्म आचार रे, गाथा- ६. , ४. पे नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १६आ, संपूर्ण, मु. ,जिनसागर, मा.गु., पद्य, आदि श्रीयुगमंधर भेटवा रे, अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- २ तक लिखा है.) १२०२६५. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैवे. (२४४१०.५, ११४४२). चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणि वीनवुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) १२०२६७ (#) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : जीवचार., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५x१०, ८X३३). 1 जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी आदि भुवणपईव वीरं नमिऊण अति (-) (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभवनमांहि प्रदीप; अंति: (-). १२०२७० (+#) साधप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०, १०४३९). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१, (पू.वि. सूत्र-३४ अपूर्ण से है.) १२०२७१ (+) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक की सूचीमात्रभाषा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७-२(१ से २)=३५, ले.स्थल. अजीमगंज, पठ. मु. रतनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १०४३५). प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, वि. १८५३, आदि: (-); अंति: शास्त्रमै कह्यो छे, प्रश्न-१५१, (पू.वि. बोल-७अपूर्ण से है.) १२०२७२. (+#) मौनएकादशीपर्व गणj, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१०, १२४२४). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: श्रीमहायशसर्वज्ञाय नमः; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "श्रीधर्मेंद्रनाथाय नमः" तक लिखा है.) १२०२७४. (#) नवतत्त्व प्रकरण का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८२४, फाल्गुन कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ३२-२१(१ से ९,१२ से १५,१७,२३ से २९)=११, ले.स्थल. कालधरीनगर, प्रले. पं. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमाहावीरजी प्रशादात्., कुल ग्रं. ८५२, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०,११४४०). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जिमाहि मोक्षइ जाइ, (पू.वि. जीवतत्त्व वर्णन अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२०२७७. (+#) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १६०५, आश्विन कृष्ण, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. शिवपुरीनगर, प्रले. ग. यशसमुद्र (गुरु पं. मुनिवल्लभ गणि); गुपि.पं. मुनिवल्लभ गणि; पठ. मु. आसकर्ण (मडाहडगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०, ९४३०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. १२०२७९ (#) धर्मजिन स्तवन व धन्नाअणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. खडा लेखन. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४१०.५, २९x१८). १. पे. नाम, धर्मजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: धर्मजिणेसर धर्मधुरं; अंति: ज्ञानविमल० पद लीन सोभागी, गाथा-८. २. पे. नाम, धन्नाअणगार स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिनि वीनवू; अंति: समयसुंदर० साधुनो सरण, गाथा-१४. १२०२८४. (+) दृष्टांतकथागत संदर्भ गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं..प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४९.५,१६x४३). दृष्टांतकथागत संदर्भ गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: ओहावसी पोहावसी ममं चेव; अंति: (-), (पू.वि. निवास दृष्टांत वर्णन गाथा-३० अपूर्ण तक है.) १२०२८५ (#) दानशीलतपभाव चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८-७(१ से ७)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हंडी:दानसीलचउ०., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १५४५१). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२९ से ६८ अपूर्ण तक है.) १२०२८६. गुरुविहारविनती गहूंली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४११, १०४३५). गुरुविहारविनती गहंली, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेश्वर पाये; अंति: जी रे दान दया आधार, गाथा-१४. १२०२९४. (+) सिद्धांत हंडी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१०, १६४५०). For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिद्धांत हुंडी, पंन्या. सहजकुशल, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण जिणवराई सुय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्थानांगसूत्रगत नंदीश्वरविचार वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) १२०२९६. बहत्संग्रहणी बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २१वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. खडा लेखन., ग., (२८x१३, १३४५३). बृहत्संग्रहणी-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः परथम सात नारकीनो एक; अंति: (-), (पू.वि. १२ देवलोक इन्द्रवर्णन तक है.) १२०२९७. (+#) हरिवंशपुराण, अपूर्ण, वि. १६४७, चैत्र शुक्ल, १, सोमवार, मध्यम, पृ. २८२-१४०(१ से १४०)=१४२, प्रले. मु. जयभूषण (गुरु आ. वादीभूषण, मूलसंघ); गुपि. आ. वादीभूषण (परंपरा आ. गुणकीर्ति, मूलसंघ); आ. गुणकीर्ति (परंपरा आ. सुमतिकीर्ति, मूलसंघ); आ. सुमतिकीर्ति (परंपरा आ. शुभचंद्र, मूलसंघ); आ. शुभचंद्र (गुरु मु. विजयकीर्ति भट्टारक, मूलसंघ); मु. विजयकीर्ति भट्टारक (गुरु आ. ज्ञानभूषण, मूलसंघ); आ. ज्ञानभूषण (गुरु आ. भुवनकीर्ति, मूलसंघ); आ. भुवनकीर्ति (गुरु आ. सकलकीर्ति भट्टारक, मूलसंघ); आ. सकलकीर्ति भट्टारक (गुरु आ. पद्मनंदि, सरस्वतीगच्छ-मूलसंघ-बलात्कारगण), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ६९६५, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९.५४१२.५, ११४३९-४३). हरिवंशपुराण, मु. जिनदास ब्रह्मचारी, सं., पद्य, वि. १६वी, आदि: (-); अंति: (१)प्रमाणं चास्य लेखकैः, (२)लोकं भव्यसज्जनवत्सलाः, सर्ग-३९, (पू.वि. सर्ग-२२ श्लोक-३६ से है.) १२०३०० (+#) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १८१९, माघ कृष्ण, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. सुरतनगर, प्रले. ग. भाणविमल (गुरु आ. महिमाविमलसूरि); गुपि. आ. महिमाविमलसूरि (गुरु आ. विबुधविमलसूरि, तपागच्छ); आ. विबुधविमलसूरि (गुरु पंन्या. कीर्तिविमल, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३, १४४३६-३८). साधवंदना, मा.गु., पद्य, आदि: वंदीय गिरुआ सिद्धि; अंति: सद्ध करो गितारथ सोय, गाथा-२४८. १२०३०१. पट्टावली तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, प्र.वि. हुंडी:परिवार., जैदे., (२८.५४१३, १४४३७). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: चोथा आराना वर्ष ३ मास २; अंति: अरि विज्ज पासोपूण संपई. १२०३०६. (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२९x१२, १२४३१-३५). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कलपवेलि कवीयणतणी सरसति कर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., खंड-१ ढाल-५ गाथा-१५ अपूर्ण तक लिखा है.) १२०३०८. (+) कल्पसूत्र सह व्याख्यानकथा व टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११५, प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्र., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ९०००, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२८x११, १०x४२-५५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: भुज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानजिनं; अंति: माणे चालवो क्रोध न राखवो. कल्पसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: तेणे काले अवसर्पिणीनो; अंति: पजूसणा कल्प कहीइ इति दीसइ. १२०३०९ (+#) शांतिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२०-६२(१,३ से ६,२० से ३७,५९ से ८८,१०१ से १०८,१११)=५८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (३०४११.५. १५४४७). शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदि: (-); अंति: स करोतु शांतिः, प्रस्ताव-६, श्लोक-४८९०, ग्रं. ५०००, (पू.वि. प्रस्ताव-१ श्लोक-२३ अपूर्ण से श्लोक-७१ अपूर्ण, श्लोक-२४६ से प्रस्ताव-२ श्लोक-४३३ अपूर्ण, प्रस्ताव-३ श्लोक-५७० अपूर्ण से प्रस्ताव-४ श्लोक-६६१ अपूर्ण, प्रस्ताव-६ श्लोक-१७५ अपूर्ण से श्लोक-६९४ अपूर्ण, श्लोक-१०७४ अपूर्ण से श्लोक-११७० तक व श्लोक-१२२० अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२०३१०. (+) धर्मपरीक्षा का पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. १८८६, श्रावण कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १००-१(१)=९९, प्र.वि. हुंडी:धर्म०., संशोधित. कुल ग्रं. २०७१, प्र.ले.श्लो. (२६६) मंगलं लेखकानां च, (१४१५) कटि ग्रीवा अर नैंन भुज, जैदे., (२९४१५, १४४३०). धर्मपरीक्षा-पद्यानुवाद, श्राव. मनोहरदास सोनी खंडेलवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: हरो च्यारसंघ कै मंगल करो, गाथा-२०७१, (पू.वि. दोहा-९ अपूर्ण से है.) १२०३१५. कल्पसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. २०६१, वैशाख शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ३४६, ले.स्थल. शंखेश्वर, प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्र सुबोधिका., दे., (२९x१४, १३४३५-३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: भुज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-सबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, वि. १६९६, आदि: प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंति: वृत्तौसूत्रसमन्वितम्, ग्रं. ६५८०. १२०३१६. भाषाप्रश्नोत्तर श्रावकाचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५१, जैदे., (३०x१४, १०४३६). २४ जिन प्रश्नोत्तर श्रावकाचार, बुलाकीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७४७, आदि: सेवत जिहिं सुर० वृषनाइक; अंति: जल विषै वीतराग परसाद. १२०३१७. अनुयोगद्वारसूत्र, संपूर्ण, वि. १९९९, पौष शुक्ल, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६१, प्र.वि. हुंडी:अनुयोगद्वारसूत्र., दे., (२९.५४१४, १३४३७). अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: नाणं पंचविहं पण्णत्तं०; अंति: साहू से तं नए, प्रकरण-३८, ग्रं. २०८५. १२०३१८. (+) स्वरोदयसार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २०, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (८९०) ज्ञानवान ज्ञानदानेन, दे., (२९.५४१४, १३४४३). स्वरोदयसार, म. चिदानंदजी, मा.गु., पद्य, वि. १९०७, आदि: नमो आदि अरिहंतदेव देवन; अंति: नंद चंद चित्त धार, गाथा-४५३, ग्रं. ५५०. १२०३२० (+-) सामायिक लेने व पारने की विधि, प्रतिक्रमणसूत्र व २४ जिन स्तुत्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.६२, कुल पे. ७७, प्र.वि. एकाधिक प्रतिलेखकों के द्वारा लिखित प्रत है., अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९४१३, १०४४२). १. पे. नाम. सामायिक लेने व पारने की विधि, पृ. ८आ-१०आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-सामायिक लेने व पारने की विधि, संबद्ध, ग.,प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पंचिंदिय संवरणो तह नवविह; अंति: सेसो संसार फले हेउ. २. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ११अ-२२आ, संपूर्ण. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम पंचिंदिय संवरणो; अंति: च सव्वेसिं पढमं __हवइ मंगलं. ३. पे. नाम. २४ जिन स्तति, पृ. २४अ, संपूर्ण. मु. नगजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु महाराज चरण निशि दिन; अंति: चित्त लाय नगजय तुम चरे, गाथा-५. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण. म. नगजय, मा.ग., पद्य, आदि: जगदीशरश्री वीर जिनेशर; अंति: पंकज पर में जाउं बलिहारी. गाथा-७. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-धर्मदाता गुरु, पुहिं., पद्य, आदि: में तेरे चरण लागु गुरु; अंति: जैनधर्म वीना चोहटे लुटाता, गाथा-७. ६.पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. २५अ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, मा.ग., पद्य, आदि: ज्यों मतहीन विवेक विना नर; अंति: पाय अजाणि अवधारत खोवे, गाथा-२. For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७. पे. नाम. सुमतिजिन पद, पृ. २५अ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभुजी ज्यो तुम त्यारक; अंति: लज्या वांह गये की निभैये, गाथा-४. ८. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. २५अ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., पद्य, आदि ना जानु मेरी काहा गत होई; अंति हारी होनी होय सोई अब होई. गाथा-२. ९. पे. नाम. ओपदेशिक सवैया, पृ. २५अ - २५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया, मा.गु., पद्य, आदि: सुनजी प्यारे खोवो छो दिन; अंति: चावो सुन सतगुरु की बातडी, सवैया-१. १०. पे. नाम. करुणा समोदन को पद, पृ. २५आ, संपूर्ण गाथा ११. १४. पे नाम, औपदेशिक पद पू. २७अ संपूर्ण, आदिजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: तुं ही प्रभु ऋषभदेव आद है; अंति: विना ओर कोई जगत में नही, गाथा-४. ११. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाब असार संसार, मु. नग, पुहिं., पद्य, आदि इन जग में कोइ नहीं अपना अंति: नग० तो नित जिनपद जपना रे, गाथा ५. १२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २६अ, संपूर्ण. मु. नग, पुहिं., पद्य, आदि: अरज मेरी सुणज्यो आनंदया ए; अंति: कूं शिव सुख द्यो कर मया, गाथा-८. १३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. २६अ २६ आ. संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. नग, मा.गु., पद्म, आदि: सुणो चंदाजी सीमंधर परमातम अति: कहे० सुजस क्युं नही लीजे, मु. नगविजय, पुहिं., पद्य, आदि नायक विणजारा रे अंखीयो अंतिः कुं नगजय कहे क्या तोय, गाथा ४. १५. पे. नाम, फलवर्द्धिपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- फलवर्द्धि, मु. नगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो भवि जिनजी फलवर; अंति: कहे में पूरव सुख लियो, गाथा- ९. १६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २७आ, संपूर्ण. मु. नग, पुहिं., पद्य, आदि: पारसजिन देव देव सेवक; अंति: नग कहे० आज कलप विरख पाके, गाथा-३. १७. पे नाम, साधारणजिन पद, पृ. २७आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. नगजय, पुहिं., पद्य, आदि में हूं अनाथ नाथ हाथ साहि; अंति: नग० बगस करसु हेरो, गाथा-५. १८. पे. नाम. पंचमी को पद, पृ. २७आ-२८आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. नगविजय, मा.गु., पद्य, आदि शिवसुखदायक गुनगनलायक अंति: नगविजय० सुख गेह रे, गाथा - १२. १९. पे नाम. आदिजिन पद, पृ. २८आ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: रीष देव जिनराज हमारे; अंति: राखो प्रभु हम दास तुमारे, गाथा-२. २०. पे नाम आदिजिन पद, पृ. २८आ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: रिषभदेव प्रभु हो तुम तारण; अंति: भव भव के तुम पार उतारन, गाथा-२. २१. पे. नाम आदिजिन पद, पृ. २८आ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुष्टि, पद्य, आदि हो जिनराज तुम हो जिनराज अति रख लीज्यो माहाराज, गाथा १. " For Private and Personal Use Only २२. पे नाम साधारणजिन पद, पृ. २९अ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहिं, पद्य, आदि अब मोयत्या रोगे दीनदयाल अंतिः तुमरो महर करोजी प्रतपाल, गाथा-२. २३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. २९अ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नेम चरण चित ल्यावे क्यों; अंति: प्रभु को भज ले० गोतो ने, गाथा-२. २४. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पू. २९अ, संपूर्ण. Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ म. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जिनजी को सुमरन क्यों न; अंति: चरन को तन की ताप हरैरे, गाथा-२. २५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २९अ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: हां रे वन मालीया फूल चुन; अंति: सुं रात्रदिनलो ल्याव रे, गाथा-३. २६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २९आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: कित जान मते हो प्राणनाथ; अंति: इत खेले आनंदघन वसंत, गाथा-४. २७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २९आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: क्या सोवे उठ जाग बावरे; अंति: सिध निरंजन देव ध्याव रे, गाथा-३. २८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २९आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: जीया जानत मोरी सफल घरी रे; अंति: आनंदघन० माया कंकरी रे, गाथा-३. २९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण. मु. जयराम, पुहि., पद्य, आदि: हो वनमालीया फूलज लाव रे; अंति: करो पूजा फेरत पवन जाव रे, गाथा-४. ३०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३०आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: बेर बेर नहीं आवे; अंति: समर समर गुण गावे, गाथा-४. ३१. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ३०आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: क्यारे मोने मिलसे; अंति: किम जीवे मधमेही. गाथा-३. ३२. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. ३०-३२अ, संपूर्ण. मु. लालविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नमो आद अरहंता जय जय; अंति: लविनोद० मनवांछित फल पाईये, गाथा-५. ३३. पे. नाम. सावककरणीबोल स्तवन, पृ. ३२आ-३३आ, संपूर्ण. श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सावक तु उठ प्रभात च्यार; अंति: ससनेह कर्णि दुखहरणी छे एह, गाथा-२२. ३४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३३आ-३४अ, संपूर्ण. मु. नग, मा.गु., पद्य, आदि: एक काया अरु कामनी परदेसी; अंति: तू देख ले स्वारथ को संसार, गाथा-५. ३५. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३४अ-३४आ, संपूर्ण. मु. नग, पुहिं., पद्य, आदि: थोरे दिन का जीवण विणजारा; अंति: जब देख सीजमकी सेजमित विन, गाथा-८. ३६. पे. नाम, आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ३४आ-३५अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, म. नग, पुहिं., पद्य, आदि: काया माया दोन कारमी रे; अंति: नग० परमानंद अभंग मित पर, गाथा-८, (वि. अंतिम गाथा में पाठभेद है.) ३७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सही मुज तीरसो महावेद गुण; अंति: मुगत मुझ आप जोई तिरो, गाथा-४. ३८. पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. ३५आ-३६अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कुंथु जिणंद करुणा कर; अंति: कहे मोहन रस गीत, गाथा-७. ३९. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३६अ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर साहिबा रे; अंति: जीणी करी रे मोहन जय जयकार, गाथा-७. ४०. पे. नाम, नेमिजिन पद, पृ. ३६अ-३६आ, संपूर्ण. मु. भूषण, रा., पद्य, आदि: नेम निरंजन ध्यावो रे; अंति: कू सब जुग को जस लीनो, गाथा-४. ४१. पे. नाम. नेमराजिमति पद, प. ३६आ, संपूर्ण ___ नेमराजिमती पद, मु. कुशलराज, पुहिं., पद्य, आदि: नेम कू जान न देती संय्या; अंति: में तो शील सदा भरत लेती, गाथा-१. ४२. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. जिनदास, रा., पद्य, आदि: सुणो सुणो सीमंधरसाम सासन; अंति: कर राख आपणो जाणी रे, गाथा-६. ४३. पे. नाम, आध्यात्मिक होरी, पृ. ३६आ-३७अ, संपूर्ण. मु. भाणचंद, पुहिं., पद्य, आदि: गानी हार गानी जीव अनुभव; अंति: भाणचंद० पावत शिवकमला डोरी, गाथा-४. ४४. पे. नाम. महावीरजिन गहुंली, पृ. ३७अ-३७आ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहि., पद्य, आदि: कुण वन वीर समोसर्या; अंति: हरखचंद० निज आतम काज रे, गाथा-५. ४५. पे. नाम. वज्रधरजिन स्तवन, पृ. ३७आ-३८अ, संपूर्ण.. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमान भगवान सुणो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ४६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३८अ, संपूर्ण. ___पुहि., पद्य, आदि: जिनपद माहाराज अरज सुणीजे; अंति: मो पद जे माहाराज अरज सुणो, गाथा-३. ४७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण. मु. नयनसुख, पुहि., पद्य, आदि: प्रभुजी मेटो व्यथा हमारी; अंति: नैनसुख सरण तिहारी, गाथा-४. ४८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३८आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सेवा फल येहे पावु तीहारी; अंति: शिव देत तब लुयेती जितावु, गाथा-३. ४९. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३८आ-३९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, म. रंगविजय, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीसंखेश्वर पास जिनेश्वर; अंति: रंग सदा शिव सुखदानी, गाथा-५. ५०. पे. नाम. सद्गुरु पद, पृ. ३९अ-३९आ, संपूर्ण. म. गंगाराम, पुहिं., पद्य, आदि: अब हम देखा ऐसा हो सतगर; अंति: तिरोगे आवागमन मिटाई, गाथा-५. ५१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३९आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-कपटपरिहार, क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: हो रे मन वणीया वाणी; अंति: वनारसी०गांठ न खोल रे, दोहा-४. ५२. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३९आ-४०आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सुन चेतन एक बात हमारी तीन; अंति: सखत पाव मनसा निरमल करक, गाथा-१०. ५३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४०आ-४१अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: यो संसार खारसागर बीचे काल; अंति: कीज्या मेरी दिल की० खोई, गाथा-१०. ५४. पे. नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. ४१अ, संपूर्ण. ___ आदिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहि., पद्य, आदि: उठत प्रभात नाम जिनजी; अंति: दुख दंद सुख संपति बढाईये, गाथा-३. ५५. पे. नाम. शीतलनाथजी स्तवन, पृ. ४१आ, संपूर्ण. शीतलजिन पद, म. हरखचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अटक्यो चित्त हमारी री जिन; अंति: साचे हं तो दास तिहारो री. गाथा-७. ५६. पे. नाम. भरतचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. ४१आ-४२अ, संपूर्ण. मु. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: भरथजी घरिही में वैरागी; अंति: दीजे मोहि मुकति मांगी, गाथा-६. ५७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ४२अ-४२आ, संपूर्ण. __ जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: मूल न बेटा जाया अरे भाई; अंति: वामण खायो कहत बनारसी भाई, गाथा-४. ५८. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ४२आ, संपूर्ण. मु. चेनविजय, पुहि., पद्य, आदि: राजुल पुकार नेम पीया ऐसी; अंति: चेनविजय० चरणन खरी, गाथा-४. ५९. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ४२आ-४३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ औपदेशिक पद-जीवदया, म. चंद, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे दिन कब आवेगे भाई; अंति: शुभ है आवागमन मिटावेगे, गाथा-५. ६०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४३अ-४३आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-चंचलमन, मु. जगतराम, रा., पद्य, आदि: गुरुजी म्हारो मनडो; अंति: जगतराम० सिद्धांत वखान, दोहा-४. ६१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४३आ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: ते मेंडा दरध न पाया रे; अंति: किस गुरु ने फुरमाया रे, गाथा-४. ६२. पे. नामगुरुदेशना पद, पृ. ४३आ-४४अ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु मेरे वरसत ग्यान; अंति: सुख मे सहज सुभाव भरी हो, गाथा-५. ६३. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. ४४अ, संपूर्ण. मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ परि महर करो महाराज; अंति: ध्यावत एह समाज, गाथा-७. ६४. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ४४अ-४४आ, संपूर्ण... मु. जगतराम, पुहि., पद्य, आदि: प्रात भयो सुमर देव; अंति: जगतराम० जीव तात रे, गाथा-७. ६५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४४आ-४५अ, संपूर्ण. मु. भूधर, मा.गु., पद्य, आदि: कित गयो रे पंथी बोलतो बोल; अंति: भूधर० चोरासी लख डोलतो, गाथा-६. ६६. पे. नाम. औपदेशिक अष्टपदी, पृ. ४५अ-४५आ, संपूर्ण. औपदेशिक अष्टपदी-भोंदुभाई, पुहिं., पद्य, आदि: समज सबद इह मेरा रे भोदु; अंति: ही आंखै के गुरसंगति खोले, गाथा-८. ६७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४५आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: माहाराजा मन कसा कसा खून; अंति: जिनदास० ओगण जाय नही गाया, गाथा-३. ६८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४५आ-४६अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: आछी बीद तन पाई रे कछु; अंति: सबेरी रे कछु करणी करजा, गाथा-३. ६९. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ४६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, म. नग, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीसंखेसर पास जिनेसर; अंति: तुम पद पंकज जाऊं बलिहारी, गाथा-६. ७०. पे. नाम. सिद्धचक्र पद, पृ. ४७अ-४७आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, मु. नगजय, पुहिं., पद्य, आदि: सुविधि सिद्धचक्र चित नित; अंति: नगजय तसु पद सिरनाम, गाथा-११. ७१. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ४७आ-४८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-काशीमंडन, मु. नग, पुहिं., पद्य, आदि: मे तेरे पाय लागु रे पास; अंति: नग कह० भव करमादा फंदा, गाथा-५. ७२. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ४८अ, संपूर्ण. म. जसवंतसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधरजिन वंदणा नित हमारी; अंति: विना जिणंदा धरादी रे, गाथा-७. ७३. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ५२आ-५५आ, संपूर्ण, पे.वि. पत्रांक ४८आ से ५२अ तक पाठ नहीं है. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ७४. पे. नाम. गौतमस्वामीजी रो स्तवन, पृ. ५५आ-५६अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, म. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरो सीस; अंति: जोड गोतम तठा संपत कोड, गाथा-९. ७५. पे. नाम. गौतमजीरी महिमा, पृ. ५६अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तुति, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अंगुठे अमृत वसै; अंति: लक्ष्मी लील लहंत, गाथा-२. ७६. पे. नाम, कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ५६आ-५९आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ७७. पे. नाम, वृद्धिशांति स्तोत्र, पृ. ६०अ-६२आ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत वचनं; अंति: (अपठनीय). १२०३२६ (+) धर्मविलास कृति संग्रह व आगमविलास कृति संग्रह, अपूर्ण, वि. १८५८, माघ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २८७-२१(१,१२१,१७५ से १९३)+१(२)=२६७, कुल पे. ५८३, प्र.वि. हुंडी:धर्म०.वि०., संशोधित., जैदे., (३०x१४, १०४३५). १. पे. नाम. धर्मविलास पीठिका, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: कहे भूपरि करौ उद्योत, गाथा-६, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, उपदेशशतक, पृ. २आ-१७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: गुन अनंत करि सहत रहत दस; अंति: जाल भिन्न आप रूप पायो है, सवैया-१२०. ३. पे. नाम, संबोध अक्षरबावनी, पृ. १७आ-२०अ, संपूर्ण. अक्षरबावनी संबोध, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १७५८, आदि: वो उकार मझारि पंच परम पद; अंति: द्यानत० बुधजन शुधि करेहु, गाथा-५२. ४. पे. नाम, धर्मपचीसी, पृ. २०अ-२१आ, संपूर्ण. धर्मपच्चीसी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहिं., पद्य, आदि: भवि कमल रवि सिद्धिजन धरम; अंति: द्यानत० मनवांछित फल लाहे, गाथा-२७. ५. पे. नाम. तत्त्वसार-भाषा, पृ. २१आ-२५अ, संपूर्ण. तत्त्वसार-पद्यानुवाद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिसुखी अंतःसुखी; अंति: एह भ्रात देखौ जानौ अनुभवौ, चौपाई-७९. ६. पे. नाम. दर्शनदशक, पृ. २५अ-२६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: देखे श्रीजिनराज आज सब; अंतिः आंख सौ सरधा तारणहार है, सवैया-११. ७. पे. नाम, ज्ञानदशक, पृ. २६आ-२७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: देखे मूरति स्वामी की; अंति: थिर थाप आप मै आपसु द्यानत, गाथा-११. ८. पे. नाम. द्रव्यादिचौबोल पचीसी, पृ. २७आ-३१आ, संपूर्ण. द्रव्यचौबोल पच्चीसी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: दरवक्षेत्र अरु काल भावदरव; अंति: द्यानत० शुद्ध छिमाउर आन, सवैया-२५. ९. पे. नाम. व्यसनत्यागषोरस, पृ. ३१आ-३३आ, संपूर्ण. ७ व्यसनत्याग गाथाषोडशी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: पाप कौ ताप कलेस असेस; अंति: द्यानत० मान हिगे सजन सही, सवैया-१६. १०. पे. नाम. जीवसरधाचालीसी, पृ. ३३आ-३५आ, संपूर्ण. श्रद्धाचालीसी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: वंदौ हौं परमातमा जगग्यापक; अंति: नीति कहिये सरधा विसवे बीस, चौपाई-४०. ११. पे. नाम. सुखबत्तीसी, पृ. ३५आ-३७अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सिध सर्व वंदौ सदा सुख; अंति: द्यानत० ताकौ भौ दुख नाहिं, दोहा-३२. १२. पे. नाम. विवेकबीसी, पृ. ३७आ-४०अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जनमजरामृतअरति राग भै दोष; अंति: द्यानत० ग्रंथ निको सार है, सवैया-२०. १३. पे. नाम, भक्तिदशक, पृ. ४०अ-४१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: रिषभ अजित संभव अभिनंदन; अंति: प्रकासिदास की भवावली, सवैया-११. १४. पे. नाम. धर्मरहस्यकवित्त बावनी, पृ. ४१आ-४६आ, संपूर्ण. धर्मरहस्यबावनी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: पंचनीमे कहिये परमेश्वर; अंति: यह वारधि शब्द मथा है, सवैया-५२. १५. पे. नाम. दानबावनी, पृ. ४६आ-५१आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: वंदौ आदिजिनंद व्रत तीरथ; अंति: बनाई दानबावनी द्यानतराय, सवैया-५२. १६. पे. नाम. १० बोलपचीसी, पृ.५१आ-५४आ, संपूर्ण. १० बोलपच्चीसी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: एक सरूप अभेद दोई विधि; अंति: मगन यह पुद्गल परजाय है, सवैया-२४. १७. पे. नाम. जिनगुणमालासप्तमी, पृ. ५४आ-५५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदिः (१)अशोक पुहपमंजरी छंद समोसरन, (२)मान खंभ देख औसरौ वरी भरी; अंति: द्यानत० न्यारे दहे हैं, सवैया-७. १८. पे. नाम. चरचाशतक, पृ. ५५आ-७०आ, संपूर्ण. चर्चाशतक, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जै सर्वज्ञ अलोक लोक; अंति: नाम है जीवभाव हम सरदहा, दोहा-१०१. १९. पे. नाम, अष्टविधिपूजा फल, पृ. ७०आ-७१अ, संपूर्ण. ८ प्रकारीजिन पूजा, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: तारि तारि श्री जिनवरौ तुम; अंति: द्यानत० करो हरभांति सहाय, गाथा-१२. २०. पे. नाम. समाधिमरण, पृ. ७१अ-७२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: गौतमस्वामी वंदौं नामी मरण; अंति: द्यानत० जैनधर्म जयवंता, गाथा-१०. २१.पे. नाम. आलोचना, पृ. ७२अ-७२आ, संपूर्ण. आलोयणा, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम नमो अरिहंतानं दतिय; अंति: द्यानतराग विरोध हरीजै जी, गाथा-६. २२. पे. नाम, एकीभाव, पृ. ७२आ-७४अ, संपूर्ण. एकत्वभाव भाषा, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: वंदौ श्रीजिनराज पद रिद्धि; अंति: कियो द्यानत भगति जिहाज, गाथा-२७. २३. पे. नाम. स्वयंभू भाषा, पृ. ७४अ-७५अ, संपूर्ण. स्वयंभू स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: राजविषै जुगलनि सुख; अंति: सदा सो प्रभु क्यों न सहाय, गाथा-२५. २४. पे. नाम. ४०६ जीव समास, पृ. ७५अ-७६आ, संपूर्ण. षड्जीवनिकाय-४०६ भेद समास, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: वंदौ नेमिजिनंद पद सब जीवन; अंति: सुरदया करे ते विरले संसार, गाथा-२२. २५. पे. नाम. १० स्थान चौवीसी, पृ. ७६आ-७९आ, संपूर्ण. १० स्थानचौवीसी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: रिषभदेव रिषदेव वीर गंभीर; अंति: द्यानत० भो जिनंद भवताप हर, सवैया-३०. २६. पे. नाम. व्यौहारपचीसी, पृ. ७९आ-८३आ, संपूर्ण. व्यवहारपच्चीसी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: धर्मप्रकाशक अरहंत थुत; अंति: थिर होय आन नाहि वहै है, सवैया-२६. For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २७. पे. नाम. ५ परमेष्ठि आरती, पृ.८३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: इहविधि मंगल आरती; अंति: सुरग मुकति सुखदानी, गाथा-८. २८. पे. नाम. साधारणजिन आरती, पृ.८३आ-८४अ, संपूर्ण. जै.क.द्यानतराय अग्रवाल, पहिं., पद्य, आदि: आरती श्रीजिनराज; अंति: द्यानत सेवक को सुख दीजै, गाथा-८. २९. पे. नाम. मुनिराज आरती, पृ. ८४अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: आरती कीजै श्रीमुनिराज की; अंति: द्यानत मनवंछित फल पावै, गाथा-८. ३०. पे. नाम. नेमिजिन आरती, पृ. ८४अ-८४आ, संपूर्ण. रा. मानसिंघजी, पुहिं., पद्य, आदि: किहि विधि आरती करो प्रभु; अंति: तुम महिमा तुमहि वनि आवै, गाथा-८. ३१. पे. नाम. निश्चै आरती, पृ. ८४आ, संपूर्ण. साधारणजिन आरती, श्राव. दीपचंदजी, पहिं., पद्य, आदि: इह विधि आरती करौं प्रभ; अंति: दीपचंद भवि भाविन भावै, गाथा-८. ३२. पे. नाम. आत्मा की आरती, पृ.८४-८५अ, संपूर्ण. आत्मा आरती, क. बिहारीदास, पुहिं., पद्य, आदि: करो आरती आतमदेवा गुन; अंति: होहि बिहारीदास विख्याता, गाथा-८. ३३. पे. नाम. द्वादशांग स्तुति, पृ. ८५अ, संपूर्ण. जै.क.द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: कहालै पूजा भगत बढावै जोग; अंति: जनम जनम यह भक्ति कुमावै, गाथा-८. ३४. पे. नाम. वर्धमान की आरती, पृ. ८५अ-८५आ, संपूर्ण. महावीरजिन आरती, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: पावापुर निरवान की राग; अंति: द्यानत की अभिलाष प्रमानौ, गाथा-८. ३५. पे. नाम. साधारणजिन आरती, पृ. ८५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: कहा लौ आरती भगत करै जी; अंति: क्रिपा तिहारी तै सुख पावै, गाथा-८. ३६. पे. नाम. मंगल आरती, पृ. ८५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: तन मंदिर मन उत्तम ठाम; अंति: मिटाय द्यानत एकमेक हो जाय, गाथा-७. ३७. पे. नाम. पार्श्वनाथजी का स्तवन, पृ. ८६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: नरिंद्र फणिंद्र सुरिंद्र; अंति: कीजे आप समान, गाथा-११. ३८. पे. नाम. तिथिषोडशी, पृ. ८६आ-८७अ, संपूर्ण. ___ जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: वाणी एक नमो सदा एक दरव; अंति: जो मन धरै ऊपजै ग्यान अनूप, गाथा-१८. ३९. पे. नाम. मंगल आरती, पृ. ८७अ-८७आ, संपूर्ण. नेमिजिन आरती, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: मंगल आरती कीजे भोर विघन; अंति: मंगल महाभक्ति जिनस्वामी, गाथा-९. ४०. पे. नाम. वैराग्यषोडसी, पृ.८७आ-८८अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सब मैं हम हम मैं सब ग्यान; अंति: द्यानत ताकौ निशदिन सेव, गाथा-१६. ४१. पे. नाम. ग्रंथमहिमा गीत, पृ. ८८अ-८८आ, संपूर्ण. जैनग्रंथमहिमा गीत, जै.क.द्यानतराय अग्रवाल, पहिं., पद्य, आदि: कलि मैं ग्रंथ बडे उपगारी; अंति: द्यानत० जग मैं जीवन थोरा, गाथा-१२. ४२. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ.८८आ-८९अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक सज्झाय-बंधु, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: कीजौ हौ भाइयन सौ प्यारा; अंति: द्यानत० ते विरले संसार, गाथा - १०. ४३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ८९ अ- ८९आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: क्रोध कषाय न मै करो इह; अंति: मैं सौरून तू हो, गाथा-८. ४४. पे. नाम. २४ जिन गीत, पृ. ८९आ, संपूर्ण. जै.. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि वंदी आदिजिनंद दुहूं का अंति द्यानत० विधन विनाश के, गाथा-८. ४५. पे. नाम. जिनपूजा अष्टक, पृ. ८९-९०अ, संपूर्ण. जिनपूजा अष्टप्रकारी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सलिल चंदन अक्षत पुफ लै; अंति: जगत पार उतारण कांत री, गाथा- ९. ४६. पे. नाम. देवपूजा जयमाल, पृ. ९० अ- ९० आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: वृषभ वीर धर धीर चित्त री; अंति: संपति पामी शिवगामी, गाथा -९. ४७. पे. नाम. देवपूजा अष्टक, पृ. ९०आ-९१अ, संपूर्ण. देवपूजा अष्टप्रकारी, जै. क. धानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि जल चंदन अक्षत फूलजु चरु; अंति: जिन पूजा द्यात धर्म उपाय, गाथा - ११. ४८. पे. नाम. २४ तीर्थंकर आरती, पृ. ९१अ, संपूर्ण. २४ जिन आरती, आव, मोतीराम, पुहिं, पद्य, आदि: चौवीसों जिन राज पद बंदौ अति सुख लहै मोतीराम सुजान, २७ गाथा-८. ४९. पे नाम पूजाष्टक, पू. ९१-९९आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: तुम प्रभु राजा जगत के हमै; अंति: धारन द्यानत तारन कारन हो, गाथा- ९. ५०. पे नाम. ४६ बोल आरती, पृ. ९२अ ९२आ, संपूर्ण. साधारणजिन ४६ बोल आरती, जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुहिं, पद्म, आदि: गुन अनंत कह कोस है; अतिः सम्यक रतनत्रै गुन ईस हो, ईस हो गाथा १५. ५१. पे. नाम. वर्तमानबीसी पूजा आरती, पृ. ९२आ- ९४अ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन पूजा, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. पा., वि. १८वी, आदि दीप अडाई मेरुपून अब; अंति धेरै सो भी धरमी होय, दोहा-१८. भरपूर, गाथा १०. ५६. पे. नाम. वाणी अष्टक, पृ. ९६आ- ९७अ, संपूर्ण. ५२. पे नाम, सिद्धपूजा अष्टक, पृ. ९४अ ९४आ, संपूर्ण, . सिद्ध अष्टक, जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुहिं, पद्य, आदि ऊरध अधारे कार जुत बिंदी अति: अनुभवै तुम राखौ पास महंत, गाथा - १२. ५३. पे नाम, सिद्धचक्र आरती, पू. ९४-९५आ, संपूर्ण सिद्ध आरती, श्राव. खुस्यालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: आठ करम दिढ बंध सौं नख सिख; अंति: भगति को निस्तार है, गाथा - १६. ५४. पे. नाम. गुरु अष्टक, पृ. ९५आ-९६अ, संपूर्ण. गुरुपूजाष्टक, जे.क. धानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि चहुंगति दुख सागर विषे अंतिः धानतः हमें हमें भवावली, गाथा - १०. ५५. पे. नाम मुनिराज की आरती, पू. ९६अ ९६आ, संपूर्ण. मुनिराज आरती, पंडित हेमराज पंडित, पुहिं., पद्य, आदि कनक कामिनी विषयसुख; अतिः सेवक हिये भगति भरी For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वाण्याष्टक, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जनम जरा मृत छै करे हरै; अंति: सो नर द्यानत सुख पावै, गाथा-११. ५७. पे. नाम. सरस्वतीजी की आरती, पृ. ९७अ-९७आ, संपूर्ण. शास्त्र आरती, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: ॐकार धुन सार द्वादशांग; अंति: जैवंत को सदा हेत है धोक, गाथा-११. ५८. पे. नाम. पंचमेरजी की पूजा, पृ. ९७आ-९८आ, संपूर्ण. साधारणजिन पूजा-पंचमेरुस्थित, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: तीर्थंकरौ के हौं न जलध ते; अंति: द्यानत० तुरत महासुख होये, गाथा-२१. ५९. पे. नाम. अट्ठाई की पूजा, पृ. ९८आ-९९आ, संपूर्ण. अष्टाह्निकापर्व पूजा-नंदीश्वरद्वीप, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., प+ग., वि. १८वी, आदि: सब परव नमै बडा अठाई परब; अंति: यही भगति शिव सुख करै, दोहा-२२. ६०. पे. नाम. १६ कारण पूजा, पृ. ९९आ-१००आ, संपूर्ण. १६ कारण भावना पूजा, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., प+ग., आदि: सोलह कारण भाय तीर्थंकरवे; अंति: पद द्यानत शिव पद होय, दोहा-२१. ६१. पे. नाम. १० लक्षण अष्टक जकरी, पृ. १००आ-१०३अ, संपूर्ण. १० लक्षण पूजा अष्टप्रकारी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: उत्तम क्षमा मारदव आरज भाव; अंति: कौं लहै द्यानत सुख की रास, दोहा-२७. ६२. पे. नाम. रत्नत्रयपूजा आरती, पृ.१०३आ-१०६अ, संपूर्ण. रत्नत्रय पूजा, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चहुँगति फणि विषय हरन मणि; अंति: सब द्यानत दिया बताय, गाथा-५१. ६३. पे. नाम. सिद्धक्षेत्र के अष्टक, पृ. १०६अ-१०७अ, संपूर्ण. निर्वाणक्षेत्र पूजा, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: परम पूज्य चौबीस जिहँ; अंति: गुण कौ वुद्धि उच्चरै, गाथा-२०. ६४. पे. नाम. द्रव्यसंग्रह-भाषा, पृ. १०७अ-११२अ, संपूर्ण. ___ द्रव्य संग्रह-पद्यानुवाद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: रिषभनाथ जगनाथ सुगुन मन; अंति: ग्रंथ भयौ सम्यक समाजजी, सवैया-६४. ६५. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ११२अ-११२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: प्राणी आतम रूप अनूप है; अंति: द्यानत० याकौ यह सिद्धांत, गाथा-१६. ६६. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ११२आ-११३अ, संपूर्ण. श्राव. हेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: भावना पावन भाइ ये हो अहो; अंति: हेमराज० भावौ भविक निज काज, गाथा-८. ६७. पे. नाम. औपदेशिक भावना जकरी, पृ. ११३अ-११४अ, संपूर्ण. औपदेशिक भावना जकडी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: वंदौ साध वचन मकाय जगत रीत; अंति: द्यानत० वृथा जग लागी कै, सवैया-५. ६८. पे. नाम. वैराग जकरी, पृ. ११४अ-११४आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहिं., पद्य, आदि: प्रथमदेव अरिहंत मनाउं; अंति: द्यानत० दिष्ट सनम पार ___ है, चौपाई-५. ६९. पे. नाम. ग्यान जकरी, पृ. ११४आ-११५आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: ग्यायक एक सरूप है; अंति: द्यानत परम अनुभौ रस चाखा, चौपाई-५. ७०. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ११५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २९ जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्म, आदि करि करि आतमहित रे प्राणी; अंतिः चानत० भाखै केवलग्यानी, गाथा ४. ७१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुष्टिं पद्य, आदि जानत क्यौ नही रे नर आतम अति चानत० हूजे शिवधानी रे, गाथा-४. ७२. पे नाम. साधारणजिन पद, पृ. ११५आ- ११६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: आप प्रभुजी नामै जाना ए; अंतिः द्यानत० जान सौ मतवाना, गाथा-४. ७३. पे नाम, नेमिजिन पद, पृ. ११६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: अब हम नेमजी की शरण; अंति: प्रभु क्यौं तजेंगे परन, गाथा ४. ७४. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पू. ११६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं, पद्य, आदि गलता न समता कब आवैगा; अंति ज्यों का त्यौं ठहरावेगा, गाथा ४. ७५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११६अ ११६आ, संपूर्ण. जै. क. धानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि मोहि कब ऐसो दिन आया है; अंति पुगल पुगल थाय है, गाथा ४. ७६. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११६आ, संपूर्ण. जै.. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि जिन नाम सुमर मन चावरे कहा; अति द्यानत० जैहै तेरे कट के गाथा-४. ७७. पे नाम. साधारणजिन पद, पृ. ११६आ, संपूर्ण जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: तू जिनवर स्वामी मेरा मै; अंति: फेर नही भव कै फेरा, गाथा-४. ७८. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ११६ आ-११७अ, संपूर्ण जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सो ग्याता मेर मन माना जिन; अंति: सोई जीव मुकति भणा, गाथा-४. ७९. पे नाम, नेमिजिन पद, पू. ११७अ संपूर्ण जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सुन मन नेमजी के वैनसु; अंति: द्यानत ज्यौ लहौ पद चैन, गाथा-४. ८०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११७अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: काहे कूं सोचत अतिभारी रे; अंति: द्यानत० जिन चिंता सब जारी, गाथा-४. ८१. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११७-११७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सुहमतौ कबहू न निज घर आए; अंति: सद्गुरु वैन सुनाये, गाथा-४. ८२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११७आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि रे जिय जनम लाहा लेह चरण; अंति: घ्यावो कहे सहरु ए ह. गाथा-४, ८३. पे. नाम, नेमिजिन पद, पू. ११७आ- ११८अ संपूर्ण जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: चल देखे प्यारी नेम नवल; अंति: द्यानत० कहि मोकौं को तारी, गाथा-४. ८४. पे नाम. आदिजिन पद. पू. ११८अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मै तौ रुल्यो चिरकाल जग; अंति: द्यानत० नाथ तेरो कहायौ, गाथा-४. ८५. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११८अ संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जगत मै सम्यक उत्तम भाई, अंति: द्यानत० सद्गुरु सीख बताई, गाथा-४. ८६. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १९८२-१९८आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: भाई अब मै ऐसे जाना पुद्गल; अंति: द्यानत० मैडक हंस पखाना, गाथा-४. ८७. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १९८आ. संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: आतम जान रे जान० जीवन की; अंति: द्यानत० तिनकौ शिव सुख होई, गाथा-४. ८८. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १९८आ, संपूर्ण, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: मन मेरे राग भानि वारि राग; अंति: द्यानत शुद्ध अनुभौ सार, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११८आ-११९अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: किसी के कोई न हमारा झठा; अंति: द्यानत मै चेतन पदमांही, गाथा-४. ९०. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ११९अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: भम्यौ जीवम्यौं संसार; अंति: चरण कमल चितलायौ जी, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ९१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११९अ-११९आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जिय कौ लोभ महादख दाई; अंति: द्यानत जिन कै लोभ विशेषा, गाथा-४. ९२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११९आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: रे मन भजि दीनदयाल जाकै; अंति: द्यानत छांडि विषै विकराल, गाथा-४. ९३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ११९आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: तुम प्रभु कहियै दीन; अंति: द्यानत० हमको लेहू निकाल, गाथा-३. ९४. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ११९आ, संपूर्ण... जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: मै नेमजी का वंदा साहिबजी; अंति: द्यानत० बात सब धंदा धंदा, गाथा-४. ९५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११९आ-१२०अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: मैं निज आतम कब ध्याउंगा; अंति: द्यानत० बहूर जग मैं आउंगा, गाथा-४. ९६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२०अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-जीव, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: अरिहंत सुमर मन बावरे; अंति: द्यानत० फेर न कछु उपाव रे, गाथा-४. ९७. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १२०अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: वंदौ नेम उदासी मद मारिवे; अंति: पंकज रमत रमत अघनासी, गाथा-४. ९८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२०आ, संपूर्ण. ____ जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: आतम अनुभौ कीजे हो भाई; अंति: द्यानत० दक्ष कहीजै हो भाई, गाथा-४. ९९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२०आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-रागदोष, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: कर रे कर रे कर रे आतम; अंति: यही है द्यानत लख भवतर रे, गाथा-४. १००. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १२०आ-१२२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: आतम अनुभौ करना रे भाई; अंति: द्यानत० पार उतारना रे भाई, गाथा-४. १०१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १२२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: धन ते साध रहे वनमाही; अंति: द्यानत० सुख दुख न सांहि, गाथा-४. १०२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १२२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: अब हम आतम कौं पहचान्यौ; अंति: द्यानत० जनम सफल करमान्यौ, गाथा-४. १०३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १२२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: हमको प्रभु श्रीपास सहाय; अंति: द्यानत० फेर न कछु उपाय, गाथा-४. १०४. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १२२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: ज्ञानि ज्ञानि ज्ञाना नेम; अंति: जगत मैं हम गरीब प्राणी, गाथा-४. १०५. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १२२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: देख्या मैंने नेमजी प्यारा; अंति: द्यानत भगति तुमारा, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १२२आ-१२३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: आतम रूप अनूप है घटमांहि; अंति: निज स्वारथ काजै हो, गाथा-४. १०७. पे नाम औपदेशिक पद. पू. १२३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: नही एसो जनम वार वार; अंति: ज्यौ लहै भव पाव पार, गाथा-४. १०८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२३अ - १२३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: तु तो समझिरे भाई निशदिन; अंति: द्यानत० सदा गुरु सीख बताई, गाथा-४. १०९. पे नाम आध्यात्मिक पद, पू. १२३आ, संपूर्ण जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि घट में परमातम ध्याइयै हो; अंति: महिमा धानत लहिसे भी अंत, गाथा-४. ११०. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १२३आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद- देवगुरुधर्म, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि समझत क्यों नही वानी रे अति हूजे ज्याँ शिवधानी रे, गाथा ४. " ११९. पे नाम औपदेशिक पद, पू. १२३आ-१२४अ, संपूर्ण औपदेशिक पद-सम्यक्त्व, मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: धृग धृग जीवन सम्यक्त; अंति: द्यानति गहि मनवचन तना, गाथा-४. १९१२. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १२४अ, संपूर्ण. जै.. द्यानतराय अग्रवाल, मा.गु., पद्म, आदि जीवासुं कहिये तनै भाईया अति द्यानत० एम सुगुरु समझझ्या गाथा-४. १९३. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १२४-१२४आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद- ज्ञान, जै. क. धानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि ज्ञान सरोवर सोई हो भविजन, अंति जाने जाने विरला ज्ञाता, गाथा ४. ११४. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १२४आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-मूढ, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: मूढपना कित पायो रे जीव ते; अंति: द्यानत यौं सद्गुरु बतलायो, गाथा-४. ११५. पे नाम आध्यात्मिक पद, पू. १२४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि : हम लागै आतम राम सौ विना; अंति: द्यानत० छूटे भवदुख वामसी, गाथा-४. ३१ ११६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १२४-१२५अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु अब हमको होय सहाय; अंति: द्यानत० जमतै लेहू वचाय, गाथा-४. ११७. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १२५अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-चित्त, क. बिहारीदास, पुहिं., पद्य, आदि: जीवन सहल है तुम चेतो चेतन; अंति: बिहारदास० और न कछू न पाय, गाथा-४. १९८. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १२५अ. संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: वसि संसार मैं पायो दुख; अंति: दुख मेटि लह्यौ सुखसार, गाथा-४. १९. पे नाम मुनिगुण स्तुति, पृ. १२५ अ- १२५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं, पद्य, आदि धनि धनि ते मुनि गिरवन अति चानत० पाय परत पातग जासी, गाथा-४, १२०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२५आ, संपूर्ण. पु., पद्य, आदि: कहित सुगुरु करिसु हित भवक; अंति: करि करम सघन डहन दहनकन, गाथा-४. १२१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२५ आ-१२६अ, संपूर्ण. , क. बिहारीदास, पुहि., पद्य, आदि हो भविजन आतम सौ ली लाया; अंतिः बिहारीवास० परमातम व्हे जाय, गाथा ४. १२२. पे नाम आध्यात्मिक पद, पू. १२६अ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: भैया मोरै कहुं कैसै सुख; अंति: ज्यौं द्यानत तर जग तोय, गाथा-४, (वि. गाथाक्रम में भिन्नता है.) १२३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १२६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: किह विध प्रभु मैं थुति; अंति: जगतमै द्यानतदास पिछान्यौ, गाथा-४. १२४. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. १२६अ-१२६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: भज श्रीआदि चरण नमेरे; अंति: निरभै होय तिह जगमाही, गाथा-४. १२५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १२६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: प्राणी लाल धरम अगाउ धारौ; अंति: चढ अपनौ द्यानत आतम तारौ, गाथा-४. १२६. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १२६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: नेम नवल देखे चल री लहै; अंति: जे हैं भववंधन गलरी, गाथा-४. १२७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १२६आ-१२७अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: भव पूजो श्रीजिनंद चित; अंति: द्यानत प्रभु दे परम चैन, गाथा-४. १२८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १२७अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: मगन रह रे सुधा तम मैं; अंति: द्यानत यही मोक्ष उपाय, गाथा-४. १२९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२७अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: आतम जान रे भाई जैसै उजुल; अंति: द्यानत० ते पाव शिवधाम, गाथा-४. १३०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२७अ-१२७आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-भव आलोचना, जै.क. मानसिंह, पुहिं., पद्य, आदि: अब क्यों भूलै है यह औसर; अंति: भोग तजि जै शिव सुख ललचाया, गाथा-४. १३१. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १२७आ, संपूर्ण. जै.क. मानसिंह, पुहिं., पद्य, आदि: संसार अथिर भाई कछु करिजु; अंति: जाना कहै मानसिंघ दाना, गाथा-३. १३२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १२७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: मोहतारा हो देवाधिदेव; अंति: यानत अजरामर भव तृतीय, गाथा-४. १३३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२७आ-१२८अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-क्रोध, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहिं., पद्य, आदि: रे जिय क्रोध कहां करै; अंति: निगोद वासा छिमा द्यानत रे, गाथा-४. १३४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२८अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-संगत, श्राव. हेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे मित्र सौं करियारी; अंति: हेमराज० वसुधा तीरथधारी, गाथा-४. १३५. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १२८अ, संपूर्ण. श्राव. हेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: और कौं विसार यार नेम पेम; अंति: हेमराजजी संभार धूमधाम डार, गाथा-४. १३६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२८अ-१२८आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-निंदापरिहार, श्राव. हेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन सबही मै घाट वाढ नही; अंति: हेमराज० अनुभौ अमृत कोर, गाथा-४. १३७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १२८आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: फूली वसंत जह आदिसर शिव; अंति: द्यानत० गुन का जांवरनए, गाथा-४. १३८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १२८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ३३ जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: तुम ग्यान विभौ फूली वसंत; अंति: द्यानत० आनंदघन सूरुप, गाथा-४. १३९. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १२८आ-१२९अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-जीवदया, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: ज्ञानी जीवदया नित पालै; अंति: द्यानत० जतनि सौ ग्याता, गाथा-४. १४०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १२९अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: करज एक ब्रह्म सेति अंग; अंति: द्यानत० मगन सूविद्या एती, गाथा-४. १४१. पे. नाम, आध्यात्मिक होरी पद, पृ. १२९अ, संपूर्ण.. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: होरी चेतन खेले होरी सत्ता; अंति: द्यानत० यह जुग जुग जोरी, गाथा-४. १४२. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. १२९अ-१२९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: भोर भयो भजि श्रीजिनराज; अंति: द्यानत सुरग मुकति पदवास, गाथा-४. १४३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १२९आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जिनकै हिरदै भगवान वसै तिन; अंति: अमृत और पिया न पिया, गाथा-४. १४४. पे. नाम, आध्यात्मिक होरी पद, पृ. १२९आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: आय सहज वसंत खेले सब होरी; अंति: देखें सझ नैनैं चकोरा, गाथा-४. १४५. पे. नाम. अजितजिन पद, पृ. १३०अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहिं., पद्य, आदि: अजितनाथ सौ मन लावौ रे; अंति: द्यानत० तैसी पदवी पावो रे, गाथा-४. १४६. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३०अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: अब हम अमर भए न मरेंगे; अंति: विनु समरै समुरेंगे, गाथा-४. १४७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १३०अ-१३०आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: भाई ग्यानी सोई कहियै करम; अंति: द्यानत० दौनों वस्ते तौले, गाथा-४. १४८. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १३०आ, संपूर्ण. जै.क.द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: भाई कौन धर्म हम चालै एक; अंति: द्यानत ० भाग हमारा आया, गाथा-४. १४९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३०आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: हमारो कारज कैसे होई कारण; अंति: द्यानत० आप मैं आप समोई, गाथा-४. १५०. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३०आ-१३१अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: हमारो काज ऐसो होई आतम; अंति: द्यानत० जनमै मरन कोई, गाथा-४. १५१. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १३१अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: देखो भाई श्रीजिनराज; अंति: द्यानत० नर पशु निज काजै, गाथा-४. १५२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३१अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: देखो भाई आत्मराम विराजै; अंति: द्यानत० जानपनौं सुखदाता, गाथा-४. १५३. पे. नाम, महावीरजिन पद, पृ. १३१अ-१३१आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: अब मोहे तार ले महावीर; अंति: द्यानत० दूर करै भवपीर, गाथा-४. १५४. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १३१आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जै जै नेमनाथ परमेसर उत्तम; अंति: द्यानत० कहन सकत सरवेश्वर, गाथा-४. १५५. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १३१आ-१३२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: आदिनाथ तारन तरना नाभिराय; अंति: द्यानत भवितुम पद सरन, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: शैली जैवंता यह हूजै शिव; अंति: द्यानत० शिव सुख पायौ, १५७. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३२अ संपूर्ण. जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि देख्यो भेख फूल ले निकस्यौ; अंतिः द्यानत० सरधा सौं सिरनावी, गाथा-४. गाथा-४. १५८. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १३२अ १३२आ, संपूर्ण जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: भाई आपन पाप कुमाए आए; अंति: द्यानत० ए परनाम न वहीयै, गाथा-४. १५९. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १३२ आ. संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: इ काया तेरी दुख की ढेरी; अंति: द्यानत० सुमरन धार वहा है, गाथा-४. १६०. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १३२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: वंदे तु वंदगी करियादि जिन; अंति: द्यानत० न करिये वकवादि, गाथा-४. १६१. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १३२आ-१३३अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद- शिक्षा, जै. क. धानतराव अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: बंदे तु वंदगी न भूल चाहता; अंतिः द्यानत० नाम कौं कर कबूल, गाथा-४. १६२. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १३३अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-चित्त, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: आतम रूप सुहावना कोई जानो; अति मौनी के रहे पाई सुखरेखा, गाथा-४. १६३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३३अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद- दुर्लभज्ञान, जै. क. धानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: म्यान का राह दुहेला रे; अंति: गुरु के चेला रे भाई, गाथा-४. १६४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३३आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-सुलभज्ञान, जै.क. धानतराव अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: ग्यान का राह सुहेला रे; अंति द्यानत० बेपरवाह अकेला रे, गाथा-४. १६५. पे नाम. साधारणजिन पद. पू. १३३आ, संपूर्ण, " जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु तेरी महिमा किहि मुख; अंतिः द्यानत० हम देखे सुख पावै, गाथा-४. १६६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १३३आ-१३४अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु तेरी महिमा कहिय न; अंति: द्यानत० दोष सबै छिटकाय, गाथा- ४. १६७. पे नाम. साधारणजिन पद, पृ. १३४अ संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु तुम समरन ही; अंति: द्यानत० पाप भाग हमारे, गाथा-४. १६८. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १३४अ संपूर्ण " जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि ऐसो सुमर कर मे भाई पवन, अंतिः पंच परम गुरु सरन गहीजे, गाथा ४. १६९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: कहिवे कों मन सूरमा करिवे; अंति: करे द्यानत सो सुखीया, गाथा-४. १७०. पे नाम औपदेशिक पद, पू. १३४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिननाम आधार सार; अंति: द्यानत० सुरग मुकति दातार, गाथा-४. १७९. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: देखै सुखी सम्यकवान सुख; अंति: द्यानत० नाही खेद न जानै, गाथा-४. १०२. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३५अ संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सब जग कु प्यारा चेतन रूप; अंति: और द्यानत निहचै धारा, गाथा-४. Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ३५ १७३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३५अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जो ते आतमहित हीं कीना; अंति: द्यानत० मंदर कलस नवीना, गाथा-४. १७४. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. १३५अ-१३५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: रिषवदेव जनम्यौ धनधारी; अंति: द्यानत० नाभिरायजी हो लहरी, गाथा-४. १७५. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: मानुष जनम सफल भयौ आज; अंति: द्यानत भगति गरी निवाल, गाथा-४. १७६. पे. नाम, महावीरजिन पद, पृ. १३५आ, संपूर्ण. ___ जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: नी चली वांदीयै ए री सखी; अंति: द्यानत० सुरग मुकति सुखदाई, गाथा-४. १७७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३५आ-१३६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: मेरा मन कब होइ वैराग राज; अंति: द्यानत० सोई घडी वड भाग, गाथा-४. १७८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहिं., पद्य, आदि: लागा आतम राम सौं नेहरा; अंति: द्यानत० चाह रहै कछ नाही, गाथा-४. १७९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३६अ-१३६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सब कौं एक ही धरम सहाई; अंति: द्यानतदेव० परख गहौ मन लाई, गाथा-४. १८०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: तुम कैसै सुख के मीत जिन; अंति: द्यानत० पद सुख तन चित, गाथा-४. १८१. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३६आ, संपूर्ण. महावीरजिन पद-आध्यात्मिक, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: वीररा पीर कासौं कहियै; अंति: द्यानत० आनंद तव लहियै, गाथा-३. १८२. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १३६आ-१३७अ, संपूर्ण. आदिजिन विवाह पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: सांइ आज आनंद कछु कहिन वनै; अंति: जाकौं आदीश्वर परनै, गाथा-४. १८३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १३७अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: माई आज आणंद है या नगरी; अंति: द्यानत० सेवत जाके पगरी, गाथा-२. १८४. पे. नाम. सीताराम पद, पृ. १३७अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: कहै राघो सीता चलहू गेह; अंति: द्यानत० तप लीज्यौ मोह नास, गाथा-३. १८५. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३७अ, संपूर्ण. ___ जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: कीजे हो आतम संभार भवि; अंति: द्यानत मुख अनुभवै सोई, गाथा-४, (वि. पाठभेद है.) १८६. पे. नाम, सीताराम पद, पृ. १३७अ-१३७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: कहै सीताजी सुन रामचंद्र; अंति: भयौ इंद्र सौ लइ सुरग वास, गाथा-८. १८७. पे. नाम. चक्रवर्तिजिनत्रय पद, पृ. १३७आ, संपूर्ण. चक्रवर्तीजिनत्रय पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: अपनौ जानकै मोह तारलौ; अंति: द्यानत० नाश जनम मृत टेब, गाथा-४. १८८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १३७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: तिनके भजन मै मगन रहूं रे; अंति: द्यानत जपै बडे धनवान, गाथा-४. १८९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३७आ-१३८अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: लीया सो आतम जानु रे; अंति: रे द्यानत सो चिद्रप, गाथा-४. १९०. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३८अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सुनि सुनि चेतन लाडले यह; अंति: अरु भूखे कौं देह हो, गाथा-४. १९१. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १३८अ, संपूर्ण. ___ जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: ए जिनराजजी मोह दुख ते ले; अंति: द्यानत० भव भव दरस दिखाई, गाथा-४. १९२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३८आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: आत्मज्ञान लखै सुख होई; अंति: द्यानत० सहै परीसह जोई, गाथा-४. १९३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३८आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: मै एक सुगंध ग्याता निरमल; अंति: चिदानंद द्यानत जग तस वंदा, गाथा-४. १९४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १३८आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जाकौ इंद्र अहमिंद भजत चंद; अंति: आदिनाथ देव द्यानत रखवाल, गाथा-४. १९५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३८आ-१३९अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-दर्लभज्ञान, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: ग्यान को पंथ कठिन हौ सुनि; अंति: द्यानत० त्रिभवन मैं धन है, गाथा-४. १९६. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १३९अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-सुलभज्ञान, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: सुनी जैनी लोगो ग्यान को; अंति: द्यानत० पास न आवै जम है, गाथा-२. १९७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३९अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: कर कर सतसंग तेरे भाई; अंति: द्यानत० सतसंगत सरधा आई, गाथा-४. १९८. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १३९अ-१३९आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-भक्ति, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: कर कर जैत नाम भज भाई रे; अंति: द्यानत तज विकथा दुखदाई रे, गाथा-४. १९९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३९आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: चेत रे प्राणी तु चेत रे; अंति: द्यानत० अरु बात सबकौ री, गाथा-४. २००. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३९आ, संपूर्ण. श्राव. दीपचंदजी, पुहिं., पद्य, आदि: जिय तो मौन मुद्रा हितकारी; अंति: दीपचंद० ये पद अविकारी, गाथा-४. २०१. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १३९आ-१४० अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: रे भाई संभाल जग जाल मैं; अंति: द्यानत कौ करि फौत रे भाई, गाथा-४. २०२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १४०अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सब सौं छिमा छिमा कर जीव; अंति: द्यानत० ग्यान सरोवर तीर, गाथा-४. २०३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १४०अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: गहे संतोष सदा मन मेरे; अंति: द्यानत० त्यागै ते धन रे, गाथा-४. २०४. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १४०अ-१४०आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: भाई मोह यहाँ दुखदाई वसत; अंति: द्यानत० करै सो ग्याता रे, गाथा-४. २०५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १४०आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: सोगन कीजै बावै मेरे पीतम; अंति: द्यानत० जो विनसैं यह रोग, गाथा-४. २०६. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १४०आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ३७ औपदेशिक पद-शील, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: रे वावा सील सदा दिढ राख; अंति: द्यानत० दार दग न दहियै, गाथा-४. २०७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ.१४०आ-१४१अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीजिनधरम सदा जैवंत तीन; अंति: द्यानत० अनाद अनंत, गाथा-४. २०८. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १४१अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जब वाणी पिरी महावीर की तव; अंति: द्यानत० जैवंती जग होय, गाथा-४. २०९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १४१अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: वे कोई निपट नारी देख्या; अंति: द्यानत० हो रह्यौ भखारी, गाथा-४. २१०. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १४१अ-१४१आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: आतम काज समारियै तजि; अंति: द्यानत० अरु बात फोलै, गाथा-४. २११. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १४१आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-गुरुज्ञान, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: हो परम गुरु वरसत ज्ञान; अंति: द्यानत० थिरतासु घर करी, गाथा-४. २१२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १४१आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: वीतराग नाम सुमर वीतराग; अंति: द्यानत० भूलै साहिब अभिराम, गाथा-४. २१३. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. १४१आ-१४२अ, संपूर्ण. आदिजिन पद-जन्मबधाई, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: आज आनंद वधावा जनम्यौं; अंति: जग माता हमैं सुखदाय, गाथा-४. २१४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १४२अ, संपूर्ण... जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जिन कै हिरदै प्रभु नाम; अंति: दान अनेक दिया न दिया, गाथा-४. २१५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १४२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: मिथ्या एह संसार है रे; अंति: द्यानत० ध्यान धरै रे भाई, गाथा-४. २१६. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १४२अ-१४२आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-पुण्यपाप, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: करुणा जान रे जान रे जान; अंति: द्यानत० सुख होहि कहसांना, गाथा-४. २१७. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १४२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती विवाह पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: कहूं दीठा नेमकुमारनी; अंति: द्यानत० देख्यौ नैंन निहार, गाथा-४. २१८. पे. नाम. गुरुगुण पद, पृ. १४२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: गुरु समान दाता नही कोई; अंति: राखो गुरु पद पंकज दोई, गाथा-४. २१९. पे. नाम, रामभरत पद, पृ. १४३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: राम भरतसं कहे राज भोगवो; अंति: तात वचन पालौ नरनाथ, गाथा-४. २२०. पे. नाम. रामभरत पद, पृ. १४३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: कह भरतजी सुन हो राम; अंति: द्यानत सेवक सुख कर धीर, गाथा-७. २२१. पे. नाम, चतुष्पदी पद, पृ. १४३अ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: मेरी वार क्युं ढील करी जी; अंति: द्यानत० वैराग दशा हमरी जी, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २२२. पे. नाम. अष्टपदी, पृ. १४३आ, संपूर्ण. ___ साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनदेव न छांड हौ सेवो; अंति: मैं द्यानत भक्त उपाय हौ, गाथा-८. २२३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १४३आ-१४४अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: मानुष भव पानी दियो जिन; अंति: निपटन जी कहै लख चेतन वाना, गाथा-८. २२४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १४४अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहिं., पद्य, आदि: अब मैं जान्यौ आतमराम सौं; अंति: द्यानत निज गह पर तजि दिया, गाथा-८. २२५. पे. नाम. उपदेश धमाल, पृ. १४४अ-१४४आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन प्राणी चेतिये हौ अहो; अंति: आपकौं हो द्यानत कहत पुकार, गाथा-८. २२६. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १४४आ-१४५अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: भज मन प्रभु श्रीनेम कौं; अंति: स्वामी की कीजिये बलिहारी, गाथा-८. २२७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १४५अ-१४५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: प्राणी ललछा मौ मन चपलाई; अंति: द्यानत० फिर पाछै पछताई, गाथा-८. २२८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १४५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: रे ग्यान विना दुख पाइरे; अंति: अमर होय तजि काया रे, गाथा-८. २२९. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १४५आ-१४६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहि., पद्य, आदि: काहे देख गरवाना भाई गह; अंति: द्यानत० जो चाह कल्याना रे, गाथा-८. २३०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १४६अ-१४६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: कर्मन निज आत्मा चितौ न; अंति: द्यानत सौ गहि मनवचकाय, गाथा-८. २३१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १४६आ-१४७अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: जानौ पुद्गल न्यारा रे भाई; अंति: द्यानति लहि भौ पारा रे, गाथा-४. २३२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १४७अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: भजो आतम देव रे जिय भजो; अंति: समै द्यानत करौ अमृत पान, गाथा-७. २३३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १४७अ-१४७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: ब्रह्मज्ञान नही जाना रे; अंति: द्यानत अजर अमर पद थाना रे, गाथा-८. २३४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १४७आ-१४८अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: साधो छांडो विषै विकारी; अंति: द्यानत० वर लेके जिय पाई, गाथा-८. २३५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १४८अ-१४८आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: कैसै शिव पद सुख होई हम कौ; अंति: द्यानत० काल अनंत गमायौ, गाथा-८. २३६. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. १४८आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: भज भज रे मन आदिजिणंद; अंति: द्यानत लहियै परम आनंद, गाथा-४. २३७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १४८आ-१४९अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सुन चेतन एक बात हमारी; अंति: द्यानत० दधि पार उतरी कै, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ३९ २३८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १४९अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहिं., पद्य, आदिः जिनराय मोहि भरोसो भारी; अंति: द्यानत० वनी सबात हमारी, गाथा-६. २३९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १४९अ-१४९आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-अभिमानपरिहार, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: प्रानीय संसार असार है गरव; अंति: जियै द्यानत शिवपुर राव, गाथा-८. २४०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १४९आ-१५०अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दानशीलतपभावना, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जैनधरम धर जीयरा सो च्यार; अंति: द्यानत० विसरीए संसार असार, गाथा-८. २४१. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १५०अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-ज्ञानीलक्षण, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: ग्यानी ऐसो ज्ञान विचारै; अंति: संन्यास० आतम काज सवारे, गाथा-७. २४२. पे. नाम. अष्टपदी, पृ. १५०अ-१५०आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद-अलिप्तभावना, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: ग्यानी ऐसो ग्यान विचारै; अंति: द्यानत० करम उपाधि विडारै, गाथा-८. २४३. पे. नाम. दृष्टापदी, पृ. १५०आ-१५१अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद-ब्रह्म, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: भाई ब्रह्म विराजै कैसा; अंति: चेतन गुरु कृपा तै प्रगटै, गाथा-८. २४४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १५१अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: कौन कहै घर मेरा भाई जे जे; अंति: अब जम आवे विष की खिचडी खइ, गाथा-७. २४५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १५१अ-१५१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-काया, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: काया तुं चले संग हमारे; अंति: द्यानत० भव वन डोलन हारा, गाथा-५. २४६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १५१आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जीवा ते मेरी सार न जानी; अंति: करियौ द्यानत शिक्षा, गाथा-६. २४७. पे. नाम. २४ जिन पद, पृ.१५१आ-१५२अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: रिषभदेव रिषभदेव सहाई अजित; अंति: चोवीस नाम मनोरथ गाई, गाथा-६. २४८. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १५२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: झूठा सुपना इह संसार दीसत; अंति: द्यानत० लगै कछु लेह निकार, गाथा-८. २४९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १५२अ-१५२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: किहि की भगति कियै हित; अंति: द्यानत० कहा कीधो नभ शूल, गाथा-११. २५०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १५२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: परमेसर की कैसी रीति मोहि; अंति: दर पर न ज्यौ चिद्रूप, गाथा-६. २५१. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १५२आ-१५३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: एक ब्रह्म तिहूं लोक मझार; अंति: द्यानत करम कट शिव जांहि, गाथा-६. २५२. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १५३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सुन री सखी जहाँ नेम गए; अंति: द्यानत० आताप वुझावो री, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २५३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १५३अ-१५३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: तजि जुग ए पिय मोहि अनाहक; अंति: द्यानत० चलाय करो रेरी, गाथा-५. २५४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १५३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: हमारे इह दिन यों ही गए; अंति: द्यानत० जीव लेखे मै लए जी, गाथा-३. २५५. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १५३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: मैनू भावै जी प्रभु चेतन; अंति: द्यानत० पुद्गलसौं कछु हेत, गाथा-२. २५६. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १५३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मैं वंदा स्वामी तेरा भव; अंति: द्यानत० दीजै शिवपुर डेरा, गाथा-२. २५७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १५३आ-१५४अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: त्यागौ त्यागौ जी मिथ्यात; अंति: तातै भाजै जेहै हाल, गाथा-३. २५८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १५४अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहिं., पद्य, आदि: मनौ जी चेतन एह विषै भोग; अंति: धर देखि चेतियै सुजान, गाथा-४. २५९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १५४अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: दरगति गमन निवारियौ घरि; अंति: द्यानत० जिह मग चलत है सार, गाथा-३. २६०. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १५४अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी नाभिकुमार हम कौं; अंति: द्यानत० सब सरन हमारा, गाथा-३. २६१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १५४अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन मान असाडी वतिया यह; अंति: द्यानत० करुणा आनो छतिया, गाथा-२. २६२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १५४अ-१५४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: कब हो मुनिवर को व्रतधारि; अंति: द्यानत० दधि पार उतार हो, गाथा-२. २६३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १५४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आतम अनुभव सार हौ अब जीय; अंति: द्यानत० अमर होइ भौ पार हो, गाथा-२. २६४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १५४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्राणी प्राणी सोहं सोहं; अंति: द्यानत० त्रिभुवन राय हौ, गाथा-२. २६५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १५४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन तुम चेतौ भाई ऐसो नर; अंति: द्यानत तीन्यौ जग के नायकै, गाथा-२. २६६. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १५४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: नेमजी तुम केवलज्ञानी ताही; अंति: द्यानत०वहरि न जग मैं आउं, गाथा-२. २६७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १५४आ-१५५अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन जी तुम जो जौरत हो धन; अंति: द्यानत कह्यौ कहत पुकार, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २६८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १५५अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्राणी तुम तो आप सुजान है; अंति: द्यानत० लहौ शिवथान हौ, गाथा-३. २६९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १५५अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: लगा जी सुहौ तो आप मैं; अंति: द्यानत जड सेति पगाजी सुतौ, गाथा-३. २७०. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १५५अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीतत ए दिन नीके हमको वीतत; अंति: द्यानत० रस लागत फीकै.गाथा-३. २७१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १५५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: कौन काम मैंने कीने अब; अंति: द्यानत० मुकति पद सार हो, गाथा-२. २७२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १५५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: एरे मन गाय लै श्रीजिनराय; अंति: अंतरजामी सेवत सुरपतयए रे, गाथा-२. २७३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १५५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: देखे जिनराज आज राज रीध; अंति: द्यानत० सुर शिव सुखदाई, गाथा-३. २७४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १५५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आतम को पहचाना है हम आतम; अंति: द्यानत० जानै सौ दिवाना है, गाथा-२. २७५. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १५५आ-१५६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: साधजीने वानी तनक सुहाई; अंति: द्यानत० श्रावग पदवी पाई, गाथा-३. २७६. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १५६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: वै प्राणी संज्ञा निज न; अंति: द्यानत० दीवट एक वखाणी, गाथा-३. २७७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १५६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: लाग रह्यौ मन चेतनसुंजी; अंति: द्यानत० कवन भवनसौं जी, गाथा-३. २७८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १५६अ, संपूर्ण. श्राव. हेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: ए री मेरो मरम न जान्यौं; अंति: हेमराज० पद ज्यौं स्यानौ, गाथा-३. २७९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १५६अ-१५६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: हम आए हौ जिनभूप तेरे दरसन; अंति: द्यानत० रूप आनंद वरसन को, गाथा-३. २८०. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १५६आ, संपूर्ण. श्राव. हेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: अरे भैया सुपर पिछानौ सुपर; अंति: हेमराज० जब अनुभव रस सानौ, गाथा-५. २८१. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. १५६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: तुम करुणा धार स्वामी; अंति: द्यानत० सकल भव भय भंजनौ, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २८२. पे. नाम. औपदेशिक पद, प. १५६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जिनवाणी जान ले रे छह दरव; अंति: द्यानत० अक्षर मान ले रे, गाथा-३. २८३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १५६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ए दिन आछै लहै जी लहै जी; अंति: द्यानत० भाव गहै जी गहै जी, गाथा-२. २८४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १५७अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: एक अरज सुनो साहिब मेरी; अंति: द्यानत० कछु खातर तेरी, गाथा-३. २८५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १५७अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जिन साहिब मेरे हो निवाजि; अंति: द्यानत० छिमा जल रास कौ, गाथा-३. २८६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १५७अ, संपूर्ण.. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन मानले बात हमारी; अंति: द्यानत० सोहं जपि सुखकारी, गाथा-२. २८७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १५७अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: निज जतन करो गुन रतनि न कौ; अंति: द्यानत० सुख पावै साह अमर, गाथा-४. २८८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १५७अ-१५७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: आतम जान मैं जाना ग्यान; अंति: द्यानत० सब सुख विलसै भूप, गाथा-४. २८९. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन पद, पृ. १५७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: सांचे चंद प्रभु सुखदाया; अंति: द्यानत० नाम जपो मन लाइ, गाथा-२. २९०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १५७आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-दान, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: दीयै दान महासुख होवै धरम; अंति: तिन को दान सरब दुख खोवै, गाथा-२. २९१. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १५७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: ए मन ए मन कीजियै भज प्रभ; अंति: द्यानत० गावै उठि प्रात हौ, गाथा-२. २९२. पे. नाम. देवसाधु भक्ति पद, पृ. १५७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: सोहा देवे साधु तेडी; अंति: द्यानत० सुख दिनरातडिया, गाथा-३. २९३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १५७आ-१५८अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ते चेतन करुणा न करी रे; अंति: द्यानत० आदि अंत करी रे, गाथा-३. २९४. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १५८अ, संपूर्ण. श्राव. खुस्यालचंद, पुहि., पद्य, आदि: चिन मूरत चेतन प्यारा मैं; अंति: खुस्याल० सरधा नैन उजार है, गाथा-३. २९५. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १५८अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: तेरो संजम विन रे नरभव; अंति: द्यानत० राजविषै जिनराय, गाथा-३. २९६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १५८अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जिनराज के पाय सदा सरन; अंति: द्यानत० लागत भागत मरन, गाथा-२. २९७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १५८अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परमारथ पंथ सदा पकरो रे; अंति: द्यानत० सुधामृत पान करो, गाथा-२. २९८. पे. नाम. हस्तिनापरतीर्थ पद, पृ. १५८अ-१५८आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: हथनापुर वंदन जई हो सांत; अंति: द्यानत० की लौ लाइ हौ, गाथा-२. २९९. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १५८आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुरनर सुखदाई गिरनारि चलौ; अंति: फलदाता द्यानत सीख बताई, गाथा-२. ३००. पे. नाम. मनिध्यान पद, पृ.१५८आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: भाइ धन मुनि ध्यान लगाई; अंति: द्यानत० रहै है तिन काजै, गाथा-२. ३०१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १५८आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: निरविकलप जोति प्रकाश रही; अंति: द्यानत० जोरे साधु लही, गाथा-२. ३०२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १५८आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: अनहद शबद सदा सुन रे; अंति: द्यानत० नाहि करम धुनि रे, गाथा-२. ३०३. पे. नाम, नेमिजिन पद, पृ. १५९अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरिनारि पै नेम विराजत है; अंति: द्यानत० बहुत उपराजत है, गाथा-२. ३०४. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १५९अ, संपूर्ण. जै.क. मानसिंह, पुहि., पद्य, आदि: मै तो आप मैं आपको आप जाना; अंति: मानसिंघ० दख हं एकमाना, गाथा-२. ३०५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १५९अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जानौ धनसौ धनसौ धीर वीर; अंति: द्यानत० संत भव उदिधि तीर, गाथा-३. ३०६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १५९अ-१५९आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जिन जपि जिन जप जीवरा; अंति: द्यानत० भक्ति नीर सायरा, गाथा-३. ३०७. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १५९आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: जै जै वीतराग महावीर; अंति: द्यानत भजन० दोष न रहै, गाथा-४. ३०८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १५९आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: ग्यान गेय मांहि नांहि गेय; अंति: द्यानत० जब आप आप रट है, गाथा-४. गावा For Private and Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३०९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १५९आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चाहत है सुखपै न गाहत है; अंति: द्यानत० की चतुराई बतिया गाथा-४. ३१०. पे नाम आदिजिन पद, पू. १५९आ-१६०अ, संपूर्ण जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि देखो नाभिनंदन जगवंदन मदन; अति द्यानत० आनि पाइन परत, गाथा-४. ३११. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १६०अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-मोह, जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि पिया वैराग लेत है किसमिस, अंति द्यात० सो विधि मोहि बताय, गाथा - २. ३१२. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १६०अ, संपूर्ण. जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि पिय वैराग लियो है किसमिस अतिः चानत० कृपा करे निज ठाउ, गाथा - २. ३१३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १६०अ, संपूर्ण. जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि नेम गए किह ठाउं दिल में; अंतिः द्यानत० पाउं नैमा नेम, गाथा - ३. ३१४. पे नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १६०-१६०आ, संपूर्ण. नेमराजिमती विवाह पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि ए री सखी नेमजी की मोह; अंति द्यानत० प्रानही साथ दिखावी, गाथा-३. ३१५. पे नाम नेमराजिमती पद, पृ. १६०आ, संपूर्ण जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि मूरत पर वारी रे नेमजिनंद, अति चानत० ग्यानसुधारस इंद्र, " , गाथा - ३. ३१६. पे नाम, नेमराजिमती पद. पू. १६०आ, संपूर्ण जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अब मोह तार ले नेमकुमार खग; अंति: द्यानत० करी जग तैहू निकार, गाथा-३. ३१७. पे नाम, नेमिजिन आरती, पृ. १६० आ, संपूर्ण जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: नेम मोह आरती तेरी हौ; अंति: द्यानत० विनती मेरी हौ, गाथा - २. ३१८. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १६०आ, संपूर्ण. जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मोह तार लै पारसस्वामी; अंति कर द्यानत शिवगामी, गाथा-२. ३१९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १६० आ-१६१अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-दान, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: दीयै दान महासुख पावै; अंति: ० विध वंव न आवै, गाथा-२. ३२०. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १६१अ, संपूर्ण. जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुष्टि, पद्म, वि. १८वी, आदि एसे री मितनी चित कहा अब अति खवरदार किन होवै रे, " गाथा - ३. For Private and Personal Use Only ३२१. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १६१अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं, पद्य, वि. १८वी, आदि पिया रे नेमसी पेम किआ रे; अंति धानत० कोटिक दान दिया रे, गाथा- ३. " ३२२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १६१अ, संपूर्ण. Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५ जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि तारो जिनसाहब जी मोह तारो अति द्यानत० तुम और न तारणहारी, गाधा-३. ३२३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १६१अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि दास तिहारी हूं मोहि तारौ अति चानत० तुम विन कौन " उपाय, गाथा - ३. ३२४. पे. नाम. गौतमस्वामी पद, पृ. १६१अ - १६१आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: गौतमस्वामीजी मोह वाणी तनक; अंति: द्यानत० वाणी सुहाई, गाथा- ३. ३२५. पे. नाम महावीरजिन पद, पृ. १६१आ, संपूर्ण. महावीरजिन पद पावापुरी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि देखे धन धन आज पावापुर अंति: ध्यावै मिट जावै भव भीर, गाथा - २. ३२६. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. १६९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-काशीमंडन, श्राव. मोतीराम, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: धन धन काशी थानक पारसनाथ; अंतिः मोतीराम को दरसन हो है, गाथा-३. ३२७. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १६१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-वाराणसी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चल पूजा कीजै बनारस मैं; अंति धानत वंदे प्रभु के पाई, गाथा- ३. ३२८. पे नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. १६९ आ-१६२अ, संपूर्ण. जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुरि., पद्म, आदि समदशिखर चल रे जियरा बीस; अति सो पावै सुख गाथा-४. अति सियरा, ३२९. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. १६२अ, संपूर्ण. श्राव. सुखानंद साह, पुहिं., पद्य, आदि समेदशिखर मोह भावे है देव, अति साह सुखानंद गावे है, गाथा-३. ३३०. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद पू. १६२अ संपूर्ण. श्राव. मोतीराम, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदिः शिखरसमेद निहारा धन भाग; अंति: मोतीराम० अपना जनम सुधारा, गाथा-४. For Private and Personal Use Only ३३१. पे. नाम. सुदर्शश्रेष्ठि पद, पृ. १६२अ, संपूर्ण. " सुदर्शन श्रेष्ठी पद, जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८बी, आदि सेठ सुदरसण तारनहारा तीन अति द्यानत पायौ मुकत दुवार, गाथा-२. ३३२. पे. नाम. दीपावली पद, पृ. १६२अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: पावापुर प्रभु वंदौ जाय; अंति: अद्भुत पुन्य उपाइ, गाथा- ३. ३३३. पे नाम, साधारणजिन पद. पू. १६२१-१६२ आ. संपूर्ण. जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुहिं. पद्य वि. १८वी, आदि जिनवर मूरति तेरी सोभा कही, अंति द्यानत० मनवचकाय लगावै, गाथा-३. ३३४. पे नाम, मल्लिजिन पद, पृ. १६२आ, संपूर्ण. आव. सुखानंद साह, पुहिं, पद्म, आदि: तार ले मल्लिमुनीस अब मोह; अति: पायी ग्यान सुखानंद इस गाथा-३. ३३५. पे नाम, आदिजिन पद, पृ. १६२आ, संपूर्ण. श्राव. गोकलचंद, पुहिं., पद्य, आदि अब मोहि तारि ले आदिजिनेस अंतिः प्रगट कर गोकलचंद दिनेश, गाथा- ३. ३३६. पे नाम, शीतलजिन पद. पू. १६२आ, संपूर्ण. Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: तार ले मोहि शीतलस्वामी; अंति: वंदत पाय भए शिवगामी, गाथा-३. ३३७. पे. नाम. कलियुग पद-जिनचैत्य, पृ. १६२आ, संपूर्ण. श्राव. चूहडमल, पुहिं., पद्य, आदि: पंचकाल विषै ए श्रावकधर्म; अंति: चूहडमल० इ विध काल गमावै, गाथा-३. ३३८. पे. नाम. जिनवाणी पद, प. १६२आ-१६३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: तारन कौ जिनवाणी मिथ्या; अंति: द्यानत० परम साधन मानी, गाथा-३. ३३९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १६३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: करुना कर देवा एक जनम दुख; अंति: द्यानत० भूलोंगा नही सेवा, गाथा-२. ३४०. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १६३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रभु मैं तुम चरण सरन; अंति: द्यानत० जनम मरन निवार, गाथा-३. ३४१. पे. नाम. सीताराम पद, पृ. १६३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ए रे वीर रामजी सौ कहियौ; अंति: द्यानत० मंत्र जपै अघदात, गाथा-२. ३४२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १६३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: तुम अधम उधारनहार हौ; अंति: द्यानत० चरण सरन आधार हौ, गाथा-२. ३४३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १६३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: कोढी पुरुष कनक तन कीने; अंति: सखात कीने मुनिराई, गाथा-३. ३४४. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. १६३अ-१६३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: अब मोहि तारि ले शांति; अंति: द्यानत० जाको नाम मकरिंद, गाथा-२. ३४५. पे. नाम, वासुपूज्यजिन पद, पृ. १६३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: सरन मोह वासपूज्य जिनवर की; अंति: द्यानत० बंधहरन शिवकर की, गाथा-२. ३४६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १६३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रभु तुम नैन निगोचर; अंति: द्यानत० चरन तरु छाही, गाथा-२. ३४७. पे. नाम. कुंथुजिन पद, पृ. १६३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अब मोह तार ले कुंथुजिनेस; अंति: द्यानत० मुकत वंधु परमेश, गाथा-३. ३४८. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १६३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जाकौ इंद्र अहमिंद भजत चंद; अंति: आदिनाथ देव द्यानत रखवाल, गाथा-४. ३४९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १६४अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ग्याता सोई सचा वै जिन आतम; अंति: द्यानत० ज्यौ दव चावै, गाथा-३. ३५०. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १६४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: जग ठग मित्रनि कोय; अंति: द्यानत० जै साधरमी लोयछो, गाथा-४. ३५१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १६४अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-वैराग्य, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: संसार मैं साता नांही वै; अंति: द्यानत० ते पावै सुखदाई वै, गाथा-३. ३५२. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १६४अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरी मेरी करता जनम सब; अंति: द्यानत० त्याग कै जग जीता, गाथा-३. ३५३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १६४अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-साधुसंगत, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: यारी कीयै साधो नाल पारी; अंति: जगावै द्यानत दीनदयाल, गाथा-३. ३५४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १६४अ-१६४आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: वे परमादी आतम न जान्यौ; अंति: द्यानत० पावै समता स्वादी, गाथा-३. ३५५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १६४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: भोर उठि तेरो मुख देखो जिन; अंति: द्यानत० एक हमारौ सहेवा, गाथा-३. ३५६. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १६४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: रे नर बिपत्ति मैं धर धीर; अंति: द्यानत० तोर करम जंजीर, गाथा-३. ३५७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १६४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जिनपद चाहै नांहि कोय; अंति: द्यानत आप आप समोय, गाथा-३. ३५८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १६४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: लागा आतम रामसौं नेहरा; अंति: द्यानत० वरसै अनंद मेहरा, गाथा-३. ३५९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १६४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अब मोहि तार ले अरु भगवान; अंतिः हित कारण द्यानत मेघ समान, गाथा-३. ३६०. पे. नाम. जंबूस्वामी पद, पृ. १६५अ, संपूर्ण. __जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अरि अरि भज जंबुस्वामी; अंति: द्यानत० पावक कहर पानी, गाथा-२. ३६१. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १६५अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: भज रे मनवा प्रभु पारस कौं; अंति: चाहै पावै ता रसकौं, गाथा-३. ३६२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १६५अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: भजौ जी भजौ जिन चरण; अंति: द्यानत जो चाहै सौदे जी, गाथा-३. ३६३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १६५अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: लगन लागी मोरी पारसनाथ सो; अंति: द्यानत०प्रेम भगत मति पागी, गाथा-३. ३६४. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १६५अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: कहियै जौ कहिवे की होय; अंति: मगन सुजान आन भ्रम खोये, गाथा-२, (वि. गाथाक्रम में भिन्नता है.) ३६५. पे. नाम. मुनिगुण पद, पृ. १६५अ-१६५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: वै साधो जिन गाइ कर करुना; अंति: द्यानत० मेघ झरी बतलाइ, गाथा-३. ३६६. पे. नाम, भरतचक्रवर्ती पद, पृ. १६५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आरसी देखत मन आरसी लागी; अंति: द्यानत केवलग्यान० घट जागी, गाथा-३. ३६७. पे. नाम. भरतचक्रवर्ती पद, पृ. १६५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: कहा री कहूं कछु कहत न आवै; अंति: पैंहो चरण की रजरी, गाथा-३. ३६८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १६५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: हो श्रीजिनराय नीति राजा; अंति: देश निकारौ हौ जिनराय, गाथा-३. ३६९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १६५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अब समझ कही अब कौन कौन; अंति: द्यानत० धरौ तरौ सबही, गाथा-३. ३७०. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १६५आ-१६६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: कर्म की रेखा पै मेख मरै; अंति: वदन द्यानत निहारे, गाथा-४. ३७१. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १६६अ-१६६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: तुम देवनिके देव हौ; अंति: करुणा भावसौं कीजै आप समान, गाथा-१२. ३७२. पे. नाम. जिनभावना अष्टक, पृ. १६६आ-१६७आ, संपूर्ण. जिनभावनाष्टक, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगत उदास आपको प्रकाश संग; अंति: क्यौं न लहै सुखभूर, सवैया-८. ३७३. पे. नाम. चैत्यालय की जयमाल, पृ. १६७आ-१६८आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी शाश्वताशाश्वतजिनचैत्य जयमाल, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चैत्यालय प्रतिमा सवै वंदे; अंति: द्यानत० वंदौ होय अचरज कहा, चौपाई-१४. ३७४. पे. नाम. सज्जनगन दशक, प. १६८आ-१७०अ, संपूर्ण. सज्जनदर्जनगणदशक सवैया, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: तरु की कलम सिद्ध स्याही; अंति: द्यानत० लखै होत पार है, गाथा-११. ३७५. पे. नाम, वर्तमानबीसी दशक चित्त छंद, पृ. १७०अ-१७१अ, संपूर्ण. २० विहरमान कवित्तदशक, जै.क.द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: सीमंधर प्रथम जिन साहब अंत; अंति: द्यानत० सम्यक निरमल सोय, सवैया-१०. ३७६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १७१अ-१७१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९ जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन नागर ही अहो तुम चेतन, अंति द्यानत० न जग में ऐ है, चौपाई - ६. ३७७. पे नाम. सिद्धचक्र पूजा, पृ. १७१आ-१७२अ. संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य वि. १८वी, आदि परमब्रह्म परमातमा परमजोति अति मोक्ष करि जर द्यानत " 1 कहै, चौपाई-७, (वि. पाठभेद है.) ३७८. पे. नाम ग्यानावरनीयसिद्ध आरती पू. १७२अ १७२आ, संपूर्ण. अंति: ज्ञानावरणीय सिद्ध आरती, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मूरत ऊपर पट पर्यौ रूप; द्यानत० नमौ सिद्ध गुनखान, , चौपाई - ६. ३७९, पे. नाम दर्शनावरनीयसिद्ध आरती, पृ. १७२ आ. १७३अ संपूर्ण दर्शनावरणीय सिद्ध आरती, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं, पद्य, आदि जैसे भूपत दरस की होन न अंति द्यानत० अमल अचल चिद्रूप, गाथा-७, (वि. गाथाक्रम में भिन्नता है व अंतिमगाथा में पाठभेद है.) ३८०. पे नाम वेदनीयसिद्ध आरती, पृ. १७३अ १७३आ, संपूर्ण. वेदनीय कर्मनिवारण सिद्ध आरती, जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य वि. १८वी, आदि सहत मली असि धार सुख दुख अंति द्यानत निरवाधा करी, गाथा ८. ३८१. पे. नाम. मोहकर्मनाशसिद्ध आरती, पृ. १७३आ, संपूर्ण. मोहकर्मनिवारण सिद्ध आरती, जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि जैसे मदरापान ते सुध बुध स; अंति: सदा द्यात नमो प्रधान, गाथा-८.. ३८२. पे नाम. ८ कर्मनाशसिद्ध आरती, पृ. १७३आ-१७४अ संपूर्ण.. ८ कर्मनिवारण सिद्ध आरती, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि जैसे नर की पाव दियी काठ अंति अवगाहना नमो सिद्ध सुखदान, चौपाई-८. ३८३. पे. नाम. नामकर्मनाशसिद्ध आरती, पृ. १७४अ - १७४आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. नामकर्मनिवारण सिद्ध आरती, जै.क. धानतराय अग्रवाल, पु,ि पद्म, वि. १८वी, आदि चित्रकार जैसे लिखे नाना; अंति: (-), (पू.वि. चौपाई- १२ अपूर्ण तक है.) ३८४. पे नाम. २४ जिनभक्ति पद, पृ. १९४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: द्यानत० देखि भए सम्यकधारी, चौपाई-२, (पू.वि. चौपाई-१ अपूर्ण है. ३८५. पे नाम. अभिनंदनजिन पद, पृ. १९४अ संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: सेउं स्वामी अभिनंदन कौ ले; अंति: द्यानत० जीते भौफंदनिकी, गाथा-३. ३८६. पे नाम. साधारणजिन पद, पृ. १९४अ, संपूर्ण. श्राव. हेमराज, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऐसे प्रभु ध्याउं दुरगति, अंति: हेमराज० मांगे शिव पाऊं, गाथा-५. ३८७. पे नाम भरतचक्रवर्ती पद, पू. १९४अ संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: एक समै भरतेश्वर स्वामी; अंतिः द्यानत पायौ ग्यान तुरत, गाथा - ३. ३८८. पे. नाम. कश्मीरी भाषा में पद, पृ. १९४अ, संपूर्ण औपदेशिक पद, अ.भा., पद्य, आदि: बूंद पैंच वुझ बाबु दपै; अंति: पानी वथ सुझ वनू, गाथा - १. ३८९. पे नाम साधारणजिन पद, पू. १९४२-१९४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: तू ही मेरा साहिब सच्चा; अंति: द्यानत० लेहू छुडाय गुसांई, गाथा - २. ३९०. पे नाम साधारणजिन पद, पृ. १९४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: सच्चा सांई तू ही मेरा; अंति: द्यानत० को लेहं निकाल, गाथा-३. ३९१. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १९४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: इस जीउं कुंयो समझाउ; अंति: द्यानत० सोह सिख सिखाउ री, गाथा-३. ३९२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १९४आ, संपूर्ण.. औपदेशिक पद-प्रमाद, श्राव. गोकुलचंद, पुहि., पद्य, आदि: क्यौं रहिये परमाद दशा मैं; अंति: गोकलचंद सुशांत रसा मैं, गाथा-४. ३९३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १९४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मौ न मान्यौ री जीव ऐसा; अंति: द्यानत० सब काज सरगौ, गाथा-३. ३९४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १९४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: तुम चेतन हो जिन विषयन संग; अंति: द्यानत० परसौ हेत न हो, गाथा-४. ३९५. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १९४आ-१९५अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ते कहं देखे देखे नेम; अंति: द्यानत० दिवस नवार ते, गाथा-४. ३९६. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १९५अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद-आत्मनिंदा, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: कौन काम मैने कीनो अब लीनो; अंति: द्यानत० जोति प्रकाश हौ, गाथा-४. ३९७. पे. नाम. नेमराजिमती होरी पद, पृ. १९५अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: नेमीश्वर खेलन चले रंग हो; अंति: अधिकाय रंग रंग हो हो होरी, गाथा-४. ३९८. पे. नाम. नेमराजिमती होरी पद, प. १९५अ-१९५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: ग्यान गुलाल सुहावना रंग; अंति: द्यानत० रंग हो हो होरी, गाथा-६. ३९९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १९५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: सोई ग्यान सुधारस पीवै; अंति: नगन काहावै नागा अंबरधारी, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ४००. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १९५आ-१९६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: हो आतम अनुभौ कीजिये यह; अंति: द्यानत० मुकति मझार हौ, गाथा-८. ४०१. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १९६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जानौ पूरा ग्याता सौई रागी; अंति: द्यानत० ताही सौं लौ लाई, गाथा-४. ४०२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १९६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रभु जी का मोह फिकर अपार; अंति: है ज्यौं बने त्यौं त्यार, गाथा-४. ४०३. पे. नाम. वानीसंख्या दोहा, पृ. १९६अ-२०१अ, संपूर्ण. जिनवाणीसंख्या दोहा, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: वंदौ वाणी बरन युग बरग; अंति: द्यानत० घट पट धोखा नाहि, दोहा-११२. ४०४. पे. नाम. आचार्य आरती-३६ गुणगर्भित, पृ. २०१आ-२०२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ आचार्यपद आरती-३६ गुणगर्भित, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: पंचाचार छत्तीस गुन सात; अंति: द्यानत० मोह धुर जाय, गाथा-११. ४०५. पे. नाम, उपाध्याय आरती-२५ गुणगर्भित, पृ. २०२अ-२०३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ग्यारै अंग वखान चौदे पूरव; अंति: द्यानत० ग्यान भ्रम नाही, गाथा-२०. ४०६. पे. नाम. विरागछत्तीसी, पृ. २०३अ-२०४आ, संपूर्ण. वैराग्यछत्रीसी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजितनाथ पद वंदि कै कह; अंति: द्यानतराय पढो सबनि सुखरास, गाथा-३६. ४०७. पे. नाम, सहजसिद्ध अष्टक, पृ. २०४आ-२०५आ, संपूर्ण. सहजसिद्धाष्टक, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परम पूज परमातमा पूजक चेतन; अंति: द्यानत० एकमेक से होर है, गाथा-१०, (वि. पाठभेद है.) ४०८. पे. नाम. पूरनपंचाशिका, पृ. २०५आ-२१३आ, संपूर्ण. पूर्णपंचाशिका, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: नाथनिके नाथ ओ अनाथनिके; अंति: द्यानत० प्रसाद सब नर तरौ, सवैया-५५. ४०९. पे. नाम. जैनतात्त्विक पद-२४ स्थान, पृ. २१३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: चौवीस ठाने मै वेद कषाय; अंति: ठाने जी कौ मेरो नमोकार है, सवैया-३. ४१०. पे. नाम. २४ तीर्थंकर के वंश, पृ. २१३आ, संपूर्ण. २४ जिन पद-वंश, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: संतकुंथअरुनाथ तीन कुरुवंश; अंति: ग्यान रूप सुर आनिये, गाथा-२, (वि. कृति के अंत में वंशावली के अंक दिये हैं.) ४११. पे. नाम, २४ तीर्थंकर के लंछन, पृ. २१३आ-२१४अ, संपूर्ण. २४ जिन पद-लंछन, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: वैल गज घोरा कपि को; अंति: ध्यान सदा मन माहि आनियै, गाथा-४. ४१२. पे. नाम. २४ का तपकाल व्यौहार, पृ. २१४अ, संपूर्ण. २४ जिन पद-छद्मस्थकाल, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: वरस हजार एक वारै चौदे; अंति: सेती कर्म सैल भाने है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में छद्मस्थकाल के वर्ष अंक दिये हैं.) ४१३. पे, नाम, २४ का समोकसरन का व्यौरा, पृ. २१४अ-२१४आ, संपूर्ण. २४ जिन पद-समवसरनमान, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: वारै सढे ग्यारै ग्यारै; अंति: वार है जोजन ___ बात है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में समोसरनमान के अंक दिये हैं.) ४१४. पे. नाम. देहप्रमाण कथन, पृ. २१४आ, संपूर्ण. २४ जिन पद-देहप्रमाण, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: पांच सै धनुष साढेचार; अंति: वरषावै ग्यान मेह है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में देहप्रमाण के अंक दिये हैं.) ४१५. पे. नाम. समोसरन मैं निशान चार लाख सत्तर हजार आठ सौ असी कौ व्यौरा, पृ. २१४आ, संपूर्ण. समवसरण पद-ध्वजसंख्या, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: समोसरन एक दिशा मांहि; अंति: चले ते मनो नाचत अपार है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में ध्वजा के अंक दिये हैं.) ४१६. पे. नाम. सिद्धक्षेत्र स्तुति, पृ. २१४आ-२१५अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: तन वात के पंद्रह सै नव; अंति: दुख भाजत हैं सुख साजत हैं, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में सिद्धक्षेत्र के अंक दिये हैं.) ४१७. पे. नाम. विभागहीन किंचितहीन आचारज उपाध्याय साय जथा, पृ. २१५अ, संपूर्ण. आचार्योपाध्यायसाध पद, जै.क.द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: अठाइ मूल गुना उत्तर; अंति: शिवचाल जगजाल सौ निसर कै, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४१८. पे. नाम, चौदे सै तरेपन गणधर का व्यौरा, पृ. २१५अ, संपूर्ण. २४ जिन गणधर संख्या पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: चौरासी अरु नवै पाँच सौ; अंति: चौदे से त्रैपन लहै, गाथा-३, (वि. कृति के अंत में गणधर संख्यामान के अंक दिये हैं.) ४१९. पे. नाम. वानीसंख्या कवित्त, पृ. २१५अ-२१५आ, संपूर्ण.. द्वादशांगीमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जैती प्रभुजी नी तेती कही; अंति: मन वचतोहि मोहि बुधदानी है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में वाणीसंख्या के अंक दिये हैं.) ४२०. पे. नाम. शाश्वतचैत्यालय उत्कृष्टमध्यमजघन्य तीन्यौ भेद, पृ. २१५आ, संपूर्ण. शाश्वतजिनचैत्यालयद्वारमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: लंबे सौ चार है पचास ऊंचे; अंति: वंदौ मनवचकाय पपजाय नाठ है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में चैत्यालयद्वारमान के अंक दिये हैं.) ४२१. पे. नाम, निरवान भूमि पुनसंख्या वंदन, पृ. २१५आ, संपूर्ण. २४ जिन निर्वाणभूमि पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: अष्टापद आदिनाथ चंपापुर; अंति: कटै करम के जंजीर हैं, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में २४ जिन निर्वाणभूमि के अंक दिये हैं.) ४२२. पे. नाम. समकित पद-उपसम क्षायिक, पृ. २१५आ-२१६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम उपसम सम्यक देशवृत; अंति: जीव एक वार वार छर है, गाथा-४. ४२३. पे. नाम, मतिज्ञान के ३३६ भेद, पृ. २१६अ, संपूर्ण. मतिज्ञान ३३६ भेद पद, जै.क.द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: अवग्रह ईहा औ आवाय धारनाए; अंति: अविकल्पी इस हैं, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में मतिज्ञान भेद के अंक दिये हैं.) ४२४. पे. नाम. वेदकउपसमक्षायकसम्यक्त्व का व्यौरा, पृ. २१६अ-२१६आ, संपूर्ण. वेदकउपसमक्षायकसम्यक्त्व पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: अनंतानबंधी क्रोधी मान; अंति: भाजन में पानी जैसी बात है, गाथा-४. ४२५. पे. नाम. १८ हजार शील के भेद, पृ. २१६आ, संपूर्ण. १८ हजार शीलांग भेद पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: सुर नर पशुनि तीन कृत्य; अंति: बीस सात सै कही सीलब, गाथा-३, (वि. कृति के अंत में शीलांग भेद के अंक दिये हैं.) ४२६. पे. नाम. सर्वप्रकृतिमिथ्यातीजीवउदय पद, पृ. २१६आ, संपूर्ण.. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जथा आहारक चौक मिश्र सम्यक; अंति: ग्यान मांहि झेलै हैं, गाथा-४. ४२७. पे. नाम. २४ ठाने का व्यौरा, पृ. २१६आ-२१७अ, संपूर्ण.. २४ स्थानक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: गति चार इंद्री पाँच काय; अंति: घाट दोसै लाख कोर धार है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में २४ स्थानक पद के अंक दिये हैं.) ४२८. पे. नाम. सिद्धिगमनांतर्गत अव्यवहारराशिनिगोदनिर्गमनजीव पद, पृ. २१७अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जेते मोक्ष जाय तेते नित्य; अंति: रास ध्यावै मोक्ष पावै है, गाथा-४. ४२९. पे. नाम, १८ पाप भेद पद, पृ. २१७अ, संपूर्ण.. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: अविभागी पुगल की परमान एक; अंति: ध्यावै मोक्ष पावै भक्त है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में पाप भेद के अंक दिये हैं.) ४३०. पे. नाम. पर्यायकथन भेद, पृ. २१७अ-२१७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: अनाद अनंत परजाय मेर गिर; अंति: नांहि पर चेतनता सबी है, गाथा-४. ४३१. पे. नाम, ९ उच्चारनयकथन पद, पृ. २१७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: दर्व दर्व को विचार दर्व; अंति: ग्यान समता सहित है, गाथा-४. ४३२. पे. नाम. विरहकाल पाछै आठ समै में ६०८ जीव मोक्ष जांहि कवित्त, पृ. २१७आ-२१८अ, संपूर्ण. विरहकाल पश्चात् सिद्धिगमन जीवसंख्या पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: वतीस अठतालीस साठ जीव; अंति: आठ जीव निरवाणी समै, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ४३३. पे. नाम. षटथानक मैं सहनणांही चौपाई, पृ. २१८अ, संपूर्ण. संहननसंख्या पद-६ स्थानगत, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सुरग नरक एकेंद्री मांहि; अंति: तेरमो चोदमो गुनथान, गाथा-२. ४३४. पे. नाम. आठौ के परजाय तमे प्रान का व्यौरा, पृ. २१८अ, संपूर्ण. ८ स्थाने पर्याप्तिसंख्या पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: एकेंद्री कै चार फरसत; अंति: विना एक आख चौदम भणो, गाथा-२, (वि. कृति के अंत में ८ स्थान पर्याप्तिसंख्या के अंक दिये हैं.) ४३५. पे. नाम. पंचेंद्री ५ केवली छहौ जीव को अप्रजापति में प्राण व्यौरा, पृ. २१८अ-२१८आ, संपूर्ण. ६कायाजीवपर्याप्ति प्राण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर कै तन आ छ प्राण; अंति: कौ अप्रजापत मै कहे जिण, गाथा-२, (वि. कृति के अंत में पर्याप्ति प्राण पद के अंक दिये हैं.) ४३६. पे. नाम, आध्यात्मिक पद-सिद्धावस्था, पृ. २१८आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: दर्व दिष्टा देखें नित; अंति: नांहि आप शुद्ध एक है, गाथा-४. ४३७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद-शिववधु, पृ. २१८आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: ब्रह्मग्यान आनंद जल पूरन; अंति: द्यानत० वचन तनकाय, गाथा-४. ४३८. पे. नाम, तीर्थयात्रा १६ काया पद, पृ. २१८आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सम्यक आचारी ब्रह्मचारी; अंति: द्यानत० वखानै नरनारी है, गाथा-४. ४३९. पे. नाम. रत्नप्रभा पृथ्वी स्थित सुरासुरादिक निवासस्थान पद, पृ. २१८आ-२१९अ, संपूर्ण. रत्नप्रभा पृथ्वीस्थित सुरासुरादिक निवासस्थान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम चित्र पृथवी १०८०००; अंति: ८०००० हजार है असीत हैं, गाथा-४. ४४०. पे. नाम. ढाइ दीप के बाहर मानुषोत्तर पाहाड, पृ. २१९अ, संपूर्ण. मानुषोत्तरपर्वतमान विचार, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गद्य, आदि: १७२१ जोजन काऊंचाहै और; अंति: सरव दिशा मै है सो जानना. ४४१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २१९अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: उत्तम कहाया अधम अधम जोरे; अंति: देह कौन भांत सोभा पाय है, गाथा-३. ४४२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २१९अ-२१९आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: नाथन के नाथ औ अनाथन के; अंति: द्यानत० देखन कौं नाथ हौं, गाथा-४. ४४३. पे. नाम. ७ नरक आय जगलनौ ग्रीवकनो पद, पृ. २१९आ, संपूर्ण. देवनरकायु पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सात नरक आयु जुगलनौ ग्रीवक; अंति: कौं ध्यान मांहि आनियै, गाथा-४, (वि. इस कृति के अंत में देवनरकायु के अंक दिये हैं.) ४४४. पे. नाम. ७ नरक चार प्रकार देव का शरीर की ऊंचाई, पृ. २१९आ, संपूर्ण. देवनरकाय देहमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सातमैं नरक मांहि पांचस; अंति: सवा दोय एक विख्यात है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में देहमान पद के अंक दिये हैं.) ४४५. पे. नाम. महावीरजी के पीछे वासठ वरस लग केवली पद, पृ. २२०अ, संपूर्ण. महावीरजिननिर्वाणोत्तर श्रतस्थिति पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहिं., पद्य, आदि: वासठ वरस लग केवली रहै; ___ अंति: सब साधवहीं के उपगारी थे, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में श्रुतस्थिति पद के अंक दिये हैं.) ४४६. पे. नाम, गुणस्थानक पर्याप्ति पद, पृ. २२०अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: प्रजापति गुनथान सब; अंति: गुन पांचही ठिकाने है, गाथा-४. ४४७. पे. नाम. गुणस्थानक प्राण पद, पृ. २२० अ-२२०आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: मिथ्या मांहि तीन चार; अंति: प्राण दश भाषे भगवान हैं, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४४८. पे. नाम. आश्रव त्रिभंगी कवित्त, पृ. २२०आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहिं., पद्य, आदि: पचपन पचास तेतालीस छयालीस; अंति: करौ धरौ संवर ग्यान, गाथा-२. ४४९. पे. नाम. प्रकतिबंध पद-गणस्थानकगर्भित, पृ. २२०आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: एक सौ सत्तरे एक सौ; अंति: आप अवधि पिछान, गाथा-३. ४५०. पे. नाम, कर्मउदय पद-गुणस्थानकगर्भित, पृ. २२०आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: इक सौ सतरै इक सौ ग्यारै; अंति: उदै भिन्न तब सिद्ध सुकीय, गाथा-२. ४५१. पे. नाम. उदीरना त्रिभंगी, पृ. २२०आ-२२१अ, संपूर्ण. कर्मउदीरना पद-गुणस्थानकगर्भित, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: इक सौ सतरै एक सौ ग्यारै; अंति: करै ग्यान वल सोतु ग्यान, गाथा-४. ४५२. पे. नाम, सत्ता त्रिभंगी, पृ. २२१अ, संपूर्ण. कर्मसत्ता पद-गुणस्थानकगर्भित, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: पहलै सौ अठताल दूजै सौ; अंति: घन उर्ध राजू सैंतालसौं, गाथा-४. ४५३. पे. नाम. भाव त्रिभंगी, पृ. २२१अ-२२१आ, संपूर्ण. भाव पद-गुणस्थानकगर्भित, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: चौतीस बतीस तेतीस छतीस; अंति: ग्यानी ते वखाने है, गाथा-६. ४५४. पे. नाम. ७ नरक चार प्रकार के शरीर की ऊंचाई, पृ. २२१आ, संपूर्ण. देवनरक देहमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहिं., पद्य, आदि: सात मैं नरक मांहि पंचसै; अंति: सौ पढेउ सवा एक ख्यात है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में देहमान के अंक दिये हैं.) ४५५. पे. नाम. तीन बतीस फलावट, पृ. २२१आ, संपूर्ण. १४ राजलोकमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: नीचै वाय छ सै ठावन कोर; अंति: तिरासी चौसे औसनाइस है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में राजलोकमान के अंक दिये हैं.) ४५६. पे. नाम, तीनो लोक ऊंचे चौदे राजु का व्यौरा, पृ. २२१आ-२२२अ, संपूर्ण. १४ राजलोकमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सात नरक तलै एक राजू; अंति: सीस सिद्ध है मौ ध्याए है, गाथा-५, (वि. कृति के अंत में राजलोकमान के अंक दिये हैं.) ४५७. पे. नाम. अधोलोक संख्या विस्तार, पृ. २२२अ, संपूर्ण. अधोलोक संख्यामान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: नाडा संख्या सातमी नरक; अंति: नरक सेती हृदया सुखदाइ है, गाथा-३, (वि. कृति के अंत में संख्यामान पद के अंक दिये हैं.) ४५८. पे. नाम, सिद्धशिलामान पद, पृ. २२२अ-२२२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: चाप तिहाई सब त्रिसनाज; अंति: ताको नमोकार है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में सिद्धशिलामान के अंक दिये हैं.) ४५९. पे. नाम. १४ राजलोक का व्यौरा, पृ. २२२आ, संपूर्ण. १४ राजलोकमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: लोक दक्षन उत्तर एक राजू; अंति: इस उनीस पइह सान है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में राजलोकमान के अंक दिये हैं.) ४६०. पे. नाम. अधोलोक रतन प्रभाव प्रथी प्रवान पद, पृ. २२२आ-२२३अ, संपूर्ण. ७ नरकमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: प्रथम नरक प्रमाने अधोलोक; अंति: नरक घर मामध दुखदानी है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में नरकमान के अंक दिये हैं.) ४६१. पे. नाम, नरक केवली का परमान, पृ. २२३अ, संपूर्ण. नरक बिलमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जोजन को अंत ओदथानक; अंति: जातै छुटै दुख रास है, गाथा-३, (वि. कृति के अंत में विलमान के अंक दिये हैं.) ४६२. पे. नाम. चौरासी लाख वलौं का व्यौरा, पृ. २२३अ, संपूर्ण, For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ५५ ८४ लाख नरकविलमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहिं., पद्य, आदि: तीस लाख पचीस लाख पनरे लाख; अंति: शीत उष्ण दुख टार है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में ८४ लाख विलमान के अंक दिये हैं.) ४६३. पे. नाम. ७ नरक विले संख्या, पृ. २२३अ-२२३आ, संपूर्ण... ७ नरकपाथडा बिलमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सात नरक मांहि उनचास पाथडे; अंति: करो तानो दख गिलै हैं, गाथा-४. ४६४. पे. नाम. जंबुद्वीप की सूची परध फलावट, पृ. २२३आ, संपूर्ण. जंबूद्वीपमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जंबुद्वीप एक लाख की परध; अंति: जाननहार चेतन की चेतना, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में जंबुद्वीपमान के अंक दिये हैं.) ४६५. पे. नाम. धातकीखंडकालोदधिसमद्रपुष्करद्वीपमान पद, पृ. २२३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जंबुद्वीप सेती अगलै सागर; अंति: दीप यौं ही आगै मे वखानिय, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में धातकीखंडादि मान के अंक दिये हैं.) ४६६. पे. नाम. वारै कुलाचल दो इक्षाकार चौदेगिरि का प्रमाण, पृ. २२३आ-२२४अ, संपूर्ण. कोलाचलइक्षकारपर्वतमान पद, जै.क.द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: हिमवन हैं एक भाग महाहिमवन; अंति: आठ सै व्यालीस लील है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में पर्वतमान के अंक दिये हैं.) ४६७. पे. नाम. सुदरसनमेरु को प्रमाण, पृ. २२४अ, संपूर्ण. सुदर्शनमेरुपर्वतप्रमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: मेर की ऊंचाई सब एक लाख; अंति: नमौ नाश कर्म थूलका, गाथा-४. ४६८. पे. नाम. मेरु का फलावट, पृ. २२४अ-२२४आ, संपूर्ण. मेरुपर्वतवनपरिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: भूम पै हजार दशनंदण पै नौ; अंति: बतीस सह जोजण विचार हैं, गाथा-४. ४६९. पे. नाम. मेरुपर्वतमहाविदेह अंतरपरिमाण सवैया, पृ. २२४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: मेरु चोरानवै सै भद्रसाल; अंति: आठ तीर्थंकर तारन तरन हैं, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में नदीजिनमान के अंक दिये हैं.) ४७०. पे. नाम. जंबुद्वीप के बतीस विदेह का प्रमाण, पृ. २२४आ, संपूर्ण. ३२ विदेहप्रमाण पद-जंबुद्वीप, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: जंबुदीप के विह बतीसौं इक; अंति: जीवा जिन हिरदै मैं आने है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में जंबुद्वीप प्रमाण के अंक दिये हैं.) ४७१. पे. नाम. जंबुद्वीप में सब नदी तिनका प्रमाण, पृ. २२४आ-२२५अ, संपूर्ण. जंबूद्वीपनदीपरिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: बत्तीसवे मांही चोसठ है; अंति: प्रतिमाजी ताकौ नमोकार है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में नदीपरिमाण के अंक दिये हैं.) ४७२. पे. नाम. धातकीखंड १४ पर्वत १४ क्षेत्र आदसूचीपरिमाण पद, पृ. २२५अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: भाग एक भाग का प्रमाण० धात; अंति: कहो साचे लोक ईस हैं, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में आदसूचीपरिमाण के अंक दिये हैं.) ४७३. पे. नाम. धातकीखंड १४ पर्वत १४ क्षेत्र मध्यमसूचीपरिमाण पद, पृ. २२५अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: भाग एक भाग का प्रमाण० धात; अंति: कहे केवली प्रकाश है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में मध्यमसूचीपरिमाण के अकं दिये हैं.) ४७४. पे. नाम. धातकीखंड १४ पर्वत १४ क्षेत्र अंतसूचीपरिमाण पद, पृ. २२५अ-२२५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: भाग एक भाग का प्रमाण०; अंति: भाग कहैं माने नाहि सठ है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में अंतसूचीपरिमाण के अंक दिये हैं.) ४७५. पे. नाम, धातकीखंडस्थित भरतक्षेत्रपरिमाण पद, प. २२५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: तेरे लाख का परध इकतालीस; अंति: सब ठावन मैं पाप नठ है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में भरतक्षेत्रपरिमाण के अंक दिये हैं.) ४७६. पे. नाम. धातकीखंड ६४ विदेहपरिमाण पद, पृ. २२५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: धातकीखंडद्वीप के चोसठ; अंति: तीर्थंकर आठ सदी ध्याइयै, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में ६४ विदेहपरिमाण के अंक दिये हैं.) । ४७७. पे. नाम. कालोदधि सूची परध अरुजोजन प्रमाण, पृ. २२६अ, संपूर्ण. कालोदधिपरिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: कालोदधि सूची उनतालीस लख; अंति: ग्यान जहांनन कीन आच हैं, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में कालोदधिपरिमाण के अंक दिये हैं.) ४७८. पे. नाम. लौनौदधि की सूची परध अरु जोजन प्रमाण, पृ. २२६अ, संपूर्ण. लवणोदधिपरिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: लौनौदधि पांच लाख परध; अंति: ताकौ नाउ निज सीस हैं, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में लवणोदधिपरिमाण के अंक दिये हैं.) ४७९. पे. नाम. पौहकरा द्वीप की सूची परध अरु जोजन प्रमाण, पृ. २२६आ, संपूर्ण. पुष्करावर्तद्वीपपरिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: पहकरा सूची लाख पैंतालीस; अंति: __ चैत्यालय ताकौ नमोकार हैं, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में पुष्करावर्तद्वीपपरिमाण के अंक दिये हैं.) ४८०. पे. नाम. पुहकर अरधदीप के चौसठि विदेहतिन का प्रमाण, पृ. २२६आ, संपूर्ण. पुष्करावर्तद्वीप ६४ विदेहपरिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: पुहकर अद्ध मै विदेह; अंति: तीर्थंकर आठ सर्व सीस हैं, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में विदेहपरिमाण के अंक दिये हैं.) ४८१. पे. नाम. पुहकरदीप अर्द्ध पूरव पछम आठ आठ लाख का व्यौरा, पृ. २२६आ-२२७अ, संपूर्ण. पुष्करावर्तद्वीपपूर्वपश्चिमाष्टाष्टलक्षपरिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: चौरानवैसै मेरु भद्रसाल; अंति: आठ० हियै मांहि आनियै, गाथा-४, (वि. कति के अंत में पूर्वपश्चिमपरिमाण के अंक दिये हैं.) ४८२. पे. नाम. पुष्करावर्तद्वीपभरतादि परिमाण पद, पृ. २२७अ, संपूर्ण. पुष्करावर्तभरतादि परिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: भर्त्तखंड एक भाग हैमवंत; अंति: तीर्थंकर आणंद के मेह है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में भरतादि परिमाण के अंक दिये हैं.) ४८३. पे. नाम. ढाइद्वीप मानषेत्तर सुद्धा सुद्धी तीस की परध अरु जोजन सवैया, पृ. २२७अ, संपूर्ण. मानुषोत्तरपरिमाण सवैया, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: माणषोत्तर उरध की सूची; अंति: सतावणो कौ नमो ठाणनी, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में मानुषोत्तरपरिमाण के अंक दिये हैं.) ४८४. पे. नाम. अढाईद्वीप २० नदी पूर्वपश्चिम प्रवाह पद, पृ. २२७अ-२२७आ, संपूर्ण. ढाईद्वीप २० नदी पूर्वपश्चिमप्रवाह पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: हिमवन ऊपर गंगा सिध औ सिखर; अंति: सारी बीस नदी भइ है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में नदी प्रवाह के अंक दिये हैं.) ४८५. पे. नाम. अढाईदीप पचासे नदी ५० उत्तर को दक्षिण कौ गती का व्यौरा, पृ. २२७आ, संपूर्ण. ढाईद्वीप ५० नदी उत्तरदक्षिणप्रवाह पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: हिमवंत तै निकली उत्तर कौं; अंति: भूमि आधी तापै नदी छाजू, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में उत्तरदक्षिण प्रवाह अंक दिये हैं.) ४८६. पे. नाम. अढाईद्वीप ५० नदी पूर्वपश्चिम प्रवाह पद, पृ. २२७आ-२२८अ, संपूर्ण. ढाईद्वीप ५० नदी पूर्वपश्चिमप्रवाह पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: बीस नदी पहाड सेती; अंति: __ पूरवपछम होय सागरम जूरी है, गाथा-४. ४८७. पे. नाम. १४ नदी परिवार सवैया, पृ. २२८अ, संपूर्ण. १४ नदी परिवार पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: गंगासिंधु रकतौदाय चार नदी; अंति: पांच लाख सठ सठही हजार है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में १४ नदीमान के अंक दिये हैं.) ४८८. पे. नाम. ४ मेरुपरिमाण पद, पृ. २२८अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: जड मैं हजार एक ऊंचे; अंति: ग्यान जामै इह विधि राजऐं, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ४८९. पे. नाम. अढाईदीप के जोजन और मानषोत्तर जोजन सवैया, पृ. २२८अ-२२८आ, संपूर्ण. ढाईद्वीप मानुषोत्तरपरिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सौले लाख नौसै तीन कोड; अंति: जिनराज की दहाइ जी, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में अढाई द्वीप मानुषोत्तर परिमाण के अंक दिये हैं.) ४९०. पे. नाम. पंचजोतचक्र की चाल, पृ. २२८आ, संपूर्ण. ज्योतिषचक्रग्रहचाल पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: चंद मंद गति भान शीघ्रगत; अंति: चाली तीनौ ठोर एक सी काल, गाथा-४. ४९१. पे. नाम. सरवग्रह वाहन प्रमाण, पृ. २२८आ, संपूर्ण. ग्रहवाहनप्रमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सोल सोलही हजार देवता लगै; अंति: एक पल सदा चाल कारै हैं, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में ग्रहवाहनप्रमाण के अंक दिये हैं.) ४९२. पे. नाम, भानषटदिशा प्रमान, पृ. २२८आ-२२९अ, संपूर्ण. सूर्यग्रहपरिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: भानता ऊचै सौ नीचै ठारसै; अंति: वंदै प्रतमाजी निरधार है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में सूर्यग्रहपरिमाण के अंक दिये हैं.) ४९३. पे. नाम. पंचजोतचक्राविमान का प्रमान, पृ. २२९अ, संपूर्ण. विमानपरिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: जोजन एक सठ कला छपन; अंति: इम अरध मुटाई ___ मानियै, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में विमानपरिमाण के अंक दिये हैं.) ४९४. पे. नाम. इंद्रादिदशजातदेवकी संख्या, पृ. २२९अ, संपूर्ण. सौधर्मेंद्रदेवपरिवार पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सौधर्म इंद्र समानक चौरासी; अंति: आप भिन्न __जानै है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में इंद्रादिपरिवार के अंक दिये हैं.) ४९५. पे. नाम. सौले सरग में वारै इंद्र का व्यौरा, पृ. २२९अ-२२९आ, संपूर्ण. १६ स्वर्ग १२ इंद्र परिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: आनंद के सुरगधार ताके; अंति: अनुत ईछ हौं उत्तरि दहै, गाथा-४. ४९६. पे. नाम. सौले सुर्ग लीनो नौ ग्रीवक व विमान संख्या व्यौरा, पृ. २२९आ, संपूर्ण.. १६ स्वर्ग ९ ग्रेवेयक विमानसंख्या पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: तेतालीसमें इकहत्तर चौदे; अंतिः रस सत्तर सौले सार है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में विमानसंख्या के अंक दिये हैं.) ४९७. पे. नाम. लोकांतिक पाडे के जीव की संख्या, पृ. २२९आ-२३०अ, संपूर्ण. लोकांतिकदेवसंख्या पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: लोकांतक आठ जात दोहै; अंति: आठसत बीस एकी अवतार हैं, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में देवसंख्या के अंक दिये हैं.) ४९८. पे. नाम. चंदसूरज की गिनती, पृ. २३०अ, संपूर्ण.. चंद्रसूर्यगिनतीसंख्या पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जंबुद्वीप दो लोनोदधि मै; अंति: संख्या एते भाषत मूनीस है, गाथा-४. ४९९. पे. नाम. अढाईद्वीप ध्रुवतारा व प्रतिमा संख्या पद, पृ. २३०अ, संपूर्ण. ढाईद्वीप ध्रुवतारा व प्रतिमासंख्या पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जंबुदीप मै छतीस लौनौदध; अंति: मनवचकाय वंदे सुरईस है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में प्रतिमा के अंक दिये हैं.) ५००. पे. नाम. आदिदशजातिदेवकी सवैया, पृ. २३०अ-२३०आ, संपूर्ण. इंद्रादि १० जाति देव सवैया, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सोधर्मइंद्र समानक चोरासी; अंति: पचोत्तरे छवीस थान ठानै है, गाथा-४. ५०१. पे. नाम. सैले सुर्ग मैं वारै इंद्र का व्यौरा, पृ. २३०आ, संपूर्ण. सर्वदेवलोकेंद्रसंख्या पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: आदि के सुरगरति के चार; अंति: छहौं उत्तरिंद है, गाथा-४. ५०२. पे. नाम. उरध पटल, पृ. २३०आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आध्यात्मिक पद ऊर्ध्वपटल, जै. क. धानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि उरध तेरे सब पटल कहै; अंति: ध्यान मांहि आनिये, गाथा ४. ५०३. पे नाम. द्रव्यगुणपर्याय पद, पू. २३० आ-२३१अ, संपूर्ण. " जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुहिं, पद्य, आदि दर्बन विषै दर्व को विचार अति इसमें पर्याय का विचार, गाथा ५. ५०४. पे. नाम. देवनरकायु पद, पृ. २३१अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: तेतीस बाईस सत्तरै दश सात; अंति: ध्यान मांहि आनियै, गाथा-४. ५०५. पे. नाम. नारकीकर्मप्रकृतिबंध पद, पृ. २३१अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: औदरिक दोय आहारीक दोय नरक; अंति: सब नाशै शिवथानी है, गाथा-४. ५०६. पे. नाम. नामकर्मप्रकृतिभेद पद, पृ. २३१अ - २३१आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: तन बंधन संघात वरन रस जात; अंति: तीर्थंकर जीवंदौ अघनाश है, गाथा-४. ५०७. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २३१आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जाकौ जानौ संतति न कहि सकै; अंति: सदा ग्यान रूप यह आत्मा, गाथा-४. ५०८. पे नाम. चक्रीसकोवरनन सवैचा, पृ. २३१आ, संपूर्ण. " चक्रवर्तीसमृद्धि पद, जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि हाथी चौरासी लाख धोरी भी अति दो घरी मैं कर्म वनजार हैं, गाथा-४. ५०९. पे. नाम. ग्यानचोवीसी छंद, पृ. २३१आ, संपूर्ण. ज्ञानचौवीसी छंद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: भान भो भावना ग्यान लौं; अंति: सौखकौं लटकै अठकौं जारि है, सवैया- १. ५१०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २३१-२३२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: चाहत है सुख पै न गाहत है; अंति: द्यानत० की चतुराई वतिया, गाथा-३. ५११. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २३२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: कौ गुरु सार वरै शिव कौन, अंति: द्यानत० सदा जपि लीजै, गाथा-४. ५१२. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २३२अ, संपूर्ण. जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि कीन बुरातम कीन हरे तजिये, अति द्यानत० सदा जपि लीजे, गाथा ४. ५१३. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. २३२अ संपूर्ण. जै.. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: माय होय बालक को मारे तो अंतिः विसस करे धेरै का की आसजी, गाथा-४. ५१४. पे नाम औपदेशिक पद, प्र. २३२२-२३२आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-श्रोतावक्ता, जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि वकता हे ग्यानी श्रोता अंतिः धकेली तो दोउ क्रूप पर है, गाथा-४. ५१५. पे नाम. अभयदान पद, पृ. २३२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: औषध आहार ग्यान दया वढे; अंति: राजा मांहि राजपट लीया है, गाथा-४. ५१६. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. २३२आ, संपूर्ण जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: निरधन दरव पाय साह देखि; अंति: वल जान वक राम गावै है, गाथा-४. ५१७. पे नाम औपदेशिक पद, पू. २३२-२३३अ. संपूर्ण. जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि नियत घोटी साज नाज महिगा; अति प्रानी तो सुख पावै सबहीं, गाथा ४. " For Private and Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१८. पे नाम औपदेशिक पद, पू. २३३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: मातपीत की रीत मिलत नहि मन; अंति: नही सरल चाल ग्यानी गाही, गाथा-४. ५१९. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. २३३अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-सुखदुःख, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: एक दिन व्याह कौ उच्छह हरष; अंति: और औचि कहि ठाही है, गाथा-४. ५२०. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. २३३अ संपूर्ण. औपदेशिक पद अन्यायोपार्जितद्रव्य, जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि पाप से दर्द आवे पाप काज; अति: आंख मीचे कैसे से तरेगा, गाथा-४. ५२१. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. २३३-२३३आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-मुक्ति, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: इंद्री पांच चौ कषाय चौ; अंति: द्यानत० चलै सरधानी सोइ है, गाथा- ४. ५२२. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २३३आ, संपूर्ण. जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि कीजै कौन काम अब जैये कौन अति ग्यान मांहि चित दीजिये, गाथा ४. ५२३. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. २३३आ, संपूर्ण. ५९ जै.. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि एक रोज रोजगारही को ढूंढत; अति ब्रह्मग्यानी जीव भावै हौ, गाथा-४. ५२४. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. २३३आ, संपूर्ण. जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुहिं, पद्य, आदि दोहना एक बार रोटी मिले, अंति: ग्यानी सुखी निहार, गाथा - १. ५२५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २३३-२३४अ, संपूर्ण. जै.क. धानतराव अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: गुन अनंत भगवंत छयालीस अंतिः गाउं सदा हूजे सदा सहाय जी, गाथा-४. ५२६. पे नाम. प्रास्ताविक पद, पृ. २३४अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: पंच नरक रार सेती ढग चोर; अंति: परवत को धम वजर फोर है, गाथा-४. ५२७. पे नाम. प्रास्ताविक पद, पृ. २३४अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराव अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि दुरजनमों वास सेती सिघ, अंति पर्वत की वजर फोर है, गाथा-४. ५२८. पे. नाम. प्रास्ताविक पद, पृ. २३४अ - २३४आ, संपूर्ण. जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि रोगपंथ की सतावे नारवस्त; अंतिः ठाह आहार सी क्याहे तहे, गाथा ४. ५२९. पे नाम. प्रास्ताविक पद, पृ. २३४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: निर्धन द्रव्य पाय साह देख; अंति: दुरबल जान बकरा मगावै है, गाथा-४. ५३०. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. २३४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सलल मै महामच्छ छोटे मिन; अंति: विख्यात और नांहि वात है, गाथा-४. ५३१. पे. नाम. कल्याणक छप्प, पृ. २३४आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परम जनम तप ग्यान परम; मैं भी तरौ, गाथा- ४. ५३२. पे नाम, २४ जिन चौपाई, पृ. २३४आ-२३५अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि ऋषभनाथ सुखदातार अजीत करम अति: बंदी सिद्ध सिद्धदातार, चौपाई १०. ५३३. पे. नाम. ग्यानी का लक्षण, पृ. २३५अ - २३५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only अंति: : तुम प्रसाद Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir f कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक पद-ज्ञानीलक्षण, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: क्रोध सोइ जो करै करमौं; अंति: द्यानत सज्जन सौं कहिलावै, गाथा-३. ५३४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २३५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: पीरसो परपीर वडारत धीर सोइ; अंति: अंजन सोजु निरंजन सूजै, गाथा-४. ५३५. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. २३५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: भोग रोगसु देख जोग उपयोग; अंति: झटक दिशा ऐसी भइ, गाथा-४. ५३६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २३५आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-श्रद्धा, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: तिहूकाल षटद्रव्य पदार्थनो; अंति: धन सरधा यह विध कही, गाथा-४. ५३७. पे. नाम. पुण्यपापप्रकृति पद-बंधघातविपाकी, पृ. २३५आ-२३६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: बंध एक सो वीस उदै सो बाईस; अंति: भिन्न सिद्ध सिद्ध दीस हैं, गाथा-४. ५३८. पे. नाम. पाप की प्रकृति १०० नाम सवैया, पृ. २३६अ, संपूर्ण. पापप्रकृति १०० नाम सवैया, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: घात सैंतालीस दुख निच नर; अंति: सौ भेद त्याग धर्म जानिय, सवैया-४. ५३९. पे. नाम, पुण्य की ६८ प्रकृति वर्णन सवैया, पृ. २३६अ, संपूर्ण. पुण्यप्रकृति ६८ नाम सवैया, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: सुरनरपशु आठ साता ऊंच भली; अंति: कौं वंदौ अघनाश हैं, सवैया-४. ५४०. पे. नाम. वेदनिर्णय चौपाई, पृ. २३६अ-२३६आ, संपूर्ण. पुरुषादिवेदनिर्णय चौपाई, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: तिय कौ भावसै न जो धरै; अंति: अभाव भागै दोय एक ही आव, चौपाई-६. ५४१. पे. नाम. सिद्ध पद, पृ. २३६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: सिद्ध महासुख रूप करम सब; अंति: मन तै छुटै ग्यान उपजाय कै, गाथा-२. ५४२. पे. नाम. देवगुरु पद, पृ. २३६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: वंदौ नमिजिनिंद सुगुन मन; अंति: कछु कर्मकांड आगम अगम, गाथा-४. ५४३. पे. नाम. अरिहंतपद सवैया, पृ. २३६आ-२३७अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जैसै हे मम पाहन मै कीट है; अंति: रहित तैसै अरिहंत कहै हैं, सवैया-३. ५४४. पे. नाम. औपदेशिक पद-कर्म, पृ. २३७अ, संपूर्ण.. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: जैसै लोह गोलै कौं लुहार; अंति: गहै सदा तातै कर्म वै चहै, गाथा-४. ५४५. पे. नाम. साधारणजिन पद-५ शरीरस्थितिगर्भित, पृ. २३७अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: औदरिक के देह की कही है; अंति: द्यानत० जु आपन वडे ईस हौ, गाथा-४. ५४६. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २३७अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं, पद्य, आदि: करमजाति करि करम एक हैं; अंति: परमेश्वर सौं लौ लाव, गाथा-२. ५४७. पे. नाम, ४ घातकषाय पद, पृ. २३७अ-२३७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: चार घात कषाय सेती छायक; अंति: करतारि सबल ए निरधार हैं, गाथा-४. ५४८. पे. नाम, ८ कर्म पद-घातिअघाति, प. २३७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: करम आठ जात गुण आठ के अछाद; अंति: समजि नेम कै विहार हैं, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ५४९. पे. नाम. ॐकार अक्षर, पृ. २३७आ-२३९अ, संपूर्ण. अक्षरचतुर्दशी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: ॐकार प्रथम परम वंदौ स्वर; अंति: द्यानत० ग्रंथ बहुत वढ जाय, गाथा-१४, (वि. कृति के अंत में ॐकार अक्षर के अर्थ का वर्णन अंकमय सहित दिया है) ५५०. पे. नाम, समोसरन वर्णन, पृ. २३९अ-२४०आ, संपूर्ण. समवसरणवर्णन चौपाई, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: समोसरन के स्वामी को वंदौ; अंति: द्यानत० कहि है निरवाहै, चौपाई-३०. ५५१. पे. नाम. ग्यानपचीसी, पृ. २४०आ-२४१आ, संपूर्ण. ज्ञानपच्चीसी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: रागमई जदि होत है पर संजोग; अंति: द्यानत० के आपआ होय जाय, गाथा-२५. ५५२. पे. नाम, फुटकर कवित्त, पृ. २४१आ-२४४अ, संपूर्ण. प्रास्ताविक कवित्त, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: मान अंगीकार मद पीवत है; अंति: मधुर है राव रे पयान की, सवैया-१७. ५५३. पे. नाम. प्रतिमाबहत्तरी, पृ. २४४अ-२४८अ, संपूर्ण. द्यानतविलास, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १७८१, आदि: दुखहरन सब सुखकरन श्रीजिन; अंति: द्यानत० प्रतिमा जोग, गाथा-७२. ५५४. पे. नाम. जिनपूजाष्टक, पृ. २४८अ-२४८आ, संपूर्ण. जिनपूजा अष्टप्रकारी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी श्रीजिनराज जहा जहौ; अंति: द्यानतदास निहार स्वामी, गाथा-१०. ५५५. पे. नाम. २४ गणधर की आरती, पृ. २४८आ-२४९आ, संपूर्ण. २४ गणधर आरती, श्राव. भवानीदास, पुहि., पद्य, आदि: आदिपुरुष ते आदिदेव रधमात; अंति: भवानीदास कौ मनवंछत सुखसार, दोहा-८. ५५६. पे. नाम. कालसाठिका, पृ. २४९आ-२५४अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: काल इव क भेद वह जीत भये; अंति: द्यानत० मांहि भजि रह्यौ, गाथा-५९. ५५७. पे. नाम. विद्युतचोर कथा, पृ. २५४अ-२५५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: वंदौ श्रीजिनराज पद सुख; अंति: कही हेत भवानीदास, चौपाई-४०. ५५८. पे. नाम. ४६ गुण की जयमाल, पृ. २५५आ-२५७अ, संपूर्ण. ४६ गुण जयमाल, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रभु तुम सुगन अनंत है; अंति: द्यानत० करी है निरवाहै, चौपाई-१७. ५५९. पे. नाम. संघपचीसी, पृ. २५७अ-२५८अ, संपूर्ण. संघपच्चीसी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभदेव महावीरजी चौवीसौं; अंति: द्यानत० जाये भ्रमजाल, चौपाई-२५. ५६०. पे. नाम. अक्षर आरती, पृ. २५८अ-२५९अ, संपूर्ण. ॐकार अक्षर आरती, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ॐकार सब मई सब अक्षर को; अंति: द्यानत० राख चरण तरु छाह, गाथा-१६. ५६१. पे. नाम.६ काय शिक्षा, प. २५९अ-२६०अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: काय छहौं करुणा करी भए; अंति: द्यानत० मांहि सदा मन लाउं, दोहा-१०. ५६२. पे. नाम. अठोत्तरसौ गुण की जेमाल, पृ. २६०अ-२६०आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अठोत्तरसौ गुण जयमाल, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ॐकार तू ही निरधार तू ही; अंति: द्यानत करो निहाल, गाथा-२७. ५६३. पे. नाम, पंचेद्री का कथन, पृ. २६०आ-२६५अ, संपूर्ण. पंचेंद्रियकथा चौपाई, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मन रीज विकल्प उजार है सौ; अंति: द्यानत० जगतराय जग जान, चौपाई-९४. ५६४. पे. नाम, मोहकर्म की प्रकृत, पृ. २६५अ, संपूर्ण. २८ प्रकृति पद-मोहनीयकर्म, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: अनंतानबंधि औ अप्रत्याख्या; अंति: सम्यक छायक सोभ है, गाथा-४. ५६५. पे. नाम. सूमसूमनी की कथा, पृ. २६५अ-२६९अ, संपूर्ण. समसूमनीकथा चौपाई, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: धन न दीन्ही संसार मैं; अंति: द्यानत० पावै साहिब अमर, चौपाई-७५. ५६६. पे. नाम. नारीचरित्त, पृ. २६९अ-२७०अ, संपूर्ण. नारी चरित्र, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुख करता तिहु जगतपति नमो; अंति: द्यानत० यहै ग्यान कौ उर, चौपाई-२०. ५६७. पे. नाम. चक्रीसनत्कुमार की कथा, पृ. २७०अ-२७२अ, संपूर्ण. चक्रवर्तीसनतकुमारकथा चौपाई, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: पंच परम गुर को नमो सुरग; अंति: द्यानत कही आतमहित उपदेश, चौपाई-३९. ५६८. पे. नाम, छयालीस सुगुन चौपाई, पृ. २७२अ-२७३आ, संपूर्ण. ४६ सगुन चौपाई, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: वंदी आदिसुर सुखकार अजित; अंति: दोष न रहत सुगन छयालीस जान, चौपाई-२८. ५६९. पे. नाम. जीव वसत के कथन दोष, पृ. २७३आ, संपूर्ण. जीवदोष पद-गुणस्थानकादिगर्भित, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: संखेप दुतिप विस्तार मोह; अंति: तेइ धन जिनके घट सरधान, पद-२. ५७०. पे. नाम.५० दोहा, पृ. २७४अ-२७६अ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा-५०, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: राग विरोध विमोह वस भमै; अंति: शुक्लध्यान शिवथान, दोहा-५०. ५७१. पे. नाम. सहजसिद्ध के अष्ट, पृ. २७६अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. सहजसिद्धपूजा अष्टप्रकारी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सेव साध परमातमा सेवक साधक; अंति: पूजो सदा कौन रहे भवकूप, दोहा-९. ५७२. पे. नाम. सहजसिद्धपूजा अष्टप्रकारी, पृ. २७६अ-२७६आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: अमल अचल अविकल अतुल अमन; अंति: पूजो सदा कौं नर है भववास, दोहा-१०, (वि. गाथाक्रम में वैविध्यता है.) ५७३. पे. नाम. गुन के अष्टक, पृ. २७६आ-२७७आ, संपूर्ण. गुरु अष्टप्रकारी पूजा, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: चहूं गति उख सागर विषै; अंति: सुपूज्य निज गुन जजत हौं, चौपाई-१०. ५७४. पे. नाम. देवशास्त्र गुरु की आरती, पृ. २७७आ-२७८अ, संपूर्ण. देवगरुशास्त्र आरती, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: देव शास्त्र गुर रतन सुभ; अंति: सरधावान अजर अमर सूख भोगवै, गाथा-८. ५७५. पे. नाम, सिद्धपद दोहा, पृ. २७८अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ " जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुर्हि, पद्य, आदि सहज जीव चेतनमई विधि वस; अंति: भय सिद्ध मुक्तहूं काल, दोहा-५. ५७६. पे नाम. विविधजिन पदावली, पृ. २७८अ २८१आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुठि, पद्य, वि. १८वी, आदि अब के तारौ जैनराय अब अति द्यानत० दिन समकित " आनी (वि. कर्ता ने प्रत्येक पद के अंत में अपना नाम लिया है.) ५७७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २८१आ, संपूर्ण. श्राव. हेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: आतम आतम पर पर सरधा पावन; अंति: हेमराज० अनभो रस छानौ, गाथा-३. ५७८. पे. नाम. सुमतिकुमति पद, पृ. २८१आ-२८२अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्राव. हेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: मोसी राधा सुमति विसारी; अंति: हेमराज० पद ज्यौ स्थनौ, गाथा-३. ५७९. पे. नाम. अकृतम चैत्यालय की जैमाला, पृ. २८२अ २८२आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. शाश्वताशाश्वतजिनचैत्य जयमाल, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: तीन लोक प्रतमा सवै वंदत; अंति द्यानत० बंदी होय अचरज कहा, चौपाई १६. ५८०. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. २८२आ- २८३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: गरीखम के तेज सूर गरमी परम; अंति: मुनराज करे आत कौ काज है, पद- ३. ५८१. पे. नाम. शुभअशुभप्रकृत का बंध, पृ. २८३अ-२८३आ, संपूर्ण. शुभाशुभप्रकृतिबंध कवित्त, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं, पद्य, आदि जीव में अनंत गुण तामें एक अंतिः तस मेरो ग्यान आन हो, पद-३. ५८२. पे नाम. ४६ बोध, पृ. २८३आ- २८६अ, संपूर्ण. २८३आ-२८६अ, ४६ जिनवाणीबोध दोहा, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: पंच परमपद पद नमो; अंतिः द्यानत० तेई गुन गंभीर, दोहा-४६. ५८३. पे नाम. पूरनतावीसी, पृ. २८६अ २८७अ संपूर्ण. " आगमविलास प्रशस्ति, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १७८३, आदि: यह मन मांहि विचार जगतराय; अति मति मण जाके भाग हैं, सवैया-२०. १२०३३२ (४) योगचिंतामणि सह वालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २९x१४, १२X३४). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं. पद्य वि. १७वी आदिः यत्र विनासमायांति अति (-), (अपूर्ण, 1 पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण अध्याय १ श्लोक ८ तक लिखा है.) "" योगचिंतामणि- बालावबोध, आ. अमरकीर्तिसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ प्रणम्यादौ अति (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १२०३३६ (+) १० लक्षण उद्यापनमंडलपूजा विधि, संपूर्ण वि. १९२५, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पू. ३०, प्रले. श्राव. दिलसुख कागला, लिख श्राव. नानगरामजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी वसल० उदा, वसलखन, दसलखनमंडलपूजा., संशोधित. दे. (२९.५x१४, १०४४७) " ६३ १० लक्षण उद्यापनमंडलपूजा विधि, पुहिं. सं., प+ग., वि. १८८०, आदि: विमल सुगुन समृद्धि; अंतिः अष्टादशशतक उपरि असीय धार. १२०३४३. (+) प्रतिष्ठा कल्प, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४०, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी : प्रतिष्ठाविधि, पदच्छेद सूचक 1 लकीरें-संशोधित., दे., (२९x१५, १०X३७). जिनबिंबप्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: (-), (पू. वि. मुद्राविधिगत कवचमुद्रा तक है.) For Private and Personal Use Only יי Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२०३४४. जीवचरित्र भाषा, संपूर्ण, वि. १९४२, चैत्र कृष्ण, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. मिर्जापुर, प्रले. भारत सिंह, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. प्रत के अंत में मालिकाना हक के बारे में उल्लेख किया गया है., दे., (२९४१५, ९x४६). चेतन चरित्र, मु. भावसिंघ, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम जपत जिनराज; अंति: भोगि के अंत मे शिव पद पाइ, ढाल-१४, गाथा-२५०. १२०३४५. ४५८ जिनमंदिर सिद्धकूट पूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९४३, आश्विन कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १७२, ले.स्थल. कलकता, प्रले. श्राव. चंद्रहंस जायसवाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ५०००, दे., (२९x१५, ९४३१). १३ द्वीप जिनपूजा विधि, क. लालजी, पुहि., पद्य, वि. १८७०, आदि: श्रीअरिहंत प्रणाम करि पंच; अंति: पाठ लाल जोत यों प्रकाश है, पूजा-६२, ग्रं. १९३०. १२०३४८, (+) पंचमीतिथिव्रत उद्यापन विधि व चिंतामणि पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१७(१ से १७)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२९४१४.५, १२४३३). १.पे. नाम. पंचमीतिथिव्रत उद्यापन विधि, पृ. १८अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. पंचमीतिथि व्रतोद्यापन विधि, मु. हर्षकीर्ति, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (१)सुखमस्मिहर्षधैर्योपयुक्तौ, (२)मोक्षसौख्यं ददातु, गाथा-१२, (पू.वि. श्लोक-९ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. चिंतामणि पूजा, पृ. १८अ-१८आ, अपर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. पार्श्वजिनद्वात्रिंशिका-चिंतामणि, आ. जिनपतिसूरि, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं देव देव जगदानंद; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१६ अपूर्ण तक है., वि. श्लोक-१४ के बीच लाल स्याही से 'इति चिंतामनिनामचक्रं त्रैलोक्यदीपकं' लिखा गया है.) १२०३५१. (+) समवसरण पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२,प्र.वि. हंडी:समवसर्न०., संशोधित., जैदे., (२८.५४१५, १६४३८-४४). समवसरण पूजा, क. बुधजन कवि, पुहिं., पद्य, वि. १८३४, आदि: पंच परम गुरु को नमो मन वच; अंति: अष्टमी शुक्रवार परमानि, गाथा-७२३.. १२०३५२. (+) नवस्मरण व गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. २१वी, श्रेष्ठ, पृ. ६४, कुल पे. २, प्र.वि. आधुनिक प्रत है., संशोधित., दे., (२८.५४१४.५, ५-७४२१). १. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १अ-४९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:श्रीनवस्मरण. म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण; अंति: जैनं जयति शासनं, स्मरण-९. २.पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. ५०अ-६४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:श्रीगौतमस्वामिनो रास. गौतमस्वामी रास-बृहत्, मु. उदयवंत, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिनेसर चरणकमल कमला; अंति: उदयवत० आशा फले ए, ढाल-६, गाथा-६२. १२०३५५. मेघदूत सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५+१(५)=६, जैदे., (२९x१२.५, २२४८४). मेघदूत, क. कालिदास, सं., पद्य, आदि: कश्चित्कांताविरहगुरु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३६ अपूर्ण तक लिखा है.) मेघदूत-वृत्ति, सं., गद्य, आदि: श्रीचिंतामणि पार्श्व; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १२०३५६. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-१२(१ से १२)=९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२९x१४, ११४३२). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. करेमिभंतेसूत्र अपूर्ण से ___ जयवीरायसूत्र अपूर्ण तक है.) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२०३५७. (#) सारस्वत व्याकरण सह विषमार्थदीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १७०१-१७०४ कृष्ण, १३, मंगलवार, जीर्ण, पृ. १२८-५९(२१ से २३,५२ से ९९,११५ से १२१,१२३)=६९, प्रले. डागा; अन्य. मु. हीरानंदविजय; हीराशंकर; राज्यकाल रा. शाहजहाँ; रा. जसवंतसिंह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पत्रांक-१६ पर संवत् १७०१ कुमार सितपक्ष ३ का उल्लेख मिलता है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१४, १५४३७-४२). सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सारस्वत व्याकरण, आ. अनभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: (-), (पू.वि. वृत्ति-१ विसर्गसंधि अपूर्ण नहीं है, स्वरांत स्त्रीलिंग प्रकरण से कारक प्रकरण तक नहीं है व तत्पुरुष समास प्रकरण से कर्मणि प्रत्यय तक नहीं है.) सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सारस्वत व्याकरण की विषमार्थदीपिका टीका, उपा. पद्मचंद्र, सं., गद्य, आदि: श्रीनागेशमुखं नत्वा; अंति: शब्देभ्यः परिकीर्तितः. १२०३५८. ८ कर्मदहनपूजा विधान, अपूर्ण, वि. १८९९, वैशाख कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. २५-१(२)=२४, प्र.वि. हुंडी:कर्मद०., जैदे., (२९४१४.५, १०४३७). ८ कर्मदहनपूजा विधान, जै.क. टेकचंद, पुहि., प+ग., आदि: लोक शिखर तन छाडिअ मूर्ति; अंति: शिव सुख लहै और कहा अधिकाय, (पू.वि. सिद्ध परमेष्ठि चंदनपूजा अपूर्ण से फलपूजा अपूर्ण तक नहीं है.) १२०३६०.२४ मांडला, पडिलेहन विधि व पौषध विधि आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ५, गु., (२८.५४१२.५, १०४३६). १. पे. नाम. २४ मांडला, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ स्थंडिल मांडला विधि, प्रा., गद्य, आदि: आघाडे आसन्ने उच्चारे; अंति: दरे पासवणे अहियासे. २. पे. नाम. पडिलेहन विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: मनगुपती वचनगुपती कायगुपती. ३. पे. नाम. पौषध विधि, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. पौषध विधि *, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: अप्पाणं वोसिरामि. ४. पे. नाम, मन्हजिणाणं सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्हजिणाणं आणं मिच्छ; अंति: निच्चं सुगुरूवएसेणं, गाथा-५. ५. पे. नाम. संथारापोरसीसूत्र, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: मिच्छामिदक्कडं तस्स, गाथा-१४. १२०३६५ (+) बीजचर्चा, संपूर्ण, वि. १९०९, मध्यम, पृ. १०, प्रले. विष्णुदत्त उपाध्याय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२९.५४१३, १३४५०). सचित्ताचित्त विचार-बीज, उपा. शंभुराम, पुहि., गद्य, आदि: जिनवर वानी गुरु चरण नमन; अंति: किया जयपुर नगर प्रमाण. १२०३७४. (+#) रामयशोरसायन चौपाई, अपूर्ण, वि. १९०५, आश्विन शुक्ल, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४८-२२(१ से ७,१२ से १३,२५ से ३०,३९,४१,४३ से ४७)=२६, प्रले. मु. नंदरामजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रामरसछइ, श्रीरामरसय. श्री राजारामजी की प्रत की प्रतिलिपि है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२९x१३.५, २१४६०). रामयशोरसायन चौपाई, म. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदिः (-); अंति: जंपै सदाहर्ष वधामणी, अधिकार-४ ढाल-६२, गाथा-३१९१, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., अधिकार-१ ढाल-११ गाथा-११ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) For Private and Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२०३७६. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७३-६७(१ से २२,२४ से ५०,५३ से ६६,६८ से ६९,७१ से ७२)=६, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्रपत्र., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३, १२४३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्वप्न-१२ अपूर्ण से स्थविरावली गोदासगण शाखा अधिकार अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२०३७८. शत्रुजय उद्धार व औपदेशिक गहुंली, संपूर्ण, वि. १९४५, आश्विन शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. अगस्तपुर, प्रले. मु. मोहनविजय; उप. पं. दोलतरुचि; पठ. श्रावि. जीवीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसुमतिनाथजी प्रसादात्., दे., (२८.५४१३.५, ११४३२-४३). १. पे. नाम, शत्रुजय उद्धार, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: करे वा देहिं दरसन जय करो, ढाल-१२, गाथा-१२०, ग्रं. १७०. २. पे. नाम. औपदेशिक गहुंली, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. दोलत, मा.गु., पद्य, आदि: सासन वरते जिणंदवीर; अंति: कहे दोलत घरे लावो, गाथा-८. १२०३७९ (#) पाशाकेवली-भाषा, जैनशारदापूजन विधि व जैनमंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २१वी, मध्यम, पृ. १५-८(२ से ४,८,१०,१२ से १४), कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, गु., (२८.५४१४,१५४३५). १. पे. नाम. पाशाकेवली-भाषा, पृ. १आ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शकुन अंक-१२४ से ११४ तक व अंक-३२१ से नहीं है.) २. पे. नाम. जैनशारदापूजन विधि, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.. गु.,सं., प+ग., आदि: शुभ मुहर्ते सारा चोघडी; अंति: जे द्रव्यना पूजा अनुक्रमे. ३. पे. नाम. जैनमंत्र संग्रह, पृ. ९अ-१५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. जैन मंत्र संग्रह-सामान्य , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२०३८०. ८ मदनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. खडा लेखन., दे., (२७.५४१४.५, ३१x११-१८). ८ मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मद आठ महामुनि वारिये; अंति: अविचल पदवी नरनारी रे, गाथा-११. १२०३८६. भगवतीसूत्र-शतक ९ उद्देशक ३३ देवानंदाधिकार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.७-२(१ से २)=५, प्र.वि. हुंडी:देवानंदा., दे., (२८x१३, ७४३६). भगवतीसूत्र-शतक ९ उद्देशक ३३ गत देवानंदाधिकार, हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: जाव सव्वदुक्खप्पहीणे, (पू.वि. महावीरस्वामी के दर्शन हेतु प्रयाण प्रसंग अपूर्ण से है.) भगवतीसूत्र-शतक ९ उद्देशक ३३ गत देवानंदाधिकार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मोक्ष अनंता सुखाम. १२०३८७. विवाहपडल का पद्यानुवाद व विवाहपढल सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९२२, माघ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. २६-६(२ से ७)=२०, कुल पे. २, प्रले. मु. गुलाबविजय (गुरु पं. सुखविजय); गुपि.पं. सुखविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१४४९) जादृशं पुस्तकं द्रिष्टवा, दे., (२८.५४१३.५, १२४३६). १. पे. नाम. विवाहपडल का पद्यानुवाद, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी पद वंदी करी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० तक २. पे. नाम, विवाहपढल सह टबार्थ, पृ. ८अ-२६आ, संपूर्ण. विवाहपडल, सं., पद्य, आदि: जंभाराति पुरोहिते; अंति: तै व: लग्नस्य कारणं, श्लोक-१५५. विवाहपडल-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जंभनामा दैत्य तेहनो वैरी; अंति: मोटा ग्रंथाथी विचारवा. For Private and Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२०३८८. महानिशीथसूत्र, अपूर्ण, वि. १६५६, वैशाख शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १०० - १ ( १ ) = ९९, प्रले. पं. विमल, सूत्र, महानिश्र., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२९x१३, १५X४४). प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी : नि० , महानिशीथसूत्र, प्रा. गद्य, आदि (-); अति व महानिसीहम्मि पाएण, अध्ययन-६ (पू.वि. अध्ययन- १ का प्रारंभिक पाठ नहीं है., वि. चूलिका-२) १२०३९२ (+) अवंतिसुकुमाल रास, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. ६ प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२८.५x१३, १४४३१). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: हर्ष सुख पावी रे, ढाल - १३, गाथा - १०३. १२०३९४. रघुवंश की शिशुबोधिनी टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २५-२२(१ से २२) = ३. पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैवे., ( २९x१३, ११x४२). रघुवंश - शिशुबोधिनी टीका. ग. गुणरत्न, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि (-) अंति (-), (पू.वि. सर्ग-२ श्लोक-५४ की टीका अपूर्ण से सर्ग-३ श्लोक-१ की टीका अपूर्ण तक है.) 1 " १२०३९६ (+) मुनिमालिका स्तवन संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२८४१३.५, १५४४३). मुनिमालिका स्तवन ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि रिषभ प्रमुख जिन पाय; अतिः फलै सदा जी कल्याण कल्याण, ढाल -३, गाथा- ३६. १२०३९८. (+) छम्मासीतपचिंतन विधि, संपूर्ण, वि. १९०२, भाद्रपद कृष्ण, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले स्थल. सिद्धाचल तीर्थ, प्र. वि. हुंडी : सामायकविधि, टिप्पण बुक्त विशेष पाठ, वे. (२८४१३.५, १५४४२). "" आवकविधि प्रकाश, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु. सं., गद्य वि. १८३८, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीश अति मन में धारी काउसग्ग पारै. १२०४०२. स्तुति, स्तवन व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१-२ (१ से २) १९, कुल पे. २१, जै.. (२८x१३.५, ९X३०). १. पे. नाम धर्मजिन स्तवन, पू. ३अ ४आ, संपूर्ण, मु. कल्याणचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि सहींया मोरी धरम जिणेसर, अंति कल्याणचंद्र० तुमचो दास हे, गाथा-१३. २. पे. नाम. धर्मजिनपीठीनो स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन-विलेपन पूजा, मु. कल्याणचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि : आवो सहीअर सहु मिली धरम; अंति: कल्याणचंद्र० पूरवा कि, गाथा-७. ६७ ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पू. ५अ-६अ, संपूर्ण, प्रेमचंद्र - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि ऋषभजिणंदस्युं मोहनी साहिब, अंति: प्रेमचंद्र जंपे तस सीस हो, गाथा- ९. ४. पे. नाम. कुंभलगढतीर्थ स्तवन, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण. मु. O २४ जिन स्तवन- कुंभलगडतीर्थ मंडण, पंन्या. सिंहविजय, मा.गु., पद्य वि. १७९३, आदि सरसति सामिन विनवुं रे; अति सिंह नमें करजोड, गाथा- १६. ५. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. पं. शांतिविजय, मा.गु., पद्य वि. १७९५, आदि: श्रीसद्गुरुचरण नमी करी, अंतिः विजय तणी शांतिविजय सुखकार, गाथा - ९. ६. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ८आ- ९आ, संपूर्ण. मु. कल्याणहंस, मा.गु., पद्य, आदि जग नाय जगवालहो रे लाल; अतिः कल्याणहंस०जब भेट्वा जगदीश, गाथा ११. ७. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण. मु. शांति, मा.गु., पद्य, आदि शीतल साहिब सेवीऐ होजी अति शांति० द्यौ दरसण नितमेव गाथा-७, ८. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १०आ- ११आ, संपूर्ण. 3 शांतिजिन स्तवन- उदयपुरमंडन, मु. खुस्याल, मा.गु., पद्य वि. १७९२, आदि साहिब शांति जिनेसर, अंति: भुवन० तस सीस खुस्वाल, गाथा-९ For Private and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९. पे. नाम, धर्मजिन स्तवन, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. मु. कल्याणहंस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीप्रभु धरमजिणेसरु; अंति: कल्याणहंस०पूरौ एह जगीस हो, गाथा-९. १०. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. पं. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी विनती; अंति: जय तणो कवि शांति सदा आणंद, गाथा-६. ११. पे. नाम, धर्मजिन स्तवन, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तुति, मु. प्रेमचंद्र-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता पाए लागी धरम; अंति: सीस सदा इम वदति सुखदाई जी, गाथा-४. १२. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन-उदयापुरमंडन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सीतलजिन सहेज सुरंगा; अंति: कुशल गुण गाया रे, गाथा-६. १३. पे. नाम, अनंतकाय सज्झाय, पृ. १४अ-१५अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-अनंतकायत्यागे, म. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अनंतकायना दोष अनंता; अंति: भावसागर आनंदा रे, गाथा-१२. १४. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-क्रोध परिहार, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध न करिये भोला; अंति: उपशम आणो पासे रे, गाथा-९. १५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, पृ. १५आ-१६आ, संपूर्ण. पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अभिमान म करस्यो कोई; अंति: भावसागरनगर रही चौमासे रे, गाथा-८. १६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: माया मूल संसारनो; अंति: लहे सुख निर्वाण, गाथा-७. १७. पे. नाम. लोभ स्वाध्याय, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करीये प्राणीया; अंति: भावसागर० सयल जगीस रे, गाथा-८. १८. पे. नाम, कर्मविपाकफल सज्झाय, पृ. १७आ-१९आ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देवदाणव तीर्थंकर; अंति: कर्मराजा रे प्राणी, गाथा-१८. १९. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-कायाजीव, पृ. १९आ-२०आ, संपूर्ण. मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि ससनेहा हो साहिब; अंति: भावसागर० रहियै रे हजूर, गाथा-१०. २०. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनीवर चाल्या; अंति: जेथी सीवसुख सिधो जी, गाथा-८. २१. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. २१अ-२१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबलि चारित्र लीयो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ तक है.) १२०४०४. तेरापंथीमत प्रश्नोत्तर संग्रह, संपूर्ण, वि. २१वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, गु., (२८.५४१३, १३४४५). तेरापंथीमत प्रश्नोत्तर संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: आ कालना भाव केवळगयानीए; अंति: दसवीकालीक अधेन ७ गाथा ४७, प्रश्न-६८. १२०४०५. स्वरोदयसार का चयन व नवतत्त्व सवैया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८, कुल पे. २, गु., (२८.५४१२.५, ११४४९). १. पे. नाम, स्वरोदयसार का चयन, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण. __ स्वरोदयसार-चयन, मा.गु., पद्य, आदि: लोक काज सरु परीहरे धरे; अंति: भारी करमा सुण सुण लीजै रे, ढाल-४. २. पे. नाम. नवतत्त्व सवैया, पृ. ८आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: गुण विना० मूल न मान जीव; अंति: एनो पंथ प्रभुने राईने, गाथा-१. For Private and Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२०४०६. विविधयोग मुद्रा विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१४.५, १३x४२). विविध मुद्रा विचार, मा.गु., गद्य, आदि वज्रमुद्रा डाना हाथ; अंति: अंगूठा फरकावी वे खाडवां १२०४०८. (+) सज्झाय, पद व विचारादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३३, कुल पे. १९६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दे., (२७४१३, २३-२६४५५-७६). १. पे. नाम भरतवाहुबली सज्झाय, पू. १अ, संपूर्ण, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि विरा मोरा गज थकी उतरो गज, अंतिः लहि समयसुंदर वंदे पाया रे, गाथा-८. गाथा - ३०. ४. पे. नाम. भरतचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. पुंडरीककंडरिक सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. पुंडरीककंडरीक सज्झाय, ऋ. केवल, मा.गु., पद्य, वि. १९५५, आदि: जंबुदिप सुवावणो रे लाख, अंतिः केवल० फल प्रतक्ष बताय हो, गाथा - २५. ३. पे. नाम मरुदेवीमाता सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९६१, आदि: श्रीरिषभ किरतारे लेई संजम अति जो पाए सिवस्मरण सदा ये, मा.गु., पद्य, आदि भरतजी भूप भये वैरागी अंति: मुक्त गया सोभागी, गाथा - १०. ५. पे. नाम भरतवाहुवली सज्झाय, पृ. २अ संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १९५६, आदि भरत संजम रिषभ सुणि रे; अंति: काई चोमासो वरते खेम हो, गाथा-८. ६. पे. नाम. आदिजिन वर्षीतप पारणा सज्झाय, पृ. २अ संपूर्ण मु. अमी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: या रस सेलडि प्रथम जिनेसर; अंति : अमि रष० ईखुरस आहारा हो, गाथा - १८. ७. पे. नाम. आदिजिन वर्षीतप पारणा सज्झाय, पू. २अ २आ, संपूर्ण. मु. नथमल, मा.गु., पद्य, आदि श्री आदिनाथ प्रभु संजम के अंतिः चोपासणि मे कियो गान हे, गाथा- १०. ८. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण, मु. चोथमल, पुहि., पद्य, आदि मोराद मइया वाला लागे छे, अति चोतमल० एसा रीसभ कनया, गाथा-४. ९. पे. नाम. भरतबाहुबली लावणी, पू. २आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: ए दिया दान प्रजा कुं; अंति: छो ज्ञान की भीनाजी, गाथा-५. १०. पे. नाम बाहुबली सवैया, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति पत्रांक- ९ के मध्य में लिखी गई है. मु. सोमचंद, पुहिं., पद्य, आदि प्रभु छत्र छाय रेड कूल; अति सोमचंद० सुर कि चरण मै, गाथा १. ११. पे नाम, जीवदयामहिमा सज्झाव, पृ. ३अ संपूर्ण ६९ जीवदयामहिमा सज्झाय-दृष्टांतगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: विर जिनेसर गोतमने कहे समर; अंति : दया रस कोई पुनवान पावे है, गाथा-४. १२. पे. नाम. आगमिक पाठ संग्रह - विविध विषयक, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. प्रा., प+ग., आदि: न तं अरिकंठत्थित्ता करेई; अंति: पावसमणेति वच्चइ. १३. पे. नाम. जीवदया सवैया, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कहे पसु दिन सुण रे जग के; अंति: तुजको राम कि दवाई है, गाथा - १. १४. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे. वि. विषयानुसार से गाथाक्रम क्रमशः दिया है वस्तुतः इस कृति का गाथाक्रम दो है. For Private and Personal Use Only औपदेशिक पद- जीवदया, मु. चंद्रभाण, मा.गु., पद्य, आदि जीव तणि करे गात डर नहि अति: चंद्रभाण० हंस्या छोड रे, गाथा - १. Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५. पे. नाम. जीवदया पद संग्रह, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. विषयानुसार से गाथाक्रम क्रमशः दिया है वस्तुतः इस कृति का गाथाक्रम ३ से ९ है. मा.गु., पद्य, आदि: ढुंडत ढुंडत ढुंड लिया सब; अंति: दया जाई धर्म कयो जगदिस, गाथा-७. १६. पे. नाम. जीवदया दृष्टांत दोहा, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जि सेठ चंपक नामा कु चंपक; अंति: उठायो देव पगे पडयो, गाथा-२. १७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-दयाधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: ससत्रधारि अंगउ पगे नख; अंति: जोवो दिया धर्म भाख्यो रे, गाथा-५. १८. पे. नाम, जीवदया सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. जीवदया सज्झाय-विविधमत सम्मत, मु. चौथमलजी, पुहिं., पद्य, वि. १९६०, आदि: दया कुं पाले हे बुधिवान; अंति: चोतमल० जीवदया करो गुणवान, गाथा-५. १९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. ___ औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, मा.गु., पद्य, आदि: जीवदया रो सिर सेव रो; अंति: गिदडा मानव भव देखे खोयो, गाथा-७. २०. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. नाथुराम, पुहिं., पद्य, आदि: दया बिन करणि सब बेगार; अंति: आयो उसिको भवसागर दो तार, गाथा-४. २१. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-जीवदया, ऋ. केवल, पुहि., पद्य, वि. १९५५, आदि: दया जगत में है अति; अंति: केवल रुषि करे उचारे, गाथा-१२. २२. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-अज्ञानता, मु. अमी ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: नाहक कष्ट उठावे बिन दया; अंति: अमिरष० कायेक कष्ट उठावे, गाथा-८. २३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दया धर्म पामे तो कोइ; अंति: भावसु जुह उतरो भव पारोजि, गाथा-७. २४. पे. नाम, जीवदया दृष्टांत श्लोकादि संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह , पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: हारे एक साहेब के दर; अंति: दया विणा विरवणां तस, श्लोक-१५. २५. पे. नाम. औपदेशिक गजल, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक गजल-अहिंसापालन, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: दयाधार हिंसाचार वचन हेइसा; अंति: हिरालाल जाय जंनत को वसा, गाथा-७. २६. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन जो सुख चावे थारा जीव; अंति: न होवे हिवडे देखो विचार, गाथा-६. २७. पे. नाम. ८ भेद दयापालन सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. अमोलक, मा.गु., पद्य, आदि: पालिये पालिये पालिये रे; अंति: सिवपुर मे भाग चालिये रे, गाथा-७. २८. पे. नाम. मेघरथराजा सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मेघरथराजा सज्झाय-शांतिजिन पूर्वभव दयाविषये, मा.गु., पद्य, आदि: (१)जल कि सोभा कमल हे दर कि, (२)नरफल होवे असत्रि नरफल; अंति: पामे सुख अपारो जि, गाथा-२७. २९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५अ, संपूर्ण, पे.वि. इस कृति की गाथा-३ के बाद मध्य में प्राकृत संदर्भ की गाथा दी गई है. औपदेशिक पद-दया, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: माहि मारो प्राण बचायो हो; अंति: जिवदया को धर्म बतायो हो, गाथा-४, (वि. अंत में दयापालन विषयक दृष्टांत दिया गया है.) For Private and Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय जीवदया, मा.गु., पद्य, आदिः सुखकर सकल धर्म को सार है; अति जीवन मे महावाक सुखदाया, गाथा - १२. ३१. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. ५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय जीवदया, पुहिं., पद्य, आदि जीवराज तन को भाइ रे जीव; अंतिः जिव सेकडा मारे दुखदाई, गाथा - ९. ३२. पे नाम औपदेशिक सज्झाच, पृ. ५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, मु. नवीदास, पुहिं., पद्य, आदि: तु मत मारे विरा मारा तन; अंति: नविदास० सम साहेब हीरा, गाथा-४. ३३. पे. नाम औपदेशिक लावणी, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. नवलराम, पु,ि पद्य, आदि जीव मत मारे रे भाई धर्म अतिः मुगत के हो जावो अधिकारि, गाथा-८. ३४. पे. नाम. ८ भेद दया विचार, पृ. ५आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि सर्व दवा कर्मबंध से डरे १ अति रूढ दया कुलरितसु चाले ८. ३५. पे. नाम गौमाता अरज सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण. गौमाता अरज सज्झाय- अंग्रेज प्रति, मु. कुस्यालचंद, पुहिं., पद्य, वि. १८७९, आदि सुणो सुणो अगरेज बादर गउ अति करे विनति भाणपुरा मुजार, गाथा- ११. ३६. पे. नाम. मेघरथराजा सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. तिलोक ऋषि, मा.गु, पद्य, वि. १९२९, आदि धन मेघरथ राजा राखो परे अति तिलोकरिष० होय कलाण होय, गाथा - १८. ३७. पे. नाम. जिनवाणी भावपूजा स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण, पे. वि. पत्रांक- ६अ के दाहिने ओर हांसिये में नगर व राजा के नाम दिए गए हैं. सा. प्रेमश्री, मा.गु, पद्य, आदि पुजो जिनवाणी माता सितला अति प्रेमश्री० सासता पावे जि, गाथा १६. ३८. पे नाम. शांतिजिन १२ भव नाम, पृ. ६अ, संपूर्ण. ७१ मा.गु., गद्य, आदि: (१) रतनपुरनगर श्रीसेनराजा, (२) १ श्रीसेन राजा २जुगल्या अतिः राजा अचलादे माता संति नाम, (वि. अंत में शांतिजिन के पर्याय वर्ष दिये गए हैं.) ३९. पे नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पू. ६आ, संपूर्ण आध्यात्मिक सज्झाय भाव राखडी, सा. जडाव, रा., पद्य, वि. १९६६, आदि रि मारा केवर विरा हंसू, अंति जडाव० करता मंगल मार रे, गाथा - ९. ४०. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- गौरक्षा, सा. जडाव, पुहि., पद्य वि. १९६८, आदिः सुणो मुलक माहाराजा गउ; अंति: जडाव कहे० सुण सुण कजोरिजी, गाथा - २६. ४९. पे नाम दया सझाय, पृ. ७अ, संपूर्ण. मु. , विसनलाल, पुहिं., पद्य, वि. १९६२, आदि: दया विन कर्णि ननछनन; अंति: विसनलाल० मोक्ष मिले सननन, गाथा - ९. ४२. पे नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. ७अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जो सहस्स सहस्साणं मासे; अंति : दया विणा विटंबणा तस्स, गाथा - ५, (वि. दया विषयक गाथा संग्रह.) ४३. पे. नाम. एकादशीतिथि सज्झाय, पु. ७अ संपूर्ण. For Private and Personal Use Only उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि : आज एकदसि ए बाई एकदसि व्रत; अंति: उदेरत्न० अविचल लील विलासे, गाथा-७, (वि. जीवदया विषयक आगमिक संदर्भ पाठ.) ४४. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ७अ, संपूर्ण. Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक पद-जीव, मा.गु., पद्य, आदि: जीवा धुं तो भोलो रे; अंति: जिव तो पिण गइ वारिभुक, गाथा-३. ४५. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ.७आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, म. करण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रति कायारि लुठ मजाई; अंति: करण मुनि० मेलमाहे चलण को, गाथा-१९. ४६. पे. नाम. दीपावलीपर्व रास, पृ. ७आ, संपूर्ण, प्रले. मु. हीरालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. सं.१९७३ कार्तिक सुद-१ में लिखित प्रत की प्रतिलिपि है. म. जेमल ऋषि, मा.ग., पद्य, आदि: भजन करो भगवान रोए गोतम; अंति: पुज्य जेमलजी जोड छे, गाथा-३५. ४७. पे. नाम. सूत्रकृतांगसूत्र-श्रुतस्कंध २ अध्ययन ४ छ जीवकाय रक्षा, पृ. ८अ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४८. पे. नाम. नमूचिराजा प्रसंग विचार, पृ. ८आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: दीवालिने प्रभाते रामा; अंति: निदकनि एवि दसा थाये छे. ४९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, पृ. ८आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, रा., पद्य, वि. १९४४, आदि: मारी दयामाता थाने; अंति: हिरालाल० भव भव साता हे, गाथा-१२, (वि. रचना वर्ष वाली अंतिम १३वी गाथा नहीं दी गई है.) ५०. पे. नाम, सत्यासत्य सज्झाय, पृ. ९अ, संपूर्ण. मु. राममुनि, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम न वेसे पंच में; अंति: जुठ तज तप्यो चाहे तु, गाथा-११, (वि. मात्र कर्ता नाम का उल्लेख नहीं किया है, अंत में सत्यपरक दृष्टांत दोहा दिया गया है.) ५१. पे. नाम. सत्यदृष्टांत सज्झाय, पृ. ९अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सत वचन सूद बोलिये ए कोइ न; अंति: कारणे ये मरणो करे कबुल के, गाथा-१०. ५२. पे. नाम. सत्यदृष्टांत दोहा, पृ. ९अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सत मत छोडो हो नरा; अंति: लक्ष्मि फेर मिलेगी आय, गाथा-१, (वि. अंत में दृष्टांत के प्रथम पद संकेत पाठरूप है.) ५३. पे. नाम. असत्यवचन परिहार सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. मु. राम, पुहिं., पद्य, आदि: सदा तुम जुठ निवारो जुठा; अंति: राम० सदा तुम जुठ को ठारो, गाथा-६. ५४. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ९आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-सत्यवचन, मा.गु., पद्य, आदि: जुठनो त्याग ज करो ए साच; अंति: मुखसे नहि काडयो वाये के, गाथा-८. ५५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-मृषावाद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जुठ दुजो पाप मरषावाद बचन; अंति: लालचंद० सुतरजि कि साखी रे, गाथा-२. ५६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९आ, संपूर्ण, पे.वि. गाथाक्रम क्रमशः दिया है. मु. बालचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: काये कुं बोलत प्राणि जुठ; अंति: बालचंद्र० जुठ नरा ताल रे, गाथा-१. ५७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९आ, संपूर्ण, पे.वि. गाथाक्रम क्रमशः दिया है. मा.गु., पद्य, आदि: जिव जोग ओर भोग जिभ से रोग; अंति: सुणो जिब स्मार के बोले, गाथा-१. ५८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९आ, संपूर्ण, पे.वि. गाथाक्रम क्रमशः दिया है. क. गिरधर, मा.गु., पद्य, आदि: मिश्री गोले जुठ कि एसे; अंति: गिरधर० ज्याके मुडे धुल, गाथा-१. ५९. पे. नाम. प्राकृत गाथा संग्रह, पृ. ९आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. गाथा संग्रह जैन*, प्रा., पद्य, आदि: अहंच्च चंडालियं कट्ट नन्ह; अंति: सच्चं सिद्धि सोपाणं. ६०.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ७३ औपदेशिक पद-असत्यवचन, मु. दीन, पुहिं., पद्य, आदि: ततो मति बोले प्राणि जुठ; अंति: कहे दिन० साच को जुठ बोरे, गाथा-३, (वि. दाहिने भाग के हांसिये में मंत्र-तंत्र इत्यादि की सूची दी गई है.) ६१. पे. नाम. औपदेशिक पदादि संग्रह, पृ. १०आ, संपूर्ण. औपदेशिक पदादि संग्रह-चोरीत्याग, भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,प्रा., पद्य, आदि: तीजो पाप अदत चोरि न लेवे; अंति: जस्स गिण्हणा अवि दूक्कर, गाथा-१०. ६२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १०आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: चोरि तजे ते मानविए पामे; अंति: ये दसमे अंग विस्तार के, गाथा-८. ६३. पे. नाम. ५ इंद्रिय सज्झाय, पृ. ११अ, संपूर्ण. म. ग्यानचंद, पुहि., पद्य, वि. १९३४, आदि: पाच इंद्रि कि तेविस विषे; अंति: नचंदजि० अति महासुखकारे, गाथा-८. ६४. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ११अ, संपूर्ण. म. रिषभ ऋषि, रा., पद्य, वि. १८००, आदि: मारगमाहे लुठे पाच जणि; अंति: रिषभ० करम गणा भव फरियो, गाथा-८. ६५. पे. नाम. ५ इंद्रिय सज्झाय, पृ. ११अ, संपूर्ण.. म. उत्तम, रा., पद्य, आदि: पांच मारग तेविस मारगलि; अंति: उत्तम० चुगणे दे न्यारा, गाथा-५. ६६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११अ, संपूर्ण, पे.वि. गाथाक्रम क्रमशः १ है. औपदेशिक पद-निंदात्याग, सगराम, पुहिं., पद्य, आदि: सादारि नद्या करे काने; अंति: सगराम० कहे मुडो करदे साहा, गाथा-१. ६७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११अ, संपूर्ण, पे.वि. गाथाक्रम क्रमशः २ है. औपदेशिक पद-वचनपालन, पुहिं., पद्य, आदि: वचन छर्यो बलराय वचन केरव; अंति: सुणो बोल वचन नहि पलठिये, गाथा-१. ६८. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ११अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-रसनाविषये, मु. विनयचंद, रा., पद्य, आदि: चेतन थारि रसना वस कर राख; अंति: विनेचंद० ज्या संताने रे, गाथा-५. ६९. पे. नाम, ५ इंद्रिय वशीकरण सज्झाय, पृ. ११आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: कायानगर सुवावणो चेतन केरो; अंति: व्यावचमे काडो देईनो साररे, गाथा-१३. ७०. पे. नाम. औपदेशिक कवित, पृ. ११आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त-५ इंद्रिय, पुहिं., पद्य, आदि: दिपक देख पतंग जल मधुर सबद; अंति: पांचु को वस करो तुम भाई, गाथा-१. ७१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: दात बतिसि उजलि मरद नाम; अंति: बोलु वांकडि० बतिसि खर जाय, गाथा-१. ७२.पे. नाम. रसना सज्झाय, पृ. ११आ, संपूर्ण. मु. चोथमल, रा., पद्य, वि. १९७१, आदि: रसना सिदि बोल थारे ने; अंति: छोतमलने सिख सुणाइरे, गाथा-११. ७३. पे. नाम. ५ इंद्रिय सज्झाय, पृ. १२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पंच इंद्रियने वस पडया जग; अंति: सुख पामसो ए माहे नही सनेह, गाथा-८, (वि. प्रतिलेखक ने प्रारंभिक प्रथम गाथा अपूर्ण लिखी है.) ७४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, पृ. १२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-५ इंद्रिय, मा.गु., पद्य, आदि: चंचल जीवडलारे तु तो; अंति: जिवा चल्या मुगतमे जाय के, गाथा-८. ७५. पे. नाम.५ इंद्रियमन सज्झाय, पृ. १२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कान कहे कमखि करि मो सरिखो; अंति: जितने तोडो आयु कर्म, गाथा-६. ७६. पे. नाम. छत्रसाल सज्झाय, पृ. १२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९७६, आदि: थे सुणजो लोका विसन मत; अंति: हिरालाल जाये वसणोजी, गाथा-१५. ७७. पे. नाम, साधु आचार सज्झाय, पृ. १३अ, संपूर्ण. साध आचार सज्झाय-नारीपरिहार, म. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: मनि परघर मत जाजोजि नारि; अंति: काहि वाध्या श्री जिनराज, गाथा-७. ७८. पे. नाम. शीलोपदेश सज्झाय, पृ. १३अ, संपूर्ण. मु. रतनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९६६, आदि: मत ताको नार बिरानी; अंति: सियल पाले उत्तम प्राणि. गाथा-६. ७९. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नारी, मा.गु., पद्य, आदि: राए प्रदेसिने हुतिस रे; अंति: देवे गुंजा मार रे, गाथा-८. ८०. पे. नाम, परनारी परिहार सज्झाय, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: सुण भाइ चतुर सुजाण; अंति: थे दया धर्म दिलधारो रे, गाथा-१८. ८१. पे. नाम. परनारी परिहार सज्झाय, पृ. १३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चंचल छेल छबिला मन भमरा; अंति: अचल हे अवचल राज करिजे रे, गाथा-५. ८२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-परनारी, पुहिं., पद्य, आदि: चतुर नर नारि मत नरखो रे; अंति: जब वन वन से भटक्यो, गाथा-५. ८३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १३आ, संपूर्ण... शिवभक्ति गीत, रा., पद्य, आदि: मारे घरे पदारोजि रुठोडा; अंति: भरमा मुरख कदियन आवे ठामो, गाथा-६, (वि. अंत में स्त्री दृष्टांत चरित्र विषयक दोहा लिखा है.) ८४. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १३आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: पंख विना पखेरु उडाउ; अंति: कर गेर लियो गड लंकपति को, गाथा-३. ८५. पे. नाम. आगममिक गाथा संग्रह-नारी परिहार, पृ. १३आ, संपूर्ण. आगमिक गाथा संग्रह-नारी परिहार, प्रा., पद्य, आदि: जहा कुकड पोयस्स निच्चं; अंति: भारा सव्वे कामा दुहावहा, गाथा-११. ८६. पे. नाम. रामयशोरसायन चौपाई-ढाल ३२, पृ. १४अ, संपूर्ण. रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८७. पे. नाम. सीता हनुमान संवाद, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. __मा.गु., पद्य, आदि: हुं तने नहि पिछाणु रे; अंति: दिवि हे जेसे जिरण लिरा, गाथा-७. ८८. पे. नाम. सीता हनुमान पद, पृ. १४आ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: सीताने समजायेवा प्रगट थयो; अंति: पुलकित कहे कठिन कडवा वेण, गाथा-४. ८९. पे. नाम. हनुमानमंदोदरी सज्झाय, पृ. १४आ, संपूर्ण. मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: कहे मंदोद्रि सुणो जमाई; अंति: सुणिने मन्मे हो गयो तातो, गाथा-७. ९०. पे. नाम. रावणमंदोदरी सज्झाय, पृ. १४आ, संपूर्ण. मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: यो कहे मंडोद्रि वात नाथ; अंति: मुनि राम० बात नहि थो दानो, पद-३. ९१. पे. नाम. रावणमंदोदरी सज्झाय, पृ. १४आ, संपूर्ण. मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: ये मानोजि सिख सुहामणिजि; अंति: राम० कोण ठाले होवणहारा, गाथा-७. ९२. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: धिज करे मोठि सति रे लाल; अंति: नित नित प्रणम् पाव हो, गाथा-९. ९३. पे. नाम, अरणिकमुनि सज्झाय, पृ.१५अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: अहो मारा सिल सुरंगि; अंति: हिरालाल० धन धन जगमे साध, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ९४. पे. नाम. ललितांगकमार सज्झाय, पृ. १५अ, संपूर्ण. ललितांगकुमार सज्झाय-शीलविषये, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९५९, आदि: सुंदर सेर मनहरु हो सेठ; अंति: कहे हिरालाल हुलास, गाथा-१४. ९५. पे. नाम. ब्राह्मीसुंदरी सज्झाय, पृ. १५अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदिः (१)धन बरामिने धन सुंद्रीजि, (२)आदिनाथ गर जनमियाजि काई; अंति: ये जुगमे तंत सारजि, गाथा-१२. ९६. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-सासवह, मा.गु., पद्य, आदि: मे तो न्यारा होसाजी के मे; अंति: पाणी कबुह न पासा, गाथा-५. ९७. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १५आ, संपूर्ण. ___ औपदेशिक सज्झाय-कपटी पुरुष, मा.गु., पद्य, आदि: सामलजो सतिया पुरस तणो; अंति: मुक्ति तणो पालो सिल नववार, गाथा-११. ९८. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मूर्ख पुरुष, मा.गु., पद्य, आदि: ध्रग ध्रग कुलवंति थारा; अंति: अराधो तो सति पावो निरवाण, गाथा-७. ९९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १५आ, संपूर्ण... औपदेशिक सज्झाय-परस्त्री परिहार, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन पुरस ज्याने प्रहरि; अंति: यो तो नरक तणो अंधकुपजि, गाथा-९. १००. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-शोक्य, मा.गु., पद्य, आदि: सोक तणो दख अति गणो रे; अंति: वर नहि सोकरो नाम हो, गाथा-१०. १०१. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १६अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-शीलपालन, म. चौथमलजी म. खबचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सिलरतन का करो जतन श्रीजिन; अंति: चोतमल० चरणा चित लावे, गाथा-४. १०२. पे. नाम. रेवतीश्राविका सज्झाय, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण, पे.वि. पत्रांक-१६आ के हांसिये पर महावीरजिन वंदना हेतु रेवतीश्राविका की संक्षेप ऋद्धिवर्णन प्रसंग दिया है. मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९६२, आदि: यातो राजगरि नगरि भलि तिहा; अंति: हरकसु उगणीसे बासठ साल रे, गाथा-११. १०३. पे. नाम. नवकारवाली सज्झाय, पृ. १६आ, संपूर्ण. नवकारवाली सज्झाय-प्रहेलिकागर्भित, मा.ग., पद्य, आदि: देखो रे चतुर नर या कुण; अंति: तरिया फिर तरे ने तरसिजि, गाथा-६. १०४. पे. नाम. शीलमहिमा सज्झाय, पृ. १६आ, संपूर्ण. म. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९७२, आदि: मेहमा फेलि रे मेहमा फेलि; अंति: चोथमलने जोड बनाइ रे, गाथा-९. १०५. पे. नाम. ३२ उपमा सवैया, पृ. १७अ, संपूर्ण. ३२ उपमा सवैया-शीलमहिमा, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: सीलरतन सबसे बडो सब वरता; अंति: हीरालाल० सम निरमल नार हे, गाथा-८. १०६. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १७अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, मु. खेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: काम माहाबलवंत जोधा कुण; अंति: खेम० सुद ताति हु बलिहारि, सज्झाय-१. १०७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १७अ, संपूर्ण, पे.वि. गाथानुक्रम क्रमशः दिया है. औपदेशिक पद-नारीपरिहार, पुहि., पद्य, आदि: नारि के कारण रावण कुं; अंति: सोइ तजे जग मे सुख लियो है, गाथा-१. For Private and Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८. पे नाम पतिव्रता नारी पद, पृ. १७अ संपूर्ण, पे.वि. गाधानुक्रम क्रमशः दिया है. पुहिं., पद्य, आदि: सिल सुचि नीरलोभ खम्या दया; अंति: एसि पतिवरता नारी है, सवैया- १. १०९. पे नाम औपदेशिक पद, पू. १७अ, संपूर्ण, पे. वि. गाथानुक्रम क्रमशः दिया है. औपदेशिक पद-कुनारी, पुहि., पद्य, आदि: पति से सदा विरोध पुतका; अंतिः बतिस विद वि संखणि सांड, सवैया- १. ११०. पे. नाम. कपिलऋषि सज्झाय, पृ. १८अ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. खूबचंद, पुहिं., पद्य, आदि: बंदु नित कंपिल रुषि राया; अंति: खूबचंद सुख संपद पाया रे, गाथा- ७. १९९. पे. नाम. आगमिक गाथा संग्रह, पू. १८अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. आगमिक पाठ संग्रह-विविध विषयक, प्रा., प+ग, आदि: जाहा लाभो तहा लोभो लाभा; अंति: इइ दुप्पुरए इमे आया, (वि. लोभ विषयक गाथा संग्रह.) ११२. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. १८ अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. औपदेशिक सवैया संग्रह*, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., मा.गु., सं., पद्य, आदि: सोचत हे रेण दिन कोई विद; अंतिः पेसा रखे तो माहादुखदाई है, सवैया-६, (वि. अंत में लोभ दृष्टांत का नाम दिया है.) ११३. पे नाम. परिग्रह विचार सज्झाय, पृ. १८आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रीगरो वरत ए पाचमो ए कुण; अंति: ये भव भव खोठा हाल के, गाथा-१८. ११४. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त संग्रह, पृ. १८आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. औपदेशिक कवित्त संग्रह *, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: प्रिगरो गणो अति दुखदाई; अंति: दुर रहा लाज गाठकि गमाई है, गाथा - १३ (वि. विशेष करके परिग्रह संबंधि पद्य संग्रह.) " ११५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १९अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-तृष्णा, क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: त्रसना अति जुगमे बुरि रे अति रिषभ० निज कपट छुरि रे, गाथा-७. ११६. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १९अ संपूर्ण, मु. चंपालाल, पुहिं., पद्य, आदि: दुनिया धनमे भुलि जाय रे; अंति: चंपालाल० मरने भुतज थाय रे, गाथा-५. ११७. पे. नाम. जंबूकुमार सज्झाय, पृ. १९अ, संपूर्ण. मु. कन्हालाल, मा.गु., पद्य, आदि: हो मुनीराज आपका दर्सन की; अंति: प्रसादे गावे कन्हालाल हो, गाथा-१०. १९८. पे नाम औपदेशिक लावणी, पु. २०अ, संपूर्ण औपदेशिक लावणी-कोडी, मु. जीवणराम, पुहिं., पद्य, आदि: एक कोडि जगतमे अजब चिज है; अंति: लावनि जिवणरामने गाई, गाथा- ४. יי ११९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २०अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, पुहि., पद्य, आदि: माया मत कर तु मेरी; अंति हीरालाल० हुई छे तेरी, गाधा ८. १२०. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. २०अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि मुरख नर माया मे मुरज रयो; अंति हीरालाल कहे० सुख लियो रे, गाथा-५. १२१. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २०अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय सुकृत, मु. चोथमल ऋषि, पुहि., पद्य, आदि सुकरत कर ले रे माया लोभी; अति: चोतमल० करने मुगत सदावोरे, गाथा-७. १२२. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. २०अ संपूर्ण, औपदेशिक सज्झाय-माया, पुहिं., पद्य, आदि: माया रो मजुर बंदो क्या; अंतिः न चाले सिख मान ले संत कि, गाथा-७. १२३. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. २०अ संपूर्ण For Private and Personal Use Only पुहि., पद्य, आदि काम नहीं आसि रे माया तज, अंति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाधा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) १२४. पे नाम औपदेशिक कवित्त संग्रह, पृ. २०आ, संपूर्ण Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पदेशिक कवित्त संग्रह- समकित पुर्हि, पद्य, आदि के ते दिन भये तुम कुं रोग; अति जो होवे कोड अनेको, " गाथा-२१, (वि. सुकृत दृष्टांत, परिणाम व फलादि विषययुक्त है.) १२५. पे नाम. सुकृतकरणी सज्झाय, पृ. २०आ, संपूर्ण. मु. विनयचंद, रा., पद्य, आदि सुकृत करले रे गेला; अंति विनेचंद० हिये धरले पेलि, गाथा- ६. १२६. पे नाम. उत्तराध्ययनसूत्र चयनित धनलोभ गाथा संग्रह. पू. २०आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययन सूत्र - चयनित गाथा संग्रह-धनलोभ, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति (-) (वि. अध्ययन-९ गाथा ४६ से ४९ तथा अध्ययन १४ गाथा - ३९.) १२७. पे नाम औपदेशिक सवैया, पृ. २०आ, संपूर्ण श्राव. छज्जु, पुहिं., पद्य, आदि रहि नव गदधार रावण किस अंतिः छजु० पसारि मुठ जायगो, गाथा- १. " १२८. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. २१अ, संपूर्ण. मु. खूबचंद, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: भव जिवाने ये उपदेस सुणाया, गाथा-८, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण से लिखा है.) १२९. पे नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह. पू. २१अ. संपूर्ण. मु. . भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि: कुणि काये गोडा हे जाको हम; अंतिः भाग बिना कछु कोडि न पायो, " गाथा ५. १३०. पे नाम रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, पृ. २२अ संपूर्ण. रा., पद्य, आदि छठो वर्त रेणितणो ए भोजननो अंति प्रहरो ए आणि मन संतोस के, गाथा- १०. १३१. पे. नाम रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, पृ. २२अ संपूर्ण. ७७ मु. खूबचंद, मा.गु., पद्य, आदि हारे भाई जेनि रात कुं नहि अति खूबचंद० करो भाई ऐसा ते, गाथा ६. १३२. पे. नाम. रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, पृ. २२अ - २२आ, संपूर्ण. , रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि : आदो भोजन रातको करे अधर्मि; अंति: रतन० कारणे रातरि भोजन अंध, गाथा-८. १३३. पे. नाम. रात्रिभोजन परिहार श्लोक संग्रह, पृ. २२आ, संपूर्ण. मु. रात्रिभोजन परिहारश्लोक संग्रह, प्रा., सं., पद्य, आदि: संति मे सुहमा पाणा तसा; अंति: तेषां तिर्थयात्राजपस्तप, गाथा-८, (वि. अंत में रात्रिभोजन परिणाम विषयक संक्षेप दृष्टांत दिया है.) १३४. पे. नाम रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, पृ. २२आ- २३अ, संपूर्ण. मु. सूरजमल, मा.गु, पद्य, वि. १९३४, आदि परहरजो भाई रात्रिभोजन; अति सुरजमल० मोक्ष निवास रे, गाथा- ९. १३५. पे. नाम. रात्रिभोजनत्याग श्लोक संग्रह सह भावार्थ, पृ. २३अ, संपूर्ण, पे. वि. पत्रांक २३आ पर रात्रिभोजनत्याग विषयक मृगासुंदरी का संक्षेप दृष्टांत दिया है. रात्रिभोजनत्याग श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: मृते स्वजनगोत्रेपि सुतकं; अंति: गमनं चैव संधानानंतकाइका, श्लोक ९. रात्रिभोजनत्याग श्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पोताना स्वजन गोत्रमां मरण; अंति: ब्रह्माण पुराणमे प कयो. १३६. पे नाम औपदेशिक सवैया संग्रह, पृ. २४अ, संपूर्ण औपदेशिक सवैया संग्रह-क्रोधत्याग, मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: क्रोध हे अनरत मुल क्रोद; अंति: लालचंद ० त्याच्या सीव पाईजि, पद-५. १३७. पे. नाम. औपदेशिक सवैया संग्रह, पृ. २४अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. औपदेशिक सवैया संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., मा.गु. सं., पद्य, आदि हारे एक साहेब सरणे होए: अंति: साई दिन तो केवत लावता है, सवैया-७, (वि. शीतलदास व गिरधर आदि कृत सवैयादि संग्रह.) १३८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडवा फल छेरे क्रोधरा अंति उदयरतन० निरमली उपसम रसमाहि, गाथा ६. For Private and Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १३९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, म. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध मत किजो रे प्राणि; अंति: हिरालाल० केवल प्रगटे आनि, गाथा-७. १४०. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. २४अ, संपूर्ण. ___ पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: क्रोधो मुल मनानां; अंति: मरीने दुरगत जाये, गाथा-५. १४१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २४आ, संपूर्ण. म. तिलोक ऋषि, पहिं., पद्य, आदि: मेठो मेठो रे भविकजन लाली; अंति: तिलोक० सविसाली रे, गाथा-५. १४२. पे. नाम, साधु आचार सज्झाय, पृ. २४आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: माराज सादजि अरज करु छ; अंति: रतनचंद० करजो ध्यान हो, गाथा-८. १४३. पे. नाम. चंदनदृष्टांत सवैया, पृ. २४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चंदन को रूष एक जंगल मे; अंति: असराल पडरई मार रे, गाथा-१. १४४. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २४आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-क्रोधपरिहार, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध मत करिवे तुम से; अंति: भवपारो उनिका सरणा तोले, गाथा-४. १४५. पे. नाम, समता सज्झाय, पृ. २४आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: समता रस का प्याला; अंति: रतनचंद० लहिए केवलग्याने, गाथा-५. १४६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-समता, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर उपदेसमे समतानो; अंति: ते समताने उजवा हो, गाथा-२९. १४७. पे. नाम. प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, पृ. २५अ, संपूर्ण, पे.वि. इसका प्रारंभिक अनुसंधान पाठ २७अ पर है. मु. भिन्न भिन्न कर्तक, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: परमानंद कहे सुण प्रेम; अंति: संग से इतना दुख पावोगे, गाथा-४२. १४८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २५अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, रा., पद्य, आदि: परनारिसु लगावतो प्रेम; अंति: जूं थाने मिल जावगि मुगत, गाथा-४. १४९. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २५अ, संपूर्ण.. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: क्यो विषय रस नजर भरे तेरो; अंति: लालचंद आवागमण मिठ जाये रे, गाथा-४. १५०. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २५अ, संपूर्ण. शीलमहिमा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जि वरथ सिल तणो कर संग अवर; अंति: ढाकणो रे सिल विना ए काम, गाथा-१०. १५१. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. २५आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: नववाड कही जिनराज सही; अंति: अखे हो जावे नरनारी, गाथा-११. १५२. पे. नाम. आममिक गाथा संग्रह, पृ. २५आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. गाथा संग्रह जैन*, प्रा., पद्य, आदि: नवगुत्तिहिं विसुद्धं; अंति: वणित्थीसु दोसो तथकउसिया. १५३. पे. नाम. औपदेशिक पद, प. २६अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-मानपरिहार, मा.गु., पद्य, आदि: मान न किजे रे मानवि मान; अंति: धर्या रे गया मजुसरे, गाथा-५. १५४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २६अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-मानपरिहार, मा.गु., पद्य, आदि: मान से ग्यान का नास हो; अंति: तुलति रतन कि लार, गाथा-४. १५५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, प. २६अ, संपूर्ण. म. रामचंद्र, रा., पद्य, आदि: कहि रे गुमान करे अपणो मान; अंति: राचंद० सेति डरतो रीजे, गाथा-१२. १५६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २६अ, संपूर्ण. मु. हीमत, मा.गु., पद्य, वि. १९१५, आदि: भलाई करले बंदा रे इण; अंति: सोभाग पंचमि हिमत नाम गाई, गाथा-९. १५७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org मु. हेमचंद, मा.गु., पद्य, आदि घ्यायो नहि जगतपति पाप; अंति कहे मुनि हेमचंद, गाथा १. १५८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २६अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुणो हो सुजाण नर काये कु; अंति: कर सके आद्र कठइन पाए, गाथा-५. १५९. पे नाम. ८ मदपरिहार सज्झाय, पू. २६आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. केशव, मा.गु. पच, आदि आठ मद सूत्र कया रे न्यारा; अंति: पाई जोग बाई उजवाल हो, गाथा-१०. १६०. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. २६आ, संपूर्ण. मु. तिलोक ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मत करो रे चतुर; अंति: तिलोक० किया पद निरवाणा रे, गाथा-५. १६१. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. २६ आ. संपूर्ण मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९३६, आदि सकेंद्र माहाराज कईजे प्रथम, अंति हीरालाल० संतकुवरनि ढाल हो, गाथा - १२. १६२. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. २६आ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय-ममत्वपरिहार, मु. प्रेम, पुहिं, पद्य, आदि: ममत मत किजो राज मन में; अंति: कहे० मुगत लही एक छीन मे, गाथा- ४. १६३. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. २६आ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय- असारसंसार, मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि मत कर कोई से बंदि अंतिः जिनवास० लोक कदि कदि रे, गाथा - ६. १६४. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. २८अ संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-माननिषेध, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: मानिडा मत कर मान गुमान; अति: हिरालाल ० पामो मूगति मेल, गाथा- ७. १६५. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. २८अ संपूर्ण. औपदेशिक पद-संयमपालन, मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: चतुर नर देखो ग्यान; अंति: हीरालाल० संजम को साथ, गाथा - ६. १६६. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. २८अ संपूर्ण. मा.गु., पद्म, आदि मान न किजे रे मानवि छनु अति: पालसि सुरंग मुगत सुख लेत, गाथा-८. १६७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २८अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: गरवे मति देख सुंद्र काया; अंति: कहे० रतन नरभव पाया, गाथा-५. १६८. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. २८अ २८आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुरपति प्रसंसा करे बेठा; अंति: संजम पालि फिर मुगत सदावे, गाथा - १६. १६९. पे. नाम. आदिजिन लावणी, पृ. २८आ, , संपूर्ण. ७९ मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: ओ कहे रिषबजि ब्रामि; अंति: हीरालाल बहु सुख पाया जी, गाथा-४. १७०. पे नाम २० बोल वादनिवारण सज्झाय, पृ. २८आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि किणसुई बाद विवाद न किजे; अंति: रायचंद ० मेरते नगर चोमासाजी, गाथा - १७. १७९. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. २८आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-कर्मफल, मा.गु., पद्य, आदि: पेलि तो हम कुल ज्यो खर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४ तक लिखा है.) १७२. पे. नाम. १४ बोल सज्झाय, पृ. २९अ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र शतक १-१४ बोल सज्झाय, संबद्ध, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि सूत्र भगोति पेलडे रे लाल; अति रायचंद० अनुसार किनि जोड हो, गाथा १६. For Private and Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २९अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-समकित, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६९, आदि: निरमल सूद समगत जिण पाई; अंति: रतनचद० जो चावो सुख मेवो, गाथा-१३. १७४. पे. नाम. सम्यक्त्वव्रत सज्झाय, पृ. २९अ, संपूर्ण. मु. देवीदास, पुहिं., पद्य, आदि: समगत नाहा लईजि यासू; अंति: दास० वहु वार हम कीनो, गाथा-४. १७५. पे. नाम, भक्तिमहिमा पद, पृ. २९आ, संपूर्ण. पहिं., पद्य, आदि: काहा कउ छबि आप कि भले; अंति: निसरो जब मरद जाणस, गाथा-३, (वि. अंत में एक जैनधार्मिक श्लोक 'पक्षपातो न मे वीरो..तस्य कार्यं परिग्रह' दिया गया है.) १७६. पे. नाम. देवगुरुलक्षण सवैया, पृ. २९आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: देव सोई जाके दोसको; अंति: जुठो डार नवभव कोला भरे, गाथा-१. १७७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २९आ, संपूर्ण. ___ औपदेशिक पद-समकित, मु. प्रसन्नचंद, पुहिं., पद्य, आदि: समकित का करलो उजवाला ईस; अंति: प्रश्नचद० गुरु संग जठमे, गाथा-३. १७८. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २९आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-श्रावकधर्म, म. विनयचंद, पुहिं., पद्य, आदि: देवगुरु धर्म कि पिछान; अंति: विनेचंद० तिना प्रति जिये, गाथा-४. १७९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २९आ, संपूर्ण. पहिं., पद्य, आदि: ऐसी तेरी समज के सिरधर; अंति: वणज करता नफा रहे ना मुल, गाथा-४. १८०. पे. नाम. गोपीचंद की राखी, पृ. २९आ, संपूर्ण. मु. जडावचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९६६, आदि: समगीत साचि बेन भाणजि केवल; अंति: जडाव० करता मंगलमाल रे, गाथा-९. १८१. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. ३०अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: चंपानगरिथि चालिया चडिया; अंति: गुण गाविया विकानेर मुजार, गाथा-१४. १८२. पे. नाम. अरणकश्रावक लावणी, पृ. ३०अ, संपूर्ण. मु. खूबचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समगत डढ देखण सुर आयो रे; अंति: खुबचंद० चोमासो ठायो रे, गाथा-७. १८३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-समकित, मा.गु., पद्य, आदि: (१)जिन कि वाणि सुणजो जि, (२)श्रीजिनवाणि अमरत सरिखि; अंति: उनकि ग्यानि गुरु इम भाखे, गाथा-१३. १८४. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३०आ, संपूर्ण.. औपदेशिक सज्झाय-सतीप्रबोधगर्भित, म. चोथमल ऋषि, मा.ग., पद्य, वि. १८३६, आदि: सतिया असडि परुपो यो मत; अंति: चोथमलजि मेरते कियो चोमास, गाथा-११. १८५. पे. नाम. धर्मोपदेश विचार संग्रह, पृ. ३०आ, संपूर्ण. विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: निसंकीय निकंखीय निविति; अंति: विमाणवात्ति सुरा चिंतई. १८६. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ३०आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-समता, मु. रत्नचंद, मा.गु., पद्य, आदि: विनवे सुमता नारि घर आवोनि; अंति: रत्नचंद० मानो अकन कुवारा, गाथा-७. १८७. पे. नाम. गाथा संग्रह जैन, पृ. ३०आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह जैन*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: किताय पढइयाए पएसगाहा; अंति: संकाय समत अवजा अथ गेहणेण, ग्रं. For Private and Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org १८८. पे नाम. १० अवंदनीय बोल, पू. ३१अ संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि उसना विपरित अनुष्ठान करे; अंतिः ए वननिक नहीं छे. १८९. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. ३१अ संपूर्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक सज्झाय-श्रद्धा, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९७२, आदि: सरधा सुधि राख विना सरधा; अंति: चोथमल राखो सरधा सवाइ रे, गाथा ११. १९०. पे नाम. धर्मोपदेश लोक संग्रह सह अर्थ, पृ. ३१-३१आ, संपूर्ण. धर्मोपदेश श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: सिद्धंत थिरिकरण अततसद्धा; अंति: महेश्वरो वा नमस्तस्मै, गाथा- १२. धर्मोपदेश लोक संग्रह- अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि मिथ्यात्वने स्थिर करवाथी; अंतिः तिसको मेरा नमस्कार हो, १९१. पे. नाम. तपपद सज्झाय, पृ. ३१आ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, रा., पद्य, आदि: तप बडो संसार मे जीवा; अंति: आसकरण ०- जोधपुर चोमासो रे, गाथा- १२. १९२. पे. नाम. कृष्णबाललीला पद, पृ. ३२अ संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: गिरधर खेल रया ब्रिज वासि; अंति: कालिदे भितर गयो सार के, गाथा-५. " १९३. पे नाम कालियनाग संवाद पद संग्रह, पृ. ३२-३२आ, संपूर्ण पुहि., पद्य, आदिः यु कर बोले निंदकसोर नागण, अंतिः क्रश्न नाग रमाडियो, गाथा-३४. " १९४. पे. नाम कृष्णभक्ति दोहा संग्रह. पू. ३२आ, संपूर्ण पुहि., पद्य, आदि काना कुंडल जगमगे माथे, अंति: गोविंदो जोरावर गोपाल, गाथा- १८. " १९५. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. ३२आ, संपूर्ण. ., पद्य, आदि: सुण ये गोरि अंग मरोरि; अंति: उन खाया प्राण धरे, गाथा-८. १९६. पे. नाम. कथा संग्रह, पू. ३३२-३३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कथासंग्रह, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि ध्यायता सुभ कर्माणि अति: (-) (पू.वि. आर्यरक्षितसूरि प्रसंग अपूर्ण तक है.) " "" १२०४०९ (+) प्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र. वि. संशोधित. दे. (२७.५४१४.५, १७४४३). प्रतिष्ठा विधि संग्रह, आ. चंद्रसूरि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि मूलरुमिपुरंदरपुराभरणी, अंतिः विहीएकुणदधयारोवणं ८१ धन्ना. १२०४१०. (+) श्रीपालचरित्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९५४, श्रावण शुक्ल, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४०, ले. स्थल. बीकानेर, प्रले. पं. वासुदेव (कवलागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: श्रीपा० वा० बो०., संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें.. प्र.ले. श्लो. (५६) यादृशं पुस्तकं दष्टं दे., (२७४१३.५, १७४३७-४३). "" श्रीपाल चरित्र वालावबोध, मु. देवमुनि, मा.गु., पद्य, वि. १९१७ आदि श्री अरिहंतसु सिद्धपद अति मुनि कथा लिखी सुजगीस, प्रस्ताव ४, ग्रं. १८००. १२०४१६. धर्मसार, अपूर्ण, वि. १८२७, फाल्गुन शुक्ल, ३, रविवार, मध्यम, पृ. ५३-६ (१,३ से ५,८,३५) =४७, ले.स्थल. प्रले. पंडित. चोखचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: धर्म० चंद्रनाथचेताल, प्र. ले. नो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (२७४१४.५, ९-१९२९). धर्मसार, जै.क. शिरोमणिदास, पुहिं., पद्य, वि. १७३२, आदि: (-); अंति: शिरोमनिदास० भव होय सुथानि, संधि-८, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से २६ अपूर्ण तक, संधि-२ गाथा २५ अपूर्ण से ५५ अपूर्ण तक, संधि-३ गाथा-८ अपूर्ण से ३१ अपूर्ण तक व संधि-५ गाथा ४५ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only भणपुर, जेथे १२०४१७ () शत्रुंजयतीर्थोद्धार रास, संपूर्ण वि. १९३६, चैत्र शुक्ल, ११, बुधवार, मध्यम, पू. ६, ले. स्थल, पादलिप्तनगर, प्रले. श्राव. इच्छाचंद भाईचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (१२) मंगलं लेखकानां च, (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२६X१३.५, १४X३४-४२). शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु, पद्य, वि. १६३८ आदि विमल गिरिवर विमल अंतिः द्यो दरिशन जयकरो, ढाल-१२, गाथा- १२०, ग्रं. १७०. Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२०४१८. (*) बृहत्संग्रहणी सह टीका, संपूर्ण, वि. १८४५, कार्तिक शुक्ल १, मध्यम, पृ. ७५, प्रले. पं. माणिक्यराज मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: संग्रहणीटीका., पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ३५००, प्र.ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२८x१३.५, १७x४१-४५). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताइं ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३४९. बृहत्संग्रहणी- टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि अत्यद्भुतं योगिभिरप्यगम्य अंति श्लोकानां सर्वसंख्या, ग्रं. ३५००. १२०४२०. (+#) अट्ठाईपर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८, प्र. वि. हुंडी: धर्मकथा., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३.५, १५X३७-३९). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान कथा, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मबुद्धि पापबुद्धिनी, अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., हरीचंद्रराजा दृष्टांतकथा तक लिखा है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२०४२१. श्रेणिक चरित्र, संपूर्ण, वि. १९४१, मध्यम, पृ. ८५, ले. स्थल, ठोगू, प्रले. मु. अनोपचंद (गुरु मु. हुकमचंद); अन्य. श्राव. गुलाबचंद (पिता श्राव. चतुर्भुजजी); गुपि श्राव. चतुर्भुजजी, अन्य. श्राव. साहाजी (पिता श्राव. ऋषभदास); श्राव. ऋषभदास, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले. श्लो. (१९८३) जाद्रसं पुस्तकं द्रष्टा, दे., (२८x१३.५, १३४३४-४०). श्रेणिक चरित्र, आव. लक्ष्मीदास, मा.गु., पद्य, वि. १७३३ १७४९, आदि गणपतिश्री अरिहंत पद अति लिखमीदास ० लीज्यी सोधि, डाल-५४ गाथा- १७९८. १२०४२२. (+) अड्डाईपर्व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी अड्डाईव्याख्यान., पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२८४१४, १७४७-५३) י' יי अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य वि. १८६०, आदि: शांतीश शांतिकर्त्तारं अति: (-), (पू.वि. सूर्ययशनृप कथा पाठ "संसारतां ध्यायन् केवलज्ञानं प्राप्य बहून् भव्यान्" तक है.) १२०४२६. चौमासीपर्व देववंदन, अपूर्ण, वि. १९११, श्रावण कृष्ण, १४, रविवार, मध्यम, पृ. १९-२ (२, ५)= १७, ले. स्थल. अजमेर, प्रले. शालिग्राम श्रीमाली, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा वे. (२७४१४, ११४३४-३७). चौमासपर्व देववंदन, पन्या, पद्मविजय, मा.गु, पद्य, आदि विमलकेवलज्ञान कमला अंतिः पद्म० सामलनु चेइ रे, (पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., आदिजिन चैत्यवंदन अपूर्ण से स्तवनगाथा-४ अपूर्ण तक व चैत्यवंदनविधि अपूर्ण से शीतलजिन चैत्यवंदनविधि अपूर्ण तक नहीं हैं.) १२०४२८. श्रीपालचरित्र, संपूर्ण, वि. १८८५, आश्विन शुक्ल, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १११, ले. स्थल. वसंतपुर, प्रले. जय व्यास; अन्य. मु. गोविंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २८.५x१४.५, १२X४१). श्रीपाल चरित्र, जै.क. परिमल्ल रामदास, पुहिं., पद्य, आदि श्रीसिद्धचक्र विधि केवल अंतिः सुरपति हुंबे अधिकम जेज, १२०४२९. (#) सरस्वती स्तवन, गौतमस्वामी स्तोत्र व दीवाली पूजन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७- २ (१ से २) =५, कुल पे. ३, प्र. वि. पत्र के दोनों ओर पत्रांक हैं. मूल पाठ का अंश खंडित है. गु. (२८x१४, १२-१४४३३). १. पे. नाम. सरस्वती स्तवन, पृ. ४अ -५अ, संपूर्ण. आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: वाग्देवते भक्तिमतां अति दृशं मयि जिनप्रभसूरिवर्या, गाथा- १३. २. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तोत्र, पृ. ५अ - ६अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि श्रीइंद्रभूर्ति वसुभूति; अंति लभते नितरां क्रमेण श्लोक ९. " ३. पे नाम. दीवाली पूजन, पू. ६अ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only गौतमस्वामी दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: अंगूठे अमृत वसै; अंति: अविचल रहो वरस एकवीस हजार, गाथा-७. १२०४३०. (#) सूरिमंत्र विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२८.५X१४, ११४३५). सूरिमंत्र २१ दिवसीय आराधनाविधि, मा.गु., सं., प+ग., आदि: ह्रीं श्रीं अर्हं नमिउण; अंति: पीवाथी घणुं सारु. १२०४३१. (#) श्रावककरणी सज्झाय, औपदेशिक पद व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२४४१३.५, १७४३५). Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १. पे. नाम. श्रावकनी करणी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्रावककरणी सज्झाय, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठी परभाति; अंति: कांत जीव पालो धरी नेह, गाथा-२०. २. पे. नाम. औपदेशिक पद-साधु, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: तुमे पाया हो एसो द्योने; अंति: समता सुख पर जीव ललचाय, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. पुण्यविजय, पुहिं., पद्य, आदि: अश्वसेन का लडका जोर; अंति: पुन्य० जिन समो अवर न कोई, गाथा-५. १२०४३४. अतिचार-श्रावक, संपूर्ण, वि. १९३४, कार्तिक कृष्ण, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १७, ले.स्थल. नागपुर, प्रले. मु. हीरचंद्र; गुभा. मु. श्रीचंद्र (गुरु मु. जगजीवण, मलधारपुनमिया विजयगच्छ); गुपि. मु. जगजीवण (मलधारपुनमिया विजयगच्छ); राज्ये आ. जिनचंद्रसागरसूरि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, दे., (२८x१४, ७४२९). श्रावकसंक्षिप्तअतिचार*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नाणम्मि दंसणम्मि अ; अंति: करी मिच्छामि दक्कडं. १२०४३५ (+) दशाश्रुतस्कंधसूत्र-दशा १ से ४ वर्णसंज्वलनता विनय प्रकार १ तक सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-१०(११ से २०)=१३, प्र.वि. हुंडी:दशाश्रु०सू०., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ., जैदे., (२७४१४, १५४४४). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: (-), ग्रं. १३८०, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. दशा-२ सूत्र-२२ अपूर्ण से दशा-४ सूत्र-१४ (आचार विनय) तक नहीं है.) दशाश्रुतस्कंधसूत्र-जनहिताटीका, म. ब्रह्मर्षि, सं., गद्य, आदि: यथास्थिताशेषपदार्थसार्थ; अंति: (-), ग्रं. ३१००. प्रतिअपूर्ण. १२०४३८. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र व पार्श्वजिन मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२९.५४१५, ५४३५). १. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. २. पे. नाम. पार्श्वजिनमंत्र-कलिकुंड, पृ. १अ, संपूर्ण. जैन मंत्र संग्रह-सामान्य , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लीं; अंति: अप्रजिते विजय स्वाहा. १२०४३९ (-#) महावीरजिन स्तवन-नालंदापाडा व रावणमंदोदरी पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३, १३४२६). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-नालंदापाडा, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: मुगत देस के माहे विराजे; अंति: रायचंद० जोड प्रकासो जी, गाथा-२४. २. पे. नाम. रावणमंदोदरी पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पंडित. तुलसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: मंदोदरी सुण पीहेया रावण; अंति: तुलसीदास० वाटी वधीइ, गाथा-४. १२०४४०. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-३(१ से ३)=७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:चोवीसीस्तवन., जैदे., (२६४१४, १४४३४-४१). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सुविधिजिन स्तवन से नेमिजिन स्तवन तक है.) १२०४४१. पार्श्वजिन स्तोत्र व दुषमकाल के त्रीस बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७.५४१३, १२४३६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-शखेश्वरमंडण, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पुरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. २. पे. नाम. त्रीस बोल-दषमकाल, पृ. १आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ३० बोल-दषमकाल, मा.गु., गद्य, आदि: (१)महावीर स्वामी गौतमस्वामी, (२)नगरगाराम सरीखा होसी; अंति: (-), (पू.वि. बोल-२६ अपूर्ण तक है.) १२०४४२. पुद्गलभाव, अपूर्ण, वि. १९१६, फाल्गुन कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१ से ३)=२, दे., (२६.५४१३, १२४४०-४९). For Private and Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुद्गलगीता, मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: अतिउपयोगी चिदानंद सुखकार, गाथा-१०८, (पू.वि. गाथा-६२ अपूर्ण से है.) १२०४४४. अवंतिसुकुमाल रास, संपूर्ण, वि. २१वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, गु., (२८.५४१३, १५४५५). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनीवर अरी स्वहसती रे कीण; अंति: वडदावे सतीहरख सुख पावे रे, ढाल-१३, गाथा-१०५. १२०४४६. ९ वाड शीयल चौपाई, संपूर्ण, वि. १९२७, माघ कृष्ण, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. राजसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x१४.५, १४४४६). ९ वाड सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: समरु भावे सारद माय गौतम; अंति: विजयभद्र० नहीं अवतरे, गाथा-२७. १२०४४७. (+) चातुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९२८, आषाढ़ कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. २९, ले.स्थल. मकसुदाबाद, प्रले. मु. प्रेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१३.५, १०४३०). चातुर्मासिक व्याख्यान *, रा., गद्य, आदि: श्रीपार्थं सुखमागारं; अंति: इम १२४ अतिचार थाइ, (वि. तीन चौमासा के व्याख्यान हैं.) १२०४४८ (+) सिद्धांतचंद्रिका उत्तरार्द्ध सह सदानंदी टीका व अष्टाध्यायी धातुपाठ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२९४१३.५, १०४३९). १.पे. नाम. सिद्धांतचंद्रिका उत्तरार्द्ध सह सुबोधिनीटीका, पृ. १अ-१८१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सि०चं०टी०सदा०. सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: सिद्धिर्यथामातरादेः, प्रतिपूर्ण. सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका की सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि: (-); अंति: कृदंते कृतवानृजम्, प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. अष्टाध्यायी का धातुपाठ, पृ. १८१आ-१९४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अष्टाध्यायी-धातुपाठ, संबद्ध, ऋ. पाणिनि, सं., गद्य, आदि: भू सत्तायां तवर्गीयांताः; अंति: (-), (पू.वि. चुरादिगण अंचु विशेषणे पाठ अपूर्ण तक है., वि. गण के अनुसार १०-१० के गुच्छ में धातुओं की गणना भी लिखी गई है.) १२०४४९ (+) नवतत्त्वप्रकरण का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९५६, श्रावण कृष्ण, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. जामनगर, प्रले. पं. खूबचंद्र, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथप्रसादात्., संशोधित., दे., (२७७१३.५, १४४५१-६०). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहेलो जीवतत्त्व बीजो; अंति: अजीवनै मिश्र कहिये. १२०४५० (+) अष्टाह्निका महोत्सव व्याख्यान सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३१-२(२,२७)=२९, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:अट्ठाईम०., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२८.५४१३.५, ५४३३). पर्यषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्श्वसह; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम जंबूद्वीप अपूर्ण से ६४४८ जिनबिंब वर्णन अपूर्ण तक, शय्यंभवसूरि को माता-पिता के द्वारा दीक्षा की स्वीकृति मांगने के प्रसंग अपूर्ण से शय्यंभवसूरि का गुरु के साथ वैयावच्च की चर्चा अपूर्ण तक व चोर और राजा के बीच चर्चा अपूर्ण से नहीं है.) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: समरीने श्रीपार्श्वजी; अंति: (-). १२०४५१. (+#) सम्यग्प्रकाश, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७२-३२(४९ से ८०)=१४०, ले.स्थल. माधोराजपुरा, प्रले. श्राव. रामलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सं०प्र०. अंत में "पुस्तक नवसर माधवराजपुर गोठि अघ्रवाल के मंदिर लिखायो" ऐसा उल्लिखित है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९४१३, ११४४०). सम्यग्ज्ञानप्रकाश, श्राव. डालूराम मयाराम अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८७१, आदि: नमूं प्रथम अरिहंतकू नमू; अंति: डालूराम०जो लौं होय न चल्ल, संधि-२१, (पू.वि. आठ अंग वर्णन संधि अपूर्ण से सम्यग्दर्शनस्वरूप महिमा वर्णन संधि अपर्ण तक नहीं है.) १२०४५३. आवश्यकसूत्र की नियुक्ति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२८x१३, ६x२६-२९). For Private and Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंति: (-), (पू.वि. उपोद्धातनियुक्ति गाथा-१०७ अपूर्ण तक है.) १२०४५५. आश्रवभेद विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्र.वि. हंडी:आश्रव., कुल ग्रं. ५५०, जैदे., (२८.५४१३.५, १०४३२). आश्रवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: इंद्रिय कषाय व्रत क्रिया; अंति: मिथ्यादृष्टि को पद है. १२०४५७. जिनकशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८९३, कार्तिक शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ३, प्रले. ग. नवनिधिकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१३, ११४२५). जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १८५३, आदि: स्मृत्वा गुरुपदांभोजं; अंति: (१)त्संस्तुवैः संस्तुतं, (२)णाणस्सलाभाय भवक्खयाय, ढाल-८. १२०४५९. अष्टमीतिथि व आदिजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२७.५४१३, ११४२८). १. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विहसंति कल्याणदाता, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: विमलाचलमंडण जिनवर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) १२०४६०. स्तुति, स्तवन व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-२(३ से ४)=१७, कुल पे. १६, जैदे., (२८x१३.५, ११४२९). १.पे. नाम. नवकार छंद, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: बंछीत पूरे बिविध बर; अंति: बिबिध ऋधि वंछित लहे, गाथा-१८. २.पे. नाम. चौवीसजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, म. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिनेसर प्रणमी; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. शनिचर स्तोत्र, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शनिश्चर छंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंतिः सदा वली वली एम वखाणी, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम. सिद्धपद स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण.. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जगतभूषण विगतदूषण प्रणव; अंति: धर्मध्यानथी सिद्धि दर्शनं, गाथा-१३. ५. पे. नाम. माणिभद्रजी छंद, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण, ले.स्थल, पालीताणा, प्रले. ग. नवनिधिकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्रीऋषभदेवप्रसादात् माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरसती; अंति: लाख लाख रीझा लहे, गाथा-२६. ६.पे. नाम. शारदादेवी छंद, पृ. ७आ-९आ, संपूर्ण.. सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन; अंति: आस फलस्ये ताहरी, गाथा-३२. ७. पे. नाम. पद्मावतीदेवी छंद, पृ. ९आ-११अ, संपूर्ण.. मु. हर्षसागर, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं कलिकुंडदंड; अंति: हर्ष० पूजो सुखकारणी, गाथा-११. ८. पे. नाम. सोल सती सज्झाय, पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदि जिनवर; अंति: उदयरत्न० सुख संपदा ए, गाथा-१७. ९. पे. नाम. आउखानी सज्झाय, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. __ औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: आउखु तुट्याने सांधो; अंति: जालोर सहर मझार रे, गाथा-८. १०. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १३अ-१४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-संवर, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर गौतमने; अंति: सिवरमणी वैगा वरौ, गाथा-६. ११. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १४अ-१५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण कंता रे सिख; अंति: सुख कुमुदचंद्र ईसो कहे, गाथा-१०. १२.पे. नाम. विजयसेठविजयासेठानी सज्झाय, पृ. १५आ-१७अ, संपूर्ण. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, म. चोथमल ऋषि, मा.ग., पद्य, वि. १८५८, आदि: सील तणी महिमा सांभल; __ अंति: चोथमल विजयासेठ सेठाणी री, गाथा-२२. १३. पे. नाम. आठम स्तुति, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. आठमतिथि स्तुति, आ. जिनदत्तसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर करुं नितमेव; अंति: जिनदत्तसू०जीवत जनम प्रमाण, (वि. गाथांक नहीं है.) १४. पे. नाम. सात विसन सज्झाय, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण. __७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. जयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पर उपगारी साध सुगुरु ईम; अंति: गुरु सीस रंगे जयरंग कहे. १५. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मनडो अष्टापद मोह्यो; अंति: समयसुंदर० मोह्यो माहरोजी, गाथा-५. १६. पे. नाम. करकंडुमुनि सज्झाय, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अतिभली हूं; अंति: समयसुंदर० उवारी लाल, गाथा-६. १२०४६१. स्तवन, गुंहली व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-१(७)=७, कुल पे. ४, जैदे., (२७७१३.५, १२४४८-५१). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: हुंडीनुं स्तवन. महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: गुरू आणा सिर वहेस्ये जी, ढाल-६, गाथा-१४८, ग्रं. २२८. २.पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण, प्रले.ऋ. फतेचंद; लिख. मु. छगनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अष्टापदगिरि जात्रा करणकुं; अंति: सुरनर नायक गावे, गाथा-८. ३. पे. नाम. बारव्रत सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. १२ व्रत सज्झाय, म. अमीकंवर, मा.ग., पद्य, आदि: जीवदया व्रत पेंलो पालीजें; अंति: मोक्ष तणा अमरफल लेवा तो, गाथा-१६. ४. पे. नाम. जिनवाणी गंहली, पृ.८आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी: भास. जिनवाणी गहंली, म. अमीकंवर, मा.गु., पद्य, आदि: साहेली हो आवी हुँ; अंति: वंछे घणुं हो लाल, गाथा-७. १२०४६४.(+) रत्नाकरपच्चीसी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं.१५०, जैदे., (२८.५४१३, ५४३०). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: (-); अंति: श्रेयस्कर प्रार्थये, श्लोक-२५, (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण से है.) रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: बोधिज रत्न ज मागु छु. १२०४६५. जीभडीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२८x१३, १३४३७). औपदेशिक सज्झाय, म. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीभडलि सुण बापडलरि; अंति: प्रेमविजय० विशवाविस रे, गाथा-१७. १२०४६६. (+) श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १८८२, भाद्रपद कृष्ण, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३५, प्र.वि. हुंडी: श्री० च० व०., संशोधित., जैदे., (२८.५४१३.५, ९x४८). श्रीपाल चरित्र-वचनिका, पुहिं., पद्य, आदि: तीर्थंकर चौवीस जिन धरमराज; अंति: श्रीधर्मबीज परमार्थ धाम. For Private and Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२०४६७. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२८x१३.५, ११x१४). ऋषिमंडल स्तोत्र-बहद, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं; अंति: लभ्यते पदमव्ययम, श्लोक-६६, ग्रं. १५०. १२०४६८.(+#) सूक्तमाला, संपूर्ण, वि. १९५०, आश्विन शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ८९, ले.स्थल. लास, प्रले. छबाराम डूंगर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सूक्तावली श्रीपारस्वनाथप्रसादात्., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२८x१३.५, १५४३५). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृत्यवल्लीवृंद; अंति: कहतां विचारवं, वर्ग-४, श्लोक-१७६. १२०४६९. पुण्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.७, दे., (२७.५४१३.५,११४३२). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुन्य प्रकाश ए, ढाल-८, गाथा-१०२. १२०४७१. (+) बोल विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१८, माघ शुक्ल, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. ४, पठ. सा. राजाजी आर्या, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१३.५, १८४३१). १.पे. नाम. चौद गुणस्थानक के इकवीस बोल, पृ. १आ-११आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गुणठाणा. १४ गुणस्थानके २१ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार १ लक्षण २; अंति: अवेदिवेदनथि वेदद्वार. २. पे. नाम. जीवभेद बोल, पृ. ११आ-१२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बोल. जीव भेद-प्रभेद बोल, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: १ जीवनाभे २ कोड ९४ लाख; अंति: जातरातिर्यंचतेउना बे नथि. ३. पे. नाम, रूपीअरूपी बोल, पृ. १२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बोल. १६ बोल-रूपीअरूपी, मा.गु., गद्य, आदि: १ पांच समकित अरुपी; अंति: (१)१६ संठाण करम, (२)जीवाभिगमसूत्रथी जाण. ४. पे. नाम. १४ गुणस्थानक विचार, पृ. १२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बोल. मा.गु., गद्य, आदि: ३ तिने गुणठाणे काल न करे; अंति: २, ३७, ८,९,१०,११,१२,१४. १२०४७२. (+) आत्मनिंदा भावना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. उदेराम ब्राह्मण; पठ. मु. धनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आत्मनिंदा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७.५४१३, १७४३८). आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, आदि: हे आत्मा हे चेतन ऐ; अंति: सो नर सुगुण प्रवीन. १२०४७३. (+) धन्नाअणगार चोपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:धनजीरीचोपै., संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १८४४४). धन्नाअणगार चौपाई, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: त्रिभुवन नायक वीरना चरण; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-७ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) १२०४७४. (+) मानतंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:मानवतिरास., संशोधित., जैदे., (२७४१३, १३४२८). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४२ गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) १२०४७५. कर्मपच्चीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४१२.५, ९-११४३५). कर्मपच्चीसी, मु. हर्ष ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: देव दानव तिर्थंकर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) १२०४७६. पर्यषणाष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९४१, श्रावण शुक्ल, ४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. पल्लिका नगर, प्रले. पं. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१३.५, १३४३१). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्तार; अंति: पद्यबंधं विलोक्य तत्. For Private and Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२०४७७. (#) जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, प्रतिमाखंडित भंडारवा विधि व धजाकलश पूजन, संपूर्ण, वि. १९३९-१९४३, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. ३, प्रले. पं. दोलतरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, दे., (२७७१३.५, १८४३५). १. पे. नाम. जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, पृ. १अ-१४अ, संपूर्ण, वि. १९३९, फाल्गुन कृष्ण, ८, शुक्रवार, ले.स्थल. अगस्तपुर, पठ. मु. लाल, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:प्रति०अंजन०. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: हवे पूर्वोक्त भव्य; अंति: धूप विधि करवो कंकण छोडवू. २. पे. नाम. प्रतिमा खंडित भंडारवा विधी, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण, वि. १९४३, पौष शुक्ल, ३. खंडितप्रतिमा विसर्जन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम जिनपंजरनी गाथा भणी; अंति: महोत्सव करवो देरासर मध्ये. ३. पे. नाम, धजाकलश पूजन, पृ. १५अ, संपूर्ण. ध्वजकलशपूजन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमुलनायकजीना गभाराथी; अंति: ढांकवो पछे पुखणाथी पुखवो. १२०४७८. कायाकुटुंब सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. मेताग्राम, प्रले. पं. हरिसागर; अन्य. श्रावि. जडीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१३, ७४४५). औपदेशिक सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु., पद्य, आदि: नाहलो न माने रे; अंति: जोज्यो पंडित विचार, गाथा-११, (वि. प्रथम गाथा का टबार्थ अपूर्ण मात्र लिखा है.) १२०४७९ जिनबिंबप्रतिष्ठामुहूर्त विधि, अपूर्ण, वि. १९३९, श्रेष्ठ, पृ. १०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्रले. मु. दोलतरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रतिष्ठामुहूर्त जोवा. प्रतिलेखन पुष्पिका पत्रांक-१०अ पर लिखी है, किन्तु कृति अपूर्ण है., दे., (२७७१३.५, १८४३६). जिनबिंबप्रतिष्ठामहर्त 7, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य स्वस्तिऋद्धिअ; अंति: (-), (पू.वि. वत्सचक्र संपादन विधि तक है.) १२०४८५. चार प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९००, कार्तिक शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:चारोरी प्रतबोलारो., दे., (२६.५४१२.५, १९४३२). ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अति भली; अंति: समयसुंदर० रूडा साधजी, ढाल-५. १२०४८७ (+) महादंडक ३० द्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. पाली, प्रले. सुखदत्त बोडा; राज्यकाल रा. तखतसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:महादंडक., संशोधित., दे., (२७.५४१३, १८४५१). महादंडक ३० द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक १ लेस्या २ ठिती; अंति: विरहना बोल थकी जाणवो. १२०४९० (+) नवतत्त्वभेद बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२७७१३.५, १३४३२). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व १ अजीवतत्त्व २; अंति: (-), (पू.वि. संवरतत्त्व बोल अंतर्गत १२ भावना विवरण तक है.) १२०४९१ (+) नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. म. सरूपचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१३.५, १०x१९). नेमिजिन स्तवन, मु. लाल, पुहिं., पद्य, आदि: गढ ऊंचो घणो रे; अंति: लाल० चरणा तिहारी को, गाथा-७. १२०४९२. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१४, १४४२४). पार्श्वजिन स्तवन-जैसलमेरमंडण, म. हितधीर, मा.गु., पद्य, वि. १८३२, आदि: त्रिभुवनपति तेवीसमा; अंति: जयो जयो दिनकार ए, गाथा-११. १२०४९३. चेलणासती चोपाई, संपूर्ण, वि. १९५०, कार्तिक कृष्ण, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. पाली, प्रले. मूलचंद व्यास ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चेलणा०., दे., (२७७१३, १७४४३). चेलणासती चौपाई, म. दयाचंद ऋषि, मा.ग., पद्य, आदि: चोवीसमा महावीरजी; अंति: दयाचंद० सुखे रह्या हमवासो, ढाल-१३. For Private and Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२०४९४. (+) अनुत्तरोपपातिकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०१, आश्विन शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १८, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७.५४१३.५, ७४४४). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: तहा णेयव्वं, अध्याय-३३, ग्रं. १९२. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणइ कालइ चउथा; अंति: धर्म कथानइ विषई कह्यौ छउ. १२०४९५ (+#) १२ देवलोकविमान स्वरूप संख्या विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१३, १८४३७). १. पे. नाम. १२ देवलोकविमान स्वरूप संख्या विचार, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अंगणाइ. ___ मा.गु., गद्य, आदि: हाथ जोड मान मोडवनणी; अंति: अने तेवीस विमाण हुवा छे. २. पे. नाम. निगोदजीव जन्ममरण संख्या विचार, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: असंख्यातासमानी १ एक आवलका; अंति: सासोउसास एकण दीनरा छे. ३. पे. नाम. ७ अभव्य अधिकार, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अभव्य छे १ कपलादासी २; अंति: उदाइनो मारणहार छे. ४. पे. नाम. वैमानिक इंद्र भोगयोग्य देवीसंख्या विचार, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:देवलोकरी विगत. मा.गु., गद्य, आदि: सुधर्मादेवलोकना इंद्रनो २; अंति: आगे तीजा इंद्रनी परइ कहवो. ५. पे. नाम. ८ अनंताद्रव्य विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.ग., गद्य, आदि: आठ बोल अनंता अलक १ सिध २; अंति: वनासपतीना जीव अनंता. १२०४९६. दीपावलीपर्व रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:दिवाली., दे., (२७.५४१३, १७४३७). दीपावलीपर्व रास, म. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: भजन करो श्रीभगवंतरो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३५ अपूर्ण तक है.) १२०४९७. (+) जंबूचरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, प्र.वि. हुंडी:जंबूचरित्र., संशोधित., दे., (२७.५४१३.५, १७४३६). जंबूस्वामी चरित्र, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२६, आदि: भरतक्षेत्रमांहि विचरत; अंति: चोथमल० करम खेयकर नेहांमी, ढाल-७१. १२०४९८. (+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. सरूपचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१३.५, १०४२१). शत्रंजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: सुणि सुणि शेजा; अंति: श्रीजिनभक्तिसुरंदा, गाथा-१०. १२०५०० (+) २४ जिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७X१४, १३४३७). २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मसुता वाणी गिर्वाणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण तक है.) १२०५०१. दानविषयै वछराजहंसराज चउपइ, संपूर्ण, वि. १९२४, आश्विन कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ५१, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. मु. नथमल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७७१३.५, १३४२३). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदीसर आदि करी चोवीसे; अंति: दिन दिन हुवइ जयकार, खंड-४ ढाल-४८, गाथा-९०५. For Private and Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२०५०२. (+) जिनसहस्रनाम पूजन भाषा व अकृत्रिमचैत्यालय पूजन, संपूर्ण वि. १९३३, पौष शुक्ल ५, बुधवार, मध्यम, पृ. ७७, कुल पे. २, ले. स्थल. सवाइजैपुर, अन्य. श्राव. ऋद्धकरण गोधा ; श्राव. सूवालाल गोधा (परंपरा श्राव. ऋद्धकरण गोधा ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में "अजमेरिका बडा धहा का मंदिरजी का भंडार की छै." व "श्री भट्टारकजी म्हाराज की आम्नाय कै लिखाकर चढाई ऋद्धकर्णजी गोधा की बहु सुवालालजी की मा नै पानी नै पाच उपवास पूरण हूवा तदि चढाई लिखाई का ८॥ रूप्या लाग्या संवत् १९५१ कामे. ऐसा उल्लिखित है, संशोधित. प्र. ले. श्लो. (१४७७) करि कटिग्रीवा नैन मन, वे., (२८४१३, १०X३५). " " १. पे. नाम. जिनसहस्रनाम पूजन भाषा, पृ. १आ- २३अ संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: सहश्रना०. श्राव. चैन, पुहिं.,सं., प+ग., वि. १९वी, आदि: (१) वृषभ आदि तीर्थेश नाभिकुल, (२)ॐ ह्रीँ श्री मानादिधर्म०; अंति: (१)चैन० छिन न भजूं वसु जांम, (२)श्री जिनाय अर्घं अर्चयामि, अज्ञात-२२०. २. पे. नाम. अकृत्रिम चैत्यालय पूजन, पृ. २३आ-७७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: अक्रति ०. श्राव. चैन, पुहिं., प+ग., वि. १८६५, आदि: नमत सक्र सतशीस ईस चउवीस; अंति: चैन०० पूरण पाठ महांन. १२०५०३ (०) शांतिजिन स्तवन, आदिजिन स्तवन व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ८, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८४१३.५, १९४४८). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिनंदनी सेवा अति: सहाई तुझ पद सेवा दीजे रे, गाथा-७. २. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाभिनंदन जगवंदन देव; अंति: सुबुधिविजय० सुख की बगसीस, गाथा - १०. ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. आदिजिन स्तवन- धुलेवातीर्थमंडन, मु. दीप, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभजिणंद दयाल कृपानिधि; अंति: गरीबनीवाज बिरुद संभारजो, गाथा-७. ४. पे. नाम जिनपूजा पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि चलीये जिनेसर बंदिये जांके अंतिः अ धारीये जा मे पुजा रचाय, गाथा- ३. " ५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. हर्षकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि डिगरो बताय दे पगारीयां अंति हरषकीरत० आवागमण नीवार, गाथा- ३. ६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हरसुख, मा.गु., पद्य, आदि आवो प्रभूमिंदर जिनवाणी, अंति हरसुख० भविजीव संभारोजी, गाथा ४. ७. पे. नाम, साधारणजिन पद, पू. १आ, संपूर्ण मु. हरसुख, पुहिं, पद्य, आदि दीनानाथ प्रभुजी मोरी अरज; अंति हरसुख० भवसागर से पार करणो गाथा ४. " ८. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण, मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि लीज्यो लीज्यो नाम तंतसार; अति आवागमण निवार रे, गाथा ५. " १२०५०५ ४ शाश्वतजिन व २० विहरमानजिन नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे. (२७.५x१३, ८४१२). १. पे. नाम च्यारशाचताजिन नांम, पू. १आ, संपूर्ण ४ शाश्वतजिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि १ श्रीऋषभाननजी अंति: ४श्रीचंद्राननजी. २. पे नाम. वीसविहेरमानजीना नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सीमंधर १ युगमंधर २; अंति: श्रीअजितवीर्य २०. १२०५०६ (+४) सूक्तावली सह टबार्थ व कथा-प्रथमवर्ग, संपूर्ण, वि. १८४५, वैशाख शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १३७, ले. स्थल घाणोरानगर, प्रले. पं. नित्यसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५X१३, १५X४५). For Private and Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ , सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु. सं., पद्य, बि. १७५४, आदि सकलसुकृतवल्लि वृंदजी, अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. पुष्पिका में कर्ता के रूप में कनकविमलजी का उल्लेख है किंतु वस्तुतः कर्ता केशरविमल ही हैं.) सूक्तमाला - टबार्थ, मु. धर्मविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८२७, आदि सकलि पुण्यरूप वेलीनी, अंति (-), प्रतिपूर्ण. सूक्तमाला-कथा, मु. धर्मविजय, मा.गु. सं. प+ग. वि. १८३०, आदि: प्रणमी सद्गुरु शारदा अंति: (-), प्रतिपूर्ण १२०५०७ (+#) स्तुति, स्तवन व स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २१वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. १०, प्रले. श्राव. मोहन गिरधर भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी स्तोत्रो, पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२७.५x१३, १३४५२). १. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिनस्तुतयः, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण, वि. २००५, भाद्रपद शुक्ल, ७, मंगलवार, ले. स्थल. सादडीनगर, अन्य अमृतलाल गिरधर हेमचंद भोजक लिख आ. विजयललितसूरि (गुरु आ वल्लभसूरि, तपागच्छ); गुपि. आ. वल्लभसूरि (गुरु मु. हर्षविजय *, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, पे. वि. अंत में "जयवीरगणिनालेखिखत संवत् १५०० श्रावण सुदि पंचम्यां वेदर महानगरे ते उपरथी सं० २००५ना भादरवा सुद ७ मंगलवारे. मारवाडदेसे सादडीनग नातीनोरा तपागच्छाचार्य श्री विजयवल्लभसूरिश्वर पट्टालंकार विजयललितसूरिश्वरजीए गुजरात पाटणना वागोलपाडाना गिरधरभाई हेमचंदना प्राचिन पुस्तक साचवनार अमृतलाल पासेथी मेलवी गुजरात पाटणना जिनगुणगायक भोजक मोहन पासे लखावेल." ऐसा उल्लिखित है. , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ जिन स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: पढमो नरेसराणं पढमो; अंति: भगवओ संघस्स खेमंकरा, गाथा-२७. २. पे नाम सर्वजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि बिंबानि यानि विद्यते अति संघस्य जिनेंद्रवचनोद्यताः, श्लोक-४. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. शाश्वतजिन स्तव, प्रा., पद्य, आदि: वंदामि सत्तकोडी लक्ख; अति विहु नमु॑सामि गाथा-५. ४. पे. नाम. ऋषभदेव स्तोत्र, पृ. २- ४अ, संपूर्ण, वि. २००५, भाद्रपद शुक्ल, ८, बुधवार, ले. स्थल. राणकपुर, पे. वि. अंत में "आ स्तोत्र गुजरात पाटणना जिनगुणगायक भोजक मोहन गिरिधर श्री राणकपुरतीर्थनी यात्रा करीने लखेल छे." ऐसा उल्लिखित है. आदिजिन स्तव, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि ॐकारः सकलत्रिलोककमला: अंतिः ०सुंदरपरब्रौकलीनं मनः, लोक-२५ ५. पे नाम. शत्रुंजय आदिनाथ स्तव, पृ. ४अ ५अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तोत्र-शत्रुंजयतीर्थमंडन, सं., पद्य, आदि: श्रीमंतं परमेश्वरं जिनवर; अंति: ० मयमनघं सर्वसंपत्तिबीजं, लोक-१९. ६. पे नाम. वामेय स्तवन, पृ. ५अ ६अ, संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तव जीरापल्ली, आ. लक्ष्मीसागरसूरि, सं., पद्य, आदि श्रीवामेयं विधुमधुसुधासार, अंतिः एव लक्ष्मी विशेषाः, श्लोक - १३. सं., पद्य, आदि: तुभ्यं नमः समयधर्मनिवेदक: अति: नमश्चरणवैभवदायकाय! श्लोक-८. ९. पे. नाम. पुरुषादानी पार्श्वदेव नाममाला, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. ९१ ७. पे. नाम. सीमंधरस्वामिनोष्टक, पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण. सीमंधरजिनाष्टक, आ. शीलरत्नसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणलतासुवसंतर्त्त; अंति: शीलरत्नसूरि० शोभितः, श्लोक - ९. ८. पे. नाम. वीतरागाष्टक, पृ. ६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only पार्श्वजिन अष्टोत्तरनाम छंद, मु. उत्तमविजय, मा.गु, पद्य, वि. १८८१, आदि पास जिनराज सुणी आज अंति: संपदा सुख वरियी गाथा २१. १०. पे नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-शंखेश्वर, सं., पद्य, आदि: अपूपुजत्यां विनमिर्नमिश्च; अंति: तव देव चैत्यम्, श्लोक - ५. १२०५०८. (+) कल्पसूत्र का बालावबोध-पीठिका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, प्र. वि. हुंडी : कल्पसूत्र., संशोधित., दे., (२८x१२.५, १५X३०). Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास 'श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. खीमाविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७०७, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १२०५१० (+) भक्तामर स्तोत्र सह बालहितैषिणी टीका, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२ प्रले. ग. दीपविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित त्रिपाठ, मूल पाठ का अंश खंडित है अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५X१३.५, ३x४८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४, ग्रं. ७७. भक्तामर स्तोत्र वालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य वि. १६५२, आदि: प्रणम्य परमानंददायकं अंतिः मायातीति मंगलम्, ग्रं. ६९३. १२०५११ (+) औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ३-१ ( २ ) = २ कुल पे ४, प्र. वि. पत्रांक अनुमानित है, संशोधित. दे. (२७४१३, २०x४४). " १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सुमति, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: सुमति कहे० सो मान ले लाल, गाथा-१२, (वि. पत्र खंडित होने के कारण आदिवाक्य अवाच्य है.) २. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, रा., पद्य, आदि जीवाजी थाने मे वरजांछा अति: रुपचंद० भवदधि पार उतारो, गाथा-३. ३. पे. नाम. हिमदंडक विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जोण ३ तीनरा सजत जोण अति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "बाकी सर्व में भाव३" पाठ तक लिखा है.) ४. पे नाम समकित सड़सठ बोल, पू. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है. ६७ समकित बोल, मा. गु, गद्य, आदि (-); अंति (-) (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल- ३० से है व ६० अपूर्ण तक लिखा है. १२०५१२. (+#) चंदराजा चरित्र शीलाधिकारे, अपूर्ण, वि. १८८४, माघ शुक्ल, ९, शुक्रवार, जीर्ण, पृ. १५६-९६ (१ से ३६,३८,५५*,७२ से ८३,८९ से १२४,१३२ से १३९,१४४ से १४५) ६०, ले. स्थल, पुना, प्रले. पं. ऋषभहर्ष (गुरु मु. चंद्र हर्ष); गुपि. मु. चंद्रहर्ष (गुरु पं. मनरूपहर्ष); पं. मनरूपहर्ष (गुरु पं. नेमहर्ष); पं. नेमहर्ष (गुरु पं. हेमहर्ष); पं. हेमहर्ष, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी: चंदरास, संशोधित कुल ग्रं. ३०२९, मूल पाठ का अंश खंडित है, टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (४२८) मन रंजन वांणी मगन, (११२५) पढण गुणण कुं पुस्तिका, (११३४) तैलात् रक्षे जलाद्रक्षे, जै., (२८x१२.५, १२४३७). चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि (-); अंति ते पामे शिवसुख लील, खंड-६ ढाल १०३, गाथा-२५०५, ग्रं. ३०२९, (पू.वि. खंड- २ ढाल १२ दोहा - २ अपूर्ण से है व बीच-बीच के गाथांश नहीं हैं.) १२०५१५ (०) नवपदपूजा स्तवन व आरती, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. कुल पे. २. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२६.५x१३, १०x२५). "" १. पे. नाम, नवपद स्तवन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि अरिहंत पद ध्यातो थको अति वासखेषं यजामहे स्वाहा, पूजा - ९. २. पे नाम नवपदजी की आरति, पृ. २आ, संपूर्ण नवपद आरती, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि भवीजन मंगल आरति करीय, अंति क्षमाकल्याण ते पावे, गाथा - ५. १२०५१७. पच्चक्खाणतपमान यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २६.५X१२, १५x२४). पच्चक्खाणतपमान यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). १२०५१९ (+) दशवैकालिकसूत्र १ से ४ अध्ययन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ४, प्र. वि. हुंडी दसमिकाल., अशुद्ध पाठ- संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२८४१३, २४४४३) For Private and Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १२०५२० (+#) गौतमस्वामीनो रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:गौतमरासो., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२८x१३, १४४३८). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: जयभद्रसूरि इम भणे ए, ढाल-६, गाथा-४८. १२०५२२ (+) शनिश्चरदेव छंद व शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१३, ११४२८). १. पे. नाम. शनीश्चर स्तोत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. शनिश्चरदेव छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति; अंति: तुं सुप्रसन्न शनीसर, गाथा-१७. २.पे. नाम. सींधगरेनौ पद, पृ. २आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. क्षमारत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: सिद्धाचलगिरि भेट्या; अंति: रतन प्रभु प्यारा रे, गाथा-५. १२०५२४. (+) अध्यात्मस्वरूपबावनीना दूहा, संपूर्ण, वि. २१वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१३, १८:५५). __ अध्यात्मबावनी, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: माया जाळ मूकीपरी; अंति: पद लह्यो जिनवर पदवी फूल, गाथा-५२. १२०५२५. ७२ स्वप्न विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८-५७(१ से ५७)=१, जैदे., (२८x१३, २०४५७). ७२ स्वप्न विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: सूर्यसिद्धांत थकी सांभलवा, संपूर्ण. १२०५२६ (+) स्तवनचौवीसी व संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. २, प्रले. म्. महेंद्रविजय; पठ. पं. विनयविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१३, ११४३४). १. पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. १आ-१३आ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए तो प्रथम तीर्थंकर; अंति: वसीयो त् विसवावीस रे, स्तवन-२४. २. पे. नाम. शंभवजिन स्तवन, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, म. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: ससनेही जिनराय मलिये; अंति: मोहन कहे चरणे नमी जी, गाथा-७. १२०५२७. ढालसागर, संपूर्ण, वि. १९१६, कार्तिक शुक्ल, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ९२, ले.स्थल. भीमरडीबंदिर, प्र.वि. हंडी:ढालसागर. अंत में पद्मावती आराधना का यंत्र व मंत्र लिखा है., दे., (२८.५४१३, २८४४८). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंति: गुणसागर० आणंद थाय रे, खंड-९ ढाल-२३४, ग्रं. ५७५०. १२०५२९ (+) योगचिंतामणि सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:योगचिंताम०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२८.५४१३.५, १५४४४). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-२ श्लोक-४८ अपूर्ण तक है.) योगचिंतामणि-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदिः (१)श्रीसर्वज्ञं प्रणम्यादो, (२)श्री वीतरागदेवनै वंदणा; अंति: (-). १२०५३२. (+) शांतिजिन स्तवन व वीसस्थानकतप स्तुति, संपूर्ण, वि. १९३५, कार्तिक, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. अजबचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१३, १५४२९). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. भावसागर, पुहिं., पद्य, आदि: सेवा शांति जिणंद की कीजै; अंति: संघ मंगलकारी वेलो, गाथा-१६. २. पे. नाम. वीसस्थानक स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप स्तुति, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अरिहंत १ सिद्धि २ पवयण ३; अंति: सानिध करे तसु चंग, गाथा-४. १२०५३३ (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२७४१३,११४३५). For Private and Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जीवविचार प्रकरण, मु. मणिविजय, सं., पद्य, वि. १९०८, आदि: प्रणम्य शिरसा पार्श्व; अंति: मन्युपदस्तुविजय० सार्थक, श्लोक-३८. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: सिरसा नाम मस्तकेण; अंति: तिका सार्थक होतो हवो, (वि. आवश्यकतानुसार ही टबार्थ लिखा है.) १२०५३५ () ९६ जिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, ११४२८). ९६ जिन स्तवन, उपा. मूला ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: केवलनाणी श्रीनिरवाणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४७ अपूर्ण तक १२०५३६. आर्यवसुधारा:द्धारिणी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३०, फाल्गुन शुक्ल, १०, सोमवार, मध्यम, पृ.७, ले.स्थल. पोरबंदर, प्रले. रामचंद रायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वशुधारा., दे., (२७.५४१३.५, १२४३६). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैनस्य; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. १२०५३८. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६०, भाद्रपद शुक्ल, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४१, प्रले. श्रीनाथ जोषी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दशविका०ट०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., दे., (२७.५४१३, ७४४४). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि, अध्ययन-१०. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मु. श्रीपाल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं गौतमं; अंति: तुज प्रतइ कहु छु. १२०५३९. पंचकल्याणक महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०९, भाद्रपद अधिकमास कृष्ण, ३, मध्यम, पृ.७, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. इंद्रहस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कल्याण०., दे., (२५.५४१३.५, ८x२७). महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, म. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंद; अंति: नामे लही अधिक जगीस ए, ढाल-३, गाथा-५६. १२०५४० (+) वीसस्थानकजीकं क्षमाश्रमण दैण का विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५, प्रले. रिषलाल मथेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७७१३.५, १२४३५). २० स्थानकतप विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तिहां प्रथम थानकै; अंति: हजार दोय गुणनो करणो. १२०५४१ (#) गौतमनो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५४१४, १३४२४). गौतमस्वामी छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मात प्रथवीसुत प्रात उठ; अंति: सुजस सौभाग्य दोलत सवाई, गाथा-९. १२०५४३. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८५५, पौष कृष्ण, २, सोमवार, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. रविपुर, प्रले. मु. माणेकसागर (गुरु पं. भानुसागर गणि); गुपि.पं. भानुसागर गणि (गुरु पं. प्रसिद्धसागर गणि); पं. प्रसिद्धसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५४१३.५, १८४३९). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा; अंति: विशोध्यं विचक्षणैः. १२०५४५. नेमराजिमती गीत, अध्यात्मिक होरी व सपार्श्वजिन स्तत्यादि संग्रह, अपर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प.७-२(१ से २) कुल पे. ८, प्र.वि. रूप ऋषि कृतिसंग्रह., जैदे., (२८x१३.५, ८x२५). १. पे. नाम. बंगला बोली मे साडी, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ___ साधारणजिन स्तवन, मु. रूप ऋषि, बं., पद्य, आदि: मौना लागिनो रे तुमार; अंति: रूप० दीजो मुक्ति गोरी, गाथा-५. २.पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ मु. रूप ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: नेमिनाथ जीवन प्यारा हे; अंति: रूप० वंदित अघ सव डारा हे, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, म. रूप ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: हो ऊभी जोऊ हो मंदिर में; अंति: रुप ऋषि० जाय राजुल सतिया, गाथा-४. ४. पे. नाम, चक्रेश्वरीदेवी गीत, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. रूप ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: जय चक्केसरी माता सेवक ने; अंति: रूप ऋषि० होइ जे सदा सहाई, गाथा-४. ५. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मु. रूप ऋषि, ब्र., पद्य, आदि: मुख हु न बोल्या पियवा; अंति: ऋषि रूप० पुरी मुझ मन आस, गाथा-४. ६. पे. नाम, आध्यात्मिक होरी पद, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण. मु. रूप ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: चेतन खेलो होरी इस काया; अंति: रूप ऋषि सुखकारी, पद-४. ७. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मु. रूप ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: जग मोहिया तो सूप्रीते; अंति: रूप ऋषि० आस मुझ पूरो, गाथा-४. ८. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तुति, पृ. ७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: मन भायो मेरे पदमप्रभु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण तक है.) १२०५४६. (+) दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:दंडक. बाँये भाग में पावरेखा के बाहर रंगीन चित्र दिये हैं., संशोधित., जैदे., (२३.५४१३.५, १५४४३). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिऊं चउवीस जिणे तस; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-३८. १२०५४९. योगशास्त्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७७१३, ३०४५५). योगशास्त्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५०८, आदि: (१)सिद्धार्थक्षितिपालसुनुमम, (२)श्रीवर्द्धमानदेवनई; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मानवशरीर का वर्णन अपूर्ण तक लिखा १२०५५०. नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४१३.५, ११४३०). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. आचार्यपदपूजा अपूर्ण से ___ उपाध्यायपदपूजा ढाल की गाथा-४ अपूर्ण तक है.) १२०५५१. (+) लघुस्तव सह टीका व आनंदलहरी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३४, आश्विन शुक्ल, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, ले.स्थल. नागोर, प्रले. शिवदेव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१४, १८४३७-५१). १. पे. नाम. लघुस्तव सह टीका, पृ. १आ-१२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:लघुस्तवराज. त्रिपुराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., पद्य, आदि: ऐंद्रस्यैव शरासनस्य; अंति: यस्मान्मयापि ध्रुवम्, श्लोक-२१. त्रिपराभवानी स्तोत्र-ज्ञानदीपिका टीका, आ. सोमतिलकसरि, सं., गद्य, वि. १३७९, आदि: सर्वज्ञं पुंडरीकाक्ष; अंति: चतुःशती अंकतोपि, ग्रं. ४७०. २. पे. नाम, आनंदलहरी स्तोत्र, पृ. १२आ-१३आ, संपूर्ण. आनंदलहरी, शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: भवानि स्तोतुं त्वां; अंति: तस्य ज्वरजनितपीडापसरति, गाथा-२०, (वि. अंत ___ में देवी स्तुति हेतु एक श्लोक लिखा है.) १२०५५८. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, दे., (२६४१३.५, १३४३३-३६). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-बालावबोध, मा.ग., गद्य, आदि: ते काल चोथा आराने विषे ते; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ मेघकुमार व माता-पिता संवाद अपूर्ण तक लिखा है.) १२०५५९ (+#) स्नात्रपूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१४, १३४३०). For Private and Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९६ www.kobatirth.org स्नात्रपूजा, श्राव. देपाल भोजक, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: (१) प्रथम ३ बाजोट उपराउपरें, विकार अति: चतुर्विधसंघने मंगल होजो, कुसुमांजलि ५ (वि. विधिसहित) १२०५६२. (+) महावीरजिन चैत्यवंदन व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०बी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६४१४, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०X२३). १. पे. नाम महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नव चोमासी तप कर्या; अंति: लहीए नित्य कल्याण, गाथा-७. २. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची (२) मुक्तालंकार पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरकुंवरनी वातडी, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) १२०५६४. (*) सीमंधरजिनजीनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, पठ सा जीवकोर श्री जी सा. जितश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६४१३.५, १३४३८). " " सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण सरसती भगवती तोरी; अति पूर्व पुन्ये पाया रे, ढाल - ७, गाथा- ४०. १२०५६५. । . (+#) समकितछप्पनी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४१४, २४४३५). सम्यक्त्वछप्पनी, मा.गु., पद्य, आदि: इम समकित मन थिर करो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ३८ अपूर्ण तक है.) १२०५६७. औपदेशिक लावणी व कक्कावली, संपूर्ण, वि. १९०४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. नागोर, प्रले. पं. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२६४१२.५, १२५५९). १. पे नाम औपदेशिक लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: सुकरत की बात मेर हाथ; अंति: से जोर तेरो नहीं रे, गाथा-५. २. पे. नाम. ककावली, पृ. १आ, संपूर्ण. (२६.५X१२.५, २१-२३X६५-६९). १. पे नाम, जैनधर्ममाहात्म्ये वैदिक साक्षीपाठ संग्रह, पू. १अ २अ संपूर्ण. कक्कावली पद, रा., पद्य, आदि: कका रे भाई कांम करता; अंति: भाई खरे अखरे कांनो दीजे, गाथा- ३५. १२०५७०. जैनधर्म माहात्म्ये वैदिक ग्रंथ साक्षीपाठ संग्रह व ब्रह्मजिज्ञास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., जैनधर्म माहात्म्ये वैदिक साक्षीपाठ संग्रह, सं., प+ग, आदि भारतेनुशासनपर्वणि अंति रूपः सर्वलोक प्रत्यक्ष. २. पे. नाम. ब्रह्मजिज्ञास, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ब्रह्मजिज्ञास उपनिषद-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ ब्रह्म एक शुद्ध चेतन; अंति: विचार परमहंस ज्ञान. १२०५७१. पीसतालीस आगम पूजा, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ८, प्रले. मु. जीवणविजय, लिख. मु. देवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५x१४, ११४२६). ४५ आगम पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि सुखकर साहिब सेवी अंति उत्तम० जय जयकार विशाला जी, ढाल ४६ गाथा ७६. " १२०५७४. महाविदेहक्षेत्र यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७१३, १५X४५). महाविदेहक्षेत्र यंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अति: (-). १२०५७३. (+#) त्रैलोक्यप्रकाश-लग्नज्ञान प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. रामजीदास व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी तिलोकप्रकास, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२७४१३, ११४३९). त्रैलोक्यप्रकाश, आ. हेमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. वस्तुतः मूल कृति के आधार से श्लोकक्रम ३० से १११ तक है.) For Private and Personal Use Only १२०५७८. (+०) चतुर्विसतितीर्थंकर की पूजा, संपूर्ण, वि. १९२९ भाद्रपद कृष्ण, १४, रविवार, मध्यम, पृ. ६७, ले. स्थल. लिछमणगढ, प्र. वि. हुंडी: पुजाचोइस, संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२६४१४, १०२९). Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २४ जिन पूजा, श्राव. रामचंद्र चौधरी, पुहिं., पद्य, वि. १८५४, आदि: सिद्धि बुद्धि दायक; अंति: कीर्ति जग विस्तरै, पूजा-२४. १२०५८३. (+) आत्मावबोध वचनिका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१३.५, १३४४३). आत्मावबोध वचनिका, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ते गुरु गृणाति वदति; अंति: (-), (पू.वि. पदस्थादि ४ ध्यानवर्णन अपूर्ण तक है.) १२०५८४. जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, कृष्ण चौपाई व औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ४, प्रले. सा. राजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १६४३९). १.पे. नाम. जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:जिणरीखजिनपाल. मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी आगे हुई; अंति: खेत्र चव जासी मोख, ढाल-४, गाथा-६८. २. पे. नाम. किसनजी चोपी, पृ. ३अ-१०अ, संपूर्ण, वि. १९००, चैत्र शुक्ल, २, बुधवार, ले.स्थल. पाली, पे.वि. हुंडी:कृष्णनी, किसनजीरी. कृष्णमहाराजा ढाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमनाथ समोसर्या; अंति: भव ज्यारो सहीसुं धरसी, ढाल-१८. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १०अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: काल गयो जाण्यो भरतार; अंति: नरगतणा दुख आहि ज दीयै, गाथा-६. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: माटीरी गणगोर वणाइ पुजे; अंति: न समजै धरम करतां लाजो, गाथा-५. १२०५८५. डाकिनी आदि भगाने का मंत्र, घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र व पंचांगुलीमाता मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२६.५४१३.