________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४१८. पे. नाम, चौदे सै तरेपन गणधर का व्यौरा, पृ. २१५अ, संपूर्ण. २४ जिन गणधर संख्या पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: चौरासी अरु नवै पाँच सौ; अंति: चौदे से
त्रैपन लहै, गाथा-३, (वि. कृति के अंत में गणधर संख्यामान के अंक दिये हैं.) ४१९. पे. नाम. वानीसंख्या कवित्त, पृ. २१५अ-२१५आ, संपूर्ण.. द्वादशांगीमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जैती प्रभुजी नी तेती कही; अंति: मन वचतोहि मोहि
बुधदानी है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में वाणीसंख्या के अंक दिये हैं.) ४२०. पे. नाम. शाश्वतचैत्यालय उत्कृष्टमध्यमजघन्य तीन्यौ भेद, पृ. २१५आ, संपूर्ण. शाश्वतजिनचैत्यालयद्वारमान पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: लंबे सौ चार है पचास ऊंचे; अंति:
वंदौ मनवचकाय पपजाय नाठ है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में चैत्यालयद्वारमान के अंक दिये हैं.) ४२१. पे. नाम, निरवान भूमि पुनसंख्या वंदन, पृ. २१५आ, संपूर्ण. २४ जिन निर्वाणभूमि पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: अष्टापद आदिनाथ चंपापुर; अंति: कटै करम
के जंजीर हैं, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में २४ जिन निर्वाणभूमि के अंक दिये हैं.) ४२२. पे. नाम. समकित पद-उपसम क्षायिक, पृ. २१५आ-२१६अ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम उपसम सम्यक देशवृत; अंति: जीव एक वार वार छर है, गाथा-४. ४२३. पे. नाम, मतिज्ञान के ३३६ भेद, पृ. २१६अ, संपूर्ण. मतिज्ञान ३३६ भेद पद, जै.क.द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: अवग्रह ईहा औ आवाय धारनाए; अंति:
अविकल्पी इस हैं, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में मतिज्ञान भेद के अंक दिये हैं.) ४२४. पे. नाम. वेदकउपसमक्षायकसम्यक्त्व का व्यौरा, पृ. २१६अ-२१६आ, संपूर्ण. वेदकउपसमक्षायकसम्यक्त्व पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: अनंतानबंधी क्रोधी मान; अंति:
भाजन में पानी जैसी बात है, गाथा-४. ४२५. पे. नाम. १८ हजार शील के भेद, पृ. २१६आ, संपूर्ण. १८ हजार शीलांग भेद पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: सुर नर पशुनि तीन कृत्य; अंति: बीस सात
सै कही सीलब, गाथा-३, (वि. कृति के अंत में शीलांग भेद के अंक दिये हैं.) ४२६. पे. नाम. सर्वप्रकृतिमिथ्यातीजीवउदय पद, पृ. २१६आ, संपूर्ण..
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जथा आहारक चौक मिश्र सम्यक; अंति: ग्यान मांहि झेलै हैं, गाथा-४. ४२७. पे. नाम. २४ ठाने का व्यौरा, पृ. २१६आ-२१७अ, संपूर्ण.. २४ स्थानक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: गति चार इंद्री पाँच काय; अंति: घाट दोसै लाख कोर
धार है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में २४ स्थानक पद के अंक दिये हैं.) ४२८. पे. नाम. सिद्धिगमनांतर्गत अव्यवहारराशिनिगोदनिर्गमनजीव पद, पृ. २१७अ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जेते मोक्ष जाय तेते नित्य; अंति: रास ध्यावै मोक्ष पावै है, गाथा-४. ४२९. पे. नाम, १८ पाप भेद पद, पृ. २१७अ, संपूर्ण.. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: अविभागी पुगल की परमान एक; अंति: ध्यावै मोक्ष पावै भक्त है,
गाथा-४, (वि. कृति के अंत में पाप भेद के अंक दिये हैं.) ४३०. पे. नाम. पर्यायकथन भेद, पृ. २१७अ-२१७आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: अनाद अनंत परजाय मेर गिर; अंति: नांहि पर चेतनता सबी है, गाथा-४. ४३१. पे. नाम, ९ उच्चारनयकथन पद, पृ. २१७आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: दर्व दर्व को विचार दर्व; अंति: ग्यान समता सहित है, गाथा-४. ४३२. पे. नाम. विरहकाल पाछै आठ समै में ६०८ जीव मोक्ष जांहि कवित्त, पृ. २१७आ-२१८अ, संपूर्ण. विरहकाल पश्चात् सिद्धिगमन जीवसंख्या पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: वतीस अठतालीस
साठ जीव; अंति: आठ जीव निरवाणी समै, गाथा-४.
For Private and Personal Use Only