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*प्राक्कथन*
कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची प्रकाशन के अविरत सिलसिले में प्रकाशित हो रहे इस २७वें रत्न का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है. प्रस्तुत भाग में संस्कृत, प्राकृत व देशी भाषाओं के आगमिक साहित्य समाहित हैं. इस खंड की खासियत यह है कि इस खंड में खास उल्लेखनीय अकेले जैन कवि द्यानतराय अग्रवाल के द्वारा रचित ५४६ कृतियों का समावेश है. जो अद्यावधि अप्रकाशित प्रतीत होती है. इस तरह संस्कृत, प्राकृत भाषा की कृतिओं के अतिरिक्त देशी भाषाओं की रास, कथा, औपदेशिक-सुभाषित पद आदि अनेक कृतियाँ भी अप्रकाशित प्रतीत हो रही हैं. जिसमें संस्कृत-प्राकृत ग्रंथों में मेघराज कृत स्थानांगसूत्र दीपिकाटीका, पद्मसागर गणि रचित उत्तराध्ययनसत्र का कथासंग्रह, श्रीसार व सहजकीर्ति कर्ताद्वय रचित कल्पसन की कल्पमंजरी टीका, रत्नचंद्र कृत नैषध चरित्र की टीका एवं सहजकुशल रचित सिद्धांत हंडी आदि उपलब्ध है. देशी कृतियों में हीरविजयसूरि कृत द्रौपदीसती चौपाई, कवियण रचित १७५६ वर्षीय दुष्काल वर्णन रास व चतुरकुशल रचित शढुंजयतीर्थमाला रास आदि अनेक कृतियाँ संशोधन संपादन हेतु विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं.
हस्तप्रतों के वर्गीकरण से लेकर सूचीकरण तक का संपूर्ण कार्य बडा ही जटिल व कष्टसाध्य होता है, परंतु उनमें समाहित महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ, जो अद्यावधि विद्वद्वर्ग की नजरों से ओझल थी, उन्हें आपके कर-कमलों में समर्पित करने का यह सुंदर परिणाम हमारे लिये अपार संतोषदायक सिद्ध हो रहा है.
जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण करना; एक बहुत ही जटिल व महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रंथालयों में अपनायी गई, मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक पर ही आधारित द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर, यहाँ विविधस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कृति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व पुरासामग्री; इस तरह छः भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. इसमें प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री; इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्त्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर मिलाकर एकीकरण का कार्य कर दिया गया है. हस्तप्रत लेखन पद्धति में पंचपाठ, त्रिपाठ, द्विपाठ के साथ-साथ खड़ा लेखन युक्त पत्र को भी योग्य रूप से स्थान दिया है.
कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची खंड-२२ से पूर्व के सभी खंडों में समाविष्ट अधिकांश प्रतों की मूल सूची श्रुतसेवी पूज्य मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने वर्षों की मेहनत से बनाई थी. उसी का अनुसरण करते हुए हमने यह संपादनकार्य किया है. मुनिश्री के हम चिरकृतज्ञ हैं. समग्र कार्य के दौरान श्रुतोद्धारक पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. तथा श्रुताराधक आचार्य श्री अजयसागरसूरीश्वरजी म. सा. की ओर से मिली प्रेरणा व मार्गदर्शन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के अन्य शिष्य-प्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए संपादक मंडल सदैव आभारी रहेगा. इस ग्रंथसूची के आधार से सूचना प्राप्त कर श्रमणसंघ व अन्य विद्वानों के द्वारा अनेक बहुमूल्य अप्रकाशित ग्रंथ प्रकाशित हो रहे हैं, यह जानकर हमारा उत्साह द्विगुणित हो जाता है; फलतः हमें अपना श्रम सार्थक प्रतीत होता है.
प्रतों की प्राथमिक सूचनाओं की कम्प्यूटर में प्रविष्टि तथा सन्दर्भ हेतु पुस्तकें आदि शीघ्रतापूर्वक उपलब्ध कराने हेतु ज्ञानमन्दिर के सभी कार्यकर्ताओं को हार्दिक धन्यवाद. इस कार्य में हमारे उत्साह को सतत बढ़ाए रखनेवाले ट्रस्टीमंडल के भी हम अंतःकरण से आभारी हैं.
सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानीपूर्वक किया गया है. फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के कारण क्वचित् भूलें रह गई होंगी. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रह गई भूलों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करें, जिससे भविष्य में प्रकाशित होनेवाले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें.
- संपादक मंडल
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