५, ८x२९). १. पे. नाम. होदा को मंत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. डाकिनी आदि भगाने का मंत्र, हिं., गद्य, आदि: ॐ नमो आदेस गुरु कुं ॐ नमो; अंति: लो मंत्र इश्वरो वाचा. २. पे. नाम. घंटाकर्ण मंत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो घंटाकर्णो महावीरः; अंति: नमोस्तु ते स्वाहा, श्लोक-४. ३. पे. नाम. पंचांगुलि मंत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. पंचांगुलीमाता मंत्र, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐनमो पंचांगुली परसर; अंति: ॐ ठः ठः ठः स्वाहा. १२०५८६. (+#) गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७७१३, १३४३५). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमला; अंति: (-), (पूवि. गाथा-३६ अपूर्ण तक हैं.) १२०५८७. (#) चारित्रमनोरथमाला स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, वैशाख शुक्ल, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. स्थंभपूर, प्रले. कामेश्वर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४१३, १३४३७). चारित्रमनोरथमाला सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुपाए प्रणमी करी; अंति: लालविजय० दिइ मुगतिर्नु राज, गाथा-३५. १२०५८८. ५ कारण स्तवन, भगवतीसूत्र सज्झाय व औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्रले. दलसुखराम अंबाराम भोजक, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२६४१३.५, १४४३२). १. पे. नाम. पंचमगर्भित विरजीन स्तवन, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. ५कारण स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथसुत वंदिये; अंति: विनय कहइ आनंद ए, ढाल-६,गाथा-५८.. २. पे. नाम. भगवतिजी की गुअली, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. विनयचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पंचम आगम भगवति झांणियै रे; अंति: विनय० मुगतिपुरीनो राझरे, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: वन्ये रणे सत्रुजलाग्नि; अंति: काया तदपी मरणपाय चकि तहां, श्लोक-३. १२०५८९ (+) रामविनोद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१४, १३४३२). रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिद्धबुद्धिदायक सलहीयै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८६ अपूर्ण तक है.) १२०५९२. २० विहरमानजिन नाम यंत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९३१, माघ कृष्ण, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. १७-१६(१ से १६)=१, कुल पे. ४, ले.स्थल. वडगांमनगर, प्रले. पं. दोलतरुचि (गुरु मु. लालरुचि); गुपि.मु. लालरुचि (गुरु पं. दलपतिरुचि); पठ. मु. पुनमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वीचारपत्र. श्रीचिंतामणी पार्श्वजिन प्रसादात्, श्रीचंदाप्रभुजी., दे., (२५४१३, २५४५८). १. पे. नाम. परकस्वरूप, पृ. १७अ, संपूर्ण. ६आरा विचार, सं., गद्य, आदि: सुसमसुसम प्रथमारके; अंति: सोल आयुं हस्त१ उच्चत्वं. २. पे. नाम. २० विहरमानजिन मातापितादिविगत यंत्र, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. २४ जिननाम-अतीत, पृ. १७आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम-अतीत, मा.ग., गद्य, आदि: श्रीकेवलज्ञानी० निर्वाणी; अंति: स्यंदनजी श्रीसंप्रतिजी. ४. पे. नाम. २४ जिन नाम-अनागत, पृ. १७आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपद्मनाभजी श्रेणिकजीव१; अंति: भद्रंकरजी स्वातिकजीव२४, (वि. अंत में चार शाश्वतजिनों के नाम दिये हैं.) १२०५९४. (#) विद्वद्गोष्ठी व तडागमहिमा श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२, १३४३६). १. पे. नाम. विद्वद्जनगोष्ठी, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. विद्वद्गोष्ठी, पंडित. सुधाभूषण गणि, सं., पद्य, आदिः येषां न विद्या न तपो; अंति: नैव च कीदृशा स्युः, श्लोक-२१. २. पे. नाम. तडागमहिमा श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: एषा तटाकमिषतो वरदानशाल; अंति: भवति तत्र वयं न विद्मः, श्लोक-१. १२०५९५. (+) नारचंद्रज्योतिषशास्त्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७१, भाद्रपद शुक्ल, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. ६३, ले.स्थल, विक्रमपुर, प्रले. पं. मानसुंदर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१३.५, ५४३०-३८). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतं जिनं नत्वा; अंति: दोषा प्रकीर्त्तिता, श्लोक-२९४, संपूर्ण. ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंतनइं माहरउ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२१३ तक लिखा है.) १२०६०२. स्थूलिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२४.५४१२.५, १३४२९). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर रहण चोमासे; अंति: ऋषि लालचंद सुख सवाया, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२०६०३. खंडाजोयणनां बोल, संपूर्ण, वि. १९३४, वैशाख शुक्ल, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. नवीनपुर, दे., (२६४१३.५, १२४३८). लघुसंग्रहणी-१० द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: खंडाजोयण वासा पव्वय कुडाय; अंति: मात्र वर्णन संपूर्ण. १२०६०४. अरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१३.५, १०x४२). अरजिन स्तवन, म. रामचंद, पुहिं., पद्य, आदि: पदवी लह नरपद की यह वात; अंति: रामचंद० मुझ अविचल थान, गाथा-१५. १२०६०५. पंचमहाव्रत व रात्रिभोजन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५४१३, ११४३४). १. पे. नाम. पंचमहाव्रत सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवें रें; अंति: कांतिविजय० ते सुख लहे घणो, ढाल-५, गाथा-३१. २. पे. नाम. रात्रिभोजन सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल धरमन सार ते; अंति: कांति० धन अवतार रे, गाथा-६. १२०६०८. (+) प्रद्युम्नचरित्र की भाषावचनिका, संपूर्ण, वि. १९५४, आश्विन शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३२९, ले.स्थल. फिरोजाबाद, प्रले. दीपचंद ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रद्युम्न०., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१८) मंगलं लेखकानां च, (१५३१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२७.५४१८, १३४३२). प्रद्युम्न चरित्र-भाषावचनिका, श्राव. ज्वालानाथ खंडेलवाल पंडित; श्राव. वखतावरसिंह पंडित, पुहिं., गद्य, वि. १९१६, आदि: प्रथम श्रीसन्मति जो; अंति: प्रथ्वी पर जयवंत प्रवर्ती. १२०६०९ (+) पद्मनंदी पच्चीसी सह अर्थ व भावार्थ भाषावचनिका, संपूर्ण, वि. १९५७, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ३३२, प्र.वि. हुंडी:पद्मनंदी प०, संशोधित., दे., (२७.५४१७.५, १३४३८). पद्मनंदीपंचविंशतिका, म. पद्मनंदी, प्रा.,सं., पद्य, आदि: कायोत्सर्गायतांगो जयति; अंति: ऋधमत्र मनौ मयि, अध्याय-२६, श्लोक-९३९. पद्मनंदीपंचविंशतिका-भाषावचनिका, श्राव. जोहरीलाल; श्राव. मन्नालाल, पुहि., गद्य, वि. १९१५, आदिः (१)इस ग्रंथ के पच्चीस अधिकार, (२)जैसे अग्नि पवन करि प्रवल; अंति: (१)मन्नालालसु० करि जयवर दीन, (२)क्रोध करिवो जोग्य नाही, अधिकार-५४, गाथा-६८०. १२०६१० पंचकल्याणक पूजा-२४ जिन, संपूर्ण, वि. १९५६, पौष कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ५७, ले.स्थल. लिछमणगढ, प्रले. श्राव. शिवकरणजी लोढा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चौईसपू., दे., (२७४१७.५, १३४३८). पंचकल्याणक पूजा-२४ जिन, जै.क. वृंदावन धर्मचंद अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८७५, आदि: बंदौ पांचो परमगुरु; अंति: जानि खिमां उर आनियौं, पूजा-२४. १२०६१२ (+#) कल्पसूत्र का व्याख्यानकथा, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७.५४१३.५, १३४४०). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (प.वि. व्याख्यान-८ आदिजिन चरित्र अपूर्ण तक है.) १२०६१३ (+) एक सौ पांच बोलरो बासठियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१३.५, १३-१५४२९-४३). १४ गुणस्थानके १०५ बोल विषये बासठीयो यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). १२०६१४. पद, सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९+१(५)=२०, कुल पे. १०१, प्र.वि. हुंडी:सिद्धचक्रपूजा, स्तवन पत्र., जैदे., (२८x१३.५, १५४४३-४८). १.पे. नाम. नवपद पूजा, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सिद्धचक्रपूजा. For Private and Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: जस तणी कोई व थई अधरी रे, पूजा-९. २. पे. नाम. शांतिजिन आरती, पृ. ५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तवन पत्र. सेवक, पुहिं., पद्य, आदि: जै जै आरति शांति तुमारी; अंति: नारी अमरपद पावे, गाथा-६. ३.पे. नाम. पार्श्वजिन प्रभाती, पृ.५अ-५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाती, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदि: उठो रे मेरा आतमराम; अंति: वरतु सदा बधाइ रे, गाथा-५. ४. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. जिनलाभ, पुहिं., पद्य, आदि: चित्त सेवा प्रभु चरण; अंति: जिनलाभ० सदा गुणमण गहगाई, पद-३. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: कृपा करो गोडी पास; अंति: रूपचंद पदवी पाई, गाथा-५. ६.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सम्मेतशिखरतीर्थ, मु. खुशालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सांवलिया महाराज सिखर पर; अंति: चंदखुस्याल० गुण गावै, गाथा-५. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण, पे.वि. वास्तव में यह कृति बढते पत्र के ५अपर समाप्त होती है. __ पुहि., पद्य, आदि: प्रभु पास जिणंद की; अंति: भवजल पार उतारो रे, गाथा-४. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, प. ५आ, संपूर्ण, पे.वि. वास्तव में यह कृति बढते पत्र के ५अ पर है. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. खेम, रा., पद्य, आदि: चाकर रहिस्यां जी गौड; अंति: पदवी सेवा भक्ति सदीव, गाथा-५. ९. पे. नाम. चंद्रप्रजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण, पे.वि. वास्तव में यह कृति बढते पत्र के ५अ पर है. चंद्रप्रभजिन पद, मु. राजनंदन, पुहि., पद्य, आदि: छबि चंद्राप्रभु की; अंति: राजनंदन० गुण समरै, गाथा-३. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण, पे.वि. वास्तव में यह कृति बढते पत्र के ५अ पर है. पुहिं., पद्य, आदि: जालम जोगीडासु लागी; अंति: तन मन करु कुरुवाण रे, गाथा-३. ११. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण, पे.वि. वास्तव में यह कृति बढते पत्र के ५अ-५आ पर है. पुहिं., पद्य, वि. १८३९, आदि: लागो मारो वीर जिणंदा; अंति: सफल कीयो अवतार, गाथा-४. १२. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण, पे.वि. वास्तव में यह कृति बढते पत्र के ५आ पर है. मु. आनंदघन, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: आदि जिणंद मया करो लागो; अंति: आनंदबर्द्धन० रे आदि जिणंद, गाथा-३. १३. पे. नाम. सुमतिजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण, पे.वि. वास्तव में यह कृति बढते पत्र के ५आ पर है. मु. आनंदरूप, रा., पद्य, आदि: सुमति महाराज म्हांनु; अंति: आणंदरूप० पार उतार, गाथा-३. १४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण, पे.वि. वास्तव में यह कृति बढते पत्र के ५आ पर है. आ. जिनहर्षसरि, पुहि., पद्य, आदि: राखंरे हमारा घटमें; अंति: जिनहर्ष जिया ही राखै, गाथा-५. १५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण, पे.वि. वास्तव में यह कृति बढते पत्र के ५आ पर है. मु. नवल, मा.गु., पद्य, आदि: चालो राजा श्रेणिक; अंति: लगावो प्रभुजी से नेहरा, गाथा-५. १६. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ६अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. म. विमल, मा.ग., पद्य, आदि: चालौ संखी वंदण जईयै नाभत; अंति: सुख हेतै वंद विमल जिणंद, गाथा-४. १७. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. जैत, पुहि., पद्य, आदि: श्रीचंदाप्रभु जिनवर; अंति: भव तुम चरणां बलिहारी, गाथा-६. १८. पे. नाम. चार मंगल पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. ४ मंगल पद, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आज म्हारे च्यारु; अंति: आनंदघन उपगार, गाथा-५. १९. पे. नाम. अभिनंदन जिन स्तवन, प. ६अ, संपूर्ण. अभिनंदनजिन पद, म. बद्धिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: चोथा जिनपति आगलै नाचै; अंति: बुद्धिसागर० आपो अविचलराज, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १०१ २०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. जिनलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: आज आयो रे उछाह जीवडा नाच; अंति: श्री जिनलाभ० मो सुखवास, गाथा-१३. २१. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. हरखचंद, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनपास दयाल लगा; अंति: हरखचंद० भव का जंजाल, गाथा-३. २२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. म. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: देख्या दरसण तिहारा; अंति: रूपचंद० वैर हजारा रे, गाथा-३. २३. पे. नाम. मन सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो मन वश कर लीनो; अंति: लालचंद०पूरो वंछित आस, गाथा-५. २४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: हे जिन के पाय लाग रे; अंति: आनंदघन पाय लाग रे, गाथा-३. २५. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ७अ, संपूर्ण. मु. राजसिंह, पुहिं., पद्य, आदि: लगीय लगन कहौ कैसै छुटै; अंति: राजसिंह० नाभ दुलारै सै, गाथा-३. २६. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. ७अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सब जीव जिन बोलौ हां रे; अंति: रुपचंद गुण गावै, गाथा-४. २७. पे. नाम. आदिजिन विनती, पृ. ७अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: आदीसर जिनराज; अंति: आगे आ विनती करेजी, गाथा-५. २८. पे. नाम. शीतलजिन पद, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, म. मालदास, पुहिं., पद्य, आदि: भलै मुख देख्यौ; अंति: भव भव तुम पाय चेरो, गाथा-३. २९. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. साधुकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: आज ऋषभ घर आवै देखो माई; अंति: साधु कीरति गुण गावै, गाथा-३. ३०. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. सेवक, पुहिं., पद्य, आदि: देख्यौ री जिणंदा प्यारा; अंति: अरज है दीजै सिवपुर ठांन, गाथा-४. ३१. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, प.७आ, संपूर्ण. म. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: लग्या मेरा नेहरा; अंति: ग्यान नहीं गहिरा, गाथा-५. ३२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-परमात्मभक्ति, म.क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: परमातम पद भज रे मेरे; अंति: क्षमाकल्यांण संग सज रे, गाथा-७. ३३. पे. नाम. महावीजिन पद, पृ. ८अ, संपूर्ण. महावीरजिन पद, मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पावापुर महावीर जिणेस; अंति: जिनचरणै चित लावा, गाथा-५. ३४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ८अ, संपूर्ण. आ. जिनहर्षसरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिषभजिनेसर अतिअलवेसर; अंति: अनुभव रस लहीइं जी, गाथा-३. ३५. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. ८अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: आंगणे कल्प फल्योरी; अंति: रहिस्युं सोहलो री, गाथा-३. ३६. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. वीरजिन स्तवन, म. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: आज तो हमारे भाग वीर; अंति: चित आनंद बधाए है, गाथा-४. ३७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ८आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चेतन हो मानु ले सारी; अंति: खदाई करुणा आंणी न छतीयां, पद-३. ३८. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. रामदास, पुहिं., पद्य, आदि: नयना सफल भए प्रभु; अंति: रामदास० सिखर को राज, गाथा-४. ३९. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन जन्मबधाई पद, मु. रतन, पुहिं, पद्य, आदि जगनायक के जगनायक के अंति रतनसेवक० मनवंछित फलपईया, गाथा- ४. ४०. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ८आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. मु. विमल, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी वंदन जाइये अति सुख हेतै बंदु विमल जिणंद, गाथा-४. ४१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: वेर वेर नहीं आवे हो अवसर; अंति: समर समर गुण गावे, गाथा-५. ४२. पे. नाम. पार्श्वजिन पद- गोडीजी, पृ. ९अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंन्या. रत्नसुंदर पाठक, पुहिं., पद्य, आदि: नैना लागे रे जिणंदा मेरे; अंति: रत्नसुंदर० कै चरण लागै रे, गाथा-५. ४३. पे नाम, आदिजिन स्तवन, पू. ९अ, संपूर्ण. पंन्या. रत्नसुंदर पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: अंखिया सफल भई भेट्या; अंति: रतनसुंदर ० - जय जयकार, गाथा - ६. ४४. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. ९अ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि रसना सफल भई में तो अंतिः क्षमाकल्याण० अविचलराज, गाथा ५. " ४५. पे. नाम पदेशिक पद, पू. ९अ ९आ, संपूर्ण. मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि जैन धरम पायो दोहीलो, अंति लाहो ए लीजीये भजीये भगवान, गावा-४. ४६. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ९आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि जांणीये नृप नाभिनंद प्राण, अंति: है मंगलतूर खेम जेत वारे, गाथा-४. ४७. पे नाम. गोडीजी स्तवन, पू. ९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि विनय सजीने साहिबा अति: श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा ५. ४८. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेनजीरा हो छावा; अंति: प्रेम सदा जिणचंद, गाथा-६. ४९. पे नाम सुविधिजिन पद, पू. १०अ संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि निरत करत घेई घेई चोरासी; अंति करो तो रीझ करत केई केई, गाथा-३. ५०. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १०अ, संपूर्ण. मु. नयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वाजत रंग बधाई नगर मे; अंति: नंदलाल० दिन दिन होत सवाई, गाथा ५. ५१. पे नाम पार्श्वजिन पद, पृ. १०अ संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि हो जी वामजू की छावी; अति: पंचमगति पद पावो, गाथा-४. ५२. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १०अ, संपूर्ण. मु. आनंदराम, पुहिं., पद्य, आदि: छोटी सी ज्यांन जरासै जीव; अंति: आनंदरांम० बहु करना रे, गाथा-४. ५३. पे नाम, शांतिजिन आरती, पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण. सेवक, पुहिं., पद्य, आदि: जय जय आरती शांति; अंतिः सेवक० अमर पद पावे, गाथा- ६. ५४. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पू. १०आ, संपूर्ण, सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: चालौ सहीयौ आंपैं जईयै; अंति: अमृत ० जा करी कल्याण, गाथा- ७. ५५. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, आदि चिंतामणि चित घर रे; अंतिः भावरतन अनुसरे, गाथा-३. ५६. पे नाम आदिनाथजी स्तवन, पृ. १० आ-११अ. संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि सूरत स्वामि तुहा वे सुख; अंति क्षमाकल्यांण० निरधारी वे, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org ५७. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पू. ११अ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: निरमल हुय भज लै प्रभु; अंतिः क्षमाकल्याण अपारा बे, गाथा-४. ५८. पे. नाम. सिद्धचक्र पद, पृ. ११अ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि नवपद ध्यान धरो रे भविकां; अंति लालचंद० शिवतरु बीजवरो रे, गाथा-३. ५९. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पू. ११अ. संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, जगरुप रा., पद्य, आदि: वामासुत म्हांनु लागौ लागौ अति: जगरूप० अजब मटक अणीयालो, गाथा ४. ६०. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. ११अ ११आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु, पद्य, आदि शांति दांत कांति सोह, अंतिः श्रीजिनलाभ० भवि पार रे, गाथा ४. ६१. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पू. ११आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सुरतमंडन, ग. जिनलाभ, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: जयत्रिभुवन स्वांमी सहसफणा; अंति: श्रीजिनलाभ० सुख दीजै, गाथा ९. ६२. पे नाम. साधारणजिन पद, पृ. १९आ, संपूर्ण. 1 मु. खुशालराय पुहिं., पद्य, आदि मेरा जीवडा लग्या अति पुनपालराव० भव पातक भगा, गाथा-३. ६३. पे. नाम. गोडीपार्थ स्तवन, पृ. १९आ- १२अ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोडीपुरमंडण साहिब, अंति: क्षमाकल्यांण सवाई थायै हो, गाथा- ७. ६४. पे नाम, सिद्धाचलजी स्तवन, पृ. १२अ १२आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ, जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८६७, आदि दक्षिण भरत मझार हो लाल; अति हो जिनहर्षसूरिंद पुरंदरू, गाथा- ११. ६५. पे नाम, साधारणजिन आरती, पू. १२आ, संपूर्ण वा. हरखचंद, मा.गु., पद्य, आदि : आरती कर श्रीजिनेसरजी की ; अंति: हरखचंद० के पाव परी, गाथा-४. ६६. पे नाम, नेमजिन पद, पू. १२आ, संपूर्ण १०३ For Private and Personal Use Only नेमिजिन पद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि हेली गिरनारे बोल्यो मोर, अंति लालचंद० नेम गयी चितचौर, गाथा-५. ६७. पे नाम, नेमिजिन पद, पृ. १२आ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, पुहिं., पद्य, आदि: नेम मिलै तो मै वारीयां हो; अंति: न्यायसागर० हो प्यारे, गाथा-३. ६८. पे नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १२आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुर्हि, पद्य, आदि नेम मिलै हां ए नेम मिलै अतिः सिद्धा ए रूपचंद पद दीजीये, गाथा-४. ६९. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- पुरिसादानी, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि सुखकारी साहिब सांबरो परता; अंति: लाभवरधन० जांण कृपा करो, गाथा-४. ७०. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद- चिंतामणि, ग. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि जयवंतो जिन तेवीसमो असरण; अति: लालचंद० गमो, गाथा- ३. दुख दूर ७१. पे नाम. सुपार्श्वजिन पद, पृ. १३अ, संपूर्ण उपा. ध्रमसी, मा.गु., पद्य, आदि: सही न तजुं पास सुपासकुं; अंतिः श्रीध्रमसी० पदम सुपासकौ, गाथा-२. ७२. पे नाम औपदेशिक पद, पू. १३अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि आफ्नपो आपन बीसवीं जैसे अंतिः सूयी कहि कीन पकयीं, गाथा ४. ७३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १३अ १३आ, संपूर्ण. Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन पद- गोडीजी, मु. ज्ञानसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि मनमोहन गौडीरायजी देखत ही अंतिः ज्ञानसोभाग्य० वेग दिखाय री गाथा ५. ७४. पे नाम पार्श्वजिन पद, पृ. १३आ, संपूर्ण. मु. धर्मकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: मन लागो श्रीजिनराजसुं; अंति: धर्मकल्याण० शरण जिनराजसूं, गाथा-५. ७५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३आ, संपूर्ण. मु. राज, पुहिं., पद्य, आदि मन रे तूं छोड मायाजाल भमर अंति: उपभी सांमि नामि संभारि गाथा- ३. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. ७६. पे. नाम घडियाली पद, पू. १३आ, संपूर्ण, घडियाली गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि चतुर सुणी चित्त लायके कहा, अंतिः समयसुंदर० करो एहिज आधारा, गाथा - ३. ७७. पे नाम. उत्पत्तिनाशध्रुव पद, पृ. १३आ, संपूर्ण. मु. जिनभक्ति, पुहिं., पद्य, आदि अगम अगाध वांनी वीरजू, अंति: जिनभगति कु महा सुखकारी है, गाधा-३. " ७८. पे नाम पार्श्वजिन पद, पू. १३आ १४अ संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि चाली री सखी प्रभु दरसण अंतिः भूधर० भये सिवगारीयां, गाथा-४. ७९. पे नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पू. १४अ संपूर्ण. मु. नवलदास, पुहिं., पद्य, आदि: शिखरगिर पूजन जांना रे चलत; अंति: नवलदास० बधू चित लाना रे, गाथा-४. ८०. पे. नाम. गिरनारतीर्थ पद, पृ. १४अ, संपूर्ण. पुहिं, पद्य, आदि शिखर गिरनार जाना रे जिहां अंति: विन घडी पल छिन जाना रे, गाथा-३. ८१. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १४अ, संपूर्ण. मु. दौलत, पुहि., पद्य, आदि सरण जिनराज तेरी वो दीन; अति दोलतकुं० करम की बेडी वो, गाथा-३. " ८२. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १४अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. औपदेशिक लावणी, मु. देवचंद, पुहिं., पद्य, आदि: चतुर नर मनकुं समजाना विघट; अंति: देव० चालो सावधान सैणा, गाथा-६. ८३. पे. नाम. पार्श्वजिन आरती, पृ. १४अ १४आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि आरती करुं पारस प्रभुजी की अंतिः मृत उदय० कहे प्रभु का गाथा- ७. ८४. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. औपदेशिक लावणी, मु. देवचंद, पुहिं., पद्य, आदि: चतुर नर मनकुं समझाना विकट; अंति: देव कहै० सोई सावधान सानां, गाथा ६. ८५. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १४-१५अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: वाजत रंग वधाई नगर मै वाजत; अंति: हरखचंद० दिन दिन जोति सवाई, गाथा-४. ८६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १५अ, संपूर्ण. मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: भजन विन युं ही जनम गमायो; अंति: रामचंद० भवसागर मत फेरो रे, गाथा-५. ८७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १५अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. जिनलक्ष्मी, मा.गु., पद्य, आदि: सबल भरोसो तेरो जिनवरजी; अंति: जिनलिखमो० सेवग राखो मेरो गाथा ५. ८८. पे नाम पार्श्वजिन पद. पू. १५अ संपूर्ण. मु. कनककीर्ति, पु,ि पद्य, आदि: तू मेरे मन मै तू मेरे अतिः कनककीरति० तीन भुवन में, गाथा-३. ८९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १५अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only साधारणजिन गीत, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तूं ही निरंजन तूं ही; अंति: रूपचंद० हुवै भव फेरा रे, गाथा-४. ९०. पे. नाम जिनकुशलसूरिजी गीत, पृ. १५-१६अ, संपूर्ण Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १०५ जिनकशलसूरि स्तोत्र, उपा. जयसागर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १४८१, आदि: रिसह जिणेसर सो जजो मंगल; अंति: जैसागर उवझाय० फल सो लहै ए, गाथा-१५. ९१. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १६अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: श्रीविक्रम नयरे साची; अंति: आनंद० अजब मिठाई ठैरांणी, गाथा-२. ९२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन आरती, य. अगरचंद, पुहिं., पद्य, आदि: आरती करत है पास प्रभु की; अंति: अगरचंद० जीवत सफल भया उनका, गाथा-५. ९३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १६अ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी, म. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: किसी की भूडी नही कहीये चल; अंति: जिनदास० जिन दरसण चहिये, गाथा-४. ९४. पे. नाम. जिनकुशलगुरु की अष्टप्रकारी पूजा, पृ. १६आ-१७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:दादैजीरीपू०. जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, मु. ज्ञानसार, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सकलगुणगरिष्टान्; अंति: ग्यांनसार० कविजन वृंद, पूजा-८. ९५. पे. नाम. जिनकशलगरु की आरती, पृ. १७आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि आरती, मु. लाभवर्द्धन, पुहिं., पद्य, आदि: पहिली आरती दादाजी; अंति: सद्गुरु चरण कमल बलिहारी, गाथा-५. ९६. पे. नाम. जिनकशलसूरिस्तति, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: सुरतरु कुसुमनें सुरमणी रे; अंति: जिनलाभ० जिन पूजा श्रीकार, गाथा-५. ९७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: उदयौ दिन आजसु धन्यजी; अंति: जिनलाभ० भव भव चरण सरण्यजी, गाथा-५. १८. पे. नाम. औपदेशिक स्तुति-काया, पृ. १८अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-काया, आ. जिनलाभसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: काया कारमी रे माया मदमाती; अंति: जिनलाभ० और नफो कछु नांही, गाथा-५. ९९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: तूं किंम तारक नाम धरावै; अंति: यौं जिनलार्भे दुख न खमावै, गाथा-५. १००. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १८आ, संपूर्ण.. महावीरजिन स्तवन, मु. जिनलाभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद निकट उपगारी; अंति: जैनलाभ० चरणकमल वलिहारी रे, गाथा-५. १०१. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १८आ-१९आ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, म. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, वि. १८६९, आदि: आतमरूप अजाण न जाणू निजपण; अंति: ज्ञानसार० __ अतिरति थुय थुणी, गाथा-२१. १२०६१५. प्रत्याख्यानसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७.५४१३, २२४१६-१९). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कारसहिअं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पच्चक्खाण-३ तक लिखा है.) १२०६१७. स्तति, पद व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ.५, कुल पे. ९, ले.स्थल. अजमेर, प्र.वि. शिवचंद्रकृत कृतिसंग्रह., दे., (२७७१३.५, १४४३१-३५). १.पे. नाम. नंदीसूत्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, म. शिवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: भवीयण सणीयै रे नंदी; अंति: तरण अवतार रे सनेही, गाथा-७. २.पे. नाम. पंचमांग सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भगवतीसूत्र सज्झाय, संबद्ध, मु. शिवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सहु आगम में सोभतो रे; अंति: तुझ बिरूद विख्यात रे, गाथा-८. ३. पे. नाम. जिनवाणी स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. शिवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे मईया बार अंग; अंति: जस गावै सिवचंद रे, गाथा-८. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. शिवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन करीयैरे जिनजि; अंति: शिव० दिन वधतै रंग, गाथा-१०. ५. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तुति-आंबेरनगरमंडन, मु. शिवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे सहीया आंबेर नगरै; अंति: शिवचंद्र उजारी रे, गाथा-६. ६. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. म. शिवचंद्र, पुहि., पद्य, आदि: इक दिन प्रभु वीर सम; अंति: स्यादवाद अमृत झरिया, गाथा-५. ७. पे. नाम. महावीर देशना, पृ. ४अ, संपूर्ण. महावीरजिन देशना, म. शिवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: आज दियै प्रभु वीर; अंति: शिवचंद्र०कीध सहीयारी, गाथा-४. ८. पे. नाम. महावीरजिन गुंहली, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. महावीरजिन गहुंली, म. शिवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानयर उद्यान हो; अंति: शिवचंद० वंदन मुदा, गाथा-७. ९.पे. नाम. गौतमगणधर देशना, पृ. ४आ, संपूर्ण. __गौतमगणधर देशना सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन गोतम गणधरू रे; अंति: समकित रतन विलास रे, गाथा-७. १२०६१८. १४ राजलोक क्षेत्रवर्णन सवैया व जैनशतक, अपूर्ण, वि. १९१५, माघ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २३-२(१ से २)=२१, कुल पे. २, दे., (२७.५४१३.५, ९४३०-३२). १.पे. नाम. चरचासतक का सवैया, पृ. ३अ-५अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:चरचा स. १४ राजलोक क्षेत्रवर्णन सवैया, रा., पद्य, आदिः (-); अंति: सिद्ध एक भागमे निहारने, सवैया-१६, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. जैनशतक, पृ. ५अ-२३आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:जैनस. जिनशतक, श्राव. भूधरमल्ल खंडेलवाल, पुहि., पद्य, वि. १७८१, आदि: ज्ञान जिहाजि वैठि गणपति; अंति: भूधर० सतक सपूरन कीन, गाथा-१०५. १२०६१९. देवपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९१५, माघ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. २७, ले.स्थल. रत्नावती, प्रले. रामलाल ब्राह्मण; पठ. श्राव. हेमकर्णजी शा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१३, ९४३१-३६). जिनपूजा विधि, प्रा.,सं., प+ग., आदि: इंदसदवंदियाणं तिहुवण; अंति: जैनं जयति शासनं. १२०६२० (#) चंद्रराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३४-२४(१ से २४)=११०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १३४२७-३१). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. उल्लास १ ढाल-१४ की गाथा-१३ अपूर्ण से उल्लास-४ ढाल-७ की गाथा-६ अपूर्ण तक है.) १२०६२१. साधु वंदना, शील सज्झाय व औपदेशिक गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२७७१३, १०४३०-३२). १.पे. नाम. साधु वंदना, पृ. १अ, संपूर्ण. साधगुण वंदन, क. सुंदर, पुहिं., पद्य, आदि: पापपंथ परहर धर्मपंथ; अंति: सुंदर वंदना हमारी है, गाथा-२. २.पे. नाम. शील सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. शियलनी सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मोतीशुं मोंगो मालवो रे; अंति: उदयरत्न० भवोभव पातिक जाय, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह पुहिं., मा.गु. सं., पद्य, आदि नना ज्ञान आराधीये गुरुविण अति मानवी पशु सरीको होय, गाथा - १. १२०६२४. (+) चौवीस स्थानक बोल, संपूर्ण, वि. १९१४, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्रले. सा. राजी (गुरु सा. पनाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : २४ ठाणा, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७.५X१२.५, १७३७-४१). २४ स्थानक प्रकरण-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: गइ इंदिय काए; अंति: हेतु ४३ जोग १४ टल्या. १२०६२५. (+#) आचारोपदेश सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७X१३, ५-६X२६-३९). आचारोपदेश, उपा. चारित्रसुंदर, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: चिदानंदस्वरूपाय; अंति: निजयोर्धनजन्मनो, वर्ग-६, १०७ श्लोक-२४६. आचारोपदेश-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञान अने आनंद तेहज; अंति: करे पोतानो जनमारो. १२०६२६. (+) उपधानतप विधि आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ५. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५x१२, १५x४६-५९). १. पे नाम उपधानतप विधि, पृ. १४-३अ, संपूर्ण. प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि प्रथम शुभदिवसई पोषध अंति: करें पछे वासनिक्षेप करें. २. पे. नाम. चतुर्थव्रत उच्चारण विधि, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सर्वक्रिया उपधाननी परे ८ अति पच्चक्खाण करावी. ३. पे. नाम. वीस स्थानक तप उच्चारण विधि, पृ. ४अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप आलापक, प्रा., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं, अति नित्वारग पारगा होह. ४. पे. नाम आगम आलावो, पृ. ४अ, संपूर्ण. आगम योगोद्वहन आलापक, प्रा., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंति: नित्थार पारगाहोइ. ५. पे नाम. सोलह तिथि तप आलापक, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण, १६ तिथि तप आलापक, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंति: करवो २० नवकार वालि गणवो. १२०६२७. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ४, कुल पे ४ जैदे. (२७.५X१३, १३x४७). "" १. पे नाम. अष्टमीनु स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारे ठाम धर्मना; अंति: कांति सुख पावे घणो डाल- २, गाथा २४. , २. पे नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पु. २अ ३आ, संपूर्ण. पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपति नायक नेमिजिणंद; अंति: जिनविजय जयसिरी वरी, ढाल -४, गाथा ४२. ३. पे. नाम. एकादशीतिथि सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि आज एकादसी रे नणदल अंति: उदयरतन० लीला लहेसे, गाथा १२. - For Private and Personal Use Only ४. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पू. ४अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- नवखंडा, मु. वीरविजय, मा.गु, पद्य, वि. १९४५, आदि घनघटा भुजंग रंग छाया; अंति: एम वीरविजय गुण गाया गाथा-६. १२०६२८. जीवविचारनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५९, श्रावण शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. बेदडा, प्रले. श्राव. कचरा टोकरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी जीव०स्त०. दे. (२७४१३, १३४४५). " जीवविचार स्तवन- पार्श्वजिन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: श्रीसरसती रे वरसती अंतिः विजय पणे आनंदकारी, ढाल ९, गाथा ८३. Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२०६३० (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४४, कार्तिक कृष्ण, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१३, १२४३७-४२). महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, म. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति दिओ मति; अंति: हंस०मनआनंदे धन मुझ ए गुरो, ढाल-१०, गाथा-९४. १२०६३१. कालसितरिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, जैदे., (२७७१३, ६४३३). कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसरि, प्रा., पद्य, आदि: देवंदणयविद्याणंदमयं; अंति: धम्मघोषसरि० किमवि अणियं, गाथा-७४. कालसप्ततिका-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: इंद्र महाराय पण; अंति: सरुप कांइक ए कहिउ. १२०६३२. (+#) बदनविलास सह अर्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४२, प्र.वि. हुंडी:बदनविलास., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२.५, १२४३२-४०). बदनविलास, क. बदनमल मेहता, पुहिं., पद्य, वि. १९०३, आदि: श्रीसतगुरुपदांभोज श्रुत; अंति: (१)चाहकर पंचमी दिवस प्रकाश, (२)जुगलमिली बदनमल कृत संग, श्लोक-१२१. बदनविलास-अर्थ, पुहि., गद्य, आदि: श्रीकहीय सोभायमान महंत; अंति: मिति तांउ संपूर्ण रची. १२०६३३. सूक्तावली सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९४८, पौष शुक्ल, ९, रविवार, मध्यम, पृ. ८०, ले.स्थल. काचोलि ग्राम, लिख. मु. छगनविजय; प्रले. मु. मोतीविजय (गुरु मु. छगनविजय); पठ. मु. समर्थविजय (गुरु मु. मोतीविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सुक्तावली., प्र.ले.श्लो. (१४६६) पोथी पढि पढि जगमुवा, दे., (२७.५४१३, १३४३६-४५). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृत्यवल्लीवृंद; अंति: जगति तेपि चिरं जयंति, वर्ग-४, श्लोक-१७६. सूक्तमाला-बालावबोध, मु. प्रतापविजय, मा.गु., गद्य, आदि: तदनुक्रम संग्रहो; अंति: स्वरुप ते एहज विचारउ. १२०६३५. माणिभद्रवीर छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२८x१३, १३४३३). माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरसती; अंति: उदयकुशल०लाख लीला लहे, गाथा-२६. १२०६३६. सिद्धगति द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९३१, कार्तिक, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. बेराजा, प्रले. बेचर दवे, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१३, १२४३९). सिद्धगति द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: उरधलोक मे च्यार सीजे १; अंति: ८५ नवमे समे विरह पडे. १२०६३८. (+) श्रीपालरास सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४१३.५, १३४३६). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: पूर्ण उत्कंठारे, खंड-४ ढाल-४१, गाथा-१८२५. श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: इत्यादि पूरण मनोरथ पौंहचई, (वि. टबार्थ कहीं-कहीं दिया है.) श्रीपाल रास-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: जे सहज स्वभाव कहता जे; अंति: अनुभवसूं प्रेम ते मोटौ छइ. १२०६३९ (+#) महावीर चरित्र व मौनएकादशी कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७७१३.५, १४४२९). १.पे. नाम, महावीर चरित्र सह बालावबोध, पृ. १अ-१५अ, संपूर्ण. दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४. दरिअरयसमीर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: रित पाप रज परिहार करिवा; अंति: माहरउ सदा प्रणाम हुज्यो. २.पे. नाम. मौनएकादशी कथा, पृ. १५अ-२१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मौनएकादशीपर्व व्याख्यान-सव्रतश्रेष्ठिकथा, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सिरिवीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. सुव्रतश्रेष्ठि का अंतिम काल की संलेखणा द्वारा मुक्तिप्राप्ति प्रसंग वर्णन अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२०६४२. आध्यात्मिक व गजसुकमालमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५X१३.५, ११३५). १. पे नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि सिज्या भली रे संतोषनी वाण अति ठाणजी सझया भली रे संतोषनी, गाथा ६. २. पे. नाम. गजसुकमालमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाव, मु. न्याय, मा.गु., पद्य, आदि एक द्वारकानगरी राजे अति रे के नावमुनि लेसे, गाथा-८. १२०६४४. सर्वार्थसिद्ध पंचमदेवलोक स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३१-३० (१ से ३०) =१, जैदे (२६४१२.५, 3 १४४४०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर्वार्थसिद्धविमान सज्झाय, ग. देवीचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि जगदानंदन गुणनिलो रे अंति देवीचंद्र० थकी फल आसो रे, गाथा-१८, संपूर्ण. गाथा - २१. ३. पे. नाम. १४ स्वप्न, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पहिलै गजवर दीठो मुज; अंति: मरुदेवा मोतीडे वधावें, गाथा-३. ४. पे नाम. पार्श्वजिन प्रभाती, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. १२०६४५. स्तुति, पद व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. १०, जैदे., (२५.५X१३.५, ८-१३X३३-४३). १. पे. नाम संधारा विधि, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. - संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि निसीहि निसीहि निसीहि; अति: राजभमंत तेमेसव्व खमावि, गाथा १६. २. पे. नाम. चोत्रीस अतिशय मंगलिक, पृ. २अ ३आ, संपूर्ण, प्रले. अमरचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य. ३४ अतिशय छंद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुमतिदायक कुमति; अंति प्रभु पर सेव मांगु भवभवे, पार्श्वनाथ जिनस्तवन, उपा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि : आज शंखेश्वरा शरण हुं; अंति: उदय० करो संभारी, गाथा-५. ५. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. १०९ " ८ प्रकारी पूजा विधिसहित, उपा. क्षमाकल्याण, पुहि, प+ग, आदि: शुचि सुगंध वर कुसुमजुत जल; अंतिः फल गिणे एह जिन भेट करेह, गाथा - १८, (वि. अंत में एक परम ज्योति परमात्मा.. वंदु घट घट लीन" दोहा दिया है.) ६. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि स्तोत्र, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि- शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: जिन प्रभ सुरवर सीस रसाल, गाथा- १४. ७. पे नाम. गौतम स्तोत्र, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण, गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि श्रीइंद्रभूतिं वसुभूति; अंति लभते नितरां क्रमेण श्लोक ९. For Private and Personal Use Only ८. पे नाम. शांतिजिन स्तुति, पू. ७आ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जीनेसर स्मरीये; अंति: सांभलो ऋषभदासनी वाणी, गाथा-४. ९. पे नाम. ४ मंगल पद, पृ. ७आ, संपूर्ण मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी आदि सिद्धार्थ भूपति सोहे, अंति उदयरत्न भाखे एम, डाल-४, गाथा-२०. १०. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण, प्रले. मु. विनय, प्र.ले.पु. सामान्य. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी आदि ग्रह उठी बंदु ऋषभदेव अंतिः ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. १२०६४८ (+) जीवविचार व दंडक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०५, श्रावण कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, .दे.. ले. स्थल रहणगाम, प्रले. रामनाथ पठ. मु. नयचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ... (२५.५X१२, १७३३-४२). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५१, संपूर्ण Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सिद्धांत रुप समुद्रथी, (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ से टबार्थ लिखा है.) २. पे. नाम, दंडक प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ५अ-८आ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे; अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४४. दंडक प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी चउवीस; अंति: पोताना हितने काजे. १२०६४९. चंपककुमार रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, दे., (२६४१३). चंपककुमार रास-अभयदान, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभजी प्रणमुं ते पाए; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१८ गाथा-३७ तक लिखा है., वि. १८वीं ढाल पेन्सिल से लिखी गयी है.) १२०६५०. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५१-३८(१ से ३६,३८,४६)=१३, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., दे., (२६४१३, १५४४३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-७ गाथा-५६ अपूर्ण से अध्ययन-१० गाथा-१४ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२०६५१ (+) ज्ञानपंचमीपर्व पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१३, १२४३०-३६). ज्ञानपंचमीपर्व पूजा, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: सकल कुशल कमलावली; अंति: उपर भेला ५१ थापिइं, ढाल-११. १२०६५४. (#) दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-२(१ से २)=४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १४४३९). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ __गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-४ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) १२०६५५ (+) नरकदःख सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७७१३, १०४३२). नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वर्द्धमानजिन विनवू; अंति: रलियामणो परम कृपाल उदार, ढाल-६, गाथा-३५. १२०६५६.(+) पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:मांडणी, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१२.५, १२४४८). पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानाय; अंति: अग्रेतन वर्तमान योग. १२०६५७. (+) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, प्र.वि. हुंडी:अट्ठाई., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२, १५४३६-४४). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: शांतीशं शांतिकर्तार; अंति: मनोवांछित सिद्ध हवै. १२०६५८. (+) सोलह कारण भावनापूजा आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३६-२१(१ से १९,२५,३२)=१५, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१३, १०४३१). १. पे. नाम. शांतिपाठ, पृ. २०अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. सं., प+ग., आदि: (-); अंति: दते मोक्षं जिनपूजानिरंतरं, श्लोक-१३, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. सोलह कारण भावना पूजा, पृ. २०अ-२२अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. १६ कारण भावना पूजा, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., प+ग., आदि: सोलह कारण भाय; अंति: पद द्यानत शिव पद होय, गाथा-१८, संपूर्ण. ३. पे. नाम. दसलक्षण पूजा अष्टप्रकारी, पृ. २२अ-२६अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. १० लक्षण पूजा अष्टप्रकारी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: उत्तम क्षमा मारदव आरज भाव; अंति: कौं लहै द्यानत सुख की रास, दोहा-२२, (पू.वि. तपगुणधर्म दोहा-२ अपूर्ण से ३ अपूर्ण तक नहीं है.) ४. पे. नाम. पंचमेरु पूजा जयमाला, पृ. २६अ-२८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १११ पंचमेरू पूजा, जै.क. भूधरदास, पुहिं.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: संवौषडाहूय निवेश्य; अंति: पंचमेरू जयमाल भणी. ५. पे. नाम. दशलक्षण पूजा अष्टप्रकारी, पृ. २८आ-३१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ ___ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. १० लक्षण पूजा अष्टप्रकारी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: उत्तम छिमा मार्दव आर्जव; अंति: (-), (पू.वि. नवम अकिंचनपूजा अपूर्ण तक है.) ६. पे. नाम. अष्टाह्निकापर्व पूजा-नंदीश्वरद्वीप, पृ. ३३अ-३६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., प+ग., वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. आवाहनविधि अपूर्ण से धूपपूजा अपूर्ण तक है.) १२०६५९ (+) नवतत्त्वप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०६, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. पुण्यविजय (गुरु मु. उत्तमविजय); गुपि. मु. उत्तमविजय (गुरु मु. नेमिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१३.५, ५४३०). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ अजीवार पुन्नं३; अंति: क्क१४ णिक्काय१५, गाथा-५२, (वि. १९०६, श्रावण कृष्ण, २) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व जे माहि; अंति: एक समय १०८ लगे सिद्ध थाइ, (वि. १९०६, श्रावण कृष्ण, ६, बुधवार) १२०६६०. अखैतृतीया कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, दे., (२६४१३, १३७३५). अक्षयतृतीयापर्व कथा, सं., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीसुखदातार; अंति: मनना मनोरथ संपूर्ण थाइ. १२०६६२. (+) पूनमनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३८, कार्तिक कृष्ण, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ.७, ले.स्थल. सिरोही, प्रले.पं. कीर्तिविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (९४१) एक पोथी दजी पदमणी, दे., (२६४१३.५, १३-१७२३२-३९). १५तिथि ७ वार चरित्र, म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमद् गोडी जगधणी; अंति: लब्धिविजय० थाय रंगरोल रे, ढाल-१५. १२०६६४. १२ भावना सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.५-२(१,४)=३, प्र.वि. हुंडी:बारेभावना., जैदे., (२६.५४१३, १२४४५). १२ भावना चौपाई, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., भावना-१ गाथा-८ अपूर्ण से भावना-६ गाथा-२ अपूर्ण तक व भावना-८ गाथा-८ अपूर्ण से भावना-११ गाथा-१ तक है.) मनुष्यभव दस दृष्टांत कथा, संपूर्ण, वि. १९३९, माघ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. बीकानेर, प्रे. म. पुण्यविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१३, २६४७०). १० दृष्टांत कथा, मा.गु., गद्य, आदि: फेर केवली महाराज मनुष्य; अंति: जीवरी सिद्धगति थायें. १२०६६६. ६४ प्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. १९२३, आषाढ़ शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. ४२-१(१)=४१, प्रले. कामेश्वर सीवलाल व्यास, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:६४पू०. संवत-१९०६ में लिखी गई प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है. कारण कि ६ दोहों में प्रतिलेखन पुष्पिका अंत में उपलब्ध है., अ., (२६४१२.५, ११४३४). ६४ प्रकारी पूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदिः (-); अंति: पधराविइं महामहोत्सवे, पूजा-६४, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., अष्ट अभिषेक गाथा-५ अपूर्ण से है.) १२०६६७. (+) अंजनासुंदरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९१४, ?, माघ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. पाली, प्र.वि. हुंडी:अजना०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १७४४६). अंजनासुंदरी चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: पवनजी राजा कने अंजनासुंदर; अंति: सती सरोवर अंजना, ढाल-२३, गाथा-२७८. १२०६६८. (+) अर्जुनमाली चौढालियो आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१३, १७४३९). For Private and Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Wh . ११२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. अर्जुनमाली चौढालियो, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण, ले.स्थल. पाली, पे.वि. हुंडी:अरजुन०. अर्जुनमाली चौढालीयो, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नगरी अति सुं; अंति: रेहां कर्म खपाय गया मोख, ढाल-४, गाथा-३४. २.पे. नाम. वंकचल चोपाई, प. ३आ-६अ. संपर्ण, पे.वि. हंडी:वंकचल. मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर चरणकमल नमुंशांति; अंति: पाल्यां पांमै निर्वाण, ढाल-७, गाथा-७५. ३. पे. नाम. आद्रकुमार चोढालियो, पृ. ६आ-८आ, संपूर्ण, वि. १९२०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, बुधवार, पे.वि. हुंडी:आद्रकुमा. आर्द्रकुमार चौढालिया, मा.गु., पद्य, वि. १८७९, आदि: प्रणमुं प्राते उठने तिसला; अंति: ही सुणतां भवजीव सुख लहि, ढाल-४, गाथा-६५. ४. पे. नाम. सुरप्रिय पंचढालियो, पृ. ८आ-१०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सुरपियो. सुरप्रियमुनि पंचढालियो, मु. कुशलचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: वरतमांन बरते खरा श्रीबीर; अंति: ऋषकुशलचंदजी जोडी मनहुलास, ढाल-५. १२०६६९ (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२५, भाद्रपद शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४८, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. सुखदत्त बोडा, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दशवैका०., संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, २४४५७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: कहणायवि आलणा संघे, अध्ययन-१० चूलिका २. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मु. श्रीपाल, मा.गु., गद्य, आदिः (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं गौतम, (२)धम्मो० दुर्गति पड़ता जीव; अंति: तुज प्रतइ कहु छु. १२०६७०. (+) प्रश्नोत्तररत्नमाला सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८७९, वैशाख शुक्ल, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १६०-१(१५५)=१५९, ले.स्थल. लक्ष्मणापुरी, प्रले. मु. हेमचंद्र (गुरु पं. उद्योतकुमार, बृहद्खरतरगच्छ); गुपि. पं. उद्योतकुमार (गुरु मु. देवकरण, बृहद्खरतरगच्छ); मु. देवकरण (गुरु आ. जिनविमलसूरि, बृहद्खरतरगच्छ); आ. जिनविमलसूरि (बृहद्खरतरगच्छ); आ. जिनचंद्रसूरि (बृहत्खरतरवेगडगच्छ); राज्यकाल गाजुदी हैदर, प्र.ले.प. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:प्रश्नोत्तरवृ., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४१३, १२४३२). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: कंठगता किं न भूषयति, श्लोक-२९, (पू.वि. श्लोक-२७ के कुछ पाठांश नहीं है.) प्रश्नोत्तररत्नमाला-कल्पलतिका वृत्ति, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १४२९, आदि: श्रीनाभिभूर्जिनवरः; अंति: भवतादभिमतफलाप्तिकृते, ग्रं. ७३२६, (पू.वि. श्लोक २७ की टीका अपूर्ण है.) १२०६७२. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१३, ११४३२). सिद्धचक्र चैत्यवंदन, म. साधविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र आराधतां; अंति: साधुविजय० सिस कहे करजोड, गाथा-५. १२०६७३. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन व औपदेशिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९४२, पौष शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. मु. हेमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, (११८०) तैसी प्रति पाई, (११८१) जव लग धरती मेरू गिर, दे., (२५.५४१३.५, ६x२२). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीवृद्ध स्तवन, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरु पाय; अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल-३, गाथा-२५. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. ६आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सत्वानां चरितं चित्रं; अंति: चिंतातुराणां न सुख निद्रा, श्लोक-२. १२०६७४. (+) शालिभद्रमुनि चौपाई, संपूर्ण, वि. १९७४, चैत्र शुक्ल, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. पाली, प्र.वि. हुंडी:सालभद्र., संशोधित., दे., (२७४१३, १८४३९). For Private and Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: मनवंछित फल लहिस्यइ जी, ढाल-२९, गाथा-५११. १२०६७५. (+) मदनरेखासती रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९,प्र.वि. हुंडी:मेणरया., संशोधित., दे., (२६.५४१२, १५४४१). मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: जूआ मांस दारु तणी; अंति: परनारी त्यागीजो, गाथा-२२२. १२०६७६. (+#) चोविस डंडकनां ओगणत्रिस द्वार, संपूर्ण, वि. १९३४, मार्गशीर्ष, मध्यम, पृ. २०, पठ.सा. जीतश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उगणत्रिसद्वार. लेखनस्थल के लिए अंत में "पंचभाईनी पोलमध्ये" ऐसा उल्लिखित है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१३, ११४३३). २४ दंडक २९ द्वार बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजू; अंति: अनंतगुणे अधिक जाणवा. १२०६७८. (+) प्रत्याख्यानसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७४१२.५, १३४४३). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कारसहिअं; अंति: विगईनु दशपच्चक्खाण जाणवी. १२०६८२. भुडा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख नहीं है., जैदे., (२६.५४१२.५, १४४३५). भुडा रास-पतिपत्नी संवाद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पति-पत्नी परस्पर उपालंभ प्रसंग अपूर्ण से है व ननद का भाभी प्रति उद्बोधन प्रसंग तक लिखा है.) १२०६८५. प्रत्याख्यानसूत्र व मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ४० बोल-श्राविका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, जैदे., (२७४११.५, १२४३४). १. पे. नाम. दसपचक्खाण विधि, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: गारेणं वोसिरामि, (पू.वि. एकासणा-आयंबिल पचक्खाण अपूर्ण से २. पे. नाम. श्राविकानी मुहपति विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ४० बोल-श्राविका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: समकितमोहनी१ मिथ्यात्वमोह०; अंति: (१)वाऊ१ वनस्पतिकाय२ त्रस३, (२)पडखानी ए१० उछी तेह भणी ४०. १२०६८६. (#) चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१३, ३४३३). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३१ अपूर्ण से ३५ अपूर्ण तक है.) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). १२०६८७. नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १९०९, भाद्रपद शुक्ल, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. ९, प्रले. उदयचंद मारवाड़ी; पठ. श्राव. भेराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवपदपूजा., दे., (२५४१३, १२४३५). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: अम तणा नाथ चिरंजीवो, पूजा-९. १२०६८८. (#) २४ मांडला विधि, अपूर्ण, वि. १९१२, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, रविवार, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, प्रले. मु. चतुरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१३,११४२४). मांडला विधि, प्रा.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: तीन वारवोसरे केहणों सही, (पू.वि. पाठ-"आघाढे१ आसणे२ पासवणे३" १२०६८९ विनय व आठमद सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, पठ. श्रावि. रलीयात, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१३, १३४३२). १.पे. नाम, विनय सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. विमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विनय करो चेला गुरु; अंति: थाइ गुरुने सरखो, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. ८ मद सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. म. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मद आठ महामुनि वारीइं; अंति: अविचल पदवी नरनारी रे, गाथा-११. १२०६९१. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्रावि. केशरबाई; अन्य. श्राव. जैनेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१३, १२४४०). शांतिजिन स्तवन, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज उलग; अंति: पंडित रूपनो ललना, गाथा-७. १२०६९२. साधारणजिन प्रभाती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७७१३, ११४२९). साधारणजिन प्रभाती, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आवी रुडी भगति में पहेला; अंति: शुववीर० आवे आवीरुडी, गाथा-६. १२०६९३. नवतत्त्वप्रकरण, संपूर्ण, वि. १८७३, माघ शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ६, प्रले. पं. राजसागर; पठ. मु. मानकचंद (गुरु पं. राजसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१३, ८४२१-२७). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणंतजीवा मुणेयव्वा, गाथा-६०. १२०६९४. अतीत, अनागत, वर्त्तमना चौवीसी व वीसस्थानक गणन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. खडा लेखन., दे., (२७४१२.५, २७४१७). १. पे. नाम. अतीत, अनागत, वर्तमान चोवीसी, पृ. १अ, संपूर्ण. अतीतअनागतवर्तमान २४ जिन नाम, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीकेवलज्ञानी१ निर्वाणी२; अंति: द्रव्यवादजी अनंतवीर्यजी. २. पे. नाम. वीस स्थानकनो गणनो, पृ. १आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप गणj, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं नमो अरिहंताणं १२; अंति: ॐ ह्रीं नमो तित्थस्स ४. १२०६९५. (+) श्रावक अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. हुंडी:अतीचार., संशोधित., दे., (२६४१३, ९x१९-२२). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. १२०६९६. (+) पार्श्वपुराण, संपूर्ण, वि. १९१९, फाल्गुन शुक्ल, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८८, ले.स्थल. लिछमणगढ, प्रले. श्राव. ताराचंद विरामण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पार्श्व०., संशोधित., दे., (२७.५४१४, १३४३७). पार्श्वपुराण, जै.क. भूधरदास, पुहिं., पद्य, वि. १७८९, आदि: मोह महातम दलन दिन तप लछमी; अंति: ग्रंथ समापित कीय, अध्याय-९. १२०६९७. सिंदूरप्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. हुंडी:सिंदूरप्रकरण., जैदे., (२७X१४, १२४२५-२८). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००. १२०६९८. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८५१, माघ शुक्ल, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १४४-३१(१ से ७,१३ से ३०,६१,९७ से ९९,१४० से १४१)=११३, ले.स्थल. सिगोली, अन्य. मु. देवीचंद (गुरु मु. भीमजी); प्रले. मु. भीमजी (गुरु मु. किसनदास); गुपि.मु. किसनदास; अन्य. मु. वकतावरलाल (गुरु मु. गोरीलाल); गुपि.मु. गोरीलाल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अंत में "वेघम नेअमल अस्वनीराज्ये" लिखा है. अस्पष्ट राज्यकाल प्रतीत होता है तथा पत्र के शीर्षस्थ भाग पर "पोसाल उदयपुर की छे" लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२७४१४, १०-१४४४१-५६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: भुज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, व्याख्यान-८, ग्रं. १२१६, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., ऋषभदत्त ब्राह्मण प्रसंग अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: उपदेशथी निव्रवेमितार्थ, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., वि. कहीं-कहीं कथा भी है.) १२०७००, नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-५(१ से ५)=२, प्र.वि. हुंडी:नवपदज०., जैदे., (२७४१४.५, १४४३६-४३). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (१)अमतणा नाथ देवाधिदेवो, (२)पांडुकेसो नमः ॐ क्रीं, पूजा-९, (पू.वि. पूजा-८ अपूर्ण से है., वि. विधि सहित.) For Private and Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२०७०१ (+) संवेगीसाधु मर्यादापट्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१४, १३४४२). संवेगीसाध मर्यादापट्टक, आ. विजयसिंहसरि, मा.गु., गद्य, आदि: भट्टारक श्रीसोमसुंदर; अंति: संवेगी सद्दहवा पालवा. १२०७०६. (+) उत्तराध्येनसूत्र, संपूर्ण, वि. १९६२, ज्येष्ठ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ४५, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. मु. हीरालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उत्तराध्येन., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. २२५०, दे., (२६४१३.५, १७४४०-४४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: पुव्वरिसी एव भासंति, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००. १२०७०७. (+) सम्यक्त्वकौमुदी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३४, कार्तिक कृष्ण, १०, बुधवार, मध्यम, पृ. १३२, प्र.वि. हुंडी:कोमुदीप्र०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६.५४१४, ५४३६). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., प+ग., वि. १४५७, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: मोक्षयं स्वर्गमश्रुते, ग्रं. १६७५. सम्यक्त्वकौमुदी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: वर्धमान चोवीस तीर्थकरादिन; अंति: सही मोक्षगति पांमे. १२०७०८. (+) पुराणहुंडी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, प्र.वि. हुंडी:श्लो॰प्रा०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१४.५, ७४३३). पुराणहुंडी, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रूयतां धर्मः सर्वेषां; अंति: स्मरणादपि तत्फलम्, श्लोक-२८३. पुराणहुंडी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म सधलें सांभलीइ सर्वे; अंति: स्मरण थकी फल जाणवु सही. १२०७१० (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३२, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १८१, ले.स्थल. पुफावती नगर, प्रले. मु. कपूरविजय; पठ. श्राव. हरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उत्तराधनकथा., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x१२, १९४५५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: भवसिद्धिय संवुडे, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीमहावीरदेवने वारे, (२)संयोग बि प्रकार बाहु; अंति: देवसमी पइं सांभल्यओ. १२०७११. (+) मंगलकलश, मत्स्योदर व मित्रानंद कथा, संपूर्ण, वि. १८९७, कार्तिक शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ९४, कुल पे. ३, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. मु. मानविजय (गुरु मु. विवेकविजय); गुपि.मु. विवेकविजय (गुरु मु. जीतविजय); मु. जीतविजय (गुरु पं. कुशलविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८.५४१२, १०४३४). १.पे. नाम. मंगलकलश कथा, पृ. १आ-२२अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:मंगलकलस. मा.गु., गद्य, आदि: (१)सुनित्वा यथास्थानमुपा०, (२)हिवइं ते आचार्य- वांदी; अंति: मोक्षपद ते प्रतें पामें. २. पे. नाम. मत्स्योदर कथा, पृ. २२अ-४६आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:मच्छोदरकथा. मा.गु., गद्य, आदि: मनें करीनें जो धर्ममा; अंति: ते मोक्षपद प्रते. ३. पे. नाम. मित्रानंद कथा-क्रोधोपरि, पृ. ४६आ-९४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:मित्रांनंदकथा. मा.गु., गद्य, आदि: हिवई क्रोध उपरि कथा कहि; अंति: तपीनें मोक्षपदनें पांम्या. १२०७१५. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह बालावबोध व ३६ अध्ययन नाम, अपूर्ण, वि. १७९०, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, ९, शनिवार, मध्यम, पृ. १३०-१(१२७)=१२९, कुल पे. २, ले.स्थल. मकसुदाबाद, प्रले. मु. गंगजी (गुरु मु. पुरुषोत्तम); गुपि. मु. पुरुषोत्तम; पठ. मु. खुस्यालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उत्तराध्ययन., त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ९५२५, मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (९७६) जलात् रक्षेत् तैलात् रक्षेत्, (१४७४) भग्न पृष्टी कटी ग्रीवा, (१४७५) यां प्रथवी यां मेरु गिरि, जैदे., (२८x१२.५, १५४५७). १. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र सह बालावबोध संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: पुव्वरिसी एव भासंति, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००, (पू.वि. अध्ययन-३६ गाथा-२१३ से गाथा-२३४ अपूर्ण तक नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १९६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ + कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: संजोग बि प्रकारे बाह्य; अंति: उत्तराध्ययन वाल्हा होइ. २. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र के ३६ अध्ययन नाम, पृ. १३०अ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र- विनयादि ३६ अध्ययन नाम, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि विणवर परीसह२ चांगी३: अंति: उत्तरझवणे पणीवयामी. १२०७१७. (+#) सम्यक्त्व कौमुदी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५५-२० ( १ से २०) = ३५, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८x१२.५, १५X४३). सम्यक्त्व कौमुदी रास, मु. रूप ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८८२, आदि (-); अंति: रूप ऋषि०० पामै मंगलमाल रे, खंड-५, (पू.वि. खंड-२ ढाल-२ गाथा-५ अपूर्ण से है.) १२०७१९ (+) पर्युषणपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२७.५x१२.५, ७४३२). पर्युषण पर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि पर्व पजुषण पुण्ये अति शुभविजय० दिन करो वधाई जी, गाथा-४. १२०७२० (+) सिद्धचक्र नमस्कारपद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३२, भाद्रपद कृष्ण, ९, बुधवार, मध्यम, पू. २५, ले. स्थल, मुंबई, प्रले. नथुराम व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : सि०वि०., संशोधित., दे., (२७.५X१२.५, १२X३७). सिद्धचक्र महापूजन विधि सहित, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि आदौ प्रथमारंभ विधि सर्वे; अति अम्ह मण वंछिय " दिवओ (वि. यंत्र सहित ) १२०७२२. (*) उपासकदशांगसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८२२, माघ शुक्ल २, रविवार, मध्यम, पृ. ५४, ले. स्थल. मुक्षदावाद, प्र.वि. हुंडी:उपासगसू०., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x१२.५, ६x४१). उपासक दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं० चंपा नाम नयरी; अति दोसुदिवसेसु अंग तहेत, , अध्ययन-१०, ग्रं. ८१२, संपूर्ण. उपासकदशांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर अति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. अध्ययन - १ सूत्र - १८ अपूर्ण तक लिखा है.) १२०७२३. (४) १७० जिन नाम व १४ नियम श्रावक, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, पढ श्राव. जेचंद वीरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. खडा लेखन. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७X१३, ३५X३०). १. पे. नाम. १७० जिन नाम, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. अढीद्वीप १७० उत्कृष्टजिन नाम, मा.गु., सं., गद्य, आदि: श्रीजयदेवनाथाय; अंति: ३४ श्रीबलीभद्रनाथाय. २. पे. नाम. १४ नियम आवक, पू. १आ, संपूर्ण. १४ नियम नाम श्रावक, मा.गु., गद्य, आदि सचिताविक वस्तुनुं पच्च, अंति धारवा सांझे संक्षेपवा. १२०७२४. (+) जीव विचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१९८, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल, जिंदडा, प्रले. मु. मुलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (२८x१२, १३x४१). जीवविचार स्तवन- पार्श्वजिन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: श्रीसरसती रे वरसती; अंति: विजय पभणे आनंदकारी, ढाल ९, गाथा ७९. १२०७२६. प्रत्याख्यानसूत्र व नेमिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) १, कुल पे. २, प्र. वि. वस्तुतः पत्रांक- १ लिखा है किन्तु प्रारंभिक भाग अपूर्ण होने से पत्रांक-२ दिया गया है. जैवे. (२८x१२.५, १३४३५). १. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. २अ - २आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि (-): अंति: (१) गारेण वोसिरामि, (२) असिथेणवा वोसरेह (पू.वि. पुरीमड्ढ पच्चक्खाण अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: हरष्यो मन में रे मुरारी; अंति: विनय ० होजो सेवकने सारी, गाथा-४. १२०७२७. पांचमना देववांदवानी विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., (२८.५X१२, ९३६). For Private and Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११७ ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम बाजठ उपरि तथा; अंति: संघ सयल सुखदाइ रे, देववंदनजोडा-५, गाथा- १५०. " १२०७२९ (४) १२ भावना नाम व १८ हजार शीलांगरथ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७.५X१२, २०X७४). १. पे. नाम. १२ भावना नाम सह बालावबोध, पू. १अ १आ, संपूर्ण. १२ भावना नाम, मा.गु., गद्य, आदि: अनीत भावना असरण भावना; अंति: बौद्ध भावना धर्म भावना. १२ भावना नाम-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अनित भावना भरतजी; अंति: आग्या नथी इम चिंतववौ, (वि. बार्थ शैली में बालावबोध दिया है.) २. पे. नाम. १८ हजार शीलांगरथ, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु., पद्य, आदि जे नो करंति मनसा निज्जिय; अति संजमे तवे चेवीए बभचेरे, गाथा-२ (वि. अंत में उत्तराध्ययनगत ब्रह्मचर्य विषयक गाथा दी है.) १२०७३० (+) पंचप्रतिक्रमण विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १३. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी: पडिकम०, पडिकमणुं., संशोधित., जैदे., (२८x१२.५, ११x२५-३१). पंचप्रतिक्रमण विधि संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. १८ पापस्थानक सूत्र तक है.) १२०७३१. (+) केवली समुद्धात, १५ योगनाम व जैनधार्मिक लोकसंग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७.५X१३, ९×३४). १. पे नाम जैनधार्मिक लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, प्रा.सं., पद्य, आदि: जरामरणहावाग्नी ज्वालिते; अंति: शलाकेव समतादीषनासकृत्, श्लोक-४. २. पे. नाम. केवली समुद्धात सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. समवायांगसूत्र-हिस्सा समवाय ८ केवलीसमुद्धात, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: अट्ठसमइए केवलिसमुग्घाए; अंति: अरहओ पुरिसादाणीवस्स. समवायांगसूत्र-हिस्सा समवाय ८ केवलीसमुद्धात का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: केवली छेहडे; अंति: वचन सहुने ग्राह्य योग्य. ३. पे. नाम. १५ योगनाम, पू. १आ, संपूर्ण. १५ योग नाम-मनवचनकाया, मा.गु., गद्य, आदि: सत्यमनोयोग १ असत्य; अंति: कार्मण काययोग १५. १२०७३४. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४१, आषाढ़ शुक्ल, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २०७, ले. स्थल नौतनपुर, प्रले. मु. प्रतापचंदजी ऋषि (गुरु मु. नवलचंद्रजी ऋषि); गुपि मु. नवलचंद्रजी ऋषि (गुरु आ. रूपचंद्रजी स्वामी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : उत्तरा०ट०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १८०००, प्र.ले. श्लो. (५३३) मंगलं लेखकानां च, (१०४४) जले रक्षे तले रक्षे, दे., (२८.५X१२, १४४५६-५८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि: संजोगा विप्यमुक्कस्स; अति: भव सिद्धिय समए तिबेमि, 3 अध्ययन- ३६, ग्रं. २०००. उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ कथा संग्रह, मा. गु, गद्य, आदि (१) श्रीमहावीरने वारे, (२) बाह्य संयोग मातापिता; अति तेइ ए० इम भ० कह्यो. १२०७३७. कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैदे. (२७.५४१२.५, १४४५२). कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि एक मोटु प्रथवी भूषणनामा; अंति: धर्म करसे ते दुखी घासे. १२०७३८. अभिधानचिंतामणि का बालावबोध बीजक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२८x१२.५, १४४४५). For Private and Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अभिधानचिंतामणि नाममाला-बालावबोध+बीजक, पं. देवविमल गणि, मा.ग., गद्य, आदि: श्रेयः श्रीरचनाभिराम; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., शुक्रग्रहनाम अपूर्ण तक लिखा है., वि. मूल का प्रतीकपाठ दिया १२०७४१ (+) पार्श्वजिन चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ३, कल पे. ९, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१२, ११४३६-४९). १.पे. नाम. पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीशजयशैलराजमुकुटः; अंति: फलितं ते नाथ जन्मोत्सवे, श्लोक-३. २. पे. नाम. आदिजिन स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तोत्र-सारसोपारक, सं., पद्य, आदि: जयानंदलक्ष्मीलसद्वल्लीकंद; अंति: भवांभोधिपारीणतां ते लभंते, श्लोक-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ.१आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, सं., पद्य, आदि: सकलभविकचेतः कल्पना; अंति: नो भाति किं किंमयी, श्लोक-३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ नमो विश्वविख्यात०; अंति: तुभ्यं योगात्मने नमः, श्लोक-७. ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: नमो दर्वाररागादि; अंति: वंदे श्रीज्ञातनंदनं, श्लोक-५. ६. पे. नाम. महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जयंति नमदमरमुकुटप्रतिबिंब; अंति: फलं श्रीवर्धमानो ध्रुवं, श्लोक-५. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण... सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय सिद्ध; अंति: पक्ष दर्शनाख्यं सुधांबु, श्लोक-५. ८. पे. नाम. पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ नमः विश्वनाथाय; अंति: अहँतं भूरि भक्तितः, श्लोक-५. ९. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तव, पृ. ३आ, संपूर्ण.. __सं., पद्य, आदि: द्वीपेत्र सीमंधरमतं नमामि; अंति: गतिचतुष्कं कर्मणामष्टकं च, श्लोक-४. १२०७४२. (+) आगमिकचर्चा प्रश्नोत्तर संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८०, फाल्गुन शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१२,११४३८). बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., आदि: श्रीजिनशासनें संप्रति; अंति: करणहार कर्मनिर्जरा करें. १२०७४३. (+) श्रीमती चौढालिया व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-७(१ से ६,१०)=४, कुल पे. ५, प्रले. मु. भारमल्ल ऋषि; अन्य. मोतीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रीमति चोढालिया. अंतिम पत्र का पत्रांक भाग खंडित होने से अनुमानित पत्रांक दिया गया है., संशोधित., जैदे., (२८.५४११.५, १२४४२). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कपटी, मा.गु., पद्य, आदि: कपटी मीनषरो विसवास न किजे; अंति: मिलने बापने पिंजर दीधो रे, गाथा-९. २.पे. नाम. श्रीमति चौढालिया, पृ. ७अ-९आ, पूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. श्रीमती चौढालिया, मु. विजयहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ईणहीज दक्षिण भरत; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ की गाथा-१६ तक है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ११अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-पुण्यप्रभाव, मा.गु., पद्य, आदि: पुन प्रमाणै पामीयौ रूडौ; अंति: गयो सार्थ सिध मजार रे. गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ११९ ४. पे. नाम, आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: तीन कालरा सुख देवतारा; अंति: आतम पाय जनम मरणसु छूटी जी, गाथा-७. ५. पे. नाम, पंचगति सज्झाय, पृ. ११आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आरंभ करतो रे जीव शके; अंति: जीव जाय मोक्षमां, गाथा-६. १२०७४४. (+) चंद्रराजा रास, संपूर्ण, वि. १८७२, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. ८८, ले.स्थल, भाणपुर, प्र.वि. हुंडी:चंदचरीत्र., चंद्ररास., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x१३, १५४३८). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तिम; अंति: वर्णव्या गुणचंदना, उल्लास-४ ढाल १०८, गाथा-२६७९. १२०७४५. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. पं. हर्षविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२९x१३, १४४३६). नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुन्नं३; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा __अपूर्ण., गाथा-१०६ तक लिखा है.) १२०७४९ (+#) द्विसंधान महाकाव्य सह टीका, अपूर्ण, वि. १६६८, श्रावण शुक्ल, ३, गुरुवार, जीर्ण, पृ. ३०७-२७६(१ से २५८,२६१,२६९,२७६,२८३,२८७,२९२,२९४ से ३०४,३०६)=३१, ले.स्थल. सूर्यपुर (सुरत), पठ. मु. रायमल्ल ब्रह्म (गुरु मु. जेसा ब्रह्म); गुपि. मु. जेसा ब्रह्म (गुरु मु. सकलचंद्र); मु. सकलचंद्र (गुरु मु. जिनचंद्र); मु. जिनचंद्र (गुरु मु. गुणचंद्र); मु. गुणचंद्र (गुरु मु. यशकीर्ति); मु. यशकीर्ति (गुरु मु. रत्नकीर्ति); मु. रत्नकीर्ति (गुरु म. सकलकीर्ति); मु. सकलकीर्ति, प्र.ले.प. विस्तृत, प्र.वि. अनुमानित पत्रांक दिए गए हैं. हुंडी खंडित है., पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९x१२.५, १२४३६). द्विसंधान महाकाव्य, जै.क. धनंजय कवि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), सर्ग-१८, श्लोक-११०५, (पृ.वि. सर्ग-१६ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) द्विसंधान महाकाव्य-पादकौमुदी टीका, मु. नेमिचंद्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), सर्ग-१८. १२०७५१. (+) कल्पसूत्र सह व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २२८-२२०(१ से २२०)=८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२८.५४१२.५, १६४३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., महावीर चरित्र सूत्र-८८ से ९४ तक है.) कल्पसूत्र-व्याख्यान, मु. लब्धि, मा.गु., गद्य, वि. १७७९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., व्याख्यान-९ गर्भापहारप्रसंग अपूर्ण से है व व्याख्यान-११ अट्ठाईतपवर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) १२०७५३. (#) जयतिहुअण स्तोत्र की भंडार गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७.५४१३, १४४५०). जयतिहुअण स्तोत्र-भंडार गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: परमेसर सिरिपासनाह; अंति: सिद्धि मह वंछियपूरण, गाथा-२, (वि. अंत में साधना विधि लिखी है.) १२०७५४. (+) भक्तामर स्तोत्र व भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, कुल पे. २, प्र.वि. हंडी:भक्ता०., संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, ११४३३). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह ऋद्धिमंत्रादि पंचांगपद्धति, पृ. १आ-२८आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-ऋद्धिमंत्रादि पंचांगपद्धति, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं अहँ णमो अरिहंता; अंति: धारिणेभ्यो नमः स्वाहा, मंत्र-४८. २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य सह ऋद्धिमंत्रादि पंचांगपद्धति, पृ. २९अ-३१आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: गंभीरताररविपुरि; अंति: गुणैः प्रयोज्यः, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य का ऋद्धिमंत्रादि पंचांगपद्धति, संबद्ध, मा.गु., सं., गद्य, आदि: सद्धर्मराज जय घोषणा घोषक:: अंति: चोर मारी गजानें स्थंभवें. १२०७५५ (+#) संबोध कुलकं व दीपावलीपर्व कल्प, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२.५, ७५०). १. पे. नाम. संबोध कुलक सह टबार्थ, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. २१ भावना प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि (अपठनीय); अति: जह मुच्चह सव्व दुक्खाणं, गाथा-२९. २९ भावना प्रकरण-टबार्थ, सं., गद्य, आदि (अपठनीय); अंति: यथा मुच्यथ सर्व दुःखेभ्यः२. पे. नाम. दीपावलीपर्व कल्प सह टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व कल्प, प्रा. सं., पग, आदि उप्पायविगमधुवमयमसेस अंति: सोहियव्वो सुयहरेहिं गाथा- १३९. दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, ग. ऋद्धिविजय, मा.गु., गद्य, आदि तीर्थंकर तीन पद की अंति (अपठनीय). १२०७५६. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८२-४ (१४, २९, ३७, ४६ ) =७८. प्र. वि. हुंडी: श्रीपाल रास., जैदे., (२८.५X१२.५, ११X३१). , श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी, अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. खंड-४ डाल १४ गाथा- २ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२०७५८. (+) संदेहदोलावली प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६०४, पौष शुक्ल, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. हुंडी : संदेहदोला ०., संशोधित-प् युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१२, १३x४६). संदेहदोलावली प्रकरण, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: पडिबिंबिय पणय जयं; अंति: जिणवल्लहसूरि सीसेणं, गाथा - १५०. १२०७५९. अरिहंतपद चैत्यवंदन व नवपद खमासमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. कुंअरजी, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२९४१२, १९०५३३). " १. पे. नाम. अरिहंतपद चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु., पद्य, आदि उपन्नसन्नाण महोमवाणं, अति तेह तीर्थंकरा मोक्ष कामे, गाथा-५. २. पे. नाम. नवपद खमासमण विधि, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि ॐ ही नमो अरहंताणं ए; अति: त्रिकाल वंदना. १२०७६१ (४) दौलतरामादि वंशावली संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. पत्र- १४४=१९. खडा लेखन. मूल पाठ का , अंश खंडित है, दे., (२८४११.५, १२X४७). श्रावक आवक वंशावली संग्रह", आव. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., मा.गु. रा. सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-). १२०७६३. व्याख्यान मांडणी, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२७४१३.५, १२४३३). कल्पसूत्र व्याख्यान पीठिका, संबद्ध, मा.गु. सं., प+ग, आदि (१) वीरः सर्वसुरासुरेंद्र, (२) एहवा बीर वर्द्धमानस्वामी; अंति: अधिकार कहिए छयै. १२०७६५. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. हुंडी : ज्ञातासूत्रम्., दे., (२६X१३, ६X३८). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. पण, आदि तेणं कालेणं० चंपाए; अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन- १ सूत्र ६ अपूर्ण तक लिखा है.) १२०७६६. जीव अजीवना भेद, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ५, जैवे. (२६.५४१३.५, १६x२९) "" ५६० अजीव भेद विचार, मा.गु. गद्य, आदि गइ ४ इंदिय ५ काय ६ जोए ३ अंति: ५६० थाय एवं सहि प्रीछज्यो. १२०७६८. दृष्टिवाद विचार, संपूर्ण वि. १९९८ श्रावण शुक्ल, ४, सोमवार, मध्यम, पू. २, प्रले. मु. समरथमल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५X१३.५, १९४४६). दृष्टिवाद विचार, पुहिं., गद्य, आदि सर्व अपेक्षित नयाँ; अंति: चूलासु भणिवं. " For Private and Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२१ १२०७७३ (+) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१६, प्र.वि. हुंडी:जंबुदीवन., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१२.५, १८-२१४५२-६६). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार-७, ग्रं. ४१४६. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्री सिद्धार्थनराधिप कुल; अंति: जंबूस्वामी प्रते कहे. १२०७७६. (#) सेनप्रश्न व हीरप्रश्न, संपूर्ण, वि. १९४४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. वडगाम, प्रले. मु. हिम्मतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र-१४४=१., खडा लेखन. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४१३, ३०४२६). १. पे. नाम. सेनप्रश्न, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रारम्भिक भाग अनुपलब्ध है. प्रश्नोत्तररत्नाकर-चयन, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: पाक्षिकपदेः इति तत्त्वं, (वि.खड़ा पत्र है, परन्तु ऊपर का भाग नहीं है. अतः आदिवाक्य अनुपलब्ध है.) २. पे. नाम. हीरप्रश्न, पृ. १आ, संपूर्ण. हीरप्रश्न-चयन, सं., गद्य, आदि: भक्तपरिज्ञा१ चउसरण२; अंति: विष्णुकुमारकृत लक्षयोजनः. १२०७७८. (#) ६७ बोलरो थोकडो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१३, २०४४५). ६७ सम्यक्त्व भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेले बोल सरदना ४ भीरावगजी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल-६० तक लिखा है.) १२०७७९. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय व प्रास्ताविक दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २,प्र.वि. हंडी:कङाय., जैदे., (२६.५४१३.५, १३४३५). १. पे. नाम. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीवीतराग जीनदेव नम; अंति: सर कोटाम रामपूर गूण गाया, गाथा-२१. २. पे. नाम, औपदेशिक दोहा, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहि.,मा.ग.,रा., पद्य, आदि: सपना करी संदरी नाक्यां; अंति: नान गांतो का कोन हवाल, गाथा-१. १२०७८० (+) सिद्धचक्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१३, ९x१६-२०). श्रीपाल रास-बहद, म. जिनहर्ष, मा.ग., पद्य, वि. १७४०, आदि: अरिहंत अनंतगण धरीये; अंति: जिनहरष० लणिज्यो रे, ढाल-४८, गाथा-८६१. १२०७८७. १८ नातरा सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२७७१२, १०४३४). १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-४ अपूर्ण से ढाल-३ ___ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) १२०७८९ (+#) नंदिषेणमुनि सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. १६, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२, १४४४२). १. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपू मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: साधुजी नजइयै रे परघर एकला; अंति: जिनराज० परधर गमण निवारोजी, गाथा-१०. २. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारिकानगरी अति भली; अंति: भीमसागर वंदै वारंवार, गाथा-१२. ३. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मु. जेठमल, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु गजसुकमाल महामुन; अंति: जेठमल० उत फल पांमै नर तेह, गाथा-१५. ४. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: नरकतणा दखमै सह्या रेलो; अंति: जिनहरख० अंतरे माताजी, गाथा-१५. For Private and Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५. पे. नाम. मृगापुत्र साधु सज्झाय, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. मृगापुत्र सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: सुगरीवपुर नगर सुहामण; अंति: करण श्रुद्ध प्रणांम हो, गाथा-१७. ६. पे. नाम, धन्नामुनि सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: धन धनो रुषि वंदीयै रे; अंति: विद्याकीरत०थीक निसतार रे, गाथा-७. ७. पे. नाम. चेलणामहासती सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थका; अंति: समैसुंदर० भवतणो पार, गाथा-७. ८. पे. नाम. दस श्रावक सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. १० श्रावक सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठि प्रणमु दस; अंति: इम कहै मुनि श्रीसारि रे, गाथा-१४. ९. पे. नाम. बाहबलमुनि स्वाध्याय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबलि चारित लीयो रे; अंति: विमलकीरति सुखदाइ, गाथा-१२. १०. पे. नाम. ढंढणकुमार सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. ___ ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढण ऋषिने वंदना हुँ; अंति: कहै जिणहरष सुजाण रे, गाथा-९. ११. पे. नाम. बलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. ____ बलदेवमुनि सज्झाय, मु. सकल, मा.गु., पद्य, आदि: तुंगीआगीर शिखर सोहे; अंति: सकल भवि सूख देई रे, गाथा-९. १२. पे. नाम. धन्नासालभद्र सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: धन्नो सालिभद्र वेइ भगवंत; अंति: कहे हं सदाजी हो, गाथा-८. १३. पे. नाम. संप्रतिराजा सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन संप्रति साचो; अंति: कनकनै भवभव देज्यो सेव रे, गाथा-९. १४. पे. नाम, थूलभद्रजीरी सज्झाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर रहण चोमासे; अंति: दिन अधिक सवाया हो, गाथा-११. १५. पे. नाम, क्रोध सज्झाय, पृ. ८अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडवां फल छे क्रोधनां; अंति: उदयरतन कहै। उपशम रस न्हाइ, गाथा-६. १६. पे. नाम, मान सज्झाय, प.८अ-८आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मांन न कीजीयै; अंति: उदयरतन० तिण दीजै देसोटो, गाथा-५. १२०७९०, चातुर्मासिक साधु समाचारी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पत्रांक नहीं है.. जैदे., (२६४१२, १४४४५). साधु समाचारी, मा.गु., गद्य, आदि: श्रमण भगवंत श्रीमहावीरदेव; अंति: (-), (पू.वि. समाचारी बोल-७ तक है.) १२०७९४. (#) नवतत्त्व प्रकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, १४४४२). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ से ११ तक है.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टीका, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ की टीका अपूर्ण से ११ की टीका अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२३ १२०७९५. (+) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९४, आषाढ़ कृष्ण, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६३, प्रले. गुमानीराम बोडा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उपान्ट., संशोधित., जैदे., (२७४१२, ६४३७-४४). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन-१०, ग्रं.८१२. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते०तेणें कालें चोथे आहार; अंति: दिवसें अंग उदेसीइ त तिमज. १२०७९६. (+) हरिवंस उतपत ढालसागर, संपूर्ण, वि. १९०३, ज्येष्ठ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ७१, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. सुखदत्त बोडा; पठ. मु. छोगाजी; राज्यकालरा. तखतसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ढालसा., संशोधित., दे., (२७४१२, १६x४०-४६). ढालसागर, म. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५६, आदि: रिषभ जिनेसर आदि दे चोवीस; अंति: चोथमल० कहि रहे धारजी, ढाल-७३. १२०७९७. (+) भक्तामर स्तोत्र का ऋद्धिमंत्रादि पंचांगपद्धति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:भक्तामर०., संशोधित., दे., (२७.५४१३, १५४५१). भक्तामर स्तोत्र-ऋद्धिमंत्रादि पंचांगपद्धति, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं अहँ णमो अरिहंता; अंति: मंचथी ____ मनोकामना सिधि वस्यं, (वि. मूल का प्रतीक पाठ लिखा है.) १२०७९८. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वी. १९वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. हुंडी:दशमीका०., जैदे., (२७४१२, १८४४७-५०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि, अध्ययन-१०, (वि. चूलिका नही है.) १२०८०२. (+) पट्टावली खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७, प्र.वि. हुंडी:गुर्वाव०., गुर्वाली., टि प्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२, १३४४१-४९). पट्टावली खरतरगच्छीय, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३०, आदि: प्रणिपत्य जगन्नाथं; अंति: स्तुतिर्जीर्णगढे नवासौ. १२०८०३. (+) निशीथसूत्र व आलोयणा विचार, अपूर्ण, वि. १८९४, श्रावण शुक्ल, १५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४४-१(२९) ४३, कुल पे. २, ले.स्थल. बोडा, प्रले. गुमानीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:निसी०सू०., निसीत. प्रतिलेखक ने पुष्पिका में "शुद की जगह वद" लिखा है., संशोधित., जैदे., (२७४१२, ७४४४). १. पे. नाम. निशीथसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-४४अ, संपूर्ण. निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जे भिखु हत्थकम्म; अंति: सिसपसिस्सो व भोजंव, उद्देशक-२०. निशीथसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)जे० साधु हस्तकर्म पोतइ, (२)जे अंगादान क० सरीर अथवा; अंति: भणावा निमित्ते कीधो छे. २.पे. नाम. आलोयणा विचार, पृ. ४४अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: भीन मास कहतां लखो; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'माया सहित आलोवैतउ __ मासीक प्राय' पाठांश तक लिखा है., वि. यंत्र सहित.) १२०८०५ (+#) सप्तव्यसन कथासमुच्चय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२-४(२,१८,२६ से २७)=२८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, ६४३५-४१). सप्तव्यसन कथासमुच्चय, मु. सोमकीर्ति, सं., पद्य, वि. १५२६, आदि: प्रणम्य श्रीजिनान्; अंति: (-), (पू.वि. बीच के ___ पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सर्ग-१ श्लोक-६ अपूर्ण से श्लोक-२१ अपूर्ण, श्लोक-२०७ अपूर्ण से श्लोक-२१९ अपूर्ण व सर्ग-२ श्लोक-११ अपूर्ण से श्लोक-४४ तक नहीं है एवं सर्ग-३ श्लोक-५ अपूर्ण तक लिखा है.) सप्तव्यसन कथासमच्चय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम पांच परमेष्टीने; अंति: (-), प.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व __ प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १२०८०८. (+) देलउलामंडन युगादि स्तव सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८७८, आश्विन शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. उत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२८x१२, १२४२७). For Private and Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तव- देउलामंडन, ग. शुभसुंदर, प्रा. सं., पद्य, आदि जब सुरअसुरनरिदविंद, अति (१) धहहोइनाह तहतुह "" गुणधुत्त, (२) सेवासुखं प्रार्थये गावा- २४. आदिजिन स्तव-देउलामंडन - अवचूरि, ग. चंद्रधर्म, मा.गु., सं., गद्य, आदि: कियदनुभूतमंत्रतंत्रै; अंतिः स्थितं धाटबंध करें. १२०८०९. नेमराजिमती बारमासा व औपदेशिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (२७४११.५, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६४५१). १. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि बिनवे उग्रसेन की लाड, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ तक लिखा है.) २. पे. नाम औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: रे पंखी समझ चुग उर; अंति: ( अपठनीय), गाथा-३. १२०८१२. (क) हंसराजवत्सराज चौपाई, संपूर्ण वि. १८७२ श्रावण शुक्ल ८, शनिवार, मध्यम, पृ. २५, ले. स्थल, लुसांणी, प्र. मु. श्रीचंद (गुरु मु. प्रेमचंद) गुपि. मु. प्रेमचंद (गुरु मु. सोभाचंद): मु. सोभाचंद (गुरु मु. भोजराज): मु. भोजराज, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी: हंसवछ कुल . १०१७, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे.. (२६.५X११.५, १६X३८-४९). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि आदिसर आये करी चोवीसे; अंति: जिनोदवसू ० हुवे जयकार, खंड-४ ढाल ४८. १२०८१५. अंजनसलाका स्तवन संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैवे. (२८x१२.५, १६५६२). "" शत्रुंजयतीर्थे मोतीशाटूंक स्तवन- अंजनशलाकाइतिहासयुक्त, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि : ऊठी प्रभा नमिह अंतिः सुखी कहे वीरविजय महाराज, डाल-६. १२०८१७ (+) कयवन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. १८३१, आश्विन शुक्ल, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. २०, ले. स्थल. आहोरनगर, प्रले. पं. चतुरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. ७९२, जैवे., (२७.५x११.५, १४४४६). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु. पच, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदादायक: अंतिः जेतसी० करण मन उसे जी, ढाल ३१, गाथा - ५७०. , १२०८१८. श्रावक अतिचार, संपूर्ण वि. १८९८, वैशाख कृष्ण १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल, जालणापुर, प्रले. मु. अचलसुंदर, पठ. श्राव. आणंदरूप सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५X११.५, ११३१-३६). , श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि अति: करी मिच्छामि दुक्कड. १२०८१९. (+) अंजणा महासती स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८८१, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २७, प्रले. मु. वेलजी ऋषि (गुरु मु. देवजी ऋषि); गुपि. मु. देवजी ऋषि; गृही. सा. रतनबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : अजणा., अंजनानो ०., अंजना रास., संशोधित, जैदे., (२७४१२, १२४२९-३५). अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि सियल समोवर कोय नही सिवल अंति: रामनी भारजा जगतनी मात तो, गाथा - १६०. १२०८२० (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ व बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १८८५-१९४१, मध्यम, पृ. ७४-१० (७,५१, ६४ से ७१) + १ (१९) ६५, कल पे. ४. प्र. वि. जगह-जगह पर भीखनजी, भारमलजी की प्रत पर से प्रतिलिपि करने का उल्लेख मिलता है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७.५x१२, १४X४८-६५). १. पे नाम प्रतिक्रमणसूत्र सह टवार्थ, पृ. १अ ६१आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. वि. १८८५, ले. स्थल. कारारी, प्रले. मु. रतनो ऋषि; अन्य. मु. रायचंद ऋषि, आ. भारमल (परंपरा आ. भिक्षु, तेरापंथ); आ. भिक्षु (तेरापंथ), प्र.ले.पु. मध्यम, पे.वि. हुंडी:आवसग. हुंडी:आवसग. For Private and Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२५ आवश्यक सूत्रसाधु प्रतिक्रमणसूत्र घे. तेरापंथी, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि आवस्सई इच्छाकारेण: अंति: काहितीय कतंतिय, (पू.वि. "जो मे देवसिउ अइ०" अपूर्ण पाठ से "भंडो उवगरणस्स" पाठ तक व "संखडिपडियाए से वत्थं वा डिग्गहं वा" के बीच के पाठांश नहीं है.) आवश्यकसूत्र-साधु प्रतिक्रमणसूत्र श्वे. तेरापंथी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आ० अवसमेव करवो तेहने विषे; अंति: जोजो दस दानरो विचार. २. पे नाम. विविधवोल संग्रह, पृ. ६२-६३आ, संपूर्ण वि. १८८५, माघ कृष्ण, ६, सोमवार, ले. स्थल. गुदोचनगर, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. हुंडी सूत्रांनी. मा.गु., गद्य, आदि : ९ श्रावकनी विरत अविरतनो; अंति: २७७ दस दाननो विचार. ३. पे. नाम. विविधबोल संग्रह, पृ. ७२अ - ७३आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. हुंडी : सूत्रांनी... मा.गु., गद्य, आदि: १ श्रावकनी विरत अविरतनो; अंति: (अपठनीय), (वि. अंतिमवाक्य अपठनीय होने से नहीं भरा है.) ४. पे. नाम. भगवतीसूत्र - बीजक, पू. ७४अ-७४आ, संपूर्ण वि. १९४१, ज्येष्ठ शुक्ल, १३. 1 मा.गु., गद्य, आदि: सोवचया सावचिया ५; अंति: (अपठनीय). १२०८२१. मौनएकादशीपर्व व्याख्यान सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८८०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. १०-९ (१ से ९)=१, ले.स्थल. खंभातनगर, प्रले. मु. महिमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : मोनएकादशीक ०. श्रीजिरावलाजी प्रसादात्., जैदे. (२७.५x१२, ४४९). मौनएकादशीपर्व व्याख्यान - सुव्रत श्रेष्ठिकथा, प्रा. मा. गु. सं., गद्य, आदि (-); अंति: समीया करंतमिग्गा सिवं च, (पू.वि. "दशम्यांमेकासनं विधाय" पाठ से है.) १२०८२३ (+) मौनएकादशीपर्व व्याख्यान- सुव्रत श्रेष्ठिकथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अने भवसमुद्र तरज्यी कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १६७३, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. २७, प्र. वि. हुंडी : कलप., संशोधित. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२८४१२, १४४४४-५१). "" कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अति: पज्जोसवणा कप्पो संमत्तो, व्याख्यान- ९. १२०८२४. (+) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८-१७ (१ से १७) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२८x१२.५, २२x५९). प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अति (-), (पू.वि. प्रश्न- ११८ अपूर्ण से १३१ अपूर्ण तक है.) १२०८२५ (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८७८, माघ कृष्ण, ३, मंगलवार, मध्यम, पृ. १२-१(८)=११, ले.स्थल. ओड, प्रले. मु. चतरु (गुरु मु. रायचंदजी ऋषि); गुपि. मु. रायचंदजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी:समणसुत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (२७४१२, ६x४५). साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह से.मू. पू. संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण; अति: अहोनिससे तमहा " आवसनामं, (पू.वि. सूत्र २३ अपूर्ण से सूत्र- २९ आशातनासूत्र अपूर्ण तक पाठ नहीं है. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार श्रीवीतरागन होवो; अंतिः अ० हुं पिण खमावु, १२०८२८ (+) एवंतीसुकमालनो १३ढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६, अन्य आ. वसरामजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: एवितिकुमा०, संशोधित. दे. (२७.५x१२, १४४३४). " अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि (१) पास जिनेसर सेवीये, (२) मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंतिः शांतिहर्ष सुख पावे रे, ढाल १३, गाथा-१०७. १२०८३१. श्रावक तीन मनोरथ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. हुंडी : तीनम०, दे., (२७१२.५, ११X३३). आवक ३ मनोरथ, मा.गु. गद्य, आदि तीन मनोरथ दिन प्रत; अंति: मुझने समाधि मरण होज्यो. १२०८३२. (*) गुणधानविचारगर्भित सुमतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-२ (१ से २) २, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७X१२.५, १०X३७). For Private and Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची समतिजिन स्तवन-१४ गणस्थानविचारगर्भित, म. धर्मवर्धन, मा.ग., पद्य, वि. १७२९, आदिः (-); अंति: कहे इम मुनि धर्मसी, ढाल-६, गाथा-३४, (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण से है.) १२०८३३. जीवादि भेद-बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक नहीं हैं., खडा लेखन., दे., (२७४१२.५, २८x२४). बोल संग्रह-जीवादि भेद , मा.गु., गद्य, आदि: पेले बोले वाटे वहेता जीव; अंति: आज्ञाभीतर ३ जीवमिश्र १. १२०८३४. शांतिजिन पूजन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७७१३, ११४४७). शांतिजिन पूजन स्तवन, मा.गु., प+ग., आदि: श्रीशांतिनाथा जिन गुण तणा; अंति: धरे सीझे वंछित काज, गाथा-५. १२०८३५. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७७१३, ११४४४). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणीकर्मनी; अंति: (-), (पू.वि. नाम कर्म प्रकृति विचार अपूर्ण तक १२०८३६ (+) प्रश्नशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०३, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पक्ष हेतु 'सुक्ष्ण' लिखा है., संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, ७४३३). प्रश्नशतक, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रीवीराय जिनेशाय; अंति: नरचंद्र० चक्रेर्थबहुलमिदं, प्रकाश-७, (वि. १८०३, फाल्गुन कृष्ण, ९, शनिवार) प्रश्नशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. १८०३, फाल्गुन कृष्ण, ११, मंगलवार, वि. कहीं-कहीं टबार्थ लिखा है.) १२०८३७. (#) पौषध विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७७१३, १५४३२). पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इरिआवही० लोगस्स१; अंति: तिवार पछी देव वांदवा. १२०८४१ (+) ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्रले. मु. चुनीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१३.५, १३४३०). ८ कर्म १५८ प्रकति विचार, मा.ग., गद्य, आदि: आठ कर्म ते केहा; अंति: दया पालवी गुरु भक्ती करवी, (वि. कोष्टक सहित.) १२०८४२. औपदेशिक व मुर्खहित सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७.५४१३, १२४३९). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, प. १अ, संपूर्ण. मु. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासरीए इम जइए रे बाइ; अंति: भावे सीव सुख लहिये रे बाइ, गाथा-९. २. पे. नाम. मुर्खहित सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मूर्खप्रतिबोध, मु. मयाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञान कदि नव थाय मूरखने; अंति: मया० __ बोधबिज सुख थाय, गाथा-९. १२०८४४. जिरावलि पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०१६, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. श्राव. मनहरलाल केशवलाल भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x१२.५, १२४५४). पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, म. सोमजय, अप., पद्य, वि. १६वी, आदि: जीराउलि राउलि कयनिवास; अंति: जिराउलि जिण मज पूरि आस, गाथा-४५. १२०८४५. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११-९(१ से ९)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., जैदे., (२६.५४१२.५, १८४५०). नवतत्त्व प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ से २५ तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२०८४७. सिद्धदंडिका स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२७४१२.५, १२४४४). सिद्धदंडिका स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: (-); अंति: पद्मविजय जिनराया रे, गाथा-३८, (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण से है.) १२०८४८. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४१२.५, ११४३६). For Private and Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org स्तवनचीवीसी, उपा. चारित्रनंद, मा.गु, पद्य, आदि: प्रभु पद पंकज मकरंद में अंति: (-) (पू.वि. संभवजिन स्तवन गाथा-१ अपूर्ण तक है.) १२०८४९. (१) जिमनी सज्झाय, नमस्कार महामंत्र सज्झाय व राणकपुर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, लिख. श्राव. मोती कचरा सा. प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६१३, १५X४०). १. पे. नाम. जिभनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक सज्झायरसनालोलुपतात्याग, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बापडीली रे जिभडजी तु कां; अंति लबधि कहे सुणो प्राणी रे, गाथा-८. २. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. . रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: केहज्यो चतुर नर ते कुण; अंति : रुप भणे बुधी सारी रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. राणकपुर स्तवन, पू. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: राणकपुर रलीयामणुं; अंतिः समयसुंदर मन मोहत रे, गाथा ७. १२०८५०. वीरजिन स्तुति व पार्श्वजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १(१ ) = १, कुल पे. ३, जैवे. (२७४१२.५, ११x४९). १. पे नाम वीरजिन स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. "3 संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा. सं., पद्य, आदि (-); अति देहि मे देवि सारम् श्लोक-४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. चिंतामण पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. २अ संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य अंतिः पार्श्व यक्ष स्मराती, श्लोक-४. ३. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. मु. हितविजय, सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर; अति हितविजय० भूयसे स्तात् श्लोक-४. " १२०८५१. अंतराय सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २६११.५, १०X३५). असज्झाय सज्झाव, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता आदे नमीई अति बहेला वरसो सिद्धि, १२० गाथा - ११. १२०८५६. विधि व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ८. प्र. वि. प्रतिलेखक ने कृति विषयानुसार पत्रानुक्रम दिया है., दे., (२८x१२.५, १३X५६). १. पे. नाम. चौदपूर्व करवानी विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ पूर्व नाम आराधना विधि, मा.गु. सं., प+ग, आदि (१) चौदसथी आदरे प्रथम, (२) श्रीउत्पादपूर्वाय नमः अंति लोकवसारपूर्वाय नमः २. पे नाम जुगप्रधाननी विधि, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. युगप्रधानतप आराधना विधि, मा.गु., प+ग, आदि (१) प्रथम झरीयाबही पडीक्कमी, (२) सुधर्मास्वामीने नमः अंति उपवास करवो देव वांदवा. ३. पे नाम. अठावीस लब्धीनी विधि, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. २८ लब्धि नाम, मा.गु., गद्य, आदि: (१) प्रथम इरीयावहीआ पडिक्कमी, (२) श्रीआमोसहीलब्धये नमः; अंतिः श्रीपुलायकलब्धये नमः. ४. पे. नाम. पीस्तालीस आगम आराधवानी विधि, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. ४५ आगम नाम, मा.गु., गद्य, आदि (१) प्रथम इरीयावहीया पडीक्कमी (२)श्री नीसीदच्छेदसूत्राय नमः; अंतिः श्री आवसकसूत्राय नमः, ५. पे. नाम बत्रीस वीजयनी विधि, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अढीद्वीप १७० उत्कृष्टजिन नाम, मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (१)प्रथम इरीयावहीआ पडीक्कमी, (२)श्रीजयदेवसर्वज्ञाय नम; __अंति: श्रीराजेश्वरसर्वज्ञाय नमः. ६.पे. नाम. अक्षयनीधीनी विधि, पृ. ६अ, संपूर्ण. अक्षयनिधि तप आराधन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरीयावहीआ पडीक्कमी; अंति: दीवसे रात्री जोगो करवो. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अक्षयनिधितपगर्भित, पंन्या. पद्मविजय, मा.ग., पद्य, वि. १८४३, आदि: तपवर कीजे रे अक्षयनिधि; अंति: पद्मविजय फल लीधो, गाथा-१२. ८. पे. नाम. अक्षयनीधी तपना दहा, पृ.७अ-७आ, संपूर्ण. अक्षयनिधितप खमासमण दोहा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकर संखेश्वर नमी; अंति: शासने होजो ज्ञानप्रकाश, ढाल-२, गाथा-२६. १२०८५८. (+) मूर्खप्रतिबोधनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१३, ११४३८). औपदेशिक सज्झाय-मूर्खप्रतिबोध, मु. मयाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञान कदि नवि थाय; अंति: मयाविजय० गुण गाय, गाथा-९. १२०८६०. मेघकुमार कथा-कल्पसूत्रगत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४-२३(१ से २३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२७.५४१२.५, १२४३९). कल्पसूत्र-बालावबोध , मा.गु.,रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. "वीरजीनी वाणी सांभली" पाठ से "विअट्टछउमाणं" पाठ तक है.) १२०८६१. (+) १० लक्षण उद्यापनमंडलपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८८०, चैत्र शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. २२, ले.स्थल. राजपुर, प्र.वि. हुंडी:दसल०पूजा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२८x१३, १०x४५). १० लक्षण उद्यापनमंडलपूजा विधि, पुहि.,सं., प+ग., वि. १८८०, आदि: विमल सुगुन समृद्धि; अंति: अष्टादशशतक उपरि असीय धार. १२०८६३. स्नात्रपूजा विधिसहित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:स्नात्रपूजा., जैदे., (२७४१२, १८४४५-४८). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोतीसे अतिसय जूउ वचनातिसय; अंति: मोक्षसौख्यं श्रयंति. १२०८६४. चौवीसजिन नामादि बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९८, भाद्रपद कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, प्र.वि. पंक्ति अक्षर अनियमित., जैदे., (२८x१३, ७-२५४४०-४७). १.पे. नाम. चौवीसजिन नाम-अनागत, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन नाम-अनागत, मा.ग., गद्य, आदि: १ श्रेणिकनोजीव; अंति: भद्रकृत स्वातिनो जीव. २. पे. नाम. २० विहरमानजिन नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ सीमंधरस्वामिः; अंति: १९ अजितवीर्य २०. ३. पे. नाम. १०० वर्ष ३६००० दिवस मानादि विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १०० वरसना दिन ३६०००; अंति: पल्योपम जाझेरो सुभ आउखा. ४. पे. नाम. तप संयमादि आराधनाफल विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: एक दीन तप संयम पालतो ७००; अंति: पल्योपम देवतानो सुभ आउ. ५. पे. नाम. हेमदंडक का कोष्टक, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. हेमदंडक गाथा-कोष्टक, संबद्ध, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). १२०८६७. (#) भ्रमभंजन काव्य, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७.५४१३, २०-२२४४६-६०). भ्रमभंजन काव्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणम्य देवपरमातमा परम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९३ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२९ १२०८६८. ६ आवश्यक विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-२(१ से २)=४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., जैदे., (२७.५४१२.५, १०४३४). ६ आवश्यक विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वांदणा आवश्यक अपूर्ण से मुहपत्ति के ५० बोल अपूर्ण तक है.) १२०८६९. (+) १२ भावना पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १४४५०). १२ भावना पद, रा., पद्य, आदि: हारे जीव गढ मड पौल; अंति: मोरा देवी माताने भाई, भावना-१२. १२०८७१ १२ भावना सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६१, आश्विन कृष्ण, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. १०, ले.स्थल. कच्छपत्री, प्रले. जणाजी रामसंग जाडेजा (पिता रामसंग प्रतापसंग जाडेजा); गुपि. रामसंग प्रतापसंग जाडेजा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२, १६४५२). १. पे. नाम. १२ भावना सज्झाय, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. १२ भावना सज्झाय-बृहत्, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पास जिणेसर पाय नमी; अंति: भणी जेसलमेर मझार, ढाल-१३, गाथा-१२८. २. पे. नाम. देवानंदा सज्झाय, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: विप्रकुंडन नामे नगर रिषभ; अंति: शिव सुख माहे सीरो जी, ढाल-३, गाथा-५३. ३.पे. नाम, संखपोखली ढाल, पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण. सिद्धांतसार सज्झाय, म. जेष्टमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: सावथी नामे नगरीये कोष्ट; अंति: ए श्रावकने साबासो रे, ढाल-३, गाथा-९७. ४. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निंदक, म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: निखरो माण निंदक होवे तिको; अंति: रायचंद० कठा लगे जावे ए, गाथा-२६. ५. पे. नाम. क्रोध सज्झाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:क्रोधनी०. दंडकपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दंडक चोवीसमाही जीवडलो कदे; अंति: रायचंद कहे० पारउ तारे जी, गाथा-२१. ६. पे. नाम. १६ सती लावणी, पृ. ८अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीर तणा त्रिकाल चरण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ७. पे. नाम. समोसरण भावना सज्झाय, पृ. ८अ-११अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:समोरणनीढा., समोसर्या०. मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: (-); अंति: रिष जेमल समोसरण अधिकार ए, ढाल-४, गाथा-१५४, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण से लिखा है.) । ८. पे. नाम. ५ कारण स्तवन, पृ. ११अ-१२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पंचसमवायनीढालु. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथसुत वंदिये; अंति: विनय कहै आणंद ए, ढाल-६, गाथा-५८. ९.पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय-अध्ययन ५ से ६, पृ. १२आ-१३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:दसवीकाल. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, वा. कमलहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०. पे. नाम, नानचंद ऋषि छत्रबंध दोहा, पृ. १३आ, संपूर्ण.. हरिप्रताप जूणाजी जाडेजा, पुहिं., पद्य, वि. १९६१, आदि: ना तन में नेह चंचला; अंति: जग प्रणमें हरी प्रताप, गाथा-२. १२०८७२. (4) हरिश्चंद्रराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३२-२१(१ से ४,७ से १८,२१,२७,२९ से ३१)=११, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:हरचंदराजा चउपइ., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, १४४३९). For Private and Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मु. कनकसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल -३ गाथा-३६ अपूर्ण से खंड-५ ढाल ५ गाथा १३ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२०८७६. (#) अंजनासुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७१२.५, १४४१). www.kobatirth.org अंजनासुंदरी रास- बृहद्, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलइनइ कडवइ हो पाय नमु भ; अंति: रामनी भार्या जगतनी मात, गाथा - १६०. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२०८७७. (#) स्नात्र विधि व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०७, पौष कृष्ण, ६, बुधवार, जीर्ण, पृ. ४, कुल पे. ५, ले. स्थल. पालीताणा, लिब. मु, दोलतचंद (खरतरगच्छ ) पठ. राधाकृष्ण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२७.५X१२, १२x३९). १. पे नाम. स्नात्र विधि, पू. १अ ४अ, संपूर्ण स्नात्रपूजा विधिसहित ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी आदि चोतिसे अतिसय जुठ वचना; अंति: देववचंद० सूत्र " मझार. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. दोलतराम, पुहिं., पद्य, आदि: घरी घरी पल पल छिन; अंति: दोलतराम० विच तरले री, गाथा-२. ३. पे नाम. आदिजिन पद, पू. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि आद जीणद नमो सीरनामी भव भव, अंतिः तुम चरण नसीब गामी रे, गाथा - ३. ४. पे. नाम साधारणजिन पद, पू. ४आ, संपूर्ण, श्राव. वखतराम, मा.गु., पद्य, आदि आपको सरण लीनो सोतो, अंतिः पामे कधू नही बाकी है, गाथा-३ ५. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सुग्यानी जीया सुकरत क्यों; अति करनी विन निज कारीज० रे, गाथा-४. " १२०८७९. (+) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९२४, मध्यम, पृ. ३६+१ (२६)=३७, ले. स्थल. अजमेर, प्र. वि. हुंडी : कल्पसूत्र०., पदच्छेद सूचक יי लकीरें संशोधित. दे. (२६४१२, १३४४५-४९). "" कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेण कालेनं० समणे; अंतिः अज्झयणं सम्मत्तं व्याख्यान ९. १२०८८०. दानशीलतपभावना संवाद, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पू. ५, जैदे., (२८४१२.५, १२४३७). 1 दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य वि. १६६२, आदि प्रथम जिणेसर पाय नमी, अंति 1 भ० सुप्रसादोरे, ढाल -५, गाथा- ९९. , १२०८८१ (+४) उपासकदशांगसूत्र की विषयसूची अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जै, (२५४१२.५, २७४६१). उपासकदशांगसूत्र-बीजक, मा.गु., सं., गद्य, आदि: आनंदश्रावक १ कामदेव २; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-८ महाशतक अपूर्ण तक है.) १२०८८२. (+) सूत्रकृतांगसूत्र की वृति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३५, प्र. वि. हुंडी : सूगडांगवृ., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१२, १६x४५-५०). " सूत्रकृतांगसूत्र- बृहद्वृत्ति, आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. १०वी, आदि: स्वपरसमयार्थसूचकमनंत अति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'तत्परिज्ञोपचितादिकर्मेति ननु च यद्यनंत' पाठांश तक है.) १२०८८३. गोचरी ४२ दोष गाथा सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, ये. (२६५११, ५४४३). "" गोचरी ४२ दोष गाथा, प्रा., पद्य, आदि सोलेस उग्गम दोस्सा सोलस, अंति: (-). (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-५ अपूर्ण तक है.) गोचरी ४२ दोष गाथा -टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि हिवे साधुने आहारादिकने; अंति (-), (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- १ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२०८८५ (+) चंद्रराजा रास, संपूर्ण वि. १८२२, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ७६, ले. स्थल, वाटेराग्राम, प्र. मु. कस्तुरविजय (गुरु मु. मोहनविजय, तपागच्छ); गुपि. मु. मोहनविजय (गुरु मु. उद्योतविजय, तपागच्छ): मु. उद्योतविजय (गुरु मु. उमेवविजय, तपागच्छ): मु. उमेदविजय (गुरु मु. विजयराजसूरि, तपागच्छ): मु. विजयराजसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., ( २६११.५, १९X३८-५२). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: वर्णव्या गुणचंदना, उल्लास-४ ढाल १०८, गाथा - २६६८. १२०८८६. गुरुगुण गहुंली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले स्थल. अजयदुर्ग, प्रले. पं. विनयचंद्र; पठ. हिमतरामजी तिलोकचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, ११४३९). गुली, जै.. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: ते गुरु मेरे उर वसौ; अंति: मम माथे लगो भूधर मागे एह, गाथा-१४. १२०८८७. (+) गुणवर्म चरित्र, अपूर्ण, वि. १८३९, चैत्र कृष्ण, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. ७७-२ (१ से २)+१(१५)=७६, प्रले. पं. देवचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५X१२, १२X४०). गुणवर्म चरित्र, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८४, आदि: (-); अंति: श्रोत्रे भवतु मंगलं, सर्ग-५, (पू.वि. सर्ग - १ श्लोक-३७ अपूर्ण से है.) १२०८८८ (+#) उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५०, प्र. वि. हुंडी: उत्तराधयन ३६ सूत्ते, संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५४११.५, १५X४६-५९). १३१ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६. १२०८८९ (+#) नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७०४, कार्तिक शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ३१, प्र. वि. हुंडी : नंदीसूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११.५, १३३४). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा. प+ग, आदि जयड़ जगजीवजोणी वियाणउ अति: समणुन्नाई नामाई. १२०८९०. उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-९ (१ से २४ से १०) ३. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. जैदे., (२७X११.५, ६x४४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन १ गाथा - २० अपूर्ण से अध्ययन ५ गाथा-५ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). *, १२०८९१ (+) अनुत्तरोववाईसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९४, आषाढ़ कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्रलं. गुमानीराम बोडा; अन्य. सा. राजाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : अणु०वाइ., अणु०वा०., संशोधित. कुल ग्रं. ७००, जैदे., ६x४४). जैदे. (२७४१२, " अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग. आदि तेणं कालेणं तेणं समय; अंति: नायाधम्मकहाणं तहा नेयव्वं. अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि ते० तेणे काले चथा आराने; अंति: तेहनी पर त० तिमजने जाणवी. १२०८९२. (+) उत्तराध्ययनसूत्र-जीवाजीवविभत्ती अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र. वि. हुंडी : उत्तराध्य०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७१२, १५X४१). उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि (-): अंति सम्मए ति बेमि, प्रतिपूर्ण " १२०८९४. (+) कोणिकराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. हुंडी : कोणकनी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६X१२, १८४४५). For Private and Personal Use Only कोणिकराजा चौपाई, मु. चोथमल, मा.गु., पद्य, आदि सासणनायक दाखीयो स्वार्थी अंतिः सुणने क्रोध मिटाय जी, ढाल - २०. Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२०८९५. साधुपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १६९०, वैशाख कृष्ण, १२, गुरुवार, मध्यम, पृ. ८ - १ (१) = ७, ले. स्थल. भानुमती, प्र. मु. मनोहर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : अतीचार., जैदे., ( २६ ११.५, ११x४०). साधुपाक्षिक अतिचार-मू.पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडं, (पू.वि. ज्ञानाचार वर्णन अपूर्ण से है.) १२०८९६. (४) चउसरण प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ४-१ (१) - ३, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६११.५, ९x४१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य वि. ११वी, आदि (-); अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा- ६३, (पू.वि. गावा- १८ अपूर्ण से है.) १२०८९८. (*) नमस्कार महामंत्र रास, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६.५X१२, " "" १२x२८-३४). , नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति स्वामिनि द्यो; अति: मांहे हुयो जय जयकार तो गाथा २०. १२०८९९. (४) सत्वविषये राजा हरिश्चंद्र रास, अपूर्ण, वि. १८८२ फाल्गुन कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. २९-१५ (२ से ४, ६ से ८,१० से १६,२५ से २६)=१४, ले.स्थल. पाली, प्रले. पं. हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्र खंडित व चिपके होने से पाठ के आधार पर अनुमानित पत्रांक दिया गया है, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४११.५, १३x४३). " हरिश्चंद्रराजा रास-सत्यवचन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: वीरजिणेसर पाय नमुं; अंति: जिनहरख० सुपसाइ श्रीपास हो, ढाल ३५, गाथा- ७०१ (पू.वि. ढाल १ गाथा ४ अपूर्ण से ढाल ५ गाथा- ३ अपूर्ण, ढाल ६ गाथा-७ अपूर्ण से ढाल ११अपूर्ण, ढाल १३ गाथा- २ अपूर्ण से ढाल १९ गाथा-५ अपूर्ण व ढाल २९ गाथा-६ अपूर्ण से डाल ३२ के दोहा १ अपूर्ण तक नहीं है.) १२०९०० (+#) योगचिंतामणि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-३ (१ से ३)=५, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी जोगचं०., जोगचंतामणी., पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२६x१२. १२X३४). योगचिंतामणि, आ.हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्याय- १ नारेल पाक से भाडंगी पाक अपूर्ण तक है.) १२०९०३ (०) मंगलकलश रास व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३४ वैशाख कृष्ण, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. ३१, कुल ले. स्थल. कालंधरी, प्रले. पं. जीतविजय (गुरु पं. वृद्धिविजय) गुपि. पं. बुद्धिविजय (गुरु पं. सुमतिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मंगलकलस रास. श्री माहावीरजी प्रसादात्., संशोधित, जैदे., (२५X१२, १५X३५-४०). १. पे. नाम. मंगलकलश रास. पू. १आ-३१ आ. संपूर्ण मु. दीप्तिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७४९, आदि प्रणमुं सरसती स्वामीनी अंति: दीप्तिनी फलज्यो आसो रे. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्राण थकी प्यारो मुने; अंति: थलपति प्राण आधार, गाथा-५. १२०९०४ (४) पांडव रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ९४-३६(१ से ३०, ३९ से ४३,४८) = ५८, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६.५४१२.५, १८४३५-४१). "" पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, डाल- ३४ अपूर्ण से ढाल १०२ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२०९०६. (+) गौतम कुलक सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९२१ ज्येष्ठ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२५.५४१२, ७४३६). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: न सेवितु न सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि लोभी नर लक्ष्मी मेलवानह अंति: धर्म न सेवइ सुख न पामइ. For Private and Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२०९०७. (+) उवाइयउपांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९५, आश्विन कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ११४, प्रले. गुमानीराम बोडा; अन्य. रामदेव अणतराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उबाइसूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. २२८, जैदे., (२७४१२, ५४३८). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: चिठंति सुही सुहं पत्ता. औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्वा श्रीजिनं; अंति: सुख पाम्या थका. १२०९०८. पार्श्वजिनसहस्रनाम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९५१, चैत्र कृष्ण, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ.७, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. जीवणसिंग; लिख. श्राव. हरगोवनदास गगन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पार्श्व०सह०., दे., (२६४१२, १४४५३). पार्श्वजिनसहस्रनाम स्तोत्र, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: पार्श्वनाथो जिनः; अंति: लक्ष्मीरेधते सौख्यदा वरा, श्लोक-१५०. १२०९०९ (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८९५, श्रावण कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १७०, ले.स्थल. योधपुर, प्रले. हरनारायण बोडा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उत्तराध्यय०., उत्तराध्य०., संशोधित., जैदे., (२७४१२, २०४५२-५६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सं० संयोग बे प्रकारे; अंति: तुज प्रतइ कहुं छु. उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: एक आचार्यनइं एक चेलो; अंति: देइ पग साजा कर्या. १२०९१२. (+) भृगपुरोहित चौढालिया, कमलावतीसती व साधुगण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९००, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, ले.स्थल. पाली, प्रले. सा. राजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भगुप्रोहित चोपई., संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, १७X४८). १. पे. नाम. भृगुपुरोहित चौढालिया, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. मु. जेमलजी मुनि, रा., पद्य, आदि: देव हुंता पूरब भवे वसता; अंति: जेमलजी० मिछामि दुकडु मोय, ढाल-४. २.पे. नाम, कमलावतीसती सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. चोथमल, मा.गु., पद्य, आदि: किण साहुकार रे घर आरो; अंति: चोथमल० सुख हुवे सासतां, गाथा-६. ३. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. आसकरण, मा.गु., पद्य, वि. १८३८, आदि: साधुजीने वंदना नीत; अंति: आसकरण साधुरो दास रे, गाथा-१०. १२०९१३ (+#) सूत्रकृतांगसूत्र-अध्ययन ११ मोक्षमार्ग अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. उदेचंद; अन्य. सा. राजाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मोखमार्ग०., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७.५४१२, १३४३०). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १२०९१४. (+) आगमोक्त साधवनणा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. हुंडी:साधवनणा., साधव०., साधवन०., संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, १६४३९). साधुवंदना तेरहढाला, मु. देवमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पंच भरह पंच एरवय जांण; अंति: श्रीदेवमुनि ते संथुण्या, ___ढाल-१३, गाथा-१६०. १२०९१६. प्रकृतिविच्छेद प्रकरणादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०-४(४,६,२१,२९)=२६, कुल पे. ४, जैदे., (२७४१३, १२४३३). १.पे. नाम. प्रकृतिविच्छेद प्रकरण, पृ. १अ-७आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. आ. जयतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्वीरजिनं नत्वा; अंति: गंतव्यं सदा सद्भिः, श्लोक-१४९, (पू.वि. श्लोक-६६ अपूर्ण से १०० अपूर्ण तक व श्लोक-१२० अपूर्ण से श्लोक-१३९ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम, सूक्ष्मार्थसंग्रह प्रकरण, पृ. ७आ-१९अ, संपूर्ण. आ. जयतिलकसरि, सं., पद्य, आदि: सूक्ष्मार्थसार्थवक्तारं; अंति: प्रकरणमेतद्वितीयं च, श्लोक-२०१. ३. पे. नाम. प्रकृतिस्वरूपसंरूपण प्रकरण, पृ. १९अ-२७आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. For Private and Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. जयतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: देवभद्रं सकल्याणं; अंति: शोध्यं तदत्यादरात्, श्लोक-१७८, (पू.वि. श्लोक-४२ अपूर्ण से श्लोक-६५ अपूर्ण तक नहीं है.) ४. पे. नाम. बंधस्वामित्व प्रकरण, पृ. २७आ-३०अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. आ. जयतिलकसरि, सं., पद्य, आदि: अबंधस्वामिनं देवं प्रणम्य; अंति: प्रकरणमेतच्चतुर्थं च, श्लोक-४७, (पू.वि. श्लोक-२५ अपूर्ण से ४३ अपूर्ण तक नहीं है.) १२०९१७. (+) मदनरेखासती रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. पाली, प्रले. छोगा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मेणरया., संशोधित., जैदे., (२७४१२, १६४३९). मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: जुवा मांस दारु थकी करे; अंति: परनारी त्यागीज्यो, गाथा-२४३. १२०९१८. (+) नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, अन्य. सा. राजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नंदिसूत्र., नंदिसू०., संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, १७X४४). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणउ; अंति: से तं नंदी सम्मत्ता. १२०९१९ प्रदेशीराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. हुंडी:प्रदेसीराजा०, प्रदेशीनी०., जैदे., (२७.५४१२.५, १७४५०). प्रदेशीराजा चौपाई, रा., पद्य, आदि: सूरीयाभ रिद्धसु परिवस्यो; अंति: ए घणा दिननो आसी छे ले दाय, ढाल-२६. १२०९२०. २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-२(१,५)=५, पृ.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, जैदे., (२७.५४१३, १३४३४). २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सुबाहुजिन स्तवन अपूर्ण से चंद्राननजिन स्तवन अपूर्ण तक व भुजंगजिन स्तवन अपूर्ण से अनंतवीर्यजिन स्तवन अपूर्ण तक है.) १२०९२१ (+) उपदेशबावनी, अपूर्ण, वि. १९३७, फाल्गुन कृष्ण, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २९-८(१ से २,१२ से १३,१५ से १८)=२१, ले.स्थल. भावनगर, प्रले. कृष्णजी वेलजी दवे; पठ. श्राव. वनमाली करसनजी कोठारी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७४१२.५, ४४३२-३७). __ अक्षरबावनी, वा. किसनदास, पुहि., पद्य, वि. १७६७, आदि: (-); अंति: किसन कीनी उपदेशबावनी, गाथा-६२, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक, गाथा-२४ अपूर्ण से २८ अपूर्ण तक व गाथा-३१ अपूर्ण से ३९ अपूर्ण तक नहीं है.) १२०९२२. साधारणजिन अभिषेक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७४१२, ५४३३). साधारणजिन अभिषेक श्लोक, सं., पद्य, आदि: चक्रे देवेंद्रराजै; अंति: सुप्रसादपराः संतु स्वाहा, श्लोक-२. १२०९२३. मौनएकादशीपर्व गणj, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२७४१२.५, १३४३६). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: महाजस सर्वज्ञाय नमः; अंति: प्रथमनाथाय नमः. १२०९२४. मौनएकादशी गणगुं, संपूर्ण, वि. १९५३, मार्गशीर्ष कृष्ण, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पाली, प्रले. पंडित. लक्ष्मीचंद पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१३, १८४४६). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदिः (१)जंबूद्वीपे भरते अतीते, (२)महाजस सर्वज्ञाय नमः; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः. १२०९२५. जांभवती चौपाई व २४ जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३६, आश्विन शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. माहामीदर, प्रले. सा. कीसनी आर्या (गुरु सा. राजाजी आर्या); गुपि. सा. राजाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जांभवती., जैदे., (२७४१२, १५४६०). १.पे. नाम, जांभवती चौपाई, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. जंबूवती चौपाई, मु. सूरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पैहली ढाल सुहावणी जांभवती; अंति: सुरसागर० अवीचल पाटतो, ढाल-१३. २. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. वजुलाल, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: श्रीरीसहनाथजीन सीवरता सुख; अंति: श्रीरीषबदेवम राजज अणदकारी, गाथा-८, (वि. गाथाक्रम गिन कर लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२०९२६. (+) ऋषभ चरित्र, संपूर्ण, वि. १९१६, आश्विन कृष्ण, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. पाली नगर, प्रले. श्राव. गोवर्द्धन छांगांणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रिषभचरित्र., रिषभच०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२६.५४१२.५, १६x६०). आदिजिन चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: अरिहंत सिधने आयरिया; अंति: रिष चरित्र टंकसाल ए, ढाल-४७. १२०९२८. वंदित्तुसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८३४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ११५, लिख. मु. गंभीरविजय; प्रले. ग. राजविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:बृहत्प्रतिक्रमणसूत्र वृत्ति., कुल ग्रं. ६६४४, जैदे., (२६.५४१३, १६४४५). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. वंदित्तसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४९६, आदि: जयति सततोदयश्रीः; अंति: जीयादियं च चिरम्, अधिकार-५, ग्रं. ६६४४. १२०९२९. सूत्रकृतांगसूत्र-मोक्षमार्ग अध्ययन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:मोखमार्ग., जैदे., (२६.५४१२.५, १६४३७). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. गाथा-३० अपूर्ण तक है.) १२०९३०. गौतमपृच्छा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२७४१२, १०x४९). गौतमपृच्छा ३० बोल, रा., गद्य, आदि: (-); अंति: करीने मुगत जासी, (पू.वि. 'सवेदीने एक अवेदी अवेदीने तो मुगत छे' पाठांश से है.) १२०९३१. सुबाहुकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७.५४१३, १३४३८). सुबाहुकुमार सज्झाय, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि: हवे सुबाहु कुमर इम; अंति: (१)खेत्रमा जासे मोक्ष, (२)सोभागी कुंवरे संजम आदरो, गाथा-१७. १२०९३२. (+) आदिजिन वर्षांतपपारणा विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१२.५, ११४३७). आदिजिन वर्षांतपपारणा विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: जमणो हाथ श्रेयांस प्रति; अंति: जोग वडे थाय छे. १२०९३३. (#) श्रावकाचार प्रश्नोत्तर व आणंदरूपश्रावक उपमा पत्र, संपूर्ण, वि. १८९८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १३१, कुल पे. २, ले.स्थल. जाणापेठ, प्रले. पं. अचलसुन्दर (गुरु पं. सौभाग्यसुन्दर, उपकेशगच्छ); पठ. श्राव. आणंदरूप सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रश्नोतरश्राव., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२, १२४३७). १. पे. नाम. श्रावकाचार प्रश्नोत्तर, पृ. १आ-१३१अ, संपूर्ण. श्राव. बुलाकीदास, पुहिं., पद्य, आदि: सिद्धं संपूर्ण भव्या; अंति: जगत मै भव्यन को आधार, अधिकार-२४. २. पे. नाम. आणंदरूपश्रावक उपमा पत्र, पृ. १३१अ-१३१आ, संपूर्ण. मा.गु., प+ग., आदि: (१)श्रीमज्जिनेंद्रचंद्रचरणां, (२)सीतल अंग सुभावभीष्ट; अंति: (१)धर्मलाभ है वारंवार जाणसी, (२)ऐसे आणंदरूप सुग्यान, गाथा-४. १२०९३५. तिथिनिर्णयविचार गाथा, आदिजिन स्तुति व ति गोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७-२६(१ से २६)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१२, १३४२८). १. पे. नाम. तिथिनिर्णयविचार गाथा, पृ. २७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ___ मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: पूरी पूनीमे चोमासु साभारि, गाथा-१०, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. २७अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जय त्वं जगदानंद जय; अंति: भक्तिमल्लोक भवसंतापहारिणे, श्लोक-५. ३. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. २७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तयासं अट्ठम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० तक है.) १२०९३६. (+) षड्दर्शन विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-२४(१ से २४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १९४५०). षड्दर्शन विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बौद्धमत अपूर्ण से वैशेषिकमत अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२०९३७. २० स्थानकतप विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. रत्नापूर, प्रले. मु. पद्मचंद (गुरु पंन्या. मोतीचंद); गुपि. पंन्या. मोतीचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अंत में "नवपलवजी" लिखा है., दे., (२७४१२.५, १५४४०). २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: अरीहंतनी भक्ति स्नात्र; अंति: काउसग लोगस २० नो किजीइ. १२०९३८. व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२७X१२.५, ९४३०). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: दानं सुपात्रे विशदं; अंति: मंगलीक माला संपजे. १२०९३९ (+) उत्तराध्ययनसूत्र, उत्तराध्ययनसूत्र माहात्म्यगर्भित गाथासंग्रह व ३६ अध्ययन नाम, संपूर्ण, वि. १९१७, चैत्र कृष्ण, १२, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६९, कुल पे. ३, ले.स्थल. योधपुर, प्रले. श्राव. गोवर्द्धन छांगांणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उत्तराध्येन०., उत्तराध्येनसू०., संशोधित. कुल ग्रं. २१७५, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२६.५४१२, १३४४८). १. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र, पृ. १आ-६८आ, संपूर्ण. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: सम्मए त्ति बेमि, अध्ययन-३६. २. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र माहात्म्यगर्भित गाथासंग्रह, पृ. ६८आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-माहात्म्यगर्भित गाथासंग्रह, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जे किर भवसिद्धिया परित्त; अंति: गुरुप्पसाया आइज्झा, गाथा-२. ३. पे. नाम. विनयादि ३६ अध्ययन नाम, पृ. ६८आ-६९अ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र- विनयादि ३६ अध्ययन नाम, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: विणय१ परीसह२ चउरंगी३; अंति: उत्तरझयणै पणीवयामी. १२०९४०. श्रीवर्द्धमानस्य भवांतराणि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक नहीं है., जैदे., (२७४१२.५, १५४३४). महावीरजिन ३३ भव-दिगंबरमत, मा.गु., गद्य, आदि: १भिल्लः पुरूरवा २प्रथम; अंति: (१)सिद्धार्थ पुत्रो जिनः, (२)सिद्धिदाता भवत्वस्माकम्, (वि. अनुक्रम १ में १४ भव व दूसरे अनुक्रम में १९ भव इस तरह कुल ३३ भवों का भवांतर वर्गीकृत है.) १२०९४१. (+) विनयचट रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५९, ले.स्थल. काठकरा, प्रले. सा. वेजबाई (गुरु सा. नाथीबाई); गुपि. सा. नाथीबाई; अन्य. मु. कर्मसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:विनयचट, विनयचट्ट०. श्रीऋषभजिनप्रसादात्. "संवत १८६१ आश्विन मासे कृष्ण पक्षे ६ बुधवासरे लिपीकृत अंजारनगरे" श्रीवासुपूज्यप्रसादात्,मेघविजयगणि द्वारा लिखी प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है. श्रीऋषभजिनप्रसादात्., संशोधित. कुल ग्रं. २२००, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७.५४१३, १४४४३). विनयचट रास, मु. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: पार्श्वनाथ जिनवर; अंति: ऋषभनां फलस्ये जी, उल्लास-४ ढाल ५८, गाथा-१५३०. १२०९४२. दानशीलतपभावना कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६,प्र.वि. हुंडी:दानकुला०, दानकु०., जैदे., (२७४१२, ५४४१). दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिऊण; अंति: असोग० खमंतु तेणं, गाथा-४९. दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवाधिदेव श्री महावीरनइ; अंति: हुइ ते आचार्य खमज्यो. १२०९४३. (+) दंडकादि ३० बोल, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रावण कृष्ण, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २७, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. पृथ्वीराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:महादंडक., संशोधित., दे., (२७४१२, १७४४६). महादंडक ३० द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक १ लेस्या २ ठिती; अंति: (१)छ महीनारौ नैचवण नही, (२)विरहना बोल थकी जाणवो. १२०९४४. नवतत्त्व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०२, माघ कृष्ण, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्व०., दे., (२६.५४१२, १६x४७). For Private and Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १३७ नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवरो चेतन लखण पुन; अंति: पुरख सिध संख्यात गुणा. १२०९४५. (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-४(१ से ४)=१७, प्र.वि. हुंडी:दसमीका०., संशोधित., जैदे., (२७४१२, १५४३४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: धम्ममिय निच्चवा होसु, (पू.वि. अध्ययन-४ छज्जीवणिया अपूर्ण से है.) १२०९४६. (+) संघयणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७X१२.५, ५४२५). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ१; अंति: जा वीरजिण तित्थं, संपूर्ण. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: नम कहिता नमस्कार करीने; अंति: रूप प्रवर्त्तइता लगी हवइ, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-११ अपूर्ण से गाथा-३९४ तक टबार्थ नहीं लिखा है.) १२०९४७. (+) व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९४, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ४८, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. रामदेव अणतराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:व्यवहार., संशोधित., जैदे., (२७४१२, ६४३६-४८). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: जे भिक्ख मासियं; अंति: भवति तिबेमि, उद्देशक-१०. व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे० जे कोई भि० साधु मासनो; अंति: क्षय करवारूप फल हुइ. १२०९४८. (+) लावणी व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:छुटक ढाल., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७४१२.५, १५४६२). १. पे. नाम. सीतासती लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. छोगचंद, रा., पद्य, आदि: दसरथ दीयो वनवास राम सीता; अंति: धर्म कर दया राख दील मे, गाथा-६. २. पे. नाम. नेमराजिमती लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. म. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: लग रही रे नेम दरसन; अंति: करो भवपार० वीनती गाई, गाथा-५. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. जेतसी ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: कहे वभीषण सुणो हो रावण; अंति: रीष जेतसी कहे० सहु नरनारी, गाथा-१७. ४. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. लछिदास, मा.ग., पद्य, आदि: पीउ मेरी एक न मानी सीया; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) १२०९४९ औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पाटण, प्रले. श्राव. मोहन गिरधर भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७X१२.५, ९४३४). औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: माया कारमी रे माया; अंति: देवगंध्रव जश गाय, गाथा-९. १२०९५२. (+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, १०४३२). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लबधि सतवियो गिरि सोहंकर, गाथा-२७, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) १२०९५३. ऋषभ स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७.५४१३, ७४३९). आदिजिन स्तुति-चतुर्थीतिथिपर्व, सं., पद्य, आदि: उद्यत्सारं सोभागारं; अंति: द्रव्यतारा भूतै स्यात्, श्लोक-४. १२०९५७. (#) रत्नपालरत्नावती रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२.५, १५४४२). रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: श्रीऋषभादिक जिन नमुं; अंति: सूरविजय० जय जयकार हो, खंड-३ ढाल ३२, गाथा-७७४. For Private and Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२०९५८. धुलेवा ऋषभदेवजीरो रास, संपूर्ण, वि. १९२० वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल, धनेरा, पठ. मु. नीधानविजय (गुरु मु. चतुरविजय); गुपि. मु. चतुरविजय (गुरु मु. कस्तुरविजय); मु. कस्तुरविजय (गुरु पं. मोहनविजय); पं. मोहनविजय (गुरु मु. गंगविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी घुलेवरास अजितशांति द्वी प्रसाद, श्रीगोडीपार्श्वनाथ प्रसाद वे (२५.५४१३, १७x४५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir केशरियाजी रास, ग. तेजविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि: सरस वचन वरसति हंस; अंति: तेजविजय० मन आस्या फली, ढाल - ९, गाथा - १५१. १२०९५९. चतुर्मासिक देववंदन, संपूर्ण, वि. १८७७, आषाढ़ शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १०, प्रले. मु. भाग्यसोम (गुरु आ. आणंदसोमसूरि); गुपि आ. आणंदसोमसूरि (गुरु आ सोमविमलसूरि) पठ. मु. खुशालसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सुमासिदेववंदन., प्र.ले. श्लो. (९२८) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, जैदे., ( २६.५X१२.५, १६x४१). चौमासीपर्व देववंदन विधि, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि (१) प्रथम सदाकाल नित्य, (२) प्रथम श्रीऋषभदेवनं; अंति: (१) सही पामे बोले कवि देपाल, (२) केहवी पछें लोगस केहवो. " १२०९६३. (४) ९ कषाय परिहार बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७X१२.५, ९x३३). ९ कषाय परिहार बोल, मा.गु., गद्य, आदि: हीस्या के कहे जे कामकाज; अंति: (-), (पू.वि. मोहनीयकर्म कषायवर्णन अपूर्ण तक है.) १२०९६४. () दोषशकुनावली, अपूर्ण, वि. ११वी, मध्यम, पू. ६-१ (५) ५. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५४१२.५, १२४४२) " दोषशकुनावली. मु. भावरत्न - शिष्य, सं., पद्म, आदि यस्योत्तमामलविभांचितपाद०: अंति: (-). (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक - ४२ अपूर्ण से द्वादशभाव लग्नविचार श्लोक-२ अपूर्ण तक नही है व श्लोक-४ तक लिखा है.) १२०९६६. उपदेशमाला सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५१४-५१३ (१ से ५१३ ) = १. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. हुंडी: उपदेश, जैदे., (२७४१२.५, १२४५१). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३९३ से गाथा-३९७ तक है.) उपदेशमाला टीका, सं., गद्य, आदि (-); अति: (-). १२०९६७. संसारतारण तप आराधना विधि व १० पच्चक्खाण नाम, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २ ) = १, कुल पे. २, अन्य. सा. सोभाग्यश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X१२.५, १३x३५). १. पे. नाम संसारतारण तप आराधना विधि, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु. सं., गद्य, आदि: श्रीकेसिगणधराय नमः अति: मेरु रूपानुं वाहण तरावबु, २. पे. नाम. १० पच्चक्खाण नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पच्चखाण १ उपवास एकासनुं अंति: अंगियो दत्ती निवी आंबिल. १२०९६८. चारित्रमनोरथमाला सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., ( २६.५X१२.५, १०x४१). . चारित्रमनोरथमाला सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुपाए प्रणमी करी; अंति: लालविजय० दिइ मुगतिनुं राज, गाथा- ३५. १२०९६९. १५ तिथि गणणु व चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, जैदे., (२७.५X१२.५, १८X३०). १. पे नाम. १५ तिथि गणणु, पू. १अ, संपूर्ण. १५ तिथि जिनकल्याणक गणणु विचार, मा.गु. सं., गद्य, आदि: श्रीकुंथुनाथपारंगताय नमः अंति श्रीमहावीरपारंगताय नमः. २. पे नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ. संपूर्ण. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीसीमंधर वीतराग; अंतिः विनय धरे तुम ध्यान, गाथा-३. ३. पे नाम. आगमसूत्र गणणु, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ४५ आगमतप गणj, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र ___'ओघनिर्युक्तीसूत्राय नमः' व 'अनुयोगद्वारसूत्राय नमः' लिखा है.) ४. पे. नाम. ५ मेरुपर्वत नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.ग., गद्य, आदि: श्रीसुदर्शनमेरुजिनाय नमः: अंति: मालीमेरुजिनाय नमः. ५. पे. नाम. १० गणधर नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १० गणधर नाम-पार्श्वजिन, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसमतीस्वामी१; अंति: जयस्वामी श्रीवीजयस्वामी. ६. पे. नाम. समवसरणतप विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. __ मा.गु.,सं., प+ग., आदि: भवजिननाथाय नमः १०; अंति: २० खमासमण देवा. ७. पे. नाम. अरिहंतजाप गणनं, पृ. १आ, संपूर्ण. अरिहंतजाप गणण, सं., गद्य, आदि: अनंतज्ञानगुणधारकाय नमः; अंति: वीर्यगुणधारकाय नमः. १२०९७० (+) सूतक विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. संशोधित., गु., (२६.५४१३, १८४५४). सूतक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: समुर्छिम जीव उपजे छे, (पू.वि. दासदासीगृहे जन्मसूतकविचार से है., वि. अंत में राशि-अक्षर व योनि-अक्षर कोष्ठक दिया है.) १२०९७१ पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह व बीजतिथि स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-७(१ से ७)=२, कुल पे. २, जैदे., (२७.५४१३, १०४२५). १. पे. नाम. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. ८अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: सा अम्ह सया पसत्था, (पू.वि. नमोस्तु वर्द्धमानाय सूत्र श्लोक-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ९आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) १२०९७२. तृतीयातिथि स्तुति व आदिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, अन्य.सा. जीवकोरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१३, ११४३९). १. पे. नाम. तृतीयातिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: निसिहि त्रिण; अंति: खेमाविजे० सुर संभारो जी, गाथा-४. २. पे. नाम, आदिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-भुजनगरमंडन नवतत्त्वगर्भित, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीवा रे जीवा पुनं रे पावा; अंति: मानविजय०चित धरज्यौजी, गाथा-४. १२०९७४. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र व २४ जिन मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. २, कल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२.५, १३४३८). १.पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ___सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलिक्षमक्षरं; अंति: जापाल्लभत्ते पदमव्ययम्, श्लोक-८७. २. पे. नाम. २४ जिन मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. २४ जिन मंत्र-जाप होमादि विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं; अंति: भविष्यतीत्याम्नाय. १२०९७५ (+) सूत्रकृतांगसूत्र-प्रथम श्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १९२१, आश्विन कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्र.वि. हुंडी:सूयगडां., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., ., (२६४१२.५, १४४३९). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झेज्झ तिउट्टिज्ज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १२०९७६. (#) नेमिजिन विवाहलो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२.५, १२४४२). नेमिजिन विवाहलो, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१३ गाथा-१६ अपूर्ण से ढाल-१५ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२०९७७ (+) निशीथसूत्र व आलोयणा विचार, संपूर्ण वि. १७९६, आषाढ़ कृष्ण, १, सोमवार, मध्यम, पृ. ४२, कुल पे, २, प्रले. करणजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : निमित्तसुंत्त., निशीतसुत्त टबो., संशोधित., जैदे., (२७.५X१२, ७x४४-४७). १. पे नाम. निशीथसूत्र सह टवार्थ पू. १ आ-४१ आ. संपूर्ण. निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जे भिक्खू हत्थकम्मं करती; अंति: पसिस्सोवभोज्जं च, उद्देशक- २०. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निशीथसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे० जे कोइ भि० साध अणगार; अंति: शिक्षनइ भो० भणावानइ अर्थइ. २. पे नाम. आलोषणा विचार, पृ. ४१-४२अ संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि: भिन्नमास कहता लघुमास अंति: तेहनु प्रायश्चित पुरमढ, (वि. यंत्र सहित ) १२०९७८. सुदर्शनशेठ कवित, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १५-५ (१ से ५) १० प्रले छोगा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी सुदर्शण, जैवे. (२६.५४१२, १६x४४). " सुदर्शनशेठ रास, मु. दीपचंद ऋषि, रा. पच, आदि: वंदु श्रीजिनवीर धीर, अंति: त्रिभुवनमै तारक तिकौ गाथा ११९. संपूर्ण. पे. २. - १२०९७९. (+) विजयशेठाणी लावणी व चौवीसजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २) = १, कुल पे. प्र. वि. हुंडी विजका संशोधित. वे. (२७४१२, १४४४३). " १. पे नाम. विजयशेठाणी लावणी, पू. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१ आदि (-); अंति: रामपुरे गुणगाया, गाथा- २३, (पू.वि. गाथा १९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चौवीसजिन स्तवन, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: पो उठी प्रणमु परमेसर मन; अंति: चोथमलजी कहे० बीलास रे माह गाथा - ९. १२०९८० (+) स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ७, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६.५X१२.५, १२X३५-३८). १. पे नाम आदिजिनवीनती स्तवन, पृ. ११-३अ, संपूर्ण, आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुंजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि जब पढम जिणेसर, अंति लावन्यसमै ० इम भणीय, गाथा ४४. २. पे. नाम. सतगुरु वीनती, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सद्गुरु पद, मु. गंगाराम, पुहिं., पद्य, आदि: अब हम ऐसा देख्या जी; अंति: फोजा मारी करम भरम उडाई, गाथा- ४. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि हाथ पग नयण नाक मुख अति मंद मतीनें कैसे समझाइये, गाथा - १. ४. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. ३आ-४अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: सासणनायक दीयो उपदेश धरम; अंति: वतावो थारा धट मे घणी भोल, ५. पे. नाम. विवेक सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. कुशलराज, पुहिं., पद्य, आदि: अरिहंत देव आराध सुग्यानी; अंति: कुशल० विचे जगत डुल जाई, गाथा-१३. ६. पे. नाम. कर्म सज्झाय, पृ. ५अ ६अ, संपूर्ण. गाथा - ११. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि : देव दाणव तीर्थंकर, अंति: कर्म समोनइ कोई, गाथा-२८. ७. पे. नाम जिनप्रतिमा स्तवन, पृ. ६ अ- ६आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि श्रीजिनप्रतिमा हो; अंतिः समय० प्रतिमासुं नेह गाथा - ९. १२०९८३. (+#) ३३ बोल थोकडा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८. प्र. वि. हुंडी : तेत्रीसारो, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७१२, १८x४७). 7 ३३ बोल थोकडा-जैन पदार्थज्ञान, मा.गु., गद्य, आदि: १ प्रकारे असंजम चारित्र्थी अति आसण बेसे तो आसातना लागे. Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १४१ १२०९८४. १४ पूर्व नाम आराधना विधि व १४ पूर्व नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२, १२४३१). १.पे. नाम. १४ पूर्व नाम आराधना विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __मा.गु.,सं., प+ग., आदि: चउदसथी आदरे अकेचि चउदसे; अंति: सा० काउसग्ग २५ लोगसपछिः. २. पे. नाम. १४ पूर्व नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: श्रीउत्पादपूर्वाय नमः; अंति: प्रदक्षिणा साथीया प्रमाणे. १२०९८५. विक्रमलीलावती संबंध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:चोबोली., दे., (२७.५४१२.५, १९४४२). विक्रमलीलावती संबंध, मा.गु., गद्य, आदि: उजेणीनगरी० ते राजा नेहणे; अंति: सुख भोगववा लागा आनंद थया. १२०९८६. (+) नवमज्झयण नमीराय, वीरथुई अज्झयण व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १३४५०). १.पे. नाम. उतराध्ययनसूत्र-नवमज्झयण नमीराय, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नमिराय. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. वीरथुई अज्झयण, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:वीरथूई०. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सुणं समणा; अंति: आगमसंति त्तिबेमि, गाथा-२९. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: मोक्खपहस्स वडे सगभूयं, गाथा-३. १२०९८७. स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९२१, पौष शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, कुल पे. ४, ले.स्थल. पालीताणा, प्र.वि. श्री आदिजीन प्रसादे., दे., (२६.५४१२.५, ११४२९). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आवो आवो जसोदाना कंत; अंति: सुपसाय नीत्य दीवाली रे, गाथा-७. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मु. राम शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: हो भवी प्राणी रे सेव; अंति: शीश उली उजमज्यो निसदिस, गाथा-५. ३. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभदेव वरस अपवासी रे पुरब; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. असज्झाय सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: न्याइ शिव लछी ते वरइ, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) १२०९८९ (#) रत्नचूड चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-४(१५ से १७,२२)=१९, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १२४३६). रत्नचूड चौपाई, मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: स्वस्ति श्रीसोभा सुमति; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-११ गाथा-१५ अपूर्ण से ढाल-१४, ढाल-१७ गाथा-१ अपूर्ण से गाथा-२१ अपूर्ण तक व ढाल-१८ गाथा-११ अपूर्ण से नहीं है.) १२०९९१. थंभणपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४४, श्रावण अधिकमास शुक्ल, १, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. सुंदरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १४४४१). पार्श्वजिन स्तवन-स्थंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुरे पास; अंति: जाणी कुशललाभ पयंपए, गाथा-१८. १२०९९५ (+) चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९१, आषाढ़ कृष्ण, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ६४३४). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावज्ज० सपाप जोगजु जीइ ते; अंति: फलने आवज्झा एतलि सफल. For Private and Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२०९९९. (#) शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, संपूर्ण, वि. १७८५, भाद्रपद कृष्ण, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६x११, १४४१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुंजयतीर्धउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु, पद्य, वि. १६३८ आदि विमल गिरिवर विमल अति नयसुंदर दरसण जय करो, ढाल - १२, गाथा- १०७. १२१००० (४) साधुवंदना लघु, संपूर्ण वि. १९२७ कार्तिक शुक्ल, १२, जीर्ण, पृ. ४, ले. स्थल, जोधपुर, प्रले. मु. सिद्धकरण (कवलागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५x११, ११४४३). साधुवंदना लघु. मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि नमो अनंत चोवीसी रिषभ आद; अति रिष जेमल एही तिरणरो दाव, गाथा-५४. १२१००१. (+) पंचेंद्रियजीव पर्याप्ता अपर्याप्ता वोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. २, प्र. वि. संशोधित दे. (२६४१२. १६४३७). पंचेंद्रियजीव पर्याप्ता अपर्याप्ता बोल संग्रह, मा.गु., को. आदि (-); अति: (-). १२१००२. (#) ४७ आहार दोष सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१ ( २ ) = २, प्र. वि. त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही गयी है, दे., (२७४११. १६४४८). ४७ आहारदोष गाथा आधाकर्मी, प्रा., पद्य, आदि आहाकम्मं उद्देसीयं अंति वा रस हेउ दव्व संजोगा, गाथा-६, (अपूर्ण, पू. वि. गाथा- २ से ३ अपूर्ण तक नहीं है.) ४७ आहारदोष गाथा-आधाकर्मी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: आह० आधाकर्मि ते कहीइ; अंति: ते छइं ते पणि इंडि जाणवी, संपूर्ण. १२१००५ (+) अनुयोगद्वारसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८९, अन्य. सा. राजाजी आर्या, मु. पृथ्वीराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२७४१२, ६x४२-५३). अनुयोगद्वारसूत्र, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग, आदि नाणं पंच विहं पन्नत्तं; अंतिः निसामेत्तो तं सव्वं, प्रकरण-३८, ग्रं. २०८५. अनुयोगद्वारसूत्र टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि ना० ज्ञान पंच प्रकारे; अंतिः ते संपउति नगरं पविठा. अनुयोगद्वारसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अनुयोगद्वारसूत्रनो अर्थ; अंति: अनंता कहें छइं इत्यर्थः, (वि. अंत में पृथ्वीराज मुनि के नाम का दोहा है.) १२१००६. पक्खी प्रतिक्रमण विधि व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२४X१२, १०X२८). १. पे. नाम. पक्खी प्रतिक्रमण विधि, प्र. १-३अ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा. मा.गु., प+ग, आदि देवसीयं आलोयं पडीकंत, अति करके पाखी की पैठ पुरीयौ. २. पे नाम प्रतिक्रमण स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण. आवश्यक सूत्र - हिस्सा प्रतिक्रमण स्तुति, सं., पद्म, आदि: कमलदल विपुल नयना अति भूयान्नः सुखदायिनी, श्लोक-३. १२१००७. (+) परमेश्वरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. विनयचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जै.., (२६.५X१२.५, ७X२१) साधारणजिन उपमा वर्णन, पुहि., गद्य, आदि: जयश्री अरिहंत देवाधिदेव अति जय जिनेश्वर देवाधिदेव गाथा - १. १२१००८. (+) श्रावक अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५, प्र. वि. संशोधित. वे. (२५x१२.५, १०x२२-२५)आवकपाक्षिक अतिचार तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि नार्णमिदंसणंमि०; अंति मिच्छामि दुक्कडम्. १२१००९ चोत्रीस असिज्झायरी विगत, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, दे. (२५४१२.५, १०X३७). " , ३४ असज्झाय काल विचार, मा.गु., गद्य, आदि धूअर पडे ते असिज्झाई, अंति वदे असिज्झाई प्रहर १२. १२१०१० (+) विविधकर्तृक पद बीजक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२६.५४११.५, १६x४६) For Private and Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ विविधकर्तृक पद बीजक संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: वारौ रे कोई पर घर रमवानौ; अंति: छवि ले लालन नरम कहै. १२१०१२. (+) बोल व विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७७१२, १५४४३). १. पे. नाम. चौवीस दंडक छब्बीस द्वार, पृ. १आ-९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:लघुदंडक. २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर अवगाहणा संघयण; अंति: प्राण नथी जोग नथी. २. पे. नाम. कायस्थिति, पृ. ९आ-१२अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:कायथित. कायस्थिति बोल, मा.गु., गद्य, आदि: जीव गइ इंद्रिय काय; अंति: २ आकासती ३ ए तिन नित्य छै. ३. पे. नाम. ८ कर्मप्रकृति विचार, पृ. १२अ-१३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: कर्मनी प्रत. ८ कर्मप्रकृति विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: बारे प्रकारे ज्ञानावरणी; अंति: सिद्धांतनी आशातना करई. ४. पे. नाम, चौवीसजिन पंचकल्याणक गणणं, पृ. १३आ-१४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कल्याणक.. २४ जिन पंचकल्याणक गणj, मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभ गर्भ आषाढ वदि दूज २; अंति: मोखु कार्तिक वद ३०. १२१०१३. (+) नवतत्त्व प्रकरण व आध्यात्मिक पद, अपूर्ण, वि. १७३९, वैशाख शुक्ल, १५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ९-१(१)-८, कुल पे. २, ले.स्थल. छूडी, प्रले. मु. छज्जू ऋषि (गुरु मु. नारायणदास); गुपि. मु. नारायणदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्व.बो. हुंडी का भाग खंडित है., संशोधित., जैदे., (२७X१२.५, १७X४३). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, पृ. २अ-९अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. नवतत्त्व प्रकरण २९ गाथा, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-२९, (पू.वि. गाथा-४ से है.) नवतत्त्व प्रकरण २९ गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: भव सात आठ सर्वस्थान लांघइ, (पू.वि. गाथा-३ के बालावबोध अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ९आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: प्रीत किए पछतानी रे मधुकर; अंति: करि विछ्रे ताते भई दिवानी, गाथा-३. १२१०१४. (#) पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., खडा लेखन. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७४१२, २१४२९).. पद्मावती आराधना, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: (-), (अपूर्ण, _पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१७ तक लिखा है.) १२१०१५ (#) संवतवार ऐतिहासिक घटनाक्रम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७.५४१२.५, ११४३१). संवतवार नगरस्थापनादि ऐतिहासिकघटनाक्रम, मा.गु., गद्य, आदि: १ संवत् ११ वर्षे राजा भोज; अंति: पूंठे वडनगरनी वस्ती थई. १२१०१७. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८९३, आश्विन शुक्ल, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६८, ले.स्थल. धुनाडा, प्रले. मु. दयाचंद ऋषि (गुरु मु. पनालाल ऋषि); गुपि. मु. पनालाल ऋषि (गुरु पं. चोथमल); पं. चोथमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रश्नव्याकर्ण., संशोधित., जैदे., (२७४१२, ७४५२). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: सरीरधरे भविस्सइति, अध्याय-१०, गाथा-१२५०, ग्रं. १३००. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जं० अहो जंबू चिरंजीवी; अंति: जाए अनंता सुख पामइ. प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रश्न कहतां अंगुष्टादिक; अंतिः समवायंग थकी प्रीछी लेज्यो. १२१०१८. (+#) मदनरेखा की चोपी, अपूर्ण, वि. १८५१, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, जीर्ण, पृ. १०-३(१ से २,५)=७, प्र.वि. बीच के २ पत्र पत्रांक रहित हैं., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १३४३५). मदनरेखासती रास, मु. हीर ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: (-); अंति: कीधी० जो चित लायो रे, गाथा-१९०, (पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-३८ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२१०२० (+#) भक्तामर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-त्रिपाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, ३४४७). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदिः (१)भक्तामरप्रणतमौलि, (२)इह भगवान् श्रीमानतुंग; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टीका, वा. मेघविजय, सं., गद्य, वि. १७०१-१७८२, आदि: श्रीशंखेश्वरपार्श्व; अंति: (१)शोध्यं विशुद्धाशयैः, (२)तृणामत्यय प्रतिपत्ति रिति, ग्रं. १०००. १२१०२१ (+) भक्तामर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. हुंडी:भक्तामर., त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ४४३८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-सखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: किल इति निश्चये अहम; अंति: विबुधैः शोध्यतामियम्. १२१०२५. आदिजिनविनती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२७४१२.५, १०x२९). आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुण जिनवर शेजा; अंति: देज्यो परमानंद रे, गाथा-२०. १२१०२६. (+) आषाढभूति चोढालिया, संपूर्ण, वि. १९१३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पाली, प्र.वि. हुंडी:आषाढ., संशोधित., दे., (२६.५४१२, २०७३२). आषाढभूति चौढालिया, मु. भक्तविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सासण धणी सानिध वचन सुधार; अंति: भक्तविमल० आषाढमुनिराज ए, ढाल-५. १२१०२७. माणकचंदचंपावती चरित्र रास, संपूर्ण, वि. १८६४, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. १३७, प्रले. मु. जेठा ऋषि (गुरु मु. रवजी ऋषि); गुपि. मु. रवजी ऋषि (गुरु मु. खीमचंदजी ऋषि); मु. खीमचंदजी ऋषि (गुरु मु. कर्मसी ऋषि); मु. कर्मसी ऋषि (गुरु मु. भूधर ऋषि); मु. भूधर ऋषि (गुरु मु. जसराज ऋषि); मु. जसराज ऋषि (गुरु मु. रामजी ऋषि); मु. रामजी ऋषि; पठ. श्राव. मोतीचंद; दत्त. मु. फूलचंद ताराचंद ऋषि; गृही. मु. जेठा ऋषि, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. हुंडी:चंपावतीरास., कुल ग्रं. ४१७०, जैदे., (२७.५४१२, १७X४८). माणिकचंदचंपावती रास, मु. भूधर, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: आदिकरण अरिहंत जिन; अंति: भूधरे० जाए थाए ___ मंगलमाल, ढाल-७५, गाथा-४१७०, (ले.स्थल. गोंडल) १२१०२९ (+#) कुर्मापुत्र चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७३, पौष कृष्ण, ३, सोमवार, मध्यम, पृ. २४, ले.स्थल. भृगुपुर, प्रले. पं. प्रेमविजय (गुरु पं. अमरविजय); गुपि.पं. अमरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कलारापार्श्वप्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७.५४१२,५४३७). कुम्मापुत्त चरिअ, मु. जिनमाणिक्य, उपा. अनंतहंस, प्रा., पद्य, वि. १६वी, आदि: नमिऊण वद्धमाणं असुरं; अंति: इच्छंतं चिरं जयउ, गाथा-१९८, ग्रं. १०००. कुम्मापुत्त चरिअ-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नमस्कार करीने श्रीमहावीर, (२)नत्वा शंखेश्वरं पार्श्व; अंति: जयवंतु वर्तो चिरं घणाकाले. १२१०३०. चेला व नवपद सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२, १०४३७). १.पे. नाम. चेला सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. शिष्य हितशिक्षा सज्झाय, मु. जिनभाण, मा.गु., पद्य, आदि: चेला रहे गुरुने पास; अंति: सेवो इम कहे जिनभाण, गाथा-७. २. पे. नाम. आंबीलतप सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नवपद सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गुरु नमतां गुण उपजे; अंति: मोहन सहज सभावा, गाथा-९. १२१०३१ (+) चौवीस दंडक, जीव भेद व चौद गुणठाणा विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हंडी:छुटकरबोल., संशोधित., जैदे., (२६४१२, १५४४०). For Private and Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org १. पे. नाम. २४ दंडक विचार, पृ. १अ संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ दंडक पावे मन पजवमे तथा; अंति: अलधीया में तथा सागण्यामे. २. पे नाम, जीव भेद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ गुणस्थानके जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १ जीवरा भेद० में पावे सनी; अंति: १४ जीव सरब संसारी मे. ३. पे. नाम, १४ गुणठाणा विचार, पृ. १आ अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १ गुणठाणो पावे थावर मे; अंति: (-), (पू. वि. गुणठाणा-९ अपूर्ण तक है.) १२१०३४. (#) श्रेणिक चरित्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २१-१५ (१ से १०,१२,१४,१६,१८,२०) = ६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पत्रांक भाग खंडित होने से अनुमानित पत्रांक दिया गया है. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे., (२७४११.५, १७४६५). श्रेणिक चरित्र, संबद्ध, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३३५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-११ श्लोक-८९ अपूर्ण से सर्ग १२ श्लोक-१९ अपूर्ण, सर्ग १२ पाद- १ श्लोक ८४ से पाद-२ श्लोक-७, सर्ग १३ श्लोक ८ अपूर्ण से श्लोक-६९ अपूर्ण, सर्ग-१४ पाद- ३ श्लोक ९७ अपूर्ण से पाद-४ श्लोक-१८, श्लोक ८० से पाद-५ श्लोक-२६ व सर्ग-१७ श्लोक-७२ अपूर्ण से सर्ग-१८ श्लोक-१३ तक है.) १२१०४०. नवकारवाली स्वाध्याय, संपूर्ण वि. १९३२ आषाढ कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल अहिपुर, प्रले. मु. पद्मसागर पठ. मु. अनोपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५. ५x१२, १०X३३). नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि कहेजो चतुर नर ए कोण, अंति सेवक मोहन बुध सारी रे, गाथा-५. १२१०४२. (+४) हंसराजवच्छराज चोपाई, संपूर्ण वि. १७७८ आश्विन शुक्ल, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. ४१ ले स्थल, जालणापुर, प्रले. पं. जीतसागर (गुरु पं. रुपसागर) गुपि. पं. रुपसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२७४१२, १३४३२). "" १४५ हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदिः आदीस्वर आदि करि चोवीसे; अंति: जिनोदयसूरि० अनै बछराज, खंड-४ ढाल ४८, गाथा९०५. १२१०४३. सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६१, भाद्रपद शुक्ल, १५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ६, ले. स्थल, कच्छपत्री, प्रले. हरिप्रताप जूणाजी जाडेजा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले. श्लो. (१४७९) दोष अशुद्धता दूर करी, वे., (२७४१२, १८४५४). १. पे. नाम. पंचमहाव्रत सज्झाय, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: पंचमहा०. मु. ज्येष्ठमल्ल, मा.गु., पद्य, आदि सचिपतिसेवित चरणजुग; अंति: ज्येष्ठमल्ल जिन जय करूं, ढाल ५, गाथा ९८. २. पे. नाम. तुंगीयानगरी श्रावक पंचढालिया, पृ. ४अ-७अ, संपूर्ण, पे.बि. हुंडी तुंगीयानगरी. लुंगीयानगरी आवक ढाल, मु. ज्येष्ठमल्ल, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि जिनमुख पंकज निवासिनी वाणी अति: दिन गायो वाव वसी चोमासे. ३. पे. नाम. समोसरणनी ढाल, पृ. ७अ, संपूर्ण. महावीरजिन लावणी, मु. रत्नचंद, मा.गु., पद्य, आदि : वर्द्धमान शासनधणी शिवसुख; अंति: रुपचंद० सुणता उपजे समती, गाथा ६. ४. पे. नाम. जिनेश्वर स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन- समवसरणगर्भित, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि बिचरे तारे वारी जिणेसर, अंति रुपचंद ० हुं तुम चरणनो दास, गाया- १५. ५. पे. नाम महावीरजिन सज्झाय, पृ. ७आ-८अ संपूर्ण महावीरजिन स्तवन, मु. रुपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: श्रेणिक नरवर अभयकुमार ए; अंति: इम वरणव्यो महावीर, गाथा - २५. ६. पे. नाम. औपदेशिक सवैयासंग्रह, पृ. ८अ -८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:समोसरणनो. For Private and Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची . औपदेशिक सवैया संग्रह, पुहि., पद्य, आदि: सबद कागद तणो नकलसु; अति: धरम जाने इतनो विशेष हे सवैया ५. १२१०४४. (+) समाधिमरण, संपूर्ण वि. १८९० वैशाख शुक्ल, १० रविवार, मध्यम, पु. २० ले स्थल. शुद्धदंतीनगर, प्रले चैनसुख पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६X११.५, १०X३०). " अंतसमाधि विचार, पुहिं., गद्य, आदि: हे भव्य तु सुण सोही; अंति: महिमा वचन अगोचर है. १२१०४५ (+) भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १८३९, पौष कृष्ण, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. उगरचंद ऋषि (गुरु मु. भीवराज ऋषि); गुपि. मु. भीवराज ऋषि (गुरु मु. छीत्रमल); पठ. सा. अनुजी (गुरु सा. फतुजी आर्या); गुपि. सा. फतुजी आर्या, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पार्श्वनाथ प्रसादात्, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे.. (२६.५X१२, १७X५०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५२७, आदि: वर वाण किल इसी; अंति: लक्ष्मी स्वयंवर वरै. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भक्तामर स्तोत्र-कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभक्तामर उत्पत्ति; अंति: कीधउ मोटि महिमा हुओ, कथा-२८. १२१०४७. सुभद्रासती चोपाई, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, जैवे. (२७४१२, ११४३२). , सुभद्रासती चौपाई, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: श्रीचरणकमल नमि सरसति माय; अंति: कांतिविजय० गुण गाय, गाथा- ३७. १२१०५० (+) वसुधारा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-२ (२३) -४, प्र. वि. हुंडी : वसुधारा, पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., वे. (२६.५x१२, १२४२९). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं है, पाठ पुत्रौ वहूभूत्वपरिजनसंपन्नश्च" से कोष्टागाराणी च परिपुर्णानि तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं ) १२१०५१. (+#) पच्चीसी व बत्रीसी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. ५, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५x१२, १२४३८-४५). " १. पे नाम. अरिहंतपच्चीसी, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: अरिहंत, २४ जिन सवैया पच्चीसी, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८५५, आदि सुरतरु जिन समरुं सदा अंति: ध्यान महासुख खांण है, सवैया २५. २. पे. नाम. अणगारबत्तीसी, पृ. ३आ-७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : अणगार. साधुगुणबत्तीसी, मु. चंद्रभाण, मा.गु., पद्य, आदि: साध शिरोमणि शुभमति; अंति: उलट आण तणा दुख जात है, गाथा-३२. ३. पे. नाम. वैराग्यपच्चीसी, पृ. ७आ-१०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: वैराग्यपच्ची. मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: साध को न करै संघ अभिमान; अंति: सकल ध्यान गच्छो सिवगत रे, गाथा-२५. ४. पे. नाम. उपदेशपच्चीसी, पृ. १०अ १३अ संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि: शील पाल्या हुवै सुख; अंतिः सदा शुभध्वान हुवै उधार रे, गाथा २५. ५. पे. नाम. समझपच्चीसी, पृ. १३-१५आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, वि. १८६७, आदि: सिवकी साधन करै पाप सहु; अंति: धरम ध्यान मोक्षसुख माणीयै, गाथा-२५. १२१०५२. महामोहणीना ३० बोल, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पु. १. दे. (२७४१२.५ १२४३७). ३० बोल- महामोहनीय कर्मबंध, मा.गु., गद्य, आदि: त्रस जीवने पाणीमाहि अंतिः जिनराजनो धर्म पामे नहीं. १२१०५३. ऋषिमंडल व माया बीजकल्प विधि, संपूर्ण, वि. १९६५, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, ले. स्थल. वडोदरा, प्रले. नारायण नथुभाई ब्रह्मभट्ट, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१३, १३४४३) १. पे. नाम. ऋषिमंडल विधि, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:ऋषिमंडल विधि. ऋषिमंडल स्तोत्र- बृहद्-यंत्र लेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि प्रथम स्थान पवित्र करी; अंतिः एण रीते यंत्र लिखणो, For Private and Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १४७ २. पे. नाम. माया बीजकल्प, पृ. २आ-६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:हींकार ऋषिमंडल विधि. ह्रींकार कल्प, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कुमारिका पासे कोरइ; अंति: तिवारै प्रीति थाइ. १२१०५४. स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:थूलभद्रनो नवरसो., दे., (२६.५४१२, १६x४२). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपत दायक सदा पायक जास; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-९ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) १२१०५५ (+) वाग्भट्टालंकार, लाटीहास्यादि रस विवरण व शनि स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८२४, फाल्गुन कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. ३, गृही. मु. नेमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वि. सं. १७२५ आषाढ शु.प. ११ तिथि को लिखित ग्रंथ की प्रतिलिपि प्रतीत होती है. अंत में गोमुत्रिका बंध, कमलबंध, छत्रबंध व हारबंध चक्र भी दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२, १२४३५). १.पे. नाम. वाग्भट्टालंकार, पृ.१आ-१२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:वाग्भटालंका०. जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु वो देवः; अंति: सारस्वताध्यायिनः, परिच्छेद-५. २. पे. नाम. लाटीहास्यादि रस विवरण, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. रीति-रस संबंधसूचक श्लोक, सं., पद्य, आदि: लाटी हास्यरसे प्रयोगनिपुण; अंति: मुहर्मुहुर्भाषणं कुरुते, श्लोक-२. ३. पे. नाम. शनि स्तोत्र, पृ. १३आ, संपूर्ण. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः यः पुरा राज्यभ्रष्टाय; अंति: जयं कुरु कुरु स्वाहा, श्लोक-१०. १२१०५७. (#) गुणसुंदरी कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२, १०४३३). गुणसुंदरी कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पिंगलराज के जन्मोत्सव प्रसंग से गांगिलमुनिकृत धर्मोपदेश प्रसंग तक है.) १२१०५८. (+#) सज्झाय, सलोक व दोहरादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-२(८ से ९)=८, कुल पे. ७, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. मु. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७.५४१२, १६४३५-३९). १. पे. नाम. सचित्त अचित्त कालप्रमाण विचार सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन अमरी समरी; अंति: कवि नयविमल कहै सिज्झाय, गाथा-२५. २.पे. नाम. रात्रिभोजन विरमणव्रत स्वाध्याय, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण, वि. १८८९, पौष शुक्ल, १, रविवार. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसद्गुरु प्रणमि; अंति: नामथी सुजस सोभाग लहीजे रे, ढाल-४, गाथा-३५. ३. पे. नाम. शांतिनाथजीनो सलोको, पृ. ४अ-६अ, संपूर्ण, वि. १८८९, पौष शुक्ल, ११. शांतिजिन सलोको, पं. मणिविजय गणि, मा.ग., पद्य, आदि: प्रणमं वरदाई ब्रह्माणी; अंति: मणिविजय जिउथी अधिक जगीस, गाथा-४३. ४. पे. नाम. विमलसानो सलोको, पृ. ६अ-१०आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. विमलमंत्री सलोको, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति समरूं बे करजोड; अंति: विनीतविमल गुण ___ गायो, गाथा-१११, (पू.वि. गाथा-४३ अपूर्ण से ९३ अपूर्ण तक नहीं है.) ५. पे. नाम. राधिका रूपवर्णन, पृ. १०आ, संपूर्ण.. १६ शृंगार दोहा, पुहिं., पद्य, आदि: च्यार चतुष्पद च्यार; अंति: ए फल कहिजै च्यार, दोहा-५. ६. पे. नाम, औपदेशिक छप्पय, पृ. १०आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: भिंस का चरिया कहा जानें; अंति: कहा जाणें बड़े सन्मान मैं, गाथा-१. ७. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. १०आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सवैया संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, पुहिं.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ध्यान की कबांन मन बांण मन; अंति: असबार होई कालकुंडरायो है, सवैया-१. १२१०५९ (#) समवसरण कालमान विचार, देव विशेषता के १६ बोल व श्रावक ११ प्रतिमा विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडीवाला भाग खंडित है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२.५, ६०४६४). १. पे. नाम. समोसरण तीगडानो अधिकार, पृ. १अ, संपूर्ण. समवसरण कालमान विचार-इंद्रादि द्वारा रचित, मा.गु., गद्य, आदि: वाउकुमार जोयण १ लगे भुमी; अंति: पगथीया एक एक दसे जाणवा. २. पे. नाम. देव विशेषता के १६ बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: देवताने १६ बोल नही केस; अंति: १६ एतला वाना देवता के नही. ३. पे. नाम. श्रावक ११ प्रतिमा विचार, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __मा.गु., गद्य, आदि: उपासकदसासुत्त मधे आणंद; अंति: (-), (पू.वि. सप्तम प्रतिमा वर्णन अपूर्ण तक है.) १२१०६० (+) दशवकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:दशमीका., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४१२, १५४३४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-४ सूत्र-४१ अपूर्ण तक है.) १२१०६१. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, १४४४०). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४१ अपूर्ण तक है.) १२१०६४. निर्णयप्रभाकर, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२७४१२.५, ११४४०). निर्णयप्रभाकर, म. झवेरसागर, सं.,हिं., प+ग., वि. १९३०, आदि: श्रीजैनेंद्रवचः समस्ति; अंति: (-), (पू.वि. कल्पभाष्य तथा व्यवहारभाष्य का मंदिर में चैत्यवंदना संबंधी वचनप्रमाण स्पष्टीकरणवर्णन अपूर्ण तक है.) १२१०६५. (+) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:चंद्रप्र०टी०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, १५४४५). चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं जयइ; अंति: (-), (पू.वि. पाहुड-१९ तक है.) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: मुक्ताफलमिव करतलकलित; अंति: (-). १२१०६६. (+#) सूत्रकृतांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सूगडांगसूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, ६४३०). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: खेयण्णए से कुसले आसु; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१४ गाथा-२४ तक है.) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बुज्झि० छकाय जीवना; अंति: (-). १२१०६८. द्रोपदीनी चोपाई, संपूर्ण, वि. १९१५, माघ कृष्ण, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. पारानगर, प्रले. गणेशराम ब्राह्मण, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:द्रोप०चो, द्रोपदा०, द्रोपदानीचो०. श्रीजिनरायप्रसादात., दे., (२७X१२.५, १६४३५). द्रोपदीसती चौपाई, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: द्रोपदरायनी सुता चूलणीरी; अंति: उछो हो मिछाम दुकडं मोये, ढाल-१५. १२१०७० चेलणासती व साधुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:चेलणा, चिलणा, जैदे., (२७X१२.५, १५४३७). १.पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण, पे.वि. ढालों का अनुक्रम व्यतिक्रम रूप से लिखा गया है. वस्तुतः कृति ५आ पर पूर्ण होती है. For Private and Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४९ . हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ मु. दयाचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: राजग्रही नयरी थकी नहीने; अंति: (१)तिणसुं नेही छोड्या जाय, (२)दयाचंद०सुखे रह्या हम वासो, ढाल-१८. २. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण. रा., पद्य, वि. १८७७, आदि: ज्यां पांचमहाव्रत आद; अंति: गुरुमायरा तु कर ले निथारा, गाथा-२६. १२१०७१ (+) अंजनासुंदरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:अंजनारा०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१२.५, १७४४९). अंजनासुंदरी चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: पवनजी राजा कने अंजनासुंदर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२६ गाथा-१७८ अपूर्ण तक है.) १२१०७२. कायस्थिति २२ द्वार वर्णन व शरीरद्वार थोकडा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२, १७४३५). १. पे. नाम. कायस्थिति २२ द्वार वर्णन, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जीव गईदिये काये जोए वेदे; अंति: नित्यानित्य द्रव आश्री. २. पे. नाम. सरिरांरो थोकरो, पृ.५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. _शरीरद्वार १५ प्रकार विचार, रा., गद्य, आदि: नामदुवार१ अरथदुवार२ सामी; अंति: (-), (पू.वि. द्वार-२ अपूर्ण तक है.) १२१०७३. (+#) जीवरा भेदारो थोकडो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:जिवराभेद., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १५४४०). ५६३ जीव बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: जीव१ गइ२ इंदिए३ काए४ जोए५; अंति: अचरमे जीव ५६३. १२१०७४ (+) सिद्धगति द्वार विचार व तेत्रीस बोल थोकड़ो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५+१(३)=६, कुल पे. २, प्र.वि. अंतिम पत्र में पत्रांक नहीं होने के कारण अनुमानित दिया गया है., संशोधित., दे., (२७४१२, १५४४४). १. पे. नाम. सिद्धगति द्वार विचार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सीजन. मा.गु., गद्य, आदि: उरधलोक मे च्यार सीजे १; अंति: १०३ से १०८ तां० सीजै १०. २. पे. नाम, तेतीस बोल थोकड़ो, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:३३थोकरो. ३३ बोल थोकडो, मा.गु., गद्य, आदि: १ असंजम २ बंधण १ रागबंधण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., महामोहणी वर्णन बोल-३१ अपूर्ण तक लिखा है.) १२१०७५ (+) सौ बोलरो बासठियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. हुंडी:१००बोलरो., संशोधित., जैदे., (२७४१२, १६४३८). ६२ मार्गणाद्वार विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: गइ१ इंदिअ२ काए३ जोए४; अंति: ६ लाभे सर्वथी थोडा. १२१०७६. (+) लघुदंडक, संपूर्ण, वि. १९१३, माघ शुक्ल, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. हुंडी:लघुदंडक., संशोधित., दे., (२७४१२.५, २०४३१). २४ दंडक २५ द्वार विचार, मा.गु., प+ग., आदि: सरीर१ अवगाहणार; अंति: सिद्धने जोग नथी, गाथा-२. १२१०७७. (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १९४०, पौष, मध्यम, पृ. ११०, प्रले. मु. मोतीलाल (गुरु मु. पुरणचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७७१३, ११४२९). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४ ढाल-४१, गाथा-१८२५. १२१०७८. स्तवन संग्रह व खामणा कुलक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. श्राव. वीरचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५२) पोथी प्यारी प्राणथी, (१४७८) अधिकुं ओर्छ जे लखुं, दे., (२७४१३, १४४३०). १.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सितलजिननी सेवना; अंति: तु प्राण आधार हो, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, प्रले. श्राव. वीरचंद्र, प्र.ले.प. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन-पुरूषादानीय, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष परमातमा; अंति: प्रगटे झाकझमाल हो, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. खामणा कुलक, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. अमीकंवर, मा.ग., पद्य, आदि: अरिहंतजीने खामणां; अंति: रे ते पामे मंगलमाल करो. गाथा-२८. १२१०८० (+) लघ्वर्हन्नीति, संपूर्ण, वि. १९५३, कार्तिक शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ३८, अन्य. हरनाथ पुष्करणा ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१३, १५४४१). __ अर्हन्नीति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. ११वी-१२वी, आदि: श्रीमंतं नाभिजं वंदे; अंति: प्रजाभूमिपबोधहेतुः, अधिकार-४, श्लोक-५१. १२१०८१ (+) दंडक व कपटपच्चीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., ., (२६४१२.५, १६x४२). १. पे. नाम. दंडकपच्चीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दंडक चोविसमां जीव; अंति: रीषरायचंद० पार उतारोजी, गाथा-२१. २. पे. नाम, कपटपच्चीसी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कपटोपरि, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: कपटी जीव मीनष्यरो वेसास न; अंति: ऋषरायचंद कहे एमो जी, गाथा-२४. १२१०८२ (+) गजसिंघ चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, आश्विन कृष्ण, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. सा. कीसनी (गुरु सा. राजाजी); गुपि. सा. राजाजी; अन्य. सा. धनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:गजसिंघ ले. संवत १८४० का उल्लेख है किंतु र.सं. १८५२ होने से ले.काल युक्तिसंगत नहीं लगता., संशोधित., जैदे., (२६४१२, १५४४७). गजसिंघ चरित्र, मु. आसकर्ण ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५२, आदि: अरिहंत अतिसैवंत घणु; अंति: जोडीयो ए सुणतां लीलविलास, ढाल-४६. १२१०८३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, सज्झाय व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, प्र.वि. हुंडी:नमी., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२७.५४१३, १६४३१). १.पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-नमिपवज्जा, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १९१४, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, शुक्रवार, ले.स्थल. पाली, प्रले. सा. राजी (गुरु सा. पनाजी); गुपि. सा. पनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम, आगमगत मुनिसंख्या सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुयगडंग में मुनिवर दोय; अंति: गया रे वांदुबे कर जोड, गाथा-७. ३. पे. नाम. ५ जीवनिस्सरनस्थान पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. स्थानांगसूत्र-हिस्सा स्थानक५ उद्देश३ जीवप्रदेश निर्याणमार्गस्थान पद का अनुवाद, मा.गु., गद्य, आदि: ५ ठामै जीव निकलै; अंति: रोम में निकले तो मोख जाय. ४. पे. नाम. ४ गरणा विगत, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: १ धरतीरो गलणौ ईरज्या; अंति: ४ पाणीरो गरणौ काठो कपरो. ५. पे. नाम. पाँच अजीर्ण बोल, पृ. ३आ, संपूर्ण. ५अजीर्ण बोल, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानरो अजीर्ण अहंकार; अंति: लोकरो अजीर्ण वमण, (वि. अंत में प्रतिलेखक ने भगवतीसूत्र शतक-१३ उद्देश-७ अंतर्गत पंचविध मरण प्रकारगत आवीचिकमरण प्रकार-१ तक लिखकर छोड़ दिया १२१०८४ (+) श्रावक ३ मनोरथ विचार, संपूर्ण, वि. १९१९, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, बुधवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पाली, प्रले. सा. राजी (गुरु सा. पनाजी); पठ. मु. धनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:तीनमनोरथ., संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १७४३६). श्रावक के ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, आदि: तीन मनोरथ समणोपासक श्रावक; अंति: करम संसारनो अंत करै. १२१०८५ (+#) नवतत्त्वभेद विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्व., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२.५, १७४३५). For Private and Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५१ नवतत्त्व विचार, मा.गु., गद्य, आदि जीवतत्व अजीवतत्व अति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण मोक्ष भेद विचार अपूर्ण तक लिखा है.) १२१०८६. (#) कर्मविपाक बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. हुंडी : बोल., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२७४१२.५, १६४३४). गौतमपृच्छा ९७ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: कहो स्वामि कणां होय; अति राख्या तेहने प्रतापे. १२१०८७. ५ पंचेंद्रिय २० द्वार बोल, कायस्थिति २२ द्वार बोल व सरीर थोकडा १५ बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-३(२ से ४) = ३, कुल पे ३, प्रले. श्राव. छोगा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी कायस्थिति, दे. (२७४१२.५, १६४३८). १. पे. नाम. प्रज्ञापनासूत्र पद- १५५ इंद्रिय २० द्वार बोल, पृ. १अ -१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रज्ञापनासूत्र पद १५.५ इंद्रिय २० द्वार बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि पेलो नाम द्वार १ बीजो अंति (-), (पू.वि. द्वार १८ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. कायस्थिति विचार, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कायस्थिति २२ द्वार वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: नित्यानित्य द्रव आश्री, (पू. वि. द्वार - १४ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. सरीरांरो थोकरो, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. शरीरद्वार १५ प्रकार विचार, रा. गद्य, आदि नामदुवार १ अरथदुवार२ सामी अति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. द्वार ५ अपूर्ण तक लिखा है.) १२१०८८. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९२५, भाद्रपद शुक्ल, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. हुंडी:दशवैका., दे., (२६.५X१२.५, १८x४२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा. पद्य, वी. रवी आदि धम्मो मंगलमुक्किई अति अपुणागमं गइ त्तिवेमि, अध्ययन- १० चूलिका-२. १२१०९० सुदर्शन सेठ रास, गर्भावास उत्पत्ति व आदिजिन भव वर्णन, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. ३, दे., (२७X१२.५, १८X३८). १. पे. नाम. सुदर्शनशेठ राख, पृ. १अ ११अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: सुदर्शनसेठ रास. मु. दीपचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि वंदु श्रीजिन महावीर अंति: त्रिभुवनमै तारक तिकी, गाथा १२१. - " २. पे. नाम. गर्भावासनी उत्पत्ति, पृ. ११अ १३आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : तंडुल. गर्भावास उत्पत्ति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: स्त्रीनी नाभि हेठे; अंति: ए तंडुल वयलीयं पइनाडी. ३. पे. नाम. आदिनाथ के १३ भव वर्णन, पृ. १३आ-१५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी ऋष० देव. आदिजिन १३ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: धनो सार्थवाही १ युगलीयो २; अंति: (-), (पू.वि. भरत को ७२ कला सिखाने का वर्णन अपूर्ण तक है.) (२७X१२.५, १२१०९१. (+) पाँच समिति तीन गुप्ति ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. हुंडी : ५ सुमत ३ गुपत., संशोधित., ., १६x४२). ८ प्रवचनमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पच, वि. १८२१, आदि: पांचे सुमतिने गुप्त आठे अति रायचंद० सुनता जयजयकार हो, ढाल-८, गाथा- १२८. १२१०९२. (+) चंदनमलयागिरि चोपाई, संपूर्ण, वि. १९१३ कार्तिक शुक्ल, १ बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल, पाली, प्र. सा. राजाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी चंदनमलवारी, संशोधित. वे. (२७४१३, २६४४१). चंदनमलयागिरि रास, पं. क्षेमहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७०४ आदि नमु जिनवर चोवीसमो चले अति मुनि उत्तमगत पामीरे, बाल-१५. For Private and Personal Use Only १२१०९३. सूत्रकृतांगसूत्र-अध्ययन ११, संपूर्ण, वि. २०वी, आश्विन शुक्ल, २, सोमवार, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. हुंडी : मोक्षमार्ग., दे., (२६.५x१२, १७x४७). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति (-), प्रतिपूर्ण, Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२१०९४. (+) इलाचीकुमार चोढालिया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सोजत, प्रले. श्रावि. राजी,प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:इलाची. लेखन संवत् हेतु "१४ वरस" उल्लिखित है. लिखावट के आधार पर १९१४ संभवित है., संशोधित., दे., (२६.५४१२, १७४४२). इलाचीकमार चौढालिया, मा.ग., पद्य, आदि: प्रथम गणधर गणनीलो; अंति: नामे जय जयकार हो, ढाल-४ १२१०९५. (+) चार ध्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. सा. छोगा (गुरु सा. पनाजी); गुपि. सा. पनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चारध्यान., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७४१२, १७४४२). धर्मध्यान लक्षण, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: धम्मेज्झाणे चउविहे; अंतिः सदा धरम ध्यान धाइई. १२१०९६ (+) पद, सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. हुंडी:वि.बोलो., संशोधित., जैदे., (२७७१३, १६४३७). १. पे. नाम. चौवीसजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन पद, म. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीतीर्थंकर चोवीसे; अंति: पामे शिवपुर थान, गाथा-५. २. पे. नाम. चौवीसजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. २४ जिन स्तवन, म. रिखजी, मा.गु., पद्य, आदि: वांद श्रीआदि जिणंदा; अंति: ए चोवीसी पोतानी निर्वाणो, गाथा-२५, (वि.प्रतिलेखक ने गाथा-१४ के बाद गाथांक नहीं दिया है.) ३.पे. नाम, विवादनिवारण सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. २० बोल वादनिवारण सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: किणशुं वाद विवाद न; अंति: केरै आतम पर उपगारजी, गाथा-१९. ४. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-अहंकारपरिहार, मा.गु., पद्य, आदि: नीली मटिया मेल चुणायो जीव; अंति: तिनसु पार उतरणा रे, गाथा-७. ५. पे. नाम. मगशी पार्श्वनाथजीरी लावणी, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लावणी-मकशी, मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: मुलक बीच मगसी पारसका; अंति: करो मत मन में कोई शंका रे, गाथा-४. १२१०९७. दशवकालिकरी ढालो व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. पाली, निदाता मु. धनाजी; प्रले. श्रावि. राजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ढालादसवैकालिक., दे., (२६.५४१२, १७४३७). १.पे. नाम. दशविकालिकरी ढालो, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल महिमानिलो; अंति: मणिकगुत्त पुत्त, अध्याय-१०. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-साधु, मा.गु., पद्य, आदि: कुकरीरा इंडा डरे बिलायसुं; अंति: गुणधर मुनीवरने केहे रे, गाथा-१. १२१०९८. (+) वैदर्भी चौपाई व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.७, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७X१२.५, १७४३५). १.पे. नाम. वैदर्भी चौपाई, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण, वि. १९१४, ज्येष्ठ शुक्ल, १, रविवार, प्रले. सा. राजाजी आर्या; पठ. मु. धनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:विदरवी. मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जिणधर्म मांहि दीपता; अंति: संपजै पांचमे मोख मझार, ढाल-७, गाथा-२०९. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, मु. देव, मा.गु., पद्य, आदि: सुण मारी चतुर सुजाणे; अंति: कीधारा तो फल पाइ, गाथा-९. १२१०९९. ८४ लाख जीवायोनि विचार व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२.५, १०४२५). For Private and Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १५३ १.पे. नाम. ८४ लाख जीवायोनि विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: प्रथवी पाणी वनसपती असी; अंति: वासुदेवरी नरकगरी गत. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जिण से मुक चे राम कह्यो; अंति: उणमे जुठ न होय लीगार, गाथा-१. १२११००. इलाचीकुमार सज्झाय व नवकारस्तोत्र छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७४१२, १५४४६). १.पे. नाम. इलाचीकमार सज्झाय, प. १अ-१आ, संपूर्ण. __ मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामे एलापूत्र जाणीइं; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-२१. २.पे. नाम. नवकार स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नोकारमंतर. नमस्कार महामंत्र छंद, म. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: (१)गुण प्रभुजी सरवे सीस रसाल, (२)ध्यानै हवै सिवपुर जाय, गाथा-८. १२११०१. २४ जिन गणधरसंख्या मातापिता कल्याणकभूमि परिवारादि विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७४१२, ६४३६). २४ जिन गणधरसंख्या मातापिता कल्याणकभूमि परिवारादि विवरण, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). १२११०२. (+) थावच्चापुत्र चोढालियो, कलावतीसती व शीयलव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४०, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ३, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. सा. कीसनी (गुरु सा. राजाजी); गुपि. सा. राजाजी; अन्य. धनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, १६४५१). १. पे. नाम, थावच्चापुत्र चोढालियो, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:थावचा. थावच्चापत्र चौढालियो, रा., पद्य, आदि: अरिहंत सिध साधु भणी नम्; अंति: उलमीयो आया जीण दिस जाया, ढाल-१०, गाथा-९४. २. पे. नाम, कलावतीसती चौपाई, पृ. ४अ-८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:केलावती. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: श्रीजुगबाहु जिन जगत गुरु; अंति: रायचंद० मेडते नगर चोमास, ढाल-१६. ३. पे. नाम. शीयलव्रत सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: गहरो रंग लागो हो सतरा रे; अंति: रीषरायचंद० कातीमास परकास, गाथा-१९. १२११०३. (+) लघुसंग्रहणी का खंडाजोयण बोल, संपूर्ण, वि. १९१३, चैत्र कृष्ण, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. हुंडी:खडाजोण., संशोधित., दे., (२७४१२.५, १७४३६). लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुद्वीपनो विचार किंचित; अंति: ५६ हजार ९० नदि जाणवी. १२११०४. (+) मेत्तारजमुनि व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९१९, माघ कृष्ण, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ.८, पठ. श्राव. राजाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चौ०मेतारज., संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १५४३४). मेतारजमुनि ढाल, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: समरू सासणरा धणी पोह उहते; अंति: ___ चोथमलजी० मिछांमी दुकड मोय, ढाल-१५, गाथा-१८९. १२११०५ (+) देवकीपुत्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. हुंडी:देवकी., संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, १६x४४). देवकी ६ पुत्र चौपाई, मु. चोथमल, मा.गु., पद्य, आदि: देवकी राणीनी दीकरा थया; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गजसुकुमाल दीक्षा प्रसंग अपूर्ण तक लिखा है.) १२११०६. शांतिजिनादि स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, प्र.वि. हुंडी:थोयजोडा., जैदे., (२७४१२, १३४४९). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांती सुहंकर साहीबा संजम; अंति: तो कवि वीर ते जाणे, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. नेमनाथजी स्तुती, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दुरितभयनिवारं मोहविध्वंस०; अंति: भराणी वीरविजये वखाणी, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, मु. कांतिविजय, गु., पद्य, आदि: पार्श्व जिणंदा वामान; अंति: गाती वीर घेर आवती, गाथा-४. ४. पे. नाम, वीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: माहावीर जीणंदा राय सिधारथ; अंति: उतम अधीस पद्म लाखे सुसी, गाथा-४. ५. पे. नाम. सास्वताजिन स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. शाश्वतजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९पू, आदि: रिषभ चंद्रानन वंदन कीजे; अंति: दीवसे पद्मविजे नमे पायाजी, गाथा-४. ६. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पंचतीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमुख्यतीर्थ; अंति: ते शांतिभद्रंकराः, श्लोक-४. १२११०९ (+) पर्युषणपर्व स्तुति व चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:पजूसण०., संशोधित., जैदे., (२७७१३, १३४३६). १.पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वरस दिवसमा सार चोमास ते; अंति: जिणंदसागर जयकार, गाथा-४. २.पे. नाम, चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, म. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनपति अविनाशी काशी; अंति: रूपविजय शिवराज हो, गाथा-६. १२११११. हितशिष्या सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७७१३, १६७३४). अमृतवेल सज्झाय-बृहत्, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन ज्ञान अजुआलिई टालिइ; ___ अंति: तेह हे सूयश रंगरेल रे, गाथा-२९. १२१११३. तृतीयातिथि व नवतत्त्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, ७४३७). १. पे. नाम. तृतीयातिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: निसिहि त्रिण परदक्षिणा; अंति: खेमाविजे० सुर संभारो जी, गाथा-४. २. पे. नाम. नवतत्त्व स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-भुजनगरमंडन नवतत्त्वगर्भित, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीवा रे जीवा पुनं रे पावा; अंति: समकितगुण चित धरजो जी, गाथा-४. १२१११४. (+) २४ जिन चैत्यवंदन व घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२.५, १४४३१). १.पे. नाम, २४ जिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीपद्मनाभ पेहेला जिणंद; अंति: पंडित तणो नय पणमे धरि नेह, गाथा-१५. २. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. १२१११५ (+) जीवविचार व नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१३, ४५४३३). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १५५ जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: स्वर्ग मृत्यु पातालने; अंतिः श्रूतरूप समुद्र हूंती. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ७आ-१५अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्क णिक्काय, गाथा-५०, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: दशविध प्राण धरइ ते; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक ___द्वारा अपूर्ण., गाथा-३१ अपूर्ण तक लिखा है.) । १२१११६. (#) जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३७, आश्विन शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १८, ले.स्थल. मऊ छावणी, प्रले. पं. राजेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में "३ अक्टोंबर मास की ६ तारीक १८८० मउ की छावणी मे चतुर्मासा चत्वारं" ऐसा उल्लिखित है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३, १८४३९). जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रणिपत्य जिनान् सिद्धा; अंति: जैनो धर्मोस्तु मंगलं. १२१११७. (+) अनुत्तरोववाईसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०३, फाल्गुन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ३०, ले.स्थल. नागोर, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२.५, ६४३१). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समय; अंति: नायाधम्मकहाणं तहा नेयव्वं, अध्याय-३३, ग्रं. १९२. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आठमां अंतगडदशांगने; अंति: तिमज इहां पणनो जाणिवा. १२१११९ (+) विचारपंचाशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५५, कार्तिक कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. सा. मानश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१३, ४४३३). विचारपंचाशिका, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: वीरपयकयं नमिउं देवा; अंति: विमलसरिवराणं विणएण, गाथा-५१. विचारपंचाशिका-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: वीर पय क० महावीरदेव; अंति: आणंदविमलसूरी० इसादीक. १२११२०. नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७४१२.५, ११४४०). नेमराजिमती सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: राणी राजुल करजोडी; अंति: कांति०गाय श्रीकार रे, गाथा-१५. १२११२१. अढारनातरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१२.५, १५४३९). १८ नातरा सज्झाय, मु. हेतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पेहेलां ने समरुं पास; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ गाथा-४ तक लिखा है.) १२११२२ (+) हरिबल चरित्र रास, संपूर्ण, वि. १८५८, आषाढ़ शुक्ल, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ९२, ले.स्थल. डीसानगर, प्रले. मु. दलीचंद (गुरु मु. विनेयशील); गुपि. मु. विनेयशील (गुरु पं. सुंदरसीलजी); पं. सुंदरसीलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीवीरस्वामी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२७ १२.५, १६४३८). हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१०, आदि: प्रथम धराधव जगधणी प्रथम; अंति: लबधीनी वाचा फलयोरें, उल्लास-४ ढाल ५९, ग्रं. ३७५१. १२११२३ (+) अक्षरबावनी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी:केसवदास., संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, १२४३३). अक्षरबावनी, मु. केशवदास, पुहिं., पद्य, वि. १७३६, आदि: ॐकार सदा सुख देत; अंतिः (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) १२११२४. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१३, १४४३३). प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मातावैरी पिता शत्रुः बालो; अंति: नियोग कोन्यथा कर्तुमश, गाथा-६१. १२११२५. गुरुवंदन विधि सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५४१२.५, ११४३८). For Private and Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गुरुवंदन विधि, प्रा., गद्य, आदि: इछामी केहेतां इछु छु; अंति: गरिहामि अप्पाणम् वोसिरामि. गुरुवंदन विधि-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम थानकने विषेशीष; अंति: भूल चुक मीछामी दक्कडं. १२११२६. रथनेमिराजिमती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२७४१३, १०४३०). रथनेमिराजिमती सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रहनेमि अंबर विण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) १२११२८. (-#) मोटीशांति, नानीशांति व पाक्षिक स्तुत्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, ले.स्थल. धोराजी, प्रले. मु. मोतीचंद (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथजी विद्यमान छेजी., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१३, १५४३४). १.पे. नाम. मोटी शांति, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १९२३, आश्विन कृष्ण, ६, पे.वि. हुंडी:मोटीशांति. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत वचनं; अंति: जैनं जयति शासनम्. २. पे. नाम. नानी शांति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, वि. १९२३, आश्विन कृष्ण, ७, बुधवार, पे.वि. हुंडी:शांतनानी. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: सात्यां सांतिन शांत्यां; अंति: जैनं जयति शासनम्. ३. पे. नाम, पाक्षिक स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्लि पुष्करा; अंति: सर्वकार्येषु सिद्धं, श्लोक-४. ४. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. ३आ, संपूर्ण. साधारणजिन चैत्यवंदन-पंचपरमेष्ठिगुणगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: बार गुण अरिहंत देव; अंति: तणो नय प्रणमे नित सार, गाथा-३. १२११३०. आउरपच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १९१८, फाल्गुन शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. २, दे., (२५४१२.५, ११४३३). आतरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: अरिहंता मंगलं मज्झ; अंति: सव्वं तिविहेण वोसिरइ, गाथा-२८. १२११३१. कल्पसूत्र सह व्याख्यान व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. हुंडी:श्रीकल्पसूत्र.वा.प्र-१., जैदे., (२६४१२.५, १५४३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., व्याख्यान-१ सूत्र-३ अपूर्ण तक लिखा है.) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमानं जिनं नत्वा; अंति: (-), अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १२११३२. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७४१३, १४४३२). औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: संसारे जीव अनंत भवें; अंति: उपरि उपदिसे भवीयण हीतकरु, गाथा-३. १२११३३. औपदेशिक दहा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६.५४१२.५, ४४३२). औपदेशिक दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: वस्तुविचार ध्यावते; अंति: अबाधित विलोकै देव सासतौ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अजानी वस्तु जानियें कौ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा __ अपूर्ण., वि. कहीं-कहीं टबार्थ लिखा है.) १२११३५ (+) ढंढणऋषि सज्झाय, चेलणासती सज्झाय व हीरविजयसूरि कवित, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. ३, प्रले. म. फतेसार, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने सांकेतिक स्वरूप में दहे में अपना नाम लिखा प्रतित होता है., संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १३४३४). १. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. ___ मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनहर्ष सुजांण रे, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, चेलणासती सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण.. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलता थकाजी; अंति: समैसुंदर० भवतणौ पार, गाथा-७. ३. पे. नाम. हीरविजयसूरि कवित, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १५७ मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदिः सवै मृगनैण चलै गुरुचंद; अंति: भट्टारकओ भट्टारक पेट लटा, गाथा-१. १२११३७. (+) सम्यक्त्वपच्चीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, ३४२४). सम्यक्त्वपंचविंशतिका, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: साया हवेउ सम्मत्त संपत्ती, गाथा-२५. सम्यक्त्वपंचविंशतिका-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: जह कहितां जिम उपसमादिकें; अंति: एटली सम्यक्त्वनी प्राप्ति. १२११३८. व्याख्यान संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४१२.५, १६x४२). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: कल्याणपादपारामं श्रुतगंगा; अंति: (-), (पू.वि. त्रिभंगी विचार तक व्याख्यान संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याणक० मंगलीक रूप पादप; अंति: (-). १२११३९ (#) चंद्रराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १२४३०). चंद्रराजा रास, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उल्लास-१ ढाल-७ गाथा-४ से ढाल-८ के दूहा-५ अपूर्ण तक है.) १२११४० (#) माया व चरखा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१२.५, १४४४८). १.पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण... म. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: माया कारमी रे माया; अंति: अब लोको उनके हाथा बे कानी, गाथा-१३. २. पे. नाम. चरखा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-चरखा, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: जल जाइ थल उपनी रे; अंति: आनंदघन० जेम उतारो भवपार. १२११४१. ६४ इंद्र नाम, नरक परिमाण व परमाधामी नामादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ६, जैदे., (२६.५४१३, ११४२६). १. पे. नाम. ६४ इंद्र नाम, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आदिः (-); अंति: इंद्र पयांगत नामे इंद्र, (पू.वि. दक्षिण व्यंतरेन्द्र से है.) २. पे. नाम. सात प्रथवी नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. ७ नरक नाम, मा.ग., गद्य, आदि: धमा नामे प्रथवी वंसा नामे: अंति: माघवती नामे प्रथवी. ३. पे. नाम. ७ प्रथवीना गोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. नरक गोत्र नाम, मा.गु., गद्य, आदि: रत्नप्रभा सकरप्रभा वालुक; अंति: तमप्रभा तमतमाप्रभा. ४. पे. नाम. सात प्रथवीना पींडनो परिमाण, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ७ नरक परिमाण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलीइ० १८००००; अंति: योजन प्रथवी पिंड. ५. पे. नाम. नरकावासाः, पृ. ३अ, संपूर्ण. ८४ लाख नरकावास विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १पहिलीइ २बीजीइ० ३०लाख; अंति: ८४ लाख नरकावासा छे. ६. पे. नाम. १५ परमाधामी नाम, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अंब परमाधामि१ अंबरसी; अंति: खरसर प०१४ महाघोस प०१५. १२११४५. बृहत्संग्रहणी का अंकयंत्रसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-२२(१ से २२)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. खडा लेखन., जैदे., (२५४१२.५, ६४१३-३६). बृहत्संग्रहणी-अंकयंत्रसंग्रह *, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सौधर्म प्रमुख देवलोक वृत्तिमान वर्णन संख्या १२११४७. (+) लघशांति, तिजयपहत्त स्तोत्र व अजितशांति स्तव, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५२-५०(१ से ३८,४० से ५१)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, ७७२१). १.पे. नाम. लघुशांति, पृ. ३९अ-३९आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. For Private and Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १५८ www.kobatirth.org و आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि (-); अति सूरिः श्रीमानदेवश्च श्लोक-१७ (पू.वि. श्लोक-१४ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. ३९आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि तिजयपहुत्तपयासय अड अंति (-), (पू.वि. गाधा ३ अपूर्ण तक है.) पे. नाम. अजितशांति स्तव, पृ. ५२अ ५२आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा - २२ अपूर्ण से गाथा-२६ अपूर्ण तक है.) १२११५० (+) चरणसित्तरीगुण सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५x१२.५, ११४३५). चरणसित्तरीकरणसित्तरी सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., पद्म, आदि पंचमाहाव्रत दशवीध जति अंति: ज्ञानविमल० वाधो 3 " जी, गाथा- ७. १२११५१. (+४) श्रीपाल रास-खंड-३ ढाल ८ से खंड-४ सह टवार्थ व बालाबोध, संपूर्ण वि. १८६३, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ५३, ले.स्थल. पालीनगर, लिख. पंन्या. तेजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : श्रीपालचतुर्थ खंड है. श्रीनवलखाजी पार्श्वनाथजी प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६X१३, ५५३१). श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: विस्तीर्ण ते प्रांणी, प्रतिपूर्ण. श्रीपाल रास-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: एवं ५१ भेद ज्ञानं, प्रतिपूर्ण श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी प्रतिपूर्ण दे... १२११५२. प्रश्नोत्तर तत्त्ववोध, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. ३०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी प्र० तत्त्वचो ०.. " (२६.५X१३, १३x४२). प्रश्नोत्तर तत्त्वबोध, आ. जयाचार्य, मा.गु., पद्य, वि. १९३३, आदि नमूं देव अरिहंत नित अति: (-) (पू.वि. गाथा- ९३३ तक है.) १२११५३. चंद्रराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६X१२.५, १०X३०). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि प्रथम धराधव तीम, अंति: (-), (पू.वि. उल्लास - १ प्रारंभिक दोहा - ८ तक है.) " १२११५५. धनफलीगण सारणी सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैवे. (२६.५४१२.५, ८४३४). धनफलीगण सारणी, सं., पद्य, आदि प्रणम्य भास्करादींश्च; अति: भवति योगस्पष्टता, श्लोक-१४. धनफलीगण सारणी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सूर्यादि नव ग्रहनें; अंति: योगण ऊपरइ योग स्पष्ट थाई. १२११५७. (+) कर्मग्रंथ-१ से ४ सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५१ + १ (४०) =५२, कुल पे. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., ( २६४१२, १६x४८). १. पे. नाम कर्मविपाक नव्यप्रथमकर्मग्रंथ सह अवचूरि. पू. १आ-१६अ, संपूर्ण, " , कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ १ आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी १४वी, आदि सिरिवीरजिणं बंदिय; अति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ - १ - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: श्रियाष्टप्रतिहार्य रूपाय; अंति: परस्येंद्रियशक्तिं हंति. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्यद्वितीयकर्मग्रंथ सह अवचूरि. पू. १६अ २५अ संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंदवंदियं नमह तं वीरं, गाथा - ३४. For Private and Personal Use Only कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तथा तेन प्रकारेण; अंति: देविंद स्तवनं सत्ताधिकार. ३. पे. नाम बंधस्वामित्व नव्यतृतीयकर्मग्रंथ सह अवचूरि, पृ. २५-३० आ, संपूर्ण बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी, आदि बंधविहाणविमुक्कं अंति देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३- अवचूरि, से, गद्य, आदि जीवप्रदेशो: सहकर्माणः अतिः तु श्रुतधरा विदंति Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ४. पे. नाम. षढशीतिका नव्यचतुर्थकर्मग्रंथ सह अवचूरि, पृ. ३०आ-५१अ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअ जिणं जिअमग्गण; अंति: विआरो लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४-अवचरि, सं., गद्य, आदि: जीवंति यथा योगं स्वस्व०; अंति: तत्वं तु केवलिनो विदंति. १२११५८ (+#) विक्रमसेनराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२.५, १३४३२). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: परम ज्योति प्रकास; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-८ गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) १२११५९ (+) अरणिकऋषि व सिद्धचक्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५,११४२६). १. पे. नाम. अरणिकऋषि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल सिधो जी, गाथा-९. २. पे. नाम. सिद्धचक्र सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. म. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सार सांभल; अंति: नवपद महिमा जाणज्यो, गाथा-५. १२११६३. (+) साधु समाचारी, संपूर्ण, वि. १८७०, भाद्रपद कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. खेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १९४३९). कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे वर्षाकाल आव्ये; अंति: ए आठमो अध्ययन जाणिवो. १२११६४. (+) गौतमस्वामीजीरो रास, संपूर्ण, वि. १८९४, माघ कृष्ण, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. लूणसरा, प्रले. मु. हीरविजय; राज्यकालरा. मानसिंघ; सावंतसिंघ; अन्य. जोगीदास पाटणी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अंत में मूल्य सहित खाद्य वस्तुओं की सूची दी है., संशोधित., जैदे., (२७.५४११.५, ९४३५). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: भद्र गुरु इम भणे ए, ढाल-६, गाथा-४७. १२११६५. (+) अंजनासुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १७२६, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. २२, ले.स्थल. कोहूंड, प्रले. मु. गोविंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:अंजनानो रास., संशोधित., जैदे., (२७X१२, १७४३७). अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: गणधर गौतम प्रमुख; अंति: पुण्यसागर० वृद्धि मंगलमाल, खंड-३ ढाल २२, गाथा-६३२. १२११६६. (+) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, ४४२६-२८). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नमोत्थुणसूत्र अपूर्ण तक लिखा है.) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार अरिहंतनें नमस्कार; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १२११६७. (+#) महावीरजिन चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४-१(२)=३, प्रले. सा. हीरविजया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६४११, ६x४२). दरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से गाथा-२३ अपूर्ण तक नहीं है.) दरिअरयसमीर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: दरिय० दरित कहता; अंति: छंदनाम जाणिवउ. For Private and Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२११६९ (#) कयवना चौपाई, संपूर्ण, वि. १९१४, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. २५, ले.स्थल. चांदराय, प्रले. पं. गुमानविजय (गुरु पं. खुशालविजय); गुपि. पं. खुशालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:केअवना चोपी. नेमीनाथ प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १४४३६). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: जयरंग० तस घर आनंद वरसे छ, ढाल-३१, गाथा-५५५. १२११७०. ६२ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र-१४८=१., जैदे., (२७४१२, ६२४७१). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: देवगति मनुष्यगति; अंति: असनि आहारी अणाहारी. १२११७१ (+#) भुवनदीपक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ९४२७). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६२ अपूर्ण तक १२११७४. भाष्यत्रय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११, ३४३५). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: (-), (पू.वि. चैत्यवन्दनसूत्र गाथा-३ ___ अपूर्ण तक है.) भाष्यत्रय-टबार्थ, म. लावण्यविजय, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य प्रणतानंदकार, (२)वंदितु कहित वांदवा योग्य; अंति: (-). १२११७६. (+) पाक्षिकसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६५३, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. कुठार, अन्य. मु.रंग, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ७४४६). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं स्यसायरे भत्ति. पाक्षिक सूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तित्थंकरे० च शब्दादतीत; अंति: हेतुत्वेनाभिहितत्वात्. १२११७८. (+) कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२-२(१ से २)=३०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४११.५,१०४४२). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नवकार मंत्र विषयक श्रीमती कथा अपूर्ण से दुप्पसह वर्णन अपूर्ण तक है.) १२११७९. नेमिजिन पदद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, ११४२७). १. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___पं. आणंदविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आवो नेम सुख चैन करो; अंति: टरी नीज भुवन सीधावो रे, गाथा-३. २. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पं. आणंदविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नवभव केरी प्रीत सजन तुम; अंति: साथ चलूं नीज जोर जतावो रे, गाथा-३. १२११८० (+) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन १, अपूर्ण, वि. १८९५, फाल्गुन कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ९४३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से गाथा-३७ अपूर्ण तक नहीं है.) १२११८२ (+#) साधारणजिन स्तव सह टीका, संपूर्ण, वि. १६८६, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. रायचंद (नाणावालगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-पंचपाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ४४२७). साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाः प्रभो यं; अंति: भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक-९. साधारणजिन स्तव-व्याख्या, ग. विजयविमल, सं., गद्य, आदि: पदानि । देव । प्रभु ।; अंति: कारो गुणश्च प्रदेयाः. For Private and Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १६१ १२११८३. (+) रतनपाल रास, संपूर्ण, वि. १८५०, माघ शुक्ल, २, रविवार, मध्यम, पृ. २८, ले.स्थल. जावालनगर, प्रले. ग. नायकविजय (गुरु ग. कपूरविजय); गुपि.ग. कपूरविजय (गुरु पंन्या. केशरविजय); पंन्या. केशरविजय (गुरु ग. भीमराज), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रतनपाल चरित्र., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १५४४१). रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: ऋषभादिक जिनवर नमु; अंति: सूरविजय० जय जयकार हो, खंड-३ ढाल ३२, गाथा-७७४. १२११८४. (+#) सूत्रकृतांगसूत्र सह टबार्थ-श्रुतस्कंध १, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५०-६(४४ से ४९)=४४, प्र.वि. हुंडी:श्रीसुगडा०, सूगडासूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२, ६४३८). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्ययन-१३ ___गाथा-८ अपूर्ण से अध्ययन-१६ गाथा-२ अपूर्ण तक नहीं है.) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: एकदर्शनी इमह इति केवल; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. १२११८५ (#) स्नात्रपूजा व अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ.६, कुल पे. २,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४११.५, १३४३८). १.पे. नाम. स्नात्रपूजा, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. श्राव. देपाल भोजक, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: पूर्वे बाजोट ऊपर; अंति: (अपठनीय), कुसुमांजलि-५, (वि. अंतिम वाक्य अपठनीय है.) २. पे. नाम. अष्टकपूजा विधि, पृ. ६आ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा श्लोक, म. देवचंद्र, सं., पद्य, आदि: विमलकेवलभासनभास्करं जगति; अंति: मोक्षसौख्यं श्रयंति, श्लोक-९. १२११८६. मौनएकादशीपर्व गणणं, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२७४१२, १२४३७). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., गद्य, आदि: श्रीमहाजससर्वज्ञाय नमः; अंति: प्रथमनाथाय नम. १२११८९ (+) भुवनदीपक नाम ज्योतिषशास्त्र, संपूर्ण, वि. १७९४, माघ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. सूरति, प्रले. मु. गणेशरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भुवनदीपक., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२७४१२, ११४४२). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७६. १२११९० (#) बासठी बोल बोध, संपूर्ण, वि. १८७७, कार्तिक शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. पाली, प्रले.पं. तिलोकविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. गोडी प्रसादात., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १४४२७). ६२ मार्गणाद्वार विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: गई इंद्रिय काय जोए; अंति: लाभे स्तोक जाणिवा ६२. १२११९१ (+) नमिरायऋषीस्वर संबंध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, गृही. सा. धनाजी; अन्य. सा. राजाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नमीरायनी., संशोधित., जैदे., (२७४१२,१३४३१). नमिराजर्षि ढाल, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: सासणनायक समरिय निश्चै; अंति: मुज मीछांम दुकढुंजी, ढाल-७. १२११९४. (+) कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १६१६, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ३८-१४(१ से १४)=२४, प्रले. मु. देवरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२८x११.५, १०x४०). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडं, (पू.वि. त्रिशला माता शोक प्रसंग अपूर्ण से है., वि. अंत में ऋषभादि आयुष्यमान आदि विवरण दिया है.) १२११९६ (+) भयहर स्तोत्र व भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८७९, आश्विन अधिकमास कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, प्रले. मु. उत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, ११४३२). १. पे. नाम. भयहर स्तोत्र, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण पणय सुरगण; अंतिः वाहि भय नासइ तस्स दूरेण गाथा - २४. २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ३अ-७अ, संपूर्ण. " आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमीलि अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. १२११९७. (+४) समयसारकलशटीका का विवरण समयसारनाटक, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ४७, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी: समयसारना०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २६.५X११.५, १५x५२). समयसार-आत्मख्याति टीका के हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन, अंति (-), (पू.वि. गाथा- ७२० अपूर्ण तक है. ) १२११९८. औपदेशिक सवैया, पद, सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७- २ (१ से २) = ५, कुल पे. १६, वे. (२७४११.५, १५४४७). १. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ३अ-४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. . चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नरभव लाहो लीजीयो, गाथा- ४५, (पू.वि. गाथा- ३१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. प्रश्नोत्तरमाला, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण. प्रश्नोत्तररत्नमाला. मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य वि. १९०६ आदि परम ज्योति परमात्मा; अति: वाणी कही भवसायर तरी, 1 गाथा - ६२. ३. पे नाम साधारणजिन स्तवन, पू. ५आ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि देखो भवि जिनजि के युग चरन, अंतिः चिदानंद० सफल भये मन के, गाथा ५. ४. पे. नाम नेमिजिन पद, पू. ५आ-६अ, संपूर्ण. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि अंखियां सफल भराइ अलि अंति चिदानंद० ये शिवादेवीनंद, गाथा-४. मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: विरथा जनम गमायो मूरख; अंति: जिणे प्रभुशुं मन लायो, गाथा-५. ६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: खोल नयण अब जोवो अवधु; अंति: ब्रह्म बंका गढ तोड्या, गाथा-५. ७. पे नाम. गुरुमहिमा पद, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: वस्तुगतें वस्तुनुं लक्षण; अंति: चिदानंद० धरी धावे रे, गाथा - ६. ८. पे. नाम. बहोतेरी पदसंग्रह, पू. ६आ, संपूर्ण. अनित्यभावना पद, मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि झूठि जगत की माया जिन; अंति: चिदानंद० करिये ममता नांही, " गाथा - ३. ९. पे नाम. साधारणजिन पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि प्रभु जिमें वडो मनडो हटक; अति द० अब तो लाज छे थाने, गाथा-४, १०. पे नाम आदिजिन स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि तारो जि राज दिनानाथ अब अति चिदानंद० बन्यो हे समाज, गाथा-५. ११. पे. नाम. सामान्यजिन स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि आवोजी राज २ साहेबा अंतिः चिदानंद० करिय नमन पिछतावा, गाथा-५. १२. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण, मु. चिदानंद, पुहिं, पद्य, आदि जग सुपने की माया रे नर; अंति: सेंति धरिये नेह सवाया रे, गाथा-५. " १३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. चिदानंदजी, पुडिं, पद्य, आदिः संखेश्वर पार्श्वजिनंद अति चिदानंद० थाल वधाउंगी, " गाथा ५. Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org १४. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, वि २०वी आदि अजित अजित जिन ध्वाइय; अति चिदानंद० जन पावें तेह, गाथा ५. १५. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: लाग्या नेह जिन चरण; अंति: चिदानंद मन आनंद आनें, गाथा-५. १६. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " मु. . चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रवदन मृगलोयणी एतो सजि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) १२१२०० हितशिक्षा रास, संपूर्ण वि. १८०४ माघ कृष्ण, ३. शुक्रवार, मध्यम, पू. ६२, ले. स्थल राजनगर, प्रले. मु. कमलसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले. श्लो. (१३३५) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, जैदे., (२६X१२, १३x४७). हितशिक्षा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: कास्मीर मुखि मंडणी भगवति; अंति: रिषभदास० पोहोती आसो. १२१२०१ सीमंधरजिन दूहा का वालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १० ९(१ से ९) = १, प्र. वि. पत्रांक अनुमानित है. मात्र दो ही पक्तियाँ लिखी है., जैवे. (२७४१२, १५४४१). १६३ सीमंधरजिन दूहा - खालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि (-); अति: (-). (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण दोहा १ का बालावबोध अपूर्ण से है व २ का बालावबोध अपूर्ण तक लिखा है.) १२१२०२. सहस्रकूटजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, खंभायतबंदर जैदे. (२७४१२.५, १३४२९). सहस्रकूटजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सहसकुट जिन प्रतिमा वंदीई; अंति: देवचंदनी रे प्रीत, गाथा - १४. १२१२०४ (+) षडावश्यकसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८- १ (१) ७, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र.वि. हुंडी: षडावश्यक., संशोधित., जैदे., (२७१२.५, १०X३३). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक ईरियावहीसूत्र अपूर्ण से वंदित्तुसूत्र गाथा ३६ अपूर्ण तक है.) १२१२०५ (+) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, १२ देवलोक ९ ग्रैवेयक ५ अनुत्तर देव विमानादि विवरण व प्रतिक्रमणसूत्र आलावा संपदा अक्षर संख्यादि कोष्टक, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १४-१३(१ से १३) १, कुल पे ३, प्र. वि. अनुमानित पत्रांक दिया है., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैये. (२७४१२, ६x४०). १. पे. नाम. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र सह टबार्थ, पृ. १४अ - १४आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं.. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि (-); अंति: बहुतत्त्वतः साध्याः, अध्याय-१० (पू.वि. अध्याय-९ सूत्र- ४५ अपूर्ण से है.) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र टवार्थ, पुहिं., गद्य, आदि (-); अंतिः सिद्धि जुहे ते साध बीहे. २. पे. नाम. १२ देवलोक ९ ग्रैवेयक ५ अनुत्तर देव विमानादि विवरण, पृ. १४आ, संपूर्ण. " १२ देवलोक ९ ग्रैवेयक ५ अनुत्तरदेव विमान प्रासाद-प्रतिमा कायामानादि विवरण, मा.गु., को. आदि (-); अंति (-). For Private and Personal Use Only ३. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र आलावा संपदा अक्षर संख्यादि कोष्टक, पृ. १४आ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (वि. नवकार से खमासमणसूत्र . ) १२१२०७ अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम पू. ५-४ (१ से ४)-१, दे. (२६.५x११, १३x२९). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., काण्ड-२ श्लोक-३९ अपूर्ण से ६२ अपूर्ण तक है.) १२१२०८. (+) जीव आयुष्यविचार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. प्रेमसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X११.५, १३X३०). जीव आयुष्यविचार सज्झाब, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुचरणकमल प्रणमीने, अति: भावसागर कहे० में दाखी जी, गाथा - १०. Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संपर्ण, वि. १७७६ शुक्ल ग. विमलविजय (गुरु प्र.ले.पु. मध्यम, १६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२१२०९ (+) नवकारविषये राजसिंहरत्नवती पंचकथा रास, संपूर्ण, वि. १७७६ शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. वांकुलीग्राम, प्रले. पंन्या. वीरविजय (गुरु ग. विमलविजय, तपागच्छ); गुपि.ग. विमलविजय (गुरु ग. मानविजय, तपागच्छ); ग. मानविजय (गुरु पंन्या. हर्षविजय, तपागच्छ); पंन्या. हर्षविजय (गुरु पंन्या. गुणविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६४११.५, १७४४५). राजसिंहरत्नवती कथा नवकारप्रभावे, मु. गौडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: सारद शुभमतिदायिनी; अंति: गौडीदास० सकल संघ मंगल करु, ढाल-२४, गाथा-६०५. १२१२१०. मानतुंगमानवती रास, संपूर्ण, वि. १९३२, वैशाख कृष्ण, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४८, ले.स्थल. सीरोही, प्रले. मु. धनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४११.५, १३४३५). मानतुंगमानवती रास-मषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजै मन; अंति: मोहनविजय कहे० मंगलमाल है, ढाल-४७, गाथा-१०१५. १२१२११. अभयकुमार रास, संपूर्ण, वि. १८७३, आश्विन शुक्ल, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५४, ले.स्थल. गुढा, प्रले. मु. खुशालविजय (गुरु पं. जीतविजय); गुपि. पं. जीतविजय (गुरु पं. वृद्धिविजय); पं. वृद्धिविजय (गुरु पं. सुमतिविजय); पं. सुमतिविजय (परंपरा आ. उदयसूरि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:अभयकुमार. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्., प्र.ले.श्लो. (१४८२) हीतकर सू पोथी लखी, (१४८३) मस करस्यू पोथी लखी, जैदे., (२५.५४१२, १४४२७). __ अभयकुमार रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६८७, आदि: चंदकमल चंदन जिसी; अंति: ऋषभ० ते सुखीया चिरकालो जी, गाथा-१०१४. १२१२१२. (+) आषाढाभूतिमनि चौपाई, संपूर्ण, वि. १७९६ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ११, प्रले. मु. उदेविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आषाढभूत., संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३९). आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंति: न्यानसागर०कल्याणो रे, ढाल-१६, गाथा-२१८. १२१२१४. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, जैदे., (२७X१२, १०४३२). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., खंड-१ ढाल-१ से ढाल-२ गाथा-९ अपूर्ण तक है.) १२१२१५. सिद्धाचल व आदिजिनविनती स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, ११४३३). १. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ९अ-९आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. अमीकुंवर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: अमीयकुवर० दुख गमावे रे, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आदिजिनविनती स्तवन, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: पामी सहगुरू पसाय रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) । १२१२१६. (+) कोणिकराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. हुंडी:कोणकनी., संशोधित., दे., (२७४१२, १७४५०). कोणिकराजा चौपाई, मु. चोथमल, मा.गु., पद्य, आदि: सासणनायक दाखीयो स्वार्थी; अंति: सुणने क्रोध मिटाय जी, ढाल-२०, गाथा-२४९. १२१२१७. (+) पंचमआरा सज्झाय, निंदा परिहार रास व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२, १६४३८). १.पे. नाम. पंचमआरा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रावण शुक्ल, १२, रविवार, पे.वि. हंडी:तवनरो. मु. लालचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: श्रीजिणवर चरण कमल नमुं; अंति: लालचंद० मे बोल कहाय हो. २. पे. नाम. निंदापरिहार रास, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:निन्ह्व., निन्हव. For Private and Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १६५ निंदा परिहार रास, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहावीर सदा नमुं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., गाथा-४८ अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा बाद में लिखी गई है. मा.गु., पद्य, आदि: माजी मोरादेजी हो मुगतरा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० तक लिखा १२१२१८. (+) ४ मंगल रास व रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:मंगल., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७७१२, २०४५०). १.पे. नाम. ४ मंगल रास, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. म. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध साधु नमु; अंति: इणमे न चले खोट, ढाल-४, गाथा-२१४. २.पे. नाम. रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. जैमल, मा.गु., पद्य, आदि: रात्ररी भोजन मे दोष घणा; अंति: जेमल० इण मे नही चाले खोट, गाथा-७. १२१२१९ (+) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ३६, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. हुंडी:छतीसमो०., संशोधित., जैदे., (२७४१२, १८४३९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सम्मए त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. १२१२२० () कल्पसूत्र-महावीरजिनजन्माधिकार का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९१६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३०, गुरुवार, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. पाली नगर, प्रले. श्राव. गोवर्द्धन छांगांणी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:जन्म क०., जन्मकल्यां., जन्ममहो., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १६x४६). कल्पसूत्र-हिस्सा महावीरजिनजन्माधिकार का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)तेणं कालेणं तेणं समणे, (२)१ गर्भ साहस्यो २ जनम्या; अंति: इकवीस हजार वरस सासण वरतसी. १२१२२१ (+) औपदेशिक पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:संत., संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४४४). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: किनका छोरू वाछरू रे किणका; अंति: लडज चेतन राजा, गाथा-४. २.पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: रहो रहो रे सांवरई सायव बो; अंति: रतनचदं० पीत मंडाणी, गाथा-६. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: प्रात उठ श्रीसंतजिणंद को; अंति: रत्नचंदजी० लायख खाय टली, गाथा-५. ४. पे. नाम. बलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: मास मास कर पारणो तपसी; अंति: चोथमलजी० तीनारा भाव रे, गाथा-१४. १२१२२२ (+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४११, १७X४८). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी श्रीजीनराज तणी काने; अंति: परीसा जोर पोतासे सीवपुरी, गाथा-२५. १२१२२३. (+) श्रीचंद्रकेवली रास, संपूर्ण, वि. १८३८, माघ कृष्ण, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. २२३, प्रले. मु. हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्त में रास अन्तर्गत ३७ महत्त्वपूर्ण प्रसंगों की सूची दी गई है., संशोधित. कुल ग्रं. ६९००, जैदे., (२६.५४१२, १४४४१). श्रीचंद्रकेवली रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७७०, आदि: सुखकर साहिब सेवीइं; अंति: ग्रथें भणतां मंगलमालाजी, उल्लास-४ ढाल १११, गाथा-२३९५. For Private and Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२१२२४. (+#) ) कल्पसूत्र सह टवार्थ व ज्ञानदीपिका वालाववोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पू. १८०-१ (१०३) १७९, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. त्रिपाठ - टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, १३X३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि नमो अरिहंताणं नमो अति भुज्जो उवदंसेड़ त्तिबेमि, संपूर्ण कल्पसूत्र- टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: अष्टकर्मरूप वेरी जीत्वा अतिः व्याकरण सहित वारंवार कहिड, संपूर्ण. कल्पसूत्र - ज्ञानदीपिका बालावबोध, मु. ज्ञानविजय, मा.गु., गद्य वि. १७२२, आदि इरियावही पडिकमिह एक; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रशस्तिश्लोक-२ अपूर्ण तक है व बीच का पाठांश नहीं है.) १२१२२५. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९१३ शुक्ल, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. हुंडी. चंदगुपतराजारी, दे., (२७१२.५, १८४३३). चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न ज्झाव, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि पाडलीपुर नामे नगर: अंति: जेमलजी कीधी जोरो रे, गाथा - ५३. १२१२२६. सूत्रकृतांगसूत्र- अध्ययन ११ मोक्षमार्ग, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. हुंडी मोखमार्ग०, दे. (२७४१२, " १८x४२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण १२१२२७. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्रले. सा. जीतश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७१२.५, १२३०). सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंदीर साहेब तमे; अंति ज्ञानवीमलसूरी० मुगतोनो वास, गाथा १३. १२१२२९. (+) ३३ बोल थोकडो, संपूर्ण, वि. १९१८, श्रावण शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल. पाली, प्रले. सा. राजी (परंपरा मु. पृथ्वीराज); गुपि. मु. पृथ्वीराज; पठ. मु. धनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: ३३ थोकडो, ३३ थोक, संशोधित., वे. (२६.५x१२.५, १८x४७). (२७X१२, १६X३७). १. पे. नाम. गणधरमहिमा पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ३३ बोल धोकडो, मा.गु., गद्य, आदि १ असंजम २ बंधण १ रागबंधण अति करे तो आसातना लागे सिखने. १२१२३०. (+) दोहा संग्रह, नवकार छंद व साधु सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र. वि. संशोधित., दे., पुहिं., पद्य, आदि: चवद पुरवधार कहीये म्यांन अंतिः श्री साधु वीतरागी, गाथा-४. २. पे नाम. प्रास्ताविक लोक संग्रह, पू. १अ संपूर्ण. श्लोक संग्रह " पुहिं. प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि चलति मेरु प्रचलति मंदिर, अंतिः न चलति धम्मं श्लोक-२. ** ३. पे. नाम. नवकारमंत्र छंद, पू. १अ संपूर्ण, नमस्कारमंत्र छंद, मा.गु., पद्य, आदि: पढो मिंत्र नवकार सदा; अंति: पढीया पछै नीत का करो आणंद, पद-२. ४. पे. नाम जैनधार्मिक दोहा संग्रह. पू. १अ संपूर्ण. दोहा संग्रह - जैन धार्मिक, पुहिं. मा. गु., पद्य, आदि: पिंगल पढे न पारसी अति: कटै कोड भवन की आस, गाथा ३. ५. पे नाम, साधु सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. अंत में १ दोहा दिया गया है. मु. गोरधन ऋषि, रा., पद्य, आदि मोटा तो चतुर सुजाण मीठी अति गोरधन० वरतै कुसलने खेम, गाथा-८. १२१२३१. मेघकुमार पंचढालिया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. हुंडी : ढाल १ उ., दे., (२७१२, १७x४०). मेघकुमार पंचढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: मेघकमरने धारणी माता बोले; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दाल- २ गाथा-७ तक लिखा है.) " १२१२३२. (+) खंडाजोयण बोल, संपूर्ण, वि. १९३१, आश्विन कृष्ण, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. पाली, प्रले. उदयचंद ब्राह्मण; अन्य. धनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. हुंडी : खंडाजोयण, टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित दे. (२७१२.५, १६x४८). लघुसंग्रहणी खंडाजोयण बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप लांबो, अंति हजारने नेउ नदी जाणवी. For Private and Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२१२३३. तंदुलवियालिय पड़न्ना व आदिजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. ६-२ (१ से २)=४, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:तंदुलप०. हुंडी:ऋ० दे०भ., दे., (२७X१२, १७४०). १. पे. नाम. तंदुलवयलिय पड़ना हुंडी, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक-हुंडी, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: दुख टालवो उपाय धर्म कीजौ, (पू.वि. क्रमांक ४१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम आदिजिन चरित्र. पू. ३आ-६अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि धनोसार्थबाह१ युगलीयो२ अति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्रेयांस द्वारा पारणा प्रसंग अपूर्ण तक है.) १२१२३४. (+) धन्नाकाबंदी चौडालिया व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३२, चैत्र कृष्ण, ७ शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:धनोजी., धनांरा. लेखन स्थल अस्पष्ट छे., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७X१२-१८.०, १८x४१). १. पे. नाम. धन्नाकाकंदी चौढालिया, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: नमो अंग तीजा वरग मे कह्या; अंति: आसकरण०अणुसारे जोय के, ढाल-७, गाथा- ७२. १६७ २. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: भूखा मुया भुइ सुता सहीया; अंति: ते घर उखली सारखा, दोहा-१. १२१२३५ (+) दशाश्रुतस्कंधसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८९५ श्रावण शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ५६, प्र. वि. हुंडी: दशासु०, संशोधित. जैदे., (२७X१२, ६X३८). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: सुयं मे आउसं तेण भगवया; अंति: उवदंसेति त्ति बेमि, दशा - १०. दशाश्रुतस्कंधसूत्र- टबार्थ, मु. केशव ऋषि, मा.गु., गद्य, वि. १७०८, आदि : वर्द्धमानं जिनं नत्वा; अंति: देखाइ पूर्ववत्. १२१२३६. (+४) कल्पसूत्र सह टवार्थ व वालावबोध, अपूर्ण, वि. १९५७, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १८५-१(१००)+५(५५,९१, १०९, १७५ से १७६) = १८९, ले. स्थल. जेतारण, प्रले. मु. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: कल्प०., कल्पसू०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X१२.५, ११x६६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि नमो अरिहंताणं नमो अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आदिजिन चरित्र तक है.) कल्पसूत्र- टवार्ध*, मा.गु, गद्य, आदि अरिहंतने नमस्कार हुवो १२ अति (-). पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र - बालावबोध, मा.गु. रा. गद्य, आदि: ॐ नम श्री वर्द्धमानाय नमः अति: (-). (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं... " आदिजिन से महावीरजिन अंतराकाल वर्णन अपूर्ण तक है व बीच का पाठांश नहीं है.) १२१२३७. (+) महावीरजिन चौढालिया, संपूर्ण, वि. १८३९, कार्तिक शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. सा. कीसनी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हंडी : माहावीरजीरो संशोधित, जैदे. (२७४१२, १६x४७). महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: चोवीस माहावीरजी लीधो संजम; अंतिः दीवाली रे दिनी ए, ढाल -४, गाथा - ५२. १२१२३८. (+) चेलणासती चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. छोगा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : चेलणारो., चेणानो ०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७१२.५, १७x४६). चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: ओसर जे नर अटकलै ते; अंति: समगतजीत चोथी ढाल रसाल, ढाल - ४. १२१२३९. (+) १४ श्रोता चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पठ. सा. राजाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: ४ सूरता० ढा.. For Private and Personal Use Only संशोधित., दे., (२७X१२, १६५३). १४ ओता चौपाई, म. चोथमल ऋषि, रा. पद्य वि. १८५२, आदि: श्री श्रीमंदर साहिबा अति चोथमल० कर्म वनवे मु. गोलूणजो, डाल- २२. Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२१२४०. होलिकापर्व ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. पाली, प्रले. श्रावि. राजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:होली., दे., (२६.५X१२, १६३६). होलिकापर्व ढाल, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि प्रथम पुरष राज प्रथम, अंति: विनेचंद कहे करजोरी ने, ढाल ४. १२१२४१. ज्ञानवहोत्तरी-आद्यंत गाथा ५ सह वालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. श्राव, छोगा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ग्यानबहोत्तरी., दे., (२६.५X१२, १६x५२). . ज्ञानवहोत्तरी, आव, अंबालाल पुहिं. पद्य वि. १९०७ आदि प्रणम् श्रीपरमातमा धरी अति अंबाबालाल० निज आतम परकास, प्रतिपूर्ण (२६.५X१२, १८x४७). १. पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: काकंदी नगरी भलीस रे; अंति: खेवो पार रे सुण जिनवर, गाथा - १३. २. पे. नाम. दर्शनपच्चीसी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञानवहोत्तरीबालावबोध, पुहिं. गद्य, आदि १ बोले माहादुरलभ मनुष्य; अंति: जिहां अनंता सुख विलसोगा७२, संपूर्ण. १२१२४३ (+) धन्ना अणगार सज्झाय व दर्शनपच्चीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. दे., साधुदर्शनपच्चीसी, मु. मनरूप, रा. पद्य वि. १८७०, आदि दरसण कीजे हो श्रीमुनि राज अति मनरूप कीया गुण " ग्रामो जी गाथा २५. १२१२४४ द्वीपसमुद्र प्रमाण व आगमपुरुष विवरण, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे २, दे. (२७१२, १७४३५). १. पे. नाम. द्वीपसमुद्र प्रमाण, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १जबूदीप १००००० २लवणसमुद्र अंति: ६३२९६००००००००० जबुदीप धयो. २. पे. नाम. आगमपुरुष विवरण, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. " मा.गु., गद्य, आदि: १श्री आचारांग १ उवाइ, अंति: (-), (पू.वि. कंठ के बाद १२ दृष्टिवाद तक है.) १२१२४५ (+) ४ भाषा ४२ भेद विचार व आवकोपदेश सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. हीराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी ढाल उपवेसी, टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित. दे. (२६.५x१२, २१४४१)१. पे. नाम. ४ भाषा ४२ भेद विचार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. " प्रज्ञापनासूत्र ४ भाषा ४२ भेद विचार, संबद्ध, पुहिं, पद्य, आदि सत्यभाषा १ असत्यभाषा २ अंतिः घणी अस० अनंत प्रदेसी लगे, २. पे. नाम. श्रावकोपदेश सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. खोडीदास, रा., पद्य, आदि फोगट श्रावक नाम धरावे दील; अंति: खोडोजी० केम समझाव, गाथा- ३. १२१२४६. पुप्फचूलासाध्वी सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४८, चैत्र शुक्ल, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २ ले स्थल, पाली, प्रले. सा. कीसनी (गुरु सा राजाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी पुफचुला. वे. (२६.५४१२, १६x५१). १. पे. नाम. पुप्फचूलासाध्वी सज्झाय, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु, पद्य, वि. १८४७, आदि: संतनाथ जीन सोलमो संतनो अति रायचंद० धीन करणी सीधरी, For Private and Personal Use Only ढाल - ९. २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- आर्त्तध्याननिवारण, मु. ज्येष्ट, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन तुं ध्यान आर क्युं अंतिः जेष्ट० आनंद पावे, गाथा- ७. तुरत ही १२१२४७ (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १५, प्रले. सुखदत्त बोडा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी आवसग०, समणसूत्र ०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित. दे. (२७४१२, ५३६). , साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि : आवस्सही इच्छाकारेण; अंति: खमामि सव्वस्स अहयंपि. साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आ० आवसही करतो सावधान थयो; अंतिः सर्वने अ० हु पिण तु. Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १६९ १२१२४८. नमिपव्वजा अज्झयण, वीरस्तुति अध्ययन व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, जै... (२७X१२, १८x४९). १. पे नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-नमिपव्वजा अज्झयण, पृ. १अ २अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी. नमीराय ०. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि (-); अति: (-), प्रतिपूर्ण, २. पे नाम वीरस्तुति अध्ययन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी. वीरथुइ. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (१) पुच्छिस्सुणं समण, (२) पुच्छिस्सुणं समणा; अंति: हिव आगमिसंति तिबेमि, गाथा - २९. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. ३अ संपूर्ण प्रा. मा.गु., सं., पद्म, आदि पंचमहव्वयमुब्वयमुलं अति (-) (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा-६ तक लिखा है.) १२१२४९ (#) तिजयपहुत्त स्तोत्र की टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की फैल गयी है, दे., (२५X१२, १८x४५). विजयपहुत्त स्तोत्र- टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि अहं जिनेंद्राणा चक्रं अति: (-). (पू.वि. गाथा-६ की टीका अपूर्ण तक है. वि. मूल का प्रतीक पाठ दिया है. यंत्रसहित ) १२१२५०. ४५ आगम अष्टप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी: अष्टप्रकारीपू० ., जैवे. (२७४१३, १२४४२). ४५ आगम पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य वि. १८८१, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी अति: (-), (पू.वि. कलश गाथा-६ , तक है.) ', १२१२५१. पासत्या के बोल, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. खडा लेखन. दे. (२६x२२, १७X२८). पारा के बोल, मा.गु., गद्य, आदि प्रथम पासत्वो नवे वखांणे; अंति (-), (पू.वि. बोल- १४ तक है.) १२१२५३. ज्ञानपंचमी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३-१ ( २ ) =२ प्रले. दुर्ग, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, १२X३१). १२१२५५. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., ( २६.५X१२.५, ४X४३). 1 ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: गुणविजय रंगे गुणि, (पू.वि. बी के पत्र नहीं हैं., ढाल-२ गाथा-५ अपूर्ण से ढाल -४ गाथा-४ अपूर्ण तक नहीं है.) १२१२५४. चार सरणा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. पाली, प्रले. सा. राजी; अन्य. सा. धनांजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी:सरणा., दे., (२६.५X१२, १६x४१). चार शरणा, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो शरणो श्रीअरिहंत; अंति: धरम करी अनंता जीव तिरसी. साधुवंदना, प्रा., पद्य, आदि वंदियं ते वीरजिण अति (-) गाथा १०७, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. श्लोक-२० अपूर्ण तक लिखा है.) १२१२५६. नवकारमंत्र व औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. ३, दे. (२६.५४१२, १८x४२). १. पे. नाम. नवकारमंत्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जी अरिहंत नतसद समरताजी; अंति: लालचंद ० रे चुत्र सुजाण, गाथा-९. २. पे नाम औपदेशिक सज्झाय-कटुवचन त्याग, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मा.गु., पद्य, आदि: कड़वा बोला अनरथ थासी प्रभ; अंति: कुडी साखी मत बोल मरम मोसो, गाथा- २३. ३. पे. नाम औपदेशिक सज्झाव-ब्रह्मचर्य, पृ. १आ, संपूर्ण. "" मा.गु., पद्य, आदि: वीषीया रस जनम गयो री अति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ४ तक लिखा है.) १२१२५७, (+) सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, पूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६४१२, ९४२५). Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-६८ अपूर्ण तक है.) १२१२५८. नंदीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:नंदीसू., जैदे., (२६४११.५, ११४३४). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-१४९ अपूर्ण तक १२१२५९ (+) लघुशांति, भरहेसर सज्झाय, पंचजिन स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, कुल पे. ४, प्रले.ग. मोतीविजय; पठ. श्राव. लक्ष्मीचंद नानचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १२४३०). १.पे. नाम. लघुशांति, प. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. २. पे. नाम. भरहेसर सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभयकुमार य; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. कल्याणकंद स्तुति, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. ___कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम. सातलाख सूत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सातलाख. श्रावकदेवसिक आलोयणासूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: सातलाख पृथ्वीकाय; अंति: अढार पापस्थानक जाणवा. १२१२६०. अढीद्वीप पर्वतादिमान विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, दे., (२६४१२, २७४३८). ढाईद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ३१६७०८ विजै १६ एवं ८ लाख, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., खंडा जोजन से है.) १२१२६१. (#) साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, ६४३५). साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: जब जिनराज कृपा करे तब; अंति: ज्ञानविमल० नित नवनिध पावे, गाथा-५. १२१२६२. मंगलकलश चोपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, १८४४४). मंगलकलश चौपाई, म. लक्ष्मीहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: प्र उठि नित समरीये; अंति: (-), ढाल-२७, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० अपूर्ण तक लिखा है.) १२१२६३. वीस विहरमान व चौद पूर्व नाम, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अंत में "शा. मणीलाल हीराचंद ठे. पांचकुवाना दरवाजा बहार शा. डायाभाई गोकलदासनी दुकाने अमदावाद" ऐसा उल्लिखित है., खडा लेखन. कुल ग्रं. ३७, दे., (२६.५४१२, २९४१६). १.पे. नाम. वीस विहरमान नाम, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: देवजसस्वामी सर्वज्ञाय नमः, (प.वि. सातवें जिन नाम से है.) २. पे. नाम. चौद पूर्व नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. १४ पूर्व नाम, मा.गु., गद्य, आदि: उत्पादपूर्वाय नमः; अंति: श्रीलोकबिंदुसारपुरवायनमः. १२१२६४. चोवीस दंडक पच्चीस द्वार विचार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९५३, भाद्रपद कृष्ण, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. अमदावाद, प्रले. श्राव. माणेकचंद खोडीदास; पठ. सा. मंछाबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:दंडकनोथोकडो., दे., (२६४११.५, १३४३७). २४ दंडक २५ द्वार विचार, मा.गु., प+ग., आदि: सरीरोगाहणं संघाणं संठाणं; अंति: चवणगइ रागइ चेव, गाथा-२. २४ दंडक २५ द्वार विचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हवे इण चौवीस द्वार; अंति: सिद्धउपरे २० द्वार कह्या. For Private and Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२१२६५. (+) जयतिहुअण व वंदित्तसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें.., जैदे. (२५.५x११, १३४३७). " १. पे. नाम. जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय; अंति: अभयदेव विण्णिवइ आणिंदिय, गाथा - ३०. २. पे नाम वंदित्सूत्र, पृ. ३अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि., अंत के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४७ अपूर्ण तक है.) १२१२६७. (+) वरदत्तगुणमंजरी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३४, चैत्र कृष्ण, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्रले. पं. रविविजय अन्य. ग. कांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में "संवद्गुणर्तुसरितांपतिचंद्रप्रमांतिके ऐषीयसितपक्षांतजीवाच्छेब्दे लिखत्सुधीः । महात्म्यकांतिविजयः श्रीमांडलिके पुरेण्यंताण्यंतक्रियाभर्तुः पठतेरस्यमंगलम् ।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६×११.५, ५x२९). १७१ वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अति मितसद्गुणम्, श्लोक-१५०. वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमंत शोभा लक्ष्म्यादिक; अंति: रुडै गुण युक्त छइ. १२१२६८. स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, संपूर्ण, वि. १८४४, आषाढ़ कृष्ण, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. बूसीनगर, प्रले. मु. फतेचंद (गुरु मु. मनोहरसागर); गुपि. मु. मनोहरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मुनिसुव्रतजिनप्रसादात्., जैदे., (२५.५x११.५, १५X३८). स्थूलभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदिः सुखसंपति दायक सदा; अंतिः मनोरथ वेगे फल्या रे, ढाल - ९, गाथा- ७४. १२१२६९. गजसुकुमाल सज्झाय व पार्श्वजिन स्तव, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, वे. (२६.५x१२, १०४४२). १. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय- प्रथम ढाल, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. मकनमोहन, मा.गु, पद्य, वि. १६६२, आदि: सरस्वती समरूं सारदा रे; अंति: (-). प्रतिपूर्ण, २. पे. नाम. पार्श्वनाथजिन स्तव- चिंतामणि, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा बाद में गुजराती लिपि में लिखी गई है. पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, उपा. देवकुशल पाठक, सं., पद्य, आदि: नमो देवनागेंद्रमंदार; अंति: चिंतामणिपार्श्वनाथः, श्लोक- ७. १२१२७०. (क) नमस्कारमहामंत्र छंद, संपूर्ण, वि. १९२९ श्रावण कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल जैसलमेर, प्रले. पं. दलिचंद (उपकेशगच्छ); पठ. श्राव. सुरजमल, श्राव. रतनलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६x१२, १४X३९). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरै विविध परै; अंति: ऋद्धि वांछित लहे, गाथा १८. १२१२७१. (+#) पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला, संपूर्ण, वि. १९वी ?, कार्तिक शुक्ल, सोमवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. मेघचंद्र (गुरु मु. भानुचंद्र); पठ. श्राव. मलुकचंद्र (पिता श्राव. वीरचंद्र), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पण का अं नष्ट, जैदे. (२७४१२-१६.०, १६४३७). "" पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: जीराउला मंडण जिनपास तु; अंति: समे इणि परिभणे तूठा आगे, गाथा- ३८. १२१२७३. (+) भुवनदीपक व नवग्रहउत्पत्ति स्थान, संपूर्ण, वि. १८४५, माघ कृष्ण, ३०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, मु. . फत्तेचंद्र (पार्श्वचंद्रसूरिंगच्छ) पठ. पंडित. सरुपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. जै... (२६.५X११.५, ७९४४) प्रले. For Private and Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. भवनदीपक सह टबार्थ, पृ. १अ-११आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:भुवनदीपक. भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः, श्लोक-१७३, (वि. १८४५, माघ कृष्ण, ३०) भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती संबंधीयउ; अंति: पद्मप्रभसूरि आचार्य, (वि. १८४५, माघ शुक्ल, १, मंगलवार) २. पे. नाम. नवग्रहउत्पत्ति स्थान सह टबार्थ, पृ. ११आ, संपूर्ण. नवग्रहजाति उत्पत्तिस्थान, प्रा.,सं., पद्य, आदि: कंसारो भरडो लोहार; अंति: केतो वासी कुंकणयं, गाथा-१. नवग्रहजाति उत्पत्तिस्थान-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सूर्य कंसारो चंद्रमा; अंति: केतुजन्म कुंकण देश. १२१२७४. (+#) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १७८५, वैशाख कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. २७, ले.स्थल. अंजारनगर, प्रले. मु. विनीतशेखर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ११३१, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (९७९) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११.५, १५४४२). श्रीपाल रास-लघु, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: सकल सुरासुर जेहना; अंति: सहुं चित चंगै रे, ढाल-४०, गाथा-७५६, ग्रं. ११३१. १२१२७६. (+#) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७२५, चैत्र शुक्ल, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. ९, प्रले. मु. वीरसुंदर (परंपरा आ. कक्कसूरि); गुपि. आ. कक्कसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३४). आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: अन्नाणमोह दलणी जणणी; अंति: नित्थारगपारगाहोह. १२१२७९ (+) मार्गणाबोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११.५, १४४३९). ६२ बोल-मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीव गइं दिकाए जोए वेयकसाय; अंति: (-), (वि. सारिणीयुक्त.) १२१२८० (+) विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९२, श्रावण शुक्ल, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५९, ले.स्थल. सुभटपुर, प्रले. हरनारायण बोडा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:विपाकसू., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ४६३३, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (६१३) तैलाद्रक्षे जलाद्रक्षे, जैदे., (२५४११.५, ८४५०). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेवं भंते सेवं भंते, श्रुतस्कंध-२ अध्ययन २०, ग्रं. १२५०. विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिणइ कालइ तिणइ समय; अंति: अंग संपूर्ण थयो. १२१२८१. जिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६.५४१२, १२४१९). जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ, अंति: मनोवांछितपूरणाय, श्लोक-२४. १२१२८२. पासत्था के प्रकार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२, १२४४२). पासत्था के बोल, मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्य थकी पसत्थो कोने; अंति: सर्वथकी पासत्थो कहीइं. १२१२८३. (#) शत्रंजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. रामचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १४४३९). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि: सिद्धाचल गिर भेट्या हो; अंति: अगरचंद० सिद्धगिरि जिनराज, गाथा-१६. १२१२८५ (#) पन्नरतिथि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, १६x४२). १५ तिथि सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., एकादशीतिथि सज्झाय- गाथा-२ अपूर्ण से पूर्णिमातिथि सज्झाय गाथा-१ अपूर्ण तक है.) १२१२८६ (+) गीत, सवैया व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२.५, १५४४३). For Private and Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १७३ १. पे. नाम. जिनदत्तसूरि गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सद्गुरुजी तुम्हे सांभलो; अंति: लाभोदय सुख सिध हो, गाथा-११. २. पे. नाम. जिनदत्तसूरि सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. वा. जयकुमार, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: तूटत आकाश बीज खीजत खई; अंति: नाम लेत जोगिनी डरात है, सवैया-१. ३. पे. नाम. जिनदत्तसूरि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. पुण्यसागर, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिरिदैदेव पसाय करे गुरु; अंति: करउ पुण्य आणंद, गाथा-९. ४. पे. नाम. दादाजी स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. जिनकशलसरि स्तोत्र, उपा. जयसागर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १४८१, आदि: श्रीरिसह जिनेसर सो जयौ; अंति: मनवंछित फल मुझ हुवो ए, गाथा-१९. ५. पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. विजयसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: समरु माता सरसती; अंति: विजैसंघ लीला वरी, गाथा-३१. १२१२८८. (+) अवंतिसुकुमाल रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११.