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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७
४३३. पे. नाम. षटथानक मैं सहनणांही चौपाई, पृ. २१८अ, संपूर्ण. संहननसंख्या पद-६ स्थानगत, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सुरग नरक एकेंद्री मांहि; अंति: तेरमो
चोदमो गुनथान, गाथा-२. ४३४. पे. नाम. आठौ के परजाय तमे प्रान का व्यौरा, पृ. २१८अ, संपूर्ण. ८ स्थाने पर्याप्तिसंख्या पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: एकेंद्री कै चार फरसत; अंति: विना एक
आख चौदम भणो, गाथा-२, (वि. कृति के अंत में ८ स्थान पर्याप्तिसंख्या के अंक दिये हैं.) ४३५. पे. नाम. पंचेंद्री ५ केवली छहौ जीव को अप्रजापति में प्राण व्यौरा, पृ. २१८अ-२१८आ, संपूर्ण. ६कायाजीवपर्याप्ति प्राण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर कै तन आ छ प्राण; अंति: कौ
अप्रजापत मै कहे जिण, गाथा-२, (वि. कृति के अंत में पर्याप्ति प्राण पद के अंक दिये हैं.) ४३६. पे. नाम, आध्यात्मिक पद-सिद्धावस्था, पृ. २१८आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: दर्व दिष्टा देखें नित; अंति: नांहि आप शुद्ध एक है, गाथा-४. ४३७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद-शिववधु, पृ. २१८आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: ब्रह्मग्यान आनंद जल पूरन; अंति: द्यानत० वचन तनकाय, गाथा-४. ४३८. पे. नाम, तीर्थयात्रा १६ काया पद, पृ. २१८आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सम्यक आचारी ब्रह्मचारी; अंति: द्यानत० वखानै नरनारी है, गाथा-४. ४३९. पे. नाम. रत्नप्रभा पृथ्वी स्थित सुरासुरादिक निवासस्थान पद, पृ. २१८आ-२१९अ, संपूर्ण. रत्नप्रभा पृथ्वीस्थित सुरासुरादिक निवासस्थान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम चित्र पृथवी
१०८०००; अंति: ८०००० हजार है असीत हैं, गाथा-४. ४४०. पे. नाम. ढाइ दीप के बाहर मानुषोत्तर पाहाड, पृ. २१९अ, संपूर्ण. मानुषोत्तरपर्वतमान विचार, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., गद्य, आदि: १७२१ जोजन काऊंचाहै और; अंति:
सरव दिशा मै है सो जानना. ४४१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २१९अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: उत्तम कहाया अधम अधम जोरे; अंति: देह कौन भांत सोभा पाय है,
गाथा-३. ४४२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २१९अ-२१९आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: नाथन के नाथ औ अनाथन के; अंति: द्यानत० देखन कौं नाथ हौं,
गाथा-४. ४४३. पे. नाम. ७ नरक आय जगलनौ ग्रीवकनो पद, पृ. २१९आ, संपूर्ण. देवनरकायु पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सात नरक आयु जुगलनौ ग्रीवक; अंति: कौं ध्यान मांहि
आनियै, गाथा-४, (वि. इस कृति के अंत में देवनरकायु के अंक दिये हैं.) ४४४. पे. नाम. ७ नरक चार प्रकार देव का शरीर की ऊंचाई, पृ. २१९आ, संपूर्ण. देवनरकाय देहमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सातमैं नरक मांहि पांचस; अंति: सवा दोय एक
विख्यात है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में देहमान पद के अंक दिये हैं.) ४४५. पे. नाम. महावीरजी के पीछे वासठ वरस लग केवली पद, पृ. २२०अ, संपूर्ण.
महावीरजिननिर्वाणोत्तर श्रतस्थिति पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहिं., पद्य, आदि: वासठ वरस लग केवली रहै;
___ अंति: सब साधवहीं के उपगारी थे, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में श्रुतस्थिति पद के अंक दिये हैं.) ४४६. पे. नाम, गुणस्थानक पर्याप्ति पद, पृ. २२०अ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: प्रजापति गुनथान सब; अंति: गुन पांचही ठिकाने है, गाथा-४. ४४७. पे. नाम. गुणस्थानक प्राण पद, पृ. २२० अ-२२०आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: मिथ्या मांहि तीन चार; अंति: प्राण दश भाषे भगवान हैं, गाथा-४.
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