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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७
आचार्यपद आरती-३६ गुणगर्भित, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: पंचाचार छत्तीस गुन
सात; अंति: द्यानत० मोह धुर जाय, गाथा-११. ४०५. पे. नाम, उपाध्याय आरती-२५ गुणगर्भित, पृ. २०२अ-२०३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ग्यारै अंग वखान चौदे पूरव; अंति: द्यानत० ग्यान भ्रम नाही,
गाथा-२०. ४०६. पे. नाम. विरागछत्तीसी, पृ. २०३अ-२०४आ, संपूर्ण. वैराग्यछत्रीसी, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजितनाथ पद वंदि कै कह; अंति: द्यानतराय
पढो सबनि सुखरास, गाथा-३६. ४०७. पे. नाम, सहजसिद्ध अष्टक, पृ. २०४आ-२०५आ, संपूर्ण. सहजसिद्धाष्टक, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परम पूज परमातमा पूजक चेतन; अंति:
द्यानत० एकमेक से होर है, गाथा-१०, (वि. पाठभेद है.) ४०८. पे. नाम. पूरनपंचाशिका, पृ. २०५आ-२१३आ, संपूर्ण. पूर्णपंचाशिका, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: नाथनिके नाथ ओ अनाथनिके; अंति:
द्यानत० प्रसाद सब नर तरौ, सवैया-५५. ४०९. पे. नाम. जैनतात्त्विक पद-२४ स्थान, पृ. २१३आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: चौवीस ठाने मै वेद कषाय; अंति: ठाने जी कौ मेरो नमोकार है, सवैया-३. ४१०. पे. नाम. २४ तीर्थंकर के वंश, पृ. २१३आ, संपूर्ण. २४ जिन पद-वंश, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: संतकुंथअरुनाथ तीन कुरुवंश; अंति: ग्यान रूप सुर
आनिये, गाथा-२, (वि. कृति के अंत में वंशावली के अंक दिये हैं.) ४११. पे. नाम, २४ तीर्थंकर के लंछन, पृ. २१३आ-२१४अ, संपूर्ण. २४ जिन पद-लंछन, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: वैल गज घोरा कपि को; अंति: ध्यान सदा मन माहि
आनियै, गाथा-४. ४१२. पे. नाम. २४ का तपकाल व्यौहार, पृ. २१४अ, संपूर्ण. २४ जिन पद-छद्मस्थकाल, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: वरस हजार एक वारै चौदे; अंति: सेती कर्म
सैल भाने है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में छद्मस्थकाल के वर्ष अंक दिये हैं.) ४१३. पे, नाम, २४ का समोकसरन का व्यौरा, पृ. २१४अ-२१४आ, संपूर्ण.
२४ जिन पद-समवसरनमान, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: वारै सढे ग्यारै ग्यारै; अंति: वार है जोजन
___ बात है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में समोसरनमान के अंक दिये हैं.) ४१४. पे. नाम. देहप्रमाण कथन, पृ. २१४आ, संपूर्ण. २४ जिन पद-देहप्रमाण, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: पांच सै धनुष साढेचार; अंति: वरषावै ग्यान मेह
है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में देहप्रमाण के अंक दिये हैं.) ४१५. पे. नाम. समोसरन मैं निशान चार लाख सत्तर हजार आठ सौ असी कौ व्यौरा, पृ. २१४आ, संपूर्ण. समवसरण पद-ध्वजसंख्या, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: समोसरन एक दिशा मांहि; अंति: चले ते
मनो नाचत अपार है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में ध्वजा के अंक दिये हैं.) ४१६. पे. नाम. सिद्धक्षेत्र स्तुति, पृ. २१४आ-२१५अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: तन वात के पंद्रह सै नव; अंति: दुख भाजत हैं सुख साजत हैं, गाथा-४,
(वि. कृति के अंत में सिद्धक्षेत्र के अंक दिये हैं.) ४१७. पे. नाम. विभागहीन किंचितहीन आचारज उपाध्याय साय जथा, पृ. २१५अ, संपूर्ण. आचार्योपाध्यायसाध पद, जै.क.द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: अठाइ मूल गुना उत्तर; अंति: शिवचाल
जगजाल सौ निसर कै, गाथा-४.
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