५, १०४३१-३४). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति किण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७० अपूर्ण तक है.) १२१२८९ (+) भुवनदीपक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७२, माघ शुक्ल, १४, सोमवार, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. दोलतगढ, प्रले. मु. अमरकीर्ति (गुरु वा. रत्नचंद्र), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भुवनदीपक., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (७८४) अज्ञानभावान्मतिविभ्रमाद्वा, जैदे., (२६४१२, ६x४०). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७४, संपूर्ण. भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती संबंधियो मह कहता; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-११३ तक टबार्थ है.) १२१२९० (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह अवचूरि व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६८२, आश्विन शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. पालडी, प्रले. मु. मांडा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १६x४६). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: किल इति संभावनायां; अंति: अचिरान्मोक्षं प्रपद्यते. कल्याणमंदिर स्तोत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: किल इति संभावनाए हुं; अंति: संपदः प्रभास्वर झलहलती छइ. १२१२९१. महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-९(१ से ९)=१, प्रले. गंगादास आत्माराम साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२, ११४३४). महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: श्रीगुणहर्ष वधांमणइं, ढाल-१०, गाथा-१२५, (पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है., ढाल-१० गाथा-१७ अपूर्ण से है.) १२१२९२. चार सरणा-सरणा १, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१२, ६x२६). ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मुजने चार शरणा होजो; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १२१२९३. ग्रंथसूची, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. खडा लेखन., दे., (२४४१२.५, २३४६-१७). जैन हस्तप्रत ग्रंथसूची, मा.गु., गद्य, आदि: डाभरो पहेलो १ गौतमपृच्छा; अंति: वृद्धसंग्रहणी टबो प० ९८. १२१२९४. पांचइंद्रिय चोपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, दे., (२५४१२, १३४३४). ५ इंद्रिय चौपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७५१, आदिः (-); अंति: बसे सबको मंगल होय, ढाल-६, गाथा-१५२, (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२१२९७. (+) तेंतीस बोल थोकड़ा, संपूर्ण, वि. १९३०, माघ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ११, अन्य. श्रावि. नाथीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : तेत्रीसबोल., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दे. (२६.५४१२, १३४३३). "" ३३ बोल थोकडा-जैन पदार्थज्ञान, मा.गु., गद्य, आदि: एक प्रकारे असंजम तेथीनी; अंति: कथी ऊंचे बेसे तो असातना. १२१२९८. (+) वर्धमानजिन नामकरण आश्रयी भोजन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६X११.५, १७X३६). वर्धमानजिन नामकरण आश्रयी भोजन विधि, मा.गु., गद्य, आदि हिवे भोजन नीबुक्ति; अंति: माता पिता प्रवर्ते छ १२१३०१. गजसिंघकुमार रास, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ११, जैदे. (२६.५४१२, १८४५३). " गजसिंघकुमार रास, मु. सुंदरराज, मा.गु., पद्य, वि. १५५६, आदि पासजिणेसर पाय नमी श्रेवीस अंतिः तन मनह उच्छाहि खंड-४ गाथा-४३४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२१३०२. मार्गणाये ५६३ जीवना भेद, संपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. ५, जैवे. (२६४१२, ११x२६). ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सात नारकी पर्याप्ता: अंति: २१७ देवता ९९ अपर्याप्ता. १२१३०३. (*) २४ दंडकना शरीर बधेलगमुतेलगनो अधिकार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १० ६ (१ से ३, ७ से ९) ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., ( २६ १२, १०X३१). २४ दंडक बंधमुक्त शरीर विचार, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति घन कीजि त्हारी आठ थाय (पू.वि. औदारिक शरीर अपूर्ण से है व बीच के पाठांश नहीं है.) १२१३०४. जिनसहस्रनाम स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. २- १ (१) १, दे. (२६४१२, १५४३६). " जिनसहस्रनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, श्लोक १६ से है व ३० अपूर्ण तक लिखा है.) १२१३०५. (+) पर्यंताराधना सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११-९ (१ से ९ ) = २, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२६.५४१२, ४४२५). पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०, ग्रं. २४५, (पू. वि. गाथा ५९ अपूर्ण से है.) पर्वताराधना गाथा ७० टवार्थ *, मा.गु, गद्य, आदि (-); अंति सुख परमानंदपद पामह. १२१३०६. (+) चौवीसजिन चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ७-६ (२ से ६)=१, प्र. वि. संशोधित, दे., (२५.५४११.५, २२४५०). २४ जिन चैत्यवंदन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., चंद्रप्रभुजिन चैत्यवंदन-गाथा- २ अपूर्ण से धर्मजिन स्तवन तक है.) १२१३०७. (+) प्रवचनसारोद्धार - द्वार १०७ से १०९ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५X१२, ४x२२). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण प्रवचनसारोद्धार-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-), प्रतिपूर्ण १२१३०८. (+) पिंडनिर्युक्ति प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६४०, चैत्र शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. ग. नयनसुंदर (गुरुग जीवकलश); गुपि. ग. जीवकलश; राज्ये आ. जिनचंद्रसूरि; पठ. सा. हंसा (गुरु सा. रत्नविजया); गुपि. सा. रत्नविजया, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६x१०.५, १३x४२). पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि देविंदविंदवंदिव पयारविंदे, अंति बोहिंतु सोहिंतु य गाथा - १०३. १२१३०९. राजप्रश्रीयसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १७६७, श्रेष्ठ, पू. ११६, ले. स्थल, रोहितासपुर, प्रले. ग. दर्शनविजय (गुरु मु. दानविजय, तपागच्छ); गुपि मु. दानविजय (गुरु आ. विजयराजसूरि, तपागच्छ); आ. विजयराजसूरि (तपागच्छ); राज्ये आ. विजयमानसूरि (आनंदसूरिगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. ले. श्लो. (५६) यादृशं पुस्तकं वष्टं जैये. (२६.५x११.५, ६४३६) "" For Private and Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० १७५ राजप्रनीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि नमो अरिहंताणं० तेणं, अति सुपस्सणीएणं नमो, सूत्र- १७५ . २१०० (वि. १७६७. भाद्रपद कृष्ण, ३, गुरुवार) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: विसोधनीयं च धीधनैरिति, ग्रं. ३६००, (वि. १७६७, आश्विन शुक्ल, ११, शुक्रवार, वि. टबार्थ श्लोकपरिमाण हेतु २९२२ भी उल्लिखित है.) १२१३१० (+) व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४७, प्र. वि. हुंडी : व्यवहारसुत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैवे. (२६११.५, ६३७-४०). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " व्यवहारसूत्र, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि जे भिक्खु मासिय; अतिः भवति तिबेमि, उद्देशक- १० प्र. ३७३. व्यवहारसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि जे० जे कोइ भि० साधुः अंति निर्जरा प० मोटो फल होई. १२१३११. (") कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७२-३५ (१ से ३५ ) = ३७, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, ११x२८-३१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. स्वप्न पाठक द्वारा राजभवन गमन तैयारी प्रसंग अपूर्ण से महावीरजिन संपदा अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र - बालावबोध*, मा.गु., रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२१३१२. साधुकालधर्म विधि, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (२६.५x१२, १२३१). " साधु कालधर्म विधि, मा.गु., गद्य, आदि: कोटिकगणवइरी शाखा ; अंति: पछे लोगस्स केहवो. १२१३१३. मार्गानुसारी पात्रीस बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. खडा लेखन. दे. (२५x१२, ३४४१५-२५). मार्गानुसारी के ३५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: न्यायनु पेदा करेलु द्रव्य; अंति: सहीत होय मार्गणाअनुसार. १२१३१४. (+) समयसार नाटक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १५८-१(१) = १५७, प्र. वि. हुंडी: समयसारना०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५X१२, ५X४२). समयसार - आत्मख्याति टीका के हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: ताकौं मेरी तसलीम है, अधिकार- १३, गाथा - ६८६, ग्रं. १७०७, (पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.) समयसार - आत्मख्याति टीका के हिस्सा समयसारकलश टीका के विवरण का टवार्थ, मु. दानरुचि, मा.गु., गद्य, वि. १८०१, आदि (-); अति ग्यान पातसाहसी मुझरो कीनो. १२१३१५. (#) नेमिजिन स्तुति व ऋतुवंतीस्त्री उपरि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२०, माघ कृष्ण, ६, जीर्ण, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. मु. तेजविजय; पठ. सा. हर्षश्री; सा. दानश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, ., (२६x१२, ११४३०). १. पे नाम नेमिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: ए सफल करो अवतार तो, गाथा-४. २. पे. नाम ऋतुवंतीस्त्री उपरि सज्झाय, पृ. १आ- २आ, संपूर्ण. असज्झाय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयण समरी सासणमाता; अंति: सीवलच्छी ते वरे, गाथा - १६. ३. पे नाम. नेमराजिमती स्तुति गाथा १, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: अलबेली छबीली रंगीली अति: (-). प्रतिपूर्ण १२१३१८. (+) कल्पसूत्र की टीका - तृतीय आश्चर्य, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी : तृतीयमच्छेरकं., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., ( २६१२, १३x४२). कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १२१३१९ (+) रोहिणीतप स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., ( २६११.५, ६x४०). रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु, पद्य, आदि जेकारी जिनवर वासुपूज्य; अति देवी लब्धिविजय जयकार, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२१३२१ (+) अठाविस सिखामण बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१२.५, २२४४०). २८ शिखामण बोल, रा., गद्य, आदि: पहिली सिखामण जेहनी; अंति: पछाताप करवो पडि नहीं. १२१३२२. (+) चंदकेवली रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५४-२०(१ से १८,२५ से २६)=३४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, २१४५८). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., उल्लास-२ ढाल-१४ गाथा-१६ अपूर्ण से उल्लास-४ ढाल-२८ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) १२१३२३. चौमासीपर्व वंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, ले.स्थल. फलोधी, प्रले. पं. जगरुपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १०४३८). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान कमला; अंति: पास सांभलनुं चेइरे. १२१३२७. सूत्रकृतांगसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२६.५४११.५, १४४५०). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ तक है.) सूत्रकृतांगसूत्र-दीपिका वृत्ति, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, वि. १५८३, आदि: प्रणम्य श्रीजिनं; अंति: (-). १२१३२९ (+) स्तुति व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२,१५४४६). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पंन्या. केसरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर जिनराजने नित वंदो; अंति: सीमंधर उछरंगे चढते परणाम, गाथा-७. २.पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. कृपासागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरिषभजिणंद जुहारिये; अंति: कृपासागर० सुणज्यो अरदासा, गाथा-६. ३. पे. नाम, सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: श्रीसीमंधरदेव सुहंकर; अंतिः सकलमां सिद्धि जी, गाथा-४. ४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. पुण्यरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनमांहे तीरथ; अंति: इह भव पर भव सुख संपतवरे, गाथा-४. ५. पे. नाम. अजितजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण... अजितजिन स्तुति-तारंगातीर्थमंडन, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तारंगा मुखमंडण अजित; अंति: पुण्यसागर० सुखकार, गाथा-१. १२१३३२. अमरसेन चोपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. हुंडी:अमरसेण., दे., (२६४१२, १६४५३). अमरसेन चौपाई, मु. खुशालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: श्रीमजिन आददे विहर; अंति: दिन मन जोडी उछरंगरे, ढाल-२३. १२१३३३. (+) चेलणासती चोढालिया, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१४(१ से १४)=१, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, २१४४४). चेलणासती चौढालियो, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ से है व ढाल-४ गाथा-१८ तक लिखा है.) १२१३३४. (+) ललितांगकुंमर कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, १४४४३). ललितांगकुमार कथा-धर्म विषयक, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: एहज भरतक्षेत्रे श्रीवास; अंति: ते प्राणी सर्वसुख पांमे. १२१३४०. पिस्तालिस आगम तप विधान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य.सा. सौभाग्यश्रीजी,प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. खडा लेखन., दे., (२५.५४१२.५, ३३४२०). ४५ आगमतप गणj, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अथ पिस्तालिस आगमनो; अंति: उपंगसूत्राय नमः. १२१३४१ (+) कयवन्ना चोपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-१(१)=१३, प्र.वि. हुंडी:केवनाजीरीचोपी., संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १५४४२). For Private and Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७७ कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल -१ गाथा-११ अपूर्ण से डाल २२ गाथा-९ अपूर्ण तक है.) 3 १२१३४२. (४) मूर्तिपूजामत खंडण विचार, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. खडा लेखन. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५X१२.५, ३२x१९). मूर्तिपूजामतखंडण विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: ते प्रमाणे किम की जड़, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पाठांश तथा अंबडणो कप्पर अन्न उत्थियाण से लिखा है.) १२१३४३. पंचकल्याणक अभिषेक स्तवन व चौवीसजिन कलश, संपूर्ण, वि. १८९१ कार्तिक शुक्ल, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. पं. रुपविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६१२.५, १२४४१). १. पे. नाम. पंचकल्याणक अभिषेक स्तवन, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मी, मा.गु., पद्य, आदि: जय केवल कमला केलि; अंति: व जिनवर जगतमंगल गाईए, ढाल - ५. २. पे. नाम. चौवीसजिन कलश, पृ. ४-५ आ, संपूर्ण. २४ जिन कलश, मा.गु., पद्य, आदि कलस निसुणो २ रिसहअजि अति ते धन्ना जेहिं दीडोसि, गाथा- १७. १२१३४५ आवकआलोयणा विधि व आठ जीव भेद, संपूर्ण वि. १९१३ माघ कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. २. कुल पे. २, ले. स्थल नागोरनगर, प्रले. पं. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५x१२, १२X४०). १. पे. नाम. श्रावकआलोयणा विधि, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. श्रावक आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावहि पडिक्कमीजै; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. २. पे. नाम. आठ जीवभेद, पू. २आ, संपूर्ण, ८ जीवभेद नाम- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अंडजा १ इंडाथी उपना पंखी, अंतिः ७ पादुका ८ देवनारका. १२१३४६. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र का पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६X१२, १४X३२). कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, मु. अमरमुनि, हिं., पद्य, आदि परम ज्योति परमात्मा अति (-) (पू.वि. गाथा ३१ " अपूर्ण तक है.) १२१३४७. (+) बोल विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. १२, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २६१२.५, १७x४६). १. पे. नाम. बारह भावना विचार, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. १२ भावना विचार, मा.गु., गद्य, आदि अनित्य भावना १ ते; अंति: धर्मरूचिजी भाई. २. पे नाम पात्रीश जिनवाणी गुण, पू. २अ-२आ, संपूर्ण, अभिधानचिंतामणि नाममाला हिस्सा ३५ जिनवाणीगुण वर्णन, मा.गु. सं., गद्य, आदि संस्कृत सहित बोले ऊंचे; अंति: अविच्छिन्न कहे, अंक-३५. ३. पे. नाम चौंतीश अतिशय, पृ. २आ-३-अ, संपूर्ण. ३४ अतिशय विचार, मा.गु. गद्य, आदि: केस मंसु, रोम असोभनीक वधेः अति नहीं होय तो विलाय जाय. " ४. पे. नाम. अनागत चोवीशी नाम, पृ. ३अ, संपूर्ण. अनागत चौवीसी नाम, मा.गु., प+ग., आदि: पद्मनाभ सूरदेव सुपारख; अंति: देव अनंतवीर्य भद्रकृत . ५. पे. नाम. तेरह बोल-घटार्या घटै वधार्या बधै, पृ. ३अ, संपूर्ण. १३ बोल हानीवृद्धि के, मा.गु., गद्य, आदि १ कजियो २ रामत ३ खाज, अंतिः क्रोध १२ लोभ वेर १३. ६. पे. नाम. तेर काठिया नाम, पू. ३अ, संपूर्ण. १३ काठिया नाम, मा.गु., गद्य, आदि: १ आलस २ मोह ३ अवनीत; अंति: १२ सामदाणी कर्म कायो. ७. पे. नाम छः काय विचार, पृ. ३अ संपूर्ण. ६ काय जीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पृथ्वीकायरो वर्ण पीलो; अंति: वनस्पतिकायनो वरण सांवलो. ८. पे नाम. आठ कर्मस्थिति विचार, पृ. ३अ संपूर्ण, पे. वि. अंत में बीजक जैसी कृति है. For Private and Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८ कर्मस्थिति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणीय प्रकृति; अंति: कोडीसागरपमनी स्थिति. २. पे. नाम. दीपावलीपर्व गणना, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जाप दिवालीने दिनकरणा ४; अंति: गौतमस्वामीने केवलज्ञान. १०. पे. नाम. छुटक बोल, पृ. ३आ, संपूर्ण.. ___छूटकबोल संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: १ पहिलै बोलै जीव मोखनी; अंति: सुनावे तो जीव मोख जावै. ११. पे. नाम. देवलोक राजमान विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. १२ देवलोक राजमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: छठो देवलोक ४ राजचोडो; अंति: सिद्धशिला चोडी लांबी छै, (वि. छठे देवलोक से सिद्धशिला तक है.) १२. पे. नाम. देवलोकभवनसंख्या विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: दीखण दिसना ४ कोडने ६ लाख; अंति: सगला मिलने ७ कोड ७२लाख. १२१३४८. (+) महावीरजिन स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पठ. सा. जीतश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, ५४३४). महावीरजिन स्तवन, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ राजानो नंदन; अंति: ह तो हजुर रे शुजी, गाथा-८. महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: क्षत्रिकुंडनामा नगरने; अंतिः सदा नमस्कार होज्यो. १२१३४९. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, दे., (२६४११.५, १३४२८). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: (-); अंति: देही दरीसण जय करूं, ढाल-१२, गाथा-१२०, ग्रं. १७०, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., ढाल-११ गाथा-८ अपूर्ण से है.) । १२१३५० (+#) बिंबमानादि ध्वजादंड विचार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १७४३१-५७). प्रासादमंडन-हिस्सा अध्याय-४ बिंबमानादि ध्वजादंड विचार, मंडन सूत्रधार भारद्वाज, सं., पद्य, आदि: द्वारोच्छ्रायोष्टनवधा भाग; अंति: (-), (पू.वि. ध्वजाविचार अपूर्ण तक है., वि. विषयानुसार चुने हुए श्लोकों का संग्रह.) प्रासादमंडन-हिस्सा अध्याय-४ बिंबमानादि ध्वजादंड विचार-टबार्थ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२१३५१ (#) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्रांक खंडित होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१२.५, १६४५७). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ से गाथा-६ तक है.) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). १२१३५२. मूर्तिपूजा मत खंडन व नंदीसूत्र-केवलज्ञान आलापक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. २, प्र.वि. खडा लेखन., दे., (२६.५४१२.५, २४४२०). १. पे. नाम. मूर्तिपूजा मतखंडन, पृ. १अ, संपूर्ण. मूर्तिपूजामतखंडन सज्झाय, श्राव. अचल ओसवाल, मा.गु., प+ग., आदि: चिईयद्वेय निजर ठीक कहता; अंति: ते शास्त्र विरुद्ध फलावी. २. पे. नाम, नंदीसूत्र-केवलज्ञान आलापक, पृ. १अ, संपूर्ण. नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १२१३५३. अक्षयनिधितप विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. सा. सौभाग्यश्रीजी, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, ११४३१). अक्षयनिधितप विधि, मा.गु., प+ग., आदि: श्रावण वदी चौथने; अंति: च्यार वरस लगे करवं, दोहा-१. १२१३५४. (+) महादंडकना ९८ बोल, संपूर्ण, वि. १८३६, श्रावण शुक्ल, १, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. श्राव. नवाजसराय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १४४४१). For Private and Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ९८ बोल-जीवअल्पबहुत्व विषयक, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वथी घोडा गरभज; अंति: जीव विसेशधिक सिधमाहिघालता. १२१३५५. (#) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८-६(१ से ५,२६)=२२.प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १०४२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सूत्र-१४ अपूर्ण से है, सूत्र-८१ अपूर्ण तक लिखा है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२१३५६. (+) ९ वाड सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:नववाड., संशोधित., दे., (२७४१२, १०४३८). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-२ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) १२१३५७. (+#) शालिभद्रमनि चोपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-२(१ से २)=७, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, ., (२६.५४१२, १९x४८). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: मनवंछित फल लहिस्यइ जी, ढाल-२९, गाथा-५१०, (पू.वि. ढाल-६ दुहा-३ अपूर्ण से है.) १२१३५८. (#) सिंदूरप्रकर सह टीका, संपूर्ण, वि. १८४०, श्रावण कृष्ण, ७, रविवार, जीर्ण, पृ. ११५, ले.स्थल. मादाबाद, पठ. श्राव. हुकमचंद (पिता श्राव. गुलाबचंद); गुपि. श्राव. गुलाबचंद; प्रले. पं. देवचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ३४००, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, १३४३८). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: निशम्यमानेति शमेति नाशम्, द्वार-२२, श्लोक-१००. सिंदूरप्रकर-टीका, पंन्या. धर्मचंद्र, सं., गद्य, आदि: स्वर्भूभुवस्त्रयीरम्यमगमं; अंति: धर्मेण संशोध्यमिह सकलं. १२१३६०. (#) द्रव्यसंग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, ३४३८). द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: जीवमजीवं दव्वं जिणवरवसहेण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक है.) द्रव्य संग्रह-बालावबोध, मु. हंसराज, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमज्जिनेंद्रदेवानां; अंति: (-). १२१३६१ (+) चौवीसजिन गर्भावास काल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.१,प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १२४२३). २४ जिन गर्भावास काल, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-). १२१३६२. (+) वंदित्तुसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२.५, ८४३०). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२८ तक है.) १२१३६३. वीस स्थानक विधि व सामायिक पारने का सूत्र, अपूर्ण, वि. १८६५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, ७५३२). १.पे. नाम. वीसस्थानक विधि, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: रात्रि जागरण कीजै, (प.वि. पाठ-"करिने करीइ चोथे तथा छठे उपवासे कीजे" से है.) २. पे. नाम, सामायिक पारवा गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण. सामायिकपारणसूत्र, हिस्सा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: सामाइअ वयजुत्तो जाव; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाठ-"बहुसो सामाइयं कुज्जा" तक लिखा है.) १२१३६४. श्रावकपाक्षिकअतिचार तपागच्छ व खरतरगच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-५(१ से ५)=२, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, ११४३५). १.पे. नाम. श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, पृ. ६अ-७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, (पू.वि. संलेषणा अतिचार से है.) २. पे. नाम. श्रावकअतिचार-खरतरगच्छीय, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणम्मिअ; अंति: (-), (पू.वि. दर्शनाचार स्थूल अपूर्ण तक है.) १२१३६५. पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२-२५(१ से २३,२७,३०)=७, प्रले. पं. लक्ष्मीचंद (गुरु पं. शांतिविजय गणि); पठ. मु. हरखचंद (गुरु पं. लक्ष्मीचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में एक औपदेशिक गाथा लिखी हुई है., प्र.ले.श्लो. (५२) पोथी प्यारी प्राणथी, (५६) यादृशं पुस्तकं दष्टं, जैदे., (२६.५४१२, ७४२७).. आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: वंदामि नित्थारगपारगाहोह, (पृ.वि. पाठ-"काउसग्गविधि" से है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२१३६६. (+) नेमजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रावण शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ६, प्रले. सा. राजी (गुरु सा. पनाजी); गुपि. सा. पनाजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:नेमचरित्र., संशोधित., दे., (२७४१२, १६x४३). नेमिजिन चरित्र, म. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: संखराजाने जसोमती रांणी; अंति: जैमल कहे नेम जिणंदा, ढाल-३३. १२१३६८ (+) महादंडकना उगंत्रीस द्वार, संपूर्ण, वि. १९५५, माघ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. कच्छ-मांडवी, प्रले. मोनजी दामोदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:महादंडक., संशोधित., दे., (२६.५४१२, १३४४५). २४ दंडक २९ द्वार बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीज; अंति: जीव अनंतगुणाधिका. १२१३६९ पार्श्वजिन साखियां व गुरुशिष्य पत्रलेखन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, अन्य.सा. सौभाग्यश्रीजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. खडा लेखन., दे., (२६४१२,१६x२६). १.पे. नाम. पार्श्वजिन साखियां, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन साखिया, मा.गु., पद्य, आदि: मोर मेहे रवि कमल जिम चंद; अंति: सखी सजननी सखी चोर, गाथा-११. २. पे. नाम, गुरुशिष्य पत्रलेखन विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: उग्यप्रउतावलो जइ गुरुजीनी; अंति: कगल बक्ष्ये नहीं लगार. १२१३७०. धन्नाशालिभद्र रास, अपूर्ण, वि. १८३९, कार्तिक कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. २४-१(६)=२३, ले.स्थल. मुनरा, प्रले. ग. देवचंद्र (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सालिभद्ररास. प्रत के अंत में "रास लिखवा मांडो आशु वद २ दिने संवत् १८३९४० वर्षे" मास-पक्ष-तिथिपूर्वक उल्लेख मिलता है., जैदे., (२६४१२, १२४३३). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: मनवंछित फल लहिस्यइ जी, ढाल-२९, गाथा-५१०, (पू.वि. ढाल-६ गाथा-९२ अपूर्ण से ढाल-७ गाथा-११९ अपूर्ण तक नहीं है.) १२१३७२. (+) महावीर गौतम चोढालियो, अपूर्ण, वि. १८४८, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल, जयपुर, प्रले. परशुराम, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १७४३६). महावीरगौतमसंवाद चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: (-); अंति: रायचंदगुणचालीसे ___ज्याणी, ढाल-४, (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१३ अपूर्ण से है.) १२१३७३. (+) सूक्तमाला, अपूर्ण, वि. १८६३, कार्तिक शुक्ल, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. ७-४(१ से ४)=३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १४४३५). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदिः (-); अंति: केरो सार ए वर्ग साध्यो, वर्ग-४, श्लोक-१७६, (पू.वि. तन धन तरुण एवं आयु की चंचला वर्णन से है.) १२१३७४. (+) चौमासीपर्व देववंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, प्रले. मु. कल्याणविजय; पठ. सा. खुस्यालश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ११४३१). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवसरू विनीत; अंति: पास सामलन चेई रे. १२१३७७. चौवीसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४११.५, १९४३६). २४ जिन स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ करिजे; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१५ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १८१ १२१३७८. (+) विचारसार प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. २०५००, दे., (२६४१२, ४४३४). विचारसार प्रकरण, ग. देवचंद्र, प्रा., पद्य, वि. १७९६, आदि: नमिय जिणं गुणठाणे; अंति: देवचंदेणनाणट्ठम्, अधिकार-२, गाथा-३०५. विचारसार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ जिन वीतराग; अंति: ज्ञानवृद्धिविशेषते अर्थे. १२१३७९ (+) नवतत्त्व विचार व संलेखना पाठ, संपूर्ण, वि. १९१९, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. पाली, प्रले. सा. राजी; अन्य. मु. धनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६४१२.५, १८४३९). १. पे. नाम, नवतत्त्व विचार, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नवतत्व. नवतत्त्व विचार*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवरा चेतनारा लखण पुन पाप; अंति: पुरुष सिद्ध संख्यात गुणा. २. पे. नाम, संलेखना पाठ, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अहं भंते अपछिम मारणं; अंति: तस्स मिच्छामिदक्कडं. १२१३८३. (+#) सोल स्वप्न सज्झाय, सीमंधरजिन विनती व आध्यात्मिक सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्रले. पं. कुनणमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२.५, १६४३८). १. पे. नाम. १६ स्वप्न सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नामे नगर; अंति: चंद्रगुप्तराजा सुणो, गाथा-३३. २.पे. नाम. सीमंधरजिन विनती, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: त्रिभुवव साहिब अरज सुणीने; अंति: चरने तारो गरीबनिवाज, गाथा-२१. ३. पे. नाम, आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अध्यात्मसज्झाय. म. महिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासरडे जइये रे बाइ; अंति: सीवपुर लहीये रे बाई, गाथा-९. ४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ व गिरनार तीर्थ महिमा, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अध्यात्मसज्झाय. शत्रुजयगिरनारतीर्थ महिमा दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: जगमें तीरथ दोय बड़ा; अंति: भेट्यौ नहीं गयो जमारो हार, गाथा-४. १२१३८४. (+#) कंस कृष्ण विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१२.५, २०४३०). कंसकष्ण विवरण लावणी, म. विनयचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: गाफल मत रहे रे मेरी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१५ तक लिखा है.) १२१३८५. सौभाग्यपंचमी कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११-१(७)=१०, प्र.वि. हुंडी:पांचमनो., दे., (२६४१२, १०४३०). सौभाग्यपंचमीपर्व कथा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनाधीशं; अंति: पांचमी आराधवानो उदय करवो, (पू.वि. साधु के द्वारा कन्या को कही गई कार्तिक पांचम की विधि अपूर्ण से वासुदेव नामक शिष्य वर्णन अपूर्ण तक है.) १२१३८७. पार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, दे., (२५.५४१२.५, ७४२२-२८). पार्श्वजिन छंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: निहारि के कीने मोक्ष समान, गाथा-१०, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ___गाथा-३ से है.) १२१३८८. (#) दृष्टांत कथा, पार्श्व व सीमंधरजिन स्तवन व आध्यात्मिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१३.५, २३-३४४३३-४१). १. पे. नाम. दृष्टांत कथासंग्रह, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पे.वि. हुंडी:द्रस्टांत. दृष्टांतकथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: तीन दिन परीक्षा करी, (पृ.वि. कथा संख्या-६० से है.) For Private and Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण, वि. १९९६. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५७, आदि पास माने एक आपरो आधार उठत अति: रतनचंद० सफल फली मुज आस, गाथा - ११. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पु. २अ-२आ, संपूर्ण. सा. जडाव, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर जिन सायबा ; अंति: जोड जडावजिजी एम करे अरदास, गाथा - १२. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पू. २आ, संपूर्ण. सा. जडाव, मा.गु., पद्य, वि. १९६०, आदि: म्हारे पुद्गल को रस पाको; अंति: जडाव० कर्मन की कथा सुनाई, गाथा-१९. १२१३८९. आठ प्रवचन सुमतिगुपति, चार मंगल रास व सोलसती सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-३ (१ से ३) -३, कुल पे. ४, दे. (२६.५X१३, १७-२१४३४-३८). " १. पे. नाम. आठ प्रवचन सुमति गुपति, पृ. ४अ-५आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी: पांचसुमत. , ८ प्रवचनमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८२१, आदि (-); अति चंद कहे० जे जेकार हो, ढाल-८, (पू.वि. ढाल-५ गाथा - १२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चार मंगल रास- गाथा १ से ७, पृ. ५आ, संपूर्ण. ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा. पद्य, आदि अनंत चोवीसी पाय नमु सकल; अंति: (-), प्रतिपूर्ण ३. पे. नाम. सोलसती सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण १६ सती सज्झाय, मु. जडाव, मा.गु., पद्य, आदि सीवर सोल सतीया भावधरी अंति: जडाव कंवरजी० जो सदा सवाया, गाथा - ६. ४. पे. नाम. आलोयणा संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण. श्रावकदेवसिकआलोयणासूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: आपरे दोष लागे होय तो गुरु; अंति: संथारो करके पंडित मरण मरे. १२१३९०. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. हुंडी ऋषिमंडल, जैवे. (२६४१२, १३x२९). ऋषिमंडल स्तोत्र-वृहद् आ. गौतमस्वामी गणधर सं., पद्य, आदि आद्येताक्षरसंलक्ष्यमक्षर अति क्षमश्च परमेश्वरि, 3 श्लोक- ९७, ग्रं. १५०. १२१३९२ (+) वसुधारा स्तोत्र व दीपमाला मंत्र, संपूर्ण, वि. १९०६, आषाढ़ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ७. कुल पे. २. ले. स्थल. हमीरपुर, प्रले. पं. हंससुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, दे., (२५x१२, ११४३४). १. पे. नाम. वसुधारा स्तोत्र, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिहं; अंति: पुस्तक पूजां करोति. २. पे नाम दीपमाला गणना, पृ. ७अ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह", प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि ॐ ह्रीं श्रीं महावीर अंति रात करणो धूपध्यानकरणी. १२१३९४ (+) लकडे की लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. संशोधित. वे. (२६१३, १२x२९). लकड़े की लावणी, पुहिं., पद्य, आदि: भरमजल समें कहुं रे दाखला; अंति: लकड़े का सोउलम आलम जाणें, गाथा-४. १२१३९५ (+) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. हुंडी स्तवन. अबरखयुक्त स्याही, संशोधित. वे. (२६४१२, " १३x४४). पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, पा. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२३, आदि: भलै दीठी सवालख भूम मेडती; अंति: विजय कहे ए सफली घडी, गाथा- ७. १२१३९७ (+०) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४१३ १२४३५). औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०८ आदि जीनवर दीयो एसो उपदेश जे; अंतिः ऋषि रायचंद० परम आनंद, गाथा - २४. For Private and Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२१३९८ (+) चोवीस दंडक चोवीस द्वार, संपूर्ण वि. १९३६, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ९, ले. स्थल. कलोल, प्रले. श्राव. छोटा अमुलख शेठ, पठ. श्रावि. परसनबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी दंडकनो धोकड़ो, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित कुल ग्रं. ३२०, दे. (२६४१२.५, १८४३२). . , י २. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि धारिणी मनावे हो; अति छूटीजे गर्भावास, गाथा-५, १२१४०१. नेमनाथजीरो बारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५. ५X१३, ११x२०). २४ दंडक २४ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सरीरोगाहणं संघाणं सठाण; अंति: सिद्ध उपरे २० द्वार कह्या. १२१४००. (+) सुभद्रासती चोढालियो व मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८५, श्रावण शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले. स्थल. अलायनगर, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२५x१२.५, १७४३१). १. पे. नाम. सुभद्रासती चोढालियो, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. "" सुभद्रासती रास शीलव्रतविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, बि. १७५९, आदि सरसति सामणि वीनवुं आपो; अति फलीया मनोरथ माल, डाल- ४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमराजिमती बारमासा, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि सावण मासे स्वाम मेल्ही; अंति: कवियण० निधी पांमि रे, गाथा - १३. १२१४०३. (#) नलदमयंती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जै.., (२५.५X१३, ७४४८). " नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य वि. १६७३ आदि सीमंधरस्वामी प्रमुख अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल-१ गाथा-११ अपूर्ण तक है.) १२१४०४ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२६४१२.५, १३४३३). शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी कहे कामनी; अंति: सेवक जन धरे ध्यान, गाथा - १६. " १२१४०५ (+) जीवनऋषि सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, अन्य. जसराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे.. (२६.५X१२.५, १५X४२). जीवनऋषि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पुरे मननी आस वरधमान गुण; अंति: दुख देखीनें पाम्या मरण रे, ढाल-६, १८३ गाथा-८३. १२१४०६. मेणरेहा सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ४, जैदे. (२६५१२.५, १६४५२). "" मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि जूबो मांस दारु भणो करे; अंति सूणिने प्रनारी त्यागी जे, गाथा १२९१२१४०७. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१०, चैत्र शुक्ल, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २४६, प्र. वि. हुंडी: ज्ञा.सू.ट., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. २१०००, दे., (२६X१२, ८X३५). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि तेणं कालेणं तेणं समए अंति: नावाधम्मकहाओ सम्मत्ताओ, अध्ययन-१९, ग्रं. ६६००. 3 ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- टबार्थ, ग. प्रेमजी, मा.गु., गद्य वि. १६९९, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर, अंतिः कृतो गणि प्रेमभिता टबार्थ. १२१४०८. अध्यात्म पद, सिद्धगिरि व आदिजिन स्तवन अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २- १ (१) = १, कुल पे. ३, प्र. वि. खडा लेखन. जैवे. (२६४१२, ३१४१५). For Private and Personal Use Only १. पे. नाम. सिद्धगिरि स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १८९४, चैत्र शुक्ल, ८, गुरुवार, ले. स्थल. दर्भावति, : मु. चतुरसागर (गुरु मु. फतेसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. श्रीलोढण पार्श्वनाथ प्रसादात्. प्रले. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. चतुरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: चतुर० चिंताचुरी रे लो, गाथा-६, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. आदिजिन स्तवन, पू. २अ, संपूर्ण Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. चतुरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तुं चितो गोरी बेटी जाट की; अंति: फते चतुर शिवराज हे, गाथा-७. ३.पे. नाम. अध्यात्म पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे आनंदघन तांन आनंदघन; अंति: नाम आनंदघन लाभ आनंदघन, गाथा-३. १२१४१०. स्नात्रपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ६, जैदे., (२५४१३, १२४३८). स्नात्रपूजा संग्रह , मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पवित्र उदक लेइ अंग पखालि; अंति: सेती हलातो जाय शांति कहै. १२१४१४. (+) चवदेसरतानी चोपड़ व आठ प्रवचनमाता सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२). १. पे. नाम. चवदेसुरतानी चोपइ, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:१४ श्रोता. १४ श्रोता चौपाई, म. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीसीमंदर साहिबा अरज करु; अंति: चोथमल. वनवेगो लूणज्यो, ढाल-२२. २. पे. नाम. आठ प्रवचनमाता सज्झाय, पृ. ४अ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:आठ प्रवचन. ८ प्रवचनमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: पांच समितने तीन गुप्त आठे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) १२१४१५. विजयशेठविजयाशेठाणी लावणी व शीयल कडा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२.५, १७४३४). १. पे. नाम. विजयशेठविजयाशेठाणी लावणी, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:विजया. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीवीतराग जिणदेव; अंति: रामपुरे गुणगाया, गाथा-२३. २.पे. नाम. शीयल कडा, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., पे.वि. हुंडी:सीलराकरा०. मा.गु.,रा., पद्य, आदि: धर्मनां छे अनेक प्रक; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) १२१४१६. (+) रोहणीतप अधिकार व मरुदेवीमाता सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, १८४५०). १.पे. नाम. रोहिणीतप अधिकार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १९८७, कार्तिक शुक्ल, ८, ले.स्थल. पालीनगर, प्रले. म्. मोतीचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हंडी:रोहणीतप०. रोहिणीतप स्तवन, म. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: हां रे मारे वासुपूज्यनो; अंति: दीपविजयगुण गाईये जी, ढाल-६, गाथा-३१. २. पे. नाम. मरुदेवीमाता सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९६१, आदि: श्री रिषभकुमार रे लेइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) १२१४१७. नयचक्र, संपूर्ण, वि. १९३०, भाद्रपद शुक्ल, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. मधराज, प्रले. मु. मेघराज, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, ११४३९). आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., पद्य, वि. १०वी, आदि: गुणानां विस्तरं वक्ष्ये; अंति: यथा जीवस्य शरीरमिति, __अधिकार-१९, सूत्र-२२८.. १२१४१८.(+) पजूसणनी थुइ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १०४३९). पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पर्व पजुसण पुण्यें; अंति: सुजस महोदय कीजे, गाथा-४. १२१४२१ (+) साधुवंदना तेरहढाला, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. पाली, प्रले. श्रावि. राजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:साधवंदणा०., संशोधित., दे., (२६४१२.५, १६४३३). For Private and Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १८५ साधुवंदना तेरहढाला, मु. देवमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचभरत पंचेरवै जाण पाच; अंति: श्रीदेवमुनि ते संथुण्या, ढाल-१३, गाथा-१६७.. १२१४२२. वर्णमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६.५४१२, ७४१७). वर्णमाला, मा.ग., गद्य, आदि: ॐ नमः सिद्धं अ आ इ ई; अंति: (-), अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १२१४२३. देव दुवारनो थोकडो, संपूर्ण, वि. १९३१, चैत्र शुक्ल, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. माहामीदर, प्रले. मु. अमरचंद ऋषि (गुरु मु. कानजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:देवदुवार छै., दे., (२६४१२, १९४४६). भगवतीसूत्र शतक १२ उद्देशक ९-१० देव द्वार थोकडो, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: देव द्वारना १० द्वार नाम; अंति: भावदेव असंख्यातगुणा ५. १२१४२४. देवकी ६ पुत्र रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. हुंडी:देवकीरी., दे., (२६४१२, १७X४४). देवकी ६ पुत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: तिण अवसर ईण भरतमै मालव; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१४ गाथा-४१ तक लिखा है.) १२१४२५. प्रतिष्ठा विधि, गुरु स्तूप प्रतिष्ठा विधि व शांतिक विधि, संपूर्ण, वि. १९१३, माघ कृष्ण, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ४, ले.स्थल. नागोरनगर, प्रले.पं. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२.५, १२४३९). १. पे. नाम. प्रतिष्ठा विधि, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मूल गंभीरकुं आछी तरे से; अंति: विद्यायै संक्षेप करणो. २. पे. नाम, गुरुस्तूप प्रतिष्ठा विधि, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. गुरुप्रतिमा प्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: शुभनक्षत्रेषु शुभवेलायां; अंति: शीलव्रतं च पालयति, (वि. पूजा सामग्री सहित.) ३. पे. नाम, औषधि संग्रह, पृ. ५अ, संपूर्ण. औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: एलची १, लवंग २, तज ३; अंति: मरोडाफली २८, मीढल २९. ४. पे. नाम. शांतिक विधि, पृ. ५अ-८आ, संपूर्ण. शांतिपूजा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ननु संघादीनां विघ्नो; अंति: दूरतो यांति. १२१४२६. (+) प्रव्रज्या विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२.५, १२४२९). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: दीक्षा लेतां एतला; अंति: नोकरवाली गणाविइं. १२१४२७. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२०, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१३९३) यादृसं पुस्तिकं दृष्टवा, जैदे., (२५.५४१२.५, ३-१७४३५-५९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: भवसिद्धय समए तिबेम्मि, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर देवनै; अंति: हुं तुम प्रतै कहुं छू. उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: एक आचार्यनै एक चैलो; अंति: सर्व दुःखना अंतकारी. १२१४२८.(+) भक्तामरस्तोत्र लघु, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ८x२५). आदिजिन स्तोत्र, मु. चंद्रकीर्ति, सं., पद्य, आदि: नमो जोती मुरती; अंति: चंद्रकीर्ति पुनातु, श्लोक-६. १२१४२९ शत्रुजयतीर्थ स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., जैदे., (२६४१२, १६४३९). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. लालचंद, मा.ग., पद्य, आदि: सीमंधरजी सणज्यो; अंति: स्वामीजी रो अरदासजी, गाथा-७. २. पे. नाम. सुजातजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सुजातजिन गीत, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तुं गति मत तु साचो घणी; अंति: जिनराज० तोहीज रहसी लाज, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૧૮૬ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रे सिद्धाचल भेटवा मुझ मन; अंति: कांतिविजय० विमलाचल पायो, गाथा-५. ४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मारो मन मोह्यो रे; अंति: कहेतां नावे पार, गाथा-५. ५. पे. नाम, शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जात्रा नीनांणु करीये; अंति: पद्म कहै भव तरीयै, गाथा-१०. १२१४३१. इलाचीकुमार सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्रले. लाधुरामजी मारजजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उपदेशनी., दे., (२५.५४१२, १५४४०). १. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रले. मु. शार्दूलसींग ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सुर करै लबधविजै गुणगाव, गाथा-२२, (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. कलियुग सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: तारकधर्मजीनेश्र केरो वीर; अंति: रामचंद० धर्म ध्यांन कीजै, गाथा-१०. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रामचंद्र, रा., पद्य, आदि: कांई रे गुमान करे आप; अंति: परभव से डरता रहीजै. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: पार न पायो गुरु ग्यांन को; अंति: राममुनी० अग्यांन को, गाथा-७. १२१४३२. (+) अरदास चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १८४५२). अरदास चौपाई, मु. कुस्यालचंदजी; मु. धन्नो, मा.गु., पद्य, वि. १८७९, आदि: अरिगंजण अरिहंतजी वरधमांन; अंति: __कुसालचद० फलसी मंगलमालोजी, ढाल-६४. १२१४३३. पृथ्वीचंदसागरचंद चौढालिया, चंदनमलयागिरि ढाल व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ४, जैदे., (२६४१२.५, १६x४०). १.पे. नाम. पृथ्वीचंदसागरचंद चौढालिया, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पीरतवीचंद. ___ मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजीनवीर जीनेसरु तीरभवन; अंति: होरा वरत्या जे जेकार केतु, ढाल-४, गाथा-४२. २.पे. नाम. चंदनमलयागिरि ढाल, पृ. २आ-६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:चंदणमल. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूदीप सुहामणो भरतक्षेतर; अंति: सुखदाई रतनचंदजी गाई रे, ढाल-१५. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. जसरूप ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सुवीसन कुवीसन लोकह सुण; अंति: दीख पेरो नव नव गेणा, गाथा-७. ४. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अंति: परभु समरण भवपाल गायो, गाथा-५. १२१४३४. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१२.५, १३४३०-४२). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापस्थानक पहिलं कहि; अंति: (-), (पू.वि. सज्झाय-१८ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) १२१४३५. (#) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक का बीजक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०,प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिकावाला भाग खंडित है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१३, १३४३६). प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, वि. १८५३, आदि: पहिलै बोलें तीर्थंकर देव; अंति: शास्त्रमै कह्यो छे, प्रश्न-१५१. १२९४३६. (+) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८५, आश्विन शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ३५, ले.स्थल. देशणोक, प्र.वि. हुंडी:क्षेत्रसमासट०., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, ५४३५). For Private and Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १८७ लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपय पईट्ठि; अंति: कुशलरंगमय प्रसिद्ध पामो. लघक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ *, मा.ग., गद्य, आदि: वीर महावीर केहवो छे; अंति: रंगमयी प्रसिद्धि. १२१४३७. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५३, माघ कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २६७, प्रले. मु. उदेचंद (गुरु मु. रायचंद); गुपि. मु. रायचंद (गुरु मु. गुलाबरायजी); मु. गुलाबरायजी (गुरु मु. तुलसीहजी); मु. तुलसीहजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, ७४३४). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: प्रणम्यश्री महावीर; अंति: पुरिसवरगंधहत्थिणं, अध्ययन-१९, ग्रं. ५५००. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करिने श्री महाविर; अंति: भगवंत तेणे मुक्ति गया, ग्रं. ८५००. १२१४३८. (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८८५, वैशाख शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ८२, ले.स्थल. कुकरवाड, प्रले. पं. लालविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, १२४३३). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कलपवेल कवीयण तणी सरसति; अंति: जस० चोथो खंड हुयो परमाण, खंड-४ ढाल ४१, गाथा-१८२५. १२१४३९. आणंदश्रावक ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४१२, २०४४९). आणंदश्रावक ढाल, मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: तिणकालेने तिण समै भरत; अंति: ऋष जमलजीन्दकडं मोय ए, ढाल-५. १२१४४०. विजयकवरजी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पाली, प्रले. श्रावि. राजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:विजे., जैदे., (२७४१२, १७४३९). विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, म. रामचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८१०, आदि: आदिनाथ आदेश्वरु सकल विदार; अंति: रामचंद० मिथ्याद् कृत मोय, ढाल-४. १२१४४१ पारसनाथजीरो सिलोको, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:पारसनाथ०., जैदे., (२७४१२, १५४५४). पार्श्वजिन सलोको, जोरावरमल पंचोली, रा., पद्य, वि. १८५१, आदि: प्रणमुं प्रमारतमा अवीचल; अंति: जोरावर० अंतरजामी, गाथा-५३. १२१४४२. नेमिजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १९९२, आश्विन कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. नागोर, प्रले. श्राव. जेठमल; निदाता मु. कुनणाजी महाराज (गुरु मु. तुलछाजी महाराज), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नेमजीरो०., दे., (२६.५४१२, १६x४६). नेमिजिन चरित्र, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: नगर शोरीपुर राजीयो रे; अंति: जैमल कहे नेम जिणंदा, गाथा-५३. १२१४४३. नमीराय अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:नमीराय., जैदे., (२७४१२, १४४४०). उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन ९ नमिपवज्जा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि: चइऊण देवलोगाओ उवयन्न; अंति: जहा से नमी रासरिसि, गाथा-६२. १२१४४४. पंचप्रतिक्रमण विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.६, जैदे., (२७४१२, ११४३४). पंचप्रतिक्रमण विधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.ग., गद्य, आदि: आवसही इच्छाकारेण संदिसह; अंति: गरिहामि अप्पाण विसिरामि. १२१४४५. शिवपुर नगर वर्णन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १४४३९). शिवपुरनगर वर्णन पद, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: स्याम भोमस्यां वुची अलगी; अंति: रतनचंद० __ आगम वण सुणीजे जी, गाथा-११. १२१४४९ (+#) जिनमालिका काव्य व चौरासी आसातना स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२, १४४४०). १. पे. नाम. जिनमालिका काव्य, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. सुमतिरंग, मा.गु., पद्य, आदि: जगनायक जग मुगट मणि अगम अल; अंति: सुमतिरंग०छाया इण छाजै री, ढाल-७, गाथा-७६. २. पे. नाम. चौरासी आसाताना स्तवन, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. ८४ आशातना स्तवन, उपा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जिनपास जगत्र; अंति: वंदै जैन शासन ते वली, गाथा-१८. ३. पे. नाम. २४ जिन तीर्थंकर अंतर काल देहाय स्तवन, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-देहमान आयुस्थितिकथनादिगर्भित, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: पंचपरमिट्ठ मन शुद्ध; अंति: धरमसीमुनि इम भणै, ढाल-५, गाथा-२९. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-अल्पबहुत्वविचारगर्भित, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२३, आदि: विलहल वीर जिणंदना पद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखी है.) १२१४५१. विविध बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२७४११.५, १५४५०). १. पे. नाम. १० पच्चक्खाण फल, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: नोकारसीनै पचखाणै नारकीना; अंति: ७ भाग देवतानो आउखो बांधे. २. पे. नाम. जीव आयुमान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. विविध जीव आयुष्य विचार *, मा.गु., गद्य, आदि: १२० वर्ष मनुष्य हाथीनो; अंति: उंटादिकनो ४० वर्ष सिंघादि. ३. पे. नाम. तीर्थंकरदेव आगमनादि अवसरे चक्रवर्त्यादि द्वारा दिये गये दान वर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण. तीर्थंकरदेव आगमनादिप्रसंगे चक्रवर्ती प्रदत्त दान वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकरदेवनै आगमनै वधाम; अंति: रुपया आपै सुनइयारी जायगा. ४. पे. नाम. मुहूर्त श्वासोच्छसमान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मुहूर्त श्वासोश्वासमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: एक महुर्त स्वासोस्वासरी; अंति: एक वर्षरा ४०७४८४००. ५. पे. नाम.५ मिथ्यात्व नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.ग., गद्य, आदि: अभिग्रहीक जे दर्शन आदर्यो; अंति: अणाभो० एकैदियादिकनी परे. ६. पे. नाम. ५ सम्यक्त्व नाम, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: उपसम जे रागद्वेष उपसमावे; अंति: (-), (पू.वि. "पूर्वकोडि एहनो धणी रूले तो अर्द्धपुद्गल" पाठ तक १२१४५२. (+) रतीसुंदरी ढाल व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, १८४४३). १. पे. नाम. रतीसुंदरी ढाल, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:रतिसुंदरी, ऋतुसुंदरी. रतिसुंदरी चौपाई-शीलव्रत, मु. जवानमल, मा.गु., पद्य, वि. १९०३, आदि: अरिहंत सिद्ध साधन भणी; अंति: जवांनमल ए जोडकरी सुखकार, ढाल-७. २. पे. नाम. जयरथराजा ढाल, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जयरथराजा. जयरथराजा चौपाई-शीलव्रत, मु. जवानमल, म.,मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपारस समरूं सदा निज; अंति: पांमे सुख श्रीकार, ढाल-७, गाथा-६६. ३. पे. नाम. कर्मपच्चीसी, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. म. हर्ष ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: देवदानव तीर्थकर गणधर; अंति: ऋद्धिहर्ष० कर्म महाराज रे, गाथा-२६. ४. पे. नाम, अणगार सज्झाय, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: धरम थानक बेठ थकां राजा; अंति: संत सुखी अणगारो जी, गाथा-२७. ५. पे. नाम. खंधकमुनि चौढालिया, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: स्वारथी नगरी सुहांमणीजी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१० अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२१४५३. उत्तराध्वनसूत्र पटत्रिंसम सज्झाय, संपूर्ण वि. १९६३ श्रेष्ठ, पृ. १८, ले. स्थल राजनगर, प्रले. मु. मोतिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: उत्तराध्ये०, दे., (२७४१२, ११३२). सज्झाय-३६. उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणदेवी चित्त धरी; अंति: विजय वाचक० नवय निधान, १२१४५४. संबोध अक्षरबावनी व बावीस परिसहादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४, कुल पे. ७, जैदे., (२७X१२, १२X४७). १. पे. नाम संबोध पंचासीकाय, पृ. १आ-३अ संपूर्ण. अक्षरबावनी संबोध, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १७५८, आदि: ॐकार मझार पंच परम पद वसत; अति द्यांनत० जिन सुद्ध करेह, गाथा-५२. २. पे. नाम. मुक्तिरमणी खिचडी, पू. ३१-४२, संपूर्ण. 0 मुक्तिरमणी खीचडी, मु. सुमतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि तुम पीयदर्शन अहो आसदर्सन अति: सुमतिसागर० मूक्ति वरइ, गाथा - १७. ३. पे. नाम. विषापहार स्तोत्र, पृ. ४अ ६अ, संपूर्ण. आ. अचलकीर्ति, पुहिं., पद्य, वि. १७१५, आदि: विश्वनाथ विमल गुन ईश; अंति: अचलकिर्ति० जिनवर को नाम, गाथा - ४१. ४. पे नाम, चेतन चरित्र. पू. ६अ १६ आ, संपूर्ण. मु. , भावसिंघ, पुहि, पद्य, आदि प्रथम जपत जिनराय सकल काज, अति भोग के अन्त सिद्धपूर जाय, ढाल १४, १८९ गाथा - २५०. ५. पे. नाम. अक्षर बावनी, पृ. १६आ - २१अ, संपूर्ण. श्रुत बाराखडी, मु. सुरत, पुहिं, पद्य, आदि प्रथम नमो अरिहंत की नमो अंतिः सुरत० हइ छंद कहइ छतिस गाथा ४२. ६. पे. नाम. मोक्षमार्ग पयडी, पृ. २१अ - २२आ, संपूर्ण. आव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि एक समे रुचिवंतनो अंति: वनारसीदास० गम्य निरधार, गाथा - २५. ७. पे. नाम. बावीस परिसह, पृ. २२आ - २४आ, संपूर्ण. - " २२ परिषह सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि अन्न सन्न उनोदरतप प्रोषध अंति के दरसनसु अघ भागे, गाथा २२. १२१४५५. (+) मुनिपति चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७९, माघ शुक्ल, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४३, ले. स्थल. पेसुआ, प्रले. पं. कस्तुरविजय (गुरु आ. विजयराजेंद्रसूरि, कमलकलशागच्छ-पोशाल गच्छ); गुपि. आ. विजयराजेंद्र (कमलकलशागच्छ-पोशाल गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुंथुनाथ प्रसादात, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे., (२७४१२. For Private and Personal Use Only ७४४१). मुनिपति चरित्र, आ. हरिभद्रसूरि प्रा. पद्य वि. ११७२, आदि नमिऊण महावीरं चउव्विहाइ, अंति: सुगम सुगम रम्मं हरिभदसूरिहि गाथा- ६४६, ग्रं. ६४४. मुनिपति चरित्र बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (१) प्रणम्य श्रीजिनं, (२) नमिऊण कहितां नमस्कार; अंति: चरित्र कठि हरिभद्र नोमे. १२१४५६. (+) चउतीस दंडक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र. वि. संशोधित. कुल ग्रं. १२००, जैदे., (२७X१२, २२x३१). २४ दंडक ३५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि प्रणम्यश्री जिनाधीत्व अति: आज्ञा देखे उद्यम करछू. १२१४५७ (४) उपदेशमाला की टीका पीठीका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, प्र. वि. हुंडी; उपदेशमाला, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२६.५४१२.५, १५X४५). , उपदेशमाला-वृत्ति, ग. रामविजय, सं., गद्य वि. १७८१, आदि श्रेयस्करे कामितदान, अंति (-), ग्रं. ७६०० प्रतिपूर्ण. १२१४५८ (०) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन भरतनृप संघयात्रा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२६.५४१२, १३४३९) " Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १९० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुंजयतीर्थ स्तवन भरतनृप संघयात्रा, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण से ३१ अपूर्ण तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२१४६०. (+) पगामसज्झायसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५-३ (१ से ३) २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५X१२, ४४४२). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति (-) (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., छहिं जीवनिकाहिं' से है व 'एगुणवीसाएनायज्झयणेहिं' तक लिखा है.) पगामसज्झायसूत्रबालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-), पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १२१४६१. (+) उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन ३६, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. हुंडी : उत्तराध्य०., संशोधित., जैदे., (२७X१२, १५५३९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति भवसिद्धय समए तिबेम्मि, ग्रं. २०००, प्रतिपूर्ण १२१४६४. (+) जंबूद्वीपसंग्रहणी, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (१७१२.५, १३४४४) יי : लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण जिणसव्वन्नं जय; अति रइया हरीभदसूरिहि गाथा २८. १२१४६५. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२७४१२, १०x३५). सीमंधरजिन स्तवन, पंन्या. केसरविजय, मा.गु., पद्य, आदि श्रीमंधर जिनराजने नित; अंति: केशर विजय ० चडतें परिणामें, गाथा- ७. १२१४६६. (+) सूत्रकृतांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १७२८ आश्विन शुक्ल, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. ४१, प्र. मु. शिवसी ऋषि (गुरु मु. लाधाजी ऋषि); गुपि. मु. लाधाजी ऋषि; अन्य. श्राव. लालजी; श्राव. नरसिंह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी : सूयग०ट., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे., (२७४१२, ७X४७). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज, अंतिः जमहं भयं तारो तिबेमि, अध्याय- २३, "" ग्रं. २१००. सूत्रकृतांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (१) प्रणम्य शासनाधीशं (२) आ०२ बु० छकायनो स्वरुप अंतिः तिहना कह्या वचन हउ कहउ छउ. १२१४६८. (+) अंतरीक पार्श्वस्तुति, संपूर्ण, वि. १८५३, आषाढ़ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. शांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५४१२, १६४४५). पार्श्वजिन छंद - अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., पद्य, आदि सारदमात मया करी आपो; अंतिः भावविजय० देव जय जयकरण, गाथा-६३. १२१४७०. (+) रघुपति गुरुगुण सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, ले स्थल, पाली, प्रले. मु. दयाचंद (गुरु मु. रघुपत), 3 प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे. (२७११.५, १३५३). "" रघुपति गुरुगुण सज्झाय, मु. दयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पुजमाल गुणभारी हैं; अंति दयाचंद० नरनारी सुखपाया है, गाथा - १६. १२१४७१. श्रीपास रास, अपूर्ण, वि. १९२५, फाल्गुन शुक्ल, ३, रविवार, मध्यम, पृ. ७९-७४(१ से ६८, ७२ से ७५,७७ से ७८)=५, ले. स्थल सिगंज, प्रले. पं. दोलतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में संवत १८७४ श्रावण सुद १५ सो सिवगंजमे उदेही खाधो सो पाछो दुरसकीनो" ऐसा उल्लिखित है. वे. (२७४१२, १३४३७). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि (-); अंति: ज्ञान विशाला जी, खंड-४ डाल ४१, गाथा- १८२५ (पू.वि. खंड-४ डाल ७ गाथा ३५ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२१४७२. बालबत्रीसी व सिघवादर कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. मु. सोभागचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी बालवत्री०. जैदे. (२६.५४१२, १५४३९). For Private and Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १. पे. नाम. बालबत्रीसी, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहि., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर प्रमेसर कुं ध्याई; अंति: सव सुख कहें अरिहंत देव रे, गाथा-३२. २. पे. नाम. सिघवादर कथा, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कपटविषयक, रा., पद्य, आदि: एक दिन वनम्ये वाघने गाढा; अंति: लक्षण गयौ कहें कवीसर सोय, गाथा-१८. १२१४७३ (+) २४ बोलै गुण पचास भांगा, संपूर्ण, वि. १९२८, वैशाख शुक्ल, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पालि, प्रले. सा. छोगा (गुरु सा. पनाजी); गुपि. सा. पनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:४९ भांगानी सेरी., संशोधित., दे., (२६४११.५, १५४३९). प्रत्याख्यान ४९ भांगा, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: आंक एक इग्याररो भांगा; अंति: चारित्र यथाख्यात चारित्र. १२१४७५ (#) नवकार प्रभाति स्तवन व वर्णमाला, संपूर्ण, वि. १८८३, आषाढ़ कृष्ण, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्रावि. जोईतिबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, ९४३०). १. पे. नाम. नवकार प्रभाति स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: समर रे जीव नवकार नित; अंति: प्रीतविंमल० आठे विखेरी, गाथा-६. २. पे. नाम. वर्णमाला, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमः सिद्धं अ आ इ ई; अंति: गी गु गू गे गै गौ गं गः. १२१४७६. (#) आदिजिन लावणी व शांतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १०४३१). १. पे. नाम. आदिजिन लावणी, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आदिजिन लावणी-केसरियाजी, मु. लालदास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लालदास०समरे ज्यां पास खडा, ___ गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पं. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांतिजीने स्वर साहिबो रे; अंति: भाण कहे नीतीमेव, गाथा-९. १२१४७७. विनय सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३७, माघ कृष्ण, ८, रविवार, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१२, १०४३१). विनय सज्झाय, आ. विमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विनय करो चेला गुरु; अंति: थाइं गुरुने सरीखो रे, गाथा-५, (वि. अंत में अज्ञात कृति की मात्र एक अपूर्ण गाथा लिखी हुई है.) १२१४७८. (#) चतःशरण प्रकीर्णक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ७X२३). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६२. चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: चतुःशरणविषमपदविवरणं; अंति: सुखानि तेषामित्यर्थः... १२१४८० (#) श्रीपाल रास सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.५६-४९(१ से ४८,५१)=७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ७X४२). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., खंड-४ ढाल-११ दोहा-१ अपूर्ण से कलश गाथा-९ अपूर्ण तक है व ढाल-११ की गाथा-१५ अपूर्ण से ३० अपूर्ण तक नहीं है.) श्रीपाल रास-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं... १२१४८१. स्तवन, स्तुति, सज्झाय व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१५, चैत्र कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ११, प्रले. पं. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, १४४३९). For Private and Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आ. धर्मसूरि, सं., पद्य, आदि: नित्ये श्रीभुवनाधिवा; अंति: श्रीधर्मसूरिभिः, श्लोक-१५. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: न कोपो न लोभो न मानो न; अंति: बिंबानि तानि वंदे निरंतरं, गाथा-८. ३. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सुवर्णवर्णं गजराजगामिनं; अंति: पांतु युष्मान् जिनेश्वराः, श्लोक-५. ४. पे. नाम. महाभद्रजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमान अढारमा रे; अंति: कांई मिलवानी मन खांत, गाथा-८. ५. पे. नाम. हितशिक्षा सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, मा.गु., पद्य, आदि: मकर हो जीव परतात; अंति: भावस्यूं एह हित सीख माने, गाथा-३. ६.पे. नाम. २४ जिन स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण. __ पुहि., पद्य, आदि: प्रणमुं जिनदेव सदा चरण; अंति: यादुराय चरण न के चेरे, गाथा-४. ७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: रे घडीया रे वाव रे क्या; अंति: आनंदघन० विरला कोइ पावै, पद-३. ८. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: कहा रे अग्यांनी जीवकुं; अंति: कहत हैं वाको सहज नजावै, गाथा-३. ९. पे. नाम. सद्गुरु पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: हो अमली जिननांमदा मोहि; अंति: ते जाणों सही संसार धरावै, गाथा-३. १०. पे. नाम. आदिजिन रेखता, पृ. ३आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: मुझे हे चाऊ दरसन का देखा; अंति: नीकारोगे तो क्या होगा, गाथा-५. ११. पे. नाम, औपदेशिक गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, पुहि., पद्य, आदि: सब स्वारथ के मित्त हे; अंति: जिनराज हैं जिन आप संभारा, गाथा-३. +) थूलभद्र महामुनि नवरस, संपूर्ण, वि. १९३५, ज्येष्ठ कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ५, प्रले. पं. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, ११४२७). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: ___ मनोरथ वेगे फल्या रे, ढाल-९, गाथा-७४. १२१४८३. (+) राइप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १०४२८). पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय राइप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधि, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: प्रथम सामायक लेणी इच्छामि; अंति: संसारदावारा ३ श्लोक कहै. १२१४८४. माणीभद्रजीरो छंद, संपूर्ण, वि. १९२७, पौष कृष्ण, १, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. पं. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में एक दुहा लिखा है., दे., (२५४१२.५, ११४३६). माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुरपति नित सेवित सुभखाणी; अंति: राजरतन० जय जय करण, गाथा-१४. १२१४८५. तेतीस का थोकडा, संपूर्ण, वि. १८८६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. अकवरावाद, प्रले. मु. आसकरण ऋषि; पठ. श्राव. देवजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१४) जलाद्रक्षेत् तैलाद्रक्षेत्, (१४८४) भग्नपृष्टि ग्रीवा, (१४८५) मंगलं लेखाकानं च, जैदे., (२५४११.५, १२४३१). ३३ बोल थोकडो, मा.गु., गद्य, आदि: १ असंजम २ बंधण १ रागबंधण; अंति: वरावर करे तो असातना लागे. १२१४८६. नंदिषणमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी;नंदीषणरीढा., दे., (२६४१२,१६x४३). For Private and Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १९३ नंदिषेणमनि सज्झाय, म. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सेणकरायनो दीकरो नंदीषेण; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ४ की गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) १२१४८७. पर्युषणपर्व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३०, भाद्रपद कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२, ११४३२). पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: पर्वपजुसण आविया रे लाल; अंति: मतिहंस कहे करजोड रे, गाथा-११. १२१४८८. (#) औपदेशिक हरियाली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३९, पौष शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. विक्रमपुरनगर, प्रले. पं. मेघविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री गोडीजी प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, ७४२५). औपदेशिक हरियाली, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहेजो पंडित ते कुण; अंति: जंपे ने सुख लहसैं, गाथा-१४. औपदेशिक हरियाली-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: हवें पंडित लोकनि जाणवा; अंति: स्वर्गनो सुखने पांमस्ये. १२१४८९ (+) प्रास्ताविक श्लोक, सवैया व पदादि सग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १०४२१). १. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: स्वर्णस्थाले क्षिपति सरजः; अंति: मुधामय॑जन्म प्रमत्तः, श्लोक-१. २. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. हेमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. जै.क. बनारसीदास, मा.गु., पद्य, आदि: ज्यो मतिहीण विवेक विना नर; अंति: वनारसि० अजान अकारथ खोवे, गाथा-१. ३. पे. नाम. औवदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: अहो जंबुक निर्बुद्धि; अंति: न पश्यंति परदोषो न पश्यति, श्लोक-२. ४. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: ए तो भव युहि दीनो खोय; अंति: भवीजन भार वहे गज होये, गाथा-३. ५. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: रे मन चंता ज न करो; अंति: ध बनाय के पाछे किनो बाल, गाथा-१. १२१४९१ (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४०, ले.स्थल. सरदार शहर, प्र.वि. हुंडी:दशवेका०., संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, दे., (२५.५४११.५, ७-९४४८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: भिक्खू अपुगमगए त्तिबेमि, (वि. १९७४, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, प्रले. श्राव. डुंगरमल मथेण, प्र.ले.पु. सामान्य) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धम्मो० धर्मेश्री जिन; अंति: आयवो नहीग० एहवीगतग० पामय, (वि. १९७५, आश्विन कृष्ण, १, प्रले. मु. रेवतमल, प्र.ले.पु. सामान्य) १२१४९२. (#) परदेशी नृप रास, अपूर्ण, वि. १७८७, भाद्रपद कृष्ण, २, मध्यम, पृ. २८-१८(१ से १२,२० से २५)=१०, प्रले. पं. गुलाबविजय (गुरु मु. रत्नविजय); गुपि. मु. रत्नविजय (गुरु मु. दयाविजय); मु. दयाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:प्रदेशीरास., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १५४३३-३६). प्रदेशीराजा रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: (-); अंति: न्यानसागर० मंगल मालो रे, ढाल-३३, ग्रं. ११००, (पू.वि. ढाल-१३ गाथा-१२ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२१४९३. (+) समाधिमरण क्रिया, संपूर्ण, वि. १९३४, भाद्रपद कृष्ण, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्रले. ताराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:समाधि०, मसा०ण, समाधिमरण छे., संशोधित., दे., (२५.५४१२, ९४३३). अंतसमाधि विचार, पुहिं., गद्य, आदि: अपने इष्ट देव कुं नमस्कार; अंति: सुखकी महिमा वचन अगोचर है. १२१४९४. (#) मंगल पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ९४३०). मंगल पद, म. जिनदास, पहिं., पद्य, आदि: अरिहंत नमो नमो सिद्ध; अंति: प्रभु मज सरणै की लाज. For Private and Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १९४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२१४९५. (+) वसूधारा पवन् विधि, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल खेरवा, प्रले. मु. दानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २६११.५, ११x४०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिहं; अंति: शिखाई वषट् स्वाहा. १२१४९६. (+) सम्यक्त्वकौमुदी, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २८-४ ( ४ से ५ २४, २६) २४, पू. वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं = पू.वि. हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६.५११.५, १६४५१). " , सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., प+ग. वि. १४५७, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य अंति: (-). (पू. वि. कौशांबीपुरे , वृषभदासश्रेष्ठी प्रसंग अपूर्ण तक है, बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२१४९८ (०) नेमिजिन सवैया, पार्श्वजिन सवैधा व विविध दोहादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १६ ९(१ से ९) ७, कुल पे. ६. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जै.. (२६.५X११.५, १६३७). १. पे. नाम. विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, पृ. १०अ १४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: नीच कहा जन नेह सगा को, (पू.वि. दोहा-५ से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन सवैया, पृ. १४अ - १४आ, संपूर्ण. क. मकरंद, पुहिं., पद्य, आदि: मालव तो मधुरी कुरु कुंदन, अंति: मकरंद० मे न धीकुं बगसी है, सवैया- १. ३. पे. नाम. नेमिजिन सवैया, पृ. १४आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जादववंस विराजत सुंदर साम; अंति: नेम को नाम सदा मीसरी है, सवैया- १. ४. पे नाम. पार्श्वजिन सवैया, पृ. १४आ, संपूर्ण. मु. , मतिविजय, पुहिं., पद्य, आदि: वसवाल की वीच वीराजत है; अंति: मति०होई सदा नवनीद्ध अपारी, सवैया-१. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन सवैया, पृ. १४आ, संपूर्ण. मु. मतिविजय, पुहिं., पद्य, आदि श्री जिन पास विराजत है; अंति मतिवीजय प्रभु के गुण गावे, सवैया- १. ६. पे. नाम सवैया संग्रह, पू. १४आ-१६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, ई., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: श्लोकार्धेन प्रवक्ष्यामि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक - ९१ अपूर्ण तक है., वि. संस्कृत प्राकृत जैन श्लोक गाथा संग्रह विशेष ) पुहिं., १२१५००. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १९-६ (१ से ५७) १३, प्र. वि. उल्लिखित पत्रांक- ७ वस्तुतः ६ ज्ञेय है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५X१२, ५X४४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-३ गाथा-९ अपूर्ण से अध्ययन-४ सूत्र - १ अपूर्ण तक, सूत्र-२ महाव्रतोच्चारण प्रारंभिक भाग अपूर्ण से है व अध्ययन ४ तक लिखा है. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-४ सूत्र- २ अपूर्ण से है व संयम १७ भेद तप१२ भेद टबार्थ तक लिखा है.) १२१५०२. (A) नवतत्त्व प्रकरण सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८७७, फाल्गुन, रविवार, मध्यम, पू. १३-१ ( ५ ) = १२, ले. स्थल, सोजत, प्रले. मु. उमेदविजय (गुरु पं. उत्तमविजय); गुपि. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६x१२, ३x२२). יי नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-४९, (पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., गाथा- १६ अपूर्ण से २० अपूर्ण तक नहीं है.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि दश प्राण धारई ते अंति (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा २० तक का टबार्थ लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२१५०४ (+#) उपदेशमाला प्रकरण सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १८३०-१८३१, मध्यम, पृ. ८०-५९(१ से ५९)=२१, ले.स्थल. मक्सूदाबाद महिमापुर, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२,१२४३९). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५३६, (वि. १८३०, श्रावण कृष्ण, ४, गुरुवार, पू.वि. गाथा-३३४ से है., प्रले. पं. सुमतिरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: वचन थकी नीकली वांणी, (वि. १८३१, आश्विन शुक्ल, २, प्रले. पं. देवचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य) उपदेशमाला-कथा संग्रह, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: जीवो नरके व्रजति, कथा-६६, (पू.वि. हरिकेशी कथा अपूर्ण से १२१५०५ (+) शंबप्रद्युम्न प्रबंध, संपूर्ण, वि. १८५०, माघ शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. २२, ले.स्थल. मौजगढ, प्रले. मु. चैनरूप; गुभा.पं. प्रीतसुंदर (गुरु पं. किशोरचंद); गुपि.पं. किशोरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:संबप्र०चो०., संशोधित. कुल ग्रं. ८००, जैदे., (२६४११.५, १५४३६). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलं; अंति: खंड-२ ढाल २१, __गाथा-५३५, ग्रं. ८००. १२१५०७. (+#) जीवविचार प्रकरण सह अर्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-९(१ से ९)=३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १०४२८). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदिः (-); अंति: , (पू.वि. गाथा-३७ अपूर्ण से ४९ __ अपूर्ण तक है.) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२१५०८. (+) देशावगासिक पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ९४३८). देशावगासिक पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, आदि: अहण्णं भंते तुम्हाणं; अंति: (१)अभिग्गहो० वोसिरामि, (२)उपरांत व्यापारने वोसरावे. १२१५०९ (#) पद्मावती आराधना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १०४२७). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पदमावती जीव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) १२१५१० (+#) आवश्यकसूत्र नियुक्ति की शिष्यहिता टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १७०-१६१(१ से ७०,७६ से १०९,११३ से १६९)=९, प्र.वि. प्रत में पत्रांक १ से ८ क्रमशः है, नं.९ अंकित नहीं है. प्रत में दत्त पत्रांक चोर पत्रांक, वास्तविक या प्रत्येक विषय के भिन्न-भिन्न होना संभव है अतः विषयवस्तु की दूरी को ध्यान में रखते हुए अनुमानित दिये गए हैं. पत्र मिल पेपर जैसे लगते हैं, लेकिन अवस्था व लिखावट १७वीं जैसी दिखती है. द्विपाठ शैली में एक तरफ खाली छोड दी गई है., द्विपाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२, २३४३४). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., उपलब्ध पत्रों में पगाम सज्झाय की वृत्ति प्राप्त होती है. उसमें पगामसज्झायगत इरियावही टीका से ४ ध्यान की टीका अपूर्ण तक, पंच समिति में पारिष्ठापनिका समिती अन्तर्गत एकेन्द्रिय मध्ये पृथ्वीकायादि स्वसमुत्थ-परसमुत्थ ग्रहण गाथा-४ की व्याख्या अपूर्ण से मृतक पारिष्ठापनिका द्वार गाथा १२७३-१२७४ की व्याख्या अपूर्ण तक है व 'बत्तीसाए जोगसंगहेहिं' अन्तर्गत कथा में शकटालमंत्री द्वारा मिथ्यात्वी ऐसे वररूचि की प्रशंसा न करने के प्रसंग से स्थूलिभद्र को वंदनार्थ बहन साध्वीओं के आगमन प्रसंग अपूर्ण तक लिखा है.) १२१५११ (+#) लीलावतीसुमतिविलास रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १७४४०). For Private and Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: परम पुरुष प्रभु पास; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१३ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) १२१५१२ (+) भावनावेली, संपूर्ण, श. १६८४, श्रावण कृष्ण, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. नासिक, प्रले. य. रविसुंदर; अन्य. मु. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ११४४१). १२ भावना सज्झाय-बृहत्, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पास जिणेसर पायनमी सहगुरु; अंति: जससोम०० भणी जेसलमेर मझारि, ढाल-१३, गाथा-१२८, ग्रं. २००. १२१५१५ (+#) नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १४४३३). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उप्पन्न सन्नाण महोमयाणं; अंति: फल प्रमुख विधि दीजै, पूजा-९. १२१५१६ (+) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५६, चैत्र कृष्ण, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. रायपुर, प्रले. मु. उत्तमविजय (गुरु मु. नेमिविजय); गुपि. मु. नेमिविजय (गुरु मु. उदयविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:स्वलोक पत्र., संशोधित., जैदे., (२६४१२, ४४२८). श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: देवपुजा दयादानं; अंति: निधि पोत सर्व संपत्त हेतु, श्लोक-१५, (वि. प्रतिलेखक ने मात्र प्रथम श्लोक का टबार्थ लिखा है.) १२१५१७. संथारा पोरसीरी विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. मेडतानगर, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १६x४२). पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.ग., गद्य, आदि: जोग भंगीने तथा विषय भंगी; अंति: इय सम्मत्तंमए गहियं. १२१५१९ (4) नेमराजिमती गीत, स्तवन व पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १७-४(१ से ४)=१३, कुल पे. ३८, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४२४-४२). १.पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, ग. जीतसागर, पहिं., पद्य, आदि: तोरण आया हे सखी कहै; अंति: जितसागर० प्रीत करैति कैजी, गाथा-१५. २. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, म. कल्याण, पहिं., पद्य, आदि: लग्यो मेरो चितडो गोडीचा; अंति: कल्याण पुरीजीको वनडो, गाथा-३. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहि., पद्य, आदि: चालो री सखी जिन दरसण करी; अंति: भूधर० भयो सुख कारीयां, गाथा-३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. रुप, पुहि., पद्य, आदि: डगरा वतायदे पाहाडवा; अंति: रूपचंद० पकड मोहि तार डगरा, गाथा-५. ५. पे. नाम, साधारणजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: मैरो निरंजन पार कै सैमलै; अंति: आनंदघन मेरो फेरो इ टलै, गाथा-३. ६.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ.५आ, संपूर्ण. मु. सिवाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जिनजी सुं लागो मेरो नेह; अंति: सिवाचंद० लगन नही त्रुटेरी, गाथा-४. ७. पे. नाम. महावीरजिन जन्मबधाइ पद, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. ___ महावीरजिन जन्मबधाई पद, मु. रतन, पुहिं., पद्य, आदि: जग नाइक कें मेरै आज आणंद; अंति: रतनसेवक० परमाणंद सुख पइया, गाथा-४. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिन कै पाय लाग रे; अंति: निकंदा आनंदघन अरदास रे, गाथा-३. ९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ मु. खुशालराय, पुहि., पद्य, आदि: मेरा जीवडा लग्या परमेसर; अंति: खुस्याल०भव पातिक भगा, गाथा-४. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: तेरी अंखीयन नै जुग तार्या; अंति: आनंदघन० संपति सुख सारा, गाथा-६. ११. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. म. सिवाचंद, पहिं., पद्य, आदि: प्रभुजी सै लागो मेरो नेह; अंति: सिवानंद० लगन नही छटेरी, गाथा-४. १२. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. राजसिंह, पुहिं., पद्य, आदि: लगीय लगन कहो केसे छूटै; अंति: राजसिंघ० नाभ दुलारै सै, गाथा-४. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. सुखसागर, पुहि., पद्य, आदि: तुं मेरा मन मै प्रभु; अंति: सुखसागर० तीन भुवन मैं, गाथा-५. १४. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. ६आ, संपूर्ण. म. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: नेम मिले तो वातां कीजीए; अंति: रूपचंद कुं शिवसुख दीजीये, गाथा-५. १५. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु.रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: घर आवोनी नेम वरराजीया रे; अंति: मनोरथ सवि फल्या रे, गाथा-८. १६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. सुबुधीविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: मन मुरत मोहनगारी रे; अंति: सुबधीविजै० तसु पाया गोडी, गाथा-८. १७. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. ७अ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, पुहि., पद्य, आदि: मधुवन मै जाय मची होरी; अंति: सुधक्षमा कहै करजोडी, गाथा-३. १८. पे. नाम. आध्यात्मिक होलीपद, पृ. ७अ, संपूर्ण. औपदेशिक होली पद, पहिं., पद्य, आदि: होरी खेलोरे भविक; अंति: ज्यं तेरा पाप सकल थिरके, गाथा-४. १९. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मु. चंद, पुहिं., पद्य, आदि: जादव मन मेरो हर लीयो; अंति: चंद कहै मन हरषीयो रे, गाथा-५. २०. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ७आ, संपूर्ण. म. भूपत, पुहिं., पद्य, आदि: नेम निरंजन ध्यावो रे; अंति: भूप० सब जुगको रस लीनो रे, गाथा-३. २१. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नित ध्यावो ऋषभ; अंति: गावो नित जिनवर को, गाथा-५. २२. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: मत छोडो मानु युही रे; अंति: पधारौ पेहली राजुल नारी रे, गाथा-६. २३. पे. नाम. धर्मजिन होरी, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: मधुवन मे जाय मची; अंति: खेलत पायो दरसण अनुभव री, पद-७. २४. पे. नाम. सम्यक्त्व सज्झाय, पृ. ८अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: समकित वीना जीव जगत भटक्यो; अंति: सुदो सीवपुर कु सटक्यो, गाथा-१०. २५. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. ८अ, संपूर्ण. मु. क्षमाविजय, पुहि., पद्य, आदि: एक सुणज्यो रे नाथ अरज; अंति: क्षमा० वीनती ऐह अलवैसर की, गाथा-५. २६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. मु. उदयसागर, पुहिं., पद्य, आदि: अब हम कू ग्यांन दीयो जिन; अंति: उदय० रीध दीयो मुझ कू, पद-७. २७. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ८आ, संपूर्ण. मु. चतुरकुशल, पुहि., पद्य, आदि: विसरे मत नाम प्रभुजी को; अंति: चतुरकुसल रंग पतंग फीकौ, गाथा-३. २८. पे. नाम. साधारणजिन होरी, पृ.८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: दरसण विन जीव संसार; अंतिः क्षमाकल्याण० पाप शम्यो, गाथा-८. २९. पे. नाम. गिरनारशत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारो सोरठ देश देखाओ; अंति: ज्ञानविमल सिर धरीया, गाथा-८. ३०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण. __ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारो पारसनाथ; अंति: उदयरतन० अवै बहु धसमसीया, गाथा-८. ३१. पे. नाम. दादाजीरो स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन, उपा. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनकुसलसूरी सरू रे; अंति: ग्यानसा० लील विलास रे, गाथा-१२. ३२. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. ९आ, संपूर्ण. जिनचंद्रसूरि गुरुगुण गहंली, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: गरू आगल गुंहली कीजै नरभव; अंति: कविराज कहै वरदाई, गाथा-७. ३३. पे. नाम. जिनदत्तसूरि स्तवन, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सदगुरुजी थे सांभलौ श; अंति: लाभउदै सुख सिद्ध हो, गाथा-११. ३४. पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. १०अ, संपूर्ण.. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दादोजी परतिख देवता दादोजी; अंति: सारज्यो सगला काज, गाथा-५. ३५. पे. नाम. दादाजी स्तवन, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि पद, मु. जिनराज, पुहि., पद्य, आदि: कुशल गुरु अब मोहि; अंति: अपनौ करि जाणीजै, गाथा-३. ३६. पे. नाम. सेजय रास, पृ. १०आ-१४अ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ रास, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी आणी; अंति: समयसुंदर० जात्रा करूं ए, ढाल-६, गाथा-११२. ३७. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १४अ-१७अ, संपूर्ण. उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरण कमल कमला; अंति: विनयवंत० कल्याण करो, गाथा-५१. ३८. पे. नाम. सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, पृ. १७अ-१७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. हर्षशील, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) १२१५२०. विरस्तुतिनाम सज्झाय व महावीरजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:वीरथुइ., जैदे., (२५.५४१२, १३४३५). १. पे. नाम. विरस्तुतिनाम सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सणं समणा; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तति, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा..मा.ग..सं.. पद्य, आदि: पंचमहव्वयसव्वयमलं: अंति: (-), (प.वि. गाथा-१२ अपर्ण तक है.) १२१५२१ (+) वीरथुईनाम अध्ययन व महावीरजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:वीरथुइ., संशोधित., जैदे., (२५४१२, १३४३३). १. पे. नाम. वीरथुई नाम अध्ययन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सणं समणा; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) NE For Private and Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२१५२२. (4) पंचप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १५४४४). पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताण णमो सिद्धाणं; अंति: (-), (पू.वि. वंदित्तुसूत्र गाथा-३७ अपूर्ण तक है.) १२१५२५. (#) आलोयणा विधि व स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ५, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, २०४४०-४४). १.पे. नाम. आलोवणा विधि, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण, वि. १९७४, भाद्रपद शुक्ल, १३, अन्य. मु. नंदकवरजी महाराज, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:आलोवणा. आलोयणा विधि, मा.ग., गद्य, आदि: अतीत काल अठार पाप; अंति: साध श्रावक आराधक होय. २. पे. नाम, सिद्धाष्टक, पृ. ५आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अखंड चिदानंद देवा; अंति: नमस्ते नमस्ते अमेयं, श्लोक-८. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तोत्र, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. गुणभद्र, सं., पद्य, आदि: नाना विचित्रं बहुदुख; अंति: बंधमध्ये इह जीवबंधम्, श्लोक-८. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ छंद, पृ. ५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: क्षितिमंडलमुकुटं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण तक है.) १२१५२६. (+) नवतत्त्व प्रकरण व जंतुनाम आयुष्य विचार, संपूर्ण, वि. १८६४, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, ले.स्थल. आसाढाग्राम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ४४३४). १.पे. नाम, नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नवतत्त्व. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५२. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व १ अजीवतत्व २; अंति: विषइ० अणंता थाकै छइ. २.पे. नाम. जंतुनाम आयुष्य विचार सह बालावबोध, पृ. ९आ, संपूर्ण. आयुष्यविचार गाथा, अप., पद्य, आदि: मणुआण वीसुत्तरसयं; अंति: अइर आऊ जिणे दिठं, गाथा-५, (वि. आयु गाथा ___ दिगंबर मतानुसार दी है.) आयुष्य विचार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: मनुष्यवर्ष १२० गजवर्ष १००; अंति: काकीडो वर्ष १किंसारी मास. १२१५२७. (+) १४ गुणस्थानके ८ कर्म की १४८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. हुंडी:प्रकती०. धु.व.गु., संशोधित., दे., (२६.५४१३, २०७३२-४१). १४ गुणस्थानके ८ कर्म की १४८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी ५ दरसणावरणी ९; अंति: दर्शन सप्त कविना १२. १२१५२८. बार भावना, महावीरजिन वाणी व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:बारेभावना., दे., (२६.५४१३.५, २०४२६-३२). १.पे. नाम, बार भावना, पृ.१आ-९अ, संपूर्ण. १२ भावना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली अनित्य भावना किण; अंति: भावणी आवे तो तुई भाव. २.पे. नाम, महावीरजिन वाणी, पृ. ९अ, संपूर्ण. मु. कालीदास, मा.गु., पद्य, आदि: जिनराजनी वाणी छे गुणखानी; अंति: कालीदास० वारंवारी सुनिये, गाथा-१५. ३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. म. सूर्य, पुहिं., पद्य, आदि: नित वंद नाभि के नंदा जग; अंति: सर्य० विघन सभी छलछंदा हो, गाथा-४. ४. पे. नाम. विजयकुंवरविजयाकुंवरी सज्झाय, पृ. ९आ, संपूर्ण. विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीविजयकंवर और विजया; अंति: शुद्ध पालके शील आतमा तारी, गाथा-५. १ अजीप इक्कणिक १. आ. For Private and Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२१५२९ भक्तामर स्तोत्र व शनिश्चर छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १२४३१). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-७ तक लिखा है.) २.पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. १आ, अपर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. खेतल, मा.गु., पद्य, आदि: वाहिण महिष वडाल्ला चला; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) १२१५३०, थोकडा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, दे., (२७७१३, १६-२१४५९). भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: बंध पेलारी परे जाणवा, (पू.वि. बंधशतक संबंधी बोल-९ अपूर्ण पाठ "अणंतरो पजता कीण न कहीजे" से है.) १२१५३१. अरणकमुनि व ढंढणमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२.५, १४४३६). १. पे. नाम, अरणकमुनि सीज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. अरणिकमनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवांछित फल सीधो जी, गाथा-८. २. पे. नाम. ढंढणमुनि सीज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढण ऋषिने वंदना हुँ; अंति: कह जिनहरख सुजाण रे, गाथा-९. १२१५३२. शीलवती रास, संपूर्ण, वि. १८९४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १०१, ले.स्थल. अंजारनगर, प्रले. मु. अभयचंद; पठ. श्राव. वृद्धरामजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सिलवति., जैदे., (२६४११, १२४३४). शीलवती रास, म. नेमिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५०, आदि: ॐकार अक्षर अधिक जपतां; अंति: नेमविजय० पद पाया हे, खंड-६ ढाल ८४, गाथा-२०६१. १२१५३३. (+) शांतिजिन रास, संपूर्ण, वि. १८१९, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १७७+१(८३)=१७८, प्र.वि. हंडी:शंतनाथ., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १७४३४). शांतिजिन रास, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८५, आदि: सकल श्रेय वरदायिनी मुनिवर; अंति: रामविजय० आणंद अधिक उपाया, खंड-६, गाथा-६९५१, (वि. अंत में रासगत प्रसंगसूचि है.) १२१५३४. अंतरीक पार्श्वनाथजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. प्रधानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १३४३३). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन द्यो सरसति; अंति: __ लावण्यसमे० हुं वांछं सदा, गाथा-५१. १२१५३५. गौतमपृच्छा २६ बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४१२, १३४३८). गौतमपृच्छा २६ बोल, रा., गद्य, आदि: पुज्य भगवान समुद्र मै तो; अंति: कीधी तिण पाप रे उदेसुं. १२१५३६. (+#) पद्मावतीसहस्रनाम स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:खंडित है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १७४४३). पद्मावतीसहस्रनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. लीलावतीशत श्लोक-९ अपूर्ण से फलश्रुतिश्लोक-१२ अपूर्ण तक है.) १२१५३८. (+) सुभद्रा ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, गृही. सा. रंभा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सुभद्रा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १६x४६). सुभद्रासती चौढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: सिवदायक लायक सदा कंचनवरण; अंति: मुल मर्म धर्मनो ए, ढाल-५. १२१५४०, अतीतजिनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४१२, १५४३३). - स्तवनचौवीसी-अतीत, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नामे गाजे परम आल्हाद; अंति: (-), (पू.वि. स्तवन-२ की गाथा-२ अपूर्ण तक है.) १२१५४१. नवपद सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:नवपदस०., दे., (२६४१२, १२४३१). For Private and Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org २०१ नवपद सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि वारिजाउ अरहंतनी छेहना, अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मुनिपद तक लिखा है.) १२१५४२. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४५-४४ (१ से ४४ ) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५X१२, ९४२८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. भगवान महावीर की दीक्षा का प्रसंग अपूर्ण मात्र है.) १२१५४४. पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२५x१२, १०x२५). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवै रांणी पदमावती; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., डाल- १ गाथा ११ अपूर्ण तक लिखा है.) १२१५४५ (+) शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५. प्र. वि. हुंडी: शांतिनाथ, संशोधित. दे. (२६११.५, ११४३३). शांतिजिन स्तवन, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य वि. १६७२, आदि: सांतिजिण सगल जन नयण; अंति: समरचंद० प्रभु पय अणुसरी, दाल-४, गाथा ४९. १२१५४६. १० श्रावक व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २६.५X११.५, १७३७). १. पे. नाम. १० श्रावक सज्झाय, पृ. १अ ९आ, संपूर्ण मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२९, आदि: यांणदजी रे सेवानंदा रे; अंतिः श्रीवर्धमान ला रे लाल, गाथा-१६. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. औपदेशिक सज्झाय-चेतन, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन अनंत गुणारो रे जीण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ तक है.) १२१५४७. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, प्र. वि. हुंडी : हेमीनाम०, संशोधित., जैदे., (२६.५x११.५, १४४३४). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः सिद्ध०; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कांड-३ श्लोक-३२ तक लिखा है.) १२१५४८ (+) सौभाग्यपंचमी कथा सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८११, मध्यम, पू. १३. ले. स्थल गोघुवा, प्रले. पं. रंगविजय; पठ. मु. केसरविजय (गुरु पं. ऋद्धिविजय); गुपि. पं. ऋद्धिविजय (गुरु पं. तिलकविजय), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : सौभाग्य पं., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित संशोधित, जैदे., ( २४४११.५, ७X३१). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे, लोक-१५२ (वि. १८१९ मार्गशीर्ष शुक्ल, ५) वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमंते तीर्थकरनी; अंति: तेए मेडतानगरने विषई. (वि. १८११, पौष कृष्ण, ५. बुधवार) १२१५४९. (+) समयसार नाटकमाहात्म्य गाथा व सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७८०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, रविवार, मध्यम, पृ. ४०, कुल पे २, प्र. कृष्णदेव पठ. मु. रूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२६११.५, १६५३६). १. पे. नाम. समयसार नाटक सह माहात्म्य गाथा, पृ. १अ -४०आ, संपूर्ण. समयसार आत्मख्याति टीका के हिस्सा समबसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन; अंति: मैं परमारथ विरतंत, अधिकार- १३, गाथा- ७२६, ग्रं. १७०७. समयसार - आत्मख्याति टीका के हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण की माहात्म्य गाथा, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठा ज्यौ जल चूडत कोई; अंति: अहि कही मन जाह लगायो, गाथा-४. २. पे नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. ४०आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, मा.गु. सं., पद्य, आदि: दृष्टिपूतं न्यसेत्पादं; अंति: दैव सलिलस्य यथा शरवर For Private and Personal Use Only श्लोक-२. Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २०२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जैदे., १२१५५०. (+) सीमंधरजिनादि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५X१२, १६x४१). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कान कवि, मा.गु., पद्य, आदि तु तो माहाविदेहनो वासी अति: कांह० गुण गावै नित्य ताहरा, गाथा- ९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदि तारिक जिन तेवीसमा प्रभु अंति: प्रभु पासजी सरणाई साधारजी, गाथा-६. ३. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. तेजसिंह ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सुवुधि जिनेसर सुंदरू रे; अंति: तेजसी० संघ सहु ने आणंद रे, गाथा - ५. ४. पे नाम, तेजसिंघ आचार्य भास, पू. १आ, संपूर्ण. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीतेजसिंघ गणि सुंदरू रे; अंति: लबधि कहै मनिरंग रे, गाथा- ७. मु. १२१५५१ (+) निशीथसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९०, अन्य. मु. वस्ता ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, , जैवे. (२६.५x१२, १०x३५). निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जे भिखु हत्थकम्मं; अंति: जं सिसपसिस्सो ववभोज्जं चई, उद्देशक - २०, ग्रं. ८१५, (वि. २० उद्देशकों की सूत्रसंख्या का कोष्ठक दिया है.) निशीथसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे० साधु हस्तकर्म पोतइ; अंति: कहइं ते उपरांति छमास थया. १२१५५२. (+) शांतिजिन चरित्र, संपूर्ण वि. १८४१ फाल्गुन शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २४९, प्रले. पं. खीमा वाल्हजी सोरठीया; लिख. श्राव. कानजी मकनजी प्रे. मु. सोमचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में श्रीसोमचंद्र ऋषि के उपदेश से कानजी मकनजी ने प्रत लिखाकर बृहद् लुकागच्छ के भंडार में ज्ञानार्थे प्रत रखने का उल्लेख मिलता है. संशोधित, जैदे. (२५.५४१२, १३४३२). *, शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि. सं., गद्य वि. १५३५, आदि: प्रणिपत्यार्हतः सर्वान्; अंतिः शांतिः स करोतु शांतिम्, प्रस्ताव- ६. १२१५५३ (+) बूधी रासो, संपूर्ण, वि. १८८३ आश्विन शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल, राजनगर, प्रले. मु. लक्ष्मीविजय; अन्य. पं. रूपविजय; मु. खुसालरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X१२, १३४३७). बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि देवि अंबाई: अंतिः तिहां टले विघन क्लेसतो, गाथा ६३. १२१५५४. धर्मोपदेश दृष्टांतकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६X१२, १७X३३-४३). धर्मोपदेश दृष्टांतकथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (१) शिष्टसंग श्रुतोरंग, (२) अहो भव्यप्राणी वीतराग; अंति: (-), (पू.वि. लोभत्याग ऊपर राजा पद्म रानी जंबूवती कथा तक है.) १२१५५५. अनुयोगद्वारसूत्र २१ बोल अपूर्ण, वि. १९वी ज्येष्ठ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. २-२ (१) १, प्र. सा. रुखमणी, " 7 1 प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अनुमानित पत्रांक दिया है., जैदे., (२६X१२, ६X३०). अनुयोगद्वारसूत्र -२१ बोल अधिकार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति अर्थ नागर छइ ३२१ सेव भंति, (पू.वि. १० धर्म जागरण से है.) " १२१५५६ (+) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७. पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. प्र. वि. हुंडी श्रीपाल रास., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X१२, १६x२७-३४). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कलपवेलि कवि तणी सरसति अंति: (-) (पू. वि. गाथा ७१ अपूर्ण तक है.) १२१५६० (+०) नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ४-२ (१ से २) २, पू. वि. बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. हुंडी : नारचंद्रपत्र, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६१२, १९x४१). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि (-); अति (-) (पू.वि. संक्रांतिमुहूर्त श्लोक-३ अपूर्ण से पृथ्वी सुभिक्षदुर्भिक्ष वर्णन अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २०३ १२१५६१. वीस स्थानकतप स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. खडा लेखन., जैदे., (२५४११, ३५४१८). १. पे. नाम. वीस स्थानकतप स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप स्तवन, पं. मणिविजय गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणमी सरसती सांमणी रे; अंति: मणिविजय० सेवो संघ नीसदिस, गाथा-१४. २.पे. नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मरुदेवीनो नंद माहरो; अंति: उदयरतन प्रभु मलीन माचो रे, गाथा-३. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: चाल चाल कुमर चाल ताह; अंति: प्रभु तुझने नमे रे, गाथा-३. ४. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: शीतल शीतलनाथ सेवो; अंति: उदयरतन कहै. नित दिवाली रे, गाथा-३. ५. पे. नाम. १४ रत्ननाम श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: लक्ष्मी कौस्तुभ; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. १२१५६३. (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९६२, वैशाख कृष्ण, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १५, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. सुखदत्त लक्ष्मीनारायण बोडा; पठ. सा. भूतांजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दसवैका०., संशोधित., दे., (२५.५४१२, १५४४५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किटुं; अंति: उवेइ भक्खू अपुणागमंगई, ___अध्ययन-१०. १२१५६४. चोवीसी तिर्थंकर मातापितालंछन नाम गाम स्तवन, संपूर्ण, वि. १७८३, आश्विन कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. राजनगर, पठ. श्राव. मनछाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १०४३७). २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर लागु पाय सरसति; अंति: तास सीस पभणे आणंद, गाथा-२९. १२१५६५ (+) स्थूलिभद्र नवरसो व पृथ्वी परिधिमान कवित्तादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५५, माघ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ४, प्रले. मु. दुर्गविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वदेव प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १४-१७४३९). १. पे. नाम. स्थूलिभद्र नवरसो, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. स्थति भद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: उदय० भणतां मंगलमाल, ढाल-९, गाथा-७४. २. पे. नाम. पृथ्वीपरिधिमान कवित्त, पृ. ५आ, संपूर्ण.. कालिदास, मा.गु., पद्य, आदि: नवकोड परबत अनड कोडि; अंति: कवि कालीदास संख्या कहे, गाथा-१. ३. पे. नाम. १८ भार वनस्पतिमान गाथा, पृ. ५आ, संपूर्ण. ___क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम कौडि अडत्रीस लद्धमण; अंति: हेम० अरथ कहें मोटा जती, गाथा-१. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. ५आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कप्पमंचपइणं तेण पसाण; अंति: च्यारमास बोलवानीमेणं, गाथा-१. १२१५६६. कर्मग्रंथ-१, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३४). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से गाथा-२३ अपूर्ण तक है.) १२१५६७. (+) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी:तवन., संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३७). स्तवनचौवीसी, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मरुदेवीनो नंद माहरो; अंति: (-), (पू.वि. स्तवन-२४ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२१५६८. (+) शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित.. जैदे.. (२६४११.५, १३४३८). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ ____ गाथा-४२ अपूर्ण तक है.) १२१५६९ (+) शांतिकाधिकार विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-१(६)=१४, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्रांक-७ से १२ का उल्लेख न होने से पाठ मिलाकर पत्रक्रम पेंसिल से लिखा है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, १३४३९). आचारदिनकर-हिस्सा शांतिकमहापूजन विधि, आ. वर्द्धमानसूरि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: स यथा तत्रादौगुरुर्गृह्य; अंति: (-), (पू.वि. शांतिदंडक जलाभिषेक पाठ अपूर्ण से मूलनक्षत्रजातक शांति विधि अपूर्ण तक व बलिविधिगत पितृतर्पणविधि अपूर्ण से नहीं है.) १२१५७०. पुरंदरकुमार रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:पुरंदरु०., जैदे., (२६४१२, ९४३१). पुरंदरकुमार रास, वा. मालदेव, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से गाथा-१९ अपूर्ण तक है.) १२१५७१. उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१९, आषाढ़ शुक्ल, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५०, ले.स्थल. मडाहड, प्रले. मु. लक्ष्मीचंद (गुरु मु. वीरचंद); गुपि.मु. वीरचंद (गुरु मु. वजाजी ऋषि); मु. वजाजी ऋषि; अन्य. आ. विजयराजेंद्रसूरि (कमलकलशागच्छ-पोशाल गच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:उपासंग., जैदे., (२६४११.५, ५४४३). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपाएणांम; अंति: सुधर्मी० समुदस्संति, अध्ययन-१०, ग्रं. ८१२. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु., गद्य, वि. १६९३, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)तेणइ काले चुथा आराने अंते; अंति: दिवशे करी एक श्रुतस्कंध. १२१५७३. (+) श्रीपालराजा रास, संपूर्ण, वि. १७४१, फाल्गुन शुक्ल, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. पनापुर, प्रले. मु. कनकसोमगणि (गुरु मु. धनसोमगणि); गुपि.मु. धनसोमगणि; पठ. समणी. अमरतिबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (११२४) यादृसं पुस्तकं दृष्टा, (१५२९) जे दलदल की बात कुं, जैदे., (२६४११, १३४३४). श्रीपाल रास-लघु, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १५३१, आदि: करकमल जोडेव करि सीद्ध सयल; अंति: भोगवइए जिम भूपति श्रीपाल, गाथा-२८३. १२१५७४. (#) चंदराजा सलोको व नेमिजिन ऋद्धिवर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १६४३४).. १. पे. नाम. चंदराजा सलोको, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. चंदराजा सलोको-नवकारप्रभाव, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: नवकार टलेला करमां रो फंदो, गाथा-५८, (प.वि. गाथा-५४ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम, नेमिजिन रिद्धि-द्वारिकानगरी, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. नेमिजिन ऋद्धिवर्णन-द्वारिकानगरी, म. भीखमजी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: बावीसमा श्रीनेमजिणंदए छोड; अंति: रीष भिखम० द्यौ हिव वासये, गाथा-१९. १२१५७५. मृगावतीसती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदे., (२५.५४११.५, १६४३३-३९). मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: समरूं सरसति सामिणी; अंति: समयसुंदर० सुजगीसा छे, खंड-३ ढाल ३७, गाथा-७४५, ग्रं. ११००. १२१५७८. (-#) सरस्वतीदेवी स्तुति, रथनेमि सज्झाय व तारातंबोल नगरी वार्ता, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १३४३६). १. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org गाथा - १. मा.गु., पद्य, आदि: सरसती माता प्रणमु तुज वचन; अंति: जिन चरण० च्यु गत हरण, २. पे. नाम. रथनेमि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ३. पे. नाम. तारातंबोल नगरी वार्ता पृ. १२-१आ, संपूर्ण 3 मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्म, आदि काउसग थकी रे रहनेमी; अति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा-३ तक लिखा है ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., गद्य, आदि संवत १६८४ वर्षे अंतिः आदीनाथनो को सरनो छै. १२१५७९ (+) तेजसारकुमार रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १४-४ (४,६ से ८) = १०, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४१२, १५X३९). - तेजसारकुमार रास, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १७६४ आदि ऋषभाविक चोविस जीन पद पंकज अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३ दोहा-५ अपूर्ण से ढाल-४ गाथा-९ अपूर्ण तक, ढाल-६ गाथा-७ अपूर्ण से ढाल -१० गाथा- १ अपूर्ण तक नहीं हैं व ढाल १७ गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) १२१५८० (+) गर्भावास सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६४१२, १२४३२). औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. कविदास, मा.गु., पद्य, वि. १९३०, आदि: तु ने संसारि सुख किम; अंति: कविदास० च्यार निवारजो, गाथा - १२. . १२१५८१. (+) औपदेशिक सज्झाय व जीवने शीखामणनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., वे. (२६४१२, १२४३१). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवशिखामण, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जोने तु पाटण जेवा; अंतिः रत्नविजय० आ नव्या कामेरे, गाथा - १२. १२१५८५. भुवनदीपक सह अवचरि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. त्रिपाठ. जैवे. (२५x१२, १८४४६). " २. पे. नाम. जीवने शीखामणनी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीव, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सजि घरबार सारु मिथ्या; अंति: रत्नविजे कहे कथी रे, गाथा - १२. २०५ १. पे. नाम. वसुधारा स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रत्यह; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३, आदि सारस्वतं नमस्कृत्य; अति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४६ अपूर्ण तक लिखा है.) भुवनदीपक - अवूचरि, सं., गद्य, आदि: ग्रहसहिता ये भावा यद्वा, अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १२१५८७. (#) वसुधारा स्तोत्र व वसुधारा स्तोत्र विधि, संपूर्ण, वि. १८१७, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, ले. स्थल. वीद्यापुर, प्रले. पं. मनोहरसागर गणि (गुरु ग. हेतुसागर) गुपि. ग. हेतुसागर (गुरु उपा. राजसागर गणि) अन्य पं. फतेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पार्श्वप्रसादा., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११.५, १३X२२-४३). " For Private and Personal Use Only २. पे नाम, वसुधारा स्तोत्र विधि, पृ. ५आ, संपूर्ण. वसुधारा स्तोत्र - विधि, संबद्ध, मा.गु. सं., गद्य, आदि इयं वसुधारा धनद अति कीजई सुख पामइ निःसंदेहम्, १२१५८८ (+) मौनैकादशी माहात्म्य व पार्श्वजिन मंगलश्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (१)=६ कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५४११.५ १३x४३). १. पे नाम, मौनैकादशी माहात्म्य, पृ. २अ-७अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: (-); अंति: सागरशररसशशिप्रमिते, श्लोक - २०१, (पू.वि. गाथा ३३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन मंगलश्लोक, पृ. ७अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि स्वस्ति श्रीविलसत्कर, अंतिः स्तोष्ये मुदा सादरं, श्लोक १. " Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२१५९२. औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१९, चैत्र शुक्ल, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. वेड, प्रले. सा. उदाश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५, १४४४१). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९१९. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडूयां रे फल छेइ क्रोधना; अंति: उदेयरतन० उपसंमरस मांहि, गाथा-६. २. पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीइ; अंति: उदेयरतन०मानने दिजो देसवटो, गाथा-५. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनुं बीज जाणजो जी; अंति: उदेयरतन० सुंध रे प्राणि, गाथा-६. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे लक्षण जोजो लोभणा; अंति: उदेरतन० हुं वांदु सदा, गाथा-७. १२१५९३. आर्यदेश नामादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, प्रले. मु. दर्शनविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. खडा लेखन., जैदे., (२६४१२, ३०-४३४२८). १.पे. नाम. आर्यदेश नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ मगधदेश राजग्रहीनगरी; अंति: खत्री कुंडलीथी कोस ५०. २. पे. नाम. २० विहरमानजिन नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ सीमंधरस्वामिः; अंति: अजितविर्जस्वामी० पासें. ३. पे. नाम, थापना विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-हिस्सा वंदनकअध्ययन, प्रा., गद्य, आदि: अहो १ कायं २ काय; अंति: जत्ताभेध ४ जवणी ५ जंचमे ६, सूत्र-०१. ४. पे. नाम. १८ भार वनस्पतिमान कवित, पृ. १आ, संपूर्ण. १८ भार वनस्पतिमान कवित्त, म. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: तीन कोड तरु जात आंणवलि; अंति: ध्रमसी०भारह अढार सहस, गाथा-२. ५. पे. नाम. प्रव्रज्याभेदादि विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थानांगसूत्र-प्रव्रज्याभेदादि विवरण, प्रा., गद्य, आदि: दसविहा पव्वज्जा; अंति: बंधिता क० अरहनकनी परें. ६. पे. नाम. जंबूद्वीपक्षेत्रमान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पांचसें बावीस जोजन ६; अंति: मेलें निश्चै जांणवौ. १२१५९५ (#) नेमिजिन श्लोक व शांतिजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्रले. सा. मना आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १४४३८). १. पे. नाम. नेमिजिन सलोको, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमिश्वरनइ शिरनामी; अंति: श्रीजिन गावता जय जयकार, श्लोक-१९. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पहिला जी जिनवर चउवीसइ नमु; अंति: ते संपति सिव सुख पामसी, गाथा-९. ३. पे. नाम. असज्झाय विचार सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. मु. गुणसागरशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वंदिइ वीर जिणेसर राय; अंति: मुगति रमणि जिम लीला वरउ, गाथा-२४. ४. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सखी नवी नवेरी भगति; अंति: भगति लहइ जिम सुख संगतडी, गाथा-१७. For Private and Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २०७ १२१५९६. चतुर्दश स्वप्नानां स्वाध्याय, शीतलजिन स्तवन व वैराग्य स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-२३(१ से २३)=२, कुल पे. ३, प्रले. मु. अजबचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १६४५४). १.पे. नाम. चतुर्दश स्वप्नानां स्वाध्याय, पृ. २४अ-२५अ, संपूर्ण. १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: देव तीर्थंकर केरडी माताए; अंति: मुनि लावण्यसमै भणै ए, गाथा-४५. २. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण. म. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सखी नवीय नवेरी भगति करी; अंति: जयकीर्ति० करेज्यो वीनतडी, गाथा-१७. ३. पे. नाम. वैराग्य स्वाध्याय, पृ. २५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कर्मोदये सुखदुखविषये, मु. ज्ञान, मा.गु., पद्य, आदि: सुख दुख सरिज्या पामीयै रे; अंति: रे धर्म सदा सुखकार रे, गाथा-८. १२१५९७.(+) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११.५, १३४३९). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छा; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. १२१५९८. गोतमवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. हंडी:गोतमजी., जैदे., (२५.५४१२, १७४४५). गणधरवाद, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभगवंत महावीरदेव; अंति: (-), (पू.वि. देवगण को विमान से समवसरण में गमन के प्रसंग तक है.) १२१५९९ (+) सुभद्रासती पंचढालीयो व धनाजीरो सतढालीयो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-९(१ से ९)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १५४३६). १.पे. नाम. सुभद्रासती पंचढालीयो, पृ. १०अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि: (-); अंति: ढाल पांचु ए करी, ढाल-५, (पू.वि. ढाल-५ गाथा-११ अपूर्ण से २. पे. नाम. धनाजीरो सतढालीयो, प. १०आ, अपर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हंडी:धनाजीरो सतढालीयो. धन्नाकाकंदी चौढालिया, म. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: नवे अंग तीजे वरग मे कह्या; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ का दूहा अपूर्ण तक है.) १२१६००. पट्टावली तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. खडा लेखन., जैदे., (२५.५४१२.५). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: १महावीर स्वामि; अंति: जिनबुधीवल्लभसूरि० छे पाट. १२१६०२ (+) २४ जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:चोइसी., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १६४३९). २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिणराज परथम गुण गाइये; अंति: मुकतीस सुरती लाग ज जारी, गाथा-२५. १२१६०३. (+) कानजीकठियारारी चोपी व प्रहेलिकादोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८९९, वैशाख कृष्ण, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. करडा, प्रले. पं. रिषभदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पल., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १८४४१). १. पे. नाम. कानजीकठिआरोरी चोपी, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ___ कान्हडकठियारा प्रबंध, मु. जेतसी ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: (-); अंति: देवता चवने जासी मोख रे, ढाल-८, (पू.वि. ढाल-६ गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. प्रहेलिकादोहा संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण. प्रहेलिका दोहा, पुहिं., पद्य, आदि: नींद न आवे सखीनो जणा; अंति: जालही नाम काल नही खाय, दोहा-१४. १२१६०४. (+) पद्मिनी चरित्र, संपूर्ण, वि. १८९९, भाद्रपद, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १५४३४). For Private and Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.ग., पद्य, वि. १७०७, आदि: श्रीआदिसर प्रथम जिण; अंति: पडंत ते वंश रहत विन तेज, खंड-३ ढाल ३९, गाथा-८१९, ग्रं. ११५७. १२१६०५ (+#) जीवविचार स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२,१५४४१). जीवविचार स्तवन-पार्श्वजिन, म. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: श्रीसरसतीजी वरसति; अंति: (-), __ (पू.वि. ढाल-८ गाथा-१० अपूर्ण तक है.) १२१६०८. (#) नेमनाथ चोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. लालजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १४४४५). नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: समर्या देवी सारदा बहोली; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चोक-२ तक लिखा है.) १२१६०९ मरुदेवीमाता व मृगापुत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक नहीं दिया गया है., दे., (२६४१२, १७४३७). १. पे. नाम. मरुदेवीमाता सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: नगरी वनीता भली विराजे; अंति: पामे लील विलासो जी, गाथा-१३. २. पे. नाम. मगापुत्र सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनगर सुहामणों; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण तक है.) १२१६१० (+) विमलगिरि स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सुभटपुर, अन्य. मु. उमेदविजय; पं. विनयचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीऋषभजिनप्रसादेन. अंत में "उमेदविजयेन भाईजी श्रीविनयचंद्रजी तस्योपरि मया लिपीचक्रे" ऐसा उल्लिखित है., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १४४४०). शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेāजो तीरथसार; अंति: ऋषभदास गुण गाया, गाथा-४. १२१६११ (+) उत्तराध्ययनसूत्र-३६वाँ अध्ययन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. हुंडी:छत्तीसमो., संशोधित., दे., (२५.५४१२, १३४४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सम्मए त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. १२१६१२. (2) भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४-३३(१ से ३३)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १५४४८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है., श्लोक-४३ से है.) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध+कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., गाथा- ४२ के बालावबोध अपूर्ण से गाथा- ४४ के बालावबोध अपूर्ण तक है.) १२१६१३. दंडक प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१२, ४४३४). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से ३० अपूर्ण तक है.) १२१६१६. (+) भरथबाहुबलनो श्लोको, संपूर्ण, वि. १८७८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. दुधइ, प्रले.ऋ. लालजी; पठ. मु. लाधा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२,१५४४५). भरतबाहबली सलोको, क. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रणमुं माता; अंति: उदय० बाहूबल नामे लीलविलास, गाथा-६८. १२१६१७. (+) औपदेशिक व नेमराजिमती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, कल पे. २, प्र.वि. हंडी:तवन., संशोधित., जैदे., (२६४१२, १५४४५). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ औपदेशिक सज्झाय-काया, म. रूपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: काया कांमण जीवाजीने; अंति: प्रसादथी इम भणे रुपचंद हो, गाथा-२२. २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मा.गु., पद्य, आदि: राजुलजु रणजु रहीस रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) १२१६१८. अरणिकमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, दे., (२६४१२, ९x४२). अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रायचंदजी भणे हुल्लास रे, गाथा-२६, (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से है.) १२१६१९ (+) सूत्रकृतांगसूत्र-मोक्षमार्ग अध्ययन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:मोखमार्ग., संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १३४३६). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. गाथा-२९ अपूर्ण तक है.) १२१६२० (+) पारसनाथ वीनती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, १७४३७). पार्श्वजिन स्तवन, ऋ. मनरुपजी, रा., पद्य, आदि: तेवीसमां हो प्रभु पासजिणं; अंति: मनरुपजी पुन्य पावसी ते, गाथा-१६. १२१६२१. (+) श्रावकरी सझाय, संपूर्ण, वि. १९४८, फाल्गुन शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. लालचंद ऋषि; पठ. सा. कीसनाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रावगरीसझाय., संशोधित., दे., (२५४१२, २०४३८). श्रावकछत्रीशी, म. गोरधन ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: श्रावकजी तू उठे; अंति: गोरधन० कर्म वेयरी नेहणो, गाथा-३६. १२१६२४. संथार पइणं सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०६, मध्यम, पृ. १३, दे., (२४.५४१२, ६४२९). संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊणं नमुक्कारो जिण; अंति: सुहसंकमणं ममदिम, गाथा-१२२, (वि. १९०६, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४) संस्तारक प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: का० करीनइ न० नमस्कार; अंति: आविबल सुख दि० दीउ, (वि. १९०६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४) १२१६२६. १६ स्वप्न सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. अनुमानित पत्रांक दिया गया है., दे., (२५४१२, ७४३८-४३). १६ स्वप्न सज्झाय, क. बुधजन कवि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: बुधजन मन संसै उर हरी, गाथा-१८, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-१० अपूर्ण से है., वि. अंतिम २ गाथाओं का गाथांक नहीं है.) १२१६२८ (+) सकलार्हत् स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १४४२८). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२५ अपूर्ण तक है.) १२१६२९ (#) कल्पसूत्र-स्थविरावली से सामाचारी व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. सामाचारी व्याख्यान वर्णन अपूर्ण तक है.) १२१६३० (+) उत्तराध्ययनसूत्र-नमिराय अध्ययन-९, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:नमीराय., संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १३४३९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १२१६३१. (+) प्रदेसीनी चोपइ, संपूर्ण, वि. १९०२, आश्विन कृष्ण, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, पठ. मु. सिद्धकरण (कवलागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:परदेशी, परदेसीरीचो०., संशोधित., दे., (२६४११.५, १६x४१). प्रदेशीराजा चौपाई, म. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: तिण कालनै तिण समै; अंति: कही सूत्रथी काढो रे, ढाल-२२. For Private and Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२१६३२. (+) फाटकारोनी लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. सा. किसनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:फाटकारो., संशोधित., दे., (२६४१२, १५४३५). औपदेशिक सज्झाय, मु. रेखराज, रा., पद्य, वि. १९४२, आदिः (१)अहो ऐह कलीजुगने विषे, (२)सुणियो नरसेणा मति करो रे; अंति: धर्म ध्यान थे ध्यावो रे, गाथा-२०, (वि. गाथा क्रमांक दोहा व गाथा का अलग-अलग है.) १२१६३३. (+) दशवैकालिकसूत्र-१ से ४ अध्ययन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, पठ. पं. कुनणमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:छजी०., संशोधित., दे., (२६४१२, १५४२८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १२१६३४. (#) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४-२३(१ से २३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्रपत्र., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ५४२७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-१५ पाठ "बुद्धाणं बोहयाणं" से सूत्र-१६ पाठ "पंतकुलेसु वा तुच्छकुलेसु" तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). १२१६३७. गुरुगुण गीत व जिनकुशलसूरि गीतसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. वा. जयकुमार गणि (गुरु मु. प्रेमधीर, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १५४३८). १. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: विलसै ऋद्धि समृद्धि मिली; अंति: साधुकिरति पाठक भाखै, गाथा-१५. २. पे. नाम, जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण.. उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: आयो आयो री समरंता; अंति: परमानंदपद पायो जी, गाथा-५. ३. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ वा. ज्ञानराज, रा., पद्य, आदि: दादओ सेवकां सुखदाय; अंति: ज्ञानराज सुखी सुगुरु पसाय, गाथा-७. ४. पे. नाम, गुरुगुण गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. लब्धिउदय, पुहिं., पद्य, आदि: मन मत अटकौ काकी तीय स्यूं; अंति: लब्धिउदै० फरक बउरीय स्यूं, गाथा-५. १२१६३८. (#) अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२, १२४३८). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: गंगा मागध क्षीरनिधि औषध; अंति: मोक्षसौख्यं श्रयंति, ढाल-८, गाथा-६६. १२१६३९ नारकी आयुमान देहमान विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४१२, १६x४०). १.पे. नाम. नारकी जीवाना आऊखा, पृ. १अ, संपूर्ण. नारकी आयमान देहमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: रतनप्रभा जघन्य १००००; अंति: आयकर्म मानसागर३३. २. पे. नाम, गुणठाणारी थिति, पृ.१अ, संपूर्ण... १४ गणस्थानक स्थितिकाल, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यातरी उत्कृष्टी थिति; अंति: गुण ५ ह्रस्व अक्षर प्रमाण. ३. पे. नाम. ७ नय विचार, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. मु. पार्श्वचंद्र, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: से किं तं सत्त मूलनया; अंति: सच्चं निःसंकं जिणे पवेइअं. ४. पे. नाम. १४ रत्न उपजीवाना थानक, पृ. ३आ, संपूर्ण. १४ रत्न उत्पत्तिस्थान, मा.गु., गद्य, आदि: चक्र१ खड्ग२ छत्र३ दंड४; अंति: हाथी घोड़ा तलावै होइ. १२१६४२. (+) मृगापुत्र सज्झाय व रोहिणीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, १५४४१). १. पे. नाम. मृगालोढानी ढाल, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:मृगालोढानी. मृगापुत्र सज्झाय, रा., पद्य, आदि: सांसणनायक सीमरीयै भगवंत; अंति: छानी वात नहि काइ छांनी जी, ढाल-११. २.पे. नाम. रोहिणीतप स्तवन, पृ. ४आ-८आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:रोहणीरी ढाल. For Private and Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २११ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६०, आदि: सिमरू श्रीवासपुजनै सासण; अंति: चोथमलजी०वरतै कुसलनै खेमरी, ढाल-१३. १२१६४३. (+) द्रोपदीरी चोपी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. हुंडी:द्रोपदारीचो०., संशोधित-खडा लेखन., दे., (२५.५४१२, १६४५०). द्रौपदीसती चौपाई, आ. हीरविजयसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शील वडो वरतां मध्ये; अंति: हीर० आवागवण निवार रे, ढाल-१५, गाथा-२१८. १२१६४४. भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प.८-७(१ से ७)=१, जैदे., (२६४१२, २३४३५). भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: उपर वावडा छइ० उपजै, (पू.वि. ज्ञान लाभ वर्णन अपूर्ण से है., वि. -) १२१६४५. महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-५(१ से ४,१०)=६, प्र.वि. कुल ग्रं. २००, जैदे., (२५.५४१२.५, ११४३२-३६). महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, म. गणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: श्रीसंघहर्ष वधामणा, ढाल-१०, गाथा-१२५, (पू.वि. गाथा-३५ अपूर्ण से ९५ अपूर्ण तक व गाथा-१०९ अपूर्ण से है.) १२१६४६. (#) मयणरिहा चउपइ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:मयणरिहा चउपइ., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १५४३४). मयणरेहासती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर पाइ० बुधि गुणवी; अंति: नमि गुण रिसाला, गाथा-७०. १२१६४७. (+#) जीवाभिगमसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३९-८४(१ से ८४)=५५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ६४३९). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिकार-३ पाठ "संकुचियपयाहिणोववत्तमूद्धसिरया" से पाठ ____ "विजयस्स देवस्स सुबह अलंकारिए" तक है.) जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२१६४८. (+) उत्तराध्ययनसूत्र-३५ से ३६ अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९१३, आषाढ़ शुक्ल, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. योधपुर, प्रले.मु. रिध्युजी; पठ.सा. मघनाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उत्तरा०., संशोधित., दे., (२६४१२, १८४३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सम्मए त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. १२१६४९ (+) आलोयणा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:आलोयणा., संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १२४४३). आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नमोकार१ गुणनो दूहा; अंति: साखसै मिच्छामि दुक्कडं. १२१६५०. (+) श्रावक अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-३(१,४,७)=५, प्र.वि. संशोधित., ., (२५.५४१२.५, ११४२८-३१). श्रावकसंक्षिप्तअतिचार*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., दर्शनाचार अपूर्ण से तपाचारभंग संबंधी अतिचार अपर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२१६५१. शांतिजिन, आदिजिन व नेमजिनादि पदसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२५४१२, १५४३७). १.पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.. शांतिजिन स्तवन, आ. लब्धिचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १९९२, आदि: शांतिजिनंदजी कीनी सेवा; अंति: लब्धिचं०स०आनंदघन घरस्यां, गाथा-८. २. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. प्रतापी, पुहिं., पद्य, आदि: वीर चरण चित ल्याउरे जग; अंति: अविचल सुख मे पाउंरे, गाथा-६. ३. पे. नाम, चंद्रप्रभुजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन पद, आ. अमृतचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचंदाप्रभु हमतणी अरज; अंति: अमृतचंद्रसूरि० तुम पाय, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. नेमजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. अमतचंद्रसूरि, मा.ग., पद्य, आदि: नेम जिणंद स्वामी हमारे; अंति: अमृतसूरि० पूरे वंछित आसा, गाथा-४. ५. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. अमृतचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नेम जिनंद से प्रीत करी है; अंति: अमृतचंद्र०तसु कुगत टरी है, गाथा-४. १२१६५३. सनत्कुमार चक्रवर्ती सज्झाय, मनिगणछत्तीसी व बोल आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे.६, ले.स्थल. पाली, प्रले. सा. राजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, १९४३४). १.पे. नाम. सनंतकुमारनो चोढालीयो, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:चक्रवरत संत, संतनचक्रीनो. सनत्कुमारचक्रवर्ती चौढालियो, म. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: तिण काले ने तिण समे; अंति: रिष चोथमलजी कहै सुखकारी, ढाल-४. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-साध्वी, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण, वि. १९१३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, शनिवार, पे.वि. हुंडी:आरजारी सजा०. म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: थे सणज्यो ए आरजीयां एम; अंति: रायचंद०गरां रा भगत मै थे, गाथा-२४. ३. पे. नाम. मनिगणमाल छत्तीसी, पृ. ३आ-६आ, संपूर्ण, वि. १९१३, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, शनिवार, पे.वि. हुंडी:मुनीगुणमालछती, मुनिगुण. मुनिगुण सवैया, रा., पद्य, आदि: पापपंथ परहरे मोक्षपंथ; अंति: ईश सुख लहै सासता, गाथा-३६. ४. पे. नाम. साधुनी १२ उपमा विचार, पृ. ६आ-११अ, संपूर्ण, वि. १९१३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, पे.वि. हुंडी:उपमा १२ ८४ साधुनी. ८४ उपमा-मुनि की, मा.गु., गद्य, आदि: च्यार सामायकना बोल कहीयै; अंति: बारमी उपमा पवननी. ५.पे. नाम. औपदेशिक बोलसंग्रह, पृ. ११अ-१४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: बोलोरो थोकडो, बोलोरो पान. औपदेशिक बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सदहणा सुध हुवै तीण रो; अंति: जीव तीर्थंकर गोत बांधे. ६. पे. नाम. गौतमगणधर सज्झाय, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: वीस बोल. मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सावण विनवउ हुं तो; अंति: वरतीया मंगलाच्यार, गाथा-१५. १२१६५६. (#) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२, ४४१४). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम ११२ मध्यम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., शकुन अंक- ११२ अपूर्ण तक लिखा है.) १२१६५८. नेमराजिमती नवरसो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४१२, १२४३९). नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय कुलचंदलो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) १२१६५९ (+) कल्पसूत्र-साधुसमाचारी सह टीका, संपूर्ण, वि. १७६०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १९, ले.स्थल. अर्गलपुर, प्रले. मु. जयचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:व्या० ९ कल्पद्रुमक०., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४५५-६०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: भुज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, ग्रं. १२१६, प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: कल्पसूत्रस्य चेमाम्, ग्रं. ४१०९, प्रतिपूर्ण. १२१६६२ (+) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र की वंदारू टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३०-२२(१ से ५,८ से २४)=८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १७४५३). For Private and Personal Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org २१३ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- वंदारू टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. नमस्कार महामंत्र वृत्ति श्लोक-२३५ अपूर्ण से इरियावहीसूत्र वृत्ति अपूर्ण तक व करेमि भंते सूत्र की वृत्ति अपूर्ण से वंदित्तुसूत्र गाथा-१४ की टीकान्तर्गत तृतीय अणुव्रते परशुराम कथा श्लोक-३५ अपूर्ण तक है.) 3 १२१६६४ (+) आगमिकपाठ संग्रह व वीरस्तवाध्ययनं स्तवनं पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पू. २९-१(१) -२८, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:वीरस्तव., संशोधित, जैदे., ( २६.५X११, ११३७-४०). १. पे. नाम आगमिकपाठ संग्रह, पृ. २१-२७आ, पूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: अणुहोंती सासयं सिद्धा, (पू.वि. भगवतीसूत्र शतक - २ उद्देशक- ५ तुंगीयानगरी पाठ अपूर्ण से है., वि. अधिकतर भगवतीसूत्र के पाठ है तत्पश्चात् स्थानांगसूत्र व सिद्ध वर्णने उत्तराध्ययन, औपपातिकसूत्र व देवेन्द्रस्तवगत गाथाएं दी गई हैं.) २. पे. नाम. श्रीवीरस्तवाध्ययनं स्तवनं, पृ. २७आ-२९आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र- हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का महावीरजिन स्तव, संबद्ध, मु. पार्श्वचंद्र, अप, पद्य, आदि: नमी सोहमसामी जे धम्म अत्थ; अति निवेस्यउ पासचंदि मंगलकरण, गाथा- ३१. १२१६६५. संयोगद्वात्रिंशिका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैवे. (२६११, १७४४९)संयोगद्वात्रिंशिका भाषा, मु. मान, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: बुद्धिवचन वरदायनी; अंति: (-), (पू.वि. उन्माद - २ नयनमिलन प्रसंग अपूर्ण तक है.) १२१६६६. (+) पूजा प्रकरणद्वय व ३४ अतिशय नाम, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२६११.५, १९४५५). १. पे नाम पूजा प्रकरण, पृ. १अ संपूर्ण वा. उमास्वाति सं., पद्य, आदि स्नानं पूर्वोन्मुखीभूय अति तदिह भाववशेन योज्यम्, श्लोक १९. , " २. पे. नाम. पूजा प्रकरण, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: आसने वाहने चैव; अंति: त्यजेत्तानि विचक्षणः, श्लोक-१४. ३. पे नाम. ३४ अतिशय नाम, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., गद्य, आदि: तीर्थंकरचतुस्त्रींशद्; अंति: (-), (पू.वि. वाणी के ९ गुण तक है.) १२१६६७ औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६X११, १५X४०). औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मा.गु., पद्य, आदिः यो संसार असार छे जी मनही; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा-१३ तक है.) १२१६६८. (#) कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९२-९१ (१ से ९१ ) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १३५०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति (-) (पू.वि. सूत्र - १०९ अपूर्ण से ११० अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र- कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि (-); अति: (-). १२१६६९. आवकप्रतिक्रमणसूत्र खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. १६३७, कार्तिक कृष्ण, ५. बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ वा. साधुकीर्ति (गुरु वा. अमरमाणिक्य, खरतरगच्छ); गुपि वा अमरमाणिक्य (गुरु वा. दयाकलश, खरतरगच्छ); वा. दयाकलश (गुरु वा. मेरूतिलक, खरतरगच्छ); वा. मेरूतिलक (गुरु वा मतिवर्धन, खरतरगच्छ); वा. मतिवर्धन (गुरु वा. पद्ममेरू, खरतरगच्छ); वा. पद्यमेरू (गुरु आ जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ ) आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ जिनहर्षसूरि, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२५x११, १६x४४) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छामि; अंति: आलोयणामाहि आलोइसु. १२१६७०. (f) आठ कर्म एक सौ अठावन प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., " (२६.५X११.५, १२X३१). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि : आठ कर्म ते केहा; अंति: विषइ उद्यम करिवउ. For Private and Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२१६७३. (+) लघुजातक सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७६९, चैत्र शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १०-१(१)=९, ले.स्थल. मुकंददुर्ग, पठ. मु. गोकुलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ८००, प्र.ले.श्लो. (१२५) अदृष्टदोषान् मतिविभ्रमाद्वा , (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (२६४११, २२४७४). लघुजातक, वराहमिहिर, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: विजानीयान्नष्टजातकसिद्धये, अध्याय-१६, (पू.वि. अध्याय-१ ___श्लोक-१० अपूर्ण से है.) लघुजातक-अवचूरि, उपा. भक्तिलाभ, सं., गद्य, वि. १७१५, आदि: (-); अंति: कृपापरैः शोधनीयेयां. १२१६७४. (+) कल्पसूत्र सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९-२(१,५)=७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-पंचपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १०४३९-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-३ अपूर्ण से २७ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टिप्पण *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२१६७६. (+) विचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७८५, भाद्रपद शुक्ल, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. १४, लिख. मु. जसराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चउवीसदंडक., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ३४३०-३४). दंडक प्रकरण, म. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे; अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४३. दंडक प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदिः (१)नमिउ क० नमस्कार करीनइं, (२)ध्यात्वा शंखेश्वरं; अंति: हितनी करणहारी. दंडक प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तीषइं शस्त्रइ देवतानी; अंति: ते कहइं छइ गाथाइ. १२१६७७. (+) सप्तपदार्थी सह टीका, संपूर्ण, वि. १५३०, आश्विन कृष्ण, रविवार, मध्यम, पृ. २८, प्रले. श्राव. लक्ष्मीधर; पठ. वा. ज्ञानविलास (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. १८४८.११, जैदे., (२६४११, १७४७८). सप्तपदार्थी, पंडित. शिवादित्य मिश्र, सं., गद्य, आदि: हेतवे जगतामेव संसारार्णव; अंति: मस्तु वस्तुप्रकाशिनी. सप्तपदार्थी-टीका, आ. जिनवर्द्धनसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानजिनपोस्तु; अंति: वस्तुप्रकाशिनी अस्तु, ग्रं. १६००. १२१६७९. (#) षष्टिशतक प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १५१२, माघ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. २९, प्रले. ग. रत्नसोम; पठ. ग. रत्नतिलक (गुरु आ. रत्नशेखरसूरि, तपागच्छ); गुपि. आ. रत्नशेखरसूरि (गुरु आ. मुनिसुंदरसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. वि. सं. १५१२ में लिखी गई प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४६). षष्ठिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवद्धमाण जिणवरा; अंति: जिणंतु जंतु सिवं, गाथा-१६१. षष्ठिशतक प्रकरण-बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १४९६, आदि: एक श्रीअरिहंत वीतराग; अंति: पदि जाउ अनंत सुख लहउ. १२१६८० (+) चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८४, वैशाख अधिकमास शुक्ल, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. अहमदाबाद, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ४४३३-३६). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: विणा न पामंति, गाथा-६४. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावध पाप व्यापारनई; अंति: सोहिली पणए जोगवाई दुरलभ. १२१६८१ (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व कालिकाचार्य कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १००, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, ६४३४). १. पे. नाम. कल्पसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-९९आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २१५ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: अज्झयणं सम्मत्तं, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमो क० माहरो नमस्कार; अंति: अध्ययन समाप्त थयो. २.पे. नाम. कालिकाचार्य कथा, पृ. ९९आ-१००आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. जिनदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: मोहांधकारप्राग्भार; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१४ अपूर्ण तक है.) १२१६८२. (+#) भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२, प्र.वि. हुंडी:भाष्यत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ६४३०). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, संपूर्ण. भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्तु कहिता; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चैत्यवंदनभाष्य गाथा-१४ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) १२१६८३. (+) देवेंद्रलक्षण सह वृत्ति, ढुंढिका वृत्ति व ढुंढिकावृत्ति का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६४७, मध्यम, पृ. ८६+२(६७ से ६८)=८८, ले.स्थल. नागपुर, प्र.वि. त्रिपाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ३५००, जैदे., (२६.५४११, १८४५९-६९). देवेंद्रलक्षण, मु. देवेंद्र, सं., गद्य, आदि: सिधिरनुक्तानां रूढेः; अंति: भीक्ष्यादौ द्वितुर्विधिः, अध्याय-३. देवेंद्रलक्षण-वृत्ति, सं., गद्य, आदि: सरस्वतीं नमस्कृत्य; अंति: यस्य संसंश्रयततं जिनम्, अध्याय-३. देवेंद्रलक्षण-वृत्ति की ढुंढिका वृत्ति, सं., गद्य, आदि: (१)ऊँकारबिंदुसंयुक्तं नित्यं, (२)सरः प्रसरणमस्तस्याः; अंति: फे अर्द्ध द्वित्व, अध्याय-३. देवेंद्रलक्षण-वृत्ति की ढुंढिका वृत्ति का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सकल शासनाभीष्ट ते नमस्करी; अंति: नाए पांमी नीघाडे० लु, अध्याय-३. १२१६८४. आगमो में जिनप्रतिमा आलापक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२६४१०.५, १३४४७). आगमों में जिनप्रतिमा के आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समएणं; अंति: जाव अंतं कहति सेवं भंते. १२१६८५. (+) शील रास व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४४५). १. पे. नाम. शील रास, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसरि, मा.ग., पद्य, वि. १६३७, आदि: पहिलं प्रणाम करूं; अंति: सील अखंडित सेवज्यो, गाथा-७०, ग्रं. २५१. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कहइ सद्गुरु बछ श्रावण आयु; अंति: यतीधर्म वीतरागि बतायु, गाथा-४. १२१६८६ (+) जयतिहुअण स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७८४, आश्विन शुक्ल, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. कोनासर, प्रले. उपा. रुघनाथ (गुरु उपा. वेलजी); गुपि. उपा. वेलजी (गुरु आ. जिनसुखसूरि); आ. जिनसुखसूरि; गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं.८०८, जैदे., (२६४११, १५४५८-६२). जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय; अंति: अभयदेउ० आणिंदिय, गाथा-३०. जयतिहअण स्तोत्र-बालावबोध, मु. सार कवि; आ. जिनकुशलसूरि, मा.गु., गद्य, आदिः (१)श्रीमद्वामेयमानम्य, (२)श्रीमत् क०सोभावंत अथवा; अंति: पार्श्वनाथ भगवंतनि स्तवइए. १२१६८७. पार्श्वजिन स्तवन व पाटणतीर्थ कवित्त, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११, ९४२६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २१६ कैलास आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजिन अति जिणचंद करमदल जीपतो, गाथा ५. २. पे. नाम. पाटणतीर्थ कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नवछत्र चावडा किथ पाटण; अति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, गाथा- २ तक लिखा है.) १२१६८८. पांचइंद्रिय सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्रले. पंन्या. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६४११.५, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११४३३). ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काम अंध गजराज अगाज; अंति: साश्वताजी मारा लाल, गाथा-६. १२१६८९ (४) पंचकल्याणक विधि, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पू. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५X११, १३x४७). २४ जिन पंचकल्याणक तिथि व जाप, मा.गु., गद्य, आदि कारतीक वदि ५ श्रीसंभवजिन; अंतिः श्रीनेमिनाथ च्यवनं. १२१६९०. (+) आचारांगसूत्र-प्रथमश्रुतस्कंध सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८८, प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैये. (२६४१०.५, ११x२२). , आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि सुयं मे आउस तेणं, अंति (-), प्रतिपूर्ण आचारांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१) प्रणम्य श्रीजिनाधीशं, (२)भगवंत श्रीसुधर्मा; अंति: (-), प्रतिपूर्ण १२१६९१. दस श्रावक चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१+१ (२१)=२२, प्र. वि. हुंडी आनंदचरित्र, कामदेव, चुलनीपिताचरित्र, सुरादेवच०, चुल्लशितक, कुंडकोलिक, सद्दालचरित्र, महाशतक, लेइणीपिताचरित्र, कुल ग्रं. १०००, जैवे. (२६.५४११, १५X४९-५५). १० श्रावक चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि (१) श्रेयः श्रीमद्वीरमानम्य, (२) श्रीउपासकदसा सातमा अंग, अंतिः हवडा देवलो पडिला इच्छई. १२१६९३. वंदित्तुसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. पत्रांक अनुमानित है, जै, (२५.५X११, १३४४६). वंदित्सूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. गाथा- २ है.) वंदित्तसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४९६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वंदित्तुसूत्र गाथा-१ की टीका अपूर्ण से गाथा- २ की टीका अपूर्ण तक हैं.) १२१६९४. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक व होलीवाय विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३) = १, कुल पे. २, प्र. वि. विषय के आधार से अनुमानित पत्रांक दिया है. जैवे. (२७.५४११.५, ६४३०) " १. पे. नाम. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि (-) अंति (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. उद्देशक-२ प्रारंभिक पाठ "रविप्रभवो एवं वयासी जंबु" से है व पाठ 'इहैव जंबुद्दीवे० महराणामं नयरी" तक लिखा है.) २. पे. नाम. होलीवाय विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. होलीपर्व वायुविचार, मा.गु., गद्य, आदि: जो पूर्वनो वाय वाजे तो; अंतिः घरि घरि वार रोवें नरनारी... १२१६९५ दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण वि. १६७८, मध्यम, पृ. २१, ले. स्थल, भुज, राज्येगच्छाधिपति कल्याणसागरसूरि (अंचलगच्छ); पठ. मु. स्थानसागर लिख श्रावि. हेमादे (पति श्राव. माला); गुपि श्राव. माला, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी : दसवे०सू० कुल ग्रं. ७००, जैवे. (२६.५x११, १३४४६). "" दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठे; अंति: कहणा पवियालणा संघे, अध्ययन - १०, (वि. चूलिका-२.) For Private and Personal Use Only १२१६९६. उपदेशमाला सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३० - ७(१ से ७) = २३, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५X११, १६३५-३८). उपदेशमाला. ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि (-); अति: (-), (पू.वि. गाथा- ११९ अपूर्ण से ५३१ तक है.) Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २१७ उपदेशमाला-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२१६९७. (+) रत्नसारकुमार रास, संपूर्ण, वि. १६२९, चैत्र कृष्ण, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ.१५, प्रले. मु. जयलब्धि (गुरु ग. पुण्यलब्धि); गुपि.ग. पुण्यलब्धि; गच्छाधिपति लक्ष्मीरत्नसूरि (तपागच्छ); आ. कमलकलशसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४३४-४४). रत्नसारकुमार रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५८२, आदि: सरसति हंसगमनि पय; अंति: आणी बुद्धि प्रकाश रे, गाथा-२९९. १२१६९८. (+) रत्नपालरत्नावती रास, संपूर्ण, वि. १८३५, फाल्गुन कृष्ण, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३६, ले.स्थल. सिरोही नगर, प्रले. पं. जीतविजय (गुरु पं. वृद्धिविजय); गुपि.पं. वृद्धिविजय (गुरु पं. सुमतिविजय); पं. सुमतिविजय (परंपरा आ. उदयसरि); राज्ये आ. उदयसूरि; राज्यकाल भगत सिंह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. आदिनाथ प्रसादात्, संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३४३५-३९). रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: रीषभादिक जिनवर नमुं; अंति: वो जयजयकार रे, खंड-३, गाथा-७७४, (वि. ढाल-३२.) १२१६९९ प्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, जैदे., (२६.५४१०.५, १३४५७). प्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., उवसग्गहर स्तोत्र अपूर्ण तक लिखा है.) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमो नमस्कारु हउ कउणरुहइ; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १२१७०१ (+#) समयसारनाटक, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३१-८(१ से २,४ से ५,८ से ११)+१(२८)=२४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:समयसार., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, २०४५८). समयसार-आत्मख्याति टीका के हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३० अपूर्ण से ६३८ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२१७०३. (+) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३५, प्र.वि. अंतिम पत्र पर महावीरजिन मंदिर व साधु समूह का चित्र है., संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, ७४२०). आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: सययं जेसिं सुयसायरे भत्ती. १२१७०४. मौनएकादशीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-५(२ से ६)=२, जैदे., (२५.५४१३, १०४३१). मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: धुरि प्रणमुं जिन महरिसी; अंति: जसविजय जयसिरि लही, ढाल-१२, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-२ अपूर्ण से ढाल-९ गाथा-५ अपूर्ण तक नही है.) १२१७०५. गौतमाष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, १२४२८). गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः श्रीइंद्रभूतिं वसुभूति; अंति: लभंते सुचिरं क्रमेण, श्लोक-९. १२१७०८. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ७-१६४३१-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-९२ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (१)यथा द्रुमेषु कल्पद्रुः, (२)नमस्कार थाउ अरिहंतने काजे; अंति: (-), (वि. प्रारंभ में कल्पसूत्रमहिमाबोधक पीठिका है.) १२१७०९ (+) खलकाचार्यनो चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हंडी:खलुकाचा., संशोधित., दे., (२६४१३, १६x४६). बलचंद रास, म. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६०, आदि: श्रीजिन सांतजिणेसरु विघन; अंति: सबलदास० आपद जावे निरदली, ढाल-१२. For Private and Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२१७१० (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९९, मध्यम, पृ. ५४, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मेघदत्त पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दशवै०., दशवैका०., संशोधित., जैदे., (२५४१३, ६४३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किटुं; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि, अध्ययन-१०. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मु. श्रीपाल, मा.गु., गद्य, आदिः (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं गौतम, (२)हिवे विघ्न टालवाने; अंति: तुज प्रतइ कहु छं. १२१७१२. ५६ दिनमान विचार, शालिभद्रमुनि सज्झाय व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १४-१८४५३). १. पे. नाम. ५६ दिनमान विचार, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. रिणछोड ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., गद्य, आदि: पगलु१ घटी१७ पल२ पगला २; अंति: पगलां ५१ घटी ३ पल ९. २. पे. नाम. शालिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाला तणे भव; अंति: सहजसुंदरनी वाणी, गाथा-२१. ३. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ.,पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ जोहणी मोहणी दोनो बहु; अंति: परं वस्य० सामांतीनाम्. १२१७१३. ४ मंगल रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्र.वि. हुंडी:मंगलच्यार., दे., (२६.५४१२.५, १२४४१). ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी जिन नमुंसकल; अंति: धरमनो ए मुगतनगर ले जायके, ढाल-४, गाथा-२१५. १२१७१८. नेमराजिमती कवित्त, रायचंदसूरि कवित्त व कबीर पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, प्र.वि. खडा लेखन., जैदे., (२५४११, ३१४१५). १.पे. नाम. प्रास्ताविक कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.ग., पद्य, आदि: आप कजि पीरइ पंच दि; अंति: कुमतीलउ काजी कहावती, का.-१. २. पे. नाम. नेमराजिमति कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती कवित्त, मा.गु., पद्य, आदि: दामनि चमकइ मेहरा टमकइ; अंति: राणि राजमति दुख दुह मिटइ, का.-१. ३. पे. नाम. रायचंदसूरि कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. रायचंदसूरि गच्छनायक कवित्त, मा.गु., पद्य, आदि: सोमकला नृप धीरमनउ गणधार; अंति: गछनायकश्री सुखदाइक जी, का.-१. ४. पे. नाम. रायचंदसूरि कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: मंडल दाया विशाल सुधासम; अंति: इला धर्म उद्योतकरा, का.-१. ५.पे. नाम. कृष्णभक्ति कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. ब्रह्म, मा.ग., पद्य, आदि: व्रजनाथ कइ साथी सबइ सखिया; अंति: ब्रह्म कि जाति भई न भई. का.-१. ६. पे. नाम, आध्यात्मिक गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: घरि जाहु हमारी भइणा; अंति: बहु तेरा पा घर जोक न लागई, गाथा-४. ७. पे. नाम. कबीर वाणी, पृ. १आ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, वि. १५वी, आदि: देखि कबिर लालजी खडी देखी; अंति: दास कबीर० ले गई पंजर तोडी. १२१७२०. ११ अंग सज्झाय, वीरसेनजिन व साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (२५४१२, १९४५०). १. पे. नाम. ११ अंग सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. मु. विनयचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: पहिलो अंग सुहामणों; अंति: ७ सहेल्या है आज वधावणा, ढाल-१२. २. पे. नाम. वीरसेनजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. उपा. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वीरसेन जगदीश ताहरी; अंति: देवचंद्र० चिर आनंदीयै जी, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २१९ ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिणंदा ताहरी वाणीयै; अंति: प्रेमै भाखे इम कवि कंत रे, गाथा-५. १२१७२१ (+) १२ भावना सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १०४३०). १२ भावना सज्झाय-बृहत्, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदिः पास जिणेसर पय नमी; अंति: जयसोम० भणी जेसलमेर मझारी, गाथा-१२१. १२१७२२. समकितना सडसठबोल सज्झाय सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९१०, माघ शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. ३७, ले.स्थल. धोलेराबंदर, प्रले. सा. जीवा; पठ. सा. रूपा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:समकितनीसझाय., समकितनो बालाबोधनीसझाय. श्रीशांतिनाथप्रसादत्., कुल ग्रं. ६८३, दे., (२५.५४१२.५, १२४२७). सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: वाचक जस इम बोले रे, ढाल-१२, गाथा-६८. सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सुकृत पुन्यद्रूप जे वल्लि; अंति: उपाध्याये इम कह्यो छे. १२१७२३. (+) शत्रंजयतीर्थ रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२.५, १४४२६). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ की गाथा-२ ___ अपूर्ण से ढाल ३ की गाथा-१० अपूर्ण तक है.) १२१७२४. साधुश्रावकने खांणै की वस्तु राखणै को कालप्रमाण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. हीरानंद मथेन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १२४४२). साधुश्रावक एषणीयआहार कालमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चावल प्रहर २८ राब प्रहर; अंति: श्रावक न लेवै खवै नही. १२१७२५. (+) दशाश्रुतस्कंधसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६०, प्र.वि. हुंडी:दशाश्रुत०., दसासुत., संशोधित-संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, ५४४८). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० सयंमे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, दशा-१०. दशाश्रुतस्कंधसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार थाउ अरिहंतने ते; अंति: महावीरदेव समीपे तिम कहं. १२१७२६. ७ व्यसन कडखो, संपूर्ण, वि. १८२५, भाद्रपद शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१३, १२४४१). यसन कडखो, मु. कल्याण मुनि, पुहिं., पद्य, आदि: तुम छांडि हो छांडि जीव; अंति: कल्याण मुनि० भोरो दुखारी, गाथा-९. १२१७२७. (+#) सूक्तावली संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक नहीं है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, १५४४४). सूक्तावली संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ३१ अपूर्ण से ४७ अपूर्ण तक है.) १२१७२८. अनाथीमुनि सज्झाय, सुभद्रासती रास व १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६३-६०(१ से २४,२७ से ६२)=३, कुल पे. ३, दे., (२४४१३, १७४३५). १.पे. नाम. अनाथीमनि सज्झाय, पृ. २५अ-२६आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:साध. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: (-); अंति: कवीयण भणे० अनाथी रीषरायो, गाथा-६२, (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सुभद्रासती रास, पृ. ६३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सुभद्रासती रास-शीलव्रतविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल १ की गाथा ८ अपूर्ण से है व ढाल २ की गाथा-६ तक लिखा है .) ३. पे. नाम. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, पृ. ६३अ-६३आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: पचखाणरा फल सबलो भाखीयो; अंति: करो पामो कोड कीलाण हो, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२१७२९ ५ समिति ३ गुप्ति ढाल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी:पांचसुमति., दे., (२६.५४१३, १८-२१४३५-४०). ८ प्रवचनमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: पांच सुमत तीन गुपत आठे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-१५ तक है.) १२१७३०. श्रेणिकराजा की १० रानियों का तपवर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४१३.५, १७X५७-६०). अंतकृद्दशांगसूत्र-संबद्ध श्रेणिकराजा की १० रानियों का तपवर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: पेली काली दुजी सुकाली; अंति: तीन महीना वीस दीन लागा. १२१७३१ (+#) बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:बंधीसं., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२.५, १४४३४). बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जीवाय १ लेस २ पखी ३ दिठी; अंति: (-), (पू.वि. 'पहिलो तीजो समा मिथ्या दिष्टी माइ भांगा तीजो' पाठांश तक है.) १२१७३३. सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:अनाथी०., दे., (२४४१३.५, १६-२०४३२-४७). १.पे. नाम, अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधदेश श्रेणक सुखकारी; अंति: इम बोल्या मुनीराय, गाथा-३३. २. पे. नाम. शीयलव्रत सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: गहरो रंग लागो हो सतरा रे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक हरियाली, पृ. ४अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक औपदेशिक हरियाली, उपा. विनयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सेवक आगल साहेब नाचे; अंति: विनयसागर० मन लावो, गाथा-८. ४. पे. नाम. २८ लब्धि नाम, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: आमोसही हस्त स्पर्श मात्र; अंति: (-), (पू.वि. नाम-२२ अपूर्ण तक है.) १२१७३४. सती सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सतीयांरीसजा., दे., (२६.५४१३.५, १६४३८). केसरआर्या गरु भास, सा. सहिजा आर्या श्रावि. कपरदे, मा.ग., पद्य, आदि: सरसति सांवणे विनव रे लाल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) १२१७३५. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९०८, आषाढ़ शुक्ल, ६, बुधवार, मध्यम, पृ.७, प्रले. सा. उमेदश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. १२०, दे., (२६४१२.५, १०४३०). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमला; अंति: विनयभद्र० इम भणे ए, गाथा-६४. १२१७३६. (+) महादेव स्तोत्र व प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २,प्र.वि. हंडी:महादेवस्तो० हेमचंद्रीयं०., संशोधित., दे., (२६४१३, ६४३९). १. पे. नाम, महादेव स्तोत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण.. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रशांतं दर्शनं यस्य; अंति: जिनो वा नमस्तस्मै, श्लोक-४०. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीशांतिनाथादपरो न दानी; अंति: न कूलबालदपरः कुशीलः, श्लोक-२. १२१७३८. (#) रामरावण पद, नारीपद सवैया व ब्रह्मचर्य सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२.५, १०४३८). १.पे. नाम. रामरावण पद, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. For Private and Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २२१ मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: राम ही जब रावण मार्यो, पद-१, (पू.वि. "मृदंग कहा ओर" पाठ से है.) २. पे. नाम. नारीपद सवैया, पृ. २अ, संपूर्ण. ___ पुहिं., पद्य, आदि: लंछण धाम चले गज कट; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दोहा-१ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. ब्रह्मचर्य सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-१६ बंभचेरसमाहिठाणं सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मचर्यना दश; अंति: उदयवाचक० सवि देह रे, गाथा-५. १२१७३९ नेमराजिमती सज्झाय व प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. सौभाग्यसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१३, १२४४१). १. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अवलमोलने अमूल झरूखाएअ; अंति: देव कहे हितकारी, गाथा-६. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: माता वेरी पीता सत्रु बारो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-४ अपूर्ण तक लिखा है.) १२१७४१. (+) दशवकालिकसूत्र- अध्ययन १ से ४, संपूर्ण, वि. १९७१, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. वगडी, प्रले. मु. नादुराम; पठ. मु. धुलचंद; अन्य. मु. नथमल महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दसवइकाल., दसमीकाल., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., ., (२६४१२, १६४३५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १२१७४४. गजसुकुमालादि सज्झाय संग्रह व महावीरजिन गहुंली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ४, दे., (२५४१३, ७x१४). १. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन आया हो सोरठ देश; अंति: मझार करजोर रतनो भणैः, गाथा-१३. २. पे. नाम. इक्षुकार कमलावती सज्झाय, पृ. ३अ-६आ, संपूर्ण. मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: पुर इखुकारे नृप इखुकार ए; अंति: ब्रह्म० जनमनो फल लीजी ए, गाथा-८. ३. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण. __ उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा रे अतीलोभीया; अंति: लही समयसुंदर बंदे पाया रे, गाथा-७. ४. पे. नाम. महावीरजिन गहंली, पृ. ८अ-९अ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहि., पद्य, आदि: कुण वन वीर समोसर्या मै तो; अंति: सार्या निज आतम काजरी, गाथा-५. १२१७४७. अद्वेष दृष्टांत सज्झाय व मघाशिक्षा चरित्र, अपूर्ण, वि. २१वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, दे., (२५४१२.५, १८४४७). १.पे. नाम. अद्वेष दृष्टांत सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: शांति से शांति करना जी, गाथा-१९, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मघाशिक्षा चरित्र, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण.. मघाशिक्षा चरित्र-शीलप्रभाव, पहिं., पद्य, आदि: उन्नति चाहो अगर निज धर्म; अंति: वह भवनिधि सुख से तरे, गाथा-२४. १२१७४८. (+) असज्झाय सज्झाय व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१३, १२४३१). १. पे. नाम, असज्झाय सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता आदे नमीइं सरस; अंति: ऋद्धिविजय० वरस्यो सिद्ध, गाथा-१०. २.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ.१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. रूपचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: हा रे प्रभु तोरणथी तोरणी; अंति: प्रभु जइ भेटा गढ गिरनार, गाथा-६. १२१७४९ पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१३, ११४३१). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मा.गु., पद्य, वि. १९३३, आदि: संखेसरा पासजी जयकारी; अंति: ते तुज गुण धरसे, गाथा-८. १२१७५०. नवपद स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.१, कुल पे. २, दे., (२६४१२.५, १५४३६). १. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. कष्णविजय, पुहिं., पद्य, वि. १९४७, आदि: नवपद चित नित धरियै; अंति: कृष्ण कहै हरि उठेगा, गाथा-१३. २. पे. नाम, नवपद स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. राजचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १९४७, आदि: निरमल होय भज ले; अंति: राजचंद्र मधुरस्वर गाई, गाथा-७. १२१७५१ (+) कल्पसूत्र, ज्ञानपहिरावणी गाथा व कालिकाचार्य कथा, अपूर्ण, वि.२०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३४, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:कल्पद्रमटी., कल्पद्रम०., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२५४१२.५, ११४३३). १. पे. नाम. कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका, पृ. १आ-३१६अ, संपूर्ण. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: भुज्जो उवदंसे त्तिबेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-कल्पद्रमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्य; अंति: कल्पसूत्रस्य चेमाम, ग्रं. ४१०९. २.पे. नाम. ज्ञानपहिरावणी गाथा, पृ. ३१६आ, संपूर्ण. __प्रा., पद्य, आदि: नमंत सामंत महीवनाहं देवाय; अंति: नाणस्स लाभाय भवसु पाय, गाथा-२. ३. पे. नाम. कालिकाचार्य कथा, पृ. ३१६आ-३३४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६६, आदि: प्रणम्य श्रीगुरुं; अंति: (-), (पू.वि. 'वर्तमानयोगः एके दानं ददाति एके सी०' पाठांश तक है.) १२१७५२. ८४ बोल आराधना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५.५४१३, १३४४३). ८४ आराधना बोल, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: भावेण जीवा अविरती पाप करे. १२१७५४. (+) पन्नवणासूत्र-२० पदगत २३ पदवी कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, ४९४३०). प्रज्ञापनासूत्र-२३ पदवी विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: तिर्थंकर १ चक्रवर्त्ति २; अंति: (-). १२१७५५. २४ दंडक ३५ द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९३०, पौष शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ३०, ले.स्थल. पल्लिका नगर, प्रले. अमरदत्त ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:३५ द्वार पत्रं., ३५ द्वार पत्रमिदं., कुल ग्रं. १४००, दे., (२६४१२.५, १६x४२). २४ दंडक ३५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: संसारी जीवो च्यार; अंति: दंडकनी कुलकोडि कही. १२१७५६ (+) पौषदशमीपर्व कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९५, पौष कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ७, प्रले. मु. जवानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पोशदशमी. श्रीमाणभद्रजी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, ७४२८). पौषदशमीपर्व कथा, मु. जिनेंद्रसागर, सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: शीघ्रं रचयां चकार, श्लोक-७५, संपूर्ण. पौषदशमीपर्व कथा-टबार्थ, मु. उदयसागर, मा.गु., गद्य, वि. १९वी, आदि: पार्श्वनाथ स्वामी प्रते; अंति: उदयपयोनिधि० झट तिज ज्ञान, (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२८ अपूर्ण से गाथा-७४ तक का टबार्थ नहीं लिखा है.) १२१७५८ (+) नववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९८७, आश्विन कृष्ण, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल, सरदार शहर, प्रले. मु. रेवतमल; पठ. श्राव. महालचंद कोठारी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सीलरीनव., सीलरीनववाड., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१२, १३४५८). नववाड सज्झाय, मा.गु., पद्य, वि. १८४१, आदि: श्रीनेमीसर चर नमु परनमु; अंति: बीर्मचारी नववाड चीतारो, ढाल-११. For Private and Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २२३ १२१७६० (+) वीजतिध्यादि स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५-१ (१) =४, कुल पे ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५x१२, ७X१७). १. पे नाम बीजतिथि स्तुति, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि दिन सकल मनोहर बीज; अंति कहे पूर मनोरथ माय गाथा ४. २. पे नाम. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी अटमनी थोअ पत्र. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि मंगल आठ करी जिन आगल, अंति: अमरने नीतनीत वाज रंग जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ४अ ५अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपति; अंति: ( अपठनीय), श्लोक-४. ४. पे नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ५२-५आ, संपूर्ण. मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि परव पजुसण पुन पांमी, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) १२१७६१. () सिद्धाचलजी तीर्थमाला स्तवन व संभवजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८७१ आषाढ़ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ७-६ (१ से ६)=१, कुल पे. २, पठ. श्रावि. नैनीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x१२.५, १४४३२). १. पे नाम. सिद्धाचलजी तीर्थमाला स्तवन, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शत्रुंजय तीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: (-); अंति: नित नमो गिरिराया रे, (पू. वि. मात्र अंतिम ढाल की गाथा १६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: ससनेही जिनराय मिलीइ केण; अति मोहन कहे चरणे नमी, गाथा- ७. १२१७६२. (+) दानअधिकार प्रीयमेलक तीर्थप्रबंध, संपूर्ण, वि. १८९२, वैशाख कृष्ण, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल. पाली, प्रले. श्राव. चंदु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : सीहलकुमर., संशोधित., जैदे., (२६X१२.५, १९X३७). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंति: पुन्यें अधिक प्रमोद, डाल- ११. १२१७६३. श्रेणिक महाचरित्र, संपूर्ण, वि. १९७६, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ५२, ले. स्थल. सिरदार शहर, प्रले. मु. गणेशदा (गुरु मु. लखीराम, खरतरगच्छ); गुपि. मु. लखीराम ( खरतरगच्छ); राज्यकालरा. शार्दूलसिंह (पिता रा. गंगासिंह): गुपि. रा. गंगासिंह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी: श्रेणकचरित्र. अंत में चरित्रगत प्रसंगों की सूचि दी गई है. प्र. ले. श्लो. (६) कर कूबड मस्तक अधो, (५६५) यासं पुस्तकं दृष्ट्वा (९३१) तेलाद्रक्षे जलाद्रक्षे, (१५२३) मंगलं लेखकाणस्य दे. (२५.५x१२. २०५४). श्रेणिकराजा रास. मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १९३९, आदि जै जै जै जिन जगगुरु अति तिलोक० भव जल सेति रे जी, ढाल ८४. १२१७६५ तपोविषये अशोकचंद्रनृपति रोहिणीराणी चरित्र रास, संपूर्ण वि. १८४०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५. शुक्रवार, मध्यम, पू. ५२, ले. स्थल. दमणबिंदर, प्रले. मु. जिनविजय (गुरु मु. जयविजय ); गुपि. मु. जयविजय (गुरु ग. सुंदरविजय); ग. सुंदरविजय (गुरु ग. अमरविजय); ग. अमरविजय (गुरु पंन्या. सुमतिविजय); पंन्या. सुमतिविजय (गुरु आ. विजयप्रभसूरि) प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी : रोहिणीरास श्रीजीराउलापार्श्वप्रभो प्रसादात्, जैवे. (२५.५१२, १२३७). . रोहिणी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७७४, आदि: सुखकर श्रीशंखेसरु; अंति: ज्ञानविमलसूरि० मन आस, ढाल ३१. .जे. (२५०x११.५, जैदे., १२१७६६. (+) शतकत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८७, ले. स्थल. जालंधर, प्रले. मु. खुबचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भरतरीसतकट०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले. श्लो. (११३७) यादृशां पुस्तकं दृष्ट्वा, ४x२९). For Private and Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शतकत्रय, भर्तृहरि, सं., पद्य, ई. ७वी, आदि या चिंतयामि सततं अंति धर्म एको हि निश्चल, शतक-३ (वि. १८९५, पौष, १०, बुधवार) शतकत्रय-टवार्थ, य. रूपचंद, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वदर्शिनमानम्य; अति धर्म० एक निश्चल छे. (वि. १८९६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४) १२१७६७. (+) जगच्चंद्रिका सारणीसार, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. २, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१२, १३X३२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सारणीसार जगच्चंद्रिका, वा. हीरचंद्र, मा.गु., पच, वि. १७६२, आदि सकल सिद्धिदायक सखर अति हीरचंद्र० हुये संसार, गाथा - ३७. " १२१७६९. (+) पांडव रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ११-१२ (१) १०. पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित., वे. (२६१२, २९६४). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य वि. १६७६, आदि (-); अति: (-), (पू.वि. खंड-१ डाल- २ गाथा ५४ अपूर्ण से खंड-३ ढाल-१ गाथा-५७ अपूर्ण तक है.) १२१७७३. (+) छत्तीसी संग्रह, अपूर्ण, वि. १८९६, चैत्र शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पू. १३-५ (१ से ५)=८, कुल पे ४, प्रले. मु. चारित्रसमुद्र गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६४११.५, ११४३५) १. पे. नाम. मतप्रबोधछत्तीसी, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मतप्रबोधछत्रीसी, मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: सामई रची बुद्ध आधार, गाथा-३६, (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. भावषट्त्रिंशिका, पृ. ६आ-८आ, संपूर्ण. भावछत्रीसी, मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, वि. १८६५, आदि क्रिया अशुद्धता कछु अंति: मुनि ग्यानसार मतिमंद, गाथा - ३९. ३. पे नाम. चारित्रछत्तीसी, पृ. ८आ-१०अ संपूर्ण. " मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि ग्यान घरी किरीया करो मन अति बिवहार में वाकी नही लवलेस, गाथा-३६. ४. पे. नाम. आत्मप्रबोधछतीसी, पृ. १०अ १३अ, संपूर्ण. आत्मप्रबोधछत्तीसी, मु. ज्ञानसार, पुहि, पद्य, आदि: श्रीपरमातम परम पद रहे अति सारली ए आतम छत्तीस, " गाथा - ३६. १२१७७४. (+) सुदरसणसेठनी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९१६, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले. स्थल. पाली नगर, प्रले. श्राव. गोवर्द्धन छांगांणी पठ. सा. राजा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी सुदर्शणसे. सुदरसण., टिप्पण पाठ. कुल ग्रं. ६४१, दे., ( २६.५X१२, १६x४९). सुदर्शनशेठ चौपाई, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि सासणपति समरुं सदा सारे; अंति रिष चोथमल मंगलीक वारो जी, ढाल ३१. - १२१७७५. (+) सीझण द्वार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. हुंडी : नंदीसूत्रे, सीझणद्वार, टिप्पण युक्त विशेष पाठ., , दे., युक्त विशेष (२६११.५, १९x४२). सिद्ध के १५ द्वार बोल, मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्य भव मनुष्यपणा थकी; अंति: बे सिद्धा अनंत गुणा हा १२१७७६. (+) साधवंदणा, संपूर्ण, वि. १९२१, कार्तिक कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. उदेचंद; पठ. धनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : साधवन्नणा, संशोधित. कुल १३५, दे., (२५.५४१२, १५४३३). साधुवंदना बृहद्, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमुं अनंत चौबीसी ऋषभादिक; अंति: जेमल० ए भाख्यो अधिकार, गाथा- ११२. For Private and Personal Use Only १२१७७८. () औपदेशिक सवैया व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ४. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x११, १६x४३). १. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ म. उदैराज, पुहिं., पद्य, आदि: किण ही नाम मुख लीजे किण; अंति: सास सो सांभरे कामिणी, गाथा-९. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: कबीर नौबत अपणी दिन; अंति: नही ज्यं कंचली भयंग, पद-९. ३. पे. नाम, संभवजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. म. ऋद्धिकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: संभवजिननी सेवा रे प्यारी; अंति: रिद्धकीरति० मोहे हो दयाल, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पहिं., पद्य, आदि: अरे भववासी जीव जड; अंति: याद राख साचे भगवान कं, गाथा-१. १२१७७९ (#) निंदापरिहार व पुन्य सिझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, ११४२८). १. पे. नाम. निंदापरिहार सझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निदात्याग, मा.गु., पद्य, आदि: म कर हो जीव परताति दिन; अंति: भावस्युं ए हित सीख माने, गाथा-९. २. पे. नाम. पुन्य सिझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पारकी होड तुंम कर; अंति: समयसुंदर० कोटानुकोटी, गाथा-३.. १२१७८० (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०२-९६(१ से १९,२१ से २४,२६ से ३१,३३ से ८७,८९ से १००)=६, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. हुंडी:ट०उत्त०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १९४४३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२ गाथा-२८ से अध्ययन-१८ गाथा-५१ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह*, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). १२१७८१. महावीरस्वामीना सत्तावीस भव सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८६९, आश्विन शुक्ल, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १८-१७(१ से १७)=१, प्रले. मु. केसरी भवानजी; पठ. मु. नाथा; अन्य. मु. बकतावरलाल (परंपरा मु. गेरीलाल); गुपि. मु. गेरीलाल, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४११.५, ४४२७). महावीरजिन २७ भव चरित्र, मु. मेघराज, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: कल्पसूत्रादवसेयं, भव-२७, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र ___नहीं हैं., भव-२५ अपूर्ण से है.) महावीरजिन २७ भव चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: कल्पसूत्रमा का छे, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. १२१७८२. ८ प्रवचनमाताना बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:८ प्रवचनमाता बोल., दे., (२६४११.५, २०४४१). ८ प्रवचनमाता विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पांच सुमित सम्यक्त; अंति: सुमती तीन गुप्त सम्यक आय. १२१७८३. (+) पुण्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ११४३२). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम कलश गाथा-५ अपूर्ण तक है.) १२१७८६. (+) जन्मपत्री पद्धति, संपूर्ण, वि. १८५६, माघ कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ६२, प्रले. मु. वीरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ११४२८). जन्मपत्री पद्धति, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य शारदां ज्योतिः०; अंति: विधि० गम्याभिर्धनचालनं. १२१७८७. कल्पसूत्रगत आगम वाचना काल विवरण, अपूर्ण, वि. १८९२, आषाढ़ शुक्ल, १५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २१३-२१२(१ से २१२)=१, प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्र. कल्पसूत्र ग्रंथ का अंतिम छूटक पत्र है., जैदे., (२५.५४१२, ९४३८). For Private and Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आगम वाचना काल विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: वाचनांतर बीजी वाचना १२; अंति: (१)पयन्ना माहें किहिओ छे, (२)आयरणं तं पमाणंत्ति, संपूर्ण.. १२१७८८. (#) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३३-१(१)=३२, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ११४३३). कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-३३ तक है.) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तिम स्तवीशी श्रीवीरजिन; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं है. १२१७८९ (4) आचारांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५०-४९(१ से ४९)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:आचारांगप०. पत्रांक भाग खंडित होने से अनुमानित पत्रांक दिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, ५४४८). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ उद्देश-२ अपूर्ण से उद्देश-३ अपूर्ण तक है.) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२१७९२ (+#) हरिबल चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ.८७-३(२ से ३,७६)=८४, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:हरिबलरास., हरिबलरा., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १५४३८). हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१०, आदि: प्रथम धराधव जगधणी; अंति: (-), (पू.वि. उल्लास-४ ढाल-२४ गाथा-२० अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) १२१७९३ (+) मणिपति राजऋषि रास, पूर्ण, वि. १८२६, श्रावण शुक्ल, ७, रविवार, मध्यम, पृ. १०१-१(१)=१००, ले.स्थल. सुरतिबिंदर, प्रले. ग. प्रधानविजय (गुरु ग. प्रतापविजय पंडित); गुपि.ग. प्रतापविजय पंडित, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४३९). मनिपति रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६१, आदि: (-); अंति: श्रीसंघ मनोरथ फलीया रे, ढाल-९३, गाथा४००५, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-९ अपूर्ण से है.) १२१७९४. सम्यक्त्वकौमुदी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७९, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ७७, ले.स्थल. वीक्रमपुर, प्र.वि. हुंडी:सम्मगत को०., समगत., स्मक्त्व कोमुदी., जैदे., (२६४११.५, ७४५१). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., प+ग., वि. १४५७, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: स्वर्गमश्नुते. सम्यक्त्वकौमुदी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: नर मोक्ष सुख पांमइ भोगवइ. १२१७९६. आचारांगसूत्र सह टबार्थ व ४२ गोचरी दोष, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १००-९९(१ से ९९)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., दे., (२५.५४११.५, ६x६५). १. पे. नाम. आचारांगसूत्र सह टबार्थ, पृ. १००अ-१००आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-१ उद्देशक-१ सूत्र-३३५ अपूर्ण से है व ३३६ अपूर्ण तक लिखा है.) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-१ उद्देशक-१ सूत्र-३३५ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. ४२ गोचरी दोष, पृ. १००आ, संपूर्ण. ४२ गोचरी दोष गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आहाकम्मं १ उदेसियं २; अंति: इगाले ३ धुम ४ कारणे ५. १२१७९७. गौतमपृच्छा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४१२, ७४३१). गौतमपच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ तक है.) गौतमपच्छा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: तिर्थना नाथ श्रीमहावीरने; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २२७ १२१७९८. जीवविचार प्रकरण सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है, अन्य मु. वकतावरलाल (गुरु मु. गोरीलाल); गुपि. मु. गोरीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X११.५, ४x२८). " जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी आदि भुवणपईव वीरं नमिकण; अति (-) (पू.वि. गाथा- ३ अपूर्ण तक है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिण भुवननई विषई दीवा; अंति: (-). १२१७९९. (+) स्तवन व स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २२-१६ (१ से ११,१५,१८ से २१) = ६, कुल पे. ११, प्र.वि. हुंडी: स्तवन प., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६×११.५, १५X३७). १. पे. नाम. शेत्रुंज स्तवन, पृ. १२अ- १२आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आदिजिन स्तवन शत्रुंजयतीर्थमंडन बृहत्, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति प्रेमविजे० पामो भवपार ए. गाथा-४३, (पू.वि. गाथा-२९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेम स्तवन. पू. १२आ, संपूर्ण नेमिजिन स्तवन, मु. नित्यविजय, रा., पद्य, आदि: सुरत थांरी हो प्यारि: अंतिः नित्यविजय० सवायो मान, गाथा-५. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण. मु. हीरसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिणंद मया करी दीजे; अंति: हीरसुंदर० सेवग किजे सनाथ, गाथा-५. ४. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: सांमलीया घर आवके राजुल; अंति: जीनरंग० शिव पद ते लहे हो, गाथा-७. ५. पे. नाम. गोडी स्तवन, पृ. १३अ -१३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवनगोडीजी, मु. साधुहर्ष, मा.गु, पद्य, आदि वामानंदन वादतां आपे अविचल अति साधुहरष० जिवीत जनम प्रमाण, गाथा ६. ६. पे. नाम ऋषभजिन स्तवन, पृ. १३आ- १४अ, संपूर्ण आदिजिन स्तवन, मु. श्रीविजय, मा.गु., पद्य, आदि तार मुझ तार मझ तार अंतिः कष्ट दुख दुरि मेट्या, गाधा-७. ७. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १४अ, संपूर्ण. मु. श्रीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अभिनंदन जिनराय अहो; अंति: श्रीविजय० सुख सासता जी, गाथा - ५. ८. पे. नाम विहरमानजिनवीसी, पू. १४अ १७आ अपूर्ण, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं है. २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुक्खलवई विजये जयो; अंति: (-), (पू.वि. बाहुजिन स्तवन गाथा-४ अपूर्ण से सुरप्रभजिन स्तवन गाथा १ अपूर्ण तक व महाभद्रजिन स्तवन अंतिम गाथा अपूर्ण से नहीं हैं.) ९. पे. नाम. सरस्वतीदेवी षोडशनाम स्तोत्र, पृ. २२अ संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: नमस्ते सारदादेवी; अंति: सारदा भवतु मे वरदा सदापि, श्लोक ८. १०. पे. नाम. सरस्वत्याष्टक, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्म, आदि बुद्धि विमल करणी विबुध अति नित नमेवी जगपती, गाथा ९. ११. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. २२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सरस्वतीदेवी स्तोत्र - १०८ नाम गर्भित, सं., पद्य, आदि: धिषणा धीर्मतिर्मेधा अति (-) (पू.वि. श्लोक-१३ अपूर्ण तक है.) १२१८०१. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन व पार्श्वजिन स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३२, कुल पे. ३०, अन्य. पं. उवेचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५x१३, १४४३२). १. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन श्लोक १ से ४, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मु. नगजय, सं., पद्य, आदि: श्रेयांसपुत्रं कृत; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची म. नगजय, सं., पद्य, आदि: नमः सिद्धक्षेत्राय; अंति: तीर्थेश सैत्रंजयाय, श्लोक-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-श्लोक १ से ५, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारसमयं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद-कलशरहित, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नवकार. नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरै विविधपर; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५. पे. नाम. स्नात्रविधि, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. स्नात्रपूजा संग्रह*, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: मुक्तालंकार विकार सार; अंति: स्वदासतांमानय सर्वदापि. ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-मनस्थिरीकरण, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सजाय. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मन थिर करज्यो रे समकित; अंति: रूपविजय कहे चिदघन राशिने, गाथा-७. ७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-स्थिरदृष्टि, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: दृष्टि स्थिरामांहि दर्शन; अंति: किम हौवे जगनो आसी रे, गाथा-६. ८. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल वंदो रे; अंति: भक्ति करुं इक तारी, गाथा-५. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु पासजी रे वाला; अंति: धर्म थकी दखडा सघला टलिया, गाथा-५. १०. पे. नाम, सरसतीपाय स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, म. देवकशल, मा.ग., पद्य, आदि: सरसती पाये नमी करी रे; अंति: देवकुशल नितमेव हो सजनि, गाथा-५, (वि. आंकणी में आदिजिन का नाम दिया है.) ११. पे. नाम. पंचमी सज्झाय, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पंचमनी सज्झाय. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसरि, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर वयण; अंति: संघ सकल सुखदाय रे, ढाल-५, गाथा-१६. १२. पे. नाम. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय-अष्टम सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सीजाय. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १३. पे. नाम. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-६, (वि. आदि-अंतिम वाक्य खंडित है.) १४. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय-बारमासा, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बारमासा. मु. मोतीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण वसै रे स्वामी मेली; अंति: मोतीविजय गाउ चोमासुं, गाथा-१४. १५. पे. नाम, मोतीसा सेठनु भोइखलानो स्तवन, पृ. ८आ-१२आ, संपूर्ण, वि. १९०९, भाद्रपद कृष्ण, ५, शुक्रवार, पे.वि. हंडी:सातढालिओ. आदिजिन स्तवन-मंबईबंदरकोटे भायखलामंडन, पं. वीरविजय, मा.ग., पद्य, वि. १८८८, आदि: सुखकर साहेबरे पामी; अंति: शुभवीर वचनरस गावें जी, ढाल-७. १६. पे. नाम. सूतक विचार, पृ. १२आ-१३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सूतकवी. मृत्यु सबंधी सूतक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जेने घरे जन्म थाय तेहने; अंति: आभदि आवे तो प्रहर १२ सूतक. १७. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदीसर जगदीसरू रे; अंति: मोहन कहे तुमे प्राणाधार, गाथा-५. १८. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १४अ, संपूर्ण.. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलग अजित जिणंदनी; अंति: मोहन तू आंतरजामी रे, गाथा-५. १९. पे. नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २२९ मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजित अजितजिन अंतर; अंति: मोहन० अनुभव आनंदरस चाखै, गाथा-९. २०. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:संभवजीन तवन. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७०, आदि: समकित दाता आपो मन मांगै; अंति: पभणे रसना पावन कीधी, गाथा-७. २१. पे. नाम, शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १५अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसरि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धगिरि ध्यावो; अंति: ज्ञानविमल गुण गावे, गाथा-६. २२. पे. नाम. हितशिक्षामणछत्तीसी, पृ. १५अ-१६आ, संपूर्ण.. उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलज्यो सजन नरनारी हेत; अंति: शुभवीर० मोहन वेली, गाथा-३६. २३. पे. नाम. सिद्धाचलगिरिवर शोभा, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. शवजयतीर्थ चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवल ज्ञानकमला; अंति: पद्मविजय सुहितकर, गाथा-७. २४. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १७अ-१९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नवतत्व पां २. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४९. २५. पे. नाम, जीवसार प्रकरण, पृ. १९अ-२१अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जीवसार. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा-५१. २६. पे. नाम. पोसह लेवानी विधि, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण.. पौषध विधि *, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही पडिकमि; अंति: होज्यो पछे पच्चक्खाण करवो. २७. पे. नाम. सीलवेली, पृ. २२अ-३१आ, संपूर्ण, वि. १९०९, भाद्रपद कृष्ण, २, सोमवार, पठ. श्राव. उदेचंद भेराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:सीलवेली, सीलवेडी. स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सयल सुहंकर पासजिन; अंति: विमला कमला वरस्यै रे, ढाल-१८. २८. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-श्रावकश्राविका, पृ. ३१आ-३२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: समकितधारी श्राविका; अंति: से रहो सुत लक्ष्मी फल दोय, गाथा-५. २९. पे. नाम. नेमराजिमती लावणी, पृ. ३२अ-३२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:लावणि. ___ मु. जिनदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: नम तज कर राजुल नार्य; अंति: जिनदास० पाय गया गिरवर रे, गाथा-४. ३०.पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. ३२आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: पिया चले गिरिवर कु मेरा; अंति: दिक्षा लुंगी भवतरणी, गाथा-५. १२१८०३. सज्झाय संग्रह व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:तवन., दे., (२६४१३.५, १७X४४). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-तप, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: धन धन धन धन धन उन मुनियो; अंति: कह्यो तप बडो हितकारी, गाथा-५. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आतम दमवो रे प्राणिया; अंति: पिण वांछु प्रभु एह, गाथा-९. ३. पे. नाम. रुक्मणीसती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रुकमणीसती सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: धन धन वाणी प्रभु आप की इण; अंति: भाव दीदो संजम भार जिनवरजी, गाथा-१०. ४.पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: धर्म मति धारे मति मान; अंति: उन पुरुषों का जन्म प्रमाण, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २३० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास 'श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२१८०५. कुमतिमतोत्थापक चर्चा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९-८ (१ से ८) = १ ले स्थल शिवगंज, जैदे., (२५.५x१३, १७४४३). जिनप्रतिमापूजामतपुष्टि विचार, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अति जिनपडिमानं जिणसारही, (पू.वि. प्रतिमा भावपूजा वर्णन अपूर्ण से है.) १२१८०७. नेमराजिमती नवरसो व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १८९५ आश्विन शुक्ल, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. श्राव. चतुरमाणिकचंदभाई वामेती, पठ. श्रावि पुरीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. खडा लेखन. गु., ( २६४१३, १९x१९)१. पे नाम नेमराजिमती नवरसो, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि समुद्रविजय सुत चंदलो, अंतिः प्रभु उतारो पार, डाल-९, गाथा ४०. २. पे नाम, शांतिजिन स्तवन, पू. ४आ-५आ, संपूर्ण मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि प्रभु शांतिजिणंद भलैः अंतिः रंग बन्यो रंग बन्यो, गाथा-७, १२१८०८. (७) मानतुंगमानवतीसंवाद रास, संपूर्ण, वि. १९१२ आश्विन शुक्ल, २, बुधवार, मध्यम, पृ. ३७, पठ. श्राव. उवेचंद भेराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी मानतुंग, अक्षर फीके पड गये हैं, दे. (२४.५४१२.५, १६x४८). मानतुंगमानवती रास- मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य वि. १७६०, आदि श्रीरिषिभजिणंद पदांबुजे अंति: मोहनविजय० घर मंगलमाला है, ढाल ४७, गाथा- १०१५. " १२१८०९. (+) व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५०, कुल पे. ११, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २४x१२.५, १३३१). १. पे नाम. चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पृ. १आ- १२अ संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: चतुर्मासि० चतुर्मा०व्या उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि स्मारं स्मारं स्फुरज्ज्ञा अंति ततः सर्वेष्टार्थसिद्धिः ग्रं. ४०१. २. पे. नाम. अष्टाह्निका व्याख्यान, पृ. १२अ-२३आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी: अठाईव्या. अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य वि. १८६०, आदि: शांतीश शांतिकर्त्तारः अति: पद्यबंध विलोक्य तत् ३. पे. नाम. दीपालिकामाहात्म्य व्याख्यान, पृ. २३आ- २७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी दीपा. व्या. दीपावली पर्व कल्प, सं., गद्य, आदि श्रीगौतम गणाधीसो; अंति शाश्वतसुखभाजो भवतीति ४. पे. नाम. सौभाग्यपंचमी व्याख्यान, पृ. २८अ - ३१अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: ज्ञानपं.व्या. वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु. सं., गद्य, आदि ज्ञानं सारं सर्व, अंति: गुणमंजरी कथानकं समाप्त. ५. पे नाम. कार्तिक शुक्लपूर्णिमा व्याख्यान, पू. ३१अ-३४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी का.पू.व्या. " कार्तिक पूर्णिमापर्व व्याख्यान, ग. जयसार, सं. गद्य, वि. १८७३, आदि: श्रीसिद्धाचलतीर्थेशं अति: व्यलेखि शिष्यहेतवे. ६. पे. नाम. मौनएकादशी व्याख्यान, पृ. ३४-३६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी मीनकाद, मीनका व्या. मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरं नत्वा गौतमः; अंतिः सोद्यमा समभवन्निति. ७. पे नाम. पौशदशमी व्याख्यान, पू. ३६आ-३९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी पौषद.व्या. पौषदशमीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: अभिनवमंगलमालाकरणं; अंति: स्मरणादानंदमाला भवतु. ८. पे. नाम. मेरुत्रयोदशी व्याख्यान, पू. ३९-४३आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : मेरुत्रयोद. त्रयोदशीपर्व व्याख्यान, मु. क्षमाकल्याण, सं., गद्य वि. १८६०, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा, अंति शिष्यैरामोदतस्त्वदः, प्र. १६५. ९. पे नाम. होलिकापर्व व्याख्यान, पृ. ४३आ-४५आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी होलिका, होली.व्या. उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य वि. १८३५, आदि होलिका फाल्गुने मासे अंति: व्याख्यानमाख्यानभृत् १०. पे नाम. चैत्रीपूनिमरो व्याख्यान, पू. ४५ ४८अ संपूर्ण, पे. वि. हुंडी: चैत्रीपू० व्या०. चैत्री पूर्णिमापर्व व्याख्यान, मु. जीवराज, सं., गद्य, वि. १८६९, आदि तीर्थराजं नमस्कृत्य अंतिः च सदा श्रेयो भवतु. १९. पे नाम. अक्षयतृतीया व्याख्यान, पृ. ४८अ ५०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी अक्षयतू ०. अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि प्रणिपत्य प्रभुं अंति क्षमाकल्याणपाठकैः प्र. ७०. For Private and Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २३१ १२१८१०. नवपद पूजा व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, दे., (२४४१२.५, १०४२८). १.पे. नाम. नवपद पूजा, पृ. १आ-१२अ, संपूर्ण, वि. १९१९, आश्विन कृष्ण, १४, प्रले. गोपाल, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:न.प, नवपदपु. उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: परम मंत्र प्रणमी करी; अंति: जस तणि कोय न रही अधूरि रे, पूजा-९. २. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण, पठ. श्राव. नवलचंद (पिता श्राव. गणेश दावडा); गुपि. श्राव. गणेश दावडा, प्र.ले.पु. सामान्य. पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: जिया चतुर सुजाण नवपद के; अंति: क्षमा० समर समर गुण गाय रे, गाथा-५. १२१८११. नवकारमंत्र स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३२, कार्तिक शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. नागोर, प्रले. पं. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१३, १२४२८). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विविधवर; अंति: कुशललाभ० वंछित लहै, गाथा-१६. १२१८१४. (+#) लघुपट्टावली, संपूर्ण, वि. १९६४, पौष कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १, प्रले. गौरीशंकर आचार्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पट्टा०., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, ८x२८). लघुपट्टावली-पार्श्वचंद्रसूरिगच्छीय, आ. हेमचंदसूरि, सं., पद्य, आदि: विदित सकलशास्त्रान्; अंति: कविता कोमलोद्गीर्णवाणि, श्लोक-५. १२१८१७. (+) प्रश्नव्याकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१४, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ.५१, ले.स्थल. नोरंगाबाद, प्रले. मु. लाभविमल (गुरु आ. महिमाविमलसूरि, तपागच्छ); गुपि. आ. महिमाविमलसूरि (गुरु आ. विबुधविमलसूरि, तपागच्छ); आ. विबुधविमलसूरि (गुरु पंन्या. कीर्तिविमल, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रश्नव्या०सूत्र.अर्थ. अंत में टबार्थ के स्थान पर बालावबोध शब्द का उल्लेख किया है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१३, ९४५२). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंब इणमो अण्हयसंवर; अंति: सरीरधरे भविस्सइति, अध्याय-१०, गाथा-१२५०, ग्रं. १२५०. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहो जंबू ए प्रत्यक्ष; अंति: जाइ अनंता सुख पामइ. १२१८१८. (#) सुभद्रासती पंचढालीयो, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३.५, १४४३२). सुभद्रासती पंचढालीयो, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि: सिवदायक लायक सदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ गाथा-२५ अपूर्ण तक है.) १२१८१९ (+#) श्रीपाल रास व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक नहीं होने से अनुमानित पत्रांक दिया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, ९-१४४३३). १. पे. नाम. श्रीपाल रास-खंड ४ सह बालावबोध, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१ गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) श्रीपाल रास-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१ गाथा-१ से २ तक लिखा है.) २. पे. नाम. संक्रांतसाधन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष , पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: वारे रूपं १ तिथो रुद्रा; अंति: वारादि सब थाइ सिद्ध नवीन. १२१८२० (+) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ९ नमिपवज्जा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१३, १२४३०). उत्तराध्ययनसूत्र, म. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२१८२२. शनिश्चरदेव की कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१३.५, १३४३२). शनिश्चर छंद, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पय प्रणमु सदा गुणपति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९ अपूर्ण तक लिखा है.) १२१८२३. गंगदेव रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-५(५ से ९)=१२, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:गंगदेव., जैदे., (२४४१३, २१४३९). गंगदेव रास, म. ऋषभ ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमिश्वर साहिबा सिध; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१० दोहा-६ अपूर्ण से ढाल-२५ गाथा-१२ अपूर्ण तक व ढाल-४६ गाथा-१५ से नहीं है.) १२१८२४. (#) चूडामणिपृच्छा विचार, संपूर्ण, वि. १८९०, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पटियाला, प्रले. श्राव. सुमेरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१३, १२४४६). चूडामणिपृच्छा विचार, सं., गद्य, आदि: लाभालाभ ध्रुवांक ४२; अंति: हार्यः शेषं चिंतनीयं, (वि. कोष्ठकसहित ध्रुवांक लिखा है.) १२१८२५. आलोचणा सिज्झाय व १२ व्रत नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:पदमा., दे., (२५४१३, १५४३५). १.पे. नाम. आलोचणा सिज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १९०१, आश्विन शुक्ल, ३, सोमवार, प्रले. मु. गंभीरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: समयसुंद० ततकाल ते, ढाल-३, गाथा-३५. २. पे. नाम. १२ व्रत नाम-श्रावक, पृ. २अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: प्राणातिपातं मृषावाद; अंति: पोसः अतीतसंविभाग उच्यते, श्लोक-१. १२१८२६ (+) विक्रमादित्यनो नवसें नारीनो रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१३, १७४३१). विक्रमादित्य चौपाई, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: पूरसादाणी प्रणमीइ परतेक्ष; अंति: लाभवर्धन० कल्याण, ढाल-२७, गाथा-५८५. १२१८२७. मूत्रपरीक्षा सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-४(१ से ४)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२३.५४१३, १४४३१). मत्रपरीक्षा, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. श्लोक-३२ से ४६ तक है.) मूत्रपरीक्षा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२१८२८. दशवैकालिकसूत्र-प्रथमाध्ययननी गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१३, १४४२६). दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका अध्ययन का सज्झाय, संबद्ध, मु. सत्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल शीरशेहरो हुवा री; अंति: सत्यसागर० जय जयकार रे, गाथा-९. १२१८२९. महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२५४१३.५, ११४२७). महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, म. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रमणसंघ तिलकोपम; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१० गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) १२१८३२. श्रावक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. हुंडी:अतीचार., जैदे., (२४४१३.५, ११४२६). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: करि मिच्छामि दुक्कडं. १२१८३३. संज्ञा विचार, भगवतीसूत्र-थोकडो व २० विहरमानजिन विवरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., दे., (२५.५४१३.५, २४४४४-४७). १. पे. नाम. संज्ञा विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., गद्य, आदि: कर्मोदय से घनादि के देखने; अंति: लोभ संज्ञा संख्यात गुणे. २. पे. नाम. भगवतीसूत्र-शतक ५ उद्देश ८ गत जीव वृद्धमान हियमानरो थोकडो, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २३३ भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक ५ उद्देश ८ गत जीव वर्द्धमान हीयमान विचार, संबद्ध, पुहिं., गद्य, आदि: हे भगवान् जीव हीयमान है; अंति: एक समय उत्कृष्ट मास. ३. पे. नाम. २० विहरमानजिन विवरण, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मा.गु., गद्य, आदि: सीमंधरस्वामीजी माराज; अंति: (-), (पू.वि. सूरप्रभुजिन विवरण तक है.) १२१८३५ (#) जंबूस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. २, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४.५४१४, १३४२९). जंबूस्वामी सज्झाय, रा., पद्य, आदि: राजगृही नगरीरा वासी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३ गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) १२१८३६. रत्नत्रयोद्यापन पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदे., (२५.५४१३, १२४३५). ___ रत्नत्रय पूजा, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीमतसन्मति कौ प्रणमि; अंति: हेरीये नाम जाति अरु ठांहि. १२१८३७. पौषध विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१३, १३४३५). पौषध विधि *, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण० इरियाव०; अंति: करि मिच्छामि दुक्कडं. १२१८३९. श्रमणप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संपूर्ण, वि. १९८७, भाद्रपद कृष्ण, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. सरदारशहर, प्रले. मु. रेवतमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रमणप्रति०, श्रमणसुत्रप्रतिक्रमण., दे., (२४४१२.५, १५४४३). साधप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० तिखूत; अंति: तस्स मिच्छामि दक्कडं. १२१८४३. सिद्धचक्र स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. खडा लेखन., जैदे., (२४.५४१३, २९x१४). सिद्धचक्र स्तुति, ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धचक्र सेवो भवि; अंति: कुशल० उत्तम सीस सवाया, गाथा-४. १२१८४४. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१३, ११४२९). महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माताजी तुमे धन धन्य रे ते; अंति: भक्ति वसे भगवान रे, गाथा-११. १२१८४६. भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१,३ से ४)=२, प्र.वि. हुंडी:अलोकलोक. पत्रांक अनुमानित हैं., दे., (२५.५४१४, १९-२२४३५-४२). भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: शब्द दो भेद सुस्वर दुस्वर, (पू.वि. अजीव भेद से है व लोक-अलोक वर्णन अपूर्ण से परिणाम भेद ३ प्रकार तक नहीं है.) १२१८५०. ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय-गाथा १ से १७, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. गंभीरमल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२.५, १०४२७). ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, आ. हर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तिण कालेन तिण समे कुनणपुर; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. पाठभेद है.) १२१८५१ (+) पंचप्रतिक्रमणसूत्र व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-११(१ से ११)=१०, कुल पे. १९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, ९४३१). १. पे. नाम. पंचप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १२अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: निमित्तं करेमि काउसग्गं, (पू.वि. पोसह सामायिक अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसुवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ३. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १२आ-१३आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमानंद; अंति: सा सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ४. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. आ. जिनभक्तिसरि, मा.ग., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेसर वामा; अंति: भक्तिरि०ब ह वित्त, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५. पे. नाम, अष्टमी स्तुति, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. ___ अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चौवीसे जिनवर प्रणमुं; अंति: जिनसुख० जनम प्रमाण, गाथा-४. ६. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमिजिन; अंति: विपदः पंचकमदः, श्लोक-४. ७. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १५अ-१६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें दें कि धप मप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ८. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १६अ-१७अ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४ ९. पे. नाम, पजूसणा स्तुति, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. पर्यषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.ग., पद्य, आदि: वली वली हुं ध्यावं; अंति: कहै जिनलाभसूरींद, गाथा-४. १०. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदू पाय पंकज; अंति: मंगल करे अंबक देवीयै, गाथा-४. ११. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तिय हार सुतारग; अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. १२. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंति: तीर्थपमज्जनशस्तनिजाघः, श्लोक-४. १३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, प. १९अ-१९आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: यदंहिनमनादेव देहिन; अंति: जनान्नवतु नित्यममंगलेभ्यः, श्लोक-४. १४. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: बालापणे डावौ पाय; अंति: चिंतीया काज चढे प्रमाणे, गाथा-४. १५. पे. नाम, चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरल कुवल गवल; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. १६. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तिय हार सुतारग; अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. १७. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, अप., पद्य, आदि: भरहेसरकारिय देव हरे; अंति: विगणंतु अणंतदहंसगुणा, गाथा-२. १८. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. २१आ, संपूर्ण. __ महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं वंदे; अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक-१. १९. पे. नाम. २४ दंडक स्तुति, पृ. २१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: रुचितरुचि महामणि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण तक है.) १२१८५२. बाहुबली सज्झाय व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. १९५९, कार्तिक कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. आ. रामचंद्रसूरि (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि, लोंकागच्छ); पठ. सा. गुलाबकुवरजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सज्झाय पत्रम्., दे., (२६४१२.५, १०४२४). १. पे. नाम. बाहुबली सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अतिलोभीया भरथ; अंति: लही समयसुंदर वंदे पाया रे, गाथा-७. २. पे. नाम, औपदेशिक दोहा-स्वार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. पण. For Private and Personal Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २३५ औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मुतलब की मन वार; अंति: लाख बुद्धि उर कोड जतन, गाथा-२. १२१८५३. (+) कर्मफल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:सामी., संशोधित., जैदे., (२६४१२, १५४३७). कर्मफल सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १८६२, आदि: सजम लीयो महावीर जी मन चित; अंति: चोथमल सुणजो मन हुलास, गाथा-१४. १२१८५५ (#) साधुवंदना, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५.५४१२.५, १३४३०). साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: पांच भरत पांच एरवत जाण; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१३ गाथा-२ अपूर्ण तक १२१८५६. अवंतिसुकुमाल रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. सा. कीसनी (गुरु सा. राजाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अवयतीसुकामाल., दे., (२६४१२.५, १५४४८). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: जंबुदीप मझार मुनिवर आरज; अंति: शांतिहर्ष गुण गावे रे, ढाल-१२, गाथा-११४. १२१८५७. नमस्कार महामंत्र छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१२.५, १०४२७). नमस्कार महामंत्र छंद, मु. गुणप्रभुसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण सुमरो नित; अंति: जिनगुणप्रभुजी० जय जयकार, गाथा-७. १२१८५८. जंबू चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:जंबूचरित्र., जैदे., (२५४१२.५, १८४३६). जंबूस्वामी चरित्र, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२६, आदि: सरव सिद्ध समरु सदा वितराग; अंति: (-), (पू.वि. आठवीं पत्नि कथा प्रसंग अपूर्ण तक है.) १२१८५९. रामविनोद, अपूर्ण, वि. १८८६, चैत्र शुक्ल, १०, बुधवार, मध्यम, पृ. ११४-७७(१ से ७७)=३७, ले.स्थल. फतेपुर, प्रले. श्राव. जीवाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ३१०१, प्र.ले.श्लो. (७६) मंगलं लेखकस्यापि, जैदे., (२५४१२.५, १२४३२). रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: (-); अंति: अभिमान रामविनोद विनोदसु, समुद्देश-७, (पू.वि. समुद्देश-६ गाथा-६५ अपूर्ण से है.) १२१८६१. पाशाकेवली की भाषा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:ए सुकनावल., जैदे., (२५४१२.५, १५-१८४३५-३७). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम ए शकुन भला छइ; अंति: (-), (पू.वि. शकुन संख्या-३२४ तक है.) १२१८६२. (+) वीरथुई अज्झयण व स्तुत्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५८, भाद्रपद शुक्ल, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, ले.स्थल. सोजत, प्रले. मु. सुलतानमल (गुरु मु. मानमलजी); अन्य. मु. मानमलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१२.५, २५४४१). १. पे. नाम, वीरथुई अज्झयण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सणं समणा; अंति: आगमसंति त्तिबेमि, गाथा-२९. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:वीरथुइ. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंतिः प्रभवस्वामी जाणिये, गाथा-१७. ३. पे. नाम. नवकारमंत्र प्रभावदर्शक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण.. नमस्कारमंत्र प्रभावदर्शक दोहे, पुहिं., पद्य, आदि: पढो मंत्र नवकार सदा; अंति: थकी सोध लीयो तंत सार, दोहा-८. ४. पे. नाम. नमिपव्वजा अज्झयण, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नेमीराय. For Private and Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन ९ नमिपवज्जा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि: चईऊण देवलोगाउ उववन्न; अंति: ___ नमीराय रिसित्ति बेमि, गाथा-६२. १२१८६३. (+) चंदनबालासती चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हंडी:चंनणबाला., संशोधित., दे., (२५४१२.५, १६४५१). चंदनबालासती चौपाई, मा.ग., पद्य, आदि: प्रणमुं मंडीत गुण नीलो; अंति: धीन धीन सीलवती सतवंती, ढाल-१३. १२१८६५. (+) संथारा पोरसी विधि, पोस लेवानी व पोसह पारवानी विधि, संपूर्ण, वि. १९०५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. फलोधी, प्रले. पं. हंससुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीगोडीपार्श्व प्रसादात्., संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १२४३५). १.पे. नाम. संथारा पोरसी विधि, प. १अ-१आ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीही ३ नमो खमासमणा; अंति: इअ समत्तं मएगहियं, गाथा-११. २. पे. नाम. पोस लेवानी विधि, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही पडिकणी ४; अंति: करी मिच्छामि दक्कडं. ३. पे. नाम. पोसह पारवानी विधि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पौषध पारने की विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: इरियावही ४ नोकाररो; अंति: गुणी स्वइच्छाइ विचारी जै. १२१८६६. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८८४, कार्तिक शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७४, ले.स्थल. लखणेउ, लिख. श्राव. किसनचंद दयाचंद बरड्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १२४२७). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेलि कवियण तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४. १२१८६७.(+) तीन मनोरथ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जालागढ, प्रले. ग. ज्ञानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५४१३, १९४३३). श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, आदि: तीन मनोरथ करतो थको; अंति: करे संसारनो अंतर करे. १२१८६८. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५९, कार्तिक शुक्ल, ८, मध्यम, पृ.७७, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. मु. मुनीलाल (गुरु मु. गणेशदास, खरतरगच्छ); गुपि. मु. गणेशदास (गुरु मु. लछीराम, खरतरगच्छ); मु. लछीराम (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दशविका., संशोधित. कुल ग्रं. ६५००, प्र.ले.श्लो. (६) कर कूबड मस्तक अधो, (५६५) याद्रसं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१४८०) जला रक्ष स्थला रक्ष, दे., (२४.५४१२.५, ५४२८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मोमंगलमुकट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ तिबेमि, अध्ययन-१०. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, म. श्रीपाल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं गौतमं; अंतिः परं स्वमत करि नथी कहतउ. १२१८६९. चंदनबालासती सज्झाय व आनंदादि श्रावक ऋद्धिवर्णन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, कुल पे. २, दे., (२४४१३, १७X४४). १. पे. नाम. चंदनबालासती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: कसुंबी नगरी पधारीया; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३० अपूर्ण तक है, वि. गाथाक्रम का उल्लेख न होने से गिनकर लिखा गया है.) २. पे. नाम. आनंदादि श्रावक ऋद्धिवर्णन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. महावीरजिन दशश्रावक नाम, नगरी, ऋद्धि आदि वर्णन कोष्ठक, मा.गु., को., आदि: आनंद वाणीज्यग्राम; अंति: मा वदी तेरसमे मोक्ष पधारी. १२१८७० पार्श्वनाथजीरो सिलोको, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. हुंडी:पारस०., दे., (२४.५४१२, ८x२४). पार्श्वजिन सलोको, जोरावरमल पंचोली, रा., पद्य, वि. १८५१, आदि: प्रणमुं परमातम अविचल; अंति: जोरा० राजरो अंतरजामी, गाथा-५६. For Private and Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २३७ १२१८७१. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१३, ५४२६)... शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहि., पद्य, आदि: सुण सुण शेज; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) १२१८७२ (#) कल्पसूत्र सह बालावबोध-वाचना-२, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२.५, ९४२३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., व्याख्यान-२ अपूर्ण से है.) कल्पसूत्र-बालावबोध , मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वाचना-२ अपूर्ण से है.) १२१८७३. (+) औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे.७, प्रवि. पत्रांक नहीं लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१३.५, १९४३९). १.पे. नाम, औपदेशिक पद-व्रतपालन, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-व्रतपालन, पुहिं., पद्य, आदि: व्रत है सुखकारी पालो; अंति: हो जावे या है श्रीजिनवाण, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद-हितशिक्षा, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-हितशिक्षा, पुहिं., पद्य, आदि: मिटे नही थोर पुद्गल केरी; अंति: चाह हुए तो तज दे एह कुचाह, गाथा-५. ३. पे. नाम, औपदेशिक पद-ब्रह्मचर्यव्रत, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-ब्रह्मचर्यव्रतविषे, पुहि., पद्य, आदि: ब्रह्मव्रत सुखकारी पालो; अंति: अवसर दिव्य अपार, गाथा-५. ४. पे. नाम, औपदेशिक पद-व्रतपालन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-व्रतपालन, पुहिं., पद्य, आदि: नियम व्रतने धारो हर्षसुं; अंति: तो होवे कल्याणो जी, गाथा-५. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद-पापनिवारण, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-पापनिवारण, पुहिं., पद्य, आदि: पाप है दुःखकारी देखो; अंति: बतावे होवे परम कल्याण, गाथा-३. ६.पे. नाम. औपदेशिक पद-अनर्थदंड विरमण, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-अनर्थदंड विरमण, पुहिं., पद्य, आदि: सगुण नर तजो अनर्थादंड; अंति: जी त्याग प्रत्ये सनेह, गाथा-४. ७. पे. नाम, औपदेशिक पद-वैयावच्च, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैयावच्च, पुहि., पद्य, आदि: मुनिसेवा सुखदाई सेवा किया; अंति: सबजन लेवो लाभ सदाई रे, गाथा-५. १२१८७४. (#) पोसहलेवण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१३.५, १३४२९). पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम उपाश्रय आवी स्थापना; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पडिलेहण विधि अपूर्ण तक लिखा है.) १२१८७६. (+) जीवधडो मोटो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(२)=३, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:जीवधडो., संशोधित., दे., (२५४१३, २१४४४-५१). ५६३ जीव बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: १ निश्चय एकावतारी मनजोगी; अंति: (-), (पू.वि. जीवभेद-१९ अपूर्ण से ४५ अपूर्ण तक व जीवभेद-१०२ से नहीं हैं.) १२१८७७. (#) नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१, प्र.वि. हुंडी:नंदीसूत्रं०., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१३, १६x४३). For Private and Personal Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणउ; अंति: समुद्देसामि अणुजाणामि, सूत्र-५७. १२१८७८. दानशीलतपभावना चौपाई, मंदोदरीरावण संवाद व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक-१ से २ लिखा है किंतु गाथा-५ से शुरु होने के कारण अपूर्णता दर्शाने हेतु पत्रांक-२ से ३ दिया गया है., दे., (२५.५४१३, २०४३१-३४). १.पे. नाम. मंदोदरीरावण संवाद सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. रा., पद्य, आदि: (-); अंति: कांई न सुधरे काज रे, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, दानशीलतपभावना चौपाई, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. मु. नेमिचंदशिष्य, पुहि., पद्य, वि. १९५६, आदि: दानशीलतप चौथी भावना कोइयक; अंति: जीनो से अख अमरपद पावेगा, भावना-४. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-ममत्वपरिहार, म. प्रेम, पुहिं., पद्य, आदि: ममत मत कीज्यो राज; अंति: पेम० सुख दिनदिन में, गाथा-५. १२१८८१ (4) सीतासती चरित्र, संपूर्ण, वि. १८५८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. ९५, ले.स्थल. सेवा, प्रले. श्राव. उमेदराम; अन्य. रा. केसरीसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सीता०., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४१२.५, १५४४२). सीतासती चरित्र, मु. बाल कवि, पुहिं., पद्य, वि. १७१३, आदि: प्रणमुं परम पुनीत; अंति: ठीक कारिज होइ लोहडै लीक, गाथा-२५३९. १२१८८३ (+) ४५ आगम स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१२.५, १२४२६). ४५ आगम स्तवन, म. रूपविजय, मा.ग., पद्य, आदि: भवि तुमे वंदो रे; अंति: सिवलक्ष्मी घर आंणो, गाथा-१२. १२१८८५. जीवाभिगमसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२२-४(१ से २,१११,११९)=११८, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:जिवाब०., जैदे., (२५.५४१२.५, ८x२८). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिपत्ति-१ सूत्र-२ अपूर्ण से प्रतिपत्ति-३ पाठ "मणुया छम्मासावसेसाउया" तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२१८८६ (+) मदनधनदेव रास, संपूर्ण, वि. १९०४, आषाढ़ शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ४०, लिख. श्राव. भगवानदास रामानंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, दे., (२५४१२.५, ११४२५). मदनधनदेव रास, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५७, आदि: विहरमान प्रभु राजता; अंति: पद्मविजय० मंगलमाल, ढाल-१९, गाथा-४५९. १२१८८७. (+) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १५४३९). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं संति; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. १२१८८८. चौमासीपर्व देववंदन, अपूर्ण, वि. १९१५, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. २६-१(२५)=२५, ले.स्थल. वागछीया, प्रले. मु. मोतीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१३, १०४२०). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान कमला; अंति: पद्म० पास सामला तेहरे, (पू.वि. अंतिम सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन गाथा-१ अपूर्ण से है., वि. पत्रांक-२४आ पर प्रतिलेखन पुष्पिका दी है.) १२१८८९. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५४१३, १८४४१). पट्टावली, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी ३०; अंति: देवेंद्रसुरी विद्यतमान छे. १२१८९१ (+) देवनारक के ५ बोल १६ द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९३६, आश्विन अधिकमास शुक्ल, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. कलोल, प्रले. श्राव. छोटा अमुलख शेठ; पठ. श्रावि. परसनबाई, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पांचबोल. अंत में सं. १९३६ आसो बीजामासे शु.पक्ष २ भृगुवार को लिखना प्रारंभ किया एवं पंचमी सोमवार को पूर्ण करने का उल्लेख मिलता है. ग्रंथाग्र-५५०, संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१२.५, १४४३६). ००१ (+) देवनारक के ५ बोल १६ वा श्रावि. परसनबाई, प्र.ले.पु. सामान्य का उल्लेख मिलता For Private and Personal Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २३९ देवनारक के ५ बोल १६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पेहलो नरकनो द्वार; अंति: भोगवती थका विचरे छे. १२१८९२. (+#) महाबलमलयासुंदरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९३०, आश्विन कृष्ण, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४७, ले.स्थल. कुचरा, प्रले. सा. जीताजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:माहाबल., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१३, १५४३१). महाबलमलयासुंदरी चौपाई, मु. भक्तविमल, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीपार्श्व प्रणमी; अंति: माहरी पूगी छे मनरा कोड रे, खंड-४. १२१८९५ (#) २४ मांडला व २८ लब्धि नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. खडा लेखन. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, ७४१८). १.पे. नाम. २४ मांडला, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ स्थंडिल मांडला विधि, प्रा., गद्य, आदि: आघाडे आसन्ने उच्चारे; अंति: दूरे पासवणे अहियासे. २.पे. नाम. २८ लब्धि नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: १ आमोषधी २ विमोषधी; अंति: २८ पुलाकलब्धि. १२१८९६. २० स्थानक खमासमणदान विधि, संपूर्ण, वि. १९४३, वैशाख कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. २०, अन्य. मु. केशरमुनि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में "पंन्यासजी श्री केशरमुनिजी गणि उपदेशात् जैन ज्ञान भंडार मु. अगवरी(मारवाड)" लिखा है., दे., (२५.५४१२, १०४३३). २० स्थानक खमासमणदान विधि, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम स्थानके; अंति: काउसग्ग णमो तित्थस्स. १२१८९७. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:दसवी., दे., (२६४१२, १८४४१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-४ सूत्र-११ अपूर्ण से अध्ययन-५ गाथा-१६ तक है.) १२१८९८. (+) सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-५(१ से ४,६)=३, कुल पे. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १९४४८). १. पे. नाम. सालभद्रधन्ना सज्झाय, पृ. ५अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: गयाजी सहजसुंदर इम वाण, गाथा-१९, (प.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. जैनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अचिरानंदन प्रणमीये; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. ५ कारण स्तवन, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: (-); अंति: विनय कहै आणंद ए, ढाल-६, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-६ अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम. बलिभद्रमुनि स्वाध्याय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारिका हुंती निकल; अंति: नहीं कोई तोलै, गाथा-३०. ५. पे. नाम. राजीमतीरथनेम सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राजीमती नेमि भणी चाली; अंति: जिनहर्ष० सेवीये हो लाल, गाथा-९. ६. पे. नाम. बत्रीस अनंतकाय सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसरि, मा.ग., पद्य, आदि: जिनशासन रे शुद्धि; अंति: लक्ष्मीरत्नसूरि० सुख लहे, गाथा-१०. ७. पे. नाम.५ इंद्रिय सज्झाय, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काम अंध गजराज अगाज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२१८९९ (+) श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १८७०, आश्विन शुक्ल, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, ले.स्थल. देसणोक, प्रले. मु. सौजन्यसुंदर (उपकेशगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रीपालचरित्र., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १५४४३). श्रीपाल चरित्र, ग. जयकीर्ति; पंन्या. जीवराज, सं., गद्य, वि. १८६८, आदि: प्रणम्य सिद्धचक्रं च; अंति: कृतं च जयकीर्त्तिना, प्रस्ताव-४. | १२१९०० (+) नेमगोपी संवाद व ज्योतिष संग्रह, अपूर्ण, वि. १८४८, कार्तिक कृष्ण, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. ४-२(२ से ३)=२, कुल पे. २, प्रले.पं. रतनसी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५.५४१२, १७४३९). १.पे. नाम. नेमचोक संवाद, पृ. १अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, म. अमतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसे नेमकुमर; अंति: तस शिशे अमृत गुण गाया, चोक-२४, (पू.वि. ढाल-६ गाथा-४ अपूर्ण से ढाल-२० गाथा-४ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. घातचंद्रविचार श्लोक, पृ. ४आ, संपूर्ण. ज्योतिष , पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: तिर्थप्रयाण नृपसेवित; अंति: कार्याणि शुभ धारचंद्रे. १२१९०१ (+) आठ कर्म प्रकृति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:आ०क०प्रकृति., आठ०क०प्र०., संशोधित., दे., (२५.५४१२, १८४४१). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आठ कर्म नाम ज्ञानावरणी १; अंति: धर्मने विषइ उद्यम करवो. १२१९०२. (#) आराधना स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२५, वैशाख अधिकमास शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. दोपार, प्रले. मु. विद्यालाल महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, ११४३०). पद्मावती आराधना, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवै राणी पदमावती; अंति: समयसुंदर० तत्काल, गाथा-३४. १२१९०३. (+) रामविनोद सूचिका विगत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:रामवि.सू., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १३४२८). रामविनोद-बीजक, मा.गु., गद्य, आदि: पुरष लक्षण नाडी सरीर; अंति: नाडीपरीक्षआ प ७६. १२१९०४. स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि व औपदेशिक पद, अपूर्ण, वि. १९१५, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. १२-२(३,६)=१०, कुल पे. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, पठ. सा. रूपाजी आर्या, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२५४१२, १४४३३). १. पे. नाम. वैराग्यदीपक आत्महित शीलवेल, पृ. १आ-१२अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सयल सुहंकर पासजिन; अंति: विमला कलसा वरस्ये रे, ढाल-१८, (पू.वि. ढाल-४ से ढाल-५ गाथा-१३ तक व ढाल-८ गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-१० गाथा-६ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: बह रस ते सज्जन फटें; अंति: रस मांहिलो जैसे फटत अनार, गाथा-१. १२१९०५. (+) चातुर्मासिक व्याख्यान सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९१२, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(१)=१३, ले.स्थल. मेदनीपुर, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ५३५, दे., (२६४१२, १६४३९). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: एवं ६० अतीचार बारै व्रतरा, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-८ अपूर्ण से है.) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण के टबार्थ से हैं व करणसत्तरी की गाथा तक टबार्थ लिखा है.) १२१९०६ (+) मंगल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. हरदान व्यास लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १४४३९). शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., पद्य, आदि: नित्ये श्रीभुवनाधि; अंति: स्तुताः श्रीधर्मसूरिभिः, श्लोक-१५. For Private and Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २४१ १२१९०९ (#) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, पच्चक्खाण आगार गाथा व शिवजी रामजी पत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. खीचुंद, प्रले. मु. दलिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२,१०४३५). १. पे. नाम. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: दो चेव नमक्कारे; अंति: हवंति सेसेसु चत्तारि. २. पे. नाम. पच्चक्खाण आगार गाथा, पृ.१अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: नमुकार १ पोरसी २ पुरमट्ठ; अंति: अभिगाहो ९ विगइ १०, (वि. कोष्ठक सहित.) ३. पे. नाम. कीर्तिसागरमुनि का जिनमुक्तिसूरि के नाम पत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कीर्तिसागर, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीपार्श्वजिन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कीर्तिसागरमुनि योग्य' पाठांश तक लिखा है.) १२१९१० (#) औपदेशिक लावणी व २४ जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०२, श्रावण कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. देलवाडा, प्रले. शीवलाल नेणावाल; पठ. श्राव. रामचंद्र, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२,११४४०). १. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी-धर्मादिसार, म. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: सार वस्तु जीनधर्म भविक; अंति: जिनदास० राज दरस देणा. २.पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-वर्णगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: वंछितपूरण सुरतरु जेहा; अंति: शिवगतिना सुख नेडा रे, गाथा-५. १२१९१३ (+) व्याख्यान पीठिका मंगल श्लोक व केतूदय फल, संपूर्ण, वि. १८९९, फाल्गुन शुक्ल, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. समदडी, प्रले. मु. प्रथिराज (पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, १५४३०). १. पे. नाम. व्याख्यान पीठिका मंगल श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. व्याख्यान पीठिका मंगलश्लोक, सं., पद्य, आदि: नम श्रीवर्द्धमानाय; अंति: श्रीगौतमस्तान्मुदे, श्लोक-५. २. पे. नाम. केतूदय फल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., प+ग., आदि: धूम्राकारस्य केतु पुच्छ; अंति: दृश्यते सकल पृथ्वीनाशाय, श्लोक-१३. १२१९१४. (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९७८, चैत्र कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्रले. ऋद्धिकरण जोशी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दस०सूत्र., संशोधित. कुल ग्रं. ७००, दे., (२४४११.५, १७४४६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किटुं; अंति: अप्पणागमं गइ त्तिबेमि, अध्ययन-१०. १२१९१५ (+) लीलावती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९७४, भाद्रपद शुक्ल, १५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. जोधपुर, प्र.वि. हुंडी:सकटालीला०., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१२, १५४४७). लीलावती चौपाई-शीलविषये, उपा. कुशलधीर, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: श्रीआदिसर आदे प्रणमी; अंति: कुशलधीर० तेह पावे मोख ए, ढाल-१८. १२१९१६. त्रेपनारो रास आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९०३ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ७, दे., (२४.५४१२, १४४३८). १. पे. नाम. त्रेपनारो रास, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. १७५३ वर्ष दष्काल वर्णन रास, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमीसर त्रिभवन नमुं; अंति: कहे कवीअण भीर धारो रे, ढाल-१२, गाथा-१५६. २.पे. नाम. एकादशीतिथि मेघविचार गाथा, पृ. ७आ, संपूर्ण. एकादशी तिथि मेघ विचार गाथा, मा.गु., गद्य, आदि: जेठ सुद ११ इग्यारस लीजे; अंति: शुन्य होये तो पडे दुकाल. ३. पे. नाम. १२ मास फल, पृ. ७आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., गद्य, आदि: कार्तिक शुदि पडवा दीने जो; अंति: जे सुराजा ते सुगीनांन छे. ४. पे. नाम, सौभाग्यपंचमी फलाफलविचार गाथा, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दीवा दीठे पांचमी जो आवे; अंति: चोगुणा अन्नज मुघा जोइ, गाथा-२. ५. पे. नाम. होलीपर्व वायु विचार गाथा, पृ. ८अ, संपूर्ण. होलीपर्व वायविचार, मा.ग., गद्य, आदि: जो पूर्वनो वाय वाजे तो; अंति: घरि घरि वार रोवें नरनारी, गाथा-३. ६. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. ८अ-९आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, पुहिं.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: रूपारो पायो लोहडरो पायो; अंति: आवे विश्वा ज्ञान जाणव. ७. पे. नाम. दिनमान चौपाई, पृ. ९आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि प्रणमी पाय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) १२१९१७. (+) कलावतीसती चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.५, प्र.वि. हुंडी:केलावतिचो., संशोधित., दे., (२५.५४१२, १६x४९). कलावतीसती चौपाई, म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: जुगमिंद्र जिन जगतगुरु; अंति: रिष रायचंद० मेडतेनगर मझार, ढाल-१६. १२१९१८. मदनरेखासती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४१२, १६x२८). मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: जुवो मांस दारु थकी करे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५० अपूर्ण तक है.) १२१९२०. श्रीपालनरेंद्र चरित्र सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १९६७, चैत्र शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ९३, प्र.वि. हुंडी:श्रीपालचरित्र., श्रीपालचरित्रसूत्रवृत्ति., दे., (२५४१२.५, ७४६२). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइं नवपयाइं झाहित्ता; अंति: ताव नंदउ वाइज्झता कहा एसा, गाथा-१३४२. सिरिसिरिवाल कहा-अवचूर्णि, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६९, आदि: ध्यात्वा नवपदी भक्त; अंति: साधिका द्वाविंशति. १२१९२१ (+) सिंदूरप्रकर सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३५, ले.स्थल. नोतनपुर, प्रले. मु. खीमचंद (गुरु मु. रूपचंद्र); गुपि. मु. रूपचंद्र (गुरु मु. भाग्यचंद्र); मु. भाग्यचंद्र (गुरु मु. चतुरचंद्र); मु. चतुरचंद्र, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४११.५, ४४२७). सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदुरप्रकरस्तपः करिसिरः; अंति: सोमप्रभ० मुक्तावलीयम्, श्लोक-१००. सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिंदुरनो प्रकर कहीइं समोह; अंति: राजाइ एह सुक्तावलि. १२१९२२. पार्श्वजिन स्तवन व प्रभु पोखणा स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५४१२, १४४३५). १.पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पोंखणा, मा.गु., पद्य, आदि: उठ उठ तुं वेवण उंघ तणी; अंति: एम सुरसु प्रभु पद्मवती, गाथा-१२. २. पे. नाम. प्रभु पोखणा स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जी रे इंद्राणी पुछे; अंति: प्रभुने अमे पुंखीआरे. १२१९२४. २४ मांडला व महपत्ति ५० बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३४१२, १६४३१). १.पे. नाम. २४ मांडला, प. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ स्थंडिल मांडला विधि, प्रा., गद्य, आदि: आगाढे आसन्ने उच्चारे; अंति: दरे पासवणे अहियासे. २. पे. नाम. मुहपत्ति ५० बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र १ अर्थ २; अंति: छकायनी जयणा करूं. १२१९२५ (+) अबयद शुकनावली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडीवाला भाग खंडित है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१२.५, १४४२९). For Private and Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ अबयद शुकनावली, मु. सुजाणसिंह, पुहिं., गद्य, वि. १७९४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अ प्रकरण अपूर्ण से ब प्रकरण अपूर्ण तक है.) १२१९२७. दीपावलीपर्व कल्प की टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. २, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. त्रिपाठ., दे., (२५४१२, १४४४४). दीपावलीपर्व कल्प-टीका, सं., गद्य, आदि: (१)न स्वामिनो नमस्कारात्मक, (२)श्रीवर्द्धमानो महावीर; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९ की टीका अपूर्ण तक है., वि. श्लोक-१ की टीका दो बार लिखी है.) १२१९२८. अढीद्वीप ३२ विजयजिन नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. खडा लेखन., दे., (२५४१२, ३२४१५). अढीद्वीप १७० उत्कृष्टजिन नाम, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीजयदेवः; अंति: पछे मे एवर्ते क्षेत्रे. १२१९२९. वैराग्यशतक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-१८(१ से १८)=३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४१२, ४४२३). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७४ अपूर्ण से गाथा-८८ अपूर्ण तक है.) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२१९३१. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९७०, फाल्गुन कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ९, ले.स्थल. थोराला, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, १७४४६). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण.. म. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसचेंजो सिणगार; अंति: आगमवाणी विनित, गाथा-३. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीदेवाधिदेव; अंति: प्रवचन वाणी विनित, गाथा-३. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पतरु कल्पसूत्र; अंति: लहे उपजे विनय विनित, गाथा-३. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुपन विधि कहे सुत; अंति: वाणी वीनीत रसाल, गाथा-३. ५. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, म. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिननि बहेन सुदर्शना; अंति: तेला धरे सुणजो एकज चित, गाथा-३. ६. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिनेसर नेमनाथ; अंति: जिन सारखी वंदु सदा वनीत, गाथा-३. ७. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्वराज संवत्छरी दिन दिन; अंति: वीरने चरणे नामुं सीस, गाथा-३. ८. पे. नाम, पर्यषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वडा कल्प पुरव दिने; अंति: भावसुं सुणे तो पामे पार, गाथा-४. ९. पे. नाम, पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नव चोमासी तप कर्या; अंति: पद्मविजय० नितु कल्याण, गाथा-६. १२१९३२ (+) १० पच्चक्खाणसूत्र व सचित्त अचित्त वस्तु काल निर्णय, संपूर्ण, वि. १९०४, पौष शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., दे., (२५४१२, ७४१८). १.पे. नाम. १० पच्चक्खाणसूत्र, पृ.१आ-९आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उगे सूरे नवकारसियं; अंति: बतीस भत्तं पच्चखामी कहणो, (वि. अंत में पच्चक्खाण समयमान दिया गया है.) २. पे. नाम. सचित्त अचित्त वस्तु काल निर्णय, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण. C For Private and Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., गद्य, आदि: च्यार पोहररी खीचडीरो काल; अंति: उपरांत नही लेणी कल्पे. १२१९३३. (४) पाशाकेवली, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १७४१९). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम थानक लाभ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. पाशासंख्या १४४ तक लिखा है.) www.kobatirth.org " १२१९३८. राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६८, माघ कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १४२, ले. स्थल. काणाणा, प्रले. मु. मानविजय (गुरु मु. मनोहरविजय); गुपि. मु. मनोहरविजय (गुरु मु. विवेकविजय); मु. विवेकविजय (गुरु पं. सुंदरविजय गणि) पं. सुंदरविजय गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादे., कुल ग्रं. ३३२१, जैवे. (२४.५x१२, ७४३५). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० आमलकप्पा ए; अंतिः सुपस्स वणीए णमोराय पसेणइ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: तेह भणी नमस्कार थाओ, ग्रं. ५५००. १२१९३९. लघुस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पठ. मु. खुशालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, " १३४३९). स्नात्रपूजा विधिसहित पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि प्रथम उपकरण मेलबा, अंतिः यथाशक्ति भक्ति करवी. १२१९४०. एकादशीतिथि व शांतिजिन स्तवन अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०-९ (१ से ९) = १ कुल पे. २, जै, (२५.५x१२. , १३४३४). १. पे. नाम. एकादशीतिथि स्तवन, पृ. १०अ १०आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु पद्य वि. १८१८ आदि (-); अंति: लक्ष्मीसूरि जयंकरो, ढाल-७, (पू.वि. ढाल ६ गाथा १० अपूर्ण से है.) " २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर साहिब, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) 1 १२१९४३. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ५-४ (१ से ४) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है... प्र.वि. हुंडी:पडिकमणासूत्र., जैदे., ( २४.५X१२, १४x२७). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि (-) अति (-) (पृ.वि. देवसिअं आलोउसूत्र अपूर्ण से नमोस्तु वर्धमानावसूत्र अपूर्ण तक है.) יי १२१९४४. पार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १० ९(१ से ९) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. जैदे., (२५x१२, " ११x३२). पार्श्वजिन छंद-विविधतीर्थमंडन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण से ३५ अपूर्ण तक है.) १२१९४६. (४) स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. रोहिडा, प्रले. पं. रूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: नवरसो, नवरसोपत्र थुलिभद्रनोनवरसो.. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै. (२३.५४१२, १३४३५). 3 स्थूलभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि सुखसंपति दायक सदा अंति उदय० भणतां मंगलमाल, ढाल - ९. 5 १२१९४७. स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, संपूर्ण वि. १८९५, आषाढ कृष्ण, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. १३, ले. स्थल. पालनपुर, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. जैवे. (२४४१२.५, १२४२४). " स्थूलभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि सयल सुहंकर पासजी, अंति: विमला कमला वरस्ये रे, ढाल - १८. (+) शुकराज रास, संपूर्ण, वि. १७८८, भाद्रपद कृष्ण, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५x१२. १२X३०). शुकराज रास, मु. राजपाल, मा.गु., पद्य, वि. १६४१, आदि: श्रीआदेसर पमुंह सवे; अंति: तिह घरि मंगल च्यार, गाथा-५५३. १२१९५१. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २४.५X११.५, १०X३०). For Private and Personal Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४५ 11). हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: कलमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. १२१९५२. विविध जीव आयुष्य विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १९४३९). विविध जीव आयुष्य विचार *, मा.गु., गद्य, आदि: मनुषनो आऊषो १२० वरस; अंति: निगोदरा जीवरो जांण हुवे. १२१९५४. (+#) जन्मपत्री पद्धति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२, २५४६२). जन्मपत्री पद्धति, पुहि.,सं., प+ग., आदि: श्रीआदिनाथप्रमुखा जिनेशाः; अंति: शनिमध्ये शुक्र पावकं. १२१९५५ (#) नेमराजिमती बारमासा, आध्यात्मिक दहा व औपदेशिक पद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १६४४८). १. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासा, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: लालविनोदीने गाए, गाथा-२६, (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आध्यात्मिक दहा, पृ. २आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक दोहा, पुहिं., पद्य, आदि: जैसे पट जीरन नजे पहर तन; अंति: जीवत जि नवी गहत परवीन, दोहा-१. ३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: दूती कहे सुन हो मन मोहन; अंति: मिली लाभ उठे मिरीगारी, गाथा-२. १२१९५७. विक्रमचौबोली रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, अन्य. सा. कुनणाजी (गुरु सा. तुलछाजी); गुपि. सा. तुलछाजी (गुरु सा. कीसनाजी); सा. कीसनाजी (परंपरा मु. रूघनाथजी); मु. रूघनाथजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:चोबोलिलि०., दे., (२४.५४१२, १६४४७). विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: वीणा पुस्तक धारणी; अंति: मतिमंदिर काजें कही, ढाल-१७. १२१९५८. (+) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. हुंडी:साधुवंद०., संशोधित., दे., (२४४१२, १३४२९). साधुवंदना तेरहढाला, मु. देवमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचभर्त्त पंचएरव जाण पंच; अंति: श्रीदेवमुनि ते संथुण्या, ढाल-१३, गाथा-१६८. १२१९५९ (+) सुरसुंदरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, १७४३२). सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-२ ढाल-६ गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-८ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) १२१९६० (+#) दीपावलीपर्व कल्प की टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-२(१ से २)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १३४३७). दीपावलीपर्व कल्प-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१३ की टीका से श्लोक-६१ की टीका तक १२१९६१. (2) अकलंकाष्टक पद्यानुवाद व ८४ लाख जीवसंख्या चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्र-१४२. पत्र प्रत की शैली में २ भागों में विभाजित है किंतु पाठानुसंधान पत्र-१ मानकर २अ एवं २आ के रूप में देखने से पाठ का संदर्भ मिलता है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२, ४-८४३९-४२). १.पे. नाम. अकलंकाष्टक का पद्यानुवाद, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. अकलंकाष्टक स्तोत्र-पद्यानुवाद, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: परहित कारनै मंगलकारक पेख, गाथा-१६, (पू.वि. पद्य-१५ से है.) २. पे. नाम. ८४ लाख जीवसंख्या चौपाई, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. प्रेम, पुहिं., पद्य, आदि: सहा लुहाडा गोधा जान सोगा; अंति: एम मंगल वरनी हितकर प्रेम, गाथा-११. १२१९६२. सज्झाय व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, दे., (२५.५४१३, १७४४२-४६). For Private and Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-चरखा, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: गांभी रंग भीनौ रे तुमारो; अंति: दामजो कीना सगली जात जीमाई, गाथा-८. २. पे. नाम, आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. क. ब्रह्मानंद, पुहिं., पद्य, आदि: अगर है प्रेम दर्शन का भजन; अंति: ब्रह्मानंद० मन छोड संसारा, गाथा-५. ३. पे. नाम. ५ ज्ञान आरती, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जय पारस देवा जय पारस; अंति: तो सोभाग्य गुण गासी, गाथा-६. ४. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:छेल मींडल. औपदेशिक पद-होली, पुहि., पद्य, आदि: छेल मींडल केसे होली मचाई; अंति: ऊठे जुजलाई ऐम फुलये कलाई, गाथा-५. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-आधनिकयग, पुहिं., पद्य, आदि: बाबु बन गए जंटलमेन जेबमे; अंति: कहे पींगल राम गुण गावे, पद-१. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पहिं., पद्य, आदि: साधु भाई दम ई दम का मेला; अंति: कबीर० ईस पद का करे नवेडा, गाथा-४. १२१९६३ () स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:सीयल प., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४११.५, १४४३७). स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-१ - अपूर्ण से ढाल-५ गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) १२१९६५ (+#) विमलमंत्री सलोको, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, ले.स्थल. घाणोरानगर, प्रले. पं. फतेचंद्र; अन्य. श्राव. सवाइराम मोहकमदास शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १२४३४). विमलमंत्री सलोको, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति समरूं बे करजोड; अंति: पंडित विनितविमल गुण गायो, गाथा-१११. १२१९६८. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२.५, १७X४०). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय-शीलगर्भित, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भरथ क्षेत्रे रे समुद्र; अंति: सूरीज जंपे तास पसाय, गाथा-१९. १२१९६९ (#) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३९, वैशाख शुक्ल, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. अहिपुर, प्रले. पं. मेघविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, ११४२६). पार्श्वजिन स्तवन, मु. पुण्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९३७, आदि: नगर नागोरना जात्रावी एतो; अंति: पुन्यविजय० करूं परणाम रे, गाथा-९. १२१९७०, पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२.५, ११४२१). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. कान, पुहिं., पद्य, आदि: पास पीयारो लागे पार्यो; अंति: कान की विनति भवपार उतारे, गाथा-७. १२१९७१. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२.५, १०x४५). सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, म. गणविजय, मा.ग., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलो रे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० तक लिखा है.) १२१९७२. थूलभद्रजी नवरसो व दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-६(१ से ६)=५, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:छजीवणीसि., सिझायछजी., दे., (२५४१२, १३४३३-४१). १. पे. नाम, थूलभद्रजी नवरसो, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २४७ स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: (-); अंति: उदयरतन कहे० सबे फल्या रे, ढाल-९, (पू.वि. ढाल-८ गाथा-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. दशवकालिकसूत्र सज्झाय, पृ. ७आ-११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल महिमानिलो धरम; अंति: (-), (पू.वि. चूलिका-१ अपूर्ण तक है.) १२१९७३. व्याख्यान पीठिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१२, ११४२६). कल्पसूत्र व्याख्यान पीठिका, संबद्ध, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: अशरणशरण भवभयहरण; अंति: करीने तुमे सांभलो. १२१९७४. ५६३ जीवभेद विचार, संपूर्ण, वि. १९१०, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४१२, १०४३७). ५६३ जीवभेद विचार, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम देवताना १९८ भेद कहे; अंति: ५६३ भेद थाय. १२१९७५. पर्युषणपर्व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१२.५, ११४३०). पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुषण आवीया रे; अंति: मतिहंस कहे करजोड रे, गाथा-११. १२१९७६. विनयअध्ययन सज्झाय व अशरण भावना सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१२, १३४४२). १. पे. नाम. विनयअध्ययन सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-१ विनयसुत्तं सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणदेवी चीत धरीजी विनय; अंति: विनय सयल सुखकंद, गाथा-८. २. पे. नाम. अशरण भावना सज्झाय, पृ.१अ-१आ, संपूर्ण. मु. नवल, मा.गु., पद्य, आदि: पल पल छीजे आउखं अंजली जल; अंति: नवल० सुकृत तरुपेडिरे, गाथा-६. १२१९७७. संसारत्याग भावना सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, १४४४०). संसारत्याग भावना सज्झाय, मु. जिनभाण, मा.गु., पद्य, आदि: थावचासुत थरहों जोर देखी; अंति: मिल्या मुगति जिनभाण, गाथा-८. १२१९७८. मुहपत्ति स्वाध्याय व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. कुबरा, प्रले. मु. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१२, १४४४५). १. पे. नाम, मुहपत्ति स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. महपत्ति ५०बोल सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीहीरविजयसूरी प्रणम; अंति: रामविजय जंपे निसदीस, गाथा-११. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-आत्मबोधगर्भित, म. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: साहिबनी सेवामा रहसा; अंति: जै जै श्रीमहावीर, गाथा-७. १२१९७९. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ८, जैदे., (२५.५४१२, १३४३७). १. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तुम तारण हम प्राणी तारण; अंति: करत है तुम चरणा बलिहारी, गाथा-२. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: गजरा मंगाय देनी राज मोकुं; अंति: गजरा घुराय देनी, गाथा-३. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, पुहि., पद्य, आदि: मेरा प्रभु इण दिल वसनावे; अंति: चरणकमल चित लावंदा हो, गाथा-२. ४. पे. नाम. शीतलजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: लागो छे नवल सनेह सीतल; अंति: रूपचंद० परच्यो आतमरामसुं, गाथा-४. ५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. राज, पुहि., पद्य, आदि: उमंग भई दरशण की मन; अंति: धन धन कीरत सुखेंद्र राज, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. म. उदयभाग, पुहिं., पद्य, आदि: शरण मनु तेरी तेरी हो तेरी; अंति: उदयभाग० राखो चरनन् तेरीया, गाथा-३. ७. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सहियोरी मील चालो हे चालो; अंति: जगत के हितकर कर्म जिहाज, गाथा-४. ८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपविबुध, पुहिं., पद्य, आदि: भजले श्रीभगवान अब तेरो; अंति: रूपविबुध कहे जायगो प्राण, गाथा-३. १२१९८० (+#) ६ द्रव्य विचार, नवतत्त्व प्रकरण व १८ नातरा श्लोक, संपूर्ण, वि. १९००, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४, जीर्ण, पृ. ७, कुल पे. ३, ले.स्थल. मेडता, प्रले. मु. हमीरचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, ९४३०-४०). १.पे. नाम. ६ द्रव्य विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: सह परभवगा न सेस?, गाथा-७७. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: (अपठनीय). ३. पे. नाम. १८ नातरा श्लोक सह टीका, पृ. ७आ, संपूर्ण. १८ नातरा श्लोक, सं., पद्य, आदि: भ्रातासितनुर्जन्मासि; अंति: सपत्नी च भवत्यहो, श्लोक-३. १८ नातरा श्लोक-टीका, सं., गद्य, आदि: भ्राता एकमातृकत्वात्; अंति: सह साध्व्याः . १२१९८२. पार्श्वजिन स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:पारसनाथजी., जैदे., (२४४१२, १७X४२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ऋ. मनरुपजी, रा., पद्य, आदि: तेवीसमां हो प्रभु पासजिणं; अंति: मनरुपजी पुन पावसी ते, गाथा-१६. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण... औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. सेवाराम, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: राजा रावण मोटो कहिजे लंक; अंति: वास भले रो रामपूरो गढ को, गाथा-१०. १२१९८३. औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५४१३, १७४२७). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-संसार, मु. चेतन, पुहिं., पद्य, आदि: अरे प्राणी आपा आप; अंति: मिटाइये चेतन उतरे पार रे, गाथा-७. २. पे. नाम. साधारणजिन रेखता, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. चेतन, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु को सुमर रे; अंति: अगर जो ग्यान पाया है, गाथा-५. ३. पे. नाम. महावीरजिन रेखता, पृ. १आ, संपूर्ण. म.चेतन, पहिं., पद्य, आदि: मेरा मन्न महावीर सो; अंति: आज जिनवर का, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चेतन, पुहि., पद्य, आदि: पूरन ब्रह्म निरंजन साहिब; अंति: ज्यो भगवंत को नाम न लीहे, गाथा-२. १२१९८४. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, दे., (२५४१३, ११४४२). १. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजो सणगार; अंति: आराधीइ आगमवाणी वनीत, गाथा-३. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीदेवाधिदेव; अंति: प्रवचन वाणी वनीत, गाथा-३. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २४९ मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पतरुवर कल्पसूत्र; अंति: सुपन लहे उपजे विनय वनीत, गाथा-३. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सूपनविध कहे श्रुत होस्यें; अंति: वाणी वनीत रसाल, गाथा-३. ५. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिननी बहिन सुदर्शना; अंति: धरे सुणज्यो एकह चित्त, गाथा-३. ६. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर नेमनाथ; अंति: सरखी वंदु सदा वनीत, गाथा-३. ७. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्वराज संवच्छरी दिन; अंति: वीरने चरणे नामुं सीस, गाथा-३. १२१९८६ (+) वरदत्तगुणमंजरी कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१२.५, ११४२९-३४). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनाधीशं फल; अंति: मेडतानगरे, श्लोक-१५०. १२१९८७. अध्यात्म गीतबहोत्तरी, संपूर्ण, वि. १९१०, माघ कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. महाडबंदर, प्रले. भैरवदास, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:बोहोतरिप०., बहोतरी पत्र., बोहोतरी०., दे., (२४.५४१२.५, १३४३१-३५). आनंदघन गीतबहोत्तरी, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: क्या सोवे उठि जाग बाबरे; अंति: भागे आंनव सीठडे, पद-७८. १२१९९०. सीतासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१२, १५४२९). सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मीलती घणुं रे; अंति: जिनहर्ष० प्रणमि जै पाय रे, गाथा-९. १२१९९३. (+) विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०१, वैशाख कृष्ण, मध्यम, पृ. ६३, प्र.वि. हुंडी:विपाकसूत्र. प्रतिलेखन पुष्पिका अपठनीय., संशोधित., दे., (२५४१२.५, ८४४२-५०). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२ अध्ययन २०. विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अथ विपाकश्रुतमिति कः; अंति: जिम आचारंगनी परइं. १२१९९५ (#) मेघरथराजा सज्झाय व अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. खडा लेखन. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१२.५, २३४१४-१८). १. पे. नाम, मेघरथराजा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडा विनती, मा.ग., पद्य, आदि: दया बरोबर धर्मनइ खीमा; अंति: लोग दया तने वीस्तारो जी, गाथा-२६. २.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबुदीपना भरत मे काइ; अंति: रीष रायचंद कहे एम, गाथा-१६. १२१९९६. उत्तमकुमार कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३४१२.५, २८४५३). उत्तमकुमार कथा, मा.गु., गद्य, आदि: कासी देश वाराणसी नगरी; अंति: केवल लेइ मुगत जासी. १२१९९७. (+) विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९००, आषाढ़ कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ५४, ले.स्थल. सिरदारशहर, प्रले. श्राव. रेवतमल जेठमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:विपाकसू०., जैदे., (२३.५४१२, ८४४६-६६). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं जहा आयारस्स. विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेह का० कालने बे; अंति: इग्यार अध्ययन कह्या. १२१९९९ कायस्थिति २२ द्वार वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५४१३, २५४३७-४१). For Private and Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कायस्थिति २२ द्वार वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: जीव गइ इंद्रि काये जोय; अंति: अणहिया अपजवसीया सीवं भते. १२२००० (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १३४२६). ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-११ अपूर्ण तक है.) १२२००१. औपदेशिक सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. १५, दे., (२५४१३, २०४४२-४५). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-वैराग्य, मा.ग., पद्य, आदि: धार रे धार रे भव प्राणी; अंति: भव भवमांय आनंदकारी, गाथा-३. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, रा., पद्य, आदि: हां क्रोध है जग दुःखकारा; अंति: खमाय है संयम कास्सारा रे, गाथा-९. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-क्रोधपरिहार, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध तजो भवि भाव से,; अंति: एहना जोवो आगम मांय, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-क्रोध, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___पुहिं., पद्य, आदि: क्रोध है अग्नि की ज्वाल; अंति: उन पुरुषन की बलिहारी, गाथा-७. ५. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-अभिमान परिहार, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-अभिमानपरिहार, मा.गु., पद्य, आदि: काय करे अभिमान जीवरवा; अंति: गुरुसेवा मिले तोय निर्वाण, गाथा-६. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद-अभिमान परिहार, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-अभिमानपरिहार, मा.गु., पद्य, आदि: मान तजो भवि भावसुं रे लाल; अंति: लाल न मीले केवलज्ञानरो, गाथा-३. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-मानपरिहार, मा.गु., पद्य, आदि: मान कुं छोड़ दे मानले; अंति: ह दया वसी मोक्ष केरी मान, गाथा-३. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-अभिमानपरिहार, पुहिं., पद्य, आदि: मान कुं छोड़ो अभिमानी; अंति: मान का फल ऐसा जाणी, गाथा-३. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-अभिमानपरिहार, पुहिं., पद्य, आदि: मान क्युं छोड़ो अभिमानी; अंति: जगत में आप बड़े मानी, गाथा-३. