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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४४८. पे. नाम. आश्रव त्रिभंगी कवित्त, पृ. २२०आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहिं., पद्य, आदि: पचपन पचास तेतालीस छयालीस; अंति: करौ धरौ संवर ग्यान, गाथा-२. ४४९. पे. नाम. प्रकतिबंध पद-गणस्थानकगर्भित, पृ. २२०आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: एक सौ सत्तरे एक सौ; अंति: आप अवधि पिछान, गाथा-३. ४५०. पे. नाम, कर्मउदय पद-गुणस्थानकगर्भित, पृ. २२०आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: इक सौ सतरै इक सौ ग्यारै; अंति: उदै भिन्न तब सिद्ध सुकीय, गाथा-२. ४५१. पे. नाम. उदीरना त्रिभंगी, पृ. २२०आ-२२१अ, संपूर्ण. कर्मउदीरना पद-गुणस्थानकगर्भित, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: इक सौ सतरै एक सौ ग्यारै; अंति:
करै ग्यान वल सोतु ग्यान, गाथा-४. ४५२. पे. नाम, सत्ता त्रिभंगी, पृ. २२१अ, संपूर्ण. कर्मसत्ता पद-गुणस्थानकगर्भित, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: पहलै सौ अठताल दूजै सौ; अंति: घन
उर्ध राजू सैंतालसौं, गाथा-४. ४५३. पे. नाम. भाव त्रिभंगी, पृ. २२१अ-२२१आ, संपूर्ण. भाव पद-गुणस्थानकगर्भित, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: चौतीस बतीस तेतीस छतीस; अंति: ग्यानी
ते वखाने है, गाथा-६. ४५४. पे. नाम. ७ नरक चार प्रकार के शरीर की ऊंचाई, पृ. २२१आ, संपूर्ण. देवनरक देहमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहिं., पद्य, आदि: सात मैं नरक मांहि पंचसै; अंति: सौ पढेउ सवा
एक ख्यात है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में देहमान के अंक दिये हैं.) ४५५. पे. नाम. तीन बतीस फलावट, पृ. २२१आ, संपूर्ण. १४ राजलोकमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: नीचै वाय छ सै ठावन कोर; अंति: तिरासी चौसे
औसनाइस है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में राजलोकमान के अंक दिये हैं.) ४५६. पे. नाम, तीनो लोक ऊंचे चौदे राजु का व्यौरा, पृ. २२१आ-२२२अ, संपूर्ण. १४ राजलोकमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सात नरक तलै एक राजू; अंति: सीस सिद्ध है मौ
ध्याए है, गाथा-५, (वि. कृति के अंत में राजलोकमान के अंक दिये हैं.) ४५७. पे. नाम. अधोलोक संख्या विस्तार, पृ. २२२अ, संपूर्ण. अधोलोक संख्यामान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: नाडा संख्या सातमी नरक; अंति: नरक सेती
हृदया सुखदाइ है, गाथा-३, (वि. कृति के अंत में संख्यामान पद के अंक दिये हैं.) ४५८. पे. नाम, सिद्धशिलामान पद, पृ. २२२अ-२२२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: चाप तिहाई सब त्रिसनाज; अंति: ताको नमोकार है, गाथा-४, (वि. कृति
के अंत में सिद्धशिलामान के अंक दिये हैं.) ४५९. पे. नाम. १४ राजलोक का व्यौरा, पृ. २२२आ, संपूर्ण. १४ राजलोकमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: लोक दक्षन उत्तर एक राजू; अंति: इस उनीस
पइह सान है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में राजलोकमान के अंक दिये हैं.) ४६०. पे. नाम. अधोलोक रतन प्रभाव प्रथी प्रवान पद, पृ. २२२आ-२२३अ, संपूर्ण. ७ नरकमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: प्रथम नरक प्रमाने अधोलोक; अंति: नरक घर मामध
दुखदानी है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में नरकमान के अंक दिये हैं.) ४६१. पे. नाम, नरक केवली का परमान, पृ. २२३अ, संपूर्ण. नरक बिलमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जोजन को अंत ओदथानक; अंति: जातै छुटै दुख
रास है, गाथा-३, (वि. कृति के अंत में विलमान के अंक दिये हैं.) ४६२. पे. नाम. चौरासी लाख वलौं का व्यौरा, पृ. २२३अ, संपूर्ण,
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