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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२७ १२१५०४ (+#) उपदेशमाला प्रकरण सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १८३०-१८३१, मध्यम, पृ. ८०-५९(१ से ५९)=२१, ले.स्थल. मक्सूदाबाद महिमापुर, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२,१२४३९). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५३६, (वि. १८३०, श्रावण कृष्ण, ४, गुरुवार, पू.वि. गाथा-३३४ से है., प्रले. पं. सुमतिरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: वचन थकी नीकली वांणी, (वि. १८३१, आश्विन शुक्ल, २, प्रले. पं. देवचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य) उपदेशमाला-कथा संग्रह, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: जीवो नरके व्रजति, कथा-६६, (पू.वि. हरिकेशी कथा अपूर्ण से १२१५०५ (+) शंबप्रद्युम्न प्रबंध, संपूर्ण, वि. १८५०, माघ शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. २२, ले.स्थल. मौजगढ, प्रले. मु. चैनरूप; गुभा.पं. प्रीतसुंदर (गुरु पं. किशोरचंद); गुपि.पं. किशोरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:संबप्र०चो०., संशोधित. कुल ग्रं. ८००, जैदे., (२६४११.५, १५४३६). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलं; अंति: खंड-२ ढाल २१, __गाथा-५३५, ग्रं. ८००. १२१५०७. (+#) जीवविचार प्रकरण सह अर्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-९(१ से ९)=३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १०४२८). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदिः (-); अंति: , (पू.वि. गाथा-३७ अपूर्ण से ४९ __ अपूर्ण तक है.) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १२१५०८. (+) देशावगासिक पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ९४३८). देशावगासिक पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, आदि: अहण्णं भंते तुम्हाणं; अंति: (१)अभिग्गहो० वोसिरामि, (२)उपरांत व्यापारने वोसरावे. १२१५०९ (#) पद्मावती आराधना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १०४२७). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पदमावती जीव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) १२१५१० (+#) आवश्यकसूत्र नियुक्ति की शिष्यहिता टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १७०-१६१(१ से ७०,७६ से १०९,११३ से १६९)=९, प्र.वि. प्रत में पत्रांक १ से ८ क्रमशः है, नं.९ अंकित नहीं है. प्रत में दत्त पत्रांक चोर पत्रांक, वास्तविक या प्रत्येक विषय के भिन्न-भिन्न होना संभव है अतः विषयवस्तु की दूरी को ध्यान में रखते हुए अनुमानित दिये गए हैं. पत्र मिल पेपर जैसे लगते हैं, लेकिन अवस्था व लिखावट १७वीं जैसी दिखती है. द्विपाठ शैली में एक तरफ खाली छोड दी गई है., द्विपाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२, २३४३४). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., उपलब्ध पत्रों में पगाम सज्झाय की वृत्ति प्राप्त होती है. उसमें पगामसज्झायगत इरियावही टीका से ४ ध्यान की टीका अपूर्ण तक, पंच समिति में पारिष्ठापनिका समिती अन्तर्गत एकेन्द्रिय मध्ये पृथ्वीकायादि स्वसमुत्थ-परसमुत्थ ग्रहण गाथा-४ की व्याख्या अपूर्ण से मृतक पारिष्ठापनिका द्वार गाथा १२७३-१२७४ की व्याख्या अपूर्ण तक है व 'बत्तीसाए जोगसंगहेहिं' अन्तर्गत कथा में शकटालमंत्री द्वारा मिथ्यात्वी ऐसे वररूचि की प्रशंसा न करने के प्रसंग से स्थूलिभद्र को वंदनार्थ बहन साध्वीओं के आगमन प्रसंग अपूर्ण तक लिखा है.) १२१५११ (+#) लीलावतीसुमतिविलास रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १७४४०). For Private and Personal Use Only
SR No.018084
Book TitleKailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 27
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2019
Total Pages624
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size19 MB
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