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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
२२२. पे. नाम. अष्टपदी, पृ. १४३आ, संपूर्ण. ___ साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनदेव न छांड हौ सेवो; अंति: मैं द्यानत भक्त
उपाय हौ, गाथा-८. २२३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १४३आ-१४४अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: मानुष भव पानी दियो जिन; अंति: निपटन जी कहै लख चेतन वाना,
गाथा-८. २२४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १४४अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहिं., पद्य, आदि: अब मैं जान्यौ आतमराम सौं; अंति: द्यानत निज गह पर तजि दिया,
गाथा-८. २२५. पे. नाम. उपदेश धमाल, पृ. १४४अ-१४४आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन प्राणी चेतिये हौ अहो; अंति: आपकौं हो द्यानत
कहत पुकार, गाथा-८. २२६. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १४४आ-१४५अ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: भज मन प्रभु श्रीनेम कौं; अंति: स्वामी की कीजिये बलिहारी, गाथा-८. २२७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १४५अ-१४५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: प्राणी ललछा मौ मन चपलाई; अंति: द्यानत० फिर पाछै पछताई,
गाथा-८. २२८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १४५आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: रे ग्यान विना दुख पाइरे; अंति: अमर होय तजि काया रे, गाथा-८. २२९. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १४५आ-१४६अ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पहि., पद्य, आदि: काहे देख गरवाना भाई गह; अंति: द्यानत० जो चाह कल्याना रे, गाथा-८. २३०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १४६अ-१४६आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: कर्मन निज आत्मा चितौ न; अंति: द्यानत सौ गहि मनवचकाय, गाथा-८. २३१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १४६आ-१४७अ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: जानौ पुद्गल न्यारा रे भाई; अंति: द्यानति लहि भौ पारा रे, गाथा-४. २३२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १४७अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: भजो आतम देव रे जिय भजो; अंति: समै द्यानत करौ अमृत पान,
गाथा-७. २३३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १४७अ-१४७आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: ब्रह्मज्ञान नही जाना रे; अंति: द्यानत अजर अमर पद थाना रे, गाथा-८. २३४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १४७आ-१४८अ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: साधो छांडो विषै विकारी; अंति: द्यानत० वर लेके जिय पाई, गाथा-८. २३५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १४८अ-१४८आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: कैसै शिव पद सुख होई हम कौ; अंति: द्यानत० काल अनंत गमायौ,
गाथा-८. २३६. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. १४८आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: भज भज रे मन आदिजिणंद; अंति: द्यानत लहियै परम आनंद,
गाथा-४. २३७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १४८आ-१४९अ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सुन चेतन एक बात हमारी; अंति: द्यानत० दधि पार उतरी कै, गाथा-८.
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