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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१५६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३२अ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: शैली जैवंता यह हूजै शिव; अंति: द्यानत० शिव सुख पायौ, १५७. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३२अ संपूर्ण.
जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि देख्यो भेख फूल ले निकस्यौ; अंतिः द्यानत० सरधा सौं सिरनावी,
गाथा-४.
गाथा-४.
१५८. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १३२अ १३२आ, संपूर्ण
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: भाई आपन पाप कुमाए आए; अंति: द्यानत० ए परनाम न वहीयै,
गाथा-४.
१५९. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १३२ आ. संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: इ काया तेरी दुख की ढेरी; अंति: द्यानत० सुमरन धार वहा है, गाथा-४. १६०. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १३२आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: वंदे तु वंदगी करियादि जिन; अंति: द्यानत० न करिये वकवादि, गाथा-४. १६१. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १३२आ-१३३अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद- शिक्षा, जै. क. धानतराव अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: बंदे तु वंदगी न भूल चाहता; अंतिः द्यानत० नाम कौं कर कबूल, गाथा-४.
१६२. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १३३अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-चित्त, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: आतम रूप सुहावना कोई जानो; अति मौनी के रहे पाई सुखरेखा, गाथा-४.
१६३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३३अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद- दुर्लभज्ञान, जै. क. धानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: म्यान का राह दुहेला रे; अंति: गुरु के चेला रे भाई, गाथा-४.
१६४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-सुलभज्ञान, जै.क. धानतराव अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: ग्यान का राह सुहेला रे; अंति द्यानत० बेपरवाह अकेला रे, गाथा-४.
१६५. पे नाम. साधारणजिन पद. पू. १३३आ, संपूर्ण,
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जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु तेरी महिमा किहि मुख; अंतिः द्यानत० हम देखे सुख पावै, गाथा-४. १६६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १३३आ-१३४अ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु तेरी महिमा कहिय न; अंति: द्यानत० दोष सबै छिटकाय, गाथा- ४. १६७. पे नाम. साधारणजिन पद, पृ. १३४अ संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु तुम समरन ही; अंति: द्यानत० पाप भाग हमारे, गाथा-४.
१६८. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १३४अ संपूर्ण
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जै.क. धानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि ऐसो सुमर कर मे भाई पवन, अंतिः पंच परम गुरु सरन गहीजे, गाथा ४. १६९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३४आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: कहिवे कों मन सूरमा करिवे; अंति: करे द्यानत सो सुखीया, गाथा-४. १७०. पे नाम औपदेशिक पद, पू. १३४आ, संपूर्ण.
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जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिननाम आधार सार; अंति: द्यानत० सुरग मुकति दातार, गाथा-४. १७९. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३४आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: देखै सुखी सम्यकवान सुख; अंति: द्यानत० नाही खेद न जानै, गाथा-४. १०२. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३५अ संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सब जग कु प्यारा चेतन रूप; अंति: और द्यानत निहचै धारा, गाथा-४.