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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७
४८९. पे. नाम. अढाईदीप के जोजन और मानषोत्तर जोजन सवैया, पृ. २२८अ-२२८आ, संपूर्ण. ढाईद्वीप मानुषोत्तरपरिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सौले लाख नौसै तीन कोड; अंति:
जिनराज की दहाइ जी, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में अढाई द्वीप मानुषोत्तर परिमाण के अंक दिये हैं.) ४९०. पे. नाम. पंचजोतचक्र की चाल, पृ. २२८आ, संपूर्ण. ज्योतिषचक्रग्रहचाल पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: चंद मंद गति भान शीघ्रगत; अंति: चाली
तीनौ ठोर एक सी काल, गाथा-४. ४९१. पे. नाम. सरवग्रह वाहन प्रमाण, पृ. २२८आ, संपूर्ण. ग्रहवाहनप्रमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सोल सोलही हजार देवता लगै; अंति: एक पल
सदा चाल कारै हैं, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में ग्रहवाहनप्रमाण के अंक दिये हैं.) ४९२. पे. नाम, भानषटदिशा प्रमान, पृ. २२८आ-२२९अ, संपूर्ण. सूर्यग्रहपरिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: भानता ऊचै सौ नीचै ठारसै; अंति: वंदै प्रतमाजी
निरधार है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में सूर्यग्रहपरिमाण के अंक दिये हैं.) ४९३. पे. नाम. पंचजोतचक्राविमान का प्रमान, पृ. २२९अ, संपूर्ण.
विमानपरिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहि., पद्य, आदि: जोजन एक सठ कला छपन; अंति: इम अरध मुटाई
___ मानियै, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में विमानपरिमाण के अंक दिये हैं.) ४९४. पे. नाम. इंद्रादिदशजातदेवकी संख्या, पृ. २२९अ, संपूर्ण.
सौधर्मेंद्रदेवपरिवार पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सौधर्म इंद्र समानक चौरासी; अंति: आप भिन्न
__जानै है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में इंद्रादिपरिवार के अंक दिये हैं.) ४९५. पे. नाम. सौले सरग में वारै इंद्र का व्यौरा, पृ. २२९अ-२२९आ, संपूर्ण. १६ स्वर्ग १२ इंद्र परिमाण पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: आनंद के सुरगधार ताके; अंति: अनुत
ईछ हौं उत्तरि दहै, गाथा-४. ४९६. पे. नाम. सौले सुर्ग लीनो नौ ग्रीवक व विमान संख्या व्यौरा, पृ. २२९आ, संपूर्ण.. १६ स्वर्ग ९ ग्रेवेयक विमानसंख्या पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: तेतालीसमें इकहत्तर चौदे;
अंतिः रस सत्तर सौले सार है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में विमानसंख्या के अंक दिये हैं.) ४९७. पे. नाम. लोकांतिक पाडे के जीव की संख्या, पृ. २२९आ-२३०अ, संपूर्ण. लोकांतिकदेवसंख्या पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: लोकांतक आठ जात दोहै; अंति: आठसत
बीस एकी अवतार हैं, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में देवसंख्या के अंक दिये हैं.) ४९८. पे. नाम. चंदसूरज की गिनती, पृ. २३०अ, संपूर्ण.. चंद्रसूर्यगिनतीसंख्या पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जंबुद्वीप दो लोनोदधि मै; अंति: संख्या एते
भाषत मूनीस है, गाथा-४. ४९९. पे. नाम. अढाईद्वीप ध्रुवतारा व प्रतिमा संख्या पद, पृ. २३०अ, संपूर्ण. ढाईद्वीप ध्रुवतारा व प्रतिमासंख्या पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: जंबुदीप मै छतीस लौनौदध;
अंति: मनवचकाय वंदे सुरईस है, गाथा-४, (वि. कृति के अंत में प्रतिमा के अंक दिये हैं.) ५००. पे. नाम. आदिदशजातिदेवकी सवैया, पृ. २३०अ-२३०आ, संपूर्ण. इंद्रादि १० जाति देव सवैया, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: सोधर्मइंद्र समानक चोरासी; अंति: पचोत्तरे
छवीस थान ठानै है, गाथा-४. ५०१. पे. नाम. सैले सुर्ग मैं वारै इंद्र का व्यौरा, पृ. २३०आ, संपूर्ण. सर्वदेवलोकेंद्रसंख्या पद, जै.क. द्यानतराय अग्रवाल, पुहिं., पद्य, आदि: आदि के सुरगरति के चार; अंति: छहौं उत्तरिंद
है, गाथा-४. ५०२. पे. नाम. उरध पटल, पृ. २३०आ, संपूर्ण.
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