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद-कपट परिहार, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-कपटपरिहार, पुहिं., पद्य, आदि: कपट कुं छोड़ो तुम भाई रे; अंति: ढकण सारीखा मुक्ति में जाइ, गाथा-४. ११. पे. नाम, औपदेशिक पद-ज्ञान, पृ. २अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: ज्ञान पढो तुम सुणो भविकजन; अंति: मोक्षफल इन सुंज पाइ, गाथा-५. १२. पे. नाम. औपदेशिक पद-समकित, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: समकित से सुख पावतारे फिर; अंति: समकित में दृढ थावता रे, गाथा-५. १३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-समकित, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: समगत धारो रे पामो मोक्ष; अंति: आराधो थिर चित्त मन, गाथा-६. १४. पे. नाम, औपदेशिक पद-मोक्ष, पृ. २आ, संपूर्ण. पहिं., पद्य, आदि: कांइ रे विसवास करे जमको; अंति: जम का जोर वां न चलेगा, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २५१ १५. पे. नाम, औपदेशिक पद-कर्मफल, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: काटो काटो रे कर्म की पासी; अंति: पासी वेगो सीवपुर जासी, गाथा-४. १२२००२ (+) ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, षड्द्रव्य विचार व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१३.५, २०४३३-३८). १.पे. नाम. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ३२० को. अबा. २००० वर्ष, (पू.वि. "अगुरु लघु अपघात पराघात" पाठांश से है.) २. पे. नाम. इग्यारा द्वार का नाम, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. षड्द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १ प्रणामी २ जीव ३ मुत्ता; अंति: भाजनमे प्रवेश किया है. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५७, आदि: पास माने एक आपरो आधार उठत; अंति: रतनचंद० सफल फली मुज आस, गाथा-११. १२२००३. (+) बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६६, श्रेष्ठ, पृ. २८, ले.स्थल. सिरदारशहर, प्रले. मु. रेवतमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:बृहत्कल्प., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४१२, १९४४५-६१). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंति: कप्पट्टिई त्तिबेमि, उद्देशक-६, ग्रं. ४७३, (वि. १९६६, वैशाख कृष्ण, १३, रविवार) बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नो क० न कल्पै नि०, (२)नो० नकल्पइ नि०साधनइ; अंति: (१)तेहनी विधि मर्यादा, (२)इमज छइ जे कहीइ ते सांभलीइ, (वि. १९६६, वैशाख शुक्ल, १०, शुक्रवार) १२२००५ (+) जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३.५४१२, १३४३५). जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, मा.ग.,सं., गद्य, आदि: प्रथम तो जलयात्रा कलश ४; अंति: संतुष्टा पुष्टा भवंती, (वि. संक्षेप विधि.) १२२००६ (#) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९०८, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. पादलिप्तपुरनगर, प्रले. श्राव. दोलतचंद मथेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४.५४१२.५, १३४४०). गौतमस्वामी रास, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर चरण कमल; अंति: वृद्धि कल्याण करो, ढाल-६, गाथा-४७. १२२००७. वीस स्थानक काउसग, संपूर्ण, वि. १८४७, आषाढ़ शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. नवलविजय (गुरु ग. जिनविजय); गुपि.ग. जिनविजय (गुरु पं. पद्मविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. खडा लेखन., जैदे., (२४४१२, २५४८). २० स्थानकतप जापकाउसग्ग संख्या, प्रा., गद्य, आदि: १ नमो अरिहंताणं लो०; अंति: लो० २५ खा० २५ सा० २५. १२२००८. राणकपुर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१२, १६४३९). आदिजिन स्तवन-राणपुरमंडन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: राणपुर नमौ हियो रे; अंति: सिवसुंदर० थाय सुखकारी रे, गाथा-१६. १२२००९ (#) आतमप्रतिबोध वैराग्यपचवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३५). वैराग्यपच्चीसी, मु. मेघलाभ, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: माताने उदरे उपनो; अंति: मेघलाभ कहे हेते भावे, गाथा-२५. १२२०११ (+) प्रश्नव्याकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९०, कार्तिक शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १०४, ले.स्थल. वालोतरा, प्रले. मु. वल्लभविजय; अन्य. मु. लक्ष्मीविजय; पं. सुखविजय; पं. जीतविजय (गुरु पं. सत्यविजय गणि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ५७५०, जैदे., (२५४१२.५, ६४३४-३९). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समयेणं; अंति: (१)सरीरधरे भविस्सत्ती तिबेमि, (२)अंग जहा आयारस्स, अध्याय-१०, गाथा-१२५०, ग्रं. १२५०. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: तेण कालनि विषे ते समयनि; अंति: जायै अनंता सुख पामई. For Private and Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२२०१२. (+) सिद्धांतसारोद्धार विचार, अपूर्ण, वि. १८९७, आश्विन शुक्ल, ७ अधिकतिथि, शनिवार, मध्यम, पृ. ३६-१(२४)+१(२७)-३६, ले.स्थल. चंदूरनगर, प्रले. पं. सुबुद्धिविजय (गुरु मु. गुलाबविजय); गुपि. मु. गुलाबविजय (गुरु मु. माणिक्यविजय), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सिद्धांसा०, सि०सा०. श्रीचंद्रप्रभुप्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १७००, जैदे., (२४४१२.५, १९४४०-४४). सिद्धांत सारोद्धार विचार, रा., गद्य, आदि: एक बोल रे विचार जंबू; अंति: हवइ दसहा मुनीसबूही, (पू.वि. बीच के पाठांश नहीं है.) १२२०१४. (+) सत्यघोष चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:सत्यघोषच., संशोधित., दे., (२३४११.५, १६x४६). सत्यघोष चरित्र, मु. नथमल, मा.गु., पद्य, वि. १९२०, आदि: गुरु गोतम वांद सदा कदा न; अंति: शहर सुभटपुर में ए भाखी, ढाल-७. १२२०१५. अंतकृद्दशांगसूत्र का तप यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१२.५, ४४३१). अंतकृद्दशांगसूत्र-तप यंत्र, संबद्ध, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कनकावली तप यंत्र तक है.) १२२०१६. (+) लुंपलोपकतपगछजयोत्पत्तिवर्णन रास, संपूर्ण, वि. १९०३, वैशाख शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. धुनाडा,ऐमदावाद, प्रले. पं. खूबचंद्र; पठ. मु. रतनचंद; दत्त. ग. खिमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२३.५४११.५, १३४३७). ढुंढक रास, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: सरसती चरण नमी करी; अंति: उत्तमविजय०अवीचल लील्या रे, ढाल-७. १२२०१९ छ द्रव्य परिमाण विचार गाथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४.५४१२, ८४३३). नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा-हिस्सा ६ द्रव्यपरिमाणविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: परिणामि जीव मुत्ता; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र है.) नवतत्त्व प्रकरण-हिस्सा ६ द्रव्यपरिणामविचार गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: छ द्रव्यमध्ये परिणामि; अंति: (-), (प.वि. पाठ "ए त्रिण द्रव्य अनेक छै" तक है.) १२२०२३. (+) २४ दंडके २१ द्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र-१x१०=१., संशोधित., दे., (२५४१२, १५४५२). २४ दंडके २१ द्वार विचार-जीवादि, मा.गु., को., आदि: शरीर५ अवगाहना संघयण६; अंति: (-), अंक-२४. १२२०२४ (+) शांतिस्नात्र विधि व ज्योतिषविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९७८, आषाढ़ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. २, ले.स्थल. धवडनगर, प्रले. पं. गणपतसौभाग्य, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२.५, ११४२६). १.पे. नाम. शांतिस्नात्र विधि, पृ. १अ-१९आ, संपूर्ण. उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अथ प्रतिष्ठायां वा यात्रा; अंति: सिंघासण त्रगडो पीठका रचवी. २. पे. नाम. ज्योतिषविचार संग्रह, पृ. १९आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, पुहिं.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: मेष१ मकर१० वृष२ करकट; अंति: तिहि घर हानि न होइ, (वि. चंद्रभाव १२ भवन विचार है.) १२२०२५. संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१२.५, ११४२८). संभवजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८६९, आदि: संभव जिनवर वीनती; अंति: क्षमाकल्याण० कल्याण रे, गाथा-९. १२२०२६. (+) औपदेशिक होली पद, धर्मजिन स्तवन व सम्मेतशिखरतीर्थ पद, संपूर्ण, वि. १९०६, फाल्गुन शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. श्रावि. दोलतकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२.५, ९४२१). १.पे. नाम, औपदेशिक होली पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: होरी खेलो रे भविक; अंति: तेरा पाप सबल थरकै, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २५३ २. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:होरी. __पंडित. खीमाविजय, पहिं., पद्य, आदि: इक सुणलौ नाथ अरज; अंति: अनुपम कीरत जग तेरी, गाथा-५. ३. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:होरी. म.क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: मधुबन में जाय मची होली; अंति: को सधक्षमा कहै करजोरी, गाथा-३. १२२०२७. पार्श्वलोद्रव व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१२, ११४३५). १.पे. नाम. पार्श्वलोद्रव स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेनजीरा वावा; अंति: देज्यो हित सुखकंद, गाथा-१०. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-केसरियाजी, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीकेसरियानाथकुं नमन; अंति: के पातमें लाली लिया न जाय, गाथा-८. १२२०२८. (#) ज्ञानपंचमी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४१२.५, १३४३५). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: अनंतसिद्धने करूं; अंति: अमृतपदना थाओ धणी, गाथा-११. १२२०२९ स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१२, १६४३६). स्तवनचौवीसी, म. कांतिविजय, मा.ग., पद्य, आदि: सगुण सुगुण सोभागी साचो; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., संभवजिन स्तवन तक लिखा है.) १२२०३०. (+) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ३५ व ३६, संपूर्ण, वि. १८६६, आश्विन शुक्ल, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. दयाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उत्तराध्ये०., संशोधित., जैदे., (२३४११.५, १४४३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: भवसिद्धय समए तिबेम्मि, ग्रं. २०००, प्रतिपूर्ण. १२२०३१. (+) भांजघडियारो सप्तढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१२, १६४५०). भांजगडीया खटपटीया ढाल, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९७७, आदि: निराकार चिद्रुप अजरामर; अंति: तेज मुनि कथी ताते रे लो, ढाल-७, गाथा-४७.. १२२०३३. औपदेशिक कवित्तादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्र-१४२=१., खडा लेखन., जैदे., (२२४११.५, ३३४२२-२८). १. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त-दर्जन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मु. जिनहरख, पुहि., पद्य, आदि: नैन कहे देखी नाहि कान कहै; अंति: ताको कारो मुह कीजीयै, गाथा-१. २. पे. नाम. विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. भिन्न भिन्न कर्तक, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: विद्यावेलतरुणत्रिय ए; अंति: झीलै कुख संग हुवै घन चैन. १२२०३६. (+) भाष्यत्रय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १८४३१). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: (-), (पू.वि. प्रत्याख्यान भाष्य गाथा-५ अपूर्ण तक है.) भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्तु कहतां वांदी; अंति: (-). १२२०३७. (#) भोजनछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १८४८, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. प्रतापगढ, प्रले. मु. चित्रनंदन पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रसोईपत्र., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२.५, १६४३६). भोजनछत्रीसी-महावीरजिनस्तुतिगर्भित, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तिशलादे राणी कहो मेरे; अंति: दयासागर० भोजन छत्तीस, गाथा-३६. १२२०३८.(+) तेरे वेसणारा नाम तपगच्छ व ८४ गच्छ नाम, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५४१२, १२-१६४३९-४४). १.पे. नाम. तेरे वेसणारा नाम तपगच्छ, पृ. २अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २५४ www.kobatirth.org कैलास 'श्रुतसागर ग्रंथ सूची १३ शाखा-तपगच्छ, मा.गु., गद्य, आदि: वडगच्छा १ देवसूरा २ आणंद, अंति: कमलकलसा १२ रायसूरा १३. २. पे. नाम. ८४ गच्छ नाम, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., गद्य, आदि १ बृहत्वडगच्छ २ खरतरगच्छ अंति: गच्छ८३ नाडउलागच्छ८४. १२२०३९. समवसरण बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, प्रले. जवाणजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी; समोसरण ४७ बोल.. दे. (२५x११.५, १८४३८). समवसरण बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ३ थकां भव्य अभ० दोनुं, (पू.वि. तिनोबोध अक्रियावादी १ बोल अपूर्ण से है.) १२२०४१. (+) दंडक प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५x१२, ४X३०). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा-४ अपूर्ण तक है.) दंडक प्रकरण- टबार्थ ", मा.गु., गद्य, आदि नमस्कार करी चउवीस अंति (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक बार्थ लिखा है.) १२२०४२. प्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी पडिक०., दे., (२५.५x१२, ११x२६). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे. मू. पू. *, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. जयवीयरायसूत्र अपूर्ण तक है.) १२२०४३. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१ (१) =५, जैदे., (२५.५X११.५, ८X३१). नवस्मरण, मु. . भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदि (-) अति (-) (पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा "" अपूर्ण., उवसग्गहर स्तोत्र अपूर्ण से है व नमिऊण स्तोत्र तक लिखा है.) १२२०४६. (+) ३६ बोल धोकड़ा, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५.५X११.५, १९x४३). " " ३६ बोल थोकडो, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पेले बोले भाव छ उदय भाव; अंति: आवश्यक विना न पढे.. १२२०४७. (+) १० प्रकार देव आयुष्यबंध सज्झाय व अइमुत्ताऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३२, १, माघ ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. माहामीदर, प्रले. सा. राजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : आउतो., संशोधित., दे., (२५.५X११.५, १५x२९). १. पे. नाम. १० प्रकार देव आयुष्यबंध सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. - मु. आसकरण ऋषि, रा. पद्य वि. १८६५, आदि दस प्रकारे बांद सुर; अंति: वांदो दो पातक जाए हो, गाथा २५, (वि. एक हाल में कृति संपन्न की गई है.) २. पे. नाम. अइमुत्ताऋषि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: श्रीवीरजिणंदनी अगा लेन; अंति: छबदास० वांदो पातक जाए हो, गाथा - ११. १२२०४८. (4) षष्ठिशतक प्रकरण सह अर्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पू. २१-१६ (१ से १६) =५, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैसे. (२२x११.५, १६४३८). षष्ठिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ९५ से १२४ तक है.) षष्ठिशतक प्रकरण-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथार्थ-९४ अपूर्ण से १२४ तक है.) १२२०४९. (+) उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन १८ सह सुखबोधा टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ४१-१५ (१ से ४, १६, १९, २४ से ३२) = २६, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X११, १३X३८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि (-) अति (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा- ३० से ५१ तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) उत्तराध्ययन सूत्र - सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., गद्य वि. १९२९, आदि (-) अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, 1 पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा २८-२९ की टीका अपूर्ण से गाधा ५१की टीका अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२२०५२. सामायिक दोषनिवारण सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २- १ ( १ ) = १, प्र. वि. हुंडी : समायकरा दोषा ढाल. अनुमानित पत्रांक दिया है., दे., (२५X१२, ५X४०). सामायिक दोषनिवारण सज्झाय, मु. माणकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: माणकचंद० धरमसु सदा घघाट, गाथा २१, (पू.वि. गाथा १९ अपूर्ण से है.) १२२०५५ ५ देव बोल, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. सा. वेलुबाइ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२५.५x१२, १५X३५). ५ देव बोल, मा. गु, गद्य, आदि भवेद्रवदेव नरदेव धरमदेव अंति: सरब मीलीने दोय कोड. १२२०५८. द्वादश भावना, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, दे. (२३.५x११.५, ११४३५). " " १२२०५७. (+) कथासंग्रह, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-७( ३ से ९) = ४, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैवे. (२५.५x११, २२४४८). कथा संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि तिर्णाकापुरनगर जएसत्रुनाम अति (-) (पू.वि. वीरधवल राजा कथा अपूर्ण से विद्याविलास कथा अपूर्ण तक नहीं है व पुण्योपरि जितशत्रु कथा अपूर्ण तक है.) १२२०६०. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (+) १२ भावना सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि आदिदेव जिनपय नमो बंदउ; अंति: विवेक की और बात सब धंध, गाथा- १५. १२२०५९. दंडणऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (२५.५४१२, ११४२८). "" ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणऋषिने वंदणा; अंति: कहे जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा - ९. चार मंगल रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. हुंडी : मंगलपिलो, मंगल., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., २५५ (२५४११.५, १६x४६). ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि अनंत चोवीसी पाय नमु सकल; अंति: भेटा थका आवागमण निवार, ढाल -४, गाथा- ७७. १२२०६१. (+) धन्नाकाकंदी, जंबूस्वामी सज्झाय व गजसुकुमाल लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. श्रावि. राजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२६११.५, १६३७). , १. पे. नाम. धन्नाकाकंदी सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : धनांजी. - मु. तिलोकसी, मा.गु., पद्य, आदि श्रीजिनवाणी रे धन्ना अति तिलोकसिहे० मनडो गह गहो, गाथा २२. २. पे. नाम. गजसुकुमाल लावणी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : गजसु गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि गजसुखमाल देवकीनंदन, अति: गढ़ जोधाण हंस करे गाइ, गाथा २२. ३. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ऋ. खुशालचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: मगध देश राजगृही नगरी; अंति: सील तणी महिमा आणी, गाथा - १५. १२२०६२. (#) चंद्रराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३८-३७(१ से ३७) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैसे. (२५x१२.५, ११४२६). " चंद्रराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. अज्ञात ढाल की गाथा - १ अपूर्ण से गाथा - १४ अपूर्ण तक है.) १२२०६४. अहंकार ऊपर भरतचक्रवर्त्तीनो दृष्टांत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ये. (२६.५x१२.५, १५X३७). भरतचक्रवर्त्तीदृष्टांत कथा- अहंकार, मा.गु, गद्य, आदि भरत घरे आवी चक्ररत्न पूजा; अंति: छोडीजे जिम आबी गति पांमे. १२२०६५. नमस्कार महामंत्र सज्झाय - ढाल १, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५. ५X१२, ११३१). For Private and Personal Use Only नमस्कार महामंत्र सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि बारी जाउं हुं अरिहंत; अंति: (-), प्रतिपूर्ण, १२२०६७. (+०) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८७९ शुक्ल, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. १३-१२ (१ से १२ ) = १, ले.स्थल. नंदग्राम, प्रले. मु. क्षमाचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : अठा०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (९५८) यादृशं पुस्तिकां दृष्ट्वा, जे., (२५x१२.५, १२४३६). Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २५६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य वि. १८६०, आदि (-); अंति श्रद्धावतां प्रीतये, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., पाठ-"वंशोभवेत् सोप्येकदापिभर्तवत्" से है.) १२२०६८. (+) चौवीस दंडक छब्बीस द्वार व पांच सौ तिरेसठ जीव भेद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित, जैदे. (२४.५x११.५ १३x४४). " १. पे. नाम. चौवीस दंडक छब्बीस द्वार, पृ. १आ-१०आ, संपूर्ण वि. १८७० आश्विन कृष्ण, १४, प्रले. मु. जयदेव, प्र.ले.पु. सामान्य. २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर अवगाहणा संघयण; अंति: बाकी में तीने जोग पावै ३. २. पे. नाम. ५६३ जीव भेद, पृ. १०आ, संपूर्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६३ जीवभेद विचार, पु.ि मा.गु., गद्य, आदिः उंचा लोक में ५६३ भेद: अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा , अपूर्ण., पाठ- तिर्यंच भेद तक लिखा है.) १२२०६९ चौवीसजिन आंतरा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, अन्य सा. चंचलबाई आर्या (गुरु सा. परसनबाई आर्या); गुपि. सा. परसनबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : चउवीसतिर्थंकरनांआंतरां., कुल ग्रं. २२०, दे., (२५.५X११.५, १४४४८). कल्पसूत्र संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: अतीतकालनी उत्सर्पिणीना अति: एटला कालनु आंतर जाणवु, १२२०७० (+) आनंदघन गीतवहोत्तरी, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे., (२५.५X११.५, ११४३९). 3 " आनंदघन गीतवहोत्तरी, मु. आनंदघन, पुहिं, पद्य, आदि: क्या सोवे उठि जाग बाउरे, अति (-) (पू.वि. पद-२० गाथा-४ अपूर्ण तक है.) "" १२२०७१. सिद्धपंचाशिका प्रकरण, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. पंचपाठ. जैदे. (२५.५x११.५ १२४४६). सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि सिद्धं सिद्धत्वअं अंतिः लिहियं देविंदसूरीहिं, गाथा ५०१२२०७२ (०) ४७ आहारदोष गाथा सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, ३x४२). ४७ आहारदोष गाथा-आधाकर्मी, प्रा., पद्य, आदि: आहाकम्मु १ देसिय २; अंति: वा रस हेउ दव्व संजोगा, गाथा-६, संपूर्ण ४७ आहारदोष गाथा आधाकर्मी- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि आधाकर्म कहीईये तीन अर्थे अति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) १२२०७३ () औपदेशिक सज्झाय व वीजतिधिनी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. दे. (२६१२, १०x३१). " १. पे नाम औपदेशिक सज्झाय काया, पृ. १अ संपूर्ण पदेशिक सज्झाय- वनमाली, मु. पद्मतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: काया रे वाडी कारमी; अंति: पद्मतिलक० इणने खोडन लागे, गाथा-८. २. पे नाम बीजतिथिनी स्तुति, पृ. १-१ आ. संपूर्ण. י वीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पच, आदि दिन सकल मनोहर बीज, अति कठै पूर मनोरथ माय गाथा-४. १२२००४. ऋषभनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२६४१२, १२४३१). "" आदिजिन स्तवन, मु. लिखमीचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४६, आदि रिषभ जिणेसर प्रथम, अंतिः सुविनवे पालीसर मांझार, गाथा- ९. १२२०७६. (+) आठ कर्म एक सौ अट्ठावन प्रकृति विचार व साढापच्चीसदेश नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २८, कुल पे. २, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. दे.. (२५.५४११.५, ११४३३). १. पे. नाम. आठ कर्म एक सौ अट्ठावन प्रकृति विचार, पृ. १आ-२८अ संपूर्ण. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि मूल प्रकृति ८ ज्ञानावरणी; अति दश कर्ण छै इति १५८ भेद. For Private and Personal Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २. पे. नाम. साढापच्चीसदेश नाम, पृ. २८आ, संपूर्ण. साढापच्चीसदेशनाम व ग्रामसंख्या, मा.गु., गद्य, आदि: १. मगध देस राजग्रही; अंति: पचीस हजार आठसो गाम जाणवा. १२२०७८ (+) वरदत्तगुणमंजरी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६४, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. वाराणसी, प्रले. मु. रत्नसिंधुर (गुरु ग. जयधीरजी); गुपि. ग. जयधीरजी; अन्य. मु. केशव ऋषि; मु. रंगजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:ज्ञानपांचकथा., संशोधित., जैदे., (२६४१२, ५४२५). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: लिखिता सूरेव च मेडतानगरे, श्लोक-१५१, (वि. १८६४, पौष कृष्ण, ९, गुरुवार) वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीमत्पार्श्वजिनेश्वरजी; अंति: गणि प्रार्थना कीधी, (वि. १८६४, पौष कृष्ण, १३, सोमवार) १२२०८० गजसुकुमालमुनि रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. भावनगर, दे., (२५.५४१२, ११४३१). गजसुकुमालमुनि रास, मु. शुभवर्द्धन शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: देस सोरठ द्वारापुरी; अंति: वलि अविचल संपद थाइ, गाथा-८९. १२२०८१ (+) महावीरजिन पंचकल्याणक वधावा, संपूर्ण, वि. १८७५, आषाढ़ कृष्ण, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. भाद्राजण, प्रले. पं. मेघविजय (गुरु ग. अमरविजय); गुपि. ग. अमरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, १३४३१). महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक वधावा, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदी जगजननी ब्रह्माण; अंति: तीरथ फल महाराज वाला, ढाल-५, गाथा-५९. १२२०८२. (+#) वैराग्यशतक, जीवदयामहिमा दोहा व बौद्धमत विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४४, श्रावण कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ५, अन्य. मु. कनैयालाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वैराग्यशत०., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, ७४३८). १.पे. नाम. जीवदयामहिमा दोहा, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी है. मा.गु., पद्य, आदि: जीव मारता नरग छे राखंता; अंति: मारग चढी सींची भरत नरीद, दोहा-३. २.पे. नाम. तेरकाठिया नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १३ काठिया नाम, मा.गु., गद्य, आदि: १ आलस २ मोह ३ अवनीत; अंति: कोउहला १२ रमणा १३. ३. पे. नाम. बौद्धमत विचार, पृ. १अ, संपूर्ण.. विचार संग्रह-विविधविषयक, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: बौद्धमती कहे पहेला मारो; अंति: (-). ४. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण.. पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: गढ के पास डुगरी कदेक गड; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१२ अपूर्ण तक लिखा है., वि. बीच में कुछेक श्लोक भी है.) ५. पे. नाम. वैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण. वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि सुहं; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, गाथा-१०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सं० चत्तुर्गति रुप; अंति: अक्षय अजरामर पद मोख. १२२०८३. (+) चौवीस ठाणो बोल भाषा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १३४३७). २४ स्थानक प्रकरण-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: गइ इंदिय काए; अंति: हेतु ४३ जोग १४ टल्या. १२२०८६. (+) देवकी ६ पुत्र रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-२(१ से २)=६, प्र.वि. हुंडी:देवकीषट्रा०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१२, १७७५२). देवकी ६ पुत्र रास, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: आदरो तो तरसो भवजल पार रे, ढाल-१९, गाथा-३०७, (पू.वि. ढाल-६ गाथा-८ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२२०८७. (#) २४ जिन व वज्रपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११, १७४४६). १.पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-भवगर्भित, सं., पद्य, आदि: आदौ सार्धपतिर्धनो मिथनकः; अंति: स्मर्यंते० भवा संभवा, गाथा-८. २. पे. नाम, वज्रपंजर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: परमेष्ठि नमस्कारं सारं; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. १२२०८९ (+) ३५ जिनवाणीगुण विचारादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-१(१)=१६, कुल पे. ९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२,१३४३४). १.पे. नाम. ३५ जिनवाणीगुण वर्णन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. अभिधानचिंतामणि नाममाला-हिस्सा ३५ जिनवाणी गण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: सर्वोप्ययमेकोवागतिशय एव३५, (पू.वि. गुण-३४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ३४ जिनातिशय वर्णन, पृ. २अ, संपूर्ण. ३४ अतिशय नाम, सं., गद्य, आदि: अथ शास्त्रेषु निर्दिष्टा; अंति: एवांतर्भवंति. ३. पे. नाम. आर्यदेश विचार, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. ___ साढापच्चीस आर्यदेश विचार, सं., गद्य, आदि: मगधदेशे राजगृहं नगरं; अंति: पंचविंशतिरार्यदेशाः. ४. पे. नाम. सप्तनय निरुपण, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण. सप्तनय स्वरूप, सं., गद्य, आदि: नैगम १ संग्रह २ व्यवहारः; अंति: नयस्वीकारे सम्यक्त्वमिति. ५. पे. नाम, स्वसमयपरसमय मतभेद विचार, पृ. ५अ-१५अ, संपूर्ण. स्वसमयपरसमय मतभेद विचार-षड्दर्शनयुक्त, सं., गद्य, आदि: परसमया भूयांस संति; अंति: त्वमाचार्यस्य युक्तमिति. ६.पे. नाम, अभयकुमारबुद्धि महात्म्य, पृ. १५अ-१७अ, संपूर्ण. अभयकुमारमंत्रि कथा, सं., गद्य, आदि: (१)कृते प्रति कृतं कुर्यात्, (२)राजगृहे नगरे श्रेणिकस्य; अंति: प्रतिलोमरूप आहरण तद्दोषः. ७. पे. नाम. २० विहरमानजिन पद, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन पद-कुंथुअरजिनांतर, मा.गु., पद्य, आदि: कुंथु अरजिनने अंतरे रे; अंति: भविका वंदो जिनवर वीस, गाथा-२. ८. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. १७आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: गावो गंधेन पश्यंति; अंति: चक्षुभ्यामितरे जनाः, श्लोक-१, (वि. अंत में गोणिका पतंजलि संवाद संक्षिप्त में दिया गया है.) ९. पे. नाम. जिनदेशनांते तंडुलप्रक्षेप विचार, पृ. १७आ, संपूर्ण. __सं., गद्य, आदि: अथ भगवद्देशनांते यद्भवति; अंति: स्यात् आवश्यकेपि उक्तं. १२२०९० (+#) मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १८११, फाल्गुन कृष्ण, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. ४३-२५(२,६ से २३,२५,२८,३३ से ३५,४०)=१८, प्र.वि. हुंडी:मानवतीरा. श्रीपार्श्वनाथप्रसादेन., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १४४३२). मानतुंगमानवती रास-मषावादविरमण अधिकारे, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल-४७, गाथा-१०१५, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) १२२०९१ (+) सिंदरप्रकर व औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १३४३०). १. पे. नाम. सिंदूरप्रकर, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण, वि. १८६७, पौष शुक्ल, ८, मंगलवार, ले.स्थल. रामसिणनगर, प्रले. श्राव. रायचंद; गुपि. पं. भीमविजय (गुरु पं. सुंदरविजय); पं. सुंदरविजय (गुरु ग. रत्नविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हंडी:सिंदरप्र०. श्रीऋषभदेवजीमाहावीरजीप्रसादात. श्रीगोडीजीप्रसादात्. For Private and Personal Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः अंतिः सोमप्रभ० मुक्तावलीयम्, द्वार- २२, श्लोक-१०३. २५९ २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ९आ, संपूर्ण, प्रले. पंन्या. गजेंद्रविजय (गुरु पंन्या. राजेंद्रविजय); गुपि पंन्या. राजेंद्रविजय (गुरुग, सुमतिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि वृद्धिलिंगी दृढाघाती चीर: अंति: जंपस्सईतस्सईतस्स हुखाई, श्लोक-५. १२२०९२. (+) चौदगुणठाणा तेवीस द्वार, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. संशोधित. वे. (२५.५४१२, १७४४३). १४ गुणस्थानक २३ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: नाम लखण गुणठी, अंति: अनंतगुणा वनस्पती माटे. १२२०९४ (+) सामायिक विधि व पार्श्वनाथ स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. ३-१ ( २ ) = २, कुल पे. ४. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. वे. (२४.५४१२.५, १४४३१). १. पे नाम सामायिक विधि, पू. १अ १आ, संपूर्ण, सामायिक लेने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि इच्छामि० इच्छाकारे; अंति कही धर्मध्यान करे. २. पे. नाम. सामायिक पारने की विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. सामायिक पारने की विधि- खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि सामायक पारवा मुहपत्ति; अंति: असिंकियाभावा फासुअदाणेनि. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ३अ संपूर्ण उवसग्गहर स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि उवसग्गहरं पासं पास; अंति भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. ४. पे. नाम. प्रत्याख्यान ४९ भांगा, पृ. ३अ, संपूर्ण. 1 प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि मने करी करु नही मने अंति भांगा पच्चक्खाणना बाइ (वि. सारिणीयुक्त) १२२०९६. नर्मदासुंदरीसती व बावनाचंदन चौपाई, अपूर्ण, वि. २१वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, दे., (२६X१३.१, २४X८०-८३). १. पे. नाम. नर्मदासुंदरीसती चौपाई, पृ. १अ -४आ, संपूर्ण, वि. २००८, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, ८, शुक्रवार, ले. स्थल. सोजत, पे.वि. हुंडी: नवदाचरित्र, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४१, आदि शासननायक समरीये मोखदायक, अंति रायचंद० लील विलास के, ढाल- २७. २. पे. नाम. बावनाचंदन चौपाई, पृ. ४आ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे. वि. हुंडी : बावनाचन.च. बावनाचंदन चोपाई, पंन्या. मोहनविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: श्रीआदेश्वर पद प्रणमी; अंतिः। (पू.वि. डाल-७, गाथा- २ अपूर्ण तक है.) (-), १२२०९७ (+) सकलार्हत् स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., , (२५X११.५, १०X३२). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२७ अपूर्ण तक है.) " १२२०९८ (+) उदाईराजा वखाण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित. वे., (२५x१२.५, १५X३७). उदाईराजा वखाण, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि : चंपानगर पधारीया; अंति: (-), (पू.वि. ढाल - ६ गाथा-४ अपूर्ण है.) १२२०९९. पौसदसमी कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३- २ (१ से २ ) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४१२, ११४३१). For Private and Personal Use Only पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकसूरि, सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. मिध्यात्व वर्णन अपूर्ण से सुरदत्तश्रेष्ठि द्वारा आचार्य से जीवलक्षण विषयक प्रश्न अपूर्ण तक है.) Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२२१००. पार्श्वजिन, महावीरजिन व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, अन्य. मु. लाधाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२५.५x१२.५, १४४३७) '" १. पे नाम पार्श्वनाथजीनो स्तवन, पू. १अ २आ, संपूर्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तोत्र- शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु. सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक श्रीपास; अतिः सुख " थाय सदा, गाथा - ३१. २. पे नाम वीरप्रभुनो स्तवन, पू. २आ-३अ, संपूर्ण महावीरजिन प्रभाति, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद नानडीया; अंति: चरणकमल चित लावे रे, गाथा-७. ३. पे नाम. आदिजिन स्तवन, पू. ३१-३आ, संपूर्ण. मु. देवजी, मा.गु., पद्य, आदि गुणवंत गुरुने नित चरणे; अंतिः देवजी०सीष नमे सिरनामी रे, गाधा-८. १२२१०१. गौतमस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५.५४१२.५, ८४३२). " गौतमस्वामी स्तव, आ. वज्रस्वामि, सं., पद्य, आदि: स्वर्णाष्टाग्रसहस्रपत्र अति श्रेयांसि भूयांसि नः श्लोक-११. १२२१०२. (+#) प्रत्याख्यानसूत्र व पर्युषणपर्व स्तुतिद्वय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५ (१ से ५ ) = १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४१२, १४४४१). "" १. पे. नाम. दशविधपच्चक्खाण, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि (-); अति गारेण वोसिरामि, (पू. वि. प्रत्याख्यानसूत्र ८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पर्युषणापर्व स्तुति, पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण. पर्युषण पर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर अतिअलवेसर प्रात; अंतिः बुधविजय जयकारी जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि परव पजुसण पुण्यै पामी वीर अंति (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) १२२१०३. (+) विपाकसूत्र-सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कंध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९७३ वैशाख शुक्ल, १५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल. जोधपुर, प्र. वि. हुंडी: सुखविपा०, सुखवि० संशोधित. दे. (२५.५४१२, ९x४४). ', विपाकसूत्र - हिस्सा सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कंध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेण कालेणं तेणं; अंति से जहा आयारस्स, अध्याय १०. विपाकसूत्र - हिस्सा सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कंध का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि ते उत्सर्पणीनो चोधो, अंतिः से० सेप जिन आचार्य छे. १२२१०४. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८९७, भाद्रपद शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले. स्थल अलायनगर, प्रले. मु. उत्तमविजय (गुरु मु. नेमिविजय); गुपि. मु. नेमिविजय (गुरु मु. उदयविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X१२, १३X२६). , आवश्यक सूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि तित्थंकरे अतित्वे अंति (१) इच्छामो अणु सठि अं, (२) नित्थारगपारगाहोह. १२२१०५. (+) दानाधीकार कयवन्नासेठ चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७६, चैत्र शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ३३, प्रले. पं. वनीतविजय; उप.मु. केशरमुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित, जैदे. (२४.५४१२, १२४२९). यवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा अति जयरंग० करण मन विकसे जी, ढाल - ३१, गाथा-५६६. १२२१०६. (+) मदनरेखासती रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, उप मु. केशरमुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६x१२, ११x४१). मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: जुवा दारु मास तणी; अंति: पोहता मुगत मंजारी, गाथा-१६४. १२२१०७. अंजनासुंदरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९११, माघ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १०, उप मु. केशरमुनि प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: अंजणास., अंजणा०., दे., (२५.५४१२, १६x४८). अंजनासुंदरी चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि अंजणा मोटीसती तिण पाल्यो अति तोडेने गया मुगत मंझार के, गाथा १५१. For Private and Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २६१ १२२१०८. अंजनासुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १८१९, भाद्रपद कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १४, उप. मु. केशरमुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अंजनारास., अंजनारासप., कुल ग्रं. ४५०, जैदे., (२६४१२, १४४४२). अंजनासंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहिले रे कडवे रे पाय नम; अंति: भारज्या जगतनी मात तो, गाथा-१५८. १२२१०९ पुण्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२, १३४४३). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९७ अपूर्ण तक है.) १२२११०. नवपद क्षमाश्रमणदान विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, अन्य. मु. केशरमुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवपदवि०., कुल ग्रं. १८०, दे., (२५.५४१२, ११४३४). नवपद खमासण विचार, पुहिं.,सं., गद्य, आदि: तहां प्रथम पदे श्रीअरिहंत; अंति: सब भेद ३४६ होय. १२२१११. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, अन्य. मु. केशरमुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ता०., जैदे., (२४.५४१२.५, ९४२९). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीवीतराग जिणदेव; अंति: रामपुरे गुणगाया, गाथा-१८. १२२११२. चतुर्विंशति जिनगीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. मथेन; अन्य. मु. केशरमुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, ११४३५). स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मनमधुकर मोही राउ; अंति: जिनराज०दउलति पावउ जी, स्तवन-२४. १२२११३. माधवानल चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-२(१६,२१)=२०, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:माधवानलचोपाई., माधवानलचौ., जैदे., (२८x१२, १४४३७-४२). माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: देव सरसति देव सरसति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३३६ से ३६१ तक, गाथा-४५५ अपूर्ण से ४८२ अपूर्ण तक व गाथा-५०७ अपूर्ण से नहीं है.) १२२११४. ऋषिदत्तासती चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८१, चैत्र कृष्ण, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २३, ले.स्थल. जैतारण, प्रले. मु. हिमतमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रीषदंतानी., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६४११.५, १७७४१-४९). ऋषिदत्तासती चौपाई, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६४, आदि: सासण नायक सिमरता पांमिजे; अंति: चोथमल० जय जयकारो जी, ढाल-५७. १२२११६. वरदत्तगुणमंजरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४११.५, १२४३८). वरदत्तगुणमंजरी चौपाई-ज्ञानपंचमीफलमाहात्म्ये, मु. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: प्रणमुं ___ जगदानंदकर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) १२२११७. (+) त्रैलोक्यदीपिका नाम संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ३-६४४०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउ अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३४१. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा गुरुपदयुग्मं; अंति: जयवंत हुए त्यां लगी. १२२११८. उपदेशमाला सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-२(१,७*)+१(६)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११, २०४७८). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२७अपूर्ण से २८२ अपूर्ण तक है., वि. मूलपाठ टुकड़े-टुकड़े के रूप में मिलता है किंतु त्रुटित कड़ी को जोड़ने पर अनुसंधान पाठ मिल जाता है.) उपदेशमाला-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२२११९ (+) उपदेशसार रत्नकोश स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९२६, माघ शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. मुंबइ, प्रले. कल्याणजी भट्ट; पठ. श्राव. देवजी हरजीवन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उपदे०सा०., उपदेस०., संशोधित., दे., (२६४११, ९४३६). उपदेशसार रत्नकोश स्वाध्याय, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तित्थंकर चउवीस हे वंदो; अंति: श्रीसमरसिंघ इम भाषिये, गाथा-६०. १२२१२० (+) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार की रत्नाकरावतारिका टीका, अपूर्ण, वि. १४८९, आषाढ़ कृष्ण, ६, बुधवार, मध्यम, पृ. ८२-१२(१ से ९,१७ से १८,८१)=७०, ले.स्थल. घोघावेलाकूल, प्र.वि. श्रीनवखंड प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १७४६२). प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार-स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वत्ति की रत्नाकरावतारिका टीका, आ. रत्नप्रभसूरि, सं., प+ग., वि. १३वी, आदि: (-); अंति: प्रसर्पति प्रजल्पतः, परिच्छेद-८, (पू.वि. परिच्छेद-१ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२२१२१ (+#) शतक कर्म विपाकसूत्र व सप्ततिका कर्मग्रंथ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४४, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १७४५४). १. पे. नाम. शतक कर्म विपाकसूत्र सह बालावबोध, पृ. १अ-१६आ, संपूर्ण, शुक्ल, ११, रविवार, पे.वि. हुंडी:कर्मग्रंथ पांचमो. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधो १ दय २; अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा-१००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: वीतराग नमस्करीनइ; अंति: कीधउ परोपकारनइ काजिइ. २.पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. १७अ-४४आ, संपूर्ण, शुक्ल, ३, पे.वि. हंडी:कर्मग्रंथ छठोनउ बालावबोध. सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगूणा होइ नवईउ, गाथा-९३. सप्ततिका कर्मग्रंथ ६-बालावबोध, मु. कुंभ ऋषि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)गणहर पायनमेय समरी गुरु, (२)सिद्ध पद __ कहता बीजउ; अंति: (१)पूर्वाचार्यनी कीधी छइ, (२)होइ ते मिच्छामि दुक्कडं. १२२१२२. (+) युगादिदेशना, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२७.५४११.५, १७X४३). युगादिदेशना, ग. सोममंडन, सं., पद्य, आदिः श्रीमानादिजिनः श्रेय; अंति: (-), (प.वि. श्लोक-३१३ तक है.) १२२१२३. सामाचारी प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, जैदे., (२६४११, १८४६२). सामाचारी प्रकरण, प्रा.,सं., गद्य, आदि: आयारमयं वीरं वंदिय; अंति: जिआ जरमरणविवजिअंठाणं, द्वार-२१. १२२१२४. (#) अजितशांति स्तव व चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, १६४४८). १.पे. नाम. अजितशांति स्तव सह बालावबोध, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण, प्रले. पंन्या. विनयरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य. अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संतिं च; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. अजितशांति स्तव-बालावबोध, मा.ग., गद्य, आदिः (१)नत्वापार्श्वजिनांह्रि, (२)अजियं क० अजितनाथ बीजो; अंति: कल्याणमाला विस्तरइ. २. पे. नाम, चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न विचार, पृ. ८आ, संपूर्ण. मा.गु.,रा., गद्य, आदिः (१)राजाविक्रमादितजीने पछे, (२)संवत १३६ के समे राजाचंद्र; अंति: (-), (वि. किनारी खंडित होने से अंतिमवाक्य अवाच्य है.) For Private and Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २६३ १२२१२५ (+) पुष्पमाला प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६१५, आषाढ़ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २२५-१५७(१७,३५ से ३७,७२ से २२४)=६८, ले.स्थल. विक्रमनगर, प्रले. वा. अमरमाणिक्य (गुरु वा. दयाकलश, खरतरगच्छ); गुपि. वा. दयाकलश (गुरु वा. मेरूतिलक, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे., (२१४११, १४४३६). पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: सिद्धमकम्ममविग्गह; अंति: भव्वेहिं सया सुहत्थीहिं, द्वार-२०, गाथा-५०५, (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से २१ अपूर्ण, गाथा-६० से ६७ व गाथा-१२२ से ५०४ तक नहीं है.) पुष्पमाला प्रकरण-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमद्वीरं धीरं; अंति: जने सुख वांछते भणीउ. १२२१२६. चंद्रधवलभूप धर्मदत्तश्रेष्ठि रास, संपूर्ण, वि. १६९६, कार्तिक कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. २१, पठ. मु. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:धर्मदत्तचुपइसरास., कुल ग्रं. ५५०, जैदे., (२६४११, ११४४८). चंद्रधवलभूप धर्मदत्तश्रेष्ठि रास, आ. रत्नसुंदरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६४२, आदि: सयल जिनवर प्रथम तसु पाय; अंति: रत्नसुंदर०० प्रकरणि तथा, गाथा-३८१.. १२२१२७. (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, ६४२२). औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीवा वारुं छु म्हारा; अंति: शांतिविजय० आवागमन नीवारो, गाथा-५. १२२१२८. भगवतीसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-३(१,४ से ५)=३, प्र.वि. हुंडी:भगवतीसूवृ०., त्रिपाठ., दे., (२६४११, १-३४३२-४६). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० णमो; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., शतक-१ उद्देशक-१ अपूर्ण तक है व बीच का पाठांश नही है.) भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२८, आदिः (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. १२२१३२. शील कुलक सह बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४१-३१(१ से ३,८ से २६,३१ से ३८,४०)=१०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४११, १५४६१). शील कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ से १२ तक है.) शील कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). शील कुलक-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नेमिजिन भव-४ की कथा अपूर्ण से अंजनासुंदरी कथा अपूर्ण तक है व बीच-बीच के कथांश नहीं है.) १२२१३४. अंतकृद्दशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:अंत्तग ट०., दे., (२६.५४११, ६x४३). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: (-), (पू.वि. वर्ग-८ अध्ययन-१० सूत्र-५९ अपूर्ण तक है.) अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० ते काल चउथा आरन विषे: अंति: (-). १२२१३५ (#) नेमराजिमती नवरसो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, २०४४८). नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत चंदलो; अंति: प्रभु उतारो भवपार, ढाल-९, गाथा-४५. १२२१३६. चातुर्मासिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६४१०.५, १२४५२). चातुर्मासिक व्याख्यान, मा.गु., प+ग., आदि: प्रणम्य परमानंद; अंति: (-), (पू.वि. 'बीजो कर्त्तव्य पडिकमणो करि दिन सफलो करे भगवंतने' पाठांश तक है.) १२२१३७. (+) संबोधसप्ततिका व औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२६.५४११, ११४४५). For Private and Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम, संबोधसप्ततिका, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरु लोयालोयं; अंति: सो लहइ नत्थि संदेहो, गाथा-७७. २. पे. नाम, औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ४अ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२२१४० सिद्धचक्रमाहात्म्ये श्रीपाल प्रबंध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, जैदे., (२६.५४११, १५४५६). श्रीपाल रास-लघु, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १५३१, आदि: करकमल जोडवि करि सिद्ध सयल; अंति: ज्ञान० भूपति श्रीपाल, गाथा-२६६. १२२१४१ (+) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १४९१, फाल्गुन शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १०-२(८ से ९)=८, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १३४५५). प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, आ. वादिदेवसूरि, सं., प+ग., वि. ११५२-१२२६, आदि: रागद्वेषविजेतारं ज्ञातारं; अंति: यावत्स्फूर्ति च वाच्यम्, परिच्छेद-८, (पू.वि. परिच्छेद-६ श्लोक-७४ अपूर्ण से परिच्छेद-७ श्लोक-५६ अपूर्ण तक नहीं है.) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: राग० रागद्वेषयोर्विशेषेण; अंति: ताभ्यां वक्तव्यमित्याहुः. १२२१४२. (+) प्रकृतिविच्छेद प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १५४६१). प्रकृतिविच्छेद प्रकरण, आ. जयतिलकसरि, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्वीरजिनं नत्वा; अंति: प्रकरणमेतच्चतुर्थ च, श्लोक-१३९. १२२१४३. मौनएकादशीपर्व गणगुं, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२५४११.५, १२४४६). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: (१)जंबूद्वीपे भरते अतीते, (२)श्रीमहाजस सर्वज्ञाय नम; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः. १२२१४४. पर्युषणापर्व स्तुति व अष्टमी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. राजनगर, पठ. श्रावि. जवलबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १५४४२). १.पे. नाम. पर्युषणापर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पर्व पयुसण पुन्थे; अंति: सुजस महोदय कीजे, गाथा-४. २. पे. नाम, अष्टमी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अठम जिन चंद्रप्रभु; अंति: राज० अष्टमी पोसह सार, गाथा-४. १२२१४५ (+#) आरंभसिद्धि सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४५७). आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: ॐ नमः सकलारंभसिद्धिः; अंति: (-), (पू.वि. विमर्श-५ __श्लोक-६२ अपूर्ण तक है.) आरंभसिद्धि-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: पूज्यानां पूज्याय; अंति: (-). १२२१४६. (#) पट्टावली सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८-५(१,३,५ से ७)=३, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४४७). पट्टावली तपागच्छी , मु. जयविजय, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से १९ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) पट्टावली तपागच्छी-टीका, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). १२२१४७. (+#) रमल शुकनावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. क्षेममाणिक्य, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४४५). For Private and Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ रमल शुकनावली, पुहिं. गद्य, आदि अरे बार बहुत दिन चिंता; अति भली होइगी घरा आनंद होइगा. १२२१४९. शेत्रुंजय स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. हुंडी शेडुंजयस्त, दे., (२५.५X११, १०४३८). शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी कहे कामनी; अंति: सेवक जिन धरे ध्यान, गाथा - १६. १२२१५० (+) अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९११ कार्तिक कृष्ण, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १२. ले. स्थल. व्यालपुर, प्रले. मु. जसविजय (गुरु मु. सुखविजय); गुपि. मु. सुखविजय (गुरु मु. रत्नविजय); राज्यकालरा तखत्तसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: अणुत्तरोववाइनवमाण अणुत्तराववाइ नवभांगे टबार्थ., पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६.५X११, ७X५७). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेण कालेणं तेण; अति: अयमठ्ठे पण्णत्ते, " अध्याय-३३. अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालने अवसर्पणि कालने अति वर्गना एइ स्यउ अर्थ काउ १२२१५१. (+) तंद्लवैचारिक प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५१, माघ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. २६, ले. स्थल, विजयनगर, प्र.वि. पार्श्वनाथ प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, ६x४७). तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग, आदि निज्जरिय जरामरणं; अंतिः कारणं लहड़ सिवसुक्ख, संपूर्ण. तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि बादी करीने सामान्य केवली, अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., उपसंहार अंतर्गत सूत्र- १४३ अपूर्ण से टबार्थ नहीं लिखा है.) १२२१५२. (+) बृहत्संग्रहणी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४५-८(१,३८ से ४४) = ३७, पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६X११, २१x६७-७५). २६५ बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि (-); अंति (-), (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण से गाथा २८४ तक है व बीच का पाठांश नहीं हैं.) बृहत्संग्रहणी- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: (-). *, " १२२१५४ (F) स्तुतिचतुर्विंशतिका सह अवचूरि, अपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. ५-४ (१ से ४) १, प्र. वि. पंचपाठ, टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६X११, १३x४९). स्तुतिचतुर्विंशतिका, आ. वप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि (-); अति याधमं बाधमंचा, स्तुति- २४, श्लोक ९६, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., श्लोक ८३ अपूर्ण से है.) स्तुतिचतुर्विंशतिका-स्वोपज्ञ अवचूरि, आ. वप्यभट्टसूरि, सं. गद्य वि. ९वी आदि (-); अति समपराय इति गतार्थ, " अध्याय- २४, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. १२२१५५ पल्योपम सागरोपमभेद, पुद्रलपरावर्त विचार व ४ ध्यानवर्णन कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ३, कुल पे. ३, जैदे. (२६११, १८४५७). १. पे. नाम पल्योपम सागरोपमभेद विचार, पृ. १अ- ३आ, संपूर्ण, प्रा.,सं., गद्य, आदि: आयुर्वर्जानां सप्तानां; अंतिः श्रीमलयगिरीयावश्यकवृत्तौ . २. पे. नाम. पुद्रलपरावर्त विचार, पू. ३आ, संपूर्ण. पुद्गलपरावर्तस्वरूप विचार- चतुर्विध, सं., गद्य, आदि: स्यात्पुद्गलपरावर्त; अंति: अधिकारः परैर्नतु. ३. पे. नाम. ४ ध्यानवर्णन कोष्ठक, पृ. ३आ, संपूर्ण. १६ ध्यान विचार, मा.गु., गद्य, आदि आर्त्तध्यान इष्टवियोग १: अंतिः शुक्ल० व्युपरतक्रिया४ (वि. कोष्ठकमय.) १२२१५६. (+) पट्टावली तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X११.५, १९५२). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: ७४ तत्पटे विजयगुणत्वसूरि. १२२१५७ (+) बृहत्संग्रहणी सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १६३० फाल्गुन कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १७-१ (१) १६, प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. कुल ग्रं. १८००, जैदे., (२६X११, ३-७X३६). For Private and Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: नंदउजा वीरजिण तित्थं, गाथा-२७१, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) बृहत्संग्रहणी-अवचूरि , सं., गद्य, आदि: (-); अंति: २३ वेदाश्वर २४ प्रागुक्ता. १२२१५९ (+) सीताचरित्र, संपूर्ण, वि. १६७४, फाल्गुन कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ८२, प्रले. मु. गोपाल (गुरु पं. जीवविजय गणि); गुपि.पं. जीवविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ३२०२, जैदे., (२६४११, १३४४६-५१). सीतासती चरित्र, प्रा., पद्य, आदि: कमलनहकतिजलेणं वखालि; अंति: तह सरीहिं निवेइयं किंचि, गाथा-३४४०. १२२१६२. ६ जीवपर्याप्ति विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-१(१ से ९)=१, जैदे., (२७.५४११, २१४५६). ६ जीवपर्याप्ति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कोटि आयु हुई आठमइ भविनी, (पू.वि. वनस्पतिकाय जीव अपूर्ण से है.) १२२१६३ (+) पुरंदरभूपति कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. कोट्टडामहादुर्ग, प्रले. ग. पद्मकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-संशोधित., जैदे., (२७४११.५, १३४५३). पुरंदरनप कथा, ग. पद्मकीर्ति, प्रा.,सं., गद्य, वि. १८वी, आदि: (१)समय भणिएण विहिणा सुत्तं, (२)अत्रैव भरतक्षेत्रे वाणा; अंति: (१)ज्ञानमुपायं मोक्षं गता, (२)रहस्सं अप्पाहारं विणासेइ. १२२१६६. उपदेशमाला सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५२२, श्रेष्ठ, पृ. १८, लिख. श्रावि. देवा (पति श्राव. कीका); श्राव. कीका (पिता श्राव. वरसिंघ शाह); श्रावि. माई (पति श्राव. प्रथम); श्राव. प्रथम; श्रावि. सलखू (पति श्राव. वरसिंघ शाह); श्राव. वरसिंघ शाह, प्र.ले.प. विस्तृत, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ७-१२४५१-५५). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंदनरिंद०; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४. उपदेशमाला-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नमि० नत्वा प्रणम्य; अंति: देशमाला० पराध क्षामण माहा. १२२१६७. (+) रत्नाकरावतारिका लघुटीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११४-२(२२,६९)=११२, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:रत्नाकरत्ता., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १५४४८-५३). प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार-स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति की रत्नाकरावतारिका टीका, आ. रत्नप्रभसूरि, सं., प+ग., वि. १३वी, आदि: सिद्धये वर्द्धमानस्तात्; अंति: (-), (पू.वि. परिच्छेद-८ अपूर्ण से 'सर्वानुभाषणं व्यर्थमेव भवेदिति' पाठांश तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२२१६८. (#) रावण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२, १४४३६). रावण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: कहे भवीषण सुण वो; अंति: आदर मान दीयो तारी, गाथा-१६. १२२१६९ (+) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७०-२४(४ से ७,९ से ११,१३ से १४,१७,२१,२४,२७,३२,३५,३८,४१ से ४२,४४,५७ से ६०,६९)=४६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४४१२, ६४३६). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउ अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., गाथा-३९३ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मु. दीपविजय, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीनाभेयं जिनं नत्वा, (२)अरिहंतादिक पंच पदा; अंति: (-), पृ.वि. बीच-बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं. बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., वि. अपेक्षित स्थान पर बालावबोध लिखा है.) १२२१७० (+) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न विचार, आयुष्य विचार गाथा व श्रीलोकनाभि सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्रले. श्रावि. पहपा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४३४). १. पे. नाम. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न विचार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मा.गु.,रा., गद्य, आदि: पहिलइ सुमिणइ कलप वृक्षनी; अंति: करिस्यइ ते सुखी थास्य. २. पे. नाम. आयुष्य विचार गाथा सह बालावबोध, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २६७ आयुष्यविचार गाथा, अप., पद्य, आदि: मणुआइ समगयाई हयाइ; अंति: प्रमुखउ आऊषउ एतलइ तेरवरिस. आयुष्य विचार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हिव छठइ अरइ मनुष्यउ आऊषउ; अंति: लोक व्यवहार छठइ अरइ नही. ३. पे. नाम, श्रीलोकनाभि सूत्र, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण.. लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदंसणं विणा जं; अंति: यह जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३२. १२२१७१ (#) पुण्यपालनृप चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ११४१९). पुण्यपालराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१६ अपूर्ण से ढाल-४ गाथा-३०अपूर्ण तक है., वि. सभी ढालों की गाथानुक्रम क्रमशः हैं. ढाल-३ की जगह-४ व ढाल-४ की जगह ३ लिखा है.) १२२१७४. औपदेशिक दोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२५४१२, १२४३०). औपदेशिक दोहा संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४७ अपूर्ण से ५७ अपूर्ण तक है.) १२२१७५ (+) प्रव्रज्या विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, ११४३१). दीक्षा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: इरियावही पडीकमी खमा; अंति: (-), (पू.वि. 'स्थिरीकरणार्थं करेमि काउसग्ग' पाठांश तक है.) १२२१७६. (+) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४४२). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कोशा कामिनी पूछइ चंद; अंति: सदा गुणगान करइ तस हीसि रे, गाथा-२२. १२२१७८.(+) पारसनाथनी नीसाणी व वणजारा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, १८४४०). १. पे. नाम. पारसनाथनी नीसाणी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नीसांणी०. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपतिदायक सुरनर; अंति: जिनहरख० वगविल संदा हे, गाथा-२४. २. पे. नाम, वणजारा सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सखी विणजारो आवीयो भरतरी; अंति: हम कुलनारी तक तोय जलजा, गाथा-२५. १२२१७९. कान्हडकठियारा प्रबंध, संपूर्ण, वि. १९०६, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. सालावस, प्र.वि. हुंडी:कांनजी., दे., (२४.५४११.५, १६४३५). कान्हडकठियारा प्रबंध, म. जेतसी ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: अरिहंत सिद्ध समरु; अंति: उपना चवन जासी मोखरा, ढाल-८. १२२१८०. सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. १४, ले.स्थल. लसकर, प्रले. श्राव. लिखमीचंद (पिता श्राव. दोलतराव); गुपि. श्राव. दोलतराव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:तवनलि. अंत में ले.संवत् हेतु मात्र "एकासमे" उल्लिखित है., दे., (२५.५४११.५, २०४४७). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. वा. रत्नचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: ओ छे जनम जीवणो थोडो; अंति: इण सेती निसतरीये रे, गाथा-८. २. पे. नाम, भवदेवनागिला सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: भवदेव जागी मोहणी तज आयो; अंति: रतनचंद० हो निज सीस नमाय, गाथा-११. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: इण कालरो भरोसो भाई; अंति: रतनचंद० कीजो धर्म रसालो ए, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मायाकपट, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: कुडकपट कर माया मेली; अंति: रतनचंद० सैंठी पकडी माया, गाथा-११. ५. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: सांवलीया साहिब सुखदायक; अंति: रतनचंद० अब तो आइ आज हमारी, गाथा-६. ६. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: सांवलीयो साहिब है; अंति: लीजे नाम सवैरो, गाथा-५. ७. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. म. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदिः रहो रहो सांवलीया साहिब; अंति: कहे० प्रीत मंडाणी, गाथा-६. ८. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: प्रात उठ श्रीसंत जिणंद को; अंति: रतनचंद० लाय कषाय टली, गाथा-५. ९. पे. नाम. महावीरस्वामी स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८०, आदि: रिषभदतनै देवानंदा नार रथ; अंति: चोमासो वरस कीयो असि रे, गाथा-७. १०. पे. नाम. धनाजीरो तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. धन्नाकाकंदी सज्झाय, म. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नगर काकंदी हो मुनीसर आपज; अंति: सिधावसी रतन कहे करजोड, गाथा-७. ११. पे. नाम. श्रावकरी इकीसी, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. श्रावकइकवीसी, म. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्राविक नाम धरायनें एहवा; अंति: कहे सुणो नरनारो, गाथा-२१. १२. पे. नाम. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुकल पक्ष विजीया वृत लीधो; अंति: रतनचंद० कथा भीण मुख जाणी, गाथा-१५. १३. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मन, म. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: किसै विडद दे गाउ मनातो; अंति: रतनचंद० मीसांण धुरां उकि, गाथा-९. १४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, म. रतनचंद, रा., पद्य, वि. १८७४, आदि: वामानंदन पासजिणंदजी; अंति: रतनचंद० वरस चहोतरै हेय, गाथा-१०. १२२१८२. औपदेशिक होली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. उतमचंद (गुरु मु. प्रेमचंद); गुपि. मु. प्रेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अनुमानित पत्रांक दिया है., दे., (२४.५४११.५, १४४२९). औपदेशिक होली, रा., पद्य, आदि: फागणमे खेले होलि इण; अंति: मिनामे थु जोवेने चाले रे, गाथा-१५. १२२१८३. १८१ बोल हुंडी, संपूर्ण, वि. १९६९, आश्विन कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. सिरदार शहर, प्रले. मु. रेवतमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:हुडी १८१ बोल., दे., (२५४११.५, १९४५९). १८१ हुंडी बोल, मा.गु.,रा., गद्य, आदिः (१)जे हलूकर्मी जीव होसी ते, (२)साधु थइनै अणकल्पनी०; अंति: वांदै त्यानै साध किम सरखै. १२२१८४. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र व सामायिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९१७, श्रावण शुक्ल, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. अंजार, प्रले. मु. कर्मचंद, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२४.५४१२, ११४३२). १.पे. नाम. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:आवस्यक. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.ग., प+ग., आदि: परकम्मणो आवसहीइ; अंति: तेने मारो नमस्कार होजो जी. २. पे. नाम. सामायिकसूत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सामाइक. For Private and Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २६९ सामायिकसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: एहवा नवमा सामायक व्रतना; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. १२२१८५ (+#) सुरसुंदरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ११००, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२, १५४४०). सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सासण जेहनौ सलहीयै आज; अंति: धर्मवर्धन० जिनधर्म आराधउ, खंड-४ ढाल ४०, गाथा-६१३. १२२१८७. पट्टावली तपागच्छीय सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२३.५४१२, १५४३६). पट्टावली तपागच्छीय, उपा. धर्मसागर गणि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिमंतो सुहहेउ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., विजयदयासूरि परंपरा तक लिखा है.) पट्टावली तपागच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ए श्रीपजूसणकल्प गुरु; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १२२१८८. सज्झाय, पद, लावणी व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-२(२,६)=७, कुल पे. २४, दे., (२४४१३, १०४३०-३३). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, म. नवीदास, पुहिं., पद्य, आदि: तुं मत मारे रे वीरा; अंति: नीवादास० समरो साहिब हीरा, गाथा-४. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, मु. नवीदास, पुहिं., पद्य, आदि: तूं मत मारे रे मुझ कू; अंति: निवादास० चढावे तुझकुं, गाथा-५. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: तुं महारो बाबो रे बाबो; अंति: ठग ठग खादा कामदेवनो वायो, गाथा-११. ४. पे. नाम. समकित सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. रा., पद्य, आदि: नीरमल शुद्ध समकित जीण पाई; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ५. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. म. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदिः (-); अंति: जिनदास० ज्योतिमे जोत समाउ, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. ___ मु. अमोलक, रा., पद्य, आदि: फूले मति रे हारे० धन संपत; अंति: अमोलक कहै पामो आरामि, गाथा-५. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, तानसेन, पुहिं., पद्य, आदि: गोरे गोरे मुखको गुमान; अंति: तानसेन० हाथ पसारे जायगो, गाथा-४. ८. पे. नाम, महावीरस्वामी को स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, म. देवीलाल, पुहिं., पद्य, वि. १९५९, आदि: मोरा सासनपति बडभागी; अंति: देवीलालजी मुनी वैरागी, गाथा-८. ९. पे. नाम, सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. सा. जडाव, पुहिं., पद्य, वि. १९३२, आदि: सिरी जिनराज शरणो धरम को; अंति: कर जोडी हो जपे जडाव, गाथा-८. १०. पे. नाम.११ गणधर स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. सा. जडाव, रा., पद्य, वि. १९३२, आदि: प्रथम गुणधर गोतमसामी; अंति: तत सिष्यणी जडाव गुण गाया, गाथा-९. ११. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. सा. जडाव, रा., पद्य, आदि: भूल मत जाज्योजी गुरु बिसर; अंति: जडाव० धन धन सरव संताने, गाथा-७. १२. पे. नाम. महावीरजिन पारण, पृ.५अ, संपूर्ण. सा. जडाव, रा., पद्य, आदि: जनक सिधारथ तिसलाजी मांए; अंति: जडाव०प्रभुजीरा चर्ण ग्रिह, गाथा-७. वरा, For Private and Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. सा. जडाव, पुहिं., पद्य, वि. १९५१, आदि: मत खोवो रे हरि मत खावो; अंति: जडाव० हीरदारी खीडकी खोलो, गाथा-१३. १४. पे. नाम, नवपद दोहा, पृ. ५आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह-जैनधार्मिक, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध समरू; अंति: विघन हरो महाराज, दोहा-१. १५. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. ५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी हो आदजिणंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) १६. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. सा. जडाव, मा.गु., पद्य, वि. १९५३, आदि: (-); अंति: जडाव० प्रभू नामे मंगलमाल, गाथा-९, (पृ.वि. गाथा-४ अपूर्ण से १७. पे. नाम, कंथजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. सा. जडाव, रा., पद्य, वि. १९५३, आदि: कुंथुजिनेसर नीत नमू ज्यां; अंति: जडावनै निज चरणारी दास, गाथा-९. १८. पे. नाम, महावीरजिन लावणी, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. सा. जडाव, पुहि., पद्य, वि. १९५३, आदि: महावीर सासण के स्वामी बार; अंति: (१)वीर की जडाव सूणाइरे, (२)भाख्यो अरथ पाठ परमाण ए, गाथा-१२. १९. पे. नाम, गुरुगुण गीत, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. सा. जडाव, रा., पद्य, आदि: कुणे पराया मन की मनकी तन; अंति: जडाव० तरसे दरसण ताइजी, गाथा-११. २०. पे. नाम. पंचेंद्रीनी ढाल, पृ. ८आ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय सज्झाय, सा. जडाव, रा., पद्य, वि. १९५३, आदि: प्राणी पंचइंद्री बस कीजीए; अंति: जडाव० निज पर अतने हीत आणी, गाथा-९. २१. पे. नाम. २० विहरमान जिन स्तवन, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तवन, सा. जडाव, रा., पद्य, आदि: हो जी सीमंधरजिनराय जुग; अंति: जडाव कहे जीनराजसु, गाथा-७. २२. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निद्रात्याग, सा. जडाव, रा., पद्य, आदि: दीन कोर धंधो कर परनींद्या; अंति: जडाव० भांगरी राग रसाल, गाथा-१२. २३. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. जडाव, रा., पद्य, आदि: जिण दिन मुगत गया जिन; अंति: जडाव० मंगलमाली रे, गाथा-९. २४. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. ९आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सीतासती सज्झाय-पतिव्रता, मा.गु., पद्य, आदि: परम धरम पतिव्रता कहयो सुण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है., वि. गाथांक नहीं है.) १२२१८९ (+) आलोयणापच्चीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.१, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४४१२.५, १९४३९). आलोयणापच्चीसी, म. जडाव, रा., पद्य, वि. १९६२, आदि: अहो नाथजी पाप आलोउ पाठली; अंति: जडाव० चितचाव दीनानाथजी, गाथा-२५. १२२१९०. सारदा स्तोत्र व औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१२, १४४३३). १. पे. नाम. सारदास्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. हेमाचार्य, सं., पद्य, वि. १५२७, आदि: कमलभूतनया मुखपंकजे; अंति: बुद्धिवर्द्धयति निर्मलं, श्लोक-१३. २.पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहिं. प्रा. मा. गु. सं., पद्य, आदि धर्मप्रव्रजतः तप कपटतः अति मृगगणा त्वरितं त्वजंती, श्लोक- ५. १२२१९१. सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-३ (१, ५, ७) = ५, कुल पे. १७, प्र.वि. पत्रांक अस्तव्यस्त है. हंडी उपस्त., दे. (२४४१३, १९५२७-३३). १. पे नाम औपदेशिक सज्झाय समकित पू. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६९, आदि: (-); अंति: रतनचंद० जो चावो मुकतरमणने, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि अपनाई रंगमाये रंगदो नाथ; अंतिः पीतम कृपा करीने पार करदो, गाथा-४. ३. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि दंड अनर्था छोडो भविकजन; अंति: जिनवांणी उर धारो रे, गाथा- ४. ४. पे. नाम कलयुग सज्झाय, पू. २आ-३अ, संपूर्ण. कलियुग सज्झाय, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: तारक धर्म जिनेश्वर केरो; अंति: रामचंद० धर्म ध्यान कीजे, गाथा - १०. ५. पे. नाम. कलियुग सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. राम, रा., पद्य, आदि: हलाहल कलजुग मति जोनो रे अति: राम कहै० धर्म करो भाई, गाथा ९. ६. पे. नाम. श्रावक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्रावक सज्झाय-सामायिक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक चीत चोखे करो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ अपूर्ण तक लिखा है.) ७. पे. नाम. भरतचक्रवर्ती सज्झाय, पू. ४अ संपूर्ण. - मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९४५, आदि अमर पद पाया हो; अति हीरालाल० मन की आस, गाथा ११. ८. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ४आ, , संपूर्ण. आदिजिन स्तवनजन्मबधाई, मा.गु., पद्य, आदि आज तो बधाई राजा नाभिः अंतिः निरंजन आदिसर दवाल रे, २७१ गाथा ६. ९. पे नाम ऋषभदेव को हालरीयो, पू. ४आ, संपूर्ण आदिजिन पालना, मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि मा मोरादेवी गावे रे; अंति हीरालाल० कीम जाये करीयो, गाथा- ७. १०. पे. नाम. शांतिनाथप्रभु को हालरीयो- सर्वार्थसिद्ध, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. , शांतिजिन हालर, मु. चौथमलजी, मा.गु., पद्य, आदि: सर्वार्थसिद्ध थकी अंति: (-) (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा तक है.) ११. पे नाम, जिनवाणी स्तवन, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति तिलोक० सदा प्रणमे वारंवार गाथा १० (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) १२. पे नाम, २४ जिन पद, पृ. ६ अ- ६आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि सिरीजन मुजने पार उतारो; अति लालचंद० म्हारो करो निसतारो, गाथा-७. १३. पे नाम, चोवीशजिन स्तुति लावणी, पृ. ६आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि ऋषभ अजित जिनदेव संभव, अंति: कवीश्वर० मेलजो मुगतीमां, गाधा- ९. १४. पे नाम. २४ जिन स्तवन, पू. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभ अजित संभवस्वामी, अंति (-), (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.) १५. पे नाम. २० विहरमानजिन स्तवन, पृ. ८अ संपूर्ण मु. वृद्धिचंद, मा.गु., पद्य, आदि पाप पुंज जावे झरीजी प्रथम अंति वृद्धिचंद० तुमसे करीजी, गाधा-५. १६. पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. ८अ -८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. वृद्धिचंद, मा.गु., पद्य, आदिः (१)सीता है सतवंतीनार सद, (२)ब्राह्मी और सुंदरी जान हो; अंति: वृद्धिचंद्र० महिमा कथीजी, गाथा-६. १७. पे. नाम. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, पृ. ८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. रा., पद्य, आदिः श्रीविजयकंवर और; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) १२२१९४. १४ गुणस्थानकबोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., दे., (२४४१३, १९४३८-४१). १४ गुणस्थानक मूलोत्तरप्रकृति संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पंचेंद्री बारमा बेइंद्री, (पू.वि. गुणस्थानक-३ देवता आणुपूर्वी वर्णन से है.) १२२१९५ (#) नेमनाथजी रा २४ चोक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१२, ११४३४). नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवसे नेमकुमर निज; अंति: (-), (पू.वि. चोक-४ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) १२२१९८. (+#) गौडी पार्श्वनाथजीरा छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १३४३१). पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण तक है.) १२२१९९. लघुसंग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४११.५, ४४२७). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है व गाथा-९ अपूर्ण से गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) १२२२०३. साधुवंदना, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२५४१३, १९४३१-३४). साधवंदना, रा., पद्य, आदि: प्रथम उठाया भावसु सीवरु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३१ अपूर्ण तक है.) १२२२०५. (#) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४१२,१३४२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), ग्रं. १२१६, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सूत्र-१५ अपूर्ण तक लिखा है.) १२२२०६. (#) मौनएकादशीपर्व गणर्नु, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १२४४२). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., गद्य, आदि: श्रीमहाजससर्वज्ञाय नमः; अंति: (-), (पू.वि. पाठ-"७ श्रीनिर्वाणनाथाय नमः" तक है.) १२२२०८. (+) सज्झाय व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-द्विपाठ., जैदे., (२४.५४१२, १८x२९). १. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८७७, चैत्र शुक्ल, १४, ले.स्थल. मोटी माराड, पठ. मु. रायचंद; गुभा. मु. अभयचंद (गुरु मु. खुशालचंद); गुपि.मु. खुशालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनयर सुहामणो; अंति: सीहविमल० लाखीणो जाय, गाथा-२४. २. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, पठ. मु. खुशालचंद शिष्य (गुरु मु. खुशालचंद), प्र.ले.पु. सामान्य. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पनोता पुन्ये; अंति: लब्धि लील लख लीजेजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. एकादशीतिथि सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: संघ तणा निसदिस, गाथा-४. ४. पे. नाम. नेमजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २७३ नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: ए सफल कर्यो अवतार तो, गाथा-४. १२२२११. तेवीस पदवीरो विस्तार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:पदवीद्वार., दे., (२६४१२.५, १८४३७). २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ०द्वार२ उपजणाद्वार३; अंति: (-), (पू.वि. पाठ "भवणपती वाणमीत्त में पदवी" तक १२२२१३. दसपच्चक्खाणफल स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२४४१२, १२४४०). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.ग., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नम; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) १२२२१४. सीमंधरजिन विनती, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२३.५४१२.५, ११४२४). सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) १२२२१८. देशावगाशिक विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४४१२, ११४३८). देशावगाशिकपच्चक्काण विधि, पुहि., गद्य, आदि: प्रथम सामायिक लेके पीछे; अंति: कर कै मिच्छामि दुक्कडं. १२२२१९ (+#) प्रतिक्रमणसूत्र, सिद्धपंचाशिका प्रकरण व सवैयादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५५-५(१ से ३,५ से ६)=५०, कुल पे. ३५, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१२, १३४४०). १. पे. नाम. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, पृ. ४अ-२८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: वंदामि नित्थारपारग्गहोह, (पू.वि. संसारदावानल स्तुति गाथा-४ अपूर्ण से है व बीच के पाठांश नहीं है.) २. पे. नाम. सिद्धपंचाशिका प्रकरण, पृ. २८आ-३०आ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंति: लिहियं देविंदसूरीहिं, गाथा-५०. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैयासंग्रह, पृ. ३०आ-३१अ, संपूर्ण. सवैया संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: नक बिन न कयटा देखे सीस; अंति: कपूत भूत कैसे समझाइये. ४. पे. नाम. ठाणेकमणे सूत्र, पृ. ३१आ, संपूर्ण. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.ग., प+ग., आदि: ठाणे कमणे चंकमणे; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ५. पे. नाम. संथारा उव्वहट्टणिका सूत्र, पृ. ३१आ, संपूर्ण. साधुराईप्रतिक्रमण अतिचार-श्वे.म.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: संथारा आओट्टणकी परि; अंति: तस्स मिच्छामी दुकडं. ६. पे. नाम. दसपच्चक्खाण सूत्र, पृ. ३१आ-३३आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कारसहिअं; अंति: सहसागारेणं वोसिरामि. ७. पे. नाम. ज्ञानपंचमीदेववंदन विधि, पृ. ३३आ-३४आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम पवित्र; अंति: पछै पांच जपती दीजै. ८. पे. नाम. वीसस्थानकतप उच्चारण विधि, पृ. ३४आ-३५अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप उच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही पडिकम; अंति: सुणावी वासक्षेप कीजै. ९. पे. नाम. पंचमी अष्टमी एकादशी लेवा विधि, पृ. ३५अ, संपूर्ण. तपग्रहण विधि-पंचमीअष्टमीएकादशी आदि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: शुभ दिनइ राइ प्रायश्चित; अंति: अहं मिच्छामि दुक्कम तस्स. १०. पे. नाम. पंचमीबीसस्थानकप्रमुखतप उजमण विधि, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण. पंचमीतिथितप उजमणा विधि, मा.गु., प+ग., आदि: पांचम अथवा छठीने दिहाडे; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. For Private and Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७४ : कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११. पे. नाम. देसावगासिक लेवानी गाथा, पृ. ३५आ-३६अ, संपूर्ण. देशावगासिकपच्चक्खाण ग्रहणविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: श्रीथापनाचार्यजी आगै १; अंति: तीन वार उचरा वीजै. १२. पे. नाम. २४ मांडला, पृ. ३६अ, संपूर्ण. २४ स्थंडिल मांडला विधि, प्रा., गद्य, आदि: आघाडे आसन्ने उच्चारे; अंति: दरे पासवणे अहियासे, (वि. सारिणीयुक्त.) १३. पे. नाम. मांडला विधि, पृ. ३६आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम सिंज्यारा; अंति: वनगती विसहाकरणमि अइयारे. १४. पे. नाम. बारव्रत उच्चारवानो पाठ, पृ. ३६आ-३७आ, संपूर्ण. १२ व्रतउच्चारण विधि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: सम्यक्त्वदंड भणंति; अंति: सिउ वेइ सूरो न अनाओ. १५. पे. नाम. दीक्षाग्रहण विधि, पृ. ३७आ-४०अ, संपूर्ण. दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: संध्यायां चारित्रोपकरण; अंति: हिण ९ वास १० उसगो ११. १६. पे. नाम, मालाभूमिपड्या विधि, पृ. ४०अ, संपूर्ण. ___ माला भूमिपतन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो उवज्झाया भगवंताणं; अंति: विद्याये वासनिक्षेप करे. १७. पे. नाम. चैत्रीपूनम विधि, पृ. ४०आ-४१अ, संपूर्ण. चैत्रीपूर्णिमा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम जागा प्रमार्जन; अंति: श्रीसंघनी भक्ति कीजै. १८. पे. नाम. विविध शास्त्रपाठ संग्रह, पृ. ४१अ-४५अ, संपूर्ण. सारोद्धारात्मावबोधे सिद्धांत गाथा, प्रा.,सं., प+ग., आदि: अतिमुत्तकः षड्वर्षः; अंति: अंतंमिय तेय चत्तारि२. १९. पे. नाम. चौवीश जिनांतरानि, पृ. ४५अ-४५आ, संपूर्ण. २४ जिनांतर काल, सं., पद्य, आदि: पंचाशतासागरकोटिलक्षैः; अंति: श्रीवीरनाथोजनितीर्थनाथः. २०.पे. नाम, पार्श्वजिन १० भव वर्णन, पृ. ४५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन १० भव संक्षिप्तवर्णन *, मा.ग.,सं., गद्य, आदि: श्रीब्रह्मलोके प्रतरे; अंति: १० श्रीपार्श्वभवा. २१. पे. नाम. महावीरजिन २७ भव वर्णन, पृ. ४५आ-४६अ, संपूर्ण. महावीरजिन २७ भव व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: ग्रामेश१ स्त्रिदशो२; अंति: लोकीगुरु २७ श्रीवीरभवाः, ग्रं. १००. २२. पे. नाम. चैत्रीपूनम देववंदन विधि, पृ. ४६अ-४७अ, संपूर्ण. चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम गोबर री गुंहली; अंति: उपवास कीजै पछै उजमीजै. २३. पे. नाम. पांच अभिगम नाम, पृ. ४७अ, संपूर्ण. ५अभिगम नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सचित्त द्रव्य शरीर से; अंति: वीतरागदर्श सामै रहै ५. २४. पे. नाम. पांच ठाम जीव निकलवाना नाम, पृ. ४७अ-४७आ, संपूर्ण. ५स्थान जीवगति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पगै नीकलै तो नरक जाय १; अंति: निकले तो मुक्त थाय ५. २५. पे. नाम. ५ कारण-दर्लभबोधि, पृ. ४७आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: पांच ठामै जीव दुर्लभबोधी; अंति: देवता थया तेहनो अवर्णवाद५. २६. पे. नाम, पंचपरमेष्टी स्तवन, पृ. ४७आ-४८आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे आयाण; अंति: तणी सेवा कीजै नित, गाथा-१३. २७. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. ४८आ-५०अ, संपूर्ण. ऋषिमंडल स्तोत्र-लघ, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं; अंति: तत्रस्थं परमानंद ___ नंदितः, श्लोक-६८. २८. पे. नाम. मूरख के ८ गुण सवैया, पृ. ५०आ, संपूर्ण. ८ गुण सवैया-मूर्ख, मु. केसव, पुहि., पद्य, आदि: मुरख के आठ गुण साव; अंति: केसव० मुरख को गात है, पद-१. २९. पे. नाम. नरकगामी साधु साध्वी संख्या आदि विचार, पृ. ५०आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २७५ नरकगामी साधुसाध्वी आदि संख्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पंचावन्ना कोडी पंचान्नाइ; अंति: तो बहुश्रुत जाणै. ३०. पे. नाम. लोच विधि, पृ. ५१अ-५१आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: पच्चइएणय लोओ कायव्वो; अंति: सावण पवेयणाइ न करेइ. ३१. पे. नाम, घृतपत्तनदोषनिवारण विधि, पृ. ५२अ-५२आ, संपूर्ण. घतपतनदोषनिवारण विधि, सं., गद्य, आदि: कदाचित रभसवृत्त्या; अंति: अविचारित० प्रवाह ए वेति. ३२. पे. नाम, भगवतीसूत्र शतक संख्या विचार, पृ. ५२आ-५३अ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-बीजक, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभगवतीना उद्देशा १९२५; अंति: १ इकतालीसमाना २३ १४६ २४. ३३. पे. नाम, गुणठाणा १४ स्थिति, पृ. ५३अ, संपूर्ण. १४ गणस्थानक स्थिति गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अविरय सासणमिच्छा परभविया; अंति: अंतमुह सेसा गुणठाणा, गाथा-२. ३४. पे. नाम, मौन एकादशी पर्व- गणन, पृ. ५३आ-५५अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व गणणं, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरते क्षेत्रे; अंति: अरण्यनाथनाथाय नमः. ३५. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. ५५आ, संपूर्ण. पा. साधकीर्ति, मा.ग., पद्य, आदि: विलसै ऋद्धि समृद्धि मिली; अंति: ते चक्रवर्त पदवी पांमै, गाथा-१४, (वि. अंतिम गाथा नहीं लिखी है.) १२२२२०. बीस विहरमान व बारह चक्रवर्ती नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३४११.५, ११४२८). १. पे. नाम. वीस विहरमान नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. २० विहरमानजिननाम विचार, रा., गद्य, आदि: श्रीसीमंधर १ श्रीयुगमंधर; अंति: त्रिकाल वंदना होज्यो. २. पे. नाम. बारह चक्रवर्ती नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १२ चक्रवर्ती नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभरत१ श्रीसगर२; अंति: जय११ ब्रह्मदत्त१२. १२२२२१. चैत्यवंदनसूत्र, सोलसती स्तुति व पार्श्वजिन सवैयादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८९८, कार्तिक शुक्ल, ९, सोमवार, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, कुल पे. ४, ले.स्थल. सालोरग्राम, प्रले. श्राव. अमरचंद ओसवाल; पठ. श्राव. श्रीचंद सांडेरा-पुत्र (पिता श्राव. श्रीचंद सांडेरा); गुपि. श्राव. श्रीचंद सांडेरा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२, ९४२२). १. पे. नाम. चैत्यवंदन सूत्र, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. चैत्यवंदनसूत्र-विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: जीया ते वंदं नीसदीस, (पू.वि. पाठ-"त्रणकाल समरंता दुरियपणा से दूर" पाठ से है.) २. पे. नाम. १६ सती स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण... सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका; अंति: जैनं जयति शासनं, श्लोक-१. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन सवैया, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: जिनके वचन उर धार जुगल; अंति: द्रिग लीला की ललक मे, ___ गाथा-१. ४. पे. नाम. आदिजिन पद- गाथा १, पृ. ९आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, क. दिन, पुहिं., पद्य, आदि: रिषभनाथ कु रंग हे जीत्या; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १२२२२२ (+) बृहत्संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १८०८, वैशाख शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. आहोर, पठ. श्राव. गोवा; प्रले.पं. प्रेमविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. शांतिजिन प्रासादात, संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १६४३४). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३१५. १२२२२३. प्रास्ताविक गाथा सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:प्रास्ताविक., जैदे., (२४.५४११.५, २३४४३). प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सारंगी सिंहशा वंश प्रशति; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., श्लोक-१३ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रास्ताविक गाथा संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जिहां परमेश्वर समोसरई, अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १२२२२४. नेमजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे ४ वे. (२४४१२, १४४३१). १. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि अरज कर राजुल खडी हो; अति लालचंद० धनधन जे नरनार, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-६. २. पे. नाम औपदेशिक गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. भानीराम मा.गु., पद्य, आदि हित करि दीक्षा लेइ के सील, अंति पानी हुयी भानी सीता जाण, गाथा-४. ३. पे. नाम औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. सवैया संग्रह*, पुहिं., पद्य, आदि: भोग की रीत भली परिजानत; अंति: लड़ाई कौ मूल लुगाई कहावै. ४. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. भानीराम, मा.गु., पद्य, आदि: भानी अपने चित्त में फिर; अंति: भांनी कहौ कहां की वात, गाथा-२. १२२२२५. (+) इरियावही विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २४.५X१२.५, ५२x२९). इरियावही विचार, पुहिं.,मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडिक्कमे पीछे; अंति: विधिवत इस गाथा में, (वि. विभिन्न शास्त्रों के सन्दर्भ दिए गए हैं.) १२२२२७. (+) श्रीपाल रास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७०, आश्विन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ६७, प्रले. मु. उमेदचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रीपालराश., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५X१२, १५X४८). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कविय तणी; अति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४, ढाल ४९. गाथा- १८२५, संपूर्ण. श्रीपाल रास-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. खंड-४ डाल-१ गाथा-१ से ढाल १३ गाथा १५ अपूर्ण तक लिखा है.) १२२२२९. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है. वे., (२५.५४१३, ४X३९). महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि धन हो धन श्रीवीरप्रभु तुम अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) "" १२२२३१. गुरुगुण गंहुली, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है. वे., (२५.५x१२.५, १५x२१). गुरुगुण गंहुली, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९३६, आदि: गुरुजीने ज्ञान दियो भारी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१४ अपूर्ण तक लिखा है.) १२२२३२. विद्याविलास चरित्र, संपूर्ण, वि. २००२, ज्येष्ठ शुक्ल, ६ अधिकतिथि, श्रेष्ठ, पृ. २८, प्र. वि. हुंडी : विद्याविलासच., दे., (२६४१३.५, २५४४३). " विद्याविलास चरित्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपंचपरमेष्टि को ध्याऊ; अति: नितवर्त्ते मंगलमालजी, ढाल २१. १२२२३५. कर्म ऊपर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. हुंडी : कर्मसिझाय. जैवे. (२५x११.५, १६x४२). कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देवदाणव तीर्थंकर; अंतिः कर्म समो नही कोई, गाथा-१९. १२२२३६. चित्रसंभूति व भवदेवनागिला सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. हुंडी ढाल, दे., (२४.५X११.५, १५X४८). १. पे नाम. चित्रसंभूति सज्झाय, पू. १अ १आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि चित्त कहे ब्रह्मदत्तने कासुः अंति भणै० बंधव बोल मानो हो, गाथा-२६. २. पे. नाम. भवदेवनागला सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. भवदेवनागिला सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: भवदत्त तजे आयो हो सतगुरु; अंति: रतनचंद ० निज सीसने माया, गाथा - ११. For Private and Personal Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २७७ १२२२३७. कलावतीसती चोपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:कलावती., दे., (२४.५४१२,१६x४२). कलावतीसती चौपाई, म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: युगमिंदर जिन जगतगुरु; अंति: मेडतेनगर चोमास, ढाल-१६. १२२२३८. (+#) नंदिषेणमुनि सज्झाय व नेमराजिमती स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १५-१८४३५-४८). १. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. श्रुतरंग कवि, मा.गु., पद्य, आदि: मुनीवर महिअल विचरइं; अंति: कवि श्रुतरंग विनवइ, गाथा-६. २. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल उभी मालीइ जंपइ जोडी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) १२२२३९ बारह भावना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:भावना., दे., (२४.५४११, १५४३६). १२ भावना, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली अनित्य भावना; अंति: (-), भावना-१२, (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ भावना-१२ पाठ-"इसी भावना ब्राह्मी सुंदरीजी भाई" तक लिखा है.) १२२२४० (+) अइमुत्तामुनि रास, संपूर्ण, वि. १६८८, मध्यम, पृ. ८, पठ. सा. पुरांजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अइमत्तोरास., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ११४४१). अइमत्तामुनि रास, मु. नारायण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: वीरजिणंद नमु सदा; अंति: नारायण मनि उल्लास, ढाल-२१, गाथा-१३५. १२२२४१. शील रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, अन्य. सा. रूपाबाई; सा. पुरा आर्या; गणेश, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:शील रास. हुंडी:सीयल रास., जैदे., (२४.५४११.५, ११४३७). शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: पहिलउ प्रणाम करूं; अंति: सीअल खंडत सेवज्यो, गाथा-७६, ग्रं. २५१. १२२२४२. सज्झाय, पद व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी में अस्मद् कृत पद लिखा है., दे., (२५४११.५, ११४३२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. दीपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पारश प्रभु देवो सुखकार; अंति: दीपसागर० तू हीय ज तार, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. दीपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सजन घर आ जा रे मीठा बोला; अंति: दीपसागर०तेरा शरणा लीया रे. ३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पं. दीपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: कयो मेरो मान जीया आगे; अंति: दीपसागर० सीवपुर को वासी, गाथा-९. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, पं. दीपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: भवी तुम रे पूजो चिंतामण; अंति: विनती पंचमी गत दो वास, गाथा-३. १२२२४३. (+) लीलापतझणकार चोक, संपूर्ण, वि. १९८८, मार्गशीर्ष कृष्ण, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. समदरडी, प्र.वि. हुंडी:लिला०झण०., संशोधित., दे., (२४.५४१२, १६४४९). लीलापतझणकारा चरित्र, कालू, हिं., पद्य, वि. १९६८, आदि: यह शीलतणा श्रृंगार; अंति: ज्यां पुरुषां कीचड़ निरति, गाथा-३९. १२२२४७. (+) निरयावलिकादिपंचोपांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३४, भाद्रपद शुक्ल, १५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५०, कुल पे. ५, प्रले. पंडित. ऋषभदत्त बोरा; राज्यकालरा. जसवंतसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:निरयावलि., संशोधित., दे., (२५४१२, ८४५१). १. पे. नाम, कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-१८अ, संपूर्ण. कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंति: मायातो सरिसणामाओ. For Private and Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० ते उत्सर्पणीनो चोथो; अंति: सरीखा कुमरना नाम छइ. २. पे. नाम. कल्पावसंतिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १८अ-१९आ, संपूर्ण. कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वा सेज्झिहिंति. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिमज हे पूज्य श्रमण; अंति: महाविदेह खेत्रै सीझस्यै. ३. पे. नाम, पुष्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. २०अ-४०आ, संपूर्ण. पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए. पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जउ भ०हे भगवंत; अंति: ज०जिम सं०संगहणी गाथा. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ४०आ-४३अ, संपूर्ण. पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वासे सिज्झिहिंति. पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जो है भगवंत स०श्रमण; अंति: जंबू पूर्व पाठ कहिवउ. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. ४३अ-४८अ, संपूर्ण. वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंति: मइरित्त एक्कारससु वि. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जो भं० हे पुज्य; अंति: वर्गि बारइ उदेसा. १२२२४८. नवतत्त्व बोल, संपूर्ण, वि. १८७१, माघ कृष्ण, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्रले. सदानंदजी (गुरु सेवारामजी स्वामी); गुपि. सेवारामजी स्वामी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नोतत्त्व., जैदे., (२५४१२, ७४३७). नवतत्त्व बोल, मा.गु., गद्य, आदि: जीव के भेद ५६३ तिर्यंच के; अंति: एवं मोखततका नव द्वार थया. १२२२४९ (+) स्तुति, स्तोत्र व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२.५, ११४२७). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-१७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पडिक०. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण; अंति: वोसिरियं० मएगहियं. २. पे. नाम. भरहेसर सज्झाय, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सज्झाय०. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबलि अभय; अंति: जासिं जसपढओ तिहणे सयले, गाथा-१३. ३. पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. ___ संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढमं जिणिंदं; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. ४. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण. संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सदा सर्वकार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ५. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:शांति०. लघशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. १२२२५०. ५६३ जीव बोल थोकड़ा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. अनुमानित पत्रांक दिया है. हुंडी : घडो., दे., (२५.५४१३.५, १६x४९). ५६३ जीव बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: पेलो जीवद्वार दूजो गइ; अंति: तीनसोने एकावन थया, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ब्रह्मचर्यव्रत पालन दृष्टांत अपूर्ण तक लिखा है.) १२२२५१ (+) श्रीपालचरित्र का भास, संपूर्ण, वि. १९७३, वैशाख कृष्ण, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५६, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. किसन कर्ण महेता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रीपालचरित्र., संशोधित., दे., (२३.५४१२, १५४३८). श्रीपाल चरित्र-बालावबोध, मु. देवमुनि, मा.गु., पद्य, वि. १९१७, आदि: श्रीअरिहंतसु सिद्धपद; अंति: मुनि कथा लिखी सुजगीस, प्रस्ताव-४, ग्रं. १८००. १२२२५३. (+#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१३, १३४३२). For Private and Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २७९ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-९ अपूर्ण से ढाल-६ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) १२२२५४. चोवीस दंडक व सकलार्हत् स्तोत्र, वि. १८९४, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, गुरुवार, मध्यम, पृ. ८-६(१ से ६)=२, कुल पे. २, ले.स्थल. मणोद, प्रले. मु. चतुरविजय; पं. ज्ञानविजय; पठ. श्राव. हीरा, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. श्रीधर्मनाथजीप्रसादात्., प्र.ले.श्लो. (७५) यादृशं पुस्तकं दष्टं, जैदे., (२४४१२.५, १७४४१). १.पे. नाम. चौवीस दंडक स्तोत्र, पृ. ७अ, अपूर्ण, .वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ, (पू.वि. गाथा-३९ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. सकलार्हत् स्तोत्र, प.७अ-८आ, संपूर्ण. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: भावतोहं नमामि, श्लोक-६०.। १२२२५५. दशार्णभद्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, दे., (२५४१३, २१४३०-३७). दशार्णभद्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३१ अपूर्ण से है व गाथा-५८ अपूर्ण तक लिखा है.) १२२२५७. (+) प्राकृतव्याकरण दोहा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:प्राकृतव्याकरण., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५४१३, २१४५१). प्राकृतव्याकरण दोहा, मु. माधव मुनि, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी भारती बंद्यो; अंति: कथन अनुसार विधि माधव कही, गाथा-२७, (वि. बीच-बीच में अर्थ दिए गए हैं.) १२२२५८. (+) श्रीपाल रास सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२३.५४१३, १३४३९). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., कलश गाथा-३ अपूर्ण तक है.) श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., यत्र-तत्र टबार्थ लिखा १२२२६१ भगवतीसूत्र थोकडो व ज्योतिषचक्र विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४१४, २०४४०-४४). १.पे. नाम. भगवतीसूत्र थोकडो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ भगवतीसूत्र-थोकडा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र भगोतीजी सतक१३; अंति: जावे नौ ग्रीवेग में, (वि. उपयोग व गति विचार.) २. पे. नाम. ज्योतिषचक्र विचार, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:जोतीषीचकर. ___ मा.गु., गद्य, आदि: जंबुदीपपन्नती में जोतीषी; अंति: (-), (पू.वि. पुष्करार्धद्वीप वर्णन अपूर्ण तक है.) १२२२६३ (#) मौनएकादशीपर्व देववंदन विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(६)=६, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२.५, १६४२५-२९). मौनएकादशीपर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सयल संपत्ति सयल संपत; अंति: (-), (पू.वि. देववंदनजोडा-४ मल्लिजिन द्वितीय स्तुति गाथा-२ अपूर्ण से देववंदनजोडा-५ नेमिजिन प्रथम थोय गाथा-१ अपूर्ण तक व नेमिजिन स्तवन गाथा-६ अपूर्ण से नहीं हैं.) १२२२६४. साधु आचार के ८२ बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५४१३, २३४३३-४१). ८२ बोल साधु आचार, मा.गु., गद्य, आदि: थानक उपासरो साधुरा भाव; अंति: (-), (पू.वि. बोल-६७ अपूर्ण तक है.) १२२२६५. (#) प्रास्ताविक सवैयादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१२.५, १४४३०). . For Private and Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तक, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उकतिउ पाइ एती उमर गमाइ; अंति: च फलं वार पूर्वोकूणाक्ष, गाथा-७. १२२२६८. जिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९८२, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:जिनपंजरस्तोत्र., दे., (२५४१३, १७X४१). जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीँ श्रीँ अहँ, अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५. १२२२७२ (#) अर्हदादि शब्दसिद्धि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:अर्हनर्थः., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, ३३४६४). अर्हदादि शब्दसिद्धि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: ननु परब्रह्म कथं ज्ञायते; अंति: आश्रयो द्रव्यमित्याशयात्. १२२२७३. (#) मौनएकादशीपर्व कथा, संपूर्ण, वि. १८७६, माघ शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. आतरसुंबानगर, प्रले. पं. रिद्धचंद; पठ. श्राव. तरकमकसनजी; लिख. श्राव. श्रीपंच शाह, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मौनएकादशीकथा. श्रीवासुपूज्यप्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१३, १२४२४). मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य ऋषभदेवं; अंति: सागरशररसशशिप्रमिते, श्लोक-२०१. १२२२७४.(-) महावीरजिन कथादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-६(१ से ६)=३, कुल पे. ५, प्र.वि. हुंडी:सतोती., अशुद्ध पाठ., दे., (२५४१३, १५-१८४३५). १.पे. नाम. महावीरजिन कथा, पृ. ७अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन कथा-संक्षिप्त, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: समुद्र तरीने पारगत पांमे, (पृ.वि. मात्र अन्तिम कुछ भाग है.) २.पे. नाम, महावीरजिन सवैया, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. महावीरजिन सवैया-वाणीविशेषण, पुहिं., पद्य, आदि: श्री वीर हेमाचल से निकसी; अंति: सवाय और छोराकी कांणी है, गाथा-६. ३. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सवैया, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. श्राव. विनोदीलाल, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: विनोदीलाल० सिवपुर जाइए, सवैया-५, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सवैया, पृ. ९आ, संपूर्ण. म. लालचंद ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: नमो अरीहंत नमो सीध नमो; अंति: रीष लालचंद० गुण गाऊंगा, सवैया-५. ५.पे. नाम. पच्चक्खाण गाथा, पृ. ९आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आवश्यकसूत्र-हिस्सा पच्चक्खाण पारणक गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पालियं१ फासीयं२; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण मात्र है.) १२२२७५. पांचे शक्रस्तवे देववंदन विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, दे., (२३४१२, १२४२६). खरतरगच्छीय पांच शक्रस्तवे देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: कही जयवीयराय कहै, (प.वि. पाठ-"करनै पछै वेयावच्चगराणं संतीगराणंसत्र" से है.) १२२२७७. कुंथुजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९७, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. रुपनगर, प्रले. श्रावि. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:तांनकुंथ., जैदे., (२३४१२.५, १५४३४). कुंथुजिन स्तवन, मु. मलुकचंद, रा., पद्य, वि. १८६१, आदि: लख चोरासी भर दुख; अंति: साहेब पार उतारो जी, गाथा-२२. १२२२७८. (+) १४ गुणस्थानक द्वार विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-२(१,३)=२, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१३, २८४४६). भगवतीसूत्र-१४ गुणस्थानक द्वार विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: उतकृष्ट भव करे सीवं भंते, (पू.वि. अवस्थाद्वार अपूर्ण तक व क्रियाद्वार अपूर्ण से उदीरणाद्वार अपूर्ण तक नहीं हैं.) १२२२८१. औपदेशिक पद व महावीरस्वामी का चौढालिया, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, दे., (२४४१३, १८x२७-३०). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ रा., पद्य, आदि (-); अंतिः अरथ हिरदै धरता नकसी हु, पद-५ (पू.वि. पद-४ अपूर्ण से है.) " www.kobatirth.org २. पे. नाम, महावीरस्वामी का चौडालिया, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. महावीरजिन चौढालिया, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९३३, आदि: सासणनायक सुरतरु; (पू.वि. डाल-१ गाथा १५ अपूर्ण तक है.) १२२२८२. प्रज्ञापनासूत्र धोकडा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं है., प्र. वि. हुंडी थोकडा, दे., (२५X१३.५, २१X३९). प्रज्ञापनासूत्र बोल" संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि हे भगवान जीव मरणांतिक अंति: (-), (पू.वि. अंतक्रिया अंतर्गत नरकवर्णन अपूर्ण तक है.) १२२२८३. २४ दंडकना २९ द्वार, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पू. २२. प्र. वि. हुंडी दंडक दे. (२३.५x१२, १२x२४-२८). २४ दंडक २९ द्वार बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु अंति: अनंतगुणा अधिका जाणवा. १२२२८४. आदिजिनपद व औपदेशिक सज्झाय इय, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६-५ (१ से ५)=१, कुल पे. ३, " पे. ३. दे. (२४४१३.५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७३१). १. पे. नाम आदिजिन पद- केसरियाजी, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आदिजिन स्तवन- केसरियाजी, रा., पद्य, आदि (-); अति छीटकायाजी सांवरीया माहाने, पद-५ (पू.वि. पद- १ अपूर्ण से है.) मु. रतनचंद, पुर्हि, पद्य, आदि: तेरी फुल सी देह पलक; अंतिः सुखरी आवी लाखे रे, गाथा-५. १२२२८५. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२५x१३, २०x२६-३०). २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, रा., पद्य, वि. १९६२, आदि चालो चालो मुगतगढ माही; अंति हीरालाल० करो पुन्येवंता, गाथा ११. ३. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण. " २८१ अंति: (-), ( २४X१२.५, ९X२०). १. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-तृष्णा, ऋ. केवल पुडिं, पद्म, वि. १९५९, आदि: तृष्णा तजनी हे अतीदुकर, अति: केवल० ते संसारसागर सेज तरे, गाथा-४. १२२२८७. अमणआवश्यकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी: अमणसूत्र, दे. (२५.५X१३, , २१-२४४४०-४६). साधुप्रतिक्रमणसूत्र- तेरापंथी, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि इच्छामि णं भंते अति: (-). (पू.वि. पंचम महाव्रतवर्णन अपूर्ण तक है.) १२२२८८. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण वि. १८६७ आश्विन शुक्ल, ५, मध्यम, पू. ४, प्रले, मु, तुलसीरत्न; पठ. मु. नागजी (गुरु मु. तुलसीरत्न); अन्य. ग. सुमतिरत्न (गुरु पंन्या. मानरत्न); गुपि पंन्या. मानरत्न (गुरु आ. भावरत्नसूरि) आ. भावरत्नसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी : कल्याण०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२३.५X१२.५, ११x२८). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. १२२२८९. (+) पार्श्वजिन व आदिजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी स्तवन., संशोधित., ., For Private and Personal Use Only पार्श्वजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि: डगरा वताये दे पहाडीया; अंति: हर्षचंद० पूंजू पारसनाथ, गाथा-७. २. पे. नाम आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: मुगट परवारी जाउं रिषभ; अंति: साधु मोहन तेरा वंदा, गाथा-५. १२२२९०. आराधनात्रय व उपयोग विचार, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. दे. (२४४१३.५, २२४३६). १. पे. नाम. भगवतीसूत्र शतक ८ उद्देशक १० आराधनात्रय विचार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. " Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २८२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भगवतीसूत्र- शतक ८ उद्देशक १० संबद्ध आराधनात्रय विचार, पुहिं., गद्य, आदि आराधना तीन प्रकार की है अंति (१) आंक को जघन्य समझना, (२) भंते सेवं भंते तमेव सच्चं. २. पे नाम. भगवतीसूत्र शतक १३ उद्देशक १, २, ३ उपयोगाधिकार, पू. १आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र- शतक १३ उद्देशक १, २, ३-संबद्ध उपयोगाधिकार, पुहि., गद्य, आदि उपयोग बारह है जिसमे किस; अंति: मान मोडी वंदना नमस्कार. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२२२९१. संवाद, स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५-२ (१ से २)=३, कुल पे. ७. प्र. वि. हुंडी सतीया. दे., " (२४X१३, २० - २३X३४-४०). १. पे नाम. सीतासती सज्झाय, पू. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है. रा., पद्य, आदि: (-); अंति: करम खपायने मुगते सिधावीया, गाथा १५ (पू.बि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन- जन्मकल्याणक, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. चंद्र रावल, मा.गु., पद्य, आदि: चउदतो सपना माता थे भले; अंति: चंदरावल० मोतीडा वधावेजी, गाथा-७. ३. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. ऋ. दलीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मनवा समज ले रे वीर; अंतिः नी ज्युं उतरो भव पार, गाथा-४. ४. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. ३ आ-४अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन- स्वप्नगर्भित, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३१, आदि: सासननायक सुमरिये रे अतिः रायचद० देखिया रे लाल, गाथा - १३. ५. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पू. ४अ, संपूर्ण, महावीर जिन स्तवनगौतमविलापगर्भित, मु. चौथमलजी म., मा.गु., पद्य, वि. १९८३, आदि इतो वीर प्रभु मुगते गया, अति: चौथमल० शहेर सतारा मझार हो, गाथा- १४. ६. पे. नाम. मेघनाथ मंदोदरी संवाद सज्झाय, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. पंडित. तुलसीदास, पुहिं., पद्य, आदि मेघनाथ माता कने आयो झरणी; अंति: तुलछी०लंकारो काल तेरो आयो, " गाथा-५. ७. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. रा., पद्य, आदि: सीताजीसुं मिलवा मनोहरराणी; अंति: (-) (पू.वि. ढाल ७ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) १२२२९३. पद, सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, दे., (२३.५X१२.५, १९५१). १. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पू. १अ संपूर्ण. मीराबाई, मा.गु., पद्य, आदि: मेरे मन गिरधर वसीया तुलसी; अंति: जोधाणा हरज्यो सबका नूर. २. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मीराबाई, मा.गु., पद्य, आदि: पायोजी मै तो हरि को भजन; अंति: नागर हरि को हर जस गायो, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लाज, मु. लाल, मा.गु., पद्य, आदि: लाज की जहाज डुबाई के देखो; अति: लाल०इम सीखने अपनाइ रे, गाथा- ७. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन- आत्मनिंदागर्भित, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि सीवनारी के भरतार तुमने अंति नही कीवा आतम का सुधार, गाथा ५. " ५. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पू. १आ, संपूर्ण. मु. अशोकमुनि, मा.गु., पद्य, आदि माता त्रिसलारा जाया धारी, अंति अशोक० अरजी भूल नहीं जाना, गाथा-१०. ६. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय-गुरुभक्ति, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद - गुरुभक्ति, मा.गु., पद्य, आदि मेरा मान न बन नादान अरे अति सुन ले रे गुरु केवल फरमान, गाथा-४. ७. पे नाम औपदेशिक सज्झाय मृगतृष्णा, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि मीठे मीठे काम भोग में फंस अति (-) (पू. वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२२२९४ (+) रामविनोद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१३, १९-२०४३१-३३). रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिद्धबुद्धिदायक सलहीयै; अंति: (-), (पू.वि. नाडीपरीक्षा अंतर्गत गाथा-२६ अपूर्ण तक है.) १२२२९६. (+#) ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय-बृहत्, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३.५४१२.५, १७४३७). ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अति भली; अंति: समय० पाटण परसिद्ध, ढाल-५. १२२२९७. (+) औपदेशिक सज्झाय, औपदेशिक पद व कक्काबत्रीसी आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१३, १८-२३४३१-३८). १. पे. नाम. कृष्णभक्ति गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मीराबाई, मा.गु., पद्य, आदि: औषधीयो वताय काया तो मारी; अंति: मीरारे कवि कांचरी जी, गाथा-१४. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-दान, पृ. १अ, संपूर्ण. म. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: दान सुपातर से जीव तिरिया; अंति: चोथमल पाई जहाँ पग धरियाँ. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद-प्रेम, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: प्रेम प्रेम क्या करता रे; अंति: मन कर तू उनसे प्रेम, गाथा-४. ४. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वर्णमालागर्भित, मु. हंसराज, पुहि., पद्य, आदि: मानो सतगुरु की सीख भविक; अंति: हंस० हृदयज्ञान विचारना रे, गाथा-७. ५. पे. नाम, गुरुगण गहंली, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: माहरा सां आप० वीचर रया हो; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-७ तक है.) १२२२९८. (१) आदिजिन छंद व २४ तीर्थंकरों के माता पिता, नगरादि विवरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२.५, १४४४२). १. पे. नाम. आदिजिन छंद, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. क. रोड कवि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: टेक तुं हे अरीहंत वडो हे, गाथा-४०, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. २४ तीर्थंकरों के माता पिता, नगरादि विवरण, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. २४ जिन नाम, आयुमान, देहमान, वर्ण, राज्यकाल, तपकाल आदि विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: ऋषबदेव विनितानगरी नाभि; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सुमतिनाथ तक है.) १२२२९९ (#) पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१२.५, १०४२३). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: धवल धींग गोडी धणी सेवक जन; अंति: दुखनी जाल त्रोडी, गाथा-८. १२२३०१. आनंदश्रावक गौतमस्वामी चर्चा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-८(१ से ८)=१, दे., (२३४१२.५, १३४३७). आनंदश्रावक गौतमस्वामी चर्चा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अवधिज्ञान उत्पत्ति से गौतमस्वामी शंका तक लिखा है.) १२२३०२. नमस्कार महामंत्र आम्नाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४४१३, १३४२७). नमस्कार महामंत्र आम्नाय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं यं; अंति: (-), (पू.वि. फुल चढावणा विधि अपूर्ण तक है., वि. विधि सहित.) १२२३०३. औपदेशिक सज्झायद्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४४१३, २१४३३). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-मुक्तिमार्ग, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. करण, रा., पद्य, आदि: मुगति को मारग दोहिलो; अंति: करण० भाख्यो सिद्धरथ नंद, गाथा-२५, (वि. प्रारंभ में एक अपूर्ण दोहा लिखा है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-नरभव, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: शुभवेला बीती जाय छे; अंति: चेत सके तो चेत रे, गाथा-५. १२२३०५. १४ गुणस्थानक बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४४१२, १६४४३). १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पले बोल गत ४ पेला गुण०; अंति: साढीसत्तर भव कर सेवं भंते. १२२३०७ (+) शांतिजिन स्तवन, शत्रुजयतीर्थ स्तवन व समकित सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१३, १४४३१). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लावण्य, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणंद भजो सदा भवीयण; अंति: कृपा करी आनंद थिर देवे, गाथा-५. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: ते दिन कहिए आवसे सेज; अंति: उदयरतन० गाता निरमल थासु, गाथा-८. ३. पे. नाम. समकित सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. सम्यक्त्व सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, पुहिं., पद्य, आदि: जब लगे समकित रतनकुं पाया; अंति: क्षय करे वंदु तेह जित कोह. १२२३०८. प्रमाणबोधनो थोकडो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२५४१३.५, १८x२६-३७). प्रमाणबोध, मा.गु., गद्य, आदि: भव्य जीवना सुख बोधने; अंति:ल्योपमनुं मान का. १२२३०९. अभयदान दृष्टांत कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२४४१२.५, १२४३६). अभयदान दृष्टांत कथा, सं., पद्य, आदि: नातो भूयस्तरो धर्म; अंति: सम्यक् पालयित्वा दिवं ययौ, श्लोक-९१. १२२३१० विक्रमराजा नवसो कन्या लावणी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हंडी:विक्रमाराजा., दे., (२४.५४१३, २०४४९). विक्रमादित्य ९०० कन्या लावणी, मा.गु., पद्य, आदि: जगनायक जिनवर नमुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३५ तक है.) १२२३११ (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९४०, वैशाख शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(४)=५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२४४१२, ६x४०). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउं पगामि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१, (पू.वि. सूत्र-२५ अपूर्ण से सूत्र-२८ अपूर्ण तक नहीं है.) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छामिई० पगाम कहतां अधिक; अंति: अरिहंत चउवीस २४ ऋषभादि. १२२३१२. सनत्कुमारचक्रवर्ती चौढालियो व कृष्णवासुदेव लावणी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., दे., (२४.५४१३, १८४३०-३६). १.पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ती चौढालियो, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. म. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रिष चोथमलजी सुखकारी, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. कृष्णवासुदेव लावणी, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, रा., पद्य, वि. १९५५-१९५६, आदि: पुरी दुवारका बासुदेव; अंति: हीरालाल मंगल गावे. १२२३१४. (#) पश्चिमाधीश स्तोत्र-रत्नमय, परमेश्वराष्टक व अपस्मार रोग निदान विधि, संपूर्ण, वि. १८६८, माघ शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. श्रीपालीनगर, प्रले. मु. जयवंत; अन्य. पं. सुखलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१२, १६४३८). १. पे. नाम. पश्चिमाधीश स्तोत्र-रत्नमय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. पद्म, सं., पद्य, आदि: कल्याणांकुरवारिवाहविलसत्; अंति: हेमरत्नसेव्यते सद्मपद्मं, गाथा-९. २. पे. नाम. परमेश्वराष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८६८, माघ शुक्ल, ९, ले.स्थल. पालीनगर, प्रले. मु. जयवंतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २८५ मु. जयवल्लभ, सं., पद्य, आदि: कल्याणकल्पद्रुमवारिवाह; अंति: जयवल्लभ०लभते सुमनः प्रियं, श्लोक-९. ३. पे. नाम. अपस्मार रोग निदान विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: छिछंदरीनी जरी० पेट फाडी; अंति: (अपठनीय). १२२३१५. (+) क्षेत्रसमास प्रकरणं व वासुदेवबलदेव माता पिता आयुष्यादि कोष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१२.५, १७४२८). १.पे. नाम. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-१६अ, संपूर्ण, वि. १८४९, श्रावण शुक्ल, १५, प्रले. पं. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिण वंदिय; अंति: स वा बहुसुयाय, गाथा-१०३. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आठप्रातिहार्य चोत्रीस; अंति: ये घणां छोकरा थस्ये. २. पे. नाम. वासुदेवबलदेव माता पिता आयुष्यादि कोष्टक, पृ. १६आ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). १२२३१६. (+) ९ वाड सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१३, १३४२३). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी समरि; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) १२२३१८. (+) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १८७१, वैशाख शुक्ल, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. ९०-८९(१ से ८९)=१, प्रले. मु. शिवविजय; पठ. श्रावि. रिधू, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१२.५, ६-१४४२८). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः (-); अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४ ढाल ४१, गाथा-१८२५, (पू.वि. खंड-४ कलश गाथा-४ अपूर्ण से है.) १२२३१९ कलावतीसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.१, दे., (२४.५४१३, १५४४५). कलावतीसती सज्झाय, मु. हीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनगरी कोसंबीनो राजाए; अंति: हिरविजय० उतारो भवपार रे, गाथा-१३. १२२३२१ औपदेशिक हरियाली व सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ३., (२५४१३, २३४५२-५५). १. पे. नाम. औपदेशिक हरियाली, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक औपदेशिक हरियाली, उपा. विनयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सेवक आगल साहेब नाचे; अंति: विनयसागर० मन लावो, गाथा-८. २. पे. नाम, सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: वृत्तिस्तु धवला ज्ञेया; अंति: आपणा मंकड वणिक बिलाड, गाथा-४६. १२२३२४. (+) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७४ शुक्ल, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५२, ले.स्थल. सिरोया, प्रले. पं. हिमतविलास (गुरु मु. देववर्धन, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. मु. देववर्धन (गुरु मु. दयाकमल, बृहत्खरतरगच्छ); मु. दयाकमल (गुरु मु. सागरचंद, बृहत्खरतरगच्छ); मु. सागरचंद (बृहत्खरतरगच्छ); पठ. मु. गुमानविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:जंबूचरित्र. प्रतिलेखन पुष्पिका में मास हेतु स्पष्टता नहीं की है किन्तु कार्तिक मास होने की संभावना है., संशोधित., जैदे., (२३४१२, ६४३७-४९). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समएए; अंति: से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१. जंबअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.ग., गद्य, आदि: ते कालने विषे ते समय ने; अंति: आराधक जीव कह्या. १२२३२५. स्थविरावली-गाथा १ से २३, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१२, १५४४०). नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी विआणओ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२२३२६. (#) आदिजिन स्तवन व आदिजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२,१३४३२). १. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. पुण्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीन प्यारो प्यारो रे हरी; अंति: पुन्यविजय० बीत सुख आलो रे, गाथा-९. २. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: मनावो प्रीतसु म्हारे रीषभ; अंति: आवागमन मीटाय, गाथा-४. १२२३२७. पार्श्वजिन स्तवन व दानशीलतपभावना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११.५, १५४३५). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८९७, भाद्रपद शुक्ल, १३, प्रले. मु. उत्तमविजय; पठ. मु. रामचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, म. नित्यप्रकाश, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसारद हो पाय प्रणमेव; अंति: नित्यप्रकार० सुखीया करो, गाथा-११. २. पे. नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना प्रभाती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिन धर्मकी कीजे; अंति: समयसुंदर० फल त्यांह रे, गाथा-६. १२२३२८. १० पच्चक्खाण के आगार व सज्झाय विधिसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, ११४१२-४५). १.पे. नाम. १० पच्चक्खाण के आगार, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८६१, माघ शुक्ल, २, ले.स्थल. मेडता नगर, प्रले. पंन्या. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. प्रा., गद्य, आदि: नवकारसी अन्नत्थ सहस्सा; अंति: समाहि वत्तियागारेणं. २. पे. नाम. सज्झाय विधिसंग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: पहिला इरियावही पडिक्कमी; अंति: (-), (पू.वि. ४ नवकार के काउसग तक है.) १२२३२९ (+) नमिपवज्जा, वीरथुइ व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. सरूपचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., अ., (२४.५४११.५, १५४४२). १. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-नमिपवज्जा अध्ययन ९, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नमिराज. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. सूत्रकृतांगसूत्र-वीरस्तुति अध्ययन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:वीरथुइ. सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तति, पृ. ३अ, संपूर्ण.. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: नमसंती दुकरंती ती, गाथा-५. १२२३३० (+) रत्नदत्त चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.वि. हुंडी:रत्नदत्त., रत्नदत्त चो., संशोधित., दे., (२४४११.५, १४४५१-५४). रत्नदत्त चौपाई, म. रामचंद्र, मा.ग., पद्य, वि. १९४७, आदि: श्रीजिनवरन सिमरिये धरिये; अंति: राखो जद लेखे तमचो जियो, ढाल-१५. १२२३३१. पृथ्वीचंदसागरचंद चौढालिया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:पृथवी., दे., (२५.५४१२, १५४४१). पृथ्वीचंदसागरचंद चौढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: श्री जीनवीर जीणेसरु; अंति: होरा वरत्या जे जेकार केतु, ढाल-४, गाथा-४२. १२२३३२. (+) श्रेणिकराजा रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८, अन्य. मु. मेघराजजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:श्रेणिकच०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५४१२, १६४५३). For Private and Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ श्रेणिकराजा रास, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९३९, आदि: जे जे जे जिन जग गुरु; अंति: (१)तिलोक० भव __ जल सेति रे जी, (२)जन्मादि अधिकार, ढाल-८४, ग्रं. ३२५०. १२२३३३. (#) बृहत्संग्रहणी का१४ द्वार वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४४७). बृहत्संग्रहणी-१४ द्वार वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: सपएसः आहारगः भवियः सनी; अंति: देवता मिनख मै ६ भांगा, (वि. भगवतीसूत्र का संदर्भ दिया गया है.) १२२३३४. गौतमस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:गोतम., जैदे., (२५४११.५, १५४४५). शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गोतम सांमी पुछा करेवी; अंति: वाय मंगला च्यारे, गाथा-१६. १२२३३५. १८ पापस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:तवन., दे., (२४.५४१२, १४४४१). १८ पापस्थानक सज्झाय, मु. मयाचंद-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १९३३, आदिः ये थांनक अठारे प्रकारनो; अंति: थानक अठारे प्रकारना रे, गाथा-१५. १२२३३६. व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हंडी:वांणी व्याख्या०., दे., (२४४११.५, २०x४५). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहत्ताणं; अंति: केसे चढे ज्यु केसर मे धुल. १२२३३७. (+) ११५ जीव बोल थोकडा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. विकानेर, प्रले. मु. कस्तुरचंद (तपागच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, २१४५३). ११५ जीव बोल थोकडा, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). १२२३३८. (+) शीयलमंजरी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९७६, भाद्रपद शुक्ल, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:शीलमंजरी., संशोधित., दे., (२५४१२, १६४५१). शीलमंजरी चौपाई, म. प्रसन्नचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९४२, आदि: श्रीनाभेय प्रणमीये शांति; अंति: प्रश्नचंद्र० गुरु उपगारजी, ढाल-११. १२२३३९ (+#) जंबूस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. हुंडी:जंबुकु०., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४३९). ___ जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रीनगरी भली रिषभदत; अंति: जंबू कुमर मुगते गया, ढाल-२, गाथा-३४. १२२३४०. शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८९७, श्रावण शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१२, १५४२८). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. १२२३४२ (#) कल्पांतर्वाच्य व पुरुष ३२ लक्षण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ.६, कुल पे. २,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, २३४४५). १.पे. नाम. कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य *, मा.गु., गद्य, आदि: एकदा स्वामी विनीताइ; अंति: कृतोस्ति लेसालगरणं. २. पे. नाम. ३२ लक्षण विचार, पृ. ६आ, संपूर्ण. ३२ लक्षण विचार-परुष, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: अल्पाहारी३१ अल्पनिद्रा३२, (वि. पाठ खंडित होने के कारण आदिवाक्य अवाच्य है.) १२२३४३ (#) शांतिजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१२.५, ११४३९). शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय नमुं सिरनाम; अंति: गुणसागर० शिवसुख पावे, गाथा-२१. । १२२३४६. बूढा रासो चोढालियो, संपूर्ण, वि. १९३२, माघ कृष्ण, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. पं. वासदेव (कवलागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:बू.चो.ढा., बू.रा.सो., अ., (२४.५४१२, १४४३३-३६). बुढापा रास, मु. चंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: दया ज माता वीनवु; अंति: चंद० कलयुगरी नीसांणी, ढाल-२२. १२२३४९ (+#) कल्पसूत्र का व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८४-८३(१ से ८३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४१२, ११४५१). For Private and Personal Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २८८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा, मा.गु. गद्य, आदि (-) अंति (-), (पू.वि. इन्द्रभूति गणधर की दीक्षा प्रसंग अपूर्ण से भगवान महावीर के निर्वाण प्रसंग अपूर्ण तक है.) १२२३५२. ५० बोल प्रतिलेखणादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. कुल पे. ४, जैदे., ( २४.५X११, १५X४६). १. पे. नाम. ५० बोल प्रतिलेखणा के, पृ. ८अ संपूर्ण. * मुखखिकाप्रतिलेखन ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रतिलेखणा चित्तवियै; अति: त्रसकायनी६ रक्षा करै एतले. २. पे. नाम. भगवतीसूत्र बोल संग्रह, पृ. ८अ संपूर्ण. भगवतीसूत्र- बोलसंग्रह संबद्ध, मा. गु, गद्य, आदि मोहिनी कर्मनी प्रकृति २८ अति रूप लब्धि है ते माटे. ३. पे नाम. विविध लोक कवित्तादि संग्रह, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण. 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि आशयायः कृतोदास सदासो; अति माननी के मन की मिला है. ४. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि गुण विचार, पृ. ८आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति पेटांक ३ के मध्य लिखी गई है. ५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: ३६ गुण आचार्यरा ५ महाव्रत; अंति: २५ एवं २५ गुण जाणिवा. १२२३५४. पार्श्वजिन स्तुति व पद्मावतीदेवी स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५X१२, ७X२८). ९. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पू. १अ २अ संपूर्ण पार्श्वजिन स्तोत्र - जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि ॐ नमो देवदेवाय अतिः सर्व सिद्धि प्रदायकं, श्लोक-१४. २. पे. नाम पद्मावतीदेवी स्तोत्र, पृ. २अ २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पंडित. श्रीधराचार्य, सं., पद्य, आदि जयंति भद्र मातंगी सर्वदुख; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) १२२३५८. (#) वसुधारा स्तोत्र व चतुःषष्टियोगिनी स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१५, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, ले. स्थल. जोधपुर, प्रले. पं. चोथमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे (२५x१२, १६x४९). १. पे. नाम. वसुधारा स्तोत्र, पृ. १अ २अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : वसुधारा, वसु.. सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: आम्नाय काय० सिद्धि भवति. २. पे. नाम. चतुष्टषष्टियोगिनी, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : चतु ० . ६४ योगिनी स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीँ दिव्ययोगी; अंति: रक्षतु मां मातरः, - ३. पे. नाम मंत्रयंत्र संग्रह, पू. २आ-३आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह *, प्रा., मा.गु. सं., प+ग., आदि: ॐ ह्रीं क्षाँ क्षीँ, अंति: गयो आवे खूंटे बांधीजे, (वि. यंत्रसाधन-पूजन सहित.) ४. पे नाम. एकश्लोकी दुर्गा स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: अस्तूत. दुर्गा स्तुति-एकश्लोकी, सं., पद्य, आदिः या अंबा मधुकैटभप्रमथिनी; अंति: मां पातु विश्वेश्वरी, श्लोक-१. १२२३५९. चैत्यवंदन चोविसी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३०-२८ (१ से २६, २८ से २९) २, प्र. वि. हुंडी चैत्यवंदन, जैये. श्लोक-११. (२४x१२, १५X४२). चतुर्विंशतिका स्तुति, उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, वि. १८०१-१८४१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, अजितजिन स्तुति श्लोक-२ अपूर्ण से चंद्रप्रभजिन स्तुति श्लोक - १ अपूर्ण तक व मल्लिजिन स्तुति श्लोक-१ अपूर्ण से है तथा नेमिजिन स्तुति श्लोक - १ अपूर्ण तक लिखा है.) १२२३६०. बृहत्कल्पसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९७५ आश्विन शुक्ल, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१, दे. (२३.५x११.५, १५X४४-५८). For Private and Personal Use Only बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि नो कप्पति निगांधाणवा अंति धेरकप्पतिति तिबेमि, उद्देशक- ६, ग्रं. ४७३. बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हिवैं इहा बृहतकल्पश्रुतनो; अंति: हु तुझ प्रतीइ कहुं छु, ग्रं. ४०००. Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२२३६२. ऋषिबत्रीसी, छंदजात्य त्रुटक सिखामण व गौतमाष्टक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१२, १४४३८). १.पे. नाम. ऋषिबत्रीसी, पृ. ५अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कहें जनहर्ष नमु करजोड, गाथा-३२, (पू.वि. गाथा-२९ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. छंदजात्य त्रुटक सिखामण, पृ. ५अ, संपूर्ण.. औपदेशिक छंद-त्रोटकनामा, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: वरदायक माय सलाम करी; अंति: दीपविजय० छंदह नाम कहो, गाथा-९. ३. पे. नाम. गौतमाष्टक, पृ. ५आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मात पृथ्वी सुत प्रात; अंति: जस सौभाग्य दोलत सवाई, गाथा-९. १२२३६३. (+) २३ पदवी विचार यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १६x२७). प्रज्ञापनासूत्र-२३ पदवी विचार यंत्र, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). १२२३६४. आवश्यकनियुक्ति, पंचमंगल पाठ व घंटाकर्ण महावीर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५४१२, ११४४५). १.पे. नाम. आवश्यकनियुक्ति-नवकार निर्युक्त्यंश, पृ. १अ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. पंचमंगल पाठ, पृ. १अ, संपूर्ण. महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-पंचमंगल पाठ, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंता मुज मंगल अरिहंता; अंति: वोसिरामित्ति पावगं. ३. पे. नाम. घंटाकर्ण महावीर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. १२२३६६. अभयकुमारादि च्यार मित्र कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. अंत में उल्लेख- पं. हीरविजे गणी विवेक सत्क राधणपरना., जैदे., (२४.५४१२, ११४३५). अभयकुमारादि ४ मित्र कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (१)तप जप संजम क्रीया करी, (२)राजग्रही नगरीने विषे; अंति: नंदसोनीनो संबंध कह्यो छे. १२२३७० (+) आषाढाभूतरी ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:अषाढभूत., संशोधित., दे., (२४४११.५, १५४४८). आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दरसण परीसो बावीसमो तेहनो; अंति: रायचंद० राखो आस्ता रे लाल, ढाल-७. १२२३७१ () पार्श्वजीन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १४४३३). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: संखैसरजिन राय दिल में; अंति: उत्तम० तेह संपद वरस्यै रे, गाथा-७. १२२३७३. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, जैदे., (२४.५४११,१६x४२). १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलै सुप्नै कल्प वृक्षनी; अंति: आरो सुगोठी पणो करसी, गाथा-१६. १२२३८२ (4) चंद्रलेखा रास, संपूर्ण, वि. १८४६, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले.स्थल. वीसलनगर, प्र.वि. हुंडी:चंद्रलेखा रास. शांतिनाथ प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १५-१७४३४). चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगवती नमी करी; अंति: मतिकलश होवें तेह, ढाल-२९, गाथा-६२४. १२२३८५ (+) सप्तस्मरण स्तव, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, ९४२७). For Private and Personal Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअं जिअ सव्वभयं; अंति: (-), (पृ.वि. अजितशांति स्तव लघु गाथा-६ अपूर्ण तक है.) १२२३८७. (+) सुभद्रासती ढाल व औपदेशिक कवित्त संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४०, कार्तिक कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. फकीरचंद; पठ. सा. धनोजी; सा. कीसनोजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सुभद्रा०., संशोधित., दे., (२४४११.५, १६४३६). १. पे. नाम. सुभद्रासती ढाल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: सुभद्राजी दीठा आवता एक; अंति: गया वरत्या मंगल च्यारजी, गाथा-२३. २.पे. नाम, औपदेशिक कवित्त संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहि.,मा.ग., पद्य, आदि: तजो देव निरफल तजो राजा; अंति: होत को दीयो एल न जावें, गाथा-२. १२२३८८. भगपरोहित छढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:भृगु प्रोहित०., जैदे., (२४.५४११.५, १६४५१). भगपरोहित छढालीयो, म. जेमलजी मनि, मा.गु., पद्य, आदि: दरसण कीधां साधरो मिटै; अंति: सीवरमणीरा सुख लीया सासता, ढाल-६. १२२३८९ (+) भक्तामर स्तोत्र सह ऋद्धिमंत्रादि पंचांगपद्धति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.१०, प्र.वि. हंडी:भक्ताम०., संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १५४५५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४८. भक्तामर स्तोत्र-ऋद्धिमंत्रादि पंचांगपद्धति, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं अहँ णमो अरिहंता; अंति: मन वंछित सिद्ध थाय, मंत्र-४८. १२२३९० (+) नमीरायऋषि सातढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:नमीराय ढा., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४११.५, १४४३६-४२). नमिराजर्षि ढाल, म. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: शाशननायक सिमरता; अंति: आसकर्ण० तेरस तिथिरो नाम ए, ढाल-७. १२२३९१. रहनेमि राजुल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. राजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रहनेमी राजल., जैदे., (२४.५४११.५, १५४३५). रथनेमिराजिमती पंचढालियो, म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५४, आदि: अरिहंत सिद्धने आयरिय; अंति: रायचंद० तेथी कीधी, ढाल-५. १२२३९२. ढंढणकुमार सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, जैदे., (२४.५४११, १५४५१). ढंढणऋषि सज्झाय, आ. हर्षमंगलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति स्वामिण तै साचो; अंति: सप भणै तास संवर कीजिए, गाथा-१७. १२२३९४. (+) रथनेमिराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१३, १३४४१). रथनेमिराजिमती सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रहनेमी अंबर विण राजुल; अंति: विवेकी नीत वंदन करो जो, गाथा-४०. १२२३९५ (+) कर्मिबंधरी ६२ मार्गणा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:बंधकी ६२ मार्गणा., संशोधित., दे., (२६४१३.५, २०-२३४५४-६०). ६२ मार्गणा ११९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: नये कर्मो के ग्रहण को बंध; अंति: (-), (पू.वि. लेश्याद्वार अपूर्ण तक है., वि. १२० बोल मिलते है.) १२२३९६ (+) नागेश्वरीब्राह्मणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१३, १२४३०). नागेश्वरीब्राह्मणी सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: चंपानगरी सोहामणि रे; अंति: राजविजय उलास रे भविकजन, गाथा-३४. For Private and Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २९१ १२२३९८. नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, प्र.वि. हुंडी:नंदीसूत्रं. १७आ से अनुज्ञानंदी एवं १९आ से जोगनंदी प्रारंभ हो रही है., जैदे., (२५४१३, १६४३७). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणउ; अंति: समुद्दिसामि अणुजाणामि, (वि. अनुज्ञानंदी एवं जोगनंदी युक्त.) १२२३९९ औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५४१३, १९४३६). औपदेशिक सज्झाय-साधुधर्म, रा., पद्य, आदि: सार धर्म है प्रथम साधु को; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-५ तक है.) १२२४०३. २८ लब्धि नाम व २८ लब्धि विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२, १३४३८). १. पे. नाम. २८ लब्धि नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: आमोसहीलब्धि १ विप्पो; अंति: जिनकलपलब्धि २८. २.पे. नाम. २८ लब्धि विचार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: जिहां हाथ लगावे तिहा; अंति: तो राखे एहवी सीतल फूंक दे. १२२४०४. शत्रुजयतीर्थ रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१२.५, १०x२४). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी आणी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) १२२४०६. (+#) निरयावलिकादि पंचोपांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१४, भाद्रपद शुक्ल, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५९, कुल पे. ५, ले.स्थल. व्यालपुर, प्रले. मु. जसविजय (गुरु मु. सुखविजय); गुपि. मु. सुखविजय (गुरु मु. रत्नविजय); मु. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नरावलिकासू०. श्रीशांतिजिन प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल व टीका का अंश नष्ट है, दे., (२५.५४१२.५, ७४३६). १. पे. नाम, निरयावलियाणं सह टबार्थ, पृ. १अ-२४अ, संपूर्ण. कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंति: सव्वासिं भाणियव्वो, अध्ययन-१०. कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते उत्सर्पणीनो काल ते; अंति: पूर्वपाठनी परे कहवो. २. पे. नाम. कप्पवडिंसियाणं सह टबार्थ, पृ. २४अ-२६अ, संपूर्ण. कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: महाविदेहे सिज्झीहिति, अध्ययन-१०. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जो हे भगवंत० जिहा लगे; अंति: महाविदेहइ सीझस्यइ. ३. पे. नाम, पुप्फियाणं सह टबार्थ, पृ. २६अ-४९आ, संपूर्ण. पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संघहणीए, अध्ययन-१०. पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जो हे पूज्य श्रमण तपस्वी; अंति: ज०जिम सं०संगहणी गाथा. ४. पे. नाम. पुप्फचूलिया सह टबार्थ, पृ. ४९आ-५३अ, संपूर्ण. पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन-१०. पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जो भगवंत श्रमण तपस्वी; अंति: माहाविदेहे सीझस्यै. ५.पे. नाम. वण्हिदसाणं सूत्र सह टबार्थ, पृ. ५३अ-५९अ, संपूर्ण... वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंति: पंचमवग्गे बारस उद्देसगा, अध्ययन-१२. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जो भगवंत श्रमण तपस्वी; अंति: उद्देशा अध्ययन. १२२४०७. १८ नातरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९६४, माघ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. भूरीलाल महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१२.५, ११४२९). १८ नातरा सज्झाय, मु. हेतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहेला ते समरूं पास; अंति: काई हेतविजय गुण गाय, ढाल-३, गाथा-३६. १२२४०८. स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, संपूर्ण, वि. १९६४, माघ कृष्ण, १२, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. भूरीलाल महात्मा; अन्य. श्राव. पन्नालाल; श्राव. कस्तुरचंद संखलेचा; राज्यकालरा. फतेसिंघ, प्र.ले.पु. मध्यम, दे., (२५४१२.५, ८x२६). For Private and Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: ___ कह्या भणता मंगल माल, ढाल-९, गाथा-७४. १२२४०९. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय व गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, १५४३४). १. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय, पृ. १आ-२०अ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु गौतम गुण; अंति: ब्रह्म कमला लहिस्यइ, सज्झाय-३६. २.पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-३६ अध्ययननाम गीत, पृ. २०अ, संपूर्ण. संबद्ध, म. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, वि. १५९९, आदि: अणपूछया जिणवर कह्याजी; अंति: ब्रह्मो० तस जन्म प्रमाण, गाथा-१०. १२२४१०. ६२ मार्गणाद्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. मोरबी, प्रले. मोनजी मूलजी रावल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२.५, १२४३३). ६२ मार्गणाद्वार विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: देवगतिनीथिति ज० १० हजार; अंति: समय संसार आश्री. १२२४११. गौतमगणधर महावीरजिनविरह स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. रूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १४४३७). गौतमगणधर महावीरजिनविरह स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तोसे प्रीत बंधानी जगतगुरू; अंति: गणहर जोत से जोत मिलावे, गाथा-९. १२२४१२. (#) प्रत्याख्यान, संप्रतिराजा वर्णन व तिथिनक्षत्र सारणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. खडा लेखन. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२, ३३४२४). १.पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: एकासण पच्चक्खामि दविहं; अंति: अप्पाणं वोसरामी. २. पे. नाम. संप्रतिराजा वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र महेवाने १५१का मेहेल; अंति: (-), (वि. मात्र प्रारम्भिक पाठ है.) ३. पे. नाम. तिथिनक्षत्र सारणी, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष , पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). १२२४१३. (+) स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १४४४६). १.पे. नाम. नेमिजिन पंचढालियो, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जुठलनो०. पं. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १९१०, आदि: श्रीनेमनाथ बावीसमा; अंति: रामचंद० दुक्कड वारंवार, ढाल-५, गाथा-५०. २. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:ना० का० च०. महावीरजिन स्तवन-नालंदापाडा, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: मगध देश मे भली वीराजे; अंति: रायचंद० लीलविलसो जी, गाथा-२१. ३.पे. नाम. कार्तिकसेठ चौढालियो, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कार्तिक च०., का० चं० स्त. ___ मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु पंच परमेश्वर; अंति: नर भव लाहो लीजो रे, ढाल-४, गाथा-७०. ४. पे. नाम, चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि: चंदपुर नगरी अति सुंदर; अंति: लालचंद० हुं दास चरणारो, गाथा-११. १२२४१४. डाहाजी दीक्षामहोत्सव पत्रिका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. खडा लेखन., दे., (२५४१२.५, १६४१७). डाहाजी दीक्षामहोत्सव पत्रिका, मा.गु.,सं., गद्य, वि. १९६७, आदि: स्वस्तिश्री ऋद्धिवृद्धि; अंति: तेनो नाम डाहांजी छै. १२२४१५. (+) मार्जारी दोषनिवारण विधि, छींक निवारण विधि व पौषध विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१३, १२४३६). १.पे. नाम. मार्जारी दोषनिवारण विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: देवसीराई पाखी चउमासी; अंति: तीन वार प्रहार दीजै. २. पे. नाम छींक निवारण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., प+ग., आदि: पाक्षी चौमासी संवच्छरी; अंति: वरसताइ विशेष तप करणा. ३. पे नाम. पौषध विधि, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: पोहरी पोसा करणे वालावडी; अंति: काउसगरण एकठे करे जावे. १२२४१६. (+) गुणस्थानक्रमारोह सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३६, प्र. वि. हुंडी : गुणस्था०, गुणस्थान०, गुण०क्र०., त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. वे. (२४.५४१२.५, १२४३६). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि सं., पद्य वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोह हतमोहं; अंति " "" , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रत्नशेखरसूरिभिः श्लोक-१३६. गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि सं., गद्य वि. १४४७, आदि अहं पदं हृदि ध्यात्वा, अंति प्रकटित इत्यर्थः. १२२४१७. चंद्रराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५- १ (१) = २४, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५x१२.५, १८४४७). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. उल्लास- १ गाथा-८ अपूर्ण से उल्लास-२ ढाल-२ गाथा-१० अपूर्ण तक है.) १२२४१८. (#) आदिजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५x१२, १३४३५). आदिजिन छंद-धुलेवा, श्राव. रोड गौरासिंह कवि, पुहिं., पद्य वि. १८६३, आदि सदासिव राव आयो कपट कर अंति: (-). (पू.बि. गाथा १८ अपूर्ण तक है.) १२२४१९. (#) कान्हडकठियारा रास, अपूर्ण, वि. १८७१, भाद्रपद शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १० - ९ (१ से ९) = १, प्रले. मु. मानसोम (गुरु मु. नरेंद्रसोम); गुपि मु. नरेंद्रसोम (गुरु मु. फतेहसोम); मु. फतेहसोम (गुरु मु. कनकसोम), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५x११.५ १३४३४). कान्हडकठियारा रास-शीयलविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: (-); अंति: मानसागर दि रंग, ढाल ९, (पू.वि. डाल-९ गाथा-५ अपूर्ण से है.) १२२४२०. व्याख्यान विधि, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२५x१२.५, ११४४३) व्याख्यान विधि, पुहिं., प्रा. सं., पग, आदि जयड़ जगजीवजोणी वीयाणउ जग; अंतिः श्रद्धा ए करीने सांभलो. १२२४२१. (+) भुवनदीपक सह वालावबोध, संपूर्ण वि. १८८७, अश्वगजवसुचंद्र, श्रावण कृष्ण, २, सोमवार, मध्यम, पृ. ७१. ले. स्थल रामगढ, प्र. वि. हुंडी: भुवनदीपक बालबोध., संशोधित. प्र.ले. लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैवे. (२५x१२, १३x४३). " २९३ भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं. पद्य वि. १३५, आदि सारस्वर्ती नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक १८२. भुवनदीपक-बालावबोध, मु. रत्नधीर, सं., गद्य, वि. १८०६, आदि: श्रीमंतपरमात्मानं प्रणम्य; अंति: सज्जन वाच्यमानं. १२२४२२. डालसागर हरिवंश प्रबंध, संपूर्ण, वि. १८७६ आश्विन शुक्ल, ३ बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १७९, जैवे. (२४४१२.५, १३x२९)पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: श्रीजिन आदिजिनेश्वरू, अंतिः श्रीगुणसूरि० रंग धामण, खंड-९ ढाल १५१. १२२४२३. स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४-१०(१ से ७,११ से १३)=४, कुल पे. ७ जैये. (२४.५X१२.५, For Private and Personal Use Only १५X३७). १. पे. नाम. आत्मगीता, पृ. ८अ -१०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: आध्यात्मगीता०. अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमीइ विश्वहित जैन अति रंगी मुनि सुप्रतीता, गाथा ४९. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पू. १०अ १०आ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि मारे ऋषभ जिनंदसुं प्रीतजी अति देवचंद्र० हो अविचल सुखवास, गाथा-६. Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तवनपत्र०. म. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ज्ञानादिक गुण संपदा; अंति: देवचंद० भावधरम दातार, गाथा-१०. ४. पे. नाम, आलोयणा स्तवन, पृ. १०आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शत्रुजयतीर्थ स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी वीनवू जी सुण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक है.) ५. पे. नाम. बावीस परिसह सज्झाय, पृ. १४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. २२ परिषह सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ब्रह्म आणंदि बोलइ जी, गाथा-१२, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से है.) ६.पे. नाम. बत्तीस अभक्ष्य सज्झाय, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अभक्षसिझा०. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, मु. समरसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर पाय नमि कहसु; अंति: श्रीसमरचंदसूरी इम उचरे ए, गाथा-६. ७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, म. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जौज्यो रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) १२२४२४. बृहत्शांति स्तोत्र व औपदेशिक पद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-१(५)=५, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:बृहत्सांति., दे., (२४.५४१३, १०४२२). १.पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र, पृ. १आ-६अ, अपर्ण, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे, (पू.वि. 'शमनाय शांतिर्भवत' पाठांश तक व 'सर्व जगत परहित' पाठांश से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-परनारी, पुहिं., पद्य, आदि: चतुर तु नारी मत नरखो रे; अंति: (अपठनीय), गाथा-७. १२२४२६. गमारो थोकडो, संपूर्ण, वि. १९८४, वैशाख कृष्ण, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. सिरदार शहर, प्र.वि. हुंडी:गमारोथोकडो., दे., (२४.५४१२.५, १४४३९). भगवतीसूत्र शतक २४-संबद्ध दंडक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सात नारिकीयानो दंडक; अंति: आयूखो २ अनुबंध ३. १२२४२७. ८४ लाख जीवायोनि विचार, १८ पापस्थानक नाम व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१२, १४४२१). १.पे. नाम. ८४ लाख जीवायोनि विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सात लाख पृथ्वीकाय सात लाख; अंति: एवं चोरासी लाख जीवायोनि, (वि. प्रतिक्रमण अन्तर्गत सातलाखसूत्र का अपेक्षित पाठ.) २. पे. नाम. १८ पापस्थानक नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातपात१ मृषावाद२; अंति: मायामृषा १८ मिथ्यात्वशल्य. ३. पे. नाम, बोल संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सामायिक१ चउविसत्थओ२; अंति: ५ एवं पांचेंद्रि नाम. १२२४२८. पुरुष ३२ लक्षण चिह्नफल विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१,प्र.वि. खडा लेखन., जैदे., (२४.५४११.५, ३६४१९). पुरुष ३२ लक्षण चिह्नफल विचार-सामुद्रिकशास्त्रगत, मा.गु., गद्य, आदि: १ छत्र हे तो राजा हुवें; अंति: ५ लक्षण आखै सरीरे होवै. १२२४२९. महानिशीथसूत्र-अध्ययन ४ से ५ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८१, दे., (२४.५४१२, ७४३६). महानिशीथसूत्र-हिस्सा अध्ययन ४ से ५, प्रा., प+ग., आदि: से भयवं कहं पुण तेण; अंति: भवियव्वइ त्तिबेमि. For Private and Personal Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २९५ महानिशीथसूत्र-हिस्सा अध्ययन ४ से ५-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: से० ते सुमति भ० हे; अंति: करवी आत्मा अरथीने. १२२४३०. (+) महानिशीथसूत्र-अध्ययन १ से ३ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४७, फाल्गुन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १५८+१(७५)=१५९, प्र.वि. हुंडी:महानि०, माहान०., संशोधित., दे., (२४.५४१२, ५४३१). महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: सुयं मे आयुसं तेणं भगवया; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. महानिशीथसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार होवो अरिहंतने; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १२२४३१. पुण्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, ले.स्थल. महाजनटोली, प्रले. पं. कल्याणचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२, ११४३३). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८, (पू.वि. ढाल-६ गाथा-९ अपूर्ण से है.) १२२४३२ (+) आलोयणा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:अलोव., अलोवणा., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१३.५, १६x४४-४८). आलोयणा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इ आत्माने ईण भवे परभवे; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., समकित विषये कालश्रद्धा अपूर्ण तक है.) १२२४३४. श्रावक अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हंडी:अतीचा०., दे., (२५४११.५, १६x४२). अनुयोगद्वारसूत्र-त्रिविध आगम आलापक, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: आगमे तिविहे पण्णते; अंति: विराहणाय वंदामी जिनचोवीसं. १२२४३५. (+) पौषदशमी कथानक, संपूर्ण, वि. १८९६, आषाढ़ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. वटपद्र, प्रले. पं. देवेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीनेमिनाथप्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१२.५, १२४३३). ___ पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वनाथांहि; अंति: स्वर्गापवर्गादि प्राप्यति. १२२४३६. (+) नवतत्त्व विचार, अपूर्ण, वि. १८६२, श्रावण कृष्ण, ९, शनिवार, मध्यम, पृ. १४-१(९)=१३, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १७४३२). नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीव तत्त्व कणीने कहीजे; अंति: द्रष्टांत भंडारीनो, (पू.वि. आश्रवतत्त्वे नवमी निर्जरा भावना अपूर्ण तक व निर्जरातत्त्वे उणोदरि तप वर्णन अपूर्ण से है.) १२२४३८. (+) नृप दृष्टांत सज्झाय व महावीरजिन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:दीष्टांत., संशोधित., दे., (२६४११.५, २०४४२). १. पे. नाम, नृप दृष्टांत सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: पाल चरंता गधा दीठा; अंति: करवा समदारो पाणी लावै छै, (वि. टीडा जोषी के दोहे आदि व एक जिन महोत्सव संबंधी वाक्य.) २. पे. नाम. महावीरजिन सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन सज्झाय-उपसर्ग, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धार्थ कुल उपना; अंति: सिवपुर गया गुण गाउ सदीव, गाथा-२३. १२२४३९. ९८ बोल यंत्र व ३२ बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२६४१२.५, १८x२५). १. पे. नाम. ९८ बोल यंत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:९८ बोलनो०. ९८ बोल यंत्र-अल्पबहुत्व, मा.गु., को., आदि: सरव थोडा गर्भज मनुष्य; अंति: दोनुइ हुवे एव ९८ बोल हुवा. २. पे. नाम. ३२ बोल, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:३२ बोलनो०. ३२ बोल ६२ मार्गणायंत्र, मा.गु., को., आदि: १ समचे जीव माहे; अंति: देवता परज्याप्ता आहारिक. १२२४४० (+) कान्हडकठियारा प्रबंध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:कांनजी०., संशोधित., दे., (२६४१२.५, १७४४७). कान्हडकठियारा प्रबंध, मु. जेतसी ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: अरिहंत सिद्ध समरु; अंति: उपनो चवने जासी मोखोरे, ढाल-८. For Private and Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२२४४१. भक्तामर स्तोत्र सह ऋद्धिमंत्रादि पंचांगपद्धति, संपूर्ण, वि. १८६३, फाल्गुन कृष्ण, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २४, ले.स्थल. सवाइजनगर, प्रले. मु. वीरचंद ऋषि; पठ. मु. सुखलाल ऋषि (गुरु मु. वीरचंद ऋषि); राज्यकाल रा. सवाई जगतसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: श्री भक्ता०, जैदे., (२५.५x१२.५, १५x२४) भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४८, (वि. यंत्र सहित.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भक्तामर स्तोत्र ऋद्धिमंत्रादि पंचांगपद्धति, संबद्ध, मा.गु. सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं अर्ह णमो अरिहंता अति: कार्य सिद्धि होय, मंत्र- ४८. १२२४४३. (+) महावीरजिन स्तवन व आदिजिन पारणुं, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., दे., (२६X१२, १०X३४). १. पे नाम, महावीरजिन स्तवन, पू. १अ १आ, संपूर्ण पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माताजी तुमे धन धन रे; अंति : शुभविर० भगति वसे भगवान रे, गाथा-११. २. पे. नाम. आदिजिन पारणुं, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. मु. १२२४४५ (+) . माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि आहे जस घर जावो बोरवा सोए अंति: (-), (पू.बि. गाथा- ३ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र व गच्छमर्यादा पट्टक- विजयसेनसूरि आदि अनुमत, अपूर्ण, वि. १८३६, माघ शुक्ल, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २३१-३(१८० से १८२)=२२८, कुल पे. २, ले.स्थल. वांकुलीग्राम, प्रले. मु. कृपाचंद्र (गुरु मु. प्रेमचंद्रजी); गुपि. मु. प्रेमचंद्रजी (गुरु मु. केसरचंद्रजी): मु. केसरचंद्रजी (गुरु ग. तत्त्वत्चंद्र गणि) ग. तत्त्वत्चंद्र गाणि (गुरु ग. तेजचंद्र गणि); ग. तेजचंद्र गणि . पठ. मु. विजयचंद्र (गुरु मु. कृपाचंद्र ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. हुंडी : कल्पसूत्र., संशोधित., जैदे., (२५X१२, १५X३३-३७). १. पे. नाम. कल्पसूत्र सह टवार्थ व कथा, पृ. १आ-२३१अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो: अंति: भुज्जो उवदंसेइ तिबेमि, व्याख्यान- ९, संपूर्ण. कल्पसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि अरिहंत प्रति नमस्कार हो; अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कल्पसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु. सं., गद्य, आदि: श्रीपार्श्व प्रणिपत्य; अंति: कोइ अर्थ सिद्ध न होई, (अपूर्ण, पू. वि. भरत चक्रवर्ती कथा अपूर्ण है.) २. पे. नाम. गच्छमर्यादा पट्टक-विजयसेनसूरि आदि अनुमत, पृ. २३१-२३९आ, संपूर्ण, मा.गु., गद्य, आदि: तेहज सात बोलनो अर्थ; अंति: पंडित श्रीकान्हर्षगणिमतं. १२२४४६ (+) दानशीलतपभावना कुलक सह धर्मरत्नमंजूषा टीका, अपूर्ण, वि. १८७६, पीष कृष्ण, १४, गुरुवार, मध्यम, पू. ३०४-१३(१३ से १९,१०७, १३५, १५७, १६६ से १६७, २६२ ) = २९१ ले स्थल. वीकानेर, प्रले. मु. जेठमल पठ. वा. जोधमल्ल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: दानविकुलि., शीलविकुलि., तपादिकुलिक, भावनाकुलक, संशोधित. जैदे., (२५.५X१२, १४४४२). दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परिहरिय रज्जसारो; अंति: सो लहइ सिद्धिसुहं, वक्षस्कार-४, गाथा-८१, (पू.वि. दानकुलक गाथा-५ तक, भावनाकुलक गाथा-२ से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) दानशीलतपभावना कुलक-धर्मरत्नमंजूषा टीका, ग. देवविजय, सं., गद्य, वि. १६६६, आदि: ॐ नमो नाभिभूपालसंभवाय; अंति: द्वादशाप्यथ षोडश, ग्रं. १२०१६, (पू.वि. दानकुलके आदिजिन चरित्रे प्रथम भव धनसार्थवाह कथा अपूर्ण तक, भावकुलके मंगलाचरण प्रथम गाथा अन्तर्गत पार्श्वजिन चरित्रे कमठ प्रसंग अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं। , " १२२४४७ प्रतिष्ठा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ (१) १, प्र. वि. पत्रांक अनुमानित है. जैवे. (२५.५x१२, १७४७). जिनबिंब प्रवेशस्थापना विधि, मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पार्श्वनाथ रक्षामंत्र से है व सरावला कलशस्थापना तक लिखा है. वि. अंत में प्रतिष्ठा विधि हेतु सामग्री की सूची दी है.) For Private and Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ " १२२४४८ (+) पद्मावतीदेवी स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५x१२, १०४३४). पद्मावतीदेवी स्तोत्र-सबीजमंत्र, मु. मुनिचंद्र, सं., पद्य, आदिः ॐ ॐ ॐकार बीजं; अंति: पठेत् अमरपदमाश्रितं, श्लोक-२६. १२२४५० सनत्कुमारचक्रवर्ती चौढालियो व ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२६X१३.५, २०-२३x४१-४६). १. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ती चौढालियो पू. १अ २अ संपूर्ण मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि तिण काले ने तिण समे प्रथम अंतिः रिष चोथमलजी सुखकारी, ढाल ४. २. पे. नाम. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्म, आदि चंपानगरी अति भली; अति: (-), (पू.वि. ढाल -५ गाथा - १ अपूर्ण तक है.) १२२४५२. (+) रामविनोद, संपूर्ण, वि. १८७९, चैत्र कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ७८, ले. स्थल. विकानेर, प्रले. आ. कीर्तिरत्नसूरि; अन्य. पंन्या. सुमतिविशाल (खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : रामविनोद, संशोधित, जैवे. (२४.५x११.५, १४४४५-४८). रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिधि बुधि दायस लहीयै गरी, अंति: अभि रामविनोद विनोदसु, समुद्देश- ७, गाथा १६१७, ग्रं. ३३२५ (वि. अंत में माप तौल मान विचार लिखा है.) १२२४५३. पुन्य प्रकाशनुं स्तवन, वैकुंठपंथ व नवपद पूजादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५, कुल पे. ५, जैदे., (२५.५X१२, १५X३९-४८). १. पे. नाम. पुन्य प्रकाशनुं स्तवन, पृ. १अ -४आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., प+ग., वि. १७२९, आदि: सकळ सिद्धि दायक सदा चोवीश; अंतिः विनयविज०० पुन्य प्रकासए, ढाल ८, गाधा-७९. २. पे. नाम. वैकुंठपंथ, पृ. ४आ-६आ, संपूर्ण. २९७ आत्महितशिक्षा सज्झाय, मु. भीमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६९९, आदि: वैकुंठ पंथ बीहामणो; अंति: भिम० मार वहे उतावलो, गाथा- ५८. ३. पे. नाम. आनंदघनचौबीसी, पृ. ६आ-१४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : आनंदघन चउवीसा. स्तवनचीवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८५, आदि ऋषभ जिणेसर प्रीतम, अंति आनंदघन प्रभु जारे रे, स्तवन- २४. ४. पे. नाम. नवपद पूजा, पृ. १५अ - २०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : नवपद पूजा. उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि उप्पन्न सन्नाण महोदयाणं; अंतिः विबुध ग्रंथे थे प्रसिधा, पूजा- ९. " ५. पे नाम. अवंतीसुकुमाल तेर ढालिओ, पृ. २०-२५ आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी अवंतीसुकुमाल. अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: संतिहरख सुख पावे रे, ढाल - १३, गाथा - १०७. १२२४५४ (#) कोणिकराजा चौपाई व प्रास्ताविक दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५४१२, १५४३९). १. पे. नाम. कोणिकराजा चौपाई, पृ. १अ -१२अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : कौणक चौप०. मु. रायचंद ऋषि, रा. पद्य, आदि आठ भवां पहिली हुंती केटक, अंतिः खड़े ए ज्यु पामो सुख रसाल, डाल- २७. २. पे. नाम. प्रास्ताविक दूहा संग्रह, पू. १२अ-१२आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी: दुहा सवईवा. For Private and Personal Use Only प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, पुहिं., मा.गु.,रा., पद्य, आदि: किसूं करै किसतीरी हिंगलो; अंति: हाथ न घालुं छिका १२२४५५. (+) नेमिनाथजीरो चोक, संपूर्ण, वि. १८७७, चैत्र शुक्ल, ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल. विक्रमपुर, प्रले. गंगाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. जैदे. (२५.५४१२.५, १६x४७). Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमगोपी संवाद- चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु. पद्य वि. १८३९, आदि: सरसति चरणांबुज नमः अति: तसु सीस अमृतविजे गुण गाया चोक-२४. १२२४५६. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ६ प्र. वि. हुंडी : भक्ताम०, पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे., (२५.५X१२, १०x२९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमौलि; अति मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. १२२४५७. आराधना संकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७३ आश्विन शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. पं. दर्शनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: आराधना., जैदे., (२६X१२, ५X४६). , ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिउण भणइ एवं भवनं अंति: लहति ते सासयं सुखं, गाथा-६९, ग्रं. २४५. पर्यंताराधना-गाथा ७०-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भगवन अवसरो चित आसिदउ; अंति: प्रकारेलह मजावण हारि १२२४५९. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २४ ११, १५X४३). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि उडोजी अर्थ विचारजो उडा; अंति: वह गयो फीरीयो चोरासीमाही, गाथा- १५. १२२४६०. शीतलजिन स्तवन व साधारणजिन पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्र. मु. रामरतन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६४१२, १३४३४). १. पे नाम, शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. कपूरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन साहिबा मोरी अरज; अंति: जांजी प्रभू वीनवै चंदकपूर, गाथा-५. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि वह अरजी मोरी सहियां अति सिव देते क्युं नहि सहियां, गाथा-३. ३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि में हुं अधम पाप की मूरत; अंति: रूपचंद० आवागमन निवारणा हो, गाथा-३. ४. पे. नाम आदिजिन स्तवन, पू. १अ १आ, संपूर्ण, आ. जिनहंससूरि, पुहिं., पद्य, आदि मन लीनो हमारो जिन; अंति जिनहंस० समरण विज धरनार, गाथा ५. ५. पे नाम, साधारणजिन पद, पू. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कैसें काज सरै महाराज; अंति: से सब काज सरै, गाथा-३. १२२४६१. (+) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २४.५X१२, ४X३२). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, प्रा.सं., पद्य, आदि: देवपूजा दयादानं तीर्थ; अंति: सरणं देवाधिदेवं नमः, गाथा- ३. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: देव श्रीअरिहंत जेहनो; अंति: छै जेहनै नमस्कार हुआ. १२२४६२. विजयकुंवर सज्झाय, जंबूस्वामी सज्झाय व भावछत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, वे., (२५.५X१२, १६३६-४८). १. पे नाम, विजयकुंवर सज्झाय, पृ. १अ २आ, संपूर्ण विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद, मा.गु., पद्म, वि. १८६१ आदि श्रीवीतराग जिणदेव; अति लालचंद० रामपुरे गुण गायो, गाथा- १९. २. पे नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पू. २आ-३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि ये आठुइ कामनी रे; अंतिः जाया भल लोहो संजमभार, गावा- १३. ३. पे नाम भावछत्रीसी, पू. ३अ ४अ, संपूर्ण. मु. भगवानदास ऋषि, मा.गु, पद्य, वि. १९०४ आदि: थानै सखरो सोहेजी सरवररो; अति आसो महीने आणी मन हुलासो, गाथा-३६. १२२४६३. (+) पंचेंद्रिय सज्झाय व आत्मनिंदाचौढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६X१२, १६X५५). For Private and Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २९९ १.पे. नाम. पंचेंद्रिय सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:इदरीयांरोतांवन. ५ इंद्रिय सज्झाय, म. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सोतेद्री निज वस काजे रे; अंति: विनयचंद० आतमगुण भेटके, ढाल-६, गाथा-३०. २. पे. नाम. आत्मनिंदाचौढालियो, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:आतमनीदीया. मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९२१, आदि: अरिहंत सिध अनंतगुण धरिये; अंति: विनेचंद० आत्मनिदा हम करी, ढाल-४, गाथा-११९. १२२४६४. (+) नेमिनाथनो रास, संपूर्ण, वि. १८२६, कार्तिक कृष्ण, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. जालणापुर, प्रले. मु. उदाजी स्वामी; अन्य. मु. जेठाजी सामी; मु. नीबाजी; मु. रतनजी, प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, १४४३२). नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारदपाय प्रणमी करी नेम; अंति: पुण्यरतन० सुखकार कें, गाथा-६६. १२२४६५ (+) संघयणी प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५७, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ४०५१, जैदे., (२५४१२, ५४४८-५२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिई; अंति: जी वीरजिण तित्थं, गाथा-३९३. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउं कहतां वादीनै; अंति: तो संसारीक सर्व सुख पांमै, ग्रं. ४०५१. १२२४६८.(+) धनाजीरी चौपई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, प्र.वि. हंडी:धनारीचो., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१२, २०४४९-५१). धन्नाअणगार चौपाई, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: त्रिभुवन नायक वीरना चरण; अंति: सबलदास० दुख जाए टल्यौ, ढाल-६१. १२२४६९. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१२, १२४२५). आदिजिन स्तवन, मु. गणेससागर, मा.गु., पद्य, आदि: ए मोरी अरदास रिषभजिन; अंति: गुणसागर०हो वंदे तेहना पाय, गाथा-९. १२२४७० (+#) पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, प्र.वि. खडा लेखन-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२.५, २८x२५). पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, पहि.,प्रा.,मा.ग., गद्य, आदि: देवसिय आलो० इच्छाकार; अंति: आयामंतरे०४ नित्थार. १२२४७१ (2) देवसिप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १,प्र.वि. पत्र १=१४३., खडा लेखन. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १५४१४). देवसिप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: तीन नवकार केणा पछी; अंति: १नोकार केने गाथा केणी. १२२४७२. तेर काठिया सज्झाय व कृष्ण वासुदेव सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१३.५, १९४३२). १. पे. नाम. तेर काठिया सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १३ काठिया सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, रा., पद्य, वि. १८६१, आदि: रतन चीतामणी एहवोजी पामीयो; अंति: आसकरण नागोर सेर चोमासोजी, गाथा-२१. २. पे. नाम, कृष्ण वासुदेव सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मा.गु., पद्य, आदि: रे नान्या राश माँड्यो रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) १२२४७४ (#) सीमंधर स्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५.५४१२.५, ११४३५). सीमंधरजिन विनती स्तवन, म. अगरचंद, मा.ग., पद्य, वि. १८६१, आदि: म्हारी वीतडी अवधारो सहिबा; अंति: अगरचंद० तारो दीनदयाल, गाथा-२०. For Private and Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२२४७५. आध्यात्मिक पद, गीत व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ८, जैदे., (२६४१२, १४४४५). १. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: रूपचंद० प्रीत बांधांणि, गाथा-६, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. म. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: इंद्रलोक हरउओ घंटबाजे; अंति: रूपचंद० मगन भयो मेरो मननन, गाथा-३. ३. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. म. हरखचंद, पुहिं., पद्य, आदि: अजित जन कोघांन कर मन अजीत; अंति: हरखचंद०मन अजित जन को धान, गाथा-४. ४. पे. नाम. घडियाली गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. उपा. समयसंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: चतुर सुनो चीतलाइ के क्या; अंति: समयसुंदर० करो एहित आधम्य, गाथा-३. ५. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रह समें भावधरि घणो; अंति: ज्ञानविमल नित होअ जगीश, गाथा-५. ६.पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: जब जनराज कृपा करे; अंति: ज्ञानविमल ० सुख संपद पावै, गाथा-५. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, म. वीरविजय, पुहिं., पद्य, आदि: अजब जोत मेरे प्रभू कि तुम; अंति: विरविजे०मनकि तुम देखो माइ, गाथा-३. ८. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: उठत प्रभात नाम जनजि को; अंति: हरखचंद० सुख संपद बढाइ, गाथा-६. १२२४७६. (+) मदनश्रेष्ठी चरित्र, संपूर्ण, वि. १९९५, पौष शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. २९, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. जेठमल (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मदनचरित्र०., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२५४११.५, १८४५३-५९). मदन श्रेष्ठी चरित्र, मु. छगन मुनि, पुहिं.,सं., पद्य, वि. १९८४, आदि: दानं ख्यातिकरं सदा हितकर; अंति: छगनमुनि० पुण्य परकाश, खंड-७, गाथा-१२९१. १२२४७८. कयवन्ना चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६-२५(१ से २५)=१, जैदे., (२४४१२.५, १४४३७). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., ढाल-२९ गाथा-१२ से ढाल-३० गाथा-१० अपूर्ण तक है.) १२२४७९ (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०३, आषाढ़ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. २७१+१(२३४)=२७२, प्रले. मुरारजी वासदेव जानी; अन्य. कृष्णबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उत्तट०. अंत में उल्लेख- 'लिखावितं चीरंजीवी पठनार्थं.', पदच्छेद सूचक लकीरे., दे., (२६.५४११.५, ४४२५). उत्तराध्ययनसूत्र, म. प्रत्येकबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संयोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: भव सिद्धिय समए तिबेमि, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: उत्तराध्ययननो अर्थ उत्तर; अंति: हुं तुज प्रते कहूं छउं. १२२४८० (+) त्रिलोकसार की भाषाटीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६८-३२(२२,३४,६०,६२ से ६३,६७,७२,७४,९८,१५८,१६४,१६६,१६८,१७६,१७८,१८३,१९०,१९२,२०१,२०८,२१४,२१७ से २१८,२२२,२२९,२३६,२४३,२४६,२५१ से २५२,२५४,२६१)=२३६, प्र.वि. हुंडी:त्रिलोकसा०., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४४९). त्रिलोकसार-टीका की भाषावचनिका, ब्र., प+ग., आदि: त्रिभुवनसार अपार गुणज्ञाय; अंति: भांति अर्थ प्रमान्यौं हैं, (पृ.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) For Private and Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ३०१ १२२४८२. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २६६-१(१५३)=२६५, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. हुंडी:ग्यातासू., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५४११.५, ९४३९). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपाए; अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-२ का मात्र अंतिम सूत्र अपूर्ण है.) । ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ध्यात्वा वीरं जिनं०; अंति: (-). १२२४८३. (+) स्थानांगसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३४-२(३३*,१११*)+२(१६,११२)=१३४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी;ठाणायं., संशोधित., दे., (२६४१२, २२४५१). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. स्थान-४ उदेशक-४ सूत्र-३६६ अपूर्ण तक है.) स्थानांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: श्रीवीरं जिननाथं नत्वा; अंति: (-). १२२४८४. (+) भगवतीसूत्र-शतक २ से १३ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७५, ले.स्थल. पालणपुर, प्र.वि. हुंडी:भग०८०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. ६०००, जैदे., (२५.५४११, ४४२७). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. शतक-२ उदेशक-१ सूत्र-११२ अपूर्ण से उद्देशक-५ शतक-९ उदेशक-३३, शतक-११ उदेशक-९,११ शतक-१२ उदेशक-१,२,३, शतक-१३ उदेशक-३,६ है., वि. प्रारंभिक पाठ शतक-२ से अंतिम पाठ शतक-१३ तक लिया है वास्तविकता यह है कि प्रतिलेखक द्वारा अपेक्षित पाठ लिया गया है. हुंडी में शतक उद्देशक का उल्लेख किया गया है.) भगवतीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १२२४८७. (#) संग्रहिणीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५८-४५(१,३ से ४,७ से १६,१९ से ३१,३४ से ३९,४१ से ४८,५० से ५४)=१३, प्र.वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११,५४४६). बहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३७३, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है व बीच-बीच के गाथांश नहीं हैं.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: महावीरनो तीर्थ प्रवर्त्तइ, (वि. यंत्रसहित.) १२२४८८. (+) जीवविचार प्रकरण व नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८०२, आश्विन शुक्ल, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १२-२(७ से ८)=१०, कुल पे. २, ले.स्थल. शुद्धदंतीनगर, प्रले. पं. वनीत (गुरु मु. धनराजजी गणि); पठ. मु. धनराजजी गणि (गुरु मु. हर्षराजजी गणि); मु. हर्षराजजी गणि; मु. नाथा (गुरु पं. वनीत), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ५४३३). १.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४६ अपूर्ण तक है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: तिनभुवनमांहि दीवा; अंति: (-).. २.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ९अ-१२आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नवतत्त्व प्रकरण, आ. जयशेखरसरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: समत्तं निच्चलं तस्स, गाथा-३३, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: समक्तित थिर पणु जाणीइ. १२२४९२. (+) व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ७X५५). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: जे भिक्खू मासियं; अंति: (-), (पू.वि. उद्देशक-७ सूत्र-१६ अपूर्ण तक व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)जे भिक्खू साधु मा०; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३०२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२२४९३. (+) नवतत्त्व प्रकरणादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पणयुक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६४११, ७४४४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "" १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा १ जीवा २ पुन्नं ३; अंति: अद्धा अणागयद्धा अनंतगुणा, गाथा- ४०. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि जीवचेतनावंत १ चेतना रहित; अंतिः आत्माने २. पे. नाम. चैत्यवंदनकभाष्य-गाथा ६ से ३८ सह टबार्थ, पृ. ४आ-७अ, संपूर्ण. शुद्ध करे. चैत्यवंदन भाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि (-) अति (-) (प्रतिपूर्ण, वि. प्रतिलेखकने गाथा क्रमांक १ से ३३ दिया है. अंतिम गाथा श्रावकधर्म विधि प्रकरण की गाथांक - ३ है.) चैत्यवंदनभाष्य-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे नाम. प्रश्नोत्तर रत्नमाला सह टवार्थ, पृ. ७अ - ९अ, संपूर्ण प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणपत्य जिनवरेंद्र; अंति: कंठगता किं न भूषयति, श्लोक-२९. प्रश्नोत्तररत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि प्रणमी करी नइ जिननाथ; अंति: सर्व कहि हुइ अलंकरई. ४. पे. नाम. गुरुवंदन भाष्य सह टबार्थ, पृ. ९अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गुरुवंदन भाष्य, प्रा., पद्य, आदि मुहणतय २५ देहा २५८; अति: (-) (पू.वि. गाथा- २३ अपूर्ण तक है.) गुरुवंदन भाग्य-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि मुहपोतीरी पडिलेहणि २५: अंति: (-). १२२४९४. (+) संग्रहणी सूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११-३ (१ से ३) = ८, पठ. श्रावि. रंभादे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११, १४४४३). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि (-); अति जा वीरजिण तित्वं गाथा २९५ (पू. वि. गाथा- ९५ " " " अपूर्ण तक नहीं हैं.) १२२४९५. (१) संधारापोरसीसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १६३४, पौष कृष्ण, १ मध्यम पू. ३-१ (१)-२, पठ मु. कृष्णदास (गुरु मु. कुमदचंद); गुपि.मु. कुमदचंद, पठ. वर्द्धमान, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, ४९४०). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति तस्स मिच्छामि दुक्कडं, गाथा १४, (पू. वि. गाधा ४ अपूर्ण से है.) संथारापोरसीसूत्र -टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: हुइ ते मिछामि दुक्कडं. " १२२४९६. (+) सूत्रकृतांगसूत्र- श्रुतस्कंध १ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११३ - १ (१) + १ (४८) = ११३, प्र. वि. हुंडी सूर्य०८०, संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ३५००, दे., (२५.५४११, १२४२९-४५). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि बुज्झिज्ज तिउद्वेज्ज; अंति (-), प्रतिपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनमार्गे ज्ञान सहित अंति: (-), प्रतिपूर्ण १२२४९७. प्रत्याख्यानसूत्र-आयंबिल व उपवास, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैदे. (२५.५५११, १४४४१). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि सूरे उग्गए नमुक्कार, अंति: (-), प्रतिपूर्ण १२२५००. उपदेशमाला की गाधानुक्रमणिका, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५, दे. (२६११, १७४३२). 1 उपदेशमाला-गाथानुक्रमणिका, प्रा., गद्य, आदि: नमिऊण जगचूडाम सवस्सर; अंति: जावयलव अक्खरम, (वि. अंत में प्राकृत गाथा युक्त जीवितमरणज्ञान विचार दिया गया है.) १२२५०२. (#) पडिकमणा वांदणानी कथा, अपूर्ण, वि. १५५१, चैत्र शुक्ल, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. २४-१७ (१ से १६,१९)=७, प्रले. मु. सोमकलश (गुरु आ. देवकुंजरसूरि, बृहद् गच्छ); गुपि. आ. देवकुंजरसूरि (बृहद् गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैवे. (२६४११, १४४४२). दिसूत्र - कथा, मा.गु., गद्य, आदि (-) अंति छह ए द्रिष्टांत कहिउ (पू.वि. गाथा ९ की कथा अपूर्ण से है व बीच का पाठांश नहीं है.) १२२५०३. दानकल्पद्रुम, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३६-९ (१ से ९) २७, पू.वि. बीच के पत्र हैं, जैदे. (२६.५X११, १३४५२). For Private and Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org दानकल्पद्रुम, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पल्लव-३ श्लोक-७५ से पल्लव-९ श्लोक-११४ अपूर्ण तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२२५०४ (+) नलदमयंती चउपई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ४५-१५ (१ से १५) = ३०, प्र. वि. हुंडी नलदवदंती चउपई.. संशोधित., जैदे., (३६X११, १२X४६-४९). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: (-); अंति: समयसुंदर० सचितवसी, खंड-६ ढाल ३९, गाथा- ९३१, ग्रं. १३५० (पू. वि. खंड-३ डाल- १ गाथा- ११ अपूर्ण से है.) १२२५०५. (+) उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१) = २, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. हुंडी: उपदेशमा., संशोधित., जैदे., (२६.५x११, १३४५०). " उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: (-) (पू.वि. गाथा १४ अपूर्ण से गाथा-७३ अपूर्ण तक है.) १२२५०६. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४६- ३ (१ से ३) = १४३, प्र. वि. हुंडी : कल्पसू., संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५X११, ५X३८-६२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अति भुज्जो उवदंसेइ तिबेमि, व्याख्यान- ९, " ग्रं. १२१६, संपूर्ण कल्पसूत्र - टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि अरिहंतन माहरो अंति: जणाविडं एणइ मेलिई, संपूर्ण, १२२५०७. रायपसेणीसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३८-४ (१, ४,२८ से २९) = ३४, पू. वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र. वि. हुंडी : राय० वृत्ति:., जैदे., ( २६११, १७६७). " राजप्रनीयसूत्र टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. सूत्र -१ की टीका अपूर्ण से सूत्र - ३३ की टीका अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२२५०८. () अभिधानचिंतामणि नाममाला सह व्युत्पत्तिरत्नाकर टीका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६२-४९१ से ४,७ से ८,१३ से १४,१६ से १८,२१ से २९, ३३ से ६१) = १३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १७४६४). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्म, वि. १३वी आदि (-); अति: (-), (पू.वि. कांड - १ श्लोक १७ अपूर्ण से कांड-२ श्लोक-१७८ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) अभिधानचिंतामणि नाममाला व्युत्पत्तिरत्नाकर टीका, पंडित, देवसागर गणि, सं., गद्य, आदि (-) अंति: (-). १२२५०९. श्रावक के ३ मनोरथ, संपूर्ण, वि. १८९८, वैशाख शुक्ल, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, जोधपुर, प्रले. मु. दयाचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी तीन मनोरथ, अंत में उल्लेख 'साध ठाणा ११ तपसीजीरी नेश्राय छे., जै.. (२५.५४११.५. १७X३५). श्रावक के ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, आदि: माहा मोटी निरजरा करै करम; अंति: मुझने समाधिमरण होजो. १२२५१३. (४) वयरस्वामी भास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६-४ (१ से ४) २ ले स्थल, पाली, प्रले. मु. प्रतापचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पार्श्वनाथ प्रसादात् अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६४११.५, १३४३३). " (२६११, १५x५० ). १. पे नाम आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ३०३ वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: (-); अंति: वयर गुण गाया रे, ढाल १५, गाथा-८९, (पू.वि. ढाल १२ गाथा १ अपूर्ण से है.) १२२५१६. आदिजिन स्तवन व पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. सीहा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., मु. साधुरंग, मा.गु., पद्य, आदि: अढार कोडाकोडि सागरे हुअउ; अंति: साधुरंग ० हुइ जसु नामि रे, गाथा-१०. २. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. देवगुप्तसूरि- शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वासनी पासनी गुण वखाणओ अंतिः देवगुप्तसूरिसीस० हर्षपूरे, गाथा - १६. १२२५१७. (०) स्थविरावली चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ८०-६८ (१ से ६८ ) = १२, प्र. वि. हुंडी थेरा०च., परिशिष्टपर्व पदच्छेद सूचक लकीरें कुल ग्रं. ३५००, जैवे. (२६.५४११.५, १५४५५) ', For Private and Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र परिशिष्टपर्व, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. पद्म, वि. १२वी आदि (-); अंति: स्फाति पुरस्तात्पुनः, सर्ग -१३, ग्रं. ३५००, ( पू.वि. सर्ग-१२ श्लोक-१६ अपूर्ण से है.) १२२५१८. (+) महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X११.५, १३X३५). महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ९ अपूर्ण से १८ अपूर्ण तक है., वि. ढाल के अन्तर्गत गाथाएँ दी गई हैं.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir יי " १२२५१९. (+) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १ ( १ ) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५X११.५, ५X४०). " लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी आदि (-); अति: (-) ( पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण से गाथा - ९ अपूर्ण तक है. वि. कोष्ठक सहित ) १२२५२०. चउक्कसायसूत्र, सामायिक पारणसूत्र व जंबूस्वामी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५X११.५, १०x२६). १. पे. नाम, चउक्कसायसूत्र, पृ. २अ अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: जिण पास पयच्छउ वंचिअ गाथा- २ (पू.वि. अंतिम गाथा अंतिम चरण मात्र है.) २. पे. नाम. समायक पारवा, पृ. २अ, संपूर्ण. पौषधपारणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा. गु. प+ग, आदि सागरसंदो कंचो संदचडंसो; अंतिः तस मिळामि दुकरं, गाथा - ३. ३. पे. नाम, जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण, पे.बि. हुंडी: जंबुकुमार. मु. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सेणीक नरवर राजीयो मगध, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १० अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only १२२५२१. (+) गजसुखमालनी लावणी व जंबूस्वामी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२५.५४११.५, २०४६३). १. पे. नाम. गजसुखमालनी लावणी, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रामकृष्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६७, आदि (-); अति: कृष्ण० छत्त जे सुख पावै, गाथा-२२, (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण से है.) २. पे नाम जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. २अ संपूर्ण. मु. खुशालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि धन धन जंबुकुवरजी जोवने मै; अंति खुशालचंद० महमा आणी, गाथा - १५. " , १२२५२३. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे. (२६४१२, १४४४१). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य वि. १७९३, आदि: सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) 1 १२२५२५. स्थूलभद्रनवरस सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ७-३(१,३, ५)=४, कुल पे. ५, जैदे., (२५.५४११.५, १३X३७). १. पे नाम. स्थूलभद्रनवरस सज्झाय, पृ. २अ ४आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. मु. ज्ञानसागर, मा.गु, पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. हास्यरस अपूर्ण से अदभूत रस अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) २. पे नाम. नयविचार सज्झाय, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जसविजय० भवसायर तरे, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) ३. पे नाम सीता सज्झाय, पू. ६अ-७अ संपूर्ण. Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ सीतासती गीत, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: छोडी हो प्रीआ छोडी चल्यो; अंति: जिनरंग० पय भाव धरी जी, गाथा-११. ४. पे. नाम. सचित्तअचित्तविचार स्वाध्याय, पृ. ७अ, संपूर्ण. अचित्त भूमिका सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सदगुरुर्नु नाम जिम; अंति: लालविजय० वृत्तिथी लहै, गाथा-५. ५. पे. नाम. नवकारमंत्र सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बार जपुं अरिहंतना; अंति: लबधि० नोकरवाली वंदिइ. १२२५२६. नववाडि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. रविविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १२४३१). ९ वाड सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रमणी पशु पिंडग तणी रे; अंति: इम बोलै रे विजेदेवसूरि कि, गाथा-१५. १२२५२७. (+) औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-२३(१ से २३)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १५४४६). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २४अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-समता, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: तिमतिम सुखनिधान, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से २.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २४अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन-अध्यात्मगर्भित, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.ग., पद्य, आदि: मेरा साहिब सुगुण; अंति: नयविमल. गुण तव आया, गाथा-९. ३. पे. नाम. चउदस्थानकनी सज्झाय, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण. १४ समूर्छिमपंचेंद्रियजीव उत्पत्तिस्थानक सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम गणधर प्रणमी पाय; अंति: धर्मदास० तस लिल विलास, गाथा-१३. ४. पे. नाम. बावीस अवाक्ष निवारण सज्झाय, पृ. २४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २२ अभक्ष्य निवारण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पणमिय पास जिणेसर पाय पामी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) १२२५२८. (+) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १५४४८). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सुगुरुवंदनासूत्र अपूर्ण से संथारा पोरसीसूत्र अपूर्ण तक है.) १२२५३० (+#) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र-परिशिष्टपर्व, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८९-५९(१ से ५७,६४,८४)=३०, प्र.वि. हुंडी:परि०पर्व., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४११, १२४६०-६६). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. सर्ग-८ श्लोक-१४३ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२२५३२. (#) सारस्वत व्याकरण सह दीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-११(१ से ११)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १६४६४). सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. व्यञ्जन संधि सूत्र-१२ से विसर्ग संधि सूत्र-४ तक है.) । सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सारस्वत व्याकरण की चंद्रकीर्ति टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२२५३५. (+#) राजप्रश्नीयसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७६०, कार्तिक कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १०२, ले.स्थल. वटप्रद, प्र. वि. हुंडी : राजपृ०. अंत में ले.सं. ०६० लिखा होने से लिखावट के आधार से सं. १७६० रखा गया है. पत्रांक- ३९ से क्रमश: दूसरा पत्रानुक्रम उल्लिखित है., संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. २०७९, टीकादि का अंश नष्ट है, जैवे. (२६४११.५, ९X३३-४०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजप्रश्रीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि नमो अरिहंताणं० तेणं अतिः सुपस्से पस्सवणा नमो, सूत्र- १७५, २०७९, संपूर्ण. राजप्रश्रीयसूत्र अवचूरि, सं., गद्य, आदि राजप्रश्नीयमहं विवृणोमि अंति (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. पू.वि. १२२५३६. सेजय रास, संपूर्ण, वि. १८७५, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल, मढाड, प्रले. पं. फतेसागर (गुरु पं. लालसागर); गुपि. पं. लालसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६४११.५, १२४४४). " शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी आणी; अंति: समयसुंदर० जात्रा करुं ए, ढाल-६, गाथा-१०९. १२२५३७. (+) लघुअजितशांति स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७२५, श्रेष्ठ, पृ. १ ले स्थल भिन्नमाल, प्रले. ग. अमृतसागर (गुरु मु. शीलसागर, अंचलगच्छ); गुपि. मु. शीलसागर (गुरु मु. नेमसागर, अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें जै. (२६५११, १५x७३). अजितशांति स्तवलy - अंचलगच्छीय, क. वीर गणि, प्रा., पद्य, आदि गव्भ अवयारि सोहम्मसुरसामि; अति: सुह सयल संपज्जए, गाथा-८, (वि. अंत में एक श्लोक दिया है.) अजितशांति स्तवलघु-अंचलगच्छीय-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: गब्भ० गर्भावतारे सौधर्म; अंति: मांगलिकानि संपद्यंते. १२२५३८. (०) सिद्धचक्र रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-११ (१ से ११) १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५ १५४४६). श्रीपाल रास- लघु, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १५३१, आदि (-); अंति जिम भूपति श्रीपाल, गाथा-३१८, (पू.वि. गाथा - २९४ अपूर्ण से है.) १२२५३९. (#) जैन मंत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४०-२ (४, २७) = ३८, कुल पे. ६, ले. स्थल. नागनेश, प्रले. श्राव. लालचंद रुगनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी यंत्रावली. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४११.५, १४X३४-४७). १. पे. नाम. जैन मंत्र संग्रह, पृ. १अ ५अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. जैन मंत्र संग्रह-सामान्य*, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: ह्रीं धरणेंद्र पद्मावती; अंति: अग्नीमांथी हाथ निकले, (पू.वि. ब का पाठांश नहीं है.) २. पे. नाम. वैद्यकसार, पृ. ५अ - १७अ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह, पु, प्रा. मा. गु. सं., गद्य, आदि: गज पीपर टांक २ केसर टांक, अति करी खाय तो वाय सुल जाय. ३. पे नाम. यंत्रावली मंत्र संग्रह, पू. १७अ-३१अ, अपूर्ण. पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. , मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ, पुहिं. प्रा. मा. गु. सं., प+ग, आदिः ॐ तारणी उत्तारणी सत्रुसंहार अंति तो सिद्धि सर्व वस्वं (पू.वि. बीच का पाठांश नहीं है . ) ४. पे. नाम. भक्तामर सत्याम्नाय, पृ. ३१अ- ३२अ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु., सं., गद्य, आदि: भक्तामर ० १ वक्तु गुणान्०; अंति: मान महत्व लक्ष्मी वाधे, (वि. अन्य विविध मंत्रसाधन सहित ) ५. पे. नाम. चंद्र कल्प, पू. ३६आ-३९अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: ॐ ह्रीँ श्रीँ क्लीँ ब्लीं; अंति: गणवो सीयल पालवु. ६. पे. नाम. नवकार कल्प, पृ. ३९अ-४०आ, संपूर्ण. नमस्कारमहामंत्र कल्प, प्रा. सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नमो; अति गोत करसो तो तुरत जडसे. " For Private and Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ३०७ १२२५४०. (#) कारकविभक्ति विवरण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४४७). कारकविभक्ति विवरण, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: लिंग३ पुलिंग१ स्त्रीलिंग२; अंति: (-), (पू.वि. पंचमी विभक्ति वर्णन ___ अपूर्ण तक है.) १२२५४१ (4) रत्नचूड चउपही, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-६(२ से ७)=४, प्र.वि. हुंडी:चउपही., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १४४५५). रत्नचूड चौपाई, मु. रत्नसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १५०९, आदि: सरसति देवी पाय नमी मागुं; अंति: श्रीसंघनइ ते जयजयकार, गाथा-३४०, (पू.वि. गाथा-३९ अपूर्ण से गाथा-२६४ तक नहीं हैं.) १२२५४३. (+) ऋषभमंडल प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, ११४४०-४५). ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: भत्तिभर नमिरसुरवर; अंति: काउंसो लहइ सिद्धि मुहं, गाथा-२११, ग्रं. २५९. १२२५४५ (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९१३, माघ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ३३८-१९७(१ से १८९,१९१ से १९८)=१४१, ले.स्थल. धारवाड, प्रले. पं. शिवचंद (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ज्ञाता०ट०., संशोधित., दे., (२७४११, ६x४६-५१). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: नायाधम्मकहाओ समत्ताओ, अध्ययन-१९, ग्रं. ५५००, (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-११ देसाराधक उपमान वर्णन अपूर्ण से अध्ययन-१२ प्रथम सूत्र अपूर्ण तक व अध्ययन-१२ अदिनशत्रु कुमार राज्याभिषेक प्रसंग अपूर्ण से है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: हिवनाया धम्म कहाओ समत्ताओ. १२२५४६. (+) समयसार टीका का विवरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५९-२(१,५)=५७, पृ.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११.५, १२४३९-४२). समयसार-आत्मख्याति टीका के हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से गाथा-७१६ तक है व गाथा-३७ अपूर्ण से गाथा-४२ अपूर्ण तक नहीं हैं.) १२२५४७. साधवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प.८, जैदे., (२७४११, ९४३२). साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चउवीस; अंति: पासचंदिइ मन आनंदि सइंथुआ, ढाल-७, गाथा-८८. १२२५४८. (+#) भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २६१-२४९(१,५ से ५३,५६ से २२७,२३४ से २६०)=१२, पृ.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र.वि. हुंडी:भगवतीसूत्र., पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६.५४११, १३४४७-५८). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक-१ उद्देशक-१ पाठ-"भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढे जाणू" से शतक-१६ उद्देशक-६ पाठ-"गणिपडिगं आघावेति पण्णवेति परूवेति दंसेति" तक के बीच-बीच के पाठांश हैं.) १२२५५१. विविध प्रश्नबोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८९, प्र.वि. हुंडी:समकीसार., समकी., दे., (२६४११, १०x४१-४३). विविध प्रश्नबोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम श्रीदयाधर्म; अंति: जनथी ते आगम करी किम मानाइ. १२२५५२. (#) आदिजिन चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४११.५, १३४४३). आदिजिन चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दिय सरसती मया करी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१०६ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२२५५३. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२६-३९(१,११ से १२,२३ से २८,३१ से ६०)८७,, प्रले. मु. परमाणंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ६४२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: भुज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. (पू.वि. सूत्र-३ अपूर्ण तक, सूत्र-१५ अपूर्ण से सूत्र-१६ अपूर्ण तक, सूत्र-३१ अपूर्ण से सूत्र-३७ अपूर्ण तक व सूत्र-४१ अपूर्ण से सूत्र-११५ अपूर्ण तक नहीं है.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वार वार दिखाडइ इम काउ. १२२५५४. (+) भगवतीसूत्र, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४६२+१(३४७)=४६३, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. हुंडी:भगवतीसूत्रं.,भग०सूत्र., भ०सू०. प्रतिलेखक ने पत्रांक-३४७ तीन बार लिखा है., संशोधित., जैदे., (२७४११, ११४३७). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहंताणं० सव्व; अंति: देव अविग्धं लिहंतस्स, शतक-४१, सूत्र-८६९, (संपूर्ण, वि. प्रतिलेखन पुष्पिका वाला पत्र नहीं है.) १२२५५५ (-) शीयल कडा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. हुंडी:सीलका काडा., अशुद्ध पाठ., अ., (२६.५४११,१७४३८). शीयल कडा, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: (-); अंति: दुर के सीयल अखंडीत सेवजो, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से १२२५५६. (#) बृहत्संग्रहणी सह मलयगिरीय टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक भाग खंडित होने से पाठ के आधार पर अनुमानित पत्रांक दिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७X७२). बृहत्संग्रहणी, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ७पू, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ से २८ तक बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ की टीका अपूर्ण से २८ की टीका अपूर्ण तक है.) १२२५५७. (+) सुरप्रियमुनि चरित्र व मूर्तिपूजामंतखंडन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:सुरच., संशोधित., जैदे., (२६४११, १८४४०-४५). १. पे. नाम. सुरप्रियमुनि चरित्र, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. दमुनि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७०४, आदि: आदिनाथ आदिदेयी समरी सिद्ध; अंति: कही जी सव संघ मंगलमाल, ढाल-६, गाथा-८५. २. पे. नाम. मूर्तिपूजामतखंडन सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. श्राव. अचल ओसवाल, मा.गु., प+ग., आदि: समकित द्रष्टि साचो बोले; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-११ अपूर्ण तक लिखा है.) १२२५५८. मूकश्रेष्ठि कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६.५४११, १५४४४). मूकश्रेष्ठि कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. राजपुत्र एवं पुरोहितपुत्र दीक्षा प्रसंग अपूर्ण से मूकश्रेष्ठि शिक्षा प्रसंग अपूर्ण तक है.) १२२५५९ (#) रत्नचूड चौपाई व ज्योतिष श्लोक, संपूर्ण, वि. १७७७, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, शनिवार, मध्यम, पृ. १९, कुल पे. २, ले.स्थल. मेसाणा, प्रले. पंन्या. दोलतविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १५४४३). १. पे. नाम. रत्नचूड चौपाई, पृ. १अ-१९आ, संपूर्ण. म. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: स्वस्ति श्रीसोभा सुमति; अंति: कनकनिधान० लील कल्याणोरे, ढाल-२४. For Private and Personal Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २.पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. १९आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मेषे च सिहं अलिरक्तता च; अंति: कुंभे च मीने मकरे च कृष्ण, श्लोक-१. १२२५६१. (#) पद्मावती स्तोत्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले.पं. सोमविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १८४६६). १.पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्रस्फुट; अंति: पद्मावती स्तोत्रम्, श्लोक-२७. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सकल विश्व जनाभिवंद्यां; अंति: शास्त्राणि सुदुष्कराणि, श्लोक-१. १२२५६२. विवाहपटल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, जैदे., (२५.५४१०, ९४३५-३७). विवाहपटल, सं., पद्य, आदि: धनाढ्य माघे सुभगा च; अंति: गुरुलग्ने व्यपोहिती, श्लोक-९२. १२२५६५. १२ भावना सज्झाय व साधुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७३९, वैशाख कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. नवलाही, जैदे., (२५४१०, १९४६२). १. पे. नाम. १२ भावना सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४६, आदि: आदिसर जिणवर तणा पद; अंति: जयसोम० सुणता सवि सुख थाय, ढाल-१२, गाथा-७२. २. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. म. वल्लभदेव, मा.गु., पद्य, आदि: सकल देव जिणवर अरिहंत; अंति: मोखि सुख निश्चल करी, गाथा-१६. १२२५६६. अंजनासुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १८५७, कार्तिक कृष्ण, २, शनिवार, मध्यम, पृ. ९, प्रले. सा. कीसनी; पठ. प्राणसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१०.५, १९४५३). ___ अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलैने कडवै हो पाय; अंति: मात सतीय सरोमण गाइय, गाथा-१५७. १२२५६७. (+) लोकनालिद्वात्रिंशिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२५.५४११, १०x४३). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसण विणा जं लोअं; अंति: जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३२. लोकनालिद्वात्रिंशिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जिण० वइ० प्रसारितपादं; अंति: रूपमुपलभ्य ज्ञात्वा. १२२५६८. (+) वंदित्तुसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. मु. पीतांबर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, १०x४८). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेत्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामी जिणे चोवीसं, गाथा-५०. १२२५७०. बृहत्संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १७६४, पौष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १९, प्रले. मु. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ११४३७). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: नंदी जा वीरजिणतित्थं, गाथा-२९७. १२२५७१. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६५, दत्त. मु. अजरामल ऋषि; गृही. मु. नरसी; दत्त. मु. मेघराजजी; गृही. श्राव. लाछबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:दसविकाट०., जैदे., (२५.५४१०.५, ६४३३-३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मोमंगलमुकटुं; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि, अध्ययन-१०. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीतरागने नमस्कार; अंति: गुरु शिष्य प्रति कहिउ. १२२५७३. (+) योगचिंतामणि, संपूर्ण, वि. १८७२, ज्येष्ठ, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. ७८, प्रले. मु. चंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जोगचितामणि., योगचिंतामणि., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (९२८) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, (१४८६) जला द्रक्षेत् तेला द्रक्षेत्, जैदे., (२५.५४१०.५, १६x४५-५३). For Private and Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची योगचिंतामणि, आ. हर्षर्क र्तिसरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदिः यत्र वित्रासमायांति; अंति: योगचिंतामणिश्चिरम्, अध्याय-७. १२२५७४. (+) ५ इंद्रिय सज्झाय व केशीगौतमगणधर संवाद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-३(१ से ३)=३, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:सवीया., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५४११, १२४४०-४४). १. पे. नाम.५ इंद्रिय सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. ग्यानचंद, पुहि., पद्य, वि. १९३४, आदि: पाच इंद्रि कि तेविस विषे; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ अपूर्ण तक लिखा है.) २.पे. नाम. केशीगौतमगणधर संवाद, पृ. ४आ-६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-६ से लिखा है व गाथा-२५ अपर्ण तक है., वि. प्रतिलेखक ने गाथा-६ से कृति का प्रारंभ किया है.) १२२५७५ (+) मंडल प्रकरण सह वृति, संपूर्ण, वि. १६८५, वैशाख शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. मेदनीतटे, प्रले. पं. ज्ञाननंदि गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रविमंडलवृत्ति., सूर्यमंडलावृत्ति., चंद्रसूर्यमंडलानि., संशोधित., जैदे., (२६४११, १७४६३). मंडल प्रकरण, मु. विनयकुशल, प्रा., पद्य, वि. १६५२, आदि: पणमिय वीरजिणिदं भवदुहमंडल; अंति: ओ सरणत्थं सपरगाहाहिं, गाथा-९०. मंडल प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, मु. विनयकुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदि: श्रीवीर जिनेंद्र प्रणम्य; अंति: येनेयं भवति सुपवित्रा. १२२५७६. आदिजिन स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६९१, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. आगरानगर, जैदे., (२६४१०.५, १३४५७). आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, उपा. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलं पणमीय देव; अंति: विजयतिलक निरंजणो, गाथा-२१. आदिजिन स्तवन देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीविजयतिलक उपाध्याय कवि; अंति: छइं निरंजणो पाप रहित. १२२५७९ (#) पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:पासाकेवली., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १३४४५). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. शकुन संख्या-२२१ अपूर्ण से ३२३ अपूर्ण तक है.) १२२५८० (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-१(४)=७, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ४५०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, २-८४३१-३६). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरम रमवद्यभेदि; अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-९ अपूर्ण से १६ अपूर्ण तक नहीं है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः श्रीपार्श्वजिनमानम्य; अंति: सुगुरुप्रसादात्. १२२५८१ (+#) गुणकरंडकगुणावली रास, संपूर्ण, वि. १७६३, भाद्रपद शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १७, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. दीपचंद; गुभा. मु. मयाचंद (गुरु मु. सोमसुंदर); गुपि. मु. सोमसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. 'अंत में संवत् अढारे सातमें कार्तिक सुदि कहवाइ दशमी गुरुवारसुं पुरण सगरू पसाइ' लिखा हुआ है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित. कुल ग्रं. ५५७, मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (७०६) भग्नपृष्टि कटीग्रीवा, (१४८७) जला द्रक्षे तैला द्रक्षे, (१४८८) यादृशं पुस्तिके दृष्ट्वा, जैदे., (२५४१०.५, १३४४६-५२). गुणकरंडकगुणावली रास-बुद्धिविषये, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: इम पभणइ हो जिनहरष सुसीस, ढाल-२६, गाथा-४९३. For Private and Personal Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ३११ १२२५८४. (+#) पंचांगानयन व सूर्य चंद्रग्रहण विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, ७X४१). १.पे. नाम, पंचांगानयन, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पंचांगविधि दोहा, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: (-); अंति: मेघराज० सुगम भांति सुखकाज, गाथा-५३, (पू.वि. गाथा-५१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सूर्य चंद्रग्रहण विचार, पृ. ४अ, संपूर्ण.. सूर्य चंद्रग्रहणविचार, मा.गु., गद्य, आदि: जिणेइ नक्षत्रे रवि वसे; अंति: उत्तर दिसे खाडो दीसे. १२२५८५. आदिजिनविनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:आदेसरनी वीनति., आदेसरनीवी०., जैदे., (२५४१०.५, १३४४१). आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जइ पढम जिणेसर अति; ___अंति: लावन्यसमे० इम भणियं, गाथा-४५. १२२५८६. (+) अनेकार्थध्वनिमंजरी, संपूर्ण, वि. १६४८, आषाढ़ शुक्ल, ६, सोमवार, मध्यम, पृ. १३, प्रले. मु. ब्रह्म वीरपाल (गुरु मु. ब्रह्म रूडा, नंदीतटगच्छ); गुपि. मु. ब्रह्म रूडा (गुरु मु. नरबद, नंदीतटगच्छ); मु. नरबद (गुरु मु. ब्रह्म कचरा, नंदीतटगच्छ); मु. ब्रह्म कचरा (गुरु मु. ब्रह्म सूरीदास, नंदीतटगच्छ); मु. ब्रह्म सूरीदास (गुरु मु. ब्रह्म हरिदास, नंदीतटगच्छ); मु. ब्रह्म हरिदास (गुरु मु. ब्रह्म रत्न, नंदीतटगच्छ); मु. ब्रह्म रत्न (गुरु मु. शीलचंद्र महात्मा, नंदीतटगच्छ); मु. शीलचंद्र महात्मा (गुरु मु. सुभंकरसेन महात्मा, नंदीतटगच्छ); मु. सुभंकरसेन महात्मा (गुरु उपा. रत्नभूषण, नंदीतटगच्छ); उपा. रत्नभूषण (गुरु आ. नरेंद्रसेन, नंदीतटगच्छ); आ. नरेंद्रसेन (गुरु आ. कल्याणकीर्ति, नंदीतटगच्छ); आ. कल्याणकीर्ति (गुरु भट्टा. त्रिभुवनकीर्ति, नंदीतटगच्छ); भट्टा. त्रिभुवनकीर्ति (गुरु भट्टा. उदयसेन, नंदीतटगच्छ); भट्टा. उदयसेन (परंपरा आ. रामसेन, नंदीतटगच्छ); राज्ये आ. रामसेन (नंदीतटगच्छ), प्र.ले.प. अतिविस्तृत, प्र.वि. श्रीवासुपूज्य चैत्यालये. ऋषभदेवाय नमः, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे., (२७४१०.५, ९४३२-५०). अनेकार्थध्वनिमंजरी, सं., पद्य, आदि: शुद्धवर्णमनेकार्थं; अंति: भाभानु नुरर्यमा, अधिकार-३, श्लोक-२०१. १२२५८८. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७७४, कार्तिक शुक्ल, १५, मंगलवार, मध्यम, पृ. २३०-४३(५५ से ९७)+१(७)=१८८, ले.स्थल. खदिरपुर नगर, प्रले. मु. चतुरामुनि (गुरु मु. कनकशेखर, अंचलगच्छ); गुपि.मु. कनकशेखर (गुरु मु. गुणिशेखर, अंचलगच्छ); मु. गुणिशेखर (गुरु मु. धर्मशेखर, अंचलगच्छ); मु. धर्मशेखर (गुरु मु. राजशेखर, अंचलगच्छ); मु. राजशेखर (गुरु मु. विवेकशेखर, अंचलगच्छ); मु. विवेकशेखर (गुरु मु. कुरणाशेखर, अंचलगच्छ); मु. कुरणाशेखर (गुरु मु. विनयशेखर, अंचलगच्छ); मु. विनयशेखर (गुरु मु. भाववर्द्धनसूरि, अंचलगच्छ); मु. भाववर्द्धनसूरि (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. हुंडी:ज्ञातासूत्र., ज्ञाता०. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (४८२) भग्न पुष्टी कटी ग्रीवा, जैदे., (२७.५४११.५, ७४४५-५९). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समएणं; अंति: धम्मकहासुयखंधो समत्तो, अध्ययन-१९, (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ मेघमुनि कथा के अंतिम कुछेक अंश से अध्ययन-८ महाबलराजा दीक्षा प्रसंग अपूर्ण तक का पाठांश नहीं है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तेणइ समय ते घडी वेला दीठो; अंति: सरीखो बीजउ संपूर्ण कहिउ. १२२५९० (+#) पांडव रास, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ११४-४१(१,७,१६ से १८,२३ से २६,२८ से ३१,३३ से ३७,३९ से ४३,५०,५७ से ७१,७५,८८)=७३, पृ.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र.वि. हुंडी:ढालसा., खडा लेखन-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५,१६x४६). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ के दूहा-१९ अपूर्ण से ढाल-१४८ गाथा-५ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२२५९३. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१९-१८(१ से १८)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७.५४११, ५४४८). For Private and Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-७ गाथा-२६ अपूर्ण से अध्ययन-८ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२२५९४. (#) दंडक प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४११.५, ८४३०). दंडक प्रकरण, म. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: (-), (प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३३ अपूर्ण से है व गाथा-३८ अपूर्ण तक लिखा है.) १२२५९५. अनुयोगद्वारसूत्र-सूत्र १४, १५ व ३२३ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९६०, भाद्रपद कृष्ण, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, ले.स्थल. लावा, प्रले. माणेकचंद कुंवरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अनुजोगधार., दे., (२७४११, ४४३३). अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. सूत्र-१४ अपूर्ण से है.) अनुयोगद्वारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. १२२५९८ (+) पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १८७७, वैशाख शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. केसरविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:हिवराणी पद्मावती., संशोधित.,प्र.ले.श्लो. (१२६७) जिहा लग मेरू अडग है, जैदे., (२६.५४११, १३४३५). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पद्मावती; अंति: कहे पापथी छुटे ततकाल, ढाल-३, गाथा-३५. १२२६०१ (+) सतरिसयठाणं, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०, १८४६१). सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३८७, आदि: सिरिरिसहाइ जिणिंदे; अंति: जाइ सो सिद्धिठाणे, गाथा-३५९. १२२६०४ (+) चैत्यवंदनसूत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १५९१, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. उपा. कनकतिलक (गुरु उपा. क्षेमराज, खरतरगच्छ-खेमकीर्तिशाखा); गुपि. उपा. क्षेमराज (गुरु मु. सोमकीर्ति, खरतरगच्छ-खेमकीर्तिशाखा); राज्ये गच्छाधिपति जिनमाणिक्यसूरि (खरतरगच्छ); अन्य. पं. उदयलाभ (गुरु उपा. धर्मविशाल गणि); गुपि. उपा. धर्मविशाल गणि (गुरु उपा. ज्ञानसिंह गणि); उपा. ज्ञानसिंह गणि (गुरु ग. ज्ञानकुशल); ग. ज्ञानकुशल (गुरु आ. जिनराजसूरि); आ. जिनराजसूरि; अन्य. गच्छाधिपति जिनरत्नसूरि; पं. महिमाकुशल; आ. उदयसागरसूरि; श्राव. प्राणसुख; श्राव. नैणसुख; श्राव. मयाचंद; श्राव. रुघनाथ, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. हुंडी:चैत्यवंदनवृत्तिललितविस्तरा. अंत में "सं०१७५४ मिती चैत्र वदि २ बुधे" ऐसी परवर्तीकाल में लिखित प्रतिलेखन पुष्पिका मिलती है., संशोधित. कुल ग्रं. १२७०, जैदे., (२७४११, २२४७५). चैत्यवंदनसूत्र-ललितविस्तरा वृत्ति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य भुवनालोकं; अंति: मात्सर्यविरहः परः, ग्रं. १५४५. १२२६०५ (#) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र-अष्टमपर्व, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ९७, अन्य. ग. पद्मकीर्ति, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ४७००, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७.५४११.५, १६x६१). त्रिषष्टिशलाकापरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण, १२२६०६ (+) चंदराजा रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६७, पठ. सा. पनाजी (गुरु सा. गुलाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चं०रा०., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१०.५, १०४३४-३७). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: वर्णव्या गुणचंदना, उल्लास-४, गाथा-२६७९, (वि. ढाल-१०८.) १२२६०७. आदिजिन चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-५(१ से ५)=४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (३७.५४११.५, १४४३९). आदिजिन चौपाई, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. विनीतानगरी स्थापना, इन्द्र द्वारा प्रभुविवाह प्रसंग गाथा-३३ अपूर्ण से मरुदेवा निर्वाण प्रसंग बाद भरत चक्री द्वारा आदिजिन वंदना प्रसंग गाथा-५३ अपूर्ण तक है.) १२२६०८. (#) निरयावलिकासूत्र, संपूर्ण, वि. १७५२, कार्तिक कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. २५, कुल पे. ५, प्र.वि. हुंडी:निराव०सू., कुल ग्रं.११७९, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४११,१४४४८). For Private and Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १. पे. नाम, कल्पिकासूत्र, पृ. १आ-१०आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंति: अयमढे पण्णत्ते. २. पे. नाम. कल्पावसंतिकासूत्र, पृ. १०आ-११आ, संपूर्ण. कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंति: महाविदेहे सिद्धे. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. ११आ-२१आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए. ४. पे. नाम, पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. २१आ-२३अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वासे सिज्झिहिंति. ५. पे. नाम. वृष्णिदशा, पृ. २३अ-२५आ, संपूर्ण.. वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंति: मइरित्त एक्कारसम वि. १२२६०९ (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र चयनित शब्द सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १५४५०-५८). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-चयनित शब्द, प्रा., गद्य, आदि: बल०रूप०बंभ०नय०नियम०; अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१५ तक है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-चयनित शब्द का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: इ०ताना प्रजा अध्येन पहिला; अंति: (-). १२२६१० (+) महावीरजिन स्तुति सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६५८, वैशाख कृष्ण, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. देवा मुंहता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. ४२.२२, जैदे., (२५.५४११, १७४५७). महावीरजिन स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वर्द्धमानाय; अंति: मयि विस्तरो गिरां, श्लोक-३. महावीरजिन स्तुति-अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५३, आदि: नमो वर्धमानाय नमोस्तु; अंति: तीय वृत्तीक्षरार्थः. १२२६११. साधारणजिन स्तुति सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. नवानगर, प्रले. मु. धनचंद (गुरु ग. शांतिचंद); गुपि.ग. शांतिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४१०, १७४५७). साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजः पदपद्मसेवा; अंति: प्रभावदाता ददतां शिवं वः, श्लोक-१. साधारणजिन स्तुति-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तीर्थस्य राजा तीर्थ; अंति: दृष्टित्वं सूचितं. १२२६१२ (+#) विशाललोचनदल स्तुति सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६५३, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. देवा मुंहता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. कुल ग्रं. ४२.११, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १७७५७). विशाललोचनदल स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: विशाललोचनदलं; अंति: नौमि बुधैर्नमस्कृतम्, श्लोक-३. विशाललोचनदल स्तुति-अवचरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, आदि: विशाल० वीर जिनेंद्रस्य; अंति: तृतीयवृत्ताक्षरार्थं. १२२६१४. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह अवचूरि व बीजक, संपूर्ण, वि. १६७१, कार्तिक शुक्ल, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. २८२, कुल पे. २, प्रले. भट्टा. सदारंग; राज्यकालरा. सलेम साह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. कुल ग्रं. १४०००, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५४११, १५४५१-६२). १. पे. नाम, उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, पृ. १आ-२८०अ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: संबुडे त्ति बेमि, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००. उत्तराध्ययनसूत्र-सखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदि: प्रणम्य विघ्नसंघात; अंति: वृत्तेरस्या विनिश्चितम्, ग्रं. १२०००. २.पे. नाम, उत्तराध्ययनसूत्र का बीजक, पृ. २८०आ-२८२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र-बीजक, मा.गु., गद्य, आदि: विनीताध्ययने नमस्कारः; अंति: जीव विभत्तिअ ३६ गाथा २६७. १२२६१५ (+) वनस्पतिसप्ततिका सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, १८४६३). वनस्पतिसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उसभाइ जिणिंदे पत्तेय; अंति: मुणिचंदसूरिहिं, गाथा-७१. वनस्पतिसप्ततिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: उसभेत्यादि २४ जिनान्; अंतिः विवर्णमानः प्रत्येकः. १२२६१६ (+) स्तुतिचतुर्विंशतिका पंचदशी, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४-१(१)=१३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:स्तवन., प्रायः शुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४११, १५४५६). स्तुतिचतुर्विंशतिका पंचदशी-अतिशयगर्भित, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प.वि. आदिजिन स्तुति श्लोक-१४ अपूर्ण से प्रशस्तिश्लोक-२ अपूर्ण तक है.) १२२६१८. (#) चंद्रराजा रास, संपूर्ण, वि. १७८५ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ६२, ले.स्थल. भटनेरकोट, प्रले. पं. भीमचंद पंडित (गुरु पं. मुक्तिचंद्र पंडित, तपागच्छ); गुपि. ग. रूपचंद्र (गुरु पं. लाभचंद पंडित, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ३०५१, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १५४४६-६०). चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: श्रीजिननायक समरीइं; अंति: लाभे लील विलासा रे, खंड-६, गाथा-२२६२, ग्रं. ३०५५, (वि. ढाल-९९.) १२२६२० (+#) १२ व्रत कथानक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६४११, १५४४७). १२ व्रत कथानक, मा.गु., गद्य, आदि: जयपुर नगर शत्रुजय राजा; अंति: (-), (पू.वि. व्रत-३ की कथा अपूर्ण से व्रत-६ की _कथा अपूर्ण तक व व्रत-७ की कथा अपूर्ण से नहीं है.) १२२६२१. (+) बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३-१(१)=२२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११.५, ११४३५). बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३७३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., गाथा-१५ अपूर्ण से ३६७ अपूर्ण तक है.) १२२६२२. पंचनिग्रंथ गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, १२४३७). ५निग्रंथ गीत, आ. भावहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरइ वचन प्रकासिउ हे भगवइ; अंति: जिम सुखलहउ विसाल, गाथा-१३. १२२६२३. चतःशरणप्रकीर्णक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. हंडी:चउसर०वा०., जैदे., (२६४११, ११४३५-३८). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलु छ आवश्यकनां; अंति: इं मुक्तिनां सुख लहइ, ग्रं. ३४७. १२२६२५. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६७-६३(१ से ५८,६० से ६२,६४,६६)=४, प्र.वि. हुंडी:दशवै०., संशोधित., जैदे., (२७४११.५, ६४३२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., अध्ययन-९ उद्देशो-१ गाथा-१ अपूर्ण से ८ अपूर्ण तक, अध्ययन-९ उद्देशो-२ गाथा-१३ अपूर्ण से २२ अपूर्ण तक, अध्ययन-९ उद्देशो-३ गाथा-५ अपूर्ण से ११ अपूर्ण तक व अध्ययन-९ उद्देशो-९ सूत्रपाठ-"तंजहा विमयसमाही १ सुयसमाही २ तवसमाही ३ आयारसमाही" से "चउविहा खलु तवसमाही भव" तक है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. १२२६२७. (+) श्रावक आलोयणा प्रायश्चित विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १३४४९). श्रावक आलोयणा प्रायश्चित विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: एकवार आलोअण लीधा पछी; अंति: उववास असीइसयं १०, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२२६३० (+) रोहिणी स्तवन व धन्ना अणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ३, कुल पे. २, ले. स्थल. विक्रमपुर, पठ. श्रावि. केसीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., , जैवे. (२६११.५, ११४४४). १. पे. नाम. रोहिणी स्तवन, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२० आदि सासणदेवत सामिणी मुझ; अंति: हिव सकल मन आस्या फली, ढाल ४, गाथा-२६. २. पे. नाम. धन्नाअणगार स्वाध्याय, पृ. ३आ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, मु. वीरमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन धन्नो मुनिवरु; अंति: उदयसागर तणों वंदे वीरमसीस, गाधा ८. १२२६३१ (+) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पू. ४-२ (१ से २) २, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित, जैये. (२६×११.५, १४४४३). श्रीपाल रास- लघु. मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १५३१, आदि (-) अति (-) (पू.वि. गाथा ३९ अपूर्ण से गाथा ८८ अपूर्ण तक है ) १२२६३२. (+) प्रास्ताविक छूटक पद कवित्तादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे १२, प्र. वि. हुंडी प्रस्ताविक प०, संशोधित., जैदे., (२६X११, १५X४१). १. पे. नाम औपदेशिक पद. पू. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद- जुवात्याग, मु. धर्मसिंह, पुहि, पद्य, आदि हाथ घसै अरु आथ नसै जु वसै; अति धर्मसीह० चूक रमो मत जूआ, गाथा १. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. क. बनारसीदास, पु.ि, पद्य, आदि भेद विम्यांन जग्यी; अंति करजोरि बनारसी वंदन, पद- ३. पे. नाम नेमिजिन विनती पद, पृ. १अ संपूर्ण. मिजिन पद, मु. धर्मसिंह, पुहि., पद्य, आदि प्रगटा विकटा उमटा विघटा अंतिः वात कहा भ्रमसीलन की गाथा ३. ४. पे. नाम. आदिजिन पद, पू. १अ, संपूर्ण. मु. धर्मसिंह, पु,ि पद्य, आदि नमो नितमैव सजो सुत सेव; अंति: प्रमसीह० आदिजिनंद नमै हरसे, गाथा-३. ५. पे नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ संपूर्ण. मु. धर्मसिंह, पुहिं., पद्य, आदि: तुं उपगार करे जु अपार; अंति: धमसीह० संघको आदि जिणंदा, गाथा-३. ६. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. जिनहर्ष, पु.ि, पद्म, आदि कंचन गात सुहातइ मूरत अति जिनहर्ष० निरंजण सिद्ध लवौ, गाथा-३. " ७. पे. नाम, द्रव्यप्रभाव सवैया, , पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. ३१५ मु. धर्मसीह, पुहिं., पद्य, आदि ईहत है जिनकु सबही अंति भ्रमसी० गांठ रुपैया, गाथा- १. ८. पे. नाम औपदेशिक पद पू. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-लालचपरिहार, मा.गु., पद्य, आदि : आकरे खरे खजाने केइ दिल्ली; अंति: भइयै कैसे दैणी जात है, गाथा - १. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-चाकरी, मु. खेम, पुहिं., पद्य, आदि: बोलन बोल बुलावत मान की; अंति: खेम कहै० जाकी चा कैसी, गाथा - १. १०. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त-चाकरी, मु. खेम पुहिं, पद्य, आदि जो अपनो गुन नेक यसै वीस अंति: खेम० करे ताकी चाकरी कीजै, पद-१. 2 ११. पे नाम, नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसुंदर, पुहिं., पद्य, आदि: लाल घोडो लाल पाघ लाल; अंति: लाल जाने मेरो सामरि, पद-२. For Private and Personal Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३१६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२. पे नाम, पार्श्वजिन सवैया, पृ. १आ, पूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जै.क. बनारसीदास, पु.ि, पद्य, वि. १७वी, आदि जिनके वचन अ धार जुगल; अति: (-), (पू.वि. अंत के कुछ अक्षर नहीं है.) " १२२६३३. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ६-४ (१ से ४)=२, कुल पे ६, जैदे. (२६४११.५, १५४३६). १. पे. नाम. ब्रह्मचर्यपालने नवडिनी सज्झाय, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. ब्रह्मचर्य सज्झाय, मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: केसर परमाणंद हो, गाथा-७, (पू. वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम क्रोध स्वाध्याय पू. ५अ संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध न करिये भोला अति उपसम आणी पासे रे, गाथा- ९. ३. पे. नाम. मानपरिहार स्वाध्याय, पृ. ५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झायमानपरिहार, पंडित, भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि अभिमान न करस्थो कोई अंतिः भावसागर ० चोमासे हो, गाथा ८. ४. पे नाम, माया परिहार स्वाध्याय, पू. ५आ- ६अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: माया मूल संसारनो माय; अंति: भावसागर ० निरवाण हो, गाथा- ७. ५. पे. नाम. लोभ परिहार स्वाध्याय, पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करीये प्राणीया; अंति: भावसागर० सयल जगीस रे, गाथा-८. ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६आ, , संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-अनंतकायत्यागे, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अनंतकायना दोष अनंता; अंति: भावसागर आनंदा रे, गाथा- १२. १२२६३४. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. हुंडी, श्रीपाल रास., दे., । १०x३२). श्रीपाल रास, मा.गु., पद्य, आदि सहिकार सम चोवीसने नमः अति: (-), (पू.वि. गावा-८ अपूर्ण तक है.) १२२६३५. (+) भगवतीसूत्र - शतक - २, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६-५ (१ से ५ ) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२६४११, १३४५४). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. शतक - २, उद्देश - १, सूत्र- ११४ अपूर्ण से सूत्र - ११६ अपूर्ण तक है.) (२६.५X११.५, १२२६३६. अनुयोगद्वारसूत्र की अवचूरि, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४०, प्र. वि. हुंडी अनुयोगद्वार, प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२७X११, १७६५). अनुयोगद्वारसूत्र-अवचूरि*, सं., गद्य, आदि: जिनवचनेहिं आचारांगादि; अंति: सव्वं नीसंकंजझिणेहि पवइयं, (वि. मूल का प्रतीक पाठ दिया है.) १२२६३७ (+) २३ पदवी विस्तार, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले श्रावि, राजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी. पदवी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६X११, १६x४३ ). २३ पदवी विचार, मा.गु, गद्य, आदि १ तीर्थंकर ३४ अतिशय ३५ अंति: पिंडत हुवै ते विचार कीजो. १२२६४१. (+४) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैये., (२५.५X११, १३४४१). For Private and Personal Use Only गौतमस्वामी रास, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर चरण कमल, अति वृद्धि कल्याण करो, ढाल-६, गाथा-४५. १२२६४२. गुरुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७१२, १३X२८). Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org ३१७ गुरुगुण सज्झाय, मु. रायचंदजी ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १८४०, आदि: गुर इमरत रस जीम लागै; अंति: तारो भोसागर थकी बेगो काटो, गाथा - १७. 3 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२२६४३. (०) व्याख्यान पीठिका, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४.५४११.५, १३४४३). " कल्पसूत्र व्याख्यान पीठिका, संबद्ध, मा.गु., सं., प+ग, आदि: अशरणशरण भवभयहरण; अंति: करीने तुह्ये सांभलो. १२२६४४. (+#) विक्रमराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८१९, पौष शुक्ल २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ८९, ले. स्थल. गिरिपुर, प्रले. ग. ज्योतिसुंदर (गुरु ग. मांनसुंदर, बृहत्तपागच्छ); गुपि. ग. मांनसुंदर (गुरु उपा. कांतिसुंदर, बृहत्तपागच्छ); उपा. कांतिसुंदर (गुरु ग. सहजसुंदर, बृहत्तपागच्छ); ग. सहजसुंदर (गुरु ग. विवेकसुंदर, बृहत्तपागच्छ); ग. विवेकसुंदर (गुरु ग. रत्नसुंदर, बृहत्तपागच्छ); ग. रत्नसुंदर (गुरु ग. जयसुंदर, बृहत्तपागच्छ); ग. जयसुंदर (गुरु ग. लावण्यरत्न, बृहत्तपागच्छ); ग. लावण्यरत्न (गुरु आ. तेजरत्नसूरि भट्टारक, बृहत्तपागच्छ); आ. तेजरत्नसूरि भट्टारक (बृहत्तपागच्छ); राज्यकाल रा. शिवसिंह (पिता रा. कुमार लाला); गुपि. रा. कुमार लाला, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र. वि. हुंडी पंचदंडचोपई., संशोधित कुल ग्रं. ३२१२, मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले. लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, (५६०) जलात् रक्षेत् थलात् रक्षे, (१४९०) लिखितमिदमगम्यं बुद्धिमाश्रित्यधीष्टि्रयात्, (१४९२) शास्त्रेषु निश्चलधिया परिचिंतनीय, जैदे., (२६×११, १३x४४-५५). विक्रमराजा चौपाई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: प्रणमु पासजिणंद पय; अंति: अहनिस उछवरंग बधाइ, खंड ६, गाथा- ३२१२ (वि. ढाल ७५.) १२२६४५. जंबूस्वामी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३७, प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैवे. (२८x११, ९३८). जंबूस्वामी कथा, पंडित. जिनदास ब्रह्मचारी, पुहिं., पद्य, वि. १६४२, आदि: प्रथम श्रीपंचपरमेष्ठि नमौ; अंति: जिणदास ० वंछित फल पावै सोइ, गाथा- ४८५. १२२६४७ (+४) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ८४ १४(१ से १४ ) =७०, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी ज्ञाताधर्मकथासूत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैवे., (२९x११.५, १३X५८). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध १ अध्ययन १ अपूर्ण से श्रुतस्कंध ९ अध्ययन १४ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२२६४९ (+) तत्वार्थाधिगमसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १७८५, वैशाख शुक्ल, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. २२९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ले.स्थल. कालाडहरा, राज्यकाल सवाई जयसिंह महाराज; अन्य. श्रावि. नानगीबाई; श्रावि. वदीबाई; श्रावि. सदाबाई (माता श्राव. अजबराम माधवदास); श्राव. विजयचंद राजाराम; श्राव. कालूराम राजाराम; श्राव. चंद्रभाण राजाराम (पिता श्राव. राजाराम अजबराम); श्राव. राजाराम अजबराम; श्राव. दयाराम अजबराम; श्राव. सेवाराम अजबराम; श्रावि. अजायबदे अजबराम (पति श्राव. अजबराम माधवदास); श्राव. अजबराम माधवदास (पिता श्राव. माधवदास रूपसी); श्राव. रामकिशन काशीराम (पिता श्राव. काशीराम लूणकरण); श्राव. काशीराम लूणकरण (पिता श्राव. लूणकरण माधवदास); श्राव. सवाइराम कृपाराम; श्राव. बकसराम कृपाराम (पिता श्राव. कृपाराम लूणकरण); श्राव. कृपाराम लूणकरण; श्रावि. ललितादे लूणकरण (पति श्राव. लूणकरण माधवदास); श्राव. लूणकरण माधवदास (पिता श्राव. माधवदास रूपसी); श्राव. ऋषभदास फतेचंद; श्राव. आनंदराम फतेचंद; श्राव. शंभुराम फतेचंद (पिता श्राव. फतेचंद खीवसी); श्राव. फतेचंद खीवसी; श्राव. रायमल्ल खीवसी; श्रावि. खीमतादे खीवसी (पति श्राव. खीवसी माधवदास); श्राव. खीवसी माधवदास; श्रावि. मनसुखदे माधवदास (पति श्राव. माधवदास रूपसी); श्राव. माधवदास रूपसी; श्राव. जीतमल रूपसी; श्राव. डालूराम रूपसी; श्राव. जसकरण रूपसी; श्राव. आसकरण रूपसी; श्रावि. सरूपदे रूपसी (पति श्राव. रूपसी खंडेलवाल); श्राव. रूपसी खंडेलवाल; पंडित. मलूकचंद्र; गुभा. पंडित. अक्षयराम (परंपरा आ. अनंतकीर्ति); गुपि. आ. अनंतकीर्ति (परंपरा आ. महेंद्रकीर्ति, सरस्वतीगच्छ-मूलसंघ-बलात्कारगण); आ. महेंद्रकीर्ति (परंपरा आ. विद्यानंदि, सरस्वतीगच्छ-मूलसंघ-बलात्कारगण); आ. विद्यानंदि (परंपरा मु. रत्नकीर्ति, सरस्वतीगच्छ-मूलसंघ-बलात्कारगण); मु. रत्नकीर्ति (गुरु आ. जिनचंद्रदेव, सरस्वतीगच्छ-मूलसंघ-बलात्कारगण); आ. जिनचंद्रदेव (गुरु आ. शुभचंद्रदेव, सरस्वतीगच्छ-मूलसंघ-बलात्कारगण), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. श्रीऋषभादि चैत्यालये., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२९४११.५, १२४५३). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: सम्यग्दर्शनज्ञान; अंति: बहुतत्त्वतः साध्याः, अध्याय-१०, संपूर्ण. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-श्रुतसागरी टीका , आ. श्रुतसागरसूरि, सं., गद्य, आदि: सिद्धोमास्वामि; अंति: टीकायां दशमोध्यायः, संपूर्ण. १२२६५० (+) समाधिशतक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१४-२०७(१ से १५४,१५६ से १५७,१५९,१६२ से २०५,२०७ से २१२)=७, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. हुंडी;समाधितं०., संशोधित., जैदे., (२७.५४११.५, ९४३६). समाधिशतक, आ. देवनंदी, सं., पद्य, ई. ५वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१०१ से १०३ अपूर्ण तक है व बीच-बीच का पाठांश नहीं है.) समाधिशतक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२२६५१ (+) सीयलनी नववाड सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:नववाडपत्र., संशोधित., दे., (२७.५४१२, १३४३९-४२). नववाड सीयलवेल, श्राव. मकन, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: श्रीसरसति समरु सदा पांमी; अंति: (-), ___(पू.वि. कलशढाल-१० गाथा-११ अपूर्ण तक है.) । १२२६५२. (+) आठ कर्मप्रकृति ग्यारह द्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८.५४१२, १३४४४). ८ कर्मप्रकृति ११द्वार विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पन्नवणा पद २३ मि बीजे; अंति: १३ में १४ में ४ कर्मवेदें. १२२६५३. मुहपत्ति स्थापनादि विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक १ है, परन्तु विषय की अपूर्णता के आधार पर पत्रांक अनुमानित दिया गया है., जैदे., (२७.५४१२, १५४५०). महपत्ति स्थापनादि विचार, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. इरियावही पूर्व मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन विवरण अपूर्ण से स्थापनाचार्य विषये विशेषावश्यक संदर्भ तक है.) १२२६५५. पोषदशमी कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.८-१(१)=७, ले.स्थल. लुणावा, प्रले. म्. दोलतविजय; पठ. सा. हर्षश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पोसदशम., दे., (२७.५४१२, ११४३५). पोषदशमी कथा, आ. हेमाचार्य, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: ए दशमीनी कथा आणी छइ, (पू.वि. चोर और राजा के वार्तालापप्रसंग अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ३१९ १२२६५६. (#) कल्पसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४३-४२(१ से ४२)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:पत्रंजाः., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२, १७४४९). कल्पसूत्र-टीका *, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. महावीरजिन चरित्रे देवदूष्य प्रसंग अपूर्ण से चंडकौशिक प्रसंग अपूर्ण तक है.) १२२६५७. (#) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र-सप्तमपर्व, संपूर्ण, वि. १८२३, चैत्र कृष्ण, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. १७१, ले.स्थल. मकसुदाबाद, प्र.वि. कुल ग्रं. ४०००, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२, १३४२८). त्रिषष्टिशलाकापरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण १२२६५८. (+) पाक्षिकसूत्र व चौदह श्रावक भेद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:पाक्षि०., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (५६) यादृशं पुस्तकं दष्टं, जैदे., (२७.५४१२, ११४३७). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-१२आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: अन्नाणमोह दलणी जणणी; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. चौदह श्रावक भेद, पृ. १२आ, संपूर्ण. १४ श्रावकभेद श्लोक, सं., पद्य, आदि: मृत्१ चालनी२ महिष३; अंति: भवंति ज्ञेयाः. १२२६५९ (+) बासठ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पत्र १=१४८., खडा लेखन-संशोधित., जैदे., (२८.५४१२, ३३४१५). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: देवगति मनुष्यगति; अंति: असन्नी आहारक अणाहारी. १२२६६१ (#) ३४ अतिशय विचार, महावीरजिन २७ भव विचार व विविधबोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४४, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक नहीं है व अस्तव्यस्त पत्र., खडा लेखन. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८x११, ९४४१). १.पे. नाम, ३४ अतिशय विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ केश मंस नख रोम वाधि नही; अंति: (-). २. पे. नाम. महावीरजिन २७ भव विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: १ नयसार प्रधान ८४ लाख; अंति: सिद्धार्थग्रहे श्रीमहावीर. ३. पे. नाम. विविधबोल संग्रह, पृ. २अ-४४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आदिनाथनी प्रथम देशनाइ ५००; अंति: (-). १२२६६२ (+#) पद्मचरित्र चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हंडी:सीताचउ०., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५४११.५, १७४५२). पद्मचरित्र चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: पवर सुहंकर जिण नमी; अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-५ गाथा-४८५ अपूर्ण तक है.) १२२६६५ (+) पांडव रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:ढालसागर., संशोधित., जैदे., (२८.५४११,१७४४८). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: श्रीजिन आदिजिनेश्वरू: अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३९१७ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२२६६६. (+) रायमल्लाभ्युदय महाकाव्य, अपूर्ण, वि. १६१५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. ९२-१७(२१ से २२,२५ से २९,४२ से ४४,५७ से ५९,६७,७९ से ८०,८७)=७५, प्रले. तोता; राज्यकालरा. अकबर; अन्य. आ. कुमारसेनदेव मंडलाचार्य (गुरु आ. भानुकीर्त्तिदेव भट्टारक); गुपि. आ. भानुकीर्तिदेव भट्टारक (गुरु आ. गुणभद्रसूरिदेव भट्टारक); आ. गुणभद्रसूरिदेव भट्टारक (गुरु आ. मलयकीर्तिदेव); आ. मलयकीर्त्तिदेव (गुरु आ. यशःकीर्तिदेव भट्टारक); आ. यशःकीर्तिदेव भट्टारक (गुरु आ. गुणकीर्त्तिदेव भट्टारक); आ. गुणकीर्तिदेव भट्टारक (गुरु आ. सहस्रकीर्तिदेव भट्टारक); आ. सहस्रकीर्तिदेव भट्टारक (गुरु आ. भावसेनदेव भट्टारक); आ. भावसेनदेव भट्टारक (गुरु आ. धर्मसेनदेव भट्टारक); आ. धर्मसेनदेव भट्टारक (गुरु आ. विमलसेन भट्टारक); आ. विमलसेन भट्टारक (गुरु आ. देवसेन भट्टारक); आ. देवसेन भट्टारक (गुरु आ. उद्धरसेन भट्टारक); आ. उद्धरसेन भट्टारक; लिख. श्राव. रायमल्ल नानू चौधरी (पिता श्राव. नानू नरसिंह चौधरी); गुपि. श्राव. नानू नरसिंह चौधरी (पिता श्राव. नरसिंह मानू चौधरी); श्राव. नरसिंह मानू चौधरी; श्राव. हाल्हा मानू चौधरी; श्राव. छुटण मानू चौधरी; श्राव. नरपाल मानू चौधरी; श्राव. भोजा मानू चौधरी; श्रावि. छाजु मानू चौधरी (पति श्राव. मानू चौधरी); श्राव. मानू चौधरी; श्रावि. मदनाही नरसिंह चौधरी (पति श्राव. नरसिंह मान चौधरी); श्रावि. उढरही नानू चौधरी (पति श्राव. नानू नरसिंह चौधरी); श्रावि. उधाही रायमल्ल चौधरी; श्रावि. मीनाही रायमल्ल चौधरी; श्राव. अमीचंद रायमल्ल चौधरी (पिता श्राव. रायमल्ल नानू चौधरी); श्रावि. जेठमलाही अमीचंद चौधरी (पति श्राव. अमीचंद रायमल्ल चौधरी); श्राव. उदयसिंह रायमल्ल चौधरी; श्राव. शालिवाहन रायमल्ल चौधरी; श्राव. अनंतदास रायमल्ल चौधरी (पिता श्राव. रायमल्ल नानू चौधरी); श्राव. भवानीदास नानू चौधरी (पिता श्राव. नानू नरसिंह चौधरी); श्रावि. माणिकही भवानीदास चौधरी (पति श्राव. भवानीदास नानू चौधरी); श्राव. कुलचंद नरसिंह चौधरी; श्राव. सहणपाल नरसिंह चौधरी (पिता श्राव. नरसिंह मानू चौधरी); श्रावि. गाल्हाही सहणपाल चौधरी; श्रावि. रामाही सहणपाल चौधरी; श्राव. सुखमल सहणपाल चौधरी (पिता श्राव. सहणपाल नरसिंह चौधरी); श्रावि. पोल्हणही सुखमल चौधरी (पति श्राव. सुखमल सहणपाल चौधरी); श्राव. पहाडमल सहणपाल चौधरी; श्राव. जसमल सहणपाल चौधरी (पिता श्राव. सहणपाल नरसिंह चौधरी), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. हुंडी:रायमलकाव्य. रचनाप्रेरक एवं प्रत लिखवानेवाला दोनो एक ही व्यक्ति है तथा इनके नाम से ही यह प्रत-कृति है. संभवतः यह प्रत विशिष्ट कोटि की आदर्श प्रति होनी चाहिए., संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., प्र.ले.श्लो. (७२९) संकोडी करचरणं, जैदे., (२८.५४१२, १२४५३). रायमल्लाभ्युदय महाकाव्य, मु. पद्मसुंदर कवि, सं., पद्य, वि. १६१५, आदि: स श्रीमान्नाभिसूनुर्विलसद; अंति: पद्मसुंदर० रायमल्लाह्वयः, सर्ग-२५, (पू.वि. सर्ग-४ श्लोक-२४ अपूर्ण से ९१ अपूर्ण, श्लोक-१५२ अपूर्ण से श्लोक-२०८ अपूर्ण, सर्ग-८ श्लोक-८४ अपूर्ण से सर्ग-९ श्लोक-४४ अपूर्ण, सर्ग-१५ श्लोक-११७ अपूर्ण से सर्ग-१६ श्लोक-५२ अपूर्ण, सर्ग-१७ श्लोक-१२६ अपूर्ण से सर्ग-१८ श्लोक-२४ अपूर्ण, सर्ग-२४ श्लोक-३० अपूर्ण से श्लोक-९३ अपूर्ण व सर्ग-२५ श्लोक-१६८ अपूर्ण से २३० अपूर्ण तक नहीं है.) १२२६६७. (+#) सिद्धहेमशब्दानुशासन, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ.८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८x११.५, १६४६४). सिद्धहेमशब्दानशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: अह सिद्धिः स्याद्वादात; अंति: (-), (पू.वि. अध्याय ४ के पाद-४ तक है.) १२२६६८. (+) बृहत्संग्रहणी की अवचूर्णी, संपूर्ण, वि. १४८५, भाद्रपद शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. कडाग्राम, प्रले.ग. तिलकदेव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, २३४९१). बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: तिष्ठति नारक तिर्यग्नरा; अंति: वेदाश्च प्रागुक्ताः, (वि. मूल का प्रतीकपाठ दिया है.) १२२६६९ (+) षडशीति प्रकरणं, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. शिवनिधान (गुरु मु. हर्षसार, खरतरगच्छ); गुपि. मु. हर्षसार (खरतरगच्छ); पठ. श्रावि. इंद्राबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४४५). षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ-४, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: निच्छिन्नमोहपास; अंति: सुणंतु गुणंतु जाणंतु, गाथा-८९. १२२६७०. (+) नवकारमंत्र चोपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. सारंगधर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ११४४७). For Private and Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ नमस्कारमहामंत्र चौपाई, म. गणनिधान-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतिदेवी पय पणमेवी सेवक; अंति: बेकरजोडी बोलइ सीस, गाथा-७९. १२२६७१. चेडाराजा सात पत्री नाम व सिद्धपद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १२४४६). १.पे. नाम. चेडा महाराजनी ७ पुत्री नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. __ चेटकराजा ७ पुत्री नाम, मा.गु., गद्य, आदि: उदाई राजानें प्रभावती; अंति: सुजेष्टा कुंवारी ७. २.पे. नाम. सिद्धपद स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जगतभूषण विगतदूषण प्रणव; अंति: नमो सिद्ध निरंजनं, गाथा-१३. १२२६७२. (#) २८ लब्धि यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र खंडित है., खडा लेखन. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४११.५, २०४१३). २८ लब्धि यंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२२६७३. (+) सूत्रकृतांगसूत्र व जीवाभिगमसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३५+१(१९)=३६, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३५). १. पे. नाम. सूत्रकृतांगसूत्र- श्रुतस्कंध १, पृ. १आ-३५अ, संपूर्ण, वि. १७३५, कार्तिक कृष्ण, १४, शुक्रवार, ले.स्थल. रोहीडाग्राम, प्रले. मु. विरधाजी ऋषि (गुरु मु. खेतसी ऋषि); गुपि. मु. खेतसी ऋषि (गुरु मु. गोपाल ऋषि); मु. गोपाल ऋषि (गुरु मु. लालजी ऋषि); ग. वरसिंग गणि, प्र.ले.पु. मध्यम. सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. जीवाभिगमसूत्र- कुलकोडि आलापक, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण. जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. ४७५०, प्रतिपूर्ण. १२२६७४. उपदेशमाला- कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२६४११, १६x४२). उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: आ जंबूद्वीप नामा; अंति: कीधी पछै सर्वे प्रवर्ति. १२२६७५. भक्तामर स्तोत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, जैदे., (२७४११.५, १३४३७). भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: किल इति सत्ये; अंति: समुपैति आवइ, (वि. मूल का प्रतीक पाठ दिया है.) १२२६७६ (+) संग्रहणी यंत्र, संपूर्ण, वि. १५३५, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ५४७५). बृहत्संग्रहणी-यंत्र, मा.गु., को., आदि: देवता नारकी मनुष्य; अंति: (-). १२२६७७. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. सा. सौभाग्यश्रीजी (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, ११४३३). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: अनंतसिद्धने करूं; अंति: अमृतपदना थाओ धणी, गाथा-११. १२२६७८. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १६x४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. स्वप्न-४ लक्ष्मीदेवीवर्णन अपूर्ण से स्वप्न-९ ___ कलश वर्णन अपूर्ण तक है.) । १२२६७९ (#) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, संपूर्ण, वि. १८६२, फाल्गुन शुक्ल, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १०४३८). पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: पास संखेसरो आप तूठा, गाथा-७. १२२६८०. बारव्रत अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, जैदे., (२५.५४११, १३४३८). १२४ अतिचार विचार-श्रावकव्रत, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., विनयहीन, बहुमानहीण, उपधानहीनादिवर्णन अपूर्ण से सामायिक पालन न करने संबंधी वर्णन अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२२६८१ (+) राजसिंहकुंवर कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, अन्य. पं. विजयपाल ऋषि; मु. नानचंद ऋषि (गुरु मु. स्वामजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:राजसींहकुमरक०., संशोधित., दे., (२६.५४११.५, १५४३८). राजसिंहकुंवर कथा, मा.गु., गद्य, आदि: पृथ्वी रुपणी स्त्रीनु; अंति: नोकार सदाइं सुखनो आपनार. १२२६८२. नवतत्त्व चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८, प्र.वि. कुल ग्रं. १३५०, जैदे., (२६.५४११.५, ११४४१). नवतत्त्व चौपाई, मु. भावसागरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १५७५, आदि: आदि नमी आणंदहपूरि; अंति: रमल बुद्धि विबुध नर, गाथा-९५९, ग्रं. १३५०. १२२६८३ (+) धन्नाशालिभद्र रास, संपूर्ण, वि. १९०७, आषाढ़ शुक्ल, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ७५, अन्य.सा. नानाराज बाई महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:धनानोरास., संशोधित., दे., (२६४११, १४४४७). धन्नाशालिभद्र रास, म. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: ऐंद्रश्रेणिं नत क्रम; अंति: बुध जिनविजय० छायो रे, खंड-४, गाथा-२२४२, ग्रं. २५००, (वि. ढाल-८५.) १२२६८४ (+) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-७(१ से ७)=३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ५४४९). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण से ४६ अपूर्ण तक है.) १२२६८५ (#) शतक नव्य कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८-१७(१ से १७)=१, प्र.वि. हुंडी:कर्मग्रंथ पंचम., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४४१). शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदिः (-); अंति: देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००, (पू.वि. गाथा-८६ अपूर्ण से है.) १२२६८६. बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-१३(१ से १३)=१, जैदे., (२५४११, ११४४१). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३७८, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., गाथा-३६७ अपूर्ण से है.) १२२६८७. इंद्रियपराजयशतक, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, जैदे., (२५४११,११४४४). इंद्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., गाथा-५० अपूर्ण से ७१ अपूर्ण तक है.) १२२६८८. भगवतीसूत्र-शतक १८ उद्देशो १० सोमिल कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११, १०x४२). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. पाठ-"अट्ठाइ जाववागरणाइ वागरेहिति" तक है.) १२२६८९ (+) प्रवचनसारोद्धार सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१, प्र.वि. हुंडी:प्रवचन०सूत्र., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १३४४८). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊण जुगाइजिणं; अंति: नंदउ बहु पढिज्जतो, द्वार-२७६, गाथा-१५१८, ग्रं. २०००. १२२६९२. (#) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११६-८४(१ से ४१,४३ से ६९,७१,७७ से ७८,८५ से ८६,९९ से १०१,१०८ से ११५)=३२,प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. कुल ग्रं. ३०००, टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११.५, ५४३१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: भज्जो उवदंसेइ तिबेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. सूत्र-२०८ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: इति ब्रवीमि कहइ. For Private and Personal Use Only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ३२३ १२२६९३.(#) कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०३-१९१(१ से १३२,१३६ से १३७,१४३ से १९३,१९६ से २०१)=१२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३८). कथा संग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. चंड कथा अपूर्ण से शुक कथा अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२२६९४. प्रत्याख्यानसूत्र व चौवीसजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, ८४३५). १. पे. नाम. दस पच्चक्खाण-बियासणं पच्चक्खाण, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २.पे. नाम, चौवीशजिन राशि, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-राशिगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: धनु राशि ऋषभदेव वृषराशि; अंति: थई शुभगुण राशिने बूझौ, गाथा-६. १२२६९५. औपदेशिक सज्झाय व नेमिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १३४४८). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- गर्भावास, प. ३अ-३आ, अपर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ले.स्थल. पौषधपुर, प्रले. ग. कृष्णविमल; पठ. सा. सुजाणश्री, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कहै मुनि श्रीसार ए, गाथा-७०, (पू.वि. गाथा-५८ अपूर्ण से है.) । २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण, ले.स्थल. पोसालीयानगर. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उग्रसेन नृपपति तनया; अंति: मोहन० नेह निसांणारे, गाथा-९. १२२६९६.(+) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. लोलपाटक, प्रले. मु. राजचंद्र; पठ. मु. कुंअरजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जीवविचार., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १२४४४). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. १२२६९७. २३ द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, १३४४७). २३ द्वार विचार-गणनिसरणा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: भक्त पच्चक्खाण करणहार; अंति: ओघउ मुहपती पासि राखीयइ. १२२६९८. जिनराजसूरि गहुंलीद्वय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३७). १. पे. नाम. जिनराजसूरि गहंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनराजसूरि गहुंली-खरतरगच्छ, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: एक संदेसउ पूजनु पंथीडा; अंति: श्रीसार०थाय रे पंथीडा लाल, गाथा-९. २. पे. नाम. जिनराजसूरि मुहपत्ती गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनराजसूरि मुहपत्ती गहंली-खरतरगच्छ, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: भलइ रे विराजी पूजजीरी मुह; अंति: मुहपती साराहइ श्रीसार, गाथा-७. १२२६९९ आठ मद सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, १४४४८). ८ मद सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम ऋषभ नमउं श्रीजिणराज; अंति: जिनवर मनह वंछित पूरि, गाथा-१७. १२२७०० (+) युगप्रधानगुरुगुण गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४३८). जिनचंद्रसूरि गीत, मा.गु., पद्य, आदि: युगप्रधान सवाई गावं भाव; अंति: लब्धिशेखर०जयउ जयउ जिनचंद, गाथा-१३. १२२७०१ (+) वासुपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. श्रावि. देवलदे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १३४५५). वासुपूज्यजिन स्तवन-सिरोहीमंडण, उपा. समयराज, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल कमला शिव सुखकारण जिण; अंति: सेवक समयराज सुहंकरा, गाथा-१९. For Private and Personal Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२२७०२ (+) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ९x४३). पार्श्वजिन स्तव-करहेटक, सं., पद्य, आदि: आनंदभंदकुमुदाकर; अंति: मे यदि मेरुधीरम्, श्लोक-५. १२२७०३. लघुवसुधारा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १०४३२). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो रत्नत्राय ॐ नमो; अंति: आर्या वसुधारा ज्ञेया. १२२७०४. योगशास्त्र-प्रकाश १ से ४ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३७, प्र.वि. हुंडी:योगशास्त्र०. अंत में अस्पष्ट उल्लेख- 'श्रीपद्मश्रीमहत्तरावरारायो.', जैदे., (२६.५४११, १६४५३-६०). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दर्वाररागादि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. योगशास्त्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५०८, आदि: श्रीमद्वीरजिनं भक्त्या; अंति: (-), प्रकाश-१२, संपूर्ण. १२२७०६ (+#) कल्पसूत्र की पीठिका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११,१३४५०). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत उत्पन्न; अंति: (-), (पू.वि. कालकाचार्य कथा अपूर्ण तक है.) १२२७०७. (+#) उपदेशमाला सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २१, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६४११, ११४५२). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंदनरिंद०; अंति: (-), (प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-५३३ अपूर्ण तक है.) उपदेशमाला-पर्याय, आ. जयशेखरसूरि, सं., गद्य, आदि: इंद्रनरेंद्रार्चितान्; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२४४ अपूर्ण तक लिखा है.) १२२७०८. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १०x४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., नेमिजिन चरित्र अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमकारहो अरिहंत नमस्कार; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सक्रस्तव अपूर्ण तक लिखा है.) १२२७०९. (+#) भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. हुंडी:भगवती., पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १६४५१). भगवतीसूत्र, आ. सधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., शतक-१ उद्देशक-१ सूत्र-२१ अपूर्ण से शतक-१ उद्देशक-४ अपूर्ण तक है.) १२२७१० (+#) शोभन स्तुति सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६-२(१ से २)=४, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १४-१७X४५). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६, (पू.वि. श्लोक-२९ अपूर्ण से है.) स्तुतिचतुर्विंशतिका-टीका, जै.क. धनपाल, सं., गद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: व्यलोकं अवेति संबंधः, स्तुति-२४. १२२७१२. चतुःशरण प्रकीर्णक सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, १२४५५). चतःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: अमरिंद नरिंद वंदियं; अंति: कारणं निद्दयसुहाणं, गाथा-६२, (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण से गाथा-४० अपूर्ण तक नहीं है.) चतःशरण प्रकीर्णक-अवचरि, सं., गद्य, आदि: चतुःशरणविषमपदविवरणं; अंति: त्यादि शेषं पूर्ववत्. For Private and Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२२७१३. (+) अजितशांति स्तव सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १४९६, मध्यम, पू. ४-१ ( ३ ) - ३, प्र. मु. राजकीर्ति गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५.५X११, ८X३९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि अजिअं जिअसन्वभयं संति, अंति: दिसेण०० जिणवयणं आयरं कुणह, गाथा ४०, (अपूर्ण, पू.वि. गाथा २० अपूर्ण से गाथा-३१ अपूर्ण तक नहीं हैं.) अजितशांति स्तव अवचूरि सं., गद्य, आदि अजितं द्वितीयंजिनं जितं अति नश्यंतीति श्रेयो हेतु:, संपूर्ण. १२२७१४ (+#) कर्मग्रंथ-१ से ६, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ६, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६x११, २३x६१). ९. पे. नाम कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, पू. १अ २अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ १, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य वि. १३वी १४वी, आदि सिरिवीरजिणं वंदिय अति: लिहिओ देविंदसूरीहिं गाथा ६०. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ - २ आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी, आदि तह थुणिमो वीरजिणं, अंति: देविंदवंदियं नमह तं वीरं, गाथा - ३४. ३. पे. नाम. बंधसामित्तं नव्य कर्मग्रंथ, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी, आदि बंधविहाणविमुक्कं अति: देविंदसूरि० सो गाथा - २४. " ४. पे. नाम षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण, षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: नमिअ जिणं जिअ१ मग्गण; अंति विआरो लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. ५. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ४आ-६आ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी १४वी आदि नमिय जिणं ध्रुवबंधो १ दव २; अति . देविंदसूरि० आयसरणड्डा, गाधा १००. - ६. पे. नाम. सत्तरी कर्मग्रंथ, पू. ६आ- ७आ, संपूर्ण. ६आ-७आ, सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, प्रा., पद्य, वि. १३वी- १४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः अमियाणं एगूणा होइ नउईओ, गाथा - ९३. १२२७१६. (#) कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६-२५ (१ से २५) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १४४४७). कल्पसूत्र - बालावबोध, मा.गु..रा., गद्य, आदि (-) अंति: (-). (पू. वि. महावीरजिन भव-३ मरीचिवर्णन अपूर्ण से भव- १५ तक है.) १२२७१८. औपदेशिक गाथा संग्रह सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैवे. (२५.५४११.५, ५४३२). " ३२५ औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा. मा. गु., सं., पद्य, आदि जीउ जलबिंदु समं संपत, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा १२ अपूर्ण तक लिखा है.) औपदेशिक गाथा संग्रह-टबार्थ, रा., गद्य, आदि: जीवतत्वनो पांणीना पंपोटा; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १२२७१९. (+) जीवविचार प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १७००, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल खारिया, प्रले. मु. जयता ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें त्रिपाठ. जैवे. (२६४११.५, १९४६१). " " For Private and Personal Use Only जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः संतिसूरि० सुयसमुद्दाओ, गाथा- ४८. जीवविचार प्रकरण- खालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि: भुवण० भवण भणियइ अति शास्त्र अर्थथी जाणज्यो. Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२२७२१ (+#) धर्मप्रभावक श्लोक व औपदेशिक गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६४११.५, १५४३७). १. पे. नाम, धर्मप्रभावक श्लोक सह बालावबोध, पृ. १अ, संपूर्ण. धर्मप्रभावक श्लोक, सं., पद्य, आदि: धर्मतः सकलमंगलावली; अंति: धर्म एव विधीयताम्, श्लोक-१. धर्मप्रभावक श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अहो भव्य प्राणी गुणमणि; अंति: श्रेयः कल्याण संपजे. २.पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह सह बालावबोध, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. औपदेशिक गाथा संग्रह-विविध विषयक विविध ग्रंथोद्धृत, प्रा.,सं., पद्य, आदि: पूआ जिणंदेसु रई वएसु; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा है.) औपदेशिक गाथा संग्रह विविध विषयक विविध ग्रंथोद्धत-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभगवंत तिर्थकर वीतराग; अंति: (-). १२२७२२. (+) १४ गुणस्थानक-कोष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १६४१९). १४ गुणस्थानक यंत्र, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). १२२७२४. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४६). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः सिद्ध०; अंति: (-), (पू.वि. कांड-१ श्लोक-२ तक है.) अभिधानचिंतामणि नाममाला-स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२१६, आदि: धर्मतीर्थकृतां वाचा; अंति: (-). १२२७२५ (#) ५ बोल स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, १७X४७).. ५ कारण स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथसुत वंदिये; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-३७ अपूर्ण तक है.) १२२७२६. स्तवनचौवीसी व चोवीसीजिन परिवार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:स्तवन,तवन., दे., (२६.५४११.५, १८४३४). १. पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मनमधुकर मोही रह्यो रिषभ; अंति: चढती दोलति पावौ जी, स्तवन-२४. २.पे. नाम. चोवीसीजिन परिवार सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. २४ जिन परिवार सज्झाय, ग. वच्छ, मा.गु., पद्य, आदि: आराही अनु दिन अरिहंत; अंति: गणिवछ पभणे आणंद, गाथा-१५. १२२७२७. (+) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६५, वैशाख शुक्ल, १५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २३१, ले.स्थल. भुजनगर, प्रले. खीमजी छगनजी त्रवाडी; अन्य. सा. दुधीबाई महासती (गोंडल संप्रदाय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी;रायप्रसेन्ट०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. ७०००, जैदे., (२६४११, ५४२९-३९). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: अरहओ पस्से सुपस्सवणीए णमो. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवदेवं नमस्कृत्य श्रुत; अंति: तेहण नमस्कार होउं. १२२७२८ (+#) अजितशांति स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-२(१ से २)=५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ६४४५-५०). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अजिअसंति जिणनाहस्स, गाथा-४२, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२२७२९. (१) कर्मग्रंथ १ से ५ सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १५२९, भूवाणद्गनिधी, मध्यम, पू. ३९-१ (१) -३८, कुल पे. ५० प्रले. पं. मेघा, लिख श्रावि. जबकूर (पति श्राव. महिराज मंत्री); गुपि श्राव. महिराज मंत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १७६१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. कर्मविपाक सह बालावबोध, पृ. २अ-९अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ १ आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी २४वी, आदि (-); अति लिहिओ देविंदसूरिहिं, 1 " गाथा-६१, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ - १ - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: श्रीदेवेंद्रसूरि कहिउ. २. पे. नाम. कर्मस्तव सह बालावबोध, पृ. ९अ - १२अ, , संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंद वंदिअं नमह तं वीरं, गाथा- ३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२ - बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: तिम श्रीमहावीर प्रति अम्ह; अंति: १४ आतैका १५ एवं १५. ३. पे. नाम बंधस्वामित्व सह बालावबोध, पु. १२-१५अ संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी १४वी आदि बंधविहाणविमुक्कं बंद; अति " " लहिअ नेअ कम्मत्थयं सोठं, गाथा २४. " ३२७ बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ -३ - बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: बंध सामित्त विचार; अंति: बंधसामित्व जाणिवउ. ४. पे. नाम षडशीति सह बालावबोध, पृ. १५ अ-२३अ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ ४, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी १४वी आदि नमिय जिणं जियमगण अति: लिहिओ ', " देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: वीतरागदेव नमस्करीनइं; अंति: लिखित देवेंद्रसूरिहिं. ५. पे. नाम. शतक सह बालावबोध, पृ. २३अ ३९आ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी १४बी, आदि नमिय जिणं धुवबंधो १ दय २; अंति '" देविंदसूरि० आयसरणा, गाथा १०० (वि. अंत में समुच्छींमजीव विषयक लिखा है.) शतक नव्य कर्मग्रंथ-५बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: वीतराग नमस्करीनइ अति कहिठ परोपकारनइ काजि. १२२७३० (+) बृहत्संग्रहणी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९३ -४० (१ से २९, ३५, ४७,५३,६२ से ६९) =५३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (२६११, १५X३८). " . "" बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी आदि (-); अति (-), (पू.