Book Title: Bhaktamara Stotra Yantras
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown
Catalog link: https://jainqq.org/explore/151002/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र - १ Bhaktamara Yantra-1 भक्तामरप्रणतमौलिमणिप्रभाणानक्ली नस्ली क्ली नक्ती नक्ती नक्ती नक्ती नक्ती नक्ती याहIS Uामो अति वालम्बनं भवजले पतता जनानाम् ॥१॥ नकली नकली नकली नकली कती नक्ती नकली नकली नुक्ती केली नुस्ली । READL29 हीही KEEश्री ताणणमा निमा | 15, नकली नक्तोर्नक्ली नकली नक्ली नक्ती नकली नकली उक्ली ठेवलीनिकली थी। मुद्योतकं दलितपापतमोवितानम् । SathiERS CTEUSB TAEHEREEEEEEE - helna talni hath ऋद्धि-ॐही अहं णमो अरिहंताणं णमो जिणाणं ॐ हाँही हूँ हाँ हः असि आउ सा अप्रतिचक्र फट विचकाय झौ झी स्वाहा । मंत्र-ॐ हाँ हों हूँ थीं क्लीं न्यूँ की ॐ ह्रीं नमः स्वाहा । प्रभाव सारी विघ्न-बाधाएँ दूर होती है । Removal of all obstacles भक्तामर-प्रणत-मौलिमणि-प्रभाणा - मुद्योतकं दलित-पाप-तमोवितानम् । सम्यक् प्रणम्य जिन पादयुगं युगादावालंबनं भवजले पततां जनानाम्॥१॥ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र २ यः संस्तुतः सकलवाङ्मयतत्त्व बोधा स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् । बैंक बैंक बैंक बैंक बैंक बैंक बैंक बैंक बैंक बैंक बैंक बैंक सकलार्थसिद्धीणं "श्रीँ श्रीँ Bhaktamara Yantra - 2 बैंक बैंक बैंक बैंक बैंक बैंक बैंक बैंक बैंक बैंक बैंक बैंक अ णमो श्रीँ श्रीँ श्रीँ श्रीँ لا لا لا لا ओहिजिणाणं 軟軟帳號蛾類軟軟軟軟軟軟 बैंक बैंक बैंक बैंक बैंक बैंक बैंक बैंक बैंक बैंक बैंक बैंक दुद्भूतबुद्धिपटुभिः सुरलोकनाथैः । क्रैं ऋद्धि-ॐ ह्रीं अर्ह णमो ओहिजिणाणं । मंत्र-ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नमः | प्रभाव सारे गंग, शत्रु शान्त होते हैं तथा सिरदर्द दूर होता है। Curing of diseases, especially headache and overcoming of enemies. nigona2000 यः संस्तुतः सकल-वाङ्मय- तत्व-बोधा- उद्भूत- बुद्धिपटुभिः सुरलोकनाथैः । स्तोत्रैर्जगत्त्रितय चित्त- हरैरुदरैः स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् ॥ २॥ 2 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र -३ Bhaktamara Yantra. 3 - बुद्ध्या विनाऽपि विबुधार्चितपादपीठ ! ने नमो भगवते वाज ही अहम 6कली नमः स्वाहा। मो परमोहि कालाकली जिला कला मन्यःक इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम्? ॥३॥ स्वयंरूपाय नमः कला का 'परमतत्त्वार्थ भावकार्यसिद्धये स्तोतुं समुद्यतमतिर्विगतत्रपोऽहम् । KARE Kap तयः सर्वसि Ple -nejhah Phye blay AIR TO बुद्धया विनाऽपि विबुधार्चित पादपीठ स्तोतुं समुद्यत मतिर्विगतत्रपोऽहम् । बालं विहाय जलसंस्थितमिन्दु बिम्ब - मन्यः क इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम् ॥३ ऋद्धि-ॐ हीं अहं णमो परमोहिजिणाणं । मंत्र-ॐ ही श्री कली सिद्धेभ्यो बुद्धेभ्यः सर्वांसद्धिदायकेभ्यो नमः स्वाहा । प्रभाव दृष्टि रोग अपसरण और जय प्राप्ति होती है। Restoration of vision and attaining success. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र ४ Bhaktamara Yantra - 4 वक्तुं गुणान् गुणसमुद्र ! शशाङ्ककान्तान् स स स स स सीँ सोँ ह्रीँ अ णमो [ग्ली ग्लो मेलों तो ली" को वा तरीतुमलमम्बुनिधिं भुजाभ्याम् ?, सौ सौ सौ सौ सौ सौ सौं जलदेवताभ्यो नमः स्वाहा।" ग्लो ग्ली ग्ली ग्ली ग्ली लीग्ली ग्ली ग्लो सव्वाोहिजिणाणं । स स स स सौ सौ सौ कस्ते क्षमः सुरगुरुप्रतिमोऽपि बुद्ध्या ?। फ्लॉ PLE ab nan 在存在梅传传在 ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहं णमो सव्बोहिजिणाणं । मंत्र-ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं जलदेवताभ्यो नमः स्वाहा । प्रभाव- जाल में मछलियाँ नहीं फँसती है तथा जल का भय दूर होता है। Spreading of non-violence and removal of fear of water. वक्तुं गुणान् गुणसमुद्र शशाङ्ककान्तान् कस्ते क्षमः सुरगुरुप्रतिमोऽपि बुद्ध्या । कल्पान्त काल - पवनोद्धत - नक्रचक्रं को वा तरीतुमलमम्बुनिधिं भुजाभ्याम् ॥ ४ ॥ 4 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र ५ सोऽहं तथापि तव भक्तिवशान्मुनीश ! झीँ झीँ झीँ झीँ झीँ झीँ झीँ ॐ ह्रीं अर्ह णमो अणतोहिजिणाणं ।” "ग्री" ग्री नाभ्येति किं निजशिशोः परिपालनार्थम् झीँ झीँ झीँ झीँ झीँ झीँ नमो नमः स्वाहा।" ग्रीग्री ग्री श्रीग्री Bhaktamara Yantra-5 ww ग्लॉ 年年年年年年 हे हे हे हे हे हे झीँ झीँ झीँ झीँ झीँ कर्तुस्तवं विगतशक्तिरपि प्रवृत्तः । ऋद्धि ॐ ह्रीं अहं णमो अणतोहिजिणाणं । मंत्र-ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं क्रीं सर्वसंकटनिवारणेभ्यः सुपार्श्ववक्षेभ्यो नमो नमः स्वाहा । प्रभाव-आँख के सारे रोग दूर होते हैं। Curing of eye-diseases. सोऽहं तथापि तव भक्ति वशान्मुनीश कर्तुं स्तवं विगतशक्तिरपि प्रवृत्तः । प्रीत्यऽऽत्मवीर्यमविचार्य मृगो मृगेन्द्रं नाभ्येति किं निजशिशोः परिपालनार्थम् ॥ ५ ॥ 5 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र -६ Bhaktamara Yantra - 6 Iro अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहासधाम हौं हौं हौं हौं हौं हौं हौं " ही अर्ह णमो कुटूबुद्धीण।" पोयोपोरोप्रोपॉप : तच्चारुचूतकलिकानिकरैकहेतुः ॥६॥ हौ हौ हौं हौ हौ हौं विद्याप्रसादं कुरु कुरु खाहा।" । गौमौनीग्रामोद्योगों "न ह्रीं श्रीँ श्रीं श्रृं श्रः हैं सें यः यः हौं हौ हौं हौं हौं हौं त्वद्भक्तिरेव मुखरीकुरुते बलान्माम् ।। Uplth Dyette 22 emejhh lahday Male 2 ऋद्धि-ॐ हीं अहं णमो कुद्रवुद्धीणं । मंत्र-हीथा श्रीश्र में यः यः ठः ठः सरबति भगवति विद्याप्रसादं कुरु कुरु स्वाहा । प्रभाव अनेक विद्याएं सहज ही आ जाती है याणी के दोष दूर होते हैं। Mastering of Arts & Speech अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहासधाम त्वद्भक्तिरेव मुखरीकुरुते बलान्माम् । यत्कोकिलः किल मधौ मधुरं विरौति तच्चारुचूत - कलिकानिकरैकहेतु ॥ ६॥ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र ७ त्वत्संस्तवेन भवसन्ततिसन्निबद्धं नोँ नोँ नोँ नोँ नोँ नोँ नोँ " ह्रीं" अर्ह णमो बीअबुद्धीणं।” सूर्यांशुभिन्नमिव शार्वरमन्धकारम् नोँ नोँ नोँ नोँ नोँ नोँ न निवारणं कुरु कुरु Bhaktamara Yantra-7 (कम्प्यू ह्रीं हंसीं श्रीं श्रीं क्रीं क् नोँ नोँ नोँ नीँ नोँ नोँ : पापं क्षणात् क्षयमुपैति शरीरभाजाम् । 請請請請术传媒 क्र ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहं णमो वीअबुद्धीणं । मंत्र-ॐ ह्रीं हैं सीं श्रीं श्रीं क्रीं क्लीं सर्वदुरित सङ्कट क्षुद्रोपद्रव कष्टनिवारणं कुरु कुरु स्वाहा । प्रभाव सर्प कीलित हो जाता है, सारे पाप संकट, छोटे-मोटे उपद्रव दूर हो जाते हैं। Spellbinding of audiences & removal of obstacles. त्वत्संस्तवेन भवसंतति सन्निबद्धं पापं क्षणात् क्षयमुपैति शरीर भाजाम् । आक्रान्त - लोकमलिनीलमशेषमाशु सूर्यांशुभिन्नमिव शार्वरमन्धकारम् ॥ ७॥ 7 - Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र-८ Bhaktamara Yantra-8 मत्वेति नाथ! तव संस्तवनं मयेद यं यं यं यं यं है न ही अहं णमो पदाणुसारीण।" मुक्ताफलद्युतिमुपैति ननूदबिन्दुः ॥८॥ यं यं यं यं नहीं लक्ष्मणारामानन्ददेव्यै नमोनमःखाहा। (स्खलेब्यू) _- हाँ ही हूहः असिआउसा अप्रतिचके यं यं यं यं यं मारभ्यते तनुधियाऽपि तव प्रभावात्। hleela Prade मत्वेति नाथ! तव संस्तवनं मयेद - मारभ्यते तनुधियापि तव प्रभावात् । चेतो हरिष्यति सतां नलिनीदलेषु मुक्ताफल - द्युतिमुपैति ननूदबिन्दुः ॥ ८ । ऋद्धि-ॐ ही अर्ह णमो पदाणुसारीणं । असि आ उ सा अप्रतिचक्रे फट विचक्राय नी झाँ स्वाहा । कही लक्ष्मणारामानंददेव्यै नमो नमः स्वाहा । प्रभाव-सारे अरिष्ट योग दूर हो जाते हैं। Vanquishing evil forces. मंत्र-ॐ हा ही Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र -९ Bhaktamara Yantra-9 आस्तां तव स्तवनमस्तसमस्तदोषं नमा नी नौ नौ वीना नानौ णमो अरि म: स्वाहा नीनी नौन नौ नौ नौ भगवते पद्माकरेषु जलजानि विकासभाजि ॥१॥ नीनी नौना वाजामासभा नौ नौ नौ त्वत्सङ्कथाऽपि जगतां दुरितानि हन्ति । नमः Aनी नानी जययक्षात RVEDARA ऋद्धि-ॐ ही अहं णमो अरिहंताणं णमो संभिण्णसोवाणं हा ही हूं फट् स्वाहा । मंत्र-होश्रीका की तरह नमः स्वाहा । प्रभाव-चोरों का भय दूर होता है। Freedom from fear of theives. आस्तां तव स्तवनमस्तसमस्त - दोष त्वत्संकथाऽपि जगतां दुरितानि हन्ति । दूरे सहस्त्रकिरणः कुरुते प्रभैव पद्माकरेषु जलजानि विकाशभांजि ॥९॥ 9 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र १० नात्यद्भुतं भुवनभूषणभूतनाथ ! 奇 नमः । हो हो हो हो हो भूत्याश्रितं य इह नात्मसमं करोति ? 1991 उपसर्ग 12113 हो हो हो ही 1) पराज हकृताची भयपूर्ण स्वाहा (क) हीँ न ग णामी सर्ययुधात हीँ हीं हो Bhaktamara Yantra - 10 ही एक ●हीँ हाँ हाँ हाँ णमो शत्रुविनाशनाय भूतैर्गुणैर्भुवि भवन्तमभिष्टुवन्तः। क्रैं ऋद्धि-ॐ ह्रीं अर्ह णमो सर्वबुध्धीणं । मंत्र ॐ हो हीं हूँ श्री श्री श्रं वः सिद्धबुद्धकृतार्थो भव भव वषट् संपूर्ण स्वाहा । प्रभाव- कुत्ते ने काटा हो तो निर्विष हो जाता है। Curing dog-bite. नात्यद्-भूतं भुवन- भुषण भूतनाथ भूतैरगुणैर्भुवि भवन्तमभिष्टुवन्तः तुल्या भवन्ति भवतो ननु तेन किं वा भूत्याश्रितं य इह नात्मसमं करोति ॥ १० ॥ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र -११ Bhaktamara Yantra - 11 दृष्ट्वा भवन्तमनिमेषविलोकनीयं ति मगवले नमः। स्याहा। हा अहणको नमः स्या क्षारं जलं जलनिधे रसितुं क इच्छेत्? ॥११॥ मी पत्तयबुद्धी QUI सिटी महामाया प्रसिद्धरुपाय नान्यत्र तोषमुपयाति जनस्य चक्षुः। पाय ET SOLAP 1925 माकन AR JAP Naya fatalagus inh bala ऋद्धि-ॐ हीं अहं णमो पत्तेयबुद्धीणं । मंत्र-ॐ हीं श्रीं क्लीं श्रीं श्रीं कुमतिनिवारिण्यै महामायायै नमः स्वाहा । प्रभाव इच्छित को आकर्षित करता है, वर्षा को विवश करता है। Invoking rains and fulfilling wishes. दृष्टवा भवन्तमनिमेष-विलोकनीयं नान्यत्र तोषमुपयाति जनस्य चक्षुः । पीत्वा पयः शशिकरद्युति दुग्ध सिन्धोः क्षारं जलं जलनिधेरसितुं क इच्छेत् ॥ ११ ॥ 11 Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र - १२ Bhaktamara Yantra-12 यैः शान्तरागरुचिभिः परमाणुभिस्त्वं नमो भगवते ठे नमो अनुदिनं मनुज स्वयात्रासुभिताय नही अर्ह णमो बोहिबुद्धीणों यत् ते समानमपरं नहि रूपमस्ति ॥१॥ ह्रीं ह्रीं ह्रीं नमः ज्वालयु सुझस्तान् बोधितादान बुधौदान कुरु कुरु स्वाहा।" ने आं आं अं अः सर्वराजा जामी श्रुतजलानिरयै परै प्रसिद्धि कैश्चित् अतुलबलपराक्रमाय निर्मापितस्त्रिभुवनैकललामभूत! Paelete Units Page 22-UPajab 122 bloklah bile halk :blaase Da bi blue ऋद्धि-ॐ ह्रीं अई णमो योहिबुद्धीणं । मंत्र के औं ऑ अं अः सर्वराजाप्रजामोहिनि सर्वजनवश्यं कुरु कुरु स्वाहा । प्रभाव-हाथी का मद उत्तर जाता है, अभीप्सित व्यक्ति मिल जाता है। Becalming rogue elephants and meeting the desired person. यैः शान्तरागरुचिभिः परमाणुभिस्तवं निर्मापितस्त्रिभुवनैक ललाम-भूत। तावन्त एव खलु तेऽप्यणवः पृथिव्यां यत्ते समानमपरं न हि रूपमस्ति ॥ १२ ॥ 12 Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र - १३ Bhaktamara Yantra-13 वक्त्रं क्व ते सुरनरोरगनेत्रहारि भाभी मः ही आईपी हरया यद्र वासरे भवति पाण्डुपलाशकल्पम् ॥१५॥ मा उजुमा स्वजनवश्य TETTE निःशेषनिर्जितजगत्रितयोपमानम्। REEM22 ऋद्धि-ॐही अहं णमो उजुमईणं । मंत्र-ॐ ह्रीं श्रीं है सः हॉ ए हो ही द्रो द्रौं नः मोहिनि सर्वजनचश्यं कुरु कुरु स्वाहा । प्रभाव-चोर चोरी नहीं कर पाते. मार्ग में कोई भय नही रहता. लक्ष्मी प्राप्त होती है। Acquiring wealth, preventing theft and avpiding fear on journeys. वक्त्रं क्व ते सुरनरोरगनेत्रहारि निःशेष - निर्जित-जगत् त्रितयोपमानम् । बिम्ब कलङ्क-मलिनं क्व निशाकरस्य यद्वासरे भवति पांडुपलाशकल्पम् ॥१३ ॥ 13 Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र -१४ Bhaktamara Yantra-14 सम्पूर्णमण्डलशशाङ्ककलाकलाप नहीं महाका अई जय 'कस्तान निवारयति संचरतो यथेष्टम? ॥१४॥ KAANANAM 44 महामानसी स्वाहा ।" waalay णमो विउलमईण।" शुभ्रा गुणास्त्रिभुवनं तव लङ्घयन्ति । poin pelik dhe salestpirnet ऋद्धि-ॐ ही अहं णमो बिउलमईणं । मंत्र-ॐ नमो भगवती गुणवती महामानसी स्वाहा । प्रभाव-लक्ष्मी प्राप्त होती है, आधि-व्याधिशत्रु आदि का आतंक/भय दूर हो जाता है। सरस्वती प्रसन्न होती है, गुण की वृद्धि होती है। Invoking fortune, wealth & education and removing danger of enemy & disease. सम्पूर्णमण्डल - शशाङ्ककलाकलाप शुभ्रा गुणास्त्रिभुवनं तव लंघयन्ति । ये संश्रितास्-त्रिजगदीश्वर नाथमेकं कस्तान-निवारयति संचरतो यथेष्टम् ॥१४ ॥ ___ 14 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र -१५ Bhaktamara Yantra-15 चित्रं किमत्र यदि ते त्रिदशाङ्गनाभि नमोस अह णमोट नमः। किं मन्दरादिशिखरं चलितं कदाचित? ॥१५॥ मानसीमहामान त दसपुयाणा अचिन्त्य प्रबलपराक्रल तराज श्रृंखला नीतं मनागपि मनो न विकारमार्गम्। नक्षा तमगादती राकमाय PEnter hindip BIbA ऋद्धि-ॐ हीं अर्ह णमो दसपुब्बीणं । मंत्र-ॐ नमो भगवती गुणवती मुसीमा पृथ्वी बहला मानसी महामानसी स्वाहा । प्रभाव-प्रतिष्ठा और सौभाग्य में वृद्धि होती है। निर्मल ब्रह्मचर्य पालन की शक्ति मिलती है। Strengthening chastity and increasing prestige and prosperity. चित्रं किमत्र यदि ते त्रिदशांगनाभिर्नीतं मनागपि मनो न विकार - मार्गम् । कल्पान्तकालमरुत्ता चलिताचलेन किं मन्दराद्रिशिखिरं चलितं कदाचित् ॥ १५ ॥ 15 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र १६ निर्धूमवर्तिरपवर्जिततैलपूरः ह्रीँ अर्ह णमो चउदसपुब्बीणं।' ह्रीँ जयायै नमः दीपोऽ परस्त्वमसि नाथ। जगत्प्रकाशः ॥ १.६ ॥ कुरु कुरु स्वाहा। ग्लीँ माणिभद्राय नमः D Ct ग्ल्यू प Bhaktamara Yantra - 16 乐 श्री विजयायै नमः ॐ नमः सुमंगला-सुसीमा - नाम देवी कृत्स्नं जगत्त्रयमिदं प्रकटीकरोषि । caut ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्ह णमो चउदसपुब्बीणं । मंत्र-ॐ नमः सुमंगला मुसीमा नाम देवी सर्वसमीहितार्थं वज्रला कुरु कुरु स्वाहा । प्रभाव सब तरह की सफलताएँ तथा प्रतिपक्षी पर विजय प्राप्त होती है। Winning over rivals and securing success. निर्धूमवर्तिपवर्जित तैलपूरः कृत्स्नं जगत्त्रयमिदं प्रकटी - करोषि । गम्यो न जातु मरुतां चलिताचलानां दीपोऽपरस्त्वमसि नाथ जगत्प्रकाशः ॥ १६ 16 - Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र - १७ Bhaktamara Yantra-17 ____ नास्तं कदाचिदुपयासि न राहुगम्यः ज ही अहँ णमो अटुंगमहानिमित्तकुसलाणं।' ने न मो प्र सूर्यातिशायिमहिमाऽसि मुनीन्द्रः लोके ॥१७॥ सर्वपीडा सर्वरोगनिवारणं कुरु कुरु स्वाहा। णमो णमिऊण अट्टे मट्टे क्षुदबिघट्टे स्पष्टीकरोषि सहसा युगपज्जगन्ति। hech bhikesh shree pela n japalisaili E ऋद्धि-ॐही अहं णमो अटुंगमहानिमित्त कुसलाणं । मंत्र-ॐ णमो णमिऊण अटे मट्टे क्षुद्रविध क्षुद्रपीडा जटरपीड भंजय भंजय सर्वपीडा सर्वरोगनिवारणं कुरु कुरु स्वाहा । प्रभाव-पेट के सारे रोग दूर होते हैं। Curing of stomach ailments. नास्तं कादाचिदुपयासि न राहुगम्यः स्पष्टीकरोषि सहसा युगपज्जगन्ति । नाम्भोधरोदर - निरुद्धमहाप्रभावः सूर्यातिशायिमहिमासि मुनीन्द्र! लोके ॥