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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७
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१०६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १२२आ-१२३अ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: आतम रूप अनूप है घटमांहि; अंति: निज स्वारथ काजै हो, गाथा-४. १०७. पे नाम औपदेशिक पद. पू. १२३अ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: नही एसो जनम वार वार; अंति: ज्यौ लहै भव पाव पार, गाथा-४. १०८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२३अ - १२३आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: तु तो समझिरे भाई निशदिन; अंति: द्यानत० सदा गुरु सीख बताई,
गाथा-४.
१०९. पे नाम आध्यात्मिक पद, पू. १२३आ, संपूर्ण
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि घट में परमातम ध्याइयै हो; अंति: महिमा धानत लहिसे भी अंत, गाथा-४. ११०. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १२३आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद- देवगुरुधर्म, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि समझत क्यों नही वानी रे अति हूजे ज्याँ शिवधानी रे, गाथा ४.
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११९. पे नाम औपदेशिक पद, पू. १२३आ-१२४अ, संपूर्ण
औपदेशिक पद-सम्यक्त्व, मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: धृग धृग जीवन सम्यक्त; अंति: द्यानति गहि मनवचन तना,
गाथा-४.
१९१२. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १२४अ, संपूर्ण.
जै.. द्यानतराय अग्रवाल, मा.गु., पद्म, आदि जीवासुं कहिये तनै भाईया अति द्यानत० एम सुगुरु समझझ्या गाथा-४. १९३. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १२४-१२४आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद- ज्ञान, जै. क. धानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि ज्ञान सरोवर सोई हो भविजन, अंति जाने जाने विरला ज्ञाता, गाथा ४.
११४. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १२४आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-मूढ, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: मूढपना कित पायो रे जीव ते; अंति: द्यानत यौं सद्गुरु बतलायो, गाथा-४.
११५. पे नाम आध्यात्मिक पद, पू. १२४आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि : हम लागै आतम राम सौ विना; अंति: द्यानत० छूटे भवदुख वामसी,
गाथा-४.
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११६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १२४-१२५अ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु अब हमको होय सहाय; अंति: द्यानत० जमतै लेहू वचाय, गाथा-४. ११७. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १२५अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-चित्त, क. बिहारीदास, पुहिं., पद्य, आदि: जीवन सहल है तुम चेतो चेतन; अंति: बिहारदास० और न कछू न पाय, गाथा-४.
१९८. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १२५अ. संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: वसि संसार मैं पायो दुख; अंति: दुख मेटि लह्यौ सुखसार, गाथा-४. १९. पे नाम मुनिगुण स्तुति, पृ. १२५ अ- १२५आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं, पद्य, आदि धनि धनि ते मुनि गिरवन अति चानत० पाय परत पातग जासी, गाथा-४, १२०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२५आ, संपूर्ण.
पु., पद्य, आदि: कहित सुगुरु करिसु हित भवक; अंति: करि करम सघन डहन दहनकन, गाथा-४.
१२१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२५ आ-१२६अ, संपूर्ण.
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क. बिहारीदास, पुहि., पद्य, आदि हो भविजन आतम सौ ली लाया; अंतिः बिहारीवास० परमातम व्हे जाय, गाथा ४. १२२. पे नाम आध्यात्मिक पद, पू. १२६अ, संपूर्ण
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