वि. गाथा-७७ से २८६ तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, वि. १६००, आदि: (-); अंति: (-). १२२७३२. (+) नेमिजिन स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८५४, मार्गशीर्ष शुक्ल, २ रविवार, मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३०१, कुल पे. ५, ले. स्थल मुम्माईबिंदीर, प्र. मु. कल्याणसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. शांतिजिन प्रसादात्, संशोधित, जैदे. (२६११.५, १०४४४). १. पे नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: सुख देइने रे, गाधा-७, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम अरजिन स्तवन, पू. ४अ संपूर्ण मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अरनाथ कुं सदा मेरी; अंति: न्यायसागर० परमानंदना रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: कुंन रमे चित कुंन रमें; अंति: हर ब्रह्म कुंण नमे, गाथा-५. ४. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन ३५, पृ. ४अ - ४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, ग. कृपासौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५. पे. नाम. शांतिजिन छंद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जिनंदचंद शांतिनाथ जाप; अंति: आनकें मुगति साहु नामियो, गाथा-१. १२२७३३. दोषाकेवली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११, १५४३६). दोषाकेवली, मा.गु., गद्य, आदि: १११ शरीर वेदना देवता दोस; अंति: (-), (पू.वि. संख्या ३२३ फल तक है.) १२२७३५. (+#) कर्मविपाक, कर्मस्तव व षडशीति कर्मग्रंथ सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२३-१०८(१ से ३७,४९ से ११९)=१५, कुल पे. ३, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, १७४५८). १.पे. नाम. कर्मविपाक की टीका, पृ. ३८अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-स्वोपज्ञ सुबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: सर्वोपि तेन जनः, (प.वि. अंतिम गाथा की टीका अपूर्ण मात्र है.) २.पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ सह टीका, पृ. ३८अ-४८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: बंधोदयोदीरणसत्पदस्थं; अंति: ३.पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४ सह टीका, पृ. १२०अ-१२३आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: लिहियो देविंदसरीहिं, गाथा-८६, (पू.वि. गाथा-७८ अपूर्ण तक है.) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: देवेंद्र चंचरीकैरिति, ग्रं. २८००. १२२७३६. मिथ्यात्वस्थान कलक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ.१, जैदे., (२६४११, १२४४४). मिथ्यात्वस्थान कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लोइय लाउत्तरिय देवगइ गुरु; अंति: धुवं सिवं सुहाई, गाथा-२६. १२२७३७. (+) २६ विधिकर्तव्य बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १७४६७). २६ क्रियाविधि बोल, मा.गु., गद्य, आदि: स्थापनाचार्य पडिलेही जिण; अंति: पूछणा मांहि न बांधइ२६. १२२७३८. (+) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. झांझण; गृही. पं. जयसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:यमकावचूरि, पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, १८४६४). पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, म. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं भवदं; अंति: शिवसुंदर सौख्यकरं, श्लोक-७. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वरं प्रधाना संवरस्य; अंति: संबोधनं शेषं सुगमं. १२२७३९ (+#) गौतमस्वामी वैराग्य गीत व सामायिक गीत, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. सा. लाभश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४५१). १. पे. नाम. गौतमस्वामी वैराग्य गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. वा. मतिशेखर, मा.गु., पद्य, आदि: समोसरणि सिंधासणइ जी बइठा; अंति: मतिसेखर० होइ प्रसन्न, गाथा-९. २. पे. नाम. सामायिक गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. औपदेशिक सज्झाय-सामायिक, मु. उदयवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु चरणकमल प्रणमीनई; अंति: उदयवर्धन इम बोलइ रे, गाथा-१४. १२२७४०. कल्पसूत्र सह कल्पलता टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:कल्पव्या०., जैदे., (२५४११, १६४७०). For Private and Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ३२९ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान-९ सामाचारी __अन्तर्गत पर्व में कषाय त्याग दृष्टांत तक है.) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंति: (-). १२२७४१. शाकुनसारोद्धार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, २४x७८). शाकुनसारोद्धार, आ. माणिक्यसूरिजी, सं., पद्य, आदि: उपास्महे परं ज्योति; अंति: (-), (पू.वि. प्रकरण-११ श्लोक-१६ अपूर्ण तक है.) १२२७४२. (+) आदिजिन स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. श्रीपत्तन, प्रले. मु. मेरुसुंदरगणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ७२५, जैदे., (२६४११, १४४५३). आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, उपा. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलउं पणमीय देव; अंति: देव सासण विजयतिलउ निरंजणो, गाथा-२१. आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हुं पहिलउं धुरि पणमी; अंति: छइ निरंजणो पाप रहित. १२२७४३. (+) सम्यक्त्व कौमुदी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४३, ले.स्थल. गुडल, प्रले. रामजी जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सम्यक्तकौमु०., पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे., (२६४११, ५४२८-३७). सम्यक्त्वकौमुदी कथा, उपा. विनीतसागर, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: क्षयं स्वर्गमश्नुते, ग्रं. १५८७. सम्यक्त्वकौमुदी कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानस्वामी चोविसमा; अंति: मोक्षना सुख पामें निश्चं. १२२७४४. कर्मग्रंथ-१ से ४ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४८, कुल पे. ४, पठ. मु. धनविजय (गुरु मु. कल्याणविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ३४४०). १. पे. नाम. कर्मविपाक-१ सह टबार्थ, पृ. १आ-१४आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय: अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, म. धनविजय, मा.ग., गद्य, वि. १७वी, आदि: शारदां वरदां स्मृत्वा; अंति: तगछनायक श्रीदेवेंद्रसूरिइ. २. पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. १४आ-२२अ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंद वंदिअं नमह तं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, म. धनविजय, मा.गु., गद्य, आदि: तिम अम्हे स्तवस्यु महावीर; अंति: करो ते महावीर प्रति. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व-३ सह टबार्थ, पृ. २२अ-२८आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं वंद; अंति: लहिअंनेअं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., गद्य, आदि: कर्मबंधना प्रकारथी मूकाणो; अंति: जाणवो श्रीकर्मस्तव जाणवो. ४. पे. नाम, षडशीतिकाख्यचतुर्थः कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. २८आ-४८अ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअजिणं जिअ१ मग्गण; अंति: विआरो लिहिओ देविंदसूरी हिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, उपा. धनविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७००, आदि: वांदिनइ तीर्थंकर प्रति; अंति: धनविजय० हित हेतु समिदिश्य. For Private and Personal Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२२७४६. (+४) कल्पसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ८४, प्र. वि. हुंडी कटवार्थ प्रतिलेखन पुष्पिका श्लोकबद्ध है एवं पत्र विवर्ण होने से कुछेक अंश अस्पष्ट है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ४९००, मूल पाठ का अंश खंड है, जैदे., (२६X११, ७x४१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि नमो अरिहंताणं नमो अंतिः भुज्जो उवयंसेइ तिमि, व्याख्यान- ९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र - टवार्थ + व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., सं., गद्य, आदि सकलार्थसिद्धिजननी अंतिः अर्थ दशा श्रुतस्क माहिल. १२२७४८. साधु पंचभावना व गुरु विहार गहुंली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले. स्थल. माडवीबिंदर, प्र. मु. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी भावना, दे. (२६४११.५, १३४४८). ', १. पे. नाम. साधु पंचभावना, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण, वि. १९७०, भाद्रपद शुक्ल, ४. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वस्ति श्रीमंधर परम धरम; अंति: सुख संपति गृह थावोजी, ढाल-६, गाथा - ९५. २. पे. नाम. गुरु विहार गहुंली, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में किसी अन्य प्रतिलेखक के द्वारा लिखा गई है. गुरुविहार गली, मा.गु., पद्य, आदि: तरछोडी गुरु ए चाल्या हारे; अंति: तरछोडी गुरु ए मेल्यां. १२२७४९ (०) सिद्धाचल स्तवन, पार्श्वजिन स्तवन व पर्युषणपर्व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११.५, ११३१). 7 १. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ ९आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. गौतमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: जगपति वंदो वीमलगीरराय भव; अंति: गौतमने संपति करो, गाथा- १०. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदराम, पुहिं., पद्य, आदि प्यारा वो जगतस्यु अति आनंदराम० संपत सुख सारा, गाथा-५. " ३. पे. नाम. पर्युषणापर्वविधि स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. फतेसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वरस दिवसमां सार; अंति: सुख आराधशे हो लाल, गाथा-७. १२२७५२. ५ महाव्रत सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. सा. खेमकुरबाई (गुरु सा. चोथीबाइ); गुपि. सा. चोथीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी : माहावृतनी ढाल पत्र., दे., (२६X११.५, १२X३८). ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि सकल मनोर्थ पूर्वा रे अति तमे सांभलो वाणी ओदार रे, ढाल - ६, गाथा ४०. १२२७५४. (+#) ग्रहसिद्धि की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १० - १(१ ) = ९, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६११, १६x४९) ग्रहसिद्धि - टीका, आ. देदाचंद्र, सं., गद्य, श. १५३२, आदि (-); अति देद० रिपूनां चानिनासिनं (पू.वि. श्लोक-४ की का अपूर्ण से है., वि. मूलश्लोक का प्रतीकपाठ लिखा है.) १२२७५६. पार्श्वजिन स्तवन व औपदेशिक दोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १ ( २ ) = १ कुल पे ४, प्र. वि. खडा लेखन., जैदे., (२५.५X११, ३१x२३). १. पे. नाम पार्श्वजिन स्तवन, पू. २अ संपूर्ण. . पुर्हि, पद्य, आदि एक ही वन में मृगराज वसै: अंति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ३ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जात लाभ कुल रूप तप बल; अंति: रीतसु ए पचवीस प्रमाण, गाथा - ९. " ३. पे. नाम औपदेशिक पद, पू. २आ, संपूर्ण, पुहि., पद्य, आदि जे न करे नय पक्ष विवाद, अंतिः प्राणीया सुखी न दीठो कोय, गाथा- ३. For Private and Personal Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ४. पे. नाम. समस्यागर्भित दोहासंग्रह, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक दोहा-समस्यागर्भित, पुहि., पद्य, आदि: पूतलो कहे अरिहंता नवपय; अंति: (-), (पू.वि. दोहा-२ अपूर्ण तक १२२७५७. (+) चातुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. हुंडी:चोमसारो वखांण., संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३४३८). चातुर्मासिक व्याख्यान, म. शिवनिधान, मा.ग., गद्य, आदि: अर्हतः परया भक्त्या; अंति: संघ आचंद्रार्क जयमान हवै. १२२७५८. (+) प्रतिक्रमणविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:श्रावकरो पडिकम., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, २०४५९). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: आवसहि इछाकारेण संदेसह; अंति: तस मिछामि दकडं. १२२७५९. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८६२, श्रावण शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. रवणीया, प्रले. वा. माणिक्यराज; अन्य. पं. शांतिसमुद्र (गुरु वा. माणिक्यराज); मु. रूपा; मु. लाला (गुरु पं. शांतिसमुद्र), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:पाक्षिकसूत्रं. श्रीइष्टदेवसानिध्यात्., जैदे., (२५.५४११, १३४४९). आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अ तित्थे; अंति: नित्थारगपारगाहोह. १२२७६०. १२६ बोल बासठियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, अन्य. सा. चंदन आर्या (गुरु सा. मंछाबाई आर्या); गुपि. सा. मंछाबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:एकसोनें छबीसबोलनो बासठीयो., जैदे., (२५.५४११.५, १२४५१). बासठीयो-बहत्, मा.गु., गद्य, आदि: जीव १ गइ २ इंदीय ३ क; अंति: आठसये अने बार बोल थया. १२२७६१ (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६५, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. २२००, जैदे., (२५.५४११, ५४३४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किटुं; अंति: भवियाणं बोहणट्ठाए, अध्ययन-१० चूलिका २. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिन धर्म उत्तम; अंति: जीवनइं प्रतिबोधनइ अर्थइ. १२२७६२. (+) वच्छराज चौपाई, संपूर्ण, वि. १८४९, आश्विन शुक्ल, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४८, ले.स्थल. कुचेरा, प्रले. सा. नाथी (गुरु सा. गुमानाजी); गुपि. सा. गुमानाजी (गुरु सा. चनणा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वछराज., संशोधित., जैदे., (२५४११, १७४५३). वच्छराज चौपाई, मु. विनयलाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६३०, आदि: परम निरंजन परमप्रभु; अंति: विनयलाभ० मंगलमाल ए, खंड-४ ढाल ६६. १२२७६३. (+) महादेवी सूत्र सह दीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १७१९, आषाढ़ कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ३९, प्रले. मु. अमरशेखर; गुभा. ग. गुणशेखर गणि (गुरु ग. भुवनशेखर गणि); गुपि. ग. भुवनशेखर गणि (गुरु ग. भावशेखर गणि); ग. भावशेखर गणि; अन्य. पं. धनजी, प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४५६). महादेवी सूत्र, महादेव, सं., पद्य, आदि: सिद्धि करोती राजकेंद्र; अंति: तज्जेति०, श्लोक-३९. महादेवी सूत्र-दीपिका टीका, वा. धनराज, सं., गद्य, वि. १६९२, आदि: श्रीनाभेयं जिनं नत्वा; अंति: नाधार्या गुरो भावितः. १२२७६४. (+) निरयावलिकादि पंचोपांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९९, कुल पे. ५, प्र.वि. हुंडी:निर०ट०., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४११, ४४४०). १.पे. नाम. निरयावलिसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-३८आ, संपूर्ण. कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंति: नवरं माताओ सरिसणामा, अध्ययन-१०. ___ कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० ते अवसर्पणी कालना; अंति: नाम स० सरिखा णा० नाम. २. पे. नाम. कप्पवडिंसियासूत्र सह टबार्थ, पृ. ३८आ-४२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: महाविदेहे सिज्झीहिति, अध्ययन-१०. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जो भं० हे पूज्य स; अंति: महाविदेहइ सीझस्यें. ३. पे. नाम. पुफियासूत्र सह टबार्थ, पृ. ४२आ-८१आ, संपूर्ण... पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: चेझ्याइं जहा संगहणीए, अध्ययन-१०. पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जो भं० हे पूज्य; अंति: गाथामाहे छे तिम. ४. पे. नाम. पूष्पचूलासूत्र सह टबार्थ, पृ. ८१आ-८७आ, संपूर्ण. पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वासे सिज्झिहिति, अध्ययन-१०. पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जीम भं० हे पूज्य स०श्र; अंति: सर्व पाछली परे कहेवो. ५. पे. नाम. वण्हिदसाणंसूत्र सह टबार्थ, पृ. ८८अ-९९अ, संपूर्ण. वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंति: पंचमवग्गे बारस उद्देससगा, अध्ययन-१२. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जउ हे पूज्य श्रमण भ०; अंति: वर्गना बार उद्देसा. १२२७६५ (+) प्रज्ञापनासूत्र सह टबार्थ व टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.५७+१(५७)=५८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:प्रज्ञापना०ट०., प्रग्यापनासूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ४४३६). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० ववगय; अंति: (-), (पू.वि. पद-२ 'कहिणं भंते नेरइ आणंपजतापज्ज' पाठांश तक है.) प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७८४, आदि: (१)प्रणम्य पुण्यपदपद्म, (२)नमस्कार हो अरिहंतने; अंति: (-). १२२७६६. (+#) ४२ गोचरी दोष सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, ५४४४). ४२ गोचरी दोष गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्मु १ देसिअ २; अंति: बहिरं रसहेउ दव्व संजोगा, गाथा-६. ४२ गोचरी दोष गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: आधाकर्मी ते कहीईजे; अंति: आचारी साधुने टालवा. १२२७६७. मौनएकादशीपर्व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:एकादशिकथा., जैदे., (२५४११, १४४३६). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरं नत्वा गौतमः; अंति: सौख्यताज समभवन्निति. १२२७६८. (#) पुण्यलक्ष्मी विवादादि कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, २१४५९). १. पे. नाम. पुण्यलक्ष्मी विवाद, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अंगदेशो महादेशो कनकाख्यं; अंति: मुक्ता पुण्यराजोपदाश्रयं, श्लोक-११४. २.पे. नाम. पूर्वभाग्येप्रभावे द्विप्रहरेक ब्राह्मण कथा, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. द्विप्राहरिकराम कथा, सं., गद्य, आदि: भाग्येन सर्वसंपत्ति; अंति: प्राहरिकराम सुखभागसमजनि. ३. पे. नाम. पुण्यप्रभावे विद्याविलास कथा, पृ. ४आ-८आ, संपूर्ण. विद्याविलास कथानक-पुण्यप्रभावे, सं., गद्य, आदि: धर्मोजन्मकुले शरीरपटुता; अंति: क्रमेण मुक्तिं यास्यतः. ४. पे. नाम. गोपगृहिणी प्रबंध, पृ. ८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गोपगृहिणीप्रबंध. सं., गद्य, आदि: अथान्यदा स एव भूतिराज; अंति: प्राहुरात्मा एवमवादीच्च. १२२७६९ (+) खरतरगच्छीय पट्टावली व कालिकाचार्य कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-२(९,११)=१८, कुल पे. २, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. पं. आसकरण, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११, ११४३५). १.पे. नाम. पट्टावली खरतरगच्छीय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: श्रीगौतमः स्तान्मदे, श्लोक-१३. २.पे. नाम. कालिकाचार्य कथा, पृ. १आ-२०आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत उत्पन्न; अंति: ०सूरिनी आगन्या प्रवर्तइ, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) For Private and Personal Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ३३३ १२२७७० (+) २४ बोल पंचमआरा व धर्मसूरिगच्छाधिपति गहुंली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. खडा लेखन-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ३२x२३). १.पे. नाम. २४ बोल पंचमआरा-भगवतीसूत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ५ आरा भविष्यकथन ४३ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: १ बोले नगरी तिके तो ग्राम; अंति: आरा स्वभावरा जांणवा. २. पे. नाम. धर्मसूरि गुरुगण गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण. धर्मसूरिगुरुगुण गंहली, मु. माणिक्य, मा.गु., पद्य, आदि: थे तो गुर्जर देश भले; अंति: माणिक्य० गछपति इम भणे, गाथा-७. १२२७७३ (+) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सातसम., संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, ११४३५). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमिऊण पणय सुरगण; अंति: (-), (पू.वि. नमिऊण स्तोत्र अपूर्ण तक है.) १२२७७५. (+) चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, पठ. श्रावि. क्षेमाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ९४३७). चतःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: पुणेविहि न पावंति, गाथा-६४. १२२७७६. (+) अंतकृद्दशांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी का भाग खंडित है. अनुमानित पत्रांक., संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४४८). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वर्ग-३ अध्ययन-८ गजसुकुमालमुनि वृत्तांत अपूर्ण है.) १२२७७७. गुणरत्नाकर छंद, संपूर्ण, वि. १६९८, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. सीरोही नगर, प्रले. मु. लब्धिरत्न (गुरु आ. कल्याणरत्नसूरि, तपागच्छ); गुपि. आ. कल्याणरत्नसूरि (गुरु आ. हंसरत्नसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:गुणरत्नाकर छंद.,प्र.ले.श्लो. (९६५) यादृशं पुस्तकं दृष्वा, जैदे., (२५.५४११,१७४४९). गुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५७२, आदि: शशिकरनिकर समुज्वल; अंति: रंग दिउ करु सहजसुंदर मया, अध्याय-४, गाथा-४२५. १२२७७९ (+) विविध जीव आयुष्य विचार, संपूर्ण, वि. १८९४, आश्विन कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४३५). विविध जीव आयुष्य विचार *, मा.गु., गद्य, आदि: मनुष्यनो आऊखो १२० वर्ष; अंति: माखीरो० भमरी मा ४. १२२७८० (+) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-१३(१ से १३)=२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ५४४३). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., संसारदावानलसूत्र से है चउकसाय सूत्र तक लिखा है.) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १२२७८३. (4) विविध बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, प्र.वि. हुंडी:छुटकबोल लखा., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, १४४४०). १. पे. नाम. १० बोल साधु मार्ग, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञाननी समकवत्वनी; अंति: पांमवानी प्राप्ती थाय. २. पे. नाम. १० मनुष्यजन्म दुर्लभ बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: मनुषनो भव पांमवो दुर्लभ; अंति: तप संजंम पांमवो दुर्लभ छे, अंक-१०. ३. पे. नाम. १० बोल दया, पृ. १अ, संपूर्ण. १० बोल-धर्म, मा.गु., गद्य, आदि: दया पाले तो मोटो आयुषु; अंति: तो अनंता सो सुख पामे, अंक-१०. For Private and Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. ११ बोल जाणपणा, पृ. १अ, संपूर्ण. धर्मसंबंध बोल, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मनुं जाणपणु होय तो दया; अंति: पाले तो मोक्षनां सुख पामे. ५. पे. नाम. १० बोल श्रावक विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.., गद्य, आदि: साधुना दर्शन किधा होय तो; अंति: विहार करे तो श्रा सोच ना. ६. पे. नाम. गौतमपृच्छा १० बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: क्रोधने पुछु जे तारो वासो; अंति: मीत्र बंधवना कोठामां. ७. पे. नाम. तेर काठीया धर्मनी वियाधत, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १३ काठिया नाम, मा.गु., गद्य, आदि: आलसु रूपीयो काठीयो; अंति: (-), (पू.वि. 'अविनीयरूपी काठीया' पाठांश तक १२२७८४. महावीरजिन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. जेठा देवकृष्ण उपाध्याय; लिख. सा. जीतश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सझाय., दे., (२५.५४११.५, ४४३०). महावीरजिन सज्झाय-गौतम विलाप, मा.गु., पद्य, आदि: आधार ज हुँतो रे एक; अंति: वरिया शिवपद सार, गाथा-१५. १२२७८५. पर्युषणापर्वरी सिज्झाय व विद्यामहत्त्ववर्णन श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्रले. पं. सरूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११.५, १०४३५). १. पे. नाम. पर्युषणापर्वरी सिज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: परब पजूसण आविया रे लाल की; अंति: मतिहंस कहै करजोड रे, गाथा-११. २. पे. नाम. विद्यामहत्त्ववर्णन श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. विद्यामहत्त्ववर्णन श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: विद्या नाम नरस्य रूप; अंति: नहि धनं विद्या वहीन पसु, श्लोक-१. १२२७८६. (+) कल्पसूत्र सह संदेहविषौषधि टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:कल्पवृत्ति संदेहविपोषधा., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-१ तक है.) कल्पसूत्र-संदेहविषौषधि टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६४, आदि: ध्यात्वा श्रीश्रुतदेवीं प; अंति: (-). १२२७८७. (+) चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. रत्नविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १४४३२). चैत्यवंदनचौवीसी, क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: आददेव अरिहंत धनुष; अंति: ऋषभदास० बहुजन पाम्या पार, चैत्यवंदन-२४. १२२७८८. (+) कर्मग्रंथ-१ से ४, अपूर्ण, वि. १८३९, माघ कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १२-२(२,५)=१०, कुल पे. ४, ले.स्थल. साचोर, प्रले. मु. शिवचंद्र (गुरु ग. माणिक्यचंद्र); गुपि. ग. माणिक्यचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १२४३४). १.पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिण वंदिअ; अंति: लहिउ देविंदसूरिहिं, गाथा-६०, (पृ.वि. गाथा-९ अपूर्ण से गाथा-२६ अपूर्ण तक नही है.) २.पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ४आ-७अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंद वंदिअंनमह तं वीरं, गाथा-३५, (पू.वि. गाथा-८ से गाथा-२२ अपूर्ण तक नहीं है.) ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं वंद; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२५. ४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ८आ-१२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ३३५ षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअ जिणं जिअ१ मग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८९. १२२७९२. पार्श्वनाथ व सिद्धचक्र स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, ९४३६). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. पौषदशमीपर्व स्तति, म.धीरविजय, मा.ग., पद्य, आदिः श्रीशंखेसरपास जिणेसर केसर; अंति: धीरविजयने सुख थायजी, गाथा-४. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिगडे बेठा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) १२२७९३. ऋषिमंडल स्तोत्र की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०८-१०६(१ से १०६)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:श्रीक्र०वृ०, ऋषिवृत्ति., जैदे., (२४.५४११, १५४४७). ऋषिमंडल प्रकरण-टीका, ग. शुभवर्धन, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ की टीका अंतर्गत पद्मचरित्र प्रस्ताव-८ श्लोक-७८ अपूर्ण से १३४ अपूर्ण तक है.) १२२७९४. (+) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १३४३०). पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मा.गु., पद्य, आदि: जीरावला देवजी करु जुहार; अंति: करी सेवका मुझ थापो, गाथा-११. १२२७९५ (#) १२ भावना सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.६-१(१)=५, प्र.वि. हुंडी:१२ भाव., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३२-३५). १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-१ गाथा-३ अपूर्ण से ढाल-१० गाथा-४ अपूर्ण तक है.) १२२७९६. स्नात्रपूजा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३७). स्नात्रपूजा संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: मुक्तालंकार विकार सार; अंति: समकित सुजस सवायो रे. १२२७९७. (+) अतिचार आलोयणा व प्रत्याख्यानसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३६). १. पे. नाम, अतिचार आलोयणा, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: आलोई मिच्छामि दुक्कडं, (पू.वि. 'वचन कायाइं त्रिकरण शुद्धे करी' पाठांश से है.) २. पे. नाम. पच्चक्खाण चतष्क, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उग्गए अब्भत्त; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ. १२२७९८ (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६२, प्र.वि. हुंडी:प्रश्नल्ट., प्रश्नव्यान्ट., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४११, ४४५२). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: अंगं जहा आयारस्स, अध्याय-१०. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रश्नव्याकरण दसमउ; अंति: अतुल्य सीघना सुख पामीइं. १२२७९९ (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८-१(१)-७, पठ. मु. रत्नकुशल; अन्य. श्राव. धनालाल पंडित; श्राव. ऋषभचंद; श्राव. रामचंद्र, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, ८४३४). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र-अवचरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: सुगुरुप्रसादात्, (अपूर्ण, पृ.वि. पीठिका प्रारंभिक भाग अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२२८०० (+#) मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४१०.५, १७४५०). मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., पद्य, आदि: वीर जिणंद समोसरयाजी; अंति: पुनो० गुण निवार हो सामी, गाथा-२२. १२२८०१ (+#) चरम राजर्षि उदायन गीत, चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तवन व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १८४५०). १. पे. नाम. चरमराजर्षि उदायन गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उदायनराजर्षि सज्झाय, मा.ग., पद्य, आदि: राइ उदाइन पाटण वीतभैरे; अंति: भणे रे गाम भलेहर सोर, गाथा-२५. २.पे. नाम. चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नीलकमल दल सांमली रे लाल; अंति: पायो अविचल राज, गाथा-८. ३. पे. नाम, औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नाग नाद रस मरे; अंति: नाद विसन न होइ आपवस, गाथा-१. १२२८०२. आलोयणा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १८४५४). आलोयणा सज्झाय, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीजिनवर नाम हीयइ धरीजी; अंतिः तरीया आप निंदा थकी ए, गाथा-३५. १२२८०४. (+#) शीलमहिमादृष्टांत चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, ११४३१). ___ अज्ञात जैन काव्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० से २५ अपूर्ण तक है.) १२२८०५ (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०.५, ९४२९). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२४ अपूर्ण से ३३ तक है.) १२२८०६. (+) वरकाणा सर्व भय निवारण छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, २०४४७). पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, मु. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: वरदायिनी विमल ब्रह्माणी; अंति: इम कहै सकल संपति करण, गाथा-२७. १२२८०७. (+) अष्टमी सिझाय व चतुर्थ स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४१०, ११४४०). १.पे. नाम, अष्टमी सिझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, म. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीवा वारु छं मोरा वालहा; अंति: संतिविजय०आवागमण निवारो जी, गाथा-५. २. पे. नाम, चतुर्थ स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चत तिथि स्तति, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सरवारथ सिद्धथी चवी; अंति: ए नय धरी नेह निहालतो, गाथा-४. १२२८०८. (+#) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-११(१ से ११)=२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. २५१, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, ४४३१). बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२४, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से है.) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अधिकार सांभलीनी सत्य. १२२८०९ (+#) आवश्यकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, ३४४२). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५ सूत्र-३९ अपूर्ण से ४७ तक है.) ० ). For Private and Personal Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ३३७ सी आवश्यकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२२८११ (+) रावण प्रति मंदोदरी हितवाक्य स्वाध्याय व अंबिकादेवी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०, १५४५४). १. पे. नाम. रावण प्रति मंदोदरी हितवाक्य स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय, म. धनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सीता आंणी रावणि वात सुणि; अंति: घनहर्ष० मुझ मोरा लाल रे, गाथा-२१. २. पे. नाम. अंबिकादेवी छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. सारंग कवि, मा.गु., पद्य, आदि: विजया संभल विनति सेवकनी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९ अपूर्ण तक लिखा है.) १२२८१३. असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२५.५४१०,७४३०). असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदिः (-); अंति: वीरविमल करजोडी कहै, गाथा-१८, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-१४ अपूर्ण से है.) १२२८१४. बृहत् शांति स्तव, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१०, ११४३६). ___ लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: जायात् सूरि श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. १२२८१५. (+#) उदयसोमसूरिजी प्रति रूपबाई का पत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, पौष कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. खंभातबिंदर, प्रले. श्रावि. रूपबाई; अन्य. श्रावि. जडावबाई, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-खडा लेखन. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०.५, १२४१९). उदयसोमसरिजी को रूपबाई का पत्र, श्रावि. रूपबाई, मा.ग., गद्य, वि. १९वी, आदि: स्वस्तिश्री पार्श्वजिन; अंति: रूपबाई० कामकाज लिखज्यो. १२२८१६. पाशाकेवली की भाषा, संपूर्ण, वि. १९५३, फाल्गुन शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. कारणा, प्रले. शेशकर्ण दवे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:शुकन., दे., (२३४१०.५, १०x२८). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: सेनाण तुज सधारीचे. १२२८१७. (#) दशाश्रुतस्कंधसूत्र सह चूर्णि, अपूर्ण, वि. १७२३, माघ, रविवार, मध्यम, पृ. ४७-७(१ से ७)=४०, प्रले. मु. गोकुलजी; लिख. मु. सुखाक्ष (गुरु मु. सुंदरजी); गुपि. मु. सुंदरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ. कुल ग्रं. २५००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, ४-१२४२२-३८). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० लोए; अंति: (-), (प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दशा-१० सूत्र-१४ अपूर्ण तक है.) दशाश्रुतस्कंधसूत्र-चूर्णि#, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: णउ सव्वेसिपि णयाणं गाथा, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. १२२८१८. (+) कल्पसूत्र सह कल्पमंजरी टीका-सामाचारी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १७४५६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: भज्जो उवदंसेइ तिबेमि, प्रतिपर्ण. कल्पसूत्र-कल्पमंजरी टीका, मु. श्रीसार, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: (-); अंति: नाम्ना श्रीकल्पमंजरी, प्रतिपूर्ण. १२२८१९ (+) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. नंदविजय गणि (गुरु मु. विजयविमल गणि); गुपि. मु. विजयविमल गणि; प्रसं. मु. विवेकविमल गणि; मु. विद्याविमल गणि (परंपरा मु. विजयविमल गणि); पठ. श्राव. वर्द्धमान सहस्त्रकिरण शाह, प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १३४४८). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा १ जीवा २ पुन्नं ३; अंति: अणंतभागो अ सिद्धिगउ, गाथा-४८. १२२८२० (+) विविध बोल व आलापकादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-१(१)=७, कुल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५.५४१०.५, १९४५५). १.पे. नाम. १५ संख्या बोल विचार, पृ. २अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: १४आहारकमिश्र १५कार्मणशरीर, (पू.वि. ३ अंधकार नाम से है.) For Private and Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३३८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. जीवना आऊखा, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. विविध जीव आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पांचइ एकेंद्रिय सूक्ष्म अति: आयु स्थिति एकजि जाणवा. ३. पे. नाम ६ लेश्या विचार, पृ. ७आ-८अ संपूर्ण. मा.गु. गद्य, आदि १ पहिला रतनप्रभा पृथवीइ अति तेणी लेश्याई ना कलई. . ४. पे. नाम. ५१ बोल-चतुर्गति आगत एक समय मोक्षगामी जीव, पृ. ८अ -८आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि पहिली रतनप्रभा पऋथवीना नी अति उत्कृष्टा च्यार मोक्ष जाई. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५. पे. नाम. आठकर्मनी स्थिति, पृ. ८आ, संपूर्ण. ८ कर्मस्थिति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: णाणावरणीय कर्मस्थिति ज०; अंति: त्रीसकोडाकोडीसागरोपम. ६. पे. नाम. भगवतीसूत्र आलाबु, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. भगवतीसूत्र -आलापक संग्रह, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः तहा रूवेणं भंते समणं; अंति: (-). (पू.वि. भारेकम जीवप्रश्नोत्तरवर्णन अपूर्ण तक है.) 3 १२२८२२. लुपकमतनिरसन चर्चा, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैवे. (२६४११, २२४७०). लुंपकमतनिरसन चर्चा, प्रा., सं. गद्य, आदि: श्रीविक्रमसंवत्सरात अति: पापभागेव बोध्य इति. १२२८२४. () मौनएकादशीपर्व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. विषय के आधार पर अनुमानित पत्रांक दिया है. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x११, १२X४०). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "निरर्थकं नाम भौमे मंगल" पाठ से सुव्रत नामकरण प्रसंग तक है.) १२२८२५. () कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १६९४ आश्विन शुक्ल, १९४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १६-१४ (१ से १४) २, ले.स्थल. चंद्रापुरी, प्रले. वा. सुगुणकीर्ति (गुरु ग. लब्धिरत्न, खरतरगच्छ); गुपि. ग. लब्धिरत्न (गुरु ग. धर्मसुंदर वाचक, खरतरगच्छ); ग. धर्मसुंदर वाचक (गुरु उपा. साधुरंग, खरतरगच्छ); वा. क्षेमकीर्ति (गुरु उपा. विजयतिलक, खरतरगच्छ); पठ. मु. रत्नसी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी कल्या०. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात् अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जीवे. (२५.५x११, ११X३८). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि (-); अंति: मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४, (पू.वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र गाथा-१७ अपूर्ण से है.) १२२८२६. वैदर्भी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २) १, प्र.ले. लो. (१३९३) यादृशं पुस्तिकं दृष्टवा, जैये., (२५X११, १६-१७५०-५५). - वैदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: पेडी चडै बलि नावे अवतार, गाथा २०८, (पू. वि. गाथा ६२ अपूर्ण से है.) १२२८२७. चतुर्विशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. हुंडी चर्तुवि०, जैवे. (२५४११, ९४३१). २४ जिन स्तुति, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: कनक तिलक भाले हार हीइ; अंति: मुनिवर लावण्यसमय सदा भाइ, गाथा - २८. १२२८२८. (०) भुवनदीपक, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १५X४८). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३पू, आदि (-); अति (-) (पू.वि. श्लोक-४५ से ८१ अपूर्ण तक है.) १२२८२९. (+) चुवीस दंडके गत्यागत्य व भोजराजा श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५x१०.५, १८४५१). १. पे नाम खुबीस दंडके गत्यागत्य, पृ. १अ संपूर्ण. २४ दंडक बोल संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: नेरईआ १ असुराई ११ पुढवाई; अंति: मनुष्य तिर्यंच १ एवं. २. पे नाम. भोजराजा श्लोक संग्रह, पृ. १आ. संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ भोजराजा श्लोक सं., पद्य, आदि सीत त्राणं पटी न चापि, अंति विधि प्रच्छिन कि लज्जसी, श्लोक-३. १२२८३०. (+) षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध व कथा अधिकार-१ से ४, अपूर्ण, वि. १७६०, माघ कृष्ण, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. ९०-१(१)=८९, ले.स्थल. खीवलाद्र, प्रले. मु. जीवणविजय (गुरु मु. जीवविजय); गुपि. मु. जीवविजय (गुरु मु. नित्यविजय); मु. नित्यविजय (गुरुमु, जयविजय तपागच्छ): मु. जयविजय (गुरु उपा. शुभविजय, तपागच्छ); उपा. शुभविजय (गुरु उपा. हीरविजय, तपागच्छ); उपा. हीरविजय, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित कुल ग्रं. ३२०० प्र. ले. श्लो. (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा (१५२२) तैलाद्रक्षे जलाद्रक्षे, जैदे. (२५.५४१०.५, १३x४४). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. नवकार मंत्र अपूर्ण से है.) आवश्यक सूत्र वालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति (-), प्रति अपूर्ण. *, आवश्यकसूत्र-कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: भरतक्षेत्रि पोतनपुरन, अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १२२८३१. (+) जन्मपत्री पद्धति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६७-१ (१) =६६. पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:जन्मपत्रीपद्ध., जन्मपत्रीप०., संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X१०.५, १५X४७). ३३९ जन्मपत्री पद्धति, मु. मानसागर, सं., गद्य, आदि: (-); अंति (-), (पू. वि. अधिकार एक अपूर्ण से शुक्रदशावर्ष फलवर्णन अपूर्ण तक है.) १२२८३३. (+) वैद्यजीवन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८५१ आश्विन शुक्ल, ३ शनिवार, मध्यम, पृ. ३४ -१ ( १ ) = ३३, ले. स्थल अहिपुर, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X१०.५, ५X४२). वैद्यजीवन, क. लोलिंबराज, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: लोलिम्मराजः कविः, विलास-५, (पू. वि. विभाग- १ श्लोक-२ अपूर्ण से है.) वैद्यजीवन-टबार्थ, पंडित. ज्ञानतिलक गणि, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: लोलिमराज पंडित कवि. १२२८३४. (+) पिंडविशुद्धि प्रकरण की अवचूरि, संपूर्ण वि. १७०० वैशाख अधिकमास १५, शनिवार, श्रेष्ठ, पू. १०+१ (२) =११, प्र. मु. गोदर्षि (गुरु मु. झांझण ऋषि); गुपि. मु. झांझण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : पिंडवि०. अवचूरि., संशोधित., जैदे., (२५.५X१०.५, २१x४१). पिंडविशुद्धि प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदि (-); अंति अपनयनेन निर्दोषं कुर्वंतु, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ की अवचूरि अपूर्ण से लिखा है., वि. वस्तुतः पत्रांक- १ प्रथम व द्वितीय वृद्धि पत्र हैं मूल पत्रांक-१ नहीं है.) १२२८३५. चंद्रराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २३-१ ( २ ) =२२, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं, जैदे., (२५४१०.५, १२X३७). चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., पद्य वि. १७१७, आदि (-); अति (-) (पू.वि. खंड-१ ढाल १ गाथा- २ अपूर्ण से खंड-२ ढाल १२ गाथा १० अपूर्ण तक है.) "" "" १२२८३६. महीपाल चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे. (२५.५४१०.५, १५X४३). महीपाल चौपाई धर्ममहिमा, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुहंकर सिद्धिवर आदि अंति: (-), (पू. वि. गाथा- ३९५ अपूर्ण तक है.) १२२८३७. (+) पुष्पमाला प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६X१०.५, ११x४३). For Private and Personal Use Only पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: सिद्धकम्ममविग्रहमकलंकमसंख; अंति: (-). (पू.वि. गाथा ४७६ अपूर्ण तक है.) १२२८३८, (+४) स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे ७, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६१०, १३x४० ). "" १. पे नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमौलिमणि अति मानतुंग० लक्ष्मी, श्लोक-४४. २. पे नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ४. पे. नाम, बृहत्शांति स्तोत्र, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: सुखी भवतु लोकः. ५. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ७आ-९अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-४७. ६.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ९अ-१०आ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: उद्धरि रुदाउ सुयसमुद्दाउ, गाथा-४९. ७. पे. नाम, महावीरजिन स्तव, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम श्लोक तक है.) १२२८३९. शालिभद्रमहामुनि चरित्र, संपूर्ण, वि. १७६९, माघ शुक्ल, १५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १८, प्र.वि. हुंडी:शालिभद्रच०., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४५४). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासणनायक समरीई; अंति: मतिसार०० फल लहस्ये जी, गाथा-५०२. १२२८४०. वसुधारा महाविद्या स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १७४८, कार्तिक कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, ले.स्थल. अहिपुर, प्रले. मु. सोमदत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वसुधारा., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११, १३४५२). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: सर्वार्थ सिद्धिकराः, (पू.वि. "शिरे विशुद्ध शीले" पाठ से है.) १२२८४१ (+) शालिभद्रमुनि चौपाई, संपूर्ण, वि. १७१४, भाद्रपद कृष्ण, २, रविवार, मध्यम, पृ. २०, ले.स्थल. लाटद्रह, प्रले. मु. माधवदास (गुरु मु. नेमहर्ष); गुपि. मु. नेमहर्ष; पठ. सा. कीर्तिमाला (गुरु सा. कनकमाला); गुपि.सा. कनकमाला, प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. श्रीजिनकुशलसूरिगुरि प्रासादात्., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (८९८) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्या, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४४). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासणनायक समरीयइ वर्धमान; अंति: मतिसार०० __ फल लहिस्यइ जी, ढाल-२९, गाथा-५१०. १२२८४२. (#) नंदीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२-५(१,११ से १२,१८ से १९)=१७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४४०). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१२ __ अपूर्ण से अनुज्ञानंदी अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२२८४३. (+) शक्रस्तव सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, ११४३७). शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: नमोत्थुणं अरिहंताणं; अंति: सव्वे तिविहेण वंदामि, गाथा-१०, (पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., गाथा-५ से ७ नहीं हैं., वि. मूलपाठ प्रतीकात्मक है.) शक्रस्तव-बालावबोध, मु. गुणविनय, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणिपात दंडकवर व्याख्या; अंति: (-), पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. १२२८४४. प्रथमजिन स्तवन, वीर स्तुति व ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५४१०.५, २४४५). १. पे. नाम. प्रथमजिन स्तवन सह अवचूरि, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: शासनं ते भवे भवे, श्लोक-५, (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण से है.) श@जयतीर्थ चैत्यवंदन-अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५०, आदि: (-); अंति: प्रथम पुरुषाद्यवचनं तुप्. २.पे. नाम. वीर स्तुति सह अवचूरि, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२० www.kobatirth.org ३४१ संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा. सं., पद्य, आदि संसार दावानल दाहनीर, अंति देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. " संसारदावानल स्तुति- अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य वि. १६४७, आदि अहं वीरं नमामीति, अंतिः इति पंचाशकवृत्ती ३. पे नाम ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति सह अवचूरि, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपति; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण तक है.) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति- टीका, ग. कनककुशल, सं., गद्य वि. १६५२, आदि श्रीनेमिः पंचमीसत्तपसि अंति: (-). १२२८४५. (+#) शालिभद्रमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४१०.५, १३४४६) शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि सासणनायक समरीई, अंति: (-), (पू.वि. डाल- ९ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) १२२८४६. (+) वाग्भटालंकार सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६-४ (२ से ५ ) -२ प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैवे. (२६४१०.५, १५४५८) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाग्भट्टालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु वो देवः; अंति: सारस्वतध्यायिनः, परिच्छेद-५, ग्रं. २५८, (पू.वि. परिच्छेद-२ श्लोक-२३ अपूर्ण से परिच्छेद ४ श्लोक-४७ अपूर्ण तक नहीं है.) वाग्भट्टालंकार-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अन्योपि पदपंक्त्या मार्ग; अंति: रह्माणः कवित्वमनुजं. १२२८४७. गजसुकुमालमुनि चौपाई, संपूर्ण वि. १८०१ चैत्र कृष्ण, १३ मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २९, ले. स्थल, जावद नगर, प्रले. पं. भक्तिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : गजसुकमालचो०. श्रीशांतिजिन प्रसादात्., जैदे., ( २४४१०.५, ११x२९). गजसुकुमालमुनि चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य वि. १६९९, आदि नेमीसर जिणवर तणा चरण कमल; अंति: जिनराज०० चरण नमीजइ छे, डाल-३०, गाथा-५६१. 3 १२२८४८. सिंदूरप्रकर की टीका, अपूर्ण, वि. १८२३, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पु. ले. स्थल. महेंद्रपुर, पठ. मु. विनयविजय (गुरु ग. सुंदरविजय); गुपि. ग. सुंदरविजय (गुरु ग. माणिकविजय); ग. माणिकविजय (गुरु ग. नेमिविजय); ग. नेमिविजय (गुरु ग. केशरविजय); ग. केशरविजय (गुरु ग. कर्णविजय); ग. कर्णविजय (गुरु ग. गजेंद्र गणि); ग. गजेंद्र गणि (गुरु ग. कीर्तिविजय); ग. कीर्तिविजय (गुरु उपा. विजयराज); उपा. विजयराज (गुरु गच्छाधिपति विजयसेनसूरि); राज्येगच्छाधिपति विजयसेनसूरि, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र. वि. प्रतिलेखक ने अंत में टबोसूत्रकथाप्रबंध ऐसा लिखा है., जैवे. (२५x१०.५ १२४४५). सिंदूरप्रकर- टीका, सं., गद्य, आदि (-); अंति सुखं अनुभव इति वृत्तार्थ, (पू.वि. मात्र अंतिम पाठांश है.) *, १२२८४९. (+) श्रावकना अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १(१) १, प्रले. मु. पूर्णचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सावकनुअतीचार२४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५X१०.५, १५X४४). श्रावकसंक्षिप्तअतिचार*, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: निमंत्रणा० सहित दान दीधउ, (पू.वि. 'नीला फल फूल तोडी बेच्या' पाठांश से है.) १२२८५० (+) अहिंसा चौपाई, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४-२ (१ से २) २. पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१०.५, १३३४). अहिंसा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा २४ अपूर्ण से ६४ अपूर्ण तक है.) १२२८५१ (+) आचारांगसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पु. १. पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. हुंडी आचारांग टिप्पण युक्त विशेष पाठ टीकादि का अंश नष्ट है, जैवे (२६४१०.५, ७४५१). " आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध १ उद्देश-१ सूत्र -५ अपूर्ण तक है.) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु. गद्य, आदि (-) अंति: (-). " For Private and Personal Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२२८५२. (#) पाखी पडीकमणा विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X१०.५, ११४३५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: वंदण कीजे सामायक परा विई (पृ.वि. लोगस्स पाठ विधि अपूर्ण से है.) १२२८५३. (+) ऋषभजिन स्तुतिलहरी, संपूर्ण वि. १९०७ श्रेष्ठ, पू. २ प्रले. उपा. स्वरूपचंद (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत. दे. (२५४१०, १५४५१). शत्रुंजयतीर्थ लहरी, उपा. स्वरूपचंद, सं., पद्य, वि. २०वी, आदि: श्रीमदर्हं जिनं नत्वा; अंति : नमस्ते सर्वसिद्धये, श्लोक-४६. १२२८५५. २४ जिन कल्याणक तिथि-अनागत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४X१०.५, १६x२४). २४ जिन कल्याणक तिथि - अनागत, मा.गु., गद्य, आदि: कार्तिक वदि श्रीदेव ज्ञान; अंति: च्यवन श्री अनंतवीर्य च्यवन. १२२८५६. भक्तामर स्तोत्र सह कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-७ (१ से ७) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५X१०.५, १२x३५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि (-); अति (-) (पू.वि. श्लोक १६ से १७ है.) भक्तामर स्तोत्र-कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१५ की कथा अपूर्ण से १७ की कथा अपूर्ण तक है.) १२२८५८. गुणरत्नाकर छंद-प्रथमाधिकार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैये. (२५x१०.५, १४४४३). " गुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५७२, आदि: शशिकर निकर समुज्वल मराल; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १२२८५९. नेमनाथ रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ३-१ ( २ ) =२ प्रले. पीतांबर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २५x१०, १३x४२). राजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंतिः श्रीनेमजिणंद कि हुं, गाथा- ६३ (पू.वि. गाथा २५ अपूर्ण से है.) १२२८६० (+) विवाहपडल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २) १, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पवच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५X१०.५, १६x४२). विवाहपटल, सं., पद्य, आदि (-); अंति कृते शुक्रे गुरुस्तंगते, श्लोक ९४ (पू.वि. श्लोक-६२ अपूर्ण से है., वि. श्लोक क्रमांक भिन्न हैं.) १२२८६१. (+) १८ पापस्थानक आलोयणा, देवसी अतिचार काउसग्गसूत्र व श्रावक स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २४.५X१०.५, १६X३५). १. पे. नाम. १८ पापस्थानक आलोयणा, पृ. २अ ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रले. मु. कस्तूरचंद पठ. श्राव. अखयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., गद्य, आदि (-); अंतिः प्रते अनुमोद्यो होह (पू.वि. ७ भय अपूर्ण से है.) २. पे. नाम देवसी अतिचार काउसग्गसूत्र. पू. ३अ-३आ, संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिस्सह; अंति: करेमि काउसग्गं. ३. पे. नाम. श्रावक स्वाध्याय, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्रवककरणी सज्झाय, मु. नित, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक धर्म करो सुखदाई अति तेहु वा० पडिमाधारी रे, गाथा- ९. १२२८६३. (४) चमत्कारचिंतामणि सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८३१, माघ कृष्ण, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले. स्थल, बाधणवाडा, प्रले. मु. खुसवखतसागर; राज्ये गच्छाधिपति विजयधर्मसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, ७X३६). " चमत्कारचिंतामणि, राजऋषिभट्ट, सं., पद्य, आदि: न चेत् खेचराः स्थापिताः अति वस्तु गुह्ये सदैव श्लोक-११२. चमत्कारचिंतामणि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जो खेचर ग्रह नवा थाप्या; अंति: पीडा करै केतु सदा. For Private and Personal Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ३४३ १२२८६४. (+#) भगवतीसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४९९-२(१६१,२०३)+२(१०३,३१५)=४९९, प्र.वि. हंडी:भगवतीवृत्ति. अंत में "भगतीसूत्र वा. हेमसागर तथा नंदसागर की छेद हाथरा छे" ऐसा लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ३८०००, मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (११६२) यन्मात्राक्षरपादबिंदगलितं किंचित्प्रमादान्मया, जैदे., (२५.५४११, १३४५१). भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२८, आदि: सर्वज्ञमीश्वरमनंत; अंति: श्लोकमानेन निश्चितम्, शतक-४१, ग्रं. १८६१६, (पू.वि. शतक-५ उद्देशक-८ से ९ की वृत्ति अपूर्ण व शतक-७ उद्देशक-९ की वृत्ति अपूर्ण नहीं है.) १२२८६५. प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:प्रश्न०८०., जैदे., (२६४११, १२४३१-३५). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक पाठ का प्रथम शब्द है.) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रश्नव्याकरणं दसमो अंग; अंति: (-). १२२८६६. (+) भक्तामर स्तोत्र सह गुणाकरीय टीका, अपूर्ण, वि. १६१५, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १२-२(१ से २)=१०, प्रले. मु. देवमाणिक्य (गुरु पं. सौभाग्यवर्द्धन गणि); गुपि.पं. सौभाग्यवर्द्धन गणि; अन्य. ग. शुभविजय गणि (गुरु ग. वरसिंग गणि); गुपि. ग. वरसिंग गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. ७००, जैदे., (२६४११, ५४३२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-७ अपूर्ण से भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदि: (-); अंति: स्तव प्रभाव सर्व स्वमाह, ग्रं. १५७२. १२२८६७. (+#) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५१, कार्तिक शुक्ल, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, प. ४, ले.स्थल. वंगडीनगर, प्रले. मु. हेमविजय (गुरु मु. नेमविजय); गुपि. मु. नेमविजय (गुरु मु. उदयविजय); मु. उदयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १२४२९). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संतिं च; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४१. १२२८६८. (#) आलोयणा विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४२७). आलोयणा विधि संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: अपूज प्रतिमा भोजने उपवास; अंति: (-). १२२८६९. चातुर्मासिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदे., (२६४११, १६४४२). चातुर्मासिक व्याख्यान, मा.गु., प+ग., आदि: प्रणम्य परमानंद; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., अतिथिसंविभाग _व्रत व्याख्यान अपूर्ण तक है.) १२२८७० (#) महावीरजिन स्तवन व पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. १८९०, वैशाख कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. मेडतानगर, प्रले. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, १४४४६). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-समवसरणगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिसलानंदन वांदीये रे; अंति: जिनपद सेवा संत, गाथा-१८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नांनडीयो गोद खिलावे; अंति: खुस्याल० सुख पावै छै, गाथा-६. १२२८७२ (#) पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३८). पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम वंदित्तु कह्या; अंति: (-), (पू.वि. खामणासूत्र तक है.) For Private and Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२२८७३ (+) नेमराजिमती पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १३४३४). नेमराजिमती पद-७ वारकथन, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे सरसति सदगुरु; अंति: रंगे० नाम सहजे तरसे रे, गाथा-११. १२२८७४. (+) सरस्वतीदेवी छंद व प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ९४३९). १. पे. नाम, सरस्वतीदेवी छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुधि विमल करणी विबुध वरणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: वयोव्रद्धा स्तयोव्रद्धा०; अंति: करुसखे द्रव्वेन सर्वेवहः, श्लोक-३, (वि. तीनों श्लोकों को २ बार लिखा १२२८७५ (+#) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १८४६०-६४). नवतत्त्व प्रकरण २९ गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा १ अजीवा २ पुन्न ३; अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-२७. १२२८७६. (+#) भरत चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ७४३९). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे-भरत चरित्र, प्रा., गद्य, आदि: तएणं से भरहे राया; अंति: सव्वदक्खप्पहीणे. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे-भरत चरित्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीवार पछि भरथराजा बारवरस; ___ अंति: (अपठनीय). १२२८७७. (+#) सारस्वत धातुपाठ सह स्वोपज्ञ धातुतरंगिणी टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:धाततिरंगणी टीका., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १८४५६). सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सारस्वत व्याकरण का धातुपाठ, संबद्ध, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १६६३, आदि: श्रीसर्वज्ञ जिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. चल् धातु के चंचल्यते लुकि चाचलतीति पाठ तक है.) सारस्वत व्याकरण-धातुपाठ की स्वोपज्ञ धातुतरंगिणी टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: (१)नमस्कृत्य महोनंतं नित्यं, (२)सर्वं भूतभविष्यद; अंति: (-). १२२८८० (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १२-२(७,९)=१०, प्रले. मु. यशोरूपसागर; पठ. मु. श्रीपतिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ३४३८). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४, (अपूर्ण, पृ.वि. श्लोक-२२ अपूर्ण से २६ अपूर्ण व ३० अपूर्ण से ३३ अपूर्ण तक नहीं है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदि: प्रणम्य पार्श्वमिष्टार्थ०; अंति: (-), (संपूर्ण, _ वि. पत्र खंडित होने के कारण अंतिम वाक्य नहीं भरा गया है.) १२२८८२ (+) मोहपत्तीरा बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४४०). मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: मोहपत्ति खोलता कहीजै; अंति: त्रसकाय३ एवं० कायरी जयणा. १२२८८४. अष्टापदतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६.५४११.५, १२४४०). अष्टापदतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: यक्ष सहस सदा पंचवीसइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) १२२८८६. मौनएकादशीतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८७, श्रावण शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १७४४७). For Private and Personal Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ३४५ मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानेरी समोसर्य; अंति: कांति० पांमीइं मंगल घणो, ढाल-३, गाथा-२६. १२२८८७. सुबाहकुमार सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, दे., (२६४११.५, १०x४१). सुबाहुकुमार सज्झाय, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि: (-); अंति: सुखविपाकमां अधिकार, गाथा-१७, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) १२२८८९ (+) अष्टप्रवचनमाता सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४१). ८ प्रवचनमाता सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: गुरु गुण वृद्धो जी, ढाल-९, गाथा-१३०, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-५ अपूर्ण से है.) १२२८९०. पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११.५, ११४४१). पार्श्वजिन स्तवन-स्थंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुंरे पास; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) १२२८९१ (+) सज्झायकरवा विधि व मन्हजिणाणं सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक न होने से अनुमानित पत्रानुक्रम दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १०४३२). १.पे. नाम. सज्झायकरवा विधि, पृ. १अ, संपूर्ण, पठ. मु. मोहनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. सज्झायकरण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रात प्रतिक्रमण करी; अंति: शिष्य कहै अमुकघरे सिज्झतर. २. पे. नाम. मन्हजिणाणं सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्हजिणाणं आणं मिच्छ; अंति: निच्चं सुगुरूवएसेणं, गाथा-५. १२२८९२. हितशिक्षा सज्झाय, पद व लावण्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२५.५४११.५, १६x४६). १.पे. नाम. हितशिक्षा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: जीवडा जिनवर भजलो रे अवसर; अंति: परमपद संपद सहज वरेसो जी, गाथा-५. २. पे. नाम. वैराग्य लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. अखमल, मा.गु., पद्य, आदि: जब तन दोस्ती है ए वस्ती; अंति: नही जिनकुं वीनती अखमल की, गाथा-८. ३. पे. नाम, औपदेशिक लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. देवचंद, पुहि., पद्य, आदि: हां रे चतुर नर मनकुं; अंति: चालो सोई सावधांन सांना, गाथा-६. ४. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. जिनदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: चल चेतन अब उठकर अपणै; अंति: जिनदास० जिन दरसण चहीऐं, गाथा-४. ५. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. राजरतन, मा.गु., पद्य, आदि: जग वंदु जादव पति जीनवर; अंति: राजरतन० हमारो ही माई, गाथा-४. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: लग जा हो जीव जिनचरणा; अंति: कोई दानी नवल बताय, गाथा-४. १२२८९३. (+) अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, आह्वान विसर्जन मंत्र व ज्वारारोपण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:श्रीभावप्रभसूरि समर्थितः अष्टोत्तरी स्नात्र विधिं. अंत में - 'श्रीभावप्रभसूरिभिः समर्थितोयं अष्टोत्तरीस्नात्रविधिः।। बहुनि पुस्तकानि विलोक्य।। ऐसा उल्लिखित है.', पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४४०). १. पे. नाम. अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, पृ. १आ-८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. भद्रबाहस्वामी, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नत्वा श्रीपार्श्वसर्वज्ञं; अंति: विशेष पहेरामणी करीइ. २. पे. नाम, आह्वान विसर्जन मंत्र, पृ. ८आ, संपूर्ण. देव क्षमापना श्लोक, सं., पद्य, आदि: आह्वानं नैव जानामि; अंति: देव क्षमस्व परमेश्वरः, श्लोक-२. ३. पे. नाम. ज्वारारोपण विधि, पृ. ८आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कुंसंभकं वरणकमंडपं च; अंति: स्तस्मात्तानि विवर्जयेत्. १२२८९४. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ३६, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:छतीसमो., जैदे., (२५.५४११, १७४४६). ___उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. गाथा-१५७ तक है.) १२२८९५. प्रदेशीराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी:प्रदेसी०., दे., (२५.५४११.५, १४४५२). केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, म. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमी श्रीअरिहंत; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४० क्रमश: गाथा-५७१ अपूर्ण तक है.) १२२८९८. (+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०२, फाल्गुन कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. अलायनगर, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४११, ११४२८). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी श्रीजीनराज तणी काने; अंति: परिसह अघोर पोहता शिवपुरी, गाथा-१९. १२२९०० (+) बारभावना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. धार, प्रले. श्राव. तेजपाल; अन्य. श्राव. गोपाल शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:बारभावना. प्रतिलेखन स्थल का नाम धार जलदुर्ग लिखा है., संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४४८). १२ भावना सज्झाय, मु. शुभमति, मा.गु., पद्य, आदि: भाषा अनेक भमीओ घणउ; अंति: नमउ साधु शुभ मनि धरी, गाथा-२०८. १२२९०१ (+) नेमनाथ रेखता व नेमिजिन पद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(२)=३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४४५). १. पे. नाम. नेमनाथ रेखता, पृ. १अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. नेमराजिमती संवाद, मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: समुद्रविजइ का फरजंद आया; अंति: लालविनोदी० का भया है, गाथा-२५, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से १३ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: पढौ नेमि जिणंद का झलनाजी; अंति: बंदा गुलाम तेरा, गाथा-१. १२२९०४. (#) शांतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९००, ?, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ११४३०). शांतिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरिये जेहनी; अंति: सांभलो रिषभदासनी वाणी, गाथा-४. १२२९०५. संखेश्वरजिन व साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:शंखेश्वरस्तोत्र पत्र., जैदे., (२४४११, १३४३१). १. पे. नाम, संखेश्वरजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, आ. हंसरत्नसूरि, सं., पद्य, आदि: महानंदलक्ष्मीघना; अंति: श्रीहंसरत्नायितं, श्लोक-११. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतिर्थराज पदपद्मसेवा; अंतिः प्रभावदाता ददतां शिवं वः, श्लोक-१. १२२९०६. (+) सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, १६४४५). १. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्य, आदि उडो अरथ विचारीये उडो अति जिम पामो मोक्षनो रंग, गाथा २८. २. पे. नाम. नीरमोहीनो चोढालीयो, पृ. १आ- ३अ संपूर्ण, पे. वि. हुंडी नीरमोहीरा०. निर्मोहीराजा चौढालीयो, मा.गु., पद्य, आदि: एक सदा जीण धरम बत्तीस लाख; अंति: अष्ट गणा प्रणामो रे, ढाल-४, गाथा-४२. ३. पे. नाम. महासती सज्झाय, पृ. ३१-४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: सतीयारोतव०. मा.गु., पद्य, आदि: सुणज्यो सहू नरनारी नारीना; अंति: तोही कुल घरमने उजवाले हो, गाथा-३८. ४. पे. नाम. सीमंदरजीरो तवन, पृ. ४-४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:श्रीमींदरजी०. सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: हो जी जंबूदीपे जाणीयें; अंति: नित प्रणमु श्रीमंदर साम, ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मत खावो रे वोर जलम वीगडे; अंति: शीवरमणी के क्षण जायो. " ७. पे. नाम औपदेशिक पद पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण. गाथा - १७. ५. पे. नाम. जुगमींदरजीरो तवन, पू. ४आ-५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: श्रीजुगमीदर ०. युगमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा. पद्य वि. १८३४, आदि: जंबुद्वीप दौपतो रे लाल, अति रिष रायचंद० राजसु मेरे लाल, गाथा - १५. पुहिं., पद्य, आदि: काया नगर हंसरायजी हर; अंति: मारा जीवड लार उपर गायो, गाथा - ३. १२२९०८ (४) नेमीसंवाद चोक २४, संपूर्ण वि. १८४६ आश्विन शुक्ल, १४ सोमवार, मध्यम, पू. ४, ले. स्थल, मुनराबिंदर, प्र. मु. गलालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १७३७). ३४७ नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसें नेमीकुंमर, अंति: तस सिसे अमृत गुण गाया, चोक-२४. १२२९०९. (#) महावीरजिनशासने गच्छोत्पत्यादि प्रसंग श्लोकसंग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पू. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. श्लोक-२२ अपूर्ण से है किन्तु प्रतिलेखन ने पत्रांक- १ लिखा है अतः अपूर्ण बताने हेतु पत्रांक- २ का उल्लेख किया है.. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२६.५४१२, ७३७). महावीरजिनशासने गच्छोत्पत्यादि प्रसंग श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२२ अपूर्ण से ३८ अपूर्ण तक है.) महावीरजिनशासने गच्छोत्पत्यादि प्रसंग श्लोकसंग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२२९११. (+) व्याख्यानश्लोक संग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी भाग खंडित है., संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२६११.५, १३४३३-४४) व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: चिरायु: शिवमारोग्यं संपदा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२ तक है.) व्याख्यानश्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: चिरायुः चिरकाल लगई आउषं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२ का बालावबोध अपूर्ण तक है.) १२२९१२. (#) पंचप्रतिक्रमणसूत्र व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९०८, श्रावण शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, कुल पे. ४, ले. स्थल. जालोर, प्र. मु. नथमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४१२, १३४३४). १. पे. नाम. रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: काउसगवृत रहनेमि रह्यौ तच अति मुरख प्रीत स्युं मांडरि, गाथा ८. २. पे नाम प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. पे. वि. हुंडी पडीकमणाशु० पंचप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं नमो, अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक इरियावहीसूत्र अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. वृद्ध शांति, पृ. ३अ -३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बडीशांति, वृद्धशांती. For Private and Personal Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., आदिः (-); अंति: सर्वत्र सुखी भवतु लोकः, (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "संबंधिबंधुवर्गसहिता" पाठ से है.) ४. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: देवपूजा दयादानं दाक्षिन्य; अंति: धर्मोनास्ति दयापरम्, श्लोक-२. १२२९१३. (+) उपासकदशांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९-५(१ से ४,२६)=२४, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:उपासकसू., उपाससू., पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४११,११४४७). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ सूत्र-९ अपूर्ण से अध्ययन-१० गाथा-१ अपूर्ण तक है व बीच का पाठांश नहीं है) १२२९१४. (+) सीमंधरस्वामी स्तवन, निश्चयव्यवहार स्तवन व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४३९). १.पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन-ढाल ३ से ४, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. सीमंधरजिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सेवक सकलचंद कृपा करो, प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. निश्चयव्यवहार स्तवन-ढाल ३ से ४, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण.. सीमंधरजिन विनती स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वाचक जसविजय जयजय करो, प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन-ढाल १, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. सीमंधरजिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: परम मुणि झाणवण गहण; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १२२९१५ (#) मंगलकलश फाग, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १३४४१). मंगलकलश फाग, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४९, आदि: सासणदेवीय सामिणी ए; अंति: कनकसोम० चरित्त जगीस, गाथा-१४२. १२२९१६. (+) पार्श्वनाथकल्याणमंदिर स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १०x४२). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: रागादिशत्रूणां जेता; अंति: सुगुरुराजपदपद्मप्रसादात्. १२२९१८. महावीरजिन २७ भव व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११, १४४४२). महावीरजिन २७ भव व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: ग्रामेश१ स्त्रिदशो२; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चंदनबाला के घर पारणा प्रसंग तक लिखा है.) १२२९१९. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-८(१ से ८)=४, कुल पे. १३, प्र.वि. कुल ग्रं. ३५६.२०, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३८). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. पद्म, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पूरो पद्म वंछित तुम्हे आज, गाथा-१, (पृ.वि. प्रारंभिक पाठ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र आराधी कीजे; अंति: वंछित पूरे सोहमवासी, गाथा-१. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र आराधो नित; अंति: कहे विमलेसर सुखकारो, गाथा-१. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ३४९ पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सिद्धचक्रवर पूजा की त्रण; अंति: मुझने करयो मंगल मालाजी, गाथा-४. ५. पे. नाम. सीमंधर स्तुति, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: जंबुद्वीप विदेहमां; अंति: मुझने वहेलुं शिवसुख थायजी, गाथा-४. ६. पे. नाम. रोहिणी स्तुति, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: नक्षत्र रोहिणी जे; अंति: पद्मविजय गुण गाय, गाथा-४. ७. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: आदि जिनवर राया जास; अंति: थुणंता पद्मने सुख दिता, गाथा-४. ८. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. म. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदो जिन शांति जास; अंति: भव्य संताप खेवी, गाथा-४. ९. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ११अ, संपूर्ण.. म. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजल वरनारी रूपथी रतीहारी; अंति: पद्मने जेह प्यारी, गाथा-४. १०. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपास जिणंदा मुख पूनिम; अंति: विघ्ननां वृंद पासो, गाथा-४. ११. पे. नाम, महावीरजिन स्तुति, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: महावीर जिणंदा राय; अंति: पद्म भाखे सुशीस, गाथा-४. १२. पे. नाम. सुमतिनाथ स्तुति, पृ. १२अ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सुमतिनाथ जिन पांचमां सोगण; अंति: पद पद्मने नमतां जयकार, गाथा-४. १३. पे. नाम. शाश्वतजिन स्तुति, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९पू, आदि: रीषभ चंद्रानन वंदन कीजे; अंति: पद्मविजय नमे पाया जी, गाथा-४. १२२९२०. ८ कर्मप्रकृति विवरण व श्रावक मनोरथ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १८४५२). १. पे. नाम. ८ कर्मप्रकृति विवरण, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम कर्म ज्ञानावरणी; अंति: ३० कोडि सागरोपमनी. २. पे. नाम. श्रावक ३ मनोरथ, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम मनोर्थे किवारे हु; अंति: संसारनो अंत करवा भणी. १२२९२१. (#) कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१३-२१२(१ से २१२)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक भाग खंडित होने से अनुमानित पत्रानुक्रम दिया है., पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४१०.५, ९४२७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-६२ पाठ - "मुद्दियापिंगलंगुलिए" से ___ "हारुत्थयसुकयरइयवत्थे" तक है.) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदिः (-); अंति: (-). १२२९२२. (+) कायस्थिति प्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, ९x४२). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुह दंसणरहिउ; अंति: अकायपयसंपयंर देसु, गाथा-२४. कायस्थिति प्रकरण-टीका, आ. कुलमंडनसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: हे जिनेंद्र तव दर्शन; अंति: पदं ददस्व ममेति शेषः. . For Private and Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२२९२३. सिद्धचक्र स्तुतिद्वय, संपूर्ण, वि. १८७१, आश्विन शुक्ल, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. डांगास, प्रले. मु. उत्तमविनय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १४४४२). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धचक्र सेवो भवि; अंति: वाचक० उत्तम सीस सवाई, गाथा-४. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंन्या. जिनविजय, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीर जिणेसर भवन दिनेसर; अंति: मनि जिनमहिमा छाजे जी, गाथा-४. १२२९२४. (#) गच्छाधिपति कान्हजी घग्घर निसानी, औपदेशिक पद व सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १६४५९). १. पे. नाम. गच्छाधिपति कन्हजी घग्घर निसानी, पृ. १अ, संपूर्ण. गच्छाधिपति कान्हजी घग्घर निसानी, म. खेम, पुहिं., पद्य, आदि: प्रणमी जगनायक सदगुरु पायक; अंति: मनिमानी सेवक खेम कहंदा है, गाथा-१७. २. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. क. गद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: काठ अजाण नर पणि भुई नमै, गाथा-२, (वि. आदिवाक्यवाला भाग खंडित है.) ३. पे. नाम, औपदेशिक सवैया संग्रह, प. १आ, संपूर्ण. __ औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), (वि. आदि-अंतिमवाक्य अपठनीय है.) १२२९२५. सामुद्रिकशास्त्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सामुद्रक., जैदे., (२६४११, १५४३७). सामद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: (-), (पृ.वि. अध्याय-२ श्लोक-६ अपूर्ण तक है.) १२२९२७. (+#) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरे-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३३). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७९ अपूर्ण तक है.) १२२९३०. गोतम रास व मंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, जैदे., (२६४१०, १४४४५). १. पे. नाम. गोतम रास, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदिः (-); अंति: विनयवंत० सुख संपजइ ए, गाथा-४७, (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., आदि: ॐ नमो आदेश गुरु कु; अंति: ॐ ठः ठः ठः स्वाहा. १२२९३३. आदिनाथ गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०, १२४३४). आदिजिन स्तवन, उपा. रत्ननिधान, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: अभिराम सोरठ भूमि; अंति: भणइ रत्ननिधान वचन्न, गाथा-१२. १२२९३४. (#) श@जय माहात्म्य, अपूर्ण, वि. १५२६, वैशाख शुक्ल, ५, शुक्रवार, जीर्ण, पृ. २१०-२०९(१ से २०९)=१, उप. पंन्या. जयसुंदर गणि (गुरु आ. उदयसागरसूरि, वृद्ध तपागच्छ); गुपि. आ. उदयसागरसूरि; आ. चारित्रसुंदरसूरि (परंपरा गच्छाधिपति ज्ञानसागरसूरि, वृद्ध तपागच्छ); राज्ये गच्छाधिपति ज्ञानसागरसूरि (वृद्ध तपागच्छ); लिख. श्राव. पांचा; गुपि. श्रावि. धनी (पति श्राव. गंधा); श्राव. गंधा, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. पत्र खंडित होने से अनुमानित पत्रांक दिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४५४). श@जय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सिद्धि देयाद्रि स्थितः, सर्ग-१४, (पू.वि. सर्ग-१४ श्लोक-३११ अपूर्ण से है.) १२२९३५. हीरविजयसूरि गुरुगुण सज्झायद्वय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१०.५, १३४४५). For Private and Personal Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ३५१ १. पे. नाम. हीरविजयसूरि गुरुगुण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मु. विशालसुंदर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि पाए लागुं; अंति: संघ चतुरविध सुखकरु, गाथा-१३. २. पे. नाम. हीरविजयसूरि गुरुगुण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विशालसुंदर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणि मन धरी रे; अंति: विशालसुंदर० सीस दीइ आसीस, गाथा-११. १२२९३७ (+) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-२०(१ से २०)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११, १०x४०). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२०८ अपूर्ण से २२६ अपूर्ण तक है.) १२२९३८. (+#) चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १८४५३). चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६५, आदि: प्रणम्य परमानंदात्; अंति: (-), (पू.वि. वणिक भार्या दृष्टांत अपूर्ण तक है.) १२२९३९ (+) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ३६, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १६४३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१२९ अपूर्ण से १६३ अपूर्ण तक है.) १२२९४०. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७५८, फाल्गुन कृष्ण, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. २१, प्रले. विमला मथेन; पठ. सा. रंभाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दशविका०., श्रीदशवि०., जैदे., (२६.५४१०.५, १३४४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपणागमं गइ त्तिबेमि, ____ अध्ययन-१०. १२२९४३ (+) सिंदूरप्रकर सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:सिंदुरप्रक०., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ५४४१). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण से श्लोक-९ अपूर्ण तक है.) सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२२९४६. (+) निरयावलियाकादिपंचोपांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, कुल पे. ५, प्र.वि. हुंडी:निरावलीसूत्रं., निरा०सू., संशोधित. कुल ग्रं. ११०९, जैदे., (२६.५४११, १३४४३). १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. १आ-१२अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समएणं; अंति: अयमढे पण्णत्ते, अध्ययन-१०. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. १२अ-१३आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जयि णं भंते समणेणं; अंति: बितितो वग्गो दस अज्झयणा, अध्ययन-१०. ३. पे. नाम, पुष्पिकासूत्र, पृ. १३आ-२५आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संघहणाए, अध्ययन-१०. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. २५आ-२७अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं; अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन-१०. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. २७अ-३०अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंति: मइरित्त एक्कारससु वि, अध्ययन-१२. १२२९४७. उपधानतप विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६.५४११, १४४५२). उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पूर्व स्वगेहतो उछवपूर्वकं; अंति: सुद्धतीति न गुरुरग्रे. For Private and Personal Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२२९४८. चमत्कारचिंतामणि का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:द्वादशभावे ग्रहफलम्., जैदे., (२५.५४१०.५, २६४७५). चमत्कारचिंतामणि-पद्यानुवाद, मु. श्रीसार, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: युं विचार योतिष के कहत; अंति: वर्णव्यो सारबुद्धि अनुसार. १२२९४९ (#) १० मत स्वरूप व दांडीधर विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. खडा लेखन. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १९४२६). १. पे. नाम. दस मतनी परुपणा उत्पत्ति संवत्सर, पृ. १अ, संपूर्ण. १० मत स्वरूप, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: महावीरथी वरससइ ६ अनइ ९; अंति: ११ मास कल्प विहार विषे. २. पे. नाम. दांडीधर विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडिक्कमी दिसालक; अंति: ऊपरि मुकी पाटली ऊथापीइ. १२२९५०. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन ५० बोल, १८ पापस्थानक गाथा व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१०.५, १२४३८). १.पे. नाम. मखवस्त्रिकाप्रतिलेखन ५० बोल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पिहली मुहपति ऊखेलीनइ जोई; अंति: त्रय ३ एह पडिलेहण जाणवी. २. पे. नाम. १८ पापस्थानक गाथा सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र-१८ पापस्थानक गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पाणाइवाईमलियं; अंति: मायामोसंमित्थत्त सलच्च, गाथा-२. संथारापोरसीसूत्र-१८ पापस्थानक गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्राणाति जिव हिंसा करवी; अंति: ए १८ पाप स्थानक. ३. पे. नाम. प्रहेलिका श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: वनमध्ये स्थितो धूर्ता; अंति: सर्वे हा हा राम हता हता, श्लोक-२. १२२९५१ (#) पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि व पक्खीचौमासीसंवच्छरी तप विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४५०). १. पे. नाम. पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, पुहिं.,प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: वंदितु कहिने पछे देवसीयं; अंति: पछे देवसीनी विधि कहीइ. २. पे. नाम. पक्खीचौमासीसंवच्छरी तप विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: छठेण २ अपवास चार आबेल; अंति: वीस लोगस तथा ऐसी नोकार. १२२९५२. (+#) सम्यक्त्व स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, ६x४४). सम्यक्त्वपंचविंशतिका, प्रा., पद्य, आदि: जह समत्तसरूव परूवियं; अंति: हवेउ समत्त सपत्ती, गाथा-२५. सम्यक्त्वपंचविंशतिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिम सम्यक्त्वनउ स्वरूप; अंति: सम्यक्त्वनी प्राप्ति. १२२९५३. २४ दंडकगर्भितजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११, ११४३४). २४ दंडकगर्भितजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से ३० अपूर्ण तक है.) १२२९५६ (#) पांडव पांच बांधव सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०.५, १४४४५). ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिनागपुर वर भलो; अंति: कवियण आवागमण निवार रे. गाथा-१९. १२२९५८. (+) रत्नसारकुमार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-७(१ से ७)=११, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४३५). For Private and Personal Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ३५३ रत्नसारकुमार रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५८२, आदिः (-); अंति: बोलइ आणी बुधि प्रकास रे, गाथा-३००, (पू.वि. गाथा-११५ अपूर्ण से है.) १२२९५९ (+) उपधानतप विधि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)-६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, ११४४४). उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: खमासमणनी विधि जाणवी, (पू.वि. उपधानविधि चर्चा अपूर्ण से है.) १२२९६०. (#) राईप्रतिक्रमणविधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ७X१९). राईप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: कुसुमिणदुसुमिण ओढावण; अंति: (-), (पू.वि. नमोत्थुणं सूत्र तक १२२९६१. (+) उपधानतप विधि व मालारोपण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १९४५८). १.पे. नाम, उपधानतप विधि, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पहिलं आखी फल लेई ३ प्रद; अंति: (१)अथवा उतर्यु न सूझइ, (२)परमार्जु० पश्चात्मिथ्या. २. पे. नाम. मालारोपण विधि, पृ. ३आ, संपूर्ण. उपधानमालारोपण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: इर्यापथिकी प्रतिक्रम्य; अंति: विशेषतपश्च विलोक्यते. १२२९६३. (+) सीमंधर लेख, संपूर्ण, वि. १६५१, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. हंडी:श्रीसीमंधरलेख., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६४११, १५४५८). सीमंधरजिनविनती लेख, आ. जयवंतसरि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदिः स्वस्तिश्री पुंडरगिणी; अंति: जयवंत० मोहण वेलि अवतार रे, गाथा-३९. १२२९६४. पाखी नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११,१४४३९). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: भावतोहं नमामि, श्लोक-२९. १२२९६५ (+) वरदत्तगुणमंजरी कथानक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १५४६८). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: लिखिता तेरेव मेडतानगरे, श्लोक-१५२. १२२९६६. (+) पुंडकस्य स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जेसमेरुदुग़, राज्यकाल आ. जिनचंद्रसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:शत्रुजयस्तव., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, १५४५१). शत्रुजयतीर्थ चैत्यपरिपाटिका, सं., पद्य, आदि: नरेंद्रमंडलमणीमयमौलिमाल; अंति: स लभते ततीर्थयात्राफलं, श्लोक-२३. १२२९६७. (+) गौतमाष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, १०४३१). गौतमस्वामी अष्टक, मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: इंद्रभूति गुरु लबधि निलउ; अंति: इणिपरि मनरंगि पदमराजइ, गाथा-९. १२२९६८. (#) तप आराधनाफल रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८२, प्र.वि. हुंडी;तपकु०भ०., कुल ग्रं. ४९२०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १७७५५). तप आराधनाफल रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जयो जयो रे जुगादिजिन; अंति: गुणसागरसूरि० सुविसालजी रे, ढाल-२६०. १२२९६९ (#) नोकरवालीनी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८५९, वैशाख कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ११४३१). नवकारवाली सज्झाय, म. लब्धि, मा.ग., पद्य, आदि: नोकरवाली वंदिये चिरनंदिये; अंति: लब्धि कहे० भविजन नवकार के, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२२९७० (+) कर्मग्रंथ-१ से २, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:कर्मग्रंथ., कर्मग्रंथपत्र., संशोधित-पदच्छेद सचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, ५४३७). १. पे. नाम. कर्मविपाकसूत्र कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १अ-१०आ, संपूर्ण, प्रले. मु. पूजा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिअ; अंति: गोयं लिहिउं देविंदसूरीहिं, गाथा-६२. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: श्रीदेवेंद्रसूरइ. २.पे. नाम, कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १०आ-१५आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: दविंददिअ नमह तं वीरं, गाथा-३५. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ २-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तथा तिम स्तवू; अंति: महावीरनइ एतेलइ सत्ता कही. १२२९७१ (+) छ कायना बोलनो थोकडो व सिद्ध विचार, संपूर्ण, वि. १९७३, पौष, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. २, अन्य.सा. समरथबाई आर्या (गुरु सा. वीजकोरबाइ महासती); गुपि. सा. वीजकोरबाइ महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:छकायनाबोल०., संशोधित. कुल ग्रं. ५५०, दे., (२५.५४११, १४४४४). १. पे. नाम. छ कायना बोलनो थोकडो, पृ. १आ-१४आ, संपूर्ण. ६ काय जीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (१)पहेले बोले इंद्रस्थावरकाय, (२)पहेले बोल पृथ्वीकाय१; अंति: कुल कोडी छवीस लाख जाणवी. २. पे. नाम, सिद्ध विचार, पृ. १४आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: सर्वार्थसिद्ध विमाननी; अंति: समय समय वंदणा होज्यो. १२२९७२ (+) भुवनदीपक व नवग्रह उत्पत्तिस्थान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:भुवनदीप., भुवनदीपक., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, ६४३०). १. पे. नाम, भुवनदीपक सह टबार्थ, पृ. १आ-१५आ, संपूर्ण. भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मसूरिभिः, श्लोक-१७३, संपूर्ण. भवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती संबंधीयउ नमस्कार; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., श्लोक-५० तक का टबार्थ लिखा है.) २. पे. नाम. नवग्रह उत्पत्तिस्थान, पृ. १५आ, संपूर्ण. नवग्रहजाति उत्पत्तिस्थान, प्रा.,सं., पद्य, आदि: कंसारो१ भरडोर लोहार३; अंति: केतो वासी कुंकणयं, गाथा-३. १२२९७३. (#) उत्तराध्ययनसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८०-७५(१ से ७५)=५, प्र.वि. हुंडी:उत्तरा०बाला०. प्रतिलेखक ने पत्रांक १७७ से १८० गलती से दिया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १७४४०). उत्तराध्ययनसूत्र, म. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-९ गाथा-१४ से है व अध्ययन-९ तक लिखा है.) उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १२२९७४. (+) चउसरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६८५, आश्विन कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. श्राव. अभयराज लूणीया सीमाला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ५४५१). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३, संपूर्ण. चतःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मंगलिक्य भणी पहेलं; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६१ तक का टबार्थ लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२२९७५. २४ दंडक २५४ द्वार विचार, २४ दंडक २५४ द्वार यंत्र व ३१ बोल, संपूर्ण, वि. १९७७, वैशाख शुक्ल, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६९, कुल पे. ३, ले.स्थल. पालीयाद, प्रले. छगनलाल अविचलभाई लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दंडक., दे., (२६४११, १८४५७). १.पे. नाम. २४ दंडक २५४ द्वार विचार, पृ. १आ-५८अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)दंडयते० जीवो जेने विषे; अंति: अनंतगुणा० बोले छे माटे, द्वार-२५४. २.पे. नाम. २४ दंडक २५४ द्वार यंत्र, पृ. ५८अ-६९अ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. वाटे वहेताना ३१ बोल, पृ. ६९अ, संपूर्ण. ३१ बोल-मार्गपतित जीव, मा.गु., गद्य, आदि: १ वाटे वहेता जीवमां वेदक; अंति: ३१ वाटे० जोग एक कायानो छे. १२२९७६ (+) नेमराजिमती स्तवन, ५ इंद्रिय विषयत्याग गीत व भवदेवनागिला सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-३७(१ से ३७)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:सिज्झाय., संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४२). १. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण. मु. भिखू, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमि जिनेसरू यादव; अंति: मुनि भिखू० जनम प्रमाण हो, गाथा-१३. २.पे. नाम.५ इंद्रिय विषयत्याग गीत, पृ. ३८आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: नागनि चिंतवसि पायालइ; अंति: विषय म सेवउ प्राणी रे, गाथा-७. ३. पे. नाम, भवदेवनागिला सज्झाय, पृ. ३८आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भवदेव भाई घरि आवीया रे; अंति: समयसुंदर गुण गाय रे, गाथा-७. १२२९७८. (+#) सीमंधरजी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५,११४३८). सीमंधरजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: चांदलीया संदेसौ जिणवरनै; अंति: जिनहरष सुजाण रे, गाथा-१५. १२२९७९. आषाढभूति ढाल व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. कल्याण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५,१५४३७). १.पे. नाम. आषाढभूति ढाल, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. आषाढाभूतिमनि चरित्र, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: श्रीजिनवदन निवासनी समरी; अंति: सब श्रीसंघ कुं सुखकारा, गाथा-७६. २. पे. नाम, श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), श्लोक-१. १२२९८१ (+) महावीरजिन व सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:स्तवन०., संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४५०). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १३अ-१३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: मागइ सकलचंद्र सिवदान, गाथा-२२, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से २.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधरजिन त्रिभुवनभाणु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) १२२९८२ (+#) २४ दंडक २९ बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०, १५४४७). २४ दंडक २९ द्वार बोल, मा.गु., गद्य, आदि: १ नारकी १० भवनपती; अंति: एवं १५ पनर योग जाणिवा. १२२९८३. (+) आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १७४५७). For Private and Personal Use Only Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन, उपा. पुण्यसागर, अप., पद्य, आदि: सयल जग जीव सुहकार परमेसरं; अंति: पुण्यसागर० महमंछिय करो, गाथा-२६. १२२९८४. (+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, नेमराजिमती गीत व गुरुगुण गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, पठ. श्रावि. सुहागदे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, १३४३७). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. राजहंस, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदरी प्रियु प्रति इम; अंति: राजहंस० सुरनर करइ वखाण रे, गाथा-७. २. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. नेमिराजिमती गीत, मु. राजहंस, मा.गु., पद्य, आदि: राजमती राणी वदइ; अंति: राजहंस० जोडी प्रकार रे, गाथा-७. ३. पे. नाम, गुरुगुण गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. __पं. कमललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्री खरतरगछि वड वीर रे; अंति: द्यइ कमललाभ आसीस, गाथा-४. १२२९८५ (+) आनंदघनकृत चतरवीसी व देवचंदजीनी चोवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:स्तवन पत्र., संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४३२). १.पे. नाम. आनंदघनकृत चतुरवीसी, पृ. १आ-११अ, संपूर्ण, वि. १८२४, वैशाख शुक्ल, १५, ले.स्थल. भावनगर बिंदर, प्रले. मु. मलूकचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम माहरो; अंति: गाता अखय संपद अतिघणी, स्तवन-२४. २. पे. नाम. देवचंदजीनी चोवीसी, पृ. ११अ-२१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: ऋषभ जिणंदसुं प्रीतडी किम; अंति: (-), (पू.वि. स्तवन-२४ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) १२२९८७. समतारस स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३८). मुनिशिक्षा स्वाध्याय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शांत सुधारस कुंडमा तु रमे; अंति: सकल मुनि सुखि चित पूरि रे, गाथा-२०. १२२९८८. कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, संपूर्ण, वि. १६९८, श्रावण शुक्ल, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. ५६, ले.स्थल. महिमनगर, प्रले. ग. संयममूर्ति (गुरु ग. गुणनंदन, खरतरगच्छ); गुपि. ग. गुणनंदन (गुरु ग. ज्ञानप्रमोद, खरतरगच्छ); ग. ज्ञानप्रमोद (गुरु आ. सागरचंद्रसूरि, खरतरगच्छ); आ. सागरचंद्रसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:अंतर्वाच्य., जैदे., (२६४११, १५४४४). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, आ. जिनहंससूरि, सं., गद्य, आदि: पुरिचरिमाणकप्पो० थेरावली; अंति: श्रीकालिकाचार्य कथा. १२२९८९ (+) निरयावलीकादिपंचोपांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६१, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १२५, कुल पे. ५, ले.स्थल. भुजनगर, प्रले. खीमजी छगनजी त्रवाडी; अन्य. सा. डाईबाई (गुरु सा. मानकुंवरबाई); गुपि. सा. मानकुंवरबाई; अन्य. सा. कस्तूरबाई आर्या; सा. जयाकुंवरबाई (गुरु सा. दूधीबाई); गुपि. सा. दूधीबाई, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:निरया० ट०., निरयावलियासूत्रट०., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. ४०००, जैदे., (२६४११.५, ५४३०). १.पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-४८अ, संपूर्ण. कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समएणं; अंति: नवरं माताओ सरिसणामा, अध्ययन-१०. कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० ते अवसर्पणी कालना; अंति: नाम सरिखा नाम. २.पे. नाम. कल्पावतंसिका सूत्र सह टबार्थ, पृ. ४८अ-५३अ, संपूर्ण. कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंति: वा सेज्झिहिंति, अध्ययन-१०. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जो भं० हे पूज्य स; अंति: क्षेत्रे सि० सिझस्ये. ३. पे. नाम, पुष्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ५३अ-१०२आ, संपूर्ण. पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए, अध्ययन-१०. पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जो भ० हे पूज्य स०; अंति: गाथामाहे छे तिम. For Private and Personal Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ३५७ ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टबार्थ, पृ.१०२आ-११०आ, संपूर्ण. पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: खलु जंबू निक्खेवउ, अध्ययन-१०. पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जीम भं० हे पूज्य स०श्र; अंति: सर्व पाछली परे कहीवो. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. ११०आ-१२५अ, संपूर्ण. वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते समणेणं; अंति: बारस्स उद्देसगा, अध्ययन-१२. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जो भं० हे पुज्य; अंति: बा० बार उ० उद्देसा. १२२९९० (+) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र सह टबार्थ व मलयगिरी टीका का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९३१, माघ शुक्ल, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १३९, ले.स्थल. खंभालिया, प्रले. मु. प्रतापचंदजी ऋषि (गुरु मु. नवलचंद्रजी ऋषि); गुपि. मु. नवलचंद्रजी ऋषि (गुरु आ. रूपचंद्रजी स्वामी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चंद्रप्रज्ञप्तिटबार्थ., चद्रप्रज्ञप्ती०ट०., चंद्रप्रज्ञप्ति०., संशोधित., दे., (२५.५४११.५, ६x४६). चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: जयइ नवणलियणकुवलय; अंति: अविणएसु दायव्वं, प्राभृत-२०. चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र-मलयगिरीय टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तिहा अविघन पणइ इष्ट; अंति: एहवी ___ मननिधीर्यताइ राखवीउ. १२२९९१ (+#) गुणस्थानक्रमारोह सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८८, चैत्र, ३, सोमवार, मध्यम, पृ. ३७, प्रले. मु. जयवंतविजय (गुरु म. उदयविजय गणि); गुपि. मु. उदयविजय गणि (गुरु मु. धनविजय गणि); मु. धनविजय गणि (गुरु मु. मेरुविजय गणि); मु. मेरुविजय गणि (गुरु मु. मेघविजय गणि); मु. मेघविजय गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (६१२) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (१५०६) जलात् रक्षेत तैलात् रक्षेत्, (१५०७) भग्न पृष्टी कटीग्रीवा, जैदे., (२६.५४११, २४३२). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोह हतमोहं; अंति: रत्नशेखरसूरिभिः, श्लोक-१४२. गुणस्थानक्रमारोह प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: गुणस्थानक्रम कहता; अंति: अबोध जीवनी जाणवानि अर्थि. १२२९९२ (+#) संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, पठ. मु. कपूरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पठनार्थे का नाम किसी अन्य द्वारा बाद में लिखा हुआ है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६४११.५, ११४३७). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: नंदउ जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२७६. १२२९९३. (+) कल्पसूत्र व पट्टावली तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८६, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्रं., कल्प०८०., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ५४३५). १. पे. नाम. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान कथा, पृ. १आ-१८४आ, संपूर्ण. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: भुज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सूत्र-१ अपूर्ण से लिखा है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पोताना शिष्यने कहे, अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परया भक्त्या; अंति: केवलज्ञान प्राप्ता, संपूर्ण. २. पे. नाम. पट्टावली तपागच्छीय, प. १८५अ-१८५आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ श्रीसुधर्मास्वामी वर्ष; अंति: (१)श्रीविजयधर्म सूरी, (२)४ना पजोसण कर्या ए ३ थया. १२२९९५ (+#) सिंदूरप्रकर सह टीका, संपूर्ण, वि. १८९१, कार्तिक शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ३१, ले.स्थल. मकसूदाबाद, प्रले. मु. उद्योतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सिंदूर०वृ०., सिंदूर वृत्ति., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५,१४४३९). For Private and Personal Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, श्लोक-१००. सिंदरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा; अंति: प्रासादमाधाय तत्सर्वं. १२२९९७. शालिभद्रमुनि चोपाई व थंभणा पार्श्वनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-१(७)=१३, कुल पे. २, ले.स्थल, जावदनगर, जैदे., (२६.५४११.५, १७४४६). १.पे. नाम. शालिभद्रमुनि चोपई, पृ. १अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., वि. १७६२, आश्विन शुक्ल, १०, सोमवार. शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरीइ वर्द्धमान; अंति: मनवंछित फल लहस्यइ जी, ढाल-२९, (पू.वि. ढाल-१४ गाथा-४ अपूर्ण से ढाल-१६ गाथा-१० अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम, थंभणा पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १४आ, संपूर्ण, वि. १७६२, पौष शुक्ल, २, शुक्रवार. पार्श्वजिन छंद-स्थंभनपुर, मु. अमरविसाल, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुर सिरि पासजिणंदो; अंति: मंडण पारसनाथ चोसालो, गाथा-८. १२२९९८. (+) गौतमपृच्छा सह टीका, संपूर्ण, वि. १९३७, माघ शुक्ल, २, सोमवार, मध्यम, पृ. ६६, प्रले. बुलाखीराम गणपतराम क्षत्रिय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १३४४३). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४. गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदि: वीर जिनं प्रणम्यादौ; अंति: गौतमपृच्छा माहर्थे मोटी. १२३००० पार्श्वजिन विवाहलो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, ११४२९). पार्श्वजिन विवाहलो, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६०, आदि: स्वस्ति श्रीदायक; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ दोहा-१अपूर्ण तक है.) १२३००१ (#) बृहत्संग्रहणी की टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, २४-२७४६९-७२). बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: अत्यद्भुतं योगिभिरप्यगम्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्वासोच्छ्वास संख्या प्रमाण तक लिखा है., वि. बीच-बीच में से अपेक्षित पाठ लिया है.) १२३००२ (+) श्राविका अतिचार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-३(१,४ से ५)=३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ११४४७). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, (पू.वि. दर्शनाचार अतिचार अपूर्ण से परिग्रह परिणाम अतिचार तक व वीर्याचार अपर्ण से है.) १२३००३. (+) धातुपाठ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी:धातुपाठ., संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४३७). सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमधातुपाठ, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: भू सत्तायां पां पाने; अंति: (-), (पू.वि. पाठ-"णिक्षु चुंबने कक्षु कांक्षायां" तक है.) १२३००४. (+) आवश्यकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ७X४५). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३ सूत्र-१८ अपूर्ण से अध्ययन-४ सूत्र-२३ अपूर्ण तक आवश्यकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२३००५. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८१-७२(१ से ४२,४८ से ७५,७९ से ८०)=९, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:ज्ञातासूत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, १७X४१). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ अपूर्ण से अध्ययन-१३ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) For Private and Personal Use Only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२३००८. (+#) चंद्रप्रभाहैमकौमुदी, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २४८, प्रले. मु. स्थिरविजय (गुरु मु. माणिक्यविजय); गुपि. मु. माणिक्यविजय (गुरु पं. मेरुविजय गणि); पं. मेरुविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वि. सं. १७५८ मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष ५ को लिखी गई ग्रंथ की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, १३४२७). सिद्धहेमशब्दानशासन-चंद्रप्रभा प्रक्रिया, उपा. मेघविजय, सं., गद्य, वि. १७५७, आदि: प्रणम्य श्रीमदर्हतं; अंति: शुद्धलक्षणान्वितयाश्रिये, ग्रं. १८०००. १२३००९ (+#) अनुयोगद्वारसूत्र की शिष्यहिता टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४५-८(१ से ४,२६ से २७,३२,३५)=३७, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:अनुयो०वृ०., पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४११, १५४५२). __ अनुयोगद्वारसूत्र-शिष्यहिता टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-३ की वृत्ति अपूर्ण से आनुपूर्वी अपूर्ण तक है.) १२३०१३. १३ स्थानके मार्गणादि बोल विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-१(१)=९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १५४६३). १३ स्थानके मार्गणादि बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. १३ स्थानके गुणठाणा विचार अपूर्ण से १३ स्थानके उत्तरप्रकृति बंध विचार अपूर्ण तक है.) १२३०१४. विवेकविलास सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४७-३१(१ से २२,३३,३५ से ३७,३९ से ४०,४४ से ४६)=१६, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १५४५०). विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. उल्लास-५. श्लोक-४ से २०५ तक, २२७ अपूर्ण से २४६ अपूर्ण तक, उल्लास-८, श्लोक-१० से २९ तक, ७१ से १३१ तक व १९५ से २१६ अपूर्ण तक है.) विवेकविलास-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. बालावबोध संक्षिप्त रूप में लिखा है.) १२३०१५ (+) श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, १५४५७). श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामिह दुक्कडंवि, गाथा-३४२, ग्रं. ३९०, (पू.वि. गाथा-४४ अपूर्ण से है.) श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: पुनः भणनं इदं कलकरणं, (पू.वि. गाथा-५१ का टिप्पण अपूर्ण से है.) १२३०१६ (+#) जिनप्रतिमास्थापना व माया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १०४३७). १. पे. नाम. जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअनुयोगद्वार सूत्रारथ; अंति: विजयदेवसूरि०आज्ञा पालउ रे, गाथा-२५. २.पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में अरणकमुनि सज्झाय की गाथा-१ का पूर्वार्द्ध लिखकर छोड़ दिया गया है. मु. कर्मसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: इण जुगमें माया प्यारी रे; अंति: करमसी० वार हजारी रे, गाथा-१३, (वि. अंत में अरणकमुनि सज्झाय की गाथा-१ का पूर्वार्द्ध लिखकर छोड दिया गया है.) । १२३०१८. (+) उपदेशमाला सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७२-२२(३ से ४,६ से ७,९ से ११,२५ से २८,३२,४३,४७ से ४८,५६,६० से ६१,६८ से ७१)=५०,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. १९०००, जैदे., (२६४११.५, ४४२७). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंदनरिंद०; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४५, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से २१ अपूर्ण तक नहीं है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण कहीइ नमीनइ; अंति: मुखथी नीकली वाणी. १२३०२०. शत्रुजयतीर्थोद्धार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-७(१ से ७)=३, जैदे., (२६.५४११, १३४३३). For Private and Personal Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: (-); अंति: नयसुंदर०संघनि जय करुं, ढाल-१२, - गाथा-११२, ग्रं. १८०, (पू.वि. गाथा-५७ अपूर्ण से है.) १२३०२१. (+#) आचारांगसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२०-१७४(१ से ५,७ से १८,२०,२२ से ४८,५२,५४ से ५६,५८ से ६१,६४ से ६५,६८ से ७१,७५ से ८९,९२,९४ से १००,१०२,१०४ से १२७,१३० से १३१,१३३ से १३५,१३७ से १४०,१४४ से १६०,१६४ से १७८,१८० से १८१,१८३ से १८६,१८८ से १९६,१९८ से २००,२०५ से २०७,२१० से २११,२१३,२१५,२१९)=४६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:आचा दी०., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४७). आचारांगसूत्र-प्रदीपिका टीका, गच्छा. जिनहंससूरि, सं., गद्य, वि. १५७३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ प्रथम उद्देशक की टीका अपूर्ण से अध्ययन-३ उद्देशक-२ की टीका अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२३०२२. (#) पुष्पमाला प्रकरण व आचार्यसंपदा विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ९४२१). १.पे. नाम, पुष्पमाला प्रकरण सह बालावबोध, पृ. १आ-४१आ, संपूर्ण. पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: सिद्धं कम्ममविग्गह; अंति: सया सुहत्थिहिं, द्वार-२०, गाथा-५०५. पुष्पमाला प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्ध त्रैलोक्यमाहि जाणी; अंति: जेने सुख वांछते इणिउ कहिउ. २. पे. नाम. आचार्यसंपदा विचार, पृ. ४१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आचार संपदा ४ संजमध्रुवयोग; अंति: रतनाधिसत्पाय० एवं ३२. १२३०२३. (+) ठाणांगसूत्र विचारसार, संपूर्ण, वि. १६६१, कार्तिक शुक्ल, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३३, ले.स्थल. मेदपाटनगर,नांदसमा, प्रले. मु. दामोदर (गुरु मु. भावहर्ष); गुपि. मु. भावहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ठाणांगविचारसार., संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १५४४४). स्थानांगसूत्र-विचारसार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १ एगे आया १ एगे लोए १ एगे; अंति: ६३ आरणअच्युतेंद्र. १२३०२४. (+) नवतत्त्व प्रकरण, पंद्रहसिद्धभेद उदाहरण व कर्मस्थिति गाथा, संपूर्ण, वि. १८७६, आषाढ़ कृष्ण, ६, मध्यम, पृ.८, कुल पे. ३, पठ. श्रावि. सांकलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ४४३४). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ.१आ-८अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवा२ पुण्णं३ पावा४; अंति: बोहि१३ कण१४ काय१५, गाथा-४९. ___ नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती भणी नमस्कार; अंति: पुत्रादिक ते अनेक सिद्ध. २. पे. नाम. १५ सिद्धभेद उदाहण, पृ. ८अ, संपूर्ण. १५ सिद्धभेद उदाहरण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जिणसिद्धाय अरिहा अजिण; अंति: पनरस भेया उदाहरणं, गाथा-४. ३. पे. नाम. कर्मस्थिति गाथा सह टबार्थ, पृ. ८अ, संपूर्ण. कर्मस्थिति गाथा, प्रा., गद्य, आदि: मोहे कोडा कोडी सत्तिर; अंति: तेतीसअयरा आऊस, गाथा-१. कर्मस्थिति गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मोहनीकर्मनी स्थिति सतिर; अंति: सागरोपमनी स्थिति जाणवी. १२३०२५. बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १५५३, चैत्र कृष्ण, १, रविवार, मध्यम, पृ. २०, प्रले. मु. भूपति; उप. पंन्या. राजमाणिक्य गणि (गुरु आ. जिनहंससूरि, तपागच्छ); गुपि. आ. जिनहंससूरि (गुरु आ. रत्नशेखरसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं.८२५, प्र.ले.श्लो. (४७६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , जैदे., (२६.५४११.५, ८४३७). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२७७. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिनइ अरिहंतसिद्धादिकनइ; अंति: तीर्थ शासन वर्तइ. १२३०२६. (#) पार्श्वजिन गीतद्वय व अर्बदाचल गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, पठ. सा. हेमसिद्धि गणिनी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १५४४७). १. पे. नाम, पार्श्वनाथ गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ पार्श्वजिन गीत, ग. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: मलकीरति पास जिनपति संघवइ, ढाल-४, गाथा-१५, (वि. आदिवाक्य का पूर्वार्द्ध भाग खंडित है.) २. पे. नाम. लोद्रवापुर पार्श्वनाथ गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन गीत-लोद्रवापरमंडण, ग. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६७५, आदि: सहसफणा इम नमो हियउ; अंति: विमलकीर्ति०चिंतामणि सामकि, गाथा-५. ३. पे. नाम. अर्बुदाचल गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. अर्बुदाचलतीर्थ गीत, मा.गु., पद्य, आदि: आयउरे आयउ रे आबूगढ नयण; अंति: (अपठनीय), गाथा-८, (वि. अंतिमवाक्य खंडित है.) १२३०२७. कर्मग्रंथ पदार्थ विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १८४४३). कर्मग्रंथ पदार्थ विचार, मा.गु., गद्य, आदि: कर्मनी मूलप्रकृति ८ तेहना; अंति: (-), (पू.वि. द्वितीय बंधस्वामित्व कर्मग्रंथ प्रथमगुणस्थानकवर्णन अपूर्ण तक है.) १२३०२८. (+) शत्रुजयतीर्थ माहात्म्य, संपूर्ण, वि. १८४३, कार्तिक कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. लेंबडी, प्रले. पं. राजवर्द्धन (गुरु ग. सकलवर्द्धन); गुपि. ग. सकलवर्द्धन (गुरु ग. कल्याणवर्द्धन); ग. कल्याणवर्द्धन; पठ. श्रावि. कशला डोसा वोहरा, प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. श्रीशांतिजिन प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२७४१२, १४४३५). शत्रुजयतीर्थ माहात्म्य, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसिद्धाचल तीर्थे अतीत; अंति: चैत्यवंदन करी स्तवन कहीइं. १२३०२९ (+#) आचारांगसूत्र-श्रुतस्कंध १ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८७, आषाढ़ कृष्ण, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ५७, ले.स्थल. वागड,वांसवाला, अन्य. मु. रघुनाथ (गुरु मु. राजसिंह); गुपि. मु. राजसिंह (गुरु मु. ठाकुरसी); मु. ठाकुरसी (गुरु मु. लघराज); प्रले. मु. लघराज (गुरु आ. जीवनदास); गुपि. आ. जीवनदास; राज्यकालरा. विसनसिंघ रावत; अन्य. रा. गजसिंह; रा. भूपतिसिंह; रा. साहिबसिंह; रा. अमरसिंह महाराजा; रा. शार्दूलसिंह, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. संवत् १८५२ पौष शुक्ल १४ को नागपुरीय रघुनाथ के द्वारा प्रत पढी गई है. जो ११श्लोको में वर्णित है. अपनी गुरुपरंपरा के साथ-साथ राजपरंपरा का भी वर्णन मिलता है किन्तु, ये सभी राजा एक ही कुल के हैं या अलग-अलग यह संशोधन का विषय है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ४०००, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, ५४४३). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. -) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १२३०३० (+#) बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३५). बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसरि, प्रा., पद्य, वि. १३७३, आदि: सिरिनिलयं केवलिणं; अंति: सोहेयव्वो सुअहरेहिं, गाथा-३८६. १२३०३१. (+) भगवतीसूत्र-शतक-२ उद्देश-१ खंधक अधिकार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-२(३ से ४)=३, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३४५३). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. स्कंधक अणगार तपस्या वर्णन __ अपूर्ण तक है व बीच का पाठांश नहीं है.) १२३०३२ (+#) श्रेणिक रास, अपूर्ण, वि. १६५०, आश्विन कृष्ण, ३, रविवार, मध्यम, पृ. २०-७(१ से ७)=१३, ले.स्थल. राडइहानगर,राडद्रहानगर, प्रले. मु. रूपमूर्ति (गुरु आ. धर्ममूर्तिसूरि, अंचलगच्छ); राज्ये आ. धर्ममूर्तिसूरि (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रेणिकरास., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , जैदे., (२६.५४११.५, २०४५७). श्रेणिकराजा रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: अनुक्रमी जय जयकार, गाथा-६७२, (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२३०३३. (+) जीवाभिगमसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१४, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. २७१, ले.स्थल. पादरानगर, प्रले. ग. हंसविजय (गुरु ग. सुजाणविजय, तपागच्छ); गुपि.ग. सुजाणविजय (गुरु ग. शांतिविजय, तपागच्छ); ग. शांतिविजय (गुरु मु. लब्धिविजय, तपागच्छ); मु. लब्धिविजय (गुरु आ. विजयप्रभसूरि, तपागच्छ); आ. विजयप्रभसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीशांतिजिनप्रासादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. १४०१५, जैदे., (२६४१२, ५४३८). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: णमो उसभादियाणं चउवीस; अंति: सेत्तं सव्वजीवाभिगमे, प्रतिपत्ति-१०, सूत्र-२७२, ग्रं. ४७५०. जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मु. धनविमल, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीशांतिनाथमानम्य, (२)नमस्कार हो ऋषभादिक चउवीस; अंति: धनविमलोयं० विणिग्गया वाणी. १२३०३४. (#) दानशीलतपभावना की वृत्ति, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३४-१०१(१ से ९४,१००,१०२ से १०५,१२१ से १२२)=३३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १६x४०). दानशीलतपभावना कुलक-वृत्ति, मु. लाभकुशल, सं., गद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., तप कुलक के सनत्कुमार चक्रवर्ती कथा अपूर्ण से भाव कूलक अपूर्ण सोमचंत्र राजा धारिणी रानी कथा अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)। १२३०३५ (+#) नव्वाणुप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८९३, चैत्र शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. सोझितनगर, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२४.५४११.५, १५४३३). नवाणुप्रकारीपूजा विधि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: याने आतम आप ठरायो रे, ढाल-१२, (वि. अंत में पूजन सामग्री की सूची दी गई है.) १२३०३६. (+) शक्रस्तव कल्प, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, १३४४०). नमुत्थुणं कल्प, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ॐ नमुत्थुणं अरिहंता; अंति: ०नलादिसर्वभयरक्षा भवति, गाथा-१६. १२३०३७. दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२६४११.५, ११४२९). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१अपूर्ण तक है.) १२३०३८. (+) लघु दंडक, बार देवलोक, सात नारकी विवरणादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ५, प्र.वि. हुंडी:लघुदंडक., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., दे., (२५४११.५, १४४३२-४२). १. पे. नाम. लघु दंडक, पृ. १अ-१०अ, संपूर्ण. २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सरीर १ अवगाहना २; अंति: गति ४ प्राण १० जोग ३ लाभे. २.पे. नाम. १२ देवलोक क्षेत्रमान विचार, पृ. १०अ, संपूर्ण. १२ देवलोक राजमान विचार, मा.ग., गद्य, आदि: १लो देवलोक शा राज ऊँचो; अंति: १राज लांबो १राज पहलो. ३. पे. नाम. ७ नारकी क्षेत्रमान विचार, पृ. १०आ, संपूर्ण. ७ नरक क्षेत्रमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १ली नारकी १राजरी जाडी; अंति: ७राज लांबी ७राज पहुली. ४. पे. नाम, ५५ कर्णरा नाम, पृ. १०आ, संपूर्ण. ५५ शरीरादिकरण प्रकार, मा.गु., गद्य, आदि: ५ इंद्री ५ शरीर ४मनरा; अंति: ५प्राणातिपातादि ५जाति. ५. पे. नाम. १२ चक्रवर्ती आयमान देहमान बोल, पृ. १०आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: भर्तचक्रवर्त को ८४लाख; अंति: ब्रह्मदत्तच०७००व०देश०१६च०, संपूर्ण. १२३०३९. ज्ञानककाबत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९१७, आश्विन अधिकमास शुक्ल, ७, रविवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. धमनार, प्रले. मु. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ककाबतिसी., प्र.ले.श्लो. (१५२८) देखी जसी लखी, दे., (२५४११.५, ९४२९). ज्ञानककाबत्रीशी, पुहिं., पद्य, आदि: क का कलियुग केवलनाम आधारा; अंति: नमस्कार करहुं गुरदेव, गाथा-३४. For Private and Personal Use Only Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२३०४० (+०) कल्पमांडणी सह टबार्थ, कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १४९-२६(१,१३,१७,१९ से २४, २६ से ३०, ३३, ४५,५७,६३ से ६४, १०५ से १०६, १२०,१३९ से १४१, १४८)=१२३, कुल पे. २, प्रले. पं. कुस्यालहर्ष (गुरु पं. हेमहर्ष), गुपि. पं. हेमहर्ष, अन्य. पं. राजहर्ष (परंपरा पं. कुस्यालहर्ष), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१२, ४-६X३०). १. पे. नाम. कल्पसूत्र मांडणी सह टबार्थ, पृ. २अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. कल्पसूत्र-मांडणी, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: परमंतो चितियमित्तो सुहदेइ, (पू. वि. प्रारंभिक पाठ अपूर्ण से है.) कल्पसूत्र-मांडणी का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सुखकारी नवकार० सुखदाई. २. पे. नाम. कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, पृ. ८अ - १४९आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: भुज्जो उवदंसे तिबेमि, व्याख्यान- ९, ग्रं. १२१६, (अपूर्ण, वि. १८१४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५. गुरुवार, पू. वि. बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) कल्पसूत्र- टवार्थ व वालावबोध, मा.गु., गद्य वि. १७२३, आदि (१) अरहंतनइ नमस्कार हु, (२) इण जंबूद्वीपि 1 महाविदेह, अंति: (१)एतलाइ गुरुक्त जांणाविउ, (२) गच्छ हुवा ६११ वरसे हुवा (संपूर्ण, वि. १८१४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७) १२३०४१. (+) लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११.५, १२X३५). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. १२३०४२. लाहौर नगर की गजल, संपूर्ण, वि. १७९९ मध्यम, पृ. २. प्र. वि. हुंडी : लाहोरकीगजल, जैये., (२५x११, ११-१७४५२). लाहौरनगरवर्णन गजल, श्राव. जटमल नाहर, रा., पद्य, वि. १७वी, आदि: देख्या सहिर जब लाहोर; अंति: बरनन करी सुनत होत सुखकंद, गाथा-५९. ३६३ १२३०४४. (+) अंजनासुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, प्र. वि. हुंडी : अंज०., संशोधित., जैदे., (२५.५X१२, १६×३९). अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्म, आदि: सील समोवर को नही; अति भार्या जगतनी मात तो, ढाल २२, गाथा- १५८. १२३०४५. पाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. वे. (२५.५x११.५ १२४३५)साधुपाक्षिक अतिचार.मू. पू.. र-मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: (-), (पू.वि. पाठ - "धर्म्मिसद्दिव श्रावकतणइ" तक है.) १२३०४६. बुधरास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ३, प्र. वि. हुंडी : बुद्धिरास, जैदे. (२६११.५, १०x३९). बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि देव अंबाई; अंति: ए तेह सवि टलें कलेंस, गाथा-६३. १२३०४७. आलोयणा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९६६, वैशाख कृष्ण, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. योधपुर, प्रले. बालाराम ललितराम; पठ. सा. जडावाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : तवन., दे., (२५.५X११.५, १२X४२). आलोयणापच्चीसी, मु. जडाव, रा., पद्य, वि. १९६२, आदि: ओ नाथजी पाप आलोउं पाचला; अंति: जडाव० चितचाव दीनानाथजी, गाथा २२. १२३०४९. (+) उपधानतप विधि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैवे. (२५.५४११. १५४५१). उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु., सं., गद्य, आदि: चोमुख प्रतिमा मांडीजै; अंति: (-), (पू.वि. वांणि करावानी विधि अपूर्ण पाठ-"नमुत्थण इहांथी मांडीनई गंध हत्थीणं यावत् १ बीजी" तक है.) For Private and Personal Use Only १२३०५० (+) कर्मग्रंथ-२ से ६ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९७-२४(२ से २५ ) =७३, कुल पे ५, प्र. वि. हुंडी : कर्मग. सू., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५X११.५, ३X२७). १. पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. २६अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. ', कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२ आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी १४बी, आदि (-); अति देविंद बंदिअं नमह तं वीरं, गाथा-३४, (पू.वि. गाथा-३३ अपूर्ण से है.) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: करो ते महावीर प्रत. Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. बंधस्वामित्व सह टबार्थ, पृ. २६अ-३४आ, संपूर्ण... बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., गद्य, आदि: कर्मबंधना प्रकारथी; अंति: देवेंद्रसूरि लिखउं जाणवउं. ३. पे. नाम. षडशीति नव्य सह टबार्थ, पृ. ३४आ-५८अ, संपूर्ण.. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, उपा. धनविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७००, आदि: वांदीनइ तीर्थंकर; अंति: श्रीतपागच्छनायकै. ४. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. ५८आ-८०आ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअ जिणं धुवबंधोदयसंता; अंति: देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, उपा. धनविजय, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमीनइं जिन प्रति; अंति: जाणिवौ एहवौ अर्थई, ग्रं.५०७. ५. पे. नाम. सप्ततिकासूत्र सह टबार्थ, पृ.८०आ-९७अ, संपूर्ण. सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगूणा होइ नउईउ, गाथा-९३. सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७००, आदि: सिद्धि निश्चल पद छइ; अंति: हितहेतुं समुद्दिश्य. १२३०५३. धर्मनाथजिनवर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १२४४०). धर्मजिन स्तवन, ग. राजहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: भजिमन धरम मरम निज दाखि; अंति: पसाय श्री राजहरखे चित लाय, गाथा-१५. १२३०५५. ८ कर्म, सिद्धपद व चतुर्दशीतप सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५४११.५, १५४३४). १. पे. नाम. कम्मपयडी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ८ कर्म सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: आठ करम जिणवर कह्या; अंति: ब्रह्म० मारग पालो रे, गाथा-७. २. पे. नाम, आठगुण सिद्धपद स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धपद स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नमो सिद्धाणं बीजे पद; अंति: सुखिया सघळा लोक रे, गाथा-८. ३. पे. नाम. चतुर्दशीतप स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. चतुर्दशीतिथितप स्तवन, मु. चेतनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: चौदश तप कर भावसुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) १२३०५७. (+) २४ जिननामादि विवरण संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १६४३५). २४ जिन नाम, आयुमान, देहमान, वर्ण, राज्यकाल, तपकाल आदि विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. २४ जिन आयु वर्ष अपूर्ण से है.) १२३०५८. अंजनासुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-९(१ से ६,८,१५ से १६)=९, जैदे., (२५४११.५, ११४२८). अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-४३ अपूर्ण से १०३ अपूर्ण तक व १२७ अपूर्ण से १३४ अपूर्ण तक है.) । १२३०५९ (+) केशीगणधर प्रदेशीराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९८९, कार्तिक शुक्ल, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, प्रले. श्राव. मुरलीधर मुथा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रदेसी०., संशोधित. कुल ग्रं. ९००, दे., (२५.५४११.५, १४४४६). For Private and Personal Use Only Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ३६५ केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, म. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमी श्रीअरिहंत; अंति: पार समकित सुद्ध आधार, ढाल-४१, गाथा-५९४. १२३०६० (+#) भुवनदीपक, औपदेशिक सवैया, पद व श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४, कुल पे. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १७४३७). १. पे. नाम. भुवनदीपक सह बालावबोध, पृ.१आ-३२आ, संपूर्ण. भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: भवोवाज्योष्टमस्थेपिवा, श्लोक-१६२. भुवनदीपक-बालावबोध, ग. लक्ष्मीविनय, मा.गु., गद्य, वि. १७६७, आदि: सारस्वत्याः संबंधि; अंति: ति कीधो लखमीविनय गणि. २. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ३२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया-वैराग्य, श्राव. छाजू पवार, मा.गु., गद्य, आदि: दसन के दस गए ए वीसन; अंति: पसार हाथ जाओगे, सवैया-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया-काया, पृ. ३२आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: काया सी नगरी में; अंति: जब भई तब काल आन गयो है, (वि. गाथा-१) ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३२आ, संपूर्ण. म. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदि: एक के पाय अनेक परे; अंति: धर्मसी० फिरै है, पद-१. ५. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. ३२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: एकः शुक्रो जन्मसमये लाभ; अंति: वंशस्य तिलको भवेत्, श्लोक-२. १२३०६१. (#) ज्योतिष श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२,११४३०). १.पे. नाम. ज्योतिष श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण, वि.१८६८, पौष कृष्ण, ६, गुरुवार. सं., पद्य, आदि: ०तत्कालिकवरंव्यरतंदत्वा; अंति: विंशोत्तरशतंमतं, श्लोक-२, (वि. आदिवाक्य का प्रारंभिक भाग खंडित २. पे. नाम. वैद्यक श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. वैद्यकश्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: ०मधुरंसुसीतं; अंति: सम्यगालोम्यमत्रया, श्लोक-२, (वि. आदिवाक्य का प्रारंभिक भाग अस्पष्ट है.) ३. पे. नाम. मौनएकादशीव्रत स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. __ मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमिजिन; अंति: विस्मतहृदः क्षितौ, श्लोक-४. ४. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: करम अचेतन किम हुवै; अंति: समयसुदर० कहे साचुरे, गाथा-३. १२३०६२. (+) रुपसेन रास, अपूर्ण, वि. १८३१, ?, आश्विन शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५२-२९(१ से २९)=२३, ले.स्थल. भीनमाल, प्रले. पं. विनयविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रुपसेनरास., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १६४४८). रूपसेन रास, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, वि. १८०९, आदिः (-); अंति: ध थाये परम मंगल पावए, ढाल-७५, गाथा-२९४५, ग्रं. २०२५, (पू.वि. ढाल-४५ गाथा-९ अपूर्ण से है.) १२३०६४ (4) धर्मजिन, पार्श्वजिन व आदिजिन पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४१). १.पे. नाम, धर्मजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.ग., पद्य, वि. १८प, आदि: हां रे मारे धरमजिणंद; अंति: मोहन० अति घणो रे लो. गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि मुजरो मानी लीजे हो गोडीरा, अंतिः प्रह ऊठी प्रणमी जै हो, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ५. ३. पे नाम. आदिजिन पद, पू. १आ, संपूर्ण मु. साधुकीर्ति, पुर्हि, पद्य, आदि आज ऋषभ घर आवे देखो; अंतिः साधुकीरति गुण गावे, गाथा-३. ४. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. समयसुंदर, पुहिं., पद्य, आदि: अंगन कलप फल्योरी हमा; अंति: हुं रहिसुं सोहिलो री, गाथा- ३. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास जिनेसर स्वामी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) १२३०६५. ज्ञानपंचमीपर्व व एकादशीपर्व स्तुति, संपूर्ण वि. १८८६, आषाढ़ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल नागोर, जैवे. (२३.५x११, ११x२९). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपति; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. २. पे. नाम. एकादशीपर्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: गुणहर्ष० तणा निशदिश, गाथा-४. " १२३०६६. (+) नथुजीस्वामीनो बेदालियो, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. २ प्रले. मु. तेजपाल पठ. सा. पानबाई आर्याजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी नथुजीस्वामीनी. नथुस्वामीजी के जीवन का घटनाक्रम सहित जीवन प्रसंग का वर्णन दिया है., कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित संशोधित., दे., (२६X११, १६x४८). नथुस्वामीजी दोढालिया, मु. तेजपाल, मा.गु., पद्य, वि. १९७४, आदि आदि रे जिन आदेकरी चौवीसे; अंति: तेजपाल०पोचे सिव आवासमा, ढाल २, गाथा- ६८. " १२३०६८. (+) शील रास, संपूर्ण, वि. १७२१, आश्विन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. दसरथ ऋषि (गुरु मु. उदयचंद, पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ); गुपि. मु. उदयचंद (पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ); पठ. श्रावि. सुजाण चौधरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित, जैदे., (२६x११.५, १७x४४). शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य वि. १६३७, आदि पहिलुं प्रणाम करू; अंति: इम श्रीविजयदेवसूरि गाथा-७४, ग्रं. २५१. १२३०६९. . (+) भक्तामरस्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ८-१(१) ७ प्रले पार्श्वदत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित. कुल ग्रं. ५००, प्र.ले. श्लो. (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, (१२२१) यावन्ल्लवण समुद्रो यावन्नक्षत्र मंडितां मेरू, जैदे. (२६११, १६x४७). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि (-); अंतिः मानतुंग० लक्ष्मी, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण से है.) भक्तामर स्तोत्र - सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं. गद्य, आदि (-); अंति विबुधैः शोधनीयं. १२३०७०. चतुः शरण प्रकीर्णक सह वालाववोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ६, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. जैदे. (२६x११, , " १५४४५). चतुः शरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि सावज्जजोग विरई अति (-) (पू. वि. गाथा ५४ अपूर्ण तक है.) चतुःशरण प्रकीर्णक- खालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सावद्य व्यापारनइ विषइ अति: (-). १२३०७२. (#) गुणावली चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १६x४७). For Private and Personal Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ३६७ गुणावलि चौपाई, ग. गजकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: सकल मनोरथ पूरवे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) १२३०७४. (4) रात्रिभोजन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १५४४१). रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मा.ग., पद्य, आदि: अवनितल वारु वसेजी; अंति: ते पामइ निरवाण रे, गाथा-२२. १२३०७५ (+#) सिद्धांत स्तव सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, ७४४३). सिद्धांत स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नत्वा गुरुभ्यः श्रुतदेवता; अंति: श्रीमत्समागमनोत्सवम्, श्लोक-४६. सिद्धांत स्तव-टीका, आदिगुप्त, सं., गद्य, आदि: ध्यायति श्रीविशेषाय; अंति: विवृत्तिलिखितामिता. १२३०७६. (+) रूपकमाला सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. धनजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १७४४८). रूपकमाला-शीलविषये, मु. पुण्यनंदन, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिणेसर आदिसउ; अंति: हे पभणइ श्रीपुण्यनंद, गाथा-३२. रूपकमाला-शीलविषये-अवचूर्णि, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६३, आदि: हे श्री आदिजिन आदिश; अंति: समयसुंदर०संशोधिता. १२३०७८. अष्टापद स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले. ग. विजयधीर (गुरु आ. दानधीरसूरि); गुपि. आ. दानधीरसूरि; पठ. श्रावि. कर्माइ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११,११४३४). अष्टापदतीर्थ स्तोत्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: प्रवरतीरथ नमो जिणाणं, गाथा-३७, (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से है.) १२३०७९. चौवीसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३४, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, बुधवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. नागोर, प्रले. पं. पुण्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१०.५,११४३६). २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, म. आणंद, मा.ग., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमं; अंति: तास सीस पभणे आणंद, गाथा-२९. १२३०८०. (+) दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८३१, माघ कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. बीलारा, प्रले. मु. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १३४३८). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-४४. १२३०८१. (+) स्तुति, स्तवन व चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. ५३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४४२). १. पे. नाम. साधारण स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ___कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढमं जिणिंदं; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. २. पे. नाम. बीजशुक्ल स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. ३. पे. नाम. शुक्लपंचमीदिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपति; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ४. पे. नाम. शुक्लअष्टमी स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं सम्मोह; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. ५. पे. नाम. कृष्णअष्टमीदिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट परमाद; अंति: तस विघन दूरे हरे, गाथा-४. ६. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मौनएकादशीपर्व स्तुति, म. गणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: गुणहर्ष० तणा निशदिश, गाथा-४. ७. पे. नाम. चतुर्दशीदिन स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. __पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्धं, श्लोक-४. ८. पे. नाम. शांतिनाथजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति-फलवर्द्धि, मु. देवकुशल, रा., पद्य, आदि: फलवधीरो मंडण सांति; अंति: देवकुसलनी आस्या सफल फली, गाथा-४. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पौषदशमीपर्व, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जय पास देवा करूं; अंति: केरी संघ आस्या पूरणी, गाथा-४. १०. पे. नाम. दीपोत्सवी स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, म. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक श्रीमहावीर; अंति: द्यो सरसती वाणीजी, गाथा-४. ११. पे. नाम. मौनइग्यारसी स्तुति, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ संभाली; अंति: श्रीसंघ विघन निवारी, गाथा-४. १२. पे. नाम. सुखडीढोअणआदिस्वर स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: तुंसे देवी अंबाई, गाथा-४. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ५-६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, म. लब्धिरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन गोडीपार्श्व; अंति: लब्धिरुचि जयकार, गाथा-४. १४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसिद्धचक्र सेवो; अंति: वाचक० उत्तम सीस सवाई, गाथा-४. १५. पे. नाम, शेजेज स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पुहि., पद्य, आदि: आगे पूरव वार नीवाणु; अंति: सिद्धि हमारी जी, गाथा-४. १६. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण. ___ मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण पुण्यै पामी वीर; अंति: शांतिकुशल गुण गाया जी, गाथा-४. १७. पे. नाम. सीमंधर स्तुति, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर मुजने; अंति: शांतिकुशल सुखदाता जी, गाथा-४. १८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. मु. पुण्यरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपास जिनेसर पूज करू; अंति: सुख संपति हितकार, गाथा-४. १९. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदित पाय पंकज; अंति: मंगल करहुं अंबकदेवया, गाथा-४. २०. पे. नाम. ऋषभ स्तुति, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-चतुर्थीतिथिपर्व, सं., पद्य, आदि: उद्यत्सारं शोभागारं; अंति: द्रव्यतारा भूत्यैस्तात, श्लोक-४. २१. पे. नाम. विजयरत्नसूरीश्वर स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण. विजयरत्नसूरि स्तुति, सं., पद्य, आदि: नृपतिनाभिकुलांबरभास; अंति: गणाद्विपती श्रियम्, श्लोक-४. २२. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-वीसलपुरमंडन, मु. देवकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: विसलपुर वांदु; अंति: संघना विघ्न निवार, गाथा-४. २३. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. भालतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय कर मंगलदीपक; अंति: कमला भालतिलक वर हीर, गाथा-१. For Private and Personal Use Only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २४. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जय मानव सेवित; अंति: तीर्थाधिप सुरराज, गाथा-१. २५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कल्याणानि समुल्लसंति; अंति: सत्कल्याणमाहात्म्यतः, श्लोक-१. २६. पे. नाम, आदिजिन स्तुति, पृ. १०अ, संपूर्ण. म. सौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरिकगिर स्वामी; अंति: सौभाग्यनो दातार, गाथा-१. २७. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. १०अ, संपूर्ण. मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरिकमंडण पाय; अंति: सौभाग्य० सुखकंदा जी, गाथा-१. २८. पे. नाम. पंचमीनेमि स्तुति, पृ. १०अ, संपूर्ण. __ पंचमीतिथि स्तुति, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धवधु केरो सिणगार; अंति: पूरे आशा सवि मन तणी, गाथा-४. २९. पे. नाम. ऋषभ स्तुति, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. ३०. पे. नाम. पर्युषणापर्व स्तुति, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तर भेदे जिन पूजा; अंति: पुरो देवी सिद्धाइजी, गाथा-४. ३१. पे. नाम. पर्युषणापर्व स्तुति, पृ. ११अ, संपूर्ण. षणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर अति अलवेस; अंति: बुद्धिविजय जयकारी जी, गाथा-४. ३२. पे. नाम, ऋषभजिन स्तुति, प. ११अ-११आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तति-मरुदेवामाता केवलज्ञान, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गजकुंभे बेसी आवे; अंति: मोहन कहै जयकार, गाथा-४. ३३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. म. नंदीसागर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: संखेसर मंडण दरिय विहंडण; अंति: जंपै सेवक नंदीसागरनो सीस, गाथा-४. ३४. पे. नाम. सीमंधर चैत्यवंदन, पृ. १२अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव दिशि इशान कुण; अंति: केवली वंदु बे करजोड, गाथा-८. ३५. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. आदिजिन नमस्कार, म. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाभि नरेसर कुलकमल; अंति: विजय० आवागमन निवार, गाथा-३. ३६.पे. नाम, नेमिजिन चैत्यवंदन, पृ. १२आ, संपूर्ण. मु. ऋषभ कवि, मा.गु., पद्य, आदि: नेम नमु निसदीस जन्मलगे; अंति: जस महिमा जगमें रह्या, गाथा-३. ३७. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १२आ, संपूर्ण. मु. ऋषभ कवि, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु पासजिणंद कमठ; अंति: जस मेहिमा जग कीध, गाथा-३. ३८. पे. नाम. वीर चैत्यवंदन, पृ. १२आ, संपूर्ण. महावीरजिन नमस्कार, म. ऋषभ कवि, मा.गु., पद्य, आदि: वंद वीरजिणंद महियल; अंति: ऋषभ० जन पाम्या पार, गाथा-३. ३९. पे. नाम. चौवीशजिन चैत्यवंदन, पृ. १३अ, संपूर्ण.. २४ जिन चैत्यवंदन-भवसंख्यागर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रथम तीर्थकरतणा भव; अंति: तणो ज्ञानविमल गुणगेह, गाथा-३. ४०. पे. नाम, पंचतीर्थी चैत्यवंदन, पृ. १३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५ तीर्थ चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुर समरुं श्रीआदिदेव; अंति: कहे तस घर जय जयकार, गाथा-६. ४१. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. १३अ, संपूर्ण. साधारणजिन चैत्यवंदन-पंचपरमेष्ठिगुणगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: बार गुण अरिहंत देव; अंति: नय प्रणमै जग सार, गाथा-३. ४२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-जीरावाला, पं. कृष्णविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जीरावलो जगनाथ जयंकर भेटो; अंति: कृष्णविमल०जय जयकारी जी, गाथा-४. ४३. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, पं. कृष्णविमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पास जिणेसर केसर; अंति: तुम्ह नामै पामै रंग रसाली, गाथा-४. ४४. पे. नाम. अजितजिन स्तुति, पृ. १४अ, संपूर्ण. अजितजिन स्तुति-तारंगातीर्थमंडन, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तारंगा मुखमंडण अजित; अंति: पुण्यसागर० सुखकार, गाथा-१. ४५. पे. नाम. सुमतिजिन स्तुति, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: मोटो ते मेघरथ राय रे; अंति: ऋषभ कहे रक्षा करो ए, गाथा-४. ४६. पे. नाम. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. __ आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करी जस आगल; अंति: तपथी कोड कल्याण जी, गाथा-४. ४७. पे. नाम. रोहिणी स्तुति, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी जिनवर वासपूज; अंति: देवी लब्धिरूची जयकार, गाथा-४. ४८. पे. नाम. विमलगिर स्तुति, पृ. १५आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सवि मिलि कर आवो; अंति: नयविमल०ध्यानथी नित्य सदा, गाथा-४. ४९. पे. नाम. वरकांणापार्श्व स्तुति, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-वरकाणा, पंन्या. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वरकाणइं वर मंडण पास; अंति: कमलविजय० सुखसंपदा, गाथा-४. ५०. पे. नाम, ऋषभ स्तुति, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशचंजय तीरथसार; अंति: पाया ऋषभदास गुण गाया, गाथा-४. ५१. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. १६आ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन स्तुति, मु. कृपाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तिहुअणजण वंछिय पूरण; अंति: कृपाविजय जयकारी, गाथा-४. ५२. पे. नाम. नेमिनाथ स्तुति, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: अलबेली छबीली रंगीली; अंति: राम नेम गुण गाइ, गाथा-४. ५३. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वरस दिवस सार चोमास; अंति: जिनेंद्रसागर जयकार, गाथा-४. १२३०८२. (+) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६९३, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५१, प्र.वि. हुंडी:अंतरवाच्य, बा०अंतर्वाच्य., संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १३४३३). For Private and Personal Use Only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ३७१ कल्पसूत्र - अंतर्वाच्य का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (१) कल्याणानि समुल्लसंति, (२) धर्मादेव श्रीपांडव अंति (१)श्रीसंघ भट्टारकः, (२)जनककल्पनी तुलना कीधी, (वि. प्रारंभ में अंतर्वाच्य का प्रारंभिक पाठ लिखा है.) १२३०८३. (+) आषाढभूति रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-१ (१) - ३, प्र. वि. हुंडी: आषाढ, संशोधित. जैवे. (२५.५x११, ११x४२). आषाढाभूतिमुनि रास, मु. धर्मरुचि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति घरि घरि मंगल चारु ए, गाधा-५३, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) " १२३०८४. कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १७८२, २ मार्गशीर्ष कृष्ण, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५९-१२ (५,४५ से ४९,५३ से ५८) =४७, प्रले. मु. पुण्यकमल (गुरु पं. सुमतिकमल, तपागच्छ); गुपि. पं. सुमतिकमल (गुरु आ. हंसरत्नसूरि, तपागच्छ); राज्ये आ. कमलकलशसूरि (तपागच्छ); पठ. ग. कनककमल; अन्य. पं. धनविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, जैवे. (२६११, ११४३४). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, सं., गद्य, आदि: कल्याणानि समुल्लसंति; अंति: रतः श्रीसंघभट्टारकः, (पू.वि. ऋषिपंचमी कथ प्रसंग अपूर्ण से नागकेतु कथा अपूर्ण, नेमिजिन चरित्र श्लोक-३९ अपूर्ण से आदिजिन चरित्र गाथा ४४ व समाचारी वर्णन अपूर्ण तक नहीं है.) १२३०८५. (+) आलोयणा स्वरूप, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२६११, १४४४२) " , " श्रावक आलोयणा, मा.गु. सं., गद्य, आदि ज्ञानाचारि पाटी पोथी; अति स्याद्यथा तथा तपोदेयं १२३०८६. (*) शास्वतप्रतिमावर्णन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., जैवे., (२६११, १३x४८). शाश्वतप्रतिमावर्णन स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चत्तारि अट्ठ दस दोय; अंति: जगगुरु बिंति, गाथा-१५. शाश्वतप्रतिमावर्णन स्तव-अवचूरि, प्रा., सं., गद्य, आदि: दोहिणदारे चउरो; अंति: प्रकर्ष,लभ्याः संग्रहीताः. १२३०८७ (+) योगोद्वहनविधि यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३, प्र.वि. हुंडी तपविधि, टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित.. जैदे., (२६X१०.५, १४४५७). "" योगोद्वहनविधि यंत्र संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., को. आदि दसवेवालिय खंधे दस अज्झयणा; अंतिः समुद्देश अनुज्ञाकार्या. १२३०८८. (+) सीतासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. बाघजी मकनजी तिवारी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सीता०., संशोधित, जैदे., ( २६ ११, १२X४७). सीतासती सज्झाब, मा.गु., पद्य, आदि दशरथनंदन राजीयो नयरी; अंतिः भासे रे भणतां० मन आसे रे, गाथा- २३. १२३०८९. (+) गणधरसार्द्धशतक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६X१०.५, १२X४० ). गणधरसार्धशतक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा. पच आदि गुणमणिरोहणगिरिणो अति तं भवरविसंतावमवहरड, गाथा - १५०. १२३०९०. (#) पार्श्वजिन स्तवनद्वय व अजितजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१०.५, १३x४१). १. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पू. १अ, संपूर्ण. ग. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि प्रणमुं जिन प्रेवीसमीजी, अंति इणपर कहे मेघराज, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. वा. महिमाकल्याण गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदररुप सोहामणो लाल अति; अंति: कहै महिमाकल्याण, गाथा-७, (वि. अंतिम वाक्य अस्पष्ट है.) ३. पे नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मा.गु., पद्य, आदि: विजया नंदण० साहिब चतुर; अंति: (-), (पू. वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) १२३०९२. (#) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६६५, ?, भाद्रपद शुक्ल, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ११-४(१ से ४)=७, ले.स्थल. मरुधरदेश, प्रले. मु. पंचानन ऋषि; पठ. य. डामर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ. कुल ग्रं. ४७५, टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., ( २६.५X१०.५, २-४X३३). For Private and Personal Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अद्धा अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-६०, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से है.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध*, रा., गद्य, आदिः (-); अंति: जयंति जिनशासन विमले. १२३०९३. (+) महानिशीथसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३७, प्र.वि. हुंडी:महानि०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ५०००, जैदे., (२५.५४१०.५, ४४३१). महानिशीथसूत्र-हिस्सा अध्ययन ४ से ५, प्रा., प+ग., आदि: से भयवं कहं पुण तेण; अंति: भवियव्वं त्तिबेमि. महानिशीथसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते सुमति हे भगवंत; अंति: म्ह प्रत्ये कहुं छउं. १२३०९५. आवश्यकसूत्रनियुक्ति की अवचूर्णि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११९-११८(१ से ११८)+१(११९)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्र-११९ द्वि.तृतीय है., जैदे., (२६४११, १५४५५). आवश्यकसूत्र-निर्यक्ति की अवचूर्णि #, ग. धीरसंदर, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५७१ से ५९० की अवचूर्णि अपूर्ण तक है.) १२३०९६ (#) माधवानल चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २५-२१(१ से १४,१६,१९ से २४)=४, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३५). माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२८० से २९८ ___ तक, ३३१ अपूर्ण से ३५३ अपूर्ण तक, ३९६ अपूर्ण से ४१९ अपूर्ण तक व ४२९ अपूर्ण से ४५४ अपूर्ण तक है.) १२३०९८. (+#) गजसकमालमनि रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४१). गजसुकुमालमुनि रास, मु. शुभवर्द्धन शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: देस सोरठ द्वारापुरी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९६ अपूर्ण तक है.) १२३०९९ ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८२-८१(१ से ८१)=१, जैदे., (२६४११.५, ५४३४). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंत में पल मुहूर्त मान विचार व इर्यापथिकी भेट की प्रथम गाथा मात्र लिखी है)। ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १२३१०० (+) पोषध कूलक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१,प्र.वि. अंत में पल, मुहर्त, काचीघड़ी आदि का परिमाण दिया गया है., संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ७४३२). पुण्यपाप कलक, आ. जिनकीर्तिसरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: धम्मम्मि उज्जमं कुणह, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) पुण्यपाप कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: नरकनु आउखु बांधइ. १२३१०१. (#) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५८-५६(१ से ५५,५७)=२, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:उत्तराधेनसू., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, ११४४३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३२ गाथा-२५ अपूर्ण से गाथा-४६ अपूर्ण तक व गाथा-६६ अपूर्ण से गाथा-८७ अपूर्ण तक है.) १२३१०६. (#) सालिभद्रमहामुनि चुपई, संपूर्ण, वि. १७२०, आश्विन कृष्ण, १४, रविवार, मध्यम, पृ. १७, ले.स्थल. धामला, प्रले. मु. विमल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. श्रीसुमतिनाथ प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १७X४२). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासण नायक समरीइ वर्द्धमान; अंति: मनवंछित __ फल लहस्ये जी, गाथा-५०५.. १२३१०७. (+) गुणस्थानके बंधोदयोदीरणासत्ताप्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १८४३८). For Private and Personal Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org ३७३ गुणस्थानके बंधोदयोदीरणासत्ताप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि रहणाविक ३ नइ तीर्थंकर नाम अंतिः पाखड़ १०१ प्रकृतिनु बंध १२३१०९ (+) इंद्रियपराजयशतक सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १६६२, चैत्र शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ११-१० (१ से १०) १. ले. स्थल रामपुर, प्रले. मु. वर्द्धमान (गुरुग, अमृतगणि ऋषि); गुपि. ग. अमृतगणि ऋषि पठ. सा. वर्द्धा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११, ५X३४). इंद्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: संवेगरसायणं निच्चं, गाथा- १००, ( पू. वि. गाथा - ९४ अपूर्ण से है . ) इंद्रियपराजयशतक-टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि (-); अंति: उफराटउ संवेग रसायन नित्य. १२३११०. (#) ग्रंथसूचि व मंत्र - औषधसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. खडा लेखन. अक्षरों की स्याही गयी है. जैवे. (२५.५x१०.५, ११४७२). "" ९. पे नाम. ग्रंथसूचि पू. १अ संपूर्ण. ग्रंथसूचि *, मा.गु., गद्य, आदि: सम्यक्त्व प्रकरण वृत्ति; अंति: कालिकाचार्य प०६. २. पे. नाम. मंत्र- औषधसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु. सं., गद्य, आदि ॐनमो भगवते आदि पुरुषाय; अति दीवते दिन ४ यावदीयते. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२३१११. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१६ फाल्गुन कृष्ण, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २८, ले. स्थल राजनगर, प्र. मयाराम पंजाबी पठ. मु. भावविजय, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. हुंडी नवतत्त०, नवतत्व०, संशोधित. प्र.ले. नो. (१९७८) यादृसं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२४.५X११.५, २x२७). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवा१ जीवा २ पुण्वं३ पावा४ अति उधरिउ लहिउ मणिरयणसूरीह, गाथा-५४. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि तत्व शब्द तेह स्वरूप अति वली अधिक पणइ छइ. १२३११२. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे १३, वे. (२५.५x११, १०x२७). १. पे. नाम. सिखरगिरि स्तवन, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. " सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, आ. हर्षचंद्रसूरि, मा.गु पद्य वि. १८७३, आदि सिखर समेत जुहारा रे धन्य; अंति श्रीहर्षचंदसूरी सारा रे, गाथा- १५. २. पे. नाम. सिखरगीरि स्तवन, पृ. २अ- ३अ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थं स्तवन, आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८९८ आदि सिखर समेत बधावो मुक्ताफल, अंतिः चंदसूरि सुखकारी हो, गाथा- ९. ३. पे नाम. आदिनाथ स्तवन, पू. ३अ-३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि राणपुरे अति सोभतो; अति लब्धिचंद्र० लहो शिववास रे, गाथा - ९. ४. पे. नाम. अर्बुदाचल स्तवन, पू. ३आ-४अ, संपूर्ण आदिजिन स्तवन-अर्बुदाचलमंडन, आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १९३७, आदि: चेतन धरी उब रंग अर्बुदाचल; अति तीर्थं भेट्यां सिवसुख लहे, गाथा ७. ५. पे. नाम. अजित स्तवन- तारंगामंडण, पृ. ४आ-५अ संपूर्ण. अजितजिन स्तवन-तारंगामंडण, आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: तारंगगढने मंदिर मांहे; अंति: हर्ष थकी गुण गाया रे, गाथा- ९. ६. पे. नाम. शंखेश्वरमंडण स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडन, आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १९३७, आदि: श्रीसंखेसर देव दवाला सोभे; अंति लब्धिचंदसूरि शिष्य भाषै गाथा-५. ७. पे. नाम. नवपल्लव पार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३७४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन, आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १९३७, आदि: श्रीनवपल्लव पासजी, अंति: भेटीया हर्ष सकल संघकारा, गाथा-४. ८. पे. नाम थंभण पार्श्वनाथ स्तवन, पू. ५आ. ६अ, संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तवन, आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: खंभावत मे थंभण पास सेवकजन अंतिः श्रीहर्षचंदसूरी भारी, गाथा ६. ९. पे नाम. नवपदजी स्तवन, पू. ६अ-७अ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८९७, आदि: नवपद ध्यावो सुखकरू; अंति: ध्यावो सुखकरू रे लोल, गाथा- १२. १०. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. ७अ ७आ, संपूर्ण. आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १९०१, आदि: ए दिन सफल भयो में भेट्यो; अंति: रे सेवक सदा निहाल रे, गाथा - ५. ११. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. आ. हर्षदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि मेरे सुगुण सवाय भव भय अंतिः श्रीहर्षचंद्रसूरी० निहाल, गाथा- ६. १२. पे नाम, पार्श्वनाथ सिमंधरस्वामि स्तवन, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन, आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १९७६, आदि: तारण तरण अनंतगुण जिनवर, अंति: सहु संघने सुखदायजी, गाथा-४. १३. पे नाम, शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. हर्षदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि सिधगिरी भेटण जाइये रे अति (-) (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) १२३११५. (+) शांतिजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५८, प्र. वि. हुंडी: शांतिचरित्र., संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ७०००, प्र.ले. श्लो. (१५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (१५१०) तेलाद्रक्षै तेलाद्रक्षै, जै, (२५.५४११, १५४४१). शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि सं., गद्य वि. १५३५, आदि: प्रणिपत्यार्हतः सर्वान् अतिः शांतिः स करोतु शांतिम्, " प्रस्ताव- ६. १२३११६. (+#) रत्नचूड चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६-९ (१ से ४,१६ से २०) = १७, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी: चोपीई., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १२x२८-३२). रत्नचूड चौपाई, मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. ढाल -४ गाथा - १५ अपूर्ण ढाल-२० गाथा-२३ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२३११७. पिंडविशुद्धि प्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ७, जैदे. (२५.५५११, ७४१). पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदविंदवंदिय पयारविंदे; अंति: बोहिंतु सोहिंतु अ, गाथा - १०३. पिंडविशुद्धि प्रकरण- बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि देवताना इंद्र तेहना वृंद, अंतिः शिष्य प्रति जणाववउ. १२३११८. (+) कर्मग्रंथ-१ से ६, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. ६, प्रले. मु. नेमिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कर्म्मग्रंथ पत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५X११, १५X४४). १. पे. नाम कर्मविपाकसूत्र, पृ. १आ-३-अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ - १, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी -१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिउ देविंदसूरीहि गाथा - ६०. २. पे. नाम कर्मस्तव, पृ. ३अ ४आ, संपूर्ण. 1 कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी २४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिण अति: देविंद वंदिय नमह तं वीरं, गाथा - ३४. ३. पे नाम, बंधसामित्त, पू. ४आ ५अ संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी, आदि बंधविहाणविमुक्कं अंति देविंद० कम्मत्थयं सोउ, गाथा २५. - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४. पे. नाम घडशीति, पू. ५अ ८अ संपूर्ण घडशीति नव्य कर्मग्रंथ -४, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी १४वी आदि नमिय जिणं जिय‍ मग्गण २ अंति लिहिउ देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. ५. पे. नाम शतकसूत्र, पृ. ८अ १०आ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधो १ दय २; अंति: देविंदसूरि० आयसरणड्डा, गाथा- १००, 1 ६. पे नाम. सप्ततिकासूत्र, पृ. १० आ- १३आ, संपूर्ण. सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, प्रा. पद्य वि. १३वी १४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थे अति: एगूणा होइ नवईड, गाथा ९३. १२३१२० (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. हुंडी : कल्यांण., संशोधित., जैदे., (२५X१०.५, १५X४५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, लोक-४४. ३७५ १२३१२१. (+) षड्दर्शन समुच्चय, संपूर्ण, वि. १५१५, माघ कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. वीर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X११, १५x५०). षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि सं., पद्य, आदि सद्दर्शनं जिनं नत्वा वीरं अंति: पर्यालोच्य सुबुद्धिभिः श्लोक- ८७. १२३१२२. (#) उत्तराध्ययनसूत्र कथासंग्रह, अपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ९४ - ९२ (१ से ९०, ९२ से ९३) = २, पू.वि. बीच-बीच हैं., प्र.वि. हुंडी:उत्तर०कथ., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, १७X५४). उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह, पंन्या. पद्मसागर, सं., गद्य, वि. १६५७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१३ ब्रह्मदत्त कथा अपूर्ण मात्र है.) १२३१२३. (+४) विद्रोष्ठी व प्रास्ताविक लोकसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५३-५२ (१ से ५२) १, कुल पे. २, प्रले. मु. गोरधन ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पेटाकृतियों का श्लोकाक्रम क्रमशः है., पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४१०५, १५४३५). "" १. पे. नाम विगोष्ठी, पृ. ५३ अ-५३आ, संपूर्ण पंडित. सुधाभूषण गणि, सं., पद्य, आदिः येषां न विद्या न तपो; अंति: नैव च किदृशाः स्युः, श्लोक-१८. २. पे नाम. प्रास्ताविक लोक संग्रह, पृ. ५३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: केनापि बालापति भक्त कामां; अंति: पयोधर युगमस्य भुजपटबंध, श्लोक ८. १२३१२६. (+) २४ जिन भास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ७-१ (२) =६, अन्य मु. धनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, 3 जैवे. (२५.५x११, ११४३६). २४ जिन भास, पंन्या. रंगरतन, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि आदिनाथ छइ प्रथम जिणंदा जस; अंति: रंगरतन० को मझार कइ (पू.वि. सुमतिजिन स्तवन अपूर्ण से सुविधिजिन स्तवन अपूर्ण तक नहीं है.) १२३१२७. (+) सिंदूरप्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १३४३४). For Private and Personal Use Only सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि. सं., पद्म, वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अति: निशम्यमानेति शमेति नाशम्, श्लोक-१७. 1 १२३१२८. नेमराजिमती रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है, जैदे. (२५.५X११, १३४४८). नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारदा पाए प्रणमी करी नेम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - १३ अपूर्ण तक है.) Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२३१३१. (+) लघुनाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३६). लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४५९ अपूर्ण तक है.) १२३१३३. पर्यंताराधना सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१०.५, १३४३६-३९). पर्यंताराधना-गाथा २९, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण भणइ एवं भयवं; अंति: तं सुर समणे नमुक्कारं, संपूर्ण. पर्यंताराधना-गाथा २९ -बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: देव नमस्करिज्योह उपसाय; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम गाथा का बालावबोध अपूर्ण तक है.) १२३१३५ (+) शीलविषयगुण वर्णन झाझरीया, ६३ शलाकापुरुष नाम व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४४०). १. पे. नाम. शीलविषयगुण वर्णन झाझरीया, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. झांझरियाऋषि रास-शीलविषये, म. हस्तिरुचि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: आदिनाथ आदि नमुं आपे; अंति: ऋद्धि सिद्धि घरि आवे रे, ढाल-१३. २. पे. नाम. ६३ शलाकापुरुष नाम, पृ. ७आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: भरत१ सगर२ मघव३ सनत४; अंति: ६३ सलाका पुरुस जाणवा. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ७आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: इकेणविट्टभासीया ए मरीउ; अंति: नही भलोना कछु व्रत समान. १२३१३६. (+) प्रतिक्रमण श्राद्ध, स्थंभणपार्श्वजिन स्तोत्र व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४२९). १. पे. नाम. प्रतिक्रमण श्राद्ध, पृ. १आ-८आ, संपूर्ण. देवसिप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., आदि: णमोअरिहंताणं णमोसिद; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. २. पे. नाम, स्थंभण पार्श्वजिनस्तोत्र, पृ. ८आ-११अ, संपूर्ण. जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तियणवरकप्परुक्ख जय; अंति: अभय० विन्नवइ आणंदिय, गाथा-३०. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ११अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-विविध तीर्थमंडण, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनी तटेपुरवरे; अंतिः सदा ध्यायामि मानसे, गाथा-३. ४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजमंडण आदिदेव; अंति: नंदिसूरि तूसे पाय सेवता, गाथा-४. १२३१३९ (#) व्याख्यान संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १७४६५). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: करतां मनोरथ माला फलइ, (पू.वि. रावण द्वारा अष्टापद ऊपर परमात्म भक्ति प्रसंग से है.) १२३१४१. बारह भावना, चेलणासती व सोलहसती नाम सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:बारहभाव०., जैदे., (२५४११.५, १४४३९). १. पे. नाम. बारह भावना, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४६, आदि: आदिसर जिणवर तणा पद; अंति: एह भणतां सुवि सुख थाइ, ढाल-१२, गाथा-७२. २. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ३७७ उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वखानी रानी चेलनाजी; अंति: समयसुंदर० भव तनो पार, गाथा-६. ३. पे. नाम. सोहलसती नाम सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सीतल जिणवर करो प्रणाम; अंति: जगीस एह नाम समरो निशिदीस, गाथा-५. १२३१४३. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी:दश०., जैदे., (२५.५४११, १६४३४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मोमंगलमुकढें; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१से २ तक है.) १२३१४४. (+) पार्श्वजिन अष्टक व शीतलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. २, कल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४३८). १.पे. नाम. पार्श्वजिन अष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन अष्टक-महामंत्रगर्भित, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्देवंद्रवंदामलमुगट; अंति: तस्येष्टसिद्धिः, श्लोक-९. २.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: भवि तुमे वंदो रे शीतल; अंति: विबुध क्षमादि कल्याण, गाथा-११. १२३१४८. (+) पंचांगगणित विधि व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १३४४४). १. पे. नाम. पंचांगगणित विधि, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण, वि. १८८४, ज्येष्ठ शुक्ल, १. उपा. महिमोदय, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: परम ज्योति प्रभुकू नमी; अंति: मुदारारे मामदेभाषिते गणाः, गाथा-१५९. २. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. ८आ-१३आ, संपूर्ण, ले.स्थल. भाद्राजण, पे.वि. लतायंत्र मुहर्तादि ज्योतिष , पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: रिखडो तिण हूंती गिणलिज्जा. १२३१५० (#) तिजयपहुत्त स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १३४३४). तिजयपहत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१५. १२३१५१ (+#) अरहोन्नामुनीसर चोपीइ व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४३९). १. पे. नाम. अरहोन्नामुनिसर चोपीइ, पृ. १अ-११आ, संपूर्ण. अरणिकमनि चौपाई, ग. राजहर्ष, मा.ग., पद्य, वि. १७३२, आदि: श्रीफलवधि प्रणम् सदा परतख; अंति: राजहरष० सदा सुख पामीय, ढाल-९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ११आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: परतापूरण प्रणमीये अरगंजण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) १२३१५३. (+) अंतकृद्दशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०, प्रले. मु. लौतिराम (गुरु मु. सुखजी); गुपि. मु. सुखजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अंतगडसू०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४४२). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समएणं; अंति: सेसं जहा नायाधम्मकहाणं, (वि. १८५२, आश्विन शुक्ल, १०, शुक्रवार) अंतकद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणि कालिं चउथइ आरि; अंति: कथा माहि छि तिम, (वि. १८५२, कार्तिक शुक्ल, ३) १२३१५४. प्रास्ताविक श्लोकादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४१०.५,१६४५७). प्रास्ताविक श्लोकादि संग्रह, प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (वि. छुट्टक श्लोक-गाथादि संग्रह.) For Private and Personal Use Only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२३१५५ (+#) महावीर स्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ४४३६). पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रत्यमस्य; अंति: बालचंद्र० कार्येषु सिद्धि, श्लोक-४. पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: स्नातस्या कहीयइ; अंति: सघला कार्य की सिद्धि दिउ. १२३१५६. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३५१-२२८(१ से २२७,२५५)=१२३, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:न्याता टबो., संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४११, ६x४२). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१४ सूत्र-१ अपूर्ण से श्रुतस्कंध-२ वर्ग-१० सूत्र-१ अपूर्ण तक है व बीच का पाठांश नहीं है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२३१५७. तारादेवी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. बावला, प्रले. मु. रायभाण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १०४३३). तारादेवी सज्झाय-शीलपालनविषये, म. कनकसंदर, मा.ग., पद्य, आदि: सतिय भणे ब्राह्मण सुणे रे; अंति: कनकसुंदर० राखसुरे लाल, ढाल-१३, गाथा-१४. १२३१५८. (+#) उववाइसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १०१, ले.स्थल. साहाजिहानाबाद, प्रले. मु. भगवानविजय (गुरु उपा. ऋद्धिविजय, तपागच्छ); गुपि. उपा. ऋद्धिविजय (गुरु पंन्या. प्रमोदविजय, तपागच्छ); पंन्या. प्रमोदविजय (गुरु पंन्या. मुक्तिविजय, तपागच्छ); पंन्या. मुक्तिविजय (गुरु पंन्या. भीमविजय, तपागच्छ); पंन्या. भीमविजय (गुरु पंन्या. धर्मविजय, तपागच्छ); पंन्या. धर्मविजय (गुरु उपा. चारित्रविजय, तपागच्छ); उपा. चारित्रविजय (गुरु उपा. सोमविजय, तपागच्छ); उपा. सोमविजय (गुरु आ. हीरविजयसूरि, तपागच्छ); आ. हीरविजयसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४१०.५, १६४५३). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सुहीसुहं पत्ता, ग्रं. १२००.. औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्वा श्रीजिनं; अंति: (अपठनीय), ग्रं. ५४००. १२३१५९. मौनइग्यारसीनी कथा, अपूर्ण, वि. १९२५, श्रावण शुक्ल, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, पठ. श्राव. हेमराजजी देवीचंदजी नेणावाल; गुपि. मु. शीवलाल; राज्यकालरा. फतेसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मोनएकाद०क०. श्रीकेसरीयानाथजी प्रसादात्., जैदे., (२५.५४११.५, १२४४१). मौनएकादशीपर्व व्याख्यान-सुव्रतश्रेष्ठिकथा, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीमहावीरने प्रणांम; अंति: केतला जीव देवलोक गया, (पृ.वि. 'वनपाल के राजानइ आचार्य आव्या' पाठांश से 'धर्मघोषसूरी पासे संयम लीधो' पाठांश तक नहीं है.) १२३१६० (#) थूलिभद्र भास व नागिलाभवदेव सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७६६, भाद्रपद कृष्ण, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १७४४८). १. पे. नाम, थूलिभद्र भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कोश्या कामनि कहइ चांदला; अंति: नयसुंदर० करे ज सही सारे, गाथा-२२. २. पे. नाम. नागिलाभवदेव सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: भवदत्त भाई घरि आवीया रे; अंति: कवीयण वंदे तेह पाय रे, गाथा-८. १२३१६१ (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह व महावीर स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-२(१ से २)=५, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १४४३२). १.पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. ३अ-७आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: अप्पसखियं वोसिरामि, (पू.वि. पुक्खरवरदिवड्ढेसूत्र गाथा-२ से है., वि. पद संपदा गुरुअक्षर लघुअक्षर संख्या का उल्लेख किया गया है.) २. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ महावीरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: जयसिरिजिणवर तिहुअणजण; अंति: मुणिसुंदर० सुहदाणउ अइरा, गाथा-५. १२३१६२. (#) जीवकाया गीत व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४३५). १. पे. नाम, पासजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शामला, मु. ज्ञानविमल, पुहिं., पद्य, आदि: मेरे साहिब पासजी; अंति: प्रभु पद अरबिंदा, गाथा-६. २.पे. नाम. जीवकाया गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत-जीवकाया, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव जुगति सुं जागीये; अंति: नयविमल कहीजे, गाथा-७. ३. पे. नाम, सुविधिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सलूणा सांभलो वात; अंति: जिन नामे अधिक नूर लाल रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेयांसजिन आगलि रही रे; अंति: जिनस्यो अविहड नेह, गाथा-५. १२३१६३. (+) कायस्थिति प्रकरण सह अवचूर्णि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-१(२)=३, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., दे., (१५४११, ३४२९). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जहत्तुह दंसण रहिउ; अंति: अकायपयसंपयं देसु, गाथा-२४, (पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., गाथा-५ अपूर्ण से गाथा-१३ अपूर्ण तक नहीं है.) कायस्थिति प्रकरण-अवचर्णि, सं., गद्य, आदि: सामान्यतो जीवत्वलक्षणेन; अंति: (-), (प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण तक लिखा है.) १२३१६५ (+) जन्मपत्री पद्धति, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ४९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित.,प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, (१५११) अदृष्टि दोषान्मतिविभ्रमाच्च, (१५१२) भग्न पृष्टि कटि ग्रीवा, (१५१३) तैलाद्रक्षे जलाद्रक्षे, जैदे., (२६४११, १७X४९). जन्मपत्री पद्धति, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य शारदां ज्योतिः०; अंति: पद्धतिर्वर्ततां चिरं. १२३१६६. (+) रामविनोद व तोलमान प्रमाण वार्तिक, अपूर्ण, वि. १९वी, माघ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ६३-१(५७)=६२, कुल पे. २, प्रले. मु. हीराचंद ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४५०). १. पे. नाम, रामविनोद, पृ. १आ-६३अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिद्धबुद्धिदायक सलहीयै; अंति: (१)रामचंद्र०जां लगि मेरदिनंद, (२)सर्व श्लोक संख्या ३३६७, समुद्देश-७, गाथा-१६६७, ग्रं. ३३६७, (पू.वि. समुद्देश-७ गाथा-११८ अपूर्ण लिंगपीड लेप वर्णन से १७७ ऋतु वर्णन अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. तोलमान प्रमाण वार्तिक, पृ. ६३अ, संपूर्ण. परिमाण विचार-मगधदेश परिभाषा, मा.गु., गद्य, आदि: रती६ मासो१ मासे४ टंक१; अंति: तथा सेर१० तुलप्रमाण. १२३१६७. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४११, ९४३१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-३ अपूर्ण से १५ अपूर्ण तक है.) १२३१६९ (+) आषाढकार्तिकफाल्गुनचातुर्मासिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, ११४३३). आषाढकार्तिकफाल्गुनचातुर्मासिक व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वसुखमागारं; अंति: (-), (पू.वि. 'श्रद्धालुभिः सर्वदा बहुसावाद्या' पाठांश तक है.) For Private and Personal Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२३१७१ (+) शत्रंजय माहात्म्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०६, वैशाख कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ४१३, प्र.वि. हुंडी:श्रीशेजयमाहात्मय. श्रीपार्श्वनाथजी प्रसादात्., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. २२०३४, जैदे., (२५४११, ८४४७). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो विश्वनाथाय; अंति: संघस्य सर्वेष्टदम्, सर्ग-१४, ग्रं. १००३४. शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मु. देवकुशल, मा.गु., गद्य, वि. १७६७, आदि: नत्वा वीरं सुबोधाय; अंति: सिद्ध उदया चले रहिउ, ग्रं. १२०००. १२३१७२. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७६२, आषाढ़ कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १६१, ले.स्थल. वाकानेर, क्रीत. मिश्रीमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ज्ञातासूत्रं., ज्ञातासू., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११, १३४४२). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: नायाधम्मकहाउ समत्ताउ, ग्रं.५४६४. १२३१७३. (+) शत्रुजयतीर्थ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. सा. लाछां आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४४). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. रत्नमंदिर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह ऊठी रे आदिजिणंद; अंति: रत्नमंदिर० सम नवि तोल ए, गाथा-१८. १२३१७५ (#) नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. घाणोरानगर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४४९). नवपद पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: श्रीगोडीपासजी नित; अंति: उत्तमविजय जगीस रे, ढाल-९. १२३१७६. आषाढाभूतिमुनि चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२४.५४११, १०४३२). आषाढाभूतिमुनि चरित्र, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: श्रीजिनवदन निवासिनी रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६२ अपूर्ण तक है.) १२३१७७. १६ पिंडोद्म दोष, इरियावहि कलक व तीर्थादि गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, प. कुल पे. ४, प्र.वि. पत्रांक संदिग्ध है., जैदे., (२५.५४११.५, १३४५३). १.पे. नाम. १६ पिंडोद्गम दोष गाथा सह बालावबोध, प. १६अ, अपर्ण, प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ४२ गोचरी दोष गाथा-हिस्सा १६ पिंडोद्गम दोष गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आहाकम्मुद्देसिय पूईकम्मे; अंति: सोलस पिंडुग्गम दोसा, संपूर्ण. ४२ गोचरी दोष गाथा-हिस्सा १६ पिंडोद्गम दोष गाथा बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: गृहस्थेनेव कृता एते भवंति, (अपूर्ण, पृ.वि. दोष ६ से है.) २. पे. नाम. इरियावहि कुलक गाथा १ से ६ सह बालावबोध, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. इरियावहि कुलक, प्रा., पद्य, आदि: चउदसपयअडवन्ना तिगहिय तिसई; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ नहीं लिखी गई है.) इरियावहि कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: मनुष्यगति मिथ्यादुष्कृत; अंति: भेद ९ पर्याप्त अपर्याप्त, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गर्भज उरपरिसर्पादि कुछेक भेद नहीं लिखे हैं.) ३. पे. नाम. आचारांगसूत्र नियुक्ति तीर्थमहिमा गाथा ३२२, ३३१-३३२, पृ. १६आ, संपूर्ण. आचारांगसूत्र-नियुक्ति का हिस्सा तीर्थमहिमा गाथा, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: अट्ठावयमुज्जिंते गयग्गपयए; अंति: चेईयाणयाइं इएसा दंसणे होइ, गाथा-३. ४. पे. नाम. गाथा संग्रह जैन, पृ. १६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ३८१ औपदेशिक गाथा संग्रह जैन*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: चक्कं छत्तं दंडं तिन्निवि; अंति: पुत्थय सुतित्थयरपूयासु, गाथा-३, (वि. १४ रत्नमानादि गाथा.) १२३१७८. (+) पौषध विधि व मंत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४३८). १.पे. नाम. पौषध विधि, प. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में किंचित संधि विषयक वर्णन दिया गया है. संबद्ध, प्रा.,मा.ग., गद्य, आदि: प्रथम पोसहसाला प्रमारजी; अंति: समाधि इम कहीजइ कहावीयइ. २. पे. नाम, पंचांगुलीदेवी मंत्रादि संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). १२३१७९. पंचकल्याणक पूजा, संपूर्ण, वि. १८९४, आषाढ़, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. गढवाली, प्रले. मथेण केसरसिघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वाचनार्थे "पं. साधुजी" ऐसा लिखा है., प्र.ले.श्लो. (६४४) याद्रिशं पुस्तकं द्रिष्ट्वा, जैदे., (२६४११.५, ९४३४). पंचकल्याणक पूजा, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: अमरनिकर नित जेहना भगति; अंति: रुपविजय गुण गाया रे, ढाल-११. १२३१८० (+) जंबूद्वीपनतीनी परयाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, २४४५९). जंबूद्वीप बाह्यमंडलगत १८४ मंडलवर्ती सूर्यचंद्रगति क्षेत्रमानादि विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: करइ पणि मइथुन न सेवइ, (पृ.वि. "देहनारो आक० सूर्य थोक वरसात वरसि" पाठांश से है., वि. अंत में सूर्यचंद्र मांडला का कोष्टक दिया है.) १२३१८१ (+) सीलविषये वीरसेनकुसुमश्रीकथा, संपूर्ण, वि. १८५८, पौष कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. मु. दयाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १६x४४). वीरसेन कथानक-चतुर्विधधर्म विषये, सं., गद्य, आदि: दान शील तपोभाव भेदाध; अंति: मोक्षपदं प्राप्ससि. १२३१८२ (+) भाष्यत्रय सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५-१(१)=३४, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, ४४४२). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: (-); अंति: जीवा सासयसुखं अणाबाहं, भाष्य-३, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) भाष्यत्रय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १७५८, आदि: (-); अंति: संशोध्यं मंगलं भूयात्. १२३१८३. (+) भुवनदीपक व ज्योतिषश्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, प्रले. पंडित. करम वैष्णव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १४४४६). १. पे. नाम, भुवनदीपक सह बालावबोध, पृ. १आ-११आ, संपूर्ण. भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: पुत्रादिकं त्वापदम्, श्लोक-१७०, (वि. श्लोकानुक्रम में व्युतिक्रम है.) । भुवनदीपक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती तणउं तेज नमस्करी; अंति: ग्रह हुइ सुख संभोग कहिवउ. २. पे. नाम. ज्योतिषश्लोक संग्रह, पृ. ११आ, संपूर्ण. ज्योतिष , पुहिं.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रविष्टं तु रवि भौमे; अंति: तावत् भवेतांध भृगु सदापि. १२३१८४. दानशीलतपभावना रास, संपूर्ण, वि. १७७२, आषाढ़ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. धनारी, प्रले. मु. आणंदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १५४४१). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समृद्धि सुप्रसादे रे, ढाल-४, गाथा-१००. १२३१८५ (#) लीलावती भाषानवाद व चौगणोत्तरादि विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १५४३६). For Private and Personal Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. लीलावती का भाषानुवाद, पृ. १आ-२३आ, संपूर्ण. लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सोभित सिंदर पुर; अंति: लालचंद० जन सुखकाज, अध्याय-१६. २. पे. नाम. चौगुणोत्तर विधि, पृ. २३आ-२४अ, संपूर्ण. लीलावती-भाषानुवाद का चौगुणोत्तर विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: थानक माहै हीन इक गुणो; अंति: दरबाजे इतरा सुलट हुआ. ३. पे. नाम, द्विगुणोत्तरादि फल, पृ. २४आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. लीलावती-भाषानवाद का द्विगणोत्तरादि फल, संबद्ध, मा.ग., गद्य, आदि: धुरीसं दीधा दोइ; अंति: (-), (पू.वि. चतुर्गुणोत्तरविधि अपूर्ण तक है.) १२३१८६. (+) हैमलिंगानुशासन सह स्वोपज्ञ विवरण, अपूर्ण, वि. १७४९, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ३३-८(८,१०,१४,१८ से २०,२२,२५)=२५, ले.स्थल. सादडी नगर, प्रले. मु. जयचंद्र गणि (गुरु मु. हितचंद्र गणि); गुपि. मु. हितचंद्र गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, २१४४८). हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: पुल्लिंगं कटणथपभमयर; अंति: समदृभदनुशासनानि लिंगानां, प्रकरण-८, श्लोक-१३८, (पू.वि. स्त्रीलिं०प्रक० श्लोक-१ से ४, ७ से १०, ३२ से नपुं०प्रक श्लोक-१, श्लोक-१० से अं.श्लोक, स्त्रीपुंसलिंग श्लोक-६ से ११व पुनपुंसकलिंग श्लोक-१४ से १९ तक नहीं है.) हैमलिंगानुशासन-स्वोपज्ञ विवरण, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: श्रीसिद्धहेमचंद्र; अंति: महाघोषामनीषिभिः. १२३१८७. सीतारामरिषि चरित्र, संपूर्ण, वि. १७६५, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, जीर्ण, पृ. १५, ले.स्थल. नागपुर, प्रले. मु. भागु ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सीताच०. सदारंगजी प्रसादात्., कुल ग्रं.७००, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (२५.५४११, १६४५७). सीताराम चरित्र, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: इहेव भरतक्षेत्रे मिथिला; अंति: पाईयइ पूजै वंछित आस. १२३१८८. ठाणांग दीपिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४, प्र.वि. हुंडी:ठाणांग दीपिका., कुल ग्रं. १४४१, जैदे., (२५.५४११, १७४५३). स्थानांगसूत्र-दीपिका टीका, म. मेघराज, सं., गद्य, वि. १६५९, आदि: वर्द्धमानोजिनो जीयाद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्थान-२ उद्देश-४ तक लिखा है.) १२३१८९ (+) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, २०४५८). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सामायिकावश्यकपौषधानी; अंति: (-), अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १२३१९० (+#) अजितशांति स्तवन व बृहत्शांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ३, कल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, १३४३६). १. पे. नाम, अजितशांति स्तवन, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण.. अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संतिं च; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. २. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: (-), (पू.वि. 'अभिनंदन सुमति पद्मप्रभ' पाठांश तक है.) १२३१९१ (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०६-१(१)=१०५, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:ज्ञातासू०अ०., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १५४४२). For Private and Personal Use Only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ३८३ ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ सूत्र-५ अपूर्ण से श्रुतस्कंध-२ वर्ग-१० सूत्र-२ अपूर्ण तक है.) १२३१९२ (#) स्तवनचौवीसी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७८८, आषाढ़ कृष्ण, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. ३५-७(१ से ३,१९ से २०,२४ से २५)=२८, ले.स्थल. राधणपुर, पठ. मु. केसरवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, ४४३६). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: (-); अंति: अनंत सुखनो सदा रे, स्तवन-२४, (पू.वि. स्तवन-३ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: गाता अखयसंपद अति घणी. १२३१९४. (+#) कल्पसूत्र की कल्पकिरणावली टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-१(१७)=१७, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ९४३३). कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागर गणि, सं., गद्य, वि. १६२८, आदि: प्रणम्य प्रणताशेष; अंति: (-), (पू.वि. नागकेतु कथा अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२३१९६. (+) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८११, आश्विन शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ६१, ले.स्थल. वडलुग्राम, प्रले. ग. फतेविजय; पठ. श्राव. धनरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:संग्रहणीट० प. अंत में "सत्य सोचं तप सोचं सोचमिद्रिय निग्रहं सर्व भूतदया सोचं जल सोचं च पंचमं" लिखा हुआ है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ३४३७). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: नंदउ जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३९३. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउं कहतां वांदीनइं; अंति: सर्व सुख पामइ. १२३१९७ (+) कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५,१३४३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)णमो अरिहंताणं० पढम, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान-६ तापस आश्रम में वर्षावास प्रसंग तक है.) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्य; अंति: (-). १२३१९९ (#) नवस्मरण व शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-१०(१ से १०)=४, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४३३). १. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. ११अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. म. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अजितशांति स्तव गाथा-२४ अपूर्ण से बृहत्शांति-"कोष्ठागारा नरपतयश्च" पाठ तक है व कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है.) २.पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति पत्रांक-१४अ के बीच में लिखी है. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. १२३२०० (#) उपदेशरत्नकोश सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. रंगोदय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११,११४३१). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिय नीसेस; अंति: ए वछयले रमइ सच्छाए, गाथा-४१. उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर चउवीसउ; अंति: वांछित सुख थाइ पामइ. १२३२०१. (+) ब्रह्मचर्य नववाडि गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४३९). नववाड सज्झाय, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन नंदनवन; अंति: पुण्यसागर० सील अखंड, ढाल-२, गाथा-१९. For Private and Personal Use Only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२३२०२. (+#) निरयावलिकादिपंचोपांग सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८००, आश्विन शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. ३९, कुल पे. ५, ले.स्थल. टुंकनगर, प्रले. मु. मनजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:निरयावलिया., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१०.५, ८४३९). १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-१६आ, संपूर्ण. कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समएणं; अंति: अयमढे पन्नत्ते तिबेमि. __ कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिणि कालि तिणि प्रस्तावि; अंति: अ० ए अर्थ प० कह्या. २.पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १६आ-१८अ, संपूर्ण. कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते समणेणं जाव; अंति: अयमढे पन्नत्ते ति बेमि. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जजउ भ०हे भगवंत स०; अंति: महाविदेहइ सीझस्यइ. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १८अ-३२आ, संपूर्ण. पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए, अध्ययन-१०. पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जउ हे पूज श्रमण भगवंत; अंति: गाथामाहे छे तिम. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ३२आ-३५अ, संपूर्ण. पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: खलु जंबू निक्खेवउ, अध्ययन-१०. पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० जउ भं० हे पूज्य सं०; अंति: हे जंबू नि० सर्व पाठ कहवो. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. ३५अ-३९अ, संपूर्ण. वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते समणेणं; अंति: पंचमवग्गे बारस उद्देसगा, अध्ययन-१२. वष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज० यद्यपि जउ भ० हे भगवंत; अंति: विषै द्वादश उद्देशा कह्या. १२३२०३. (#) औपदेशिक श्लोक संग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४२). औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सद्रव्य सत्कुले जन्म; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-२ तक है.) औपदेशिक श्लोक संग्रह-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: ए पांच संयोग जीवनइ पामतां; अंति: (-), पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १२३२०४. (#) औपदेशिक श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१०.५, १८४५६). औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: निर्दतः करटीहयो; अंति: प्रतिहार्याणि जिनेश्वराणि. १२३२०५ (+) गीत व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १६५३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, ले.स्थल. अहमदाबाद, पठ. सा. दानमाला (गुरु ग. विनयमाला); गुपि.ग. विनयमाला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०.५, १२४४३). १. पे. नाम. आदिजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. रत्नसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नाभिनरेसर नंदा; अंति: बोलइ रतनसुंदर जिनजी कउ, गाथा-६. २.पे. नाम. गुरुजी गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. गुरुगुण गीत, मु. रत्नसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सुनउ रे सहेली मोरइ दूध; अंति: रतनसुंदर गुरुचरणे लीनउ, गाथा-७. ३. पे. नाम. गुरुजी गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनमाणिक्यसूरिगुरुगुण गीत, मु. रत्नसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सोभागी गुरु अडिनिलउ रे गछ; अंति: दर० श्रीवंत सा हमम्हार रे, गाथा-४. ४. पे. नाम. जिनचंदसूरि गुरुगण गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. गुरुगुण गीत, मु. रत्नसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: महामुनि चिरंजयउ ए जगजीवन; अंति: रतनसुंदर सुखकर, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ३८५ ५. पे. नाम. सुविधिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: घुघुमि घुघुमि घुमघूमघुम; अंति: अभंग रंगि सुरकी अंते उरी, गाथा-१. १२३२०६. (+) नवतत्त्व भेद विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१०.५, १६४३४). १.पे. नाम. नवतत्त्व भेद विचार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व १४ भेद; अंति: जिणे भिगै सीधा छै तेआ २७६. २. पे. नाम. १४ उपदेश बोल, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ११ उपदेश बोल, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: विधवाद १ चरितानुवाद; अंति: विवहारपक्ष १०, निश्चय ११. ३. पे. नाम. ५३६ जीवभेद विचार, पृ. ३अ, संपूर्ण. ५६३ जीवभेद विचार, पुहिं.,मा.गु., गद्य, आदि: नवतत्त्व भेद मध्ये अजीव ४; अंति: मनुष्य देवता मिली ५६३ भेद. ४. पे. नाम. इरियावहि कूलक, पृ. ३आ, संपूर्ण. इरियावहि कुलक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. जीवभेद विवरण परिमाण दिया गया है.) १२३२०७. शालिभद्रमुनि चउपई, संपूर्ण, वि. १८०१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. २०, प्रले. ग. शांतिविजय; पठ.पं. गंगविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:शालिभद्ररीचोपी., जैदे., (२६४११, १२४४२). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: शासण नायक समरीये; अंति: मनवंछित फल लहिस्यइ जी, ढाल-२९, गाथा-५११. १२३२०८. (+#) भगवतीसूत्र-शतक-२ उद्देशक-१ गत स्कंधक अधिकार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १३४२७). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. पाठ-"अणावकं खमाणस्स ____ विहरत्तिपत्ति कटु" तक है.) १२३२०९ (+) मौनएकादशीव्रत कथा सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. सुखलाभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, १६४४४). मौनएकादशीव्रत कथा, सं., पद्य, आदि: नेमिनाथं जिनं नत्त्वा; अंति: वितरयो पूजा समपालिततदिनं, श्लोक-४१. मौनएकादशीव्रत कथा-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: तदा क्षणे वदत्कृष्णो; अंति: मौनैकादशी तपो विधेयं. १२३२११. नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध व कल्पसूत्र की महिमा कथा, संपूर्ण, वि. १७९१, माघ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. उज्वलसारीग्राम, प्रले. मु. राजपाल (गुरु मु. दल्लाजी ऋषि); गुपि. मु. दल्लाजी ऋषि (गुरु मु. कुसलाजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १८४३७). १.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवई मंगलम, पद-९. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: बारसगुण अरिहंता; अंति: प्रणामै त्रिकालवंदन हुओ. २. पे. नाम. कल्पसूत्र महिमा कथा, पृ. २अ, संपूर्ण. कल्पसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जिम वृक्षमाहै कल्पवृक्ष; अंति: महाविदेहने० अवतरी सिझसै. १२३२१२. (#) आचारांगसूत्र व श्रावकविसवादया गाथा आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २९-२८(१ से २८)=१, कुल पे. ४, प्रले. ग. शांतिरत्न (गुरु आ. कीर्तिरत्नसूरि); गुपि. आ. कीर्तिरत्नसूरि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४१०.५, ५४५०). १. पे. नाम. आचारांगसूत्र-विमुक्ति अध्ययन १६ सह वृत्ति, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण. आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विमुच्चति त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. आचारांगसूत्र-टीका #, आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. ९१८, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. श्रावकविसवादया गाथा सह बालावबोध, पृ. २९आ, संपूर्ण. श्रावक विसवा दया गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा सुहमा थुला १०; अंति: सावक्खा चेव निरवक्खा, गाथा-१. For Private and Personal Use Only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३८६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावकविसवादया गाथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सुषम न टलइइ न रहइ दस विस; अंतिः श्रावक दया पालइ. ३. पे. नाम, चेटकराजा संतति गाथा, पृ. २९आ, संपूर्ण. चेटकराजासंतति गाधा, प्रा. पद्य, आदि चेडयनिवधवाएं प्रभावइए अति सेणियनिव चिल्लणा एव गाथा-२. ४. पे. नाम. प्रतिमा आभूषण श्लोक, पृ. २९आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि परिधापनिकां पुण्य; अंतिः स्वाद्विश्वश्रृंगारकारिणा, गाथा-१ (पू.वि. धनेश्वरसूरि कृत शत्रुंजय माहात्म्यगत देव पहिडावणी लोक.) १२३२१३. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार व १४ गुणस्थानक विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, दे. (२६४११, १३x४२). १. पे. नाम कर्मस्तव, पृ. १९आ-६अ, संपूर्ण. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि मूल प्रकृति८ उत्तर प्रकृः अंतिः पणि वांदु नमस्कार करु छु. २. पे. नाम. १४ गुणस्थानक विचार, पृ. ६अ-८आ, अपूर्ण. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. , मा.गु. गद्य, आदि: प्रथम मिथ्यात्व सास्वादन अति (-) ( पू. वि. गुणठाणा- १४ की स्थिति विचार अपूर्ण तक है.) १२३२१४ महावीरजिन चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. दे. (२६४१०.५, ९४३१). महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नौ चौमासी तप कर्या; अंति: लहिइ नित कल्यांण, " " संपूर्ण. १२३२१५. (०) देवराजवच्छराज रास, संपूर्ण, वि. १६५५, माघ १३, रविवार, मध्यम, पृ. १५, प्र. वि. प्रतिलेखक नाम अस्पष्ट है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६X११, १२X४६). देवराजवच्छराज रास, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य वि. १६वी, आदि सकल जिनवर सकल जिणवर अंति: लइए नवनिधि ते घरबार, खंड-६, ग्रं. ६१२. १२३२१६. (०) नवकार महात्म्य, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू.वि. अंत के पत्र नहीं है., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १५X३६). नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे आयाण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण तक है.) गाथा-७, १२३२१७. (+) पार्श्वजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६X११, १५X४३). पार्श्वजिन चरित्र, मु. हेमविजय, सं., पद्य, बि. १६३२, आदि (-); अति: (-), (पू.वि. सर्ग-१ श्लोक-२० से ५५ अपूर्ण तक है.) १२३२१८ (+४) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी : नाममाला., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५X१०.५, १२X४०-४८). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि प्रणिपत्यार्हतः सिद्ध०; अंति: (-), (पू.वि. कांड-२ श्लोक-२२ अपूर्ण तक है.) १२३२२०. नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वे. (२६४१०.५, १२X५२). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि णमो अरिहंताणं अंतिः पढमं हवई मंगलम्, पद-९, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: पद ९ संपदा ८ लघु अक्षर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. अरिहंत बार गुण वर्णन अपूर्ण तक है.) , १२३२२९ (+) सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पू. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५x११, ११४३२). For Private and Personal Use Only सीमंधरजिन स्तवन-आलोयणाविनती, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: आज अनंता भवतणां कीधा, अंति: (-). (पू.वि., गाथा १७ अपूर्ण तक है.) Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२३२२४. अजितशांति स्तव का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पू. ४, जैदे. (२५.५x११, १७५६९). अजितशांति स्तवन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अजिअं अजितनाथ किसउ; अंति : आयरं आदरं कुणह करउ. १२३२२५. रामविनोद व चंद्रोदयपारद विधि, संपूर्ण, वि. १८४७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, रविवार, मध्यम, पृ. ६४, कुल पे. २, ले. स्थल. कृष्णगढ, प्रले. मु. जगन्नाथ पंडित; पठ. श्राव. धनराज हीरानंद (गुरु मु. जगन्नाथ पंडित), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५११, १५X४६). १. पे नाम. रामविनोद, पृ. १आ-६४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी रामविनोद. पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिद्धबुद्धिदायक सलहीयै; अंति: रामविनोद विनोदसु, समुद्देश- ७, गाथा - १६१३, ग्रं. ३३२५. २. पे. नाम. चंद्रोदय पारद विधि, पृ. ६४अ, संपूर्ण. चंद्रोदयपारद विधि, मा.गु., गद्य, आदि पोरो धतुरा का रस मे; अतिः कफ सर्वरोगा प्रणस्वति १२३२२६. (+) द्रोपदीसती चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. जैदे., (२५X११, १३x५१). द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: पुरिसादाणी पासजिण; अंति: कनककीरति सुखकार, ढाल -३९, गाथा - ११२५. १२३२२७. (+#) कोकसार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५४-४८ (१ से ३५, ४० से ५२ ) = ६, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, १४४५७). कोकसार, आ. नर्बुदाचार्य, मा.गु., पद्य, वि. १६५६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश-८ गाथा-४ अपूर्ण से प्रकाश ९ गाथा-३ अपूर्ण तक व गाथा २१८ अपूर्ण से २९० अपूर्ण तक है.) १२३२२९. बृहत्संग्रहणी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०-९ (१ से ९ ) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६X१०.५, १२X३८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ से १८ तक है.) बृहत्संग्रहणी बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). १२३२३०. (+) सूत्रकृतांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १६६९, पौष शुक्ल ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पू. ४३-१ (१) =४२, ले. स्थल. जेसलमेर, प्रले. मु. उदयसंघ (गुरु पं. गुणराज ); गुभा. मु. करमचंद (गुरु पं. थिरा); गुपि. पं. थिरा (गुरु पं. गुणराज ); पं. गुणराज (गुरु पं. देवसार); पं. देवसार; प्रसं. ग. धर्मकीर्ति, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. हुंडी : सुग० सूत्रं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२५. ५४११, १५X४८). " सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि (-); अंति विहरति त्ति बेमि, अध्याय २३, ग्रं. २१००, " (पू.वि. अध्ययन-१ उद्देशो-१ गाथा-१६ अपूर्ण से है.) ३८७ १२३२३२. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०६-२७ (१ से २७) =७९, प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (२५.५x११, १४४३९). , कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. व्याख्यान १ सूत्र- २३ अपूर्ण से है व व्याख्यान ९ सूत्र- ३ अपूर्ण तक लिखा है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कल्पसूत्र - बालावबोध, मा.गु. रा. गद्य, आदि (-); अंति: (-). (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., " दश आश्चर्य वर्णन अपूर्ण से है.) १२३२३३. (+) जंबूचरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८७२, श्रेष्ठ, पृ. ८३-१ (३८* )=८२, ले. स्थल. पालीताणा, प्रले. पंन्या. विनयरुचि; पठ. मु. मोतीरुचि (गुरु पं. दयारुचि); गुपि पं. दयारुचि (गुरु ग. न्यानरुचि) ग. न्यानरुचि (गुरु ग. दीपरुचि) ग. दीपरुचि, प्र.ले.पु. मध्यम. प्र. वि. ऋषभदेव प्रसादात्, पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२५४११.५ १०X२७). For Private and Personal Use Only जंबू अध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० रायगिहे; अंति: से आराहगा भणिया, उद्देशक- २१, (संपूर्ण वि. १८७२ वैशाख कृष्ण, ११) Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: ते काल नि विषइ ते समय नि; अंति: जाणिवो जंबुना अध्ययनो २१, ___ (संपूर्ण, वि. १८७२, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, गुरुवार) १२३२३४. (+) थावच्चापुत्र व सुकोशलमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १२४४०). १. पे. नाम. थावच्चापुत्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. थावच्चाकमार भास, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: नयरी द्वारामती जाणीइ; अंति: (१)करइ ते सिवपुरि जाई, (२)सइ अंते उरी विलसइ सुखभोगो, गाथा-२०. २. पे. नाम. सुकोशलमुनि सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. सूरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नयरी अयोध्या जयवती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) १२३२३५. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६०-११(३५ से ४२,४७,५५ से ५६)=४९, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ४४२३). उत्तराध्ययनसूत्र, म. प्रत्येकबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१२ गाथा-४३ अपूर्ण तक है तथा बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमानं जिनं; अंति: (-). १२३२३६ (+) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४३६). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. "तंजहा अरिहंतसक्खियं सिद्धसक्खियं से तिविहंतिविहेणं मणेणं वायाए" पाठ तक है.) १२३२३७. (+) मृगावतीसती चोपाई, संपूर्ण, वि. १६९७, कार्तिक शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४४०). मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: समरु सरसति सामिणी; अंति: वृद्धि सुजगीसा, खंड-३, गाथा-७४५, ग्रं. ११००, (वि. ढाल-३७.) १२३२३९ (+#) तपागच्छ पट्टावली सह स्वोपज्ञ वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७०४, श्रावण, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ५३७, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १८४३६). तपागच्छ पट्टावली, उपा. धर्मसागर गणि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिमंतो सुहहेउ; अंति: दिंतु सिद्धिसुहं, गाथा-२१. पट्टावली तपागच्छीय-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागर गणि, सं., गद्य, आदि: सिरिमंतोत्ति यत्तदो; अंति: युक्तिमद्विधेयमिति. १२३२४२. प्रदेशीराजा प्रश्नोत्तरी गाथा व ९नियाणा स्वरूपादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १, कल पे. ४, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४११, १९४५५-५८). १.पे. नाम. प्रदेशीराजा प्रश्नोत्तरी गाथा सह टीका, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रदेशीराजा प्रश्नोत्तरी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अज्जय १ अज्जा २ कुंभ; अंति: अइभारावाह १० पडिवयणं, गाथा-२. प्रदेशीराजा प्रश्नोत्तरी-टीका, सं., गद्य, आदि: केशीगणधरं प्रतिवदति भो; अंति: गणधर प्रत्युत्तर वचनानि, (वि. अंत में ___व्यवहारसूत्र भाष्यगत गाथा साक्षीपाठ हेतु उल्लिखित है.) २. पे. नाम. ९ नियाणा स्वरूप विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कश्चित्साधुसाध्वी वा; अंति: पामइ पणि मोक्ष न जाई, (वि. पाक्षिकसूत्र वृत्तिगत संदर्भ पाठ दिया गया है.) ३. पे. नाम. आचारांगसूत्र-श्रुतस्कंध २ अध्ययन पिंडेसणा गोचरीगमणकुल सूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४. पे. नाम. चेटकराजासंतति गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: चेडयनिवधूयाए प्रभावइए; अंति: अंतरमेयं वि जाणिज्जा. For Private and Personal Use Only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२३२४४. (+) गौतम कुलक का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. संशोधित., दे., (२५.५X११, ११X३५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गौतम कुलक-बालावबोध+कथा क्र. रिधु, मा.गु., गद्य, आदिः सुवदेवी समरि करि अंति: (-), (पू.वि. मम्मणसेठ की कथा अपूर्ण पाठ-"अभयकुमार नाम राजकार्यभार धुरंधर" तक है., वि. मूल का प्रतीकपाठ है.) १२३२४५. (+) पंचतीर्थ चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., दे., (२५.५X१०, ११X३०). पंचतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि जे जे नाभिनरिद नंद, अंति (-), (पू.वि. महावीरजिन स्तुति अपूर्ण तक है.) १२३२४६. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६०-३४ (१ से ९,११ से १२,१४ से १५,१७,१९ से २०,२३ से २४,२६,२८,३१ से ३२,३४ से ३५,३७,४०, ४२ से ४३, ४५ से ४७,५४ से ५६) = २६ प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६×११, १३x४२). ३८९ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., अध्ययन-७ गाथा-४ अपूर्ण से अध्ययन- ३२ गाथा- ९७ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२३२४७. (*) मोतीकपासीया संवाद, अपूर्ण, वि. १७१२, १ फाल्गुन शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३) = १ प्रले. मु. जीवा (गुरु मु. समर्थजी ऋषि); गुपि. मु. समर्थजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५.५x११. १५x४२). मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि (-); अंति: चतुरनरां चमतकार, ढाल ५, , गाथा-१०९, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., गाथा- ९५ अपूर्ण से है.) १२३२४८. (+) नर्मदासुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९-८ (१ से ८) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:नर्मदाराश., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x११.५, १७४३८). " 3 नर्मदासुंदरी रास- शीलव्रतविषये, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५४, आदि (-) अंति: (-), (पू. वि. दाल-८ गाथा-६ अपूर्ण से ढाल-९ गाथा-११ अपूर्ण तक है.) १२३२४९. () भुवनदीपक सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११-४ (१ से ४) = ७, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x११.५, ७५५३). . भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३५, आदि (-); अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक १७३, (पू.वि. लोक-६० अपूर्ण से है.) भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पद्मप्रभसूरि०नामे आचार्ये. १२३२५०. (०) दशवैकालिकसूत्र व दशवैकालिकसूत्रमाहात्म्य गाथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४३-१(१) ४२, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित टीकादि का अंश नष्ट है, जैये. (२५.५४११.५, ६x४३). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, पृ. २अ-४३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी आदि (-); अति मुच्चइ ति बेमि, अध्ययन- १०, (पू. वि. अध्ययन- २ गाथा-८ अपूर्ण से है. वि. चूलिका-२.) दशवैकालिकसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: शिष्य प्रतइ कहइ छड़ २. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्रमाहात्म्य गाथा सह टबार्थ, पृ. ४३अ ४३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दशवैकालिकसूत्रमाहात्म्य गाथा, संबद्ध, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिज्जंभवं गणहरं जिणपडिमा; अंति (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्रमाहात्म्य गाथा-टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि सिज्जं भव गणधर के हवउ छड़, अंति: (-). १२३२५१. (*) बृहत्संग्रहणी सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३३-३ (१ से २,१६) = ३०, प्र. वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., ( २६११.५, ४X३९). For Private and Personal Use Only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३९० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य वि. १२वी, आदि (-); अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२८७, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-८ अपूर्ण से है व बीच का पाठांश नहीं है.) , बृहत्संग्रहणी अवचूरि सं., गद्य, आदि (-); अति व्याख्याता संक्षिप्ततरां पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. १२३२५४ (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र की वृत्ति, संपूर्ण वि. १६६१ कार्तिक शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १३०, प्र. वि. हुंडी ज्ञातावृत्ति.. संशोधित, जैवे. (२५.५४११, ११४४६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य वि. ११२०, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीर; अति: चत्वारि द्विशतानि च, अध्ययन - १९, ग्रं. ३८००. १२३२५६. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५-१ (१) = ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें जै. (२६४११. ६४५०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., अध्ययन-२ गाथा-८ अपूर्ण से अध्ययन-४ "नेवन्नेहिं मेहुणे सेवाविज्झा" पाठ तक है.) 3 दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. १२३२५९. (+०) चंदराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी मार्गशीर्ष कृष्ण, मध्यम, पू. १२७-६३ (१ से ८,१२ से १३, १७ से ४०, ४२, ४४ से ४६,६० से ६१,६६,७३,७८,८९ से १०६,१११, ११६) =६४, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२६x११, १३x२९). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य वि. १७८३, आदि (-) अति वर्णव्या गुणचंदना, उल्लास-४, गाथा - २६७९, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., उल्लास- १ डाल ७ गाथा-३ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं., वि. ढाल - १०८.) १२३२६०. (+) विविध बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३८, कुल पे. ३०, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११, १५x५२). १. पे. नाम. नवतत्व का वालावबोध, पू. १अ-७अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी, नवतत्वभाषाप. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा - बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: १जीवतत्वरा चऊदभेद१४ अजीव; अंति: तत्वना नव९ भेट जाणिवा, २. पे. नाम. जीवादिभेद गाथा संग्रह, पृ. ७अ, संपूर्ण. चयनित गाथा संग्रह-जीवादि आयुमान, प्रा., पद्य, आदि: पुढवाईयासत्ता सव्वेरुक्खा; अंति: गुणं च पावं मुणेयव्वं, गाथा-३, (वि. गाथा क्रमांक २ व ३ गाथासहस्री से है.) ३. पे. नाम. सागरोपम पल्योपम विचार, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि समय अत्यंत सूखिमकाल आवलि; अति: कालमानइ जातइ जायइ. ४. पे. नाम चक्रवर्त्ति का नवनिधान विचार, पृ. ८अ संपूर्ण. , ९ निधान विचार चक्रवर्त्ति, मा.गु., गद्य, आदि: नैसर्पि निधान तिणमांहि अति: पुस्तक अनइ निधान भरियठ, ५. पे. नाम. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, पृ. ८आ ११अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो ज्ञानावरणीकर्म तेह; अंति: मोक्षगति० बीजा परि नही जा . ६. पे. नाम. आहार पच्चक्खाणफल गाथा नवकारसीफलगाथा सह वालावबोध, पू. ११अ ११आ, संपूर्ण आहार पच्चक्खाणफल गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नमुंआई दशमेहि मुणीणो कम; अंति: (-), प्रतिपूर्ण आहार पच्चक्खाणफल गाथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नरकमांहि नारकी सो वरसे अति (-). प्रतिपूर्ण ७. पे नाम. आवक का २९ गुण, पृ. १९आ- १२अ संपूर्ण श्रावक २१ गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम बोलै श्रावक केहा छै; अंति: केहा छै दीर्घ विचारी होइ, अंक- २१. ८. पे. नाम. १३ काठिया नाम, पृ. १२अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आलस सो धरम उद्यम रहित १; अंति: रमणिक सो रामतिसु रमै १३. ९. पे. नाम. २० बोल-तीर्थंकर नामकर्मबंध के, पृ. १२अ - १२आ, संपूर्ण. २० स्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलै बोले जीव अरिहंतजीरा; अंति: तीर्थंकर गोत्र बांधै. For Private and Personal Use Only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ३९१ १०. पे. नाम. पांचइंद्रीना २३ विषय, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय २३ विषय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चक्षुइंद्री१ कामीविषय५; अंति: लूखो फरस राखनी परे. ११. पे. नाम. ६ लेश्या विचार, पृ. १३अ-१४आ, संपूर्ण.. मा.गु., गद्य, आदि: नाम१ वर्ण२ गंध३ रस४ फरस५; अंति: सिद्धांने लेस्या नही. १२. पे. नाम, तेर द्वार नवतत्त्व, पृ. १४आ-२०अ, संपूर्ण. नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मूल १ दृष्टांत २ कोण ३; अंतिः समान मोक्ष जांणवो. १३. पे. नाम. षड्द्रव्य विचार, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: परिणाम१ जीव२ मुत्ती३; अंति: आपणै गुणपर्याय तिष्टै है. १४. पे. नाम. साढापच्चीस आर्यदेश विचार, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण. साढापच्चीसदेशनाम व ग्रामसंख्या, मा.गु., गद्य, आदि: मगधदेस राजग्रहीनगर; अंति: इम साढापचीसदेस आर्य भण्या. १५. पे. नाम, श्वासोश्वास विचार संग्रह, पृ. २१अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: एक सासोसास को एक प्राण; अंति: निगोदीया ५९४२४७५० मरण करै. १६. पे. नाम. प्रश्नोत्तर संग्रह, पृ. २१अ-२४अ, संपूर्ण. प्रश्नोत्तर संग्रह-आगमिक, मा.गु., गद्य, आदि: नवकार माहै पहिला पद; अंति: सूत्रमाहै का छै, प्रश्न-५५. १७. पे. नाम. ईर्यापथिकी कुलक, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण. इरियावहि कुलक, प्रा., पद्य, आदि: चउदस पय अडचत्ता तिगह; अंति: जीव निच्चंपि, गाथा-१२. १८. पे. नाम. ५६३ जीवभेद विचार, पृ. २४आ, संपूर्ण. पुहिं.,मा.गु., गद्य, आदि: नारकीना १४ भेद ७ पर्या; अंति: सर्व मिली ५६३ जीवभेद थया. १९. पे. नाम. ३५ बोल असज्झाय, पृ. २४आ-२५अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १yहरि जां पडइ तां अस; अंति: देखइ तउ सूत्रि भणिवउ सूझइ, बोल-३५. २०. पे. नाम. २८ लब्धिविचार गाथा सह टबार्थ, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण. २८ लब्धिविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आमोसहि१ विप्पोसहि२; अंति: तवसेणे इमाइं हंति लद्धीओ, गाथा-४. २८ लब्धिविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हाथादि फरसइ रोज जाइ ते; अंति: उपजै साधुनै ते जाणवी. २१. पे. नाम. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र के प्रश्नशतक, पृ. २५आ-२८आ, संपूर्ण. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-प्रश्नशतक, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञाताधर्मकथा साढितीन; अंति: पाणी निठाया ते प्रतापै, प्रश्न-६५. २२. पे. नाम. १४ पूर्व विचार, पृ. २८आ-२९अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम उत्पादपर्व तत्र; अंति: १४ पूर्वाणां लिखनं. २३. पे. नाम, सूक्ष्मनिगोद विचार सह व्याख्या, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण. सूक्ष्मनिगोद विचार, प्रा., पद्य, आदि: लोए असंखजोयण माणे; अंति: तहत्ति जिणवुत्तं, गाथा-३. सूक्ष्मनिगोद विचार-व्याख्या, सं., गद्य, आदि: चतुर्दश रक्षात्मके; अंति: यथातथमेव प्रोक्तमस्ति. २४. पे. नाम. षट्मत का भेद, पृ. २९आ-३०अ, संपूर्ण. ६मत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जिनमती१ अद्वेतमती२; अंति: जैनी सर्व पदार्थ का जानना. २५. पे. नाम, औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. ३०अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: डूंघा प्रभु भूघा चतुर; अंति: भूघा जीव मोक्ष अधिकारी, गाथा-७. २६. पे. नाम. सवाविश्वा जीवदया गाथा सह टीका, पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण. सवाविश्वा जीवदया गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा सुहमा थूला; अंति: सावेक्खा चेव निरवक्खा, गाथा-१. सवाविश्वा जीवदया गाथा-टीका, सं., गद्य, आदि: प्राणिवधो द्वेधा स्थूल; अंति: मात्रादया भवतीति तत्त्वं. २७. पे. नाम, श्रावक ११ प्रतिमा गाथा, पृ. ३०आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: दंसण१ वय२ सामाइय३; अंति: वज्जए१० समण भएअ११, गाथा-१. For Private and Personal Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २८. पे. नाम. भिक्षुद्वादश प्रतिमाधिकार सह व्याख्या, पृ. ३०-३१अ, संपूर्ण. भिक्षुप्रतिमा गाथा, प्रा., पद्य, आदि मासाई सत्तंता पदमा विअ अति इय भिक्खूपडिमाण बारसगं, गाथा- १. भिक्षुप्रतिमा गाथा व्याख्या, सं., गद्य, आदि पहिली प्रतिमा एक मास तलक; अंतिः ए तप महा वीर्यवंतसे होय. २९. पे. नाम, बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि पृ. ३१-३७अ संपूर्ण प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि उत्तम पत्तं साह मज्झिम अति: ए वात वली विचारी जोज्यो, ३०. पे. नाम. चरणसित्तरी करणसित्तरी विचार, पृ. ३७अ - ३७आ, संपूर्ण. प्रा., सं., गद्य, आदि: वय५ समणधम्म १० संजम १७; अंति: भावाभिग्रह० सर्व मेलता ७०. १२३२६१. बार भावना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्रले. गंगादास साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६११, ९X३४). १२ भावना, मा.गु. गद्य, आदि अपरां च बिजु अंतिः संबल छह जीव स्व अर्थे. १२३२६२. (+) शीलोपदेसमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. विश्वरुप दवे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जै.., Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २६११, १३x४० ). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि प्रा. पद्य वि. १०वी आदि आबालबंभयारि नेमि अति आराहिय लहइ , " बोहिफलं, कथा- ४३, गाथा- ११५. १२३२६३. (४) ग्यारह गणधर देववंदन व स्तुति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे २ प्रले. मु. नयविजय (गुरुग. लाभविजय गणि); गुपि. ग. लाभविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६११.५, १५४४६). १. पे. नाम ग्यारह गणधर देववंदन, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण. ११ गणधर देववंदन, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर गोयम गणहर; अंति: ते लहइ सुख संपया, स्तवन- ११. २. पे. नाम. ग्यारह गणधर स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. ११ गणधर स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: पुहविवसुभूइतणयं वंदे, अंति: सुहं मे भुवणमहिया, स्तुति-११, गाथा-१६. १२३२६४. (+) चउवीस दंडक, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११, १५X४४). पार्श्वजिन स्तवन- २४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि प्रणमुं पारसनाथ प्रह, अंति प्रसादि परमारथ लहइ, गाथा-२३, संपूर्ण. १२३२६५ (+) अढीद्वीपना नाम, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२५x१०.५, ११x४०). ढाईद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम जंबुद्वीप एक; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाठ- "पृथ्वीतली नवस योजनमाहे" तक लिखा है.) १२३२६६. (+) सप्तोपधानविचारगर्भित महावीरदेवस्य बृहत् स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, प्र. वि. संशोधित., जैदे. (२५.५४१०.५, १३४५०). उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि श्रीमहावीर धरम, अंति भणे वंछिय सुखकरो, ढाल-३, गाथा-१८, संपूर्ण. १२३२६७. (+) फलवर्धी पार्श्वनाथ रास, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. हीररत्न (गुरु ग. राजसिंह, खरतरगच्छ); गुपि. ग. राजसिंह (गुरुमु. विमलविनय, खरतरगच्छ ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५x११, १५X४७). पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. क्षेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु शिरोमणि मनिधर; अंति: खेमराज मुनिवर पभणंति, गाथा - २४. १२३२६८ (+) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण वि. १८६० फाल्गुन कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२५.५४११.५, १०X३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति संतिसूरि० सुयसमुद्दाओ, गाथा- ५१. For Private and Personal Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ लखमीदास, १२३२६९. (क) २० विहरमानजिन मातापितादि वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. सोमविजय, अन्य मु. प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५X११.५, ११x२६). २० विहरमानजिन मातापितादि वर्णन, पुहिं., गद्य, आदि: श्रीमंधरस्वामि पिता; अंति: ४ लांछन ५ स्वस्तिक. १२३२७०. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.. दे.. (२५.५X११.५ १९३१). स्तवनचौवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंदा अंति: (-). (पू.वि. संभवजिन स्तवन गाथा- २ अपूर्ण तक है.) १२३२७१ (#) बृहत्क्षेत्रसमास सह टीका, अपूर्ण, वि. १६१६, भूपषष्टैकं, आषाढ़, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १८७-३(२९,३१ से ३२) १८४, प्रले. श्राव ठाकर पठ. सा. तेजवाई (गुरु सा. लीला); अन्य. मु. जयसिंघ (गुरु मु. रायसिंघ ऋषि); गुपि. मु. रायसिंघ ऋषि (गुरु मु. गणेश ऋषि); मु. गणेश ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी क्षेत्रसमास वृ०, कुल ग्रं. ८२८७ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, १७x४३). बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ६वी, आदि नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण; अंति: वी उत्तमसुयसंपयं देउ, अधिकार-५, गाथा- ६५५, (पू.वि. गाथा ६० से ६१ व ६३ से ७२ नहीं है.) बृहत् क्षेत्रसमास- टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, वि. १३वी, आदि: जयति जिनवचनमवितथममित; अंति: तान्मंगलमसिश्रियमिति अध्याय ५. ३९३ १२३२७२. (*) भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १७७५, फाल्गुन शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ९, पठ. ग. भाग्यविजय (गुरु ग. प्रतापविजय); प्रले. ग. प्रतापविजय (गुरु ग. तीर्थविजय); गुपि. ग. तीर्थविजय; अन्य. पं. उमेद, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैवे. (२५.५x११, ११४३९). • भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. प+ग, वि. १४वी, आदि: वंदितु वंदणिज्जे अति: सासयसुक्खं अणावाहं, भाष्य-३. १२३२७३. (*) उपदेशमाला सह टवार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १७९५, पौष शुक्ल ११, मध्यम, पृ. १६९-१० (१५८ से १६७)-१५९. ले.स्थल. सीलोद्र, प्रले. ग. दीपविजय (गुरु ग. जसवंतविजय); गुपि. ग. जसवंतविजय (गुरु ग. माणिक्यविजय); ग. माणिक्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी उपदेशमालासूत्रणं, टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित. कुल ग्रं. ७०००, जैये., (२५X११, ४X३६). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंदनरिंद०; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४, (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. गाथा-५४१ अपूर्ण से ५४२ अपूर्ण तक नहीं है.) "" उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७१३, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: लेखक पाठक होई. पू. वि. बीच के पत्र नहीं है. उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्वा वीरजिनं; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण पाठ - "कनकवती रणसिंह कुमर कथा अपूर्ण तक है.) , १२३२७४ (+) औपदेशिक छंद, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि., संशोधित. दे. (२५x११.५, ११४४१). औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि भगवति भारति चरण, अंतिः धरम रंग मन धरजो चोल, गाथा - १६. " १२३२७६. (४) द्रौपदीसती कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. २३-२१(१ से २१) २. पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १६x४३). द्रौपदीसती कथा, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-) (पू.वि. "धर्मरूचि अणगार- नागश्री प्रसंग अपूर्ण से द्रीपदी भव में पद्मोत्तर राजा द्वारा अपहरण प्रसंग" अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only १२३२७७. (+) मछोदर चउपड़, संपूर्ण, वि. १९५२, मार्गशीर्ष कृष्ण, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्र. वि. हुंडी : मछोदर., संशोधित. कुल ग्रं. १२४९. वे., (२५.५४११.५, १७४५१). मत्स्योदर चौपाई, मु. जिनसुंदर, मा.गु., पद्य वि. १७१८ आदि प्रह ऊठी प्रणमुं सदा अंति जिनसुंदर डाल वखांण, ० ढाल- ३३. Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची , १२३२७९. (d) मणरया चोपाई, संपूर्ण वि. १८८२ कार्तिक कृष्ण, ३, शनिवार, श्रेष्ठ, पू. ५. प्रले. मु. दयाचंद ऋषि (गुरु मु. पनालाल ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : मणरया., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १७X५०). गाथा - १८२. मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: विसन सातमो परनारीनो परतरु; अंति: मिच्छामि दुक्कडम मोयो, १२३२८० (+) साधुपाक्षिकअतिचार व पाक्षिक क्षामणक, संपूर्ण, वि. १८४३, पौष कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे., (२५४११, १३४३३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे नाम. साधुपाक्षिक अतिचार, पृ. १अ २आ, संपूर्ण साधुपाक्षिक अतिचार-मू. पू. संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदेस्सह, अंति: तस्स सव्वसवि पक्षी पति. २. पे नाम. पाक्षिकखामणा, पृ. २आ-३अ संपूर्ण. , क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि खमासमणो पिर्य अंतिः नित्धारग पारगा होह, आलाप ४. १२३२८२. २४ जिन कल्याणकदिन विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैदे. (२५x११, १६x२९). २४ जिन कल्याणकदिन विचार, प्रा., मा.गु. सं., को, आदि कार्तिकवदि नाणं संभवस्स, अंति: (-), (पू.वि. फागुण मास तक है.) " "" १२३२८३. (+१) १० आश्चर्य वर्णन, अपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पू. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. कल्पसूत्र का छूटक पत्र होने की संभावना है., संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५४११.५. १७४३८). १० आचर्य वर्णन, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. द्रीपदी हरण प्रसंग अपूर्ण से चदनबाला प्रसंग अपूर्ण तक है.) १२३२८५. चौमासी देववंदन, संपूर्ण, वि. १९३८, पौष शुक्ल, १५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले. स्थल. सीवपुरी, प्र. वि. हुंडी: चोमासीदे०. कुल ग्रं. ४००, प्र.ले. श्लो. (२६१) पोथी प्यारी प्राणथी, (६६२) वली उत्तम जनने, (१५३२) केड गावड "" दो बडि दे. (२५x११.५, १०x३४-३८). , चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि आदिदेव अलवेसरू विनीत; अंति: पास सामलनु चेई रे. १२३२८६. (+) उपासकदशांगसूत्र व श्रावक ११ प्रतिमा गाथा संपूर्ण वि. १९६४ फाल्गुन कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४२, कुल पे. २, पठ. सा. सोनोजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: उपासकद०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. दे. (२५X११.५. ६४५५-६१). " १. पे. नाम. उपासकदशांगसूत्र सह टवार्थ पू. १ आ-४२अ संपूर्ण उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि तेणं कालेणं तेणं, अंति दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन- १०, ग्रं. ८१२. उपासक दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणइ का० कालिइ चउथो; अंतिः आग्या दिधी केवलीगम्यं. २. पे. नाम. श्रावक ११ प्रतिमा गाथा सह टबार्थ, पृ. ४२अ, संपूर्ण. " श्रावक ११ प्रतिमा गाथा, प्रा., पद्य, आदि दंसण व्वय सामाइव पोसह, अंति: वज्जए समण भुएय गाथा- १. श्रावक ११ प्रतिमा गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: द० प्रथम प्रतिमा; अंति: नथी ४ शेष सर्व साधुनी परे. १२३२८७. (*) वासठियो बृहत् अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २-२ (१) १, प्र. वि. हुंडी: बासठियो संशोधित, जैदे. (२४.५x११, " १३x४४). " For Private and Personal Use Only वासठीयो बृहत् मा.गु, गद्य, आदि (-); अति: (-), (पू.वि. बोल ६८ अचक्षुदर्शन से है.) १२३२८९. (४) वसुधारा स्तोत्र - विधि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १(१) १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. अक्षरों " की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६११, १४४३८). "" वसुधारा स्तोत्र विधि, संबद्ध, मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. "किंतिता धारिता वाचिता पाठ से मनोनुगामनींस्युधिं चिंतयति" तक है.) " १२३२९२. पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. वे. (२६४११, १३x२५). पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मवादिनी अंति (-), (पू.वि. गाथा २५ अपूर्ण तक है.) Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२३२९६. पार्श्वजिन निसाणी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२५४११.५, १७४३७). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) १२३२९७. (#) सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४३७). सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जयति विजितान्यतेजाः; अंति: धर्मो सुपुत्रो कुलदीपकः, गाथा-१५४. १२३२९९ (#) अंजनासुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, १३४३६). __ अंजनासुंदरी रास-बृहद्, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलै नइ कडवइ पय नमु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ तक है.) १२३३०१ (+) पद, स्तुति व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८४२, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, बुधवार, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ९, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. गुणप्रमोद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:तवन., संशोधित., जैदे., (२३.५४११,१२४४०). १. पे. नाम. गौडीपार्श्व स्तव, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ध्यानसुं प्रेम सदा जिनचंद, गाथा-६, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: आज आनंदघनन मट्यो जी; अंति: श्रीजिनलाभसूरीस, गाथा-९. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. म. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: आज बधाई म्हारै आज; अंति: श्रीजिनचंद्र सहाई, गाथा-५. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ते दिन क्यारे आवसी; अंति: नित चाहे जिनचंद, गाथा-७. ५.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शिवपुरिमंडण, मु. चंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्राणपियारा पासजि; अंति: प्रभु सुखवास लाल रे, गाथा-५. ६.पे. नाम. पार्श्वनाथजी स्तवन, प. ३अ-३आ, संपूर्ण शत्रंजयतीर्थ स्तवन, म. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अंग उमाहो अति घणो; अंति: प्रेम घणो जिणचंद रे, गाथा-७. ७. पे. नाम. नेमराजीमती पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, रा., पद्य, आदि: सोरठ थारा देसमै गढ नवडी; अंति: करुणा आणौ छतीया, गाथा-३. ८. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सुवर्णवर्णं गजराज; अंति: भक्त्या रिषभं जिनोत्तम, श्लोक-१. ९. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसरि, मा.ग., पद्य, आदि: मार भलो रे उगो; अंति: मनवंछित अनुपम राजनौ रे, पद-५. १२३३०२. (+) उपदेशमाला गाथा शकुन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १४४२६). उपदेशमाला गाथा शकुन, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: सच्चं भासइ अरिहा; अंति: एगो चक्खू तिहुयणस्स, गाथा-१. १२३३०३. (#) नेमिजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०५-१०४(१ से १०४)=१, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १६४३७). नेमिजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पहला मुक्ति पुहता, (पू.वि. पाठ-"तत्काल मूर्छा पामी पडि भूमि काइ" से १२३३०४. संबोधसत्तरी, नवतत्त्व व जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७-१४(१ से १४)=३, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १४४३७). For Private and Personal Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. संबोधसत्तरी प्रकरण, पृ. १५अ-१५आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जयसेहर०नत्थि संदेहो, गाथा-७४, (पू.वि. गाथा-५४ २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १५आ-१७आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४६. ३. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) १२३३०६ (+) चातुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १७३५, चैत्र शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. सरसा, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४८). चातुर्मासिक व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: होय संसाररुप समुद्र तरइ. १२३३०७. दशवैकालिकसूत्र गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:दसवीका., जैदे., (२४४११, १७४३२). दशवैकालिकसूत्र-धम्मोमंगल सज्झाय, संबद्ध, मु. जेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: धरम मंगल महिमा निलो धर्म; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-७ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) १२३३०८.(+) योगचिंतामणि सह टबार्थ व बीजक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५६, कुल पे. २, ले.स्थल. मइया, प्रले.पं. सौभाग्यविजय (गुरु ग. क्षमाविजय); गुपि. ग. क्षमाविजय (गुरु आ. विजयरत्नसूरि); आ. विजयरत्नसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ७५००, प्र.ले.श्लो. (५६६) अदृष्टिदोषात् प्रतिविभ्रमा च, (१५२७) कष्टेन मया पुस्तिका, जैदे., (२५.५४११.५, ७४३६). १.पे. नाम, योगचिंतामणि सह बालावबोध, पृ. १आ-१५२आ, संपूर्ण. योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: योगचिंतामणिश्चिरम्, अध्याय-७, (वि. अंत में माजम विधि लिखी है.) योगचिंतामणि-बालावबोध, आ. अमरकीर्तिसूरि, मा.गु., गद्य, आदिः (१)श्रीसर्वज्ञ प्रणम्यादौ, (२)जिहां वित्रा तेज अने तम; अंति: सर्वज्ञभक्तोमरकी० बालबोधः, (वि. बालावबोध टबार्थ शैली में लिखा है) २. पे. नाम. योगचिंतामणि-बीजक, पृ. १५३अ-१५६आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: १ सौभाग्यसुंठी पाक; अंति: पित्त कफ शरीरे सप्तसयाः. १२३३०९ चंद्रलेहा रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, प्र.वि. हुंडी:चं०ले०चौ०., प्र.ले.श्लो. (१२) मंगलं लेखकानां च, जैदे., (२७४११.५, १६x४२). चंद्रलेखा रास, म. मतिकशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगवति नमी करी; अंति: त्रिभुवनपति हवे तेह, ढाल-२९, गाथा-६२४. १२३३१०. अंजनासुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १९२०, श्रावण कृष्ण, १२, मंगलवार, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. बरसत, प्रले. चंदनमलजी (गुरु गुलजारीमलजी); गुपि. गुलजारीमलजी (गुरु रूडमलजी); रूडमलजी (गुरु सीतारामजी); सीतारामजी (गुरु आणंदरामजी); आणंदरामजी (गुरु धर्मदासजी); धर्मदासजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, दे., (२४.५४११.५, १६x४५). अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: गणधर गौतम प्रमुख; अंति: सागर कहे० नरनारी, खंड-३, गाथा-६३२, (वि. ढाल-२२.) १२३३११ (+) धन्नाअणगार चौपाई, संपूर्ण, वि. १९०९, आषाढ़ कृष्ण, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३८, ले.स्थल, ग्वालियर, प्रले. मु. कीसन (गुरु मु. ज्ञानचंदजी); गुपि. मु. ज्ञानचंदजी; गुभा. मु. मानमलजी (गुरु मु. कल्याणजी); गुपि.मु. कल्याणजी, प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. हंडी:धनाजीकी. प्रतिलेखक पुष्पिका दोहामय है., संशोधित., दे., (२६४११.५, १७४३४). धन्नाअणगार चौपाई, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: त्रिभुवन नायक वीरना चरण; अंति: सबलदास० दुख जाए टल्यौ, ढाल-६१. For Private and Personal Use Only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ३९७ १२३३१२. (+#) पट्टावली-उपकेशगच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. खडा लेखन-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ३७४१५). पट्टावली-उपकेशगच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ २३मा; अंति: खुमजी सं.१८३५ माघ वद ११. १२३३१३. (+) श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८०४, श्रावण शुक्ल, १, सोमवार, मध्यम, पृ. ३२, ले.स्थल. स्तंभतीर्थ, प्रले. मु. वाघजी (गुरु मु. राजधरजी); गुपि. मु. राजधरजी (गुरु मु. सूर्यमल्लजी); मु. सूर्यमल्लजी (गुरु मु. शिवजी); मु. शिवजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:श्रीपालनोरास., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १८४४५). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: किसी द्राखने सीसे लडी, खंड-४ ढाल ४१, गाथा-१८२५. १२३३१४. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. कुल ग्रं. ४०, दे., (२७४१२, १४४४४). सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन ते मुनिवरा रे जे; अंति: सीमंधर तुझ रागे, गाथा-२४. १२३३१५. मौनएकादशीपर्व कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३६, वैशाख शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्रले. मु. कस्तूरविजय (गुरु ग. राजविजय); गुपि. ग. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ६४३७). मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य ऋषभदेवं; अंति: सागरशररसशशिप्रमिते, श्लोक-२०१. मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमीने चरणकमल प्रते; अंति: १६५७ वर्षने विषे करी छे. १२३३१६ (+) उपदेशमाला-गाथा १ से ११२, संपूर्ण, वि. १८१०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ४, प्रले. पंन्या. रत्नविजय (गुरु पंन्या. जसविजय); गुपि. पंन्या. जसविजय (गुरु पंन्या. राजविजय, तपागच्छ); पंन्या. राजविजय (गुरु पंन्या. हर्षविजय, तपागच्छ); गृही. म. रामविजय (गुरु पं. दोलतविजय गणि); गुपि.पं. दोलतविजय गणि, प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. अंत में "श्री श्री पुज्यजी साहिबै पं.रामविजय ग.। पं.दोलत सत्कनै दीधी छै. सं.१८६० माह वद ७ दिने समी मध्ये" ऐसा उल्लिखित है., संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १५४४२). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंदनरिंद०; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १२३३१८ (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १७४३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., व्याख्यान-९ सूत्र-६ तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: चोसठि इंद्रने पूजनीक; अंति: (-), पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र-बालावबोध', मा.गु.,रा., गद्य, आदि: पहिलो एकांत सुखमानाम आरो; अंति: (-), पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र-कथा संग्रह, सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., पीठिका अपूर्ण से स्थविरावली तक है.) १२३३१९ (#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २४८-१२२(१ से ८८,१५४ से १८४,२०० से २०२)=१२६, प्र.वि. हुंडी:ज्ञातासूत्र., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १०४३३). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ सूत्र-६३ अपूर्ण से अध्ययन-९ सूत्र-११० अपूर्ण, अध्ययन-१३ सूत्र-१४७ अपूर्ण से अध्ययन-१५ सूत्र-१५७ अपूर्ण व सूत्र-१५७ अंतिमभाग अपूर्ण से अध्ययन-१६ सूत्र-१८२ अपूर्ण तक है.) १२३३२० (#) विनय सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. मोतीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६४११, ८४३३). विनय सज्झाय, आ. विमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विनय करो चेला गुरु; अंति: थाइ गुरुने सरखो, गाथा-५. १२३३२२. (+) गुणावली रास, संपूर्ण, वि. १८८२, चैत्र शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. २५, ले.स्थल. भुज, अन्य. लाधाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:गुणावलिनोरास., संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १४४३६). For Private and Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गुणावलि चौपाई, ग. गजकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: सकल मनोरथ पूरवे; अंति: गजकुशल०नित सुख आणंदा, ढाल-२९, गाथा-५१३. १२३३२३. (+) होलिकापर्व प्रबंध, संपूर्ण, वि. १८१३, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. मनरुपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १५४४१). होलिकापर्व प्रबंध, ग. पुण्यराज, सं., पद्य, वि. १४८५, आदि: प्रणम्य सम्यक्; अंति: पुण्यराज० वाच्यताम्, श्लोक-३४. १२३३२४. (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, ९x४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि, __ अध्ययन-१०. १२३३२६.(+) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, साधारणजिन व सुविधिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १४४२३). १. पे. नाम. सनतकुमार सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: उदयरतन० करजोडी प्रणमे पाय, ढाल-४, (पू.वि. ढाल ३ की गाथा ५ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: जब जिनराज कृपा करे; अंति: कहे तिम० जिन ओपम आवे, गाथा-५. ३. पे. नाम, सुविधिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. म. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ताहरी अजबसी यौगनी; अंति: करुणा मुझ मनमदिर आवो रे, गाथा-५. १२३३२७. (+#) चउशरण प्रकीर्णक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ८४३१). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: (१)इदमध्ययनं परमपदप्राप्ति०, (२)सावज्जेति अथवा; अंति: ज्ञापितं भवतीति गाथार्थः. १२३३२८. (+) दशवकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८-१४(१ से १०,१३ से १६)=४, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ९४३२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-४ उद्देश-१ गाथा-२९ अपूर्ण से अध्ययन-५ गाथा-२० अपूर्ण तक तथा अध्ययन-५ गाथा-८० अपूर्ण से उद्देशो-२ गाथा-१० अपूर्ण तक है.) १२३३२९ (+#) गौतमपृच्छा सह बालावबोध+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. २७-२२(१ से २२)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:गौतमपृत्छाबालावबोध., त्रिपाठ-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६.५४१२, १८४३८). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४५ से ४९ तक है.) गौतमपृच्छा-बालावबोध+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२३३३० (+) महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-४(१ से ४)=३, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १२५, दे., (२६४११.५, १०४३५). महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: धन्य धन्य मुज ए गुरो, ढाल-१२, गाथा-८४, (पू.वि. ढाल-५ गाथा-५० अपूर्ण से है.) १२३३३१. मोहराज धर्मराज गर्भित धर्मजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५५, श्रावण अधिकमास कृष्ण, ७, रविवार, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. शीतलजिन प्रासादात्, प्र.ले.श्लो. (५६) यादृशं पुस्तकं दष्टं, जैदे., (२६.५४११.५, २१४४८). धर्मजिन स्तवन-आत्मज्ञानप्रकाश, उपा. विनयविजय, मा.ग., पद्य, वि. १७१६, आदि: चिदानंद चित चिंतवं; अंति: विनयविजय रसपूर, गाथा-१३५. For Private and Personal Use Only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२३३३२. (+#) श्रीसारबावनी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १९४४७). श्रीसारबावनी, म. श्रीसार कवि, मा.गु.,रा., पद्य, वि. १६८९, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से ४८ अपूर्ण तक है.) १२३३३३. (+) सामायिक के बत्रीस दोष, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १०४३२). सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुरि गौतमनुं लीजै नाम; अंति: कहे मुनि मेरु मनधरी जगीस, गाथा-९. १२३३३४. (+) कामदेव श्रावक कवित्त, कश्राविका कवित्त व सम्यक्त्व कवित्त संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ९, प्र.वि. हुंडी:समक्त वर्णन. हुंडी का प्रथम शब्द खंडित है, मात्र अंतिम आधे अक्षर व प्रत में उपयुक्त शब्द के आधार पर दिया है., संशोधित., जैदे., (२७४१२, २३४७६). १. पे. नाम. कामदेव श्रावक कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कामदेवजी काम मौटौ ज कीयौ; अंति: पुर्षां किर्त गाइहै जी. २. पे. नाम, औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जै समदिष्टी जीवडा करे; अंति: भूयं गई सगल भूरीया. ३. पे. नाम. सासबहु कवित्त-सामायिक दोष विषये, पृ. १अ, संपूर्ण. सासबह कवित्त-सामायिकदोषविषये, मा.गु., पद्य, आदि: नवकारवाली लेकर सामाइ ठाइ; अंति: पिण आ क्रिया न दिठी जी. ४. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त- सम्यक्त्व, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त-सम्यक्त्व, देवीदास, पुहिं., पद्य, आदि: त्रस थावर की दया न पाली; अंति: देविदास० बहुवार हम कीधौ. ५. पे. नाम, औपदेशिक कवित्त- सम्यक्त्व, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त-सम्यक्त्व, मु. जयजश, मा.गु., पद्य, आदि: सावज्ज किर तव अनरथ हेतु; अंति: त्रिभवन जैयजश तिकी, गाथा-५. ६. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त- सम्यक्त्व, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त-सम्यक्त्व, मा.ग., पद्य, आदि: देवगरधर्मरी परख करौ पख; अंति: होय० इशडौ समक्तरौ आधारौ, गाथा-१०. ७. पे. नाम. सम्यक्त्वदीपक दोधका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जैह तणौ आदेश सावध मै; अंति: पार्श्वचंद० क्रिया मिलि, गाथा-१२. ८.पे. नाम, औपदेशिक कवित्त-सम्यक्त्व, पृ. १आ, संपूर्ण. जयंतीश्राविका कवित्त-सम्यक्त्वविषये, मा.गु., पद्य, आदि: समक्त विना प्राणी पसूरे; अंति: सिद्ध हुइ छै नणंदनै भौझाइ. ९. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त-कश्राविका, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: असणादिक अशुद्ध देव साधा; अंति: अणाचाख्यातूं मनराव कै, गाथा-१८. १२३३३५. (#) लघुक्षेत्र समास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४५, प्र.वि. हुंडी:क्षेत्रसमास बालावबोध., त्रिपाठ. कुल ग्रं. ३७७१, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४८). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: तं ___ कुशलरंगमयं पसिद्ध, अधिकार-६, गाथा-२६२. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, मु. उदयसागर , मा.गु., गद्य, वि. १६७६, आदि: निश्शेषकर्मदलनं; अंति: प्रसादमाधाय तत्सर्वं. For Private and Personal Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची " १२३३३६. (+) नरदेव चोपाई अतिथिसंविभाग व्रत, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५X११, १७X३८). नरदेव चौपाई अतिथिसंविभाग व्रत, मु. सहजकीर्त्ति, मा.गु., पद्य, आदि श्रीफलवर्द्धिपुर पास जिण, अंति: (-), Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (पू.वि. ढाल ११ गाथा १८८ अपूर्ण तक है.) १२३३३८ (+) पंचाशक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १५७४, मध्यम, पृ. २५, प्र. वि. हुंडी: पंचाशकसूत्रं., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५X११, १५x५०). पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि प्रा. पद्य, आदि नमिऊण वद्धमाणं सावगधम्मं अंति: जह विरहो होइ कम्माणं, पंचाशक- १९, गाथा - ९४४, ग्रं. १९८७. १२३३३९. (+) योगशास्त्र प्रकाश १ से ३ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६.५X११.५, ६X३९). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि नमो दुर्वाररागादि अंति (-), प्रतिपूर्ण योगशास्त्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवो महावीर अति (-), प्रतिपूर्ण १२३३४०. पार्श्वजिन स्तवन व औपदेशिक गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २६.५X११, ११x२९). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति- गोडीजी, ग. शिवचंद्र, मा.गु, पद्य, आदि निशमव गवडीश्वर अतिः पद नित भव्य चकोर, गाथा- ६. २. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पुरि., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि बैठत खत्तहुकम करे परभात, अति तस रूप वण्यो रिखडा, गाथा - १. १२३३४१ (+) जिनबिंबप्रतिष्ठा कल्प, संपूर्ण वि. १८६४, १ वैशाख कृष्ण, १ सोमवार, मध्यम, पृ. ३८, ले. स्थल समुद्रडी, प्रले. पं. तिलकनिधान मुनि (बृहत्खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी प्रतिष्ठाविधि, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. लो. (१४९३) जडगुपत चेतन प्रगट, जैदे. (२६११, ११४३७). जिनबिंबप्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु. सं., गद्य, आदि प्रणम्य श्रीमहावीर, अंतिः विरचित प्रतिष्ठाकल्पः. १२३३४२. (+) चार प्रत्येकबुद्ध कक्षा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २०. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे (२५.५X११.५, १४X३९). "" ४ प्रत्येकबुद्ध कथा, मा.गु, गद्य, आदि: करकंडु कलिंगेसु पंचालेसुय अति (-) (पू.वि. मघव महाजस का दृष्टांत पाठ- "बइठ वखाण्यो बिइदेवता मानवानउरु" तक लिखा है.) १२३३४३. वरसीदान मान, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. प्र. वि. हुंडी: दानवि., जैदे. (२४४११, १३४३५). वरसीदान मान, मा.गु., गद्य, आदि दिन प्रतै एक कोडने, अंति दे पुणा जी पोहर लगी. १२३३४४. शुकनावली. संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २. वे. (२४४१०.५, १२४२९). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवति; अंति: दान देणो समाधी होसी. १२३३४५. (+) जैन धार्मिक प्रश्नोत्तर, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक जैदे., (२५x११, २०४९). जैन धार्मिक प्रश्नोत्तर- विविधग्रंथोक्त प्रा.मा.गु., सं., गद्य, आदि तो प्रश्न पूछाव्या छह अंति: (-), (पू.वि. ८४ सूत्र नाम विवरण तक है.) १२३३४८. (#) श्रेयांस व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जै., (२५.५X११.५, १२X३८). १. पे. नाम. श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. - आ. पार्श्व चंद्रसूरि, मा.गु, पद्य, आदि प्रणमउं श्रीश्रेयांस अति भवि होज्यो तुम्हपय सेव, गाथा १३. २. पे. नाम. फलवर्द्धि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only लकीरें संशोधित., Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org पार्श्वजिन स्तवन- फलवर्द्धि, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: वामादेवी नंदन जगदानंदन; अतिः समरचंद० उणकिंपि वखाण, गाथा- ७. १२३३४९ (+४) ओसवालगोत्र उत्पत्ति कवित्त व नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, १३X३४). १. पे. नाम. ओसवालगोत्र उत्पत्ति कवित्त, पृ. १अ संपूर्ण. , ओसवाल गोत्र उत्पत्ति कवित्त, मा.गु., पद्य, आदि सांगरीण परणीयो मोरबाधो; अंति नगर ओसवाल० थापिया, गाथा- ३. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. नीतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा२ पुण्णं३ पावा४ अंति: (-), (पू.वि. गाथा ११ अपूर्ण तक है.) १२३३५०. प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, अपूर्ण, वि. १८३०, माघ शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ४-३ (१ से ३) = १, ले. स्थल. जेतारण, प्रले. पं. उमेदचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२५४११, १x२३). प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति मयकां प्रणीतां, श्लोक-३७, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., श्लोक-३२ अपूर्ण से है., वि. अंत में एक जन्मपत्री पीठिका श्लोक दिया है.) १२३३५२. (+) नंदीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४०, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., । ६X३८). (२५X११, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: सेलघणकुडग चालणि; अंति: से त्तं परूक्खणाणं, सूत्र- ५७, गाथा-७००. नंदी सूत्र- टवार्थ मा.गु., गद्य, आदि: मुग सेल अनइ मेघना कलहनउ; अतिः क परोक्षज्ञान, १२३३५३. (*) मनोवेगवायुवेग चौपाई समकित संपूर्ण वि. १७६९, भाद्रपद कृष्ण, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४२, प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. १२५२, जै. (२५.५४११. १४४३६). " मनोवेगवायुवेग चौपाई समकित मु. दर्शनविजय, मा.गु., पद्य वि. १७०१, आदि त्रिभुवनजन वंचित करु, अंति समकित सुधुंए सर्वदा, गाथा- ९०८. १२३३५६. शत्रुंजय तीर्थमाला, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-१ (१) ८, वे. (२५x११.५, १०x२७-३०). " ४०१ י' शत्रुंजय तीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., डाल-२ गाथा-११ अपूर्ण से डाल ९ गाथा १० अपूर्ण तक है.) १२३३६०. ((+) सिंदूरप्रकर, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७, प्र. वि. हुंडी सिंदूरप्रकर, पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५X११, १४X३६). 3 सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. लोक- ९८ अपूर्ण तक है.) १२३३६१. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पू. ११, प्र. वि. हुंडी नवतवे, पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६x११.५, २०x६३). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवा२ पुण्णं ३ पावा४; अंति: संमत्तं निच्चलं तरस, गाथा - ६०. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाधा वालावबोध, ग. हर्षवर्द्धन, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानप्रभु अति पुग्गल परियहोवेव संसारो. १२३३६२. (+) महावीरजिन स्तवन व भिक्षगुण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल. श्रीवोधपुरनगर, " प्र. वि. संशोधित. दे. (२४.५४१०.५ १२४४६) , १. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. 5 महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि समरथ सारदा वरदायक; अति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा १५ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. भिक्षु अध्ययन स्वाध्याय, पृ. २आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन १५ की साधुगुण सज्झाय, संबद्ध, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साधुनो पंथ निग्रंथ; अंति: गुरु लिखमीविजय उपगार धारी, गाथा ५. For Private and Personal Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२३३६५. (४) मरुदेवीमाता सज्झाव व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैसे., (२५.५x१०.५, १२x४३). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. मरुदेवीमाता सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि रीषभजी वनवासें वर्से भजी अंति कल्याण गुण गावइ रे, गाथा- १३. २. पे. नाम नेमिजिन स्तवन. पू. १आ, संपूर्ण. मु. हीरानंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमीश्वर शुदरुपे; अंति: हीरानंद० तुं साहिब सिरदार, गाथा-५. १२३३६९. (*) हेमविमलसूरि व सामायिक ३२ दोष सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्राव. सहजपाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५x११, १८४५३). १. पे. नाम हेमविमलसूरि स्वाध्याय, पृ. १अ संपूर्ण. विमलसूरि सज्झाय, अप., पद्य, आदि नमिअ आनंद भरि वद्धमाणं; अंतिः श्री हेमविमलसूरि विजय करो, गाथा- १५. २. पे. नाम. सामायिक ३२ दोष सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. सामायिक दोष परिहार सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि पहिलं प्रणमूं जिन चुवीस; अंतिः कारयएवं सिरिपासचंदो, गाथा २१. १२३३७१. औपदेशिक सज्झाव व नेमराजिमती पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, वे. (२४.५x११, ११x२९). ९. पे नाम औपदेशिक सज्झाय-साध्वाचार, पु. १अ संपूर्ण. औपदेशिक पद-साध्वाचार, मु. गोपालसागर, मा.गु, पद्य, आदि कैसे तुम गुण पावे आदजिन; अंति: गोपालसागर इम गावे, गाथा ५. २. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. गोपालसागर, पुहिं., पद्य, आदि: नेमजी नेकीणा जादु मार्या; अंति: गोपालसागर का प्यारा, गाथा-५. १२३३७२. सिद्धचक्र स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४X१०.५, १६x४५). १. पे. नाम सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. सुविधिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १४१७, आदि: सकल सुरासुर सेवत अति वांदे सुविधिविजय सुविलास, गाथा-११. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. . वीनतसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि: सहु नरनारि मिल आवो; अंति: गुण गाया वीनतसागर मुदा, गाथा ७. ३. पे नाम, सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, मु. कृपासागर, मा.गु., पद्य, आदि सिद्धचक्र तणा गुण गावे रे, अंतिः ए तो कृपासागर गुण गाया गाथा- ११. १२३३७३. गौतमपृच्छा सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १७६६ फाल्गुन कृष्ण, ४, मध्यम, पू. ६, ले. स्थल, योधपुर, प्रले. मु. नंदलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५x११, ६४३९) गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: कहिया गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४. गौतमपृच्छा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंति: श्रीगौतमपृच्छा कही. १२३३७४. लघुसंग्रहणी, संपूर्ण, वि. १६८९, मार्गशीर्ष, ४, रविवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. जोसींग दास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी खंडित है., जैये. (२५x११, १३x४८). . लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिय जिणं सव्वन्नुं अंति रइया हरिभद्दसूरिहिं गाथा ३०. १२३३७६ (+) बावनी- शीलप्रबंधे, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पू. १, प्र. वि. हुंडी : मालकृत बावनी, पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५x१०.५, १८४६२). For Private and Personal Use Only अक्षरबावनी, मु. माल, पुहिं., पद्य, आदि ॐकार अक्षर जिउं अलख अति: माल० जनम नरनारी अवतार, गाथा-५२. १२३३७७. (#) मंत्राधिराज मंत्रोद्धार, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ८- १ (७) = ७, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, १७४४४). Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ मंत्राधिराजकल्प यंत्रोद्धार, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पटल-२ श्लोक-३ से पटल-४ के श्लोक-२० गत कमठ मंत्र तक है., वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक-१अ पर पटल-४ के श्लोक-१ से प्रारंभ किया है बाद में अपर पटल-२ श्लोक-३ से प्रारंभ किया है.) १२३३७८. (+) स्नात्रपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८६५, वैशाख शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. शुद्धदंतीनगर, प्रले. पं. उत्तमविजय (गुरु पं. नेमविजय); गुपि. पं. नेमविजय (गुरु मु. उदयविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११, १७४३८). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पूर्वे बाजोट उपरि पूजा; अंति: मोक्षमोक्ष श्रयंति, ढाल-८, गाथा-६०. १२३३८१. संसारदावानल स्तुति सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११, ११४४५). संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसार दावानल दाहनीर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ तक है.) संसारदावानल स्तुति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: एहवउ जे श्रीवीर वर्द्धमान; अंति: (-). १२३३८२. (+) बारह भावना, संपूर्ण, वि. १७४३, कार्तिक कृष्ण, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. कपूरचंद (गुरु ग. लक्ष्मीसमुद्र, खरतरगच्छ); गुपि.ग. लक्ष्मीसमुद्र (गुरु वा. सोमहर्ष, खरतरगच्छ); पठ. श्राव. पुण्यकलश, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४४६). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४६, आदि: आदिसर जिणवर तणा पद; अंति: भणतां सवि सुख थाअइ, ढाल-१२, गाथा-७२. १२३३८५. (4) अनाथीमुनि व चतुरंगी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १३४३३). १.पे. नाम, अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगध देस राजग्रही नगरी; अंति: बालक साधुतणा गुण गाय रे, गाथा-१२. २. पे. नाम. चउरंगी स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-चतुरंगी सज्झाय, संबद्ध, मु. सुमति, मा.गु., पद्य, आदि: लही मानव भव दोहिलोजी; अंति: आदर रे पामे परमानंद, गाथा-७. १२३३८६. (+#) दंडकप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, प्रले. पं. रविवर्द्धन; अन्य. श्राव. विमलदास शाह; पठ. मु. रावत (गुरु मु. हीराचंद); गुपि. मु. हीराचंद (गुरु मु. विनयचंद); मु. विनयचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अंतिम पत्र पर किसी ने बाद में प्रतिलेखन पुष्पिका इस प्रकार लिखी है-"बृहन्नागोरी लुंपकगच्छे सं. १९०८ मिती द्वितीयेकश्वाण सुद ९ सहर कासी मध्ये"., कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ३४३४). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे; अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४४. दंडक प्रकरण-टबार्थ, पं. रविवर्द्धन, मा.गु., गद्य, वि. १७१३, आदि: नमिउं कहिता नमस्कार करीनइ; अंति: एहवी विनतीइं सुख थाइं. १२३३८७. (+) उपदेशमाला सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७७१, आश्विन कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ४५-६(२,२९ से ३२,३६)=३९, ले.स्थल. सत्यपुर, प्रले. मु. कीर्तिविलास (गुरु ग. सुमतिसागर); गुपि. ग. सुमतिसागर (गुरु उपा. मतिकीर्ति); उपा. मतिकीर्ति; पठ. सा. गुलालसिद्धि (गुरु सा. विवेकसिद्धि गणिनि); गुपि. सा. विवेकसिद्धि गणिनि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:श्रीउपदेशमाला., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ६x४२). For Private and Personal Use Only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: सोहेअव्वं पयत्तेण, गाथा-५४४, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से १८ अपूर्ण तक , ३३९ अपूर्ण से ३८६ अपूर्ण तक व ४२४ अपूर्ण से ४३६ अपूर्ण तक नहीं उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जगतनइ चूडामणि अलंकार समान; अंति: ते खोट भलइ यत्रइ करी. १२३३८८.(+) मानतुंगमानवती चोपाई, संपूर्ण, वि. १८९४, आषाढ़ कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १२४३२). मानतुंगमानवती रास, अनुपचंद-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि: श्रीजिनसंति जानेसरु नमतां; अंति: जयनगर मेण कही, ढाल-८. १२३३८९ (+) चेलनासती व नलदमयंती गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ९४२९). १.पे. नाम. चेलणासती गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थकां जी; अंति: चेलणाजी पामीयउ भवतणउ पार, गाथा-५. २. पे. नाम, नलदमयंती गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. दमयंतीसती गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नल दमयंती नीसर्या; अंति: लाधा अविचल लील, गाथा-५. १२३३९० (+#) अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका सह अवचूरि व अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, २३४६८). १. पे. नाम, अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका सह अवचूरि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: अगम्यमध्यात्मविदामवाच्यं; अंति: मयमुपाधिं विधृतवान्, श्लोक-३२. अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: ह्येषा वाग्गोचरातीतं; अंति: स्तुतिविशेषः नामा. २. पे. नाम. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, पृ. १आ, संपूर्ण.. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: अनंतविज्ञानमतीतदोषमबाध्य०; अंति: कृतसपर्याः कृतधियः, श्लोक-३२.. १२३३९१ (#) प्रहेलिका संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २१४५८). प्रहेलिका संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: आद्येन हीनं जलधावदृश्यं; अंति: नेमिजिणं कह नमेमि अहं, श्लोक-५०, संपूर्ण. १२३३९२. (+) ज्योतिषसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १९०५, श्रावण शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ५८, प्रले. पं. सागरचंद्र; अन्य. मु. फतेंद्रसागर (गुरु पं. तेजसागर गणि, तपागच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ज्योतिषसार., पदच्छेद सूचक लकीरे-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५४११, १५४५४). ज्योतिषसारोद्धार, आ. हर्षकीर्तिसरि, सं., पद्य, आदि: तं नमामि जिनाधीशं; अंति: संकलितवानेनम, अध्याय-३, श्लोक-३३७, ग्रं. ५००. १२३३९३. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १७७८ शुक्ल, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. ३२३, प्र.वि. हुंडी:उत्तराध्य०कथाट०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. १०९७०, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२, १३४३२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (१)भवसिद्धय समए तिबेम्मि, (२)पुव्वरिसी एव भासंति, अध्ययन-३६, (वि. अंत में ३६ अध्ययनों की सूची दी गई है.) For Private and Personal Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ४०५ उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: संयोगनो विप्रमुक्त; अंति: (१)जंबू प्रतई कहई छई, (२)एह चूलिकानो अर्थ कह्यो, ग्रं. ९०००. उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम श्रीउत्तराध्ययन; अंति: (-). उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह, पंन्या. पद्मसागर, सं., गद्य, वि. १६५७, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)एकस्याचार्यस्य क्षल्लको; अंति: उत्तराध्ययनवृत्तिकथा, कथा-२४, ग्रं. ४५००. १२३३९४. (+) २४ जिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ९४२२). २४ जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से २३ अपूर्ण तक है.) १२३३९५ (+#) स्थविरावली व उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३-१(१)=१२, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:उपदेशमालासूत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, १४४४५). १.पे. नाम. स्थविरावली-नंदीसूत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. __नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: नाणस्स परूवणं वुच्छं, गाथा-५०, (पू.वि. गाथा-३० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. उपदेशमाला, पृ. २अ-१३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४३९ तक है.) १२३३९६. (+) खामणा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:खामणा., संशोधित., ., (२७X११.५, १४४३४). ५ खामणा, मा.गु., गद्य, आदि: पेला खांमणां पंच महाविदेह; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., खामणा-५ अपूर्ण पाठ-"त्रीस महामोहनी थानकना वरजणहीर छे" तक लिखा है.) १२३३९७. सीमंधरजिन विनती, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सीमंधरसां०., दे., (२७४११.