________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७
३११
१२२५८४. (+#) पंचांगानयन व सूर्य चंद्रग्रहण विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, ७X४१). १.पे. नाम, पंचांगानयन, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पंचांगविधि दोहा, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: (-); अंति: मेघराज० सुगम भांति सुखकाज, गाथा-५३,
(पू.वि. गाथा-५१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सूर्य चंद्रग्रहण विचार, पृ. ४अ, संपूर्ण..
सूर्य चंद्रग्रहणविचार, मा.गु., गद्य, आदि: जिणेइ नक्षत्रे रवि वसे; अंति: उत्तर दिसे खाडो दीसे. १२२५८५. आदिजिनविनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:आदेसरनी वीनति., आदेसरनीवी०., जैदे., (२५४१०.५, १३४४१).
आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जइ पढम जिणेसर अति;
___अंति: लावन्यसमे० इम भणियं, गाथा-४५. १२२५८६. (+) अनेकार्थध्वनिमंजरी, संपूर्ण, वि. १६४८, आषाढ़ शुक्ल, ६, सोमवार, मध्यम, पृ. १३, प्रले. मु. ब्रह्म वीरपाल (गुरु
मु. ब्रह्म रूडा, नंदीतटगच्छ); गुपि. मु. ब्रह्म रूडा (गुरु मु. नरबद, नंदीतटगच्छ); मु. नरबद (गुरु मु. ब्रह्म कचरा, नंदीतटगच्छ); मु. ब्रह्म कचरा (गुरु मु. ब्रह्म सूरीदास, नंदीतटगच्छ); मु. ब्रह्म सूरीदास (गुरु मु. ब्रह्म हरिदास, नंदीतटगच्छ); मु. ब्रह्म हरिदास (गुरु मु. ब्रह्म रत्न, नंदीतटगच्छ); मु. ब्रह्म रत्न (गुरु मु. शीलचंद्र महात्मा, नंदीतटगच्छ); मु. शीलचंद्र महात्मा (गुरु मु. सुभंकरसेन महात्मा, नंदीतटगच्छ); मु. सुभंकरसेन महात्मा (गुरु उपा. रत्नभूषण, नंदीतटगच्छ); उपा. रत्नभूषण (गुरु आ. नरेंद्रसेन, नंदीतटगच्छ); आ. नरेंद्रसेन (गुरु आ. कल्याणकीर्ति, नंदीतटगच्छ); आ. कल्याणकीर्ति (गुरु भट्टा. त्रिभुवनकीर्ति, नंदीतटगच्छ); भट्टा. त्रिभुवनकीर्ति (गुरु भट्टा. उदयसेन, नंदीतटगच्छ); भट्टा. उदयसेन (परंपरा आ. रामसेन, नंदीतटगच्छ); राज्ये आ. रामसेन (नंदीतटगच्छ), प्र.ले.प. अतिविस्तृत, प्र.वि. श्रीवासुपूज्य चैत्यालये. ऋषभदेवाय नमः, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे., (२७४१०.५, ९४३२-५०).
अनेकार्थध्वनिमंजरी, सं., पद्य, आदि: शुद्धवर्णमनेकार्थं; अंति: भाभानु नुरर्यमा, अधिकार-३, श्लोक-२०१. १२२५८८. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७७४, कार्तिक शुक्ल, १५, मंगलवार, मध्यम, पृ. २३०-४३(५५ से
९७)+१(७)=१८८, ले.स्थल. खदिरपुर नगर, प्रले. मु. चतुरामुनि (गुरु मु. कनकशेखर, अंचलगच्छ); गुपि.मु. कनकशेखर (गुरु मु. गुणिशेखर, अंचलगच्छ); मु. गुणिशेखर (गुरु मु. धर्मशेखर, अंचलगच्छ); मु. धर्मशेखर (गुरु मु. राजशेखर, अंचलगच्छ); मु. राजशेखर (गुरु मु. विवेकशेखर, अंचलगच्छ); मु. विवेकशेखर (गुरु मु. कुरणाशेखर, अंचलगच्छ); मु. कुरणाशेखर (गुरु मु. विनयशेखर, अंचलगच्छ); मु. विनयशेखर (गुरु मु. भाववर्द्धनसूरि, अंचलगच्छ); मु. भाववर्द्धनसूरि (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. हुंडी:ज्ञातासूत्र., ज्ञाता०. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (४८२) भग्न पुष्टी कटी ग्रीवा, जैदे., (२७.५४११.५, ७४४५-५९). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समएणं; अंति: धम्मकहासुयखंधो समत्तो,
अध्ययन-१९, (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ मेघमुनि कथा के अंतिम कुछेक अंश से अध्ययन-८ महाबलराजा
दीक्षा प्रसंग अपूर्ण तक का पाठांश नहीं है.)
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तेणइ समय ते घडी वेला दीठो; अंति: सरीखो बीजउ संपूर्ण कहिउ. १२२५९० (+#) पांडव रास, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ११४-४१(१,७,१६ से १८,२३ से २६,२८ से ३१,३३ से ३७,३९ से
४३,५०,५७ से ७१,७५,८८)=७३, पृ.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र.वि. हुंडी:ढालसा., खडा लेखन-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५,१६x४६). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ के दूहा-१९ अपूर्ण से
ढाल-१४८ गाथा-५ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १२२५९३. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.१९-१८(१ से १८)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र
है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७.५४११, ५४४८).
For Private and Personal Use Only