५, ७४२८). सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी सीमंधर __विनती; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) १२३३९८. (#) समवायांगसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६९-६७(१ से ६७)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:सम०वृत्ति., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १५४५६). समवायांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकीर्णक समवाय आहारक शरीरवर्णन प्रसंग अपूर्णमात्र है.) १२३३९९ (#) कुंथुनाथ स्तवन व नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, १८४४५). १. पे. नाम, कुंथुनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. कुंथुजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रात दिवस नित संभरे रे; अंति: पद्मने मंगल माल, गाथा-६. २.पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. रंगसोम, रा., पद्य, आदि: विनवे राजुला नार हो मारा; अंति: नेण सनेही सुडे रंगसू, गाथा-८. १२३४०० (+#) प्रश्नव्याकरणसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १०७-५५(१ से ६,९ से ११,१३ से १४,१९ से २५,२८ से ३१,४८ से ५८,६०,६२ से ६३,७०,७५,८५ से ९३,९६ से १०३)=५२, प्र.वि. हुंडी;प्रश्न व्या०वृत्ति., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४८). प्रश्नव्याकरणसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ अपूर्ण से श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-५ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२३४०१. चार मंगल रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:मंगल., दे., (२६४११.५, १४४३१). ४ मंगल रास, म. मनिराज ऋषि, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी जिन नमूं सकल; अंति: रीष मुनीराज कहै एमतो, ढाल-५, गाथा-३४. For Private and Personal Use Only Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२३४०३. (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२९-१६०(१ से १३५,१४०,१४२,१४४ से १४६,१४८ से १५१,१५४ से १५८,१७६,१८० से १८२,१९९ से २००,२०२ से २०६)-६९, प्र.वि. हुंडी:अने०सूत्र०वृत्ति० प्रतिलेखक का नाम खंडित है., पंचपाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४१२, ८x२२).. अभिधानचिंतामणि नाममाला-अनेकार्थ संग्रह, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अंति: खेदामंत्रणयोरपि, कांड-७, श्लोक-१९३१, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) अभिधानचिंतामणि नाममाला-अनेकार्थ संग्रह की कैरवाकरकौमुदी टीका, आ. महेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: करकौमुदीत्यभिधानेति, ग्रं. १२४२०, पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. १२३४०४. अल्पबहुत्व विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.वि. हुंडी:अल्पबहुतिविचार., जैदे., (२६.५४११.५, १६४५२). अल्पबहुत्व विचार, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: १पृथ्वी २अप् ३तेउ; अंति: अल्पबहुत्व विचारिउ. १२३४०६. युगमंधरजिन स्तवन व अढारनातरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९०, माघ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. तेजपाल ऋषि (गुरु मु. जसराजजी ऋषि); गुपि. मु. जसराजजी ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, १४४३९). १.पे. नाम, युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. म. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४४, आदि: जगत गुरु जगमंदिरस्वामी; अंति: रायचंद० भवप्रीत रहे भेली, गाथा-१०. २. पे. नाम. अढारनातरा सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अढारनात्रा. १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नगरमा मोटु रे मथुला जाणीए; अंति: काई हेतविजय गुण गाय, ढाल-३, गाथा-३१. १२३४०७. (#) नेमिराजल संवादमई अष्टस्त्रीवर्णन संबोधन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प.५, प्रले.पं. रंगविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५-२७.० ११.५, १३४३८). नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसे नेमीकुंमर; अंति: सीस अमृत गुण गाया, चोक-२४. १२३४०८. (#) औपदेशिक सज्झाय व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. २, कल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४११.५, ११४३४). १.पे. नाम. लीखनी सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लीखहत्यानिषेध, म.शांतिकशल, मा.गु., पद्य, वि. १६७५, आदि: सरसति सुमत द्यो मोरी माय; अंति: संतिकुशल जिम सिवसुख वरे, गाथा-१४. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो चंदाजी सीमंधर; अंति: वाधे मुज मन अति नूरो, गाथा-७. १२३४१०. (#) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(२)=३, कुल पे. १०, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, २२४७१). १. पे. नाम. वयरस्वामी स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. वज्रस्वामी-रूखमणी सज्झाय, म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पदमिणी पोईणी पातली; अंति: हुं प्रणमं मुनि तेह, गाथा-२०. २. पे. नाम, देवकी सात पुत्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. लबधि, मा.गु., पद्य, आदि: पुत्र तमारे देवकी देवकी; अंति: कहइ एहनइ नमी० फूल विहाण, गाथा-२०. ३. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पंचसयां धणि परिहरी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. झांझरियामुनि सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ४०७ मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कहै मन तणी रे खंति, गाथा-३८, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है., वि. अंतिम वाक्य खंडित है.) ५. पे. नाम, भरतबाहबली सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: इम नवि कीजि हो सगुण; अंति: प्रणमइ रे लबधि ललि लली, गाथा-२९. ६. पे. नाम. स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्राण जीवन रे थूलभद्र; अंति: लबधि०बहुमान रे छवीला लाल, गाथा-७. ७. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ते गिरूआ भाइ ते; अंति: लबधि कहे० पग प्रणमीजइ रे, गाथा-६. ८. पे. नाम, वैराग्य सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नरभव दुर्लभता, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन चेतो चितहिं; अंति: लबधि० न पाउं रे, गाथा-७. ९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: शील सोहामणु पालीए; अंति: जिम होए मंगलमालो रे, गाथा-२३. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण... मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमं सारद माय कि मणि; अंति: (अपठनीय), गाथा-७, (वि. अंतिमवाक्य अस्पष्ट है.) १२३४१२. अखयनिधितप स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. श्राव. जीवन सिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अखत., दे., (२५.५४११.५, १०४३३). अक्षयनिधितप स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: श्रीशंखेश्वर शिर; अंति: शुभवीर० घर बारणे, ढाल-५, गाथा-५१. १२३४१३. (+) गणधरवाद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १८४६२). गणधरवाद, सं., गद्य, आदि: जीवसंशयस्तव विज्ञानघन एव; अंति: वेदप्रमाणेनांगीकृतत्वात, (वि. विस्तृत विवरण सहित.) १२३४१४. (+) केशीगौतमगणधर सज्झाय, कृष्णभक्ति गीत व पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. भुजपुर, प्रले. श्राव. गोडीदास जोइतादास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सुवधिनाथ सत्य छे., संशोधित., दे., (२६.५४११, १३४४५). १. पे. नाम. केशीगौतमगणधर सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए दोय गणधर प्रणमीये; अंति: रुपविजय गुण गाय रे, गाथा-१६. २. पे. नाम. कृष्णभक्ति गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: प्रेम पिया घर आया अणिमा; अंति: ग्रहोंगी शरण निरंजन साया, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-गोडी, पृ. १आ, संपूर्ण. म. राज, मा.गु., पद्य, आदि: देख्यो जब गोडी पास; अंति: राज० समें तो ते दास रे, गाथा-३. १२३४१७. (+#) सप्तस्मरणादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८२६, रसनेत्रसिद्धचंद्र, कार्तिक कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ४९-३९(१ से २२,२८ से ४४)=१०, कुल पे. ९, ले.स्थल. उदासर, प्रले. मु. रूपचंद (गुरु ग. चतुरहर्ष, खरतरगच्छ); गुपि. ग. चतुरहर्ष (गुरु ग. हर्षहेम, खरतरगच्छ); ग. हर्षहेम (गुरु ग. देवधीर, खरतरगच्छ); ग. देवधीर (गुरु ग. कल्याणसागर, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३८). १. पे. नाम. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, पृ. २३अ-२७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण-७, (पू.वि. अजितशांति स्तवन गाथा-२३ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. तिजयपहत्त स्तोत्र, पृ. २७आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (पू.वि. अंतिम गाथा-१४ अपूर्ण तक है., वि. आदिवाक्य ___ अपठनीय है.) ३. पे. नाम. २४ दंडक विचारगर्भित स्तवन, पृ. ४५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-३८, (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ४५अ-४७अ, संपूर्ण. दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४. ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तव, पृ. ४७अ-४८आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: विशदां दृष्टिं दयालो मयि, श्लोक-३०. ६. पे. नाम. तत्त्वविचार काव्य, पृ. ४८आ, संपूर्ण. तत्त्वविचार श्लोक, सं., पद्य, आदि: तत्त्वानि७ व्रत१२; अंति: ज्ञेया सधीभिः सदा, श्लोक-१. ७. पे. नाम. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, पृ. ४९अ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कृत्वा निर्मल अष्टमीतिथि; अंति: जिनलाभसूरि वचनैः० देहिनाम, गाथा-४. ८. पे. नाम. मांगलिक श्लोक संग्रह, पृ. ४९अ-४९आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-मांगलिक, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अब्धिलब्धिकदंबकस्य; अंति: कुर्वंतो वो मंगलं, श्लोक-४. ९. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. ४९आ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: अंही कूर्मयुगं करौ; अंति: शकुनानीक्षध्वमेनं जिनम्, श्लोक-१. १२३४१८ (+) कल्पसूत्र सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८६-५१(१ से ७,११ से १५,२४ से २८,३० से ३७,३९ से ४२,४५ से ४६,४९ से ५२,५५ से ५६,५९ से ६३,६६ से ७४)=३५, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ९४३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., इन्द्र द्वारा की गई ___महावीरजिन स्तुति अपूर्ण से समाचारी अधिकार अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टिप्पण *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. १२३४१९ (+) सिद्धांत सारोद्धार, संपूर्ण, वि. १७६४, कार्तिक शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ४४, ले.स्थल. आउआनगर, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १७४४६). सिद्धांत सारोद्धार, मा.गु., गद्य, आदि: ५२६ योजण ६ कला; अंति: दुक्कडं दीजै. १२३४२० (+#) स्तवनवीसी-वीस विहरमान, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४५). २०विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ हियडउं हेजालूयउं; अंति: विहरमान जिन वीस, स्तवन-२०. १२३४२१ (+) विविध धार्मिक सुभाषितसंग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, प. २३-१९(१ से १९)=४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १७४५८). विविध धार्मिक सुभाषितसंग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२७ से १७९ अपूर्ण तक है.) १२३४२२. सिंदूरप्रकर सह टीका, संपूर्ण, वि. १८३३, भाद्रपद शुक्ल, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३९, ले.स्थल. सीकरनगर, प्रले. मु. बखतमल्ल (गुरु मु. चैनसुखजी); गुपि. मु. चैनसुखजी (गुरु मु. गंगारामजी); मु. गंगारामजी (गुरु ग. अखैराजजी); ग. अखैराजजी; राज्ये आ. जिनदत्तसूरि (गुरु आ. जिनवल्लभसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:सिंदूरप्र०टी०., प्र.ले.श्लो. (५६) यादृशं पुस्तकं दष्टं, जैदे., (२७४११, ११४४४). For Private and Personal Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ४०९ सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००. सिंदूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: पार्श्वप्रभोः श्रीपार्श्व; अंति: सूक्तमुक्तावली व्यरचिकृता. १२३४२३ (+) उपासकदशांग सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३७, प्र.वि. हुंडी:उवास०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १०४३६). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: पन्नत्ते त्ति बेमि, अध्ययन-१०, ग्रं.८१२. १२३४२४. (+) सिंहासनबत्रीशी चोपाई, संपूर्ण, वि. १७८०, माघ कृष्ण, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६७, ले.स्थल. मूलचक्र नगर, प्रले. मु. भुवनविशाल (गुरु ग. सुखहेम, खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); गुपि. ग. सुखहेम (गुरु पं. आणंदधीर, खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा); पं. आणंदधीर (गुरु ग. ज्ञाननिधान, खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सिंहासनबत्तीशीचोपाई., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (५६) यादृशं पुस्तकं दष्टं, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४५). सिंहासनबत्रीसी चौपाई, म. विनयलाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: आदि जिणेसर आदिदेव चउवीसे; अंति: वचन तिको हिज मनाजइ, खंड-३ ढाल ६८. १२३४२५ (+) ऋषभजिन स्तवन सद्दहणासमाचारीगर्भित, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हंडी:सामाचारीस्तवन., संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३४५३). आदिजिन स्तवन, मु. पार्श्वचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलकारण सुकृत निवास; अंति: सूरि श्रीपासचंद वीनवइ, गाथा-४७. १२३४२६. (+#) पंचदंड चोपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:पंचडंडीयारास., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १४४३८). पंचदंड चौपाई, म. राजऋद्धि, मा.गु., पद्य, वि. १५५६, आदि: जयो पास जिराउलो जगमंडण; अंति: (-), (पू.वि. आदेश-२ गाथा-७७ अपूर्ण तक है.) १२३४२७. (+) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२-२६(१ से २३,२६ से २७,३१)=६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:उपासकट०., संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ७४४१). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२ अपूर्ण से अध्ययन-५ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२३४२८ (#) मुनिगुण व प्रतिक्रमण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८७५, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. ग. गुलाबविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५,११४२८). १.पे. नाम. मुनिगण सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं., फाल्गुन कृष्ण, ४. मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: वंदन करुं विनय मांगे सोय, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण, फाल्गुन कृष्ण, ७. संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: करि पडिकमणु भावसुं; अंति: मुक्ति तणो ए निदान, गाथा-५. १२३४२९ (+) विजयप्रशस्ति महाकाव्य सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३९). विजयप्रशस्ति महाकाव्य, ग. हेमविजय, सं., पद्य, आदि: श्रेयांसि वः सृजतु; अंति: कुर्वन् सतां मंगलम्, सर्ग-२१. विजयप्रशस्ति महाकाव्य-विजप्रदीपिका वृत्ति, मु. गुणविजय, सं., गद्य, वि. १६८८, आदि: (१)स्वस्ति श्रीनाभिभूर, (२)सः नाभेः सप्तमकुलकरा; अंतिः श्वनाथः प्रसिदध्यै, ग्रं. १००००. १२३४३० (#) आदिजिन रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३-८(१ से ८)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६४११, १३४४२). For Private and Personal Use Only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१०३ अपूर्ण से २४२ अपूर्ण तक है.) १२३४३१. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ.८, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२६४११, १५४४९). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६१ अपूर्ण तक है.) १२३४३२. (+#) प्रियमेलक चोपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:प्रियमेलक., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११,१५४४४). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंति: (-), __(पू.वि. गाथा-१६८ अपूर्ण तक है.) १२३४३३ (+) अंजनासुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-२(१,४)=४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३४४९). अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल-१ गाथा-१६ अपूर्ण से ढाल-६ गाथा-१५५ अपूर्ण तक है., वि. सभी ढालों का क्रमशः गाथानुक्रम दिया है.) १२३४३४ (+) कल्पसूत्र की कल्पद्रुमकलिका टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:कल्पद्रुमकलि., संशोधित., जैदे., (२५.५४११,१५४३९). कल्पसूत्र-कल्पद्रमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्य; अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान-४ सूत्र-६३ की टीका अपूर्ण तक है.) १२३४३६. (+#) क्षेत्रसमास सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ७४३८). बृहत्क्षेत्रसमास-चयनित पाठ, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजल जलहर; अंति: सुत्ता नायव्वो, अध्याय-५, गाथा-१०४. बृहत्क्षेत्रसमास-चयनित पाठ की अवचरि, सं., गद्य, आदि: नत्त्वा प्रणम्य सहजलेन; अंति: समासाद् ज्ञातव्य इति, ग्रं.६००. १२३४३७. सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार का टिप्पण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २४-२२(१ से २२)=२, प्र.वि. कुल ग्रं. १४५०, जैदे., (२६४११, १७४५८). सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार-टिप्पण, ग. रामदेव, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: जयंतु एयस्स उचियं ति, (पू.वि. पाठ-"तेत्तिजत्थवरिमासलगोवियासगा" से है.) १२३४४० (+) प्रज्ञापनासूत्र, संपूर्ण, वि. १६१८, कार्तिक शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १३१, ले.स्थल. विक्रमनगर, पठ. उपा. पुण्यसागर (गुरु गच्छाधिपति जिनहंससूरि, खरतरगच्छ); गुपि. गच्छाधिपति जिनहंससूरि (गुरु आ. जिनसमुद्रसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पणवणासूत्रं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं.७७८८, जैदे., (२६४११, १९४५९). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० ववगय; अंति: सुही सुहं पत्ता, पद-३६, सूत्र-२१७६, ग्रं.७७८७. १२३४४१ (+) औपपातिकसूत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६३८, श्रावण शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ४९, ले.स्थल. गूंदवच, प्रले. ग. राजकीर्ति (गुरु उपा. लाभरत्न, खरतरगच्छ); गुपि. वा. रत्नलाभ (गुरु वा. क्षमारंग, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उवाईवृत्ति., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १७४६२). औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: संशोधिता चेयम्, ग्रं. ३१३५, (वि. मूल मात्र प्रतीक पाठ है.) १२३४४२ (+#) महावीरजिन स्तवन सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१०.५, १२४४०). For Private and Personal Use Only Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ४११ महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम श्लोक है.) महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत-टीका, उपा. जयसागर गणि, सं., गद्य, वि. १४६५, आदि: श्रेयोर्थं श्रीमहावीरं; अंति: (-). १२३४४३. श्रावक आराधना का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. जेसलमेर दुर्ग, प्र.वि. प्रतिलेखक का नाम मिटाया हुआ है. श्रीपार्श्वनाथ प्रासादात्., जैदे., (२५.५४११, १३४३९-४२). श्रावक आराधना-बालावबोध, उपा. राजसोम, मा.गु., गद्य, वि. १७१५, आदि: श्रीसर्वज्ञपदं नत्वा; अंति: जैनधर्मोस्तु __ मंगलं, (वि. मूल मात्र प्रतीक पाठ है.) १२३४४४. (#) १५ तिथि स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्रले. मु. सौभाग्यजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १०४२२). १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक मिथ्यात असंयम अविरति; अंति: नयविमल० नाम तणो गुणी, स्तुति-१६, गाथा-६४. १२३४४५ (+#) श्राद्ध प्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, प्रले. मु. तारुक (गुरु ग. पुण्यमंदिर); गुपि.ग. पुण्यमंदिर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ५४४२). पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० जयो सामी; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (१)नमस्कार अरहंतनइ नमस्कार, (२)जयवंत हू सामी श्री आदीसर; अंति: (अपठनीय). १२३४४८.(+) समयसार नाटक, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४११.५, १७X५०). समयसार-आत्मख्याति टीका के हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, _ वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२८० अपूर्ण तक है.) १२३४४९ (+#) भक्तामरस्तोत्र सह बालावबोधकथा, अपूर्ण, वि. १८२३, आश्विन शुक्ल, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. २३-७(१ से ७)=१६, ले.स्थल. सोजितनगर, प्रले. मु. रामरुचि (गुरु मु. सुमतिवल्लभ); गुपि. मु. सुमतिवल्लभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १७X५९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-१५ से है.) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध+कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: चिरविजयते श्रीजावडेंद्रः. १२३४५० (+) दीपावलीपर्वकल्प का बालावबोधकथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-७(१ से ६,१०)=९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४३५). दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध+कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मंगलीकमाला पामे, (पू.वि. "धर्मउत्तम पदार्थ एतलीवस्तुनीहाणि" पाठ से है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२३४५१ (+) उत्तमकमार चरित्र कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१०.५, १४४३५). उत्तमकुमार चरित्र, ग. चारुचंद्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: कथेयं नंदतां चिरम्, श्लोक-१७२, (पू.वि. श्लोक-५७ अपूर्ण से है.) १२३४५२. (+#) कर्मग्रंथ-१ से ४ सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७X४८). १. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१ सह बालावबोध, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६३. For Private and Personal Use Only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४१२ www.kobatirth.org ऊपराजइ. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२ सह वालावबोध, पृ. ५अ-७आ, संपूर्ण कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ १- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि श्रीमहावीरनई वादीनि अति ते जीव अंतरायकर्म Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंदवंदियं नमह तं वीरं, गाथा- ३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ - २ - बालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि सत्ता कहतां कर्मनी स्थिति; अंति: अहो भव्यलोको तम्हेड़ वांदु, (वि. संक्षिप्त बालावबोध गाथा-२५ के पश्चात् है.) ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३ सह बालावबोध, पृ. ७आ-११अ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी, आदि बंधविहाणविमुक्कं; अंति देविंदसूरि० सोडं, गाथा - २५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३. वालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि बंधना कारण सत्तावन हेतु अंतिः प्रकृतिनउ बंधस्वरुप. ४. पे. नाम षड्शीति नव्य कर्मग्रंथ ४ सह बालावबोध, पृ. ११अ १९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. घडशीति नव्य कर्मग्रंथ -४ आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी १४वी आदि नमिव जिणं जियमगण; अति: (-), " " (पू.वि. गाथा-६२ तक है.) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जिनप्रति नमीनइ १० द्वारे; अंति: (-). १२३४५३. (+४) आचारांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४०-३९(१ से ३९) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. हुंडी: आचारांग टिप्पण युक्त विशेष पाठ, टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे. (२६४११.५, ७५४९). " आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- ९ उद्देशक - २ गाथा-४ अपूर्ण से अध्ययन- ९ उद्देशक- ३ गाथा १२ अपूर्ण तक है.) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). , יי १२३४५४. (+) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ १ सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पंचपाठ-संशोधित, जैदे., (२५.५X११, १x२७). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१ आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी १४वी, आदि सिरिवीरजिणं वंदिय; अति: (-), (पू.वि. गाथा-९ तक है.) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ १-स्वोपज्ञ सुबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि दिनेशवद्ध्यानवरप्रतापै; अति " (-). १२३४५५ (+) जयतिहुअण स्तोत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे., ( २६११, ११x४२). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय; अंति: (-), " (पू.वि. गाथा-९ तक है.) जयतिहुअण स्तोत्र-बालावबोध, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., गद्य, आदि: राजत्सुदर्शनमहानंदकं; अंति: (-). १२३४५६. (४) वल्कलचीरी चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. वे. (२५.५x११, १८४५२). , "" वल्कलचीरी चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य वि. १६८१, आदि प्रणमुं पारसनाथनइ अति: (-), ', (पू.वि. ढाल-९ गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) १२३४५७. (+) नलदमयंती चोपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४५-११(१ से ११ ) = ३४, प्र. वि. संशोधित., जैदे., १३×३९). For Private and Personal Use Only (२५.५X११, नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: (-); अंति: समयसुंदर ० चतुरमाण सचेतसी, खंड-६ हाल ३९, गाथा - ९३१. ग्रं. १३५० (पू.वि. खंड-२ डाल-५ गाथा-५ अपूर्ण से है.) Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२३४५८. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ५४४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-१७ गाथा-९ अपूर्ण तक लिखा है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: पूर्व संयोग मातादिकनउ; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १२३४५९ (+#) सारस्वत व्याकरण की टीका, अपूर्ण, वि. १६६३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १६८-२३(१ से ३,६ से ८,१९,२९,९१ से १०१,१२१,१४७ से १४९)+१(१०६)=१४६, पठ. मु. शांतिसमुद्र (गुरु ग. माणिक्यराज, खरतरगच्छ); प्रले. ग. माणिक्यराज (गुरु ग. रूपवल्लभजी, खरतरगच्छ); गुपि. ग. रूपवल्लभजी (गुरु ग. विद्यानिधान, खरतरगच्छ); ग. विद्यानिधान (गुरु आ. जिनसुखसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनसुखसूरि (खरतरगच्छ); अन्य. श्राव. रूपजी; श्राव. लाला; श्राव. नंद, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:चंद्रकी०., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४३). सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सारस्वत व्याकरण की चंद्रकीर्ति टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: (-); अंति: वाच्यमानां चिरंबुधैः, वृत्ति-३, ग्रं. ७५००, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., वृत्ति-१ पाठ-"लश्च अइउक्रल १३ सांकेतिकत्वात्" से है. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२३४६०. (+) पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ६४३६). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: समत्तं देवसीयं भणीजासु. पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकर विना सिद्ध; अंति: पाखी संपूर्ण देवसिकं भणतु. १२३४६१. (+) गुरुतत्त्वप्रदीप-विश्राम-५ सह विवरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १६४४९). गुरुतत्त्वप्रदीप, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. गुरुतत्त्वप्रदीप-स्वोपज्ञ विवरण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. अंत में विलास-७गत श्लोक सं.८ त्रिस्तुतिकाधिकार विवरण का पाठांश है.) १२३४६२. (+) सारस्वत धातुपाठ, संपूर्ण, वि. १८१९, आषाढ़ कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. ३२, प्रले. पंडित. कृष्णदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:धातुपाठ., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ८x२६). सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सारस्वत व्याकरण का धातुपाठ, संबद्ध, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १६६३, आदि: श्रीसर्वज्ञं जिनं नत्वा; अंति: निर्मितो नंदताच्चिरम्. १२३४६४. (#) नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १८७०, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. वीरचंद ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१०.५, १४४४९). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: अम तणा नाथ चिरं जावजीवो, पूजा-९. १२३४६६. गोराबादल चोपाई, संपूर्ण, वि. १७१९, पौष कृष्ण, १०, बुधवार, मध्यम, पृ. ३०, ले.स्थल. घंटीयाली ग्राम, प्रले. मु. मनोहर ऋषि (गुरु मु. छजमल्लजी ऋषि, पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ); गुपि. मु. छजमल्लजी ऋषि (गुरु आ. राजचंद्रसूरि, पार्श्वचंद्रसूरिंगच्छ); आ. राजचंद्रसूरि (गुरु आ. समरचंद्रसूरि, पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १४४४८). गोराबादल चौपाई, आ. हेमरत्नसरि, मा.गु., पद्य, वि. १६४५, आदि: सुखसंपतिदायक सकल; अंति: वरमाला ले लक्ष्मी वरै, गाथा-७६२. १२३४६७.(+) संबोधसित्तरी, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४३). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५७ अपूर्ण तक For Private and Personal Use Only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२३४६८. (#) कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६-१(१३)=१५, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अलग-अलग लिखावट में एकाधिक लेखक लिखित पत्रों का संग्रह प्रतीत होता है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १९४५६). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: कल्याणानि समुल्लसंति; अंति: (-), (पू.वि. आदिजिन चरित्र का प्रारम्भिक भाग व चंदनासती कथा के बाद के पाठ नहीं है., वि. पत्रांक-११अ पर "श्री गुणरत्नसूरिपादैर्विरचितः" ऐसा उल्लेख है.) १२३४६९ (+) भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ.पू.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. उल्लिखित पत्रांक १ से ६ शतक-९ उद्देशक-३३ के हैं वस्तुतः अपूर्ण दर्शाने के लिए काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १५४४५). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक-९ उद्देशक-३३ प्रारंभ से जमाली वर्णन अपूर्ण मात्र है.) १२३४७१ (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७७-७५(१ से ७५)=२, प्र.वि. हुंडी:दशवैकालिक., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ४४३५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., अध्ययन-९ उद्देशक-१ गाथा-१७ अपूर्ण से उद्देशक-२ गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. १२३४७३ (+#) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७४६, कार्तिक कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १३९-१३७(२ से १३८)=२, ले.स्थल. कूचसू, प्रले. पं. शांतिकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ६४३७). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: सुपस्सवणीए नामा, सूत्र-१७५, ग्रं. २१००, (पू.वि. प्रारंभिक व अंतिम पाठांश हैं.) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: देवंदेवं जिनं नत्वा; अंति: भगवंतनी वाणी एहवी छइ, ग्रं. ५५००. १२३४७४. (+#) विशेषावश्यकभाष्यगत गणधरवाद सह टीका, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २६-२५(१ से २५)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४३). गणधरवाद, हिस्सा, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गणधरवाद-१ अपूर्ण से वाद-६ अपूर्ण तक है) गणधरवाद-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२३४७५. (+) आत्मसंबोधधर्मनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १७६३, आषाढ़ कृष्ण, २, मध्यम, पृ. २४-२३(१ से २३)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३४३०). धर्मजिन स्तवन-आत्मज्ञानप्रकाश, उपा. विनयविजय, मा.ग., पद्य, वि. १७१६, आदिः (-); अंति: विनयविजय रसपर, गाथा-१३७, (पू.वि. गाथा-११८ अपूर्ण से है.) १२३४७७. (+#) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १७०२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. २०, ले.स्थल. स्तंभ तीर्थ, प्रले. ग. हर्षकुशल (गुरु पं. मेघविजय गणि, खरतरगच्छ); गुपि.पं. मेघविजय गणि (गुरु उपा. समयसुंदर गणि, खरतरगच्छ); उपा. समयसुंदर गणि (खरतरगच्छ); अन्य. मु. दर्शनविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:साधुवंदना., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४४५). साधुवंदना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: शांतिनाथ जिन सोलमउ; अंति: समयसुंदर०सुखसंपति पावइ रे, ढाल-१८, गाथा-५१९, ग्रं. ७५०. १२३४७९. स्तोत्र, स्तवन व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. ७, जैदे., (२४.५४११, १३४३६). १. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर चरण कमल; अंति: वृद्धि कल्याण करो, ढाल-६, गाथा-४९. For Private and Personal Use Only Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ २. पे. नाम. शनिश्चरदेव छंद, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरापति अमर; अंति: तुं सुप्रसन्न शनीसर, गाथा-१७. ३. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि समरथ सारदा; अंति: श्रीकमलकलससूरीसर सीस, गाथा-२१. ४. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ५. पे. नाम. पंचमीतप स्तवन, पृ. ७आ-९अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बहत, उपा. समयसंदर गणि, मा.ग., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरु पाय; अंति: भगती भाव प्रसंसिया, ढाल-३, गाथा-२०. ६. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-गुरुवाणी, पृ. ९आ, संपूर्ण. __ग. काह्नजी, मा.गु., पद्य, आदि: सीख सुणीजै रे हितकारी; अंति: उपगारी धन धन ते नरनारी, गाथा-७. ७. पे. नाम, औपदेशिक गीत, पृ. ९आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक गीत-ननदभौजाई, म. आनंदवर्द्धन, पुहि., पद्य, आदि: देह देह नणद हठीली; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ तक है.) १२३४८० (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. ग. हेमविजय (गुरु ग. प्रीतिविजय, तपागच्छ); गुपि. ग. प्रीतिविजय (तपागच्छ); पठ. श्राव. धर्मदास (पिता श्राव. ऋषभदास); गुपि. श्राव. ऋषभदास, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १३४३७). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. १२३४८१ (+) अंजनासुंदरी रास व नेमिजिन गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १३४२९). १. पे. नाम. अंजनासुंदरी प्रबंध, पृ. १आ-१२अ, संपूर्ण, ले.स्थल. सूर्यबिंदर, प्रले. मु. जगनी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:अंजनासुंदरि. अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: पणमिय थंभन पासजी; अंति: महकइ दिसि दिसि जस घनसार. २. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा बाद में लिखी गई है. मा.गु., पद्य, आदि: नेमितणा गुण गाइस्यु जिनवर; अंति: मृगतृष्णा लही भूलइ जलभोलइ, गाथा-११. १२३४८२. परमेष्ठि १०८ गण, जंबूद्वीप विचार व ३२ अनंतकायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, जैदे., (२६४११, २१४३७). १. पे. नाम. ५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदिः (१)बारस गुण अरिहंता, (२)देहमान अधिक१ गोडा प्रमाण; अंति: एक सो आठ १०८ नोकरवालीना. २. पे. नाम. ६ दर्शन नाम देवगुरु विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जिनदर्शन अरिहंत देव गुरु; अंति: मीमांसदर्शन कर्म मानई६. ३. पे. नाम. रामचंद्रजी पूर्वपुरुष वंशावली नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पुंजस्थल१ ककुंश्च२ रकराजा; अंति: दशरथ राजा६ श्रीरामराज७. ४. पे. नाम. जंबूद्वीप लक्षण योजनप्रमाण वृत्ताकार तेहनु विवरउ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जंबूद्वीपक्षेत्र विस्तारमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कला चिहुंनो सरिखो मान छइ, (वि. किनारी खंडित होने से आदिवाक्य खंडित है.) ५. पे. नाम. संक्षेप कलश विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची लवणसमुद्र पातालकलश व शिखा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: बइ लाख योजन लवणसमुद्र ते; अंति: शिखा वाह्या जलशिखा राखइ. ६. पे. नाम. ३२ अनंतकाय नाम, पृ. २अ, संपूर्ण. ३२ अनंतकाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सर्व कंदनी जाती१ सूरणकंदर; अंति: आलू ३१ पिंडालू ३२. १२३४८४. (+#) सकलार्हत् स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ३४३३). त्रिषष्टिशलाकापरुष चरित्र-हिस्सा सकलाहत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२५ अपूर्ण तक है.) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नमः श्रीपार्श्वनाथाय, (२)सकल क० समस्त अर्हत; अंति: (-). १२३४८५. (+) अणुत्तरोपपातिकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०२, कार्तिक शुक्ल, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. अहमदाबाद, प्रले. आ. केशव ऋषि; पठ. मु. जीवराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अणुत्त०., संशोधित., जैदे., (२५४११, ६x४६). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: अयमढे पण्णत्ते, ___ अध्याय-३३, ग्रं. १९२. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते. ते कालनइ विषइ ते; अंति: वर्गना ए अर्थ कह्या. १२३४८६. अष्टप्रकारी पूजा रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदे., (२६४११, १३४४५-५१). ८ प्रकारी पूजा रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: अजर अमर अविनाश जे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२४ गाथा-९ अपूर्ण तक लिखा है.) १२३४८७. (+#) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७८३, चैत्र शुक्ल, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. ५३, ले.स्थल. वीठोजा, प्रले. मु. त्रिभुवन (गुरु वा. महिमाकल्याण गणि, खरतरगच्छ-क्षेमशाखा); गुपि. वा. महिमाकल्याण गणि (गुरु वा. दयाराज गणि, खरतरगच्छ-क्षेमशाखा), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १७४६१). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण; अंति: तियागारेणं वोसिरामि. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मा.गु., गद्य, वि. १५०१, आदि: श्रेयांसि श्रीमहावीर; अंति: जीवनइ मोक्ष फलदाई थाइ. १२३४८८. (#) नलदमयंती रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २८, प्र.वि. हुंडी:नलद०., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १७X४४). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंति: समयसुंदर भणै भावसुं, खंड-६ ढाल ३९, गाथा-९३५, ग्रं. १३५०. १२३४९० (+) गणधरसार्धशतक, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, पठ. श्रावि. मनरंग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ६x४५). गणधरसार्धशतक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: तं भवरविसंतावमवहरउ, गाथा-१५०, (पू.वि. गाथा-१४६ अपूर्ण से है.) १२३४९१ (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५७-५६(१ से ५६)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, ७४४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२३ गाथा-३७ अपूर्ण से ५३ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ४१७ १२३४९३. (+) स्तोत्र, अष्टक व चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४११, १०४३६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, म. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सदा फल चिंतामणि; अंति: सीस जपे पुरो मनह जगीस ए, गाथा-३. २. पे. नाम. सरस्वताष्टक, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सरस्वत्याष्टक, सं., पद्य, आदि: जाग्रज्जाड्यजलोर्मिजाल०; अंति: वाग्देवते श्रेयसे, श्लोक-९. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदं जिणवर विहरमाण; अंति: कारण परम कल्याण, गाथा-३, (वि. अंत में ___ कल्पसूत्र का प्रथम वाक्य अपूर्ण लिखकर छोड दिया है.) १२३४९४. (+) दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:प्रवृज्याविधि., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १५४४२). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: संध्यायां चारित्रोपकरण; अंति: याहिण८ वास९ उसग्गो१०. १२३४९५ (+) धातुपारायण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १५४५२). सिद्धहेमशब्दानुशासन-धातपारायण, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). (पू.वि. अदादि धातुगणपाठ अपूर्ण से दिवादि धातुगणपाठ अपूर्ण तक है.) १२३४९६.(#) शीलवती चोपाई, अपूर्ण, वि. १७६५, ?, फाल्गुन शुक्ल, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २१-१(१९)=२०, ले.स्थल. कनोड, प्रले. ग. ऋद्धिविजय; अन्य. ग. लक्ष्मीविजय (गुरु ग. राजविजय); गुपि. ग. राजविजय (गुरु पं. जिनविजय); पं. जिनविजय (गुरु ग. जयविजय); ग. जयविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:सीलवतीचोपी. संवत् हेतु मात्र '६५' लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४३८). शीलवती चौपाई, मु. देवरतन, मा.गु., पद्य, वि. १६९८, आदि: पुरिसादाणी परगडउ; अंति: लक्ष्मी तणा कल्लोल, खंड-३, (पू.वि. खंड-३ ढाल-३ गाथा-६ अपूर्ण से ढाल-४ गाथा-९ अपूर्ण तक नहीं है.) १२३४९७. (+) महावीरजिन स्तवन-डीगरी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., ., (२३४१०.५, ११४४२). महावीरजिन स्तवन-डीगरी, पुहिं., पद्य, वि. १९२८, आदि: तिर्थकर महावीरने; अंति: सन उगणीसें अठाइ जी, गाथा-२०. १२३४९८. (+) दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. हुंडी:दशवैकालिकनोढालु., संशोधित., दे., (२५.५४११, १०४२९). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरूपदपंकज नमीजी; अंति: ए गायो सकल जगीसे रे, सज्झाय-११, गाथा-१०८. १२३५०२ (+#) आवश्यकसूत्रनिर्यक्ति सह भाष्य व मलनियुक्तिभाष्य की शिष्यहिता टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४५९-१२७(१ से १२६,१४६)=३३२, प्र.वि. हुंडी:आव०.वृ०.३०., पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४५८). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: णमो अरहताणं० सव्व; अंति: गारेणं वोसिरामि, अध्ययन-६, सूत्र-१०५, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: चरणगुणट्ठिओ साहू, गाथा-२५५०, ग्रं. ३१००, (अपूर्ण, पू.वि. गाथा-५८९ से है व बीच का पाठांश नहीं है.) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१८९, (अपूर्ण, पू.वि. गाथा-१२० से है.) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: मस्या उद्देशतः कृतं, ग्रं. २२०००, (अपूर्ण, पू.वि. नियुक्तिगाथा-५८९ की टीका अपूर्ण से है व बीच का पाठांश नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२३५०४ (+) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २२-२(७ से ८)=२०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., दे., (२६४१०.५, ४४२६). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२२ अपूर्ण से ३२ अपूर्ण तक नहीं है व ९३ अपूर्ण तक लिखा है.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमी वांदीने अरिहंतने आदि; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) १२३५०५ (+) श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४५१). श्रीपाल चरित्र, म. सकलकीर्ति, सं., पद्य, आदि: चतुर्विंशतितीर्थेशान; अंति: (-), (प.वि. परिच्छेद-७ श्लोक-१३१ अपूर्ण तक है.) १२३५०७. (+) गुणकरंडगुणावली रास, संपूर्ण, वि. १९१२, कार्तिक कृष्ण, २, शनिवार, मध्यम, पृ. १५, ले.स्थल. गुंदीयाली, प्रले. सा. वेजबाई (गुरु सा. नाथीबाई); राज्ये मु. कर्मसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:गुणकर्दनेगुणावलीनु रास., संशोधित., दे., (२६.५४११, १४४४१). गुणकरंडकगुणावली रास-बुद्धिविषये, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण सेवे; अंति: ___हो दिनदिन आणंद, ढाल-२६, गाथा-४९३. १२३५०८.(+#) भवनदीपक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६४९, ?, मध्यम, पृ. ११-६(१ से ५,९)=५, प्रले. मु. विनयशेखर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. लेखन संवत् हेतु सं०४९वर्षे उल्लिखित है., पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पंचपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४३८). भवनदीपक, आ. पद्मप्रभसरि, सं., पद्य, वि. १३प, आदि: (-); अंति: भार्गवश्चेत्तरश्मे, श्लोक-१६१, (पू.वि. श्लोक-७५ अपूर्ण से १३९ अपूर्ण तक है व १५३ से है.) भुवनदीपक-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: शून्यं कहेवू. १२३५०९ (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला सह स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०३-२(१,१२)=१०१, पृ.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र.वि. हुंडी:नाम०.टी०., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १५४५४). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कांड-१ श्लोक-३ अपूर्ण से कांड-३ श्लोक-३१५ अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) अभिधानचिंतामणि नाममाला-स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, _ वि. १२१६, आदि: (-); अंति: (-). १२३५१० (+) सूत्रकृतांगसूत्र-श्रुतस्कंध १, संपूर्ण, वि. १६९२, श्रावण शुक्ल, १५, रविवार, मध्यम, पृ. २३, ले.स्थल. हंसारकोट, प्रले. मु. ऋषभ (गुरु मु. सोमाजी ऋषि); गुपि. मु. सोमाजी ऋषि (गुरु मु. जयवंतजी ऋषि); मु. जयवंतजी ऋषि; अन्य. आ. जिनविमलसूरि (बृहद्खरतरगच्छ); मु. अमृतधीर (गुरु मु. सुंदरतिलक, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अंत में "भ. श्रीजिणविमलसूरिराज्ये इदं पुस्तिकं अमृतधीरेण भंडार मध्ये स्थापितं श्रीमाणिक्यसूरिसाखायां" ऐसा उल्लिखित है., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४४३). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १२३५११. (+) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६०, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, १४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ११२, ले.स्थल. नागनेश, प्रले. श्राव. ललुभाई; अन्य. श्रावि. वालबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उवाइन्ट०., संशोधित. कुल ग्रं.५०००, दे., (२५४११.५, ५४३६). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: चिट्ठति सुहीसुहंपत्ता, अध्ययन-१०, ग्रं. ८१२. For Private and Personal Use Only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपासकदशांगसूत्र-टवार्थ, मा.गु.. गद्य, आदि (१) वंदित्वा श्रीजिनपार्श्व, (२) ते कालनें विषै ते; अतिः सुखी सु० सुखपाया था. १२३५१२. (+) राजप्रश्नीयसूत्र की टीका, संपूर्ण वि. १६१० श्रावण कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ७७, पठ. मु. हरपाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी राजप्रश्नवृ०, पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित कुल ग्रं. ३७००, जैवे. (२६११.५, १५X४६). राजप्रश्रीयसूत्र- टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं., गद्य, आदि प्रणमत वीरजिनेश्वर; अति ताडनानि कशादिघाताः, ग्रं. ३७००. 1 १२३५१३. (+) अंतकृद्दशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४२, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, रविवार, मध्यम, पृ. ५९, ले. स्थल. तलवाडा, प्र. ग. कीर्तिसागर (गुरु ग. रामसागर); गुपि. ग. रामसागर (गुरु मु. जीवणसागर) मु. जीवणसागर (गुरु ग. भाणसागर ); ग. भाणसागर (गुरु ग. सुविधिसागर ): राज्यकाल रा. विषतसिंघजी रावल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी: अंतगडदसंग संशोधित.. जैदे., (२५.५X११.५, ५X३९). अंतकृदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. गद्य, आदि: तेण कालेनं० चंपा०; अति अयमठ्ठे पण्णत्ते, अध्याय-९२, सुखदेव, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभ जिनेश्वरः अति दुरंगे गावो मुगतविहारी जी गाथा- ७. " ४. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि सिद्धारथनंदन सुखकारी; अति: वधतै रंगे रे साहिब सुखदाई, गाथा ३. ५. पे नाम. सुविधिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ग्रं. ८९९. अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेण काल चउथो आरो ते; अंति: अंतगडदसांगनो अर्थ कह्यो. १२३५१४. पद, स्तवन व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८८३, चैत्र शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ५-२ (२ से ३ ) = ३, कुल पे. १०, जैवे., (२६×११.५, १६x४३-५३). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. सकलविजय, मा.गु., पद्य, आदि धन्य दिवस थयो आजनो; अंति: सकलविजय सुविचारजी, गाथा- ७. २. पे नाम, नेमजिन स्तवन. पू. १अ संपूर्ण मु. लब्धि, मा.गु, पद्य, आदि: वयरागी रंगीलो नेमजी जेहनो; अंति: लब्धिविजय० अहनिस आस रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. "" मु. सुखदेव, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर जिनरायजी; अंति: सुखदेव करै नित सेव, गाथा-५. ७. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदररूप सोहामणो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ८. पे. नाम. साधु २७ गुण स्वाध्याय, पृ. ४अ, संपूर्ण. ४१९ सुविधिजिन स्तवन, मु. वीर, पुहिं., पद्य, आदि तुंही जगतपत जीवके जी अंतिः वीरवंदित नित परम आनंदा, गाथा-५. ६. पे नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, मु. वल्लभदेव, मा.गु., पद्य, आदि: सकल देव जिणवर अरिहंत; अंति: भाषित मोख सोख निचलकला, गाथा- १५. ९. पे नाम. पुंडरीककंडरीक सज्झाय, पू. ४अ ५अ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि: कुडरीक रिध तजि ने नीसर्यो; अंति: कर देसी खेवो पार रे लाला, ढाल-२, गाथा-३५. १०. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मु. नगजी, मा.गु., पद्य, आदि नार मनाहे नेमने दोरी करो, अंति नग० लुलि ल्युं बलिहार, गाथा - ९. १२३५१५. वृहत्क्षेत्रसमास की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५१६ आश्विन शुक्ल, ६, मंगलवार, जीर्ण, पृ. ११, जैवे. (२६.५x११.५, १९४७०). बृहत्क्षेत्रसमास नव्य- अवचूरि, सं., गद्य, आदि नत्त्वा वीर बृहत्क्षेत्र; अंति: वृत्तनामादि नोक्तम् Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२३५१८. औपदेशिक लावणी, दशवैकालिकसूत्र सज्झाय व जिनविनती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२९, पौष शुक्ल, २, बुधवार, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, ले.स्थल. मुंबई, दे., (२६४११.५, ८४३०). १. पे. नाम, औपदेशिक लावणी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:लावणी. म. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: बीत गयो नरभव को अवसर; अंति: में आगमसे अलग्यो फर्यो, गाथा-४. २.पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय-अध्ययन १०, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वृद्धिविजय जयकार, प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. जिनविनती सज्झाय, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर वंदीइं हरख धरी; अंति: सिद्धि तणा सुख पाऊ रे, गाथा-२१. १२३५१९ (+) आत्मशिक्षा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी:आतमशिक्षा., संशोधित., दे., (२६४११,११४३१). आत्मशिक्षा, मा.गु., गद्य, आदि: अपरंच बीजू श्रीजिन; अंति: (-), (प.वि. आत्मा के अनादिकाल से अनंत कर्म बांधने के प्रसंग अपूर्ण तक है.) १२३५२०. कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७३-७२(१ से ७२)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४१२, ७X४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-११८ से सूत्र-११९ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). १२३५२१ (#) औपदेशिक गाथा, आदिजिन व धर्मजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. रुपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १४४३९). १. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिणेसर प्रीतम; अंति: अर्पणा आनंदघन पद रेह, गाथा-६. २. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: हां रे मुने धरमजिणंदमुं; अंति: मोहन० अति घणो रे लो, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पोपोट लख्यो छे पांजरो मोर; अंति: प्रीहरे मानस नहीं ढोर, गाथा-२. १२३५२२. (+) रत्नदृष्टांत सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. अलायग्राम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२३.५४११.५, ११४२२). औपदेशिक सज्झाय-हितोपदेश, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नगर रतनपुर जाणिये; अंति: सोमविमलसूरि इम भणे ए, गाथा-८. १२३५२३. (+) प्रज्ञापनासूत्र-पद ६ वक्कंतिय का बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, अन्य. सा. समरथबाई आर्या (गुरु सा. वीजकोरबाइ महासती); गुपि. सा. वीजकोरबाइ महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वकंतीपद., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ३४०, दे., (२५.५४११.५, १४४५३). प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा पद६ वक्कंतिय का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)बारसय १ चउवीसा २ सअंतर ३, (२)ए आठ द्वारनी एक गाथा कही; अंति: थोडा घणा विसेसाहिया जाणवा. १२३५२४. (+) ज्ञानोपयोगिनी स्तुति व सप्तभंगी स्वरूप, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, २४४४). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन-ज्ञानोपयोगगर्भित सह स्वोपज्ञ बालावबोध, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., पे.वि. हुंडी:बृहद्वालावबोध. For Private and Personal Use Only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ४२१ शांतिजिन स्तवन-ज्ञानोपयोगगर्भित, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सासयसुख आरोहो जी, गाथा-४, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा है.) शांतिजिन स्तवन-ज्ञानोपयोगगर्भित-स्वोपज्ञ बालावबोध, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १७९६, आदि: (-); अंति: (१)आराधो ए आशीर्वचन जाणवू, (२)बालावबोधोपि लोकभाषया कृतः, (पू.वि. गाथा-३ का बालावबोध अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सप्तभंगी स्वरूप, पृ. ४आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: स्यादस्त्येव सर्वं १ विधि; अंति: पदे सप्तभंगी उपनी छइ. १२३५२६. तीर्थमाला स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२, १५४५०). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके रविशशि; अंति: फलमतुलमल जायते मानवाणी, श्लोक-९, (वि. अंत में एक औपदेशिक दोहा दिया है.) १२३५२७. (#) वसुधारा स्तोत्र व विधि, संपूर्ण, वि. १६८८-१७५४, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:वसुधारा., कुल ग्रं. १६५, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११,११४४१). १. पे. नाम. वसुधारा स्तोत्र, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण, वि. १६८८, आश्विन शुक्ल, १५, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. मु. रामसिंघ (गुरु पं. खेताजी); गुपि.पं. खेताजी (गुरु ग. भावरंग); ग. भावरंग, प्र.ले.पु. सामान्य. सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति, ग्रं. १६५. २.पे. नाम. वसुधारा स्तोत्र विधि, पृ. ६आ, संपूर्ण, वि. १७५४, आश्विन शुक्ल, ५, ले.स्थल, भीनमाल, पे.वि. वस्तुतः यह कृति पत्रांक-५अ से ६अ पर मूल कृति के उपर-नीचे की रिक्त स्थानो में लिखी गई है. वसुधारा स्तोत्र-विधि, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अथ आम्नाय मास ६ पर्यंत; अंति: प्रभाववृद्धयः संपद्यते. १२३५२८. सिंदूरप्रकर, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदे., (२५.५४११.५, ७४३०). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-९६ तक लिखा है.) १२३५२९. (+) अनुत्तरोपपातिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. हुंडी:अणु०सू०., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. २००, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४११, ११४३६). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: जहा धम्मकहा णेयव्वा, अध्याय-३३,ग्रं. १९२. १२३५३० (+) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८२९, वैशाख शुक्ल, ३, रविवार, मध्यम, पृ. १०, प्रले. ग. जैतसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १७-१९४४८-७०). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (१)अद्धा अणागयद्धा अणंतगुणा, (२)बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४६, (वि. अंत में नवतत्त्व प्रकरण की ही बीच की २ गाथाएँ लिखी हैं.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: सर्ववचन प्रमाण जाणवा. १२३५३१. व्यवहारनिश्चय व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, दे., (२६४११.५, १२४४६-४९). १.पे. नाम, व्यवहारनिश्चय स्तवन, पृ.१आ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:ऋषभ. ___ आ. पासचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विक्रमनगरे पुरवर प्रासाद; अंति: श्रीपासचंदि हरखी कहिय, गाथा-५९. २.पे. नाम. सद्दहणागर्भित आदिनाथ स्तवन, पृ. ३आ-६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:आदिना.. आदिजिन स्तवन, मु. पार्श्वचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलकारण सुकृत निवास; अंति: सूरि श्रीपासचंद वीनवे, गाथा-४७. १२३५३६. (#) बारह भावना स्वरूप, संवत्सरी दानाधिकार व गुरुदेवरी आशातनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०७, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ६, ले.स्थल. लूणसरा, प्रले. मु. हीरविजय; पठ. श्राव. मगनमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, ९४३२). १. पे. नाम, बारहभावना स्वरूप, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२ भावना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अनित्य भावना भरतजी भावी १; अंति: बेटां अछांएडवां भावी. २.पे. नाम. संवत्सरी दानाधिकार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. वरसीदान मान, मा.गु., गद्य, आदि: दीन दीन प्रते एक कोडिने; अंति: पुंण पहर लगे दान देवे. ३. पे. नाम. इंद्र के आयुष्य में च्यवन होनेवाली इंद्राणियों की संख्या, पृ. २आ, संपूर्ण, वि. १९०७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, सोमवार. मा.गु., गद्य, आदि: पहला देवलोकनो घणी; अंति: इंद्रनीणरो बीबरो. ४. पे. नाम. गुरुदेवरी आसातना, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ३३ आशातना विचार-गुरुसंबंधी, मा.गु., गद्य, आदि: गुरां रे आगे आसातना लागे; अंति: ३३ बडासु उँचा आसन करे तो. ५. पे. नाम. भगवंतरी वाणीरा गुण, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. अभिधानचिंतामणि नाममाला-हिस्सा ३५ जिनवाणीगुण वर्णन, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पहली वाणी संस्कारबचन; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ३४ गुण तक लिखा है.) ६. पे. नाम. पंद्रह परमाधामी नरकना देवता नाम, पृ. ४आ, संपूर्ण, वि. १९०७, पौष शुक्ल, ७, गुरुवार. नारकी १५ भेद, मा.गु., गद्य, आदि: आवे १ अबरसे २ सांमे ३; अंति: वैरणे १४ महाघोसे १५. १२३५३७. (+) कल्पसूत्र, कालकाचार्य कथा व रूपऋषि पट्टावली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६१-१५५(१ से १५४,१५८)=६, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्र. उल्लिखित पत्रांको के बाद में नये पत्रांक दिये गये हैं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ६४३५). १.पे. नाम. कल्पसूत्र, पृ. १५५अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., वि. १८३३, वैशाख शुक्ल, १३, मंगलवार, ले.स्थल. पोरबिंदर, प्रले. मु. मनजी ऋषि (गुरु मु. रामजी ऋषि); गुपि.मु. रामजी ऋषि (गुरु मु. श्यामजी ऋषि); मु. श्यामजी ऋषि (गुरु मु. गरीबदास ऋषि); मु. गरीबदास ऋषि (गुरु मु. केशवदास ऋषि); मु. केशवदास ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (६२७) जलात् रक्षे तैलात् रक्षे, (७२३) मंगलं लेखकानां च. आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. पत्रांक-१५५अ पर कल्पसूत्र की मात्र प्रतिलेखन पुष्पिका ___अपूर्ण है.) २.पे. नाम. कालकाचार्य कथा, पृ. १५५आ-१६१अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. कालिकाचार्य कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: इयं च चउत्थीए जेणकयं; अंति: लेइने स्वर्गे पोहता, (पृ.वि. मेघवर्णन वचनिका का आंशिक पाठ नहीं है.) ३. पे. नाम. रुपऋषि पट्टावली, पृ. १६१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (१)ऋषि ५ पासाजीना शिष्य ऋषि, (२)रूप ऋषिजी, जीवऋषिजी; अंति: (१)केशवजीनां गच्छमां छे, (२)मेघराजजी सोमचंदजी, (वि. अंत में रूपऋषि पट्टावली ऋषियों के नाम अलग से दिये हैं.) १२३५३८ (+) सकलार्हत् स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १४४३७). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: वीरस्याक्ष्यात् सुरद्रुमः, श्लोक-३२. १२३५४३. (+) तीर्थमाला चैत्यपरिपाटी, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १७X५९). तीर्थमाला चैत्यपरवाडि, अप., पद्य, आदि: पंच परमिठि पणमिये भाव; अंति: जाइंति भवसायरु तरीया, गाथा-२९. १२३५४४. (-) जंबूद्वीप प्रकरणादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १५४४४). १.पे. नाम. जंबूद्वीप प्रकरण, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण; अंति: झाएज्जा सम्मदिट्ठीए, गाथा-१९६. For Private and Personal Use Only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शुम हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ४२३ २.पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. ७अ, संपूर्ण.. ___ सं., पद्य, आदि: आदौ रुपविननासिनी० कामोपि; अंति: समस्तं विधि संसारं वृत्त, श्लोक-२. ३. पे. नाम. ४ प्रश्नोत्तर-यक्षयुधिष्ठिर संवाद सह टबार्थ, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. ४ प्रश्नोत्तर-यक्षयुधिष्ठिर संवाद, सं., पद्य, आदि: कः मुद्यते किमाश्चर्य; अंति: महाजनो येन गतः स पंथाः, श्लोक-४. ४ प्रश्नोत्तर-यक्षयुधिष्ठिर संवाद-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोकमाहे प्रमोदित सुं; अंति: जे मार्ग गया ते मारग. ४. पे. नाम. इरियावहि कुलक सह टबार्थ, पृ. ७आ, संपूर्ण. इरियावही कुलक, प्रा., पद्य, आदि: देवा अणडनउयसया चोद सनेरयइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ तक लिखा है.) इरियावही कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवाना १९८ भेद; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १२३५४५ (+) छंद, स्तोत्र व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९०, चैत्र शुक्ल, १, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, प्रले. ग. क्षिमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १३४४२). १.पे. नाम, पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-अट्टेमट्टेमंत्राम्नायगर्भित, आ. अजितसिंहसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्री; अंति: शुभगतामपि वांछितानि, श्लोक-९. । २. पे. नाम. पार्श्वजिनमंत्र विधान, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिनमंत्र विधान-कलिकंड, सं., गद्य, आदि: ॐह्रीं श्रीं तं नमह पास; अंति: कलिकंडस्वामिने स्वाहा. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: ॐ नमस्त्रिजगन्नेतु; अंति: भव सर्वार्थसिद्धये, श्लोक-९. ४. पे. नाम. नवग्रहस्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नवग्रह स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: पद्मप्रभजिनेंद्रस्य; अंति: केतोः शांतिं श्रियं कुरु, श्लोक-९. ५. पे. नाम. वज्रपंजर स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. __सं., पद्य, आदि: ॐ परमेष्ठिनमस्कारं सारं; अंति: राधिश्चापि शरीरजा, श्लोक-८. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर सेवे; अंति: जिनहर्ष अकल अविनास, गाथा-८. १२३५४६. आणंदश्रावक संधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. हंडी:आणंदसंधि., दे., (२६४११.५, १९४५५). आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमानजिनवर तणा चरण; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) १२३५४७. (+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पार्श्वजिन स्तवन व पार्श्वजिन होरी, संपूर्ण, वि. १८६३, फाल्गुन शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. मु. रंगकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १६x४३). १. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ___ मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारिका नगरी ऋद्धि; अंति: भव भव होजो सुगुरू सहाय रे, ढाल-३, गाथा-३८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजिन; अंति: सयल रिपु जीपतो, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. सहजसागर, पुहिं., पद्य, आदि: रंग मच्यो जिन दुआर चलो; अंति: सहजसागर० तू ही हम आधार, गाथा-७. १२३५४८. (+) नमस्कारमहामंत्र छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.२,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ११४३५). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछितपूरे विविध परे; अंति: वृद्धिऋद्धि संपद लहे, गाथा-१८. For Private and Personal Use Only Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४२४ कैलास १२३५५० (+४) सांवप्रद्युम्न रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १८-१४ (१ से ७९ से १०,१२ से १५, १७) =४, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५. ५X११, १३x४२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर ग्रंथ सूची सांबप्रद्युम्न रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-७ गाथा-१८ अपूर्ण से ढाल ८ गाथा १६ अपूर्ण तक, ढाल ११ गाथा - २२ अपूर्ण से ढाल १३ गाथा-७ अपूर्ण तक व ढाल १६ गाथा १५ अपूर्ण से गाथा २४ अपूर्ण तक है.) १२३५५१ (+) उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-११ (१ से ११) १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.. प्र.वि. हुंडी:उप० दे०., संशोधित., जैदे., (२५.५x११.५, १३x४४). उपदेशमाला. ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ३०५ अपूर्ण से ३३५ अपूर्ण तक है.) १२३५५२. कल्पसूत्र सह टवार्थ व वालावबोध, अपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८७-८५ (१ से ८५ ) = २, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे.. " (२५.५X११, १३X३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अति (-) (पू.वि. महावीर दीक्षा प्रसंग सूत्र ११३ अपूर्ण से १९५ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र - बालावबोध, मा.गु., रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-). १२३५५३. (+४) समयसार नाटक, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १७-२ (९, १५) १५, प्र. वि. हुंडी: समयसारनाटक, संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६X११, १५X४९). समयसार-आत्मख्याति टीका के हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., जीवद्वार गाथा १२७ अपूर्ण से १३९ अपूर्ण, संवरद्वार गाथा २०९ अपूर्ण से २१८ तक नहीं है व मोक्षद्वार गाथा २४० तक लिखा है.) १२३५५४ मुनिपति चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १३-७ (१ से ७) ६, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी: मुनिपतिचु०., जैवे. (२६११, २०६१) मुनिपति चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ३०४ अपूर्ण से ६०१ अपूर्ण तक है.) १२३५५५ गुरुतत्त्वप्रदीप सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५०-४४ (१ से ४१, ४६, ४८ से ४९ ) = ६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी गुरुटी ०., गुरु०टी०. जे. (२६११, १३x४६). गुरुतत्त्वप्रदीप, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. विश्राम - ६ श्लोक १० से विश्राम ७ श्लोक ५ तक है - के पाठांश नहीं हैं.) गुरुतत्त्वप्रदीप स्वोपज्ञ विवरण, सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-). १२३५५६. (+) योगशास्त्र व ऋषिमंडल प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., ( २६.५X११, १४४४४). १. पे. नाम. योगशास्त्र- प्रकाश १ से ४, पृ. १अ- १५आ, संपूर्ण. योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि नमो दुर्वाररागादि अति (-), प्रतिपूर्ण २. पे. नाम ऋषिमंडल प्रकरण, पृ. १५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. धर्मघोषसूरि प्रा. पद्य वि. २४वी आदि भत्तिब्भरनमिरसुरवर अति: (-) (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) " " १२३५५७ (४) पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे., ( २६x११, २१७५) पार्श्वजिन देशांतरी छंद, क. राज, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन आपो शारदा, अंति: राज एम तवीयौ छंद देसंतरी, गाथा-४७. For Private and Personal Use Only १२३५५८. औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२५X११, १५X३६). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- पतिपत्नी, पृ. १अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: घर मै धन छे सामे ठोरे साख; अंति: नही जिणरी वार न छूबै, गाथा - ९. Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ४२५ २.पे. नाम. नवपद आरती, पृ.१अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: पहिली आरती श्रीजिनराजा; अंति: दया नित सर्ग सुखदानी, गाथा-७. ३.पे. नाम, नवपद आरती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८२३. पुहि., पद्य, आदि: ऐसी आरती करो मन मेरा; अंति: सिवपुर पंथ कुंपावै, गाथा-१५. ४. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: केलि को नास भयो फलागत; अंति: कछु द्वै सो वखत की बाजी, सवैया-२. ५. पे. नाम. प्रास्ताविक सवैया संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: घाटी मै रोलो हुवो रे वागो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) १२३५५९. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११.५, १२४३२). महावीर स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: जुगतिजुहारां होजूनै श्री; अंति: जातरा श्रीजिनभक्तिसुरीस, गाथा-१५. १२३५६०. (+#) निरयावलिकादिपंचोपांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२-२(१ से २)=२०, कुल पे. ५, प्र.वि. हुंडी खंडित है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. ११०९, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १५४४९). १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. ३अ-१०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सव्वेसिं भणियव्वो, अध्ययन-१०, (पू.वि. अध्ययन-१ सूत्र-८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: भणियव्वा महाविदेहे सिद्धे, अध्ययन-१०. ३. पे. नाम, पुष्पिकासूत्र, पृ. १०आ-१९अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संघहणीए, अध्ययन-१०. ४. पे. नाम, पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. १९अ-२०आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन-१०. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. २०आ-२२आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंति: बारस्स उद्देसगा, अध्ययन-१२. १२३५६१ (+) शतपंचाशितिका संग्रहणी-आयुष्य ऊंचाई संपदादि विचार गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., खडा लेखन., दे., (२६.५४१२, २२४१९). शतपंचाशितिका संग्रहणी-चयन, प्रा., पद्य, आदि: चुलसीइ च सहस्सा एगंचवेय; अंति: पन्नादस पंचपरिहेणा, गाथा-१७, (वि. मूल कृति में भिन्न भिन्न क्रम पर रही गाथाओं को १ से १७ क्रम में दिया है.) १२३५६२. (+) तलकसीस्वामी छः ढालिया, संपूर्ण, वि. १८९३, श्रेष्ठ, प.८, प्र.वि. हंडी:तलकसीस्वामीनो छ ढालियो अंत में ढाल और गाथा का विवरण दिया गया है., संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३०). तलकसीस्वामी छ ढालिया, क. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिणेसर पाय नमी; अंति: रुपचंद होज्यो श्रीसंघनी, ढाल-६. १२३५६५. तेवीस पदवी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१२, १३४३६). २३ पदवी सज्झाय, मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, वि. १७७२, आदि: गणधर गौतमस्वामी जी समरुं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ अपूर्ण तक लिखा है.) १२३५६६. (+) मेघकमारनो चौढालियो व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १९x४०). १. पे. नाम. मेघकुमाननो चौढालियो, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८३६, पे.वि. हुंडी:मेघकुमारनोचो. मेघकमार चौढालियो, रा., पद्य, आदिः (-); अंति: राख्यो वीर दियो समझाय, ढाल-५, (पू.वि. ढाल-४ गाथा-१ से है.) For Private and Personal Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लघु, मु. वसतो, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन साहिब सांभल; अंति: मुज वंदना तिरकाल, गाथा-७. १२३५६७. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८७२, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. ९५-४५(१,२० से २७,२९ से ३९,४५ से ६३,६७ से ७२)=५०, दत्त. श्राव. हंसराज राधेकिसन; गृही. सा. लक्ष्मीबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:दशवि०.८०. अंत में "एय पडत लक्ष्मीबाई आरज्याजीनी छै. हंसराज राधेकिशन ने वेरावी छै. पाना ९५ संवत १९३४ना मिति पौष वद १ ए पडत मधे कोइको दावो नथी" ऐसा उल्लिखित है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ४४३०-३४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः (-); अंति: उवेइ भक्खू अपुणागमंगई, अध्ययन-१०, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-१ गाथा-४ अपूर्ण से है अध्ययन-४ सूत्र-४५ अपूर्ण से अध्ययन-५ उद्देशक-१ गाथा-८८ अपूर्ण, गाथा-९४ अपूर्ण से १६९ अपूर्ण, अध्ययन-५ उद्देशक-२ गाथा-२०४ अपूर्ण से अध्ययन-७ गाथा-३२७ अपूर्ण व गाथा-३४६ अपूर्ण से अध्ययन-८ गाथा-३८५ अपूर्ण तक नहीं है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मोक्ष ग० गतिने पामइ, पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं १२३५६८ (+#) कृपणपच्चीसी व राजिमतीपच्चीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(३)=४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४०). १. पे. नाम. कृपणपच्चीसी, पृ. १अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मा.गु., पद्य, आदि: एक समय देहुरा मैं पंच सब; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. राजिमतीपच्चीसी, पृ. ४अ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से गाथा-२५ अपूर्ण तक है.) १२३५६९ (#) चैत्री पूर्णिमा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १३४४१). चैत्रीपूर्णिमा विधि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ज्ञानादि पंचपूजा अपूर्ण से शत्रुजयतीर्थ महिमा प्रसंग अपूर्ण तक है.) १२३५७१. शुकनावली, अपूर्ण, वि. १८८८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. सीतल, प्रले. सा. ज्ञानीश्री आर्यिका (गुरु आ. धर्मकीर्ति, सरस्वतीगच्छ-मूलसंघ-बलात्कारगण); अन्य. कुसालांजी (गुरु सा. अमेदांजी आर्या); सा. अमेदांजी आर्या (गुरु सा. चंदूजी आर्या); सा. चंदूजी आर्या (गुरु सा. मानाजी आर्या); सा. मानाजी आर्या (गुरु सा. कुशला आर्या); मु. नरसिंघदास, प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२६४१२, १७४५९). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मनवंछित सिद्धि पामसी सही, (पू.वि. ३११ उत्तम अपूर्ण से है.) १२३५७२. नागरपुर में श्रावक श्रावकणीयारी विगत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १२४३९). जीतमलजी के सांसारिक पक्ष का परिचय, मा.गु., गद्य, आदि: जीतमलजी बोहोतरा आदितवारा; अंति: इतरी वीगत याद राखणी. १२३५७५. (+) शोभन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.५, प्रले. पं. जिनेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४५२). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकतरण; अंति: ताराबला क्षेमदां, स्तुति-२४, श्लोक-९६. १२३५७६. (+#) संभवजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. हेमविनय पंडित, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४८). संभवजिन स्तवन, वा. चारुचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: ए चउवीसइ अतुलबल चउवीसइं; अंति: जगगुरु चारुचंद्र सुहंकरो, गाथा-२१. For Private and Personal Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ४२७ १२३५७७. (+) गौतमस्वामी छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ९४३०). गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिनेश्वर केरो शिष्य; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) १२३५७९. अध्यात्म बत्तीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२५.५४११.५, ११४३३). अध्यात्मबत्तीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुध वचन सदगुरु कहें; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) १२३५८० (#) पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपर गोडीजी इतिहास वर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३९). पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपर गोडीजी इतिहास वर्णन, म. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से गाथा-३७ अपूर्ण तक है.) १२३५८१. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११.५, ६x६९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन १ गाथा-२ अपूर्ण से अध्ययन-११ तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. यत्र-तत्र टबार्थ लिखा है.) । उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. यत्र-तत्र बालावबोध लिखा है.) १२३५८२. पांडव चरित्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११.५, १६४५०). पांडव चरित्र, आ. देवप्रभसूरि मलधारी, सं., पद्य, आदि: श्रियं विश्ववयत्राण; अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-६ गाथा-४७५ अपूर्ण तक है.) १२३५८३. (+) मलयसुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १९२८, फाल्गुन कृष्ण, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७९, प्र.वि. हुंडी:महबलमल०., संशोधित. कुल ग्रं. ३४८०, दे., (२५.५४११.५, १८४४५). मलयसुंदरी रास, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७५, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: चोथा खंडनी ढाल रे, खंड-४ ढाल ९१, गाथा-२५५२. १२३५८५. (+) वच्छराजहंसराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १५५१, मध्यम, पृ. १८-१(१)=१७, ले.स्थल. श्रीपत्तन, लिख. मु. साधुधर्म (गुरु ग. हेमरत्न, खरतरगच्छ); गुपि.ग. हेमरत्न (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में अस्पष्टरूप से लिखा है कि- "बाईवरों की थकी छेइ प्रति चोपई धनसेज की छै", प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४२). वच्छराजहंसराज चतुष्पदी, असाइत नायक, मा.गु., पद्य, वि. १४१७, आदि: (-); अंति: एह पवाडउ असाईत कीउ, खंड-४, गाथा-४३७, (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण से है.) १२३५८६ (+) स्तुति, स्तोत्र व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. ६९-५२(१ से ५२)=१७, कुल पे. १९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३४४८). १.पे. नाम कुशलाणुबंधि अध्ययन, पृ. ५३अ-५३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदिः (-); अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३, (पू.वि. गाथा-४३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. ५३आ-५६अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर चरण कमल; अंति: वृद्धि कल्याण करो, ढाल-६, गाथा-४५. ३. पे. नाम, अजितशांति स्तवन, पृ. ५६अ-५७अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अजितशांति स्तवन-मेरुनंदनीय, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए सुख; अंति: मेरुनंदण उवज्झाय ए, गाथा-३२. ४. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ५७अ-५९अ, संपूर्ण. आ. मानतंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ५. पे. नाम. कल्याणंदिर स्तोत्र, पृ. ५९अ-६१आ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ६.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तोत्र, पृ. ६१आ-६२आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: नमिरसुर असुर नरवंदि; अंति: मे बोधि बीजह दायको, गाथा-२१. ७. पे. नाम. शत्रंजयतीर्थ चैत्यपरिपाटी, पृ. ६२-६३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: समरवि सरसति हंसला गामिणि; अंति: जात्रह निम्मफल लहंति, गाथा-२५. ८. पे. नाम, शत्रुजयतीर्थ चैत्यपरिपाटी, पृ. ६३आ-६४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वागवाणि सुपसाउ करे; अंति: होइसी निम्मल देह, गाथा-३६. ९. पे. नाम, महावीरसमसंस्कृत स्तोत्र, पृ. ६४आ-६६अ, संपूर्ण. ___ महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: विशदां दृष्टिं दयालो मयि, श्लोक-३०. १०. पे. नाम. २४ दंडक स्तुति, पृ. ६६अ-६६आ, संपूर्ण. आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: रुचितरुचि महामणि स्वर्ण; अंति: दद्यादलं भारती भारती, श्लोक-४. ११. पे. नाम. २४ जिन स्तुति, पृ. ६६आ-६७अ, संपूर्ण. आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: नाभेयाजितवासुपूज्यसुविधि; अंति: नेताः प्रयच्छंतु नः, श्लोक-४. १२. पे. नाम, पंचकल्याणक स्तुति, पृ. ६७अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: नाभेयाजितवासुपूज्यसुविधि; अंति: नेताः प्रयच्छंतु नः, श्लोक-४. १३. पे. नाम. युगादि स्तुति, पृ. ६७अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: त्रिभुवनजनतातं स्फीत; अंति: प्रात् सिद्धांतयक्षः, गाथा-३. १४. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ६७आ, संपूर्ण, वि. १४०५, प्रले. ग. सोममूर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तियहार सुतारगुणं; अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. १५. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ६७आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति-स्वरादिबोधगर्भित, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: सिद्धोवर्णसमाम्नायः समानः; अंति: सा मामवतु भारती, श्लोक-५. १६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ६७आ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: अमरगिरिशिरस्थस्फार; अंति: सा श्रुतं नः श्रुतांगी, श्लोक-४. १७. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. ६८अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नताऽशेषलेषं कतद्वेष; अंति: तिर्भयं स्वर्णकांति, श्लोक-४. १८. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. ६८अ-६९अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. मेरुसुंदर, अप., पद्य, आदि: पणमिय सुहगुरु समरिय सरसती; अंति: रिद्धि वृद्धि आणंद भर, गाथा-२७. १९. पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. ६९अ-६९आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आदिजिन स्तवन, अप., पद्य, आदि: सरसति सुललितवाणि आणि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) १२३५८७. (+#) शीलोपदेशमाला सह बालावबोध कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३०-४(१ से ४)=२६, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १७७५४). For Private and Personal Use Only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ४२९ शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ से ४१ तक है.) शीलोपदेशमाला-बालावबोध+कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५५१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. द्वीपायन ऋषि कथा अपूर्ण से स्थूलिभद्र चरित्र कथा अपूर्ण तक है.) १२३५९०. (+) ग्रामनगरराजामंत्रीसभादि विविध पदार्थ वर्णन विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प.६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हंडी:देवाधिदेववर्णन१., गुरुवर्णन२., जिनवाणीवर्णन३., सजनदर्जनवर्णन४., श्रावकवर्णन५., जीवतव्यवर्णन., श्रीवितरागवर्णन., जीवदयावर्णन., आवासवर्णन., प्रतिष्ठावर्णन., शीलवर्णन., राज्यस्थितिवर्णन., राजसभावर्णन., संग्रामवर्णन., देशवर्णन., नगरवर्णन., नगरवर्णन., नगरीवर्णन., राजावर्णन., राजावर्णन., राजकुमारवर्णन., प्रधानवर्णन., श्रेष्ठिवर्णन., श्रेष्ठिभार्यावर्णन., श्रेष्ठिपुत्रवर्णन., केवलीवर्णन., स्वजनपुरुषवर्णन., जिनप्रणितधर्मवर्णन., दयावर्णन., उपमवर्णन., वृद्धवर्णन., पापकुलवर्णन., कुकलत्रवर्णन., गजवर्णन., कुपात्रदानवर्णन., नीचनइउत्तम न गणइ ते वर्णन., तुरंगमवर्णन., अश्वीवर्णन., सांढीवर्णन., रासभवर्णन., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, १६४५७). ग्रामनगरराजामंत्रीसभादि विविध पदार्थ वर्णन विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जगद्भषण जगदेकशरण जगन्नाथ; अंति: (-), (पू.वि. राशभ वर्णन अपूर्ण तक है.) १२३५९१. विक्रमराजा रास, कृष्णभक्ति व विष्णुभक्ति पद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:विक्रमसेननी चोपाई., जैदे., (२६.५४११.५, १५४५१). १.पे. नाम. परकाया प्रवेश विक्रमराजा कथा, पृ.८आ, संपूर्ण, ले.स्थल. रवीया, अन्य. मु. देवजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. विक्रमराजा रास, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवरदायक सारदा गज; अंति: श्रोताजु नारायण देव, गाथा-३१०. २. पे. नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. ८आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वाट घाट मोयें रोकत डोलत; अंति: मनमोहन वेनवे जावेरी, गाथा-१. ३. पे. नाम. कुष्णभक्ति पद, पृ. ८आ, संपूर्ण. कृष्णभक्ति पद, पुहिं., पद्य, आदि: लीनो रे मनमोहन हर के लीनो; अंति: बे कानि श्रीराधा पर कै, गाथा-४. ४. पे. नाम. विष्णुभक्ति पद, पृ. ८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: नयनरस लागो हो हरि नयन रास; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) १२३५९२. पुण्यप्रभावे विद्याविलास कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७, जैदे., (२६.५४११.५, १४४४३). विद्याविलास कथानक-पुण्यप्रभावे, सं., गद्य, आदि: धर्मोयंधनवल्लभेषु धनद; अंति: किं न साध्यते. १२३५९३. (+) कर्मग्रंथ १ से ४, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-१(१)=९, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३४३८). १. पे. नाम. कर्मविपाकसूत्र, पृ. २अ-३आ, अपर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६०, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. कर्मस्तव, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंदवंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि० सोडे, गाथा-२५. ४. पे. नाम. षडशीतक, पृ. ६आ-१०आ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८७. १२३५९४. (+) बृहत्संग्रहणी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५८-१५(१ से १५) ४३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. १७५७, जैदे., (१६४११, १३४३८). For Private and Personal Use Only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: किमाहारे सण्णिगई आगई वेए, गाथा-२७६, (पू.वि. गाथा-७१ से है.) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., गद्य, वि. १४९७, आदि: (-); अंति: मांगलिकनइ अर्थि हो, ग्रं. १७५७, (पू.वि. गाथा-७० के बालावबोध अपूर्ण से है.) १२३५९५ (+) समवायांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५२-१(१)=२५१, प्र.वि. हुंडी:सम०ट०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. ९०००, जैदे., (२५.५४११, ४४३१). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: अज्झयणंति त्तिबेमि, अध्ययन-१०३, सूत्र-१५९, ग्रं. १६६७, (पू.वि. अध्ययन-१ सूत्र-१अपूर्ण से है.) समवायांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: इति शब्द समाप्ति न अर्थई. १२३५९६. (#) शीलोपदेशमाला सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १५४५३). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभयारि नेमि; अंति: (-), (प.वि. गाथा-७९ तक है.) शीलोपदेशमाला-बालावबोध+कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५५१, आदि: आबाल ब्रह्मचारी आजन; अंति: (-), (वि. कथा रहित बालावबोध है.) १२३६०० (+#) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १४६-४८(२६,३०,५४,६७ से ९५,९७ से १००,१०७ से १०९,११२ से ११७,१३१ से १३२,१४५)+२(१२७,१२९)=१००, प्र.वि. हुंडी:राज०ट०., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, ७४४५). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., सूत्र-८४ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: देवंदेवं जिनं नत्वा; अंति: (-), पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. १२३६०१ (+#) वैद्यकसारोद्धार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:वैद्यकसारोद्धार पत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १९x४१). वैद्यकसारोद्धार, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: नींबोली सर्पकाचली लसण; अंति: (-), (पू.वि. विच्छुडंकविष प्रतिकार विधि तक है.) १२३६०२. सुरसुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:सुरसुंदरी., जैदे., (२५४११.५, १५४४७). सुरसुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६५ अपूर्ण से ९४ अपूर्ण तक है.) १२३६०४. (+) कर्मग्रंथ १ से ४ सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७६, कुल पे. ४, प्र.वि. हुंडी:कर्मग्रंथ१,. कर्मग्रंथ२., कर्मग्रंथ३., कर्मग्रंथ४., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १७X५६). १.पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ व बालावबोध, पृ. १आ-२२आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिण वंदिअ; अंति: लिहिउ देविंदसूरिहि, गाथा-६१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ १-बालावबोध, उपा. जयसोम, मा.गु., गद्य, आदि: ऍदवीयकलाशौक्लीं; अंति: कर्मग्रंथ पूरो थयो. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ १-टबार्थ, उपा. जयसोम, मा.गु., गद्य, आदि: एहवा जे श्रीमहावीर; अंति: देवेंद्रसूरीस्वरई लिख्यो. २.पे. नाम, कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ व बालावबोध, पृ. २३अ-३५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ४३१ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंद वंदिअंनमह तं वीरं, गाथा-३५. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ २-टबार्थ, उपा. जयसोम, मा.ग., गद्य, आदि: तिम स्तवीसइं महावीरदेव; अंति: महावीरना चरण प्रति वांद. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ २-बालावबोध, मु. जयसोम, मा.गु., गद्य, आदि: श्री शारदायैनमः; अंति: भक्ति पूर्वक नमस्कार करूं. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ व बालावबोध, पृ. ३६अ-४७आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: लहियं नेउ कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ ३-टबार्थ, मु. जयसोम, मा.गु., गद्य, वि. १७१६, आदि: कर्मबंधनुं विधानक करवू; अंति: कर्मस्तव सांभलीनि. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ ३-बालावबोध, उपा. जयसोम, मा.गु., गद्य, आदि: ऐंद्रचांद्रपदवीनदवी; अंति: जयसोमसुधीरिमा मुक्ति. ४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ व बालावबोध, पृ. ४७आ-७६आ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअजिणं जिअ१ मग्गण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८५ तक लिखा है.) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमिअ क० नमस्कार करीने; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४९ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ ४-बालावबोध, उपा. जयसोम, मा.गु., गद्य, आदि: प्रविगध्यायपरंतेजो; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १२३६०५. (+) जीवदया रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ११४३९). जीवदया रास-हरिबलराजा, म. विनयकशल, मा.ग., पद्य, वि. १६३८, आदि: संति जिणवर पाय प्रणमेवि; अंति: __विनयकुशल०तस लिखमी भरपूरसु, गाथा-२९६. १२३६०७. पाक्षिकसूत्र, क्षामणकसूत्र व नेमिजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-७(१ से ७)=२, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, २४४६५). १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. ८अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति, (पू.वि. 'यं निदामि पडिपन्नसंवरे' पाठांश से है.) २.पे. नाम. क्षामणकसूत्र, पृ. ९आ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पिअंच मे जंभे हट्ठा; अंति: मणसा मत्थएण वंदामि, आलाप-४. ३. पे. नाम. नेमिनाथ स्तोत्र, पृ. ९आ, संपूर्ण.. नेमिजिन स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: जय नमि० नमि अवर पय पंकय; अंति: भवियलोयहनमहवर पय पंकय, गाथा-८. १२३६०८. (#) २० स्थानक पूजा व २० स्थानकतप विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-१०(१ से १०)=२, कुल पे. २, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. मु. भानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १०४३३). १. पे. नाम. २० स्थानक पूजा, पृ. ११अ-१२अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: (-); अंति: विजयलक्ष्मीसुरी०संघ जयकरो, ढाल-२०, (पू.वि. ढाल-१८ गाथा-१ से है.) २. पे. नाम. २० स्थानकतप विधि, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: शुभ उचे आसन एकहारे वीस; अंति: कही बीजी पडी माल्यावी. For Private and Personal Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - - ४३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२३६०९ दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-५(१ से ५)=१३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:दसमीका०., दसमीकाल., जैदे., (२५४११, ४४४३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-४ सूत्र-१ अपूर्ण से अध्ययन-५ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२३६१० (#) नवस्मरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ४४३४). नवस्मरण, म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम; अंति: धायेमाने जिनेश्वरे, स्मरण-९, (अपूर्ण, पू. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है.) नवस्मरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतने माहरो नमस्कार; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बृहच्छांति स्तोत्र अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) १२३६११. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, १३४३७). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. तिविहार पच्चक्खाण अपूर्ण तक है.) १२३६१२. महावीरस्वामी स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२६४१२.५, १८४४५). १.पे. नाम. महावीरस्वामी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:महावीरस्वामीका तवन. महावीरजिन लावणी, सा. जडाव, पुहिं., पद्य, वि. १९५३, आदि: महावीर सासण के स्वामी बार; अंति: वीर की जडाव सूणाइ रे, गाथा-११. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:मनावोमहावीर. महावीरजिन स्तवन-दीपावली, म. चोथमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: जो मंगल चाहो रे सुख; अंति: यह चोथमलजी गुण गाया रे, गाथा-७.. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, प. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: सब मिलकर मुख से बोलो; अंति: फकीरी० हर पीर पीर पीर, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-धर्मदलाली, पुहि., पद्य, आदि: दलाली धर्म की रे महारे; अंति: जानजो रे करसुं सारसंभाल, गाथा-५. १२३६१४. पंचपरमेष्टि नमस्कार व सरस्वती मंत्र, संपूर्ण, वि. १८४०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. मेडता, प्रले. मु. गुणचंद्र ऋषि; पठ.पं. चतुरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १४४३८). १. पे. नाम. पंचपरमेष्टि नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ नमस्कारमहामंत्र कल्प, प्रा.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं नमो अरिहंताणं; अंति: स्वप्ने शुभाशुभं पश्यति. २.पे. नाम. सरस्वती मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.. आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ऐं क्रीं० विशुद्धरूप; अंति: विद्यागमो भवति सत्वं. १२३६२२ (+#) वृद्धशत्रुजयमाहात्म्य, अपूर्ण, वि. १६६३, आषाढ़ शुक्ल, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. २९५-२४१(१ से ९५,९७ से १११,११४ से ११५,१२० से २४८)=५४, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं.१००००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५,१३४३८). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: संघस्य सर्वेष्टदम्, सर्ग-१४, ग्रं. १००००, (पू.वि. शत्रु०माहा० सर्ग-५ श्लोक-१४० अपूर्ण से १७० अपूर्ण, ६११ अपूर्ण से ६६७ अपूर्ण, ७२५ अपूर्ण से ८४३ अपूर्ण तक व रैवता० माहा० सर्ग-३ श्लोक-४६९ अपूर्ण से है., वि. शत्रुजय व रैवताचल माहात्म्य दोनो के स्वतंत्र सर्गानुक्रम है.) For Private and Personal Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२३६२३. (**) चंद्रलेखा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७५, कार्तिक कृष्ण, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३१, ले. स्थल, रायपुर, प्र. मु. रीषभहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीगणेशावजी प्रसादात्, श्रीदेवजि प्रसादात्, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x१२, १२४३२). चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगवति नमी करी; अंति: जांकुं रस निसदिस, ढाल - २९, गाथा - ६२४. 1 १२३६२४. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ९-५ (१ से ५) =४, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैवे. (२५.५४११.५, ४४२६). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि (-); अति (-), (पू.वि. गाथा २७ अपूर्ण से गाथा ४९ अपूर्ण तक है.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). " १२३६२६. (+) सिंदूरप्रकर, संपूर्ण, वि. १८१६, चैत्र कृष्ण, ७, रविवार, मध्यम, पू. ११ ले. स्थल, जावद, प्रले. उपा. अखैराज गणि पठ. माणिकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले. श्लो. (९६४) यादृशं पुस्तके दृष्टां (१४८९) भग्न पृष्टि कटि ग्रीवा, जैदे. (२५x११, ११४४४). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं. पद्य वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सुक्तिमुक्तावलीयं, द्वार-२२, ', ४३३ श्लोक-१०२. १२३६२७. (+) कल्पसूत्र की व्याख्यानकथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X११, १५X४४). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा, सं., गद्य, आदिः पुत्राः पंच मतिश्रुतावधि; अंति: (-). ( पू. वि. व्याख्यान २ अपूर्ण तक है.) १२३६३०. भगवतीसूत्र बोल व प्रज्ञापनासूत्र थोकडा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक- १० अनुमानित है. वे. (२६.५x१२.५, १७-२२४२४-३५). १. पे. नाम. भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह, पृ. १०अ ११अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. भगवतीसूत्र बोलसंग्रह संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति फल बीज १० इम जाणवा, (पू.वि. वेद द्वार अपूर्ण से है.) * २. पे नाम प्रज्ञापनापद धोकडा संग्रह, पृ. १९आ, संपूर्ण, प्रज्ञापनासूत्र- थोकडा संग्रह *, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार संठांणद्वार; अंति: (-). १२३६३१. (+) कल्पसूत्र सह वालाववोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. प्रत्येक व्याख्यान के पत्रांक अलग होना संभव है, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैये. (२५x११, १५X४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि (-) अंति (-), (पू.वि. नेमिनाथ चरित्र अपूर्ण मात्र है.) "" " कल्पसूत्र-बालावबोध*, कल्पसूत्र- बालावबोध, मा.गु., रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-). १२३६३२. (+) भगवतीसूत्र प्रश्नोत्तर संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में ऋषी श्रीमेघराजजीनी नेसराना छे' एसा लिखा हुआ है., संशोधित., दे., (२५.५X११, १२X४५). भगवती सूत्र प्रश्नोत्तर, संबद्ध, मा.गु., गद्य, वि. २०वी, आदि: भगवती सूत्रमां एक अंतिः तो घणी पडसे मार. १२३६३३. महावीरजिन द्वात्रिंशिका स्तोत्र व ५ परमेष्टि नमस्कार स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १६६८, आश्विन शुक्ल, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, कुल पे. २, प्रले. मु. कल्याण (गुरु मु. कृष्णदास, लोंकागच्छ); गुपि. मु. कृष्णदास (गुरु मु. पकराज, लोकागच्छ); मु. पकराज (गुरु मु. जसवंत, लोकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५x११.५, ११४३२)९. पे. नाम महावीरजिन द्वात्रिंशिका स्तोत्र, पृ. २अ ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. " For Private and Personal Use Only , महावीरजिनद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेन, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: वर्द्धमानो जिनेंद्र, श्लोक-३२, (पू.वि. श्लोक-११ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ५ परमेष्टि नमस्कार स्तोत्र, पृ. ३अ ५अ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठी स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिभरअमरपणयं पणमिय; अंति: पढिएहि पुत्थयभरेहि, गाथा - ३५. Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२३६३४. साधु ३० उपमा, सुविधिजिन पद व नेमिजिन पद, संपूर्ण, वि. १९०५, श्रावण शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२३४१२, ९४३५). १. पे. नाम. तीस ओपमा साधुरी, पृ. १अ, संपूर्ण. ३० उपमा-साध की, मा.गु., गद्य, आदि: १कांसीरा भाजन में जीमे; अंति: २९ भवरातणी ३० मृगरी ओपमा, अंक-३०, (वि. अंत में एक सुभाषित लिखा है.) २.पे. नाम. सविधिजिन पद, प. १आ, संपूर्ण. मु. कल्याणचंद, पुहिं., पद्य, आदि: रे जीव दरसण कीजीये प्रात; अंति: मनमिंदरे आय बेठो हमारे, गाथा-३. ३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. म. न्यायसागर, पुहिं., पद्य, आदि: हरियालो डूंगर प्यारो रे; अंति: पांम्या भवनो पारो रे, गाथा-३, (वि. अंत में एक दोहा लिखा है.) १२३६३५. प्रत्याख्यानसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, ८४४७). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उग्गे अभतटुं; अंति: गारेणं वोसिरामि. १२३६३६. (#) अभक्ष्यानंतकाय गाथा सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. त्रिपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १७X४५-५५). अभक्ष्यानंतकाय गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सव्वाह कंदजाई १; अंति: (-), (पू.वि. 'घोलवडा १८ वायंगण १९ अ' पाठांश तक है.) अभक्ष्यानंतकाय गाथा-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: सर्वैव कंदजाति अनंतकायिका; अंति: (-). १२३६३७. (#) व्याख्यान पीठिका, संपूर्ण, वि. १८५८ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. आउवानगर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ९४३१). कल्पसूत्र व्याख्यान पीठिका, संबद्ध, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: असरण चरण भव भयहरण परमात्म; अंति: करीने तुझे सांभलो. १२३६३८. बुद्धि रास, संपूर्ण, वि. १८८९, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. अलायग्राम, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११, १७४३९). बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि देवि अंबाइं; अंति: सालिभद्र० सवि टलइ कलेस, गाथा-६१. १२३६३९ (#) औपदेशिक सज्झायद्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १८४४१). १.पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. प्रेमजी, मा.गु., पद्य, आदि: जीभली सुण बापडली रे बोले; अंति: प्रेम० प्रत कहुवे देवो रे, गाथा-१९. २. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सरवर सरवर वन नही वत वत; अंति: दिठ समकत नर थोडला, गाथा-१५. १२३६४०. ११ गणधर जन्मस्थल मातापितादि वर्णनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२४४११, १३४५९). १.पे. नाम.११ गणधर जन्मस्थल मातापितादि वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___गणधर जन्मस्थल मातापितादि वर्णन, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम, आवलिकादि कालमान विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. आवलिकादिकालमान विचार, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. कोष्ठकात्मक.) ३. पे. नाम. विचारसार प्रकरण-गाथा ४६९ से ४७१, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. महावीरजिन सर्वसंख्या तप प्रमाण. विचारसार प्रकरण, आ. प्रद्युम्नसूरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. तप व प्रतिमा संबंधी कोष्ठकसहित.) ४. पे. नाम, ६ गुण वृद्धिहानि नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ४३५ मा.गु., गद्य, आदि: अनंतभाग हानि असंख्यातभाग; अंति: गुण वृद्धि अनंतगुण वृद्धि. ५. पे. नाम. उपसमश्रेणि क्षपकश्रेणि गाथा सह टीका, पृ. १आ, संपूर्ण. उपसमश्रेणि क्षपकश्रेणि गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अणमिच्छामी ससम्मं अट्ठ; अंति: सरिसे सरसं उवसमेइ, गाथा-२, (वि. साथ में उपशम व क्षपक श्रेणि का चार्ट भी दिया है.) उपसमश्रेणि क्षपकश्रेणि गाथा-टीका, सं., गद्य, आदि: इयं क्षपणा पुरुषवेदेन; अंति: सोगाल उदीरणा विशेषः. ६. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र-यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., यं., आदि: (-); अंति: (-). १२३६४३. (#) बारह भावना, मेघकुमारि चउढालीयउ गीत व आदिजिन स्तुत्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे.८,प्र.वि. पेटांक ३ से ६ की स्तुतियाँ पंचतीर्थीजिन स्तुति हेतु संकलित होना संभव है. अतः सभी में गाथांक क्रमशः है. प्रतिलेखकने पार्श्वजिन स्तुति के कुछेक अंश को शून्य देकर पूर्ण कर दिया है व महावीरजिन स्तुति नही लिखी है. शेष जगह पर लिखे गये पेटांक बाद के समय के प्रतीत होते हैं., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १५४५१). १. पे. नाम. बारह भावना, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बारहभावना. १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४६, आदि: आदिसर जिणवर तणा पद; अंति: जयसोम० शिव सुख थायइ, ढाल-१२, गाथा-७२. २. पे. नाम, मेघकुमारि चउढालीयउ गीत, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:मेघकुंमारचौढालीयो. मेघकुमार चौढालिया, क. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: देस मगधमाहे जाणीयइ; अंति: कवि कनक भणइ निशदीश, ढाल-४, गाथा-४९. ३. पे. नाम, आदिजिन स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सुवर्णवर्णं गजराज; अंति: भक्त्या रिषभं जिनोत्तम, श्लोक-१. ४. पे. नाम. शांतिजिन श्लोक, पृ. ४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: शांति शांतिकर; अंति: शांतिगुहे गृहे, श्लोक-१. ५. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: स एव नेमनाथोय; अंति: रामा त्यतजे विणलीलया, श्लोक-१. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटीतटणी तटे पुर; अंति: समे प्रथयतां नित्यम, श्लोक-१. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: पार्श्वनाथ नमस्त भ्य; अंति: पार्श्व जिनेश्वरम्, श्लोक-२. ८. पे. नाम, जिनस्तति प्रार्थना, प. ४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: प्रसति रस निमग्न दृष्टि; अंति: जगत देवो वीतरागस्त्वमेव, श्लोक-१. १२३६४६ (#) पाक्षिक स्तुति, बीजतिथि स्तुति व ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १७९५, कार्तिक शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. वीसलपुर, प्रले. मु. उदयविजय (गुरु पं. सकलविजय); गुपि. पं. सकलविजय (गुरु ग. सुमतिविजय); पठ. श्राव. नाथा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १४४४५). १. पे. नाम, पाक्षिक स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सदा सर्वकार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. २. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज दिवस; अंति: लबधिविजय० मनोरथ माय, गाथा-४. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपति; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. १२३६४७. नेमजिन गीतादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-१५(१ से १५)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२५४११, १६४५२). १.पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. १६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. जिनहरख, मा.गु., पद्य, आदि: पाय पडु विनती करु बुझु एक; अंति: गई हो कहे जिनहरख विचार, गाथा-५. २. पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १६अ, संपूर्ण. विक्रमसिंघ, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२१, आदि: प्रथम आदि जिणंद; अंति: विक्रमसिघ सदा सुख जय भणं, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: मन मेरो वीकस्यो कमल; अंति: सेवकने सुख दीजे रसीया, गाथा-५. ४. पे. नाम. १३ काठिया सज्झाय, पृ. १६आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर प्रणमी पाय; अंति: सार सेवकने तारो संसार, गाथा-१६. १२३६४८. गोडीश्वरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४११, १३४३९). पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, म. रामविजय, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नमु सारदा सार; अंति: वरतनु सौख्यप्रदा सर्वदा, गाथा-१४. १२३६५० (+#) भक्तामर स्तोत्र सह सुखबोधिका टीका व प्रबोध कुलक, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, ९४२८). १. पे. नाम, भक्तामर स्तोत्र सह सुखबोधिका टीका, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (वि. अंत में १ प्रास्ताविक श्लोक लिखा है.) भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: किल इति सत्ये अहमपि; अंति: वर्णविचित्रपुष्पाम्. २. पे. नाम. प्रबोध कुलक, पृ. ७आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जीविइ चंचल रहीनह करसि महत; अंति: उत्तम मन रह कुग्गह कइ०, गाथा-११. १२३६५४.(+) भगवतीसूत्र, वैराग्य व निदात्याग सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १२४२९). १.पे. नाम. भगवतीसूत्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: वंदि प्रणमी प्रेम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण तक है.) २.पे. नाम. निंदा त्याग सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. निंदात्याग सज्झाय, म. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: आपणुं सहज सुंदर ना रे बोल, गाथा-६, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम, वैराग्य सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: ऊँचा ते मंदिर माळीया; अंति: इम भणे मने पार उतारो, गाथा-८. १२३६५५. आषाढभूतिमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, पृ.वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२५४११, १३४४४). आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१ से ढाल-१६ गाथा-२१० अपूर्ण तक है.) १२३६५६. जिनपालितमुनि गीत, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-५(१ से ५)=२, प्रले. ग. अमीविजय (गुरु ग. माणिक्यविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सज्झाय., जैदे., (२५.५४११, १३४३९). जिनपालितमुनि गीत, मु. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वाचकनो सेवक भाव कहइ सानंद, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) १२३६५८. (+) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, ११-१६४३०-४८). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., तिजयपहुत्त स्तोत्र गाथा-८ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ४३७ १२३६५९ (७) शत्रुंजयतीर्थमाला रास- जैसलमेरसंघ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २४-१० (१०, १५ से २३) = १४, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५४११, ११४५०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुंजय तीर्थमाला रासजैसलमेर संघ, मु. चतुरकुशल, मा.गु., पद्य, आदि सासननायक समरीये वंदो अति (-). (पू.वि. डाल- ६ दोहा १८ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) १२३६६१. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५X११.५, १२X४२). उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविष्यमुक्कस्स अंति: (-) (पू.वि. अध्ययन- १ गाथा-४ तक है.) उत्तराध्ययनसूत्रव-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: पूर्व संयोग मातादिक; अंति: (-). १२३६६२. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५X११, 1 ९x२९). " लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा. सं., पद्य, आदि (-); अति (-) (पू.वि. श्लोक-१४ अपूर्ण से २३ अपूर्ण तक है.) १२३६६६ (०) रघुवंश सह शिशुबोधिनी टीका, अपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पू. ११-८ (१ से ३,५,७ से १०) = ३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, ८x४२). रघुवंश क. कालिदास, सं., पद्य, आदि (-) अति (-) (पू.वि. सर्ग १ श्लोक-४१ अपूर्ण से ५८ तक, ७४ अपूर्ण से ९० अपूर्ण तक व सर्ग-२ श्लोक-५३ अपूर्ण से ७० तक है.) रघुवंश - शिशुबोधिनी टीका, ग. गुणरत्न, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि (-); अति (-). १२३६६७. (+) कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७८-७४(१ से ६८, ७० से ७४, ७७)=४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६११. १७४६९). कथा संग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सुलसश्रावक कथा अपूर्ण से अतिथिदान कथा अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं. वि. अजितप्रभसूरि कृत द्वादशव्रतकथा संग्रह सम्मिलित है. १२३६६८ (४) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८-१ ( १ ) = ७, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५४१०.५, १३४४३). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति मिच्छामि दुक्कडं, (पू.वि. प्रथम महाव्रत आलापक अपूर्ण से है.) १२३६६९. (+) शत्रुंजय महाकल्प, संपूर्ण, वि. १५५५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. २, पठ. सा. धर्मश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६११, ९३०). . शत्रुंजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., पद्य, आदि अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ अति: लहइ सेतुंजजत्तफलं, गाथा-२५. १२३६७१. पार्श्वजिन व औपदेशिक लावणी, संपूर्ण वि. १९१२ ज्येष्ठ कृष्ण, १२, शनिवार, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, प्रले. श्राव. पूनमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६११, १२x३२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन लावणी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लावणी-मगसीमंडन, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: मुगतगढ जीत लिया वंका; अंति: मनदुख मेटोरे अकारे, गाथा-४. २. पे नाम औपदेशिक लावणी, पृ. १आ. संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: चल चेतन अब उठकर अपने; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- ३ तक लिखा है.) १२३६७४ (+०) खंदक अधिकार, अपूर्ण, वि. १६०५ वैशाख, मध्यम, पू. ७-६ (१ से ६) = १, ले. स्थल. कोछ, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४११, १२४५०). भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक २ उद्देशक १गत स्कंधक अधिकार, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: अंतं करेहिति, (पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है., संयमचर्या प्रतिज्ञा प्रसंग अपूर्ण से है.) י १२३६७६. (+) भक्तामर व सकलार्हत् स्तोत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८६३, ज्येष्ठ शुक्ल, मध्यम, पू. ११-५ (१ से ५) =६, कुल पे. २, ले. स्थल, रूपनगर, प्र. वि. संशोधित. जैये. (२६११.५, ६४३३). For Private and Personal Use Only Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४३८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टवार्थ, पू. ६अ ९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पे. वि. हुंडी: भगता ०. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-२२ अपूर्ण है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९अ-११आ, भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: घरड़ जे शा अवश हुती. २. पे नाम चतुर्विंशतिजिन नमस्कार सह टवार्थ, पृ. ९अ ११आ, संपूर्ण. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंतिः श्रीवीर भद्रं दिश, श्लोक-३२, (प्रले. गुला, प्र.ले.पु. सामान्य ) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र का टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि स० सघलाई अरिहंतनइ अतिः तीर्थकर भद्र मंगलीक दिउ, ( पठ. मु. बुद्धिकुशल-शिष्य परंपरा ग. बुद्धिकुशल); प्रले. ग. बुद्धिकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य ) १२३६७८. पच्चक्खाण फल, अपूर्ण, वि. १८४१ श्रावण शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ११-१० (१ से १०) = १, प्र. मु. कांतिविजय; पठ. मु. देवचंदजी (गुरु मु. कांतिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६४११.५, १९४३१). "" १० पच्चक्खाण फल, मा.गु., गद्य, आदि: एक उपवास करें तो उपवास अति: ६२५नो फल सिद्धांत छई, संपूर्ण १२३६७९. साधुवंदना लघु संपूर्ण वि. १९५३ ज्येष्ठ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पू. ७, ले. स्थल, जोधपुर, प्रले. गिरधरलाल बोहरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: छोटी०सा., दे., (२५.५X११.५, १०X३१). साधुवंदना लघु, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमुं अनंत चोविसी; अंति: सादसुं रिष जेमलजी इम कहे, गाथा-५७. १२३६८१. ज्वर छंद, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. दे. (२६१२, १०x३४). "" ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदिः ॐ नमो आनंदपुर अजयपाल, अंति: (-), गाथा-१६, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- ११ तक लिखा है.) १२३६८४. (+) हैमलिंगानुशासन, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. मु. महिमासेन (गुरु ग. महिमाप्रमोद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२५.५४११, १३४४७). " "" हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि पुल्लिंगं कटणथपभमयर; अंति शासनानि लिंगानाम्, प्रकरण ८, श्लोक-१३५. १२३६८६. (४) प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२५x११, १३३०). प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: प्रज्ञाप्रकाशाय नवीनपाठी अंति (-), (पू.वि. श्लोक-१४ अपूर्ण तक है.) प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि बुद्धि प्रकाशन अर्थ, अति: (-). १२३६९० (+) मनुष्यभव दुर्लभता दस दृष्टांत, संपूर्ण, वि. १८३४, चैत्र शुक्ल, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पू. १८, ले. स्थल, नाथूसर प्रले. मु. मयाचंद; राज्ये आ. जिनलाभसूरि (गुरु आ . जिनभक्तिसूरि, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X११, १७४४६). मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत, सं., गद्य, आदि: संसारे चतसृषु गतिषु; अंतिः न शक्यते जीवेन. १२३६९२. गौतमपृच्छा सह वालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे. (२५.५४११.५, " १५X४५). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ६२ तक है.) गौतमपृच्छा वालाववोध, मु. वृद्धिचंद्र, मा.गु, गद्य, आदि नत्वा वीरजिनं बालावबोधो अंति (-) (पू.वि. अभयकुमार कथा तक है.) १२३६९३ (+) कालकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X११.५, ७X२६). कालिकाचार्य कथा, सं., पद्य, आदि श्रीवीरवाक्यानुमत; अंति: यच्छंतु संघे अनधे, श्लोक ६५. For Private and Personal Use Only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२३६९४ (+) उपदेशमाला सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७९४, आषाढ़ कृष्ण, ६, शनिवार, मध्यम, पृ. ७६+१(३८)=७७, ले.स्थल. भुंभादडा, प्रले. पं. अमरनंदण (गुरु वा. कुशलविनय); गुपि. वा. कुशलविनय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (८३९) जादृसं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११.५, १६x४३). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: यतदिनदिक्खयस्सदभगस्स; अंति: अंगोवगाइगोविजा, गाथा-५७२. १२३६९६ (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८९५, वैशाख कृष्ण, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. १४९-४(५४ से ५५,६४,१४१)=१४५, ले.स्थल. वीक्रपुर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ८x१८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: अज्झयणं सम्मत्तं, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. सूत्र-९१ अपूर्ण से ९७ अपूर्ण तक महावीर दीक्षा प्रसंग अपूर्ण से कुलमहत्तरा हितशिक्षा प्रसंग अपूर्ण तक नहीं है व समाचारी तप अनुज्ञासूत्र अपूर्ण से ध्यान काउसग्ग अनुज्ञासूत्र अपूर्ण तक नहीं है.) १२३६९७. आत्मानिंदा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, अन्य. पंन्या. केशरमुनिजी (गुरु मु. मोहनलाल, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आत्म०., दे., (२४४११.५, १२४३५). आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, आदि: हे आत्मा हे चेतन ऐ; अंतिः सो नर सुगुण प्रवीन. १२३६९८ (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३८, आषाढ़ कृष्ण, १, बुधवार, मध्यम, पृ. ६५, ले.स्थल. जयनगर, राज्यकाल रा. सवाई प्रतापसिंह, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दसवीका०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. २७००, मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४११.५, ५४३२-३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपणागमं गइ त्तिबेमि, अध्ययन-१०, (वि. चूलिका-२.)। दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: जिनधर्म उत्कृष्ट; अंति: कहुं छं गुरुवचने. १२३६९९ (#) भक्तामर व कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४४०). १.पे. नाम. भक्तामरस्तोत्र, पृ. ३अ, अपर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-४२ अपूर्ण से २.पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ३अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४० अपूर्ण तक है.) १२३७०१. २१ बोल प्रतिमापूजा प्रश्नोत्तर, अपूर्ण, वि. १८०८, आषाढ़ शुक्ल, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ७-५(१ से ५)=२, जैदे., (२६४११.५, ११४३२). २१ बोल प्रतिमापूजामतपुष्टि प्रश्नोत्तर-सिद्धांतमध्ये, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: प्रतिमा वीतराग आंतरो नथी, (पू.वि. बोल-४ अपूर्ण से है.) १२३७०२. (#) आदिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १५४४०-४५). आदिजिन स्तुति, मु. खेमसागर, उ., पद्य, आदि: साहिब तू सच्चा धणी; अंति: खेमकहे तेरा नाम तसलीमवसि, ढाल-३, गाथा-४२. १२३७०३. सिद्धचक्र चैत्यवंदन व वीतरागाष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. २,प्र.वि. हंडी:स्तोत्रम्यपत्र., जैदे., (२६४११.५, १२४४०). १. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धचक्र आराधतां; अंति: धीर० नय वंदे करजोड, गाथा-१५. २. पे. नाम. वीतरागाष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: सेवं सुद्धबुद्धं परं; अंति: मान् हृदाभ्युद्यतम्, श्लोक-९. For Private and Personal Use Only Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२३७०४. सविधिजिन स्तवन व बाहबलिऋषि स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १९१५, फाल्गुन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. नागोर, प्रले. पं. पुन्यविजयजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११.५, १४४४५). १. पे. नाम, सुविधिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रभु विन अवरसुं राग जिन; अंति: लीजें भक्ति पराग, गाथा-५. २. पे. नाम. बाहुबलिऋषि स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. बाहुबली सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबली सुकल ध्याने; अंति: तेह समकित सिंधुरा, गाथा-१२. १२३७०५. धर्मोपदेशकाव्य सह वृत्ति- श्लोक १, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१२, १६x४९). धर्मोपदेश काव्य, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., पद्य, आदि: ओमित्यक्षरमक्षरद्युतिधरं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.. धर्मोपदेश काव्य-स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १७४५, आदि: श्रीपार्श्व प्रणिपत्यादौ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १२३७०६. जंबूस्वामी व महावीरजिन गुंहली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२, १२४४१). १. पे. नाम. जंबूस्वामी गुंहली, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ जंबूस्वामी गहंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजब कीओ मुनिराय; अंति: सुणि पामें शिवराज, गाथा-७. २. पे. नाम, महावीरजिन गुंहली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन गहुंली, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीतभय पाटण वीरजी; अंति: तस पद पद्म नमो नित, ___ गाथा-५. १२३७०७. (+) जंबूद्वीप परिधिविचार गाथा का बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. विजयसागर (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१२, १७४४४). ___ जंबूद्वीपपरिधि विचार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम एक लाखनो आंक मांडि; अंति: जंबूद्वीपनी श्रेणि जाणवी, (वि. मूल पाठ प्रतीक के रूप में दिया है. जंबूद्वीप गत क्षेत्र व नदी संख्यामान विचार दिया है.) १२३७०८. (+) १८ नातरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३४, कार्तिक शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:अठारना०., संशोधित., दे., (२६४११.५, १३४४४). १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नगरमा मोटु रे मथुला जाणीए; अंति: रीद्धविजय० मनरंगीला, ___ ढाल-३, गाथा-३२. १२३७०९. हरिवंश रास-ढाल १२२ व १२३, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. हुंडी:कृष्णमहा०., जैदे., (२६४११.५, १२४३७). हरिवंश रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. अंत में कथा संबंधित दोहे दिये हैं.) १२३७१०. खामणा सज्झाय व नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, ११४३८). १.पे. नाम. खामणा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८७५, आषाढ़ कृष्ण, ६, ले.स्थल. उंबरी, प्रले. श्रावि. यतनबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्. अंत में "रात्रो लख्यो छे" लिखा है. म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतजीने खांमणाजी जेहना; अंति: कवीअण० मिच्छामि दक्कडं, गाथा-१४. २. पे. नाम. नवपद पूजा, प. १आ, संपूर्ण.. उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (१)उपन्नसन्नाणमहोमयाणं, (२)नमोनंतसंत प्रमोद०; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., देवचंद्रजी कृत उलाला ढाल-१ की गाथा-२ तक लिखा है.) १२३७११ (#) ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बहत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११.५, ११४३५). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरु पाय; अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल-३, गाथा-२५. For Private and Personal Use Only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२३७१२. (**) आदिजिन स्तवन सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-१(१) ३, पठ. श्राव. सुरताण दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी आदिनाथस्तव, संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें कुल ग्रं. ५९, मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४११. ५५३२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जो देव अवर न कांई ईच्छियए, गाथा-२१, ग्रं. २६ (पू.वि. गाथा ८ अपूर्ण से है.) 1 आदिजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-) अति अनेरर्ड नहीं कांई वांछी, ग्रं. ३३. १२३७१४. (*) आचारांगसूत्र की प्रदीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १५७६, श्रेष्ठ, पृ. २२७, प्र. वि. हुंडी : श्री आचारांगप्रदीपिका, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित., जैदे., (२७X११, १५X४४). आचारांगसूत्र-प्रदीपिका टीका, गच्छा. जिनहंससूरि, सं., गद्य, वि. १५७३, आदि शासनाधीश्वरो जीयाद्; अंति ब्रवीमीति पूर्ववत् ग्रं. ९५००. १२३७१५. (+) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र अष्टमपर्व नेमिजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १६६४, कार्तिक कृष्ण, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १५७, ले. स्थल. दधालियानगर, प्रले. मु. शांतिविमल (गुरु ग. दयाविमल) पठ ग. दयाविमल राज्ये आ. विजयसेनसूरि (गुरु गच्छाधिपति हीरविजयसूरि, तपागच्छ); अन्य. श्राव. पद्मा चांपा शाह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ५०५९, प्र.ले. श्लो. (४४०) तैलाद् रक्षेद् जलाद् रक्षेद्, जैदे., ( २६.५X११.५, १४X३६). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १२३७१६. कल्पसूत्र सह टीका व्याख्यान १ से ७ संपूर्ण, वि. १८८३ वैशाख कृष्ण, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पू. १६१, प्र. मु. धनरूप पठ. मु. केवलचंद; राज्येआ. जिनलाभसूरि (खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : कल्प०., जैदे., (२६X११.५, ११४३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि: तेण काले० समणे अति: (-) प्र. १२१६, प्रतिपूर्ण, "" कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्य, अंति: (-), ग्रं. ४१०९, प्रतिपूर्ण. १२३७१७. (+) नारचंद्र ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १८८६, वैशाख कृष्ण, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५४, ले. स्थल. फतेपुर, प्रले. वावजनराम; मघा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. प्र. ले. लो. (७६) मंगलं लेखकस्यापि जैवे. (२५x११, ६३२). 1 " ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अर्हतजिनं नत्वा अंतिः कुसल चडत्वं ठामि श्लोक-३३५. १२३७१९. (+) महावीरजिन स्तवन अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५x११, १४X३२). ४४१ महावीरजिन स्तवन-छट्टाआरा परिचयगर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंद पाय नमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल -१ गाथा-२२ अपूर्ण तक है.) १२३७२१. खंडाजोयण, अपूर्ण, वि. १८५५, वैशाख कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २) = १, ले. स्थल. अजमेर, प्रले. मु. जीतमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी : खंडाजोयण., जैदे., (२५X१०.५, ११X५०). लघुसंग्रहणी १० द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि (-) अंति कहता ७२८०४५० नंदी है, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. अंतिम द्वार - १० अपूर्ण मात्र है.) 1 For Private and Personal Use Only १२३७२२. (+) ९८ बोल एवं ३२ बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५X१०.५, १२X३७). १. पे नाम ९८ बोल, पृ. १अ २अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी अड्डाणुबोल. ९८ बोल यंत्र - अल्पबहुत्व, मा.गु., को. आदि सरवधी थोडा गर्भज अति: ९८ अधिक सर्वजीव. २. पे. नाम. ३२ बोल संग्रह, पृ. २अ २आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी बत्तीसबोल. ३२ बोल ६२ मार्गणायंत्र, मा.गु., को., आदि: १समचै जीवमै २अप्रज्य; अति देवता परज्याप्ता आहारिक, १२३७२४. (+) गोचरीदोष, लब्धि गाथा व मुहपतीबोल गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र. वि. प् युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X१०.५, २२X५०). १. पे. नाम. ४२ गोचरी दोष गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि आहाकम्मुद्देसि य पूइक्क अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाधा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) " Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. गोचरी ४२ दोष, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ ए आधाकर्म साधुनइ काजै; अंति: (१)साधुना विहरवाना जाणिवा, (२)ए सर्व ४२ दूषण जाणिवा. ३. पे. नाम. ५ दोष मांडली के, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ मांडलीदोष विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: संयोजनादोष१ खीरखंडघी त्रि; अंति: सुमति पालनार्थ जीमै. ४. पे. नाम. ४ आहार विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अशन सालि ज्वारि बरटी; अंति: छइ पिण व्यवहारइ अशन. ५. पे. नाम. २८ लब्धिविचार गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण.. प्रा., पद्य, आदि: आमोसहि१ विप्पोसहि२; अंति: आहारगं च५ नयकोइ संहरइ, गाथा-८. ६. पे. नाम. मुखवस्त्रिका एकदेहयो: प्रतिलेखना विचारः, पृ. १आ, संपूर्ण. मुहपत्ति ५० बोल गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सुत्तत्थतद्दिट्ठी१ दंसण; अंति: निजं तणत्थं मुणी बिंति, गाथा-५. १२३७२५ (#) गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४५). गौतमस्वामी रास, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३० अपूर्ण से ५० अपूर्ण तक है.) १२३७२८ (+#) उपदेशरत्नकोश, प्रदेशीराजा प्रश्नोत्तरी व गौतम कुलक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ६४३६). १.पे. नाम. उपदेशरत्नकोश सह टबार्थ, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:उपदेशरत्न. उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिय नीसेस; अंति: वच्छलिइ रमइ सच्छाए, गाथा-२६. उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उपदेशरूप रतन तेहनो; अंति: रमइ स्वेच्छाए. २. पे. नाम. प्रदेशीराजा प्रश्नोत्तरी सह टबार्थ, पृ. ४आ, संपूर्ण.. प्रदेशीराजा प्रश्नोत्तरी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अज्जय १ अज्जा २ कुंभ; अंति: अइभारावाह १० पडिवयणं, गाथा-२. प्रदेशीराजा प्रश्नोत्तरी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभगवंत माहरो हाहा नरकि; अंति: केशी कुमार परदेशी राजानइ. ३. पे. नाम. गौतमकुलक सह टबार्थ, पृ. ४आ-६आ, पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., पे.वि. हुंडी:गौतमकुलक. गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम गाथा-२० अपूर्ण तक है.) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभी मनुष्य होइ ते; अंति: (-). १२३७२९ (+) सीमंधरजिन विनती, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, प्रले. मु. जिनविजय; अन्य. सा. जीतश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १३४३३). सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: ___ चरणसेवक जसविजय बुध जयकरो, ढाल-११, गाथा-१२५, ग्रं. १८८, (पू.वि. ढाल-३, गाथा-१९ अपूर्ण से है.) १२३७३०. स्तुति, चैत्यवंदन व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-८(१ से ८)=२, कुल पे. ६, जैदे., (२६४११, १६४३९). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ९अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: शुभ वांछित फळ लीध गाथा-९, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: नमद्देवनागेंद्रवंदा; अंति: चिंतामणिं पार्श्वः, श्लोक-७. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण... मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगिरनार शृंग शृंगारं; अंति: सकलसुरेसर वंदित जयजयपरमरम, गाथा-७. ४. पे. नाम. आदिदेव स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण. सर्वजिन स्तव, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: जिनपते द्रुतमिंद्रिय; अंति: निहतमोहतमोरिपुवीर मे, श्लोक-९. For Private and Personal Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५. पे. नाम. नवखंडपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-घोघापुरमंडन, सं., पद्य, आदि: नतदानवमानवदेवगणं कलकैरव; अंति: सर्वदा सौख्यमालां, श्लोक ९. ६. पे नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण. ४४३ पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि किं कर्पूरमवं सुधारसमयं अति: बीजं बोधिचीज ददातु श्लोक-११. १२३७३२. (०) यतिदिनचर्या संपूर्ण वि. १६५९ कार्तिक शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. २०, पठ. ग. क्षमाचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें जैवे (२६५११, ११x४०). यतिदिनचर्या, आ. देवसूरि, प्रा., पद्य, आदि तं जयइ सुहं कम्म अति ता जवठ जईण दिनचरिया, गाथा- ३८९. १२३७३३. (+) ताजिकसार की टीका, संपूर्ण, वि. १७३१, कार्तिक शुक्ल, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २६, ले. स्थल. खारिया, प्रले. पं. महिमारत्नमुनि (गुरु पं. सुगुणकीर्त्ति गणि, खरतरगच्छ); गुपि पं. सुगुणकीर्त्ति गणि (खरतरगच्छ); लिय. मु. रायचंद (गुरु पं. लखमणजी); गुपि. पं. लखमणजी ( गुरु ग. नारायणजी); ग. नारायणजी (गुरु ग. सुमतिसिंधु); ग. सुमतिसिंधु, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६११, १५X४४). "9 ताजिकसार- कारिका टीका, ग. सुमतिहर्ष, सं. गद्य, वि. १६७७, आदि: श्रीसूर्यचंद्रारबुधेंद्र०; अंति: रचिता तनुताच्चिरम् १२३७३५. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२१, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ३६४८, जैदे., ( २६४१०, ५X३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे, अंतिः (-), (अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम किंचित् भाग नहीं है.) कल्पसूत्र- टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: नमस्कार हुबो अरिहंतनह; अंतिः अध्ययन संपूर्ण धवड, संपूर्ण. १२३७३६. (+) समाधिपच्चीसी, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २- १(१ ) = १ . सा. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी चित... संशोधित., दे., ( २६x१०.५, ५X३४). समाधिपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८३३, आदि अपूर्व जीव जिनधर्म अति: मेडतनगर चोमास रे, गाथा-२५, संपूर्ण. १२३७३७. इक्वीस स्थान प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १६६२, चैत्र शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(२)=६, कुल पे. २, ले. स्थल. वीरमग्राम, प्रले. पंन्या. कुंयरजी गणि (गुरु आ. रायचंद्रसूरि, पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ); गुपि. आ. रायचंद्रसूरि (गुरु आ. समरचंद्रसूरि, पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ ). प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी एकवीसठाणउटबाल, जैदे. (२६४११, ७४७-५०). १. पे. नाम. इक्कीस स्थान प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-७अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. " २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण१ विमाणा२ नयरी ३; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा-७२ (पू.वि. गाथा १३ अपूर्ण से २४ अपूर्ण तक नहीं है.) २१ स्थान प्रकरण-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चवण कहतां तीर्थंकर अति पदे भण्या कह्या छे. २. पे. नाम. वीस विहरमान नाम, पृ. ७अ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सीमंधर १ युगमंधर; अंति: देवयंश१९ अनंतवीर्य २०. १२३७३८. वज्रकुंवर चौढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. सा. जीउ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : बजकु०., दे., (२६११, १९३४). वज्रकुंवर चौढालियो, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: राय जसरधत पहिला हुवा अति: खम्या करो भवसाइर तीर, ढाल- ४, गाथा - ६५. For Private and Personal Use Only १२३७३९ (#) बृहत्संग्रहणी की टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १५-९ (१ से ७, १२ से १३) = ६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पत्रांक अनुमानित है. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैये. (२६११, १७५५). " " बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा - १२२ की टीका अपूर्ण से २१२ की टीका अपूर्ण तक व २३६ की टीका अपूर्ण से २६८ की टीका अपूर्ण तक है.) Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२३७४०. व्याख्यान पीठिका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२५.५४११,१२४३१). कल्पसूत्र व्याख्यान पीठिका, संबद्ध, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सूत्रमर्थ तथा चांति; अंति: (-), (पू.वि. १० कल्प नाम अपूर्ण तक है.) १२३७४१ (+#) सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ११४३१). सीमंधरजिन स्तवन-आलोयणाविनती, म. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: आज अनंता भवतणां कीधा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) १२३७४२. रात्रिभोजन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५.५४११, ७४३४). रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, म. विवेकसोम, मा.गु., पद्य, आदि: पुन संजोगे नरभव लाधो; अंति: विवेकसोम०अधिकार रे, गाथा-१३. १२३७४४. (+) आदिजिन छंद, संपूर्ण, वि. १८७५, चैत्र कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. केवडा, प्रले. पं. उत्तमविजय पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५४११, १८४४५). आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि: आदि करण आदि जग आदि; ___ अंति: सुरनर सब कीरत करे, गाथा-६३. १२३७४५. नेमराजिमती बारमासा व साधु के २७ गुण वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०, ९४३६). १.पे. नाम. नेमराजिमती बारमासा, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण. म. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: विनवे उग्रसेन की लाड; अंति: लालविनोदीने गाए, गाथा-२६. २. पे. नाम. २७ साधुगुण वर्णन, पृ. ५अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आदिनाथपुराणे घत्ता वंधे; अंति: २७ साधुगुण कह्या. १२३७४७. (+) २४ जिन नमस्कार-त्रिभंगीसवैयामय, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १३४४५). २४ जिन नमस्कार-त्रिभंगीसवैयामय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, ब्र., पद्य, आदि: गुहन गंभीर अचल जिम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण तक है.) १२३७४९ (+) संवादशतक, संपूर्ण, वि. १७२३, आषाढ़ कृष्ण, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. रताडिया, प्रले. मु. रविशेखर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीगुडीपार्श्वनाथप्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२५४११, ११४४३). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. १२३७५०. (#) विजयसेठविजयासेठानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. दयाचंद ऋषि; सा. पनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वीजीया., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १७४४४). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, म. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीवीतराग जिणदेव; अंति: रामपुर गुण गाया, गाथा-२३. १२३७५१ (#) सर्वज्ञदेवद्वात्रिंशिका व ब्रह्माविष्णमहेश स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, १४४४५). १. पे. नाम. सर्वज्ञदेवद्वात्रिंशिका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अपराजितवास्तुशास्त्रगत जिनमूर्तिश्लोक, हिस्सा, विश्वकर्मा, सं., पद्य, आदि: सुमेरुशिखरं दृष्ट्वा गौरी; अंति: लोकांतेवासिनं जिनं, श्लोक-३२. २. पे. नाम, ब्रह्माविष्णुमहेश स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: मथुरायां जातो ब्रह्मा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-५ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ४४५ १२३७५४. (+) गजसुकुमालमुनि रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११, १४४४२). गजसुकुमालमुनि रास, मु. शुभवर्द्धन शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: देस सोरठ द्वारापुरी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-५ ___ अपूर्ण तक है.) १२३७५६. (+#) सर्वजिनचैत्य परिपाटी नमस्कार, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मेदनीपुर, प्रले. मु.रीडा ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४४). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके रविशशि; अंतिः सततं चित्रमानंदकारी, श्लोक-९. १२३७५७. रात्रिसंथारा विधि व प्रास्ताविक श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०.५, १५४५०). १.पे. नाम. रात्रिसंथारा विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: चउकसाय पडीमल लूरण; अंति: (१)सव्वं तिविहेण वोसिरे, (२)धारियइ प्रमाद निवारियइ, गाथा-१४. २.पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोकसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: जिनेंद्रपूजा गुरुपर्युपा; अंति: न पयारो तस्स संसारे, श्लोक-१४. १२३७५८. (4) पार्श्वचंद्रसूरि भास व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:गुरुभास., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४५४). १. पे. नाम, पार्श्वचंद्रसूरि भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ पार्श्वचंद्रसूरिगुरुगुण भास, मु. उदो, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर पाय नमी रे; अंति: श्रीआचारिज गुण आगलो रे, गाथा-११. २. पे. नाम. पार्श्वचंद्रसूरि पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपासचंदसूरिंदजी रे जोइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा है.) १२३७६०. पार्श्वजिन स्तवन, चंद्रप्रभजिन स्तवन व क्षेत्रपालाष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४.५४१०.५, १५४४६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. देवकुशल पाठक, सं., पद्य, आदि: स्फुरदेवनागेंद्रवंदार; अंति: चिंतामणिः पार्श्वः, श्लोक-७. २. पे. नाम, चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. हरिश्चंद्र, सं., पद्य, आदि: श्रीमहासेननृपांगज नाथ; अंति: चंद्रप्रभोस्तु श्रिये, श्लोक-९. ३. पे. नाम. क्षेत्रपालाष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. भैरवाष्टक, शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: एक खड्गागहस्तं पुनः; अंति: सर्वसिद्धिमवाप्नुयात्, श्लोक-१०. १२३७६१. रावण ढाल व शालिभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४१०.५, १३४४७). १. पे. नाम. रावण ढाल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:रावणरीढा. म. कनीराम, मा.गु., पद्य, आदि: थे सीता सती लावीया इण; अंति: कनीराम० दीजो सीवपुर दान, (वि. गाथांक नहीं है.) २. पे. नाम. शालिभद्रमुनि चौपाई, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अज्ञात ढाल गाथा-४ से उसके बाद वाली __ ढाल का दोहा-३ तक लिखा है.) १२३७६३. (+) ८ कर्म १५८ प्रकृति, १४ गुणस्थानक नाम व ६ काय उत्कृष्टआयुमान विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १६x४५). १.पे. नाम, अष्टकर्मणां भेदाः, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ८ कर्म १५८ प्रकति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरण कर्मभेद ५; अंति: वीर्यांतराय. २. पे. नाम, १४ गुणस्थान नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात गुणठाणा १ सस्वादन; अंति: अजोगी गुणठाणुं १४. ३. पे. नाम. जीवानामुत्कृष्टायुप्रमाण, पृ. १आ, संपूर्ण. ६ काय जीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ७वर्षसहस्र पृथ्वीकाय आयु; अंति: ३ पल्योपम पंचेंद्रियायु. १२३७६५ (+) राजिमतीरहनेमि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. भीनमालनगर, प्रले. मु. नेमकुशल (गुरु पं. मगनकुशल); पठ. सा. कल्याणश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३६). रथनेमिराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गिरनारि चली वंदन पीयडा; अंति: तेनीका मुनि सिवसाथीयडा, गाथा-१३. १२३७६६ (+) हैमीनाममाला, संपूर्ण, वि. १८३९, वैशाख शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ५१, ले.स्थल. डेलूयां, प्रले. पं. माणिक्यराज (गुरु ग. रूपवल्लभ); गुपि. ग. रूपवल्लभ; अन्य. आ. जिनकुशलसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:हैमीनाममाला., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १३४४०). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः सिद्ध०; अंति: ग्रोषोक्तावुन्नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२. १२३७६७. (+) दसोटण विधि, केश कल्प व आधाशीशी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १८४५५). १. पे. नाम. दसोटण विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, प्रले. मु. रूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धार्थ राजा निज पुत्र; अंति: राजा० मान सम्मान दीधो. २. पे. नाम. केश कल्प, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: हरडे० वहेडे० आमला; अंति: धोई जे केश काला होय. ३. पे. नाम. आधाशीशी कथा, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., गद्य, आदि: ॐ नमो सात ऋषिस्वर हुता; अंति: पाप लीजै ठ ठ ठः स्वाहा. १२३७६८. नवतत्त्वप्रकरण व जीवविचार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४-१३(१ से १३)=११, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, ८४४०). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १४अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अणंतभागो य सिद्धि गओ, गाथा-६०, (पू.वि. गाथा-५६ अपूर्ण से है.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: हजी सिद्धि गयो छे. २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १४अ-२४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जीववचारट. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: त्रिण भुवन नइ विषइ; अंति: रूपी आ समुद्रमांहि थी. १२३७७० (+) पार्श्वजिन छंद व ११ प्रतिमा सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ८x२६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पार्श्वछं०. पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती मात नमी करी आपो; अंति: भावविजय०देव जय जयकरण, गाथा-५०. २. पे. नाम. ११ प्रतिमा सज्झाय-श्रावक, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ११ श्रावक प्रतिमा सज्झाय, रा., पद्य, आदि: ग्यारै प्रतिमा हो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ४४७ १२३७७३. (+) जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८१६, श्रेष्ठ, पृ. २९३-२(२०१ से २०२)=२९१, ले.स्थल. नवानगर, प्र.वि. हुंडी:जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, जंबूद्वीपप्र०, जंबूद्वीपप्रज्ञ, जंबूद्वीप., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. १२५३८, जैदे., (२५४११, १०x४४). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार-७, ग्रं. ४१४६, (वि. १८१६, भाद्रपद कृष्ण, १, शुक्रवार, पू.वि. वक्षस्कार-४ अंतिम सूत्र-२११ अपूर्ण से वक्षस्कार-५ सूत्र-२१४ अपूर्ण तक नहीं जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ, म. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७७०, आदि: श्रीसिद्धार्थनराधिप; अंति: जंबू प्रति कहे छे, ग्रं. १२५३८, (वि. १८१६, आश्विन कृष्ण, ९, रविवार) १२३७७६. तत्त्वविचार श्लोक व स्त्रीयोनिजीवोत्पत्ति गाथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.१, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, ३४३१). १.पे. नाम. तत्त्वविचार श्लोक सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. भीनमाल, प्रले. मु. नित्यसागर (गुरु ग. रूपसागर); गुपि. ग. रूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. तत्त्वविचार श्लोक, सं., पद्य, आदि: तत्त्वानि९ व्रत५; अंति: ज्ञेया सुधीभिः सदा, श्लोक-१. तत्त्वविचार श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीव तत्त्व१ अजीव तत्त्व२; अंति: देवतानी कोडि६. २.पे. नाम. स्त्रीयोणिजीवोत्पत्तिगाथा विचार सह टबार्थ, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. स्त्रीयोनिजीवोत्पत्ति गाथा, प्रा., पद्य, आदि: तह पंचंदियजीवा इत्थीजोणि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) स्त्रीयोनिजीवोत्पत्तिगाथा विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिमज पंचेंद्रीजीव स्त्री; अंति: (-). १२३७७७. (+) पर्यंताराधना विधि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, १५४४५). पर्यंताराधना विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही; अंति: (-), (पू.वि. पंचेंद्रिय जीव विचार अपूर्ण तक है.) १२३७७८. सूर्यगति सज्झाय, साधुगुण सज्झाय व २० विहरमानजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, १४४४७). १. पे. नाम. सूर्यगति सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सूर्यनी. मु. कृष्णदास, मा.गु., पद्य, वि. १८४७, आदि: अरिहंत आग सांभली पामि; अंति: चोथमल० करि कृष्णदासोरे, गाथा-१६. २.पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, आदि: जिणवर गणधर मुनिवरने कहे; अंति: होजो मुझ निसतार रे, गाथा-९. ३. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीसीमंधर साहिबा हो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) १२३७७९ (+) पाक्षिक अतिचार-श्रावक पायचंदगच्छीय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४१०.५, १२४४१). श्रावकपाक्षिक अतिचार-पायचंदगच्छीय, संबद्ध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नाणे दंसण चरणे जाण; ____ अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण तक है.) १२३७८० (+) चैत्यवंदन चौवीसी व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प.७, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १०x२८). १.पे. नाम. चैत्यवंदन चौवीसी, प. १अ-६आ, संपूर्ण, वि. १८४६, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, ले.स्थल. ओसवालमहला, प्रले. पं. लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. चैत्यवंदनचौवीसी, ग. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिन युगादिदेव; अंति: जिनना सरीया काज, चैत्यवंदन-२४, गाथा-७५, (वि. १८४६, ज्येष्ठ शुक्ल, १४) २. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पास प्रभूना चरण नमी; अंति: ते वाते घणु रागी रे, गाथा-९. १२३७८१. सूडासाहेली रासप्रबंध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. श्रीपुर, पठ. मु. राजरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १५४४३). शुकराज सहेली कथारास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती हंसगमनी सदा; अंति: कहे दिन दिन लीलविलास, गाथा-१५८. १२३७८३. (#) लघशांति व दस वस्तुविच्छेद अधिकार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. पं. फतेचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ६४३५). १. पे. नाम. लघुशांति सह टबार्थ, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: जिनेश्वरे, श्लोक-१७. लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशांतिनाथ शांतिनो; अंति: शांति पद प्रतै पामै. २. पे. नाम. १० वस्तुविच्छेद अधिकार सह टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-१० वस्तुविच्छेद अधिकार, हिस्सा, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: सेणिआ जंबूपच्छा दसवयण; अंति: जोइस्ससिसेणिआए स जंबू. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-१० वस्तुविच्छेद अधिकार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हे श्रेणिक जंबू पछी दसवचन; अंति: जंबूना मोक्ष गया विच्छेद. १२३७८५ (+#) कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८५-१२६(१ से ३,११ से १२२,१४९ से १५९)=५९, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १२४३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वर्द्धमानकुमार नामकरण अधिकार से महावीरजिन की अनुत्तर संयमचर्या अधिकार अपूर्ण तक व पार्श्वजिन चरित्र से नेमिजिन दीक्षा प्रसंग तक है.) कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. १० कल्पे साधु दृष्टांत अपूर्ण से नागकेतु कथा अपूर्ण तक, सिद्धार्थ राजा द्वारा ज्ञातिभोजन अपूर्ण से महावीरजिन संयमचर्या अपूर्ण तक व पार्श्वजिन चरित्र से नेमिजिन चरित्रे कंस प्रसंग अपूर्ण तक है., वि. इस बालावबोध तथा लक्ष्मीवल्लभ की कल्पद्रमकलिका टीका की विवेच्य विषयवस्तु में साम्यता नजर आती है.) १२३७८६. (+) नेमिराजिमती रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ११४३६). नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय प्रणमी करी नेम; अंति: प्रसन्न श्रीनेमजिणंद, गाथा-६३. १२३७८९ (+) अनेक सती स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, १२४३०). २७ सती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह समै उठी मननै; अंति: सनेह अविचल पदवी पामे तेह, गाथा-३२. १२३७९०, औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.ले.श्लो. (१५०२) जल में बसे कमोदनी, जैदे., (२५४११, १२४२९-३४). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: भुखा घरनी जाइ भुडी; अंति: करडो सांवणीयानै मासै, गाथा-९. १२३७९१. पंचमीतिथिपर्व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११, ११४३१). पंचमीतिथिपर्व सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमाजिन तणा पाय पणमी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) १२३७९२. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मदलगढ, प्रले. मु. कीर्तिकलश, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ६x४५). जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खेलं १ केलि २ कलि ३; अंति: वेज्जे जिणिंदालये, गाथा-४. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्लेष्मां १ क्रीडां २; अंति: वर्जयेत् जिनेंद्र गहे. १२३७९३. (#) शत्रुजयउद्धार रास व शील सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४५१). For Private and Personal Use Only Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १.पे. नाम. शत्रुजयउद्धार रास, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:शत्रुजयउद्धार. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: देही दरीसण जय करूं, ढाल-१२, गाथा-१०७, ग्रं. १७०. २. पे. नाम, शील सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. शीलव्रत सज्झाय, श्रावि. डाही, अप., पद्य, आदि: च्यंतित मणि दुख धमणि; अंति: भणति डाही० जि मन्न वारइ, गाथा-७. १२३७९४ (+#) रामविनोद व मान परिमाण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. ११२, कुल पे. २, प्र.वि. हंडी:रा.वि., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२४.५४१०.५, १२४३३-३८). १.पे. नाम. रामविनोद, पृ. १आ-११२आ, संपूर्ण. पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिद्धबुद्धिदायक सलहीयै; अंति: रामचंद्र० लगि मेरु जिणंद, समुद्देश-७, गाथा-१६१७, ग्रं. २००१, (वि. अंत में अंतिम समुद्देश की विषय सूचि दी गई है.) २. पे. नाम. मान परिमाण, पृ. ११२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. विविधमान परिमाण सज्झाय, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जुगति मान जानै विनां; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) १२३७९५ (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४९, प्र.वि. हुंडी:दशवै०सूटबार्थ., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं.१५००, जैदे., (२४४१०.५, ६x६५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्कट्ठ; अंति: मुच्चइ त्ति बेमि, अध्ययन-१०, (वि. चूलिका-२.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: दुर्गति पडतां जीवनइ; अंति: पामि मोक्षगतिनि इम कहे. १२३७९६. दशवैकालिकसूत्र गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४१०.५, १३४४५). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. सज्झाय-४ गाथा-२ अपूर्ण से सज्झाय-६ गाथा-७ तक है.) १२३७९७. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १३४४०). नेमिजिन स्तवन, मु. पुण्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मति निर्मल दिउ; अंति: पुन्यविजय० दिन जयजयकारा, गाथा-२२. १२३७९८. (+) शनिश्चरदेव छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११,१०४२८). शनिश्चरदेव छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति; अंति: तु सुप्रसन्न शनिस्वर, गाथा-१२. १२३८०० (#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८९, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पाली, प्रले. पं. सुमतिविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३६). औपदेशिक सज्झाय, म. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल करण नमीजे चरण; अंति: गरभावासमां न अवतरे, गाथा-२३. १२३८०१ (+) सुरसुंदरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९२९, माघ कृष्ण, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. २६-१(१)=२५, प्रले. श्राव. पूनमचंद (पिता श्राव. द्वारकादास); गुपि. श्राव. द्वारकादास (पिता श्राव. गणेश दास); श्राव. गणेश दास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं.९००, प्र.ले.श्लो. (१४४६) जब लग मेरु अडग हे, दे., (२५.५४११, १४४३९). सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: (-); अंति: धर्मवर्द्धन उमंगे जी, खंड-४, गाथा-६१३, (पू.वि. खंड-१ ढाल-१ गाथा-८ अपूर्ण से है., वि. ढाल-४०.) १२३८०३. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १५४३९). शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय नमुं सिरनाम; अंति: मनवंछित शिवसुख पावे, गाथा-२१. For Private and Personal Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२३८०४.(+) सिंदरप्रकर, अपूर्ण, वि. १८५८, पौष शुक्ल, १२, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १०-३(७ से ९)७, ले.स्थल. देशणोक, पठ. मु. सोभाचंद्र (गुरु ग. क्षांतिसुंदर); प्रले. ग. क्षांतिसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ११४३१). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, "द्वार-२२, श्लोक-१००, (पू.वि. श्लोक-६४ अपूर्ण से ९३ अपूर्ण तक है.) १२३८०५. नवतत्त्व प्रकरण के बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, दे., (२५४११, १५४५८). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवना ध्रुवगुण परजा जेम; अंति: आहारीक अशंखातगुणा कहा. १२३८०६. (+#) मछोदर चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २६-४(१० से ११,१३ से १४)=२२, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. पं. तिलककल्याण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, १५४३८). मछोदर चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७१८, आदि: पोहो ऊठी प्रणमुं; अंति: ए० तेतीसमी ढाल वखाण, ढाल-३३, गाथा-९४८, (पू.वि. ढाल-१२ गाथा-३ अपूर्ण से ढाल-१४, गाथा-१७ अपूर्ण तक व ढाल-१६ गाथा-२ अपूर्ण से ढाल-१९ गाथा-३ अपूर्ण तक नहीं है.) १२३८०७. (4) प्रभाती व स्तुतिसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३५). १. पे. नाम. आदिजिन प्रभाती, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: याग याग भवीया धर्मवाणुसाद; अंति: सुखकर देजो हरख वधामणां, गाथा-९. २. पे. नाम. अरिहंत स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. अरिहंत स्तुति-प्रभातियु, मु. स्वरूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत नमीजे; अंति: तेहनी आण वहीजे, गाथा-३. ३. पे. नाम. सिद्ध स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. स्वरूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: परमेष्ठी आराधो सुगणजन; अंति: थाए स्वरुप समाधि, गाथा-२. ४. पे. नाम. आचार्य पद स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आचार्यपद स्तुति, मु. स्वरूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आचारिज पद सेवा चहत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक १२३८०८. (#) श्रीचंदराजा रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६४-५८(१ से ५३,५८ से ६२)=६, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १५४४४). चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-६ ढाल-१० गाथा-९ अपूर्ण से खंड-३ ढाल-१५ गाथा-१६ तक व खंड-६ ढाल-२२ गाथा-१८ अपूर्ण से ढाल-२५ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) १२३८१०. प्रत्याख्यान भाष्य सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३-८(१ से ८)=५, दे., (२५.५४११.५, ५४३६). प्रत्याख्यान भाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, गाथा-४८, (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण से है.) प्रत्याख्यान भाष्य-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सास्वता सुख बाधा रहित सुख. १२३८११ (+) बार भावना सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, १४४४४). १२ भावना सज्झाय-बृहत्, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पास जिणेसर पाय नमी; अंति: भणी जेसलमेर मझार, ढाल-१३, गाथा-१२४, ग्रं. २००. १२३८१३. चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२५.५४११.५, ९४३१). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. For Private and Personal Use Only Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२३८१४. धर्मपरीक्षा चौपाई व अनाथीमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २३-२२ (१ से २२) -१, कुल पे. २. ले. स्थल. वणाड, प्रले. मु. नित्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, ११x४३). १. पे. नाम. धर्मपरीक्षा चौपाई, पृ. २३अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. मु. . नित्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: (-); अंति: नित्यजथा स्थित अवसैजी, ढाल १९, (पू.वि. ढाल-१९ गाथा-१४ से है.) ४५१ २. पे नाम, अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. २३आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि श्रेणिक रयवाडी चड्यो अति समय बंदरे वे करजोडि, गाथा- ९. १२३८१६. (+) बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९७, आषाढ़ कृष्ण, १२, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३७, प्रले. सा. रंभाजी (गुरु सा. रुपाजी); गुपि. सा. रुपाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५X११, ६x४४). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि नो कप्पइ निमगंधाण; अंति: थेरकण्पतिति तिबेमि, उद्देशक ६, ग्रं. ४७३. " बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नो० क० न कल्पइ नि०; अंति: हुं तुझ प्रति कहु छउ १२३८१७ पगामसज्झायसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, जैवे. (२५. ५x११, १५४४९). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा. गद्य, आदि इच्छामि पडिक्कमिङ; अति: वंदामि जिणे चडवीस, सूत्र- २१. पगाम सज्झायसूत्र का वालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि निवर्तवा वांकुड, अंति: चोबीस तीर्थंकर बांदर. १२३८२० (+) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पु. १. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे., (२५X११.५, १३X२८). " नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम् अति: (-) (पू.वि. संतिकर "" स्तोत्र तक है.) १२३८२२. (+#) ऋषिमंडल प्रकरण व उपदेशरत्नमाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६x१०.५, १३३५). १. पे. नाम ऋषिमंडलसूत्र, पृ. १आ- ११आ, संपूर्ण प्रले. ग. विनयकुंजर पठ. सा. नामसी, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी: श्रीऋषिमंडलसू०. " 1 ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. पद्य वि. २४वी आदि भत्तिब्भरनमिरसुरवर अति: धम्मघोस० सिद्धिसुहं, गाथा - २२०, ग्रं. २५९. २. पे. नाम. उपदेशरत्नमाला, पू. ११आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि उवएसरयणकोसं नासिय नीसेस अंति (-), (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है) १२३८२३ (+) प्रश्नप्रकाश व अक्षरचिंतामणि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५X११, १७५७). १. पे. नाम. प्रश्नप्रकाश, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण. आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि हंस सुधाकरं सारं सोम्यं; अति जीवाच्चिरं भूतले, प्रकाश २०, ग्र. ३६०. २. पे नाम. अक्षरचिंतामणि, पृ. ८अ १२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only शिव, सं., पद्य, आदि: गार्ग्यः भानुना रहितो; अंति: यो नरवर सदैव पूज्यः. १२३८२४ (+४) प्रियमेलक चौपाई व जीवकाया सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९-६ (१ से ६-३, कुल पे. २, अन्य. पं. कपूरसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में लिखा है कि- पं. कपूरसुंदरी परत है सं. १८४८ वैसाख सुद १२ दनै.', संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २६४११, १२४३७). १. पे. नाम. प्रियमेलक चौपाई दानाधिकारे, पृ. ७अ ९अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १७९४, श्रावण शुक्ल, १५. ले. स्थल. कर्णपुर, प्रले. पं. कपूरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि (-); अंति: पुण्य (पू.वि. गाथा ६९ अपूर्ण से है.) 'अधिक परमोद, ढाल ११, गाथा - २२०, Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. जीवकाया सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण, वि. १८४८, वैशाख शुक्ल, १२, प्रले. मु. कपुरसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: सुणि बहिनी प्रीउडो; अंति: राजसमुद्र० सोभागी रे, गाथा-७. १२३८२५. सीखामणनी सीझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. मु. तेजपाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सिखामण., जैदे., (२६.५४११, १२४३६). औपदेशिक सज्झाय-जीवोपरि, अखेराम, मा.गु., पद्य, आदि: अहो भवरतन चिंतामणि सरीखो; अंति: कहे अखेराम० तरीया रे, गाथा-१३. १२३८२६. (+) अंजनासुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३-१(२२)=२२, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३४४०). __ अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: गणधर गौतम प्रमुख; अंति: (-), (पू.वि. खंड-३ ढाल-३ गाथा-९२ अपूर्ण तक व ढाल-४ गाथा-१९ अपूर्ण से ढाल-५ गाथा-४१ तक है.) १२३८२७. (+#) शुकबहोत्तरी कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-२(१ से २)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १५४४०). शुकबहोत्तरी कथा, आ. रत्नसुंदरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कथा-३ गाथा-४१ अपूर्ण से कथा-४ गाथा-८८ अपूर्ण तक है. १२३८२८. (+) जिनचंद्रसूरि गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४४३). जिनचंद्रसूरि गीत, म. साधकीर्तिजी, मा.गु., पद्य, आदि: ए मेरउ साजणीयउ सखि; अंति: साधकीर्ति इम बोलइ. गाथा-४. १२३८२९ (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८१८, वैशाख शुक्ल, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. २२-७(१,७,१० से १२,२० से २१)=१५, ले.स्थल. डबोक, प्रले. मु. मनरूपसागर (गुरु मु. माणिक्यसागर); गुपि. मु. माणिक्यसागर (गुरु मु. रत्नसागर); पठ. मु. हमीरसागर (गुरु पं. उमेदसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१३१८) जा लगि मेर अडिग है, जैदे., (२६४११.५, १३४२४). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सिद्धो पनर भेय उदाहरणं, गाथा-५०, (पू.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं., गाथा-४ से है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध*, रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उदाहरणं करि कहिइ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. १२३८३० (+) पंचतीर्थीजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४१). पंचजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमियजिणमुसभमभयंसदेसविलसंत; अंति: जिणवल्लहो० पायप्पणामो तुह, आख्यान-५, गाथा-१३४. १२३८३१ (+) प्रत्याख्यानसूत्र, आगारसंख्या गाथा व श्रावकविधि प्रकाश, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४४३). १. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कारसहिअं; अंति: वत्तिआगारेणं वोसिरइ. २. पे. नाम, आगारसंख्या गाथा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: नवकार१ पोरसी२ परिमड्; अंति: हवंति सेसेसु चत्तारि, गाथा-३. ३. पे. नाम. श्रावकविधि प्रकाश, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., गद्य, वि. १८३८, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंति: (-), (प.वि. सामायिकदंडक उच्चारण वर्णन अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ४५३ १२३८३२. (+) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १-२४३८). बृहत्संग्रहणी, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ७५, आदि: (-); अंतिः (-), (पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., गाथा-१४ अपूर्ण से १६ अपूर्ण तक है.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. १२३८३३. नमस्कार महामंत्र स्तव-गाथा ७ व २७ आनुपूर्वी गाथा, संपूर्ण, वि. १८५३, वैशाख शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सुभट्टपुर, प्रले. पं. पद्महंस गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १४४४५). नमस्कार महामंत्र स्तव, संबद्ध, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. नवकार आनुपूर्वी जाप यंत्र सहित.) १२३८३४. (+#) वैद्यसार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४९-१(२६)-४८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १६-२५४३६-६८). वैद्यसार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा; अंति: अनेक रोगांने गमावे, (पू.वि. बीच का पाठांश नहीं है.) १२३८३५ (+) संबोसप्ततिका सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १६८५, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. १५-३(१ से ३)=१२, ले.स्थल. नागपुर, प्रले. गंगदास जोशी; पठ. श्राव. धरमादे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (५६) यादृशं पुस्तकं दष्टं, जैदे., (२५.५४११.५, १६४५०). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जयसेहर नत्थि संदेहो, गाथा-१२५, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) संबोधसप्ततिका-वृत्ति, आ. अमरकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: कृता संबोधसप्ततेः. १२३८३६. (+) वीस स्थानकतप विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. रविवर्द्धन; पठ. श्राव. जवां, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३३). २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पहिलउं इरियावही पडिक्कमी; अंति: तप करता तीर्थंकर पद पामइ. १२३८३७. (+#) ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १७४३३). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ५ ज्ञानावरणी श्रुतादि; अंति: (-), (पू.वि. ऋषभनाराच वर्णन अपूर्ण तक १२३८३८.(+) गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., दे., गुटका, (२५.५४११.५, १४४३६). गौतमस्वामी रास, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर चरण कमल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) १२३८३९ (+) सिंदरप्रकर का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, प्रले. ग. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, ११४३५). सिंदरप्रकर-पद्यानवाद भाषा, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९१, आदि: सोभित तप गजराज सीस; अंति: बनारसी० करन छत्र सित पाख, अधिकार-२२, गाथा-१०१. १२३८४३. (+) हंसराजवच्छराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:हंसवछचौप., संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४४४). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदे करि चउवीसे जिण; अंति: (-), (पू.वि. खंड-४ ढाल-४४ गाथा-८१ अपूर्ण तक है.) १२३८४४. (+) गोराबादल चौपाई, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २८, प्रले. मु. विशालकीर्ति (परंपरा मु. विमलसेन, नंदीतटगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३८-४४). गोराबादल चौपाई, आ. हेमरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६४५, आदि: सुखसंपतिदायक सकल; अंति: हेमरतन० ले लिखमी वरै, गाथा-६२१. For Private and Personal Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२३८४५. (+) कयवन्ना चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:कयवन्नौरीचो०., संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५९). कयवन्ना चौपाई, म. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदादायक; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३१ गाथा-४४२ अपूर्ण तक है.) १२३८४७. १२ तपभेद विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११, ९४३८). १२ तपभेद विवरण, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अणसण ते० पहेलो अणसण तप ते; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अभ्यंतर तप में प्रायश्चित तप अपूर्ण तक लिखा है.) १२३८४८. (+) शांतिजिन छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, १३४३९). शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय नमुं सिरनाम; अंति: मनवंछित शिवसुख पावे, गाथा-२२. १२३८४९. पद्मजिन, कुंथुजिन व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. पं. रंगविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में "रूपकलातश्चप्रगटकर" ऐसा उल्लिखित है, जो संभवतः वर्षवाची शब्द है किन्तु अस्पष्ट है., जैदे., (२६४११, १२४३९). १. पे. नाम, पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पद्म जिनेसर पद्मलंछन; अंति: ग्रह्या पद्मविजय पद्मनाम, गाथा-५. २. पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रात दिवस नित सांभरो रे; अंति: पद्मने मंगल माल लाल, गाथा-७. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, गु., पद्य, आदि: चरम जीणंद चोवीशमो शा; अंति: भवभवनां दुख जाय, गाथा-५. १२३८५० (+) वासुपूज्यजिन स्तवन व रोहिणीतप स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४४४). १. पे. नाम. रोहिणि स्तोत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. वासुपूज्यजिन स्तवन-रोहिणीतपगर्भित, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: प्रभावइ पूजिसइ सवि मनरली, गाथा-२४, (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. रोहिणीतप स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जयरोहिणि वल्लहवयण देव; अंति: पवरा देविभत्ति, गाथा-४. ३. पे. नाम. रोहिणीतप सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. वासुपूज्यजिन स्तवन-रोहिणीतपगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: पणमिय परमाणंदु ए श्रीवासु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) १२३८५१ (+) संबोधिसित्तरी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, प.४, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४४०). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९१ अपूर्ण तक १२३८५४. (+) बृहत्संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १८०५, चैत्र कृष्ण, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. १५, ले.स्थल. मरोटकोट, प्रले. मु. गौडीदास ऋषि; अन्य. ग. लक्ष्मीविनय वाचक (गुरु ग. अभयमाणिक्य वाचक); गुपि. ग. अभयमाणिक्य वाचक (गुरु ग. हेमहर्षजी); ग. हेमहर्षजी (गुरु ग. विशालकीर्तिजी); ग. विशालकीर्तिजी, प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (१२२६) जलं रक्षे थलं रक्षे, जैदे., (२५.५४११, १०४३१). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३५४. For Private and Personal Use Only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२३८५५. (+) वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६ १०.५, १२X३५). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिहं; अंति: शिखाई वषट् स्वाहा. १२३८५७ (+) गौतमपुच्छा चौपाई व मुंहपत्ति के पचास बोल, संपूर्ण, वि. १६७४ फाल्गुन शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. पंडित. जीवविजय; गुपि. भट्टा. विजयतिलकसूरि; पठ. मु. कर्मसिंघ ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६५११, ११५४८). १. पे. नाम, गौतमपृच्छा चौपाई, पृ. १अ ६अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवे; अंति: लावण्यसमय० हियडइ वसु, गाथा-११३. २. पे. नाम. मुहपत्ति बोल, पृ. ६आ, संपूर्ण. मुहपत्ति पडिलेहण ५० बोल, रा., गद्य, आदि: पहली १ दृष्टि पडिलेहण; अंति: शरीरनी पडिलेहण विचार. १२३८५८ (+) सम्यक्त्वरहस्य स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. २- १ (१) १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जै.. (२६X११.५, १३x४०). सम्यक्त्वपंचविंशतिका, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: होउ सम्मत्त संपत्ती, गाथा-२५, संपूर्ण. १२३८५९ (०) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १५२-१५० (१ से १५०) -२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. हुंडी ०प.ट.. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२६५११.५, ६५३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थविरावली सूत्र- ४० अपूर्ण से सूत्र- ४५ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र - टवार्थ ", मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-). १२३८६०. भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ४६-४५ (१ से ४५ ) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. जैदे. (२६४११, १४४४८). पुहिं., पद्य, आदि: चतुरंग रस की बात; अंति धाकित कित्ती कडा धाधा, गाथा ४. २. पे नाम. मुक्तिरमणी पद, पृ. १अ संपूर्ण. ४५५ भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक-११ उद्देशक-११ अपूर्ण मात्र है.) १२३८६२ (०) पद संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५x११, ११४३५)१. पे नाम, साधारणजिन पद, पू. १अ. संपूर्ण. मु. . चेनविजय, पुहिं., पद्य, आदि: कांई देसडे पधारो जी जहां; अंति: रमण चित धारो जी, गाथा-३. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि राजरी बधाई वाजे छे अति सेवा प्यारी लागे छे, गाथा-३, ४. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. יי आध्यात्मिक पद-सुमतिकुमति, पुहिं, पद्य, आदि अरि मैं कैसे मनावुं री, अंतिः हिल मिल सोरठ गावे री, गाथा-३. ५. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि मति जावोजी पिया गिरनार मै अंति: मगन भए संजम भार मे, गावा- ३. १२३८६३. उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. २६-२५ (१ से २५) = १. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.. जैदे., (२५X११, ५X३३). For Private and Personal Use Only उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि (-); अति (-), (पू.वि. अध्ययन-९ गाथा ५२ अपूर्ण से ६३ अपूर्ण "1 तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: (-). *, १२३८६५ (+) विक्रमादित्य नवसय कन्यानी चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. २६. प्र. वि. संशोधित. दे. (२५.५४११, " १२X४०). विक्रमादित्य चौपाई, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: पुरिसादाणी प्रणमीइं; अंति: तेहने सा हुइ कल्याण, ढाल - २७, गाथा-५८५. Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२३८६६. (+) बृहत्संग्रहणी व मोहनीयकर्म मूलभेद विचार, अपूर्ण, वि. १६७९, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, शनिवार, मध्यम, पृ. ३०-१(१)=२९, कुल पे. २, ले.स्थल. वाघसूर्य, प्रले. मु. गदाजी ऋषि (गुरु मु. झांझण ऋषि); मु. झांझण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पंचपाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ३०००, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११, ६-८४३३-४७). १.पे. नाम. बहत्संग्रहणी सह बालावबोध, पृ. २अ-३०आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३५९, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: बोल प्रसंग थकी जाणवा ३५८, (वि. अंतिमवाक्य भाग देवभद्रसूरि कृत टीका की पुष्पिका है.) २. पे. नाम. मोहनीयकर्म मूलभेद विचार, पृ. ३०आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: दर्शनमोहनीना त्रिणि भेद; अंति: इहां घणा छइ ते जाणवा सही. १२३८६७. अर्जनमनि चौढालिया व कार्तिकशेठ पंचढालिया, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२४४११, १७४५०). १. पे. नाम. अर्जनमाली मनि चौढालिया, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. अर्जुनमालीमुनि चौढालिया, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: गया वरता छै जय जयकार हो, ढाल-४, (पू.वि. ढाल-४ ___गाथा-२ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. कार्तिकशेठ पंचढालियो, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:कातक. कार्तिकसेठ पंचढालिया, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहन्त सिद्ध साधु; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-११ अपूर्ण तक है.) १२३८६८. (#) औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १५४३६). औपदेशिक सज्झाय क्षमा, पुहिं., पद्य, आदि: खिमा करो भवियण खरी जंपै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण तक १२३८६९ (+#) पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १३४३८). १. पे. नाम. फलवर्धिकापुरपति पार्श्वजिन लघुस्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धिकापुर, उपा. समयराज, मा.गु., पद्य, आदि: आज मनोरथ सवि फल्या दीठा; अंति: सेवीयइ समयराज सुखकारो रे, गाथा-९. २.पे. नाम. पार्श्वजिन लघुस्तवन-जैसलमेरमंडण विनतीमय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. सखलाभ, मा.ग., पद्य, आदि: जेसलगिरिमंडण सुखकर सामी; अंति: मझ बोलइ सखलाभ, गाथा-८. १२३८७० (+) इष्टतिथ्यादि सारिणी व पंचांग साधन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२५.५४११.५, १७४५१). १. पे. नाम. इष्टतिथ्यादि सारिणी, पृ. १अ, संपूर्ण. इष्टतिथ्यादिसारणीनिर्माण विधि, मु. लक्ष्मीचंद्र, सं., पद्य, वि. १७६०, आदि: श्रीवामेयं नमस्कृत्य; अंति: शोधनीयाश्च धीधनैः. २.पे. नाम, पंचांग साधन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पंचांगसाधन, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम जिण दिनरो पंचा; अंति: क्रवारे घटि ५४ पल ५८. १२३८७१ (+) चउदहगुणठाणा बत्रीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १०x४२). १४ गुणस्थानक सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिणवर पय वंदीय मन; अंति: श्रीपासचंद सुख लहइ, गाथा-३२. For Private and Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ४५७ १२३८७२. (+) आदिनाथ स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १७७९, श्रावण अधिकमास शुक्ल, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(२)=९, प्रले. ग. गुणसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११,७४२०-२३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण से ८ अपूर्ण तक नहीं है.) १२३८७५. (#) स्थानांगसूत्र का टीकानुसारी बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९७-१९६(१ से १९६)=१, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, ३४४३). स्थानांगसूत्र-अभयदेवीय टीकानुसारी बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंतिः श्रीप्रवचन देवी नई, (पू.वि. मात्र बालावबोध का अंतिम पाठांश है.) १२३८७६. वंदित्तुसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १४४४१). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-३० अपूर्ण तक है.) १२३८७७. (#) सविधिजिन स्तवन, औपदेशिक गाथा व पच्चक्खाण पारणा गाथादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३१). १. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ अप., पद्य, आदि: जय सुविधि जिणेसर गुण; अंति: जयजय जगदानंदपर, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: सावज्जण वज्जाणं भासाणं; अंति: किमंग पुण देसणं काउं, गाथा-१. ३. पे. नाम. पच्चक्खाण पारणक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-हिस्सा पच्चक्खाण पारणक गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (१)फासुयं एसणिज्जं च जं, (२)फासियं पालियं चेव; अंति: तस्स मिच्छामि दुक्कडं, गाथा-२. ४. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मा.गु., पद्य, आदि: दुल्लह नरभव पामिय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) १२३८७९ (#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९०-१३(१ से ३,१६ से १८,२१ से २२,४४,८५ से ८६,८८ से ८९)=७७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:कल्पटबु., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ७X५०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. महावीरजिन चरित्र सूत्र-८ अपूर्ण से स्थविरावली पाठ-"अज्जसमइ एहिंतोइ गोयमगुत्ते" तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र-टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).. १२३८८१ (#) महावीरजिन स्तुति व २४ जिन स्तुतिद्वय, अपूर्ण, वि. १८२०, माघ कृष्ण, ५, रविवार, जीर्ण, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, ले.स्थल. करवाड, प्रले. सा. सीता (गुरु सा. इंदा); सा. इंदा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०.५, १४४५४). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. . राज, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: राज० रे लाल समर नामी, गाथा-६, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. २४ जिन स्तति, प. २अ, संपूर्ण. म. मक्तिचंद्र पंडित-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: हो मन समरि तूं जिन चोवीस; अंति: मंडित श्रीमुकतिचंद० चउवीस, गाथा-६. ३. पे. नाम. २४ जिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति-वर्णगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भजनां होय मुकति सुखनी डोर, गाथा-५. १२३८८२. (+) गौतमपृच्छा सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १६x४३). For Private and Personal Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४८ तक है.) गौतमपृच्छा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंति: (-). १२३८८३. (+) सप्तनय संक्षिप्तस्वरुप विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४४३). सप्तनय संक्षिप्तस्वरूप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अनंत धर्मात्मक वस्तु; अंति: तावइया चेव हुंति नायवा. १२३८८४. (+) आदिजिन स्तवन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११, ४४४८). आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, उपा. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विजयतिलक निरंजणो, गाथा-२१, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: छइ जिहां एहवउ शासन द्यउ. १२३८८५. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९५-१९४(१ से १९४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११, ६४४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. समाचारी सूत्र-५९ अपूर्ण से सूत्र-६४ अपूर्ण तक कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).. १२३८८८.(+) पाक्षिकसूत्र, श्रुतदेवी स्तुति व क्षामणकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०, कुल पे. ३, पठ. सा. ज्ञानश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ९x४४). १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-१९अ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: मिच्छामि दक्कडं. २. पे. नाम. श्रुतदेवी स्तुति, पृ. १९अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सुअदेविया भगवई; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ती, गाथा-१. ३. पे. नाम. क्षामणकसूत्र, पृ. १९अ-२०अ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो० पिय; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. १२३८९० (#) जंबूस्वामी स्वाध्याय व तेरकाठिया सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४३४). १. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरी वसे ऋषभदत्त; अंति: तास तणा गुण गाया रे, गाथा-१४. २.पे. नाम. तेरकाठिया सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. १३ काठिया सज्झाय, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगौतम गणधार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) । १२३८९१ (+) नवकार महामंत्र का बालावबोध व औपदेशिक गाथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-१(१)=१३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४३७-४४). १.पे. नाम. नवकारमंत्र का बालावबोध, पृ. २अ-१४अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १७७९, भाद्रपद कृष्ण, २, रविवार, ले.स्थल. अणहल्लपत्तन, प्रले. पं. रुपचंद्र पंडित; पठ. श्रावि. वीरबाई, प्र.ले.प. सामान्य. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सुश्रावक सुश्राविका, (पू.वि. अरिहंतगुण वर्णन अपूर्ण से २.पे. नाम, औपदेशिक गाथासंग्रह, पृ. १४अ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: करकंडुकलंगेसु पंचालेश; अंति: आसाढे निट्ठिआ सव्वे, गाथा-४. १२३८९४. (+) स्तवनचौवीसी व वीस विहरमान स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, माघ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, ले.स्थल. जेसलमेर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १८४४९). For Private and Personal Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ४५९ १. पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण, वि. १८५८, माघ शुक्ल, ७, पे.वि. हुंडी:चौवी. मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: आनंदघन प्रभु जागै जी, स्तवन-२४. २. पे. नाम. वीस विहरमान स्तुतिवीसी, पृ. ६अ-११अ, संपूर्ण, वि. १८५८, माघ शुक्ल, १३, पे.वि. हुंडी:वीसी. २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधर जिनवर; अंति: परम महोदय युक्ति रे, स्तवन-२०. १२३८९५. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-४(११ से १४)=२१,प्र.वि. हुंडी:उत्तराष्ट०., जैदे., (२५४११,६४३२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-२ गाथा-४५ तक व अध्ययन-४ गाथा-१३ अपूर्ण से अध्ययन-८ गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., वि. अध्ययन-४ गाथा-१३ अपूर्ण मात्र का टबार्थ है.) १२३८९६. (+#) धर्मोपदेश श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७४३८). धर्मोपदेश श्लोकसंग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदिः श्रेष्ठे संग श्रुतौ रंगः; अंति: अयं बंधट्ठिईप्पमाणं, श्लोक-९०. १२३८९७. पार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-३(१ से ३)=३, जैदे., (२६४११, ११४४०). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. रूप, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४८ अपूर्ण से है व गाथा-९७ अपूर्ण तक लिखा है.) १२३९००. पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, ११४४७). पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वः पातु वो; अंति: प्राप्नोति स श्रियम्, श्लोक-३३. १२३९०२ (+) साधगणमाला, अपूर्ण, वि. १९५७, कार्तिक कृष्ण, ३०, सोमवार, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, ले. प्रले. प्यारेलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:साधुगुणमाला., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२५.५४११, १५४४१). साधगुणमाला, श्राव. हरजसराय जैन, पुहिं., पद्य, वि. १८६४, आदि: (-); अंति: गाया नाथजी आस पूरे, गाथा-१२५, (पू.वि. गाथा-११ से है.) १२३९०३. (+) संग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १६२२, ?, कार्तिक शुक्ल, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. १५-९(१ से ९)-६, प्र.वि. हुंडी:संग्रहणीसूत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १३४५१). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२८१, (पू.वि. गाथा-१३७ __ अपूर्ण से है.) १२३९०४. (+#) समयसार नाटक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४४-६(५,८,१९,२६,२८,४१)=३८, प्र.वि. हुंडी:समयसारनाटक., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४६०). समयसार-आत्मख्याति टीका के हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन; अंति: नाममइ परमारथ विरतंत, अधिकार-१३, गाथा-७१४, ग्रं. १७०७, (पू.वि. गाथा-६४ अपूर्ण से ७५ अपूर्ण, १०० अपूर्ण से ११० अपूर्ण, २४७ अपूर्ण से २६९ तक, ३३२ अपूर्ण से ३४७ अपूर्ण, ३६८ अपूर्ण से ३८७ अपूर्ण व ६२१ अपूर्ण से ६४७ अपूर्ण तक नहीं है.) १२३९०७. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६१-७(१२ से १६,२३,२७)=५४, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:कल्प०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-३५४ अपूर्ण से ३५९ अपूर्ण तक, ५०८ अपूर्ण से ५१३ अपूर्ण तक व समाचारीसूत्र ५९ अपूर्ण के बाद के तथा बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) १२३९०८. (+) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३-२(१,५)=११, पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११,११४४३). For Private and Personal Use Only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से गाथा-७१ अपूर्ण व गाथा-९१ अपूर्ण से गाथा-२६५ अपूर्ण तक है.) १२३९१० (+) गौतमपृच्छा सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११, १५४४८). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४४ तक है.) गौतमपृच्छा-बालावबोध+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थनाथ महावीर नमस्करी; अंति: (-). १२३९११. (+) गजसुकुमालमुनि चौपाई, संपूर्ण, वि. १८६०, आश्विन शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले.स्थल. पोहकरण, प्रले. मु. अजबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ९०१, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३७). गजसुकुमालमुनि चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६९९, आदि: नेमीसर जिनवरतणा चरण; अंति: जिणवर चरण नमी छे, ढाल-३०, गाथा-५६८, ग्रं. ९०१. १२३९१२. सरस्वती स्तोत्र, गुरुपाद विचार व ज्योतिष श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. जीतसागर (गुरु ग. दीपसागर); गुपि. ग. दीपसागर (गुरु मु. हितसागर, तपा.सागरशाखा), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११.५, १०४४४). १.पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी षोडशनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमस्ते शारदादेवी; अंति: निःशेष जाड्यापहा, श्लोक-१२. २. पे. नाम. गुरुपाद विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. संख्यावाचीशब्द श्लोक, सं., पद्य, आदि: अब्जं बाणं नंद रूप्यं धन; अंति: सूर्य वेद लोहस्यहानी, श्लोक-१. ३. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: ताराबलादिंदुर/दुवीर्या; अंति: भवंति शता अपि सुप्रशस्ता, श्लोक-१. १२३९१५. सुरप्रियसाधु रास व सुकोशलमुनि चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. वि. सं. १६६२ चैत्र वदि ६ बुध को लिखी गई प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., जैदे., (२६४११, १५४५०). १. पे. नाम. सुरप्रियसाधु रास, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. म. लक्ष्मीरत्नसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति देवि सदा मनि; अंति: निज दोसते निश्चल भवजल तरइ, गाथा-६८. २. पे. नाम. सुकोशलमुनि चौपाई, पृ. ३अ-५आ, संपूर्ण. मु. देवराज, मा.गु., पद्य, आदि: सहि गुरूवयणे सांभली; अंति: देवराज प्रणमइ पाय, ढाल-६, गाथा-५६. १२३९१९ (#) मांगलिक व जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४११.५, १२४५३). १. पे. नाम. मांगलिक श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: वांछादान विधानकल्प; अंति: जिनवरा कुर्वंतु वो मंगलं, श्लोक-१०. २. पे. नाम, जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९ अपूर्ण तक है.) १२३९२० (+) श्रीचंदराजा चरित्र, संपूर्ण, वि. १९१०, वैशाख कृष्ण, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६३, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. मु. रणधीर (गुरु पं. मलूकचंदजी); गुपि. पं. मलूकचंदजी (गुरु मु. गोपालदास); मु. गोपालदास (गुरु मु. दोलतराम); मु. दोलतराम (गुरु मु. महताब ऋषि); मु. महताब ऋषि (गुरु मु. भवानीदास ऋषि); मु. भवानीदास ऋषि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:चंदचरित्र चोपई. खंडो के अंत में प्रसंग सूचि दी है., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११, १७४६७). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: वर्णव्या गुणचंदना, उल्लास-४ ढाल १०७, गाथा-२६७९. १२३९२१. सनत्कुमारचक्रवर्ती कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६-१५(१ से १५)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११, १३४४४). सणंकुमार कहा, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., गद्य, वि. ११२९, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. "०सुविहिसा सुद्ध" पाठ से "सव्वालंकार वि" पाठ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ४६१ १२३९२२. (+) खंडाजोयण द्वार विचार व पद्मावती आलोयणा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, पठ. सा. रुपाजी (गुरु सा. अमराजी); गुपि.सा. अमराजी (गुरु सा. अमेदांजी आर्या); सा. अमेदांजी आर्या (गुरु सा. चंदजी आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:खंडाजोयण., संशोधित., जैदे., (२५४११, १९४४८). १. पे. नाम. खंडाजोयण द्वारविचार, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप लाख योजननो छे; अंति: ८० हजार ४ सय ५० नदी छइ. २. पे. नाम, पद्मावती आलोयणा, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पद्मावती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) १२३९२३. (+#) मानवभव दस दृष्टांत व औपदेशिक गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १६९३, आश्विन शुक्ल, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. ७-१(३)=६, कुल पे. २, पठ. मु. भानुकीर्ति ऋषि (गुरु मु. कान्हकीर्ति ऋषि); प्रले. मु. कान्हकीर्ति ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४८). १.पे. नाम. मानवभव दस दृष्टांत, पृ. १अ-७आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. मानवभव १० दृष्टांत, आ. विनयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कंपिलपुरि ब्रह्म नरे; अंति: वसस्यइ सुख वासइ, कुल-१०, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से १२ अपूर्ण तक नहीं है.) २.पे. नाम, औपदेशिक गाथा, पृ.७आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दीध वाधि हे हीया खाध; अंति: ते धन निश्चल थाए, गाथा-१. १२३९२५ (+) पंचपरमेष्ठि गुण वर्णन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, २२४३८-६३). पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन गाथा, प्रा.,सं., पद्य, आदि: बारसगुण अरिहंता सिद्धा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हिवइ मंगलीकतणी शास्त्रनइ; अंति: (-). १२३९२९. देवलोक विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६-२५(१ से २५)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११,१६४३८). देवलोक विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "सातम देवलोक आठमो ए त्रणि घनोदधि" पाठ से __ "भवधारणिज्ज" पाठ अपूर्ण तक है.) १२३९३०. चौवीस दंडक गतिआगतिगर्भित स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४१). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुपासनाह प्रहि; अंति: प्रसादे परमारथ लहै, गाथा-२३. १२३९३१ (+) योगशास्त्र-१ से २ प्रकाश, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४४५). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दर्वाररागादि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १२३९३२. (+) ५६० अजीव भेद व ६४ इंद्र नाम, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, १४४५१). १.पे. नाम. ५६० अजीव भेद विचार, पृ. १३अ-१३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: ५६० अजीव भेद कह्या, (पू.वि. अरुपी अजीव भेद अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चौंसठ इंद्र के नाम, पृ. १३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ६४ इंद्र नाम, मा.गु., गद्य, आदि: असुरकुमारादि भुवनपति; अंति: (-), (पू.वि. ८ व्यंतर के १६ इंद्र में से ५ इंद्र तक है.) १२३९३४. (#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०६-२०५(१ से २०५)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:ज्ञाता., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, ६४४७). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ सूत्र-१६९ के बीच का पाठ है.) For Private and Personal Use Only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२३९३५. (#) पार्श्वजिन स्तवनद्वय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १५४५३). १. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनरंगसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुझनइ परतउ ताहरउ रे लोइ; अंति: दिन दउलत थाइ रे शंखेसर, गाथा-८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. जिनरंगसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर पूजीयइ होजी; अंति: जिनरंगसूरि० दिन दउलति थाइ, गाथा-५. १२३९३६. (#) स्नात्रपूजा विधि सहित, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-२(१ से २)=३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१०.५, ११४३५). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: देवचंद० सूत्र मझार, ढाल-८, गाथा-६४, (पू.वि. ढाल-४ गाथा-८ अपूर्ण से है.) १२३९३८. भलेबावनी, अपूर्ण, वि. १८२४, वैशाख कृष्ण, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, जैदे., (२४.५४११, १६x४३). औपदेशिकबावनी-भलाई, म. खेतल कवि, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: (-); अंति: खेतल०लही जोडि पुसतक लिखि, गाथा-६४, (पू.वि. गाथा-५४ अपूर्ण से है.) १२३९३९. (+) प्रश्नोत्तररत्नमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, ६४३७). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: कंठगता किं न भूषयति, श्लोक-२९. प्रश्नोत्तररत्नमाला-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: जिनवरेद्र वीतरागने प्रणाम; अंति: पंडित हईनई कंठपाठि करयो. १२३९४७. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११,११४४९). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. १२३९४८. (+) उपदेशसत्तरी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:उतपति., संशोधित., दे., (२४.५४११, १९४४२). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उत्पति जोज्यो आपणी; अंति: कह्यो नाही झुठ लिगार, गाथा-७३. १२३९४९ (+) सिंदरप्रकरणादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-२(१ से २)=२०, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४४११, ५४३८). १. पे. नाम. सिंदूरप्रकर सह टबार्थ, पृ. ३अ-२२अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००, (पू.वि. श्लोक-१० अपूर्ण से है.) सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मुनीश्व० मानवा योग्य. २. पे. नाम. बारहपर्षदा स्तुति, पृ. २२अ, संपूर्ण. १२ पर्षदा स्तति, सं., पद्य, आदि: आग्नेयां गणभृद्विमान; अंति: संभूषितं पातु वः, श्लोक-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोकसंग्रह, पृ. २२अ, संपूर्ण... व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दानं दारिद्रनाशाय शीलं; अंति: धुर्तेजगढुंच्यते, गाथा-६. ४. पे. नाम. दस कल्पवृक्ष नाम गाथा-गाथा २, पृ. २२अ, संपूर्ण. १० कल्पवृक्षनाम गाथा, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: कप्पदुम० दसविहा दंति, प्रतिपूर्ण. १२३९५०. (#) गुणकरंडकगुणावली चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हंडी:चोपाई., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, १२४३१). गुणावलि चौपाई, ग. गजकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-१३ अपूर्ण से ___ढाल-५ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) १२३९५२. रात्रिसंथारा गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११, १३४३६). For Private and Personal Use Only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ४६३ राईसंथारासूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निस्सही २ नमो खमासमण; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-२२. १२३९५४. (+#) द्रोपदीसती चौपाई, संपूर्ण, वि. १७९८, मध्यम, पृ. ४०+१(१७)=४१, अन्य. श्रावि. प्रेमाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४४१). द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: पुरिसादाणी पासजिण; अंति: ए चोपाई सुणता लील विलास, ढाल-३९, गाथा-१११७, ग्रं. १७००. १२३९५७. (+) गौतमपच्छा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, १३४४३). गौतमपृच्छा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन गौतम वीरने पूछि; अंति: मुझ साधु जिन काजो रे, गाथा-२२. १२३९५८. जंबूस्वामी लावणी व स्तुतिस्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे.७, दे., (२०.५४१०.५, १४४४१). १. पे. नाम. जंबूस्वामी लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५८, आदि: करीज जंबू अतहि सरसाई परणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१९ तक लिखा है.) २. पे. नाम. अणगारगुणवंदन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: पापपंथ परिहरे मोक्षप; अंति: वंदणा हमारा हे, गाथा-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया-साधु, पुहिं., पद्य, आदि: करमे पात पात घात को; अंति: पिछानीये केसी करीयै आस, गाथा-१. ४. पे. नाम. प्राकृत गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह जैन*, प्रा., पद्य, आदि: जसंतीए धमपयाइ सीखे; अंति: तया विमुक्खो गुरु हीलणाए. ५. पे. नाम. साधुस्तुति सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: ग्यान को उजागर सेहज सुख; अंति: करे करजोडि वणारसी वंदण, पद-२. ६. पे. नाम. आत्मस्वरूप सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जो अपनी दति आप विराजत हे; अंति: ताहि विलोकन मे सिवगामी, गाथा-१. ७. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. म. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: सिद्धारथ कुलदीपक चंद; अंति: मया पोचाजो मुझ भवजल तीर, गाथा-९. १२३९५९ (+#) कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५४११, ११४३३). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, प्रा.,सं., प+ग., आदि: पुरिमचरिमाणकप्पो; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., कल्प-७ का वर्णन अपूर्ण तक है.) १२३९६१ (+) कल्पसूत्र का बालावबोध-व्याख्यान ७ आदिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १९-१(११)=१८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४५२). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. आदिनाथ चरित्र के बीच का पाठांश नहीं है., वि. अन्तरावली सहित.) १२३९६२. जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तारमान विचार, चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि व चक्रवर्ति ऋद्धि विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३५-३४(१ से ३४)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १७४४५). १. पे. नाम. जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तारमान विचार, पृ. ३५अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप लाख जोजिन छइ; अंति: देवजस ३ अजितवीर्य. २. पे. नाम. चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण, पे.वि. देववंदन संक्षेप विधि ३५अ पर हांसिये में भी दी गई है. For Private and Personal Use Only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम ईरीयावहि पडकमावीयइ; अंति: पछइ एकवार नवकार गुणीयइ. ३. पे. नाम. चक्रवर्ति ऋद्धि विचार, पृ. ३५आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नव निधान ८४ लक्ष नीसाण; अंति: परिगतं बांधनं चाद्रिशृंगे, (वि. अंत में चक्रवर्ती की ऋद्धिसंशा परक श्लोक दिया है.) १२३९६४ (#) नैषध चरित्र की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११५-११३(१ से ११२,११४)=२, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, २९४८४). नैषध चरित्र-टीका, उपा. रत्नचंद्र, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-२१ श्लोक-१२२ की टीका अपूर्ण से श्लोक-१४३ की टीका अपूर्ण व श्लोक-१६२ की टीका अपूर्ण से सर्ग-२२ श्लोक-२७ की टीका अपूर्ण तक है., वि. मूल का संकेत पाठ दिया है.) १२३९६८. (+) भगवतीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३१, प्र.वि. हुंडी:भगवतीट., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, ११४२७). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहताणं० सव्व; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., शतक-२ उद्देशक-१ अपूर्ण स्कंधक द्वारा महावीर उपदेश स्वीकार प्रसंग तक लिखा है.) भगवतीसूत्र-टबार्थ, उपा. पद्मसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १८पू, आदिः (१)श्रेयः श्रीसेवितां, (२)अरिहंतनइं माहरो नमस्कार; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. यत्र-तत्र टबार्थ व बालावबोध लिखा है.) १२३९७०. रत्नपालरत्नावती रासादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४४, कार्तिक शुक्ल, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. २७, कुल पे. ४, ले.स्थल. भावरी, गुभा. मु. डुंगरविजय; प्रले. पं. बुधिविजय (गुरु पं. भक्तिविजय); गुपि. पं. भक्तिविजय (गुरु पं. धनविजय); पं. धनविजय; पठ. मु. अजितविजय (गुरु पं. धनविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीवासुपूज्यजी प्रसादात्., प्र.ले.श्लो. (१८३) पोथी और पद्मनी, दे., (२५४११, १७४४५). १.पे. नाम. रत्नपालरत्नावती रास, पृ. १अ-२६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:रत्नपाल रास. रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: श्रीऋषभादिक जिन नमुं; अंति: वो जयजयकार रे, खंड-३, गाथा-७७४, (वि. ढाल-३२.) २. पे. नाम. गुरुचेला कवित्त, पृ. २६आ, संपूर्ण. मा.ग., पद्य, आदि: मोटो मोति मोल कम; अंति: हेतु चतुर सुजाण, गाथा-१५. ३. पे. नाम. औपदेशिक गाथासंग्रह, पृ. २७आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नैन अठारे सीस नव षट् चरण; अंति: (१)हंस मध्ये बको यथा, (२)समझ समझ पछताय, गाथा-४, (वि. अंत में भी औपदेशिक दोहा-१ अलग से है.) ४. पे. नाम. गंगकवि पद, प. २७आ, संपूर्ण. गंग, पुहिं., पद्य, आदि: गंगा तुरंग प्रवाह वसे तब; अंति: मूढ को संग कियो न कियो, गाथा-१. १२३९७२ (+) बासठ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. २, प्र.वि. संशोधित-खडा लेखन-संशोधित.,दे., (२४.५४१०.५, ३७५२४). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: जीव१ गइ२ इंदि३ काय४; अंति: (-). १२३९७४. (+) रामपुराण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७, प्र.वि. हुंडी:रामपु:., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४११, १६४३१-४४). रामपुराण, मु. सोमसेन, सं., पद्य, आदि: वंदेहं सुव्रतं देवं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक द्वारा पूर्णता अध्याय ५ तक लिखा है.) १२३९७६. भगवतीसूत्र बोलसंग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., दे., (२५.५४१२, १८४४०-४६). भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जाव वेळेवत सीवं भंते, (पू.वि. मनुष्य सरीर बोल अपूर्ण से है.) १२३९७७. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५४११.५, १०४३०). For Private and Personal Use Only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ४६५ साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चउवीस; अंति: मन आणंदे संथुआ, ढाल-७, गाथा-८८. १२३९७८. (+) साधारणजिन स्तव व कारक विभक्ति विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.१, कुल पे. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत., जैदे., (२५४११, ११४३३). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तव, पृ.१अ-१आ, संपूर्ण. आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाः प्रभो यं; अंति: भावं जयानंदमय प्रदेयाः, श्लोक-९. २. पे. नाम. कारकविभक्ति विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कर्लोक्ति १ कः कर्त्ता; अंति: कर्ता एकवचनमेव नास्ति. १२३९८० (+) इक्षुकुमारकलावती छढालिया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. जालोर, प्रले. भभूतराम व्यास; पठ. सा. भूतांजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:इक्षुकम०., संशोधित. कुल ग्रं. १५०, दे., (२१४११, १३४४१). इक्षकुमारकलावती षड्ढालिया, मु. माल, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: चोवीसे जिनवर नमुं; अंति: माल मुनि गुण गाय, ढाल-६, ग्रं.१५०. १२३९८१. (+) व्याख्यान श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५४११.५, १२४३३). व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सुकुलजन्मविभूतिरनेकधा; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-११ तक लिखा है.) १२३९८२. अजितशांति स्तव, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४१०, ११४३८). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से गाथा-२४ अपूर्ण १२३९८४. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व कल्पलता टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. द्विपाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १७४४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र नमस्कार महामंत्र पाठ है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पीठिका अपूर्ण से नमस्कारमंत्र व्याख्या अपूर्ण तक है.) १२३९८५. आलोयणा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४११, १६४३३). __ आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: अहं भंते अपछिमा मारणनी; अंति: फरसणा करु तिवारे सूध. १२३९८६. (+#) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७१४, मध्यम, पृ. ३६, ले.स्थल, महिसाणा, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं.६५०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ५४३४). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: नंदउ जा जिणमयं लोए, गाथा-३०७, (वि. १७१४, कार्तिक शुक्ल, ५) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमी वांदीने अरित अरिहंत; अंति: लोकमांहि० करज्यो, (वि. १७१४, कार्तिक कृष्ण, ३, शनिवार) १२३९९०. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.५४-५३(१ से ५३)=१,प्र.वि. कुल ग्रं. १८००, जैदे., (२४४११,१२४४४). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: लहस्यइ ज्ञान विशालाजी, खंड-४, गाथा-१८२५, ग्रं. १८००, (पू.वि. कलश की गाथा-१ अपूर्ण से है., वि. ढाल-४१.) १२३९९१. आषाढभूति चौपाई, संपूर्ण, वि. १७५१, फाल्गुन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. सिद्धपुरनगर, प्रले. मु. मनजी ऋषि; पठ. सा. प्रेमबाई आर्या (गुरु सा. मोतीबाई आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १४४४२). For Private and Personal Use Only Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंति: न्यायसागर०कल्याणो रे, ढाल-१६, गाथा-२२४, ग्रं. ३५१. १२३९९२. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२७-२२६(१ से २२६)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:जंबूद्विप., जैदे., (२४.५४११, ६x४५). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वक्षस्कार-६ सूत्र-२४९ अपूर्ण मात्र है.) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२३९९३. (+#) २४ दंडक जीव अल्पबहुत्व, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १७४३८). २४ दंडक जीव अल्पबहुत्व, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. लेश्या वर्णन अपूर्ण से संयोगी भांगा वर्णन अपूर्ण तक है.) १२३९९४. बावीस परिसह दृष्टांत कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., दे., (२४.५४११, १६४४४). २२ परिषह दृष्टांत कथा, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. दृष्टांत कथा -१२ से १३ अपूर्ण तक है.) १२३९९५. शालिभद्रमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-२४(१ से २४)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११, १३४४६). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२७ गाथा-६ अपूर्ण से ढाल-२८ गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) १२३९९७. (#) प्रियमेलक चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८-६(१ से २,४ से ७)=२, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४१). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-७ अपूर्ण से ढाल-४ गाथा-११ अपूर्ण तक व ढाल-९ के दूहा-१ अपूर्ण से गाथा-२२ अपूर्ण तक १२४००० (+) कुंडरीकपुंडरीक चौढालिया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. जालोर, प्रले. भभूतराम व्यास; पठ. सा. भूतांजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कु०पु०चो., संशोधित. कुल ग्रं. ९०, दे., (२४.५४१०.५, १३४४५). कुंडरीकपुंडरीक चौढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: तेणे काले तेणे समे नगरि; अंति: कहे जी आगम वयण प्रमाण, ढाल-४. १२४००१. कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५२-५१(१ से ५१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४.५४११, १७X४९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान-५ प्रारंभिक पाठ महावीरजिन ___ जन्मोत्सव प्रसंगे देवागमन सूत्र से सिद्धार्थ राजा द्वारा जन्मोत्सव हेतु पूर्व तैयारी आदेश अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-सबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, वि. १६९६, आदि: (-); अंति: (-). १२४००२. मानतंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १८११, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, रविवार, मध्यम, पृ. ३४-३१(१ से ३१)=३, ले.स्थल. अणहलनगर, प्रले. मु. लब्धिसागर (गुरु पं. हर्षसागर गणि); गुपि.पं. हर्षसागर गणि (गुरु ग. नायकसागर); ग. नायकसागर; राज्यकालरा. मोहकमसिंह राठौड, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२४४११, १५४४२). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, म. मोहनविजय, मा.ग., पद्य, वि. १७६०, आदिः (-); अंति: मोहनविजय० घरि मंगलमाल हे, ढाल-४७, गाथा-१०१५, (पू.वि. ढाल-४४ गाथा-४ अपूर्ण से है.) १२४००४.(+) ५ कल्याणक मंगल स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, ९४३७). ५ कल्याणक मंगल स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पणववि पंच परम गुरु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) १२४००५. देववंदणा विधि व चैत्रीपनिम देवांदणा विधि, संपूर्ण, वि. १८६९, आश्विन शुक्ल, २, बुधवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. पं. हिमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १५४४५). For Private and Personal Use Only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ ४६७ १.पे. नाम. देववंदणा विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. देववंदन विधि, प्रा.,मा.ग., गद्य, आदि: प्रथम इरियावहि पडिक्कमिनै; अंति: पुनः जयनं जयति शासनं. २. पे. नाम. चैत्रीपूनिम देववांदणा विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चैत्रीपर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., आदि: प्रथम चौकौ दिरावीजै पछै; अंति: पछै इच्छाई प्रवर्त्तवः. १२४००६. रामविनोद वैद्यक ग्रंथसारोद्धार व औषध संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०-४९(१ से ४९)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., जैदे., (२१.५४१०.५, १६x४९). १.पे. नाम. रामविनोद वैद्यक ग्रंथसारोद्धार, पृ. ५०अ-५०आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. ___रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: (-); अंति: रामविनोद विनोदसु, समुद्देश-७, गाथा-१६१७, ग्रं. ३३२५, (पू.वि. समुद्देश-७ नाडीपरीक्षा वर्णन गाथा-४० अपूर्ण से है.) २.पे. नाम, औषध संग्रह, पृ. ५०आ, संपूर्ण. औषध संग्रह', मा.गु., गद्य, आदि: खीपरो रस पईसा४ भर दूणौ; अंति: दिन-४ अथवा ७ मूधोरो जाय. १२४००७. नमस्कार महामंत्र पद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. खडा लेखन., जैदे., (२५४११, ३८x१६). नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे अयाण; अंति: वल्लभसूरि० देज्यो नित्त, गाथा-२६, (वि. गाथा भेद है.) १२४०१०. चतुःशरण प्रकीर्णक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पठ. मु. नगा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशीतलनाथजी प्रसादा०., जैदे., (२३.५४११, १३४३६). चतःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदिः (-); अंति: कारण निव्वई सहाणं, गाथा-६२, (पू.वि. गाथा-४२ अपूर्ण से है.) १२४०१२ (+) जंबूस्वामी स्वाध्याय व शेव्रुजगिरि गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ११-१३४४०). १. पे. नाम. जंबूस्वामी स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. वगडीनगर, प्रले. मु. उदयहर्ष; लिख. ग. कनककुशल, प्र.ले.पु. सामान्य. जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक नरवय राजीओ मगधदेश; अंति: संजम लीओ पहता मोक्ष दुवार, गाथा-१६. २. पे. नाम. शेजगिरि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: हेजा लू मन माहरो रे लाल; अंति: न्यानसमुद्र निसतार रे, गाथा-५. १२४०१३. रहनेमि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४११, १०४२८). रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग ध्याने मुनि रहनेम; अंति: रूपविजय० देह रे, गाथा-८. १२४०१४ (+) वर्षप्रबोध, अपर्ण, वि. १७४४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, रविवार, मध्यम, पृ. ८५-६(३ से ५,१२,१५,७२)=७९, प्रले. लाला; पठ. ग. भीमविजय गणि (गुरु पंन्या. धर्मविजय गणि); गुपि. पंन्या. धर्मविजय गणि; अन्य. पं. मुक्तिविजय गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:वर्षप्रबोध., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १६x४८). वर्षप्रबोध, उपा. मेघविजय, सं., पद्य, वि. १७३२, आदि: श्रीतीर्थनाथवृषभं; अंति: हिताद्बालस्य पालनात्, अध्याय-१३, श्लोक-३५००, (पृ.वि. मेघ मालाकार वर्णन श्लोक-४२ अपूर्ण से शुक्रास्तगण देश वर्षज्ञान श्लोक-५ अपूर्ण तक व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) १२४०१७. (+#) चतुःशरण प्रकरण व २० स्थानकतप आलापक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, ४४३८). १. पे. नाम. चतुःशरण प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-११आ, संपूर्ण, वि. १६९७, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, १०, पे.वि. हंडी:चउं.सूत्र. अंत में प्राकृत की १ गाथा लिखी है. कुल ग्रं. २७५ For Private and Personal Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई, अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (१) ग्रंथनी आदिमंगलीक करीई, (२) सावद्य कहीई पाप तेणइ: अंति: एह थकी मोक्षना सुख पामीई, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम, २० स्थानकतप आलापक, पृ. १९आ, संपूर्ण, प्रले. ग. रससागर, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. अंत में रोहिणी आदि तप विधि से संबंधित १ गाथा लिखी है. प्रा., गद्य, आदि अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंतिः नित्वारग पारगा होह (वि. अंत में "एवं पंचमीरोहिणीकल्याणकाद्यपराण्यपि तपांसि भवंति ऐसा उल्लिखित है ) १२४०१८. (+) अर्जुनमालीसाधु चउपई, संपूर्ण, वि. १८७७, श्रावण शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. संशोधित. कुल ग्रं. २७५, जैदे., (२५x११, १४४३६) अर्जुनमाली रास, मु. विद्याविलास, मा.गु, पद्य वि. १७३८, आदि अलख अगोचर अगम गति अकल; अंति विद्याविलास० मनहि जगीस, ढाल १२, गाथा २०२. १२४०१९. (+) प्रजनकुंवर की लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३. ले. स्थल, जोधपुर, प्रले. बालाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी:प्रजनकु०.ला, प्रजनकुंवर, प्रज०. लावणी., संशोधित., दे., ( २४ ११, १५x५०). प्रद्युम्नकुंवर लावणी, मु. खूबचंद ऋषि, पुहिं, पद्य वि. १९६४ आदि वांचो पूरण प्रेमसुं कर्तु अति: नंदलाल गुरु बताया जी, गाथा - २२. १२४०२०. पार्श्वनाथजीरी निसाणी, संपूर्ण, वि. १८५२, चैत्र शुक्ल, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. सोजत, प्रले. सहजराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी : पावनी ०., जैदे., ( २४.५X१०.५, १५X३५). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपतिदायक सुरनरनायक; अंति: गुण जिनहरष गावंदा है, गाथा-२७. १२४०२९. महावीर स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४ (१ से ४) १, जैये. (२६४११.५, ९२९) " जैदे., (२५.५X११, १७५५). १. पे. नाम बोल संग्रह, पू. १अ, संपूर्ण, महावीरजिन स्तवन- छड्डाआरा परिचयगर्भित, आव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि (-); अतिः सेवक सकल जनमन रंजणो, ढाल-५, गाथा - ६१, (पू.वि. गाथा - ५१ अपूर्ण से है.) १२४०२२. (*) बोल संग्रह व ३६३ पाखंडीना भेद, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., बोल संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (वि. दिशानुक्रम से जीवबोल कोष्टक दिया गया है.) २. पे. नाम ३६३ पाखंडीना भेद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ३६३ पाखंडीभेद विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: १८० क्रियावादीना मति सघली; अंति: ३२ विनयवादी मत जाणिव १२४०२३. (*) रिषभदेव धवलप्रबंध, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १६ प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. ४००, जैदे. (२६.५X११.५, , " ११५३६). आदिजिन विवाहलो, मु. गुणनिधानसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि शासनादेवीअ पाय पणमेवीअ मझ; अति बोलेइ सेवक इम मुदा, ढाल - ४४, १२४०२५. प्रव्रज्या विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६X११.५, १७X३५). गाथा - २४५. दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: पुच्छा१ वासे२ चिई३; अंति: (-), (पू.वि. साधु योगक्रिया वर्णन "सुत्तेणं अत्थेणं० भए जोगं करि पाठ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४ प्रश्नोत्तर-यक्षयधिष्ठिर संवाद, सं., श्लो. ४, पद्य, वै., (क: मुद्यते किमाश्चर्य), १२३५४४-३(२) (२) ४ प्रश्नोत्तर-यक्षयुधिष्ठिर संवाद-टबार्थ, मा.गु., गद्य, वै., (लोकमाहे प्रमोदित सुं), १२३५४४-३(-) ५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (बारस गुण अरिहंता), १२२३५२-४, १२३४८२-१ ५ मांडलीदोष विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (ग्रासैषणाना पांच दोष), १२३७२४-३(+) ६ आरा विचार, सं., गद्य, मपू., (सुसमसुसम प्रथमारके), १२०५९२-१ ७ नय विचार, मु. पार्श्वचंद्र, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूप., (से किं तं सत्त मूलनया), १२१६३९-३ ८ कर्मप्रकृति ११द्वार विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (पन्नवणा पद २३ मि बीजे), १२२६५२(+) ८ जीवभेद नाम, प्रा., गद्य, मूपू., (अंडया१ पोउआ२ जराउआ३), प्रतहीन. (२)८ जीवभेद नाम-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अंडजा कहता अंड थकी उपना), १२१३४५-२ ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., ढा. ८, गा. ६६, वि. १७२४, पद्य, मपू., (गंगा मागध क्षीरनिधि औषध), १२१६३८(#) ८ प्रकारी पूजा श्लोक, मु. देवचंद्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मपू., (विमलकेवलभासनभास्कर), १२११८५-२(#) ९ नियाणा स्वरूप विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (कश्चित्साधुसाध्वी वा), १२३२४२-२ १० आश्चर्य वर्णन, प्रा.,मा.गु.,सं., ग्रं. ११३, प+ग., मूपू., (उवसग्ग १ गब्भहरणं २), १२३२८३(+#$) १० कल्पवृक्षनाम गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (तेसिमत्तंग १ भिंगा २), १२३९४९-४(+) १० पच्चक्खाण के आगार, प्रा., गद्य, मूपू., (नमोक्कारसी अन्नत्थणा), १२२३२८-१ १० मत स्वरूप, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (वीरात् ६०९ वर्षे शिवभूति), १२२९४९-१(#) १० लक्षण उद्यापनमंडलपूजा विधि, पहि.,सं., वि. १८८०, प+ग., दि., (विमल सगुन समृद्धि), १२०३३६(+), १२०८६१(+) ११ उपदेश बोल, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मप., (१ विधवादोपदेस २), १२३२०६-२(+) ११ गणधर देववंदन, प्रा.,मा.गु., स्त. ११, गा. ११२, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर गोयम गणहर), १२३२६३-१(#) ११ गणधर स्तुति, प्रा., स्तु. ११, गा. ४४, पद्य, मूपू., (पुहविवसुभूइतणयं वंदे), १२३२६३-२(#) १२ तपभेद विवरण, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (अणसण उमोयरिया), १२३८४७(5) १२ पर्षदा स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (आग्नेयां गणभृद्विमान), १२३९४९-२(+) १२ व्रतउच्चारण विधि, प्रा.,सं., गद्य, मपू., (सम्यक्त्वदंड भणंति), १२२२१९-१४(+#) १२ व्रत नाम-श्रावक, सं., श्लो. १, पद्य, म्पू., (प्राणातिपातं मृषावाद), १२१८२५-२ १४ गुणस्थानक स्थिति गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (अविरय सासणमिच्छा परभविया), १२२२१९-३३(+#) १४ पूर्व नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (१ श्रीउत्पादपूर्व), १२०९८४-२ १४ पूर्व नाम आराधना विधि, मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (श्रीउत्पाद प्रवाद), १२०८५६-१, १२०९८४-१ १४ पूर्व विचार, मा.गु.,सं., गद्य, मप., (प्रथम उत्पादपूर्व तत्र), १२३२६०-२२(+) १४ रत्ननाम श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (लक्ष्मी कौस्तुभ), १२१५६१-५ १४ श्रावकनियम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, म्पू., (सचित्त दव्व विगई वाहण), १२०२३५-२(#) १४ श्रावकभेद श्लोक, सं., पद्य, मूपू., (मृत् चालनी महिष हंस), १२२६५८-२(+) १५ तिथि जिनकल्याणक गणण विचार, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (१ने दिवसे श्रीकुंथुनाथ), १२०९६९-१ १५ सिद्धभेद उदाहरण गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मप., (जिणसिद्धा अरिहंता), १२३०२४-२(+) १६ तिथि तप आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (अहन्नं भंते तुम्हाणं), १२०६२६-५(+) १६ सती स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ब्राह्मी चंदनबालिका), १२२२२१-२ परिशिष्ट परिचय हेतु देखें खंड ७, पृष्ठ ४५४ For Private and Personal Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ १८ नातरा श्लोक, सं., श्लो. ३, पद्य, मपू., (भ्रातासितनुर्जन्मासि), १२१९८०-३(+#) (२) १८ नातरा श्लोक-टीका, सं., गद्य, मूपू., (भ्राता एकमातृकत्वात्), १२१९८०-३(+#) १८ हजार शीलांगरथ, प्रा.,मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (जे नो करंति मणसा), १२०७२९-२(#) २० विहरमानजिन स्तव, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (द्वीपेत्र सीमंधरमतं नमामि), १२०७४१-९(+) २० स्थानकतप आलापक, प्रा., गद्य, मपू., (अहन्नं भंते तुम्हाणं), १२०६२६-३(+), १२४०१७-२(+#) २० स्थानकतप उच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मप., (प्रथम इरियावहि पडिकम), १२२२१९-८(+#) २० स्थानकतप जापकाउसग्ग संख्या, प्रा., गद्य, मप., (नमो अरिहंताणं २०००), १२२००७ २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (१ नमो अरिहंताणं २०००), १२३८३६(+), १२०९३७, १२०१९८-१(#) २० स्थानकतप विधि, मा.गु.,सं., गद्य, म्पू., (तिहां प्रथम थानकै), १२०५४०(+) २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, म्पू., (प्रथम नालिकेरादि), १२१३६३-१(६) २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.ग.,सं., गद्य, मप., (श्रीदंयदर्हत्पदवीदवी), १२३६०८-२(#) २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., गा. ६६, पद्य, मपू., (चवण विमाणा नयरी जणया), १२३७३७-१(६) (२) २१ स्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चोवीस तीर्थंकरना २१), १२३७३७-१(६) २३ द्वार विचार-गणनिसरणा, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (भक्त पच्चक्खाण करणहार), १२२६९७ २४ जिन कल्याणकदिन विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., को., मूपू., (कार्तिकवदि ५ नाणंस), १२३२८२(६) २४ जिन मंत्र-जाप होमादि विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (ॐ ह्रीं श्रीं), १२०९७४-२(+) २४ जिन स्तवन, प्रा., गा. २७, पद्य, म्पू., (पढमो नरेसराणं पढमो), १२०५०७-१(+#) २४ जिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नाभेयाजितवासुपूज्यसुविधि), १२३५८६-११(+), १२३५८६-१२(+) २४ जिन स्तुति, अप., गा. २, पद्य, म्पू., (भरहेसरकारिय देव हरे), १२१८५१-१७(+) २४ जिन स्तोत्र-भवगर्भित, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (आदौ सार्धपतिर्धनो मिथनकः), १२२०८७-१(#) २४ जिनांतर काल, सं., श्लो.८, पद्य, मप., (पंचाशतासागरकोटिलक्षैः), १२२२१९-१९(+#) २४ दंडक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (रुचितरुचि महामणि स्वर्ण), १२१८५१-१९(+$), १२३५८६-१०(+) २४ स्थंडिल मांडला विधि, प्रा., गद्य, मपू., (आघाडे आसन्ने उच्चारे), १२२२१९-१२(+#), १२०३६०-१, १२१९२४-१, १२१८९५-१(२) २४ स्थानक प्रकरण, प्रा., गा. ३६, पद्य, श्वे., (गइ इंदिय च काए जोए), प्रतहीन. (२) २४ स्थानक प्रकरण-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, म्पू., (गइ इंदिय काए), १२०६२४(+), १२२०८३(+) २८ लब्धि नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (आमोसहीलद्धीणं १ विप), १२२४०३-१ २८ लब्धिविचार गाथा, प्रा., गा. ८, पद्य, मपू., (आमोसहि१ विप्पोसहि२), १२३७२४-५(+) २८ लब्धिविचार गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मप., (आमोसहि विप्पोसहि), १२३२६०-२०(+) (२) २८ लब्धिविचार गाथा-टबार्थ, मा.ग., गद्य, मप., (जेहनै सरीरने फरस से), १२३२६०-२०(+) २९ भावना प्रकरण, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (संसारम्मि असारे), १२०७५५-१(+#) (२) २९ भावना प्रकरण-टबार्थ, सं., गद्य, मूपू., (संसार किदृशे नास्ति), १२०७५५-१(+#) ३४ अतिशय नाम, सं., गद्य, मूपू., (तत्र प्रथमं चतुरः), १२१६६६-३(+$), १२२०८९-२(+) ३६ बोल थोकडो, प्रा.,मा.गु., बो. ३६, गद्य, श्वे., (पेले बोले भाव६ नाम अनुजोग), १२२०४६(+) ४२ गोचरी दोष गाथा, प्रा., गा. ६, पद्य, मप., (अहाकम्मु १ देसिअ २), १२२७६६(+#), १२३७२४-१(+$), १२१७९६-२ (२) ४२ गोचरी दोष गाथा-बालावबोध, मा.ग., गद्य, मप., (आधाकर्मी ते कहीई), १२२७६६(+#) (२) ४२ गोचरी दोष गाथा-हिस्सा १६ पिंडोद्गम दोष गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूप., (आहाकम्मुद्देसिय पूईकम्मे), १२३१७७-१ (३) ४२ गोचरी दोष गाथा-हिस्सा १६ पिंडोद्गम दोष गाथा बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), १२३१७७-१(६) ४५ आगमतप गणगुं, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम श्रीनंदीसूत्र), १२१३४०, १२०९६९-३ ४७ आहारदोष गाथा-आधाकर्मी, प्रा., गा. ६, पद्य, मप., (आहाकम्म १ देसिय २), १२१००२(#s), १२२०७२(#) For Private and Personal Use Only Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ ४७१ (२) ४७ आहारदोष गाथा-आधाकर्मी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (आह० आधाकर्मि ते कहीइ), १२१००२(#) (२) ४७ आहारदोष गाथा आधाकर्मी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (यतिने काजे रांधीने), १२२०७२(#$) ६२ मार्गणाद्वार विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (नमिउं अरिहंताई बोले), १२१०७५(+), १२२४१०, १२११९०(#) ६४ योगिनी स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (ॐ दिव्ययोगी महायोगी), १२२३५८-२(#) ७२ स्वप्न विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (इत्थि वा पुरिसो वा), १२०५२५ ८४ आराधना बोल, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (प्रथम इरियावही), १२१७५२ ३६३ पाखंडीभेद विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (एकसौ असी क्रियावादीना मत), १२४०२२-२(+) अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ९२, ग्रं. ८९९, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० चंपा०), १२२७७६(+$), १२३१५३(+), १२३५१३(+), १२२१३४($) (२) अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (अंतगड शब्दस्य कः), १२३१५३(+), १२३५१३(+), १२२१३४($) (२) अंतकृद्दशांगसूत्र-तप यंत्र, संबद्ध, मा.गु., यं., मूपू., (--), १२२०१५(३) (२) अंतकृद्दशांगसूत्र-संबद्ध श्रेणिकराजा की १० रानियों का तपवर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (पेली काली दुजी सुकाली), १२१७३० अकलंकाष्टक स्तोत्र, आ. अकलंकदेव, सं., श्लो. १६, पद्य, दि., (त्रैलोक्यं सकलं), प्रतहीन. (२) अकलंकाष्टक स्तोत्र-पद्यानुवाद, पुहिं., गा. १६, पद्य, दि., (--), १२१९६१-१(#$) अक्षयतृतीयापर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखदातार), १२०६६० अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., ग्रं. ७०, गद्य, मप., (प्रणिपत्य प्रभु), १२१८०९-११(+) अक्षरचिंतामणि, शिव, सं., पद्य, वै., इतर, (प्रणम्य सारदां देवीं), १२३८२३-२(+) । अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मप., (अजियं जियसव्वभयं संतिं च),१२११४७-३(+$), १२१८८७(+), १२२७१३(+#s), १२२७२८(+#S), १२२८६७(+#), १२३१९०-१(+#), १२२१२४-१(#), १२३९८२($) (२) अजितशांति स्तव-अवचरि*, सं., गद्य, मप., (नत्वा चिदानंदमयं जिनेशं०), १२२७१३(+#) (२) अजितशांति स्तवन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (अजिअं अजितनाथ किसउ), १२३२२४ (२) अजितशांति स्तव-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (अजियं क० अजितनाथ बीजो), १२२१२४-१(#) अजितशांति स्तवलघु-अंचलगच्छीय, क. वीर गणि, प्रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (गब्भ अवयार सोहम्मसुरसामिओ), १२२५३७(+) (२) अजितशांति स्तवलघु-अंचलगच्छीय-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (गर्भावतारे सौधर्मसुर०), १२२५३७(+) अढीद्वीप १७० उत्कृष्टजिन नाम, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीजयदेवनाथाय), १२०८५६-५, १२१९२८, १२०७२३-१(#) अतीतअनागतवर्तमान २४ जिन नाम, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अथ जंबूद्वीपे दक्षिण०), १२०६९४-१ अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ३३, ग्रं. १९२, प+ग., मप., (तेणं कालेणं० नवमस्स), १२०४९४(+), १२०८९१(+), १२१११७(+), १२२१५०(+), १२३४८५(+), १२३५२९(+) (२) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते काल चउथा आराने विषे), १२०४९४(+), १२०८९१(+), १२१११७(+), १२२१५०(+), १२३४८५(+) अनयोगद्वारसूत्र, आ. आर्यरक्षितसरि, प्रा., प्रक. ३८, ग्रं. २०८५, प+ग., मप., (नाणं पंचविहं पण्णत्तं०), १२१००५(+), १२०३१७, १२२५९५(६) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-शिष्यहिता टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), १२३००९(+#S) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-अवचूरि*, सं., गद्य, मूपू., (जिनवचनेहिं आचारांगादि), १२२६३६ (२) अनुयोगद्वारसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अनुयोगद्वारसूत्रनो अर्थ), १२१००५(+) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ना० ज्ञान पंच प्रकारे), १२१००५(+), १२२५९५(६) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-(प्रा.,मा.गु.)त्रिविध आगम आलापक, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (आगमे तिविहे पण्णते), १२२४३४ (२) अनुयोगद्वारसूत्र-२१ बोल अधिकार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलै बोलै नय ७ दुजै बोलै), १२१५५५(5) अनेकार्थध्वनिमंजरी, सं., अधि. ३, श्लो. २१९, पद्य, स्पू., इतर, (शुद्धवर्णमनेकार्थं), १२२५८६(+) For Private and Personal Use Only Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ३२, वि. १२वी, पद्य, मप., (अनंतविज्ञानमतीतदोषमबाध्य०), १२३३९०-२(+#) अपराजितवास्तुशास्त्र, विश्वकर्मा, सं., पद्य, जै., वै., इतर, (--), प्रतहीन. (२) अपराजितवास्तुशास्त्रगत जिनमूर्तिश्लोक, हिस्सा, विश्वकर्मा, सं., श्लो. ३५, पद्य, जै., वै., इतर, (सुमेरुशिखरं दृष्ट्वा गौरी), १२३७५१-१(#) अभक्ष्यानंतकाय गाथा, प्रा., गा. ७, पद्य, मपू., (सव्वावि कंदजाई सूरणकंदो अ), १२३६३६(#S) (२) अभक्ष्यानंतकाय गाथा-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (सर्वापि कंदजातिरनंतकायिका), १२३६३६(#$) अभयकुमारमंत्रि कथा, सं., गद्य, मूपू., (कृते प्रति कृतं कुर्यात्), १२२०८९-६(+) अभयदान दृष्टांत कथा, सं., श्लो. ९१, पद्य, मप., (नातो भयस्तरो धर्म), १२२३०९ अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., कां. ६, ग्रं. १४५२, वि. १३वी, पद्य, मप., इतर, (प्रणिपत्यार्हतः सिद्ध०), १२१५४७(+$), १२२७२४(+$), १२३२१८(+#s), १२३५०९(+#$), १२३७६६(+), १२२५०८(#$), १२१२०७(5) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-व्युत्पत्तिरत्नाकर टीका, पंडित. देवसागर गणि, सं., गद्य, मप., इतर, (श्रेयः संततिसिंधुवृद्धि०), १२२५०८(#$) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवति, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., वि. १२१६, गद्य, मूपू., इतर, (धर्मतीर्थकृतां वाचां), १२२७२४(+$), १२३५०९(+#$) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-बालावबोध+बीजक, पं. देवविमल गणि, मा.ग., गद्य, मप., इतर, (हेमाचार्य नाममाला), १२०७३८() (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-हिस्सा ३५ जिनवाणी गुण, सं., गद्य, मपू., इतर, (संस्कारवत्त्वं संस्कृतादि), १२२०८९-१(+$) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-हिस्सा ३५ जिनवाणीगुण वर्णन, मा.गु.,सं., अंक. ३५, गद्य, मूपू., इतर, (संस्कारत्वं संस्कृत), १२१३४७-२(+), १२३५३६-५(#$) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-अनेकार्थ संग्रह, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., कां. ७, श्लो. १९३१, वि. १३वी, पद्य, मपू., इतर, (ध्यात्वार्हतः कृतैकार्थ०), १२३४०३(+#$) (३) अभिधानचिंतामणि नाममाला-अनेकार्थ संग्रह की कैरवाकरकौमुदी टीका, आ. महेंद्रसूरि, सं., ग्रं. १४०००, गद्य, मूपू., इतर, (परमात्मानमानम्य), १२३४०३(+#$) अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ३२, वि. १२वी, पद्य, मप., (अगम्यमध्यात्मविदामवाच्य), १२३३९०-१(+#) (२) अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका-अवचूरि, सं., गद्य, मप., (ह्येषा वाग्गोचरातीतं), १२३३९०-१(+#) अरिहंतजाप गणणु, सं., गद्य, मूपू., (अनंतज्ञानगुणधारकाय नमः), १२०९६९-७ अरिहंतपद चैत्यवंदन, प्रा.,मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (उपन्नसन्नाण महोमयाणं), १२०७५९-१ अर्हदादि शब्दसिद्धि, प्रा.,सं., गद्य, मप., (नन् परब्रह्म कथं ज्ञायते), १२२२७२(#) अर्हन्नीति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अधि. ४, श्लो. ५१, वि. ११वी-१२वी, पद्य, मपू., (श्रीमंतं नाभिजं वंदे), १२१०८०(+) अष्टाध्यायी, ऋ. पाणिनि, सं., अ. ८, गद्य, वै., इतर, (अइउण ऋलुक एओङ), प्रतहीन. (२) अष्टाध्यायी-धातुपाठ, संबद्ध, ऋ. पाणिनि, सं., गद्य, वै., इतर, (भू सत्तायाम् उदात्तः), १२०४४८-२(+$) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८६०, गद्य, मपू., (शांतीशं शांतिकर्तारं), १२०४२२(+#$), १२१८०९-२(+), १२२०६७(+#$), १२०४७६ (२) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (अज्ञानतिमिरांधान), १२०४२०(+#$) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, म्पू., (शांतीशं शांतिकर्तारं), १२०६५७(+) अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, आ. भद्रबाहुस्वामी, मा.गु.,सं., पद्य, मपू., (नत्वा श्रीपार्श्वसर्वज्ञ), १२२८९३-१(+) आगम योगोद्वहन आलापक, प्रा., गद्य, मपू., (अहन्नं भंते तुम्हाणं), १२०६२६-४(+) For Private and Personal Use Only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० आगमिक गाथा संग्रह - नारी परिहार, प्रा., गा. ११, पद्य, मूपू (जहा कुकड पोयस्स निच्च) १२०४०८-८५ला आगमिकपाठ संग्रह, प्रा., सं., प+ग, मूपू., (कप्पइ निम्गंथाण वा), १२१६६४-१ (+) आगमिक पाठ संग्रह-विविध विषयक, प्रा., प+ग., मूपू., (जे भिक्खू वा भिखूणी), १२०४०८-१२ (+), १२०४०८-१११(+) आगमों में जिनप्रतिमा के आलापक, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं), १२१६८४ आचारदिनकर, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., उद. ४०, प+ग., मूपू., (तत्त्वज्ञानमयो लोके), प्रतहीन. (२) आचारदिनकर हिस्सा शांतिकमहापूजन विधि, आ. वर्द्धमानसूरि, मा.गु. सं., प+ग, मूपू ( तिहां प्रथम शुभदिने), १२१५६९(+४) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ', " आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. अध्य. २५ . २६४४ प+ग, मूपू (सुर्य मे आउ० इहमेगे), १२१६९०), १२२८५१(+०६), १२३०२९(+), १२३४५३(+) १२३२४२-३, १२१७८९ (४७) १२३२१२-१(०), १२१७९६-१(5) 1 (२) आचारांगसूत्र-निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गा. ३४६, पद्य, मूपू, वंदितु सव्वसिद्धे), प्रतहीन. (३) आचारांगसूत्र-निर्मुक्ति का हिस्सा तीर्थमहिमा गाथा, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गा. ३, पद्य, म्पू., (अट्ठावयमुज्जिते गयग्गपयए), १२३१७७-३ (२) आचारांगसूत्र-टीका#, आ. शीलांकाचार्य, सं., श्रु. २, ग्रं. १२०००, वि. ९१८, गद्य, मूपू., (जयति समस्तवस्तु), १२३२१२-१०) (२) आचारांगसूत्र-प्रदीपिका टीका, गच्छा. जिनहंससूरि, सं. ग्रं. १५०० वि. १५७३, गद्य, मृपू., (शासनाधीश्वरं नत्वा), १२३०२१(०३) १२३७१४(*) (२) आचारांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनाधीशं), १२१६९०(+) (२) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागने नमस्कार), १२२८५१ (+#$), १२३०२९ (+#), १२३४५३(+#$), १२१७८९ (#$), १२१७९६-१($) आचारोपदेश, उपा. चारित्रसुंदर, सं. वर्ग. ६ . २४६, वि. १५वी, पद्य, म्पू.. (चिदानंदस्वरूपाय), १२०६२५ (+) ', (२) आचारोपदेश-टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (ज्ञान अने आनंद तेहज), १२०६२५) . आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ७१, वि. ११वी, प+ग, मूपू. (देसिक्कदेसविरओ), १२११३० आत्मावबोध वचनिका, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (ते गुरु गृणाति वदति), १२०५८३(+$) आदिजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (सुवर्णवर्णं गजराजगामिनं), १२१४८१-३ १२३५८६-१४(+) आदिजिन स्तव, आ. सोमसुंदरसूरि से, श्लो. २५, पद्य, म्पू. (ॐकारः सकलत्रिलोककमला) १२०५०७४/क्त) आदिजिन स्तव-देउलामंडन, ग. शुभसुंदर, प्रा., सं., गा. २५, पद्य, मूपू., (जय सुरअसुरनरिंदविंद), १२०८०८(+) (२) आदिजिन स्तव- देउलामंडन (मा.गु. + सं .) अवचूरि, ग. चंद्रधर्म, मा.गु., सं., गद्य, मूपू. (किवदनुभूतमंत्रयंत्र) १२०८०८(+) आदिजिन स्तवन, उपा. पुण्यसागर, अप, गा. २६, पद्य, मूपू (सवल जग जीव सुहकार परमेसर), १२२९८३ (५) आदिजिन स्तवन, विक्रमसिंघ, मा.गु. सं., गा. ४, वि. १७२१, पद्य, म्पू. (प्रथम आदिजिनंद बंदत), १२३६४७-२ आदिजिन स्तवन, अप, पद्य, मूपू (सरसति सुललितवाणि आणि), १२३५८६-१९ (+) "" आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, मृपू, (जय त्वं जगदानंद जय), १२०९३५-२ आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपु (त्रिभुवनजनतातं स्फीत), १२३५८६-१३(०) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो १, पद्य, भूपू (सुवर्णवर्ण गजराज), १२३३०१-८ (+), १२३६४३-३ () आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (वरमुत्तियहार सुतारगुणं), १२१८५१-११ (+), १२१८५१-१६(+), , " आदिजिन स्तुति-चतुर्थीतिथिपर्व, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू. (उद्यत्सारं शोभागार), १२३०८१-२०(+), १२०९५३ आदिजिन स्तोत्र, मु. चंद्रकीर्ति, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (नमो ज्योतिमूर्तित्रिकालं), १२१४२८(+) आदिजिन स्तोत्र शत्रुंजयतीर्थमंडन, सं., श्लो. १९, पद्य, म्पू. (श्रीमंतं परमेश्वरं जिनवर), १२०५०७-५ (+) आदिजिन स्तोत्र-सारसोपारक, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू.. (जयानंदलक्ष्मीलसद्वल्लीकंद), १२०७४१-२ (+) आनंदलहरी, शंकराचार्य, सं., श्लो. २०, पद्य, वै. ( भवानि स्तोतुं त्वां) १२०५५१-२(०) " For Private and Personal Use Only ४७३ Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ आयुष्यविचार गाथा, अप., गा. ५, पद्य, मूपू., (मणुआण वीसोत्तरसयं), १२०१७७-५(+#), १२१५२६-२(+), १२२१७०-२(+) (२) आयुष्य विचार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनुष्यवर्ष १२० गजवर्ष १००), १२१५२६-२(+), १२२१७०-२(+) आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसरि, सं., विम.५, श्लो. ४१३, ग्रं. ४६०, वि. १३वी, पद्य, मप., इतर, (ॐ नमः सकलारंभसिद्धिः), १२२१४५(+#$) (२) आरंभसिद्धि-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., इतर, (पूज्यानां पूज्याय), १२२१४५(+#$) आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., अधि. १९, सू. २२८, वि. १०वी, पद्य, दि., (गुणानां विस्तरं वक्ष्ये), १२१४१७ आलोयणा, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (एक प्रकार को असंजम), १२२४३२(+$) आवलिकादिकालमान विचार, सं., गद्य, मप., (२५६ आवलि १ वर्ग मूले), १२३६४०-२ आवश्यकसूत्र, प्रा., अध्य. ६, सू.१०५, प+ग., मूपू., (णमो अरहंताणं० सव्व), १२२८०९(+#$), १२२८३०(+$), १२३००४(+$), १२३५०२(+#) (२) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २५५०, ग्रं. ३१००, पद्य, मूपू., (आभिणिबोहियनाणं), १२३५०२(+#S), १२२३६४-१, १२०४५३(5) (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., गा. २५३, पद्य, मूपू., (अवरविदेहे गामस्स), १२३५०२(+#$) (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिता टीका#, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं. २२०००, गद्य, मपू., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), १२१५१०(+#s), १२३५०२(+#$) (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की अवचूर्णि#, ग. धीरसुंदर, सं., वि. १५वी, गद्य, मूपू., (परमेष्ठिनः प्रणिदधत), १२३०९५(६) (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का हिस्सा सामायिकअध्ययन नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, मूपू., (आभिणिबोहियनाणं सुयनाणं), प्रतहीन. (४) विशेषावश्यकभाष्य, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अध्य. प्रथम, गा. ३६०३, पद्य, मपू., (कयपवयणप्पणामो वोच्छं), प्रतहीन. (५) गणधरवाद, हिस्सा, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. ४७६, पद्य, मप., (जीवे तुह संदेहो पच्च), १२३४७४(+#$) (६) गणधरवाद-टीका, सं., गद्य, म्पू., (--), १२३४७४(+#$) (२) आवश्यकसूत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मप., (महात्मानी सात वार), १२२८३०(+$) (२) आवश्यकसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो० नमस्कार होवउ), १२२८०९(+#$), १२३००४(+$) (२) आवश्यकसूत्र-कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (भरतक्षेत्रि पोतनपुरन), १२२८३०(+) (२) आवश्यकसूत्र-हिस्सा पच्चक्खाण पारणक गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (फासियं पालियं चेव), १२३८७७-३(#), १२२२७४-५(-६) (२) आवश्यकसूत्र-हिस्सा प्रतिक्रमण स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, पू., (कमलदल विपुल नयना), १२१००६-२ (२) आवश्यकसूत्र-हिस्सा वंदनकअध्ययन, प्रा., सू. ०१, गद्य, मपू., (इच्छामि खमासमणो वंदिउं०), १२१५९३-३ (२) चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, प्रा.,सं., प+ग., मपू., (नमो अरिहंताणं नमो), प्रतहीन. (३) चैत्यवंदनसूत्र-ललितविस्तरा वृत्ति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं. १५४५, गद्य, पू., (प्रणम्य भुवनालोकं), १२२६०४(+) (३) चैत्यवंदनसूत्र-विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (इछामि खमासमणो कही), १२२२२१-१(६) (२) शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (नमुत्थुणं अरिहंताणं), १२२८४३(+$) (३) शक्रस्तव-बालावबोध, मु. गुणविनय, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रणिपात दंडकवर व्याख्या), १२२८४३(+$) (२)६ आवश्यक विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (चार आवश्यक थया कर्म), १२०८६८(६) (२) अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूप., (आजुणा चौपहुर दिवसमाह), १२२७९७-१(+$) (२) आवश्यकसूत्र-प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावही पडिकमी), १२०३६०-२ (२) आवश्यकसूत्र-साधु प्रतिक्रमणसूत्र श्वे. तेरापंथी, संबद्ध, प्रा., प+ग., मूपू., ते., (आवस्सई इच्छाकारेण), १२०८२०-१(+S) (३) आवश्यकसूत्र-साधु प्रतिक्रमणसूत्र श्वे. तेरापंथी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ते., (तुम्हे आदे शाद्यो अहो), १२०८२०-१(+$) (२) आवश्यकसूत्र-सामायिक लेने व पारने की विधि, संबद्ध, गु.,प्रा.,मा.गु., गद्य, मूप., (अथ सामायक लेवानी), १२०३२०-१(+-#) For Private and Personal Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ ४७५ (२) कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (कल्लाणकंदं पढमं जिणिंद), १२१२५९-३(+$), १२२२४९-३(+), १२३०८१-१(+) (२) देवसिप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (इच्छामि खमासमणो वंदिङ), १२३१३६-१(+), १२२४७१(२) (२) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं), १२०३२०-२(+-#), १२१५९७(+), १२२५२८(+$), १२०३५६(s), १२१९४३($) (३) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतप्रति माहरु नमस्कार), १२०३५६($) (२) पंचप्रतिक्रमण विधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, म्पू., (इच्छामि० इरियावहि०), १२०७३०(+$), १२१४४४ (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मप., (णमो अरिहंताणं० जयउ), १२१८५१-१(+$), १२३१६१-१(+$), १२३४४५(+#), १२१५२२(#s), १२२९१२-२(#$) (३) श्रावकअतिचार-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (नाणंमि दंसणम्मिअ), १२१३६४-२($) (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (नमो अरिहंताणं), १२११६६(+$), १२१२०४(+S), १२०९७१-१(s), १२१६९९(६), १२३६११(६) (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-बालावबोध', मा.गु., गद्य, मूप., (हवे पंचपरमेष्टी महामंत्र), १२१६९९(5) (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (श्रीमद्वामेयमानम्य), १२११६६(+$) (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय राइप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधि, संबद्ध, प्रा., पद्य, मूपू., (कुसमणदुसमणं राइय सोलस), १२१४८३(+) (३) पौषधपारणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गा. ३, प+ग., मूपू., (सागरचंदो कामो), १२२५२०-२ (३) मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन्हजिणाणं आणं मिच्छ), १२२८९१-२(+), १२०३६०-४ (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., पू., (मुहपत्तिवंदणयं), १२१००६-१ (२) पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, पुहि.,प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (देवसिय आलो० इच्छाकार), १२२४७०(+#), १२२९५१-१(#) (२) पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (देवसी अर्धनु वंदेतु), १२२८५२(#$), १२२८७२(#S) (२) पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (स्नातस्याप्रतिमस्य), १२२२४९-४(+), १२३०८१-७(+), १२३१५५(+#), १२०८५०-२, १२३६४६-१(#), १२११२८-३(#) (३) पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, स्पू., (स्नान कराव्यु छे), १२३१५५(+#) (२) पौषध विधि , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावहि पडिकमिई), १२०३६०-३, १२१८०१-२६, १२१८३७ (२) पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही पडिक्कमी), १२१८६५-२(+), १२२४१५-३(+), १२३१७८-१(+), १२०८३७(#), १२१८७४(#$) । (२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूप., (इरियावहि चार नवकारनो), १२१५१७ (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, पू., (देवसिय आलोइय पडिक्कं), १२२७५८(+) (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूप., (कर पडिकमणुं भावशू), १२३४२८-२(#) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), १२२०४२($) (२) प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (उग्गए सूरे नमुक्कारसहिअं), १२०६७८(२), १२१९३२-१(+), १२२१०२-१(+#$), १२२२१९-६(+#), १२२७९७-२(+), १२३८३१-१(+), १२३६३५, १२२४९७, १२२६९४-१, १२२४१२-१(#), १२०६१५(६), १२०६८५-१(६), १२०७२६-१(६) (३) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, मूप., (दो चेव नमोक्कारे), १२३८३१-२(+), १२१९०९-१(#) (२) महावीरजिन स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (नमोस्तु वर्द्धमानाय), १२२६१०(+) (३) महावीरजिन स्तुति-अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., वि. १६५३, गद्य, मूपू., (नमो वर्धमानाय नमोस्तु), १२२६१०(+) (२) मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, पू., (तत्त्वदृष्टि सम्यक्त्वमोह), १२२८८२(+), १२२३५२-१, १२२९५०-१ For Private and Personal Use Only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) मखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ४० बोल-श्राविका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मप., (समकितमोहनी१ मिथ्यात्वमोह०), १२०६८५-२ (२) राईप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रथम इरियावही पडिक्कमीय), १२२९६०(#$) (२) राईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), प्रतहीन. ३) भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., गा. १३, पद्य, मप., (भरहेसर बाहबली अभय), १२१२५९-२(+S), १२२२४९-२(+) (२) वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., गा. ५०, पद्य, म्पू., (वंदित्तु सव्वसिद्धे), १२१२६५-२(+$), १२१३६२(+$), १२२५६८(+), १२०९२८, १२१६९३(६), १२३८७६(5) (३) वंदित्तसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., अधि. ५, ग्रं. ६६४४, वि. १४९६, गद्य, मप., (जयति सततोदयश्रीः), १२०९२८, १२१६९३($) (३) वंदित्तुसूत्र-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १२२५०२(#$) (३) सामायिकपारणसूत्र, हिस्सा, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (सामाइअ वयजुत्तो जाव), १२१३६३-२(६) (२) विशाललोचनदल स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (विशाललोचनदलं), १२२६१२(+#) (३) विशाललोचनदल स्तुति-अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, मूपू., (विशाल० वीर जिनेंद्रस्य), १२२६१२(+#) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं णमो), १२२७८०(+$), १२१६६९ (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (माहरउ नमस्कार अरहंत), १२२७८०(+$), १२३४४५(+#) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मपू., (नमो अरिहंताणं० पंचिंदिय), १२२२४९-१(+), १२३४८७(+#) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मा.गु., वि. १५०१, गद्य, मपू., (श्रेयांसि श्रीमहावीर), १२३४८७(+#) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-पायचंदगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं.,मा.गु., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं णमो), प्रतहीन. (३) श्रावकपाक्षिक अतिचार-पायचंदगच्छीय, संबद्ध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १५५, पद्य, मप., (नाणे दंसण चरणे जाण), १२३७७९(+$) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.मान्य, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहं० सव्वसाहूण), प्रतहीन. (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वंदारू टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. २७२०, गद्य, मूपू., (वृंदारुवंदारकवृंदवंद्यं), १२१६६२(+$) (३) श्रावकदेवसिकआलोयणासूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, मा.गु., पद्य, मूप., (सातलाख पृथ्वीकाय), १२१२५९-४(+), १२१३८९-४ (३) श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणंमि दंसणंमि०), १२०६९५(+), १२१००८(+), १२३००२(+$), १२०८१८, १२१८३२, १२१३६४-१(६) (२) श्रावकसंक्षिप्तअतिचार*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मपू., (पण संलेहणा पनरस), १२१६५०(+s), १२२८४९(+$), १२०४३४ (२) संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (संसारदावानलदाहनीरं सम्मोह), १२३०८१-४(+), १२२८४४-२, १२०८५०-१(६), १२३३८१(६) (३) संसारदावानल स्तुति-अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., वि. १६४७, गद्य, मपू., (अहं वीरं नमामीति), १२२८४४-२ (३) संसारदावानल स्तुति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (एहवउ जे श्रीवीर वर्धमान), १२३३८१(5) (२) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं० करेमि भंते), १२२२१९-१(+#$) (२) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मप., (नमो अरिहंताणं), १२२२१९-४(+#) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र-तेरापंथी, संबद्ध, प्रा., प+ग., मप., ते., (इच्छामि णं भंते), १२२२८७() (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं० आवस्स), १२१२४७(+) (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो० नमस्कार होवउ), १२१२४७(+) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण), १२०८२५(+$) (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (आवसही कहेतउ सावधान), १२०८२५ (+$) (३) क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., आला. ४, गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो पियं), १२३२८०-२(+), १२३८८८-३(+), १२३६०७-२ (३) पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., सू. २१, गद्य, मूपू., (करेमि भंते० चत्तारि०), १२०२७०(+#$), १२१४६०(+$), १२२३११(+$), १२३८१७ For Private and Personal Use Only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ ४७७ (४) पगाम सज्झायसूत्र का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (निवर्तवा वांछुउ), १२१४६०(+$), १२३८१७ (४) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चार बोल तेम मंगलिक), १२२३११(+$) (३) पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., मपू., (तित्थंकरे य तित्थे), १२११७६(+), १२१२७६(+#), १२१७०३(+), १२२६५८-१(+), १२३२३६(+६), १२३४६०(+), १२३८८८-१(+), १२२१०४, १२२७५९, १२३६६८(#5), १२१३६५(६), १२३६०७-१(६) (४) पाक्षिक सूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिनं नत्वा), १२११७६(+) (४) पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थंकर प्रते वांदउ), १२३४६०(+) (३) साधुपाक्षिकअतिचार-म.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणम्मि दंसणम्मि०), १२३२८०-१(+), १२०८९५($), १२३०४५(६) (३) साधुराईप्रतिक्रमण अतिचार-श्वे.म.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (संथारा उवट्टणकि परिय), १२२२१९-५(+#) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., प+ग., मूपू., स्था., (नमो अरिहंताणं० तिखूत), १२१८३९ (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण), प्रतहीन. (३) चउक्कसायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (चउक्कसायपडिमलुल्लूरण), १२२५२०-१(६) (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., स्था., (नमो अरिहंताणं०), १२२१८४-१ (२) सामायिक पारने की विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (इच्छाकारेण तस्स), १२२०९४-२(+) (२) सामायिक लेने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रथम वस्त्र उतारी), १२२०९४-१(+) (२) सामायिकसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (णमो अरहंताणं० तिक्खु), १२२१८४-२ आषाढकार्तिकफाल्गुनचातुर्मासिक व्याख्यान, सं., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वसुखमागारं), १२३१६९(+$) आहार पच्चक्खाणफल गाथा, प्रा., गा. १७, पद्य, मूपू., (नमुयाइं दसमेहि मुणि), १२३२६०-६(+) (२) आहार पच्चक्खाणफल गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (नरकमांहि नारकी सो वरसे), १२३२६०-६(+) आह्वान विसर्जन मंत्र, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (आवाहनं न जानामि न), १२२८९३-२(+) इंद्रियपराजयशतक, प्रा., गा. १००, पद्य, मूपू., (सुच्चिअ सूरो सो), १२३१०९(+$), १२२६८७() (२) इंद्रियपराजयशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तेहिज सूर तेहिज), १२३१०९(+5) इरियावहि कुलक, प्रा., गा. १२, पद्य, पू., (चउदस पय अडचत्ता तिगह), १२३२०६-४+), १२३२६०-१७(+), १२३१७७-२($) (२) इरियावहि कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (मनुष्यगति मिथ्यादुष्कृत), १२३१७७-२(5) इरियावही कुलक, प्रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (दवा अडनउयसयं १९८ चउद), १२३५४४-४(-5) (२) इरियावही कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (५६५ जीवना भेद लिखिइ), १२३५४४-४(-$) इष्टतिथ्यादिसारणीनिर्माण विधि, मु. लक्ष्मीचंद्र, सं., श्लो. १३, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (श्रीवामेयं नमस्कृत्य), १२३८७०-१(+) उत्तमकुमार चरित्र, ग. चारुचंद्र, सं., श्लो. ५७२, पद्य, मूपू., (वंदित्वा स्वगुरुन्), १२३४५१(+$) उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., अध्य. ३६, ग्रं. २०००, प+ग., मपू., (संजोगाविप्पमुक्कस्स), १२०७०६(+), १२०७१०(+), १२०७१५-१(+#$), १२०७३४(+), १२०८८८(+#), १२०८९३), १२०९०९(+), १२०९३९-१(+), १२०९८६-१(+), १२१०८३-१(+), १२११८०(+$), १२१२१९(+), १२१४२७(+), १२१४६१(+), १२१६११), १२१६३०(+), १२१६४८(+), १२१७८०(+#$), १२१८२०(+), १२२०३०(+), १२२०४९(+$), १२२३२९-१(+), १२२४७९(+), १२२५९३(+#$), १२२६१४-१(+), १२२९३९(+$), १२३२३५ (+s), १२३२४६ (+$), १२३३९३(+#), १२३४५८(+$), १२३४९१(+s), १२१२४८-१, १२२९७३(#s), १२३१०१(#$), १२०८९०(), १२२८९४(६), १२३५८१(६), १२३६६१(६), १२३८६३(s), १२३८९५(६) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., ग्रं. १२०००, वि. ११२९, गद्य, मपू., (प्रणम्य विघ्नसंघात), १२२०४९(+5), १२२६१४-१(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मपू., (संसारतणा संबंधथी), १२३३९३(+#), १२२९७३(#$), १२३५८१() (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (संयोग बे प्रकारे बाह्य), १२०९०९(+), १२१४२७(+), १२१७८०(+#$), १२२४७९(+), १२२५९३(+#s), १२३३९३(+#), १२३४५८(+$), १२३४९१(+$), १२०८९०(६), १२३५८१(६), १२३६६१(६), १२३८६३(१), १२३८९५(६) For Private and Personal Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (पूर्वसंजोग मातापिता), १२०७१०(+), १२३२३५(+s) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ + कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, मूप., (संजोग बि प्रकारे), १२०७१५-१(+#S), १२०७३४(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह, पंन्या. पद्मसागर, सं., कथा. २४, ग्रं. ४५००, वि. १६५७, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १२३३९३(+#), १२३१२२(#$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु., कथा. ४, गद्य, मूपू., (एक आचार्यनई एक चेलो), १२०९०९(+), १२१४२७(+), १२१७८०(+#$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन १५, हिस्सा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (३) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन १५ की साधगुण सज्झाय, संबद्ध, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (साधुनो पंथ निग्रंथ), १२३३६२-२(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन ९ नमिपवज्जा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ६२, पद्य, मूपू., (चइऊण देवलोगाओ उवयन्न), १२१८६२-४(+), १२१४४३ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-चयनित गाथा संग्रह-धनलोभ, प्रा., गा. ५, पद्य, मपू., (--), १२०४०८-१२६(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-३६ अध्ययननाम गीत, संबद्ध, मु. ब्रह्म, मा.गु., गा. १०, वि. १५९९, पद्य, मूप., (अणपूछया जिणवर कह्याजी), १२२४०९-२(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-१६ बंभचेरसमाहिठाणं सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (ब्रह्मचर्यना दश), १२१७३८-३(#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-१ विनयसुत्तं सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पवयणदेवी चीत धरीजी विनय),१२१९७६-१ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-चतुरंगी सज्झाय, संबद्ध, मु. सुमति, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (लही मानव भव दोहिलोजी), १२३३८५-२(#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-माहात्म्यगर्भित गाथासंग्रह, संबद्ध, प्रा., गा. ४, पद्य, मपू., (जे किर भवसिद्धिया परित्त), १२०९३९-२(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन नाम, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (विणय१ परीसहर चउरंगी३), १२०७१५-२(+#), १२०९३९-३(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मूपू., (पवयणदेवी चित्त धरी), १२१४५३ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, ग. कृपासौभाग्य, मा.गु., सज्झा. ३६, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (सोहम कहे जंबू सूणो), १२२७३२-४(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. ब्रह्म, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मूपू., (अमीय समाणी वाणी वरस), १२२४०९-१(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-बीजक, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहला विनय अध्ययन), १२२६१४-२(+) उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., गा. ५४४, पद्य, मपू., (नमिऊण जिणवरिंदे इंदनरिंद०), १२१५०४(+#S), १२२५०५(+s), १२२७०७(+#$), १२३०१८(+$), १२३२७३(+s), १२३३१६(+), १२३३८७(+$), १२३३९५-२(+#$), १२३५५१(+S), १२३६९४(+), १२२१६६, १२०९६६(s), १२१६९६(६), १२२११८($) (२) उपदेशमाला-टीका*, सं., गद्य, मूपू., (--), १२०९६६($) (२) उपदेशमाला-वृत्ति, ग. रामविजय, सं., ग्रं. ७६००, वि. १७८१, गद्य, मपू., (श्रेयस्करं कामितदानदक्षं), १२१४५७#) (२) उपदेशमाला-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा जिनवरेंद्रान्), १२२१६६, १२२११८९६) (२) उपदेशमाला-पर्याय, आ. जयशेखरसूरि, सं., ग्रं. १५००, गद्य, मूप., (इंद्रनरेंद्रार्चितान्), १२२७०७(+#$) (२) उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., वि. १७१३, गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनइ जिण), १२३२७३(+$) (२) उपदेशमाला-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीने तीर्थंकर), १२१६९६($) (२) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (नमिऊण कहीइ नमीनइ), १२१५०४(+#$), १२३०१८(+$), १२३३८७(+$) (२) उपदेशमाला-कथा, मा.ग., गद्य, मप., (वंदित्वा वीरजिन), १२३२७३(+$) For Private and Personal Use Only Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ (२) उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे श्रीउपदेशमाला), १२२६७४ (२) उपदेशमाला-कथा संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य गुरुपादाब्ज), १२१५०४(+#$) (२) उपदेशमाला गाथा शकुन, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गा. १, पद्य, मपू., (सच्चं भासइ अरिहा), १२३३०२(+) (२) उपदेशमाला-गाथानुक्रमणिका, प्रा., गद्य, मपू., (नमिऊण जगचूडाम सवस्सर), १२२५०० उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, भूपू., (उवएसरयणकोसं नासिय नीसेस), १२३७२८-१(+#), १२३८२२-२(+#$), १२३२००(#) (२) उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीमहावीर चउवीसम), १२३२००(#) (२) उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (उपदेशरूप रतन तेहनो), १२३७२८-१(+#) उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पहिलं नवकारर्नु उपधान), १२२९५९(+$), १२२९६१-१(+), १२३०४९(+$) उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम शुभदिवसइ पोषध), १२०६२६-१(+), १२२९४७ उपधानमालारोपण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (शुभमुर्हते पूर्व), १२२९६१-२(+) उपसमश्रेणि क्षपकश्रेणि गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मपू., (अणमिच्छामी ससम्मं अट्ठ), १२३६४०-५ (२) उपसमश्रेणि क्षपकश्रेणि गाथा-टीका, सं., गद्य, मप., (इयं क्षपणा पुरुषवेदेन), १२३६४०-५ उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १०, ग्रं. ८१२, प+ग., मूपू., (तेणं० चंपा नामं नयरी), १२०७२२(+), १२०७९५(+), १२२९१३(+$), १२३२८६-१(+), १२३४२३(+), १२३४२७(+$), १२३५११(+), १२१५७१ (२) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु., वि. १६९३, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १२१५७१ (२) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), १२०७२२(+9), १२०७९५(+), १२३२८६-१(+), १२३४२७(+5), १२३५११(+) (२) उपासकदशांगसूत्र-बीजक, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (चंपानगरी सुधर्मस्वामीसुं), १२०८८१(+#$) उवसग्गहर स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा.५, पद्य, मपू., (उवसग्गहरं पासं पास), १२२०९४-३(+) ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. २०९, ग्रं. २५९, वि. १४वी, पद्य, मूप., (भत्तिब्भरनमिरसुरवर), १२२५४३(+), १२३५५६-२(+$), १२३८२२-१(+#) (२) ऋषिमंडल प्रकरण-टीका, ग. शुभवर्धन, सं., गद्य, मप., (योभूधुगादौ शिवशुद्ध०), १२२७९३($) ऋषिमंडल स्तोत्र, सं., श्लो. ८४, पद्य, दि., (आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं), १२०९७४-१(+) ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद्, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ९८, ग्रं. १५०, पद्य, मूपू., (आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं), १२०४६७(+), १२२०००(+$), १२१३९० (२) ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद्-यंत्रलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम स्थान पवित्र करी), १२१०५३-१ ऋषिमंडल स्तोत्र-लघु, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ६३, पद्य, मूपू., (आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं), १२२२१९-२७(+#) औपदेशिक गाथा संग्रह , पुहि.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (अजो कृष्ण अवतार कंस), १२०६२१-३, १२३९७०-३ औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा., गा. ४, पद्य, मपू., (जं जं समयं जीवो), १२३८९१-२(+), १२३८७७-२(#) औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ३२, पद्य, मप., (धणमिव चिंतइ धम्म), १२३९२३-२(+#), १२२७१८($) (२) औपदेशिक गाथा संग्रह-टबार्थ, रा., गद्य, म्पू., (जीवितव्य ते पाणीना), १२२७१८($) औपदेशिक गाथा संग्रह जैन*, प्रा.,मा.गु.,सं., गा.५, पद्य, मूपू., (सललमथघ्रतकाज निक्खु), १२०४०८-१८७(+), १२३१७७-४ औपदेशिक गाथा संग्रह-विविध विषयक विविध ग्रंथोद्धत, प्रा.,सं., पद्य, पू., (पूआ जिणंदेसु रई वएसु), १२२७२१-२(+#$) (२) औपदेशिक गाथा संग्रह विविध विषयक विविध ग्रंथोद्धत-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (जीवने मोक्ष जातां), १२२७२१-२(+#$) औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ९, पद्य, मपू., (काम वली सवही पुरहे), १२०९८०-३(+), १२२०८२-४(+#$), १२२८०१-३(+#), १२३३३४-२(+), १२०८०९-२,१२१८५२-२,१२२९२४-३(#) औपदेशिक दोहा संग्रह, मा.गु.,सं., गा. ११७, पद्य, मूप., (स्वस्ति श्री प्रभू शांति०), १२२१७४(६) For Private and Personal Use Only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ औपदेशिक पदादि संग्रह-चोरीत्याग, भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,प्रा., गा. १०, पद्य, श्वे., (तीजो पाप अदत चोरि न लेवे), १२०४०८-६१(+) औपदेशिक श्लोक संग्रह, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (अहो जंबुक निर्बुद्धि), १२१४८९-३(+) औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ६१, पद्य, श्वे., (धर्मे रागः श्रुतौ चिंता), १२०४०८-२४(+), १२२०९१-२(+), १२२१३७-२(+), १२०५८८-३, १२०६७३-२, १२२१९०-२, १२२९१२-४(#), १२३२०३(#$) (२) औपदेशिक श्लोक संग्रह-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मप., (अर्हत भगवंत सर्ण), १२३२०३(#$) औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. २६९, पद्य, जै., वै., (महतामपि दानानां कालेन), १२३२०४(#) औपदेशिक सवैया संग्रह , मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,मा.गु.,सं., सवै. २५, पद्य, जै., वै.?, (पांडव पांचेही सूरहरि), १२०४०८-११२(+), १२०४०८-१३७(+), १२१०५८-७(+#) औपपातिकसूत्र, प्रा., सू. ४३, ग्रं. १६००, पद्य, म्पू., (तेणं कालेणं० चंपा०), १२०९०७(+), १२३१५८(+#) (२) औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., ग्रं. ३१२५, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), १२३४४१(+) (२) औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्वा श्रीजिनं), १२०९०७(+), १२३१५८(+#) औषधवैद्यक संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, इतर, (अनार दाणा टां.८०), १२२५३९-२(2) कथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., म्पू., (हिवे छ आरानुं नाम), १२०४०८-१९६(+$), १२२०५७(+$) कथा संग्रह, सं., पद्य, मपू., (--), १२३६६७(+$), १२२६९३(#$) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ६१, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (सिरिवीरजिणं वंदिय), १२११५७-१(+), १२२६८४(+$), १२२७१४-१(+#), १२२७८८-१(+$), १२२९७०-१(+), १२३११८-१(+), १२३४५२-१(+#), १२३४५४(+s), १२३५९३-१(+$), १२३६०४-१(+), १२२७४४-१, १२१३५१(#S), १२२७२९-१(#$), १२१५६६(६) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-स्वोपज्ञ सुबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. १८८२, गद्य, मूपू., (दिनेशवद्ध्यानवरप्रतापै), १२२७३५-१(+#$), १२३४५४(+$) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रियाष्टप्रतिहार्य रूपाय), १२११५७-१(+) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ १-बालावबोध, उपा. जयसोम, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऍदवीयकलाशौक्लीं), १२३६०४-१(+) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (ज्ञान अतिसय प्रातिहा), १२३४५२-१(+#), १२१३५१(#$) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (श्रीवर्द्धमान प्रति), १२२७२९-१(#$) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ १-टबार्थ, उपा. जयसोम, मा.गु., गद्य, मप., (एहवा श्रीमहावीर चोत), १२३६०४-१(+) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीवीरजिन वांदी), १२२९७०-१(+) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., वि. १७वी, गद्य, मूपू., (शारदां वरदां स्मृत्वा), १२२७४४-१ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मपू., (तह थुणिमो वीरजिणं), १२११५७-२(+), १२२७१४-२(+#), १२२७३५-२(+#$), १२२७८८-२(+$), १२२९७०-२(+), १२३०५०-१(+$), १२३११८-२(+), १२३४५२-२(+#), १२३५९३-२(+), १२३६०४-२(+), १२२७४४-२, १२१७८८(#$), १२२७२९-२(#) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, प., (बंधोदयोदीरणसत्पदस्थं), १२२७३५-२(+#s) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (तथा वीरजिनं स्तुम), १२११५७-२(+) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ २-बालावबोध, मु. जयसोम, मा.गु., गद्य, मूप., (ॐ नमस्त्रिजगत्सृष्ट), १२३६०४-२(+) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (तिम श्रीमहावीर प्रति), १२३४५२-२(+#), १२१७८८(#s), १२२७२९-२(#) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ २-टबार्थ, उपा. जयसोम, मा.गु., गद्य, मपू., (तेम स्तवीस श्रीवीरजिन), १२३६०४-२(+) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ २-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (तह क० तिम हवे बिजा), १२२९७०-२(+) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (बंध ते स्यु कहीयइ), १२१७८८(#$) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिम हुं स्तवं छु), १२३०५०-१(+$), १२२७४४-२ For Private and Personal Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ कर्मस्थिति गाथा, प्रा. गा. १, गद्य, मूपू (मोहे कोडा कोडी सत्तिर) १२३०२४-३(+) " ', יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) कर्मस्थिति गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (मोहनीकर्मनी स्थिति सतिर), १२३०२४-३(+) " कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. व्याख. ९. ग्रं. १२१६, गद्य, भूपू तेण कालेनं० समणे), १२०३०८ (+), १२०३७६ (+४७), १२०६९८(+४), १२०७५१ (+४), १२०८२३(+), १२०८७९(+), १२१२२४(+) १२१२३६ (+), १२१५४२ (०४), १२१६५९(+), १२१६७४(+३), १२१६८१-१ (४०), १२१७०८ (०७), १२१७५१-१(+), १२२४४५-१(०) १२२५०६ (+), १२२५५३ (+45), १२२६७८(+६), १२२७०८(+), १२२७४६ (+०) १२२७८६ (+), १२२८१८(+), १२२९९३-१(+४), १२३०४०-२ (+०), १२३१९७(+5), १२३२३२ (७), १२३३१८(+), १२३५३७-१(+), १२३६३१ (+), १२३६९६ (+), १२३७३५(+$), १२३७८५ (+#$), १२३९०७ (+$), १२३९८४ (+), १२०३१५, १२३७१६, १२१३११(#S), १२१३५५ (#$), १२१६२९(०३), १२१६३४(१६), १२१६६८(४७), १२१८७२(७), १२२२०५ (०३), १२२६९२ (०३), १२२९२१(०३), १२३८५९(३), १२३८७९(#$), १२११३१ ($), १२२७४० ($), १२३१६७ ($), १२३५२० ($), १२३५५२ ($), १२३८८५ ($), १२४००१($) (२) कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागर गणि, सं., ग्रं. ५२१६, वि. १६२८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेष), १२३४९८ (६) " १२३१९४(+१३) " (२) कल्पसूत्र - कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं. ग्रं. ४९०९, गद्य, भूपू (श्रीवर्द्धमानस्य) १२१६५९), १२१७५१-१(+), १२३१९७(+), १२३४३४ (+), १२३७१६, १२१६६८(#$) (२) कल्पसूत्र कल्पमंजरी टीका, मु. श्रीसार, सं., वि. १६८५, गद्य म्पू, (-), १२२८१८) (२) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., ग्रं. ७७००, वि. १६८५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमं ज्योतिः), १२१३१८) १२३९८४(०६), १२२९२१(७), १२२७४० (३) (२) कल्पसूत्र टीका, सं., गद्य, भूपू (प्रणम्य प्रणताशेषखंडल). १२२६५६ (०४), १२३८७९ (४६) (२) कल्पसूत्र - संदेहविषौषधि टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं. ग्रं. २२६८, वि. १३६४, गद्य, मूपू (ते इति प्राकृतशैलीवशात्). १२२७८६ (+३) (२) कल्पसूत्र - सुवोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं. नं. ६५८०, वि. १६९६, गद्य म्पू. (प्रणम्य परमश्रेयस्कर), १२०३१५, १२४००१(३) " " (२) कल्पसूत्र- टिप्पण, सं. गद्य, भूपू (--). १२१६७४(०३), १२३४१८(8) (२) कल्पसूत्र-ज्ञानदीपिका बालावबोध, मु. ज्ञानविजय, मा.गु., वि. १७२२, गद्य, मूपू., (इरियावही पडिकमिइ एक), १२१२२४(+०३) ४८१ (२) कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. खीमाविजय, मा.गु., वि. १७०७, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १२०५०८(+) (२) कल्पसूत्र - बालावबोध*, मा.गु., रा. गद्य, म्पू, नमो अरिहंताणं), १२१२३६(+), १२३२३२ (+), १२३३१८(+), १२३६३१ (००६), १२३७८५ (+), १२१३११(३) १२१८७२(४७) १२२७१६(४४), १२०८६०(३) १२३५२०(४), १२३५५२(३) (२) कल्पसूत्र - टवार्थ, मा.गु. गद्य, म्पू, (अरिहंतन माहरो ), १२०३०८(+), १२०३७६(+), १२०६९८ +७), १२१२२४(+०), १२१२३६(+०३), १२१६८१-१(+४), १२१७०८(+३), १२२४४५-१(+३), १२२५०६ (+), १२२५५३(+०३), १२२७०८(+३), १२२९९३-१(+$), १२३२३२ (+$), १२३३१८(+), १२३७३५ (+), १२३९८४ (+$), १२१६३४(#S), १२२६९२ (#$), १२३८५९(#$), १२३८७९ (#S), १२३५५२(s), १२३८८५ ($) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ व बालावबोध, मा.गु., वि. १७२३, गद्य, मूपू., (अरहंतनइ नमस्कार हु), १२३०४०-२(+#) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान + कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (सकलार्थसिद्धिजननी), १२२७४६(+#) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यान + कथा*, सं., गद्य, मूपू., (तत्रादौ श्रीऋषभदेवस्य), १२३६२७(+$) (२) कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा *, मा.गु., गद्य, मूपू., ( नमः श्रीवर्द्धमानाय), १२०३०८ (+), १२०६१२(+#), १२२३४९ (+#$), १२३९६१(+६), १२११३१(३) (२) कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा, प्रा. मा.गु., सं., गद्य म्पू. (प्रणम्य प्रणताशेषं), १२२९९३-१(+) (२) कल्पसूत्र व्याख्यान, मु. लब्धि, मा.गु., वि. १७७९, गद्य, म्पू., (--) १२०७५१(०६) (२) कल्पसूत्र- कथा संग्रह", मा.गु.. सं., गद्य, भूपू (बलदेव बलिदेव वासुदेव), १२२४४५-१(०३), १२३२९१-२ For Private and Personal Use Only Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४८२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) कल्पसूत्र- कथा संग्रह, सं., प+ग, मृपू. (-), १२३३१८ (+5) (२) कल्पसूत्र - हिस्सा महावीरजिनजन्माधिकार, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, म्पू., (सुमिणा दीद्वा जाव), प्रतहीन. (३) कल्पसूत्र - हिस्सा महावीरजिनजन्माधिकार का बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू. नमो अरिहंताणं० भगवंत), १२१२२०(१) (२) कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., प+ग, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं समयेणं), प्रतहीन. (३) कल्पसूत्र - 1 - हिस्सा सामाचारी अध्ययन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवे वर्षाकाल आव्ये), १२११६३(+) (२) कल्पसूत्र- पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, म्पू, (अर्हत भगवंत उत्पन्न), १२०२६१(+०३), १२२७०६ (+०६) " (२) कल्पसूत्र-मांडणी, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (--), १२३०४०-१(+#$) (३) कल्पसूत्र - मांडणी का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू (-), १२३०४०-१(+१) (२) कल्पसूत्र व्याख्यान पीठिका, संबद्ध, मा.गु. सं., प+ग, मूपू (अशरणशरण भवभयहरण), १२०७६३, १२१९७३, १२२६४३(१), १२३६३७(४) १२३७४०(३) "" (२) कल्पसूत्र-संबद्ध २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, मूपू., (५० कोडि लाख सागर), १२२०६९ . (२) कल्पसूत्र- अंतर्वाच्य, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू. (कल्याणानि समुल्लसंति), १२३४६८ (१६) (३) कल्पसूत्र- अंतर्वाच्य का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (कल्याणानि समुल्लसंति), १२३०८२(+) (२) कल्पसूत्र - अंतर्वाच्य, आ. जिनहंससूरि, सं., गद्य, म्पू, (पुरिचरिमाणकप्पो० वेरावली), १२२९८८ (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य*, मा.गु., गद्य, मूपू., (उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र), १२११७८ (+), १२२३४२-१(#) (२) कल्पसूत्र अंतर्वाच्य, मा.गु., गद्य, मूपू., ( कल्याणानि समुल्लसंति), १२११९४+६) (२) कल्पसूत्र - अंतर्वाच्य, सं., गद्य, म्पू (चतुर्विंशतिजिनान् नत्वा), १२३०८४ ) १ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) कल्पसूत्र - अंतर्वाच्य, प्रा.सं., प+ग, मूपू., (पुरिमचरिमाणकप्पो), १२३९५९(+#$) कल्पावर्तसिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू. (जति णं भंते समणेणं०) १२२२४७-२(+), १२२४०६-२(१) १२२७६४-२(+), १२२९४६-२(+), १२२९८९-२(+), १२३२०२-२ (+०) १२३५६०-२ (+), १२२६०८-२(क (२) कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जौ हे भगवंत समण०), १२२२४७-२ (+), १२२४०६-२(+#), १२२७६४-२(+), १२२९८९-२ (०) १२३२०२.२(+) कल्पिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं०), १२२२४७-१ (+), १२२४०६-१(+#), १२२७६४-१(+), १२२९४६-१(+), १२२९८९-१(+), १२३२०२-१(+#), १२३५६०-१ (+#$), १२२६०८-१(#) (२) कल्पिकासूत्र बार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू. श्रीवीतरागदेवने नमस्कार), १२२२४७-१(०), १२२४०६-१ (+०१), १२२७६४-१(+), १२२९८९-१(+), १२३२०२-१(+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं. श्री. ४४, वि. १वी, पद्य, मूपु. ( कल्याणमंदिरमुदारमबद्यभेदि), " १२०३२०-७६(+), १२०५४३ (+), १२१०६१(+), १२१२९० (०) १२२२८८(+), १२२५८० (७) १२२७९९ (+), १२२८०५(+#$), १२२८३८-२ (+#), १२२८८० (+#$), १२२९१६ (+), १२३१२०(+), १२३४८० (+), १२३५८६-५(+), १२३९४७(*), १२२८२५(३) १२३६९९-२ (३) (#$), (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र- टीका, मु. कनककुशल, सं. ग्रं. ६५०, वि. १६५२, गद्य, भूपू., (प्रणम्य पार्श्वमिष्टार्थ०), १२२८८० (+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू., (सर्वज्ञं जिनमानम्य), १२२९१६ (+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र- टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, मूपु. ( श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा), १२०५४३ (+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अहं श्रीसिद्धसेन), १२१२९० (+), १२२५८० (+#$), १२२७९९ (+$) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र वालावबोध*, मा.गु, गद्य, म्पू, (किल इति संभावनायां), १२१२९०(*) " " " (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, मु. अमरमुनि, हिं., गा. ४५, पद्य, मूपू., स्था., (परम ज्योति परमात्मा), १२१३४६(#$) कातंत्रव्याकरण, आ. शर्ववर्माचार्य, सं., अ. ४ पाद २५, सू. १४०१ प+ग. वै. इतर (सिद्धो वर्णसमाम्नायः), प्रतहीन. (२) कातंत्रव्याकरण- दौर्गसिंहीवृत्ति, दुर्गसिंह, सं., अ. ४ अध्याय २५ पाद, गद्य, वै., इतर ( देवदेवं प्रणम्यादी), प्रतहीन. (३) श्रेणिक चरित्र, संबद्ध, आ. जिनप्रभसूरि, सं., स. १८, वि. १३३५, पद्य, मूपू., इतर, (सिद्धोवर्णसमाम्नाय :), १२१०३४(#$) For Private and Personal Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० (२) साधारणजिन स्तुति-स्वरादिबोधगर्भित, संबद्ध, सं., श्लो. ५, पद्य, भूपू वै. इतर (सिद्धोवर्णसमाम्नायः समानः), १२३५८६.१५(+) " कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा. गा. २४, पद्य, मूपू., (जह तुह दंसणरहिओ काय), १२२९२२(+), १२३१६३(+३) (२) कार्यस्थिति प्रकरण- टीका, आ. कुलमंडनसूरि, सं., वि. १५वी, गद्य, मूपू. (वर्द्धमानं जिनं नत्वा), १२२९२२(+) (२) कार्यस्थिति प्रकरण-अवचूर्णि से गद्य, म्पू, (सामान्यतो जीवत्वलक्षणेन), १२३१६३ (+३) , कारकविभक्ति विवरण, मा.गु., सं., गद्य, श्वे., इतर, (त्रिहुं प्रकारि उक्त), १२३९७८-२(+), १२२५४०(#$) कार्तिक पूर्णिमापर्व व्याख्यान, ग. जयसार, सं. वि. १८७३ गद्य, मूपू (श्रीसिद्धाचलतीर्थेश), १२१८०९-५ (+) , कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. ७४, पद्य, मूपू., (देविंदणयं विज्जाणंद), १२०६३१ 7 י: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) कालसप्ततिका बार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (इंद्र महाराय पण), १२०६३१ " कालिकाचार्य कथा, आ जिनदेवसूरि, सं., श्लो. ९७, वि. २४वी, पद्य, मूपू (मोहांधकारप्राग्भार), १२१६८१-२ (००६) कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १६६६, गद्य, मूपु., (प्रणम्य श्रीगुरुं), १२१७५१-३ (+) कालिकाचार्य कथा, सं. लो. ६५, पद्य, भूपू (श्रीवीरवाक्यानुमतं), १२३६९३ (*) , " कुम्मापुत्त चरिअ, मु. जिनमाणिक्य, उपा. अनंतहंस, प्रा. गा. १९८. ग्रं. १०००, वि. १६वी, पद्य, भूपू (नमिऊण वद्धमाणं असुर), १२१०२९(+#) (२) कुम्मापुत्त चरिअ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू (वर्द्धमानस्वामीने नमस्कार), १२१०२९(+) केतूदय फल, सं., श्लो. १३, प+ग. इतर (धूम्राकारस्य केतु पुच्छ), १२१९१३-२(+) खरतरगच्छीय पांच शक्रस्तवे देववंदन विधि, प्रा. मा.गु, प+ग, भूपू (प्रथम नवपदजीको गटो), १२२२७५ (३) गणधरवाद, सं., गद्य, मृपू. (अत्रांतरे भगवन्नमस्वार्थ), १२३४१३(+) गणधरसार्धशतक, आ. जिनदत्तसूरि प्रा. गा. १५०, पद्य, भूपू (गुणमणिरोहणगिरिणो) १२३०८९ (+), १२३४९० (+) , गाथा संग्रह जैन, प्रा., पद्य, वे. (उस्सासद्वारमे भागे), १२०४०८-५९(+), १२०४०८-१५२(+), १२३९५८-४ " गुणवर्म चरित्र, आ. माणिक्यसुंदरसूरि सं., स. ५, लो. ६०७ ग्रं. १८११, वि. १४८४, पद्य, मूपू., (विजयतां जिनवाक्यसुधारसः), १२०८८७ (+$) गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि सं., श्लो. १३५ बि. १४४७, पद्य, मूपू., ( गुणस्थानक्रमारोहहतमोह), १२२४१६(+), १२२९९१(+#) (२) गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि सं. वि. १४४७, गद्य, मूपू.. (अहं पदं हृदि ध्यात्वा), १२२४१६(+) " (२) गुणस्थानक्रमारोह प्रकरण- टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपु. ( गुणठाणनइ विषइ क्रमइ जे), १२२९९१(+) गुरुतत्त्वप्रदीप, सं., विश्रा ८, श्लो. २४१, पद्य, मूपू (प्रणम्य श्रीमहावीरम् ) १२३४६१(+), १२३५५५(४) " " (२) गुरुतत्त्वप्रदीप-स्वोपज्ञ विवरण, सं., गद्य, म्पू, (-). १२३४६ (+) १२३५५५(5) गुरुप्रतिमा प्रतिष्ठा विधि, मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (शुभनक्षत्रेषु शुभवेलायां), १२१४२५-२ गुरुवंदन भाष्य, प्रा., गा. ३१, पद्य, म्पू, (मुहणंतय २५ देहा २५) १२२४९३-४(+४) (२) गुरुवंदन भाष्य-टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (मुहपोतीरी पडिलेहणि २५), १२२४९३-४२+३) गुरुवंदन विधि, प्रा., गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो), १२११२५ (२) गुरुवंदन विधि- अर्थ, मा.गु. गद्य, मूपू., (प्रथम थानकने विषे शीष), १२११२५ गुरुशिष्य पत्रलेखन विधि, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (स्वस्तिश्रीमद्वामेय), १२१३६९-२ गोचरी ४२ दोष गाथा, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोलस उग्गमदोसा सोलस), १२०८८३($) (२) गोचरी ४२ दोष गाथा - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवे साधुने आहारादिकने), १२०८८३ ($) गोपगृहिणी प्रबंध, सं., गद्य, मूपू (अधान्यदा स एव भूतिराज), १२२७६८-४(१) ४८३ गौतम कुलक, प्रा. गा. २०, पद्य, भूपू (लुद्धा नरा अत्थपरा). १२०९०६ (+), १२३७२८-३(+) , (२) गौतम कुलक-बालावबोध+कथा, ऋ. रिधु, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुयदेवी समरि करि), १२३२४४(+$) (२) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (लोभीया मनुष्य अर्थनइ), १२०९०६ (+), १२३७२८-३(+#) For Private and Personal Use Only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ गौतमपच्छा , प्रा., प्रश्न. ४८, गा. ६४, पद्य, मप., (नमिऊण तित्थनाह), १२२९९८(+), १२३३२९(+#$), १२३८८२(+$), १२३९१०(+$), १२३३७३, १२१७९७६), १२३६९२($) (२) गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., ग्रं. १६८२, वि. १७३८, गद्य, मूपू., (वीर जिनं प्रणम्यादौ), १२२९९८(+) (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध, मु. वृद्धिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा वीरजिनं बालावबोधो), १२३६९२(६) (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), १२३८८२(+$) (२) गौतमपृच्छा -बालावबोध+कथा*, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकई गामि धनसार इसिइ), १२३३२९(+#$), १२३९१०(+$) (२) गौतमपृच्छा -टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), १२३३७३, १२१७९७(5) गौतमस्वामी स्तव, आ. वज्रस्वामि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (स्वर्णाष्टाग्रसहस्रपत्र), १२२१०१ गौतमस्वामी स्तुति, मा.ग.,सं., गा. ५, पद्य, मप., (अंगठे अमृत वसे), १२०३२०-७५(+-#) गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (ॐ नमस्त्रिजगन्नेतु), १२३५४५-३(+) गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (श्रीइंद्रभूतिं वसुभूति), १२०६४५-७, १२१७०५, १२०४२९-२(#) ग्रहसिद्धि, महादेव दैवज्ञ, सं., गा. ४३, पद्य, इतर, (सिद्धि करोती राजकेंद), प्रतहीन. (२) ग्रहसिद्धि-टीका, आ. देदाचंद्र, सं., श. १५३२, गद्य, मप., इतर, (--), १२२७५४(+#$) घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (ॐ घंटाकर्णो महावीरः), १२१११४-२(+), १२०४३८-१, १२०५८५-२, १२२३६४-३ घतपतनदोषनिवारण विधि, सं., गद्य, मूपू., (कदाचित् रभसवृत्त्या), १२२२१९-३१(+#) चंद्र कल्प, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्ली), १२२५३९-५ (2) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र, प्रा., प्राभृ. २०, ग्रं. १८५४, पद्य, मूपू., (नमो अरि० जयति नवणलिण), १२१०६५(+$), १२२९९०(+) (२) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., ग्रं. ९४००, गद्य, मूप., (मुक्ताफलमिव करतलकलित), १२१०६५(+$) (२) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र-मलयगिरीय टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां अविघ्न पणइ), १२२९९०(+) (२) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीभगवंत कहे छै), १२२९९०(+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. हरिश्चंद्र, सं., श्लो. ९, पद्य, श्वे., (श्रीमहासेननृपांगज नाथ), १२३७६०-२ चक्रवर्ति ऋद्धि विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (छ खंड भरतक्षेत्र), १२३९६२-३ चतु:शरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ६३, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (सावज्जजोग विरई), १२०९९५(+), १२१६८०(+), १२२७७५(+), १२२९७४(+), १२३३२७(+#), १२३५८६-१(+$), १२४०१७-१(+#), १२२६२३, १२३८१३, १२०६८६(#S), १२०८९६(#$), १२१४७८(#), १२२७१२(६), १२३०७०(६), १२४०१०(६) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (इदमध्ययनं परमपदप्राप्ति०), १२३३२७(+#) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (चतुःशरणविषमपदविवरणं), १२१४७८(), १२२७१२($) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., ग्रं. ३४७, गद्य, मूपू., (पहिलु छ आवश्यकनां), १२२६२३ (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (सावद्य योग विरति ते), १२३०७०) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउसरणपइनाना अर्थ०), १२१६८०(+), १२२९७४(+$), १२४०१७-१(+#), १२०६८६(#$) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. ३४१, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य महावीरं), १२०९९५(+) चतुर्विंशतिका स्तुति, उपा. क्षमाकल्याण, सं., स्तु. २४, श्लो. ७७, वि. १८०१-१८४१, पद्य, मूपू., (सद्भक्त्या नतमौलि), १२२३५९($) चमत्कारचिंतामणि, नारायण भट्ट, सं., गद्य, वै., इतर, (लसत्पीतपट्टांबरं), प्रतहीन. (२) चमत्कारचिंतामणि-पद्यानुवाद, मु. श्रीसार, पुहिं., दोहा. १०८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., वै., इतर, (युं विचार ज्योतिष को), १२२९४८ चमत्कारचिंतामणि, राजऋषिभट्ट, सं., श्लो. १११, पद्य, वै., इतर, (क्वणत्किंकिणी जालकोल), १२२८६३(#) (२) चमत्कारचिंतामणि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., वै., इतर, (श्रीवामेय जिनं नत्वा), १२२८६३(#) चयनित गाथा संग्रह-जीवादि आयमान, प्रा., गा. २२, पद्य, मप., (पुढवी आउ वणस्सइ बारस), १२३२६०-२(+) For Private and Personal Use Only Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ चरणसित्तरी-करणसित्तरी विचार, प्रा.,सं., गद्य, मूप., (वय५ समणधम्म१० संजम१७), १२३२६०-३०(+) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., ग्रं. ४०१, गद्य, मूपू., (स्मारं स्मारं स्फुरज्ज्ञा), १२१८०९-१(+) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (सामाइकावश्यकपौषधानि), १२१९०५(+$), १२३१८९(+$) (२) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १२१९०५(+$) चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १६६५, गद्य, मपू., (प्रणम्य परमानंद), १२२९३८(+#$) चातुर्मासिक व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (नमः श्रीवर्धमानाय), १२३३०६(+) चूडामणिपच्छा विचार, सं., गद्य, मूप., इतर, (लाभालाभ ध्रुवांक ४२), १२१८२४(#) चेटकराजासंतति गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (चेडयनिवधूयाए प्रभावइए), १२३२४२-४, १२३२१२-३(#) चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ६३, पद्य, मपू., (वंदित्तु वंदणिज्जे), १२२४९३-३+) (२) चैत्यवंदनभाष्य-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणिनुतं), १२०२१४(६) (२) चैत्यवंदनभाष्य-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्तुं कहितां), १२२४९३-३(+) चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (उस्सप्पिणीहि पढम), १२२२१९-२२(+#), १२३९६२-२, १२४००५-२ चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, मु. जीवराज, सं., वि. १८६९, गद्य, मूपू., (तीर्थराजं नमस्कृत्य), १२१८०९-१०(+) चैत्रीपूर्णिमा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम जागा प्रमार्जन), १२२२१९-१७(+#) चैत्रीपूर्णिमा विधि, सं., गद्य, मूपू., (--), १२३५६९(#$) चौमासीपर्व देववंदन विधि, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रथम सदाकाल नित्य), १२०९५९ छुटकबोल संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (१ पहिलै बोलै जीव मोखनी), १२१३४७-१०(+) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., उ. २१, गद्य, मप., (तेणं कालेणं० रायगिहे), १२२३२४(+), १२३२३३(+), १२१६९४-१(६) (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते काल चउथो आरो तेवाइ समइ), १२२३२४(+), १२३२३३(+) (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-१० वस्तुविच्छेद अधिकार, हिस्सा, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, मपू., (सेणिआ जंबूपच्छा दसवयण), १२३७८३-२(2) (३) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-१० वस्तुविच्छेद अधिकार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हे श्रेणिक जंबू पछी दसवचन), १२३७८३-२(#) जंबूद्वीपपरिधि विचार गाथा, प्रा., पद्य, म्पू., (विक्खंभवग्गदह गुण), प्रतहीन. (२) जंबूद्वीपपरिधि विचार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (विक्खंभ कहीये पिहुल घणौ), १२३७०७(+) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., वक्ष. ७, ग्रं. ४१४६, गद्य, मप., (नमो अरिहंताणं० तेणं), १२०७७३(+), १२३७७३(+$), १२३९९२(5) (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., ग्रं. १५०००, वि. १७७०, गद्य, मूप., (श्रीसिद्धार्थनराधिप), १२३७७३(+$) (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (ते० ते काल चउथा आरा), १२०७७३(+), १२३९९२($) (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे-भरत चरित्र, प्रा., गद्य, मपू., (तेणं से भरहे राया), १२२८७६(+#) (३) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-हिस्सा तृतीयवक्षस्कारे-भरत चरित्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (तिहवार पछी ते भरतराज), १२२८७६(+#) जंबूद्वीप बाह्यमंडलगत १८४ मंडलवर्ती सूर्यचंद्रगति क्षेत्रमानादि विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (उदयत्थंतरबाहं सहसा तेसट्ठ), १२३१८०(+$) जन्मपत्री पद्धति, मु. मानसागर, सं., गद्य, मूपू., इतर, (नीचोनितास्पष्टतरा), १२२८३१(+$) जन्मपत्री पद्धति, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अधि. ३३, पद्य, मूपू., इतर, (प्रणम्य शारदां ज्योतिः०), १२१७८६(+), १२३१६५(+) जन्मपत्री पद्धति, पुहिं.,सं., प+ग., श्वे., इतर, (श्रीआदिनाथप्रमुखा जिनेशाः), १२१९५४(+#) जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसरि, प्रा., गा. ३०, वि. १२वी, पद्य, मप., (जय तिहयणवरकप्परुक्ख जय), १२१२६५-१(+), १२१६८६(+), १२३१३६-२(+), १२३४५५(+$) (२) जयतिहुअण स्तोत्र-बालावबोध, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., गद्य, मूपू., (राजत्सुदर्शनमहानंदकं), १२३४५५(+$) (२) जयतिहुअण स्तोत्र-बालावबोध, मु. सार कवि; आ. जिनकुशलसूरि, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीमद्वामेयमानम्य), १२१६८६(+) (२) जयतिहअण स्तोत्र-भंडार गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. २, पद्य, मप., (परमेसर सिरिपासनाह), १२०७५३(#) जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु.,सं., ढा. ८, वि. १८५३, पद्य, मूपू., (स्मृत्वा गुरुपदांभोज), १२०४५७ For Private and Personal Use Only Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, मु. ज्ञानसार, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (सकलगुणगरिष्ठान्), १२०६१४-९४ जिनदत्तसूरि स्तुति, उपा. पुण्यसागर, प्रा.,मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सिरिसुयदेवि पसाउ करे), १२१२८६-३(+) जिनदेशनांते तंडुलप्रक्षेप विचार, सं., गद्य, श्वे., (अथ भगवद्देशनांते यद्भवति), १२२०८९-९(+) जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मप., (ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह), १२१२८१, १२२२६८ जिनपूजा विधि, प्रा.,सं., प+ग., दि., (जय जय जय णमोस्तु०), १२०६१९ जिनबिंबप्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., गद्य, मप., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १२०३४३(+$), १२३३४१(+#) जिनबिंबप्रतिष्ठामुहूर्त विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य स्वस्तिऋद्धिअ), १२०४७९($) जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पूर्वोक्त शुभ दिवसे), १२२००५(+), १२०४७७-१(#) जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.गु.,सं., प+ग., मप., (प्रणम्य स्वस्तिऋद्धिश्री), १२१११६(१) जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, मपू., (मूल गुंभारेकुं आछीतर), १२०१७६(+), १२१४२५-१ जिनबिंब प्रवेशस्थापना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, म्पू., (पहिलु मुहर्त भलु), १२२४४७($) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मप., (खेलं १ केलि २ कलि ३), १२३७९२ (२) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्लेष्मां १ क्रीडां २), १२३७९२ जिनसहस्रनाम पूजन भाषा, श्राव. चैन, पुहि.,सं., गा. २२०, वि. १९वी, प+ग., दि., (वृषभ आदि तीर्थेश नाभिकुल), १२०५०२-१(+) जिनसहस्रनाम स्तोत्र, सं., पद्य, स्पू., (--), १२१३०४(६) जिनस्तति प्रार्थना, सं., श्लो. ११, पद्य, मप., (प्रशमरसनिमग्न), १२३६४३-८(#) जीवविचार प्रकरण, मु. मणिविजय, सं., श्लो. ३८, वि. १९०८, पद्य, मपू., (प्रणम्य शिरसा पार्श्व), १२०५३३(+) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिरसा नाम मस्तकेण), १२०५३३(+) जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., गा. ५१, वि. ११वी, पद्य, मप., (भुवणपईवं वीरं नमिऊण), १२०६४८-१(+), १२१११५-१(+), १२१५०७(+#s), १२२४८८-१(+$), १२२६९६(+), १२२७१९(+), १२२८३८-६(+#), १२३२६८(+), १२१८०१-२५, १२३७६८-२, १२०२६७(#$), १२१७९८(), १२३३०४-३($) । (२) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (भुवनमाहि मिथ्यात्व), १२१५०७(+#$), १२२७१९(+) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन भुवन रै विषै), १२०६४८-१(+), १२१११५-१(+), १२२४८८-१(+$), १२३७६८-२, १२०२६७(#s), १२१७९८(5) जीवाभिगमसूत्र, प्रा., प्रतिप. १०, सू. २७२, ग्रं. ४७५०, गद्य, मूपू., (णमो उसभादियाणं चउवीस), १२१६४७(+#$), १२२६७३-२(+), १२३०३३(+), १२१८८५($) (२) जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मु. धनविमल, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीशांतिनाथमानम्य), १२३०३३(+) (२) जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (--), १२१६४७(+#$) जैनधर्म माहात्म्ये वैदिक साक्षीपाठ संग्रह, सं., प+ग., मूपू., (भारतेनुशासनपर्वणि), १२०५७०-१ जैन धार्मिक प्रश्नोत्तर-विविधग्रंथोक्त, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (द्वादशव्रतधारक केवल), १२३३४५(+$) जैन मंत्र संग्रह-सामान्य, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमो अरिहंताणं), १२०४३८-२, १२०३७९-३(#$), १२२५३९-१(#S) जैनशारदापूजन विधि, गु.,सं., प+ग., मूपू., (जैन विधिथी जे करे), १२०३७९-२(#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. २२५, ग्रं. ५५००, प+ग., मपू., (तेणं कालेणं० चंपाए), १२१४०७(+), १२१४३७(+), १२२४८२(+), १२२५४५(+$), १२२५८८(+$), १२२६४७(+#$), १२३००५(+#$), १२३१५६(+#$), १२३१७२(+#), १२३१९१(+$), १२३३१९(#$), १२३९३४(#$), १२०७६५(६), १२३०९९(१) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसरि, सं., अध्य. १९, ग्रं. ३८००, वि. ११२०, गद्य, मप., (नत्वा श्रीमन्महावीरं), १२३२५४(+) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तेणं काले०शब्दवाक्यालंकार), १२०५५८(६), १२३०९९($) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., ग्रं. ८५००, गद्य, मपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १२१४३७(+) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, ग. प्रेमजी, मा.गु., वि. १६९९, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १२१४०७(+) For Private and Personal Use Only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. १०५००, गद्य, मूपू., (ध्यात्वा वीरं जिनं०), १२२४८२(+) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार श्रीमहावीरने), १२२५४५(+$), १२२५८८(+$), १२३१५६(+#$) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-चयनित शब्द, प्रा., गद्य, मूपू., (बल०रूप०बंभ०नय०नियम०), १२२६०९(+#$) (३) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-चयनित शब्द का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इ०ताना प्रजा अध्येन पहिला), १२२६०९(+#5) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-प्रश्नशतक, संबद्ध, मा.गु., प्रश्न. १००, गद्य, मूपू., (ज्ञाताधर्मकथा साढितीन), १२३२६०-२१(+) ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (तिहां प्रथम पवित्र), १२२२१९-७(+#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (पंचानंतकसुप्रपंचपरमानंद), १२१८५१-३(+) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपति), १२१७६०-३(+), १२३०८१-३(+), १२३०६५-१, १२३६४६-३(#), १२२८४४-३(६) (२) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति-टीका, ग. कनककुशल, सं., वि. १६५२, गद्य, मूपू., (श्रीनेमिः पंचमीसत्तपसि), १२२८४४-३($) ज्ञानपहिरावणी गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (नमंत सामंतमही विनाह), १२१७५१-२(+) ज्योतिष, पुहि.,मा.ग.,सं., प+ग., जै., वै., इतर, (आदित्यं १सोम २मंगल), १२१८१९-२(+#), १२१९००-२(+), १२२०२४-२(+), १२३१४८-२(+), १२३१८३-२(+), १२१९१६-६, १२२४१२-३(2) ज्योतिष श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, वै., इतर, (ज्येष्ठार्क पश्चिमो), १२२५५९-२(#) ज्योतिष श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, इतर, (त्रिषडेएकादशी राह), १२३९१२-३ ज्योतिष श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मप., इतर, (ध्रुवघटी पुटपंक्ति), १२३०६०-५(+2) ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., श्लो. २, पद्य, जै., इतर?, (जन्मलग्नं वर्ष लग्ने), १२३०६१-१(2) ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., श्लो. २९४, पद्य, मूपू., इतर, (श्रीसर्वज्ञजिनं नत्वा), १२०५९५(+), १२१५६०(+#s), १२३७१७(+) (२) ज्योतिषसार-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (श्रीअरिहंतभगवानने), १२०५९५(+$) ज्योतिषसारोद्धार, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अ. ३, श्लो. ३३७, ग्रं. ५००, पद्य, मपू., इतर, (तं नमामि जिनाधीशं), १२३३९२(+) ज्वारारोपण विधि, मा.गु.,सं., पद्य, म्पू., (कुसंभकं वर्णकमंडपं), १२२८९३-३(+) डाहाजी दीक्षामहोत्सव पत्रिका, मा.गु.,सं., वि. १९६७, गद्य, श्वे., (स्वस्तिश्री ऋद्धिवृद्धि), १२२४१४ तंदलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग., मूप., (निज्जरिय जरामरणं), १२२१५१(+#) (२) तंदलवैचारिक प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (तप जप संजमनइ वलइ), १२२१५१(+#$) (२) तंदलवैचारिक प्रकीर्णक-हंडी, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मप., (--), १२१२३३-१(६) तत्त्वविचार श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (तत्त्वानि७ व्रत१२), १२३४१७-६(+#), १२३७७६-१ (२) तत्त्वविचार श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (जीव तत्त्व१ अजीव तत्त्व२), १२३७७६-१ तत्त्वसार, आ. देवसेन, प्रा., पर्व. ६, गा.७४, पद्य, दि., (झाणग्गिदड्ढकम्मे), प्रतहीन. (२) तत्त्वसार-पद्यानुवाद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., चौपा. ७४, वि. १८वी, पद्य, दि., (आदिसुखी अंतःसुखी), १२०३२६-५(+) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., अ. १०, गद्य, मूपू., दि., (सम्यग्दर्शनशुद्धं), १२१२०५-१(+$), १२२६४९(+) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-श्रुतसागरी टीका (दि.), आ. श्रुतसागरसूरि, सं., गद्य, मूपू., दि., (सिद्धोमास्वामि), १२२६४९(+) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-टबार्थ , पुहिं., गद्य, मप., दि., (सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान),१२१२०५-१(+$) । तपग्रहण विधि-पंचमीअष्टमीएकादशी आदि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूप., (शुभ दिनइ राइ प्रायश्चित), १२२२१९-९(+#) ताजिकसार, हरिभट्ट, सं., द्वा. ४४, श्लो. ४००, श. ११०५, पद्य, वै., इतर, (श्रीरामस्य पदारविंदयुगल), प्रतहीन. (२) ताजिकसार-कारिका टीका, ग. सुमतिहर्ष, सं., वि. १६७७, गद्य, मूपू., वै., इतर, (श्रीसूर्यचंद्रारबुधंद्र०), १२३७३३(+) तिजयपहुत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., गा. १४, पद्य, मप., (तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ), १२११४७-२(+$), १२३४१७-२(+#$), १२३४७९-४, १२३१५०(#), १२०९३५-३($) (२) तिजयपहत्त स्तोत्र-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., (कृत्वा चतुर्णां संपूर्णा), १२१२४९(#$) तीर्थमाला चैत्यपरिपाटी, अप., गा. २९, पद्य, मप., (पंच परमिठि पणमिये भाव), १२३५४३(+) For Private and Personal Use Only Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., श्लो. १०, पद्य, मप., (सद्भक्त्या देवलोके रविशशि), १२३७५६(+#), १२३५२६ त्रिपराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., श्लो. २४, पद्य, वै., (ऐंद्रस्यैव शरासनस्य), १२०५५१-१(+) (२) त्रिपुराभवानी स्तोत्र-ज्ञानदीपिका टीका, आ. सोमतिलकसूरि, सं., ग्रं. ४७०, वि. १३७९, गद्य, मूपू., वै., (सर्व्वज्ञं पुंडरीकाख्य), १२०५५१-१(+) त्रिलोकसार, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., अधि. ६, गा. १०१८, पद्य, दि., (बलगोविंदसिहामणिकिरण), प्रतहीन. (२) त्रिलोकसार-टीका, मु. माधवचंद्र विद्य, सं., गद्य, दि., (श्रीमदप्रतिहतामनि), प्रतहीन. (३) त्रिलोकसार-टीका की भाषावचनिका, ब्र., प+ग., दि., (त्रिभुवनसार अपार गुणज्ञाय), १२२४८०(+S) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पर्व. १०, ग्रं. ३५०००, वि. १२२०, पद्य, पू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठानम), १२२५३०(+#$), १२३७१५(+), १२२६०५(#), १२२६५७(#) (२) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-परिशिष्टपर्व, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., स. १३, ग्रं. ३४६०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (श्रीमते वीरनाथाय), १२२५१७(+$) (२) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २६, वि. १२वी, पद्य, मप., (सकलार्हत्प्रतिष्ठानम), १२१६२८(+$), १२२०९७(+$), १२३४८४(+#$), १२३५३८(+), १२३६७६-२(+), १२२२५४-२, १२२९६४ (३) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमः श्रीपार्श्वनाथाय), १२३४८४(+#S), १२३६७६-२(+) त्रैलोक्यप्रकाश, आ. हेमप्रभसूरि, सं., श्लो. १२५०, पद्य, मूपू., इतर, (श्रीमत्पार्थाभिधं देव), १२०५७३(+#) दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., गा. ४४, वि. १५७९, पद्य, मप., (नमिउं चौवीस जिणे), १२०५४६(+), १२०६४८-२(+), १२१६७६(+), १२२०४१(+), १२३०८०(+), १२३३८६(+#), १२३४१७-३(+#$), १२२५९४(#$), १२१६१३(६), १२२२५४-१(६) (२) दंडक प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्करी चउवीस तीर्थंकर), १२१६७६(+) । (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, पं. रविवर्द्धन, मा.गु., वि. १७१३, गद्य, मूपू., (नमिउं कहिता नमस्कार करीनइ), १२३३८६(+#) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, पू., (ऋषभादिक २४ जिननै), १२०६४८-२(+), १२१६७६(+), १२२०४१(+$) दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., अध्य. १० चूलिका २, वी. २वी, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), १२०५१९(+-2), १२०५३८(+), १२०६६९(+), १२०९४५(+६), १२१०६०(+$), १२१४९१(+#), १२१५००(+$), १२१५६३(+), १२१६३३(+), १२१७१०(+), १२१७४१(+), १२१८६८(+), १२१९१४(+), १२२६२५(+$), १२२७६१(+), १२३२५०-१(+#$), १२३२५६(+$), १२३३२४(+), १२३३२८(+S), १२३४७१(+$), १२३५६७(+$), १२३६९८(+#), १२३७९५(+), १२०७९८, १२१०८८, १२१६९५, १२२५७१, १२२९४०, १२०६५०(), १२१८९७(६), १२३१४३(६), १२३६०९(5) (२) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मु. श्रीपाल, मा.ग., गद्य, मपू., (श्रीजिनधर्म उत्कृष्ट), १२०५३८(+), १२०६६९(+), १२१७१०(+), १२१८६८(+) (२) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूप., (ध० जीवनइ दुर्गति पडता), १२१४९१(+#), १२१५००(+), १२२६२५(+$), १२२७६१(+), १२३२५०-१(+#s), १२३२५६(+5), १२३४७१(+5), १२३५६७(+$), १२३६९८(+#), १२३७९५(+), १२२५७१, १२०६५०(), १२३६०९(६) । (२) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रमपुष्पिका अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., गा. ५, पद्य, मपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), प्रतहीन. (३) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रमपुष्पिका अध्ययन का सज्झाय, संबद्ध, मु. सत्यसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (सकल मंगल ___ शीरशेहरो हुवा री), १२१८२८ (२) दशवैकालिकसत्र-धम्मोमंगल सज्झाय, संबद्ध, म. जेतसी, मा.ग., गा. १९, पद्य, मप., (धम्मो मंगल महिमा), १२३३०७(१) (२) दशवैकालिकसूत्रमाहात्म्य गाथा, संबद्ध, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिज्जंभवं गणहरं जिणपडिमा), १२३२५०-२(+#$) (३) दशवैकालिकसूत्रमाहात्म्य गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिज्जंभवनामा गणधर), १२३२५०-२(+#$) (२) दशवैकालिकसूत्र-शांतिजिन स्तवन, संबद्ध, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (शांति जिनेश्वर साचो), १२०२३४-३(#) For Private and Personal Use Only Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ ४८९ (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, वा. कमलहर्ष, मा.गु., अ. १०, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (मंगलिक महिमा निलो रे), १२०८७१-९ (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., सज्झा. १०, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (धर्ममंगल महिमा निलो), १२१०९७-१, १२१९७२-२(६), १२३७९६($) (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., सज्झा. ११, गा. १०८, पद्य, मपू., (श्रीगुरूपदपंकज नमीजी), १२३४९८(+), १२३५१८-२ दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., दशा. १०, ग्रं. १३८०, पद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० हवइ), १२०४३५(+5), १२१२३५(+), १२१७२५(+), १२२८१७(#$) (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र-चूर्णि#, प्रा.,सं., ग्रं. २२२५, गद्य, मूपू., (मंगलादीणि सत्थाणि०), १२२८१७(#$) (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र-जनहिताटीका, मु. ब्रह्मर्षि, सं., ग्रं. ३१००, गद्य, मप., (यथास्थिताशेषपदार्थसार्थ), १२०४३५ (+$) (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र-टबार्थ, मु. केशव ऋषि, मा.गु., वि. १७०८, गद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिनं नत्वा), १२१२३५(+) (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, स्पू., (श्रीदशाश्रुतस्कंध), १२१७२५(+) दांडीधर विधि, प्रा.,मा.ग., गद्य, मप., (प्रथम इरियावहि), १२२९४९-२(2) दानकल्पद्रुम, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., पल्ल. ९, पद्य, मूपू., (स श्रेयस्त्रिजगद्ध्येयः), १२२५०३($) दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., गा. ५०, पद्य, पू., (देवाहिदेवं नमिऊण), १२०९४२ (२) दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, स्था., (देवाधिदेवनइं नमस्कार), १२०९४२ दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., वक्ष. ४, गा. ८१, पद्य, मपू., (परिहरिय रज्जसारो), १२२४४६(+$) (२) दानशीलतपभावना कुलक-धर्मरत्नमंजूषा टीका, ग. देवविजय, सं., ग्रं. १२०१६, वि. १६६६, गद्य, मूपू., (ॐ नमो नाभिभूपालसंभवाय), १२२४४६(+$) (२) दानशीलतपभावना कुलक-वृत्ति, मु. लाभकुशल, सं., वि. १८वी, गद्य, मूपू., (महावीरं नमस्कृत्य), १२३०३४(#$) दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (दीक्षा लेतां एतला), १२१४२६(+) । दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पुच्छा वासे चिइ वेसे), १२४०२५($) दीक्षा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मप., (मलपुनर्वसुस्वाति), १२२१७५ (+$) दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मप., (संध्यायां चारित्रोपकरण), १२२२१९-१५(+), १२३४९४(+) दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., श्लो. ४३७, ग्रं. १५००, वि. १४८३, पद्य, मप., (श्रीवर्द्धमानमांगल्य), प्रतहीन. (२) दीपावलीपर्व कल्प-टीका, सं., गद्य, मूपू., (न स्वामिनो नमस्कारात्मक), १२१९६०(+#$), १२१९२७($) (२) दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध+कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखदातार), १२३४५०(+$) दीपावलीपर्व कल्प, प्रा.,सं., गा. १३७, प+ग., मप., (उप्पायविगमधुवमयमसेस), १२०७५५-२(+#) (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, ग. ऋद्धिविजय, मा.गु., गद्य, मूप., (उपजै १ विनाशया मैं), १२०७५५-२(+#) दीपावलीपर्व कल्प, सं., गद्य, मूपू., (श्रीगौतम गणाधीशो), १२१८०९-३(+) दीपावलीपर्व गणना, मा.गु.,सं., गद्य, पू., (भगवान महावीर स्वामीय), १२१३४७-९(+) दरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ४४, पद्य, स्पू., (दुरिअरयसमीरं मोहपंको), १२०६३९-१(+#), १२११६७(+#S), १२३४१७-४(+#) (२) दरिअरयसमीर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (दुरित पाप रज परिहार करिवा), १२०६३९-१(+#) (२) दरिअरयसमीर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (द्रिय० दुरित कहतां), १२११६७(+#$) दर्गा स्तति-एकश्लोकी, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (या अंबा मधुकैटभप्रमथिनी), १२२३५८-४(#) दृष्टांतकथागत संदर्भ गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (ओहावसी पोहावसी ममं चेव), १२०२८४(+$) दृष्टांतकथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मप., (रे दालिद्दवियक्खणवत्), १२१३८८-१(#$) देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नमोत्थुणं कहीने भगवन), १२४००५-१ देवेंद्रलक्षण, मु. देवेंद्र, सं., अ. ३, गद्य, मूपू., इतर, (सिधिरनुक्तानां रूढेः), १२१६८३(+) For Private and Personal Use Only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) देवेंद्रलक्षण-वृत्ति, सं., अ. ३, गद्य, पू., इतर, (सरस्वतीं नमस्कृत्य), १२१६८३(+) (३) देवेंद्रलक्षण-वृत्ति की ढुंढिका वृत्ति, सं., अ. ३, गद्य, मूपू., इतर, (ऊँकारबिंदुसंयुक्तं नित्यं), १२१६८३(+) (४) देवेंद्रलक्षण-वृत्ति की ढुंढिका वृत्ति का बालावबोध, मा.गु., अ. ३, गद्य, मूपू., इतर, (सकल शासनाभीष्ट ते नमस्करी), १२१६८३(+) देशावगासिक पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, मूपू., (अहण्णं भंते तुम्हाणं), १२१५०८(+) देशावगासिकपच्चक्खाण ग्रहणविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (श्रीथापनाचार्यजी आगै १), १२२२१९-११(+#) दोषशकुनावली, मु. भावरत्न-शिष्य, सं., पद्य, मूपू., इतर, (यस्योत्तमामलविभांचितपाद०), १२०९६४(#$) द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., अधि. ३, गा. ५८, पद्य, दि., (जीवमजीवं दव्वं जिणवरवसहेण), १२१३६०(#$) (२) द्रव्य संग्रह-बालावबोध, मु. हंसराज, मा.गु., गद्य, मप., दि., (श्रीमज्जिनेंद्रदेवानां), १२१३६०(#S) (२) द्रव्य संग्रह-पद्यानुवाद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., सवै. ६४, पद्य, दि., (रिषभनाथ जगनाथ सुगुन मन), १२०३२६-६४(+) द्वादशांगीपुरुष विचार, सं., गद्य, श्वे., (पुरुषद्वादशांगानि यथा), १२०१७७-४(+#) द्विप्राहरिकराम कथा, सं., गद्य, मूपू., (भाग्येन सर्वसंपत्ति), १२२७६८-२(#) द्विसंधान महाकाव्य, जै.क. धनंजय कवि, सं., स. १८, श्लो. ११०५, पद्य, दि., इतर, (श्रियं जगद्बोधविधौ व), १२०७४९(+#$) (२) द्विसंधान महाकाव्य-पादकौमुदी टीका, मु. नेमिचंद्र, सं., स. १८, गद्य, दि., इतर, (--), १२०७४९(+#$) धनफलीगण सारणी, सं., श्लो. १४, पद्य, श्वे., इतर, (प्रणम्य भास्करादींश्च), १२११५५ (२) धनफलीगण सारणी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., इतर, (सूर्यादि नव ग्रहने), १२११५५ धर्मध्यान लक्षण, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (धम्मेज्झाणे चउविहे), १२१०९५(+) धर्मपरीक्षा, य. अमितगति, सं., परि. २०, पद्य, दि., (श्रीमान्नभस्वत्त्रयतुंग०), प्रतहीन. (२) धर्मपरीक्षा-पद्यानुवाद, श्राव. मनोहरदास सोनी खंडेलवाल, पुहिं., गा. २०७१, वि. १८वी, पद्य, दि., (प्रणमौं अरिहंत देवगुरु), १२०३१०(+$) धर्मप्रभावक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (धर्मतः सकलमंगलावली), १२२७२१-१(+#) (२) धर्मप्रभावक श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (अहो भव्य जीवो इणि), १२२७२१-१(+#) धर्मोपदेश काव्य, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., प्रक्र. १२, श्लो. ११०, पद्य, मूप., (ओमित्यक्षरमक्षरद्युतिधरं), १२३७०५ (२) धर्मोपदेश काव्य-स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., वि. १७४५, गद्य, मपू., (श्रीपार्श्व प्रणिपत्यादौ), १२३७०५ धर्मोपदेश श्लोकसंग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ९०, पद्य, मूप., इतर, (श्रेष्ठे संग श्रुतौ रंगः), १२३८९६(+#) धर्मोपदेश श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (संसारेमावन्नपरस्स), १२०४०८-१९०(+) (२) धर्मोपदेश श्लोक संग्रह-अर्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (जीव संसारमा अवतो), १२०४०८-१९०(+) नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., सूत्र. ५७, गा. ७००, प+ग., मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), १२०८८९(+#), १२०९१८(+), १२३३५२(+), १२२३९८, १२१३५२-२, १२१८७७(#), १२२८४२(#$), १२१२५८($) (२) नंदीसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (नंदी ते आनंदनी देणहारी ते), १२३३५२(+) (२) नंदीसूत्र सज्झाय, संबद्ध, मु. शिवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुगुण सोभागी हो), १२०६१७-१ (२) नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (जयइ जगजीवजोणी विआणओ), १२३३९५-१(+#$), १२२३२५ नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद. ९, पद्य, मूपू., (णमो अरिहंताणं), १२३२११-१, १२३२२० (२) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (बारसगुण अरिहंता), १२३८९१-१(+६), १२०१६९-२, १२३२११-१, १२३२२०() (२) नमस्कार महामंत्र आम्नाय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मप., (ॐ ह्रीं श्रीं क्ली), १२२३०२(5) (२) नमस्कार महामंत्र स्तव, संबद्ध, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., गा. ३३, पद्य, मप., (परमिट्ठि नमुक्कार), १२३८३३ (२) नमस्कार महामंत्र-यंत्र, प्रा., यं., मप., (--), १२३६४०-६ नमस्कारमहामंत्र कल्प, प्रा.,सं., गद्य, मप., (पंचादिपदानां परमेष्टि०), १२३६१४-१,१२२५३९-६(2) For Private and Personal Use Only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ ४९१ नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (नमिऊण पणय सुरगण), १२११९६-१(+) नमुत्थुणं कल्प, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. १६, पद्य, मूपू., (ॐ नमुत्थुणं अरिहंता), १२३०३६(+) नवग्रहजाति उत्पत्तिस्थान, प्रा.,सं., गा.१, पद्य, वै., इतर, (कंसारो भरडो लोहार), १२१२७३-२(+), १२२९७२-२(+) (२) नवग्रहजाति उत्पत्तिस्थान-टबार्थ, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (सूर्य कंसारो चंद्रमा), १२१२७३-२(+) नवग्रह स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभजिनेंद्रस्य), १२३५४५-४(+) नवतत्त्व प्रकरण, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (जीवाजीवापुण्णं पावासव), १२२४८८-२(+$) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (--), १२२४८८-२(+$) नवतत्त्व प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १०७, पद्य, मप., (जियअजियपुन्नपावासवसंवर), १२०८४५(5) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (--), १२०८४५(६) नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., गा. १०७, पद्य, मूपू., (जीवाजीवापुन्नं पावा), १२०७४५(5) (२) नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा-हिस्सा ६ द्रव्यपरिमाणविचार गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (परिणामि जीव मुत्ता), १२२०१९(5) (३) नवतत्त्व प्रकरण-हिस्सा ६ द्रव्यपरिणामविचार गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवे षद्रव्यने), १२२०१९(5) नवतत्त्व प्रकरण २९ गाथा, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (जीवा अजीवा पुन्न), १२१०१३-१(+$), १२२८७५ (+#) (२) नवतत्त्व प्रकरण २९ गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूप., (यथास्थित साचउ जे वस्तुनउ), १२१०१३-१(+$) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुण्णं पावा), १२०६५९(+), १२१११५-२(+), १२१५२६-१(+), १२१९८०-२(+#), १२२४९३-१(+), १२२८१९(+), १२२८३८-५(+#), १२३०२४-१(+), १२३१११(+), १२३३४९-२(+#$), १२३३६१(+), १२३५३०(+), १२३६२४(+#S), १२३८२९(+5), १२०६९३, १२१८०१-२४, १२३३०४-२, १२०७९४(#s), १२१५०२(#$), १२३०९२(#$), १२३७६८-१(६) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टीका, सं., गद्य, मूपू., (जयति श्रीमहावीरः), १२०७९४(#$) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध, ग. हर्षवर्द्धन, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीवर्धमानप्रभु), १२३३६१(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), १२०४४९(+), १२३५३०(+), १२०२७४(#$) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध*, रा., गद्य, मप., (जीवाजीवा० जीवतत्त्व), १२३८२९(+$), १२३०९२(#$) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवे विवेकी सम्यगदृष्टिने), १२३२६०-१(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व जे मांहि), १२०६५९(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव कहतां च्यार), १२१११५-२(+s), १२१५२६-१(+), १२१९८०-२(+#), १२२४९३-१(+), १२३०२४-१(+), १२३१११(+), १२३६२४(+#s), १२३७६८-१(६) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (दश प्राण धारई ते), १२१५०२(#$) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (हवे विवेकि सम्यग्दृष्टिने), १२०४९०(+$) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), १२०९४४, १२३८०५ नवपद खमासण विचार, पुहिं.,सं., गद्य, मूपू., (तिहां प्रथम पदै), १२२११० नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पूजा. ९, पद्य, मपू., (उपन्नसन्नाणमहोमयाणं), १२१५१५(+#), १२०६१४-१, १२०६८७, १२१८१०-१, १२२४५३-४, १२०५१५-१(#), १२३४६४(#), १२०५५०(६), १२०७००(६), १२३७१०-२($) नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., स्मर. ९, प+ग., मपू., (नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्), १२०३५२-१(+), १२२७७३(+$), १२३६५८(+$), १२३८२०(+$), १२३१९९-१(#S), १२३६१०(#$), १२२०४३($) (२) नवस्मरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (अरिहंतनइं माहरो नमस्कार), १२३६१० (#$) निर्णयप्रभाकर, मु. झवेरसागर, सं.,हिं., ग्रं. १५५१, वि. १९३०, प+ग., मपू., (श्रीजैनेंद्रवचः समस्ति), १२१०६४($) निशीथसूत्र, प्रा., उ. २०, ग्रं. ८१५, गद्य, मूप., (जे भिखु हत्थकम्म), १२०८०३-१(+), १२०९७७-१(+), १२१५५१(+) (२) निशीथसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हुवो सु० श्रुत), १२०८०३-१(+), १२०९७७-१(+), १२१५५१(+) नेमराजिमती पद, सं., श्लो. १, पद्य, मप., (स एव नेमनाथोयं), १२३६४३-५ (#) For Private and Personal Use Only Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९२ __ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ नेमिजिन स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु.,सं., गा. ४, पद्य, मूप., (दुरितभयनिवारं मोहविध्वंस०), १२११०६-२ नेमिजिन स्तोत्र, प्रा., गा. ८, पद्य, मपू., (जय नमि० नमि अवर पय पंकय), १२३६०७-३ नैषध चरित्र, क. श्रीहर्ष, सं., स. २२, श्लो. २८३०, ई. ११वी, पद्य, वै., इतर, (निपीय यस्य क्षितिरक्षिणः), प्रतहीन. (२) नैषध चरित्र-टीका, उपा. रत्नचंद्र, सं., गद्य, मूपू., वै., इतर, (--), १२३९६४(#$) पंचजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., आख्या. ५, गा. १३२, पद्य, मप., (नमियजिणमसभमभयंसदेसविलसंत), १२३८३०(+) पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मपू., (ॐ नमः विश्वनाथाय), १२०७४१-८(+) पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ३, पद्य, पू., (श्रीशत्रुजयशैलराजमुकुटः), १२०७४१-१(+) पंचतीर्थजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयमुख्यतीर्थ), १२११०६-६ पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन गाथा, प्रा.,सं., गा. १, पद्य, मपू., (बारसगुण अरिहंता सिद्धा), १२३९२५(+$) (२) पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बार गुण अरिहंतना), १२३९२५(+$) पंचपरमेष्ठी स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. ३५, पद्य, मप., (भत्तिभरअमरपणयं पणमिय), १२३६३३-२ पंचमीतिथि व्रतोद्यापन विधि, मु. हर्षकीर्ति, सं., श्लो. १२, पद्य, दि., (--), १२०३४८-१(+$) पंचमेरू पूजा, जै.क. भूधरदास, पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., दि., (संवौषडाहूय निवेश्य), १२०६५८-४(+) पंचांगुलीदेवी मंत्र, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ॐ पंचागुली २ परिसर), १२०५८५-३ पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पंचा. १९, गा. ९४०, ग्रं. ११८७, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं सावगधम्म), १२३३३८(+) पक्खीचौमासीसंवच्छरी तप विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (चउत्थेणं एक उपवास), १२२९५१-२(#) पच्चक्खाण आगार गाथा, प्रा., पद्य, मप., (नवकार १ पोरिसीए २), १२१९०९-२(#) पट्टावली-उपकेशगच्छीय, मा.ग.,सं., गद्य, मप., (श्रीपार्श्वनाथ २३मा०), १२३३१२(+#) पट्टावली खरतरगच्छीय, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८३०, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जगन्नाथं), १२०८०२(+) पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (गुब्बरग्रामवासी वसुभूति), १२०६५६(+) पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., श्लो. १४, पद्य, मप., (नमः श्रीवर्धमानाय), १२२७६९-१(+) पट्टावली तपागच्छी, मु. जयविजय, प्रा., गा. २७, पद्य, मपू., (पणमिअ वीर जिणंद गुणनिलयं), १२२१४६(#) (२) पट्टावली तपागच्छी-टीका, सं., गद्य, मपू., (ज्ञान दर्शनरोचिष्णु), १२२१४६(#$) पट्टावली तपागच्छीय, उपा. धर्मसागर गणि, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (सिरिमंतो सुहहेउ), १२३२३९(+#), १२२१८७(६) (२) पट्टावली तपागच्छीय-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागर गणि, सं., गद्य, मपू., (सिरिमंतोत्ति यत्तदो), १२३२३९(+#) (२) पट्टावली तपागच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए श्रीपजूसणकल्प गुरु), १२२१८७($) पद्मनंदीपंचविंशतिका, मु. पद्मनंदी, प्रा.,सं., अ. २६, श्लो. ९३९, पद्य, दि., (कायोत्सर्गायतांगो जयति), १२०६०९(+) (२) पद्मनंदीपंचविंशतिका-भाषावचनिका, श्राव. जोहरीलाल; श्राव. मन्नालाल, पुहिं., अधि. २५, वि. १९१५, गद्य, दि., (इस ग्रंथ के पच्चीस अधिकार), १२०६०९(+) पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, मा.गु.,सं., गा. १०, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं कलिकुंडदंड), १२०४६०-७ पद्मावतीदेवी स्तव, सं., श्लो. २७, पद्य, मप., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), १२२५६१-१(#) पद्मावतीदेवी स्तोत्र, पंडित. श्रीधराचार्य, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (जयंती भद्र मातंगी), १२२३५४-२(६) पद्मावतीदेवी स्तोत्र-सबीजमंत्र, मु. मुनिचंद्र, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., (ॐ ॐ ॐकार बीज), १२२४४८(+) पद्मावतीसहस्रनाम स्तोत्र, सं., शत. १०, श्लो. १३५, पद्य, मपू., (प्रणम्य परया भक्त्या ), १२१५३६(+#$) परमेश्वराष्टक, मु. जयवल्लभ, सं., श्लो. ९, पद्य, मपू., (कल्याणकल्पद्रुमवारिवाह), १२२३१४-२(#) पर्यंताराधना-गाथा २९, आ. सोमसूरि, प्रा., गा. २९, पद्य, मपू., (नमिउण भणइ एवं भयवं), १२३१३३ (२) पर्यंताराधना-गाथा २९ -बालावबोध, मा.ग., गद्य, मप., (देव नमस्कारि ज्योहउ), १२३१३३(६) पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., गा. ७०, ग्रं. २४५, पद्य, मूपू., (नमिउण भणइ एवं भयवं), १२१३०५(+#$), १२२४५७ (२) पर्यंताराधना-गाथा ७०-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करिने), १२१३०५(+#$), १२२४५७ पर्यंताराधना विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रथम इरियावही), १२३७७७(+$) For Private and Personal Use Only Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., श्लो. ६२४, वि. १७८९, पद्य, मूपू., (स्मृत्वा पार्श्व), १२०४५०(+$) (२) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्मृ० श्रीपार्श्वनाथ), १२०४५०(+$) पल्योपम सागरोपमभेद विचार, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (आयुर्वर्जानां सप्तानां), १२२१५५-१ पश्चिमाधीश स्तोत्र-रत्नमय, मु. पद्म, सं., पद्य, जै., वै.?, (कल्याणांकुरवारिवाहविलसत्), १२२३१४-१(#) पांडव चरित्र, आ. देवप्रभसूरि मलधारी, सं., स. १८, ग्रं. ८०००, पद्य, मूप., (श्रियं विश्ववयत्राण), १२३५८२(5) पार्श्वजिन १० भव संक्षिप्तवर्णन*, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (पासे नामंति भ्रातरावरविंद), १२२२१९-२०(+#) पार्श्वजिन अष्टक-महामंत्रगर्भित, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (श्रीमद्देवेंद्रवृंदामल), १२३१४४-१(+) पार्श्वजिन चरित्र, मु. हेमविजय, सं., स. ६, श्लो. ३०५६, ग्रं. ३१६०, वि. १६३२, पद्य, मपू., (श्रिये तत्परमं ज्योति), १२३२१७(+$) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मपू., (ॐ नमः पार्श्वनाथाय सिद्ध), १२०७४१-७(+) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ७, पद्य, भूपू., (ॐ नमो विश्वविख्यात०), १२०७४१-४(+) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-चिंतामणि, सं., श्लो.७, पद्य, मप., (नमो देवनागेंद्रमंदार), १२३७३०-२ पार्श्वजिन चैत्यवंदन-चिंतामणि, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य), १२३६४३-७(#) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (वरसं वरसं वरसं वरसं), १२२७३८(+) (२) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (वरं प्रधाना संवरस्य), १२२७३८(+) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-शंखेश्वर, सं., श्लो. ५, पद्य, मप., (अपपुजत्यां विनमिर्नमिश्च), १२०५०७-१०(+#) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, सं., श्लो. ३, पद्य, श्वे., (सकलभविकचेतः कल्पना), १२०७४१-३(+) पार्श्वजिनद्वात्रिंशिका-चिंतामणि, आ. जिनपतिसूरि, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूप., (जगद्रे जगद्देवं), १२०३४८-२(+$) पार्श्वजिन मंगलश्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीविलसत्कर), १२१५८८-२(+) पार्श्वजिनमंत्र विधान-कलिकुंड, सं., गद्य, मूपू., (ॐह्रीं श्रीं तं नमह पास), १२३५४५-२(+) पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., श्लो. ३३, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वः पातु वो), १२३९०० पार्श्वजिनसहस्रनाम स्तोत्र, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., श्लो. १५०, पद्य, मप., (पार्श्वनाथो जिनः), १२०९०८ पार्श्वजिन स्तव-अट्टेमद्देमंत्राम्नायगर्भित, आ. अजितसिंहसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मप., (ॐ नमो भगवते श्री), १२३५४५-१(+) पार्श्वजिन स्तव-करहेटक, सं., श्लो.५, पद्य, म्पू., (आनंदभंदकुमुदाकर), १२२७०२(+) । पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, उपा. देवकुशल पाठक, सं., श्लो. ७, पद्य, भूपू., (स्फुरदेवनागेंद्रवृंदार), १२१२६९-२, १२३७६०-१ पार्श्वजिन स्तव-जीरापल्ली, आ. लक्ष्मीसागरसूरि, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (श्रीवामेयं विधुमधुसुधासार), १२०५०७-६(+#) पार्श्वजिन स्तवन-घोघापुरमंडन, सं., श्लो. ९, पद्य, मप., (नतदानवमानवदेवगणं कलकैरव), १२३७३०-५ पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. सोमजय, अप., गा. ४४, वि. १६वी, पद्य, मप., (जीराउलि राउलि कयनिवास), १२०८४४ पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (श्रीसेढीतटिनीतटे), १२३६४३-६(#) पार्श्वजिन स्तुति, मु. हितविजय, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू., (संसारदावानलदाहनीरं), १२०८५०-३ पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अमरगिरिशिरस्थस्फार), १२३५८६-१६(+) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (कल्याणानि समुल्लसंति), १२३०८१-२५(+) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (हर्षनतासुरनिर्जरलोकं), १२१८५१-१२(+) पार्श्वजिन स्तुति-विविध तीर्थमंडण, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ४, पद्य, मपू., (श्रीसेढीतटिनीतटे पुरवरे), १२३१३६-३(+) पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (हर्षनतासुरनिर्जरलोकं), १२१८५१-७(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (क्षितिमंडलमुकुट), १२१५२५-४(#$) पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु.,सं., गा. १४, पद्य, मूपू., (नमु सारदा सार), १२३६४८ पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (किं कर्पूरमयं सुधारसमयं), १२३७३०-६, १२१८०१-३ पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., श्लो. १४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (ॐ नमो देवदेवाय), १२२३५४-१ For Private and Personal Use Only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., गा. ३२, वि. १७१२, पद्य, मूपू., (जय जय जगनायक), १२२१९८(+#5), १२२१००-१ पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, आ. हंसरत्नसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (महानंदलक्ष्मीघनाश्लेष), १२२९०५-१ पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ नमः पार्श्वनाथाय), १२०४४१-१, १२३१९९-२(#) पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., श्लो. १९६, पद्य, मूपू., वै., इतर, (महादेवं नमस्कृत्य), १२२५७९(#$), १२३५७१(६) (२) पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मप., वै., इतर, (१११ उत्तम थानक लाभ), १२२८१६, १२३३४४, १२०३७९-१(#S), १२१६५६(#$), १२१९३३(#$), १२१८६१(६) पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १०३, पद्य, मप., (देविंदविंदवंदिय पयारविंदे), १२१३०८(+), १२३११७ (२) पिंडविशुद्धि प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (देवि०शोभनं विहितमनुष्टान), १२२८३४(+$) (२) पिंडविशुद्धि प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (देव भुवनपति इंद्र), १२३११७ पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., गा. १६, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (छत्तीसदिणसहस्सा वाससय होइ), १२३१००(+$) (२) पुण्यपाप कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (हवै सो वर्षना दिन), १२३१००(+$) पुण्यलक्ष्मी विवाद, सं., श्लो. ११४, पद्य, मूपू., (अंगदेशो महादेशो कनकाख्यं), १२२७६८-१(#) पुद्गलपरावर्तस्वरूप विचार-चतुर्विध, सं., गद्य, मपू., (स्यात्पुद्गलपरावर्त), १२२१५५-२ पुरंदरनप कथा, ग. पद्मकीर्ति, प्रा.,सं., वि. १८वी, गद्य, मपू., (समय भणिएण विहिणा सुत्त), १२२१६३(+) पुराणहुंडी, मा.गु.,सं., श्लो. २७८, पद्य, श्वे., वै., (श्रूयतां धर्मः सर्वेषां), १२०७०८(+) (२) पुराणहुंडी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., वै., (ध० धर्म सघलाइं सांभल), १२०७०८(+) पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (जइ णं भंते समणेणं०), १२२२४७-४(+), १२२४०६-४(+#), १२२७६४-४(+), १२२९४६-४(+), १२२९८९-४(+), १२३२०२-४(+#), १२३५६०-४(+#), १२२६०८-४(#) (२) पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागदेवने नमस्कार), १२२२४७-४(+), १२२४०६-४(+#), १२२७६४-४(+), १२२९८९-४(+), १२३२०२-४(+#) । पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., द्वा. २०, गा. ५०५, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (सिद्धं कम्ममविग्गह), १२२१२५(+$), १२२८३७(+$), १२३०२२-१(#) (२) पुष्पमाला प्रकरण-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरं धीरं), १२२१२५(+$) (२) पुष्पमाला प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (सिद्ध त्रैलोक्यमांहि जाणी), १२३०२२-१(#) पुष्पिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (जति णं भंते समणेणं०), १२२२४७-३(+), १२२४०६-३(+#), १२२७६४-३(+), १२२९४६-३(+), १२२९८९-३(+), १२३२०२-३(+#), १२३५६०-३(+#), १२२६०८-३(#) (२) पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जौ हे पूज्य० श्रीमहावीरइ०), १२२२४७-३(+), १२२४०६-३(+#), १२२७६४-३(+), १२२९८९-३(+), १२३२०२-३(+#) पूजा प्रकरण, वा. उमास्वाति, सं., श्लो. १९, पद्य, मूपू., (स्नानं पूर्वोन्मुखीभूय), १२१६६६-१(+) पूजा प्रकरण, सं., श्लो. १४, पद्य, मूपू., (आसने वाहने चैव), १२१६६६-२(+) पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकसूरि, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वनाथांहि), १२२४३५(+), १२२०९९($) पौषदशमीपर्व कथा, मु. जिनेंद्रसागर, सं., श्लो. ७५, पद्य, मप., (ध्यात्वा वामेयमहँतममेयं), १२१७५६(+) (२) पौषदशमीपर्व कथा-टबार्थ, मु. उदयसागर, मा.गु., वि. १९वी, गद्य, मपू., (पार्श्वनाथ स्वामी प्रते), १२१७५६(+$) पौषदशमीपर्व कथा, सं., गद्य, मूप., (अभिनवमंगलमालाकरणं), १२१८०९-७(+) पौषध पारने की विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूप., (इरियावही पडिकमी), १२१८६५-३(+) प्रकृतिविच्छेद प्रकरण, आ. जयतिलकसूरि, सं., श्लो. १३९, पद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरजिनं नत्वा), १२२१४२(+), १२०९१६-१(६) प्रकृतिस्वरूपसंरूपण प्रकरण, आ. जयतिलकसूरि, सं., श्लो. १८१, पद्य, स्था., (देवभद्रं सकल्याणं), १२०९१६-३($) । प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., पद. ३६, सू. २१७६, ग्रं. ७७८७, गद्य, मपू., (नमो अरिहंताणं० ववगय), १२२७६५(+S), १२३४४०) For Private and Personal Use Only Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ ४९५ (२) प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., ग्रं. २८०००, वि. १७८४, गद्य, मूप., (प्रणम्य पुण्यपदपद्म), १२२७६५(+5) (२) प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा पद ६ वक्कंतिय, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, मूपू., (बारस चउवीसाइं सअंतर), प्रतहीन. (३) प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा पद६ वक्कंतिय का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (बारसय १ चउवीसा २ सअंतर ३), १२३५२३(+) (२) प्रज्ञापनासूत्र-२३ पदवी विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थंकर चक्रवर्ति), १२१७५४(+) (३) प्रज्ञापनासूत्र-२३ पदवी विचार यंत्र, मा.गु., यं., मूपू., (तिर्थंकर चक्रवर्ति), १२२३६३(+) (२) प्रज्ञापनासूत्र-४ भाषा ४२ भेद विचार, संबद्ध, पुहिं., पद्य, मपू., (सत्यभाषा १ असत्यभाषा २), १२१२४५-१(+) (२) प्रज्ञापनासूत्र-थोकडा संग्रह*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प्रश्न. ८, गद्य, मूप., (इदा अगीए जमी नीरती), १२३६३०-२ (२) प्रज्ञापनासूत्र पद १५-५ इंद्रिय २० द्वार बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (पेलो नाम द्वार १ बीजो), १२१०८७-१(६) (२) प्रज्ञापनासूत्र-बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनुक्षलोक मध्ये), १२२२८२(5) (२) प्रज्ञापनासूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (कहजो रे पंडित ते), १२०१७३-१(#) (३) प्रज्ञापनासूत्र-सज्झाय का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कह्यो देखीयइं जाणीयइ), १२०१७३-१(#) प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., श्लो. ३७, पद्य, श्वे., (प्रज्ञाप्रकाशाय नवीनपाठी), १२३६८६(#$), १२३३५०(६) (२) प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका-टबार्थ , मा.ग., गद्य, श्वे., (प्रज्ञा क० बुद्धि), १२३६८६(#s) प्रतिमा आभूषण श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (परिधापनिका पुण्य), १२३२१२-४(#) प्रतिष्ठा विधि संग्रह, आ. चंद्रसूरि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (मूलरुमिपुरंदरपुराभरणी), १२०४०९(+) प्रत्याख्यान ४९ भांगा, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (मनइं न करुं वचने न), १२१४७३(+), १२२०९४-४(+) प्रत्याख्यान भाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ४८, पद्य, मपू., (दस पच्चक्खाण चउविहि), १२३८१०(5) (२) प्रत्याख्यान भाष्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (दस प्रकारे पच्चखाण), १२३८१०(5) प्रदेशीराजा प्रश्नोत्तरी गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूप., (अज्जय १ अज्जा २ कुंभ), १२३७२८-२(+#), १२३२४२-१ (२) प्रदेशीराजा प्रश्नोत्तरी-टीका, सं., गद्य, मूपू., (केकई देशे श्वेतांबिकायां), १२३२४२-१ (२) प्रदेशीराजा प्रश्नोत्तरी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीभगवंत माहरो हाहा नरकि), १२३७२८-२(+#) प्रद्युम्न चरित्र, मु. सोमकीर्ति, सं., स. १६, ग्रं. ४८५०, वि. १५३१, पद्य, दि., (श्रीमंतं सन्मति), प्रतहीन. (२) प्रद्युम्न चरित्र-भाषावचनिका, श्राव. ज्वालानाथ खंडेलवाल पंडित; श्राव. वखतावरसिंह पंडित, पुहिं., वि. १९१६, गद्य, दि., (प्रणम्य भारती देवीं), १२०६०८(+) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, आ. वादिदेवसूरि, सं., परि. ८, वि. ११५२-१२२६, प+ग., मूपू., (रागद्वेषविजेतारं ज्ञातारं), १२२१४१(+s) (२) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार-स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. वादिदेवसूरि, सं., परि. ८, गद्य, पू., (नमः परमविज्ञानदर्शनानंद), प्रतहीन. (३) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार-स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति की रत्नाकरावतारिका टीका, आ. रत्नप्रभसूरि, सं., परि. ८, ग्रं.५६८०, वि. १३वी, प+ग., मप., (सिद्धये वर्द्धमानस्तात्), १२२१२०(+$), १२२१६७(+$) (२) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (राग० रागद्वेषयोर्विशेषेण), १२२१४१(+) प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., द्वा. २७६, गा. १५९९, ग्रं. २०००, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण जुगाइजिणं), १२१३०७+), १२२६८९(+) (२) प्रवचनसारोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (नमस्कार करीनइं ऋषभ आदि), १२१३०७(+) प्रश्नप्रकाश, आ. नरचंद्रसूरि, सं., प्रका. २०, ग्रं. ३६०, पद्य, मूपू., इतर, (हंस सुधाकरं सारं सोम्यं), १२३८२३-१(+) प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. १०, गा. १२५०, ग्रं. १३००, प+ग., मपू., (जंबू अपरिग्गहो संवुड), १२१०१७(+), १२१८१७(+), १२२०११(+), १२२७९८(+), १२२८६५(5) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., अ. १०, ग्रं. ५६३०, वि. १२वी, गद्य, मपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), १२३४००(+#$) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसुधर्मास्वामि), १२१०१७(+) For Private and Personal Use Only Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हे जंबू एह प्रत्यक्ष), १२१०१७(+), १२१८१७(+), १२२०११(+), १२२७९८(+), १२२८६५(5) प्रश्नशतक, आ. नरचंद्रसूरि, सं., प्रका. ७, वि. १४वी, पद्य, मूप., इतर, (श्रीवीराय जिनेशाय), १२०८३६(+) (२) प्रश्नशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (--), १२०८३६(+) प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., श्लो. २९, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), १२०६७०(+$), १२२४९३-३(+), १२३९३९(+) (२) प्रश्नोत्तररत्नमाला-कल्पलतिका वृत्ति, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. ७३२६, वि. १४२९, गद्य, मूपू., (श्रीनाभिभूर्जिनवरः), १२०६७०(+$) (२) प्रश्नोत्तररत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (नमी करी श्रीमहावीर), १२२४९३-३(+), १२३९३९(+) प्रश्नोत्तररत्नाकर, गच्छा. सेनसूरि; मु. शुभविजय, सं., उल्ला. ४ प्रश्न १०१४, गद्य, मपू., (प्रणिपत्य परं ज्योति), प्रतहीन. (२) प्रश्नोत्तररत्नाकर-चयन, सं., गद्य, मप., (--), १२०७७६-१(#) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, उपा. क्षमाकल्याण, सं., प्रश्न. १५१, वि. १८५१, गद्य, मूप., (श्रीसर्वज्ञं नत्वा), प्रतहीन. (२) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १२०८२४(+$) (२) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., प्रश्न. १५१, वि. १८५३, गद्य, मप., (पहिलै बोलै तीर्थंकर), १२०२७१(+$), १२१४३५(#) प्रहेलिका श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, इतर, (जीव चोरासी लख तु भम्यो), १२२९५०-३ प्रहेलिका संग्रह, प्रा.,मा.ग.,सं., श्लो. ५०, पद्य, श्वे., (आद्येन हीनं जलधावदृश्यं), १२३३९१(#) प्रासादमंडन, मंडन सूत्रधार भारद्वाज, सं., अ.८, पद्य, पू., वै., इतर, (गणेशाय नमस्तस्मै), प्रतहीन. (२) प्रासादमंडन-हिस्सा अध्याय-४ बिंबमानादि ध्वजादंड विचार, मंडन सूत्रधार भारद्वाज, सं., पद्य, मूपू., वै., इतर, (द्वारोच्छ्रायोष्टनवधा भाग), १२१३५०(+#$) । (३) प्रासादमंडन-हिस्सा अध्याय-४ बिंबमानादि ध्वजादंड विचार-टबार्थ, सं., गद्य, मपू., वै., इतर, (--), १२१३५०(+#$) प्रासकजल विचार श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (मुहर्त गालितं तोयं), १२०१७७-३(+#) प्रास्ताविक गाथा संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., वै., (पूआए मन चिंतए पाहा), १२०४०८-१२९(+) प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा., गा. ५, पद्य, म्पू., (अरिहंत सिद्ध पवयण), १२०४०८-४२(+), १२०१८०-३ प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, वै., इतर, (कज्जल विज्जल गुंद), १२३३४०-२, १२३५२१-३(#) प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गा. २८, पद्य, मपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूलं), १२०४०८-१४०(+), १२२२२३($) (२) प्रास्ताविक गाथा संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (जिहां परमेश्वर समोसरई), १२२२२३($) प्रास्ताविक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूप., (चलंति तारा विचलंति), १२१४८९-१(+) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ५७, पद्य, जै., इतर?, (दाता दरीद्री कृपणो), १२२८७४-२(+) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ६१, पद्य, पू., (धर्माज्जन्मकुले शरीर), १२१५६५-४(+), १२११२४, १२१७३९-२($) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, सं., श्लो. २४, पद्य, श्वे., इतर, (श्रिष्टे संगः श्रुते), १२३१२३-२(+#) प्रास्ताविक श्लोकादि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. २२, पद्य, श्वे., इतर?, (आहारनिद्राभयमैथुनानि), १२३१५४($) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २५, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (बंधविहाणविमुक्कं), १२११५७-३(+), १२२७१४-३(+#), १२२७८८-३(+), १२२८०८(+#$), १२३०५०-२(+), १२३११८-३(+), १२३४५२-३(+#), १२३५९३-३(+), १२३६०४-३(+), १२२७४४-३, १२२७२९-३(#) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (बंध० बंधः कर्माणुनां जीवः), १२११५७-३(+) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ ३-बालावबोध, उपा. जयसोम, मा.गु., गद्य, पू., (ऐंद्रचांद्रपदवीनदवी), १२३६०४-३(+) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मूपू., (बंध सामित्त विचार), १२३४५२-३(+#), १२२७२९-३(#) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ ३-टबार्थ, मु. जयसोम, मा.गु., वि. १७१६, गद्य, मप., (कर्मबंधननं विधानक), १२३६०४-३(+) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मपू., (कर्म बंधना प्रकारथी), १२२८०८(+#$) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (कर्मबंधथी मुकाणउं), १२३०५०-२(+), १२२७४४-३ For Private and Personal Use Only Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० बंधस्वामित्व प्रकरण, आ. जयतिलकसूरि, सं., श्लो. ४७, पद्य, मूपू., ( अबंधस्वामिनं देवं प्रणम्य), १२०९१६-४($) वीजतिथि स्तुति, प्रा. गा. ४, पद्य, मूपू., (महीमंडणं पुन्नसोवन्नदेह), १२१८५१-२(+) " बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. ६, ग्रं. ४७३, गद्य, मूपू., (नो कप्पइ निग्गंथाण), १२२००३ (+), १२३८१६ (+), १२२३६० (२) बृहत्कल्पसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (कव० कश्चित नगर), १२२००३ (+), १२३८१६ (+) (२) बृहत्कल्पसूत्र - टबार्थ, मा.गु., ग्रं. ४०००, गद्य, म्पू, (हिवे इहां बृहत्कल्पसूत्र) १२२३६० बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा. अधि. ५, गा. ६५५, वि. ६वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण), १२३२७१(AS) , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) बृहत्क्षेत्रसमास-टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., अ. ५, वि. १३वी, गद्य, मूपू., (जयति जिनवचनमवितथममित), १२३२७१(#$) (२) बृहत् क्षेत्रसमास चयनित पाठ, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा. अ. ५. गा. ८८, पद्य, मूपू., (नमिऊण सजल जलहर), १२३४३६(+०) " (३) वृहत्क्षेत्रसमास- चयनित पाठ की अवचूरि, सं. ग्रं. ६००, गद्य, म्पू, (नत्त्वा प्रणम्य सहजलेन), १२३४३६(+) (२) बृहत्क्षेत्रसमास- जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. १४२, पद्य, म्पू., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण), १२३५४४-१(-) बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., गा. ३८७, वि. १३७३, पद्य, मूपू., (सिरिनिलयं केवलिणं), १२२६२१(+$), १२३०३०(००) (२) बृहत्क्षेत्रसमास नव्य-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नत्त्वा वीरं बृहत्क्षेत्र), १२३५१५ बृहत्शांति स्तोत्र- खरतरगच्छीय, सं. प+ग, मूपू (भो भो भव्याः शृणुत वचन), १२२९१२-३ (NS) ', बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग, मूपू (भो भो भव्याः शृणुत वचनं) १२०३२०-७७(+) १२२८३८-४(४०), + १२३१९०-२(+#$), १२२४२४- १ ( s), १२११२८-१(#) (२) बृहत्संग्रहणी अवचूरि, सं., गद्य, मूपू (नत्वा प्रणम्य), १२२१५७(+३) १२३२५१ (०४) (२) बृहत्संग्रहणी-१४ द्वार वर्णन, मा.गु., गद्य, मृपू., (सप्रवेशद्वार आहारकद्वार), १२२३३३(१) बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४९, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई ठिइ), १२०४१८ (+), १२०९४६(+), १२२११७(+), १२२१५२ (+$), १२२१५७ (+), १२२१६९ (+$), १२२२२२(+), १२२४६५ (+), १२२४९४ (+$), १२२७३० (+$), १२२९२७[+०३), १२२९९२ (-१), १२३१९६(+), १२३२५१ (+३), १२३५०४(०३), १२३५९४(+३), १२३८५४(०), १२३८६६-१(+$), १२३९०३ (+), १२३९०८ ( +$), १२३९८६ (+#), १२२५७०, १२३०२५, १२२४८७(#$), १२२६८६ ($), १२३२२९($) -1 (२) वृहत्संग्रहणी- टीका, आ. देवभद्रसूरि सं. ग्रं. ३५००, गद्य, मूपू (अत्यद्भुतं योगिभिरप्यगम्य), १२०४१८(+), १२२६६८ (५), १२३००१(३) १२३७३९ (१६) ४९७ (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., ग्रं. १७५७, वि. १४९७, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीवीरजिनं), १२३५९४(+$) (२) वृहत्संग्रहणी- बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., वि. १६००, गद्य, म्पू, (श्रीपार्श्वनाथं फल), १२२७३० (+३) (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐ नत्वा अरिहंतादी), १२२१५२ (+), १२२१६९ (+), १२३८६६-१(+$), १२३२२९ ($) For Private and Personal Use Only (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा गुरुपदयुग्मं ), १२२११७(+) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मु. दीपविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., ( श्रीनाभेयं जिनं नत्वा), १२२१६९(+$) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मृपू., (नमस्कार अरिहंता) १२०९४६ (+३) १२२४६५ (०) १२३१९६०), १२३५०४(+5), १२३९८६ (+), १२३०२५, १२२४८७७) (२) बृहत्संग्रहणी-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (असुरकुमार नागकुमार), १२०२९६ ($) (२) वृहत्संग्रहणी-अंकयंत्रसंग्रह, मा.गु., ये. मूपू., (--), १२११४५(३) " " बृहत्संग्रहणी, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. ३५३, वि. ७पू, पद्य, मूपू., (निट्ठवियअट्ठकम्मं), १२३८३२ (+$), १२२५५६(#$) (२) बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं. ग्रं. ५०००, गद्य, म्पू., (जयति नखरुचिरकांति), १२२५५६(५४) " Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, स्पू., (--), १२३८३२(+$) (२) बृहत्संग्रहणी-यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (देवता नारकी मनुष्य), १२२६७६(+) बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (जीवाय १ लेसा ८ पखीय २), १२१७३१(+#$), १२४०२२-१(+), १२२४२७-३ बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (सर्वथी थोडा चरित), १२०७४२(+), १२३२६०-२९(+) ब्रह्मजिज्ञासउपनिषद, परमहंसज्ञान, सं., वै., (गणानाथं नमस्कृत्य), प्रतहीन. (२) ब्रह्मजिज्ञास उपनिषद-बालावबोध, मा.गु., गद्य, वै., (ॐ ब्रह्म एक शुद्ध चेतन), १२०५७०-२ ब्रह्माविष्णमहेश स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, वै., (जातः कृतयुगे ब्रह्मा), १२३७५१-२(#$) भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४४, पद्य, मूपू., (भक्तामरप्रणतमौलि), १२०२७७(+#), १२०३२०-७३(+-#), १२०५१०(+#), १२०७५४-१(+), १२१०२०(+#), १२१०२१(+), १२१०४५(+), १२११९६-२(+), १२२३८९(+), १२२४५६(+), १२२८३८-१(+#), १२२८६६(+६), १२३०६९(+$), १२३४४९(+#$), १२३५८६-४(+), १२३६५०-१(+#), १२३६७६-१(+5), १२३८७२(+$), १२२४४१, १२१६१२(#$), १२३६९९-१(#$), १२१५२९-१(६), १२२८५६($) (२) भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., ग्रं. १५७२, वि. १४२६, गद्य, मप., (पूजाज्ञानवचोपायापगमा), १२२८६६(+$) (२) भक्तामर स्तोत्र-टीका, वा. मेघविजय, सं., ग्रं. १०००, वि. १७०१-१७८२, गद्य, भूपू., (श्रीशंखेश्वरपार्श्व), १२१०२०(+#) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., ग्रं. ६९३, वि. १६५२, गद्य, मप., (प्रणम्य परमानंददायकं), १२०५१०(+#) (२) भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, मूपू., (किल इति निश्चये अहम), १२१०२१(+), १२३०६९(+s), १२३६५०-१(+#) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., वि. १५२७, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १२१०४५(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (किल इति सत्ये), १२२६७५ (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध+कथा, मा.गु., गद्य, मपू., (उजेणी नगरीनइं विषइं), १२३४४९(+#$), १२१६१२(#$) (२) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.ग., गद्य, मप., (भक्तिवंत जे देवता), १२३६७६-१(+$) (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा*, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीमालवदेशमाहि), १२१०४५(+), १२२८५६() (२) भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., दि., (गंभीरताररविपुरि), १२०७५४-२(+) (३) भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य का ऋद्धिमंत्रादि पंचांगपद्धति, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., दि., (सद्धर्मराज जय घोषणा घोषकः), १२०७५४-२(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-ऋद्धिमंत्रादि पंचांगपद्धति, संबद्ध, मा.गु.,सं., मंत्र. ४८, गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं अर्ह णमो अरिहंता), १२०७५४-१(+), १२०७९७(+), १२२३८९(+), १२२४४१ (२) भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो वृषभनाथाय), १२२५३९-४(#) भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., शत. ४१, सू. ८६९, ग्रं. १५७५२, गद्य, मपू., (नमो अरहंताणं० सव्व), १२२४८४+), १२२५४८(+#$), १२२५५४(+), १२२६३५ (+$), १२२७०९(+#$), १२३०३१(+$), १२३२०८(+#$), १२३४६९(+$), १२३९६८(+$), १२२१२८(), १२२६८८(६), १२३८६०($) (२) भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., शत. ४१, ग्रं. १८६१६, वि. ११२८, गद्य, मपू., (सर्वज्ञमीश्वरमनंत), १२२८६४(+#$), १२२१२८($) (२) भगवतीसूत्र-टबार्थ, उपा. पद्मसुंदर, मा.गु., ग्रं. ५२०००, वि. १८पू, गद्य, मूपू., (श्रेयः श्रीसेवितांहि), १२३९६८(+$) (२) भगवतीसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते कालनइ विषइ ते), १२२४८४(+) (२) भगवतीसूत्र-शतक ९ उद्देशक ३३ गत देवानंदाधिकार, हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मप., (--), १२०३८६($) (३) भगवतीसूत्र-शतक ९ उद्देशक ३३ गत देवानंदाधिकार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (--), १२०३८६($) (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक २ उद्देशक १गत स्कंधक अधिकार, प्रा., गद्य, पू., (तेणं कालेणं तेणं), १२३६७४(+#$) (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक ५, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूप., (--), प्रतहीन. For Private and Personal Use Only Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ ४९९ (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक ५ उद्देश ८ गत जीव वर्द्धमान हीयमान विचार, संबद्ध, पुहि., गद्य, मपू., (हे भगवान् जीव हीयमान है), १२१८३३-२ (२) भगवतीसूत्र-१४ गुणस्थानक द्वार विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (--), १२२२७८(+$) (२) भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (कहण्णं भंते जीवा), १२२८२०-६(+$) (२) भगवतीसूत्र-थोकडा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (गौतमस्वामी हाथजोडी), १२२२६१-१ (२) भगवतीसूत्र-प्रश्नोत्तर, संबद्ध, मा.गु., वि. २०वी, गद्य, मूपू., (भगवती सूत्रमा एक), १२३६३२(+) (२) भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह , संबद्ध, मा.गु., गद्य, पू., (एक मासनी दिक्षा सुभ), १२२३५२-२, १२१५३०($), १२१६४४($), १२१८४६(5), १२३६३०-१(६), १२३९७६(s) (२) भगवतीसूत्र शतक १-१४ बोल सज्झाय, संबद्ध, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (सूत्र भगोती सतक पहल), १२०४०८-१७२(+) (२) भगवतीसूत्र शतक १२ उद्देशक ९-१० देव द्वार थोकडो, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (देव द्वारना १० द्वार नाम), १२१४२३ (२) भगवतीसूत्र-शतक १३ उद्देशक १,२,३-संबद्ध उपयोगाधिकार, पुहि., गद्य, मपू., (उपयोग बारह है जिस्मे किस), १२२२९०-२ (२) भगवतीसूत्र शतक २४-संबद्ध दंडक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सात नारिकीयानो दंडक), १२२४२६ (२) भगवतीसूत्र-शतक ८ उद्देशक १०-संबद्ध आराधनात्रय विचार, पुहि., गद्य, मूप., (आराधना तीन प्रकार की है), १२२२९०-१ (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. विनयचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पंचम अंगे भगवती जाणि), १२०५८८-२ (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. २०, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (वंदि प्रणमी प्रेम), १२३६५४-१(+$) (२) भगवतीसूत्र सज्झाय, संबद्ध, मु. शिवचंद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सहु आगम में सोभतो रे), १२०६१७-२ (२) भगवतीसूत्र-बीजक, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीभगवतीना उद्देशा १९२५), १२०८२०-४(+), १२२२१९-३२(+#) भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., भाष्य. ३, वि. १४वी, प+ग., मूपू., (वंदित्तु वंदणिज्जे), १२१६८२(+#), १२२०३६(+६), १२३१८२(+$), १२३२७२(+), १२११७४($) (२) भाष्यत्रय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ग्रं. ३५०, वि. १७५८, गद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणिनुतं), १२३१८२(+S) (२) भाष्यत्रय-टबार्थ, मु. लावण्यविजय, मा.गु., गद्य, मप., (प्रणम्यतानंदकारकं), १२११७४($) (२) भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्तु क० वांदीने), १२१६८२(+#$), १२२०३६(+$) भिक्षप्रतिमा गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (मासाए सत्तंता पढमा बीया), १२३२६०-२८(+) (२) भिक्षुप्रतिमा गाथा-व्याख्या, सं., गद्य, मूपू., (मुनिः प्रथमं गच्छमध्ये एव), १२३२६०-२८(+) भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., श्लो. १७०, वि. १३पू, पद्य, मूपू., इतर, (सारस्वतं नमस्कृत्य), १२११७१(+#s), १२११८९(+), १२१२७३-१(+), १२१२८९(+), १२२४२१(+), १२२८२८(+#$), १२२९७२-१(+), १२३०६०-१(+#), १२३१८३-१(+), १२३५०८(+#s), १२३२४९ (#s), १२१५८५(5) (२) भुवनदीपक-अवूचरि, सं., गद्य, मूपू., इतर, (ग्रहसहिता ये भावा यद्वा), १२१५८५(६) (२) भुवनदीपक-बालावबोध, मु. रत्नधीर, सं., वि. १८०६, गद्य, मप., इतर, (श्रीमंतपरमात्मानं प्रणम्य), १२२४२१(+) (२) भुवनदीपक-बालावबोध, ग. लक्ष्मीविनय, मा.गु., वि. १७६७, गद्य, मूपू., इतर, (सारस्वत्याः संबंधि), १२३०६०-१(+#) (२) भुवनदीपक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (सरस्वती तणउं तेज नमस्करी), १२३१८३-१(+) (२) भुवनदीपक-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (सरस्वती नाम जो देवी), १२३५०८(+#$) (२) भुवनदीपक-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूप., इतर, (सरस्वती संबंधीओ मह), १२१२७३-१(+), १२१२८९(+$), १२२९७२-१(+$), १२३२४९(#S) भैरवाष्टक, शंकराचार्य, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (एकं खट्वांगहस्तं), १२३७६०-३ भोजराजा श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, वै., इतर, (येषां न विद्या न तपो), १२२८२९-२(+) मंडल प्रकरण, मु. विनयकुशल, प्रा., गा. ९९, वि. १६५२, पद्य, मूपू., (पणमिअ वीरजिणिंद), १२२५७५(+) (२) मंडल प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, मु. विनयकुशल, सं., वि. १६५२, गद्य, मप., (श्रीमद्वीरजिनं नत्वा), १२२५७५ (+) मंत्र-औषधसंग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., इतर, (ॐ आगिया वेताल पेटे पेसी), १२३११०-२(#) For Private and Personal Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (ॐह्रींश्री अर्हत), १२१३९२-२(+), १२२९३०-२, १२२३५८-३(#) मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., जै., वै., अन्य, इतर, (श्री ॐ नमः आदि सुदिन), १२३१७८-२(+), १२१७१२-३, १२२५३९-३(#$) मंत्राधिराजकल्प यंत्रोद्धार, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., अ.५, ग्रं. ६२९, पद्य, मप., (कल्याणांकुरवारिदः), १२३३७७(#$) मदन श्रेष्ठी चरित्र, मु. छगन मुनि, पुहिं.,सं., खं. ७, गा. १२९१, वि. १९८४, पद्य, स्था., (दानं ख्यातिकरं सदा हितकर), १२२४७६(+) मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत, सं., गद्य, श्वे., (संसारे चतसृषु गतिषु), १२३६९०(+) मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (चूलग पासग धन्ने जूए), प्रतहीन. (२) मनुष्यभव दर्लभता १० दृष्टांत गाथा-कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम चूलक भोजन खीर), १२०६६५(+) महादेव स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ४४, पद्य, मप., (प्रशांतं दर्शनं यस्य), १२१७३६-१(+) महादेवी सूत्र, महादेव, सं., श्लो. ३९, पद्य, वै., इतर, (सिद्धिं करोति राजकेंद्र), १२२७६३(+) (२) महादेवी सूत्र-दीपिका टीका, वा. धनराज, सं., ग्रं. १५००, वि. १६९२, गद्य, मूपू., वै., इतर, (श्रीनाभेयं जिनं नत्वा), १२२७६३(+) महानिशीथसूत्र, प्रा., अध्य. ६ चूलिका २, ग्रं. ४५४४, गद्य, मूपू., (ॐ नमो तित्थस्स ॐ), १२२४३०(+), १२०३८८(5) (२) महानिशीथसूत्र-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. ७५००, गद्य, मूपू., (ते सुमति हे भगवंत), १२२४३०(+), १२३०९३(+) (२) महानिशीथसूत्र-हिस्सा अध्ययन ४ से ५, प्रा., प+ग., मपू., (से भयवं कहं पुण तेण), १२३०९३(+), १२२४२९ (३) महानिशीथसूत्र-हिस्सा अध्ययन ४ से ५-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (से. ते सुमति भ० हे), १२२४२९ महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., गा. १४२, पद्य, मप., (एस करेमि पणामं तित्थयराणं), प्रतहीन. (२) महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-पंचमंगल पाठ, संबद्ध, प्रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (अरिहंत मंगल मज अरिहंता), १२२३६४-२ महावीरजिन २७ भव चरित्र, मु. मेघराज, सं., भव. २७, गद्य, मूपू., (--), १२१७८१(६) (२) महावीरजिन २७ भव चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १२१७८१(६) महावीरजिन २७ भव विचार, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (प्रथम भवि पश्चिम माह), १२२६६१-२(#) महावीरजिन २७ भव व्याख्यान, सं., ग्रं. १००, गद्य, मपू., (ग्रामेशस्त्रिदशो), १२२२१९-२१(+#), १२२९१८(5) महावीरजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (जयंति नमदमरमुकुटप्रतिबिंब), १२०७४१-६(+) महावीरजिनद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेन, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (स्तोष्ये जिनं महावीरं), १२३६३३-१(६) महावीरजिनशासने गच्छोत्पत्यादि प्रसंग श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, मपू., (--), १२२९०९(#$) (२) महावीरजिनशासने गच्छोत्पत्यादि प्रसंग श्लोकसंग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (--), १२२९०९(#$) महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., श्लो. ३०, पद्य, मपू., (भावारिवारणनिवारणदारु), १२२८३८-७(+#s), १२३४१७-५(+#), १२३४४२(+#$), १२३५८६-९(+) (२) महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत-टीका, उपा. जयसागर गणि, सं., वि. १४६५, गद्य, मप., (श्रेयोर्थं श्रीमहावीरं), १२३४४२(+#$) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (नताऽशेषलेषं कृतद्वेष), १२३५८६-१७(+) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नमो दुर्वाररागादि), १२०७४१-५(+) महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ११, पद्य, मूपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूलं), १२०९८६-३(+), १२१५२१-२(+$), १२१८६२-२(+), १२२३२९-३(+), १२१२४८-३(६), १२१५२०-२() । महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (यदह्रिनमनादेव देहिन), १२१८५१-१३(+) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वीरं देवं नित्यं वंदे), १२१८५१-१८(+) महावीरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. ५, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (जयसिरिजिणवर तिहुअणजण), १२३१६१-२(+) मांगलिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ६, पद्य, मपू., (कृतापराधेपि जने), १२३९१९-१(#) मांडला विधि, प्रा.,रा., गद्य, श्वे., (तिहां प्रथम सिंज्यारा), १२०६८८(#$) मार्जारी दोषनिवारण विधि, प्रा.,मा.ग., प+ग., मप., (देवसीराई पाखी चउमासी), १२२४१५-१(+) For Private and Personal Use Only Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ माला भूमिपतन विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐ नमो उवज्झाया भगवंताणं), १२२२१९-१६(+#) मिथ्यात्वस्थान कुलक, प्रा., गा. २६, पद्य, म्पू., (लोइअ लोउत्तरिय देवगय), १२२७३६ मुहपत्ति ५० बोल गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुत्तत्थं १ मोहतिगं), १२३७२४ - ६(+) मुहपत्ति स्थापनादि विचार, सं., गद्य, मूपू (-) १२२६५३(३) मूत्रपरीक्षा, सं., लो, ४३, पद्य, भूपू इतर (प्रणम्य श्रीमहावीर), १२१८२७/३) " मुनिपति चरित्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ६४६, ग्रं. ६४४, वि. ११७२, पद्य, मूपू., (नमिऊण महावीरं चउव्विहाइ), १२१४५५ (+) (२) मुनिपति चरित्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मृपू, (प्रणम्य परमानंदप्रद ), १२१४५५ ला Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " (२) मूत्रपरीक्षा खालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू. इतर (--), १२१८२७/३) मूर्तिपूजामतखंडण विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, स्था., (--), १२१३४२(७) मेघदूत, क. कालिदास, सं., श्लो. ११५, ग्रं. ३५०, पद्य, वै., इतर, (कश्चित्कांताविरहगुरु), १२०३५५($) (२) मेघदूत - वृत्ति, सं., गद्य, मूपू., वै., इतर, (श्रीचिंतामणि पार्श्व), १२०३५५($) त्रयोदशीपर्व व्याख्यान, मु. क्षमाकल्याण, सं. ग्रं. १६५, वि. १८६०, गद्य, मूपू. (मारुदेवं जिनं नत्वा), १२१८०९ ८(+) मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., श्लो. २०१, वि. १६५७, पद्य, मूपू., (प्रणम्य ऋषभदेवं), १२१५८८-१ (+$), १२३३१५, १२२२७३(१) (२) मौनएकादशीपर्व कथा-टवार्थ, मा.गु., गद्य म्पू, (प्रणमीने चरणकमल प्रते). १२३३१५ मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, म्पू, (अरस्य प्रव्रज्या नमि), १२२८२४ (ड) मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरं नत्वा गौतमः), १२१८०९-६ (+), १२२७६७ मौनएकादशीपर्व गणणुं, सं., को., मूपू., (जंबूद्वीपे भरते क्षेत्रे), १२०२७२ (+#$), १२२२१९-३४(#), १२०९२३, १२०९२४, १२२१४३ मौनएकादशीपर्व गणणु, सं., गद्य, मूपु (श्रीमहाजससर्वज्ञाय नमः), १२१९८६, १२२२०६ (३) " "3 मौनएकादशीपर्व व्याख्यान - सुव्रत श्रेष्ठिकथा, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (सिरिवीरं नमिऊण), १२०६३९-२ (+#$), १२०८२१($), १२३१५९(३) (२) मौनएकादशीपर्व व्याख्यान सुव्रत श्रेष्ठिकथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--) १२०८२१ (४) मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अरस्य प्रव्रज्या नमिजिन), १२१८५१-६(+), १२३०६१-३(#) मौनएकादशीव्रत कथा, सं., श्लो. ४१, पद्य, म्पू., (नेमिनाथं जिनं नत्त्वा), १२३२०९ (+) (२) मौनएकादशीव्रत कथा-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू (तदा क्षणे वदत्कृष्णो) १२३२०९(+) यति दिनचर्या, आ. देवसूरि, प्रा. गा. ३९४, पद्य, म्पू., (तं जयह सुहं कम्म) १२३७३२(*) "" ५०१ युगादिदेशना, ग. सोममंडन, सं., उल्ला. ५, श्लो. ५७७, पद्य, मूपू., (श्रीमानादिजिनः श्रेय), १२२१२२(+$) योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अ. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., इतर, (यत्र वित्रासमायांति), १२०५२९ ( + $), १२०९०० (+#$), १२२५७३(+), १२३३०८-१(+), १२०३३२ (०६) (२) योगचिंतामणि खालावबोध, आ. अमरकीर्तिसूरि, मा.गु., गद्य, भूपू इतर ( श्रीसर्वज्ञ प्रणम्यादी), १२३३०८-१(+), १२०३३२ (०३) (२) योगचिंतामणि बालावबोध", मा.गु., गद्य म्पू, इतर ( प्रथम स्त्री योग्य), १२०५२९ (+३) " For Private and Personal Use Only (२) योगचिंतामणि- बीजक, सं., गद्य, मूपू., इतर, (१ सौभाग्यसुंठी पाक), १२३३०८-२ (+) योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १२, श्लो. १०००, वि. १३वी, पद्य, भूपू (नमो दुर्वाररागादि), १२३३३ (५), १२३५५६-१(+), १२३९३१) १२२७०४ (२) योगशास्त्र- बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु. प्रका. १२, वि. १५०८, गद्य, म्पू (सिद्धार्थक्षितिपालसुनमम) १२२७०४, १२०५४९ ($) (२) योगशास्त्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपु., (श्रीगुरु अज्ञानलोचन), १२.३३३९२०) योगोहनविधि यंत्र संग्रह, प्रा. मा.गु. सं., को, मूपू (आवश्यकश्रुतस्कंधे) १२३०८७(+) रघुवंश, क. कालिदास, सं., स. १९, पद्य, वै., इतर (वागर्थाविव संपृक्तौ) १२३६६६ (+३) " Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) रघुवंश-शिशुबोधिनी टीका, ग. गुणरत्न, सं., स. १९, ग्रं. २०००, वि. १६६७, गद्य, मपू., वै., (पार्वती च परमेश्वरश), १२३६६६(+#$), १२०३९४(६) रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., श्लो. २५, वि. १४वी, पद्य, मप., (श्रेयः श्रियां मंगल), १२०४६४(+$) (२) रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (अहो कल्याणक लक्ष्मी), १२०४६४(+$) राईसंथारासूत्र, प्रा., गा. २४, पद्य, जै., (निस्सही २ नमो खमासमण), १२३९५२ राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., सू. १७५, ग्रं. २१००, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० तेणं), १२२५३५(+#), १२२७२७(+), १२३४७३(+#$), १२३६००(+#$), १२१३०९, १२१९३८ । (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., ग्रं. ३७००, गद्य, मूपू., (प्रणमत वीरजिनेश्वर), १२३५१२(+), १२२५०७($) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, पू., (राजप्रश्नीयमहं विवृणोमि), १२२५३५(+#$) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., ग्रं. ५५००, गद्य, मूपू., (देवदेवं जिनं नत्वा), १२३४७३(+#$), १२३६००(+#$), १२१३०९, १२१९३८ (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (नमस्कार हुवउ० चउथा), १२२७२७(+) रात्रिभोजनत्याग श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ९, पद्य, मपू., (मृते स्वजनगोत्रेपि सुतकं), १२०४०८-१३५(+) (२) रात्रिभोजनत्याग श्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, वै., (पोताना स्वजन गोत्रमा मरण), १२०४०८-१३५(+) रात्रिभोजन परिहारश्लोक संग्रह, प्रा.,सं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेधां पिपीलिका हंति यूका), १२०४०८-१३३(+) रामपुराण, मु. सोमसेन, सं., अधि. ३३, पद्य, दि., (वंदेहं सुव्रतं देवं), १२३९७४(+$) रायमल्लाभ्युदय महाकाव्य, मु. पद्मसुंदर कवि, सं., स. २५, वि. १६१५, पद्य, मप., (स श्रीमान्नाभिसूनुर्विलसद), १२२६६६(+$) रीति-रस संबंधसूचक श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, इतर, (लाटी हास्यरसे प्रयोगनिपुण), १२१०५५-२(+) रोहिणीतप स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (जयरोहिणि वल्लहवयण देव), १२३८५०-२(+) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., अधि. ६, गा. २६३, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय), १२१४३६(+), १२२५१९(+$), १२२९३७(+$), १२३३३५(२), १२३४३१(६) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, मु. उदयसागर, मा.गु., वि. १६७६, गद्य, मूपू., (निश्शेषज्ञानविज्ञान), १२३३३५(#) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीर श्रीमहावीर केहवा), १२१४३६(+) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, प्रा., गा. ७७, पद्य, म्पू., (सिरिवीरजिण वंदिय), १२२३१५-१(+) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आठप्रातिहार्य चोत्रीस), १२२३१५-१(+) लघुजातक, वराहमिहिर, सं., अ. १६, पद्य, वै., इतर, (यस्योदयास्तसमये), १२१६७३(+$) (२) लघुजातक-अवचूरि, उपा. भक्तिलाभ, सं., वि. १७१५, गद्य, मूपू., वै., इतर, (यस्येति यस्य सूर्य), १२१६७३(+$) लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., कां. ३, श्लो. ४६१, ग्रं. ५५०, पद्य, मूपू., इतर, (प्रणम्य परमात्मानं), १२३१३१(+$) लघुपट्टावली-पार्श्वचंद्रसूरिगच्छीय, आ. हेमचंदसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (विदित सकलशास्त्रान्), १२१८१४(+#) लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (शांति शांतिनिशांतं), १२११४७-१(+5), १२१२५९-१(+), १२२२४९-५(+), १२२८३८-३(+#), १२३०४१(+), १२२३४०, १२२८१४, १२३७८३-१(#), १२११२८-२(-2) (२) लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीशांतिनाथ शांति), १२३७८३-१(#) लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं सव्वन्नु), १२१४६४(+), १२३३७४, १२२१९९(5) (२) लघुसंग्रहणी-१० द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (खंडाजोयण वासा पव्वय कुडाय), १२०६०३, १२३७२१(६) (२) लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, म्पू., (लाख जोयणनो जंबूद्वीप), १२११०३(+), १२१२३२(+) लघुस्वयंभू स्तोत्र, सं., श्लो. २५, पद्य, दि., (येन स्वयं बोधमयेन लोका), प्रतहीन. (२) स्वयंभू स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. २४, वि. १८वी, पद्य, दि., (राजविषै जुगलनि सुख), १२०३२६-२३(+) ललितांगकुमार कथा-धर्म विषयक, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (त्रिवर्गसंसाधनमंतरेण), १२१३३४(+) लीलावती, पंडित. भास्कराचार्य, सं., श्लो. २७९, प+ग., वै., इतर, (प्रीतिं भक्तजनस्य), प्रतहीन. For Private and Personal Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ ५०३ (२) लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., अ. १६, गा. ७०७, वि. १७३६, पद्य, मूपू., वै., इतर, (सोभित सिंदूर पुर), १२३१८५-१(२) (३) लीलावती-भाषानुवाद का चौगुणोत्तर विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., इतर, (थानकमां है हान इक), १२३१८५-२(#) (३) लीलावती-भाषानुवाद का द्विगुणोत्तरादि फल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., इतर, (धुरीसुंदीधा दोइ), १२३१८५-३(#$) लुंपकमतनिरसन चर्चा, प्रा.,सं., गद्य, मपू., (श्रीविक्रमसंवत्सरात्), १२२८२२ लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. ३२, वि. १४वी, पद्य, मप., (जिणदसणं विणा जं), १२२१७०-३(+), १२२५६७(+) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-अवचूरि, सं., गद्य, मूप., (जिणदंसणेति० जिनदर्शन), १२२५६७(+) लोच विधि, प्रा., गद्य, मूपू., (पच्चइएणय लोओ कायव्वो), १२२२१९-३०(+#) वज्रपंजर स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (ॐ परमेष्ठिनमस्कारं सारं), १२३५४५-५(+), १२२०८७-२(#) वनस्पतिसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., गा. ७१, पद्य, मप., (उसभाइ जिणिंदे पत्तेय), १२२६१५(+) (२) वनस्पतिसप्ततिका-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (उसभेत्यादि गाथा ४), १२२६१५(+) वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ज्ञानं सारं सर्व), १२१८०९-४(+) वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., श्लो. १५०, वि. १६५५, पद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिन), १२१२६७(+), १२१५४८(+), १२१९८६(+), १२२०७८(+), १२२९६५(+) (२) वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ प्रतै), १२१२६७(+), १२१५४८(+), १२२०७८(+) वर्षप्रबोध, उपा. मेघविजय, सं., अ. १३, श्लो. ३५००, वि. १७३२, पद्य, मूपू., इतर, (श्रीतीर्थनाथवृषभं), १२४०१४(+$) वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, मूपू., बौ., (संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह), १२१०५०(+$), १२१३९२-१(+), १२१४९५(+), १२३८५५(+), १२०५३६, १२२७०३, १२१५८७-१(#), १२२३५८-१(#), १२३५२७-१(#), १२२८४०(5) (२) वसुधारा स्तोत्र-विधि, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., बौ., (पुत्रवती स्त्री पासे), १२१५८७-२(१), १२३२८९(#$), १२३५२७-२(#) वाग्भट्टालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., परि. ५, वि. १२वी, पद्य, मपू., इतर, (श्रियं दिशतु वो देवः), १२१०५५-१(+), १२२८४६(+$) (२) वाग्भट्टालंकार-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., इतर, (आशीर्नमस्क्रियाभीष्ट), १२२८४६(+$) विगय कालमान विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (बरसालै दिन १५ सीआले ३०), १२०१७७-६(+#) विचारपंचाशिका, ग. विजयविमल, प्रा., गा. ५१, पद्य, मप., (वीरपयकयं नमिउं देवा), १२१११९(+) (२) विचारपंचाशिका-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (वीर पय क० महावीरदेव), १२१११९(+) विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (समरवीर राजा महावीरनउ), १२०४०८-१८५(+) विचारसार प्रकरण, ग. देवचंद्र, प्रा., अधि. २, गा. ३२०, वि. १७९६, पद्य, भूपू., (नमिय जिणं गुणठाणे), १२१३७८(+) (२) विचारसार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (नमस्कार करीनइ जिन वीतराग), १२१३७८(+) विचारसार प्रकरण, आ. प्रद्युम्नसरि, प्रा., गा. ९००, पद्य, मप., (पणयजणपूरियासो भगयट्ठतासो), १२३६४०-३ विजयप्रशस्ति महाकाव्य, ग. हेमविजय, सं., स. २१, पद्य, मूपू., (श्रेयांसि वः सृजतु), १२३४२९(+) (२) विजयप्रशस्ति महाकाव्य-विजप्रदीपिका वृत्ति, मु. गुणविजय, सं., ग्रं. १००००, वि. १६८८, गद्य, मपू., (सः नाभेः __ सप्तमकुलकरा), १२३४२९(+) विजयरत्नसूरि स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (नृपतिनाभिकुलांबरभास), १२३०८१-२१(+) विद्यामहत्त्ववर्णन श्लोक संग्रह, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., वै., इतर, (विद्या नाम नरस्य रूप), १२२७८५-२ विद्याविलास कथानक-पुण्यप्रभावे, सं., गद्य, मपू., (धर्माज्जन्मकुले शरीर), १२३५९२, १२२७६८-३(#) विद्वद्गोष्ठी, पंडित. सुधाभूषण गणि, सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू., इतर, (येषां न विद्या न तपो), १२३१२३-१(+#), १२०५९४-१(#) विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., श्रु. २ अध्ययन २०, ग्रं. १२५०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं), १२१२८०(+), १२१९९३(+), १२१९९७(+) (२) विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ विपाकश्रुत किसउ), १२१२८०(+), १२१९९३(+), १२१९९७(+) (२) विपाकसूत्र-हिस्सा सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कंध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. १०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं), १२२१०३(+) For Private and Personal Use Only Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (३) विपाकसूत्र-हिस्सा सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कंध का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते उत्सर्पणीनो चोथो), १२२१०३(+) विवाहपटल, सं., श्लो. ९७, पद्य, मपू., इतर, (धनाढ्य माघे सुभगा च), १२२८६०(+$), १२२५६२ विवाहपडल, सं., श्लो. १६०, पद्य, वै., इतर, (जंभाराति पुरोहिते), १२०३८७-२ ।। (२) विवाहपडल-टबार्थ, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (जंभक दैत्य तेहनो), १२०३८७-२ (२) विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूपू., वै., इतर, (वाणी पद वांदी करी), १२०३८७-१(६) विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवंति), १२१४९८-१(+६), १२१४९८-६(+$), १२२०३३-२, १२२३५२-३, १२२२६५(#) विविध धार्मिक सुभाषितसंग्रह, सं., पद्य, श्वे., (--), १२३४२१(+$) विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., उल्ला. १२, पद्य, मप., (शाश्वतानंदरूपाय तमस्तौमेक), १२३०१४($) (२) विवेकविलास-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते को एक परमात्मानइ), १२३०१४($) वीतरागाष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मप., (तुभ्यं नमः समयधर्मनिवेदक), १२०५०७-८(+#) वीतरागाष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (शिवं शुद्धबुद्ध), १२३७०३-२ वीरसेन कथानक-चतुर्विधधर्म विषये, सं., गद्य, श्वे., (दान शील तपोभाव भेदाध), १२३१८१(+) वृष्णिदशासूत्र, प्रा., अध्य. १२, गद्य, मपू., (जइ णं भंते० पंचमस्स), १२२२४७-५(+), १२२४०६-५(+#), १२२७६४-५(+), १२२९४६-५(+), १२२९८९-५(+), १२३२०२-५(+#), १२३५६०-५(+#), १२२६०८-५(#) (२) वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (जौ हे पूज्य० पांचमान), १२२२४७-५(+), १२२४०६-५(+#), १२२७६४-५(+), १२२९८९-५(+), १२३२०२-५(+#) वैद्यकश्लोक संग्रह, सं., श्लो. ५, पद्य, इतर, (प्रसंगान गात्र), १२३०६१-२(2) वैद्यजीवन, क. लोलिंबराज, सं., विला. ५, श्लो. २३८, वि. १७वी, पद्य, वै., इतर, (प्रकृति सुभगगात्रं), १२२८३३(+$) (२) वैद्यजीवन-टबार्थ, पंडित. ज्ञानतिलक गणि, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., इतर, (श्रीपार्श्वेशं जिन), १२२८३३(+$) वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., विला. ९, श्लो. ३२६, वि. १७२६, पद्य, भूपू., इतर, (सरस्वतीं हृदि), १२०२६३(+#) (२) वैद्यवल्लभ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (--), १२०२६३(+#) वैराग्यशतक, प्रा., गा. १०४, पद्य, मपू., (संसारंमि असारे नत्थि सुह), १२२०८२-५(+#), १२१९२९(5) (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसार असारमाहि नथी), १२२०८२-५(+#), १२१९२९() व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. १०, ग्रं. ३७३, गद्य, मपू., (जे भिक्खू मासियं), १२०९४७(+), १२१३१०(+), १२२४९२(+S) (२) व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (जे जे कोइ भि० साधु), १२०९४७(+) (२) व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १२१३१०(+), १२२४९२(+$) व्याख्यान पीठिका मंगलश्लोक, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (नम श्रीवर्द्धमानाय), १२१९१३-१(+) व्याख्यान विधि, पुहि.,प्रा.,सं., श्लो. ३, प+ग., भूपू., (नमो अरिहंताणं० जयइजग), १२२४२० व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. १००, पद्य, मूपू., (जिनेंद्रपूजा गुरू), १२२९११(+$), १२३९४९-३(+), १२३९८१(+$) (२) व्याख्यानश्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत भगवंत असरण सरण), १२२९११(+$) व्याख्यान संग्रह, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., मूपू., (देवपूजा दया दान), १२०९३८, १२२३३६, १२३१३९(#$), १२११३८($) (२) व्याख्यान संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंतनी पूजा), १२११३८(६) । शतकत्रय, भर्तृहरि, सं., शत. ३, ई. ७वी, पद्य, वै., इतर, (यां चिंतयामि सततं), १२१७६६(+) (२) शतकत्रय-टबार्थ, य. रूपचंद, मा.गु., गद्य, मपू., वै., इतर, (सर्वदर्शिनमानम्य), १२१७६६(+) शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १००, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मप., (नमिय जिणं धुवबंधोदय), १२२१२१-१(+#), १२२७१४-५(+#), १२३०५०-४(+), १२३११८-५(+), १२२६८५(#s), १२२७२९-५(#) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-५-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (वीतराग नमस्करीनइ), १२२१२१-१(+#), १२२७२९-५(#) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, उपा. धनविजय, मा.गु., गद्य, मपू., (ध्रुवबंधी प्रकृति), १२३०५०-४(+) शतपंचाशितिका संग्रहणी, मु. उत्तम ऋषि, प्रा., गा. १८६, पद्य, मपू., (उसभ अजिओ संभव अभिनंद), प्रतहीन. For Private and Personal Use Only Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ (२) शतपंचाशितिका संग्रहणी-चयन, प्रा., गा. १७, पद्य, मपू., (चुलसीइ च सहस्सा एगंचवेय), १२३५६१(+) शत्रुजयतीर्थ चैत्यपरिपाटिका, सं., श्लो. २४, पद्य, मूपू., (नमेंद्रमंडलमणिमयमौलिमाल), १२२९६६(+) शQजयतीर्थ चैत्यवंदन, मु. नगजय, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (नमः सिद्धक्षेत्राय), १२१८०१-२ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूप., (श्रीआदिनाथ जगन्नाथ), १२२८४४-१(६) (२) शत्रंजयतीर्थ चैत्यवंदन-अवचरि, ग. कनककुशल, सं., वि. १६५०, गद्य, मप., (--), १२२८४४-१(६) शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., गा. २५, पद्य, मपू., (अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ), १२३६६९(+) शत्रंजयतीर्थ लहरी, उपा. स्वरूपचंद, सं., श्लो. ४६, वि. २०वी, पद्य, मप., (श्रीमदर्ह जिनं नत्वा), १२२८५३(+) शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., स. १४, ग्रं.१००००, पद्य, मूपू., (ॐ नमो विश्वनाथाय), १२३१७१(+), १२३६२२(+#S), १२२९३४(48) (२) शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मु. देवकुशल, मा.गु., ग्रं. १२०००, वि. १७६७, गद्य, मूपू., (नत्वा वीरं सुबोधाय), १२३१७१(+) शनिश्चर स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (यः पुरा राज्यभ्रष्टाय), १२१०५५-३(+) शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., प्र. ६, वि. १५३५, गद्य, मपू., (प्रणिपत्यार्हतः सर्वान्), १२१५५२(+), १२३११५(+) शांतिजिन श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मप., (शांति शांतिकर), १२३६४३-४(#) शांतिजिन स्तवन, मु. मेरुसुंदर, अप., गा. २७, पद्य, मप., (पणमिय सुहगुरु समरिय सरसती), १२३५८६-१८(+) शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अंघ्री कूर्मयुगं करौ), १२३४१७-९(+#) शांतिजिन स्तोत्र, मु. गुणभद्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (नाना विचित्रं बहुदुख), १२१५२५-३(#) शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., प्र. ६, श्लो. ४८९०, ग्रं. ५०००, वि. १३०७, पद्य, मूपू., (श्रेयोरत्नकरोद्भतामह), १२०३०९(+#$) शांतिपाठ, सं., श्लो. १३, प+ग., मूप., (शांतिजिनं शशिनिर्मल), १२०६५८-१(+$) शांतिपूजा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (ननु संघादीनां विघ्नो), १२१४२५-४ शांतिस्नात्र विधि, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., पद्य, मप., (अथ प्रतिष्ठायां वा यात्रा), १२२०२४-१(+) शाकुनसारोद्धार, आ. माणिक्यसूरिजी, सं., प्रक. ११, पद्य, मूपू., इतर, (उपास्महे परं ज्योति), १२२७४१($) शाश्वतजिन स्तव, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (वंदामि सत्तकोडी लक्ख), १२०५०७-३(+#) शाश्वतप्रतिमावर्णन स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १२, पद्य, मप., (चत्तारिअट्ठदसदोइ), १२३०८६(+) (२) शाश्वतप्रतिमावर्णन स्तव-अवचूरि, प्रा.,सं., गद्य, मपू., (दोहिणदारे चउरो), १२३०८६(+) शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., श्लो. १५, पद्य, पू., (नित्ये श्रीभवनाधिवासिभवन), १२१९०६(+), १२१४८१-१ शील कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (सोहग्ग महानिहिणो), १२२१३२($) (२) शील कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १२२१३२($) (२) शील कुलक-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १२२१३२($) शीलव्रत सज्झाय, श्रावि. डाही, अप., गा.७, पद्य, मप., (च्यंतित मणि दख धमणि), १२३७९३-२(2) शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., कथा. ४३, गा. ११५, वि. १०वी, पद्य, मप., (आबालबंभयारिं नेमि), १२३२६२(+), १२३५८७(+#$), १२३५९६(#$) (२) शीलोपदेशमाला-बालावबोध+कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., ग्रं. ६२५०, वि. १५५१, गद्य, मूपू., (श्रीवामेयममेय), १२३५८७(+#$), १२३५९६(#) श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४१, ग्रं. ३९०, पद्य, मूपू., (वीरं नमिऊण तिलोयभाणु), १२३०१५(+$) (२) श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण-टिप्पण, सं., गद्य, मपू., (--), १२३०१५(+$) श्रावक ११ प्रतिमा गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मपू., (दसण वय सामाई पोसह), १२३२६०-२७(+), १२३२८६-२(+) (२) श्रावक ११ प्रतिमा गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक मास लगइ समकित), १२३२८६-२(+) श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., अधि.५, ग्रं. १६६, वि. १६६७, गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञं प्रणिपत), प्रतहीन. (२) श्रावक आराधना-बालावबोध, उपा. राजसोम, मा.ग., वि. १७१५, गद्य, मप., (इहां आराधनाने विर्षे), १२३४४३ For Private and Personal Use Only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५०६ www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट १ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आवक आलोयणा, मा.गु. सं., गद्य, म्पू, (ज्ञानाचारि पोथी पाटी), १२३०८५ (+ "" " श्रावक आलोयणा प्रायश्चित विचार, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, मूपू., (प्रथमं मुहूर्त), १२२६२७(+) आवक वंशावली संग्रह", श्राव भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं. मा. गु., रा. सं., गद्य, वे (-), १२०७६१ (४) श्रावकविधि प्रकाश, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., वि. १८३८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनाधीशं), १२०३९८ (+), १२३८३१-३(+$) श्रीपाल चरित्र, ग. जयकीर्ति पंन्या. जीवराज सं., प्र. ४ वि. १८६८, गद्य म्पू (प्रणम्य सिद्धचक्रं च), १२१८९९(+) 1 1 (२) श्रीपाल चरित्र वालावबोध, मु, देवमुनि, मा.गु. प्र. ४. अं. १८००, वि. १९१७ पद्य म्पू (श्रीअरिहंतसु सिद्धपद), १२०४१०+), १२२२५१(*) श्रीपाल चरित्र, मु. सकलकीर्ति, सं., पद्य, दि., (चतुर्विंशतितीर्थेशान्), १२३५०५(+$) श्रीपाल चरित्र, आ. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., श्लो. १४७, पद्य, दि., (नत्वा श्रीमज्जिनाधीश), प्रतहीन. (२) श्रीपाल चरित्र-वचनिका, पुहिं., पद्य, दि., (तीर्थंकर चौवीस जिन धरमराज), १२०४६६ (+) श्रुतदेवी स्तुति, प्रा. गा. १, पद्य, भूपू. (सुयदेवयाय जक्खो कुंभ), १२३८८८-२(०) श्लोक संग्रह *, पुहिं., प्रा.,मा.गु., सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (कलकोमलपत्रयुता श्यामलवर्ण), १२१२३०-२ (+), १२१७३६-२(+), १२३१३५-३(+), १२२९७९-२, १२२५६१-२(#) श्लोक संग्रह, सं., श्लो. १००, पद्य, जे. वै., (जिनेंद्र पूजा गुरु), १२१५१६ (-) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा., सं., श्लो. ५०, पद्य, श्वे., (देहे निर्ममता गुरौ), १२०७३१-१(+), १२२४६१ (+), १२३७५७-२, १२३९१९-२ (#$), १२३६६२ (s) (२) श्लोक संग्रह जैन धार्मिक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (सकल कहतां समस्त कुशल), १२२४६१ (+) श्लोक संग्रह-मांगलिक, प्रा., मा.गु., सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (ॐकार बिंदु संयुक्तं), १२३४१७-८(+#) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ ४, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. गा. ८६, वि. १३वी २४वी, पद्य, मूपू (नमिय जिणं जियमगण), १२११५७-४(+), १२२७१४-४(१), १२२७३५-३(+०६) १२२७८८-४(+), १२३०५०-३ (+), १२३११८-४(+), १२३४५२-४(+), १२३५९३-४(+), १२३६०४-४(+$), १२२७४४-४, १२२७२९-४(#) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रथ-४-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., प्र. २८००, गद्य, म्पू, (यद्भाषितार्थलवमाप्य), १२२७३५.३(45) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ ४ अवचूरि, सं., गद्य, मूपु. ( नमनि० तत्र जीवंति), १२११५७-४(+) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ ४-बालावबोध, उपा. जयसोम, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रविगध्यायपरंतेजो), १२३६०४-४(+$) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मृपू., (वीतरागदेव नमस्कार), १२३४५२-४(००३), १२२७२९-४(#) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ -४-टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू (हवई चउथा कर्मग्रंथ), १२३६०४-४(+) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, उपा. धनविजय, मा.गु., वि. १७००, गद्य, मूपू., ( वांदीनइ तीर्थंकर), १२३०५०-३(+), १२२७४४-४ षडशीति प्राचीन कर्मग्रंथ - ४, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ८६, पद्य, मूपू., (निच्छिन्नमोहपासं), १२२६६९(+) षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अधि. ६, श्लो. ८७, पद्य, मूपू., वै., बौ., अन्य, (सद्दर्शनं जिनं नत्वा वीरं), १२३१२१(+) षष्ठिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा. गा. १६१, पद्य, मूपू. (अरिहं देवो सुगुरू), १२१६७९ (४) १२२०४८(AS) (२) षष्ठिशतक प्रकरण-बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., वि. १४९६, गद्य, मूपू., (सिरिवद्धमाणजिणवरपाएनिय), १२१६७९(#) (२) षष्ठिशतक प्रकरण- अर्थ, मा.गु, गद्य, भूपू (-), १२२०४८(5) संख्यावाची शब्द लोक, सं., श्लो. १, पद्य, जै. वै. बौ. चंद्र‍ भूत५ ग्रहा९) १२३९१२-२ , " " संथारापोरसीसूत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपु (निसीहि निसीहि निसीहि), १२१८६५-१(०) १२०३६० ५ १२०६४५-१, १२३७५७-१, १२२४९५ (०३) "" (२) संधारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (नमस्कार विना बीजो), १२२४९५ (६) (२) संधारापोरसीसूत्र - १८ पापस्थानक गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (पाणीयवायमलिअं), १२२९५०-२ For Private and Personal Use Only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ (३) संथारापोरसीसूत्र-१८ पापस्थानक गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (प्राणातिपात१ वलीजूठ२), १२२९५०-२ संदेहदोलावली प्रकरण, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. १५०, पद्य, मूपू., (पडिबिंबिय पणय जयं), १२०७५८(+) संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १२५, पद्य, पू., (नमिऊण तिलोअगुरुं), १२२१३७-१(+), १२३४६७(+$), १२३८३५ (+$), १२३८५१(+$), १२३३०४-१(६) (२) संबोधसप्ततिका-वृत्ति, आ. अमरकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा तं श्रीमहावीरं), १२३८३५ (+$) संलेखना पाठ, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (अहं भंते अपछिम मारणं), १२१३७९-२(+) संसारतारण तप आराधना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीकेसिगणधराय नमः), १२०९६७-१ संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. १२२, पद्य, मूप., (काऊण नमुक्कारं जिणवर), १२१६२४ (२) संस्तारक प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (श्रीवीरं० करीनई), १२१६२४ सज्झायकरण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रात प्रतिक्रमण करी), १२२८९१-१(+) सज्झाय विधिसंग्रह, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रथम इरियावही पडिकमि पछे), १२२३२८-२(5) सणंकुमार कहा, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., वि. ११२९, गद्य, मूप., (अत्थि इहेव भारहे), १२३९२१(६) सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, प्रा., गा. ९१, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मप., (सिद्धपएहिं महत्थं), १२२१२१-२(+#), १२२७१४-६(+#), १२३०५०-५(+), १२३११८-६(+) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ ६-बालावबोध, मु. कुंभ ऋषि, मा.गु., गद्य, मूप., (गणहर पायनमेय समरी गुरु), १२२१२१-२(+#) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., वि. १७००, गद्य, मूपू., (सिद्धि निश्चल पद छइ), १२३०५०-५(+) सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., गा. ३६०, वि. १३८७, पद्य, मूपू., (सिरिरिसहाइ जिणिंदे), १२२६०१(+) सप्तनय स्वरूप, सं., गद्य, मप., (स्यात्कार मुद्रिता), १२२०८९-४(+) सप्तपदार्थी, पंडित. शिवादित्य मिश्र, सं., गद्य, वै., (हेतवे जगतामेव संसारार्णव), १२१६७७(+) (२) सप्तपदार्थी-टीका, आ. जिनवर्द्धनसूरि, सं., ग्रं. १६००, गद्य, मपू., वै., (श्रीवर्धमानजिनपोस्तु), १२१६७७(+) सप्तभंगी स्वरूप, सं., गद्य, मूपू., (सिद्धिः स्याद्वादादि), १२३५२४-२(+) । सप्तव्यसन कथासमुच्चय, मु. सोमकीर्ति, सं., स. ७, श्लो. ६७७, ग्रं. २०६७, वि. १५२६, पद्य, दि., (प्रणम्य श्रीजिनान्), १२०८०५(+#$) (२) सप्तव्यसन कथासमुच्चय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, दि., (प्रथम पांच परमेष्टीने), १२०८०५(+#$) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., स्मर. ७, पद्य, मपू., (णमो अरिहंताणं० हवइ), १२२३८५ (+$), १२३४१७-१(+#$) समयसार, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., अधि. ९, पद्य, दि., (वंदितु सव्वसिद्धे), प्रतहीन. (२) समयसार-आत्मख्याति टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., अधि. ९, श्लो. २७८, प+ग., दि., (नमः समयसाराय स्वानुभूत्या), प्रतहीन. (३) समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., अधि. १२, श्लो. २७८, पद्य, दि., (नमः समयसाराय), प्रतहीन. (४) समयसार-आत्मख्याति टीका के हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., अधि. १३, गा. ७२७, ग्रं. १७०७, वि. १६९३, पद्य, दि., (करम भरम जग तिमिर हरन), १२११९७(+#$), १२१३१४+६), १२१५४९-१(+#), १२१७०१(+#$), १२२५४६(+$), १२३४४८(+$), १२३५५३(+#$), १२३९०४(+#$) (५) समयसार-आत्मख्याति टीका के हिस्सा समयसारकलश टीका के विवरण का टबार्थ, मु. दानरुचि, मा.गु., वि. १८०१, गद्य, दि., (जीव करम करे छे ते), १२१३१४(+$) (५) समयसार-आत्मख्याति टीका के हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण की माहात्म्य गाथा, संबद्ध, मा.ग., गा. ४, पद्य, दि., (सोरठा ज्यौ जल चूडत कोई), १२१५४९-१(+#) समवसरणतप विधि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (भवजिननाथाय नमः १०), १२०९६९-६ समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १०३, सू. १५९, ग्रं. १६६७, गद्य, मूपू., (सुयं मे० इह खलु समणे), १२३५९५(+$) For Private and Personal Use Only Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५०८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट १ (२) समवायांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि, सं., ग्रं. ३५७५, वि. ११२०, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य समवाय), १२३३९८(#$) (२) समवायांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (पांचमो गणधर सुधर्मास्वामि), १२३५९५ (+$) (२) समवायांगसूत्र-हिस्सा समवाय ८ केवलीसमुद्धात, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (अट्ठसमइए केवलिसमुग्धाए), १२०७३१.२(+) (३) समवायांगसूत्र-हिस्सा समवाय ८ केवलीसमुद्धात का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (केवली छेहडे), १२०७३१-२(+) समाधिशतक, आ. देवनंदी, सं., श्लो. १०६ ई. ५वी, पद्य, दि. (येनात्माबुध्यतात्मैव), १२२६५० (+३) , (२) समाधिशतक- बालावबोध, मा.गु., गद्य, दि., (-), १२२६५०+) सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि सं. ग्रं. १६७५ वि. १४५७, प+ग. मूपू. (श्रीवर्द्धमानमानम्य), १२०७०७ +), १२१४९६(+), १२१७९४ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) सम्यक्त्वकौमुदी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान चतुर्), १२०७०७ (+), १२१७९४ , सम्यक्त्वकौमुदी कथा, उपा. विनीतसागर सं. ग्रं. १५८७, गद्य म्पू. (श्रीवर्द्धमानमानम्य), १२२७४३ (*) (२) सम्यक्त्वकौमुदी कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू. (श्रीवर्द्धमानस्वामी), १२२७४३+) सम्यक्त्वपंचविंशतिका, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (जह सम्मत्तसरूवं), १२११३७(+), १२२९५२ (+#), १२३८५८(+) (२) सम्यक्त्व पंचविंशतिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू. (जह कहतां जे उपशमादिक), १२११३७(+), १२२९५२(क) सरस्वतीदेवी षोडशनाम स्तोत्र, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., वै., (नमस्ते शारदादेवी), १२१७९९-९(+), १२३९१२-१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि सं. वो १३ वि. ९वी, पद्य, मूपु (करमरालविहंगमवाहना), १२१९५१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. हेमाचार्य, सं., श्लो. ११, वि. १५२७, पद्य, मूपू., (कमलभूतनया मुखपंकजे), १२२१९०-१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र-१०८ नाम गर्भित, सं., श्लो. १५, पद्य, वै., (धिषणा धीर्मतिर्मेधा), १२१७९९-११(+$) * , सरस्वती मंत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, मूपू., (ॐ ऐं क्रीं), १२३६१४-२ सरस्वतीसूत्र, सं., पद्य, वै., इतर (अइउऋलृ समानाः) प्रतहीन. (२) सरस्वतीसूत्र- प्रक्रिया सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, वै., इतर (प्रणम्य परमात्मानं ), १२०३५७/०३), १२२५३२(६) , (३) सरस्वतीसूत्र प्रक्रिया सारस्वत व्याकरण की चंद्रकीर्ति टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., वृ. ३ नं. ७५००, वि. १६२३, गद्य, भूपू. वै., इतर ( नमोस्तु सर्वकल्याण), १२३४५९(+), १२२५३२(१६) " (३) सरस्वतीसूत्र- प्रक्रिया सारस्वत व्याकरण की विषमार्थदीपिका टीका, उपा. पद्मचंद्र, सं., गद्य, म्पू, वै., इतर ( श्रीनागेशमुखं नत्वा), १२०३५७/०$) "" (३) सरस्वतीसूत्र- प्रक्रिया सारस्वत व्याकरण का धातुपाठ, संबद्ध, आ. हर्षकीर्तिसूरि सं. वि. १६६३, पद्य, म्पू, वै., इतर (श्रीसर्वज्ञ जिन नत्वा), १२२८७७ (६) १२३४६२(क) (४) सारस्वत व्याकरण-धातुपाठ की स्वोपज्ञ धातुतरंगिणी टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, म्पू, इतर ( नमस्कृत्य महोनंत नित्यं), १२२८७७(+#$) (२) सरस्वतीसूत्र- प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, वै., इतर (नमस्कृत्व महेशानं मतं). १२०४४८- १) (३) सरस्वतीसूत्र प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका की सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं. प्रक. १९. वि. १७९९, गद्य, भूपू, .वै.. इतर, ( पुराणपुरुषं ध्यात्वा), १२०४४८- १(+) सरस्वती स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (वाग्देवते भक्तिमतां), १२०४२९-१(#) सरस्वत्याष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (जाग्रज्जाड्यजलोर्म्मिजाल०), १२३४९३-२(+) सर्वजिन स्तव, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (जिनपते द्रुतमिंद्रिय), १२३७३०-४ सवाविश्वा जीवदया गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (जीवा सुरुमा थूला) १२३२६०-२६(+), १२३२१२-२(१) (२) सवाविश्वा जीवदया गाथा- टीका, सं., गद्य, म्पू, (प्राणिवधो द्वेधा स्थूल), १२३२६०-२६ (*) (२) श्रावकविसवादया गाथा- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुषम न टलइह न रहइ दस विस), १२३२१२-२(१) साढापच्चीस आर्यदेश विचार, सं., गद्य थे. (मगधदेशे राजगृहं नगर), १२२०८९-३(*) 3 For Private and Personal Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ साधारणजिन अभिषेक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (चक्रे देवेंद्रराजै), १२०९२२ साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मप., (देवाः प्रभो यं), १२११८२(+#), १२३९७८-१(+) (२) साधारणजिन स्तव-व्याख्या, ग. विजयविमल, सं., गद्य, मपू., (पदानि । देव । प्रभु ।), १२११८२(+#) साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसरि, सं., श्लो. १, पद्य, मप., (श्रीतीर्थराजः पदपद्मसेवा), १२२६११, १२२९०५-२ (२) साधारणजिन स्तुति-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीतीर्थाधिपतिर्वो), १२२६११ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अविरल कमल गवल मुक्ताफल), १२१८५१-१५(+) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू., (बिंबानि यानि विद्यते), १२०५०७-२(+#) साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ८, पद्य, मप., (मंगलं भगवान वीरो मंगलं), १२१४८१-२ साधुवंदना, प्रा., गा. १०७, पद्य, श्वे., (वंदियं ते वीरजिणं), १२१२५५($) सामाचारी प्रकरण, प्रा.,सं., द्वा. २१, ग्रं. ११७६, गद्य, मूपू., (आयारमयं वीरं वंदिय), १२२१२३ सामुद्रिकशास्त्र, सं., अ. ३६, श्लो. २७१, पद्य, मूपू., इतर, (आदिदेवं प्रणम्यादौ), १२२९२५(६) सारोद्धारात्मावबोधे सिद्धांत गाथा, प्रा.,सं., गा. ४७८, प+ग., मूपू., (पणमह तं नाहि सुअंसुखइ), १२२२१९-१८(+#) सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., द्वा. २२, श्लो. १००, वि. १३वी, पद्य, मपू., (सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः), १२१९२१(+), १२२०९१-१(+), १२२९४३(+$), १२२९९५(+#), १२३१२७(+#), १२३३६०(+#s), १२३६२६(+), १२३८०४(+$), १२३९४९-१(+$), १२०६९७, १२३४२२, १२१३५८(#), १२३५२८(६) (२) सिंदूरप्रकर-टीका, पंन्या. धर्मचंद्र, सं., गद्य, मपू., (स्वर्भूभुवस्त्रयीरम्यमगम), १२१३५८(#) (२) सिंदूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६५५, गद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा), १२२९९५(+#), १२३४२२ (२) सिंदूरप्रकर-टीका*, सं., गद्य, मूपू., (--), १२२८४८($) (२) सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिंदूरनउ समूह तापरूप), १२१९२१(+), १२२९४३(+$), १२३९४९-१(+$) (२) सिंदरप्रकर-पद्यानुवाद भाषा, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., अधि. २२, गा. १०१, वि. १६९१, पद्य, मप., दि., (सोभित तप गजराज सीस), १२३८३९(+) सिद्धचक्र महापूजन विधि सहित, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (अथाष्टदलमध्याब्जकर्ण), १२०७२०(+) सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (सिद्ध सिद्धत्थसुअं), १२२२१९-२(+#), १२२०७१ सिद्धपद स्तवन, मा.गु.,सं., गा. १४, पद्य, मूप., (जगतभूषण विगतदूषण प्रणव), १२०४६०-४, १२२६७१-२ सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ.८, सू. ४६८५, ग्रं. २१८५, वि. ११९३, गद्य, मपू., इतर, (अर्ह सिद्धिः स्याद्वादात), १२२६६७(+#$) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-धातुपारायण, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. ६०३, गद्य, मपू., इतर, (अर्ह भू सत्तायां), १२३४९५(+$) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमधातुपाठ, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. ३००, वि. ११९३, गद्य, मूपू., इतर, (भू सत्तायां पां पाने), १२३००३(+$) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-चंद्रप्रभा प्रक्रिया, उपा. मेघविजय, सं., ग्रं. १८०००, वि. १७५७, गद्य, मूपू., इतर, (प्रणम्य श्रीमदर्हत), १२३००८(+#) सिद्धांत स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ४६, पद्य, मप., (नत्वा गुरुभ्यः श्रुतदेवता), १२३०७५(+#) (२) सिद्धांत स्तव-टीका, आदिगुप्त, सं., गद्य, मपू., (ध्यायंति श्रीविशेषाय), १२३०७५ (+#) सिद्धांत हंडी, पंन्या. सहजकुशल, प्रा.,मा.गु., ग्रं. २०१६, गद्य, मपू., (नमिऊण जिणवराई सुय), १२०२९४(+$) सिद्धाष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, श्वे., (अखंड चिदानंद देवा), १२१५२५-२(#) सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १३४१, ग्रं. १६७५, वि. १४२८, पद्य, मपू., (अरिहाइ नवपयाई झायित), १२१९२० (२) सिरिसिरिवाल कहा-अवचूर्णि, उपा. क्षमाकल्याण, सं., ग्रं. ४०२२, वि. १८६९, गद्य, मपू., (ध्यात्वा नवपदी भक्त), १२१९२० सीताराम चरित्र, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (इहेव भरतक्षेत्रे मिथिलां), १२३१८७ सीतासती चरित्र, प्रा., गा. ३४४०, पद्य, मपू., (कमलनहकंतिजलेणं वखालि), १२२१५९(+) For Private and Personal Use Only Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मु. नगजय, सं., श्लो. ५, पद्य, मप., (श्रेयंसपुत्रं कृतभूप), १२१८०१-१ सीमंधरजिन स्तोत्र, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (नमिरसुर असुर नरवंदि), १२३५८६-६(+) सीमंधरजिनाष्टक, आ. शीलरत्नसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मपू., (कल्याणलतासुवसंतत), १२०५०७-७(+#) सुभाषित श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (दुरितवनघनालीशोककासार), १२३५४४-२८) सुभाषित श्लोक संग्रह , मा.गु.,सं., श्लो. ५, पद्य, श्वे., (अपुत्रस्य गृहं सुनं), १२१५४९-२(+#) सुभाषित श्लोक संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ४०, पद्य, श्वे., (दानं सुपात्रे विशुद्धं च), १२२०८९-८(+), १२२३२१-२, १२३२९७(#) सुभाषित श्लोक संग्रह, मा.ग.,सं., श्लो. ४५, पद्य, मप., इतर, (विद्यालक्ष्मीसंपन्नाद), १२०५९४-२(#) सुविधिजिन स्तवन, अप., गा. ७, पद्य, मूपू., (जय सुविधि जिणेसर गुण), १२३८७७-१(#) सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., वर्ग. ४, श्लो. १७६, वि. १७५४, पद्य, मपू., (सकलसुकृत्यवल्लीवृंद),१२०४६८(+#), १२०५०६(+#), १२१३७३(+६), १२०६३३ ।। (२) सूक्तमाला-बालावबोध, मु. प्रतापविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (तदनुक्रम संग्रहो), १२०६३३ (२) सूक्तमाला-टबार्थ, मु. धर्मविजय, मा.गु., वि. १८२७, गद्य, मपू., (सघलि पुण्य रुप वेलनी), १२०५०६(+#) (२) सूक्तमाला-कथा, मु. धर्मविजय, मा.गु.,सं., वि. १८३०, प+ग., मूपू., (प्रणमी सद्गुरु शारदा), १२०५०६(+#) सूक्तावली संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. २६०, पद्य, मपू., (वीरं विश्वगुरुं), १२१७२७(+#$) सूक्ष्मनिगोद विचार, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (लोए असंखजोयण माणे), १२३२६०-२३(+) (२) सूक्ष्मनिगोद विचार-व्याख्या, सं., गद्य, मूपू., (चतुर्दश रक्षात्मके), १२३२६०-२३(+) सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार, ग. जिनवल्लभ, प्रा., गा. १५०, पद्य, मपू., (सयलंतरारि वीरं वंदिय), प्रतहीन. (२) सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार-टिप्पण, ग. रामदेव, प्रा., गद्य, मपू., (सिद्धत्थसुयं नमिङ), १२३४३७(5) सूक्ष्मार्थसंग्रह प्रकरण, आ. जयतिलकसरि, सं., श्लो. २०२, पद्य, मूप., (सूक्ष्मार्थसार्थवक्तारं), १२०९१६-२ सूतक विचार श्लोक, सं., श्लो. ६, पद्य, मप., (सतकं वृद्धिहानिभ्यां), १२०१७७-२(+#) सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. २३, ग्रं. २१००, प+ग., मूपू., (बुज्झिज्ज तिउद्देज्ज), १२०४०८-४७(+), १२०९१३(+#), १२०९७५(+), १२१०६६(+#$), १२११८४(+#$), १२१४६६(+), १२१६१९(+$), १२२३२९-२(+), १२२४९६(+), १२२६७३-१(+), १२३२३०(+$), १२३५१०+), १२१०९३, १२१२२६, १२०९२९(६), १२१३२७($) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-दीपिका वृत्ति, मु. हर्षकुल, सं., ग्रं. ७०००, वि. १५८३, गद्य, मपू., (प्रणम्य श्रीजिन), १२१३२७(६) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-बृहद्वृत्ति#, आ. शीलांकाचार्य, सं., ग्रं. १२८५०, वि. १०वी, गद्य, पू., (स्वपरसमयार्थसूचकमनंत), १२०८८२(+$) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बुज्झि० छकाय जीवना), १२१०६६(+#$), १२११८४(+#$), १२१४६६(+), १२२४९६(+) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (पुच्छिसुणं समणा माहण), १२०९८६-२(+), १२१५२१-१(+), १२१८६२-१(+), १२१२४८-२,१२१५२०-१ (३) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का महावीरजिन स्तव, संबद्ध, मु. पार्श्वचंद्र, अप., गा. ३१, पद्य, मप., (नमी सोहमसामी जे धम्म अत्थ), १२१६६४-२(+) सूरिमंत्र २१ दिवसीय आराधनाविधि, मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (श्री महावीरस्वामीजी), १२०४३०(#) स्तुतिचतुर्विंशतिका, आ. बप्पभट्टसरि, सं., स्तु. २४, श्लो. ९६, वि. ९वी, पद्य, मूप., (नमेंद्रमौलिगलितो), १२२१५४(#$) (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-स्वोपज्ञ अवचूरि, आ. बप्पभट्टसरि, सं., अ. २४, वि. ९वी, गद्य, स्पू., (पारिजाताः कल्पद्रुमा), १२२१५४(#$) स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., स्तु. २४, श्लो. ९६, पद्य, पू., (भव्यांभोजविबोधनैकतरण), १२२७१०(+#$), १२३५७५(+) (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-टीका, जै.क. धनपाल, सं., स्तु. २४, वि. ११वी, गद्य, मूपू., (आसीद् द्विजन्माखिलमध), १२२७१०(+#$) स्तुतिचतुर्विंशतिका पंचदशी-अतिशयगर्भित, सं., स्त. २४, पद्य, मूपू., (--), १२२६१६(+$) स्त्रीयोनिजीवोत्पत्ति गाथा, प्रा., पद्य, मपू., (तह पंचंदियजीवा इत्थीजोणि), १२३७७६-२($) For Private and Personal Use Only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ (२) स्त्रीयोनिजीवोत्पत्तिगाथा विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ( तिमज पंचेंद्रीजीव स्त्री), १२३७७६-२($) " " स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. स्था. १०, सू. ७८३, ग्रं. ३७०० प+ग, मूपू (सुर्य मे आउस तेणं), १२२४८३ (+) (२) स्थानांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., स्था. १०, ग्रं. १४२५०, वि. ११२०, गद्य, मूपू., (श्रीवीरं जिननाथं नत्वा), १२२४८३ (+) " (२) स्थानांगसूत्र- दीपिका टीका, मु. मेघराज, सं. स्था. १०. ग्रं. १९९१७. वि. १६५९, गद्य म्पू, (वर्द्धमानोजिनो जीवाद), १२३१८८(३) 19 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) स्थानांगसूत्र- अभयदेवीय टीकानुसारी बालावबोध, मा.गु., गद्य, भूपू (श्रीवीर जिनं नाथं), १२३८७५ (NS) (२) स्थानांगसूत्र-हिस्सा स्थानक५ उद्देश३ जीवप्रदेश निर्याणमार्गस्थान पद, प्रा., गद्य, मूपू., (पंचविहे जीवस्स), प्रतहीन. (३) स्थानांगसूत्र-हिस्सा स्थानक५ उद्देश३ जीवप्रदेश निर्याणमार्गस्थान पद का अनुवाद, मा.गु., गद्य, मूपू., (पंचे ठा नीसरह), १२१०८३-३(+) (२) स्थानांगसूत्र- प्रव्रज्याभेदादि विवरण, प्रा., गद्य, मूपू., (दसविहा पव्वज्जा), १२१५९३-५ (२) स्थानांगसूत्र-विचारसार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, म्पू., (१ एगे आया १ एगे लोए १ एणे), १२३०२३(+) स्नात्रपूजा, श्राव. देपाल भोजक, प्रा., मा.गु., कुसु. ५, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (पवित्र उदक लेइ अंग), १२०५५९(+#), १२११८५-१(#) स्नात्रपूजा विधिसहित पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, मृपू, (पूर्वे तथा उत्तरविसे), १२१९३९ स्नात्रपूजा संग्रह*, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., मूपू., ( नमो अरिहंताणं नमोर्हत्), १२१४१०, १२१८०१-५, १२२७९६ स्वसमयपरसमय मतभेद विचार षड्दर्शनयुक्त, सं., गद्य, भूपू., वै., (परसमया भूयांस संति), १२२०८९-५ (का हरिवंशपुराण, मु. जिनदास ब्रह्मचारी, सं. स. ३९ नं. ६९६५, वि. १६वी, पद्य, दि. (सिद्धं संपूर्णभव्वार्थ) १२०२९७ (+०३) , " हीरप्रश्न, उपा. कीर्तिविजय, सं., प्रका. ४, गद्य, मृपू., (स्वस्ति श्रियो निदान), प्रतहीन. (२) हीरप्रश्न चयन, सं., गद्य म्पू (भक्तपरिज्ञा१ चउसरण २) १२०७७६- २(क) " हेमदंडक गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जीवभेया सरीराहार), प्रतहीन.. (२) हेमदंडक गाथा-कोष्टक, संबद्ध, मा.गु., को., मूपू., (--), १२०८६४-५ हेमविमलसूरि सज्झाय, अप., गा. १५, पद्य, भूपू (नमिअ आणंद भरि वद्धमाणं). १२३३६९.१(०) ५११ For Private and Personal Use Only हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रक. ८, श्लो. १३८, वि. १२वी, पद्य, म्पू., इतर (पुल्लिंगं कटणधपभमयर), १२३९८६ (३) १२३६८४(*) , . (२) हैमलिंगानुशासन स्वोपज्ञ विवरण आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. ग्रं. ३३००, गद्य, मूपू. इतर (श्रीसिद्धहेमचंद्र), १२३१८६ (+$) होलिकापर्व प्रबंध, ग. पुण्यराज, सं., श्लो. ३४, वि. १४८५, पद्य, मूपू., (प्रणम्य सम्यक्), १२३३२३(+) होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८३५, गद्य, मूपू., (होलिका फाल्गुने मासे), १२१८०९-९(+) ह्रींकार कल्प, मा.गु. सं., गद्य, मूपु.. (कुमारिका पासे कोर), १२१०५३-२ Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ॐकार अक्षर आरती, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. १६, वि. १८वी, पद्य, दि., (ॐकार सब मई सब अक्षर को), १२०३२६-५६०(+) ४ आहार विचार, मा.गु., गद्य, मप., (हविं च्यार प्रकारना),१२३७२४-४(+) ४ गरणा विगत, रा., गद्य, मपू., (१ धरतीरो गलणौ ईरज्या), १२१०८३-४(+) ४ घातकषाय पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (चार घात कषाय सेती छायक), १२०३२६-५४७(+) ४ प्रत्येकबुद्ध कथा, मा.गु., कथा. ४, गद्य, श्वे., (करकंडु कलिंगेसु० कलि), १२३३४२(+$) ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ५, पद्य, स्पू., (नगर कंपिलानो धणी रे), १२२२९६ (+#), १२०४८५, १२२४५०-२(६) ४ मंगल पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चारो मंगल चार आज), १२०६१४-१८ ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ४, गा. २०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सिद्धार्थ भूपति सोहे), १२०६४५-९ ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ११०, पद्य, स्था., (अनंत चोवीसी पाय नमु सकल), १२१२१८-१(+), १२२०६०(+), १२१७१३, १२१३८९-२ ४ मंगल रास, मु. मुनिराज ऋषि, रा., ढा. ५, गा. ३७, पद्य, श्वे., (अनंत चोवीसी जिन नमु), १२३४०१ ४ मेरुपरिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (जड मैं हजार एक ऊंचे), १२०३२६-४८८(+) ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १२, वि. १७वी, पद्य, मप., (मुजने चार शरणा होजो), १२१२९२ ४ शरणा, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिलो शरणो श्रीअरिहंत), १२१२५४ ४ शाश्वतजिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभ१ चंद्रानन२), १२०५०५-१ ५ अजीर्ण बोल, मा.गु., गद्य, मपू., (ज्ञानरो अजीर्ण अहंकार), १२१०८३-५(+) ५ अभिगम नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (सचीत वस्तु छांडे१ अचीत ले), १२२२१९-२३(+#) ५ आरा भविष्यकथन ४३ बोल, मा.गु., गद्य, मपू., (नगर ते ग्राम सरीखा हुस्ये), १२२७७०-१(+) ५ इंद्रिय २३ विषय विचार, मा.गु., गद्य, मप., (चक्षइंद्री१ कामीविषय५), १२३२६०-१०(+) ५ इंद्रिय चौपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., ढा. ६, गा. १५४, वि. १७५१, पद्य, दि., (प्रथम प्रणमी जिनदेव), १२१२९४(5) ५ इंद्रियमन सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (कान कहे कमखि करि मो सरिखो), १२०४०८-७५(+) ५ इंद्रिय वशीकरण सज्झाय, पुहि., गा. १३, पद्य, श्वे., (कायानगर सुवावणो चेतन केरो), १२०४०८-६९(+) ५इंद्रिय विषयत्याग गीत, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (नागनि चिंतवसे रे), १२२९७६-२(+) ५ इंद्रिय सज्झाय, मु. उत्तम, रा., गा. ५, पद्य, ., (पांच मारग तेविस मारगलि), १२०४०८-६५(+) ५ इंद्रिय सज्झाय, मु. ग्यानचंद, पुहि., गा.८, वि. १९३४, पद्य, श्वे., (पंच इंद्री की तेवीस), १२०४०८-६३(+), १२२५७४-१(+$) ५ इंद्रिय सज्झाय, सा. जडाव, रा., गा. ९, वि. १९५३, पद्य, श्वे., (प्राणि पांचु इंदर्या), १२२१८८-२० ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (काम अंध गजराज अगाज), १२१८९८-७(+$), १२१६८८ ५ इंद्रिय सज्झाय, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. ६, गा. ३०, पद्य, श्वे., (श्रोतेंद्रि नीज बस), १२२४६३-१(+) ५ इंद्रिय सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (पंच इंद्रियने वस पडया जग), १२०४०८-७३(+) ५ कल्याणक मंगल स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. २५, पद्य, मपू., (पणविवि पंच परम गुरु), १२४००४(+$) ५ कारण-दर्लभबोधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (पांच ठामै जीव दुर्लभबोधी), १२२२१९-२५(+#) ५ कारण स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ५८, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (सिद्धारथसुत वंदिये), १२१८९८-३(+$), १२०५८८-१, १२०८७१-८, १२२७२५(#$) ५ खामणा, मा.गु., गद्य, मूप., (पेला खामणा अढीदीप), १२३३९६(+$) ५ ज्ञान आरती, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जय पारस देवा जय पारस), १२१९६२-३ ५ तीर्थ चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धुर समरूं श्रीआदिदेव), १२३०८१-४०(+) For Private and Personal Use Only Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ ५ देव बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिलं नामद्वार बिजु), १२२०५५ ५निपँथ गीत, आ. भावहर्षसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (वीरइ वचन प्रकासिउ हे भगवइ), १२२६२२ ५ परमेष्ठि आरती, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, दि., (इहविधि मंगल आरती), १२०३२६-२७(+) ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २०, पद्य, मपू., (हस्तिनापुर नगर भलो), १२२९५६(#) ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ३१, पद्य, मप., (सकल मनोरथ पूरवै रे), १२०६०५-१, १२२७५२, १२०२३८) ५ मिथ्यात्व नाम, मा.गु., गद्य, मप., (अभिग्रहीक जे दर्शन आदर्यो), १२१४५१-५ ५ मेरुपर्वत नाम, मा.ग., गद्य, मप., (सुदर्शनमेरु विजयमेरु), १२०९६९-४ ५ सम्यक्त्व नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (औपशम समकित १), १२१४५१-६(5) ५ स्थान जीवगति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जेहनो जिव पगे निकले ते), १२२२१९-२४(+#) ६ काय जीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पृथ्वीकाय अपकाय), १२१३४७-७(+), १२२९७१-१(+), १२३७६३-३(+) ६ काय शिक्षा, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., दोहा. १०, वि. १८वी, पद्य, दि., (काय छहौं करुणा करी भए), १२०३२६-५६१(+) ६ कायाजीवपर्याप्ति प्राण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. २, पद्य, दि., (जिनवर कै तन आ छ प्राण), १२०३२६-४३५(+ ६ गुण वृद्धिहानि नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (अनंतभाग हानि असंख्यातभाग), १२३६४०-४ ६ जीवपर्याप्ति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकेंद्री ४ पर्याप्ती), १२२१६२($) ६ दर्शन नाम देवगुरु विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जैन१ नैयायिक२ सांख्य३), १२३४८२-२ ६ द्रव्य विचार, मा.ग., गद्य, मप., (धर्मद्रव्य शुद्ध लोक), १२१९८०-१(+#) ६ मत विचार, मा.गु., गद्य, स्पू., (जैनमत वीतरागदेव नव), १२३२६०-२४(+) ६ लेश्या विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (कृष्णलेस्या १ सर्व), १२२८२०-३(+), १२३२६०-११(+) ७ अभव्य अधिकार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अंगारमर्दकाचार्य जिणे), १२०४९५-३(+#) ७ नरक क्षेत्रमान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ली नारकी १राजरी जाडी), १२३०३८-३(+) ७ नरक गोत्र नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (रत्नप्रभा १), १२११४१-३ ७ नरक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (धम्मा १वंसा २ सेला ३), १२११४१-२ ७ नरक परिमाण विचार, मा.गु., गद्य, मप., (धम्मा १ पहिली नारकी), १२११४१-४ ७ नरकपाथडा बिलमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (सात नरक मांहि उनचास पाथडे), १२०३२६-४६३(+) ७ नरकमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (प्रथम नरक प्रमाने अधोलोक), १२०३२६-४६०(+) ७ व्यसन कडखो, मु. कल्याण मुनि, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (तुम छांडि हो छांडि जीव), १२१७२६ ७ व्यसनत्याग गाथाषोडशी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., सवै. १६, पद्य, दि., (पाप कौ ताप कलेस असेस), १२०३२६-९(+) ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. जयरंग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (पर उपगारी साध सुगुरु), १२०२०४, १२०४६०-१४ ८ अनंताद्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (साधना जीव अनंता १), १२०४९५-५(+#) ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मूल कर्म आठ तेहनी), १२०८४१(+), १२१९०१(+), १२२००२-१(+$), १२२०७६-१(+), १२३२६०-५(+), १२३७६३-१(+), १२३८३७(+#s), १२३२१३-१,१२१६७०(#), १२०८३५(६) ८ कर्मदहनपूजा विधान, जै.क. टेकचंद, पुहिं., प+ग., दि., (लोक शिखर तन छाडिअ मूर्ति), १२०३५८($) ८ कर्मनिवारण सिद्ध आरती, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., चौपा. ८, वि. १८वी, पद्य, दि., (जैसै नर को पाव दियौ काठ), १२०३२६-३८२(+) ८ कर्म पद-घातिअघाति, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (करम आठ जात गुण आठ के अछाद), १२०३२६-५४८(+) ८ कर्मप्रकृति विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम ज्ञानावरणी), १२१०१२-३(+), १२२९२०-१ For Private and Personal Use Only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५१४ ८ कर्म सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (आठ करम जिणवर कह्या), १२३०५५-१ ८ कर्मस्थिति विचार, मा.गु., गद्य, मूपु., (ज्ञानावरणीनी स्थिति), १२१३४७-८ (+), १२२८२०-५(१) " देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८ गुण सवैया-मूर्ख, मु. केसव, पुहिं. पद. १, पद्य, श्वे. (मुरख के आठ गुण साव), १२२२१९-२८(+१) "1 "" ८ प्रकारीजिन पूजा, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. १२, पद्य, दि., ( तार तार श्रीजिनवरौ तुम), १२०३२६-१९(+) ८ प्रकारी पूजा रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ७८, गा. २०९४, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (अजर अमर अविनाश जे), १२०२०८ (#$), १२३४८६ (5) ८ प्रकारी पूजा विधिसहित, उपा. क्षमाकल्याण, पुहिं., गा. ९, प+ग, मूपू., (शुचि सुगंध वर कुसुमजुत जल), १२०६४५-५ ८ प्रवचनमाता विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (इर्यासमितिना ४ भेद), १२१७८२ ८ प्रवचनमाता सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., डा. ९, गा. १३०, वि. १८वी, पद्य, मूपु., (सुकृत कल्पतरु श्रेणि), १२२८८९ (+४) ८ प्रवचनमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ८, गा. १२८, वि. १८२१, पद्य, स्था., (पांचसुमत तीनगुप्त आठ), १२१०९१(+), १२१४१४-२ (७), १२१३८९-१(३), १२१७२९ (३) ८ भेद दयापालन सज्झाय, मु. अमोलक, मा.गु., गा. ७, पद्य, वे. (पालिये पालिये पालिये रे) १२०४०८-२७(+) ८ भेद दया विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (सर्व दया कर्मबंध से डरे १), १२०४०८-३४(+) ८ मदपरिहार सज्झाय, मु. केशव, मा.गु., गा. १०, पद्य, वे (आठ मद सुत्र कया रे न्यारा), १२०४०८-१५९/ ८ मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मद आठ महामुनि वारीइं), १२०३८०, १२०६८९-२ ८ मद सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपु. ( प्रथम ऋषभ नमो जिनराज), १२२६९९ ८ स्थाने पर्याप्तिसंख्या पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि. गा. २, पद्य, दि., (एकेंद्री के चार फरसत), १२०३२६-४३४(+) 2 ९ उच्चारनयकथन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., ( दर्व दर्व कौ विचार दर्व), १२०३२६-४३१(+) ९ कषाय परिहार बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., ( हीस्या के कहे जे कामकाज), १२०९६३(#$) ९ निधान विचार चक्रवर्त्ति, मा.गु., गद्य, भूपू (नैसर्पि निधांन तिनमांहि), १२३२६०-४(*) ९ वाड सज्झाच, उपा. उदयरत्न, मा.गु., डा. १०, गा. ४३, वि. १७६३, पद्य, म्पू. (श्रीगुरुने चरणे नमी), १२१३५६ (+), १२२३१६ (०७) ९ वाड सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (रमणी पशु पंडग तणी रे ), १२२५२६ ९ वाड सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (पहेला प्रणमुं गोयम), १२०४४६ १० अवंदनीय बोल, मा.गु., गद्य, वे. (उसना विपरित अनुष्ठान करे) १२०४०८-१८८१) '. १० गणधर नाम- पार्श्वजिन, मा.गु., गद्य, भूपू., (श्रीसुमतीस्वामी १) १२०९६९.५ १० पच्चक्खाण नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (नवकारसी सागार पोरसी), १२०९६७-२ १० पच्चक्खाण फल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पच्चक्खाणना नाम नवकारशी), १२१४५१-१, १२३६७८ १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, रा., गा. ११, पद्य, श्वे., (पचखाणरा फल सबलो भाखीयो), १२१७२८-३ १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३३, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (सिद्धारथनंदन नमुं), १२२२१३($) १० प्रकार देव आयुष्यबंध सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, रा. गा. १३. वि. १८६५, पद्य, वे दस प्रकारे बांद सुर), १२२०४७-१(+) १० बोल- धर्म, मा.गु, अंक. १०, गद्य, वे., (दया पाले सो दानेसरी), १२२७८३-३(०) "" १० बोलपच्चीसी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., सवै. २५, पद्य, दि., (एक सरूप अभेद दोई विधि), १२०३२६-१६(+) १० बोल श्रावक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (साधुना दर्शन किधा होय तो), १२२७८३-५(#) १० बोल साधु मार्ग, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञाननी समकवत्वनी), १२२७८३-१(#) १० मनुष्यजन्म दुर्लभ बोल, मा.गु., अंक. १०, गद्य, मूपू., (पहिलै बोलै मनुष्यभव), १२२७८३-२ (#) १० लक्षण पूजा अष्टप्रकारी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. २२, पद्य, दि., (उत्तम क्षमा मारदव आरज भाव), १२०३२६-६१(+), १२०६५८-३ (+), १२०६५८-५ (+३) १० श्रावक चरित्र, मा.गु., गद्य, मूपू., ( श्रेयः श्रीमद्वीरमानम्य), १२१६९१ १० श्रावक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १८, वि. १८२९, पद्य, वे. (आनंदने सेवानंदा रे), १२०२२४(+), १२१५४६-१ "" For Private and Personal Use Only Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ १० श्रावक सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (प्रह उठि प्रणमुं), १२०७८९-८(+#) १० स्थानचौवीसी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ३०, पद्य, दि., (रिषभदेव रिषदेव वीर गंभीर), १२०३२६-२५(+) ११ अंग सज्झाय, मु. विनयचंद्र, मा.गु., ढा. १२, वि. १७५५, पद्य, मप., (पहिलो अंग सुहामणों), १२१७२०-१ ११ गणधर स्तवन, सा. जडाव, रा., गा. ९, वि. १९३२, पद्य, श्वे., (प्रथम गुणधर गोतमसामी), १२२१८८-१० ११ श्रावक प्रतिमा सज्झाय, रा., गा. १७, पद्य, मूपू., (ग्यारै प्रतिमा हो), १२३७७०-२(+$) १२ चक्रवर्ती आयुमान देहमान बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम भरत चक्रवर्ति), १२३०३८-५(+) १२ चक्रवर्ती नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम भर्थजी१ सगर२), १२२२२०-२ १२ देवलोक ९ ग्रैवेयक ५ अनुत्तरदेव विमान-प्रासाद-प्रतिमा-कायामानादि विवरण, मा.गु., को., श्वे., (--), १२१२०५-२(+) १२ देवलोक राजमान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (छठो देवलोक ४ राजचोडो), १२१३४७-११(+), १२३०३८-२(+) १२ देवलोकविमान स्वरूप संख्या विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (हाथ जोड मान मोडवनणी), १२०४९५-१(+#) १२ भावना, मा.गु., गद्य, मूपू., (अपरां च बिजु), १२३२६१ १२ भावना चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), १२०६६४(६) १२ भावना नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (अनित भावना १ असरण), १२०७२९-१(#) (२) १२ भावना नाम-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अनित भावना भरतजी), १२०७२९-१(#) १२ भावना पद, रा., भा. १२, पद्य, मपू., (हेरे जीव गढ मड), १२०८६९(+) १२ भावना विचार, मा.गु., गद्य, मप., (पहिली अनित भावना ते), १२१३४७-१(+), १२१५२८-१, १२३५३६-१(#), १२२२३९(६) १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १२, गा. ७२, वि. १६४६, पद्य, मूपू., (आदिसर जिणवर तणा पद), १२३३८२(+), १२२५६५-१, १२३१४१-१, १२३६४३-१(#) १२ भावना सज्झाय, मु. शुभमति, मा.गु., गा. १८८, पद्य, श्वे., (मास पाखी वरसी तप करइ), १२२९००(+) १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., ढा. १४, गा. ९०, पद्य, मूपू., (विमलकुलकमलना हंस तुं), १२२७९५(#$) १२ भावना सज्झाय, पुहिं., गा. १५, पद्य, दि., (आदिदेव जिनपय नमो बंदउ), १२२०५८ १२ भावना सज्झाय-बृहत्, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १३, गा. १२८, ग्रं. २००, वि. १७०३, पद्य, मपू., (पास जिणेसर पाय नमी), १२१५१२(+), १२१७२१(+), १२३८११(+), १२०८७१-१ १२ मास फल, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (कार्तिक शुदि पडवा दीने जो), १२१९१६-३ १२ व्रत कथानक, मा.गु., गद्य, श्वे., (समकित सूधउं पालता), १२२६२०(+#$) १२ व्रत सज्झाय, मु. अमीकुंवर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (जीवदया व्रत पेले), १२०४६१-३ १३ काठिया नाम, मा.गु., गद्य, पू., (आलस सो धरम उद्यम रहित १), १२१३४७-६(+), १२२०८२-२(+#), १२३२६०-८(+), १२२७८३-७(#$) १३ काठिया सज्झाय, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमुंगौतम), १२३८९०-२(#$) १३ काठिया सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, रा., गा. २२, वि. १८६१, पद्य, श्वे., (रतन चिंतामण जे एवोजी), १२०१९४, १२२४७२-१ १३ काठिया सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., गा.१६, पद्य, मप., (सोभागी भाई काठीया),१२०१८२-१,१२०२४०(#) १३ काठिया सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूप., (आलस पेलो काठियो धर्म), १२०२२१-१ १३ काठिया सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर प्रणमी पाय), १२३६४७-४ १३ द्वीप जिनपूजा विधि, क. लालजी, पुहिं., पूजा. ६२, ग्रं. १९३०, वि. १८७०, पद्य, दि., (श्रीअरहंत प्रणाम कर पंच), १२०३४५ १३ बोल हानीवृद्धि के, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ कलहो २ रामत ३ खाज), १२१३४७-५(+) १३ शाखा-तपगच्छ, मा.गु., गद्य, भूपू., (वडगच्छा १ देवसूरा २ आणंद), १२२०३८-१(+) १३ स्थानके मार्गणादि बोल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १२३०१३($) १४ गुणस्थानक २३ द्वार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नाम लखण गुणठी), १२२०९२(+) १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मिथ्यात्व गुणठाणो १), १२३७६३-२(+) १४ गुणस्थानक मूलोत्तरप्रकृति संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (उदयभाव२१ गत ४ लेश्या), १२२१९४(६) For Private and Personal Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ १४ गुणस्थानक यंत्र, मा.गु., यं., श्वे., (--), १२२७२२(+) १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (बंधप्रकृतयस्तासां), १२१०३१-३(+$), १२२३०५, १२३२१३-२($) १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञं जिनं नत्वा), १२०४७१-४(+) १४ गुणस्थानक सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ३३, पद्य, भूपू., (जिणवर पय वंदीय मन), १२३८७१(+) १४ गुणस्थानक स्थितिकाल, मा.गु., गद्य, पू., (मिथ्या० स्थिति अनंतो), १२१६३९-२ १४ गुणस्थानके १०५ बोल विषये बासठीयो यंत्र, मा.गु., को., भूपू., (--), १२०६१३(+) १४ गुणस्थानके २१ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (गुणस्थानक १४ तेहनां), १२०४७१-१(+) १४ गुणस्थानके ८ कर्म की १४८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम गुणठाणइ अठकरम), १२१५२७(+) १४ गणस्थानके जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, मप., (पहिले गुणठाण जीवनां), १२१०३१-२(+) १४ गुणस्थानके सत्ता विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (१मिथ्यातगुणस्थानक विषै), १२०२२३(+) १४ नदी परिवार पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (गंगासिंधु रकतौदाय चार नदी), १२०३२६-४८७(+) १४ नियम नाम-श्रावक, मा.गु., गद्य, मपू., (सचितद्रव्य १ अचित), १२०७२३-२(#) १४ पूर्व नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (उत्पाद पूर्व १ अग्र), १२१२६३-२ १४ रत्न उत्पत्तिस्थान, मा.गु., गद्य, श्वे., (चक्र १ छत्र २ असि ३), १२१६३९-४ १४ राजलोक क्षेत्रवर्णन सवैया, रा., सवै. १६, पद्य, दि., (--), १२०६१८-१(६) १४ राजलोकमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (नीचै वाय छ सै ठावन कोर), १२०३२६-४५५(+) १४ राजलोकमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (लोक दक्षन उत्तर एक राजू), १२०३२६-४५९(+) १४ राजलोकमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ५, पद्य, दि., (सात नरक तलै एक राजू), १२०३२६-४५६(+) १४ श्रोता चौपाई, मु. चोथमल ऋषि, रा., वि. १८५२, पद्य, श्वे., (श्रीश्रीमंदर साहिबा), १२१२३९(+), १२१४१४-१(+) १४ समूर्छिमपंचेंद्रियजीव उत्पत्तिस्थानक सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूप., (गौतम गणधर प्रणमी पाय), १२२५२७-३(+) १४ स्वप्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पहिलै गजवर दीठो मुज), १२०६४५-३ १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., ढा. ४, गा. २०, पद्य, मूपू., (श्रीदेव तीर्थंकर केरडि), १२१५९६-१ १५ कर्मभूमि देशखंड विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबूद्वीपमें १० लाख ८८), १२०१७५ १५ तिथि ७ वार चरित्र, मु. लब्धिविजय, मा.गु., ढा. १५, पद्य, मप., (श्रीमत् गौडी जगधणी), १२०६६२(+) १५ तिथि सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (आतम अनुभव चित्त धरो), १२१२८५(#$) १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्तु. १६, गा. ६४, पद्य, मूपू., (एक मिथ्यात असंयम अविरति), १२३४४४(#) १५ परमाधामी नाम, मा.गु., गद्य, पू., (अंब परमाधामि१ अंबरसी), १२११४१-६ १५ योग नाम-मनवचनकाया, मा.गु., गद्य, मपू., (सत्यमनोयोग १ असत्य), १२०७३१-३(+) १५ संख्या बोल विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (--), १२२८२०-१(+$) १६ कारण भावना पूजा, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. २१, प+ग., दि., (सोलह कारण भाय), १२०३२६-६०(+), १२०६५८-२(+) १६ ध्यान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (आर्तध्यानना च्यार पाया), १२२१५५-३ १६ बोल-रूपीअरूपी, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ पांच समकित अरुपी), १२०४७१-३(+) १६ शृंगार दोहा, पुहि., दोहा. ५, पद्य, वै., इतर, (च्यार चतुष्पद च्यार), १२१०५८-५(+#) १६ सती लावणी, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (श्रीवीरणी तणां तु), १२०८७१-६(5) १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १७, वि. १८वी, पद्य, मपू., (आदिनाथ आदि जिनवर), १२०४६०-८ १६ सती सज्झाय, मु. जडाव, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (सीवरु सोल सतीया भावधरी), १२१३८९-३ १६ सती सज्झाय, मु. वृद्धिचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (सीता है सतवंतीनार सद), १२२१९१-१६ १६ सती सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शीतल जिणवर करी), १२३१४१-३ For Private and Personal Use Only Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ १६ स्वप्न सज्झाय, क. बुधजन कवि, मा.गु., गा. १८, पद्य, दि. (--), १२१६२६ (क) १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सुपन देखी पेहलडे), १२२३७३ "" १६ स्वर्ग १२ इंद्र परिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि. (आनंद के सुरगधार ताके), १२०३२६-४९५ (०) १६ स्वर्ग ९ ग्रेवेयक विमानसंख्या पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (तेतालीसमें इकहत्तर चौदे), १२०३२६-४९६(+) १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., डा. ३, गा. ३२, पद्य, मूपू., (पहला ते प्रणमुं पास), १२३७०८(+), १२३४०६-२, १२०७८७(8) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८ नातरा सज्झाय, मु. हेतविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, पद्य, मूपू., (पहेलां ते समरूं पास), १२२४०७, १२११२१ ($) १८ पाप भेद पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि गा. ४, पद्य, दि., (अविभागी पुगल की परमानु एक) १२०३२६-४२९(+) १८ पापस्थानक आलोयणा, मा.गु., गद्य, मूपु, (कोई भव्यजीव कोई), १२२८६१-१ (०६) "" १८ पापस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, म्पू, (पहलो प्राणातिपात १) १२२४२७-२ " १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु. सज्झा. १८. ग्रं. २११, पद्य, मूपू., (पापस्थानक पहिलुं कहि), १२१८०१-१२, १२१४३४३) (तीन कोडि तरु जात), १२१५९३-४ . १८ पापस्थानक सज्झाय, मु, मयाचंद शिष्य, मा.गु.. गा. १५. वि. १९३३, पद्य, मूपू. (ये धानक अठारे प्रकारनो) १२२३३५ १८ भार वनस्पतिमान कवित्त, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे. १८ भार वनस्पतिमान गाथा, क. हेम, मा.गु.. गा. १, पद्य, भूपू (प्रथम कौडि अडत्रीस लक्ष्मण), १२१५६५-३(+) १८ हजार शीलांग भेद पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (सुर नर पशुनि तीन कृत्य), १२०३२६-४२५(+) २० बोल वादनिवारण सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १९, वि. १८३३, पद्य, स्था., ( किणसुं वाद विवाद न), १२०४०८-१७०१०), १२१०९६-३ (०) 3 २० विहरमान कवित्तदशक, जे.क. धानतराय अग्रवाल, पुहिं. सबै १०, वि. १८वी पद्य वि., (सीमंधर प्रथम जिन साहब अंत), १२०३२६-३७५ (+) २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सीमंधर १ युगमंधर), १२०८६४-२, १२१५९३-२, १२३७३७-२ २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू (सीमंधरस्वामी श्रीजुगमंदर), १२०५०५-२, १२१२६३-१(३) २० विहरमानजिननाम विचार, रा., गद्य, वे. (सीमंधरस्वामी युगमंधर), १२२२२०-१ , . " २० विहरमानजिन पद-कुंथुअरजिनांतर, मा.गु. गा. २, पद्य, मूपू (कुंथु अरजिनने अंतरे रे), १२२०८९-७(+) " २० विहरमानजिन पूजा, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. दोहा १८, वि. १८वी, प+ग. दि., (दीप अढाई मेरुपून अब), १२०३२६-५१(+) २० विहरमानजिन मातापितादि वर्णन, पुहिं., गद्य, मूपू., (श्रीमंधरस्वामि श्रेयांस), १२३२६९(#) २० विहरमानजिन मातापितादिविगत यंत्र, मा.गु., गद्य, मृपू. (--), १२०५९२-२ " २० विहरमानजिन विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू (सीमंधरस्वामीजी माराज), १२१८३३-३(३) २० विहरमानजिन स्तवन, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८५२, पद्य, स्था (श्रीसीमंधर साहिबा हो), १२३७७८-३(३) २० विहरमानजिन स्तवन, मु. वृद्धिचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (पाप पुंज जावे झरीजी प्रथम), १२२१९१-१५ २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपु., (मुज हीयडी हेजालूवी), १२३४२० (०) २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २०, वि. १८वी, पद्य, दि., (श्रीसीमंधर जिनवर), १२३८९४-२ (+) २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु. स्त. २०, पद्य, म्पू. (पुखलवई विजये जयो रे नयर), 3 १२१७९९-८(+), १२०९२०) २० स्थानक खमासमणदान विधि, मा.गु., गद्य, मूपु. ( तिहां प्रथम स्थानके), १२१८९६ २० स्थानकतप गणणुं, मा.गु., गद्य, वे., (ॐ नमो अरिहंताणं), १२०६९४-२, १२०९९८-२(#) २० स्थानकतप स्तवन, पं. मणिविजय गणि, मा.गु., गा. १४, वि. १७६५, पद्य, मूपू., (प्रणमी सरसती सांमणी रे ), १२१५६१-१ २० स्थानकतप स्तुति, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मृपू., (अरिहं सिद्ध पवयण), १२०५३२-२(५) For Private and Personal Use Only ५१७ Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. २०, वि. १८४५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), १२३६०८-१(#$) २० स्थानक विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (अरिहंतजी गुणगीराम), १२३२६०-९(+) २१ बोल प्रतिमापूजामतपुष्टि प्रश्नोत्तर-सिद्धांतमध्ये, मा.गु., गद्य, मूपू., (समकित तो सरदहण रूप), १२३७०१(६) २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जिनशासन रे शुद्धि), १२१८९८-६(+) २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, मु. समरसिंघ, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर पय नमी कहिस्युं), १२२४२३-६ २२ अभक्ष्य निवारण सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (पणमिय पास जिणेसर पाय पामी), १२२५२७-४(+$) २२ परिषह दृष्टांत कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (उजेणी नगरीयइ हस्तमित), १२३९९४($) २२ परिषह सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (--), १२२४२३-५(६) २२ परिषह सज्झाय, पुहिं., गा. २४, पद्य, श्वे., (क्षुधा त्रिषा हेम), १२१४५४-७ । २२ परिसह सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. २२, वि. १८२२, पद्य, स्था., (श्रीआदेसर आद दै), १२०२५४(#) २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सात एकेंद्री रत्ननी), १२२६३७(+), १२२२११(६) २३ पदवी सज्झाय, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा. १८, वि. १७७२, पद्य, मूपू., (गणधर गौतमस्वामी जी), १२३५६५(5) २४ गणधर आरती, श्राव. भवानीदास, पुहिं., दोहा. ८, पद्य, दि., (आदिपुरुष ते आदिदेव रधमात), १२०३२६-५५५(+) २४ जिन आंतरा स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ३५, वि. १७७३, पद्य, मपू., (सारद सारदना सुपरे), १२०२६० २४ जिन आरती, श्राव. मोतीराम, पुहिं., गा.८, पद्य, दि., (चौवीसौं जिन राज पद वंदौ), १२०३२६-४८(+) २४ जिन कलश, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (कलस निसुणो २ रिसहअजि), १२१३४३-२ २४ जिन कल्याणक तिथि-अनागत, मा.गु., गद्य, मूपू., (कार्तिक वदि श्रीदेव ज्ञान), १२२८५५ २४ जिन गणधर संख्या पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (चौरासी अरु नवै पाँच सौ), १२०३२६-४१८(+) २४ जिन गणधरसंख्या मातापिता कल्याणकभूमि परिवारादि विवरण, मा.गु., को., मप., (ऋषभदेवस्वामी ८४ गणधर), १२११०१ २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (सरसती आपे सरस वचन), १२०१८३ २४ जिन गर्भावास काल, मा.ग., को., म्पू., (श्रीऋषभदेवस्वामिनो), १२१३६१(+) २४ जिन गीत, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (वंदौ आदिजिनंद दुहूं कर), १२०३२६-४४(+) २४ जिन चैत्यवंदन, मु. रामविजय, मा.गु., चैत्यव. २४, पद्य, मूपू., (आदिसर अरिहंत स्वामी), १२१३०६(+$) २४ जिन चैत्यवंदन-अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, वि. १८वी, पद्य, मपू., (पद्मनाभ पहेला जिणंद), १२१११४-१(+) २४ जिन चैत्यवंदन-दीक्षातपगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुमतिनाथ एकासणुं करी), १२०१८२-८ २४ जिन चैत्यवंदन-दीक्षास्थानादिगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (विनीतानगरीए लीये दीक), १२०१८२-९ २४ जिन चैत्यवंदन-देहमानगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पंचसया धनुमान जाण), १२०१८२-७ २४ जिन चैत्यवंदन-भवसंख्यागर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रथम तीर्थंकरतणा), १२३०८१-३९(+) २४ जिन चैत्यवंदन-राशिगर्भित, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धनु राशि ऋषभदेव वृषराशि), १२२६९४-२ २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभुने वासपूज्य दोय), १२०१८२-६ २४ जिन चौपाई, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., चौपा. १०, पद्य, दि., (ऋषभनाथ सुखदातार अजीत करम), १२०३२६-५३२(+) २४ जिन नमस्कार-त्रिभंगीसवैयामय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, ब्र., गा. २५, पद्य, मप., (गुहन गंभीर अचल जिम), १२३७४७(+$) २४ जिन नाम, आयुमान, देहमान, वर्ण, राज्यकाल, तपकाल आदि विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ को आउखो), १२३०५७(+$),१२२२९८-२(#$) २४ जिन नाम-अतीत, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीकेवलज्ञानी निर्वाणी), १२०५९२-३ २४ जिन नाम-अनागत, मा.गु., गद्य, मूपू., (पद्मनाभ श्रेणिकनो), १२०५९२-४, १२०८६४-१ २४ जिन निर्वाणभूमि पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (अष्टापद आदिनाथ चंपापुर), १२०३२६-४२१(+) २४ जिन पंचकल्याणक गणj, मा.गु., गद्य, मूपू., (कार्तिक वदि संभवनाथ), १२१०१२-४(+) For Private and Personal Use Only Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ २४ जिन पंचकल्याणक-तिथि व जाप, मा.गु., गद्य, मूपू., (कारतीक वदि ५ श्रीसंभवजिन), १२१६८९(#) २४ जिन पद, मु. मेघराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (श्रीतीर्थंकर चोवीसे), १२१०९६-१(+) २४ जिन पद, मु. लालचंद, मा.ग., गा.७, पद्य, मप., (श्रीजिन मुजने पार), १२२१९१-१२ २४ जिन पद-छद्मस्थकाल, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (वरस हजार एक वारै चौदे), १२०३२६-४१२(+) २४ जिन पद-देहप्रमाण, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (पांच सै धनुष साढेचार), १२०३२६-४१४(+) २४ जिन पद-लंछन, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (वैल गज घोरा कपि को), १२०३२६-४११(+) २४ जिन पद-वंश, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. २, पद्य, दि., (संतकुंथअरुनाथ तीन कुरुवंश), १२०३२६-४१०(+) २४ जिन पद-समवसरनमान, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (वारै सढे ग्यारै ग्यारै), १२०३२६-४१३(+) २४ जिन परिवार सज्झाय, ग. वच्छ, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (आराही अनु दिन अरिहंत), १२२७२६-२ २४ जिन पूजा, श्राव. रामचंद्र चौधरी, पुहिं., पूजा. २४, वि. १८५४, पद्य, दि., (सिद्धि बुद्धि दायक), १२०५७८(+#) २४ जिन प्रश्नोत्तर श्रावकाचार, बुलाकीदास, पुहि., वि. १७४७, पद्य, दि., (सेवत जिहिं सुर० वृषनाइक), १२०३१६ २४ जिनभक्ति पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., चौपा. २, पद्य, दि., (चौवीसौं कौं वंदना हमारी), १२०३२६-३८४(+$) २४ जिन भास, पंन्या. रंगरतन, मा.गु., वि. १६८९, पद्य, मप., (आदिनाथ छइ प्रथम जिणंदा जस), १२३१२६(+$) २४ जिन सवैया पच्चीसी, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., सवै. २५, वि. १८५५, पद्य, श्वे., (सुरतरु जिन समरुं सदा), १२१०५१-१(+#) २४ जिन स्तवन, मु. कीर्तिविजय, मा.ग., गा.७, पद्य, मप., (मुझ परि महर करो महाराज), १२०३२०-६३(+-#) २४ जिन स्तवन, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १८६२, पद्य, श्वे., (पो उठी प्रणमु परमेसर मन), १२०९७९-२(+) २४ जिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रह समे भाव धरी), १२२४७५-५ २४ जिन स्तवन, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ६, पद्य, दि., (रिषभदेव रिषभदेव सहाई अजित), १२०३२६-२४७(+) २४ जिन स्तवन, मु. रिखजी, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (समरू श्रीआदि जिणंद), १२१०९६-२(+) २४ जिन स्तवन, मु. लालविनोद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जय जय आदि नमुं अरिहं), १२०३२०-३२(+-#) २४ जिन स्तवन, वजुलाल, मा.गु., गा.८, वि. १८१७, पद्य, मपू., (श्रीरीसहनाथजीन सीवरता सुख), १२०९२५-२ २४ जिन स्तवन, पुहिं., गा. ३२, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ करिजे), १२१३७७($) २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (श्रीऋषभ अजित संभव), १२२१९१-१४($) २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. २५, पद्य, मपू., (श्रीजिणराज परथम गुण गाइये), १२१६०२(+) २४ जिन स्तवन-कंभलगढतीर्थ मंडण, पंन्या. सिंहविजय, मा.गु., गा. १६, वि. १७९३, पद्य, मप., (सरसति सामिन विनवं रे), १२०४०२-४ २४ जिन स्तवन-देहमान आयुस्थितिकथनादिगर्भित, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., ढा. ५, गा. २९, वि. १७२५, पद्य, मूपू., (पंचपरमिट्ठ मन शुद्ध), १२१४४९-३(+#) २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., गा. २९, वि. १५६२, पद्य, स्पू., (सयल जिणेसर प्रणमु), १२१५६४, १२३०७९, १२०२३५-१(#), १२०४६०-२($) २४ जिन स्तवन-वर्णगर्भित, मा.ग., गा. ५, पद्य, मप., (वंछितपूरण सुरतरु जेह), १२१९१०-२(#) २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २९, पद्य, मपू., (ब्रह्मसुता गिर्वाणी सुमति), १२०५००(+$) २४ जिन स्तुति, मु. नगजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वंदु महाराज चरण निशि दिन), १२०३२०-३(+-#) २४ जिन स्तुति, मु. मुक्तिचंद्र पंडित-शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हो मन समरि तूं जिन चोवीस), १२३८८१-२(#) २४ जिन स्तुति, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २७, पद्य, मप., (कनक तिलक भाले हार), १२२८२७ २४ जिन स्तुति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (ऋषभ अजित जिननाथ संभव), १२२१९१-१३ २४ जिन स्तुति, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रणमुं जिनदेव सदा), १२१४८१-६ २४ जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, पू., (--), १२३३९४(+$) २४ जिन स्तुति-वर्णगर्भित, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (--), १२३८८१-३(#) २४ दंडक २४ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सरीरोगाहणं संघाणं सठाण), १२१३९८(+) For Private and Personal Use Only Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ २४ दंडक २५४ द्वार यंत्र, मा.गु., को., म्पू., (--), १२२९७५-२ २४ दंडक २५४ द्वार विचार, मा.गु., द्वा. २५४, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १२२९७५-१ २४ दंडक २५ द्वार विचार, मा.गु., गा. २, प+ग., मूपू., (सरीरोगाहणा संघयण), १२१०७६(+), १२१२६४ (२) २४ दंडक २५ द्वार विचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सरीर पांच ते किहां), १२१२६४ २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (शरीर अवगाहणा संघयण), १२१०१२-१(+), १२२०६८-१(+), १२३०३८-१(+) २४ दंडक २९ द्वार बोल, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रथम नामद्वार बीजु), १२०६७६(+#), १२१३६८(+), १२२९८२(+#), १२२२८३ २४ दंडक ३५ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसारी जीवो च्यार), १२१४५६(+), १२१७५५ २४ दंडकगर्भितजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मपू., (--), १२२९५३($) २४ दंडक जीव अल्पबहुत्व, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक तो उंधोलोक१ तिरछो), १२३९९३(+#$) २४ दंडक बंधमक्त शरीर विचार, मा.ग., गद्य, श्वे., (--), १२१३०३(+$) २४ दंडक बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, मपू., (दंडक २४ ना शरीर ५), १२२८२९-१(+) २४ दंडक विचार, मा.ग., गद्य, मप., (प्रथवीकायनो १ दंडक), १२१०३१-१(+) २४ दंडके २१ द्वार विचार-जीवादि, मा.ग., अंक. २४, को., मप., (शरीर५ अवगाहना संघयण६), १२२०२३(+) २४ स्थानक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (गति चार इंद्री पाँच काय), १२०३२६-४२७(+) २६ क्रियाविधि बोल, मा.गु., बो. २६, गद्य, मूपू., (स्थापनाचार्य पडिलेही जिण), १२२७३७(+) २७ सती सज्झाय, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (प्रह समै उठी मननै), १२३७८९(+) २७ साधुगुण वर्णन, मा.गु., गद्य, श्वे., (पंचमहाव्रत पाले ५), १२३७४५-२ २८ प्रकृति पद-मोहनीयकर्म, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (अनंतानबंधि औ अप्रत्याख्या), १२०३२६-५६४(+) २८ लब्धि नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आमोसही विप्पोसही), १२०८५६-३, १२१८९५-२(#), १२१७३३-४($) २८ लब्धि यंत्र, मा.गु., गद्य, श्वे., (आमोसही लब्धि ते हाथ), १२२६७२(2) २८ लब्धि विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (जे मुनिना हाथ पगना), १२२४०३-२ २८ शिखामण बोल, रा., गद्य, मप., (जीणरी सरदणा परुपणा), १२१३२१(+) ३० उपमा-साधु की, मा.गु., अंक. ३०, गद्य, श्वे., (कांसी के भाजनकी १), १२३६३४-१ ३० बोल-दषमकाल, मा.गु., गद्य, श्वे., (नगर ते गामसरखां थशे), १२०४४१-२($) ३० बोल-महामोहनीय कर्मबंध, मा.गु., गद्य, मूपू., (त्रस जीवने पाणीमाहि), १२१०५२ ३१ बोल-मार्गपतित जीव, मा.गु., गद्य, मूपू., (वाटे वहेतां जीवने समकित), १२२९७५-३ ३२ अनंतकाय विचार, मा.गु., गद्य, मप., (कचूर हलदनीला आदो वज), १२३४८२-६ ३२ उपमा सवैया-शीलमहिमा, मु. हीरालाल, पुहिं., गा.८, पद्य, श्वे., (सीलरतन सबसे बडो सब वरता), १२०४०८-१०५(+) ३२ बोल ६२ मार्गणायंत्र, मा.गु., को., भूपू., (१समचै जीवमै २अप्रज्य), १२३७२२-२(+), १२२४३९-२ ३२ लक्षण विचार-पुरुष, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (पांच वाना दीर्घ जोईय), १२२३४२-२(#) ३२ विदेहप्रमाण पद-जंबुद्वीप, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (जंबुदीप के विह बतीसौं इक), १२०३२६-४७०(+) ३३ आशातना विचार-गरुसंबंधी, मा.गु., गद्य, मप., (पहलो बोल गुरु आगल), १२३५३६-४(#) ३३ बोल थोकडा-जैन पदार्थज्ञान, मा.गु., गद्य, श्वे., (सात्त भये इहलोक भय), १२०९८३(+#), १२१२९७(+) ३३ बोल थोकडो, मा.गु., गद्य, मूप., (एक संजय एक असंजम), १२१०७४-२(+S), १२१२२९(+), १२१४८५ ३४ अतिशय छंद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (श्रीसुमतिदायक कुमति), १२०६४५-२ ३४ अतिशय विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम अतिशय शरीरनी), १२१३४७-३(+), १२२६६१-१(#) ३४ असज्झाय काल विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (उकावाए१ गजीए२ बीजीए३), १२१००९ ३५ बोल असज्झाय, मा.गु., बो. ३५, गद्य, मपू., (धुंआरी षडे तासीम असज्झाय), १२३२६०-१९(+) ४५ आगम नाम, मा.गु., गद्य, मूप., (आचारांग१ सुयगडांग२), १२०८५६-४ ४५ आगम पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. ४६, गा. ७६, वि. १८३४, पद्य, मपू., (सुखकर साहिब सेवीइं), १२०५७१ For Private and Personal Use Only Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ ५२१ ४५ आगम पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. १७, वि. १८८१, पद्य, मपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), १२१२५०($) ४५ आगम स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (भवि तुमे वंदो रे), १२१८८३(+) ४६ गुण जयमाल, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. १७, वि. १८वी, पद्य, दि., (प्रभु तुम सुगन अनंत है), १२०३२६-५५८(+) ४६ जिनवाणीबोध दोहा, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४६, वि. १८वी, पद्य, दि., (पंच परमपद पद नमो), १२०३२६-५८२(+) ४६ सुगुन चौपाई, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., चौपा. २८, पद्य, दि., (वंदी आदिसुर सुखकार अजित), १२०३२६-५६८(+) ५१ बोल-चतुर्गति आगत एक समय मोक्षगामी जीव, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिली रत्नप्रथविना), १२२८२०-४(+) ५५ शरीरादिकरण प्रकार, मा.गु., गद्य, मपू., (५ इंद्री ५ शरीर ४मनरा), १२३०३८-४(+) ५६ दिनमान विचार, मा.गु., गद्य, मप., (पगलु१ घटी१७ पल२ पगला २),१२१७१२-१ ६२ बोल-मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (च्यार दिशामांहे केही), १२१२७९(+) ६२ मार्गणा ११९ बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (वेदना समुद्धात कषाय), १२२३९५(+$) ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (देवगति मनुष्यगति), १२२६५९(+), १२३९७२(+), १२११७० ६३ शलाकापुरुष नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१२ चक्री १ दिर्घदंत), १२३१३५-२(+) ६४ इंद्र नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (चमरेंद्र धरणेंद्र), १२३९३२-२(+$), १२११४१-१(६) ६४ प्रकारी पूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., पूजा. ६४, वि. १८७४, पद्य, मपू., (श्रीशंखेश्वर साहिबो), १२०६६६(5) ६७ समकित बोल, मा.गु., गद्य, मप., (परमार्थ जाणवानो), १२०५११-४(+$) । ६७ सम्यक्त्व भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन सुद्ध मन सुद्ध ते), १२०७७८(#$) ८२ बोल साधु आचार, मा.गु., गद्य, स्था., (थानक उपासरो साधुरा भाव), १२२२६४(६) ८४ आशातना स्तवन, उपा. धर्मसिंह, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (जय जय जिण पास जगडा), १२१४४९-२(+#) ८४ उपमा-मुनि की, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहली ओपमा सरप की), १२१६५३-४ ८४ गच्छ नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (ओसवालगच्छ १ खरतरगच्छ), १२२०३८-२(+) ८४ लाख जीवसंख्या चौपाई, मु. प्रेम, पुहिं., गा. ११, पद्य, श्वे., (सहा लुहाडा गोधा जान सोगा), १२१९६१-२(#) ८४ लाख जीवायोनि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (बावन लाख साधारण एकिं), १२१०९९-१, १२२४२७-१ ८४ लाख नरकविलमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (तीस लाख पचीस लाख पनरे लाख), १२०३२६-४६२(+) ८४ लाख नरकावास विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (१पहिलीइ २बीजीइ० ३०लाख), १२११४१-५ ९६ जिन स्तवन, उपा. मूला ऋषि, मा.गु., ढा. ८, पद्य, मपू., (केवलनाणी श्रीनिरवाणी), १२०५३५(#$) ९८ बोल-जीवअल्पबहत्व विषयक, मा.गु., गद्य, मप., (अहमंते सव्व जीवा), १२१३५४(+) ९८ बोल यंत्र-अल्पबहुत्व, मा.गु., को., श्वे., (सरवथी थोडा गर्भज), १२३७२२-१(+), १२२४३९-१ १०० वर्ष ३६००० दिवस मानादि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (१०० वरसना दिन ३६०००), १२०८६४-३ ११५ जीव बोल थोकडा, मा.गु., को., म्पू., (--), १२२३३७(+) १२४ अतिचार विचार-श्रावकव्रत, मा.गु., गद्य, मपू., (ज्ञानना ८ दर्शनना ८), १२२६८०(5) १७० उत्कृष्टजिन स्तवन, मु. आणंदरुचि कवि, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (विवरो ए गाथातणौ कवि), १२०१८५ १८१ हुंडी बोल, मा.गु.,रा., गद्य, स्था., (साधु थइनै अणकल्पनी०), १२२१८३ ५६० अजीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मास्तिकाय खंध देस), १२३९३२-१(+$), १२०७६६ ५६३ जीव बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, स्था., (जीव गइ इंदीये काए), १२१०७३(+#), १२१८७६(+S), १२२२५०(5) ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (सात नारकी पर्याप्ता), १२१३०२ ५६३ जीवभेद विचार, पुहि.,मा.ग., गद्य, मप., (उंचा लोक में ५६३ भेद), १२२०६८-२(+$), १२३२०६-३(+), १२३२६०-१८(+), १२१९७४ १७५३ वर्ष दुष्काल वर्णन रास, मु. कवियण, मा.गु., ढा. १२, गा. १५६, पद्य, मूप., इतर, (श्रीनेमीसर त्रिभवन नमु), १२१९१६-१ For Private and Personal Use Only Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ अंजनासुंदरी चौपाई, मा.गु., गा. १५०, पद्य, मूपू., (अंजणा मोटी सती पाल्यौ), १२२१०७ अंजनासुंदरी चौपाई, मा.गु., ढा. २३, गा. २७८, पद्य, मूपू., (पवनजी राजा कने अंजनासुंदर), १२०६६७(+), १२१०७१(+$) अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., खं. ३ ढाल २२, गा. ६३२, वि. १६८९, पद्य, मपू., (गणधर गौतम प्रमुख), १२११६५(+), १२३४३३(+$), १२३८२६(+$), १२३३१० अंजनासुंदरी रास, मा.गु., वि. १६६२, पद्य, मपू., (पणमिय थंभन पासजी), १२३४८१-१(+) अंजनासुंदरी रास, मा.गु., ढा. २२, गा. १६५, पद्य, मूपू., (शील समो वड को नही), १२०८१९(+), १२३०४४(+), १२२१०८, १२२५६६, १२३०५८($) अंजनासुंदरी रास-बृहद्, मा.गु., गा. ३१८, पद्य, मूपू., (पहिलै नइ कडवइ पय नमु), १२०८७६(१), १२३२९९(#$) अंतसमाधि विचार, पुहि., गद्य, मूपू., (हे भव्य तुं सुण समाध), १२१०४४(+), १२१४९३(+) अंबिकादेवी छंद, सारंग कवि, मा.गु., गा. २८, पद्य, वै., (विजया सांभलि वीनती), १२२८११-२(+$) अइमुत्ताऋषि सज्झाय, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., वि. १८७२, पद्य, श्वे., (श्रीवीर जिणंदनी), १२२०४७-२(+) अइमत्तामुनि रास, मु. नारायण ऋषि, मा.गु., ढा. २१, गा. १३५, वि. १६८३, पद्य, श्वे., (वीरजिणंद नमु सदा), १२२२४०(+) अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. कहानजी ऋषि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (इक दिन रित वरसातनी), १२०१६७-२ अकर्मी उपदेश सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (एक सीखामण कहुं छु सार), १२०१९७-१ अकृत्रिम चैत्यालय पूजन, श्राव. चैन, पुहिं., वि. १८६५, प+ग., दि., (नमत सक्र सतशीस ईस चउवीस), १२०५०२-२(+) अक्षयनिधि तप आराधन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरीयावहीआ पडीक्कमी), १२०८५६-६ अक्षयनिधितप खमासमण दोहा, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. २, गा. ३७, पद्य, मपू., (सुखकर संखेश्वर नमी), १२०८५६-८ अक्षयनिधितप विधि, मा.गु., दोहा. १, प+ग., मप., (प्रथम इरियावही कहेवी), १२१३५३ अक्षयनिधितप स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ५२, वि. १८७१, पद्य, म्पू., (श्रीशंखेश्वर शिर), १२३४१२ अक्षरचतुर्दशी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. १४, पद्य, दि., (ॐकार प्रथम परम वंदौ स्वर), १२०३२६-५४९(+) अक्षरबावनी, वा. किसनदास, पुहि., गा. ६१, वि. १७६७, पद्य, श्वे., (ॐकार अमर अमार अज), १२०९२१(+$) अक्षरबावनी, मु. केशवदास, पुहिं., गा. ६२, वि. १७३६, पद्य, मपू., (ॐकार सदा सुख देत), १२११२३(+$) अक्षरबावनी, मु. माल, पुहि., गा. ५२, पद्य, मूपू., (ॐकार अक्षर जिम अलख), १२३३७६(+#) अक्षरबावनी संबोध, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ५२, वि. १७५८, पद्य, दि., (वो उकार मझारि पंच परम पद), १२०३२६-३(+), १२१४५४-१ अचित्त भूमिका सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रथम नमु सह गुरुनो), १२२५२५-४ अजितजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (अजितनाथसुं मलावो रे करसौं), १२०३२६-१४५(+) अजितजिन स्तवन, मु. चिदानंद, पुहिं., गा. ५, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (अजित अजित जिन ध्याइय), १२११९८-१४ अजितजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (तार किरतार संसार), १२०१८१-१ अजितजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. १०, वि. १८वी, पद्य, मपू., (ज्ञानादिक गुण संपदा), १२२४२३-३ अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (अजित अजितजिन अंतर्यामी), १२१८०१-१९ अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (ओलग अजित जिणंदनी), १२१८०१-१८ अजितजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १९, पद्य, स्था., (जंबूदीपना भरत मे), १२१९९५-२(2) अजितजिन स्तवन, मु. हरखचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (अजित जिन को ध्यान कर), १२२४७५-३ अजितजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मप., (विजया नंदण०साहिब चतुर), १२३०९०-३(#$) अजितजिन स्तवन-तारंगामंडण, आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १९वी, पद्य, मप., (तारंगगढने मंदिर मांहे), १२३११२-५ अजितजिन स्तुति-तारंगातीर्थमंडन, मु. पुण्यसागर, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (तारंगा मुखमंडण अजित), १२१३२९-५(+), १२३०८१-४४(+) अजितशांति स्तवन-मेरुनंदनीय, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., गा. ३२, वि. १५वी, पद्य, मप., (मंगल कमलाकंद ए सुख), १२३५८६-३(+) अज्ञात जैन काव्य, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), १२२८०४(+#$) For Private and Personal Use Only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ अठोत्तरसौ गुण जयमाल, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. २७, वि. १८वी, पद्य, दि., (ॐकार तू ही निरधार तू ही), १२०३२६-५६२(+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अणगारगुणवंदन स्तुति, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (पापपंथ परिहरे मोक्षप) १२०२१५-६, १२३९५८-२ अणगार सज्झाय, मा.गु.. गा. २७, पद्य, म्पू, (धरम ध्यान करता थका), १२१४५२-४(*) अद्वेष दृष्टांत सज्झाय, पुहिं., गा. १९, पद्य, श्वे., (--), १२१७४७-१($) " अधोलोक संख्यामान पद, जै. क. चानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ३, पद्य, दि., (नाडा संख्या सातमी नरक), १२०३२६-४५७(+) अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, मूपू. (प्रणमिये विश्वहित), १२२४२३-१ अध्यात्म पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरे प्रान आनंदधन), १२१४०८-३ अध्यात्मबत्तीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ३२, वि. १७वी, पद्य, दि., (सुध वचन सदगुरु कहें), १२३५७९($) अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहिं., गा. ३३, वि. १६८५, पद्य, स्था., (अजर अमर पद परमेसर), १२१४७२-१ अध्यात्मबावनी, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ५२, पद्य, मूपू., (माया जाळ मूकीपरी), १२०५२४(+) अनागत चौवीसी नाम, मा.गु., प+ग., मूपू., (पद्मनाभ सूरदेव सुपास), १२१३४७-४(+) अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मृपू. (मगध देस राजग्रही नगरी), १२३३८५-१(१) अनाधीमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु.. गा. ६२, वि. १८६१ प . (), १२१७२८-१(३) अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (मगधाधिप श्रेणिक), १२१७३३-१ " " अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. गा. ९, पद्य, मूपू. (श्रेणिक रयवाडी चड्यो १२३८१४-२ १२०९९७-२(5) अनित्यभावना पद, मु. चिदानंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (जुठी जुठी जगत की), १२११९८-८ अबयद शुकनावली, मु. सुजाणसिंह, पुहिं., वि. १७९४, गद्य, श्वे. इतर ( महावीर कौ ध्याइके), १२१९२५ (+$) " अभयकुमार रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. १०१०, वि. १६८७, पद्य, मूपू., (वद कमल चंदन जसी मही), १२१२११ अभयकुमारादि ४ मित्र कथा, मा.गु., गद्य, भूपू (तप जप संजम क्रीया करी) १२२३६६ , For Private and Personal Use Only अभयदान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., ( औषध आहार ग्यान दया वढे), १२०३२६-५१५ (+) अभिनंदनजिन पद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं, गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि. (सेउं स्वामी अभिनंदन की ले), १२०३२६-३८५(*) अभिनंदनजिन पद, मु. बुद्धिसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चोथा जिनपति आगलै नाचै), १२०६१४-१९ अभिनंदनजिन स्तवन, मु. श्रीविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (अभिनंदन जिनराय अहो), १२१७९९-७(+) अभिनंदनजिन स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (दुल्लह नरभव पामिय), १२३८७७-४(#$) अमरसेन चौपाई, मु. खुशालचंद ऋषि, मा.गु., डा. २३ वि. १८५८, पद्य, . (श्रीमद्जिन आददे विहर), १२१३३२ अमृतवेल सज्झाय-बृहत्, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चेतन ज्ञान अजुवालीए), १२११११ अरजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( अरनाथ कुं सदा मेरी), १२२७३२-२ (+) अरजिन स्तवन, मु. रामचंद, पुहिं. गा. १५, पद्य, मूपू (पदवी लह नरपद की यह वात), १२०६०४ अरणकश्रावक लावणी, मु. खूबचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (समगत डढ देखण सुर आयो रे), १२०४०८-१८२(+) अरणिकमुनि चौपाई, ग. राजहर्ष, मा.गु., डा. ९, वि. १७३२, पद्य, मूपू., ( श्रीफलवधि प्रणमु), १२३१५१-१(क) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १५. वि. १८५९, पद्य, वे (चंपानगरथी चालिया) १२०४०८-१८१(+) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २६, पद्य, स्था. (--), १२१६१८(5) "" " अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), १२११५९-१(०) १२०४०२-२०, १२१५३१-१ अरणिकमुनि सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ९, पद्य, वे. (अहो मारा सिल सुरंगि), १२०४०८- ९३(+) अरदास चौपाई, मु. कुस्यालचंदजी, मु. धन्नो, मा.गु., डा. ६४, वि. १८७९, पद्य, वे. (अरीगंजण अरहंतजी), १२१४३२(*) अरिहंतपद सवैया, जे. क. द्यानतराव अग्रवाल, पुहिं. सबै ३, पद्य, दि., (जैसे हे मम पाहन में कीट है). १२०३२६-५४३(+) 2 " अरिहंत स्तुति-प्रभातियुं, मु. स्वरूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत नमीजे), १२३८०७-२(#) , ५२३ Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५२४ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्जुनमाली चौढालीयो, मा.गु., डा. ४, गा. ३४, पद्य, मूपू., (राजगृही नगरी अती), १२०६६८-१(+) अर्जुनमालीमुनि चौढालिया, रा., ढा. ४, पद्य, श्वे., (सोदागर मीलीया पछ नयी), १२३८६७-१($) अर्जुनमाली रास, मु. विद्याविलास, मा.गु., ढा. १२ गा. २०२, वि. १७३८, पद्य, म्पू, (अलख अगोचर अगम गति अकल), " १२४०१८(+) अर्बुदाचलतीर्थ गीत, मा.गु., गा. ८, पच, म्पू., (आयउ रे आयउ रे आबूगढ नयण), १२३०२६-३(७) " अल्पबहुत्व विचार, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (पृथ्वी मध्य जे मेरु), १२३४०४ अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १३, गा. १०७, वि. १७४१, पद्य, मूपू., (मुनिवर आर्य सुहस्ति), १२०३९२(+), १२०८२८(+), १२१२८८ (+$), १२०४४४, १२१८५६, १२२४५३-५ अशरण भावना सज्झाय, मु. नवल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू.. (पल पल छीजे आउंखुं अंजली), १२१९७६-२ " ', , अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु. बा. २ गा. २४, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (हां रे मारे ठाम धर्मना), १२०६२७-१ अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( कृत्वा निर्मलमष्टमी तिथि), १२३४१७-७(+#) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मु, जीवविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू, (चौवीसे जिनवर प्रणम्), १२१८५१-५ (+) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (मंगल आठ करी जिन आगल), १२१७६०-२ (+), १२३०८१-४६(+) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अष्टमीदिन चंद्रप्रभु), १२२१४४-२ अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अष्टमी अष्ट परमाद), १२३०८१-५ (+) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महामंगलं अष्ट सोहै), १२०४५९-१($) अष्टापदतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अष्टापदगिरि जात्रा करणकुं), १२०४६१-२ अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु.. गा. ५. पद्य, मृपू., (मनडो अष्टापद मोह्यो), १२०४६०-१५ अष्टापदतीर्थ स्तवन, मा.गु., गा. ४०, पद्य, मूपू., (यक्ष सहस सदा पंचवीसइ), १२२८८४ ($) अष्टापदतीर्थ स्तोत्र, मा.गु., गा. ६२, पद्य, मूपू., (सरसति अम्रत वसति), १२३०७८($) अष्टाह्निकापर्व पूजा- नंदीश्वरद्वीप, जे. क. धानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. २२, वि. १८वी, प+ग. दि. (सरब परब में बड़ अठाई), १२०३२६-५९), १२०६५८-६ (+३) असज्झाय विचार सज्झाय, मु. गुणसागरशिष्य, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (वंदिइ वीर जिणेसर राय), १२१५९५-३(#) असज्झाय सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसती माता आदे नमीये), १२१७४८-१(+) असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसति माता आदे नमीइं), १२०८५१ असज्झाय सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू. (पवयण समरी सासणमाता), १२१३१५-२०) १२०९८७- ४(३) असत्यवचन परिहार सज्झाय, मु. राम, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे. (सदा तुम जुठ निवारो जुठा), १२०४०८-५३(+) असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीगौतम), १२२८१३($) अहिंसा चौपाई, मा.गु, पद्य, मूपू. (--). १२२८५०(लाड) आगमगत मुनिसंख्या सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुयगडंग में मुनिवर दोय), १२१०८३-२(+) आगमपुरुष विवरण, मा.गु., गद्य, मृपू.. (१श्री आचारांग १ उबाइ), १२१२४४-२(४) आगम वाचना काल विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (वाचनांतर बीजी वाचना १२), १२१७८७ आगमविलास प्रशस्ति, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. सबै २०, वि. १७८३, पद्य, दि., (यह मन मांहि विचार जगतराय), १२०३२६-५८३(+) आचार्यपद आरती ३६ गुणगर्भित, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ११, वि. १८वी, पद्य, दि., (पंचाचार छत्तीस गुन सात), १२०३२६-४०४(+) आचार्यपद स्तुति, मु. स्वरूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., ( आचारिज पद सेवा चहत), १२३८०७-४(#$) आचार्यसंपदा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (आचार संपदा ४ संजमध्रुवयोग), १२३०२२-२ (#) आचार्योपाध्यायसाधु पद, जे.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (अठाइ मूल गुना उत्तर) १२०३२६-४१७(*) For Private and Personal Use Only Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ आठमतिथि स्तुति, आ. जिनदत्तसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (चोवीसे जिनवर करं नितमेव), १२०४६०-१३ आणंदरूपश्रावक उपमा पत्र, मा.गु., गा. ४, प+ग., श्वे., (श्रीमज्जिनेंद्रचंद्रचरणां), १२०९३३-२(#) आणंदश्रावक ढाल, मु. जैमल ऋषि, रा., ढा. ५, पद्य, श्वे., (तीण कालैने तीण समै), १२१४३९ आत्मनिंदाचौढालियो, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. ४, गा. ११९, वि. १९२१, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिध अनंतगुण धरिये), १२२४६३-२(+) आत्मनिंदा भावना, म. ज्ञानसार, रा., गद्य, मप., (हे आत्मा हे चेतन ऐ), १२०४७२(+), १२३६९७ आत्मप्रबोधछत्तीसी, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ३६, पद्य, मूप., (श्रीपरमातम परम पद), १२१७७३-४(+) आत्मशिक्षा, मा.गु., गद्य, श्वे., (अपरंच बीजं श्रीजिन), १२३५१९(+$) आत्मस्वरूप सवैया, पुहि., गा. १, पद्य, दि., (जो अपनी दुति आप विराजत हे), १२३९५८-६ आत्महितशिक्षा सज्झाय, मु. भीमविजय, मा.गु., गा. ६२, वि. १६९९, पद्य, मूप., (दोहिलो मुगतीनो घाट), १२२४५३-२ आत्मा आरती, क. बिहारीदास, पुहि., गा. ८, पद्य, दि., (करो आरती आतमदेवा गुन), १२०३२६-३२(+) आदिजिन १३ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीआदेसरना १३ भव), १२१०९०-३($) आदिजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, श्वे., (हवें श्रीऋषभदेव वाधे), १२१२३३-२($) आदिजिन चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४७, वि. १८४०, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धनै आयरिय), १२०९२६(+) आदिजिन चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (सरस वचन दिय सरसती मया करी), १२२५५२(#$) आदिजिन चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), १२२६०७(६) आदिजिन छंद, क. रोड कवि, मा.गु., गा. ४०, पद्य, मपू., (--), १२२२९८-१(#$) आदिजिन छंद-धुलेवा, श्राव. रोड गीरासिंह कवि, पुहिं., गा. ४४, वि. १८६३, पद्य, मप., (सदाशिव राव आव्यो), १२२४१८(#S) आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. ६३, वि. १८७५, पद्य, मूपू., (आदि करण आदि जग आदि), १२३७४४(+) आदिजिन नमस्कार, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नाभि नरेसर कुलकमल), १२३०८१-३५(+) आदिजिन पद, मु. आनंदघन, मा.गु.,रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (आदिजिणंद मया करो), १२०६१४-१२ आदिजिन पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मरुदेवीनो नंद माहरो), १२१५६१-२ आदिजिन पद, श्राव. गोकलचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, दि., (अब मोहि तारि ले आदिजिनेस), १२०३२६-३३५(+) आदिजिन पद, मु. चतुरकुशल, पुहि., गा. ३, पद्य, मप., (विसरे मत नाम प्रभूजी), १२१५१९-२७(#) आदिजिन पद, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (रिषभजिनेसर अतिअलवेसर), १२०६१४-३४ आदिजिन पद, क. दिन, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (ऋषभनाथ कुंरंग है), १२२२२१-४ आदिजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (आदनाथ तारन तरन नाभिराय), १२०३२६-१५५(+) आदिजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (जाकौ इंद्र अहमिंद भजत चंद), १२०३२६-१९४(+), १२०३२६-३४८(+) आदिजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (तुम तार करुणा धरूं स्वामी), १२०३२६-२८१(+) आदिजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (देख्यौ नाभिनंदन जगत वंदन), १२०३२६-३१०(+) आदिजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (परम जनम तप ग्यान परम), १२०३२६-५३१(+) आदिजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (भज श्रीआदि चरण नमे रे), १२०३२६-१२४(+) आदिजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (भजि भजि रे मन आदिजिनंद), १२०३२६-२३६(+) आदिजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (भम्यौ जीवम्यौं संसार), १२०३२६-९०(+) आदिजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (माई आज आणंद है या नगरी), १२०३२६-१८३(+) आदिजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (मैं वंदा स्वामी तेरा भव), १२०३२६-२५६(+) आदिजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (मै तौ रुल्यो चिरकाल जग), १२०३२६-८४(+) आदिजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (रिषभदेव जनम्यौ धन घरी), १२०३२६-१७४(+) For Private and Personal Use Only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (स्वामी नाभिकुमार हम क्यौ), १२०३२६-२६०(+) आदिजिन पद, मु. धर्मसिंह, पुहि., गा. ३, पद्य, म्पू., (तुं उपगार करे जु अपार), १२२६३२-५(+) आदिजिन पद, मु. धर्मसिंह, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (नमो नितमैव सजो सुत सेव), १२२६३२-४(+) आदिजिन पद, मु. राजसिंह, पुहि., गा. ३, पद्य, मप., (लगी हो लगन कहो केसै), १२०६१४-२५, १२१५१९-१२(#) आदिजिन पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (सब जीव जिन बोलौ हां रे), १२०६१४-२६ आदिजिन पद, मु. विमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चालो सखी वंदन जाइये), १२०६१४-१६, १२०६१४-४० आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (आज ऋषभ घर आवे देखो), १२०६१४-२९, १२३०६४-३(#) आदिजिन पद, मु. सूर्य, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (नित वंदू नाभि के नंदा जग), १२१५२८-३ आदिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूप., (उगत प्रभात नाम जिनजी), १२०३२०-५४(+-#), १२२४७५-८ आदिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहि., गा. २, पद्य, मपू., (रिषभदेव प्रभु हो तुम तारण), १२०३२०-२०(+-#) आदिजिन पद, मु. हर्षचंद, पहि., गा. २, पद्य, मप्., (रीष देव जिनराज हमारे), १२०३२०-१९(+-#) आदिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहि., गा. १, पद्य, मपू., (हो जिनराज तुम हो जिनराज), १२०३२०-२१(+#) आदिजिन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अपनाई रंगमाये रंगदो नाथ), १२२१९१-२ आदिजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आद जीणद नमो सीरनामी भव भव), १२०८७७-३(#) आदिजिन पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, स्पू., (तुं ही प्रभु ऋषभदेव आद है), १२०३२०-१०(+-#) आदिजिन पद, रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (मनावो प्रीतसु म्हारे रीषभ), १२२३२६-२(#) आदिजिन पद-जन्मबधाई, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (आज आनंद वधावा जनम्यौं), १२०३२६-२१३(+) आदिजिन पारj, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (आहे जश घर जावेजी वहो), १२२४४३-२(+$) आदिजिन पालना, मु. हीरालाल, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (मा मोरादेवी गावे रे), १२२१९१-९ आदिजिन प्रभाती, मु. हर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (याग याग भवीया धर्मवाणुसाद), १२३८०७-१(#) आदिजिन रास, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), १२३४३०(#$) आदिजिन रेखता, पुहि., गा. ५, पद्य, मूप., (मुझे है चाव दरसन का), १२१४८१-१० आदिजिन लावणी, मु. हीरालाल, रा., गा. ४, पद्य, स्था., (यों कहै ऋषभजिन ब्राह्मी), १२०४०८-१६९(+) आदिजिन लावणी-केसरियाजी, मु. लालदास, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सुणीये रे वाता सदा), १२१४७६-१(#$) आदिजिन वर्षांतपपारणा विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रेयांसकुमार बाहुबल), १२०९३२(+) आदिजिन वर्षीतप पारणा सज्झाय, मु. अमी ऋषि, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (या रस सेलडि प्रथम जिनेसर), १२०४०८-६(+) आदिजिन वर्षांतप पारणा सज्झाय, मु. नथमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (श्रीआदिनाथ प्रभु संजम के), १२०४०८-७(+) आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सुण जिनवर शेजा), १२१०२५ आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ४५, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (जय पढम जिणेसर), १२०९८०-१(+), १२२५८५ आदिजिनविनती स्तवन-शजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ५७, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (आदिश्वरप्रभुने विनंत), १२१२१५-२($) आदिजिन विवाह पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (आज आनंद कछु कह न बनै), १२०३२६-१८२(+) आदिजिन विवाहलो, मु. गुणनिधानसूरि शिष्य, मा.गु., ढा. ४४, गा. २४३, पद्य, मूपू., (सासनदेवीय पाय प्रणमेवीय), १२४०२३(+) आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा.६, वि. १८वी, पद्य, मपू., (ऋषभ जिणेसर प्रीतम), १२०२०५-२(१), १२३५२१-१(#) आदिजिन स्तवन, मु. कृपासागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूप., (श्रीरिषभजिणंद जुहारिये), १२१३२९-२(+) आदिजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (आदीसर जिनराज), १२०६१४-२७ आदिजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सूरति स्वामि तिहारी), १२०६१४-५६ आदिजिन स्तवन, मु. खेम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जागीयै नृप नाभिनंदन), १२०६१४-४६ आदिजिन स्तवन, मु. गुणेससागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (ये मांहरी अरदास रिषभ), १२२४६९ For Private and Personal Use Only Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ आदिजिन स्तवन, मु. चतुरसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तुं चितो गोरी बेटी जाट की), १२१४०८-२ आदिजिन स्तवन, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, जै., (तारोजी राज तारोजी), १२११९८-१० आदिजिन स्तवन, मु. चोथमल, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (मोरादे मइया वाली लगे), १२०४०८-८(+) आदिजिन स्तवन, आ. जिनहंससूरि पुहि गा. ५, पद्य, मूपू. (मन लीनो हमारो जिन), १२२४६०-४ आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (लग्या मेरा नेहरा), १२०६१४-३१ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3 आदिजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंदशुं प्रीतडी), १२२४२३-२ आदिजिन स्तवन, मु. देवजी, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (गुणवंत गुरुने नित चरणे), १२२१००-३ आदिजिन स्तवन, मु. पार्श्वचंद्र, मा.गु., गा. ४७, पद्य, मूपू., (मंगलकारण सुकृत निवास), १२३४२५ (+), १२३५३१-२ आदिजिन स्तवन, मु, पुण्यविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू (जीन प्यारो प्यारो रे हरी) १२२३२६-१(७) आदिजिन स्तवन, मु. प्रेमचंद्र - शिष्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, मृपू., (ऋषभजिणंदस्युं मोहनी साहिब) १२०४०२-३ आदिजिन स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (मुगट परवारी जाउं रिषभ), १२२२८९-२ (+) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आदीसर जगदीसरू रे), १२१८०१-१७ आदिजिन स्तवन, उपा. रत्ननिधान, मा.गु., गा. १२, वि. १६४४, पद्य, म्पू., (अभिराम सोरठ भूमि), १२२९३३ आदिजिन स्तवन, मु. रत्नसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जय जय नाभिनरेसर नंदा), १२३२०५-१(+) आदिजिन स्तवन, पंन्या. रत्नसुंदर पाठक, मा.गु., गा. ६, वि. १८६६, पद्य, मूपू., (भेट्या रे नाभीकुमार), १२०६१४-४३ आदिजिन स्तवन, मु. लिखमीचंद ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १८४६, पद्य, मूपू., ( रिषभ जिणेसर प्रथम), १२२०७४ आदिजिन स्तवन, मु. श्रीविजय, मा.गु. गा. ७, पच, भूपू (तारि मुज तारि मुज ता), १२१७९९-६ (*) आदिजिन स्तवन, मु. साधुरंग, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अढार कोडाकोडि सागरे हुअउ), १२२५१६-१ आदिजिन स्तवन, सुखदेव, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू (श्रीऋषभ जिनेश्वर) १२३५१४-३ आदिजिन स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नाभिनंदन जगवंदन देव), १२०५०३-२(#) आदिजिन स्तवन, आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (राणपुरे अति सोभतो), १२३११२-३ आदिजिन स्तवन, मु. हीरसुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंद मया करी दीजे), १२१७९९-३(+) आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, वे., (अंतरजामी हो आवजिणंद), १२२१८८-१५(३) आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (ऋषभदेव वरस अपवासी रे पुरब), १२०९८७-३($) आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मृपू., (माजी मोरावेजी हो मुगतरा), १२१२१७-३ (+5) आदिजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., ( नाभिनरिंदमल्हार), १२३७१२(+#$) (२) आदिजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मृपू., (--), १२३७१२ (+०३) आदिजिन स्तवन-अर्बुदाचलमंडन, आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १९३७, पद्य, मूपू., (चेतन घरी उब रंग अर्बुदाचल), १२३११२-४ आदिजिन स्तवन- केसरियाजी, पुहिं. गा. ८, पद्य, मूपू (श्रीकेसरियानाथकुं नमन), १२२०२७-२ आदिजिन स्तवन- केसरियाजी, रा. पद. ५, पद्य, मूपु. (--), १२२२८४-१(३) आदिजिन स्तवन- जन्मबधाई, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज तो बधाइ राजा नाभि), १२२१९१-८ आदिजिन स्तवन- देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, उपा. विजयतिलक, मा.गु. गा. २१, पद्य, मूपू. (पहिलु पणमिअ देव), १२२७४२(+), १२३८८४(+), १२२५७६ For Private and Personal Use Only ५२७ (२) आदिजिन स्तवन देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीविजयतिलक), १२२५७६ (२) आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हुं पहिलु धुरि), १२२७४२(+) (२) आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीविजयतिलक महोपाध), १२३८८४(+$) आदिजिन स्तवन- धुलेवातीर्थमंडन, मु. दीप, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ऋषभजिणंद दयाल कृपानिधि), १२०५०३-३(#) आदिजिन स्तवन- मुंबईबंदरकोटे भावखलामंडन, पं. वीरविजय, मा.गु., डा. ७, वि. १८८८, पद्य, मूपू. (सुखकर साहेब रे पामी), १२१८०१-१५ Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५२८ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिन स्तवन- राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७. वि. १६७६, पद्य, मूपू., (राणपुरे रलीयामणो रे), १२०८४९-३(#) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन स्तवन-राणपुरमंडन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., गा. १६, वि. १७१५, पद्य, मूपू., (राणपुर नमौ हियो रे), १२२००८ आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, मु. जिनचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (नित घ्यावो रे रिषभ) १२०९९१-५(4), १२१५१९-२१(४) आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, श्राव. मूलचंद, मा.गु. गा. ९, पद्य, मूपू (सिद्धाचल आद प्रभु तिहां), १२०२३१-२ (-) आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन वृहत् मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, म्पू, (प्रणमवि सवल जिणंद), १२१७९९-१(+३) आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, म्पू, (प्राह उठी बंदु ऋषभदेव), १२३०८१-२९(+), " १२०६४५-१० आदिजिन स्तुति, मु. खेमसागर, उ., डा. ३, गा. ४२, पद्य, खे, (साहिब तुं सच्चा धणी), १२३७०२(४) आदिजिन स्तुति, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४. वि. १८वी, पद्य, मूपू. (विमलाचलमंडण जिनवर) १२०४५९-२(४) आदिजिन स्तुति, पंन्या पद्मविजय, मा.गु. गा. ४, वि. १९वी पद्य, म्पू. (आदि जिनवर राया जास), १२२९१९-७ आदिजिन स्तुति, मु. सौभाग्य, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (पुंडरिकगिर स्वामी), १२३०८१-२६(+) आदिजिन स्तुति-भुजनगरमंडन नवतत्त्वगर्भित, मु, मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू. (जीवाजीवा पुण्यने पाव), १२०२२१-२, १२०९७२-२, १२१११३-२ "" आदिजिन स्तुति मरुदेवामाता केवलज्ञान, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू (गजकुंभे बेसी आवे), १२३०८१-३२(५) आदिजिन स्तुति वीसलपुरमंडन, मु. देवकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बिसलपुर बांदु), १२३०८१-२२(+) आधाशीशी कथा, पुहिं., गद्य, वै., इतर, (ॐ नमो पैठाणपुर पाटण), १२३७६७-३(+) आध्यात्मिक औपदेशिक हरियाली, उपा. विनयसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, म्पू., (सेवक आगळ साहेब नाचे), १२१७३३-३, १२२३२१-१ आध्यात्मिक गीत, पुहिं., गा. ४, पद्य, जै. ?, (घरि जाहु हमारी भइणा), १२१७१८-६ आध्यात्मिक दोहा, पुहिं., दोहा. १, पद्य, मूपू., (जैसे पट जीरन नजे पहर तन), १२१९५५-२(#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं, गा. ३. वि. १८वी, पद्य, मूपू (कित जान मते हो प्राणनाथ), १२०३२०-२६ (क) " १८वी, पद्य, मूपू., (क्यारे मने मलशे मारो), १२०३२०-३१(+#) १८वी, पद्य, मूपू (क्या सोवै उठि जाग), १२०३२०-२७(क) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ३, वि. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदवन, पुहि गा. ३, वि. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जिया जानै मेरी सफल), १२०३२०-२८(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (बेर बेर नहीं आवे), १२०३२०-३०(+-#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. पद. ३, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (रे घरियारी बाउ रे मत), १२१४८१-७ आध्यात्मिक पद, श्राव. खुस्यालचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (चिन मूरत चेतन प्यारा मैं), १२०३२६-२९४(+) आध्यात्मिक पद, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, (अवधु खोल नयन अब जोवा), १२१९९८-६ आध्यात्मिक पद, मु. जिनलाभ, पुहिं., पद. ३, पद्य, मूपू., (चित्त सेवा प्रभु चरण), १२०६१४-४ आध्यात्मिक पद, तानसेन, पुर्हि गा. ३, पद्य, जै. वै.? (गोरे गोरे मुखको गुमान), १२२९८८-७ 1 " आध्यात्मिक पद, श्राव. दीपचंदजी, पुहिं, गा. ४, पद्य, दि., (जिय तोको मुनि मुद्रा हित ) १२०३२६-२०० (+) , י י आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (अनहद शब्द सदा सुन रे), १२०३२६-३०२(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (अब समझ कही अब कौन कौन), १२०३२६-३६९(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. चानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (अब हम अमर भए न मरेंगे), १२०३२६-१४६(+) आध्यात्मिक पद, जे.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (अब हम आतम की पहचान्यी), १२०३२६-१०२(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (आतम अनुभव सार हौ अब जीय), १२०३२६-२६३(+) आध्यात्मिक पद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि. ( आतम अनुभौ करना रे भाई), १२०३२६-१००(+) "" For Private and Personal Use Only Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ " आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराव अग्रवाल, पुहिं. गा. २. वि. १८वी, पद्य, दि., (आतम को पहचाना है हम आतम), १२०३२६-२७४(+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराव अग्रवाल, पुहिं. गा. ४. वि. १८वी, पद्य, दि. ( आतम जान में जाना ग्यान), १२०३२६-२८८ (+) आध्यात्मिक पद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (आतम जान रे जान० जीवन की), १२०३२६-८७(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (आतम रूप अनूप है घटमांहि), १२०३२६-१०६(+) आध्यात्मिक पद, जैक द्यानतराव अग्रवाल, पुहिं, गा. ३. वि. १८वी, पद्य, दि., (आप मै आप लगा जीसु होतो). १२०३२६-२६९(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराव अग्रवाल, पुहिं. गा. ६, पद्य, दि., (एक ब्रह्म तिहू लोक मझार) १२०३२६-२५१(०) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (ए मन ए मन कीजियै भज प्रभु), יי ५२९ १२०३२६-२९१(+) आध्यात्मिक पद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, वि., (ए रे मन गाय ले श्रीजिनराय), १२०३२६-२७२(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराव अग्रवाल, पुहिं. गा. २, पद्य, दि., (कब हो मुनवर की व्रतधर हो) १२०३२६-२६२(+) आध्यात्मिक पद, जे. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (कर कर सतसंग तेरे भाई), १२०३२६-१९७/*) आध्यात्मिक पद, जे.क. धानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (कर मन निज आज आतम चितीन), १२०३२६-२३०(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (करम रेखा पै मेख मारौ), १२०३२६-३७० (+) आध्यात्मिक पद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (करि करि आतमहित रे प्राणी), १२०३२६-७०(+) आध्यात्मिक पद, जै. क. द्यानतराव अग्रवाल, पुहिं, गा. २, पद्य, दि., (कहिये जौ कहिवे की होय), १२०३२६-३६४(५) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (कारज एक ब्रह्मा सेती अंग), १२०३२६-१४०(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराव अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि. (काहे कूं सोचत अतिभारी रे) १२०३२६-८०(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (कीजै हौ आतम सभार भवकी ), १२०३२६-१८५(+) आध्यात्मिक पद, जै. क. द्यानतराव अग्रवाल, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, वि., ( कौन काम मैंने कीने अब), १२०३२६-२७१(+) आध्यात्मिक पद, जै. क. द्यानतराव अग्रवाल, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (गलता नमताव आवेगा राग दोष), १२०३२६-७४(*) आध्यात्मिक पद, जे. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (ग्याता सोई सचा वै जिन आतम), १२०३२६-३४९(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (ग्यान गेय मांहि नांहि गेय), १२०३२६-३०८(+) आध्यात्मिक पद, जै. क. द्यानतराव अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (घट में परमातम ध्याइयै हो), १२०३२६-१०९(+) आध्यात्मिक पद, जै. क. धानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (चाहत है सुखपे न गाहत है), १२०३२६-३०९(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (चाहत है सुख पै न गाहत है), १२०३२६-५१० (+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि गा. ३. वि. १८वी, पद्य, दि., (चेतन जी तुम जो जौरत हो धन), " १२०३२६-२६७(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराव अग्रवाल, पुहिं. गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (चेतन तुम चेतौ भाई ऐसो नर), १२०३२६-२६५ (*) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., चौपा. ६, वि. १८वी, पद्य, दि., (चेतन नागर हौ अहो तुम चेतन), For Private and Personal Use Only १२०३२६-३७६(+) " " आध्यात्मिक पद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. २, पद्य, दि., (चेतन मान असाडी बतिया यह) १२०३२६-२६१(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराव अग्रवाल, पुहिं. गा. २. वि. २१८वी, पद्य, दि. (चेतन मानले बात हमारी), १२०३२६-२८६ (+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (जाकौ जानौ संतति न कहि सकै), १२०३२६-५०७(+) आध्यात्मिक पद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (जान क नही रे नर आतम जान), १२०३२६-७१(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (जानौ धनसौ धनसौ धीर वीर), १२०३२६-३०५(+) आध्यात्मिक पद, जे. क. द्यानतराव अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., ( जानी पुगल न्यारा रे भाई), १२०३२६-२३१(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराव अग्रवाल, पुहिं, गा. ४, पद्य, दि., (जिनके हिरदै भगवान वसै तिन) १२०३२६-१४३(+) Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (जिन नाम सुमर मन वारे कहा), १२०३२६-७६(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (जिनपद चाहै नांहि कोय), १२०३२६-३५७(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (ज्यौ ते आत्म हित नही कीना), १२०३२६-१७३(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (तुम कू कैसै सुख है मीत), १२०३२६-१८०(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (तुम चेतन हो जिन विषयन संग), १२०३२६-३९४(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (ते चेतन करुणा न करी रे), १२०३२६-२९३(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (दुरगति गमन निवारियौ घरि), १२०३२६-२५९(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (देखो जिनराज आज राज रिद्धि), १२०३२६-२७३(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (देखो भाई आत्मराम विराजै), १२०३२६-१५२(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (देख्यो भेख फूल ले निकस्यौ), १२०३२६-१५७(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (देख्यौ सखी सम्यकवान सुख), १२०३२६-१७१(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (धन ते साध रहे वनमांही), १२०३२६-१०१(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (निज तस करौ गुन रतन न कौ), १२०३२६-२८७(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (निरविकलप जोति प्रकाश रही), १२०३२६-३०१(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ६, पद्य, दि., (परमेसर की कैसी रीति मोहि), १२०३२६-२५०(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (प्रभु अब हमको होय सहाय), १२०३२६-११६(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (प्राणी तुम तो आप सुजाण हौ), १२०३२६-२६८(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (प्राणी लाल धरम अगाउ धारौ), १२०३२६-१२५(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (फूली वसंत फूली वसंत जह), १२०३२६-१३७(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा.८, पद्य, दि., (ब्रह्मज्ञान नही जाना रे), १२०३२६-२३३(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (भव पूजो श्रीजिनंद चित), १२०३२६-१२७(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (भाई अब हम असामै जाना), १२०३२६-८६(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (भैया ए पाप उदोल खरोवत), १२०३२६-१२२(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (भैया सौ आतम जानौ रे), १२०३२६-१८९(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (भोग रोगसु देख जोग उपयोग), १२०३२६-५३५(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (मगन रहु रे सुधा तम मैं), १२०३२६-१२८(+) आध्यात्मिक पद, जै.क.द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (मन मेरो राग भावसि राग),१२०३२६-८८(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (मनुष जनम सफल भयौ आजि), १२०३२६-१७५(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा.८, पद्य, दि., (मानुष भव पानी दियो जिन), १२०३२६-२२३(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (मानौ मानौ जी चेतन एह विषै), १२०३२६-२५८(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (मेरा मन कहै वैराग राज), १२०३२६-१७७(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (मैं निज आतम कब ध्याउंगा), १२०३२६-९५(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. २, पद्य, दि., (मैंन भावे जी प्रभु चेतन), १२०३२६-२५५(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (मै एक सुगंध ग्याता निरमल), १२०३२६-१९३(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (मोहे कब ऐसो दिन आय है सकल), १२०३२६-७५(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ७, पद्य, दि., (रे जिय भजौ आतमदेव जाते), १२०३२६-२३२(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (रे मन भजि दीनदयाल जाकै), १२०३२६-९२(+) For Private and Personal Use Only Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ -3 "" आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि. गा. ३. वि. १८वी, पद्य, दि., (लाग रखी मन चेतनसुं जी), १२०३२६-२७७(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., ( लागा आतम राम सौं नेहरा), १२०३२६-१७८(+) आध्यात्मिक पद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ३. वि. १८वी, पद्य, दि., (लागा आतम रामसी नेहा), १२०३२६-३५८(*) आध्यात्मिक पद, जे.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., ( वतस तुम ग्यान विभी फूली), १२०३२६-१३८(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., ( वीतराग ए दिन नीकै हमकौं), १२०३२६-२७० (+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (वीतराग नाम सुमर वीतराग), १२०३२६-२१२(५) आध्यात्मिक पद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., ( वै परमादी ते आतम राम न), १२०३२६-३५४का आध्यात्मिक पद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि. गा. ३. वि. १८वी, पद्य, दि., ( वै प्राणी संज्ञा निज न), १२०३२६-२७६(*) आध्यात्मिक पद, जे. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, वि. (श्रीजिनधरम सदा जैवंत तीन), १२०३२६-२०७(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (सब कौं एक ही धरम सहाई), १२०३२६-१७९(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (सब जग कु प्यारा चेतन रूप), १२०३२६ १७२/०१ आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि गा. ४, पद्य, दि., (सम्यकति उत्तम भाइ जगत में), १२०३२६-८५का आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (साधजीने वानी तनक सुहाई), १२०३२६-२७५ (+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (सुण सुण चेतन लाडले यह ), १२०३२६-१९० (+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (सुणि चेतन इक बात हमारी), १२०३२६-२३७(+) आध्यात्मिक पद, जे. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (सैली जयवंती यह होजो शिव), १२०३२६-१५६(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, दि., (सोई ग्यान सुधारस पीवै), १२०३२६-३९९(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (सो ज्ञाता मेरे मन माना), १२०३२६-७८(+) आध्यात्मिक पद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (सोहं सोहं ध्याय हो प्राणी), १२०३२६-२६४(१) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (हम तो कबहू न निज घर आए) १२०३२६-८१(०) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (हम नि किसी के कोई न हमारा), १२०३२६-८९(+) आध्यात्मिक पद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (हम लागे आतम एस विनासीक) १२०३२६-११५ (+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (हमारे इह दिन यौं ही गए), १२०३२६-२५४(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., ( हमारो काज ऐसो होई आतम), १२०३२६-१५०(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., ( हमारो कारज कैसे होई कारण), १२०३२६-१४९(+) आध्यात्मिक पद, जे. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ८, वि. १८वी, पद्य, वि. (हो आतम अनुभी कीजिये यह ), १२०३२६-४००(+) " "" . आध्यात्मिक पद, जे. क. मानसिंह, पुहिं. गा. २, पद्य, दि. (मैं तो आपको आप जाना त्याग), १२०३२६-३०४(+) आध्यात्मिक पद, मु. रूपविजय, मा.गु. गा. ६. वि. १८वी, पद्य, मूपू (अविनाशीनि सेजडीयें), १२२४७५-१(5) आध्यात्मिक पद, मु. रूपविबुध, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (भजले श्रीभगवान अब तेरो), १२१९७९-८ आध्यात्मिक पद, श्राव. हेमराज, पुहिं., गा. ५, पद्य, दि., (अरे भईया पिछानौ दीठ समकत), १२०३२६-२८० (+) आध्यात्मिक पद, श्राव हेमराज, पुहिं. गा. ३, पद्य, दि. (आतम आतम पर पर सरधा पावन) १२०३२६-५७७(*) आध्यात्मिक पद, श्राव. हेमराज, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (ए री मेरो मरम न जान्यौं), १२०३२६-२७८(+) आध्यात्मिक पद, श्राव हेमराज, पुहिं. गा. ८, पद्य, दि. (भावना पावन भाइ ये हो अहो), १२०३२६-६६ (*) . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आध्यात्मिक पद, पुहि., गा. ३, पद्य, वे (प्रीत किए पछतानी रे मधुकर), १२१०१३-२(*) " आध्यात्मिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (रे जिय जनम लाहा लेह चरण), १२०३२६-८२(+) For Private and Personal Use Only ५३१ " " आध्यात्मिक पद- अलिप्तभावना, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ८, पद्य, दि., (ग्यानी ऐसो ग्यान विचार) १२०३२६-२४२(*) आध्यात्मिक पद-आत्मनिंदा, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., ( कौन काम मैने कीनो अब लीनो), १२०३२६-३९६(+) आध्यात्मिक पद-ऊर्ध्वपटल, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (उरध तेरे सब पटल कहै), १२०३२६-५०२(+) Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आध्यात्मिक पद-ब्रह्म, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ८, पद्य, दि., (भाई ब्रह्म विराजै कैसा), १२०३२६-२४३(+) आध्यात्मिक पद-शिववधु, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (ब्रह्मग्यान आनंद जल पूरन), १२०३२६-४३७(+) आध्यात्मिक पद-सिद्धावस्था, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (दर्व दिष्टा देखें नित), १२०३२६-४३६(+) आध्यात्मिक पद-सुमतिकुमति, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (होरी मेरो पीया घर), १२३८६२-४(#) आध्यात्मिक सज्झाय, सा. जडाव, मा.गु., गा. १९, वि. १९६०, पद्य, श्वे., (म्हारे पुद्गल को रस पाको), १२१३८८-४(#) आध्यात्मिक सज्झाय, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (सिज्या भली रे संतोषनी वाण), १२०६४२-१ आध्यात्मिक सज्झाय, क. ब्रह्मानंद, पुहि., गा. ५, पद्य, वै., (अगर है प्रेम दर्शन का भजन), १२१९६२-२ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. महिमाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सासरडे इम जइ जइ रे), १२१३८३-३(+#) आध्यात्मिक सज्झाय, मु. रिषभ ऋषि, रा., गा. ८, वि. १८००, पद्य, श्वे., (मारगमाहे लुठे पाच जणि), १२०४०८-६४(+) आध्यात्मिक सज्झाय, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (तीन कालरा सुख देवतारा), १२०७४३-४(+) आध्यात्मिक सज्झाय-भाव राखडी, सा. जडाव, रा., गा. ९, वि. १९६६, पद्य, श्वे., (मारा केवर विरा हंस बांधु), १२०४०८-३९(+) आध्यात्मिक सवैया, मु. जिनहरख, पुहि., गा. १, पद्य, मूपू., (कीरी राम कहे राम कौ), १२०२४५-२(+#) आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. ६, वि. १६वी, पद्य, मपू., (वरसे कांबल भींजे पाणी), १२०१७३-२(#) (२) आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (कांबली कहतां इंद्री), १२०१७३-२(2) आध्यात्मिक होरी, मु. चतुरकुशल, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (फागुन में फाग रमो), १२०२३१-६ आध्यात्मिक होरी, मु. भाणचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (ग्यानी जिउ अनुभौ), १२०३२०-४३(+-#) आध्यात्मिक होरी पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (आयो सहज वसंत खेले सब होरी), १२०३२६-१४४(+) आध्यात्मिक होरी पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (होरी चेतन खेले होरी सत्ता), १२०३२६-१४१(+) आध्यात्मिक होरी पद, मु. रूप ऋषि, पुहिं., पद. ४, पद्य, श्वे., (चेतन खेलो होरी इस काया), १२०५४५-६ आनंदघन गीतबहोत्तरी, मु. आनंदघन, पुहिं., पद.७८, पद्य, मपू., (क्या सोवे उठि जाग बाबरे), १२२०७०(+$), १२१९८७ आनंदश्रावक गौतमस्वामी चर्चा, मा.ग., गद्य, स्पू., (--), १२२३०१($) आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. १५, गा. २५२, वि. १६८४, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिनवर चरण), १२३५४६($) आर्द्रकुमार चौढालिया, मा.गु., ढा. ४, गा. ६५, वि. १८७९, पद्य, मूपू., (प्रणमुं प्राते उठने तिसला), १२०६६८-३(+) आर्यदेश नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ मगधदेश राजग्रहीनगरी), १२१५९३-१ आलोयणा, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ६, पद्य, दि., (प्रथम नमो अरिहंतानं दूतीय), १२०३२६-२१(+) आलोयणापच्चीसी, मु. जडाव, रा., गा. २५, वि. १९६२, पद्य, श्वे., (अहो नाथजी पाप आलोउ), १२२१८९(+), १२३०४७ आलोयणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (भीन मास कहतां लूखो), १२०८०३-२(+$), १२०९७७-२(+) आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (अतीत काल अठार पाप), १२१६४९(+), १२३९८५, १२१५२५-१(#) आलोयणा विधि संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ वरस नानि आलोयण), १२२८६८(#) आलोयणा सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (श्रीजिनवर नाम हीये धरीजी), १२२८०२ आश्रव त्रिभंगी कवित्त, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. २, पद्य, दि., (पचपन पचास तेतालीस छयालीस), १२०३२६-४४८(+) आश्रवभेद विचार, मा.गु., गद्य, मप., (इंद्रिय कषाय व्रत क्रिया), १२०४५५ आषाढभूति चौढालिया, मु. भक्तविमल, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मपू., (सासण धणी सानिध वचन सुधार), १२१०२६(+) आषाढाभूतिमुनि चरित्र, वा. कनकसोम, मा.गु., गा. ६७, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवदन निवासिनी), १२२९७९-१, १२३१७६(६) आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, गा. २१८, ग्रं. ३५१, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (सकल ऋद्धि समृद्धिकर), १२१२१२(+), १२३९९१, १२३६५५(६) आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ७, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (दरसण परिसोह बावीसमो), १२२३७०(+) आषाढाभूतिमुनि रास, मु. धर्मरुचि, मा.गु., गा. ५७, पद्य, मूपू., (श्रीसंति जिणेसर भुवण), १२३०८३(+$) इंद्र के आयुष्य में च्यवन होनेवाली इंद्राणियों की संख्या, मा.गु., गद्य, मूप., (२८५७१४२८५७१४२८५ पहिल), १२३५३६-३(#) For Private and Personal Use Only Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ ५३३ इंद्रादि १० जाति देव सवैया, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (सोधर्मइंद्र समानक चोरासी), १२०३२६-५००(+) इक्षुकार कमलावती सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (पुर इखुकारइ नृपइखुकार ए), १२१७४४-२ इक्षकुमारकलावती षड्ढालिया, मु. माल, मा.गु., ढा. ६, वि. १८५५, पद्य, स्था., (चोवीसे जिनवर नमुं), १२३९८०(+) इरियावही विचार, पुहिं.,मा.गु., गद्य, मूपू., (जैनागमवचः स्मृत्वा), १२२२२५(+) इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र-शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (नारी मे दीठी इक आवती), १२०२४८-१(#) इलाचीकुमार चौढालिया, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (प्रथम गुणधर गुणनीलो), १२१०९४(+) इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. २९, पद्य, मप., (धनदत्त शेठनो दीकरो ए), १२१४३१-१(६) इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नाम इलापुत्र जाणीए), १२०१८४-२(+), १२११००-१ उत्तमकुमार कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (कासी देश वाराणसी नगरी), १२१९९६ उत्तम चरित्र, मा.गु., पद्य, श्वे., (शासनपती सीर नामीने गोतम), १२०२५२-२($) उत्पत्तिनाशध्रुव पद, मु. जिनभक्ति, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (अगम अगाधि बीजी वीर), १२०६१४-७७ उदयसोमसूरिजी को रूपबाई का पत्र, श्रावि. रूपबाई, मा.गु., वि. १९वी, गद्य, मूप., इतर, (स्वस्तिश्री पार्श्वजिन), १२२८१५(+#) उदाईराजा वखाण, मु. जेमल ऋषि, रा., ढा. ६, पद्य, स्था., (चंपानगर पधारीया),१२२०९८(+$) उदायनराजर्षि सज्झाय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (राइ उदाइन पाटण वीतभैरे), १२२८०१-१(+#) उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (सांभलज्यो सज्जन नर), १२१८०१-२२ उपदेशपच्चीसी, मा.गु., गा. २५, पद्य, मपू., (शील पाल्या हुवै सुख), १२१०५१-४(+#) उपदेशशतक, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., सवै. १२०, पद्य, दि., (गुन अनंत करि सहत रहत दस), १२०३२६-२(+) उपदेशसार रत्नकोश स्वाध्याय, आ. समरचंद्रसरि, मा.गु., गा. ६०, पद्य, मप., (तिथंकर चउवीसहउं वंदउ), १२२११९(+) उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. १८, पद्य, पू., (श्रीमहावीर धरम), १२३२६६(+) उपाध्याय आरती-२५ गुणगर्भित, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. २०, वि. १८वी, पद्य, दि., (ग्यारै अंग वखान चौदे पूरव), १२०३२६-४०५(+) ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, आ. हर्षसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (तिणकाले ने तिण समे), १२१८५० ऋषिदत्तासती चौपाई, मु. चोथमल ऋषि, मा.ग., ढा. ५७, वि. १८६४, पद्य, श्वे., (सासणनायक सिमरतां), १२२११४ ऋषिबत्रीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मपू., (अष्टापद श्रीआदिजिणंद), १२२३६२-१(६) एकत्वभाव भाषा, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. २७, पद्य, दि., (वंदौ श्रीजिनराज पद रिद्धि), १२०३२६-२२(+) एकादशी तिथि मेघ विचार गाथा, मा.गु., गा. २, गद्य, वै., इतर, (जेठ सुद ११ इग्यारस लीजे), १२१९१६-२ एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (आज एकादसी रे नणदल), १२०४०८-४३(+), १२०६२७-३ एकादशीतिथि स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ७, वि. १८१८, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर नत चरण), १२१९४०-१(६) ओसवालगोत्रउत्पत्ति कवित्त, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (सांगरीण परणीयो मोरबाधो), १२३३४९-१(+#) औपदेशिक अष्टपदी-भोंदभाई, पुहि., गा.८, पद्य, दि., (भोंदभाई समुझ सबद), १२०३२०-६६(+-2) औपदेशिक कवित्त, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद. ३, पद्य, दि., (गरीखम के तेज सूर गरमी परम), १२०३२६-५८०(+) औपदेशिक कवित्त-५ इंद्रिय, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (दिपक देख पतंग जल मधुर सबद), १२०४०८-७०(+) औपदेशिक कवित्त-कुश्राविका, मा.गु., पद्य, स्था., (असणादिक अशुद्ध देव साधां), १२३३३४-९(+) औपदेशिक कवित्त-चाकरी, मु. खेम, पुहिं., पद. १, पद्य, मपू., (जो अपनो गुन नेक वसै वीस), १२२६३२-१०(+) औपदेशिक कवित्त-दुर्जन, मु. जिनहरख, पुहि., गा. १, पद्य, मूपू., (नैन कहे देखी नाहि कान कहै), १२२०३३-१ औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहि.,मा.गु., पद्य, मपू., इतर, (कीमत करन बाचजो सब), १२०४०८-११४(+), १२२३८७-२(+) औपदेशिक कवित्त संग्रह-समकित, पुहि., गा. २१, पद्य, श्वे., (के ते दिन भये तुम कुं रोग), १२०४०८-१२४(+) औपदेशिक कवित्त-सम्यक्त्व, मु. जयजश, मा.गु., गा.५, पद्य, स्था., (सावज्ज किर तव अनरथ हेतु), १२३३३४-५(+) औपदेशिक कवित्त-सम्यक्त्व, देवीदास, पुहिं., पद्य, श्वे., (त्रस थावर की दया न पाली), १२३३३४-४(+) औपदेशिक कवित्त-सम्यक्त्व, मा.गु., गा.१०, पद्य, श्वे., (देवगूरधर्मरी परख करौ पख), १२३३३४-६(+) For Private and Personal Use Only Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३४ देशी भाषाओं की मूल कति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक गजल-अहिंसापालन, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ७, पद्य, स्था., (दयाधार हिंसाचार वचन), १२०४०८-२५(+) औपदेशिक गहली, मु. दोलत, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (सासन वरते जिणंदवीर), १२०३७८-२ औपदेशिक गहुंली-कालमानगर्भित, मु. चतुर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सासननायक वंदीने), १२०२२६ (२) औपदेशिक गहली-कालमानगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (वरश शोना छत्रीसहजार दीवस), १२०२२६ औपदेशिक गीत, मु. जिनराज, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सब स्वारथ के मित हइ), १२१४८१-११ औपदेशिक गीत-जीवकाया, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (रे जीव जुगति लिङ), १२३१६२-२(#) औपदेशिक गीत-ननदभौजाई, मु. आनंदवर्द्धन, पुहिं., गा. २३, पद्य, मप., (देह देह नणद हठीली), १२३४७९-७() औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मप., (भगवति भारति चरण), १२३२७४(+) औपदेशिक छंद-त्रोटकनामा, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (वरदायक माय सलाम करी), १२२३६२-२ औपदेशिक छप्पय, पुहि., गा. १, पद्य, श्वे., (भिंस का चरिया कहा जानें), १२१०५८-६(+#) औपदेशिक दोहा, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (रे मन चंता ज न करो), १२१४८९-५(+) औपदेशिक दोहा, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (वस्तुविचार ध्यावते), १२११३३ (२) औपदेशिक दोहा-टबार्थ, मा.ग., गद्य, श्वे., (अजानी वस्तु जानियें कौ), १२११३३() औपदेशिक दोहा, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सजन फल जिम फूलजो वड), १२१०९९-२ औपदेशिक दोहा संग्रह, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (डूंघा प्रभु भंघा चतुर), १२३२६०-२५(+) औपदेशिक दोहा-समस्यागर्भित, पुहि., पद्य, श्वे., (पूतलो कहे अरिहंता नवपय), १२२७५६-४($) औपदेशिक पद, मु. अमोलक, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (फूले मति तन धन संपत पाइ), १२२१८८-६ औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (अवसर बेर बेर नही), १२०६१४-४१ औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (हे जिन के पाय लाग रे), १२०६१४-२४, १२१५१९-८(#) औपदेशिक पद, मु. आनंदराम, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (छोटी सी जान जरा सा), १२०६१४-५२ औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं., पद. ९, पद्य, वै., इतर, (कबीर नौबत अपणी दिन), १२१७७८-२(2) औपदेशिक पद, कबीरदास संत, पुहि., पद. ७, पद्य, वै., (तुमारो बावो रे बावो), १२०२१५-१ औपदेशिक पद, कबीरदास संत, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., इतर, (साधु भाई दम ई दम का मेला), १२१९६२-६ औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं., गा. ७, पद्य, वै., (माटी की गणगोर बनाइ), १२०२१५-२ औपदेशिक पद, मु. क्षमाकल्याण, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (रसना सफल भई में तो), १२०६१४-४४ औपदेशिक पद, क. गद, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (नमै तुरी बहु तेज नमै जल), १२२९२४-२(2) औपदेशिक पद, क. गिरधर, मा.गु., गा. १, पद्य, वै., (मिश्री गोले जुठ कि एसे), १२०४०८-५८(+) औपदेशिक पद, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ५, वि. २०वी, पद्य, पू., (विरथा जनम गमायो), १२११९८-५ औपदेशिक पद, मु. जगतराम, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (प्रात भयो सुमर देव), १२०३२०-६४(+-#) औपदेशिक पद, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (मना तोने कीसि विध), १२२१८८-५(5) औपदेशिक पद, मु. जिनदास, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (माहाराजा मन कसा कसा खून), १२०३२०-६७(+-#) औपदेशिक पद, मु. जिनराज, पुहि., गा. ३, पद्य, म्पू., (कहारे अग्यानी जीव), १२१४८१-८, १२०२३४-१(#) औपदेशिक पद, मु. तिलोक ऋषि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (मत करो रे चतुर), १२०४०८-१६०(+) औपदेशिक पद, मु. तिलोक ऋषि, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (मेटो मेटो रे भवीक जन), १२०४०८-१४१(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (अब मै जान्यो मै आतम), १२०३२६-२२४(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (असा सुमरण कर रे भाई), १२०३२६-१६८(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (आतम अनुभौ कीजे हो भाई), १२०३२६-९८(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (आतम काज समारियै तजि), १२०३२६-२१०(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (आतम जान रे भाई जैसी), १२०३२६-१२९(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (आत्मज्ञान लखै सुख होई), १२०३२६-१९२(+) For Private and Personal Use Only Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (इस जीव को इस जीव को), १२०३२६-३९१(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ३, पद्य, दि., (उत्तम कहाया अधम अधम जोरे), १२०३२६-४४१(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (एक रोज रोजगारही को ढूंढत), १२०३२६-५२३(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (ए दिन आछै लहै जी लहै जी), १२०३२६-२८३(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (ए रे मेरे मीत चित कहा अब), १२०३२६-३२०(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. २, पद्य, दि., (करमजाति करि करम एक हैं), १२०३२६-५४६(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (कहिवे कुं मनसूरिमा), १२०३२६-१६९(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा.८, पद्य, दि., (काहे देखी गरवाना रे महि), १२०३२६-२२९(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ११, पद्य, दि., (किसही की भगति कियै हित), १२०३२६-२४९(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (कीजै कौन काम अब जैये कौन), १२०३२६-५२२(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा.८, पद्य, दि., (कैसै शिव पद सुख होई हम कौ), १२०३२६-२३५(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (गहू संतोष सदा मन रे), १२०३२६-२०३(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., चौपा. ५, पद्य, दि., (ग्यायक एक सरूप है), १२०३२६-६९(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा.८, पद्य, दि., (चेतन प्राणी चेतिये हौ अहो), १२०३२६-२२५(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (चेत रे प्राणी तु चेत रे), १२०३२६-१९९(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (जग छग मित्र न कोइ बैंज), १२०३२६-३५०(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (जिन कै हिरदै प्रभु नाम), १२०३२६-२१४(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (जिन जपि जिन जप जीवरा), १२०३२६-३०६(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (जिनवाणी जान ले रे छह दरव), १२०३२६-२८२(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (जिय को लोभ महादुख दाई), १२०३२६-९१(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, मा.गु., गा. ४, पद्य, दि., (जीवासुं कहिये तनै भाईया), १२०३२६-११२(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ८, पद्य, दि., (झूठा सुपना इह संसार दीसत), १२०३२६-२४८(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (तुमतो समझ समझरे भाई), १२०३२६-१०८(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (तेरो संजम विन रे नरभव), १२०३२६-२९५(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (त्यागी त्यागो चेत जी), १२०३२६-२५७(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. १, पद्य, दि., (दोहना एक बार रोटी मिलै), १२०३२६-५२४(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (नही एसो जनम वार वार), १२०३२६-१०७(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (नियत घोटी साज नाज मंहिगा), १२०३२६-५१७(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (निरधन दरव पाय साह देखि), १२०३२६-५१६(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (परमारथ पंथ सदा पकरो रे), १२०३२६-२९७(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (पीरसो परपीर वडारत धीर सोइ), १२०३२६-५३४(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., चौपा. ५, पद्य, दि., (प्रथमदेव अरिहंत मनाउ), १२०३२६-६८(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा.८, पद्य, दि., (प्राणी लाल छांडौ मन चपलाई), १२०३२६-२२७(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (भाई आपन पाप कुमाए आए), १२०३२६-१५८(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (भाई काया तेरी दुख की ढेरी), १२०३२६-१५९(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (भाई कौन धर्म हम चालै एक), १२०३२६-१४८(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (भाई ग्यानी सोई कहियै करम), १२०३२६-१४७(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (मातपीत की रीत मिलत नहि मन), १२०३२६-५१८(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (माय होय बालक कौं मारै तो), १२०३२६-५१३(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (मिथ्या ईह संसार है रे), १२०३२६-२१५(+) For Private and Personal Use Only Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५३६ www.kobatirth.org " देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (मेरी मेरी करता जनम सब ), १२०३२६-३५२(+) औपदेशिक पद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ३. वि. १८वी, पद्य, दि., (मैं न जान्यौ री जीव ऐसी) १२०३२६-३९३ (*) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (रे नर बिपत्ति मैं धर धीर), १२०३२६-३५६(+) औपदेशिक पद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ८, पद्य, दि.. (रे भाई ग्यान बिना दुख ), १२०३२६-२२८(+) " " " " औपदेशिक पद, जे. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (रे भाई मोह महादुख दीना), १२०३२६-२०४(*) औपदेशिक पद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (रे भाई संभाल जग जाल में), १२०३२६-२०१(+) औपदेशिक पद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि. (वंदे तु वंदगी करियादि जिन), १२०३२६-१६०(*) औपदेशिक पद, जे. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (वसि संसार में पायो दुख) १२०३२६-११८(१) औपदेशिक पद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (वे कोई निपट नारी देख्या), १२०३२६-२०९(+) औपदेशिक पद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (श्रीजिननाम आधार सार), १२०३२६ -१७० (+) औपदेशिक पद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (सब सौं छिमा छिमा कर जीव), १२०३२६-२०२(+) औपदेशिक पद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (सलल मै महामच्छ छोटे मिन), १२०३२६-५३०(+) " " , יי औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (साधौ छांडौ विषय विकारी), १२०३२६-२३४(+) औपदेशिक पद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (सोग न कीजे वावरे मेरे पीतम) १२०३२६-२०५१) औपदेशिक पद, मु. धर्मसी, पुहिं., पद. १, पद्य, मूपू., (ऐक अनेक कपायपड), १२३०६०-४(+#) औपदेशिक पद, मु. नगविजय, पुहिं. गा. ३, पद्य, भूपू (नायक विणजारा रे अंखीयो), १२०३२०-१४(+-०) " औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू (जैनधर्म पायो दोहिलो), १२०६१४-४५ " ', Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (लग जा हो जीव जिनचरणा), १२२८९२-६ औपदेशिक पद, जै. क. बनारसीदास पुहि गा. ४. वि. १७वी, पद्य, दि. (मूलन बेटा जायो रे), १२०३२०-५७(+) " " " औपदेशिक पद, मु. बालचंद्र, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (काये कुं बोलत प्राणि जुठ), १२०४०८-५६ (+) औपदेशिक पद, क. बिहारीदास, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (हो भविजन आतम सौ लौ लाया), १२०३२६-१२१(+) " (भानी अपने चित्त में फिर). १२२२२४-४ " श्वे. (हित करि दीक्षा लेइ कै सील), १२२२२४-२ औपदेशिक पद, मु. भानीराम मा.गु गा. २, पद्य, वे औपदेशिक पद, मु. भानीराम मा.गु., गा. ४, पद्य, औपदेशिक पद, मु, भूधर, मा.गु., गा. ६, पद्य, वे (कित गयो रे पंथी बोलतो बोल), १२०३२०-६५ मा औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ४, पद्य, ओ., (ते मेरा दरद न पाया), १२०३२०-६१(+) . , औपदेशिक पद, जै.क. मानसिंह, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (संसार अथिर भाई कछु करिजु), १२०३२६-१३१(+) औपदेशिक पद, मु. राज, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मन रे छार मायाजाल), १२०६१४-७५ औपदेशिक पद, मु. रामचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (भजन विन युं ही जनम गमायो), १२०६१४-८६ औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू., (आजकाल करत प्यारे काल), १२०२३४-२ (०) औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, रा. गा. ३, पद्य, वे., (जीवाजी थांने वरजु छु), १२०५११-२(१) " औपदेशिक पद, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे. (क्यो विषय रस नजर भरे तेरो ). १२०४०८-१४९(+) " औपदेशिक पद, मु. लालचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (लीज्यो लीज्यो नाव), १२०५०३-८(#) " औपदेशिक पद, मु. समयसुंदर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (करम अचेतन किम हुवै), १२३०६१-४(५) औपदेशिक पद, मु, हेमचंद, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे. (ध्वायो नहि जगतपति पाप), १२०४०८-१५७(+) औपदेशिक पद, पुहिं, गा. ४, पद्य, मूपू. (अरे भक्वासी जीव जड), १२१७७८-४९) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आछी बीद तन पाई रे कछु), १२०३२०-६८(+#) औपदेशिक पद, पुहिं, गा. ४, पद्य, मूपू., (आपनपो आपन वीस जैसे ), १२०६१४-७२ औपदेशिक पद, पुहिं. गा. ३, पद्य, श्वे. (ए तो भव युहि दीनो खोय), १२१४८९ - ४(१) औपदेशिक पद, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू. (ऐसी समज के सीरधुल), १२०४०८-१७९(*) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( कहइ सद्गुरु अछ श्रावण आयु), १२१६८५-२(+) " For Private and Personal Use Only Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ औपदेशिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (कहित सुगुरु करिसु हित भवक), १२०३२६-१२०(+) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (काया नगर हंसरायजी हर), १२२९०६-७(+) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (किणरा छोरू वाछरू रे), १२१२२१-१(+) औपदेशिक पद, मा.गु., पद. ३, पद्य, श्वे., (चेतन हो मान ले सारी), १२०६१४-३७ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (जिव जोग ओर भोग जिभ से रोग), १२०४०८-५७(+) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (जे न करे नय पक्ष विवाद), १२२७५६-३ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (दंड अनर्था छोडो भविकजन), १२२१९१-३ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (दात बतिसि उजलि मरद नाम), १२०४०८-७१(+) औपदेशिक पद, पुहि., गा. २, पद्य, मप., (दती कहे सुन हो मन मोहन), १२१९५५-३(#) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (धर्म मति धारे मति मान), १२१८०३-४ औपदेशिक पद, अ.भा., गा. १, पद्य, जै.?, (बंद पैंच वुझ बाबु दपै), १२०३२६-३८८(+) औपदेशिक पद, पुहि., गा. २, पद्य, मपू., (भईया है रुपईया बाप), १२१९०४-२ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (संसार असार रे दुकको भाडार), १२०२४१-१(-#) औपदेशिक पद, पुहि., गा.४, पद्य, मूपू., (सुग्यानी जीया सुकरत क्यों), १२०८७७-५(2) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (सुणो हो सुजाण नर काये कु), १२०४०८-१५८(+) औपदेशिक पद, रा., पद. ५, पद्य, श्वे., (--), १२२२८१-१($) औपदेशिक पद-अन्यायोपार्जितद्रव्य, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (पाप से दर्व आवै पाप काज), १२०३२६-५२०(+) औपदेशिक पद-अभिमानपरिहार, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ८, पद्य, दि., (प्रानीय संसार असार है गरव), १२०३२६-२३९(+) औपदेशिक पद-अभिमानपरिहार, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मान कुं छोड़ो अभिमानी), १२२००१-८ औपदेशिक पद-अभिमानपरिहार, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मान क्युं छोड़ो अभिमानी), १२२००१-९ औपदेशिक पद-अभिमानपरिहार, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मान तजो भवि भावसुंरे लाल), १२२००१-६ औपदेशिक पद-असत्यवचन, मु. दीन, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (ततो मति बोले प्राणि जुठ), १२०४०८-६०(+) औपदेशिक पद-असारसंसार, मु. कालुराम, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (मनवा नही वीचारी रे लोभी), १२०२४७-१(+) औपदेशिक पद-आधुनिकयुग, पुहिं., पद. १, पद्य, वै., इतर, (बाबु बन गए जंटलमेन जेबमे), १२१९६२-५ औपदेशिक पद-कपटपरिहार, क. बनारसीदास, पुहिं., दोहा. ४, पद्य, दि., (हां रे मन वणीया वाहि), १२०३२०-५१(+#) औपदेशिक पद-कपटपरिहार, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (कपट कुं छोड़ो तुम भाई रे), १२२००१-१० औपदेशिक पद-कर्म, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (जैसै लोह गोलै कौं लुहार), १२०३२६-५४४(+) औपदेशिक पद-कर्मफल, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूप., (काटो काटो रे कर्म की पासी), १२२००१-१५ औपदेशिक पद-कर्मफल, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (पेलि तो हम कुल ज्यो खर), १२०४०८-१७१(+$) औपदेशिक पद-काया, आ. जिनलाभसूरि, पुहि., गा. ५, पद्य, मप., (काया कारमी रे माया मदमाती), १२०६१४-९८ औपदेशिक पद-कुनारी, पुहिं., सवै. १, पद्य, श्वे., (पति से सदा विरोध पुतका), १२०४०८-१०९(+) औपदेशिक पद-क्रोध, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (रे जिय क्रोध कहां करै), १२०३२६-१३३(+) औपदेशिक पद-क्रोधपरिहार, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (क्रोध तजो भवि भाव से,), १२२००१-३ औपदेशिक पद-क्रोधपरिहार, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (क्रोध मत करिवे तुम से), १२०४०८-१४४(+) औपदेशिक पद-गुरुज्ञान, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (हो परम गुरु वरसत ज्ञान), १२०३२६-२११(+) औपदेशिक पद-गुरुभक्ति, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (मेरा मान न बन नादान अरे), १२२२९३-६ औपदेशिक पद-चंचलमन, मु. जगतराम, रा., दोहा. ४, पद्य, श्वे., (गुरुजी म्हारो मनडो), १२०३२०-६०(+-#) औपदेशिक पद-चाकरी, मु. खेम, पुहि., गा. १, पद्य, मूपू., (बोलन बोल बुलावत मान की), १२२६३२-९(+) For Private and Personal Use Only Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५३८ " देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक पद-चित्त, जै. क. धानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., ( आतम रूप सुहावना कोई जानो), १२०३२६-१६२(०) औपदेशिक पद-चित्त, क. बिहारीदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (जीवन सहल है तुम चेतो चेतन), १२०३२६-११७ (+) औपदेशिक पद-जीव, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (अरहंत सुमरि मन वावरे), १२०३२६-९६(+) औपदेशिक पद- जीव, मा.गु., गा. ३, पद्य, खे, (जीवा धुं तो भोलो रे), १२०४०८-४४(१) "" औपदेशिक पद-जीवदया, ऋ. केवल, पुहिं., गा. ११, वि. १९५५, पद्य, स्था., (धर्मरुचिने दयाके), १२०४०८-२१ (+) औपदेशिक पद-जीवदया, मु. चंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (ऐसे दिन कब आवेगे भाई), १२०३२०-५९(+#) औपदेशिक पद- जीवदया. मु. चंद्रभाण, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे. (जीव तणि करे गात डर नहि १२०४०८-१४/११ औपदेशिक पद-जीवदया, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (ग्यान जीवदया निति पालै), १२०३२६-१३९(+) औपदेशिक पद-जुवात्याग, मु. धर्मसिंह, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (हाथ घसै अरु आथ नसै जु वसै), १२२६३२-१(+) औपदेशिक पद-ज्ञान, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (ज्ञान सरोवर सोई हो भव भव), १२०३२६-११३(+) औपदेशिक पद- ज्ञान, पुहिं. गा. ५, पद्य, मृपू., (ज्ञान पढो तुम सुनो भविकजन), १२२००१-११ औपदेशिक पद-ज्ञानीलक्षण, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (क्रोध सोइ जो करै करमौं), १२०३२६-५३३(+) औपदेशिक पद-ज्ञानीलक्षण, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (ग्यानी ऐसो ज्ञान विचारै), १२०३२६-२४१(+) औपदेशिक पद-दया, मु. हीरालाल, पुहिं. गा. ९, पद्य, स्था., (माइ मारो प्राण बचायो), १२०४०८-२९(+) औपदेशिक पद- दयाधर्म, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (ससत्रधारि अंगउ पगे नख), १२०४०८-१७(+) औपदेशिक पद-दान, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (दीयै दान महासुख पावै), १२०३२६-३१९(+) औपदेशिक पद-दान, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. २, पद्य, दि., (दीयै दान महासुख होवै धरम), १२०३२६-२९० (+) औपदेशिक पद-दुर्लभज्ञान, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (ग्यान का राह दुहेला रे), १२०३२६-१६३(+) औपदेशिक पद- दुर्लभज्ञान, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., औपदेशिक पद-देवगुरुधर्म, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., औपदेशिक पद-धर्मदलाली, पुहिं. गा. ५, पद्य, वे औपदेशिक पद नारीपरिहार, पुहिं. गा. १, पद्य, वे (नारि के कारण रावण कुं). १२०४०८-१०७(+) औपदेशिक पद-निंदात्याग, सगराम, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (सादारि नद्या करे काने), १२०४०८-६६(+) (ग्यान को पंथ कठन है सुन), १२०३२६-१९५(+) (समझत क्यौं नही वानी रे ), १२०३२६-११०(+) (दलाली धर्म की रे महारे) १२३६१२-४ *" " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक पद-निंदापरिहार, श्राव. हेमराज, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (चेतन सबही मै घाट वाढ नही), १२०३२६-१३६(+) औपदेशिक पद- निद्रापरिहार, भरतरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, जै. 2, (बाग बगीचा जोवण जावे), १२०२१५-३ औपदेशिक पद परवारी, पुहिं. गा. ७, पद्य, मूप, (चतुर नर नारी मत निरख) १२०४०८-८२ (०) १२२४२४-२ औपदेशिक पद-परमात्मभक्ति, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (परमातम पद भज रे मेरे), १२०६१४-३२ औपदेशिक पद-पुण्यपाप, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (करुणा जान रे जान रे जान ), १२०३२६-२१६(+) औपदेशिक पद-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पारकी होड मत कर रे), १२१७७९-२(#) औपदेशिक पद - प्रमाद, श्राव. गोकुलचंद, पुहिं, गा. ४, पद्य, दि., (क्यों रहिये परमाद दशा में), १२०३२६-३९२(+) औपदेशिक पद- प्रेम, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., ( प्रेम प्रेम क्या करता रे), १२२२९७-३(+) औपदेशिक पद-भक्ति, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (जिन नाम भजि भाई रे जा दिन), १२०३२६-१९८ (*) औपदेशिक पद-भव आलोचना, जै.क. मानसिंह, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (अब क्यूं भूल्यो), १२०३२६-१३०(+) औपदेशिक पद मानपरिहार, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मान कुं छोड़ दे मानले) १२२००१-७ " " " औपदेशिक पद-मानपरिहार, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (मान न किजे रे मानवि मान), १२०४०८-१५३(+) औपदेशिक पद-मानपरिहार, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (मान से ग्यान का नास हो), १२०४०८-१५४(+) औपदेशिक पद-मुक्ति, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि. (इंद्री पांच चौ कषाय चौ) १२०३२६-५२१(*) औपदेशिक पद-मूढ, जे. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (मूढपना कित पयो रे जिय ते), १२०३२६-११४(+) औपदेशिक पद- मृषावाद, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू (जुठ दुजो पाप मरषावाद बचन), १२०४०८-५५ाण औपदेशिक पद-मोक्ष, पुहिं., गा. ५, पद्य, म्पू., (कांइ रे विसवास करे जमको), १२२००१-१४ " For Private and Personal Use Only Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२० औपदेशिक पद-मोह, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुडिं, गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (पिया वैराग लेत है किसमिस), १२०३२६-३११(+) " औपदेशिक पद-रसनाविषये, मु. विनयचंद, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (चेतन तेरी रसना वस कर), १२०४०८-६८(+) औपदेशिक पद- रागदोष, जे. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (कर रे कर रे कर रे आतम), १२०३२६-९९(+) औपदेशिक पद-लालचपरिहार, मा.गु., गा. १, पद्य, मृपू. (आकरे खरे खजाने केइ दिल्ली), १२२६३२-८(+) औपदेशिक पद-वचनपालन, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (वचन छर्यो बलराय वचन केरव), १२०४०८-६७(+) औपदेशिक पद- वैराग्य, जे.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (संसार में साता नांही वे), १२०३२६-३५१(+) औपदेशिक पद- वैराग्य, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (धार रे धार रे भव प्राणी), १२२००१-१ औपदेशिक पद- शिक्षा, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (वंदे तु बंदगी न भूल चाहता), १२०३२६-१६१(+) औपदेशिक पद-शील, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (रे वावा सील सदा दिढ राख), १२०३२६-२०६(+) औपदेशिक पद श्रद्धा, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., ( तिहूकाल षटद्रव्य पदार्थनो), १२०३२६-५३६(०) औपदेशिक पद-श्रावकधर्म, मु. विनयचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (देवगुरु धर्म कि पिछान), १२०४०८-१७८(+) औपदेशिक पद-श्रोतावक्ता, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (वकता हे ग्यानी श्रोता) १२०३२६-५१४(*) औपदेशिक पद-संगत, श्राव. हेमराज, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (ऐसे मित्र सी करियारी) १२०३२६-१३४(+) औपदेशिक पद-संयमपालन, मु. हीरालाल, रा. गा. ६, पद्य, स्था., (चतुर नर देखो ग्यान) १२०४०८-१६५ (०) औपदेशिक पद समकित मु. प्रसन्नचंद, पुहिं. गा. ३, पद्य, म्पू., (समकित का करलो उजवाला ईस), १२०४०८-१७७(+) औपदेशिक पद- समकित, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (समकित से सुख पावता रे फिर), १२२००१-१२ 1 औपदेशिक पद-समता, मु. रत्नचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (विनवे सुमता नारि घर आवोनि), १२०४०८-१८६(+) औपदेशिक पद सम्यक्त्व, मु. धानत, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू., (धृग धृग जीवन सम्यक्त), १२०३२६-१११(+) औपदेशिक पद-साधु, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (कुकरीरा इंडा डरे बिलायसुं), १२१०९७-२ औपदेशिक पद-साधु, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुमे पाया हो एसो द्योने), १२०४३१-२(#) औपदेशिक पद-साधुसंगत, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (यारी कीयै साधो नाल पारी), १२०३२६-३५३ (+) औपदेशिक पद-साध्वाचार, मु. गोपालसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कैसे तुम गुण पावे आदजिन), १२३३७१-१ औपदेशिक पदसुखदुःख, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुडिं, गा. ४, पद्य, दि., (एक दिन व्याह कौ उच्छह हरष), १२०३२६-५१९(+) " औपदेशिक पद-सुलभज्ञान, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (ग्यान का राह सुहेला रे), १२०३२६-१६४(+) औपदेशिक पद-सुलभज्ञान, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. २, पद्य, दि., (सुनी जैनी लोगो ग्यान को), १२०३२६-१९६(*) " औपदेशिक पद-होली, पुहिं., गा. ५, पद्य, वै., इतर, (छेल मींडल केसे होली मचाई), १२१९६२-४ औपदेशिकवावनी- भलाई, मु. खेतल कवि, मा.गु, गा. ६४, वि. १७४३, पद्य, वे. (--), १२३९३८(३) औपदेशिक बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवदयाने विशे रमवु), १२१६५३-५ औपदेशिक भावना जकडी, जे.क. द्यानतराव अग्रवाल, पुहिं. सर्व ५, पद्य, दि., (बंधी साध वचन मन काया जगत), १२०३२६-६७(+) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास पुहिं. गा. ४, वि. १७वी, पद्य, म्पू., (चल चेतन अब उठकर अपने), १२०६१४-९३, १२२८९२-४, १२३६७१-२७) ५३९ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( बीत गयो नरभव को अवसर), १२३५१८-१ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुकृत की बात तेरे), १२०५६७-१ औपदेशिक लावणी, मु. देवचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (चतुर नर मनकुं रे समजानां), १२०६१४-८२, १२०६१४-८४, १२२८९२-३ औपदेशिक लावणी, मु. नवलराम, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (जीव मत मारे रे भाई धर्म), १२०४०८-३३(+) औपदेशिक लावणी-कोडी, मु. जीवणराम पुहिं. गा. ४, पद्य, वे (एक कोडि जगतमे अजब चिज हे) १२०४०८-११८(+) " For Private and Personal Use Only Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४० देशी भाषाओं की मूल कति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक लावणी-धर्मादिसार, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, श्वे., (सार वस्तु जीनधरम भविजन), १२१९१०-१(#) औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मपू., (संसारे जीव अनंत भवें), १२११३२ औपदेशिक सज्झाय, मु. कुंअर, पुहि., गा. १४, पद्य, मूपू., (पभणे प्रीतम कुं), १२०१९६(#$) औपदेशिक सज्झाय, मु. खूबचंद, पुहिं., गा.८, पद्य, श्वे., (--), १२०४०८-१२८(+$) औपदेशिक सज्झाय, मु. चंपालाल, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (दुनिया धनमे भुलि जाय रे), १२०४०८-११६(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. चिदानंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूप., (जग सपनेकी माया समज), १२११९८-१२ औपदेशिक सज्झाय, मु. चिदानंद, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (दान सुपातर मुनीकु), १२१४३१-४ औपदेशिक सज्झाय, सा. जडाव, पुहि., गा. १३, वि. १९५१, पद्य, श्वे., (मत खोवो रे हारे मत खावो), १२२१८८-१३ औपदेशिक सज्झाय, मु. जसरूप ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुवीसन कुवीसन लोकह सुण), १२१४३३-३ औपदेशिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (चेतन अब कछु चेतीए), १२०२०९-६(#) औपदेशिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नरभव नयर सोहामणो), १२०२०९-७(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (नाहलो न माने रे), १२०४७८ औपदेशिक सज्झाय, ऋ. दलीचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (मनवा समज ले रे वीर), १२२२९१-३ औपदेशिक सज्झाय, पं. दीपसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (कयो मेरो मान जीया आगे), १२२२४२-३ औपदेशिक सज्झाय, पं. दीपसागर, मा.गु., पद्य, मूपू., (सजन घर आ जा रे मीठा बोला), १२२२४२-२ औपदेशिक सज्झाय, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ६, पद्य, दि., (जीवा ते मेरी सार न जानी), १२०३२६-२४६(+) औपदेशिक सज्झाय, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. १६, पद्य, दि., (प्राणी आतम रूप अनूप है), १२०३२६-६५(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. नग, पुहि., गा.८, पद्य, श्वे., (अरज मेरी सुणज्यो आनंदया ए), १२०३२०-१२(+-#) औपदेशिक सज्झाय, मु. नग, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (एक काया अरु कामनी परदेसी), १२०३२०-३४(+-#) औपदेशिक सज्झाय, मु. नग, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (काया माया कारमी), १२०३२०-३६(+-#) औपदेशिक सज्झाय, मु. नग, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (थोरे दिन का जीवण विणजारा), १२०३२०-३५(+-#) औपदेशिक सज्झाय, मु. नाथुराम, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (दया बिन करणि सब बेगार), १२०४०८-२०(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. प्रेमजी, मा.गु., गा. १९, पद्य, मप., (जीभली सुण बापडली रे बोले), १२३६३९-१(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (जीभडलि सुण बापडलरि), १२०४६५ औपदेशिक सज्झाय, मु. भावविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सासरडे इम जइ रे बाइ), १२०८४२-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. भुवनकीर्ति, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (चतुर विहारी आतम माहरा), १२०१९२-२(2) औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचंद, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (इण कालरो भरोसो भाई), १२२१८०-३ औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (थारी फूल सी देह पलक), १२२२८४-३ औपदेशिक सज्झाय, वा. रत्नचंद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (ओ छे जनम जीवणो थोडो), १२२१८०-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. रामचंद्र, रा., गा. ११, पद्य, श्वे., (काई रे गुमान करे आप), १२०४०८-१५५(+), १२१४३१-३ औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८४०, पद्य, श्वे., (प्यारो मोहनगारो राज), १२०२४९-२(5) औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २४, वि. १८०८, पद्य, स्था., (श्रीजिण दे इसडो), १२१३९७(+#) औपदेशिक सज्झाय, मु. रेखराज, रा., गा. १६, वि. १९४२, पद्य, पू., (ख्याल तमासा कि सुणो नर), १२१६३२(+), १२०२२०-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मपू., (मंगल करण नमीजे चरण), १२३८००(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. शिवचंद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मप., (चेतन करीयैरे जिनजि), १२०६१७-४ औपदेशिक सज्झाय, मु. सुमति, मा.गु., गा. १२, पद्य, म्पू., (--), १२०५११-१(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. हीमत, मा.गु., गा. ९, वि. १९१५, पद्य, मूपू., (भलाई करले रे बंदा इण), १२०४०८-१५६(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. हीरालाल ऋषि, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (मुरख नरमायो मे गर्भ रह्यो), १२०४०८-१२०(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. हीरालाल, रा., गा. ११, वि. १९६२, पद्य, स्था., (चालो चालो मुगतगढ माही), १२२२८४-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. हीरालाल, पुहिं., गा.८, पद्य, स्था., (माया मत कर तु मेरी), १२०४०८-११९(+) For Private and Personal Use Only Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (आतम दमवो रे प्राणिया), १२१८०३-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (उंडोजी अर्थ विचारीय), १२२९०६-१(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (उडोजी अर्थ विचारजो उडा), १२२४५९ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, श्वे., (काम नही आसि रे माया तज), १२०४०८-१२३(+$) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (काल गयो जाण्यो भरतार), १२०५८४-३ औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (चोरि तजे ते मानविए पामे), १२०४०८-६२(+) औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (जात लाभ कुल रूप तप बल), १२२७५६-२ औपदेशिक सज्झाय, रा., गा.११, पद्य, श्वे., (तुं महारो बाबो रे बाबो), १२२१८८-३ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (दया धर्म पामे तो कोइ), १२०४०८-२३(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (धीरग तेरी जरणी रेतां करे), १२१४३३-४ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (भुखा घरनी जाइ भुडी), १२३७९० औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. १०, पद्य, मप., (मत खावो रे वोर जलम वीगडे), १२२९०६-६(+) औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (माटी की गणगोर बणाई), १२०५८४-४ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (मान न किजे रे मानवि छनु), १२०४०८-१६६(+) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (यो संसार खारसागर बीचे काल), १२०३२०-५३(+-#) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मप., (सरवर सरवर वन नही वत वत), १२३६३९-२(2) औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. १३, पद्य, मपू., (सासणनायक दीयो उपदेश), १२०९८०-४(+) औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुन चेतन एक बात हमारी तीन), १२०३२०-५२(+-#) औपदेशिक सज्झाय-५ इंद्रिय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (चंचल जीवडलारे तु तो), १२०४०८-७४(+) औपदेशिक सज्झाय-अज्ञानता, मु. अमी ऋषि, पुहिं., गा.७, पद्य, श्वे., (क्यों नाहक कष्ट), १२०४०८-२२(+) औपदेशिक सज्झाय-अनंतकायत्यागे, मु. भावसागर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (अनंतकायना दोष अनंता), १२०४०२-१३, १२२६३३-६ औपदेशिक सज्झाय-अनर्थदंड विरमण, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (सगुण नर तजो अनर्थादंड), १२१८७३-६(+) औपदेशिक सज्झाय-अभिमानपरिहार, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (काय करे अभिमान जीवरवा), १२२००१-५ औपदेशिक सज्झाय-असारसंसार, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (मत कर कोई से बंदि), १२०४०८-१६३(+) औपदेशिक सज्झाय-असार संसार, मु. नग, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (इन जग में कोई नहीं अपना), १२०३२०-११(+-#) औपदेशिक सज्झाय-अहंकारपरिहार, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (नीली मटिया मेल चुणायो जीव), १२१०९६-४(+) औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (आउखु तुट्याने सांधो), १२०४६०-९ औपदेशिक सज्झाय-आर्तध्याननिवारण, मु. ज्येष्ट, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (चेतन तुं ध्यान आरत), १२१२४६-२ औपदेशिक सज्झाय-कटुवचन त्याग, मा.गु., गा. २३, पद्य, पू., (कड़वा बोला अनरथ थासी प्रभ), १२१२५६-२ औपदेशिक सज्झाय-कपटविषयक, रा., गा. १८, पद्य, श्वे., (एकदने वनमा वाघन लागी), १२१४७२-२ औपदेशिक सज्झाय-कपटी, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (कपटी मीनषरो विसवास न किजे), १२०७४३-१(+) औपदेशिक सज्झाय-कपटी पुरुष, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (सामलजो सतिया पुरस तणो), १२०४०८-९७(+) औपदेशिक सज्झाय-कपटोपरि, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. २४, वि. १८३३, पद्य, श्वे., (कपटी माणसरो विश्वास), १२१०८१-२(+) औपदेशिक सज्झाय-कर्मोदये सुखदुखविषये, मु. ज्ञान, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुख दुख सरज्या पामीय), १२१५९६-३ औपदेशिक सज्झाय-काया, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ६, पद्य, दि., (काया तुं चले संग हमारे), १२०३२६-२४५(+) औपदेशिक सज्झाय-काया, मु. रूपचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, स्था., (काया हो कामण जीवजी), १२१६१७-१(+) औपदेशिक सज्झाय-कायाजीव, मु. भावसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, म्पू., (सुणि ससनेहा हो साहिब), १२०४०२-१९ औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. हीरालाल, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (काची रे कायाने काची), १२०४०८-१६७(+) औपदेशिक सज्झाय-क्रोध, पुहि., गा. ७, पद्य, मप., (क्रोध है अग्नि की ज्वाल), १२२००१-४ For Private and Personal Use Only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कडवां फल छे क्रोधनां), १२०४०८-१३८(+), १२०७८९-१५(+#), १२१५९२-१ औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (क्रोध कषाय न मै करो इह), १२०३२६-४३(+) औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (क्रोध न करिये भोला), १२०४०२-१४, १२२६३३-२ औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (क्रोध मत किजो रे प्राणि), १२०४०८-१३९(+) औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (हां क्रोध है जग दुःखकारा), १२२००१-२ औपदेशिक सज्झाय क्षमा, पुहिं., पद्य, मपू., (खिमा करो भवियण खरी जंपै), १२३८६८(#$) औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. ७२, पद्य, मपू., (उत्पति जोज्यो आपणी), १२३९४८(+), १२२४२३-७(s), १२२६९५-१(६) औपदेशिक सज्झाय-गुरुगुणमहिमा, रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (आजरो दीयाडो जी भलाई सूरज), १२०२४३ औपदेशिक सज्झाय-गुरुवाणी, ग. काह्नजी, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सीख सुणीजै रे हितकारी), १२३४७९-६ औपदेशिक सज्झाय-गौरक्षा, सा. जडाव, पुहि., गा. २६, वि. १९६८, पद्य, श्वे., (सुणो मुलक माहाराजा गउ), १२०४०८-४०(+) औपदेशिक सज्झाय-चरखा, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (सुण चरखा वालि चरखो), १२११४०-२(2) औपदेशिक सज्झाय-चरखा, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (गढ सुरतसुं कबाडी आयौ), १२१९६२-१ औपदेशिक सज्झाय-चेतन, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (चेतन अनंत गुणाको रे), १२१५४६-२($) औपदेशिक सज्झाय-जीव, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सजी घरबार सारु मिथ्य), १२१५८१-२(+) औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, मु. करण, मा.गु., गा. १९, पद्य, श्वे., (प्रति कायारि लुठ मजाई), १२०४०८-४५(+) औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (चेतन जो सुख चावे थारा जीव), १२०४०८-२६(+) औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (जीवदया रो सिर सेव रो), १२०४०८-१९(+) औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, पुहिं., गा. ९, पद्य, श्वे., (जीवराज तन को भाइ रे जीव), १२०४०८-३१(+) औपदेशिक सज्झाय-जीवदया, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (सुखकर सकल धर्म को सार हे), १२०४०८-३०(+) औपदेशिक सज्झाय-जीवशिखामण, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मप., (जोने तु पाटण जेवां), १२१५८१-१(+) औपदेशिक सज्झाय-जीवोपरि, अखेराम, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (ओ भवरत्न चीतोमण सरखो), १२३८२५ औपदेशिक सज्झाय-तप, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (धन धन धन धन धन उन मुनियो), १२१८०३-१ औपदेशिक सज्झाय-तृष्णा , क. ऋषभ, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (त्रसना अति जुगमे बुरि रे), १२०४०८-११५(+) औपदेशिक सज्झाय-तृष्णा, ऋ. केवल, पुहिं., गा. ४, वि. १९५९, पद्य, स्था., (तृष्णा तजनी हे अतीदुकर), १२२२८५ औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, मु. नवीदास, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (तु मत मारे रे मुझकू), १२२१८८-२ औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, मु. नवीदास, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (तु मत मारे रे वीरा०), १२०४०८-३२(+), १२२१८८-१ औपदेशिक सज्झाय-दयापालने, मु. हीरालाल, रा., गा. १३, वि. १९४४, पद्य, स्था., (मारी दयामाता थाने), १२०४०८-४९(+) औपदेशिक सज्झाय-दान, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. ६, पद्य, स्था., (दान सुपातर से जीव तिरिया), १२२२९७-२(+) औपदेशिक सज्झाय-दानशीलतपभावना, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा.८, पद्य, दि., (जैनधरम धर जीयरा सो च्यार), १२०३२६-२४०(+) औपदेशिक सज्झाय-धर्मदाता गुरु, पुहिं., गा.८, पद्य, श्वे., (में तेरे चरण लागु गुरु), १२०३२०-५(+-#) औपदेशिक सज्झाय-नरभव, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शुभवेला बीती जाय छे), १२२३०३-२ औपदेशिक सज्झाय-नरभव दर्लभता, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चेतन चेतो चितहिं), १२३४१०-८(#) औपदेशिक सज्झाय-नारी, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (राए प्रदेसिने हतिसरे), १२०४०८-७९(+) औपदेशिक सज्झाय-नारी परिहार, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (घरम आव हकम चलाव देखो कामण), १२०२५३(-2) औपदेशिक सज्झाय-निंदक, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २८, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (नवरो माणस तो नंदक), १२०८७१-४ औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (म कर हो जीव परतांत), १२१४८१-५, १२१७७९-१(#) For Private and Personal Use Only Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ ५४३ औपदेशिक सज्झाय-निदापरिहार, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (नंद्या नवि कीजें कही), १२०२४८-२(#) औपदेशिक सज्झाय-निद्रात्याग, सा. जडाव, रा., गा. १२, पद्य, श्वे., (दीन कोर धंधो कर परनींद्या), १२२१८८-२२ औपदेशिक सज्झाय-पतिपत्नी, रा., गा. ९, पद्य, श्वे., (घर मै धन छे सामे ठोरे साख), १२३५५८-१ औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुण सुण कंता रे सिख), १२०४६०-११ औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. जेतसी ऋषि, मा.गु., गा. १७, वि. १८७३, पद्य, श्वे., (कहै वभीषण सुण द्वो रावण), १२०९४८-३(+) औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, मु. देव, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (सुण मारी चतुर सुजाणे), १२१०९८-२(+) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जीव वारु छु मोरा वालमा), १२२१२७(+), १२२८०७-१(+) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. सेवाराम, मा.गु., गा. ९, वि. १८८३, पद्य, श्वे., (रावण मोटो राय कहीजे), १२१९८२-२ औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (परनारिसु लगावतो प्रेम), १२०४०८-१४८(+) औपदेशिक सज्झाय-परस्त्री परिहार, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (धन धन पुरस ज्याने प्रहरि), १२०४०८-९९(+) औपदेशिक सज्झाय-पापनिवारण, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (पाप है दुःखकारी देखो), १२१८७३-५(+) औपदेशिक सज्झाय-पुण्यप्रभाव, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (पुन प्रमाणे पामीयौ रूडौ), १२०७४३-३(+) औपदेशिक सज्झाय-बंधु, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. १०, वि. १८वी, पद्य, दि., (कीजौ हौ भाइयन सौ प्यारा), १२०३२६-४२(+) औपदेशिक सज्झाय-ब्रह्मचर्य, मा.गु., पद्य, मप., (वीषीया रस जनम गयो री), १२१२५६-३($) औपदेशिक सज्झाय-ब्रह्मचर्यव्रतविषे, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (ब्रह्मव्रत सुखकारी पालो), १२१८७३-३(+) औपदेशिक सज्झाय-मन, मु. रतनचंद, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (कीसै वीरह दे गाउरे), १२२१८०-१३ औपदेशिक सज्झाय-मनस्थिरीकरण, मु. रूपविजय, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मूप., (मन थिर करजो रे समकित), १२१८०१-६ औपदेशिक सज्झाय-ममत्वपरिहार, मु. प्रेम, पुहिं., गा. ६, पद्य, मपू., (ममत मत किजो राज मन में), १२०४०८-१६२(+), १२१८७८-३ औपदेशिक सज्झाय-माननिषेध, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ७, पद्य, स्था., (मानीडा मत कीजो मान), १२०४०८-१६४(+) औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रे जीव मान न कीजीए), १२०७८९-१६(+#), १२१५९२-२ औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, पंडित. भावसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूप., (अभिमान न करस्यो कोई), १२०४०२-१५, १२२६३३-३ औपदेशिक सज्झाय-माया, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (माया रो मजुर बंदो क्या), १२०४०८-१२२(+) औपदेशिक सज्झाय-मायाकपट, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (कुडकपट कर माया मेली), १२२१८०-४ औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समकितनुं मुल जाणीये), १२१५९२-३ औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (माया मूल संसारनो), १२०४०२-१६, १२२६३३-४ औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०, वि. १८वी, पद्य, मूप., (माया कारमी रे माया), १२०९४९ औपदेशिक सज्झाय-मुक्तिमार्ग, मु. करण, रा., गा. २३, पद्य, श्वे., (मुगतीरो मारग दोयलो), १२२३०३-१ औपदेशिक सज्झाय-मूर्ख पुरुष, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (ध्रग ध्रग कुलवंति थारा), १२०४०८-९८(+) औपदेशिक सज्झाय-मूर्खप्रतिबोध, मु. मयाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (ज्ञान कदि नवि थाय), १२०८५८(+), १२०८४२-२ औपदेशिक सज्झाय-मृगतृष्णा, मा.गु., पद्य, श्वे., (मीठे मीठे काम भोग में फंस), १२२२९३-७($) औपदेशिक सज्झाय-रसनालोलुपतात्याग, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (बापलडी रे जीभलडी तुं), १२०८४९-१(#) औपदेशिक सज्झाय-लाज, मु. लाल, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (लाज की जहाज डुबाई के देखो), १२२२९३-३ For Private and Personal Use Only Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय-लीखहत्यानिषेध, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. १२, वि. १६७५, पद्य, मूपू., (सरसति मति सुमति द्यो), १२३४०८-१(#) औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तमे लक्षण जो जो लोभ), १२१५९२-४ औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, पू., (लोभ न करीये प्राणीया), १२०४०२-१७, १२२६३३-५ औपदेशिक सज्झाय-वनमाली, मु. पद्मतिलक, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (काया रे वाडी कारमी), १२२०७३-१(#) औपदेशिक सज्झाय-वर्णमालागर्भित, मु. हंसराज, पुहि., गा. ७, पद्य, मप., (मानो सतगुरु की सीख भविक), १२२२९७-४(+) औपदेशिक सज्झाय-वैयावच्च, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (मुनिसेवा सुखदाई सेवा किया), १२१८७३-७(+) । औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. कविदास, मा.गु., गा. १२, वि. १९३०, पद्य, मूपू., (तुंने संसारसुख केम), १२१५८०(+) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा.८, पद्य, दि., (कौन कहै घर मेरा भाई जे जे), १२०३२६-२४४(+) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., गा.७, पद्य, मप., (आज की काल चलेसी रे), १२३८२४-२(+#) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. साधुहंस, मा.गु., गा. १४, पद्य, मप., (सुणि सिखामण जीवडा म करिसि), १२०१६७-१ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मा.गु., पद्य, मूपू., (यो संसार असार छे जी मनही), १२१६६७(5) औपदेशिक सज्झाय-व्रतपालन, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (नियम व्रतने धारो हर्षसुं), १२१८७३-४(+) औपदेशिक सज्झाय-व्रतपालन, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (व्रत है सुखकारी पालो), १२१८७३-१(+) औपदेशिक सज्झाय-शीलपालन, मु. चौथमलजी; मु. खूबचंद, पुहिं., गा. १०, पद्य, मप., (सिलरतन्न का करो), १२०४०८-१०१(+) औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, मु. खेमसागर, मा.गु., सज्झा. १, पद्य, श्वे., (देखो काम माहाबली जोध), १२०४०८-१०६(+) औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (शील सोहामणु पालीए), १२३४१०-९(#) औपदेशिक सज्झाय-शुद्धाचार, आ. रत्नकीर्तिसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अटवी मांहिं एकद्र हछि), १२०२६४-३(+) औपदेशिक सज्झाय-शोक्य, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (सोक तणो दुख अति गणो रे), १२०४०८-१००(+) औपदेशिक सज्झाय-श्रद्धा, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १९७२, पद्य, श्वे., (सरधा सुधि राख विना सरधा), १२०४०८-१८९(+) औपदेशिक सज्झाय-श्रावकश्राविका, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (समकितधारी श्राविका), १२१८०१-२८ औपदेशिक सज्झाय-संवर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (वीर जिणेसर गौतमने), १२०४६०-१० औपदेशिक सज्झाय-संसार, मु. चेतन, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (अरे प्राणी आपा आप), १२१९८३-१ औपदेशिक सज्झाय-सतीप्रबोधगर्भित, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (सतिया असडि परुपो यो मत), १२०४०८-१८४(+) औपदेशिक सज्झाय-सत्यवचन, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (जुठनो त्याग ज करो ए साच), १२०४०८-५४(+) औपदेशिक सज्झाय-समकित, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १३, वि. १८६९, पद्य, श्वे., (निरमल सुधा समकित जिण पाइ), १२०४०८-१७३(+), १२२१९१-१(६) औपदेशिक सज्झाय-समकित, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (जिन कि वाणि सुणजो जि), १२०४०८-१८३(+) औपदेशिक सज्झाय-समकित, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (समगत धारो रे पामो मोक्ष), १२२००१-१३ औपदेशिक सज्झाय-समता, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (देहकुट बधन कारिमु), १२०२५५(+#), १२२५२७-१(+$) औपदेशिक सज्झाय-समता, मा.गु., गा. २९, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवर उपदेसमे समतानो), १२०४०८-१४६(+) औपदेशिक सज्झाय-साधुधर्म, रा., पद्य, श्वे., (सार धर्म है प्रथम साधु को), १२२३९९(६) औपदेशिक सज्झाय-साध्वी, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. २३, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (थे सुणजो हे आरजीया), १२१६५३-२ औपदेशिक सज्झाय-सामायिक, मु. उदयवर्धन, मा.गु., गा. १४, पद्य, ., (सदगुरु चरणकमल प्रणमीनई), १२२७३९-२(+#) औपदेशिक सज्झाय-सासवह, मा.ग., गा. ५, पद्य, श्वे., (मे तो न्यारा होसाजी के मे), १२०४०८-९६(+) औपदेशिक सज्झाय-सकृत, मु. चोथमल ऋषि, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (सुकरत कर ले रे माया लोभी), १२०४०८-१२१(+) औपदेशिक सज्झाय-स्थिरदृष्टि, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (दृष्टि थिरामांहे), १२१८०१-७ For Private and Personal Use Only Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ औपदेशिक सज्झाय-हितशिक्षा, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (मिटे नही थोर पुद्गल केरी), १२१८७३-२ (+) औपदेशिक सज्झाय-हितोपदेश, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (नगर रतनपुर जाणीइं), १२३५२२(+) औपदेशिक सवैया, मु. उदैराज, पुहिं., गा. ९, पद्य, म्पू. (किण ही नाम मुख लीजे किण), १२१७७८-१(३) औपदेशिक सवैया, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ५२, पद्य, मूपू., ( ॐकार अगम अपार प्रवचन), १२११९८-१(5) औपदेशिक सवैया, मु. . चेतन, पुहिं. गा. २, पद्य, भूपू (पूरन ब्रह्म निरंजन साहिब), १२१९८३-४ औपदेशिक सवैया, श्राव. छज्जु, पुहिं. गा. १, पद्य, छे., ( रहि नव गदधरि रावण किस), १२०४०८-१२७(+) , " औपदेशिक सवैया, जै.क. बनारसीदास, मा.गु., गा. १, पद्य, दि., (ज्युं मत हीण विवेक), १२०३२०-६ (+#), १२१४८९-२(+) औपदेशिक सवैया, मा.गु. सबै २, पद्य, म्पू. (केलि को नास भयो फलागत), १२३५५८-४ " औपदेशिक सवैया, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (ना जानु मेरी काहा गत होई), १२०३२०-८(+#) औपदेशिक सवैया, मा.गु., सबै १, पद्य, भूपू (सुनजी प्यारे खोवो छो दिन), १२०३२० ९(+) औपदेशिक सवैया- काया, पुहिं, सवै. ४, पद्य, खे, (काया सी नगरी में), १२३०६०-३(+०) י: औपदेशिक सवैया-वैराग्य, श्राव. छाजू पवार, मा.गु., सवै. १, गद्य, जै., वै., (दसन के दस गए ए वीसन), १२३०६०-२(+#) औपदेशिक सवैया संग्रह, पुहिं., गा. १७, पद्य, श्वे. (हां रे राजा वीर भार), १२१०४३-६ "" औपदेशिक सवैया संग्रह- क्रोधत्याग, मु. लालचंद, पुहि., पद. ५, पद्य, वे (क्रोध हे अनरत मुल क्रोद), १२०४०८-१३६ (+) , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक सवैया-साधु, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (करमे पात पात घात को), १२३९५८-३ औपदेशिक हरियाली, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (कहेयो रे पंडित ते), १२१४८८(०) (२) औपदेशिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (दिसे जाणि ते चेतना), १२१४८८(#) औपदेशिक होली, रा., गा. १५, पद्य, श्वे. (फागणमे खेले होलि इण), १२२१८२ " औपदेशिक होली पद, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू., (होरी खेलो रे भविक) १२२०२६-१(+), १२१५१९-१८(१) " औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., इतर, (घोडानें चर्म पड्या), १२१४२५-३ औषध संग्रह *, मा.गु., गद्य, वै., इतर, ( लूंग टा१ जाईफल टा२), १२४००६-२, १२२३१४-३(#) कंसकृष्ण विवरण लावणी, मु. विनयचंद ऋषि, पुहिं., ढा. २७, गा. ४३, पद्य, श्वे., (गाफल मत रहे रे मेरी), १२१३८४(+#$), १२०१६९-१ कक्कावली पद, रा. गा. ३५, पद्य, श्वे. (कका रे भाई काम करता). १२०५६७-२ "" , कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकदा समयनिं विषइं), १२०७३७ कपिलऋषि सज्झाय, मु. खूबचंद, पुहिं. गा. ७, पद्म, वे. (वंदू नीत कंपील ऋषी), १२०४०८-११०(+) " कबीर वाणी, कबीरदास संत, पुहिं., वि. १५वी, पद्य, वै., इतर, (ऐसी वाणी बोलिए मन का), १२१७१८-७ कमलावतीसती सज्झाय, मु. चोथमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, ओ., (किण साहुकार रे घर आरो), १२०९१२-२३(+) कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., ढा. ३१, गा. ५५५, वि. १७२१, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदादायक), १२०८१७(+), १२१३४१(+$), १२२१०५ (+), १२३८४५ (+$), १२११६९(#), १२२४७८($) י: करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू (चंपानगरी अतिभली हु), १२०४६०-१६ कर्मउदय पद-गुणस्थानकगर्भित, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. २, पद्य, दि., (इक सौ सतरै इक सौ ग्यारै), १२०३२६-४५० (+) कर्मउदीरना पद-गुणस्थानकगर्भित, जे.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., ( इक सी सतरे एक सी ग्यार), १२०३२६-४५१(०) कर्मग्रंथ पदार्थ विचार, मा.गु., गद्य, खे, (कर्मनी मूलप्रकृति ८ तेहना) १२३०२७/३) " १२१४५२ -३ (+), १२०४७५( कर्मपच्चीसी, मु. हर्ष ऋषि, मा.गु., गा. २६, पद्य, म्पू. (देव दानव तिर्थंकर) कर्मफल सज्झाय, मु. चोवमल ऋषि, पुहिं. गा. १४, वि. १८६२, पद्य, वे (सजम लीयो महावीर जी मन चित), १२१८५३(+) कर्मविपाकफल सज्झाच, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू. (देवदाणव तीर्थंकर), १२०९८०-६(+), १२०४०२-१८, १२२२३५ For Private and Personal Use Only ५४५ Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ कर्मसत्ता पद-गणस्थानकगर्भित, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (पहलै सौ अठताल दजै सौ), १२०३२६-४५२(+) कलावतीसती चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. १६, वि. १८३०, पद्य, श्वे., (जुगमंद्र जिन जगतगुरु), १२११०२-२(+), १२१९१७(+), १२२२३७ कलावतीसती सज्झाय, मु. हीरविजय, मा.ग., गा. १३, पद्य, मप., (नयरी कोसंबीनो राजा), १२२३१९ कलियुग पद-जिनचैत्य, श्राव. चूहडमल, पुहि., गा. ३, पद्य, दि., (पंचकाल विषै ए श्रावकधर्म), १२०३२६-३३७(+) कलियुग सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि पाय), १२०१९५(5) कलियुग सज्झाय, मु. रामचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (तारक धर्म जिनेश्वर), १२१४३१-२,१२२१९१-४ कलियुग सज्झाय, मु. राम, रा., गा. ९, पद्य, श्वे., (हलाहल कलजुग मति जोनो रे), १२२१९१-५ कान्हडकठियारा प्रबंध, मु. जेतसी ऋषि, मा.गु., ढा. ८, वि. १८७४, पद्य, स्था., (अरिहंत सिद्ध समरु), १२१६०३-१(+S), १२२४४०(+), १२२१७९ कान्हडकठियारा रास-शीयलविषये, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ९, वि. १७४६, पद्य, मप., (पारसनाथ प्रणमं सदा), १२२४१९(#$) कामदेव श्रावक कवित्त, मा.गु., का. १, पद्य, मूप., (कामदेवजी काम मौटौ ज कीयौ), १२३३३४-१(+) कायस्थिति २२ द्वार वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव १ गई २ इंदिय ३), १२१०७२-१, १२१९९९, १२१०८७-२(5) कायस्थिति बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव गइ इंद्रिय काय), १२१०१२-२(+) कार्तिकसेठ चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, गा. ७०, पद्य, मूपू., (प्रणमु पंच परमेश्वर), १२२४१३-३(+) कार्तिकसेठ पंचढालिया, मु. जैमल ऋषि, मा.ग., ढा. ५, गा. ९१, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिध साधु सर्व), १२३८६७-२($) कालसाठिका, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ५९, वि. १८वी, पद्य, दि., (काल इव क भेद वह जीत भये), १२०३२६-५५६(+) कालिकाचार्य कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (अल्त भगवंत उत्पन्न), १२२७६९-२(+$) । कालिकाचार्य कथा*, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां पूर्वइ स्थविरावली), १२३५३७-२(+$) कालियनाग संवाद पद संग्रह, पुहिं., गा. ३४, पद्य, वै., (यु कर बोले निंदकसोर नागण), १२०४०८-१९३(+) कालोदधिपरिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (कालोदधि सूची उनतालीस लख), १२०३२६-४७७(+) कीर्तिसागरमुनि का जिनमुक्तिसूरि के नाम पत्र, मु. कीर्तिसागर, मा.गु., गद्य, श्वे., (स्वस्ति श्रीपार्श्वजिन), १२१९०९-३(#$) कुंडरीकपुंडरीक चौढालिया, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (तेणे काळे तेणे समे), १२४०००(+) कुंडलियाबावनी, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. ५७, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (ॐनमो कहि आदिथी अक्षर), १२०२०७-१(#$) कुंथुजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (अब मोहि तारि ले कुंथजिनेस), १२०३२६-३४७(+) कुंथुजिन स्तवन, सा. जडाव, रा., गा. ९, वि. १९५३, पद्य, श्वे., (कुंथुजिनेसर नीत नमू ज्यां), १२२१८८-१७ कंथजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.ग., गा. ६, पद्य, मप., (रात दिवस नित सांभरो रे), १२३८४९-२, १२३३९९-१(#) कुंथुजिन स्तवन, मु. मलुकचंद, रा., गा. २३, वि. १८६१, पद्य, श्वे., (लख चोरासी भर दुख), १२२२७७ कुंथुजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कुंथु जिणंद करुणा कर), १२०३२०-३८(+-#) कृपणपच्चीसी, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (एक समय देहुरा मैं पंच सब), १२३५६८-१(+#$) कृष्णबाललीला पद, पुहि., गा. ५, पद्य, वै., (गिरधर खेल रया ब्रिज वासि), १२०४०८-१९२(+) कृष्णभक्ति कवित्त, ब्रह्म, मा.गु., का. १, पद्य, वै., (व्रजनाथ कइ साथी सबइ सखिया), १२१७१८-५ कृष्णभक्ति गीत, मीराबाई, मा.गु., गा. १४, पद्य, वै., (औषधीयो वताय काया तो मारी), १२२२९७-१(+) कृष्णभक्ति गीत, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (प्रेम पिया घर आया अणिमा), १२३४१४-२(+) कष्णभक्ति दोहा संग्रह, पुहिं., गा. १८, पद्य, वै., (काना कुंडल जगमगे माथे), १२०४०८-१९४(+) कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., (पायोजी मै तो हरि को भजन), १२२२९३-२ कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., (मेरे मन गिरधर वसीया तुलसी), १२२२९३-१ कृष्णभक्ति पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (लीनो रे मनमोहन हर के लीनो), १२३५९१-३ कृष्णभक्ति पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., (वाट घाट मोयें रोकत डोलत), १२३५९१-२ For Private and Personal Use Only Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ ५४७ कृष्णभक्ति पद, पुहि., गा. ३, पद्य, वै., (वाला वाला डारीडा चंपौ फुल), १२०२३९-४(-) कृष्णभक्ति पद, पुहि., गा. ८, पद्य, वै., (सुण ये गोरि अंग मरोरि), १२०४०८-१९५(+) कृष्णमहाराजा ढाल, मा.गु., ढा. १८, पद्य, मपू., (नेमनाथ समसाँ), १२०५८४-२ कृष्णवासुदेव लावणी, मु. हीरालाल, रा., गा. ५, वि. १९५५-१९५६, पद्य, श्वे., (पुरी द्वारिका), १२२३१२-२ कृष्ण वासुदेव सज्झाय, मा.गु., गा. ४१, पद्य, पू., (रे नान्या राश माँड्यो रे), १२२४७२-२($) केश कल्प, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (आंबारी अंबी पइसा ८), १२३७६७-२(+) केशरियाजी रास, ग. तेजविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. १६८, वि. १८७०, पद्य, मपू., (सरस वचन वरसति हंस), १२०९५८ केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., ढा. ४१, गा. ५९४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीअरिहंत), १२३०५९(+), १२२८९५() केशीगौतमगणधर संवाद, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), १२२५७४-२(+$) केशीगौतमगणधर सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ए दोय गणधर प्रणमीये), १२३४१४-१(+) केसरआर्या गुरु भास, सा. सहिजा आर्या; श्रावि. कपूरदे, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (सरसत सामण सहीयां), १२१७३४(5) कोकसार, आ. नर्बुदाचार्य, मा.गु., प्रका. १०, गा. १४९२, वि. १६५६, पद्य, मप., इतर, (मातंगी मति आपीये), १२३२२७(+#$) कोणिकराजा चौपाई, मु. चोथमल, मा.गु., ढा. २०, गा. २४९, पद्य, श्वे., (सासणनायक दाखीयो स्वार्थी), १२०८९४(+), १२१२१६(+) कोणिकराजा चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. २७, पद्य, श्वे., (आठ भवा पहलु हंता केटक), १२२४५४-१(#) कोलाचलइक्षुकारपर्वतमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (हिमवन हैं एक भाग महाहिमवन), १२०३२६-४६६(+) क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, पू., (आदर जीव क्षमागुण), १२०२२२(+#) खंडाजोयण द्वारविचार, मा.गु., गद्य, मपू., (खंडा १ जोयण २ वासा), १२३९२२-१(+) खंडितप्रतिमा विसर्जन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम जिनपंजरनी गाथा भणी), १२०४७७-२(#) खंधकमुनि चौढालिया, मा.गु., ढा. ४, गा. २४, पद्य, मूप., (सावत्थी नगरी सोहामणी), १२१४५२-५(+$) खंभात इतिहास-सं.१८८३ जैन घरों की संख्या, मा.गु., गद्य, मूपू., (सोमचंद जिवराज घर४), १२०२००(#) खामणा कुलक, मु. अमीकुंवर, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (अरिहंतजीने खामणां), १२१०७८-३ खामणा सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १४, पद्य, स्पू., (अरिहंतजीने खांमणाजी जेहना), १२३७१०-१ खारिनदी कवित्त, रा., गा. १, पद्य, इतर, (सारि नदियासू न्यारि तु), १२०२२८-३ गंगकवि पद, गंग, पुहि., गा. १, पद्य, वै., इतर, (गंग प्रवाह वहै अजी), १२३९७०-४ गंगदेव रास, मु. ऋषभ ऋषि, मा.गु., पद्य, श्वे., (श्रीनेमिश्वर साहिबा सिध), १२१८२३($) गच्छमर्यादा पट्टक-विजयसेनसूरि आदि अनुमत, मा.गु., गद्य, स्पू., (श्रीविजयदानसूरि), १२२४४५-२(+) गच्छाधिपति कान्हजी घग्घर निसानी, मु. खेम, पुहि., गा. १७, पद्य, मपू., (प्रणमी जगनायक सदगुरु पायक), १२२९२४-१(#) गजसिंघकुमार रास, मु. सुंदरराज, मा.गु., खं. ४, गा. ४३४, वि. १५५६, पद्य, मूपू., (पासजिणेसर पाय नमी त्रेवीस), १२१३०१ गजसिंघ चरित्र, मु. आसकर्ण ऋषि, रा., ढा. ४६, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (अरिहंत अतिसैवंत घणु), १२१०८२(+) गजसुकुमालमुनि चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., ढा. ३०, गा. ५००, वि. १६९९, पद्य, मूप., (नेमीसर जिनवरतणा चरण), १२३९११(+), १२२८४७ गजसुकुमालमुनि रास, मु. शुभवर्द्धन शिष्य, मा.गु., गा. ९१, पद्य, मपू., (देस सोरठ द्वारापुरी), १२३०९८(+#$), १२३७५४(+$), १२२०८० गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २३, वि. १८५८, पद्य, श्वे., (गजसुखमाल देवकीनंदन), १२२०६१-२(+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. जेठमल, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (वंदु गजसुकमाल महामुन), १२०७८९-३(+#) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., ढा. ३, गा. ३८, पद्य, मूपू., (द्वारिका नगरी ऋद्धि), १२३५४७-१(+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. न्याय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (एक द्वारकानगरी राजे), १२०६४२-२ For Private and Personal Use Only Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (द्वारिकानगरी अति भली), १२०७८९-२(+#) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. मकनमोहन, मा.गु., ढा. २, गा. ४३, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (एक घर घोडा हाथीयाजी), १२१२६९-१ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (श्रीजिन आया हो सोरठ), १२१७४४-१ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. रामकृष्ण ऋषि, मा.गु., गा. २२, वि. १८६७, पद्य, श्वे., (सोरठ देस द्वारकानगरी), १२२५२१-१(+$) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. लबधि, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (पुत्र तुमारा रे देवक), १२३४१०-२(#) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मूप., (वाणी श्रीजिनराज तणी काने), १२१२२२(+), १२२८९८(+) गणधर जन्मस्थल मातापितादि वर्णन, मा.गु., को., मूपू., (इंद्रभूति मगधदेशे), १२३६४०-१ गणधरमहिमा पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (चवदे पूर्वधार कहीये), १२१२३०-१(+) गणधरवाद, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीमहावीरदेव केवल), १२१५९८(६) गणेशभक्ति गीत-सपंखरो, मु. पेम, मा.गु., गा. ४, पद्य, जै., वै., (सदा सेवियै सुचंगो रंगो), १२०२२८-२ गर्भावास उत्पत्ति विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (स्त्रीनी नाभि हेठे), १२१०९०-२ गिरनारतीर्थ पद, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (शिखर गिरनार जाना हो), १२०६१४-८० गिरनारशजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सारो सोरठ देश देखाओ), १२१५१९-२९(#) गुणकरंडकगुणावली रास-बुद्धिविषये, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. २६, गा. ४९३, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत अनंत गुण सेवे), - १२२५८१(+#), १२३५०७(+) गुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., अ. ४, गा. ४२५, वि. १५७२, पद्य, मूपू., (शशिकरनिकर समुज्वल), १२२७७७, १२२८५८ गुणसुंदरी कथा, मा.गु., गद्य, मूप., (--), १२१०५७(#$) । गुणस्थानक पर्याप्ति पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (प्रजापति गुनथान सब), १२०३२६-४४६(+) गुणस्थानक प्राण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (मिथ्या मांहि तीन चार), १२०३२६-४४७(+) गुणस्थानके बंधोदयोदीरणासत्ताप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ओघे वीसासउ प्रकृति), १२३१०७(+) गुणावलि चौपाई, ग. गजकुशल, मा.गु., ढा. २९, गा. ५१९, वि. १७१४, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवे), १२३३२२(+), १२३०७२(#$), १२३९५०(#S) गुरु अष्टप्रकारी पूजा, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., चौपा. १०, पद्य, दि., (चहूं गति उख सागर विषै), १२०३२६-५७३(+) गुरुगुण गंहुली, मु. हीरालाल, मा.गु., वि. १९३६, पद्य, श्वे., (गुरुजीने ज्ञान दियो भारी), १२२२३१(६) गुरुगुण गहुंली, सा. जडाव, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (भूल मत जाज्योजी गुरु बिसर), १२२१८८-११ गुरुगुण गहुंली, जै.क. भूधर, पुहिं., गा. १३, पद्य, दि.?, (ते गुरु मेरे उर वसे), १२०८८६ गुरुगुण गहंली, पुहिं., पद्य, स्था., (माहरा सां आप० वीचर रया हो), १२२२९७-५(+$) गुरुगुण गीत, पं. कमललाभ, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्री खरतरगछि वड वीर रे), १२२९८४-३(+) गुरुगुण गीत, सा. जडाव, रा., गा.११, पद्य, श्वे., (कुणे पराया मन की मनकी तन), १२२१८८-१९ गुरुगुण गीत, मु. रत्नसुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (महामुनि चिरंजयउ ए जगजीवन), १२३२०५-४(+) गुरुगुण गीत, मु. रत्नसुंदर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुनउ रे सहेली मोरइ दूध), १२३२०५-२(+) गुरुगुण गीत, ग. लब्धिउदय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन मत अटकौ काकी तीय स्यू), १२१६३७-४ गुरुगुण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (गुरु समान दाता नही कोई), १२०३२६-२१८(+) गुरुगुण सज्झाय, मु. रायचंदजी ऋषि, पुहि., गा. २१, वि. १८४०, पद्य, स्था., (गुरु अमृत ज्युं लागे), १२२६४२ गुरुगुण सज्झाय-गुरुभक्ति, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, स्था., (बहुत निहाल कीया हो), १२०२४२-१(+) गरुचेला कवित्त, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (मोटो मोति मोल कम), १२३९७०-२ गुरुदेशना पद, मु. हर्षचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वरषित वचन झरी हो), १२०३२०-६२(+-#) गुरुपूजाष्टक, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. १०, पद्य, दि., (चहुंगति दुख सागर विषै), १२०३२६-५४(+) गुरुमहिमा दोहा संग्रह, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (भली हुइ गुरु मील्या भागा), १२०२१५-५ For Private and Personal Use Only Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ ५४९ गुरुमहिमा पद, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वस्तुगते वस्तु को), १२११९८-७ गुरुविहार गहंली, मा.गु., पद्य, मपू., (तरछोडी गुरु ए चाल्या हारे), १२२७४८-२ गुरुविहारविनती गहूंली, मा.गु., गा. १४, पद्य, म्पू., (श्रीसंखेश्वर पाये), १२०२८६ गूढार्थ हरियाली पद, मु. शांति, मा.ग., गा. ३, पद्य, मपू., (एक नानकडी कामिनी निजनाहज), १२०१८०-१ गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, मूप., (उद्गम दोष श्रावकथी), १२३७२४-२(+) गोपीचंद की राखी, मु. जडावचंद ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १९६६, पद्य, श्वे., (समगत साची बैन भांणजी), १२०४०८-१८०(+) गोराबादल चौपाई, आ. हेमरत्नसूरि, मा.गु., गा. ६१७, वि. १६४५, पद्य, मूपू., इतर, (सुखसंपतिदायक सकल), १२३८४४(+), १२३४६६ गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., खं. ३ ढाल ३९, गा. ८१६, ग्रं. ११५७, वि. १७०७, पद्य, पू., (श्रीआदिसर प्रथम जिण), १२१६०४(+) गौतमगणधर देशना सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (इकदिन गोतमगणधरू रे), १२०६१७-९ गौतमगणधर महावीरजिनविरह स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (तोसु प्रीत बंधाणी), १२२४११ गौतमगणधर सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सरसत सावण विनवउ हुं तो), १२१६५३-६ गौतमपच्छा १० बोल, मा.गु., गद्य, मूप., (दश बोल गोतमस्वामी), १२२७८३-६(#) गौतमपच्छा २६ बोल, रा., गद्य, मप., (कोहो पुजजी कोहो साम), १२१५३५ गौतमपृच्छा ३० बोल, रा., गद्य, श्वे., (पहेले बोले कहो पूज्य), १२०९३०(5) गौतमपृच्छा ९७ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (कहो स्वामि कणां होय), १२१०८६(2) गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १२९, वि. १५४५, पद्य, मपू., (सकल मनोरथ पूरवे), १२३८५७-१(+) गौतमपृच्छा सज्झाय, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूप., (एक दिन गौतम वीरने पूछि), १२३९५७(+) गौतमस्वामी अष्टक, मु. पद्मराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीइंद्रभूति गुरु), १२२९६७(+) गौतमस्वामी छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मात पृथ्वी सुत प्रात), १२२३६२-३, १२०५४१(#) गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मपू., (वीरजिनेश्वर केरो शिष्य), १२०३२०-७४(+-2), १२३५७७(+$) गौतमस्वामी दोहा, मा.गु., पद्य, मूपू., (अंगूठे अमृत वसै), १२०४२९-३(#) गौतमस्वामी पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (गौतमस्वामीजी मोह वाणी तनक), १२०३२६-३२४(+) गौतमस्वामी रास, मु. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ५, गा. ६७, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर चरण कमला), १२३७२५(#$) गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., ढा. ६, गा. ६६, पद्य, मपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), १२०५२०(+#), १२११६४(+) गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., गा. ६३, वि. १४१२, पद्य, मपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमला), १२०५८६(+#S), १२१७३५, १२१५१९-३७(#), १२२९३०-१(६) गौतमस्वामी रास, मा.गु., ढा. ६, गा. ४६, पद्य, मपू., (वीर जिनेसर चरण कमल), १२२६४१(+#), १२३५८६-२(+), १२३८३८(+$), १२३४७९-१, १२२००६(१) । गौतमस्वामी रास-बृहत्, मु. उदयवंत, मा.गु., ढा. ६, गा. ६३, पद्य, मपू., (वीरजिनेसर चरणकमल कमला), १२०३५२-२(+) गौतमस्वामी वैराग्य गीत, वा. मतिशेखर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (समोवसरण सिंघासणइ जी), १२२७३९-१(+#) गौमाता अरज सज्झाय-अंग्रेज प्रति, मु. कुस्यालचंद, पुहि., गा. ११, वि. १८७९, पद्य, श्वे., (सुणो सुणो अगरेज बादर गउ), १२०४०८-३५(+) ग्रंथसूचि*, मा.गु., गद्य, मूपू., (४ पानां लिंगना १५), १२३११०-१(#) ग्रहवाहनप्रमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (सोल सोलही हजार देवता लगै), १२०३२६-४९१(+) ग्रामनगरराजामंत्रीसभादि विविध पदार्थ वर्णन विचार, मा.गु., गद्य, मप., इतर, (जगद्भषण जगदेकशरण जगन्नाथ), १२३५९०(+$) For Private and Personal Use Only Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ घडियाली गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा. ३, पद्य, मूप., (चतुर सुणउ चित लाइ कइ), १२०६१४-७६, १२२४७५-४ चंदनदृष्टांत सवैया, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (चंदन को रूष एक जंगल मे), १२०४०८-१४३(+) चंदनबालासती चौपाई, मा.गु., ढा. १३, पद्य, श्वे., (प्रणमि मंडत नीलतन), १२१८६३(+) चंदनबालासती सज्झाय, मा.गु., गा. ५५, पद्य, मूपू., (कसुंबी नगरी पधारीया), १२१८६९-१(६) चंदनमलयागिरि ढाल, मु. रतनचंद, मा.गु., ढा. १५, पद्य, श्वे., (सासणनायक समरीये वर्द), १२१४३३-२ चंदनमलयागिरि रास, पं. क्षेमहर्ष, मा.गु., ढा. १३, वि. १७०४, पद्य, मपू., (जिनवर चउवीसे नमी), १२१०९२(+) चंदराजा सलोको-नवकारप्रभाव, मा.गु., गा. ५८, पद्य, श्वे., (--), १२१५७४-१(#$) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न विचार, मा.गु.,रा., गद्य, मूपू., (श्रीचंद्रगुप्तेन), १२२१७०-१(+), १२२१२४-२(#) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. ४०, पद्य, स्था., (पाडलीपुर नामे नगर), १२१३८३-१(+#), १२१२२५ चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि एम नमुं), १२०२६५($) चंद्रधवलभूप धर्मदत्तश्रेष्ठि रास, आ. रत्नसुंदरसूरि, मा.गु., गा. ३८१, वि. १६४२, पद्य, मूपू., (सयल जिनवर प्रथम तसु पाय), १२२१२६ चंद्रप्रभजिन पद, आ. अमृतचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू., (श्रीचंदाप्रभु हमतणी अरज), १२१६५१-३ चंद्रप्रभजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (सांचे चंद प्रभु सुखदाया), १२०३२६-२८९(+) चंद्रप्रभजिन पद, मु. राजनंदन, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (छबि चंद्राप्रभु की), १२०६१४-९ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. जैत, पुहि., गा. ६, पद्य, मपू., (श्रीचंदाप्रभु जिनवर), १२०६१४-१७ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा.१२, वि. १८५४, पद्य, स्था., (चंद्रप्रभु चितमोह),१२२४१३-४(+) चंद्रप्रभजिन स्तुति, आ. महिमासागरसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चंदप्रभु जिण राजे ए), १२०१६२-२ चंद्रप्रभजिन स्तुति-आंबेरनगरमंडन, मु. शिवचंद्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हां रे सहीया आंबेर नगरै), १२०६१७-५ चंद्रराजा चौपाई, मा.ग., पद्य, मप., (--), १२२०६२(#$) चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल १०८, गा. २६७९, वि. १७८३, पद्य, मूपू., (प्रथम धराधव तीम), १२०७४४(+), १२०८८५(+), १२१३२२(+9), १२२६०६(+), १२३२५९(+#$), १२३९२०(+), १२०६२०(#$), १२११३९(#s), १२११५३(६), १२२४१७() चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., खं. ६ ढाल १०३, गा. २५०५, ग्रं. ३०५५, वि. १७१७, पद्य, मप., (श्रीजिननायक समरीइं), १२०५१२(+#$), १२२६१८(#), १२३८०८(#$), १२२८३५($) चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., ढा. २९, गा. ६२४, वि. १७२८, पद्य, मूप., (सरसति भगवति नमी करी), १२३६२३(+#), १२३३०९, १२२३८२(#) चंद्रसूर्यगिनतीसंख्या पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (जंबुद्वीप दो लोनोदधि मै), १२०३२६-४९८(+) चंद्रोदयपारद विधि, मा.गु., गद्य, इतर, (पोरो धतुरा का रस मे), १२३२२५-२ चंपककुमार रास-अभयदान, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीऋषभजी प्रणमुं ते पाए), १२०६४९(5) चक्रवर्ती आय देहमानादि विवरण कोष्ठक, मा.गु., गद्य, मपू., (--), १२०१८६ चक्रवर्तीजिनत्रय पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (अपनौ जानकै मोह तारलौ), १२०३२६-१८७(+) चक्रवर्तीसनतकुमारकथा चौपाई, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., चौपा. ३९, वि. १८वी, पद्य, दि., (पंच परम गुर को नमो सुरग), १२०३२६-५६७(+) चक्रवर्तीसमृद्धि पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (हाथी चौरासी लाख धोरी भी), १२०३२६-५०८(+) चक्रेश्वरीदेवी गीत, मु. रूप ऋषि, पुहिं., गा. ४, पद्य, मप., (जय चक्केसरी माता सेवक ने), १२०५४५-४ चतुर्थव्रत उच्चारण विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही), १२०६२६-२(+) चतुर्थीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सर्वारथसिद्धथी चवी ए), १२२८०७-२(+) चतुर्दशीतिथितप स्तवन, मु. चेतनविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १८७३, पद्य, मूपू., (चौदश तप कर भावसुं), १२३०५५-३($) चरणसित्तरीकरणसित्तरी सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (पंच महाव्रत दशविधि), १२११५०(+) For Private and Personal Use Only Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ चर्चाशतक, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., दोहा. १०३, पद्य, दि., (परमेष्ठी पांचौ विघनहर), १२०३२६-१८(+) चातुर्मासिक व्याख्यान, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, मपू., (अर्हतः परया भक्त्या), १२२७५७(+) चातुर्मासिक व्याख्यान*, रा., गद्य, मपू., (पंचापि परमेष्टिन), १२०४४७(+) चातुर्मासिक व्याख्यान, मा.गु., प+ग., मूप., (प्रणम्य परमानंद), १२२१३६(), १२२८६९(5) चारित्रछत्तीसी, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ३६, पद्य, पू., (ज्ञान धरौ किरिया), १२१७७३-३(+) चारित्रमनोरथमाला सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुपाए प्रणमी करी), १२०९६८, १२०५८७(4) चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (चित्त कहे ब्रह्मराय), १२२२३६-१ चेटकराजा ७ पुत्री नाम, मा.गु., गद्य, पू., (उदाई राजानें प्रभावती), १२२६७१-१ चेतन चरित्र, मु. भावसिंघ, पुहिं., ढा. १४, गा. २५०, पद्य, मपू., (प्रथम जपत जिनराज), १२०३४४, १२१४५४-४ चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ३७, वि. १८३३, पद्य, स्था., (अवसर जो नर अटकलो ते), १२१२३८(+), १२१३३३(+$) चेलणासती चौपाई, मु. दयाचंद ऋषि, मा.ग., ढा. १३, पद्य, श्वे., (चोवीसमा महावीरजी), १२०४९३ चेलणासती सज्झाय, मु. दयाचंद ऋषि, मा.गु., ढा. १८, वि. १८७८, पद्य, श्वे., (राजग्रही नयरी थकी नहीने), १२१०७०-१ चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (वीरे वखाणी राणी), १२०७८९-७(+#), १२११३५-२(+), १२३३८९-१(+), १२३१४१-२ चैत्यवंदनचौवीसी, क. ऋषभ, मा.गु., चैत्यव. २४, पद्य, मूपू., (आदिदेव अरिहंत नमु), १२२७८७(+) चैत्यवंदनचौवीसी, ग. जिनविजय, मा.गु., चैत्यव. २४, गा. ७५, पद्य, मूपू., (प्रथम जिन युगादिदेव), १२३७८०-१(+) चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, मपू., (विमलकेवलज्ञान कमला), १२१३७४(+), १२१३२३, १२३२८५, १२०४२६($), १२१८८८($) छत्रसाल सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. १५, वि. १९७६, पद्य, श्वे., (थे सुणजो लोका विसन मत), १२०४०८-७६(+) छींक निवारण विधि, मा.गु., प+ग., मपू., (प्रथम ईरियावही पडिक्कमी), १२२४१५-२(+) जंबूकुमार सज्झाय, मु. कन्हालाल, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (हो मुनीराज आपका दर्सन की), १२०४०८-११७(+) जंबूद्वीपक्षेत्रमान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जंबूदीपमइ १८४ माडला), १२१५९३-६ जंबूद्वीपक्षेत्रविस्तारमान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जंबूद्वीप एक लक्ष), १२३४८२-४, १२३९६२-१ जंबूद्वीपनदीपरिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (बत्तीसवे मांही चोसठ है), १२०३२६-४७१(+) जंबूद्वीपमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (जंबुद्वीप एक लाख की परध),१२०३२६-४६४(+) जंबूवती चौपाई, मु. सूरसागर, मा.गु., ढा. १३, पद्य, मप., (पहिली ढाल सोहामणी), १२०९२५-१ जंबूस्वामी कथा, पंडित. जिनदास ब्रह्मचारी, पुहि., गा. ४९०, वि. १६४२, पद्य, मूपू., (पढम पंचपरमेठिहि), १२२६४५ जंबूस्वामी गहुंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोल वरसें संयम लिओ), १२३७०६-१ जंबूस्वामी चरित्र, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., ढा. ७१, वि. १८२६, पद्य, स्था., (भरतक्षेत्रमांहि विचरत), १२०४९७(+), १२१८५८(5) जंबूस्वामी पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (अरि अरि भज जंबुस्वामी), १२०३२६-३६०(+) जंबूस्वामी लावणी, मु. चोथमल ऋषि, रा., गा. ३१, वि. १८५८, पद्य, श्वे., (सेठ रिषभदत पिता जंबु), १२३९५८-१($) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. खुशालचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १८६३, पद्य, मूपू., (धन धन जंबुकुवरजी जोवनै मै), १२२५२१-२(+) जंबूस्वामी सज्झाय, ऋ. खुशालचंद्र, मा.गु., गा. १४, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (मगध देश राजगृही नगरी), १२२०६१-३(+) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. समयसुंदर, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (श्रेणिक नरवर राजीयो), १२२५२०-३($) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूप., (राजग्रही नगरी वसे ऋषभदत्त), १२३८९०-१(#) जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (ये आठुइ कामनी रे), १२२४६२-२ जंबूस्वामी सज्झाय, रा., गा. २०, पद्य, मपू., (राजगृही नगरीरा वासी), १२१८३५(#$) जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., ढा. २, गा. ३४, पद्य, मूपू., (राजग्रीनगरी भली रिषभदत), १२२३३९(+#) जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रेणिक नरवर राजिओ), १२४०१२-१(+) For Private and Personal Use Only Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ जयंतीश्राविका कवित्त-सम्यक्त्वविषये, मा.गु., पद्य, श्वे., (समक्त विना प्राणी पसूरे), १२३३३४-८(+) जयरथराजा चौपाई-शीलव्रत, मु. जवानमल, म.,मा.गु., ढा. ७, गा. ६६, पद्य, मपू., (श्रीपारस समरूं सदा निज), १२१४५२-२(+) जिनकुशलसूरि आरती, मु. लाभवर्द्धन, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (जय जय सद्गुरु आरती), १२०६१४-९५ जिनकुशलसूरि गीत, वा. ज्ञानराज, रा., गा. ७, पद्य, मपू., (दादओ सेवकां सुखदाय), १२१६३७-३ जिनकुशलसूरि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (आयो आयो री समरंतो), १२१६३७-२ जिनकुशलसूरि गीत, पा. साधुकीर्ति, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (विलसे रिद्धि समृद्धि), १२२२१९-३५(+#), १२१६३७-१ जिनकुशलसूरि पद, मु. जिनराज, पुहिं., गा. ३, पद्य, पू., (कुशल गुरु अब मोहि), १२१५१९-३५(#) जिनकुशलसूरि स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूप., (दादौ परतिख देवता), १२१५१९-३४(2) जिनकुशलसूरि स्तवन, उपा. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीजिनकुशलसूरेसरूरे), १२१५१९-३१(#) जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. विजयसिंह, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (समरु माता सरसती), १२१२८६-५(+) जिनकुशलसूरि स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुरतरु कुसुम सुरमणी रे), १२०६१४-९६ जिनकुशलसूरि स्तोत्र, उपा. जयसागर गणि, मा.गु., गा. १९, वि. १४८१, पद्य, मपू., (रिसह जिणेसर सो जयो मंगल), १२१२८६-४(+), १२०६१४-९० । जिनगुणमालासप्तमी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., सवै. ७, पद्य, दि., (अशोक पुहपमंजरी छंद समोसरन), १२०३२६-१७(+) जिनचंद्रसूरि गीत, मु. साधुकीर्तिजी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (ए मेरउ साजणीयउ सखि), १२३८२८(+) जिनचंद्रसूरि गीत, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूप., (युगप्रधान सवाई गावं भाव), १२२७००(+) जिनचंद्रसूरि गुरुगुण गहुंली, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गरू आगल गुंहली कीजै नरभव), १२१५१९-३२(#) जिनदत्तसूरि गुरुगुण गीत, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आसति अंगि घणी वडओ अनुलीछल), १२०१६८-३ जिनदत्तसूरि सवैया, मा.गु., सवै. १, पद्य, मूपू., (तूटत आकाश बीज खीजत खई), १२१२८६-२(+) जिनदत्तसूरि स्तवन, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ११, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सदगुरुजी तुम्हे), १२१२८६-१(+), १२१५१९-३३(#) जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, गा. ६८, पद्य, मपू., (अनंत चोवीसी आगे हुई), १२०५८४-१ जिनपालितमुनि गीत, मु. भावविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (--), १२३६५६($) जिनपूजा अष्टप्रकारी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ९, पद्य, दि., (सजल चंदन अक्षत पुष्प लै), १२०३२६-४५(+) जिनपूजा अष्टप्रकारी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा.१०, वि. १८वी, पद्य, दि., (स्वामी श्रीजिनराज जहा जहौ), १२०३२६-५५४(+) जिनपूजा पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (चलीयै जिनेसर वंदिये जांके), १२०५०३-४(#) जिनप्रतिमापूजामतपुष्टि विचार, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १२१८०५($) जिनप्रतिमा स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (श्रीजिनप्रतिमा हो), १२०९८०-७(+) जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १५, पद्य, पू., (जिन जिन प्रतिमा वंदन), १२०२०९-५(#) जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (श्रीअनुयोगद्वार सूत्रारथ), १२३०१६-१(+#) जिनभावनाष्टक, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., सवै.८, वि. १८वी, पद्य, दि., (जगत उदास आपको प्रकाश संग), १२०३२६-३७२(+) जिनमाणिक्यसूरिगुरुगुण गीत, मु. रत्नसुंदर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सोभागी गुरु अडिनिलउ रे गछ), १२३२०५-३(+) जिनमालिका काव्य, मु. सुमतिरंग, मा.गु., ढा. ७, गा. ७६, पद्य, मूपू., (जगनायक जग मुगट मणि अगम अल), १२१४४९-१(+#) जिनरत्नसूरि गीत, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (आवओ हे म्हारी सखी सहेली), १२०१६८-४ जिनराजसूरि गहंली-खरतरगच्छ, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (एक संदेसउ पूजनु पंथीडा), १२२६९८-१ जिनराजसूरि मुहपत्ती गहुंली-खरतरगच्छ, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (भलइ रे विराजी पूजजीरी मुह), १२२६९८-२ जिनवाणी गहुंली, मु. अमीकुंवर, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (साहेली हो आवी हुं), १२०४६१-४ जिनवाणी पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (तारन को जिनवाणी मिथ्या), १२०३२६-३३८(+) जिनवाणी भावपूजा स्तवन, सा. प्रेमश्री, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (पुजो जिनवाणी माता सितला), १२०४०८-३७(+) For Private and Personal Use Only Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ जिनवाणीसंख्या दोहा, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., दोहा. ११२, वि. १८वी, पद्य, दि., (वंदौ वाणी बरन युग बरग), १२०३२६-४०३(+) जिनवाणी स्तवन, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., गा. १०, पद्य, स्था., (जय जय जीनराया सूत्र सुनाय), १२२१९१-११(६) जिनवाणी स्तुति, मु. शिवचंद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (हां रे मईया बार अंग), १२०६१७-३ जिनशतक, श्राव. भूधरमल्ल खंडेलवाल, पुहि., गा. १०७, वि. १७८१, पद्य, दि., (ग्यान जिहाजि वैठि), १२०६१८-२ जीतमलजी के सांसारिक पक्ष का परिचय, मा.गु., गद्य, स्था., (जीतमलजी बोहोतरा आदितवारा), १२३५७२ जीव आयुष्यविचार सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (गुरुचरणकमल प्रणमीने), १२१२०८(+) जीवदया दृष्टांत दोहा, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (जि सेठ चंपक नामा कु चंपक), १२०४०८-१६(+) जीवदया पद संग्रह, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (ढुंडत ढुंडत ढुंड लिया सब), १२०४०८-१५(+) जीवदयामहिमा दोहा, मा.गु., दोहा. ३, पद्य, श्वे., (जीव मारता नरग छे राखंता), १२२०८२-१(+#) जीवदयामहिमा सज्झाय-दृष्टांतगर्भित, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (विर जिनेसर गोतमने कहे समर), १२०४०८-११(+) जीवदया रास-हरिबलराजा, मु. विनयकुशल, मा.गु., गा. २९६, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (संति जिणवर पाय प्रणमेवि), १२३६०५(+) जीवदया सज्झाय-विविधमत सम्मत, मु. चौथमलजी, पुहि., गा. ५, वि. १९६०, पद्य, स्था., (दयाकू पालत है), १२०४०८-१८(+) जीवदया सवैया, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (कहे पसु दिन सुण रे जग के), १२०४०८-१३(+) जीवदोष पद-गुणस्थानकादिगर्भित, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद. २, पद्य, दि., (संखेप दुतिप विस्तार मोह), १२०३२६-५६९(+) जीवनऋषि सज्झाय, मा.गु., ढा. ६, गा. ८३, पद्य, मूपू., (पुरे मननी आस वरधमान गुण), १२१४०५(+) जीव भेद-प्रभेद बोल, पुहि.,मा.गु., गद्य, मूपू., (दोय कोड चोराणवे लाख), १२०४७१-२(+) जीवविचार स्तवन-पार्श्वजिन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ८३, वि. १७१२, पद्य, मप., (श्रीसरसती रे वरसती), १२०७२४(+), १२१६०५(+#$), १२०६२८ जैनग्रंथमहिमा गीत, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. १२, पद्य, दि., (कलि मैं ग्रंथ बडे उपगारी), १२०३२६-४१(+) जैनतात्त्विक पद-२४ स्थान, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., सवै. ३, पद्य, दि., (चौवीस ठाने मै वेद कषाय), १२०३२६-४०९(+) जैन हस्तप्रत ग्रंथसूची, मा.गु., गद्य, मूपू., (कल्पसूत्र बालावबोध पत्र), १२१२९३ ज्ञानककाबत्रीशी, पुहि., गा. ३४, पद्य, श्वे., (कका कलिजुग नाम आधारा), १२३०३९ ज्ञानचौवीसी छंद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., सवै. १, पद्य, दि., (भान भो भावना ग्यान लौं), १२०३२६-५०९(+) ज्ञानदशक, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ११, पद्य, दि., (देखे मूरति स्वामी की), १२०३२६-७(+) ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसरि, मा.गु., देवजो. ५, गा. १५०, पद्य, मप., (श्रीसौभाग्यपंचमी), १२०७२७ ज्ञानपंचमीपर्व पूजा, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८८७, पद्य, मपू., (सकल कुशल कमलावली), १२०६५१(+) ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीगुरु पाय), १२०६७३-१, १२३४७९-५, १२३७११(२) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (अनंतसिद्धने करूं), १२२६७७, १२२०२८(#) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. १६, पद्य, मपू., (श्रीवासुपूज्य जिणेसर वयण), १२१८०१-११ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४९, पद्य, मूपू., (प्रणमी पास जिणेसर), १२२२५३(+#s), १२१२५३(६) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ६८, वि. १७९३, पद्य, मूपू., (सुत सिद्धारथ भूपनो), १२२५२३(5) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. नगविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूप., (शिवसुखदायक गुनगनलायक), १२०३२०-१८(+-#) ज्ञानपच्चीसी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. २५, वि. १८वी, पद्य, दि., (रागमई जदि होत है पर संजोग), १२०३२६-५५१(+) ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. २५, वि. १७वी, पद्य, दि., (सुरनर तिर्यग जग जोनि), १२०१६५, १२०१७१ ज्ञानबहोत्तरी, श्राव. अंबालाल, पुहि., वि. १९०७, पद्य, श्वे., (प्रणमुं श्रीपरमातमा धरी), १२१२४१ (२) ज्ञानबहोत्तरी-बालावबोध, पुहि., गद्य, श्वे., (१ बोले माहादुरलभ मनुष्य), १२१२४१ For Private and Personal Use Only Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ज्ञानावरणीय सिद्ध आरती, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., चौपा. ६, वि. १८वी, पद्य, दि., (मूरत ऊपर पट पर्यो रूप), १२०३२६-३७८(+) ज्योतिषचक्रग्रहचाल पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (चंद मंद गति भान शीघ्रगत), १२०३२६-४९०(+) ज्योतिषचक्र विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबुद्विपपन्नति चंदप), १२२२६१-२($) ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., गा. १६, पद्य, मपू., इतर, (ॐ नमो आनंदपुर अजयपाल), १२३६८१(६) झांझरियाऋषि रास-शीलविषये, मु. हस्तिरुचि, मा.गु., ढा. १३, वि. १७१७, पद्य, मपू., (आदिनाथ आदि नमुं आपे), १२३१३५-१(+) झाझरियामुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, स्पू., (महियलि मांहि मुनिवरु), १२३४१०-४(#$) ठाकुरसी धर्मबोध सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (क्षित्रीवंश वखाण राय), १२०१८९(+) डाकिनी आदि भगाने का मंत्र, हिं., गद्य, इतर, (ॐ नमो आदेस गुरुकुं), १२०५८५-१ ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ढंढणऋषिने वंदणा), १२०७८९-१०(+#), १२११३५-१(+s), १२१५३१-२, १२२०५९ । ढंढणऋषि सज्झाय, आ. हर्षमंगलसूरि, मा.गु., गा.१८, पद्य, मप., (सरसति सामिणि तुम्ह), १२२३९२ ढाईद्वीप २० नदी पूर्वपश्चिमप्रवाह पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (हिमवन ऊपर गंगा सिध औ सिखर), १२०३२६-४८४(+) ढाईद्वीप ५० नदी उत्तरदक्षिणप्रवाह पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (हिमवंत से निकली उत्तर कौं), १२०३२६-४८५(+) ढाईद्वीप ५० नदी पूर्वपश्चिमप्रवाह पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (बीस नदी पहाड सेती), १२०३२६-४८६(+) ढाईद्वीप ध्रुवतारा व प्रतिमासंख्या पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (जंबुदीप मै छतीस लौनौदध), १२०३२६-४९९(+) ढाईद्वीप मानुषोत्तरपरिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (सौले लाख नौसै तीन कोड), १२०३२६-४८९(+) ढाईद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (खंडा ८ हजार ५५०), १२३२६५(+$), १२१२६०(६) ढालसागर, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., ढा. ७३, वि. १८५६, पद्य, स्था., (समरु ऋषभ जिनेसरु), १२०७९६(+) ढुंढक रास, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. ७, वि. १८७८, पद्य, पू., (सरसती चरण नमी करी), १२२०१६(+) तप आराधनाफल रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., ढा. २६०, पद्य, मूपू., (जयो जयो रे जुगादिजिन), १२२९६८(#) तपपद सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, रा., गा. १४, पद्य, श्वे., (तप बडो रे संसार मे), १२०४०८-१९१(+) तप संयमादि आराधनाफल विचार, मा.गु., गद्य, मप., (एक दीन तप संयम पालतो ७००), १२०८६४-४ तलकसीस्वामी छ ढालिया, क. रूपचंद, मा.गु., ढा. ६, पद्य, श्वे., (प्रथम जिणेसर पाय नमी), १२३५६२(+) तारातंबोल नगरी वार्ता, मा.गु., गद्य, श्वे., इतर, (संवत १६८४ वर्षे महा), १२१५७८-३(-2) तारादेवी सज्झाय-शीलपालनविषये, मु. कनकसुंदर, मा.गु., ढा. १३, गा. १८, पद्य, मूपू., (वचन सुण्या ब्राह्मण), १२३१५७ तिथिनिर्णयविचार गाथा, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (--), १२०९३५-१(६) तिथिषोडशी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. १८, पद्य, दि., (वाणी एक नमो सदा एक दरव), १२०३२६-३८(+) तीर्थंकरदेव आगमनादिप्रसंगे चक्रवर्ती प्रदत्त दान वर्णन, मा.गु., गद्य, मप., (तीर्थंकरदेवनै आगमनै वधाम), १२१४५१-३ तीर्थयात्रा १६ काया पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (सम्यक आचारी ब्रह्मचारी), १२०३२६-४३८(+) तुंगीयानगरी श्रावक ढाल, मु. ज्येष्ठमल्ल, मा.गु., ढा. ७, गा. १२९, वि. १८५०, पद्य, मूप., (जिनमुख पंकज निवासिनी वाणी), १२१०४३-२ तृतीयातिथि स्तुति, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (निसिहि त्रण), १२०९७२-१, १२१११३-१ तेजसारकुमार रास, मु. कल्याण, मा.गु., ढा. ६३, वि. १७६४, पद्य, मूपू., (ऋषभादिक चोविस जिन), १२१५७९(+$) For Private and Personal Use Only Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ तेजसिंघ आचार्य भास, मु. लब्धि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीतेजसिंघ गणि सुंदरू रे), १२१५५०-४(+) तेरापंथीमत प्रश्नोत्तर संग्रह, मा.गु., प्रश्न. ६८, गद्य, ते., (आ कालना भाव केवळगयानीए), १२०४०४ थावच्चाकुमार भास, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. १९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (नयरी द्वारामती जाणीइ), १२३२३४-१(+) थावच्चापुत्र चौढालियो, रा., ढा. १०, गा. ९४, पद्य, मूप., (अरिहंत सिध साधु भणी नमु), १२११०२-१(+) दंडकपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८३६, पद्य, स्था., (दंडक चोविसमां जीव), १२१०८१-१(+), १२०८७१-५ दमयंतीसती गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूप., (नल दमयंती नीसर्या), १२३३८९-२(+) दया सज्झाय, मु. विसनलाल, पुहिं., गा. १०, वि. १९६२, पद्य, स्था., (दया विन करणी नंननन), १२०४०८-४१(+) दर्शनदशक, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., सवै. ११, पद्य, दि., (देखे श्रीजिनराज आज सब), १२०३२६-६(+) दर्शनावरणीय सिद्ध आरती, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (जैसै भूपत दरस को होन न), १२०३२६-३७९(+) दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मप., (सारद बुधदाईक सेवक नयणानंद), १२०१८४-१(+$) दशार्णभद्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, मपू., (--), १२२२५५($) दसोटण विधि, मा.गु., गद्य, मपू., (मांड्यो उतंग तोरण), १२३७६७-१(+) दानबावनी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., सवै.५३, पद्य, दि., (वंदौ आदिजिनंद व्रत तीरथ), १२०३२६-१५(+) दानशीलतपभावना चौपाई, मु. नेमिचंदशिष्य, पुहि., भा. ४, वि. १९५६, पद्य, श्वे., (दानशीलतप चौथी भावना कोइयक), १२१८७८-२ दानशीलतपभावना प्रभाती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (रे जीव जिन धरम कीजीय), १२२३२७-२ दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ४, गा. १०१, ग्रं. १३५, वि. १६६२, पद्य, मप., (प्रथम जिनेसर पाय), १२३७४९(+), १२०८८०, १२३१८४, १२०२८५(#s), १२०६५४(#$), १२३०३७($) दिनमान चौपाई, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मपू., (सरसति सामिणि समरी माय), १२१९१६-७(5) दीपावलीपर्व पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (पावापुर प्रभु वंदौ जाय), १२०३२६-३३२(+) दीपावलीपर्व रास, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. ४३, पद्य, स्था., (भजन करो श्रीभगवंतरो), १२०४०८-४६(+), १२०४९६(5) दीपावलीपर्व स्तवन, मु. जडाव, रा., गा. ९, पद्य, श्वे., (जिण दिन मुगत गया जिन), १२२१८८-२३ दीपावलीपर्व स्तुति, पंडित. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दीवाली दिन पर्व), १२०२०९-९(2) दीपावलीपर्व स्तुति, मु. भालतिलक, मा.गु., गा. १, पद्य, मप., (जय जय कर मंगलदीपक), १२३०८१-२३(+) दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.ग., गा. ४, पद्य, मप., (सासननायक श्रीमहावीर), १२३०८१-१०(+) दीपावलीपर्व स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (पर्व पनोता पुन्ये), १२२२०८-२(+) दीपावलीपर्व स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, स्पू., (जय मानव सेवित), १२३०८१-२४(+) दृष्टिवाद विचार, पुहि., गद्य, श्वे., (सर्व अपेक्षित नयों), १२०७६८ देवकी ६ पुत्र चौपाई, मु. चोथमल, मा.गु., पद्य, श्वे., (देवकी राणीनी दीकरा थया), १२११०५(+$) देवकी ६ पुत्र रास, मा.गु., पद्य, श्वे., (तिण अवसर ईण भरतमै मालव), १२१४२४($) देवकी ६ पुत्र रास, मा.गु., ढा. १९, गा. ३०७, पद्य, स्पू., (नेमजिणंद समोसा), १२२०८६(+$) देवकी सज्झाय-परिवारवर्णन, मु. रायचंदजी ऋषि, मा.गु., गा. १८, वि. १८४७, पद्य, स्था., (श्रीवसुदेवनी पट्ट), १२०२१६-१ देवगुरु पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (वंदौ नमिजिनिंद सुगुन मन), १२०३२६-५४२(+) देवगुरुलक्षण सवैया, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (देव सोई जाके दोसको), १२०४०८-१७६(+) देवगुरुशास्त्र आरती, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ९, पद्य, दि., (देव शास्त्र गुर रतन सुभ), १२०३२६-५७४(+) देवनरक देहमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (सात मैं नरक मांहि पंचसै), १२०३२६-४५४(+) देवनरकायु देहमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (सातमैं नरक मांहि पांचस), १२०३२६-४४४(+) देवनरकायु पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (तेतीस बाईस सत्तरै दश सात), १२०३२६-५०४(+) देवनरकायु पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (सात नरक आयु जुगलनौ ग्रीवक), १२०३२६-४४३(+) देवनारक के ५ बोल १६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलो नारकीनो द्वार), १२१८९१(+) For Private and Personal Use Only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ देवपूजा अष्टप्रकारी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ९, पद्य, दि., (जल चंदन अक्षत फूलजु चरु), १२०३२६-४७(+) देवपूजा जयमाल, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ९, पद्य, दि., (वृषभ वीर धर धीर चित्त री), १२०३२६-४६(+) देवराजवच्छराज रास, मु. लावण्यसमय, मा.गु., खं. ६, ग्रं. ६१२, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (सकल जिणवर सकल जिणवर), १२३२१५(#) देवलोकभवनसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (दीखण दिसना ४ कोडने ६ लाख), १२१३४७-१२(+) देवलोक विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहलो सोधर्म देवलोकेइ), १२३९२९($) देव विशेषता के १६ बोल, मा.गु., गद्य, मपू., (देवताने १६ बोल नही केस), १२१०५९-२(2) देवसाधु भक्ति पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (सोहा देवे साधु धुतैडी), १२०३२६-२९२(+) देवसी अतिचार काउसग्गसूत्र, मा.गु., गद्य, मप., (इच्छाकारेण संदिस्सह), १२२८६१-२(+) देवानंदा सज्झाय, मु. रूपचंद-शिष्य, मा.गु., ढा. ३, गा. ५३, वि. १८५०, पद्य, मप., (विप्रकुंडन नामे नगर रिषभ), १२०८७१-२ देशावगाशिकपच्चक्काण विधि, पुहिं., गद्य, मूपू., (प्रथम सामायिक लेके पीछे), १२२२१८ दोषाकेवली, मा.गु., गद्य, श्वे., (१११ शरीर वेदना छे), १२२७३३($) । दोहा संग्रह, पुहि., पद्य, इतर, (ओस ओस सबको कहें मरम), १२१२३४-२(+) दोहा संग्रह-जैनधार्मिक, पुहि.,मा.गु., पद्य, मूप., (अष्टापद श्रीआदजिनवर), १२१२३०-४(+), १२२१८८-१४ द्यानतविलास, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ७२, वि. १७८१, पद्य, दि., (दुखहरन सब सुखकरन श्रीजिन), १२०३२६-५५३(+) द्रव्यगुणपर्याय पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ५, पद्य, दि., (दर्वन विषै दर्व कौं विचार), १२०३२६-५०३(+) द्रव्यचौबोल पच्चीसी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., सवै. २५, पद्य, दि., (दरवक्षेत्र अरु काल भावदरव), १२०३२६-८(+) द्रव्यप्रभाव सवैया, मु. धर्मसीह, पुहिं., गा. १, पद्य, मपू., (ईहत है जिनकु सबही), १२२६३२-७(+) द्रोपदीसती चौपाई, मु. जेमल ऋषि, मा.ग., ढा. १५, पद्य, स्था., (द्रोपदरायनी सुता चूलणीरी), १२१०६८ द्रौपदीसती कथा, मा.गु., गद्य, भूपू., (--), १२३२७६(#$) द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., ढा. ३९, गा. १११७, वि. १६९३, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी पासजिण), १२३२२६(+), १२३९५४(+#) द्रौपदीसती चौपाई, आ. हीरविजयसूरि, मा.गु., ढा. १४, गा. २१८, पद्य, मूपू., (सील वडो संसारमै मध्य), १२१६४३(+) द्वादशांग स्तुति, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ८, पद्य, दि., (कहालै पूजा भगति बढावै), १२०३२६-३३(+) द्वादशांगीमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (जैती प्रभुजी नी तेती कही), १२०३२६-४१९(+) द्वीपसमुद्र प्रमाण, मा.गु., गद्य, श्वे., (जंबुद्वीप १०००००), १२१२४४-१ धन्नाअणगार चौपाई, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., ढा. ६१, वि. १८६३, पद्य, श्वे., (त्रिभुवन नायक वीरना चरण), १२०४७३(+S), १२२४६८(+), १२३३११(+) । धन्नाअणगार सज्झाय, मु. वीरमसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मप., (धन धन धन्नो मुनिवरु), १२२६३०-२(+) धन्नाअणगार सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (सरसति सामिनि वीन), १२०२७९-२(#) धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (काकंदी नगरी भलीस रे), १२१२४३-१(+) धन्नाकाकंदी चौढालिया, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., ढा. ७, गा. ७२, वि. १८५९, पद्य, श्वे., (पुजजी पधारीया नगरी), १२१२३४-१(+), १२१५९९-२(+$) धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. तिलोकसी, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवाणी रे धन्ना), १२२०६१-१(+) धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (नगरी काकंदी हो मुनीसर आपज), १२२१८०-१० धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (धन धन्नो ऋषि वंदीय), १२०७८९-६(+#) धन्नाशालिभद्र गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (धन्नौ सालिभद्र बेउ), १२०७८९-१२(+#) धन्नाशालिभद्र रास, मु. जिनविजय, मा.गु., खं. ४ ढाल ८५, गा. २२४२, ग्रं. २५००, वि. १७९९, पद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणिं नत क्रम), १२२६८३(+) For Private and Personal Use Only Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १६, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (राजग्री मै गोमद सेठौ), १२०२४९-१ धर्मजिन स्तवन, मु. कल्याणचंद्र, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सहया मोरी धरम जिणेसर), १२०४०२-१ धर्मजिन स्तवन, मु. कल्याणहंस, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीप्रभु धरमजिणेसरु), १२०४०२-९ धर्मजिन स्तवन, मु. क्षमाविजय, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू.. (एक सुणज्यो रे नाथ अरज), १२१५१९-२५(५) धर्मजिन स्तवन, पंडित. खीमाविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., ( इक सुणलौ नाथ अरज), १२२०२६-२(+) धर्मजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू. (धर्मजिणेसर धर्मधुरं), १२०२७९- १(क) धमंजिन स्तवन, मु. देवकुशल, मा.गु, गा. ५, पद्य, भूपू (सरसती पाये नमी करी रे) १२१८०१-१० धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८पू, पद्य, मूपू., (हां रे मारे धरमजिणंद), १२३०६४-१(#), १२३५२१-२(#) धर्मजिन स्तवन, ग. राजहर्ष, मा.गु., गा. १५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मभि मन धरम मरम निज दाख सह), १२३०५३ धर्मजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धर्मजिणंद तुंमे लायक), १२०१९३-२ धर्मजिन स्तवन, पं. शांतिविजय, मा.गु., गा. ९. वि. १७९५, पद्य, मृपू., (श्रीसद्गुरुचरण नमी करी) १२०४०२-५ धर्मजिन स्तवन-आत्मज्ञानप्रकाश, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. १३८, वि. १७१६, पद्य, मूपू., (चिदानंद चित चिंतवुं), १२३४७५ (+$), १२३३३१ धर्मजिन स्तवन- विलेपन पूजा, मु. कल्याणचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आवो सहीअर सहु मिली धरम), १२०४०२-२ धर्मजिन स्तुति, मु. प्रेमचंद्र - शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सरसति माता पाए लागी धरम), १२०४०२-११ धर्मजिन होरी, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद. ८, पद्य, मूपू., (मधुवन में धूम मची होर). १२०१११-२ (४), १२१५१९-२३() धर्मपच्चीसी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. २७, पद्य, दि. (भवि कमल रवि सिद्धिजन धरम) १२०३२६-४(क) धर्मपरीक्षा चौपाई. मु. नित्यविजय, मा.गु., डा. १९, वि. १८६२, पद्य, भूपू (-), १२३८१४-१(३) "" धर्मरहस्यवावनी, जै.क. चानतराय अग्रवाल, पुहिं. सवै ५२, पद्य, दि. (पंचनीमे कहिये परमेश्वर), १२०३२६-१४(+) , " धर्मविलास पीठिका, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ६, पद्य, दि., (बंदी आदिजिनेस पापतम हरन), १२०३२६-१(+६) धर्मसंबंध बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मनो बाप जाणपणो), १२२७८३-४(#) धर्मसार, जै. क. शिरोमणिदास पुर्हि, संधि, ७ गा. ७६३. वि. १७३२, पद्य, दि.. (--). १२०४१६ (5) धर्मसूरिगुरुगुण गंहुली, मु. माणिक्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे. (थे तो गुर्जर देश भले), १२२७७०-२ (+) धर्मोपदेश दृष्टांतकथा संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू (शिष्टेसंग श्रुतोरंग), १२१५५४(३) धातकीखंड १४ पर्वत १४ क्षेत्र अंतसूचीपरिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (भाग एक भाग का प्रमाण ० ), १२०३२६-४७४(*) धातकीखंड १४ पर्वत १४ क्षेत्र आदसूचीपरिमाण पद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (भाग एक भाग का ५५७ प्रमाण० धात), १२०३२६-४७२ (+) धातकीखंड १४ पर्वत १४ क्षेत्र मध्यमसूचीपरिमाण पद, जै. क. द्यानतराव अग्रवाल, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि.. (भाग एक भाग का " प्रमाण० धात), १२०३२६-४७३ (+) धातकीखंड ६४ विदेहपरिमाण पद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (धातकीखंडद्वीप के चोसठ), १२०३२६-४७६(+) धातकीखंडकालोदधिसमुद्रपुष्करद्वीपमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं, गा. ४, पद्य, दि., (जंबुद्वीप सेती अगलै सागर), १२०३२६-४६५(+) धातकीखंडस्थित भरत क्षेत्रपरिमाण पद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (तेरे लाख का परध इकतालीस), १२०३२६-४७५ (+) ध्वजकलशपूजन विधि, मा.गु. गद्य, भूपु (श्रीमुलनायकजीना गभाराथी) १२०४७७-३(०) + नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (साधुजी न जइए रे परघर), १२०७८९-१(+) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. १६, पद्य, मूपू., (राजगृही नयरीनो वासी), १२१४८६($) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, म्पू. (पंचसयां धणि परिहरी), १२३४१०-३(५) For Private and Personal Use Only Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५५८ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. श्रुतरंग कवि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मुनीवर महिअल विचरई), १२२२३८-१(+) नथुस्वामीजी दोढालिया, मु. तेजपाल, मा.गु., ढा. २, गा. ६८, वि. १९७४, पद्य, श्वे., (आदि रे जिन आदेकरी चौवीसे), १२३०६६(+) नमस्कारमंत्र छंद, मा.गु., पद. १, पद्य, मूपू., (पढो मंत्र नवकार तापतेजरो), १२१२३०-३(+) नमस्कारमंत्र प्रभावदर्शक दोहे, पुर्हि, दोहा ४, पद्य, मृपू. (पढ़ो मंत्र नवकार), १२१८६२-३(+) नमस्कारमहामंत्र चौपाई, मु. गुणनिधान-शिष्य, मा.गु., गा. ७९, पद्य, मूपू. (सरसतिदेवी पय पणमेवी सेवक), १२२६७० (+) नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मूपू (वंछित० श्रीजिनशासन) १२३५४८ (०), १२०४६०-१, १२१८११, १२१८०१ ४ १२१२७०(M) , יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमस्कार महामंत्र छंद, मु. गुणप्रभुसूरि शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो), १२१८५७ नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि - शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो), १२०६४५-६, १२११००-२ नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., गा. १३, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (किं कप्पतरु रे आयाण), १२२२१९-२६(+#), १२४००७, १२३२१६ (०३) नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सरसति सांमिने दो मुझ), १२०८९८(+) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. ४१, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वारी जाउ अरिहंतनें), १२२०६५ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समर रे जीव नवकार नित), १२१४७५-१(#) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कहेजो चतुर नर ए कोण), १२१०४०, १२०८४९-२०१ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (बार जपुं अरिहंतना), १२२५२५-५ " नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जी अरिहंत नतसद समरताजी), १२१२५६-१ नमस्कार महामंत्र सवैया, मु. लालचंद ऋषि, पुहिं, सबै ५, पद्य, श्वे. ( नमो अरिहंत नमो सीध) १२२२७४-४) नमस्कार महामंत्र सवैया, श्राव. विनोदीलाल, पुहिं. सबै ५, पद्य, श्वे. (णमो अरिहंताणं णमो ), १२२२७४-३(७) नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. लालचंद, पुहिं. गा. ९, पद्य, म्पू. (भजो भजो भाइ मंत्र), १२०२०३-२(+४) " "" 3 नमिराजर्षि ढाल, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., वि. १८३९, पद्य, श्वे., (सासणनायक समरीये), १२११९१(+), १२२३९०(+) नमूचिराजा प्रसंग विचार, मा.गु., गद्य, श्वे. (दीवालिने प्रभाते रामा), १२०४०८-४८(+) नयविचार सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु. गा. १३, पद्य, मूपू (प्रणमुं श्री शंखेसर पास), १२२५२५-२(३) नरकगामी साधुसाध्वी आदि संख्या विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूर साधु सूर पणौ), १२२२१९-२९(+#) नरक विलमान पद, जैक द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं, गा. ३, पद्य, दि., (जोजन की अंत ओदधानक) १२०३२६-४६१(+) नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., ढा. ६, गा. ३५, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिन विनवुं), १२०६५५ (+) नरदेव चौपाई-अतिथिसंविभाग व्रत, मु. सहजकीर्त्ति, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीफलवर्द्धिपुर पास जिण), १२३३३६ (+#$) नर्मदासुंदरी रास-शीलव्रतविषये, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. ६३, गा. १४५४, ग्रं. १४६६, वि. १७५४, पद्य, मूपू., (प्रभुचरणांबुजरजतणी), १२३२४८(+४३) "" नर्मदासुंदरीसती चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. २७, वि. १८४१, पद्य, स्था. (शासननायक समरीये मोखदायक), १२२०९६-१ नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ६ डाल ३९, गा. ९३१, ग्रं. १३५०, वि. १६७३, पद्य, मूपु. ( सीमंधरस्वामी प्रमुख) १२२५०४(+), १२३४५७+७) १२१४०३(०३), १२३४८८(०) , नवकारवाली सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नोकारवाली वंदीइ चिर), १२२९६९(#) नवकारवाली सज्झाय प्रहेलिकागर्भित, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (देखो रे चतुर नर या कुण), १२०४०८-१०३(+) , नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जीव चेतन १ अजीव अचेतन २), १२३२६०-१२ (+) नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू. ( जीवतत्त्व १४ भेद), १२२४३६ (+३), १२३२०६-१(+) नवतत्त्व चौपाई, मु. भावसागरसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. ९५१, ग्रं. १३०५, वि. १५७५, पद्य, मूपू., (आदि नमी आणंदहपूरि), १२२६८२ नवतत्त्व बोल, मा.गु., गद्य, मृपू., (५६३ भेव जीवना ते). १२२२४८ नवतत्त्व विचार*, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुन्नं पावा), १२१०८५ (+#$), १२१३७९-१(+) For Private and Personal Use Only Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ नवतत्त्व सवैया, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (गुण विना० मूल न मान जीव), १२०४०५-२ नवपद आरती, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (भविजिन मंगल आरती करी), १२०५१५-२(#) नवपद आरती, पुहि., गा. १५, पद्य, श्वे., (ऐसी आरती करो मन मेरा), १२३५५८-३ नवपद आरती, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूप., (पेली आरती श्रीजिनराजा भवी), १२३५५८-२ नवपद खमासमण विधि, मा.गु., गद्य, मपू., (ॐ ह्री नमो अरीहंताणं ए), १२०७५९-२ नवपद पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. ९, वि. १८३०, पद्य, मूपू., (श्रीगोडी पासजी नीति), १२३१७५ (#) नवपद सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ४१, पद्य, मूपू., (वारी जाउं श्रीअरिहंत), १२१५४१(६) नवपद सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (गुरु नमतां गुण उपजे), १२१०३०-२ नवपद स्तवन, मु. कृष्णविजय, पुहि., गा. १३, वि. १९४७, पद्य, मपू., (नवपद चित नित धरियै), १२१७५०-१ नवपद स्तवन, पुहिं., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, मप., (जिया चतुर सुजाण नवपद के), १२१८१०-२ नवपद स्तवन, मु. राजचंद्र, पुहिं., गा. ७, वि. १९४७, पद्य, भूपू., (निरमल होय भज ले), १२१७५०-२ नवपद स्तवन, आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १९०१, पद्य, मूपू., (ए दिन सफल भयो में भेट्यो), १२३११२-१० नवपद स्तवन, आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., गा. १२, वि. १८९७, पद्य, मूपू., (नवपद ध्यावो सुखकरू), १२३११२-९ नवपद स्तवन, आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मेरे सुगुण सवाय भव भय), १२३११२-११ नववाड सज्झाय, मु. पुण्यसागर, मा.गु., ढा. २, गा. १९, पद्य, मपू., (श्रीजिनशासन नंदनवन), १२३२०१(+) नववाड सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूप., (नववाड सही जिनराज), १२०४०८-१५१(+) नववाड सज्झाय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८४१, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिसर चरणजुग), १२१७५८(+) नववाड सीयलवेल, श्राव. मकन, मा.गु., ढा. ८, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (श्रीसरसती समरुं सदा), १२२६५१(+$) नवाणुप्रकारीपूजा विधि, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. १२, वि. १८८४, पद्य, पू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), १२३०३५(+#) नागिलाभवदेव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूप., (भवदत्त भाइ धरि आविओ), १२३१६०-२(#) नागेश्वरीब्राह्मणी सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. ३४, वि. १७७१, पद्य, मप., (चंपानगरी सोहामणि रे), १२२३९६(+) नानचंद ऋषि छत्रबंध दोहा, हरिप्रताप जूणाजी जाडेजा, पुहि., गा. २, वि. १९६१, पद्य, श्वे., (ना तन में नेह चंचला), १२०८७१-१० नामकर्मनिवारण सिद्ध आरती, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., चौपा. १३, वि. १८वी, पद्य, दि., (चित्रकार जैसै लिखै नाना), १२०३२६-३८३(48) नामकर्मप्रकृतिभेद पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (तन बंधन संघात वरन रस जात), १२०३२६-५०६(+) नारकी १५ भेद, मा.गु., गद्य, मपू., (अधरमी ते १५ भेद अंबे), १२३५३६-६(#) नारकी आयुमान देहमान विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (रतनप्रभा जघन्य १००००), १२१६३९-१ नारकीकर्मप्रकतिबंध पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (औदरिक दोय आहारीक दोय नरक), १२०३२६-५०५(+) नारी चरित्र, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., चौपा. २०, वि. १८वी, पद्य, दि., (सुख करता तिहु जगतपति नमो), १२०३२६-५६६(+) नारीपद सवैया, पुहि., दोहा. २, पद्य, श्वे., (लंछण धाम चले गज कट), १२१७३८-२(#$) निंदात्याग सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मम कर जीवडा रे), १२३६५४-२(+$) निंदा परिहार रास, मु. सेवक, मा.गु., गा. ६२, पद्य, ते., (श्रीमहावीर सदा नमु), १२१२१७-२(+$) निगोदजीव जन्ममरण संख्या विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (असंख्यातासमानी १ एक आवलका), १२०४९५-२(+#) निर्मोहीराजा चौढालीयो, मा.गु., ढा. ४, गा. ४२, पद्य, मूपू., (एक सदा जीण धरम बत्तीस लाख), १२२९०६-२(+) निर्वाणक्षेत्र पूजा, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. २०, वि. १८वी, पद्य, दि., (परम पूज्य चौबीस जिहँ), १२०३२६-६३(+) नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., चोक. २४, वि. १८३९, पद्य, मपू., (एक दिवसे नेमकुमर निज), १२१९००-१(+S), १२२४५५(+), १२१६०८(#$), १२२१९५(#$), १२२९०८(#), १२३४०७(#) नेमजिन पद, आ. अमृतचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेम जिणंद स्वामी हमारे), १२१६५१-४ नेमजिन स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वयराग रंगीलो नेमजी), १२३५१४-२ For Private and Personal Use Only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमराजिमती कवित्त, मा.गु., का. १, पद्य, मूपू., (दामनि चमकइ मेहरा टमकइ), १२१७१८-२ नेमराजिमती गीत, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (होजी रथ फेरी चाल्या), १२०२२९-२(#) नेमराजिमती गीत, ग. जीतसागर, पुहिं., गा.१५, पद्य, मपू., (तोरण आया हे सखी कहे), १२०२१८-१, १२१५१९-१(२) नेमराजिमती गीत, मु. रूप ऋषि, ब्र., गा. ४, पद्य, श्वे., (मुख ह न बोल्या पियवा), १२०५४५-५ नेमराजिमती गीत, मु. रूप ऋषि, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (हो ऊभी जोऊ हो मंदिर में), १२०५४५-३ नेमराजिमती गीत, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (नेम मले तो बातां), १२१५१९-१४(#) नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., ढा. ९, गा. ४०, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय सुत चंदलो), १२१८०७-१, १२२१३५(#), १२१६५८() नेमराजिमती पद, मु. कुशलराज, पुहि., गा. १, पद्य, मूपू., (नेम कू जान न देती संय्या), १२०३२०-४१(+#) नेमराजिमती पद, मु. गोपालसागर, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू, (नेमजी नेकीणा जादु मार्या), १२३३७१-२ नेमराजिमती पद, मु. चंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (यादव मन मेरो हर लीयो), १२१५१९-१९(#) नेमराजिमती पद, मु. चेनविजय, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (राजुल पोकारे नेम), १२०३२०-५८(+-#) नेमराजिमती पद, मु. ज्ञानसुंदर, पुहि., पद. २, पद्य, मूपू., (लाल घोडो लाल पाघ लाल), १२२६३२-११(+) नेमराजिमती पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (अब मोहि तार ले तरि लै नेम), १२०३२६-३१६(+) नेमराजिमती पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (ज्ञानी ज्ञानी नेमजी तुमहौ), १२०३२६-१०४(+) नेमराजिमती पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ५, पद्य, दि., (तजि जुग ए पिय मोहि अनाहक), १२०३२६-२५३(+) नेमराजिमती पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (ते कहं देखे देखे नेम), १२०३२६-३९५(+) नेमराजिमती पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (नेम गए किह ठाउं दिल मैं), १२०३२६-३१३(+) नेमराजिमती पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहि., गा. २, पद्य, दि., (पिय वैराग लियो है किसमिस), १२०३२६-३१२(+) नेमराजिमती पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (पिया रे नेमसुं प्रेम किया), १२०३२६-३२१(+) नेमराजिमती पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (भज मन प्रभु श्रीनेम कौं), १२०३२६-२२६(+) नेमराजिमती पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (मूरत पर वारी रै नेमजिनंद), १२०३२६-३१५(+) नेमराजिमती पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (वंदौ नेम उदासी मद मारिवे), १२०३२६-९७(+) नेमराजिमती पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ३, पद्य, दि., (सुन री सखी री जहां), १२०३२६-२५२(+) नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (नेम मिलै तो मे वारीयां हो), १२०६१४-६८ नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (मत जाओ रे पीया तुम), १२३८६२-५(#) नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, पुहि.,मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (में हुं अधम पापकी मूरत), १२२४६०-३ नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (वालमजी मोरी नेमजी गया), १२०२३१-५ नेमराजिमती पद, मु. शिवरतन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (बावीस सुभटने जीपवा), १२०२४२-२(+) नेमराजिमती पद, मु. हरखचंद, मा.ग., गा.७, पद्य, श्वे., (नेमजी थे काई हठ माड), १२०२१२-३(#) नेमराजिमती पद, मु. हर्षचंद-शिष्य, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (जिनराज सूनीयौ मोरी रे), १२०२३१-२ नेमराजिमती पद, मु. हर्षचंद-शिष्य, पुहिं., गा. ३, पद्य, म्पू., (वालमजी मोरी नेम खबरीया न), १२०२३१-३ नेमराजिमती पद, रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (सोरठ थारा देसमै गढ नवडी), १२३३०१-७(+) नेमराजिमती पद-७ वारकथन, ग. रंगविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (तुमे सरसति सदगुरु), १२२८७३(+) नेमराजिमती बारमासा, मु. कवियण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (सांवण मासे स्वाम), १२१४०१ नेमराजिमती बारमासा, मु. लालविनोद, पुहि., गा. २६, पद्य, मूपू., (विनवे उग्रसेन की), १२३७४५-१, १२१९५५-१(#$), १२०८०९-१(६) नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., गा. ७०, पद्य, मप., (सारद पय पणमी करी), १२२४६४(+), १२३७८६(+), १२२८५९($), १२३१२८(६) नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (एजी तुम तजकर राजुल), १२१८०१-२९ For Private and Personal Use Only Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (लग रही रे नेम दरसन), १२०९४८-२(+) नेमराजिमती विवाह पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (ए री सखी नेमजी को मोह), १२०३२६-३१४(+) नेमराजिमती विवाह पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (कहूं दीठा नेमकुमारनी), १२०३२६-२१७(+) नेमराजिमती संवाद, मु. लालविनोद, पुहिं., गा. २५, पद्य, मूपू., (समुद्रविजइ का फरजंद आया), १२२९०१-१(+$) नेमराजिमती सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. १५, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (राणी राजुल करजोडी), १२११२० नेमराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अवलमोल अमूल झरूखे), १२१७३९-१ नेमराजिमती सज्झाय, मु. रंगसोम, रा., गा. ११, पद्य, मप., (विनवे राजुल नारी हो), १२३३९९-२(#) नेमराजिमती सज्झाय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (पिया चले गिरिवर कु मेरा), १२१८०१-३० नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (राजुलजु रणजु रहीस रे), १२१६१७-२(+$) नेमराजिमती सज्झाय-बारमासा, मु. मोतीविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (श्रावण वसै रे स्वामी मेली), १२१८०१-१४ नेमराजिमती स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सांवलीया घरि आवकि), १२१७९९-४(+) नेमराजिमती स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अवल गोखने अजब जरोखे), १२०२४६-३(4) नेमराजिमती स्तवन, मु. नगजी, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (नार मनावो है नेमने), १२३५१४-१० नेमराजिमती स्तवन, मु. भिखू, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (श्रीनेमि जिनेसरू यादव), १२२९७६-१(+) नेमराजिमती स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (रहो रहो सांवलीया साहिब), १२१२२१-२(+), १२२१८०-७ नेमराजिमती स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (राजुल उभी मालीइ जंपइ जोडी), १२२२३८-२(+#$) नेमराजिमती स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूप., (अरज कर राजुल खडी हो), १२२२२४-१ नेमराजिमती स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (अलबेली छबीली रंगीली), १२३०८१-५२(+), १२१३१५-३(#) नेमराजिमती होरी पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, दि., (ग्यान गुलाल सुहावना रंग), १२०३२६-३९८(+) नेमराजिमती होरी पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (नेमीश्वर खेलन चले रंग हो), १२०३२६-३९७(+) नेमराजिमती होरीपद, मु. मलूक, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (सिबपुर सेती खेलण न कर्यां), १२०२१८-२ नेमिजिन आरती, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (नेम मोह आरती तेरी हौ), १२०३२६-३१७(+) नेमिजिन आरती, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ९, पद्य, दि., (मंगल आरती कीजे भोर विघन), १२०३२६-३९(+) नेमिजिन आरती, रा. मानसिंघजी, पुहि., गा. ८, पद्य, दि., (किहि विधि आरती करो प्रभु), १२०३२६-३०(+) नेमिजिन ऋद्धिवर्णन-द्वारिकानगरी, मु. भीखमजी ऋषि, मा.गु., गा. १९, पद्य, श्वे., (बावीसमा श्रीनेमजिणंदए छोड), १२१५७४-२(#) नेमिजिन गीत, मु. जिनहरख, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (पाइ पलं विनती करुं बूझं), १२३६४७-१ नेमिजिन गीत, मा.गु., गा. ११, पद्य, पू., (नेमितणा गुण गाइस्यु जिनवर), १२३४८१-२(+) नेमिजिन चरित्र, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., ढा. ४५, वि. १८७४, पद्य, स्था., (नगरा सुरीपुर राजीयो), १२१३६६(+), १२१४४२ नेमिजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, मपू., (अरहा अरिट्टनेमि एकदा), १२३३०३(#$) नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. ऋषभ कवि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (नेमि नम निशदिश जन), १२३०८१-३६(+) नेमिजिन पंचढालियो, पं. रामचंद्र, मा.गु., ढा. ५, गा. ५०, वि. १९१०, पद्य, पू., (श्रीनेमनाथ बावीसमा), १२२४१३-१(+) नेमिजिन पद, आ. अमृतचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेम जिनंद से प्रीत करी है), १२१६५१-५ नेमिजिन पद, पं. आणंदविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आवो नेम सुख चेन करो), १२११७९-१ नेमिजिन पद, पं. आणंदविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (नव भव केरी प्रीत), १२११७९-२ नेमिजिन पद, मु. चिदानंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (अखीयां सफल भइ अलि), १२११९८-४ नेमिजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (अब हम नेमजी की शरण), १२०३२६-७३(+) नेमिजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (गिरिनारि पै नेम विराजत है), १२०३२६-३०३(+) नेमिजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (चल देखे प्यारी नेम नवल), १२०३२६-८३(+) For Private and Personal Use Only Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमिजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (जै जै नेमनाथ परमेसर उत्तम), १२०३२६-१५४(+) नेमिजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (देख्या मैंने नेमजी प्यारा), १२०३२६-१०५(+) नेमिजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (नेमजी तुम केवलज्ञानी ताही), १२०३२६-२६६(+) नेमिजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (नेम नवल देखे चल री लहै), १२०३२६-१२६(+) नेमिजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (मै नेमजी का वंदा साहिबजी), १२०३२६-९४(+) नेमिजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (सुनि मन नेमजी के वैनसु), १२०३२६-७९(+) नेमिजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (सुरनर सुखदाई गिरनारि चलौ), १२०३२६-२९९(+) नेमिजिन पद, मु. धर्मसिंह, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू, (प्रगटा विकटा उमटा विघटा), १२२६३२-३(+) नेमिजिन पद, मु. न्यायसागर, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्यारे नेम मिले तौ), १२०६१४-६७ नेमिजिन पद, मु. न्यायसागर, पुहि., गा. ३, पद्य, मप., (हरियालो डुंगर प्यारो रे), १२३६३४-३ नेमिजिन पद, मु. भूपत, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (नेम निरंजन ध्यावो रे), १२१५१९-२०(#) नेमिजिन पद, मु. भूषण, रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (नेम निरंजन ध्यावो रे), १२०३२०-४०(+-2) नेमिजिन पद, मु. राजरतन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (जग वंदु जादव पति जीनवर), १२२८९२-५ नेमिजिन पद, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हेली गिरनारै बोल्या), १२०६१४-६६ नेमिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (नेम चरण चित ल्यावे क्यों), १२०३२०-२३(+-#) नेमिजिन पद, श्राव. हेमराज, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (और कौं विसार यार नेम पेम), १२०३२६-१३५(+) नेमिजिन पद, पुहि., गा. १, पद्य, मूपू., (पढौ नेमि जिणंद का झुलनाजी), १२२९०१-२(+) नेमिजिन विवाहलो, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. २२, गा. १५१, वि. १८४९, पद्य, मपू., (सरसती सरण नमी रे), १२०९७६(#S) नेमिजिन सलोको, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिश्वरनइ शिरनामी), १२१५९५-१(१) नेमिजिन सवैया, पुहि., सवै. १, पद्य, श्वे., (जादववंस विराजत सुंदर साम), १२१४९८-३(+) नेमिजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (सांभल रे सांवलीया), १२०१८०-२ नेमिजिन स्तवन, मु. नित्यविजय, रा., गा. ५, पद्य, मप., (सूरति थाहरी हो), १२१७९९-२(+) नेमिजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (आठ भवनी तुमे प्रीत), १२२७३२-१(+$) नेमिजिन स्तवन, मु. पुण्यविजय, मा.गु., गा. २२, पद्य, मप., (सरसति मति निर्मल दिउ), १२३७९७ नेमिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (उग्रसेन नृपपति तनया), १२२६९५-२ नेमिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, रा., गा.५, पद्य, श्वे., (सांवरियो साहेब है), १२२१८०-६ नेमिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (सांवलिया साहेब), १२२१८०-५ नेमिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (घेर आवोने नेम वरणागी), १२१५१९-१५(2) नेमिजिन स्तवन, मु. रूपचंद्र, मा.ग., गा.७, पद्य, मप., (तोरणथी तरुणीने परहरा), १२१७४८-२(+) नेमिजिन स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (आलालुं छोरे महारा मन तणो), १२०१८८(+) नेमिजिन स्तवन, मु. लाल, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (गढ ऊंचो घणो रे), १२०४९१(+) नेमिजिन स्तवन, मु. विनय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (हरष्यो मन में रे मुरारी), १२०७२६-२ नेमिजिन स्तवन, मु. हीरानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीश्वर शुदरुपे), १२३३६५-२(#) नेमिजिन स्तवन, रा., गा. ५, पद्य, म्पू., (मत छोडो म्हांने), १२१५१९-२२(#) नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (श्रीगिरनार शृंग शृंगारं), १२३७३०-३ नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (श्रावण सुदि दिन), १२२२०८-४(+), १२१३१५-१(#) नेमिजिन स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (राजुल वरनारी रुपथी), १२२९१९-९ नेमिजिन स्तुति, आ. महिमासागरसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू., (जिण परम मुनिवर संघ सुखकर), १२०१६२-१ नेमिजिन स्तुति, मु. रूप ऋषि, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (नेमिनाथ जीवन प्यारा हे), १२०५४५-२ नेमिजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (सुर असुर वंदित पाय पंकज), १२१८५१-१०(+), १२३०८१-१९(+) For Private and Personal Use Only Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ ५६३ नेमिजिन होरी, पुहि., गा. ८, पद्य, मूपू., (एसे स्यांम सलुणे), १२०१९१-३(4) नेमिजिन होरी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (होरी खेलोने कांनईया), १२०१९१-४(#) नेमिराजिमती गीत, मु. राजहंस, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (राजमती राणी वदइ), १२२९८४-२(+) पंचकल्याणकअभिषेक स्तवन, मु. लक्ष्मी, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मपू., (जय केवल कमला केलि), १२१३४३-१ पंचकल्याणक पूजा, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., ढा. ११, गा. १४०, ग्रं. २१०, वि. १८८९, पद्य, मूपू., (अमरनिकर नित जेहना), १२३१७९ पंचकल्याणक पूजा-२४ जिन, जै.क. वृंदावन धर्मचंद अग्रवाल, पुहि., पूजा. २४, वि. १८७५, पद्य, दि., (वंदौ पांचौ परमगुरू), १२०६१० पंचगति सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आरंभ करतो रे जीव छोड), १२०७४३-५(+) पंचजिन आरती, पुहिं., गा. ११, पद्य, मपू., (जै जै आरति आदि तुम्हारी), १२०१७४-१(+) पंचतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (जै जै नाभिनरिंद नंद), १२३२४५(+$) पंचदंड चौपाई, मु. राजऋद्धि, मा.गु., आदेश ५, गा. ४१८, वि. १५५६, पद्य, मूपू., (जयु पास जिराउलउ जगम), १२३४२६(+#$) पंचमआरा सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (श्रीजिन चरणकमल नमी), १२१२१७-१(+) पंचमहाव्रत सज्झाय, मु. ज्येष्ठमल्ल, मा.गु., ढा. ५, गा. ९८, पद्य, स्था., (सचिपतिसेवित चरणजुग), १२१०४३-१ पंचमीतिथितप उजमणा विधि, मा.गु., प+ग., श्वे., (पांचम अथवा छठिनै), १२२२१९-१०(+#) पंचमीतिथिपर्व सज्झाय, मा.गु., पद्य, मप., (पंचमाजिन तणा पाय पणमी), १२३७९१(६) पंचमीतिथि स्तुति, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (सिद्धवधु केरो सिणगार), १२३०८१-२८(+) पंचांगगणित विधि, उपा. महिमोदय, मा.गु., गा. १६४, वि. १७३३, पद्य, पू., इतर, (परम जोति प्रभुकुं), १२३१४८-१(+) पंचांगविधि दोहा, मु. मेघराज, मा.गु., गा. ५८, वि. १७२३, पद्य, मपू., इतर, (गवरीनंद आनंद करि), १२२५८४-१(+#$) पंचांगसाधन, मा.गु., गद्य, इतर, (प्रथम जिण दिनरो पंचा), १२३८७०-२(+) पंचेंद्रियकथा चौपाई, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., चौपा. ९४, वि. १८वी, पद्य, दि., (मन रीज विकल्प उजार है सौ), १२०३२६-५६३(+) पंचेंद्रियजीव पर्याप्ता अपर्याप्ता बोल संग्रह, मा.गु., को., मूपू., (--), १२१००१(+) पच्चक्खाणकल्पमान यंत्र, मा.गु., को., मपू., (आसाढ मासे दुपया कहता), १२०२५७ पच्चक्खाणतपमान यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), १२०५१७ पट्टावली, मा.गु., गद्य, मूपू., (महावीर देव चोवीसमो), १२१८८९ ।। पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान), १२२१५६(+), १२२९९३-२(+), १२०३०१, १२१६०० पतिव्रता नारी पद, पुहिं., सवै. १, पद्य, श्वे., (सिल सुचि नीरलोभ खम्या दया), १२०४०८-१०८(+) पद्मचरित्र चौपाई, मा.गु., गा. १२७२, वि. १६७२, पद्य, मूप., (पवर सुहंकर जिण नमी), १२२६६२(+#$) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पद्म जिनेसर पद्मलंछन), १२३८४९-१ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. राम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (पद्मप्रभु मुझ सीख वतावो), १२०२१२-२(#) पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (धन धन संप्रति साचो), १२०७८९-१३(+#) पद्मप्रभजिन स्तुति, पुहिं., पद्य, श्वे., (मन भायो मेरे पदमप्रभु), १२०५४५-८(६) पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७वी, पद्य, मप., (हवे राणी पद्मावती), १२२५९८(+), १२३९२२-२(+$), १२१८२५-१, १२१०१४(#$), १२१५०९(#$), १२१९०२(१), १२१५४४($) परनारी परिहार सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (चंचल छेल छबिला मन भमरा), १२०४०८-८१(+) परनारी परिहार सज्झाय, रा., गा. २८, पद्य, श्वे., (सुण मेरा चुत्र सुजाण), १२०४०८-८०(+) परिग्रह विचार सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (प्रीगरो वरत ए पाचमो ए कुण), १२०४०८-११३(+) परिमाण विचार-मगधदेश परिभाषा, मा.गु., गद्य, जै., इतर?, (३० परमाणु की १त्रसरेणु), १२३१६६-२(+) पर्यायकथन भेद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (अनाद अनंत परजाय मेर गिर), १२०३२६-४३०(+) For Private and Personal Use Only Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वडा कल्प पुरव दिने), १२१९३१-८ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (परवराज संवत्सरी दिन), १२१९३१-७, १२१९८४-७ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (कल्पतरुवर कल्पसूत्र), १२१९३१-३, १२१९८४-३ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर नेमनाथ), १२१९३१-६, १२१९८४-६ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीदेवाधि), १२१९३१-२, १२१९८४-२ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजय शृंगार), १२१९३१-१, १२१९८४-१ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुपन विधि कहे सुत), १२१९३१-४, १२१९८४-४ पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. फतेसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वरस दिवसमा सार), १२२७४९-३(#) पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहंस, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूप., (पर्व पजुषण आवीया रे), १२१४८७, १२१९७५, १२२७८५-१ पर्यषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (परव पजुसण पुण्ये), १२०७१९(+), १२१७६०-४(+$) पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वली वली हुं ध्या), १२१८५१-९(+) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वरस दिवसमां अषाड), १२११०९-१(+), १२३०८१-५३(+) पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पर्व पजुसण पुण्ये), १२१४१८(+), १२२१४४-१ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर अतिअलवेसर प्रात), १२२१०२-२(+#), १२३०८१-३१(+) पर्यषणपर्व स्तति, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (सत्तर भेदे जिन पूजा), १२३०८१-३०(+) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (परव पजुसण पुण्यै पामी वीर), १२२१०२-३(+#$), १२३०८१-१६(+) पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., खं. ९ ढाल १५१, ग्रं. ५७५०, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (श्रीजिन आदिजिनेश्वरू), १२१७६९(+$), १२२५९०(+#$), १२२६६५(+$), १२०५२७, १२२४२२, १२०९०४(#$) पाटणतीर्थ कवित्त, मा.गु., पद्य, मपू., (नवछत्र चावडा किथ पाटण), १२१६८७-२($) पापप्रकृति १०० नाम सवैया, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., सवै. ४, पद्य, दि., (घात सैंतालीस दुख निच नर), १२०३२६-५३८(+) पार्श्वचंद्रसूरिगुरुगुण भास, मु. उदो, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर पाय नमी रे), १२३७५८-१(#) पार्श्वचंद्रसूरि पद, मा.गु., पद्य, मप., (श्रीपासचंदसूरिंदजी रे जोइ), १२३७५८-२(#$) पार्श्वजिन अष्टक-गोडीजी, मु. नैनसिंह, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (ॐनमो अनादि सो अनंत ओपमा), १२०२११(+) पार्श्वजिन अष्टोत्तरनाम छंद, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गा. २१, वि. १८८१, पद्य, मपू., (पास जिनराज सुणी आज), १२०५०७-९(+#) पार्श्वजिन आरती, य. अगरचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (आरती करत श्रीपास जिणंद कि), १२०६१४-९२ पार्श्वजिन आरती, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (आरती करुं श्रीपार्श्वनाथ), १२०६१४-८३ पार्श्वजिन गीत, ग. विमलकीर्ति, मा.गु., ढा. ४, गा. १५, पद्य, मूपू., (--), १२३०२६-१(#) पार्श्वजिन गीत-लोद्रवापरमंडण, ग. विमलकीर्ति, मा.गु., गा. ५, वि. १६७५, पद्य, मप., (सहसफणा इम नमो हियउ), १२३०२६-२(#) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, मु. ऋषभ कवि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (वंदु पासजिणंद कमठ), १२३०८१-३७(+) पार्श्वजिन छंद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. १०, पद्य, मपू., (नरेंद्र फणींद्र), १२०३२६-३७(+) पार्श्वजिन छंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (--), १२१३८७($) पार्श्वजिन छंद-अंतरिक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूपू., (सरसत मात मना करी), १२१४६८(+), १२३७७०-१(+) पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ५५, वि. १५८५, पद्य, मप., (सरस वचन दियो सरसति), १२१५३४ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (धवल धींग गोडी धणी सेवक जन), १२२२९९(#) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. रूप, मा.गु., गा. ११२, पद्य, मूप., (त्रिभुवन मझ ततसारं), १२३८९७($) पार्श्वजिन छंद-विविधतीर्थमंडन, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), १२१९४४($) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सेवो पास शंखेश्वरो), १२२६७९(#) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सेवे), १२३५४५-६(+) पार्श्वजिन छंद-स्थंभनपुर, मु. अमरविसाल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूप., (थंभणपूर श्रीपासजिणंदो), १२२९९७-२ For Private and Personal Use Only Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ ५६५ पार्श्वजिन देशांतरी छंद, क. राज, मा.गु., गा. ४७, पद्य, श्वे., (प्रवचन आपो शारदा), १२३५५७(#) पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. २७, पद्य, मूपू., (सुखसंपत्तिदायक सुरनर), १२२१७८-१(+), १२४०२०, १२३२९६ (६) पार्श्वजिन पद, मु. उदयभाग, पुहिं., गा. ३, पद्य, मप., (शरण मनु तेरी तेरी हो तेरी), १२१९७९-६ पार्श्वजिन पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (चाल चाल चाल रे कुअर), १२१५६१-३ पार्श्वजिन पद, मु. उदयसागर, पुहिं., पद. ७, पद्य, मूपू., (अब हम कुं ज्ञान दीयो), १२१५१९-२६(#) पार्श्वजिन पद, मु. कनककीर्ति, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (तूं मेरै मन मै तूं मेरै), १२०६१४-८८ पार्श्वजिन पद, मु. खुशालचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (नांनडीयो गोद खिलावे), १२२८७०-२(2) पार्श्वजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (कौ गुरु सार वरै शिव कौन), १२०३२६-५११(+) पार्श्वजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (कौन बुरातम कौन हरै तजिये), १२०३२६-५१२(+) पार्श्वजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (भज रे मनवा प्रभु पारस कौं), १२०३२६-३६१(+) पार्श्वजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (मोह तार लै पारसस्वामी), १२०३२६-३१८(+) पार्श्वजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (लगन मोरी पारसनाथ सौं लागी), १२०३२६-३६३(+) पार्श्वजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (हमको प्रभु श्रीपास सहाय), १२०३२६-१०३(+) पार्श्वजिन पद, मु. धर्मकल्याण, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन लागो श्रीजिनराजसु), १२०६१४-७४ पार्श्वजिन पद, मु. नग, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (पारसजिन देव देव सेवक), १२०३२०-१६(+-#) पार्श्वजिन पद, मु. रुप, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (डगरा वतायदे पाहाडवा), १२१५१९-४(2) पार्श्वजिन पद, मु. सुखसागर, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (तु मेरा मनमै प्रभु), १२१५१९-१३(#) पार्श्वजिन पद, मु. हरखचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (श्रीजिनपास दयाल लगा),१२०२१०-२(+), १२०६१४-२१ पार्श्वजिन पद, मु. हर्षकीर्ति, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (डिगरो बताय दे पगारीयां), १२०५०३-५(#) पार्श्वजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. २, पद्य, मप., (जिनजी को समरन क्यों न), १२०३२०-२४(+-#) पार्श्वजिन पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (जालम जोगीडासु लागी), १२०६१४-१० पार्श्वजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (तिहारी साची सुधारस वानी), १२०६१४-९१ पार्श्वजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मप., (प्रभु पास जिणंद की), १२०६१४-७ पार्श्वजिन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (हो जी वामजू को छावौ), १२०६१४-५१ पार्श्वजिन पद-काशीमंडन, मु. नग, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (मे तेरे पाय लागु रे पास), १२०३२०-७१(+-#) पार्श्वजिन पद-काशीमंडन, श्राव. मोतीराम, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (धन धन काशी थानक पारसनाथ), १२०३२६-३२६(+) पार्श्वजिन पद-गोडी, मु. राज, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (देख्यो जब गोडी पास), १२३४१४-३(+) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. कल्याण, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (लग्या मेरा तेहरा), १२१५१९-२(#) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. ज्ञानसौभाग्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (मनमोहन गौडीरायजी देखत ही), १२०६१४-७३ पार्श्वजिन पद-गोडीजी, पंन्या. रत्नसुंदर पाठक, पुहिं., पद्य, मपू., (नैना लागे रे जिणंदा मेरे), १२०६१४-४२ पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, पं. दीपसागर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (भवी तुम रे पूजो चिंतामण), १२२२४२-४ पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (भोर भयो भजि श्रीजिनराज), १२०३२६-१४२(+) पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, मूलचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूप., (मेरो मन मोयो छै), १२०२३९-५८) पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, मु. रतनचंद, रा., गा. ६, वि. १८७४, पद्य, श्वे., (वामानंदन पासजिणंदजी), १२२१८०-१४ पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, ग. लालचंद, मा.ग., गा. ३, पद्य, मप., (जयवंतो जिन तेवीसमो असरण), १२०६१४-७० पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, मु. हर्षचंद-शिष्य, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (तारो तारो चिंतामण स्वामी), १२०२३१-१ पार्श्वजिन पद-लाहोरमंडन, मु. भानुचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (भोर भयौ भोर भयौ जाग), १२०१८१-३ For Private and Personal Use Only Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन पद-वाराणसी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (चल पूजा कीजै बनारस मैं), १२०३२६-३२७(+) पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, मु. नग, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (श्रीसंखेसर पास जिनेसर), १२०३२०-६९(+-#) पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, मु. वीरविजय, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (अजब जोत मेरे प्रभु), १२२४७५-७ पार्श्वजिन प्रभाती-शंखेश्वरतीर्थ, उपा. उदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज संखेस्वरा सरण हुँ), १२०६४५-४ पार्श्वजिन बारमासा, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रावण पावस उलह्यो), १२०२३६ पार्श्वजिन लघुस्तवन-जैसलमेरमंडण विनतीमय, मु. सुखलाभ, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जेसलगिरिमंडण सुखकरु सामी), ___ १२३८६९-२(+#) पार्श्वजिन लघुस्तवन-मूलताणमंडन, पंन्या. हर्षवल्लभ वाचक, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (श्रीमूलतांणै सोभतारे लाल), १२०२३७-१ पार्श्वजिन लावणी-मकशी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुलक बीच मगसी पारसका), १२१०९६-५(+) पार्श्वजिन लावणी-मगसीमंडन, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (मुगतगढ जीत लिया वंका), १२३६७१-१ पार्श्वजिन विवाहलो, मु. रंगविजय, मा.गु., ढा. १८, वि. १८६०, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीदायक), १२३०००(5) पार्श्वजिन सलोको, जोरावरमल पंचोली, रा., गा. ५६, वि. १८५१, पद्य, श्वे., वै., (प्रणमुं परमातम अविचल), १२१४४१, १२१८७० पार्श्वजिन सवैया, जै.क. बनारसीदास, पहिं., गा. १, वि. १७वी, पद्य, दि., (जिनके वचन उर धार जुगल), १२२६३२-१२(+), १२२२२१-३ पार्श्वजिन सवैया, क. मकरंद, पुहि., सवै. १, पद्य, मप., (मालव तो मधुरी कुरु कुंदन), १२१४९८-२(+) पार्श्वजिन सवैया, मु. मतिविजय, पुहिं., सवै. १, पद्य, मप., (वसवाल की वीच वीराजत हे), १२१४९८-४(+) पार्श्वजिन सवैया, मु. मतिविजय, पुहिं., सवै. १, पद्य, मप., (श्री जिन पास विराजत हे), १२१४९८-५(+) पार्श्वजिन साखिया, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मोर मेहे रवि कमल जिम चंद), १२१३६९-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (तेरी अंखीयन नै जुग तार्या), १२१५१९-१०(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदराम, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्यारा वो जगतस्यु), १२२७४९-२(#) पार्श्वजिन स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पार्श्वप्रभुना चरण), १२३७८०-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. ऋषभसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (तारक जिन तेवीसमा),१२१५५०-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (निरमल होय भज ले प्रभु), १२०६१४-५७ पार्श्वजिन स्तवन, मु. गंग, मा.गु., गा. ६, पद्य, स्था., (जिनवरह हो जिनवर आदेशर), १२०२५० पार्श्वजिन स्तवन, मु. चंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (पासजिनेसर तुं अलवेसर), १२०२४६-१(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, प., (अश्वसेनजीरा वावा), १२३३०१-१(+$), १२०६१४-४८, १२२०२७-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (आज बधाई म्हारै आज), १२३३०१-३(+) पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनरंगसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पूजीयइ होजी), १२३९३५-२(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनलाभ, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (आज आयो रे उछाह जीवडा), १२०६१४-२० पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (आज आनंदघनन मट्यो जी), १२३३०१-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनहर्षसूरि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिनराज नाम तेरा राखु), १२०६१४-१४ पार्श्वजिन स्तवन, पं. दीपसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (पारश प्रभु देवो सुखकार), १२२२४२-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. देवगुप्तसरि-शिष्य, मा.गु., गा.१६, पद्य, मप., (वासनी पासनी गुण वखाणओ), १२२५१६-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. पुण्यविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मपू., (अश्वसेन का लडका जोर), १२०४३१-३(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. पुण्यविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १९३७, पद्य, मूपू., (नगर नागोरना जात्रावी एतो), १२१९६९(#) पार्श्वजिन स्तवन, ऋ. मनरुपजी, रा., गा. १६, पद्य, स्था., (तेवीसमां हो प्रभु पासजिणं), १२१६२०(+), १२१९८२-१ पार्श्वजिन स्तवन, वा. महिमाकल्याण गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सुंदररुप सोहामणो लाल अति), १२३०९०-२(2) पार्श्वजिन स्तवन, ग. मेघराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (प्रणमं जिन त्रेवीसमौजी), १२३०९०-१(#) For Private and Personal Use Only Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ ५६७ पार्श्वजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ११, वि. १८५७, पद्य, मपू., (पास माने एक आपरो आधार उठत), १२२००२-३(+), १२१३८८-२(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रणमु पासजी रे वाला), १२१८०१-९ पार्श्वजिन स्तवन, मु. लालचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मपू., (मेरो मन वश कर लीनो), १२०६१४-२३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (डगरा वताये दे पहाडीया), १२२२८९-१(+) पार्श्वजिन स्तवन, आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (खंभायत मै थंभण पास सेवकजन), १२३११२-८ पार्श्वजिन स्तवन, आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १९७६, पद्य, मपू., (तारण तरण अनंतगुण जिनवर), १२३११२-१२ पार्श्वजिन स्तवन, आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १९३७, पद्य, मूपू., (श्रीनवपल्लव पासजी), १२३११२-७ पार्श्वजिन स्तवन, पुहि., पद्य, श्वे., (एक ही वन में मृगराज वसै), १२२७५६-१($) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (प्रणमु सारद माय कि मणि), १२३४१०-१०(#) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन मेरो वीकस्यो कमल), १२३६४७-३ पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मप., (सेवो पास जिनेसर स्वामी), १२३०६४-५ (#$) पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (प्रणमुं पारसनाथ प्रह), १२३२६४(+), १२३९३० पार्श्वजिन स्तवन-अक्षयनिधितपगर्भित, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १२, वि. १८४३, पद्य, मपू., (तपवर कीजे रे अक्षयनिधि), १२०८५६-७ पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ५५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (वाणी ब्रह्मवादिनी), १२३५८०(#S), १२३२९२(६) पार्श्वजिन स्तवन-करैडातीर्थमंडन, मु. विद्याकुशल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज श्रीजिनराज वंदे), १२०२३९-६८) पार्श्वजिन स्तवन-कोकातीर्थमंडन, आ. विनयदेवसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नीलकमल काया कूअली रे), १२०२६४-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (प्यारो पारसनाथ पूजा), १२१५१९-३०(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कान, पुहिं., गा.७, पद्य, श्वे., (पास पीयारो लागे पार्यो), १२१९७० पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (जगगुरु श्रीगोडीपुर), १२०६१४-६३ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. खूबचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (प्रभू थे कासीनगरीनो वासी), १२०२४६-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. खेम, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (चाकर रहिस्यां जी गौड), १२०६१४-८ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (उदयौ दिन आजसु धन्यजी), १२०६१४-९७ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (विनय सजीने साहिबा), १२०६१४-४७ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (प्राण थकी प्यारो), १२०९०३-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, स्पू., (मुजरो मानीने लेजो हो), १२३०६४-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (कृपा करो गोडी पास), १२०६१४-५ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. साधुहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वामानंदन वांदता आपो), १२१७९९-५(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. सुबुधीविजय, मा.गु., गा. ८, वि. १८७८, पद्य, मप., (मन मुरत मोहनगारी रे), १२१५१९-१६(#) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. भावरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू., (चिंतामणि चित धर रे), १२०६१४-५५ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (नीलकमल दल सामली रे), १२२८०१-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जिनपति अवनासी कासी), १२११०९-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. सकलविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (धन्य दिवस थयो आजनो), १२३५१४-१ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (आणी मनसुध आसता देव), १२०२१७(#) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि बरहानपुर, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. १५, पद्य, भूपू., (सांभलउ साहिब माहराजी एक), १२०१६६ पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (जीराउलि मंडण श्रीपास), १२१२७१(+#) पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (जीराउला देव करउं), १२२७९४(+) For Private and Personal Use Only Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन-जैसलमेरमंडण, मु. हितधीर, मा.गु., गा. ११, वि. १८३२, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनपती तेवीसमा), १२०४९२ पार्श्वजिन स्तवन-नवखंडा, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १९४५, पद्य, मूपू., (घनघटा भुवन रंग छाया), १२०६२७-४ पार्श्वजिन स्तवन-पुरिसादानी, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुखकारी हो साहिब), १२०२१०-६(+), १२०६१४-६९ पार्श्वजिन स्तवन-पुरूषादानीय, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, ., (परम पुरुष परमातमा), १२१०७८-२, १२०२०७-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-पोखणा, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वेवाण उठ तुं वहेली), १२१९२२-१ पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाती, मु. लाभउदय, मा.गु., गा.५, पद्य, म्पू., (उठो रे मारा आतमराम), १२०६१४-३, १२०२३९-३(-) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. उत्तम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वंछित फलदायक स्वामी), १२०२१९ पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. क्षेमराज, मा.गु., गा. २४, पद्य, मपू., (सुगुरु शिरोमणि मनिधर), १२३२६७(+) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. नगविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (सुणो भवि जिनजी फलवर), १२०३२०-१५(+-#) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, पा. रामविजय, मा.गु., गा.७, वि. १८२३, पद्य, मूपू., (भलै दीठी सवालख भूम मेडती), १२१३९५(+) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (परतापूरण प्रणमीइ अरिगंजण), १२३१५१-२(+#$) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वामादेवी नंदन जगदानंदन), १२३३४८-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (वंछित फलदायक सांमी अंतरगत), १२०२३९-१८) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धिकापुर, उपा. समयराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (आज मनोरथ सवि फल्या दीठा), १२३८६९-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धिमंडण, आ. जिनरत्नसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पासजिनेसर प्रणमीयइ मनधरि), १२०१६८-२ पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मु. जिनवर्द्धमान, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (--), १२०१८१-२ पार्श्वजिन स्तवन-लघु, मु. वसतो, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (त्रिभुवन साहिब सांभल), १२३५६६-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, मु. सुजस, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (वरदायनी विमल ब्रह्मा), १२२८०६(+) पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, मु. नित्यप्रकाश, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सारद हो पाय प्रणमवी), १२२३२७-१ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८४९, पद्य, जै., (संखेश्वर जिन राय दिल में), १२२३७१(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. चिदानंदजी, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पास जीण), १२११९८-१३ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, जगरुप, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (वामासुत म्हानै लागै), १२०६१४-५९ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजिन), १२३५४७-२(+), १२१६८७-१ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनरंगसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (मुझनइ परतउ ताहरउरे लोइ), १२३९३५-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अब मोहे ऐसी आय बनी श), १२०२०९-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पास), १२०३२०-४९(+-#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मा.गु., गा. ८, वि. १९३३, पद्य, मपू., (संखेसरा पासजी जयकारी), १२१७४९ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडन, आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १९३७, पद्य, स्पू., (श्रीसंखेसर देव दयाला सोभे), १२३११२-६ पार्श्वजिन स्तवन-शामला, मु. ज्ञानविमल, पुहिं., गा. ६, पद्य, मपू., (मेरे साहिब पासजी), १२३१६२-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-शिवपुरिमंडण, मु. चंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (प्राणपियारा पासजि), १२३३०१-५(+) पार्श्वजिन स्तवन-सम्मेतशिखरतीर्थ, मु. खुशालचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (तुम तो भले विराजो जी), १२०६१४-६ पार्श्वजिन स्तवन-सम्मेतशिखरतीर्थमंडन, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूप., (डगरो बताई दे पहाडिया), १२०२१०-८(+) पार्श्वजिन स्तवन-सुरतमंडन, ग. जिनलाभ, मा.गु., गा. ९, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (सहसफणा प्रभु पासजी जय), १२०६१४-६१ पार्श्वजिन स्तवन-स्थंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., ढा. ५, गा. १८, पद्य, मप., (प्रभु प्रणमुंरे पास), १२०९९१, १२२८९०($) पार्श्वजिन स्तुति, मु. कांतिविजय, गु., गा. ४, पद्य, मपू., (पासजिणंद वामानंदा), १२११०६-३ पार्श्वजिन स्तुति, मु. कृपाविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (तिहुअणजण वंछिय पूरण), १२३०८१-५१(+) पार्श्वजिन स्तुति, पं. कृष्णविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (प्रभु पास जिणेसर केसर), १२३०८१-४३(+) पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (अश्वसेन नरेसर वामा), १२१८५१-४(+) पार्श्वजिन स्तुति, मु. नंदीसागर-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (संखेसर मंडण दूरिय विहंडण), १२३०८१-३३(+) For Private and Personal Use Only Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ ५६९ पार्श्वजिन स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीपास जिणंदा मुख), १२२९१९-१० पार्श्वजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (श्रीपास जिणेसर पुजा), १२३०८१-१८(+) पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (पास जिणेसर पूजा करुं त्रण), १२०२३२-३(#) पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, मु. लब्धिरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीजिन गोडीपार्श्व), १२३०८१-१३(+) पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, ग. शिवचंद्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (निशमय गवडीश्वर), १२३३४०-१ पार्श्वजिन स्तुति-जीरावाला, पं. कृष्णविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जीरावलो जगनाथ जयंकर भेटो), १२३०८१-४२(+) पार्श्वजिन स्तुति-पौषदशमीपर्व, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जय पास देवा करूं), १२३०८१-९(+) पार्श्वजिन स्तुति-वरकाणा, पंन्या. कमलविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (वरकाणई वर मंडण पास), १२३०८१-४९(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (सकल सदा फल चिंतामणि), १२०२६४-१(+$), १२३४९३-१(+) पार्श्वजिन होरी, मु. रत्नसागर, पुहिं., गा. ७, पद्य, मपू., (रंग मच्यो जिनद्वार), १२०१९१-६(#) पार्श्वजिन होरी, मु. सहजसागर, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (रंग मसीओ जि द्वार), १२३५४७-३(+) पार्श्वपुराण, जै.क. भूधरदास, पुहिं., अ. ९, वि. १७८९, पद्य, दि., (मोह महातम दलन दिन तप लछमी), १२०६९६(+) पासत्था के बोल, मा.गु., गद्य, मपू., (आधाकर्मीपिढ फलग भोग), १२१२८२, १२१२५१(६) पंडरीककंडरीक सज्झाय, ऋ. केवल, मा.ग., गा. २५, वि. १९५५, पद्य, स्था., (जंबुदिप सुवावणो रे लाख), १२०४०८-२(+) पुंडरीककंडरीक सज्झाय, मा.गु., ढा. २, गा. ३५, पद्य, श्वे., (कुंडरीक रीद्ध तज), १२३५१४-९ पुण्यपापप्रकृति पद-बंधघातविपाकी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (बंध एक सो वीस उदै सो बाईस), १२०३२६-५३७(+) पुण्यपालराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, मपू., (--), १२२१७१(#$) पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ८, गा. १०२, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धिदायक सदा), १२१७८३(+), १२०४६९, १२२१०९(६), १२२४३१(६) पुण्यप्रकृति ६८ नाम सवैया, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., सवै. ४, पद्य, दि., (सुरनरपशु आठ साता ऊंच भली), १२०३२६-५३९(+) पुद्गलगीता, मु. चिदानंद, पुहि., गा. १०८, पद्य, मूपू., (संतो देखीयें बे), १२०४४२($) पुद्गलपरावर्त भेद, मा.गु., गद्य, मपू., (औदारिक वैक्रिय तेजस), १२०१७७-१(+#) पुप्फचूलासाध्वी सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ९, वि. १८४७, पद्य, स्था., (संतनाथ जिन सोलमो), १२१२४६-१ पुरंदरकुमार रास, वा. मालदेव, मा.गु., ढा. १२, गा. ३७६, पद्य, मूपू., (वरदाई श्रुतदेवता), १२१५७०(5) पुरुष ३२ लक्षण चिह्नफल विचार-सामुद्रिकशास्त्रगत, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (१ छत्र ह्वे तो राजा हुवें), १२२४२८ पुरुषादिवेदनिर्णय चौपाई, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., चौपा. ६, पद्य, दि., (तिय कौ भावसै न जो धरै), १२०३२६-५४०(+) पुष्करावर्तद्वीप ६४ विदेहपरिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (पुहकर अद्ध मै विदेह), १२०३२६-४८०(+) पुष्करावर्तद्वीपपरिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (पहूकरा सूची लाख पैंतालीस), १२०३२६-४७९(+) पुष्करावर्तद्वीपपूर्वपश्चिमाष्टाष्टलक्षपरिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (चौरानवैसै मेरु भद्रसाल), १२०३२६-४८१(+) पुष्करावर्तभरतादि परिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (इस मांहि ते चौदे गिर घटाय), १२०३२६-४८२(+) पूजाष्टक, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (प्रभू तुम राजा जगत), १२०३२६-४९(+) पूर्णपंचाशिका, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., सवै.५५, वि. १८वी, पद्य, दि., (नाथनिके नाथ ओ अनाथनिके), १२०३२६-४०८(+) पृथ्वीचंदसागरचंद चौढालिया, मा.गु., ढा. ४, गा. ४२, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवीर जिणेसरु), १२१४३३-१, १२२३३१ पृथ्वीपरिधिमान कवित्त, कालिदास, मा.ग., गा.१, पद्य, वै., इतर, (नवकोड परबत अनड कोडि),१२१५६५-२(+) For Private and Personal Use Only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५७० www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पोषदशमी कथा, आ. हेमाचार्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १२२६५५(३) पौषदशमीपर्व स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेश्वर पास), १२२७९२-१ प्रकृतिबंध पद-गुणस्थानकगर्भित, जे. क. धानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ३, पद्य, दि., (एक सी सत्तरे एक सी), १२०३२६-४४९(०) प्रतिक्रमणसूत्र आलावा संपदा अक्षर संख्यादि कोष्टक, मा.गु., को. मूपू. (--) १२१२०५-३(+) יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रदेशीराजा चौपाई, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., डा. २२, वि. १८७७, पद्य, स्था. (तिण कालने तिण समै), १२१६३१(*) प्रदेशीराजा चौपाई, रा., ढा. २६, पद्य, मूपू., (सुरीयाभ हौले करजोडी विनो), १२०९१९ प्रदेशीराजा रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ३३, ग्रं. ११००, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (सकल सिद्ध संपद करण), १२१४९२(#$) प्रद्युम्नकुंवर लावणी, मु. खूबचंद ऋषि, पुहिं., गा. २२, वि. १९६४, पद्य, श्वे. (ये प्रजनकंवर कि), १२४०१९(+) प्रबोध कुलक, मा.गु गा. ११, पद्य, श्वे. (जीविइ चंचल रहीनह करसि महत) १२३६५०-२(+) " " प्रभु पोखणा स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जीरे इंद्राणी पूछे व), १२१९२२-२ प्रमाणबोध, मा.गु., गद्य, स्था., (भव्य जीवना सुख बोधने), १२२३०८ ! י प्रश्न पत्रिका, य. गोपीचंदजी, मा.गु., गा. ५३, वि. १९३३, पद्य, मूपू., ते., (चरण कमल जिनराज का जामे), प्रतहीन. (२) प्रश्न पत्रिका-आधारित प्रश्नोत्तर तत्त्वबोध, आ. जयाचार्य, मा.गु. अधि. २७ गा. १७०२, वि. १९३३, पद्य, मूपू. ते. (नमूं देव , अरिहंत नित), १२११५२(क) प्रश्नोत्तररत्नमाला, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ६२, वि. १९०६, पद्य, म्पू, (परम ज्योति परमात्मा), १२११९८-२ प्रश्नोत्तर संग्रह-आगमिक, मा.गु., प्रश्न. ३२, गद्य, मूपू., (नवकार मांहि पहिला पद), १२३२६०-१६(+) प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमुं तुमारा पाय), १२१८०१-१३ प्रहेलिका दोहा, पुहिं. दोहा १, पद्य, वै., इतर (अहिफण कमल चक्र टणकार), १२१६०३-२(+) प्रहेलिका हरियाली-सज्झाय, मु. ऋषभसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (हुं तुज पूछु वात हे), १२०१७८ प्राकृतव्याकरण दोहा, मु. माधव मुनि, पुहिं. गा. २७, पद्य, स्था, इतर (श्रीजिनवाणी भारती बंधी), १२२२५७(+) प्रास्ताविक कवित्त, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., सवै १७, पद्य, दि. (मान अंगीकार मद पीवत है), १२०३२६-५५२ ( ) " " प्रास्ताविक कवित्त, मा.गु. का. १, पद्य, इतर ( आप कजि पीरड़ पंच दि), १२१७१८-१ प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे. वै., ( थरहरै कृपण पंचमांहि), १२०४०८-१४७(+) प्रास्ताविक दोहा, पुहिं., मा.गु., दोहा, ४, पद्य, मूपु, (कासा कसिकु ना लेत हे), १२०२२०-२ प्रास्ताविक दोहा ५०, जे.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., दोहा. ५०, पद्य, दि., (राग विरोध विमोह वस भर्म) १२०३२६-५७०१) प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहिं., मा.गु., दोहा. ७१, पद्य, श्वे., इतर, (पडिवन्नइ माछा भला ), १२२४३८-१(+) प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहिं. मा. गु., रा. गा. २५, पद्य, वे. इतर (बुरी प्रीत भमर की कली कली), १२०४०८-८४१०), १२०७७९-२ १२२४५४-२३(०१ " प्रास्ताविक पद, जे.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (दुरजनमों वास सेती सिघ) १२०३२६-५२७(१) प्रास्ताविक पद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुठि, गा. ४, पद्य, दि., (निर्धन द्रव्य पाय साह देख), १२०३२६-५२९(+) प्रास्ताविक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (पंच नरक रार सेती ढंग चोर) १२०३२६-५२६ (+) " प्रास्ताविक पद, जे.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., ( रोगपंथ की सतावे नारवस्त), १२०३२६-५२८(+) प्रास्ताविक सवैया संग्रह, पुहिं., मा.गु., गा. ३, पद्य, जै. ? (एक ही मातपिता तसु), १२०२४५-४(३) १२३५५८-५ाडा प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. २२०, वि. १६७२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं सद्गुरु पाय), १२१७६२(*), १२३४३२ (+३), १२३८२४-१(+०३), १२३९९७ (AS) बदनविलास, क. बदनमल मेहता, पुहिं., दोहा. १२१, वि. १९०३, पद्य, दि., (श्रीसतगुरुपदांभोज श्रुत), १२०६३२(+#) (२) बदनविलास-अर्थ, पुहि., गद्य, दि. (श्रीकहीय सोभायमान महंत), १२०६३२(+) बलचंद रास, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., ढा. १३, वि. १८६०, पद्य, श्वे., (श्रीशांतिनाथ जिनना), १२१७०९(+) बलदेवमुनि सज्झाय, मु. सकल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (तुंगी आगीर सीखर सोहे), १२०७८९-११+०) बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (द्वारिका हुंती निकल), १२१८९८-४(+) For Private and Personal Use Only Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ ५७१ बलभद्रमनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (मासखमणने पारणे तपसी), १२१२२१-४(+) बासठीयो-बृहत्, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव १ गइ २ इंदीय ३ क), १२३२८७(+$), १२२७६० बाहुबली सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.१२, पद्य, मूपू., (बाहूबली वन काउसग), १२३७०४-२ बाहुबली सवैया, मु. सोमचंद, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (प्रभु छत्र छाय रेउ कूल), १२०४०८-१०(+) बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (दिन सकल मनोहर बीज), १२१७६०-१(+), १२३०८१-२(+), १२२०७३-२(2), १२३६४६-२(#), १२०९७१-२($) बुढापा रास, मु. चंद, रा., ढा. २२, वि. १८३६, पद्य, मप., (दया ज माता वीनवु), १२२३४६ बुद्धिप्रपंच दृष्टांत सज्झाय, मु. सावन, मा.गु., ढा. ४, पद्य, स्था., (संप्रति सुख परीकर सदा), १२०२५२-१ बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., गा. ६२, पद्य, मूप., (प्रणमुं देवी अंबाई), १२१५५३(+), १२३०४६, १२३६३८ बोल संग्रह-जीवादि भेद, मा.गु., गद्य, स्था., (एगेंदीएसु पंचसु बार), १२०८३३ ।। ब्रह्मचर्य सज्झाय, मु. केशरकुशल, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (वीर जीणेसर भाखीयो), १२२६३३-१(६) ब्राह्मीसुंदरी सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (आदनाथ गर जनमीया ज्या), १२०४०८-९५(+) भक्तिदशक, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., सवै. ११, पद्य, दि., (रिषभ अजित संभव अभिनंदन), १२०३२६-१३(+) भक्तिमहिमा पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, वै., (काहा कउ छबि आप कि भले), १२०४०८-१७५(+) भरतचक्रवर्ती पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (आरसी देखत मन आरसी लागी), १२०३२६-३६६(+) भरतचक्रवर्ती पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (एक समै भरतेश्वर स्वामी), १२०३२६-३८७(+) भरतचक्रवर्ती पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (कहा री कहूं कछु कहत न आवै), १२०३२६-३६७(+) भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मु. कनककीर्ति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनमें ही वैरागी भरत), १२०३२०-५६(+-#) भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ११, वि. १९४५, पद्य, श्वे., (मुगतपद पाया हो), १२२१९१-७ भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (भरतजी भूप भये वैरागी), १२०४०८-४(+) भरतचक्रवर्तीदृष्टांत कथा-अहंकार, मा.गु., गद्य, मपू., (भरत घरे आवी चक्ररत्न पूजा), १२२०६४ भरतबाहुबली लावणी, मु. हीरालाल, रा., गा. ५, पद्य, स्था., (यह दिया दान प्रजा को), १२०४०८-९(+) भरतबाहुबली सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. ८, वि. १९५६, पद्य, श्वे., (भरत संजम रिषभ सुणि रे), १२०४०८-५(+) भरतबाहुबली सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (इम नवि कीजि हो सगुण), १२३४१०-५(2) भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (बाहुबल चारित लीयो), १२०७८९-९(+#), १२०४०२-२१(5) भरतबाहबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मपू., (राजतणा अति लोभीया), १२०४०८-१(+), १२१७४४-३, १२१८५२-१ भरतबाहबली सलोको, क. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६८, पद्य, मपू., (प्रथम प्रणमु माता), १२१६१६(+) भवदेवनागिला सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा.११, वि. १८७२, पद्य, श्वे., (भवदेव जागी मोहनी तज), १२२१८०-२, १२२२३६-२ भवदेवनागिला सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (भवदेव भाई घरे आवीयो), १२२९७६-३(+) भांजगडीया खटपटीया ढाल, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., ढा. ७, गा. ४७, वि. १९७७, पद्य, स्था., (निराकार चिद्रुप अजरामर), १२२०३१(+) भावछत्रीसी, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ३९, वि. १८६५, पद्य, मूपू., (क्रिया अशुद्धता कछु), १२१७७३-२(+) भावछत्रीसी, मु. भगवानदास ऋषि, मा.गु., गा. ३६, वि. १९०४, पद्य, मूपू., (थानै सखरो सोहेजी सरवररो), १२२४६२-३ भाव पद-गुणस्थानकगर्भित, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ६, पद्य, दि., (चौतीस बतीस तेतीस छतीस), १२०३२६-४५३(+) भुडा रास-पतिपत्नी संवाद, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), १२०६८२() भगपुरोहित चौढालिया, मु. जेमलजी मुनि, रा., ढा. ४, पद्य, श्वे., (तीण अवसर मुनीराव), १२०९१२-१(+) For Private and Personal Use Only Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ भृगुपुरोहित छढालीयो, मु. जेमलजी मुनि, मा.गु., ढा. ६, पद्य, श्वे., (दर्शण कीधां साधरो), १२२३८८ भोजनछत्रीसी-महावीरजिनस्तुतिगर्भित, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (त्रिशला राणी कहै), १२२०३७(#) भ्रमभंजन काव्य, मा.गु., गा. ९३, पद्य, मपू., (प्रणम्य देवपरमातमा परम), १२०८६७(#$) मंगल आरती, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा.८, पद्य, दि., (तन मंदिर मन उत्तम ठाम), १२०३२६-३६(+) मंगलकलश कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुनित्वा यथास्थानमुपा०), १२०७११-१(+) मंगलकलश चौपाई, मु. लक्ष्मीहर्ष, मा.गु., ढा. २७, वि. १७१९, पद्य, मपू., (प्रह उठी नीत प्रणमीय), १२१२६२(5) मंगलकलश फाग, वा. कनकसोम, मा.गु., गा. १४२, वि. १६४९, पद्य, मूपू., (सासणदेवीय सामिणी ए), १२२९१५(#) मंगलकलश रास, मु. दीप्तिविजय, मा.गु., वि. १७४९, पद्य, मपू., (प्रणमुं सरसति स्वामी), १२०९०३-१(+) मंगल पद, मु. जिनदास, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (अरिहंत नमो नमो सिद्ध), १२१४९४(#) मंदोदरीरावण संवाद सज्झाय, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (--), १२१८७८-१(६) मघाशिक्षा चरित्र-शीलप्रभाव, पुहिं., गा. २४, पद्य, श्वे., (उन्नति चाहो अगर निज धर्म), १२१७४७-२ मछोदर चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ३३, गा. ९४८, वि. १७१८, पद्य, मूपू., (पोहो ऊठी प्रणमु), १२३८०६(+#$) मतप्रबोधछत्रीसी, मु. ज्ञानसार, पुहि., गा. ३७, पद्य, मपू., (तप तप तप तप क्यौं), १२१७७३-१(+$) मतिज्ञान ३३६ भेद पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (अवग्रह ईहा औ आवाय धारनाए), १२०३२६-४२३(+) मत्स्योदर कथा, मा.गु., गद्य, मूप., (मनें करीनें जो धर्ममां), १२०७११-२(+) मत्स्योदर चौपाई, मु. जिनसुंदर, मा.गु., ढा. ३३, वि. १७१८, पद्य, मपू., (प्रह ऊठी प्रणमुं सदा), १२३२७७(+) मदनधनदेव रास, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., ढा. १९, गा. ४६२, वि. १८५७, पद्य, मूपू., (विहरमान प्रभु राजता), १२१८८६(+) मदनरेखासती रास, मु. हीर ऋषि, मा.गु., गा. १५७, वि. १८१४, पद्य, मूपू., (जोवो मांस दारु थकी), १२१०१८(+#$) मदनरेखासती रास, मा.गु., गा. १८८, पद्य, मूप., (जूआ मांस दारु तणी), १२०६७५(+), १२०९१७(+), १२२१०६(+), १२१४०६, १२३२७९(#), १२१९१८(६) मनोवेगवायुवेग चौपाई-समकित, मु. दर्शनविजय, मा.गु., गा. ९०८, वि. १७०१, पद्य, मपू., (त्रिभुवनजन वंछित करु), १२३३५३(+) मयणरेहासती चौपाई, मा.गु., गा. ७०, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर पाइ० बुधि गुणवी), १२१६४६(#) मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. कल्याण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मप., (रिषभ जीवन वासइ वसइ), १२३३६५-१(#) मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. ३०, वि. १९६१, पद्य, श्वे., (श्रीरिषभ किरतारे लेई संजम), १२०४०८-३(+), १२१४१६-२(+$) मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८३७, पद्य, स्था., (नगरी वनीतां भली वीर), १२१६०९-१ मलयसुंदरी रास, मु. कांतिविजय, मा.गु., खं. ४ ढाल ९१, गा. २५५२, वि. १७७५, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), १२३५८३(+) मल्लिजिन पद, श्राव. सुखानंद साह, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (तार ले मल्यमुनीस अब मोहि), १२०३२६-३३४(+) मल्लिजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चीत कुंण रमे चित कुण), १२२७३२-३(+) महादंडक ३० द्वार, मा.गु., गद्य, मूपू., (दंडक १ लेस्या २ ठिती), १२०४८७(+), १२०९४३(+) महाबलमलयासुंदरी चौपाई, मु. भक्तविमल, मा.गु., खं. ४, वि. १८५२, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ प्रणम), १२१८९२(+#) महाभद्रजिन स्तवन, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (विहरमान अढारमा रे), १२१४८१-४ महाविदेहक्षेत्र यंत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १२०५७४ महावीरगौतमसंवाद चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४, वि. १८३९, पद्य, मप., (--), १२१३७२(+$) महावीरजिन ३३ भव-दिगंबरमत, मा.गु., गद्य, दि., (१भिल्लः पुरूरवा २प्रथम), १२०९४० । महावीरजिन आरती, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा.८, पद्य, दि., (पावापुर निरवान की राग), १२०३२६-३४(+) महावीरजिन उपसर्ग-गौशालाकृत वर्णन, मा.गु., गद्य, मपू., (घणा उपसर्ग थया अनि), १२०१७०(+) महावीरजिन कथा-संक्षिप्त, मा.गु., गद्य, श्वे., (इहां कुण जे श्रीसमण), १२२२७४-१(-६) महावीरजिन गहुंली, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीतभय पाटण वीरजी), १२३७०६-२ महावीरजिन गहुंली, मु. शिवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (चंपानयर उद्यान हो), १२०६१७-८ For Private and Personal Use Only Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ महावीरजिन गहुंली, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (कौनै वन वीर समोसर्या), १२०३२०-४४(+-#), १२१७४४-४ महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (नव चोमासी तप कर्या), १२०५६२-१(+), १२१९३१-९, १२३२१४ महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिननी बहिन सुदर्शना), १२१९३१-५, १२१९८४-५ महावीरजिन चौढालिया, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., ढा. ४, ग्रं. ८२, वि. १९३३, पद्य, श्वे., (सासणनायक सुरतरु), १२२२८१-२(5) महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ६३, वि. १८३९, पद्य, स्था., (सिद्धार्थकुलमई जी), १२१२३७(+) महावीरजिन जन्मबधाई पद, मु. रतन, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जगनायक के जगनायक के), १२०६१४-३९, १२१५१९-७(#) महावीरजिन दशश्रावक नाम, नगरी, ऋद्धि आदि वर्णन कोष्ठक, मा.गु., को., मूपू., (आनंद वाणीज्यग्राम), १२१८६९-२ महावीरजिन देशना, मु. शिवचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आज दियै प्रभु वीर), १२०६१७-७ महावीरजिन नमस्कार, मु. ऋषभ कवि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (वंद वीरजिणंद महियल), १२३०८१-३८(+) महावीरजिननिर्वाणोत्तर श्रुतस्थिति पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (वासठ वरस लग केवली रहै), १२०३२६-४४५(+) महावीरजिन पद, मु. जिनचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (आज हमारे भाग वीर), १२०६१४-३६ महावीरजिन पद, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पावापुर महावीर जिणेस), १२०६१४-३३ महावीरजिन पद, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद. ४, पद्य, मूपू., (मारे भलो रे उगो), १२३३०१-९(+) महावीरजिन पद, पं. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (कंचन गात सुहातइ मूरत), १२२६३२-६(+) महावीरजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (अब मोहे तार ले महावीर), १२०३२६-१५३(+) महावीरजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (जब वाणी खरी महावीर की), १२०३२६-२०८(+) महावीरजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (नी चलि वंदिये चलि वंदिये), १२०३२६-१७६(+) महावीरजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (महावीर महावीर जीवा जीव), १२०३२६-३०७(+) महावीरजिन पद, मु. नयसागर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वाजत रंग वधाई नगरमां), १२०६१४-५० महावीरजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (घंट बाजे घनननननन), १२२४७५-२ महावीरजिन पद, मु. शिवचंद्र, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (इक दिन प्रभु वीर सम), १२०६१७-६ महावीरजिन पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मप., (माधुरी जिनवानि चलौरी), १२०२१०-१(+) महावीरजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (सहियोरी मिलचालो प्रभ), १२१९७९-७ महावीरजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सिद्धारथनंदन सुखकारी), १२३५१४-४ महावीरजिन पद-आध्यात्मिक, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (वीररा पीर कासौं कहियै), १२०३२६-१८१(+) महावीरजिन पद-पावापुरी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (देखे धन धन आज पावापुर), १२०३२६-३२५(+) महावीरजिन पारणं, सा. जडाव, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (जनक सिधारथ तिसलाजी मांए), १२२१८८-१२ महावीरजिन प्रभाति, आ. कांतिसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चरण कमल श्रीवीरजिणेश), १२०२१०-५(+) महावीरजिन प्रभाति, मु. रामचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (वीरजिणंद नानडीया), १२२१००-२ महावीरजिन रेखता, मु. चेतन, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेरा मन्न महावीर सो), १२१९८३-३ । महावीरजिन लावणी, सा. जडाव, पुहिं., गा. १०, वि. १९५३, पद्य, श्वे., (बीर सासण के स्वामी), १२२१८८-१८, १२३६१२-१ महावीरजिन लावणी, मु. रत्नचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, स्था., (वर्द्धमान शासनधणी शिवसुख), १२१०४३-३ महावीरजिन वाणी, मु. कालीदास, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (जिनराजनी वाणी छे गुणखानी), १२१५२८-२ महावीरजिनविनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (वीर सुणो मुज विनती), १२०१७४-२(+) महावीरजिन सज्झाय-उपसर्ग, मा.गु., गा. २६, पद्य, मप., (सिद्धार्थ कुल उपना), १२२४३८-२(+) महावीरजिन सज्झाय-गौतम विलाप, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (आधार ज हुँतो रे एक), १२२७८४ महावीरजिन सवैया-वाणीविशेषण, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (वीर हिमाचल ते निकसी), १२२२७४-२(-) For Private and Personal Use Only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ महावीरजिन स्तवन, मु. अशोकमुनि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (माता त्रिसलारा जाया थारी), १२२२९३-५ महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (सिद्धारथ राजानो नंदन), १२१३४८(+) (२) महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (क्षत्रिकुंडनामा नगरने), १२१३४८(+) महावीरजिन स्तवन, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चंद्रवदनी मृगलोयणी), १२११९८-१६(६) महावीरजिन स्तवन, मु. जिनलाभसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीर जिणंद निकट उपगारी), १२०६१४-१०० महावीरजिन स्तवन, मु. देवीलाल, पुहि., गा.८, वि. १९५९, पद्य, श्वे., (मोरा सासनपति बडभागी), १२२१८८-८ महावीरजिन स्तवन, मु. नगजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जगदीशरश्री वीर जिनेशर), १२०३२०-४(+-#) महावीरजिन स्तवन, मु. नवल, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (चालो राजा श्रेणिक), १२०६१४-१५ महावीरजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चरम जिणंद चोवीसमो), १२३८४९-३ महावीरजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (वीर जिणेसर वंदीए हरख), १२३५१८-३ महावीरजिन स्तवन, मु. प्रतापी, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (वीर चरण चित ल्याउरे जग), १२१६५१-२ महावीरजिन स्तवन, आ. भावप्रभसूरि, पुहिं., गा. २०, पद्य, मप., (मोहराय से लडीया रे), १२०२४५-१(+#) महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मपू., (गिरुआ रे गुण तुम तणा), १२०२३२-२(#) महावीरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १४, वि. १८८०, पद्य, श्वे., (रिषभदत ने देवानंदा नार रथ), १२२१८०-९ महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८३७, पद्य, श्वे., (सिद्धारथ कुलदीपक चंद), १२३९५८-७ महावीरजिन स्तवन, मु. रुपचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८५३, पद्य, स्था., (श्रेणिक नरवर अभयकुमार ए), १२१०४३-५ महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ८, गा. ७९, वि. १७२९, प+ग., मूपू., (सकलसिधदायक सदा चोवीस), १२२४५३-१ महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा.६, पद्य, मप., (आवो आवो जसोदाना कंत),१२०९८७-१ महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (माताजी तुमे धन धन रे), १२२४४३-१(+), १२१८४४ महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (वीरकुंवरनी वातडी), १२०५६२-२(+$) महावीरजिन स्तवन, पं.शांतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (वीर सुणो मोरी विनती), १२०४०२-१० महावीरजिन स्तवन, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (--), १२२९८१-१(+$) महावीरजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (वाजत रंग वधाई नगर मै वाजत), १२०६१४-८५ महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (धन हो धन श्रीवीरप्रभु तुम), १२२२२९(5) महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मपू., (--), १२२५१८(+$) महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., ढा. १०, गा. १००, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति दिओ मति), १२०६३०(+) महावीरजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, मु. सेवक, मा.गु., गा. २०, वि. १७००, पद्य, मूपू., (सकल जिण रे वादं मुनि), १२०१९० महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक वधावा, मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. ५, गा.५९, पद्य, मपू., (वंदी जगजननी ब्रह्माण), १२२०८१(+) महावीरजिन स्तवन-अल्पबहुत्वविचारगर्भित, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. १४, वि. १८२३, पद्य, मूपू., (विलहल वीर जिणंदना पद), १२१४४९-४(+#$) महावीरजिन स्तवन-आत्मबोधगर्भित, मु. उदयरत्न, रा., गा.७, पद्य, मूपू., (नीजरां रहस्यांजी), १२१९७८-२ महावीरजिन स्तवन-गौतमविलापगर्भित, मु. चौथमलजी म., मा.गु., गा. १४, वि. १९८३, पद्य, श्वे., (इतो वीर प्रभु मुगते गया), १२२२९१-५ महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरा परिचयगर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., ढा. ५, गा. ६६, वि. १६११, पद्य, मूपू., (सकल जिणंद पाय __नमी), १२३७१९(+#s), १२४०२१(६) महावीरजिन स्तवन-जन्मकल्याणक, चंद्र रावल, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (चउदतो सपना माता थे भले), १२२२९१-२ महावीरजिन स्तवन-डीगरी, पुहि., गा. २०, वि. १९२८, पद्य, मूप., (तिर्थकर महावीरने), १२३४९७(+) For Private and Personal Use Only Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ महावीरजिन स्तवन-दीपावली, मु. चोथमल ऋषि, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (जो मंगल चाहो रे सुख), १२३६१२-२ महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, मु. गुणहर्ष, मा.गु., ढा. १०, गा. १२५, पद्य, मूपू., (श्रमणसंघतिलकोपम), १२१२९१(६), १२१६४५(६), १२१८२९(5) महावीरजिन स्तवन-नालंदापाडा, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २२, वि. १८३९, पद्य, स्था., (मगध देशमांहि विराजै), १२२४१३-२(+), १२०४३९-१(-2) महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ५६, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (शासननायक शिवकरण वंद), १२०५३९ महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. हंसराज, मा.गु., ढा. १२, गा. ७९, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सरसती भगवती दीउ मति), १२३३३०(+$) महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (समरवि समरथ सारदा), १२३३६२-१(+$), १२३४७९-३ । महावीरजिन स्तवन-समवसरणगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (त्रिशलानंदन वंदीये), १२२८७०-१(#) महावीरजिन स्तवन-समवसरणगर्भित, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. १५, वि. १८५३, पद्य, मपू., (विचरे तारे वारी जिणेसर), १२१०४३-४ महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. १४८, ग्रं. २२८, वि. १७३३, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीगुरुना पय), १२०४६१-१ महावीरजिन स्तवन-स्वप्नगर्भित, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८३१, पद्य, स्था., (सासननायक समये समये), १२२२९१-४ महावीरजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.ग., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, मप., (महावीर जिणंदा राय), १२११०६-४, १२२९१९-११ महावीरजिन स्तुति, मु. राज, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (--), १२३८८१-१(#$) महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बालपणे डाबो पाय), १२१८५१-१४(+) महावीरजिन स्तुति, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (सब मिलकर मुख से बोलो), १२३६१२-३ महावीर स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. १५, वि. १७९९, पद्य, मपू., (जुगतिजुहारां होजूनै श्री), १२३५५९ महासती सज्झाय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (सुणज्यो सहू नरनारी नारीना), १२२९०६-३(+) महीपाल चौपाई-धर्ममहिमा, मा.गु., पद्य, मूप., (सकल सुहंकर सिद्धिवर आदिई), १२२८३६(5) मांडला विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां प्रथम सिंज्यारा), १२२२१९-१३(+#) माणिकचंदचंपावती रास, मु. भूधर, मा.गु., ढा. ७५, वि. १८२१, पद्य, श्वे., (आदिकरण अरिहंत जिन), १२१०२७ माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुशल, मा.गु., गा. २६, पद्य, मप., (सरस वचन द्यो सरसती), १२०२३०-१(+#), १२०४६०-५, १२०६३५ माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (सूरपति सेवित शुभ खाण), १२१४८४ माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ५५२, वि. १६१६, पद्य, मपू., (देवि सरसति देवि), १२३०९६(#$), १२२११३($) मानतुंगमानवती रास, अनुपचंद-शिष्य, मा.गु., ढा. ८, वि. १८७०, पद्य, मूपू., (सरी संत जणेसरु नमता), १२३३८८(+) मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. ४७, गा. १०१५, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (ऋषभजिणंद पदांबुजे), १२०४७४(+$), १२२०९०(+#s), १२१२१०, १२१८०८(#), १२४००२($) मानवभव १० दृष्टांत, आ. विनयदेवसूरि, मा.गु., कुल. १०, पद्य, मूपू., (कंपिलपुरि ब्रह्म नरे), १२३९२३-१(+#$) मानुषोत्तरपरिमाण सवैया, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (माणषोत्तर उरध की सूची), १२०३२६-४८३(+) मानषोत्तरपर्वतमान विचार, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गद्य, दि., (१७२१ जोजन काऊं चाहै और), १२०३२६-४४०(+) माया सज्झाय, मु. कर्मसिंह, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूप., (इण जुगमें माया प्यारी रे), १२३०१६-२(+#) माया सज्झाय, मु. विनय, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (माया कारमी रे माया), १२११४०-१(#) मार्गानुसारी के ३५ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (न्यायथी धन कमावq १), १२१३१३ मित्रानंद कथा-क्रोधोपरि, मा.गु., गद्य, मप., (हिवई क्रोध उपरि कथा कहि), १२०७११-३(+) मुक्तिरमणी खीचडी, मु. सुमतिसागर, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (तुम पीयदर्सन अहो आसदर्सन), १२१४५४-२ For Private and Personal Use Only Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५७६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ मुक्तिरमणी पद, मु. चेनविजय, पुहि., गा. ३, पद्य, से. (जिहां अनंत सिध सवाई), १२३८६२-२(४) मुनिगुण पद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (वे साधो गुन गाइ कर करुणा), १२०३२६-३६५(+) मुनिगुण सज्झाय, मु. विनय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (वे मुनि मेरे मन वस्य), १२३४२८-१(#$) मुनिगुण सवैया, रा., गा. ३६, पद्य, श्वे., (पाप पंथ परहर मोख पंथ), १२१६५३-३ मुनिगुण स्तुति, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (धनि धनि ते मुनि गिरवन), १२०३२६-११९(+) मुनिध्यान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि. (भाई धनि मुनि ध्यान लगाय), १९२०३२६-३००(+) मुनिपति चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), १२३५५४ ($) मुनिपति रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., डा. ९३, गा. ४००५, वि. १७६१, पद्य, मूपू., (सकल सुख मंगल करण), १२१७९३(+) मुनिमालिका स्तवन ग. चारित्रसिंह, मा.गु. दा. ३, गा. ३६, वि. १६३६, पद्य, म्पू.. (ऋषभ प्रमुख जिन पय), १२०३९६ (+) 1 . मुनिराज आरती, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (आरती कीजै श्रीमुनिराज की), १२०३२६-२९(+) मुनिराज आरती, पंडित हेमराज पंडित, पुहिं., गा. ११, पद्य, दि., ( कनक कामिनी विषयसुख) १२०३२६-५५ला मुनिशिक्षा स्वाध्याय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु, गा. २०, पद्य, मूपू (शांति सुधारस कुंडमा), १२२९८७ मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपु. ( मुनिसुव्रतजी मोहन), १२०२१२-१(०) मुहपत्ति ५० बोल, मा.गु, गद्य, मूपू (सूत्र अर्थ तत्त्व), १२१९२४-२ " मुहपत्ति ५० बोल सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू. (श्रीहीरविजयसूरि), १२१९७८-१ मुहपत्ति पडिलेहण ५० बोल, रा. गद्य, मूपू (प्रथमदृष्टि पडिलेहण जे), १२३८५७-२(+) मुहूर्त श्वासोश्वासमान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन हजार सातसि), १२१४५१-४ मूकश्रेष्ठि कथा, मा.गु., गद्य, वे., (-), १२२५५८३) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मूर्तिपूजामतखंडन सज्झाय, श्राव. अचल ओसवाल, मा.गु., प+ग., स्था., (हिवै जीवनें), १२२५५७- २ (+), १२१३५२-१ मृगापुत्र सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सुगरीपुर नगर सोहामणी), १२०७८९-५ (+#) मृगापुत्र सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नरकतणा दुखमै सह्या रेलो), १२०७८९-४(+#) मृगापुत्र सज्झाय, मु, सिंहविमल, मा.गु.. गा. २४, पद्य, भूपू (सुग्रीवनयर सुहामणो), १२२२०८.१ (+) "" मृगापुत्र सज्झाय, रा. डा. ११, पद्य म्पू., (सासण नायक सुमरीय), १२१६४२-१(+) 7 मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., गा. २७, पद्य, म्पू., (सुग्रीवनगर सुहामणों), १२१६०९-२(३) " मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ३ ढाल ३७, गा. ७४५, ग्रं. ११००, वि. १६६८, पद्य, मूपू., (समरु सरस सामिणी), १२३२३७/*), १२१५७५ मृत्यु सबंधी सूतक विचार, मा.गु., गद्य, मूपु., (जेने घरे जन्म तथा), १२१८०१-१६ मेघकुमार चौढालिया, क. कनक, मा.गु., ढा. ४, गा. ४७, पद्य, मूपू., (देस मगधमाहे जाणीयइ), १२३६४३-२(#) मेघकुमार चौडालियो, रा. डा. ५, पद्य, म्पू. (मोटी बणाकुं एक सेवका), १२३५६६-१(+३) मेघकुमार पंचढालिया, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (मेघकवर धारणी माता), १२१२३१($) मेघकुमार सज्झाय, मु. अमर, मा.गु. गा. ५, पद्य, म्पू, धारणी मनावे रे मेघ) १२१४००-२(+) मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (वीरजिणंद समोसर्या जी), १२२८०० (+#) " मेघनाथ मंदोदरी संवाद सज्झाय, पंडित. तुलसीदास, पुहिं., गा. ५, पद्य, वै., (मेघनाथ माता कने आयो झरणी), १२२२९१-६ मेघरथराजा सज्झाय, मु. तिलोक ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १९२९, पद्य, स्था. (सुधर्मी सभा समने) १२०४०८-३६(+) मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडा विनती, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूपू., (दया बरोबर धर्म नहीं), १२१९९५-१(#) "" मेघरथराजा सज्झाय-शांतिजिन पूर्वभव दयाविषये, मा.गु., गा. २७, पद्य, श्वे. (जल कि सोभा कमल हे दर कि), १२०४०८-२८(+) , तारजमुनि ढाल, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., डा. १५, गा. १८९, वि. १८६९, पद्य, स्था., (समरु सासणरा घणी पो उगाते), १२११०४(+) मेरुपर्वतमहाविदेह अंतरपरिमाण सवैया, जे.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (मेरु चोरानवे से भद्रसाल), १२०३२६-४६९(+) For Private and Personal Use Only Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ ५७७ मेरुपर्वतवनपरिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (भूम पै हजार दशनंदण पै नौ), १२०३२६-४६८(+) मोक्षमार्ग पयडी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. २४, पद्य, दि., (इक्क समैं रुचिवंतनों), १२१४५४-६ मोतीकपासीया संबंध, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ५, गा. १०३, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (सुंदर रुप सोहामणो), १२३२४७(#$) मोहकर्मनिवारण सिद्ध आरती, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा.८, वि. १८वी, पद्य, दि., (जैसे मदरापान ते सुध बुध स), १२०३२६-३८१(+) मोहनीयकर्म मूलभेद विचार, मा.गु., गद्य, मप., (दर्शनमोहनीना त्रिणि भेद), १२३८६६-२(+) मौनएकादशीपर्व देववंदन विधि, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.ग., पद्य, मप., (सयल संपत्ति सयल संपत), १२२२६३(#$) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, वि. १७६९, पद्य, मूप., (द्वारिकानयरी समोसर्या रे), १२२८८६ मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ४२, वि. १७९५, पद्य, मूप., (जगपति नायक नेमिजिणंद), १२०६२७-२ मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजय, मा.गु., ढा. १२, गा. ६२, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (धुरि प्रणमुं जिन), १२१७०४(६) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एकादशी अति रुअडी), १२२२०८-३(+), १२३०८१-६(+), १२३०६५-२ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गौतम बोले ग्रंथ संभाली), १२३०८१-११(+) युगप्रधानतप आराधना विधि, मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रथम बाजोठ उपर ठवणी), १२०८५६-२ युगमंधरजिन स्तवन, मु. जिनसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीयुगमिंधर भेटवा), १२०२६४-४(+5) युगमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १५, वि. १८३४, पद्य, श्वे., (जंबुद्वीपे दीपतो रे), १२२९०६-५(+) युगमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १०, वि. १८४४, पद्य, श्वे., (जगत गुरु जुगमंदर), १२३४०६-१ रघुपति गुरुगुण सज्झाय, मु. दयाचंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (पुजमाल गुणभारी हे), १२१४७०(+) रतिसुंदरी चौपाई-शीलव्रत, मु. जवानमल, मा.गु., ढा. ७, गा. ११२, वि. १९०३, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध साधन भणी), १२१४५२-१(+) रत्नचूड चौपाई, मु. कनकनिधान, मा.गु., ढा. २४, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसोभा सुमति), १२३११६(+#S), १२०९८९(#S), १२२५५९-१(#) रत्नचूड चौपाई, मु. रत्नसूरि शिष्य, मा.गु., गा. ३४५, वि. १५०९, पद्य, मूपू., (सरसति देवी पाय नमी), १२२५४१(#$) रत्नत्रय पूजा, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ५१, वि. १८वी, पद्य, दि., (चहुँगति फणि विषय हरन मणि), १२०३२६-६२(+) रत्नत्रय पूजा, पुहिं., पद्य, दि., (श्रीमतसन्मति कौ प्रणमि), १२१८३६ रत्नदत्त चौपाई, मु. रामचंद्र, मा.गु., ढा. १५, वि. १९४७, पद्य, मपू., (श्रीजिनवरन सिमरिये धरिये), १२२३३०(+) रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., खं. ३ ढाल ३२, गा. ७७४, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (रीषभादिक जिनवर नमुं), १२११८३(+), १२१६९८(+), १२३९७०-१, १२०९५७(#) रत्नप्रभा पृथ्वीस्थित सुरासुरादिक निवासस्थान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (प्रथम चित्र पृथवी १०८०००), १२०३२६-४३९(+) रत्नसारकुमार रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. २९९, वि. १५८२, पद्य, मूपू., (सरसति हंसगमनि पय), १२१६९७(+), १२२९५८(+$) रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., वि. १८५४, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धनें आयरी), १२२३९१ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (राजिमती नेम भणी चाली), १२१८९८-५(+) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.ग., गा. ८, पद्य, मप., (काउसग्ग ध्याने मुनि), १२४०१३ रथनेमिराजिमती सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४०, पद्य, मूपू., (रहनेमि अंबर विण), १२२३९४(+), १२११२६($) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (काउसग्ग थकी नेमी), १२२९१२-१(#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (गिरनारि चली वंदन पीयडा), १२३७६५(+) रथनेमि सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (काउसग्ग थकी रे रहनेम), १२१५७८-२(-#$) For Private and Personal Use Only Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५७८ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रमल शुकनावली, पुहिं., गद्य, मूपू., इतर, (अरे यार बहुत दिन), १२२१४७(+#) रसना सज्झाय, मु. चोथमल, रा., गा. ११, वि. १९७१, पद्य, श्वे., (रसना सीधी बोल तेरे), १२०४०८-७२(+) राजसिंहकुंवर कथा, मा.गु., गद्य, मूपू.. (पृथ्वी रुपणी स्त्रीनु), १२२६८१ (+) राजसिंहरत्नवती कथा नवकारप्रभावे, मु. गौडीदास, मा.गु., डा. २४, गा. ६०५, प्र. ८८५, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (सारव शुभमतिदायिनी), १२१२०९(+) राजिमतीपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू. (प्रथम हि समरुं), १२३५६८-२+७) रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., ढा. ४, गा. ३५, पद्य, मूपू., ( श्रीगुरु पद प्रणमी), १२१०५८-२ (+#) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सकल धरममां सारज कहिइ), १२०६०५-२ रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. खूबचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (हारे भाई जेनि रात कुं नहि), १२०४०८-१३१(+) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. जैमल, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे. (रात्रिभोजनमांहे दोष), १२१२१८-२(+) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, चे., (आधो भोजन रातरो अधर्म) १२०४०८-१३२(+) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (पुण्यसंजोगे नरभव लाध्यो), १२०१८२-२ रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. विवेकसोम, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (पुन संजोगे नरभव लाधो), १२३७४२ रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. सूरजमल, मा.गु., गा. ९, वि. १९३४, पद्य, श्वे., (परहरजो भाई रात्रिभोजन), १२०४०८-१३४(+) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (अवनितलि वारू वसइजी), १२३०७४(#) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, रा. गा. १३, पद्य, वे. (छठो व्रत रयणी तणौए), १२०४०८-१३० (+) , " रामचंद्रजी पूर्वपुरुष वंशावली नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुंजस्थल १ ककुंश्च२ रकराजा), १२३४८२-३ रामभरत पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि. गा. ७, पद्य, दि., (कहे भरतजी सुन ही राम), १२०३२६-२२० (+) रामभरत पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (राम भरतसुं कहे राज भोगवो), १२०३२६-२१९(+) रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., अधि. ४ डाल ६२ गा. ३९९९ नं. ४३७५, वि. १६८३, पद्य, म्पू.. (मुनिसुव्रतस्वामीजी) १२०३७४(३) १२०४०८.८६०) יי रामरावण पद, मा.गु., पद. १, पद्य, जे. वै.? (--), १२१७३८-१(०३) " रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., समु. ७, गा. १६१७, ग्रं. ३३२५, वि. १७२०, पद्य, मूपू., इतर, (सिद्धबुद्धिदायक सलहीये), १२०५८९(+०६), १२२२९४(०३), १२२४५२(+), १२३१६६-१(+३), १२३७९४-१(+), १२३२२५-१, १२१८५९(३), १२४००६-१(३) (२) रामविनोद-बीजक, मा.गु., गद्य, म्पू. इतर (१ ग्रंथारंभ साध्वलक्षण पत), १२११०३(०) रायचंदसूरि कवित्त, मा.गु. का. १, पद्य, श्वे. (मंडल दावा विशाल सुधासम), १२१७१८-४ रायचंदसूरि गच्छनायक कवित्त, मा.गु., का. १, पद्य, श्वे., (सोमकला नृप धीरमनउ गणधार), १२१७१८-३ रावण ढाल, मु. कनीराम, मा.गु., पद्य, धे. (थे सीता सती लावीया इण), १२३७६१-१ रावणमंदोदरी पद, पंडित. तुलसीदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (मंदोदरी सुण पीहेया रावण), १२०४३९-२(#) रावणमंदोदरी सज्झाय, मु. खुशालचंद, पुहिं., गा. ११, वि. १८८१, पद्य, मूपू., (कहगे मंदोदरी सुण हो), १२०२४१-२(#) रावणमंदोदरी सज्झाय, मु. राम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ये मानोजि सिख सुहामणिजि), १२०४०८-९१(+) रावणमंदोदरी सज्झाय, मु. राम, मा.गु., पद. ३, पद्य, मूपू., (यो कहे मंडोद्रि वात नाथ), १२०४०८-९०(+) रावण सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, क्षे., (कहे भवीषण सुण वो), १२२१६८ (०) रावण सैन्यमान कवित्त, मा.गु., पद. १, पद्य, जै. वै. (एक कोडि गजबंध अड बदस), १२०२१५-४ रुकमणीसती सज्झाय, पुहिं., पद्य, खे, (धन धन वाणी प्रभु आप की इण), १२१८०३-३ रुपऋषि पट्टावली, मा.गु., गद्य, स्था. ऋषि ५ पासाजीना शिष्य ऋषि), १२३५३७-३(+) "" रूपकमाला- शीलविषये, मु. पुण्यनंदन, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मृपू., (आदि जिणेसर आदिसउ), १२३०७६ (+) (२) रूपकमाला - शीलविषये अवचूर्णि उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १६६३, गद्य, मूपू. (हे श्री आदिजिन आदिश), १२३०७६(+) For Private and Personal Use Only Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ ५७९ रूपसेन रास, मु. महानंद, मा.गु., ढा. ७५, गा. २९४५, वि. १८०९, पद्य, श्वे., (श्रीऋषभादिक नित्य), १२३०६२(+$) रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ११, वि. १९६२, पद्य, श्वे., (यातो राजगरि नगरि भलि तिहा), १२०४०८-१०२(+) रोहिणीतप स्तवन, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., ढा. १३, वि. १८६०, पद्य, श्वे., (सिमरू श्रीवासपुजनै सासण), १२१६४२-२(+) रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., ढा. ६, गा. ३१, वि. १८५९, पद्य, मूपू., (हां रे मारे वासुपूज्यनो), १२१४१६-१(+) रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ४, गा. ३२, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सासणदेवता सामणीए मुझ), १२२६३०-१(+) रोहिणीतप स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, पू., (नक्षत्र रोहिणी जे), १२२९१९-६ रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जयकारी जिनवर वासपूज), १२३०८१-४७(+) रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जयकारी जिनवर वासुपूज्य), १२१३१९(+) रोहिणी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ३१, वि. १७७४, पद्य, मूपू., (सुखकर श्रीशंखेसरु), १२१७६५ लकड़े की लावणी, पुहि., गा. १०, पद्य, जै., इतर, (भरमजल समें कहुं रे दाखला), १२१३९४(+) ललितांगकुमार सज्झाय-शीलविषये, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. १३, वि. १९५९, पद्य, स्था., (सुंदर सहर मनोहरो कवर), १२०४०८-९४(+) लवणसमद्र पातालकलश व शिखा विचार, मा.गु., गद्य, मप., (बइ लाख योजन लवणसमुद्र ते), १२३४८२-५ लवणोदधिपरिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (लौनौदधि पांच लाख परध), १२०३२६-४७८(+) लाहौरनगरवर्णन गजल, श्राव. जटमल नाहर, रा., गा.५५, वि. १७वी, पद्य, मप., इतर, (देख्या सहिर जब लाहोर), १२३०४२ लीलापतझणकारा चरित्र, कालू, हिं., गा. ३४, वि. १९६८, पद्य, श्वे., (यह शीलतणा श्रृंगार), १२२२४३(+) लीलावती चौपाई-शीलविषये, उपा. कुशलधीर, मा.गु., ढा. २५, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (श्रीआदिसर समरने प्रणमी), १२१९१५(+) लीलावतीसमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. २१, गा. ३४८, वि. १७६७, पद्य, मपू., (परम पुरुष प्रभु पास), १२१५११(+#$) लोकांतिकदेवसंख्या पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (लोकांतक आठ जात दोहै), १२०३२६-४९७(+) वंकचूल चोपाई, मा.गु., ढा. ७, गा. ७५, पद्य, मप., (जिनवर चरणकमल नमुंशांति), १२०६६८-२(+) वच्छराज चौपाई, मु. विनयलाभ, मा.गु., खं. ४ ढाल ६६, वि. १६३०, पद्य, मूप., (परम निरंजन परमप्रभु), १२२७६२(+) वच्छराजहंसराज चतुष्पदी, असाइत नायक, मा.गु., खं. ४, गा. ४३७, वि. १४१७, पद्य, मूपू., वै., इतर, (अमरावई समाणां पंखि), १२३५८५(+$) वज्रकुंवर चौढालियो, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. ६५, पद्य, मपू., (राय जसरधत पहिला हुवा), १२३७३८ वज्रधरजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (विहरमान भगवान सुणो), १२०३२०-४५(+-#$) वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १५, गा. ८९, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (अरध भरतमांहि शोभतो), १२२५१३(#$) वज्रस्वामी-रूखमणी सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मपू., (पदमिणी पोईणी पातली), १२३४१०-१(#) वणजारा सज्झाय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सखी विणजारो आवियो भर), १२२१७८-२(+) वरदत्तगुणमंजरी चौपाई-ज्ञानपंचमीफलमाहात्म्ये, मु. ऋषभसागर, मा.गु., ढा. २१, वि. १७४८, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पाय नमुं), १२२११६(5) वरसीदान मान, मा.गु., गद्य, मपू., (एक कोडिने आठ लाख दिन), १२३३४३, १२३५३६-२(#) वर्णमाला, मा.गु., गद्य, श्वे., (अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लु), १२१४७५-२(#), १२१४२२($) वर्धमानजिन नामकरण आश्रयी भोजन विधि, मा.गु., गद्य, मपू., (भलो उत्तंग तोरण), १२१२९८(+) वल्कलचीरी चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २२९, ग्रं. ३५०, वि. १६८१, पद्य, मपू., (प्रणमुं पारसनाथनइ), १२३४५६(#$) वाण्याष्टक, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा.११, पद्य, दि., (जनम जरा मृत छै करे हरै), १२०३२६-५६(+) वासुदेवबलदेव माता पिता आयुष्यादि कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (--), १२२३१५-२(+) वासुपूज्यजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (सरन मोह वासपूज्य जिनवर की), १२०३२६-३४५(+) वासुपूज्यजिन स्तवन, आ. कांतिसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि वीनहुँ), १२०२१०-४(+) For Private and Personal Use Only Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., गा.५, पद्य, मपू., (वासुपूज्य जिन बारमा), १२०२०९-८(#) वासपूज्यजिन स्तवन-रोहिणीतपगर्भित, मा.गु., गा. २४, पद्य, मप., (प्रणमिय परमाणंदए), १२३८५०-१(+६), १२३८५०-३(+$) वासुपूज्यजिन स्तवन-सिरोहीमंडण, उपा. समयराज, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (मंगल कमला शिव सुखकारण जिण), १२२७०१(+) विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., ढा. १७, ग्रं. ३२५, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (वीणा पुस्तक धारणी), १२१९५७ विक्रमराजा चौपाई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., खं. ६ ढाल ७५, गा. ३१६८, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (प्रणमु पासजिणंद पय), १२२६४४(+#) विक्रमराजा रास, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४०४, पद्य, मूपू., (श्रीवरदायक सारदा गज), १२३५९१-१ विक्रमलीलावती संबंध, मा.गु., गद्य, श्वे., (उजेणीनगरी० ते राजा नेहणे), १२०९८५ विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., ढा. ६४, वि. १७२४, पद्य, मपू., (परम ज्योति प्रकास), १२११५८(+#$) विक्रमादित्य ९०० कन्या लावणी, मा.गु., पद्य, भूपू., (जगनायक जिनवर नमुं), १२२३१०($) विक्रमादित्य चौपाई, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., ढा. २७, गा. ५८५, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी प्रणमीइ), १२१८२६(+), १२३८६५(+) । विचार संग्रह-विविधविषयक, मा.गु.,रा., गद्य, मपू., (समजवा हेतु सूत्रमाहि), १२२०८२-३(+#) विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, मु. रामचंद, मा.गु., ढा. ४, वि. १८१०, पद्य, मप., (आदिनाथ आदेसरो सकल), १२१४४० विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (श्रीविजयकंवर और विजया), १२१५२८-४ विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २२, वि. १८५८, पद्य, श्वे., (शीयल तणी महिमा सांभल), १२०४६०-१२ विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (शुक्लपक्ष विजया व्रत), १२२१८०-१२ विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २१, वि. १८६१, पद्य, स्था., (मनुष जमारो पायने जे), १२०९७९-१(+$), १२०७७९-१,१२१४१५-१, १२२१११, १२२४६२-१, १२३७५०(#) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (वीजेवर और विजीया), १२२१९१-१७(s) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय-शीलगर्भित, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., ढा. ३, गा. २४, पद्य, मूपू., (प्रह उठी रे पंचपरमेष्ठी), १२१९६८ विद्याविलास चरित्र, मा.गु., ढा. २१, पद्य, मपू., (श्रीपंचपरमेष्टि को धयाऊ), १२२२३२ विद्युतचोर कथा, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., चौपा. ४०, वि. १८वी, पद्य, दि., (वंदौ श्रीजिनराज पद सुख),१२०३२६-५५७(+) विनयचट रास, मु. ऋषभसागर, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल ५८, गा. १५३०, वि. १८३०, पद्य, मूपू., (पार्श्वनाथ जिनवर प्रणम्य), १२०९४१(+) विनय सज्झाय, आ. विमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (विनय करो चेला गुरु), १२०६८९-१, १२१४७७, १२३३२०(#) विमलजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (घर आंगण सुरतरु फल्यौ), १२०१८७-२(+) विमलमंत्री सलोको, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., गा. १०९, पद्य, मप., (सरसति समरूं बे करजोड), १२१०५८-४(+#$), १२१९६५(+#) विमानपरिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (जोजन एक सठ कला छपन), १२०३२६-४९३(+) विरहकाल पश्चात् सिद्धिगमन जीवसंख्या पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (वतीस अठतालीस साठ जीव), १२०३२६-४३२(+) विविधकर्तक पद बीजक संग्रह, पहिं., पद्य, मप., (वारौ रे कोई पर घर रमवानौ), १२१०१०(+#) विविधजिन पदावली, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., वि. १८वी, पद्य, दि., (अब के तारौ जैनराय अब), १२०३२६-५७६(+) विविध जीव आयुष्य विचार*, मा.गु., गद्य, मूपू., (१२० हाथीनो आयु १२०), १२२७७९(+), १२२८२०-२(+), १२१४५१-२, १२१९५२ विविध प्रश्नबोल संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम श्रीदयाधर्म), १२२५५१ For Private and Personal Use Only Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ विविधबोल संग्रह, मा.गु., गद्य, मप., (दस प्रकारे सामाचारी), १२०८२०-२(+), १२०८२०-३(+), १२२६६१-३(#) विविधमान परिमाण सज्झाय, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मप., इतर, (जुगति मान जानै विनां), १२३७९४-२(+#$) विविध मुद्रा विचार, मा.गु., गद्य, जै., वै., बौ., इतर, (वज्रमुद्रा डाबा हाथ), १२०४०६ विवेकबीसी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., सवै. २०, पद्य, दि., (जनमजरामृतअरति राग भै दोष), १२०३२६-१२(+) विवेक सज्झाय, मु. कुशलराज, पुहिं., गा. १३, पद्य, मूपू., (अरिहंत देव आराध सुग्यानी), १२०९८०-५(+) विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पुहि., गा. ४२, वि. १७१५, पद्य, दि., (आत्मलीन अनंतगुण), १२१४५४-३ विष्णभक्ति पद, मा.गु., पद्य, वै., (नयनरस लागो हो हरि नयन रास), १२३५९१-४($) विहरमान २० जिन स्तवन, सा. जडाव, रा., गा.७, पद्य, श्वे., (हो जी सीमंधरजिनराय जुग), १२२१८८-२१ वीरसेनजिन स्तवन, उपा. देवचंद्र, मा.गु., गा.८, पद्य, दि., (वीरसेन जगदीस ताहरी), १२१७२०-२ वेदकउपसमक्षायकसम्यक्त्व पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (अनंतानबंधी क्रोधी मान), १२०३२६-४२४(+) वेदनीयकर्मनिवारण सिद्ध आरती, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, दि., (सहत मली असि धार सुख दुख), १२०३२६-३८०(+) वैदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., ढा. ७, गा. २०९, पद्य, श्वे., (जिणधरमसुं जागता हुवो), १२१०९८-१(+), १२२८२६($) वैद्यकसारोद्धार, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., गद्य, मप., इतर, (अथ भूतादिक प्रतिकार।), १२३६०१(+#$) वैद्यसार, मा.गु., गद्य, मपू., इतर, (श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा), १२३८३४(+#$) वैमानिक इंद्र भोगयोग्य देवीसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुधर्मादेवलोकना इंद्रनो २), १२०४९५-४(+#) वैरसिंहकमार चौपई-जीवदयाशील विषये, पंन्या. मोहनविमल, मा.गु., ढा. ३८, गा. ८७६, वि. १७५८, पद्य, मूपू., (प्रणमुं सारद सामनी), १२२०९६-२() वैराग्यछत्रीसी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३६, वि. १८वी, पद्य, दि., (अजितनाथ पद वंदि कै कह), १२०३२६-४०६(+) वैराग्यपच्चीसी, मु. मेघलाभ, मा.गु., गा. २५, वि. १८७४, पद्य, श्वे., (माताने उदरे उपनो नव), १२२००९(#) वैराग्यपच्चीसी, मा.गु., गा. २५, वि. १८५८, पद्य, मप., (साध को न करै संघ अभिमान), १२१०५१-३(+#) वैराग्य लावणी, मु. अखमल, मा.गु., गा.८, पद्य, मप., (जब तन दोस्ती है इह), १२२८९२-२ वैराग्यषोडसी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. १६, पद्य, दि., (सब मैं हम हम मैं सब ग्यान), १२०३२६-४०(+) वैराग्य सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (ऊंचा मंदिर मालीया), १२३६५४-३(+) वैराग्य सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (ते गिरूआ भाइ ते), १२३४१०-७(#) व्यवहारनिश्चय स्तवन, आ. पासचंदसूरि, मा.गु., गा. ५९, पद्य, मप., (विक्रमनगर पुरवर प्रासादि), १२३५३१-१ व्यवहारपच्चीसी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., सवै. २६, पद्य, दि., (धर्मप्रकाशक अरहंत थुत), १२०३२६-२६(+) शत्रुजयगिरनारतीर्थ महिमा दोहा, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (जगमें तीरथ दोय बड़ा), १२१३८३-४(+#) शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. १२, गा. १२०, ग्रं. १७०, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (विमल गिरिवर विमल), १२१५६८(+9), १२०३७८-१, १२०४१७(#), १२०९९९(#), १२३७९३-१(#), १२१३४९(६), १२३०२०(६) शत्रुजयतीर्थ चैत्यपरिपाटी, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूप., (वागवाणि सुपसाउ करे), १२३५८६-८(+) शत्रुजयतीर्थ चैत्यपरिपाटी, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (समरवि सरसति हंसला गामिणि), १२३५८६-७(+) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (विमलकेवल ज्ञानकमला), १२१८०१-२३ शत्रुजय तीर्थमाला रास-जैसलमेर संघ, मु. चतुरकुशल, मा.गु., पद्य, मूपू., (सासननायक समरीये वंदो), १२३६५९(#$) शत्रुजय तीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., ढा. १०, गा. १५२, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (विमलाचल वाल्हा वारु रे), १२१७६१-१(#S), १२३३५६($) । शत्रुजयतीर्थ माहात्म्य, मा.गु., गद्य, मूप., (श्रीसिद्धाचल तीर्थे अतीत), १२३०२८(+) शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ११२, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर पाय नमी आणी), १२१७२३(+$), १२२५३६, १२१५१९-३६(१), १२२४०४(६) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., गा. १६, वि. १८९३, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल गिर भेट्या हो), १२१२८३(#) For Private and Personal Use Only Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शवजयतीर्थ स्तवन, मु. अमीकुंवर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (श्रीसिद्धाचलना गुण गावो), १२१२१५-१(६) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (ते दिन क्यारे आवसी), १२२३०७-२(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (श्री रे सिद्धाचल), १२१४२९-३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. क्षमारत्न, मा.गु., गा. ५, वि. १८८३, पद्य, मपू., (सिद्धाचलगिरि भेट्या), १२०५२२-२(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. गौतमविजय, मा.गु., गा. १०, वि. १८५०, पद्य, मूपू., (जगपति वंदो विमलगिरी), १२२७४९-१(2) शवजयतीर्थ स्तवन, मु. चतुरसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (--), १२१४०८-१(६) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (अंग उमाहो अति घणो), १२३३०१-६(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (ते दिन क्यारे आवसी), १२३३०१-४(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहि., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुण सुण शत्रुजयगिरि), १२०४९८(+), १२१८७१(६) शजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूप., (करजोडी कहे कामनी), १२१४०४, १२२१४९ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा.११, वि. १८६७, पद्य, मपू., (दक्षिण भरत मझार हो लाल), १२०६१४-६४ शQजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (हांजी विमलाचल मन०), १२०२३२-१(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल वंदो रे), १२१८०१-८ श@जयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (माहरु मन मोह्यं रे), १२१४२९-४ शत्रंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., गा.८, वि. १८वी, पद्य, मप., (सिद्धगिरि ध्यायो), १२१८०१-२१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानसमुद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (हजीलू मन माहरो रे), १२४०१२-२(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. २१, वि. १८६९, पद्य, मूपू., (आतमरूप अजाण न जाणू निजपणू), १२०६१४-१०१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूप., (जात्रा नवाणु करीए वि), १२१४२९-५ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. रत्नमंदिर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (प्रह ऊठी रे आदिजिणंद), १२३१७३(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. राजहंस, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुंदरी प्रियु प्रति इम), १२२९८४-१(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., गा. २७, पद्य, मपू., (अमृत वचने रे प्यारी), १२०९५२(+$) शत्रंजयतीर्थ स्तवन, मु. शांतिरत्न, मा.गु., गा. १३, वि. १९३२, पद्य, मप., (छबीला सिद्धाचल उजवाल), १२०२५१(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., पद्य, मपू., (सिधगिरी भेटण जाइये रे), १२३११२-१३($) शत्रुजयतीर्थ स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (बे करजोडी विनवू जी), १२२४२३-४(5) शत्रुजयतीर्थ स्तवन-भरतनृप संघयात्रा, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), १२१४५८(#$) । शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (श्रीशत्रुजय तीरथसार), १२१६१०(+), १२३०८१-५०(+) शत्रंजयतीर्थ स्तुति, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.ग., गा. ४, पद्य, मप., (सवि मली करी आवो), १२३०८१-४८(+) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (श्रीशत्रुजयमंडण), १२३१३६-४(+) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनमांहे तीरथ), १२१३२९-४(+) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (पुंडरिकमंडण पाय), १२३०८१-२७(+) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (आगे पूरव वार नीवाणु), १२३०८१-१५(+) शत्रुजयतीर्थे मोतीशाट्रॅक स्तवन-अंजनशलाकाइतिहासयुक्त, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ७, पद्य, मूपू., (उठी प्रभाते प्रभु), १२०८१५ शनिश्चर छंद, खेतल, मा.गु., गा. ६, पद्य, वै., (बाहण महिख बडाला), १२१५२९-२($) शनिश्चर छंद, मा.गु., गा. १५, पद्य, वै., (छाया नंदन जगिजयो), १२०४६०-३($) शनिश्चर छंद, मा.ग., पद्य, श्वे., (सारद पय प्रणम् सदा गुणपति), १२१८२२($) शनिश्चरदेव छंद, क. हेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (अहि नर असुर सुरपति), १२०५२२-१(+), १२३७९८(+), १२३४७९-२ शरीरद्वार १५ प्रकार विचार, रा., गद्य, पू., (पन्नवणां पद २१मो १५), १२१०७२-२(६), १२१०८७-३($) शांतिजिन १२ भव नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (रतनपुरनगर श्रीसेनराजा), १२०४०८-३८(+) शांतिजिन आरती, सेवक, पुहिं., गा. ६, पद्य, मपू., (जय जय आरती शांति), १२०६१४-२, १२०६१४-५३ For Private and Personal Use Only Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ शांतिजिन छंद, मा.गु., गा. १, पद्य, मप., (जिनंदचंद शांतिनाथ जाप), १२२७३२-५(+) शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मपू., (सारद माय नमुं सिरनाम), १२३८४८(+), १२३८०३, १२२३४३(#) शांतिजिन पद, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (शांति दांति कांति), १२०६१४-६० शांतिजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (अब मोहि तारि ले शांति), १२०३२६-३४४(+) शांतिजिन पद, ग. समयसुंदर, पुहिं., गा. ३, पद्य, मपू., (अंगन कलप फल्योरी हमा), १२३०६४-४(#) शांतिजिन पद-लाहोरमंडन, मु. भानुचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (भव भय भंजन जन मनरंजन), १२०१८१-४ शांतिजिन पूजन स्तवन, मा.गु., गा. ६, प+ग., मूपू., (श्रीशांतिनाथ जिनतणा), १२०८३४ शांतिजिन रास, मु. रामविजय, मा.गु., खं. ६, गा. ६९५१, वि. १७८५, पद्य, मप., (सकल श्रेय वरदायिनी मुनिवर), १२१५३३(+) शांतिजिन सलोको, पं. मणिविजय गणि, मा.गु., गा. ४३, पद्य, मूपू., (प्रणमुं वरदाई ब्रह्माणी), १२१०५८-३(+#) शांतिजिन स्तवन, मु. जैनेंद्रसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मपू., (अचिरा नंदनंदन प्रणमी), १२१८९८-२(+$) शांतिजिन स्तवन, पं. भाणविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सांतिजीने स्वर साहिबो रे), १२१४७६-२(#) शांतिजिन स्तवन, मु. भावसागर, पुहिं., गा. १५, पद्य, मपू., (सेवा शांतिजिणेसर की), १२०५३२-१(+) शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (शांति जिनेश्वर साहिबा रे), १२०३२०-३९(+-#) शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सोलमा श्रीजिनराज उलग), १२०६९१ शांतिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (प्रात उठ श्रीसंतिजिण), १२१२२१-३(+), १२२१८०-८ शांतिजिन स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु शांतिजिणंद भलै), १२१८०७-२ शांतिजिन स्तवन, आ. लब्धिचंद्रसूरि, मा.गु., गा.८, वि. १९९२, पद्य, स्था., (शांतिजिनंदजी कीनी सेवा), १२१६५१-१ शांतिजिन स्तवन, मु. लावण्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (शांति जीणंद भजो सदा भविया), १२२३०७-१(+) शांतिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेरइ आंगन कल्प फल्यो), १२०१८१-६, १२०६१४-३५ शांतिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (सुंदररूप सोहामणो), १२३५१४-७(६) शांतिजिन स्तवन, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. ४, गा. ४९, वि. १६७२, पद्य, मप., (सांतिजिण सयल जन नयण), १२१५४५(+) शांतिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (पहिला जी जिनवर चउवीसइ नमु), १२१५९५-२(#) शांतिजिन स्तवन, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (शांतिजिणंदनी सेवा), १२०५०३-१(#) शांतिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मपू., (शांति जिणेसर साहिब), १२१९४०-२($) शांतिजिन स्तवन-अक्षयनिधितपगर्भित, ग. आणंदसुंदर, मा.गु., गा. ११, वि. १८८६, पद्य, मप., (वंदू श्रीजिन सोलमा), १२०२४४(#) शांतिजिन स्तवन-उदयपुरमंडन, मु. खुस्याल, मा.गु., गा. ९, वि. १७९२, पद्य, मूप., (साहिब शांति जिनेसरु), १२०४०२-८ शांतिजिन स्तवन-ज्ञानोपयोगगर्भित, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (थाली कलसली सार कचोला), १२३५२४-१(+$) (२) शांतिजिन स्तवन-ज्ञानोपयोगगर्भित-स्वोपज्ञ बालावबोध, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., वि. १७९६, गद्य, मप., (--), १२३५२४-१(+$) शांतिजिन स्तवन-विरमपुर मंडण, आ. जिनरत्नसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (--), १२०१६८-१(६) शांतिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर समरीइं), १२०६४५-८, १२२९०४(#) शांतिजिन स्तुति, मु. पद्मविजय, मा.ग., गा. ४, पद्य, मप., (वंदो जिन शांति जास), १२२९१९-८ शांतिजिन स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (शांति सुहंकर साहिबो), १२११०६-१ शांतिजिन स्तुति-फलवर्द्धि, मु. देवकुशल, रा., गा. ४, पद्य, पू., (फलवधीरो मंडण सांति), १२३०८१-८(+) शांतिजिन हालरडं, मु. चौथमलजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, स्था., (सर्वार्थसिद्ध थकी), १२२१९१-१०($) शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., ढा. २९, गा. ५१०, वि. १६७८, पद्य, मपू., (सासननायक समरियै), १२०६७४(+), १२१३५७(+#S), १२२८४१(+), १२२८४५(+#$), १२२८३९, १२३२०७, १२३१०६(#), १२१३७०(७), १२२९९७-१(s), १२३९९५(३) For Private and Personal Use Only Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .पद्य, मूपू., (.). १७, पद्य, मपू., SHARMती जी), १२०२२२ सो चार है पचा ५८४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शालिभद्रमुनि चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), १२३७६१-२(5) शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूप., (प्रथम गोवालतणे भवेइं जी), १२१८९८-१(+$), १२१७१२-२ शालिभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (राजगरीनग्रीय्या सोभती जी), १२०२३३ शाश्वतजिनचैत्यालयद्वारमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (लंबे सौ चार है पचास ऊंचे), १२०३२६-४२०(+) शाश्वतजिन स्तवन-नंदीश्वरद्वीप, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (नंदीसरवर दीप मझारि), १२०२२५(+#) शाश्वतजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १९पू, पद्य, मूपू., (ऋषभ चंद्रानन वंदन), १२११०६-५, १२२९१९-१३ शाश्वताशाश्वतजिनचैत्य जयमाल, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., चौपा. १५, वि. १८वी, पद्य, दि., (चैत्यालय प्रतिमा सवै वंदे), १२०३२६-३७३(+), १२०३२६-५७९(+) शास्त्र आरती, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ११, पद्य, दि., (ॐकार धुन सार द्वादशांग), १२०३२६-५७(+) शियलनी सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १५, पद्य, मपू., (मोतीशुं मोंगो मालवो रे), १२०६२१-२ शिवपुरनगर वर्णन पद, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (समी भोंमथी उंची अलगी), १२१४४५ शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, म्पू., (गोतमस्वामी पुछा करी), १२२३३४ शिवभक्ति गीत, रा., गा. ६, पद्य, वै., (मारे घरे पदारोजि रुठोडा), १२०४०८-८३(+) शिष्य हितशिक्षा सज्झाय, मु. जिनभाण, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (चेला रहे गुरुने पास), १२१०३०-१ शीतलजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (तार ले मोहि शीतलस्वामी), १२०३२६-३३६(+) शीतलजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मप., (मेरौ लागो नवल सनेह), १२१९७९-४ शीतलजिन पद, मु. हरखचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (अटक्यो चित्त हमारी री जिन), १२०३२०-५५(+-#) शीतलजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (शीतल शीतलनाथ सेवो), १२१५६१-४ शीतलजिन स्तवन, मु. कपूरचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शीतलजिन साहिबा मोरी अरज), १२२४६०-१ शीतलजिन स्तवन, मु. कल्याणहंस, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (जग नाय जगवालहो रे लाल), १२०४०२-६ शीतलजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ११, वि. १८२७, पद्य, मप., (भविजन वंदो रे शीतल), १२३१४४-२(+) शीतलजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सितलजिननी सेवना), १२१०७८-१ शीतलजिन स्तवन, मु. शांति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शीतल साहिब सेवीऐ होजी), १२०४०२-७ शीतलजिन स्तवन, मु. हर्ष, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सखी नवी नवेरी भगति), १२१५९६-२, १२१५९५-४(#) शीतलजिन स्तवन-उदयापुरमंडन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सीतलजिन सहेज सुरंगा), १२०४०२-१२, १२०२२९-१(#) शीयल कडा, मा.गु.,रा., गा. १६, पद्य, श्वे., (धर्मनां छे अनेक प्रक), १२१४१५-२(s), १२२५५५(-१) शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ६८, ग्रं. २५१, वि. १६३७, पद्य, मप., (पहिलं प्रणाम करूं), १२१६८५-१(+), १२३०६८(+), १२२२४१ । शीयलव्रत सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १९, वि. १८५०, पद्य, स्था., (गेरो रंग लागो हो), १२११०२-३(+), १२१७३३-२(5) शीलमंजरी चौपाई, मु. प्रसन्नचंद, मा.गु., ढा. ११, वि. १९४२, पद्य, मपू., (श्रीनाभेय प्रणमीये शांति), १२२३३८(+) शीलमहिमा सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १९७२, पद्य, श्वे., (मेहमा फेलि रे मेहमा फेलि), १२०४०८-१०४(+) शीलमहिमा सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (जि वरथ सिल तणो कर संग अवर), १२०४०८-१५०(+) शीलवती चौपाई, मु. देवरतन, मा.गु., खं. ३, वि. १६९८, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी परगडउ), १२३४९६(#$) शीलवती रास, मु. नेमिविजय, मा.गु., खं. ६ ढाल ८४, गा. २०६१, वि. १७५०, पद्य, मूपू., (ॐकार अक्षर अधिक), १२१५३२ शीलोपदेश सज्झाय, मु. रतनविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १९६६, पद्य, भूपू., (मत ताको नार वेराणी), १२०४०८-७८(+) शुकबहोत्तरी कथा, आ. रत्नसुंदरसूरि, मा.गु., कथा. ७२, गा. २४०१, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (सयल सुरासुर माया), १२३८२७(+#S) शुकराज रास, मु. राजपाल, मा.गु., गा. ५५३, वि. १६४१, पद्य, मूपू., (आदीस पमुह सवे वर्त), १२१९४८(+) शुकराज सहेली कथारास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. १६७, पद्य, मूपू., (सरसती हंसगमनी सदा), १२३७८१ For Private and Personal Use Only Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ ५८५ शुभाशुभप्रकृतिबंध कवित्त, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद. ३, पद्य, दि., (जीव मैं अनंत गुण तामैं एक), १२०३२६-५८१(+) श्रद्धाचालीसी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., चौपा. ४०, पद्य, दि., (वंदौ हौं परमातमा जगग्यापक), १२०३२६-१०(+) श्रावक ११ प्रतिमा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (दरसन प्रतिमा१ ज्ञान), १२१०५९-३(#$) श्रावक २१ गुण वर्णन, मा.गु., अंक. २१, गद्य, मपू., (धर्मनई विषइ १ मन वचन), १२३२६०-७(+) श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, मप., (पहिलो मनोरथ समणोपासण), १२१८६७(+), १२०८३१, १२२९२०-२ श्रावक आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम इरियावहि पडकमी), १२१३४५-१ श्रावकइकवीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (श्राविक नाम धरायने एहवा), १२२१८०-११ श्रावककरणी सज्झाय, मु. कांति, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (श्रावक तुं उठी परभाति), १२०२०२, १२०४३१-१(#) श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूप., (श्रावक तुं उठे परभात), १२०३२०-३३(+-#) श्रावककरणी सज्झाय, मु. नित, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (श्रावक धर्म करो सुखदाइ), १२२८६१-३(+) श्रावक के ३ मनोरथ, मा.ग., गद्य, मप., (श्रावकना तीन मनोरथ), १२१०८४(+), १२२५०९ श्रावकछत्रीशी, मु. गोरधन ऋषि, मा.गु., गा. ३६, वि. १८४०, पद्य, श्वे., (श्रावकजी तू उठे), १२१६२१(+) श्रावक सज्झाय-सामायिक, मा.गु., पद्य, श्वे., (श्रावक चीत चोखे करो), १२२१९१-६(5) श्रावकाचार प्रश्नोत्तर, श्राव. बुलाकीदास, पुहिं., अधि. २४, गा. २२५९, पद्य, दि., (सिद्धं संपूर्ण भव्या), १२०९३३-१(#) श्रावकोपदेश सज्झाय, मु. खोडीदास, रा., गा. १०, पद्य, श्वे., (फोगट सरावग नाम धरावे), १२१२४५-२(+) श्रीचंद्रकेवली रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., उल्ला . ४ ढाल १११, गा. २३९५, ग्रं. ६९३९, वि. १७७०, पद्य, मूपू., (सुखकर __साहिब सेवीइं), १२१२२३(+) श्रीपाल चरित्र, जै.क. परिमल्ल रामदास, पुहि., पद्य, दि., (श्रीसिद्धचक्र विधि केवल), १२०४२८ श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४१, गा. १८२५, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (कल्पवेल कवियण तणी), १२०३०६(+$), १२०६३८(+), १२१०७७(+), १२११५१(+#), १२१४३८(+), १२१५५६(+$), १२१८१९-१(+#$), १२२२२७(+), १२२२५८(+), १२२३१८(+$), १२३३१३(+), १२१८६६, १२१४८०(#$), १२०७५६(s), १२१२१४(६), १२१४७१(६), १२३९९०() (२) श्रीपाल रास-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मूप., (तिगुणसुंदरी चौसठकला), १२०६३८(+), १२११५१+#), १२१८१९-१(+#$) (२) श्रीपाल रास-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (त्रीजो खंड पूरो थयो), १२०६३८(+), १२११५१(+#), १२२२२७(+$), १२२२५८(+$) (२) श्रीपाल रास-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप्पू., (--), १२१४८०(#$) श्रीपाल रास, मा.गु., पद्य, मूपू., (सहिकार सम चोवीसने नमु), १२२६३४(६) श्रीपाल रास-बृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ४९, गा. ८६१, वि. १७४०, पद्य, मूपू., (अरिहंत अनंतगुण धरीये), १२०७८०(+) श्रीपाल रास-लघु, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ३२३, वि. १५३१, पद्य, मपू., (करकमल जोडि करि सिद्ध), १२१५७३(+), १२२६३१(+$), १२२१४०, १२२५३८(#$) । श्रीपाल रास-लघु, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ४०, गा. ७५६, ग्रं. ११३१, वि. १७२६, पद्य, मपू., (सकल सुरासुर जेहना), १२१२७४(+#) श्रीमती चौढालिया, मु. विजयहर्ष, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूप., (ईणहीज दक्षिण भरत), १२०७४३-२(+) श्रीसारबावनी, मु. श्रीसार कवि, मा.गु.,रा., गा. ५६, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (ॐ ॐकार अपार पार न), १२३३३२(+#$) श्रुत बाराखडी, मु. सुरत, पुहिं., गा. ७७, पद्य, दि., (प्रथम जपो अरहंत कौ), १२१४५४-५ श्रेणिक चरित्र, श्राव. लक्ष्मीदास, मा.गु., ढा. ५४, गा. १७९८, वि. १७३३-१७४९, पद्य, दि., (गणपतिश्री अरिहंत पद), १२०४२१ श्रेणिकराजा रास, मु. तिलोक ऋषि, मा.ग., ढा. ८४, ग्रं. ३२५०, वि. १९३९, पद्य, मप., (जे जे जे जिन जग गुरु), १२२३३२(+), १२१७६३ श्रेणिकराजा रास, मा.गु., गा. ६७२, पद्य, मूपू., (--), १२३०३२(+#$) श्रेयांसजिन स्तवन, ग. जिनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (श्रेयांसजिन आगलि रही रे), १२३१६२-४(#) श्रेयांसजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (प्रणमउं श्रीश्रेयांस), १२३३४८-१(#) For Private and Personal Use Only Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ श्रेयांसजिन स्तवन, मा.गु., गा. ११, वि. १८५१, पद्य, मूपू., (श्रीहंसनाथ प्रभूजी बंस), १२०१८७-१(+) श्वासोश्वास विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (सासउसास थाय एक मुहुर), १२३२६०-१५(+) षड्जीवनिकाय-४०६ भेद समास, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. २२, पद्य, दि., (वंदौ नेमिजिनंद पद सब जीवन), १२०३२६-२४(+) षड्दर्शन विचार, मा.गु., गद्य, भूपू., (--), १२०९३६(+$) षड्द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, मप., (परिणाम जीवमुत्तं सपए), १२२००२-२(+), १२३२६०-१३(+) संघपच्चीसी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., चौपा. २५, वि. १८वी, पद्य, दि., (ऋषभदेव महावीरजी चौवीसौं), १२०३२६-५५९(+) संज्ञा विचार, पुहि., गद्य, मूपू., (कर्मोदय से घनादि के देखने), १२१८३३-१ संप्रतिराजा वर्णन, मा.गु., गद्य, मपू., (सूत्र महेवाने १५१का मेहेल), १२२४१२-२(#) संभवजिन पद, मु. लब्धिविजय, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (तोसे तनमन लागो रे जिन), १२०१८१-५ संभवजिन स्तवन, मु. ऋद्धिकीर्ति, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (संभवजिनरी सेवा), १२१७७८-३(#) संभवजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ८, वि. १८६९, पद्य, मूप., (संभव जिनवर वीनती), १२२०२५ संभवजिन स्तवन, वा. चारुचंद्र, पुहिं., गा. २१, पद्य, मपू., (ए चउवीसइ अतुलबल चउवीसई), १२३५७६(+#) संभवजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १७७०, पद्य, मूपू., (समकित दाता समकित आपो), १२१८०१-२० संभवजिन स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ससनेही जिनराय मलिये), १२०५२६-२(+), १२१७६१-२(#) संयोगद्वात्रिंशिका भाषा, मु. मान, मा.गु., अध्य. ४ उन्माद, गा. ७४, वि. १७३१, पद्य, श्वे., (बुद्धिवचन वरदायनी), १२१६६५(5) संवतवार नगरस्थापनादि ऐतिहासिकघटनाक्रम, मा.गु., गद्य, मपू., (संवत् २१३ वर्षे राजा), १२१०१५(#) संवेगीसाधु मर्यादापट्टक, आ. विजयसिंहसूरि, मा.गु., गद्य, मपू., (भट्टारक श्रीजगचंद्र), १२०७०१(+) संसारत्याग भावना सज्झाय, मु. जिनभाण, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (थावच्चा सुत थर हों), १२१९७७ संहननसंख्या पद-६ स्थानगत, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. २, पद्य, दि., (सुरग नरक एकेंद्री मांहि), १२०३२६-४३३(+) सचित्त अचित्त वस्तु काल निर्णय, मा.गु., गद्य, श्वे., (आषाढे चोमासामांहे), १२१९३२-२(+) सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., गा. २५, पद्य, मप., (प्रवचन अमरी समरी), १२१०५८-१(+#) सचित्ताचित्त विचार-बीज, उपा. शंभुराम, पुहिं., गद्य, श्वे., (जिनवर वानी गुरु चरण नमन), १२०३६५(+) सज्जनदर्जनगुणदशक सवैया, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ११, पद्य, दि., (तरु की कलम सिद्ध स्याही), १२०३२६-३७४(+) सत्यघोष चरित्र, मु. नथमल, मा.गु., ढा. ७, वि. १९२०, पद्य, श्वे.?, (गुरु गोतम वांदु सदा कदा न), १२२०१४(+) सत्यदृष्टांत दोहा, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सत मत छोडो हो नरा), १२०४०८-५२(+) सत्यदृष्टांत सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (सत वचन सूद बोलिये ए कोइ न), १२०४०८-५१(+) सत्यासत्य सज्झाय, मु. राममुनि, पुहि., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रथम न वेसे पंच में), १२०४०८-५०(+) सत्यासीयाछतीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६८७, पद्य, मप., (रुडी श्रीगुजराति देस), १२०१६१(#) सद्गुरु पद, मु. गंगाराम, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (सतगुरु साधु सिपाई), १२०३२०-५०(+-#), १२०९८०-२(+) सद्गुरु पद, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (मे अमली जिननाम का), १२१४८१-९ सनत्कुमारचक्रवर्ती चौढालियो, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (तिणकालने तिण समें), १२१६५३-१, १२२४५०-१, १२२३१२-१(६) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (कुरुदेशे गजपुर ठामे), १२३३२६-१(+$) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. १२, वि. १९३६, पद्य, श्वे., (सकंद्र माहाराज कईजे प्रथम), १२०४०८-१६१(+) सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (सुरपति प्रसंसा करे बेठा), १२०४०८-१६८(+) सप्तनय संक्षिप्तस्वरूप विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (अनंत धर्मात्मक वस्तु), १२३८८३(+) For Private and Personal Use Only Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ समकित पद-उपसम क्षायिक, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (प्रथम उपसम सम्यक देशवृत), १२०३२६-४२२(+) समकित सज्झाय, रा., पद्य, मप., (नीरमल शुद्ध समकित जीण पाई), १२२१८८-४($) समझपच्चीसी, मा.गु., गा. २५, वि. १८६७, पद्य, श्वे., (सिवकी साधन करै पाप सहु), १२१०५१-५(+#) समता सज्झाय, मु. रतनचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (समता रस का प्याला), १२०४०८-१४५(+) समवसरण कालमान विचार-इंद्रादि द्वारा रचित, मा.गु., गद्य, मप., (सोधर्मो इंद्रनु), १२१०५९-१(#) समवसरण पद-ध्वजसंख्या, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (समोसरन एक दिशा मांहि), १२०३२६-४१५(+) समवसरण पूजा, क. बुधजन कवि, पुहिं., गा. ७२३, वि. १८३४, पद्य, दि., (पंच परम गुरु को नमो मन वच), १२०३५१(+) समवसरण बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, मपू., (जीवाए लेसपखाए दिट्ठी), १२२०३९(5) समवसरणवर्णन चौपाई, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., चौपा. ३०, वि. १८वी, पद्य, दि., (समोसरन के स्वामी को वंदौ), १२०३२६-५५०(+) समाधिपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २५, वि. १८३३, पद्य, स्था., (अपुरव जीव जिनधर्मने), १२३७३६(+) समाधिमरण, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. १०, पद्य, दि., (गौतमस्वामी वंदौं नामी मरण), १२०३२६-२०(+) समोसरण भावना सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. १५४, वि. १८७२, पद्य, स्था., (--), १२०८७१-७(६) सम्मेतशिखरतीर्थ पद, मु. क्षमाकल्याण, पुहि., गा. ३, पद्य, मप., (मधुवन में जाय मची होली), १२२०२६-३(+), १२१५१९-१७(#) सम्मेतशिखरतीर्थ पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (समेदशिखर चल रे जियरा बीस), १२०३२६-३२८(+) सम्मेतशिखरतीर्थ पद, मु. नवलदास, पुहि., गा. ३, पद्य, मप., (सीखरगीर वांदन जानां), १२०६१४-७९ सम्मेतशिखरतीर्थ पद, श्राव. मोतीराम, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (शिखरसमेद निहारा धन भाग), १२०३२६-३३०(+) सम्मेतशिखरतीर्थ पद, श्राव. सुखानंद साह, पुहि., गा. ३, पद्य, दि., (समेदशिखर मोह भावै है देव), १२०३२६-३२९(+) सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (दरसण कीयौ आज सीखरगीर), १२०१९१-१(#) । सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा.७, वि. १८४३, पद्य, मपू., (चालो सहीया आपा जासा), १२०६१४-५४ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, आ. हर्षचंदसूरि, मा.गु., गा. १८, वि. १८९८, पद्य, मप., (शिखर समेत बधावो), १२३११२-२ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, आ. हर्षचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १५, वि. १८७३, पद्य, मूप., (सिखर समेत जुहारा रे धन्य), १२३११२-१ सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १२, गा. ६८, पद्य, मूपू., (सुकृतवल्लि कादंबिनी), १२१२५७(+), १२१७२२ (२) सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुकृत पुन्यद्रूप जे वल्लि), १२१७२२ सम्यक्त्व कौमुदी रास, मु. रूप ऋषि, मा.गु., खं.५, वि. १८८२, पद्य, श्वे., (--), १२०७१७(+#$) सम्यक्त्व छप्पनी, मा.गु., गा. ५६, पद्य, मूपू., (इम समकित मन थिर करो), १२०५६५(+#$) सम्यक्त्वदीपक दोधका, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जेह तणो आदेश सावधभ), १२३३३४-७(+) सम्यक्त्वव्रत सज्झाय, मु. देवीदास, पुहि., गा. ५, पद्य, मूप., (समकीत नाह सही रे), १२०४०८-१७४(+) सम्यक्त्व सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जब लगे समकित रत्नकुं), १२२३०७-३(+) सम्यक्त्व सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (स्मक्त समकित वीना), १२१५१९-२४(#) सम्यग्ज्ञानप्रकाश, श्राव. डालूराम मयाराम अग्रवाल, पुहि., संधि. २१, वि. १८७१, पद्य, दि., (नमूं प्रथम अरिहंतकू नम), १२०४५१(+#$) सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (बुद्धि विमल करणी), १२१७९९-१०(+), १२२८७४-१(+$) सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (सरस वचन समता मन), १२०४६०-६ सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मपू., (ॐकार धुरा उच्चरणं), १२०२३०-२(+#) सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मप., (सरसति सरस वचन समता), १२०१६३(#) सरस्वतीदेवी स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सरसती माता प्रणमु तुज वचन), १२१५७८-१(-2) सर्वदेवलोकेंद्रसंख्या पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (आदि के सुरगरति के चार), १२०३२६-५०१(+) For Private and Personal Use Only Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५८८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सर्वप्रकृतिमिध्यात जीवउदय पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (जथा आहारक चौक मिश्र सम्यक), " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२०३२६-४२६(+) सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जगदानंदन गुणनीलो रे), १२१९७१($) सर्वार्थसिद्धविमान सज्झाय, ग. देवीचंद्र, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू. (जगदानंदन गुणनिलो रे), १२०६४४ सवैया संग्रह, पुहिं, पद्य, वै., इतर (अली आय खरी सन्मुख), १२२२१९-३ (५) १२२२२४-३ " " सहजसिद्धपूजा अष्टप्रकारी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., दोहा. ९, पद्य, दि., (सेव साध परमातमा सेवक साधक), १२०३२६-५७१(+), १२०३२६-५७२(+) सहजसिद्धाष्टक, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ११, वि. १८वी, पद्य, दि., (परम पूज परमातमा पूजक चेतन), १२०३२६-४०७(+) सहस्रकूटजिन स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. १४, वि. १८वी, पद्य, म्पू, (सहसकूट जिनप्रतिमा वंदीये), १२१२०२ सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. २ डाल २२, गा. ५३५, ग्रं. ८०० वि. १६५९, पद्य, मूपू. ( श्रीनेमीसर गुणनिलउ ), १२१५०५ (+) सांबप्रद्युम्न रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. २ ढाल ५३, गा. १९८०, वि. १६५९, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवैरेष्ट), १२३५५० (+#$) सागरोपम पल्योपम विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (च्यार गाउनो कुओ), १२३२६०-३(+) साढापच्चीसदेशनाम व ग्रामसंख्या, मा.गु., गद्य, मूपू., (मगधदेस राजग्रहीनगर), १२२०७६- २ (+), १२३२६०-१४(+) साधारण जिन ४६ बोल आरती, जे. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. १५, पद्य, दि. (गुन अनंत कह कोस है), १२०३२६-५०(+) साधारणजिन आरती श्राव दीपचंदजी, पुहि गा. ८, पद्य, दि. (इह विधि आरती करो प्रभु), १२०३२६-३१(+) " "" साधारणजिन आरती, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., ( आरती श्रीजिनराज), १२०३२६-२८(+) साधारणजिन आरती, जे.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं. गा. ८, पद्य, दि., ( कहा ली आरती भगत की जी), १२०३२६-३५ (+) साधारणजिन आरती, वा. हरखचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आरती करत जिणेसर की भाव), १२०६१४-६५ साधारणजिन उपमा वर्णन, पुहिं., गद्य, मूपू., (जयश्री अरिहंत देवाधिदेव), १२१००७(+) साधारणजिन गीत, मु. रूपचंद, पुठि, गा. ३, पद्य, थे. (तु निरंजन इष्ट हमेरा), १२०६१४-८९ साधारणजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जय जय हे देवाधिदेव), १२०१८२-३ साधारणजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू. (हे स्वामी मुज तार २) १२०१८२-४ साधारणजिन चैत्यवंदन-पंचपरमेष्ठिगुणगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८पू, पद्य, मूपू., (बार गुण अरिहंत देव), १२३०८१-४१(+), १२११२८-४२०० साधारणजिन पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरो निरंजन यार हो), १२१५१९-५ (#) साधारणजिन पद, मु. खुशालराय, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (मेरा जीवडा लग्या), १२०६१४-६२, १२१५१९-९ (#) साधारणजिन पद, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभु मेरो मनडो हटक), १२११९८-९ साधारणजिन पद, मु. जयराम, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (हो वनमालीया फूलज लाव रे), १२०३२०-२९(+#) साधारणजिन पद, मु. जिनचंद, पुहिं गा २, पद्य, म्पू. (तु मेडा प्रभु इण दिल), १२१९७९-३ साधारणजिन पद, मु. दोलतराम, पुहिं. गा. ३, पद्य, वे (घडी घडी पल पल छिन) १२०८७७-२ (४) साधारणजिन पद, मु. दौलत, पुहिं. गा. ३, पद्य, मृपू.. (सरण जिनराज तेरी हो दीन), १२०६१४-८१ " " . साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराव अग्रवाल, पुडिं, गा. ३. वि. १८वी, पद्य, दि. (अब मोहि तार ले अरु भगवान), " * , १२०३२६-३५९(+) साधारणजिन पद, जैक द्यानतराव अग्रवाल, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (आप प्रभुजी नामे जाना यह) १२०३२६-७२(*) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., ( इक अरज सुणौ साहिब मेरी), १२०३२६-२८४(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (ए जिनराजजी मोह दुख ते ले), १२०३२६-१९१(+) For Private and Personal Use Only Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ ५८९ साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (करुणा करनदेवा एक जनम दुख), १२०३२६-३३९(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ३, पद्य, दि., (कोडि पुरुष कनक तन कीने), १२०३२६-३४३(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (गुन अनंत भगवंत छयालीस), १२०३२६-५२५(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (जानौ पूरा ग्याता सौई रागी), १२०३२६-४०१(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (जिन कै भजन मैं मगन रहो), १२०३२६-१८८(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा.२, वि. १८वी, पद्य, दि., (जिनराय कौ पाय सदा सरन), १२०३२६-२९६(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (जिनवर मूरति तेरी सोभा कही), १२०३२६-३३३(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (जिन साहिब मेरे हो निवाजि), १२०३२६-२८५(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा.६, पद्य, दि., (जैनराय मोह भरोसो भारी सुर), १२०३२६-२३८(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (तुम अधम उधारनहार हौ), १२०३२६-३४२(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा.१२, वि. १८वी, पद्य, दि., (तुम देवनिके देव हौ), १२०३२६-३७१(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (तुम प्रभु कहियै दीन), १२०३२६-९३(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (तू जिनवर स्वामी मेरा मै), १२०३२६-७७(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (तू ही मेरा साहिब सच्चा), १२०३२६-३८९(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (दास तिहारौ हं मोहि तारौ), १२०३२६-३२३(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (देखो भाई श्रीजिनराज), १२०३२६-१५१(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (नाथन के नाथ औ अनाथन के), १२०३२६-४४२(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (प्रभु जी का मोह फिकर अपार), १२०३२६-४०२(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (प्रभु तुम नैन निगोचर), १२०३२६-३४६(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (प्रभु तुम समरन ही), १२०३२६-१६७(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (प्रभु तेरी महिमा कहिय न), १२०३२६-१६६(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (प्रभु तेरी महिमा किहि मुख), १२०३२६-१६५(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (प्रभु मैं किहि विध थुति), १२०३२६-१२३(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (प्रभु मैं तुम चरण सरन), १२०३२६-३४०(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (भजौ जी भजौ जिन चरण), १२०३२६-३६२(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (भोर उठि तेरो मुख देखो जिन), १२०३२६-३५५(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (मेरी वार क्युं ढील करी जी), १२०३२६-२२१(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (मोहतारा हो देवाधिदेव), १२०३२६-१३२(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (मोहि तारौ जिनसाहिब जी), १२०३२६-३२२(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा.८, पद्य, दि., (श्रीजिनदेव न छांड हौ सेवो), १२०३२६-२२२(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (सच्चा सांई तू ही मेरा), १२०३२६-३९०(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (हम आए हौ जिनभूप तेरे दरसन), १२०३२६-२७९(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (हो श्रीजिनराय नीति राजा), १२०३२६-३६८(+) साधारणजिन पद, मु. नयनसुख, पुहिं., गा. ४, पद्य, मपू., (प्रभु सिमेटो व्यथा), १२०३२०-४७(+-#) साधारणजिन पद, क. बनारसीदास, पुहिं., पद. ३, पद्य, दि., (भेद विग्यांन जग्यौ), १२२६३२-२(+) साधारणजिन पद, मु. भूधर, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (चालो री सखी प्रभु), १२०६१४-७८, १२१५१९-३(#) For Private and Personal Use Only Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ साधारणजिन पद, मु. मालदास, पुहि., गा. ३, पद्य, पू., (भलै मुख देख्यौ), १२०६१४-२८ साधारणजिन पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मपू., (प्रभु मेरे अइसी आय), १२०२०९-१(#) साधारणजिन पद, मु. रतन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (तारो जिनेसर स्वामि हमकुं), १२०२१०-७(+) साधारणजिन पद, मु. राज, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूप., (उमंग भई दरशण की मन), १२१९७९-५ साधारणजिन पद, मु. रामदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (नयना सफल भए प्रभु), १२०६१४-३८ साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (देख्या दरसण तिहारा), १२०६१४-२२ साधारणजिन पद, श्राव. वखतराम, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आपको सरण लीनो सोतो), १२०८७७-४(2) साधारणजिन पद, श्राव. वखतराम, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (पया नीं में प्रभुदा दरसण), १२०२१०-३(+) साधारणजिन पद, मु. सिवाचंद, मा.गु., गा.४, पद्य, मप., (जिनजी सुं लागो मेरो नेह), १२१५१९-६(2) साधारणजिन पद, मु. सिवाचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (प्रभुजी सै लागो मेरो नेह), १२१५१९-११(2) साधारणजिन पद, मु. हरसुख, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (आवो प्रभूमिंदर जिनवाणी), १२०५०३-६(#) साधारणजिन पद, मु. हरसुख, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (दीनानाथ प्रभुजी मोरी अरज), १२०५०३-७(#) साधारणजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (अब मोयत्या रोगे दीनदयाल), १२०३२०-२२(+-#) साधारणजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (हां रे वन मालीया फूल चुन), १२०३२०-२५(-2) साधारणजिन पद, श्राव. हेमराज, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, दि., (ऐसे प्रभु ध्याउं दुरगति), १२०३२६-३८६(+) साधारणजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (कैसे काज सरै महाराज),१२२४६०-५ साधारणजिन पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मप., (गजरा मंगाय देनी राज मोकुं), १२१९७९-२ साधारणजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (चतुरंग रस की वात), १२३८६२-१(#) साधारणजिन पद, मा.गु., पद्य, मूपू., (चेताले चालो तो सही मारा), १२०२४७-२(+$) साधारणजिन पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मप., (जिनपद माहाराज अरज सुणीजे), १२०३२०-४६(+-#) साधारणजिन पद, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (तुम तारण हम प्राणी तारण), १२१९७९-१ साधारणजिन पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (तूं किम तारक नाम धरावै), १२०६१४-९९ साधारणजिन पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (यह अरजी मोरी सहियां), १२२४६०-२ साधारणजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूप., (राजरी वधाई बाजे छे), १२३८६२-३(#) साधारणजिन पद, पुहि., गा. ४, वि. १८३९, पद्य, मूपू., (लागो मारो वीर जिणंदा), १२०६१४-११ साधारणजिन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (सही मज तीरसो महावेद गुण), १२०३२०-३७(+-#) साधारणजिन पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मपू., (सेवा फल येहे पावु तीहारी), १२०३२०-४८(+-#) साधारणजिन पद-५ शरीरस्थितिगर्भित, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (औदरिक के देह की कही है), १२०३२६-५४५(+) साधारणजिन पूजा-पंचमेरुस्थित, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. २१, पद्य, दि., (तीर्थंकरौ के हौं न जलध ते), १२०३२६-५८(+) साधारणजिन प्रभाती, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूप., (आवी रुडी भगति में पहेला), १२०६९२ साधारणजिन रेखता, मु. चेतन, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभु को सुमर रे), १२१९८३-२ साधारणजिन विनती स्तवन, मु. भुधर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनगुरु स्वामीजी), १२०१६४ साधारणजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (जिणंदा ताहरी वाणीइं), १२१७२०-३ साधारणजिन स्तवन, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (आवोजी राज आवोजी), १२११९८-११ साधारणजिन स्तवन, मु. चिदानंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मप., (देखो भवि जिनजी के), १२११९८-३ साधारणजिन स्तवन, मु. चिदानंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (लाग्या नेह जिन चरण), १२११९८-१५ साधारणजिन स्तवन, सा. जडाव, मा.गु., गा. ९, वि. १९५३, पद्य, श्वे., (--), १२२१८८-१६($) साधारणजिन स्तवन, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (प्रक्षा जिनराज आनंद), १२०२०५-१(2) For Private and Personal Use Only Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ ५९१ साधारणजिन स्तवन, मु. जिनलक्ष्मी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सबल भरोसो तेरो जिनवरजी), १२०६१४-८७ साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा. ५, पद्य, मप., (जब जिनराज कृपा होवे), १२३३२६-२(+), १२२४७५-६, १२१२६१() साधारणजिन स्तवन, मु. नगजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (में हूं अनाथ नाथ हाथ साहि), १२०३२०-१७(+-#) साधारणजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेरे साहिब तुम ही हो), १२०२०९-४(#) साधारणजिन स्तवन, मु. रूप ऋषि, बं., गा. ५, पद्य, श्वे., (मौना लागिनो रे तुमार), १२०५४५-१ साधारणजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, रा., गा.७, पद्य, श्वे., (प्रभुजी थारा दरसण), १२०२०३-३(+#) साधारणजिन स्तवन, मु. सेवक, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (देखो रे जिणंदा), १२०६१४-३० साधारणजिन स्तवन-अध्यात्मगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मेरा साहिब सुगुण), १२२५२७-२(+) साधारणजिन स्तवन-आत्मनिंदागर्भित, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (सीवनारी के भरतार तुमने), १२२२९३-४ साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चंपक केतकी पाडल जाई), १२३०८१-१२(+) साधारणजिन होरी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (दर्शन बिन जीव संसार), १२१५१९-२८(#) साधु आचार सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अरज करुं छु छोडो रीस), १२०४०८-१४२(+) साधु आचार सज्झाय-नारीपरिहार, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुनि परघर मत जाजोजि नारि), १२०४०८-७७(+) साधु कालधर्म विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (कोटिकगणवइरी शाखा), १२१३१२ साधुगुणबत्तीसी, मु. चंद्रभाण, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे., (पापपथ परहरै मोक्षपथ), १२१०५१-२(+#) साधगणमाला, श्राव. हरजसराय जैन, पुहिं., गा. १२५, वि. १८६४, पद्य, मप., (श्रीत्रैलोकाधीस को), १२३९०२(+$) साधुगुण वंदन, क. सुंदर, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (पापपंथ परहर धर्मपंथ), १२०६२१-१ साधुगुण सज्झाय, मु. आसकरण, मा.गु., गा. १०, वि. १८३८, पद्य, श्वे., (साधुजीने वंदना नीत), १२०९१२-३(+) साधुगुण सज्झाय, मु. जैतसी, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (जिणवर गणधर मुनिवरने कहे), १२३७७८-२ साधुगुण सज्झाय, मु. वल्लभदेव, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (सकल देव जिणवर अरिहंत), १२२५६५-२, १२३५१४-८ साधुगुण सज्झाय, रा., गा. ३६, वि. १८७७, पद्य, श्वे., (ज्यां पांचमहाव्रत आद), १२१०७०-२ साधुदर्शनपच्चीसी, मु. मनरूप, रा., गा. २५, वि. १८७०, पद्य, श्वे., (दरसण कीजे हो श्रीमुनि राज), १२१२४३-२(+) साधु पंचभावना, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ६, गा. ९५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (स्वस्ति सीमंधर परम), १२२७४८-१ साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. ७, गा. ८८, पद्य, मूपू., (रिसहजिण पमुह चउवीस), १२२५४७, १२३९७७ साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., ढा. १३, गा. ३७७, पद्य, मूपू., (पंच भरत पंच एरवय), १२१८५५(#$) साधुवंदना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. १८, गा. ५१९, ग्रं. ७५०, वि. १६९७, पद्य, मपू., (शांतिनाथ जिन सोलमउ), १२३४७७(+#) साधुवंदना, रा., पद्य, मपू., (प्रथम उठाया भावसु सीवरु), १२२२०३($) साधुवंदना, मा.गु., गा. २४९, पद्य, मूपू., (वंदिय गुरूआ सिद्ध), १२०३००(+#) साधुवंदना तेरहढाला, मु. देवमुनि, मा.गु., ढा. १३, गा. १६७, पद्य, मूपू., (पंचभरत पंचएरव जाण), १२०९१४(+), १२१४२१(+), १२१९५८(+) साधुवंदना बृहद्, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. १११, वि. १८०७, पद्य, स्था., (नमुं अनंत चोवीसी ऋषभादिक), १२१७७६(+) साधुवंदना लघु, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. ५९, वि. १८०७, पद्य, श्वे., (नमुं अनंत चोविसी), १२३६७९, १२१०००(#) साधुश्रावक एषणीयआहार कालमान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (चावल प्रहर २८ राब प्रहर), १२१७२४ साधु सज्झाय, मु. गोरधन ऋषि, रा., गा.८, पद्य, श्वे., (मोटा तो चतुर सुजाण मीठी), १२१२३०-५(+) साधु समाचारी, मा.गु., गद्य, मूप., (आठ मास तांइ साधु मन), १२०७९०($) साधुस्तुति सवैया, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद. २, वि. १७वी, पद्य, दि., (ग्यान्न को उजागर), १२३९५८-५ सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (धुरि गौतमनुं लीज), १२३३३३(+) सामायिक दोषनिवारण सज्झाय, मु. माणकचंद, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (--), १२२०५२(६) For Private and Personal Use Only Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सामायिक दोष परिहार सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूप., (पहिला प्रणमुं जिण), १२३३६९-२(+) सारणीसार जगच्चंद्रिका, वा. हीरचंद्र, मा.गु., गा. ३८, वि. १७६२, पद्य, मूपू., इतर, (सकल सिद्धि दायक सरवर), १२१७६७(+#) सासबह कवित्त-सामायिकदोषविषये, मा.गु., का. १, पद्य, मपू., (नवकारवाली लेकर सामाइ ठाइ), १२३३३४-३(+) सिंहासनबत्रीसी चौपाई, मु. विनयलाभ, मा.गु., खं. ३ ढाल ६८, वि. १७४८, पद्य, मूपू., (आदि जिणेसर आदिदेव), १२३४२४(+) सिद्ध अष्टक, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. १२, पद्य, दि., (ऊरध अधारे कार जुत विंदी), १२०३२६-५२(+) सिद्ध आरती, श्राव. खुस्यालचंद, पुहि., गा. १६, पद्य, दि., (आठ करम दिढ बंध सौं नख सिख), १२०३२६-५३(+) सिद्ध के १५ द्वार बोल, मा.गु., गद्य, मपू., (अणंतर सीझणा द्वार), १२१७७५(+) सिद्धक्षेत्र स्तुति, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (तन वात के पंद्रह सै नव), १२०३२६-४१६(+) सिद्धगति द्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (उरधलोक मे च्यार सीजे १), १२१०७४-१(+), १२०६३६ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराधतां), १२३७०३-१ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराधतां), १२०६७२ सिद्धचक्र पद, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (नवपद ध्यान धरो रे), १२०६१४-५८ सिद्धचक्र पूजा, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (परमब्रह्म परमातमा परमजोति), १२०३२६-३७७(+) सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (नवपद महिमा सार सांभल), १२११५९-२(+) सिद्धचक्र स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (वीर जिणंद वखाण्यौ), १२०२२७(+#) सिद्धचक्र स्तवन, मु. कृपासागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र तणा गुण गावे रे), १२३३७२-३ सिद्धचक्र स्तवन, मु. नगजय, पुहि., गा. ११, पद्य, मपू., (सुविधि सिद्धचक्र चित नित), १२०३२०-७०(+-#) सिद्धचक्र स्तवन, मु. राम शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (ओ भवि रे प्राणी रे), १२०९८७-२ सिद्धचक्र स्तवन, मु. वीनतसागर, मा.गु., गा.७, वि. १७८१, पद्य, मप., (सह नरनारि मिल आवो), १२३३७२-२ सिद्धचक्र स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १४१७, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सेवित), १२३३७२-१ सिद्धचक्र स्तुति, ग. उत्तमसागर, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र सेवो), १२३०८१-१४(+), १२१८४३, १२२९२३-१ सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (निरुपम सुखदायक), १२१८५१-८(+) सिद्धचक्र स्तुति, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीर जिनेसर भुवन दिने), १२२९२३-२ सिद्धचक्र स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (त्रिगडे बेठा), १२२७९२-२(5) सिद्धचक्र स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराधी कीजे), १२२९१९-२ सिद्धचक्र स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराधो नित), १२२९१९-३ सिद्धचक्र स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र वरपूजा कीजे), १२२९१९-४ सिद्धचक्र स्तुति, मु. पद्म, मा.गु., गा. १, पद्य, मपू., (सिद्धचक्र आराधो साधो), १२२९१९-१(६) सिद्धदंडिका स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ३८, वि. १८१४, पद्य, मपू., (श्रीरिसहेसर पाय नमी), १२०८४७(5) सिद्ध पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. २, पद्य, दि., (सिद्ध महासुख रूप करम सब), १२०३२६-५४१(+) सिद्धपद दोहा, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., दोहा. ५, पद्य, दि., (सहज जीव चेतनमई विधि वस), १२०३२६-५७५(+) सिद्धपद स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (नमो सिद्धाणं बीजे पद), १२३०५५-२ सिद्ध विचार, मा.गु., गद्य, पू., (चउदमा गुणठाणाना अंत), १२२९७१-२(+) सिद्धशिलामान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (चाप तिहाई सब त्रिसनाज), १२०३२६-४५८(+) सिद्ध स्तुति, मु. स्वरूपचंद, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (परमेष्ठी आराधो सुगणजन), १२३८०७-३(#) सिद्धांतसार सज्झाय, मु. जेष्टमल ऋषि, मा.गु., ढा. ३, गा. ९७, वि. १८५०, पद्य, श्वे., (सावथी नामे नगरीये कोष्ट), १२०८७१-३ सिद्धांत सारोद्धार, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रथम जंबूद्वीपविचार), १२३४१९(+) सिद्धांत सारोद्धार विचार, रा., गद्य, मूपू., (एक बोल रे विचार जंबू), १२२०१२(+$) For Private and Personal Use Only Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ ५९३ , सिद्धिगमनांतर्गत अव्यवहारराशिनिगोदनिर्गमनजीव पद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि. (जेते मोक्ष जाय तेते नित्य), १२०३२६-४२८(+) सीताराम पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (ए रे वैरागी रामजी सुं), १२०३२६-३४१(+) सीताराम पद, जै. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं, गा. ३, पद्य, दि., (कहै राघो सीता चलहू गेह), १२०३२६-१८४(०) सीताराम पद, जे.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ८, पद्य, वि., (कहे सीताजी सुन रामचंद्र), १२०३२६-१८६(+) सीतासती गीत, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू (छोडी हो पिउ छोडि), १२२५२५-३ सीतासती चरित्र, मु. बाल कवि, पुहिं., गा. २५५०, वि. १७१३, पद्य, मूपू., (प्रणमुं परम पुनीत), १२१८८१ (#) सीतासती लावणी, मु. छोगचंद, रा. गा. ६, पद्य, से. ( दसरथ दीयो बनवास राम सीता), १२०९४८-१(१) सीतासती सज्झाय, मु. धनहर्ष, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू (सीता आणी रावणि वात), १२२८११-१(+) सीतासती सज्झाय, लछिदास, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (पिया मेरी एक न मानी), १२०९४८-४(+$) सीतासती सज्झाय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (दशरथनंदन राजीयो नयरी), १२३०८८(+) " . सीतासती सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे. (धिज करे मोठि सति रे लाल), १२०४०८- ९२(*) सीतासती सज्झाय, रा., पद्य, श्वे., (सीताजीसुं मिलवा मनोहरराणी), १२२२९१-७($) सीतासती सज्झाय, रा. गा. १५, पद्य, श्वे. (-), १२२२९१-१(३) सीतासती सज्झाय-पतिव्रता, मा.गु., पद्य, श्वे. (परम धरम पतिव्रता कहयो सुण), १२२१८८-२४($) יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जलजलती मिलती घणी रे ), १२१९९० सीतासती सवैया, मु. केशव, पुहिं., गा. १, पद्य, म्पू., (सीता सती कुमती ठायो चोर), १२०२४५-३ (+४) सीता हनुमान पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे. (सीताने समजायेवा प्रगट थयो), १२०४०८-८८(+) "" יי सीता हनुमान संवाद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (हुं तने नहि पिछाणु रे), १२०४०८-८७ (+) सीमंधरजिन खमासमण दूहा, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अनंत चोवीशी जिन नमुं), १२०१६९-३ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (बंदु जिणवर विहरमाण), १२३४९३-३(+) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९. वि. १८वी, पद्य, म्पू.. (सीमंधर परमातमा शिव), १२३७३०-१(5) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ३, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर वीतराग), १२०१८२-५, १२०९६९-२ सीमंधरजिन दूहा, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू (अनंत चोवीशी जिन नमुं), प्रतहीन. (२) सीमंधरजिन दूहा- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १२१२०१ ($) सीमंधरजिनविनती लेख, आ. जयवंतसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. ३७, वि. १७वी, पद्य, मूपू. (स्वस्ति श्रीपुंडरगिण), १२२९६३ ( * ) सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., गा. २१, वि. १८६१, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनस्वामी अरज), १२१३८३-२(+#), १२२४७४(१) सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., गा. १९, पद्य, म्पू., (सफल संसार अवतार हुँ), १२०९९२-१(३) सीमंधरजिन विनती स्तवन- १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., डा. ११, गा. १२५ ग्रं. १८८, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (स्वामी सीमंधर विनती), १२३७२९ (+$), १२२२१४($), १२३३९७($) सीमंधरजिन विनती स्तवन- निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., डा. ४, गा. ४१, पद्य, भूपू (श्रीसीमंधर साहिब आगे). १२२९१४-२(*) १ सीमंधरजिन स्तवन, मु. कान कवि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (महाविदेह क्षेत्रनो), १२१५५०-१(+) सीमंधरजिन स्तवन, पंन्या, केसरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (सीमंधर जिनराजने नित बंदो), १२१३२९-१(*), १२१४६५ सीमंधरजिन स्तवन, सा. जडाव, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., ( श्रीसीमंधर जिन सायबा), १२१३८८-३(#) सीमंधरजिन स्तवन, सा. जडाव, पुहिं. गा. ८. वि. १९३२, पद्य, वे (सिरी जिनराज शरणो धरम को), १२२१८८-९ सीमंधरजिन स्तवन, मु. जसवंतसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सीमंधरजी से वंदना), १२०३२०-७२(+#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनदास, रा. गा. ६, पद्य, श्वे. (सुणो सुनो सीमंधर), १२०३२०-४२(+) " , सीमंधरजिन स्तवन, आ. जिनसागरसूरि मा.गु. गा. ५, पद्य, मूपू (स्वामि सीमंधर विनति) १२०२२८-१ , For Private and Personal Use Only Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५९४ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सीमंधरजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, म्पू., (चांदलिया संदेशो) १२२९७८(+) सीमंधरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (स्वामी सीमंधर साहिबा ), १२१२२७ सीमंधरजिन स्तवन, मु. नग, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (सुणो चंदाजी सीमंधर परमातम), १२०३२०-१३(+-#) सीमंधरजिन स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुणो चंदाजी सीमंधर), १२३४०८-२ (#) सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (धन्य ते मुनिवरा रे), १२३३१४ सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु. गा. १७, पद्य, स्था हो जी जबुदीपें जाणीऐ), १२२९०६ ४(क) सीमंधरजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधरजी सुणजो), १२१४२९-१ सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., डा. ७, गा. ४०, पद्य, म्पू, (सुण सुण सरसती भगवती तोरी), १२०५६४(*) सीमंधरजिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., डा. ४, गा. ३२, पद्य, मूपू., (परम मुणि झाणवण गहण), १२२९१४-१(क), Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२२९१४-३(०) सीमंधरजिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू (सीमंधरजिन त्रिभुवन), १२२९८१-२ (+३) सीमंधरजिन स्तवन, मु. सुखदेव, मा.गु., गा. ५, पद्य, वे (सीमंधर जिनरावजी) १२३५१४-६ " सीमंधरजिन स्तवन, पंन्या. हर्षवल्लभ वाचक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुंदर रूप सोहामणो रे लाल), १२०२३७-२ सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जिनवर० जीव जागीओ), १२०९९३-१ सीमंधरजिन स्तवन-आलोयणाविनती, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ५६, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (आज अनंता भवतणां कीधा), १२३२२१ (+३), १२३७४१+०३) सीमंधरजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (जंबुद्वीप विदेहमां), १२२९१९-५ सीमंधरजिन स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४. वि. १९वी पद्य, मूपू. (श्रीसीमंधरदेव सुहंकर), १२१३२९-३(+) सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू (श्रीसीमंधर मुजनेवाला), १२३०८१-१७(+) (पूरव दिशि इशान कुण), १२३०८१-३४(+) " सीमंधरजिन स्तुति, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू. सुकृतकरणी सज्झाय, मु. विनयचंद, रा. गा. ८, पद्य, थे. (सुकृत करले रे गेला). १२०४०८-१२५ (+) सुकोशलमुनि चौपाई, मु. देवराज, मा.गु., ढा. ६, गा. ५७, पद्य, श्वे., (सुगुरू वयणे सांभलीजी), १२३९१५-२ सुकोशलमुनि सज्झाय, मु. सूरचंद, मा. गु, गा. ४३, पद्य, म्पू (नयरी अयोध्या जयवती), १२३२३४-२ (+४) सुखबत्तीसी, जे.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., दोहा. ३२, पद्य, दि., (सिध सर्व बंदी सदा सुख), १२०३२६-११(*) सुजातजिन गीत, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुं गति तुं मति तूं), १२१४२९-२ " सुदर्शनमेरुपर्वतप्रमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (मेर की ऊंचाई सब एक लाख), १२०३२६-४६७(*) सुदर्शनशेठ चौपाई, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., ढा. ३१, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (सासणपति समरुं सदा सारे), १२१७७४(+) सुदर्शनशेठ रास, मु. दीपचंद ऋषि, रा. गा. १२१, पद्य, वे सुदर्शन श्रेष्ठी पद, जे. क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (सेठ सुदरसण तारनहारा तीन), १२०३२६-३३१(+) सुपार्श्वजिन पद, उपा. ध्रमसी, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (सही न तजुं पास सुपासकुं), १२०६१४-७१ (बंदु श्रीजिन महावीर), १२०९७८, १२१०९०-१ "" सुपार्श्वजिन स्तुति, मु. रूप ऋषि, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (जग मोहिया तो सू प्रीते), १२०५४५-७ १२१७२८-२(३) सुबाहुकुमार सज्झाय, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. १७, वि. १८९३, पद्य, मूपू., (हवे सुबाहुकुमार एम), १२०९३१, १२२८८७($) सुबाहुजिन स्तवन, मु. नथमल, पुहिं., गा. १०, पद्य, श्वे., (उचीनीची हो प्रभुजी चोरासी), १२०२१६-२ सुभद्रासती चौढालिया, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (सिवसुखदायक लायक सदा), १२१५३८(+) सुभद्रासती चौपाई. ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३८, वि. १८३३, पद्य, मूपु. ( श्रीचरणकमल नमि सरसति माय), १२१०४७ सुभद्रासती ढाल, रा. गा. २५, पद्य, वे. (सुभद्राजी दीठा आवता), १२२३८७-१(*) सुभद्रासती पंचडालीयो, मु. विनयचंद, मा.गु., डा. ५, वि. १८७०, पद्य, स्था., (सिवदायक लायक सदा), १२१५९९-१(+), १२१८१८(#$) सुभद्रासती रास-शीलव्रतविषये, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ४, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि वीनवुं), १२१४००-१(+), יי For Private and Personal Use Only Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२७ सुमतिकुमति पद, मु. हर्षचंद-शिष्य, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (भला मोय सुमता सुहावे रे), १२०२३१-४ सुमतिकुमति पद, श्राव. हेमराज, पुहि., गा. ३, पद्य, दि., (मोसी राधा सुमति विसारी), १२०३२६-५७८(+) सुमतिजिन पद, मु. आनंदरूप, रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (सुमति महाराज म्हांनु), १२०६१४-१३ सुमतिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभुजी जो तुम तारक), १२०३२०-७(+-#) सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ६, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (सुमतिजिणंद सुमति), १२०८३२(+) सुमतिजिन स्तुति, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मोटो ते मेघरथ राय रे), १२३०८१-४५(+) सुमतिजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सुमतिनाथ जिन पांचमां सोगण), १२२९१९-१२ सुरप्रियमुनि चरित्र, मु. फांदमुनि शिष्य, मा.गु., ढा. ६, गा. ८५, वि. १७०४, पद्य, श्वे., (आदिनाथ आदिदेयी समरी सिद्ध), १२२५५७-१(+) सुरप्रियमुनि पंचढालियो, मु. कुशलचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ५, वि. १८७७, पद्य, मपू., (वरतमांन बरते खरा श्रीबीर), १२०६६८-४(+) सुरप्रियसाधु रास, मु. लक्ष्मीरत्नसूरि शिष्य, मा.गु., गा. ६८, पद्य, मूपू., (सरसति देवि सदा मनि), १२३९१५-१ सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., खं. ४ ढाल ४०, गा. ६१३, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (सासण जेहनउ सलहियइ), १२१९५९(+$), १२२१८५(+#), १२३८०१(+$) सुरसुंदरी रास, मा.गु., पद्य, मपू., (--), १२३६०२(5) सुविधिजिन पद, मु. कल्याणचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (रे जीव दरसण कीजीये प्रात), १२३६३४-२ सुविधिजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (निरत करत थेई थेई चोरासी), १२०६१४-४९ सुविधिजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (ताहरी अजबशी योगनी), १२३३२६-३(+) सुविधिजिन स्तवन, ग. जिनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (सुगुण सलूणा सांभलो वात), १२३१६२-३(#) सविधिजिन स्तवन, मु. तेजसिंह ऋषि, मा.गु., गा.५, पद्य, श्वे., (सुविधिजिणेसर सुंदरु), १२१५५०-३(+) सुविधिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (में कीनो नहीं तुम), १२३७०४-१ सुविधिजिन स्तवन, मु. वीर, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुंही जगतपत जीवका), १२३५१४-५ सुविधिजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (घुघुमि घुघुमि घुमघूमघुम), १२३२०५-५(+) सूतक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुत्र जन्म्यां १०), १२०९७०(+$) सूमसूमनीकथा चौपाई, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., चौपा. ७५, वि. १८वी, पद्य, दि., (धन न दीन्हौ संसार मैं), १२०३२६-५६५(+) सूर्यगति सज्झाय, मु. कृष्णदास, मा.गु., गा. १६, वि. १८४७, पद्य, श्वे., (अरिहंत आग सांभली पामि), १२३७७८-१ सूर्यग्रहपरिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (भानता ऊचै सौ नीचै ठारसै), १२०३२६-४९२(+) सूर्य चंद्रग्रहणविचार, मा.गु., गद्य, इतर, (जिण नक्षत्रै रवि), १२२५८४-२(+#) सौधर्मगणधर भास, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चंपानयरी उद्यान रे), १२०१७९ सौधर्मेंद्रदेवपरिवार पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (सौधर्म इंद्र समानक चौरासी), १२०३२६-४९४(+) सौभाग्यपंचमीपर्व कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिनाधीशं), १२१३८५($) सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, मु. हर्षशील, मा.गु., ढा. २, गा. २१, पद्य, मपू., (प्रणमुं श्रीगुरुपाय), १२१५१९-३८(#$) सौभाग्यपंचमी फलाफलविचार गाथा, मा.गु., गा. २, पद्य, वै., इतर, (दीवा दीठे पांचमी जो आवे), १२१९१६-४ स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्त. २४, वि. १८५, पद्य, मप., (ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम), १२२९८५-१(+), १२३८९४-१(+), १२२४५३-३, १२३१९२(#s), १२०४४०(5) (२) स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ग्रं. ८२८, गद्य, मूपू., (आनंदघनस्यास्या गीत), १२३१९२(#$) स्तवनचौवीसी, मु. उदयरत्न, मा.गु., स्त. २४, वि. १८वी, पद्य, मपू., (मरुदेवीनो नंद माहरो), १२१५६७(+$) स्तवनचौवीसी, मु. कांतिविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (सुगुण सुगुण सोभागी साचो), १२२०२९(5) स्तवनचौवीसी, उपा. चारित्रनंद, मा.गु., पद्य, स्पू., (प्रभु पद पंकज मकरंद में), १२०८४८($) For Private and Personal Use Only Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., स्त. २४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (मनमधुकर मोही रह्यो रिषभ), १२२११२, १२२७२६-१ स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २४, गा. २०५, वि. १७७६, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणिंदसु प्रीतडी), १२२९८५-२(+$) स्तवनचौवीसी, उपा. मानविजय, मा.गु., स्त. २४, वि. १८वी, पद्य, मपू., (ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंदा), १२३२७०(६) स्तवनचौवीसी, मु. मोहनविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, भूपू., (प्रथम तीर्थंकर सेवना), १२०५२६-१(+) स्तवनचौवीसी-अतीत, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २४, गा. १४४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (नामे गाजे परम आल्हाद), १२१५४०($) स्थूलिभद्रनवरस सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ९, गा. ४९, पद्य, मपू., (करी शृंगार कोशा कहि), १२२५२५-१($) स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७४, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सुखसंपत दायक सदा पायक जास), १२१४८२(+), १२१५६५-१(+), १२१२६८, १२२४०८, १२१९४६(#), १२१०५४(६), १२१९७२-१(६) स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. १८, गा. १९१, वि. १८६२, पद्य, मूपू., (सयल सुहंकर पासजिन), १२१८०१-२७, १२१९४७, १२१९६३(#$), १२१९०४-१(६) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूप., (कोस्या कामिनि कहे), १२२१७६(+), १२३१६०-१(#) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मुनिवर रहण चोमासे), १२०२०३-१(+#), १२०७८९-१४(+#), १२०६०२ स्थूलिभद्ररूपकोशा गीत, मु. माल, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (आवति कोश्या सणगार), १२०२०९-३(#) स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (प्राण जीवन रे थूलभद्र), १२३४१०-६(2) स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ८, गा. ६०, वि. १८वी, पद्य, मपू., (चोतिसे अतिसय जुओ वचन), १२३३७८(+), १२०८६३, १२०८७७-१(#), १२३९३६(#$) स्वरोदयसार, मु. चिदानंदजी, मा.गु., गा. ४५३, ग्रं. ५५०, वि. १९०७, पद्य, पू., इतर, (नमो आदि अरिहंत देव), १२०३१८(+) (२) स्वरोदयसार-चयन, मा.गु., पद्य, मूपू., इतर, (लोक काज सरु परीहरे धरे), १२०४०५-१ ।। हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४८, गा. ९०५, वि. १६८०, पद्य, मूपू., (आदिसर आदे करी चोवीसे), १२१०४२(+#), १२३८४३(+$), १२०५०१, १२०८१२(#) हनुमानमंदोदरी सज्झाय, मु. राम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कहे मंदोद्रि सुणो जमाई), १२०४०८-८९(+) हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल ५९, ग्रं. ३७५१, वि. १८१०, पद्य, मूपू., (प्रथम धराधव जगधणी प्रथम), १२११२२(+), १२१७९२(+#$) हरिवंश रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. १२७, गा. २५०६, वि. १७९९, पद्य, मूपू., (अकल सकल अमरेशनी जिन), १२३७०९ हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मु. कनकसुंदर, मा.गु., खं. ५ ढाल ३९, गा. ७८१, वि. १६९७, पद्य, मप., (पासजिणेसर पाय नमु), १२०८७२(#S) हरिश्चंद्रराजा रास-सत्यवचन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ३५, गा. ७०१, वि. १७४४, पद्य, मपू., (वीरजिणेसर पाय नमु), १२०८९९(#$) हस्तिनापुरतीर्थ पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (हथनापुर वंदन जाइ पई), १२०३२६-२९८(+) हितशिक्षा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. १८७४, वि. १६८२, पद्य, मप., (कासमीर मुखमंडणी भगवत), १२१२०० हितशिक्षा सज्झाय, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (भजले भजले भजले रे जीवडां), १२२८९२-१ हिमदंडक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जोण ३ तीनरा सजत जोण), १२०५११-३(+$) हीरविजयसूरि कवित, मु. जिनचंद, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (सवै मृगनैण चलै गुरुचंद), १२११३५-३(+) हीरविजयसूरि गुरुगण सज्झाय, मु. विशालसुंदर-शिष्य, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (सरसति सामिणि मन धरी रे), १२२९३५-२ हीरविजयसूरि गुरुगुण सज्झाय, मु. विशालसुंदर-शिष्य, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (सरसती सामिणी पाए), १२२९३५-१ होलिकापर्व ढाल, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. ४, गा. ५९, पद्य, श्वे., (प्रथम पुरुष राजा), १२१२४० होलीपर्व वायुविचार, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (जो पूर्वनो वाय वाजे तो), १२१६९४-२, १२१९१६-५ For Private and Personal Use Only Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तिविRिS enामलमा औन आराधना congdon minspeBananemalanorad मायाmammaNDARA महावार जर केन्द्र को कोबा. श्री 4 अमत तु विद्या Acharya Sri Kailasasagarsuri Gyanmandir Sri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar E-mail : gyanmandir@kobatirth.org Website : www.kobatirth.org ISBN: 978-93-85803-28-4 Set: 81-89177-00-1 For Private and Personal Use Only Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न २७ Aacārya Śhrī Kailāsasāgarasūri Smsti Granthasūcī - Ratna 27 कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची : १.१.२७ Kailāsa Śrutasāgara Granthasūcī: 1.1.27 *संपादक मंडल * पं. संजयकुमार आर. झा पं. नवीनभाई वी. जैन पं. अरुणकुमार झा पं. राहुल त्रिवेदी डॉ. जागृति बी. प्रजापति पं.रामप्रकाश झा पं. गजेन्द्रभाई शाह पं. भाविन पंड्या पं. पंकज शर्मा श्रीमती मीनाक्षी शिंदे * संयोजक * डॉ. हेमन्त कुमार पं. संजयकुमार आर. झा * संपादन सहयोग * परबत ठाकोर संजय गुर्जर * कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग * केतन डी. शाह Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न २७ श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर स्थित श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखितग्रंथानां विस्तृत सूची विभाग - १ : हस्तप्रत सूची • वर्ग - १: जैन साहित्य खंड - २७ - आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी Descriptive Catalogue of Manuscripts Preserved in Śrī Dēvarddhigani Kșamāśramaņa Hastaprat Bhāņdāgāra Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir (Jain, Indological Oriental Research Institute and Library) under the auspices of Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth Section - I : Manuscripts Catalogue * Class - I: Jain Literature Volume - 27 Blessings & Inspirations Acharya Shri Padmasagarsurishwarji Publishers Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth, Gandhinagar, (Guj.) India 2019 Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailasasagarsuri Memorial Catalogue Series - 27 Kailāsa Śrutasāgara Granthasūcī: 1.1.27 Descriptive Catalogue of Manuscripts - 1.1.27 Preserved in Śrī Dēvarddhigaại Kșamāśramaņa Hastaprat Bhāņdāgāra Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir 00:Publisher o Vir Samvat 2545, Vikram Samvat 2075, A.D. 2019 O Edition : First ० प्रकाशन सौजन्य : शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार, अहमदाबाद Sheth Shri Samvegbhai Lalbhai Parivar, Ahmedabad © Available at: Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth OPublisher: Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar 382007. (Guj.) INDIA Tel: (079)23276204,23276205,23276252, What'sApp : 07575001081 Web site: www.kobatirth.org E_mail : gyanmandir@kobatirth.org OPrice: Rs. 1500/O ISBN: 81-89177-00-1 (Set) 978-93-85803-28-4 (Vol.27) OPrinter : Navprabhat Printing Press, Ahmedabad * उपलक्ष* श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. की पावन निश्रा में श्री शौरीपुरतीर्थ में परम पवित्र प्रतिष्ठा महोत्सव के पुनीत प्रसंग पर वि.सं. 2075, माघ कृष्ण, 6, रविवार दि. 24-02-2019 Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अर्हम् नमः ॥ मंगल कामना तीर्थंकरों की वाणी में सरस्वती का निवास है. श्री तीर्थंकर परमात्मा के श्रीमुख से निकली वाणी, जिसे गणधर भगवंतों ने सूत्ररूप में गुंफित किया है; ऐसे जिनागम की परंपरा को वाचना के द्वारा आज तक अविच्छिन्न रखनेवाले सभी आचार्य भगवंतों को वंदन. जिनागम को समर्पित निर्युक्तिकार - भाष्यकार - चूर्णिकार टीकाकार एवं ग्रंथों के प्रतिलेखक आदि श्रमण समूह का भी मैं ऋणस्वीकृतिपूर्वक पुण्य स्मरण करता हूँ. अनेक जैन संघों, श्रेष्ठियों तथा यतिवर्ग ने आज तक जैन साहित्य का संग्रह - संरक्षण करके अनुमोदनीय कार्य किया है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं. समय परिवर्तन के साथ परिस्थितिवश लोगों का गाँवों से शहर की ओर जाना प्रारंभ हुआ. यतिवर्ग भी लुप्तप्राय हुए. इन सभी कारणों से ग्रन्थभंडारों की स्थिति चिंतनीय बन गई. बहुत से ग्रन्थ विदेश जाने लगे, कुछ भंडार लोगों की उपेक्षा से नष्टप्राय होने लगे, ग्रन्थों की सुरक्षा भी एक समस्या बन गई. इन सब बातों को देखकर सर्वप्रथम सन् १९७४ में अहमदाबाद के चातुर्मास दौरान ग्रन्थ भंडारों को सुव्यवस्थित करने का मुझे विचार आया. परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. से इस विषय में चर्चा करके उनके मंगल आशीर्वाद से कार्य प्रारंभ करने का संकल्प किया. श्रेष्वर्य स्व. कस्तुरभाई लालभाई आदि ने भी इस कार्य में सहयोग देने की भावना दर्शाई. सन् १९७९ में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के नाम से कोबा में संस्था की स्थापना हुई. अनेक स्थानों व विविध प्रान्तों में विहार करके ग्रन्थों को संग्रह करने का कार्य प्रारंभ हुआ और धीरे-धीरे संग्रह समृद्ध बनता गया. रखते आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर आज भारत का एक सुव्यवस्थित समृद्ध ज्ञानभंडार है. प्राचीन प्रणाली को कायम हुए भी इस ज्ञानमंदिर में आधुनिक साधनों का सुभग समन्वय हुआ है. ज्ञानभंडार को व्यवस्थित करने के साथ-साथ इस खंड से पूर्व की सूचियों में समाविष्ट अधिकांश ग्रंथों की मूलसूची बनाने का जो भगीरथ कार्य मुनि श्री निर्वाणसागरजी ने किया है तथा इस कार्य के लिए योग्य मार्गदर्शन देकर आचार्य श्री अजयसागरसूरिजी ने जो सहयोग दिया है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. अन्य मुनिराजों ने भी जो यथायोग्य बहुमूल्य सहयोग दिया है, उन सबकी मैं हार्दिक अनुमोदना करता हूँ. ज्ञानमंदिर के पंडितवर्ग ने जिस सूझ व धैर्य के साथ अस्तव्यस्त हस्तप्रतों को व्यवस्थित करने एवं प्रतों के बारीक अध्ययनपूर्वक अतिविवरणात्मक सूचीकरण के इस कार्य को उत्तरोत्तर गति प्रदान की, वह अपने आप में अनूठा व इतिहाससर्जक कार्य है. डॉ. हेमन्त कुमार, श्री संजयकुमार झा, श्री रामप्रकाश झा, श्री नवीनभाई जैन, श्री गजेन्द्रभाई शाह, श्री अरुणकुमार झा, श्री भाविन पंड्या, श्री राहुल त्रिवेदी, श्री पंकज शर्मा, डॉ. जागृति बी. प्रजापति, श्रीमती मीनाक्षी शिंदे आदि सभी पंडितवरों, प्रोग्रामर श्री केतनभाई शाह एवं सभी सहयोगी कार्यकर्त्ताओं को मेरा हार्दिक धन्यवाद है. संस्था के अध्यक्ष श्री सुधीरभाई मेहता, ज्ञानमंदिर में चल रही विविध गतिविधियों की देख-रेख करनेवाले अन्य ट्रस्टीगण व कारोबारी सदस्य सभी को उनकी बहुमूल्य सेवाओं के लिए हार्दिक आशीर्वाद देता हूँ. अनेक श्रीसंघों, व्यक्तियों और जैन-जैनेतर लोगों ने भी इस कार्य में मुझे पूर्ण सहयोग दिया है, जिन्हें मैं धन्यवाद देता हूँ. ग्रन्थों के संरक्षण, सूचीकरण व प्रस्तुत २७वें खंड के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करनेवाले शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार, अहमदाबाद के प्रति भी धन्यवाद देता हूँ. बड़ी संख्या में पूज्य साधु-साध्वीजी तथा विद्वान-शोधकर्ताओं द्वारा यहाँ के ग्रंथसंग्रह का सुंदर लाभ लिया जा रहा है, जो बड़ी ही प्रसन्नता का विषय है. इस ज्ञानभंडार के हस्तप्रतों के अपने-आप में विशिष्ट प्रकार के सूचीपत्र कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची का २७वाँ खंड प्रकाशित हो रहा है, जो ज्ञानमंदिर के कार्य की सफलता का एक नया सोपान है. मुझे विश्वास है कि विश्वभर के विद्वज्जन इस ग्रंथसूची से महत्तम लाभान्वित होंगे. संस्था अपने विकासपथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रहे, यही मेरी मंगल कामना है. I पद्मसागर सूरि Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * प्रकाशकीय * जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, श्रुतप्रवाहक पूज्य गणधर भगवंतों, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के २७वें खंड को चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में समर्पित करते हए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबातीर्थ परिवार की अनुभूति कर रहा है. _ विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं के रक्षक ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर (जैन व प्राच्यविद्या शोध संस्थान एवं ग्रंथालय) में हस्तलिखित ग्रंथों का बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है. यह ज्ञानभंडार इस भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है. हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रख-रखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में राष्ट्रसंत पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरिजी के अधिकतर शिष्य-प्रशिष्यों का अपना योगदान रहा है. तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने तों के सूचीकरण हेतु वर्षों तक अहर्निश भगीरथ परिश्रम किया है. इस सूचीकरण की अवधारणा को और विकसित करने में तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सूझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने हेतु आचार्य श्री अजयसागरसूरीश्वरजी तथा यहाँ के पंडितवर्यों, प्रोग्रामरों और कार्यकर्ताओं ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. इसी तरह पूज्य आचार्य भगवंत के अन्य विद्वान एवं प्रज्ञाशील शिष्यों का भी इस पूरी प्रक्रिया में विविध प्रकार का सहयोग प्राप्त होता रहा है, जिससे ज्ञानमंदिर की प्रवृत्तियों को विशेष बल एवं वेग मिलता रहा है. इस अवसर पर संस्था ज्ञात-अज्ञात सभी सहयोगियों व शुभेच्छुकों की अनुमोदना करते हुए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती है. सभी के मिले-जुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था. पंडितों के साथ-साथ करीब पचास कार्यकर्ताओं के माध्यम से, श्रीसंघ के व्यापक हितों से संबद्ध ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों के संचालन के लिए निरंतर बड़ी मात्रा में धनराशि की आवश्यकता रहती है. किसी भी प्रकार के सरकारी या अन्य किसी भी अनुदान को न लेकर मात्र संघों व समाज की ओर से मिलनेवाले आर्थिक व अन्य सहयोग के द्वारा कार्यरत इस संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियाँ निरंतर गतिशील रहती हैं. इस भगीरथ कार्य हेतु भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं व महानुभावों का आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो इस कार्य को आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर साभार-धन्यवाद दिया जाता है.. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में चल रहे श्रुतभक्ति के प्रत्येक कार्य में हमारे वर्तमान ट्रस्टीगण एवं कारोबारी सदस्य तो अत्यन्त उत्साही व सक्रिय रहे ही हैं, साथ-साथ ज्ञानमंदिर को उन्नति के शिखर तक पहुँचाने में भूतपूर्व ट्रस्टियों एवं कारोबारी सदस्यों का भी जो महत्त्वपूर्ण योगदान प्राप्त हुआ है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची-जैन हस्तलिखित साहित्य के इस २७वें खंड के वित्तीय सहयोग प्रदाता शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार, अहमदाबाद के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस २७वें रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है. श्री सुधीरभाई यु. महेता - प्रमुख श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट - कोबातीर्थ, गांधीनगर Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *प्राक्कथन* कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची प्रकाशन के अविरत सिलसिले में प्रकाशित हो रहे इस २७वें रत्न का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है. प्रस्तुत भाग में संस्कृत, प्राकृत व देशी भाषाओं के आगमिक साहित्य समाहित हैं. इस खंड की खासियत यह है कि इस खंड में खास उल्लेखनीय अकेले जैन कवि द्यानतराय अग्रवाल के द्वारा रचित ५४६ कृतियों का समावेश है. जो अद्यावधि अप्रकाशित प्रतीत होती है. इस तरह संस्कृत, प्राकृत भाषा की कृतिओं के अतिरिक्त देशी भाषाओं की रास, कथा, औपदेशिक-सुभाषित पद आदि अनेक कृतियाँ भी अप्रकाशित प्रतीत हो रही हैं. जिसमें संस्कृत-प्राकृत ग्रंथों में मेघराज कृत स्थानांगसूत्र दीपिकाटीका, पद्मसागर गणि रचित उत्तराध्ययनसत्र का कथासंग्रह, श्रीसार व सहजकीर्ति कर्ताद्वय रचित कल्पसन की कल्पमंजरी टीका, रत्नचंद्र कृत नैषध चरित्र की टीका एवं सहजकुशल रचित सिद्धांत हंडी आदि उपलब्ध है. देशी कृतियों में हीरविजयसूरि कृत द्रौपदीसती चौपाई, कवियण रचित १७५६ वर्षीय दुष्काल वर्णन रास व चतुरकुशल रचित शढुंजयतीर्थमाला रास आदि अनेक कृतियाँ संशोधन संपादन हेतु विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं. हस्तप्रतों के वर्गीकरण से लेकर सूचीकरण तक का संपूर्ण कार्य बडा ही जटिल व कष्टसाध्य होता है, परंतु उनमें समाहित महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ, जो अद्यावधि विद्वद्वर्ग की नजरों से ओझल थी, उन्हें आपके कर-कमलों में समर्पित करने का यह सुंदर परिणाम हमारे लिये अपार संतोषदायक सिद्ध हो रहा है. जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण करना; एक बहुत ही जटिल व महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रंथालयों में अपनायी गई, मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक पर ही आधारित द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर, यहाँ विविधस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कृति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व पुरासामग्री; इस तरह छः भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. इसमें प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री; इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्त्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर मिलाकर एकीकरण का कार्य कर दिया गया है. हस्तप्रत लेखन पद्धति में पंचपाठ, त्रिपाठ, द्विपाठ के साथ-साथ खड़ा लेखन युक्त पत्र को भी योग्य रूप से स्थान दिया है. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची खंड-२२ से पूर्व के सभी खंडों में समाविष्ट अधिकांश प्रतों की मूल सूची श्रुतसेवी पूज्य मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने वर्षों की मेहनत से बनाई थी. उसी का अनुसरण करते हुए हमने यह संपादनकार्य किया है. मुनिश्री के हम चिरकृतज्ञ हैं. समग्र कार्य के दौरान श्रुतोद्धारक पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. तथा श्रुताराधक आचार्य श्री अजयसागरसूरीश्वरजी म. सा. की ओर से मिली प्रेरणा व मार्गदर्शन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के अन्य शिष्य-प्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए संपादक मंडल सदैव आभारी रहेगा. इस ग्रंथसूची के आधार से सूचना प्राप्त कर श्रमणसंघ व अन्य विद्वानों के द्वारा अनेक बहुमूल्य अप्रकाशित ग्रंथ प्रकाशित हो रहे हैं, यह जानकर हमारा उत्साह द्विगुणित हो जाता है; फलतः हमें अपना श्रम सार्थक प्रतीत होता है. प्रतों की प्राथमिक सूचनाओं की कम्प्यूटर में प्रविष्टि तथा सन्दर्भ हेतु पुस्तकें आदि शीघ्रतापूर्वक उपलब्ध कराने हेतु ज्ञानमन्दिर के सभी कार्यकर्ताओं को हार्दिक धन्यवाद. इस कार्य में हमारे उत्साह को सतत बढ़ाए रखनेवाले ट्रस्टीमंडल के भी हम अंतःकरण से आभारी हैं. सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानीपूर्वक किया गया है. फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के कारण क्वचित् भूलें रह गई होंगी. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रह गई भूलों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करें, जिससे भविष्य में प्रकाशित होनेवाले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें. - संपादक मंडल III Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंगलकामना. प्रकाशकीय अनुक्रमणि प्राक्कथन ..... अनुक्रमणिका. प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत. हस्तप्रत सूचीकरण सहयोग सौजन्य एवं सादर ग्रंथ समर्पण. हस्तप्रत सूची . परिशिष्ट : कृति परिवार अनुसार प्रत- पेटाकृति अनुक्रम संख्या... १. संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से कृति परिवार सह प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १.. २. देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से कृति परिवार सह प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २.. प्रस्तुत खंड २७ में निम्नलिखित संख्या में सूचनाओं का संग्रह है. * प्रत क्रमांक - १२०१६१ से १२४०२५ iii iv v-vi .vii-viii .१-४६८ .४६९-५९६ इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सबका विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग संबंधी सूचनाएँ भाग 7 के पृष्ठ VI एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग 7 के पृष्ठ 454 पर हैं. कृपया वहाँ पर देख लें. * समाविष्ट प्रतों में कुल ३७५६ कृति परिवारों का समावेश हुआ है. * इन परिवारों की कुल ४४०२ कृतियों का इस सूची में समावेश हुआ है. * सूची में उपरोक्त कृतियाँ कुल ६१२३ बार आई हैं. .४६९-५११ IV ५१२-५९६ * इस सूचीपत्र में मात्र जैन कृतियों वाली प्रतों का ही समावेश किए जाने के कारण वास्तविक रूप से इस खंड में २७१८ प्रतों की सूचनाओं का समावेश हुआ है. Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * सूचक. . प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ सूचक. (+)......... प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में- प्रत की महत्ता सूचक. - इस हेतु प्र. वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. कर्त्ता-कर्त्ता के शिष्य-प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित, रचना के समीपवर्ती काल में लिखित, संशोधित - शुद्धप्राय # (#) (日) (二) 班玑死阿刃苏丽丽丽哦..因何N.E (--) अप... अंति.... आ.. आदिः. उप... उपा. क्र. क. कुल ग्रं. कुल पे. क्रीत... को.. ग. गडी.. गद्य. गा. गु.. गुभा. * प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत * . कृति नाम के अंत में. विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर टबार्थ व श्लोक संग्रह जैसी समान कृतियों के समुच्चय रूप या फुटकर कृति दर्शक संकेत. कृति/प्रत/पेटांक नाम के बीच : का, की, के, इत्यादि विभक्ति गृही.. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पाठ में सुगमता हेतु विविध प्रकार के चिह्नयुक्त प्रत, यथा- अन्वय दर्शक अंक युक्त, पदच्छेद - संधि सूचक - वचन विभक्ति - क्रियापदसूचक चिह्न आदि वाली प्रत. . कृति नाम के बाद प्रयुक्त होने पर संयुक्त कृति की पहचान - यथा आवश्यकसूत्र सह निर्युक्ति, भाष्य व तीनों की लघुवृत्ति. . प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में. प्रत की अवदशा, पाठ नष्ट हो जाने से प्रत की उपयोगिता में कमी का सूचक. इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. मूल पाठ का, टीकादि का, मूल व टीका का, टिप्पणक का अंश नष्ट है. अक्षर फीके पड़ गये हैं, मिट गये हैं, पन्नों पर आमने-सामने छप गये हैं. अक्षर की स्याही फैल गई है. पत्र जीर्णतावश नष्ट होने लगे हैं, हो गये हैं. . कृति परिशिष्टों में प्रत क्रमांक के अंत में ऊर्ध्वाक्षरों से प्रत की अपूर्णता सूचक. अपूर्ण, लुटक, प्रतिअपूर्ण हेतु. आदिवाक्य अनुपलब्ध. . अपभ्रंश (कृति भाषा) . अंतिमवाक्य (कृतिमाहिती) . आचार्य (विद्वान स्वरूप) आदिवाक्य (कृतिमाहिती) . प्रत प्रतिलेखन उपदेशक. (प्र. ले. पु. विद्वान) . उपाध्याय (विद्वान स्वरूप) . ऋषि (विद्वान स्वरूप) . कवि (विद्वान स्वरूप) . कुंडली (कृति स्वरूप) . मूल व टीका आदि का संयुक्तरूप से सर्वग्रंथाग्र परिमाण प्रत व पेटाकृति विशेष में. . कुल पेटाकृति (प्रतमाहिती स्तर) प्रत को खरीदनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान ) . कोष्टक (कृति स्वरूप) . गणि (विद्वान स्वरूप) . गडी किए हुए पत्रों वाली प्रत. . गद्यबद्ध (कृति प्रकार) . गाथा (कृति परिमाण) . गुजराती (कृति भाषा ) . गुरूभ्राता (प्र. ले. पु. विद्वान ) . गृहीत . आदान-प्रदान में प्रत को प्राप्त करने वाला (प्र. ले. पु. विद्वान) V Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ...... देना..... गोटका....... बंधे पत्रों वाली प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) क्वचित् | | प्रे........... प्रतलेखन प्रेरक. (प्र. ले. पु. विद्वान) गोटका शब्द भी प्रयुक्त होता है. बौद्ध कृति (कृति परिशिष्ट) गोल.......... गोल कुंडलाकार प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) म...... मराठी (कृति भाषा) ग्रं........... ग्रंथाग्र (कृति परिमाण) महा. ......... महाराष्ट्री प्राकृत (कृति भाषा) जै........... जैन कृति (कृति परिशिष्ट) मा............ मागधी प्राकृत (कृति भाषा) जै.क.........जैन कवि (विद्वान स्वरूप) मा.गु......... मारुगुर्जर (कृति भाषा) जैदे...........जैन देवनागरी (प्रत लिपि) मु............. मुनि (विद्वान स्वरूप) जैन श्वेतांबर तेरापंथी कृति. (कृति परिशिष्ट) मुस्लिम धर्म (कृति परिशिष्ट) दत्त........... आदान-प्रदान में प्रत देनेवाला. (प्र. ले. प. जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक कृति (कृति परिशिष्ट) विद्वान) यं............. यंत्र (कृति स्वरूप) दि.............जैन दिगंबर कृति. (कृति परिशिष्ट) रा............. राजा (विद्वान स्वरूप) ..देवनागरी (प्रत लिपि) रा............. राजस्थानी (कृति भाषा) पं.............. पंजाबी (कृति भाषा) राज्यकाल ...जिस राजा के राज्य शासनकाल में प्रत लिखी गई हो. पं.......... ..पंन्यास, पंडित (विद्वान स्वरूप) राज्ये........ जिस आचार्य के गच्छनायकत्व काल में प्रत का पठ........... पठनार्थ. जिसके पढ़ने हेत प्रत लिखी या लिखवाई | लेखन हुआ हो. गई हो. (प्र. ले. पु. विद्वान) लिख......... प्रत लिखवाने वाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) प+ग......... पद्य व गद्य संयुक्त (कृति प्रकार) ले. स्थल..... लेखन स्थल (प्रतिलेखन पुष्पिका) पद्य........... पद्यबद्ध (कृति प्रकार) वा............ वाचक (विद्वान स्वरूप) पा. ........... पाठक (विद्वान स्वरूप) वि.............विक्रम संवत् (वर्ष माहिती) (प्र. ले. पु., कृति पु. हिं......... पुरानी हिंदी (कृति भाषा) रचना वर्ष) पू. वि......... पूर्णता विशेष (प्रतमाहिती, पेटाकृति माहिती व | विक्र........ विक्रेता - प्रत का. (प्र. ले. पु. विद्वान) कृतिमाहिती स्तर) वी............. वर्ष संख्या के पूर्व होने पर 'वीर संवत' यथा वी. कृतिमाहिती में वर्ष प्रकार सूचक 'वि. 'श. आदि २०००. वर्ष संख्या पश्चात् होने पर 'वी सदी. के बाद संवत् प्रवर्तन के पूर्व का वर्ष दर्शक. यथा- ८वी सदी. (७१०-८००) (प्र. ले. पु., कृति पृ.............. पृष्ठ सूचना (प्रत माहिती स्तर पर व पेटाकृति स्तर रचना वर्ष) वै............. वैदिक कृति. (कृति परिशिष्ट) पे. नाम...... प्रतगत पेटाकृति नाम व्या.प........ व्याख्याने पठित -विद्वान द्वारा. (प्र. ले. पु. विद्वान) पे. वि......... प्रतगत पेटाकृति विशेष श............. शक संवत् (वर्ष माहिती - प्र.ले.पु. कृति रचना वर्ष) पै............ पैशाची प्राकृत (कृति भाषा) श्राव.......... श्रावक (विद्वान स्वरूप) प्र. वि......... प्रत विशेष. श्रावि.........श्राविका (विद्वान स्वरूप) प्रले.......... प्रतिलेखक, लहिया, (प्रतिलेखन पुष्पिका. प्रत, श्रु............. श्रोता द्वारा व्याख्यान में श्रुत. (प्र. ले. पु. विद्वान) पेटाकृति, कृति माहिती स्तर पर.) श्वे.............जैन श्वेतांबर कृति (कृति परिशिष्ट) प्र. ले. पु..... प्रतिलेखन पुष्पिका की-(प्रत/पेटाकृति/कृति स्तर) | सं............. संस्कृत (कृति भाषा) (सामान्य, मध्यम' आदि उपलब्धता सूचक.) समर्पक. ज्ञानभंडार को प्रत समर्पित करनेवाला. प्र.ले.श्लो.... प्रत, पेटाकृति व कृति हेतु प्रतिलेखक द्वारा लिखित (प्र. ले. पु. विद्वान) प्रतिलेखन श्लोक (जलात् रक्षेत्... इत्यादि) साध्वीजी (विद्वान स्वरूप) प्र. सं......... प्रति संशोधक स्था...........जैन श्वेतांबर स्थानकवासी (कति परिशिष्ट) प्रा............. प्राकृत (कृति भाषा) | हिं............. हिंदी (कृति भाषा) पर) सा............साच्वाजा विधान Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हल्लललललल ooooo ललन मुं मुंबई (* सुकृत के सहभागी * * हस्तप्रत सूचीकरण में विशिष्ट आर्थिक सहयोगियों की नामावली * १. शेठ आणंदजी कल्याणजी (धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट), २६. श्री शांतिनाथ देरासर जैन पेढी, श्री शंखे. पार्श्व., पालडी अहमदाबाद | बावन जिनालय, देवचंदनगर रोड, भायंदर (वे.) थाणा मुंबई २. श्री शांतिलाल भुदरमल अदाणी परिवार, अहमदाबाद | २७. श्री जैन पंच महाजन मांडाणी (राज.) ३. बाबु श्री अमीचंद पन्नालाल आदीश्वर ट्रस्ट, वालकेश्वर मुंबई | २८. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर (राज.) ४. शेठ श्री झवेरचंद प्रतापचंद सुपार्श्वनाथ जैन संघ, २९. श्री संभवनाथ जैन ट्रस्ट बिसलपुर (राज.) ___ वालकेश्वर मुंबई ३०. श्री पुष्पदंत श्वे. मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद ५. श्री प्लेजेंट पैलेस जैनसंघ मुंबई ३१. श्री सेटेलाईट श्वे. मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद ६. श्री गोवालिया टैंक जैनसंघ ३२. श्री वेपेरी श्वे. मू. पू. जैन संघ चेन्नई ७. श्री प्रेमलभाई कापडिया ३३. श्री शाहीबाग-गीरधरनगर जैन श्वे. मू. पू. संघ अहमदाबाद ८. श्री जवाहरनगर जैन श्वे. मू. पू. जैन संघ, गोरेगांव मुंबई ३४. श्रीमद यशोविजय जैन संस्कृत पाठशाला महेसाणा ९. जैन सेन्टर ऑफ नॉर्दर्न केलिफोर्निया अमेरिका ३५. श्री जैन सोसायटी जैन संघ अहमदाबाद १०. श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बोर्डिंग अहमदाबाद ३६. शेठ नवलचंद सुप्रतचंद जैन देवकी पेढी पाली-राज. ११. श्री शंभुकुमार कासलीवाल मुंबई ३७. श्री माटुंगा जैन श्वे. मू. पू. तपगच्छ संघ ३८. श्री दशापोरवाड सोसायटी जैन संघ १२. शेठ मोतीशा जैन रिलीजियस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट मुंबई अहमदाबाद ३९. श्री विले पार्ले (वे.) श्वे. मू. पू. संघ १३. फेडरेशन ऑफ जैन एसोसिएसन इन नॉर्थ ४०. श्री जैन श्वे. मू. पू. संघ, शिव, सायन अमेरिका, जैना' हस्ते डॉ. प्रेमचंदजी गडा अमेरिका ४१. श्री सीमंधरस्वामी जिनमंदिर पेढी महेसाणा १४. श्री एम. जे. फाउन्डेशन । ४२. श्री अदाणी फाउन्डेशन अहमदाबाद १५. श्री कल्याण पार्श्वनाथ जैन संघ, चौपाटी मुंबई ४३. श्री शेखंजय तीर्थधाम, भुवनभानु मानसमंदिर १६. श्री सांताक्रुज़ जैन तपगच्छ संघ, श्री कुंथुनाथ ४४. श्री घाटलोडीया जैन श्वे.मू.पू.संघ अहमदाबाद | जैन देरासर मार्ग, सांताक्रुज (वे.) मुंबई ४५. श्री नवजीवन जैन श्वे.म.पू. संघ, लेमीग्टन मुंबई १७. श्री महावीर जैन श्वे. मू. पू. संघ, पालडी अहमदाबाद ४६. श्री बोरीवली जैन श्वे.मू.पू.तपा.संघ मुंबई १८. श्री श्वे. मू. पू. जैन संघ, नानपुरा, | ४७. श्री एरोमा केमीकल एजन्सी (इ) प्रा.ली. पारले १९. श्री आंबावाडी मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद ४८. श्री पार्श्वनाथ जैन श्वे. टेम्पल बेल्लारी २०. श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ श्वे. मू. पू. जैन संघ, ४९. श्री शांतिनाथ जैन संघ, मलाड (पू.) मुंबई आरे रोड, गोरेगाँव ५०. आ.बुद्धिसागरसूरि समुदायना पू.ज्योतिप्रभाश्रीजी तथा २१. श्री राजस्थान जैन श्वे. मू. पू. संघ, जयनगर, पू.जयरक्षिताश्रीजीना सदउपदेशथी भक्तगणो तरफथी |२२. श्री आदिनाथ जैन श्वे. मंदिर ट्रस्ट, चिकपेट, बेंग्लोर ॥ ५१. श्रीमति अमिताबेन अशोकजी महेता, हस्ते-नीतिनकुमार २३. श्री महुडी जैन श्वे. मू. पू. ट्रस्ट, महुडी | कोईम्बतूर २४. श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज़, मुंबई || ५२. श्री पंकजकुमार ज्ञानचंदजी गांधी, चार्टर्ड स्पीड प्रा.लि. २५. श्री जुह स्कीम जैन संघ, विलेपार्ले (वे.) ___ मुंबई अहमदाबाद * हस्तप्रत सूचीकरण में आर्थिक सहयोगियों की नामावली * मुंबई मुंबई मुंबई मुंबई सुरत मुंबई मुंबई बेंग्लोर थाणे १. एक श्रुतभक्त परिवार २. श्रीमती पुष्पाबेन रमेशचंद्र शाह चेन्नई | ३. श्री पार्श्व प्रेम श्वे.मू.पू.जैन संघ, भायंदर (वे.) साबरमती VII Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (* सुकृत के सहभागी * ) हस्तप्रत सूचीकरण में 9 से 27 भाग के आर्थिक सहयोगियों की नामावली 1. रमेशकुमार चोथमलजी, तारादेवी रमेशकुमार : सन्स नोवी, हाल शिवगंज 2. श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ सोमाणनाथ तीर्थ मेवानगर 3. घाणेराव (राजस्थान) निवासी श्रीमती मोहिनीबाई एस. देवराजजी जैन चेन्नई 4. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर 5. मांडवला (राज.) निवासी संघवी मुथा ___मोहनलालजी रघुनाथमलजी सोनवाडीया परिवार चेन्नई 6. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर 7. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर 8. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर 9. शेठ श्री आणंदजी कल्याणजी पेढी अहमदाबाद 10. श्री भवानीपुर मूर्तिपूजक जैन श्वेताम्बर संघ कोलकाता 11. श्रीमती तारादेवी हरखचंदजी कांकरिया परिवार कोलकाता 12. श्री सांताक्रुज जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ मुंबई 13. डॉ. विनय के. जैन - प्रेसीडेन्ट (जीवदया फाउन्डेशन) यु.एस.ए. 14. डॉ. विनय के. जैन - प्रेसीडेन्ट (जीवदया फाउन्डेशन) / यु.एस.ए. | 15. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद 16. श्री विजय देवसूर संघ श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज, पायधुनी मुंबई 17. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर 18. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद 19. श्रीमती छगनकंवर अमृतलालजी गांधी परिवार सिरोही-जोधपुर 20. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद 21. शेठ श्री देवीचंद, विकासकुमार, अनिलकुमार चोपड़ा परिवार (बच्छराज डेवलपर्स) मुंबई 22. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद 23. शेठ श्री सोहनराजजी बच्छराजजी सिंघवी परिवार कोलकाता 24. श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ बावन जिनालय तीर्थ पेढी, भायंदर, मुंबई 25. शेठ श्री नरेन्द्र लालचंदजी महेता परिवार देसुरी (राज.) हाल मीरा, भायंदर, 26. स्व. शेठ श्री कन्हैयालालजी चपलोत परिवार ह. पारस कन्हैयालालजी चपलोत, मीरा रोड़, मुंबई | 27. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद मुंबई *सादरसमर्पण* कल्याणस्वरूप तीर्थंकरों द्वारा स्थापित श्रमणप्रधान चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में... जिनके द्वारा यह श्रुतपरंपरा अक्षुण्ण रही. 0 0 0 VIII