१७ 17 Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र १८ विद्योतयज्जगदपूर्वशशाङ्कबिम्बम् ॥१८॥ रक्ष रक्ष विध्वंसनाय क्लीं ह्रीं नमः। नित्योदयं दलितमोहमहान्धकारं ॐ नमो शास्त्रज्ञान यण पत्ता For teste to the हवा हीँ णमो JA तँ . स्तम्भय स्तम्भय / Bhaktamara Yantra - 18 स्वाहा बोधनाय परमऋद्धिप्राप्तजयंकराय ह्रीं ह्रीं ह्रीं श्रीं न गम्यं न राहुवदनस्य न वारिदानाम्। क्रैं ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहं णमो बिउब्वणइडीपत्ताणं । मंत्र ॐ नमो भगवति जये विजये मोहय मोहय स्तम्भय स्तम्भय स्वाहा । प्रभाव- शत्रुसैन्य साम्भित होता है, धर्म में मति स्थैर्य होता है तथा हरदम उत्सव होते रहते है । Halting the enemy, stabilising faith in religion and promoting auspicious ceremonies. नित्योदयं दलितमोहमहान्धकारं गम्यं न राहुवदनस्य न वारिदानाम् । विभ्राजते तव मुखाब्जमनल्प कान्ति विद्योतयज्जगदपूर्व - शशाङ्कबिम्बम् ॥ १८ ॥ 18 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र १९ किंशर्वरीषु शशिनाऽह्नि विवस्वता वा ? ॐ ह्रीं अहं णमो विज्जाहराणी' कार्यं कियज्जलधरैर्जलभारनमैः ? ॥११॥ नमः स्वाहा।" क्षं क्षं क्षं क्षं क्षं क्षं क्षं क्षं G ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं he Bhaktamara Yantra - 19 रंरंरंरंरंरंरंरं ॐ हाँ हाँ हूँ हूः यः क्षः ह्रीँ युष्मन्मुखेन्दुदलितेषु तमस्सु नाथ! | क्रैं ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहं णमो विज्जाहराणं । मंत्र-ॐ ह्रीं हूँ ः यः क्षः हीं वपट् नमः स्वाहा । प्रभाव अन्यों द्वारा प्रयुक्त मंत्र, जादू टोना टोटका मूठ उच्चाटन आदि का भय नहीं रहता। Ensuring freedom from Occult practices. किं शर्वरीषु शशिनाऽह्नि विवस्वता वा युष्मन्मुखेन्दु - दलितेषु तमस्सु नाथ निष्मन्न शालिवनशालिनि जीव लोके कार्य कियज्जलधरैर् जलभार नम्रैः ॥ १९ 19 - Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र - २० Bhaktamara Yantra - 20 ज्ञानं यथा त्वयि विभाति कृतावकाशं नहीं अहं णमो चारणाण।' नन श्रीं न श्री ने न नैवं तु काचशकले किरणाकुलेऽपि ॥२०॥ ठः ठः नमः स्वाहा उको भावले एमा ॥ श्री श्री यूँ श्रः नैवं तथा हरिहरादिषु नायकेषु। यययययय अर्थ सौरव्यं कुछ अपयश ववयं यंत्र ___bhbebhate sh labele blalith का ऋद्धि-ॐहाँ अहं णमो चारणाणं । मंत्र-ॐ श्रीं श्रीं यूं श्रः शत्रुभयनिवारणाय ठः ठः नमः स्वाहा । प्रभाव-सम्पत्ति, सौभाग्य, बुद्धि, विवेक और विजय प्राप्त करने में सामर्थ्य प्राप्त होता है। Acquiring power, wealth, victory and discrimination and improving intellect. ज्ञानं यथा त्वयि विभाति कृतावकाशं नैवं तथा हरिहरादिषु नायकेषु तेजः स्फुरन्मणिषु याति यथा महत्त्वं नैवं तु काच - शकले किरणाकुलेऽपि ॥ २० ॥ 20 Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र - २१ Bhaktamara Yantra-21 मन्ये वरं हरि-हरादय एव दृष्टा न ही अहँ णमो पण्हसमणाणं।' क्ष क्षक्षं क्षं क्षं क्षं क्षं न । न मोम कश्चिन्मनो हरति नाथ! भवान्तरेऽपि। ॥२१॥ सर्वसौख्यं कुरु कुरु स्वाहा। क्ष क्ष क्ष क्ष क्षं |य नि40 वार | गवते क्षं क्षं क्षं क्षंक्षं क्षं " नमः श्री मणिभद्र-जय-विजयदृष्टेषु येषु हृदयं त्वयि तोषमेति । णा BREA halhapa Pethe ऋद्धि-ॐ ही अहं णमो पण्हसमणाणं । मंत्र-ॐ नमः श्री मणिभद्र जय विजय अपराजिते सर्वसौभाग्यं सर्वसौख्यं कुरु कुरु स्वाहा । प्रभाव-सब वशीभूत होते है और मुख-सौभाग्य बढ़ता है। Improving magnetism and improving wealth and fortune. मन्ये वरं हरि-हरादय एव दृष्टा दृष्टेषु येषु हृदयं त्वयि तोषमेति । किं वीक्षितेन भवता भुवि येन नान्यः कश्चिन्मनो हरति नाथ! भवान्तरेऽपि ॥ २१ 21 Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र - २२ Bhaktamara Yantra-22 स्त्रीणांशतानि शतशो जनयन्ति पुत्रान् " ही अहँ णमो आगासगामिणं।" प्राच्येव दिग् जनयति स्फुरदंशुजालम् ॥२२॥ अवधारणं कुरु कुरु स्वाहा। हो होम्रो धौ 644JABP) “र्ने नमः श्री वीरेहिं जृम्भय जृम्भय नान्या सुतं त्वदुपमं जननी प्रसूता। GAHRAIN It A is bell belli pikk UGE ऋद्धि-ॐही अर्ह णमो आगासगामिणं । मंत्र-ॐ नमः श्री बीरेहिं भय भय मोहय मोहय स्तम्भय स्तम्भय अवधारणं कुरु कुरु स्वाहा । प्रभाव-डाकिनी, शाकिनी, भूत, पिशाच, चुडैल आदि भाग जाते हैं। Getting freedom from witchcraft and black-magic. स्त्रीणां शतानि शतशो जनयन्ति पुत्रान् नान्या सुतं त्वदुपमं जननी प्रसूता। सर्वा दिशो दधति भानि सहस्त्ररश्मि प्राच्येव दिग् जनयति स्फुरदंशुजालं ॥ २२ ॥ 22 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र - २३ Bhaktamara Yantra-23 त्वामामनन्ति मुनयः परमं पुमांसजे ही अहं णमोआसीविसाणं।' र र र र र र ररं नान्यः शिवः शिवपदस्य मुनीन्द्रः पन्थाः ॥२३॥ मोक्षसौख्यं च कुरु कुरु स्वाहा।" करन रंररररररर जय श्री + क्ली स ररररररररं जनमो भगवति जयवति मादित्यवर्णममलं तमसः परस्तात् । ܐܲ ܐܲ ܐ ܐ ܐܲ ܐܲ ܐ ܐܲ Put Ith jan alshinha ऋद्धि-ॐ ही अहं णमो आसीविसाणं । मंत्र-ॐ नमो भगवति जयति मम समीहितार्थ मोक्षसौख्यं च कुरु कुरु स्वाहा । प्रभाव-प्रेत-बाधा दूर होती है। Removing obstacles caused by evil spirits. त्वामामनन्ति मुनयः परमं पुमांसमादित्यवर्णममलं तमसः परस्तात् । त्वामेव सम्यगुपलभ्य जयंति मृत्यु नान्यः शिवः शिवपदस्य मुनीन्द्र! पन्थाः ॥ २३ 23 Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र - २४ Bhaktamara Yantra-24 त्वामव्ययं विभुमचिन्त्यमसङ्ख्यमाद्यं नहीं अहँ णमो दिट्ठिविसाणं।' 906:00:0068A ज्ञानस्वरूपममलं प्रवदन्ति सन्तः॥२४॥ असिआउँसा झौ झौ स्वाहा। नमः "ज नमो भगवते वद्धमाणसामिस्स सर्वसमीहितं ब्रह्माणमीश्वरमनन्तमनङ्गकेतुम् । 8268686869 1 449 haineeyesabellish ऋद्धि-ॐ हीं अर्ह णमो दिद्विविसाणं । मंत्र नमो भगवते बदमाणमामिस्स सर्वसमीहितं कुरु कुरु स्वाहा । (ॐ हाँ हाँ हूँ हाँ हः असिआउसा झी झाँ स्वाहा) प्रभाव-सिरकी पीडा दूर होती है। Removing of all head related aches. त्वामव्ययं विभुमचिन्त्यमसंख्यमाचं ब्रह्माणमीश्वरमनन्तमनंगकेतुम् योगीश्वरं विदितयोगमनेकमेक ज्ञानस्वरूपममलं प्रवदन्ति सन्तः ॥ २४ ॥ 24 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र - २५ Bhaktamara Yantra-25 बुद्धस्त्वमेव विवुधार्चित बुद्धिबोधात् न ही अहं णमो उग्गतवाण। ON व्यक्तं त्वमेव भगवन्! पुरुषोत्तमोऽसि ॥२५॥ सर्व सौभाग्यं सर्वसौख्यं च कुरु कुरु स्वाहा। न हाँ ही हूँ ह्रीं ह्रः असिआउसा झौं झौ स्वाहा। त्वं शङ्करोऽसि भुवनत्रय शङ्करत्वात् ।। ION Pave Rollah kabel bel lblik, lief Bella Bellulalaltia LASIPIO का ऋद्धि-ॐ हीं अहं णमो उगतवाणं । मंत्र ॐ हाँ हो रही हः असि आ उ सा झाँप्रा स्वाहा। ॐ नमो भगवति जचे विजये अपराजिते सर्वसौभाग्य सर्वसाख्यं च कुरु कुरु स्वाहा । प्रभाव दृष्टि दोष दूर होता है, साधक पर अग्नि का असर नहीं होता । Removing effects of evil eye and getting freedom from fear of fire. बुध्दस्त्वमेव विबुधार्चित बुध्दि बोधात, त्वं शंकरोऽसि भुवनत्रय शंकरत्वात् । धाताऽसि धीर ! शिवमार्ग-विधेर्विधानात्, व्यक्तं त्वमेव भगवन्! पुरुषोत्तमोऽसि ॥ २५ ॥ 25 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र २६ तुभ्यं नमो जिन! भवोदधिशोषणाय ॥२३६॥ जयं कुरु कुरु स्वाहा। तुभ्यं नमस्त्रिभुवनार्तिहराय नाथ! अ णमो दित्ततवाणं। यं यं यं यं 15. Bhaktamara Yantra - 26 श्रीं श्रीं श्रीं श्रीं 安 安 日 骂 '임원의 과 ERS AR मं मं मं मं मं " नमो भगवति ह्रीँ" श्री तुभ्यं नमः क्षितितलामलभूषणाय । क्रैं ऋद्धि ॐ ही अहं णमो दित्ततवाणं । मंत्र ॐ नमो भगवति ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं हूँ हूँ परजनशान्तिव्यवहारे जयं कुरु कुरु स्वाहा । प्रभाव आधाशीशी की पीड़ा का निवारण होता है। Curing migraine. तुभ्यं नमस्त्रिभुवनार्तिहराय नाथ । तुभ्यं नमः क्षितितलामलभूषणाय । तुभ्यं नमस्त्रिजगतः परमेश्वराय, तुभ्यं नमो जिन ! भवोदधि शोषणाय ॥ २६ ॥ 26 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र - २७ Bhaktamara Yantra - 27 को विस्मयोऽत्र यदि नाम गुणैरशेषै "न ही अहँ णमो तत्ततवाणं।" जं जं जं जं जं स्वप्नान्तरेऽपि न कदाचिदपीक्षितोऽसि ॥२७॥ स शत्रून् उन्मूलय उन्मूलय स्वाहा जं जं जं जं जं व | 44 कर श्री जं जं जं जं जं "नै नमो चक्रेश्वरी देवी चक्रधारिणी स्त्वं संश्रितो निरवकाशतया मुनीश!! ते | स E EEE E bale bit cellingen Prashkelkelenable ऋद्धि-ॐ ह्रीं अर्ह णमो तत्ततवाणं । मंत्र-ॐ नमो चक्रेश्वरी देवी चक्रचारिणी चक्रेणानुकूलं साधय साधय शत्रुनुन्मूलयोन्मूलय स्वाहा । प्रभाव -शत्रु का उन्मूलन होता है, वह आराधक को कोई क्षति नहीं पहुंचा पाता। Making the enemy harmless. को विस्मयोऽत्र यदि नाम गुणैरशेषैस् - त्वं संश्रितो निरवकाशतया मुनीश! दोषैरूपात्त विविधाश्रय जातगर्वैः, स्वप्नान्तरेऽपि न कदाचिदपीक्षितोऽसि ॥ २७ 27 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र-२८ Bhaktamara Yantra-28 उच्चैरशोकतरुसंश्रितमुन्मयूख " ही अहँ णमो महातवाणं। ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं बिम्बं रवेरिव पयोधरपार्श्ववर्ति ॥२८॥ सर्वसिद्धिसम्पत्तिसौख्यं कुरु कुरु स्वाहा। AM ह्रीं ह्रीं ह्रीं " नमो भगवते जये विजये माभाति रूपममलं भवतो नितान्तम् । allt balla bla bla पण ऋद्धि-ॐ ही अहं णमो महातवाणं । मंत्र ॐ नमो भगवते जये विजये जृम्भय जम्भय मोहय मोहय सर्वसिद्धि सम्पत्तिमाख्यं कुरु कुरु ग्वाहा। प्रभाव सारे मनोरथ सिद्ध होते हैं. सौभाग्य, कीर्ति और लक्ष्मी की वृद्धि होती है। Fulfilling wishes and increasing fame fortune and wealth. उच्चैरशोक-तरुसंश्रितमुन्मयूखमाभाति रूपममलं भवतो नितान्तम् । स्पष्टोल्लसत्किरणमस्त-तमोवितानं बिम्बं रवेरिव पयोधर पार्श्ववर्ति ॥ २८ ॥ 28 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र - २९ तुदयाद्रिशिरसीव सहस्ररश्मेः ॥३५॥ कप्पदुमव्व सर्वसिद्धिर्नु नमः स्वाहा।” सिंहासने मणिमयूखशिखाविचित्रे " ह्री अहँ णमो घोरतवाणं। " अ आ इ ई उ ऊ य यौं यौं Bhaktamara Yantra - 29 步步成份 ॐ ऋ ॠ ऌ ॡ नमो नमिऊण पास विसहरफुल्लिंगमंतो विसहर विभ्राजते तव वपुः कनकावदातम् । क्रैं ऋद्धि ॐ ह्रीं अर्ह णमो घोरतवाणं । मंत्र-ॐ णमो णमिण पास बिसहर फुल्लिंगमंतो विसहर नामकखरमंती सर्वसिद्धिमीहे इह समताणमण्णे जागई कप्पदुमच्च सर्वसिद्धिः ॐ नमः स्वाहा । प्रभाव-नेत्र पीडा दूर होती है। कोई भी स्थावर विष लगता नहीं है। Acquiring immunity to poison and curing of eye disorders. सिंहासने मणिमयूखशिखाविचित्रे, विभ्राजते तव वपुः कनकावदातम् । बिम्बं वियद्विलसदंशुलता वितानं, तुंगोदयाद्रि - शिरसीव सहस्त्ररश्मेः ॥ २९ ॥ 29 - Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र ३० मुच्चैस्तटं सुरगिरेरिव शातकौम्भम् ॥३०॥ Bhaktamara Yantra-30 कुन्दावदातचलचामरचारुशोभं स्तम्भय स्तम्भय रह कुरु कुरु स्वाहा ही अहे णमा घारगुणाणं।" " न ट्री श्री श्रीपा विभ्राजते तव वपुः कलधौतकान्तम् । क्रैं ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहं णमो घोरगुणाणं । मंत्र ॐ ह्रीं श्रीं श्रीषाश्वनाथाय ही धरणेन्द्र पद्मावति सहिताय अट्ट मट्टे क्षुद्रविघट्टे क्षुद्रान् स्तम्भय स्तम्भय रक्षां कुरु कुरु स्वाहा । प्रभाव शत्रु का स्तम्भन होता है; एवं यात्रा निर्विघ्न संपन्न होती है। Removing obstacles and halting enemies. कुन्दावदात - चलचामर - चारुशोभं, विभ्राजते तव वपुः कलधौतकान्तम् । उद्यच्छशांक - शुचिनिर्झर - वारिधार, मुच्चैस्तटं सुर गिरेरिव शातकौम्भम् ॥ ३० । 30 Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र -३१ Bhaktamara Yantra-31 छत्रत्रयं तव विभाति शशाककान्त"न ही अहँ णमो घोरगुणपरक्कमाणा गं गं गं गं गं गं गं प्रख्यापयत् त्रिजगतः परमेश्वरत्वम् ॥३१॥ wealth गं क्री ही क्रौं ह्रीं क्रौ ही क्रौं ह्रीं क्रीं ह्रीं क्रौं ही को ही गं गं गं गं गं गं "न उवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्मघणमुक्क मुच्चैः स्थितं स्थगित भानुकरप्रतापम् । गं गं L |Hite-lallas palahnalayan Husbayan सा ऋद्धि-ॐही अहं णमो घोरगुणपरक्कमाण । मंत्र-ॐ उवसग्गहरं पासं. पास बंदामि कम्मघणमुक्कं । विसहर विसनिन्नासं, मंगलकल्लाण आवासे ॐ ही नमः स्वाहा। प्रभाव-राज्य-मान्यता मिलती है और सर्वत्र सन्मान प्राप्त होता है। Being respected and getting Royal approval. छत्रत्रयं तव विभाति शशांककान्तमुच्चैः स्थितं स्थगित भानुकर - प्रतापम् । मुक्ताफल - प्रकरजाल - विवृद्धशोभ, प्रख्यापयत्त्रिजगतः परमेश्वरत्वम् ॥ ३१ ॥ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट १ खे दुन्दुभिर्ध्वनति ते यशसः प्रवादी कुरु कुरु स्वाहा। गम्भीरतारखपूरितदिग्विभाग " ह्रीं अर्ह गमो घोरगुणबंनचारिणं ।” सौ सौ सौं Appendices - 1 ह्रीँ ह्रीँ ह्रीँ ह्रीँ ह्रीँ नमो ह्रीं ह्रीं हूँ ह्रीँ हूँ स्त्रैलोक्यलोकशुभसंगमभूतिदक्षः । क्रैं ऋद्धि ॐ ह्रीं अह णमो घोरगुणवंभचारिणं । मंत्र ॐ नमो हाँ ह्रीं हूँ हीं ह सर्वदोषनिवारणं कुरु कुरु स्वाहा । प्रभाव संग्रहणी रोग तथा उदर की अन्य पीडाएँ दूर होती है। Removing stomach disorders. 宜霦景从地ㄓ蕸山牛 गम्भीरतारवपूरितदिग्विभागस्त्रैलोक्यलोक - शुभसंगम भूतिदक्षः । सद्धर्मराजजयघोषण - घोषकः सन्, खेदुन्दुभिर्ध्वनति ते यशसः प्रवादी ॥ ३२ 32 Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट -२ Appendices - 2 मन्दार-सुन्दर-नमेरु-सुपारिजात"न ही अहँ णमो सब्बोसहिपत्ताणं ।' क्ली क्ली क्ली क्ली दिव्या दिवः पतति ते क्यसां ततिर्वा | नमो नमः: स्वाहा। क्ली क्लीं "ही श्रीं क्ली ब्लू सन्तानकादिकुसमोत्करवृष्टिरुद्धा । क्लीं bhesilbhth -Telejala MPINKal ज ऋद्धि ॐ हीं अहं णमो सम्बोसहिपत्ताणं । मंत्र ॐ हीं श्रीं क्ली ने ध्यानसिद्धि परमयोगीश्वराय नमो नमः स्वाहा । प्रभाव सब तरह के ज्वर दूर होते है। Removing all sorts of fever, मन्दार - सुन्दरनमेरू - सुपारिजात सन्तानकादिकुसुमोत्कर-वृष्टिरुद्धा । गन्धोदबिन्दु - शुभमन्द - मरुत्प्रपाता, दिव्या दिवः पतति ते वचसां ततिर्वा ॥ ३३ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट - ३ दीप्त्या जयत्यपि निशामपि सोमसौम्याम् नमो नमः स्वाहा। शुम्भत्प्रभावलयभूरिविभा विभोस्ते “ॐ नमो ह्रीँ अर्हं णमो खेलोसहिपत्ताणं।" फं फ फं फं 骂 प न $ क मः च 쇠 道 외 Appendices-3 क ॐ नमो ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं ह्सौं । लोकत्रये द्युतिमतां द्युतिमाक्षिपन्ती । क्रैं ऋद्धि-ॐ ह्रीं अहं णमो खेलोसहिपत्ताणं । मंत्र ॐ नमो हीं श्रीं क्लीं ऐं ह्सी पद्मावचे देव्यै नमो नमः स्वाहा । प्रभाव - गर्भ की संरक्षा होती है। Protecting the embryo. शुम्भत्प्रभावलय - भूरिविभा विभोस्ते, लोकत्रये द्युतिमतां द्युतिमाक्षिपन्ती । प्रोद्यद्-दिवाकर - निरन्तर भूरिसंख्या दीप्त्या जयत्यपि निशामपि सोम-सौम्याम् ॥ ३ 34 Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट - ४ Appendices - 4 . स्वर्गापवर्गगममार्गविमार्गणेष्ट: न ही अर्ह णमो जल्लोसहि पत्ताणं।" नमान 2899999900 नमः स्व भाषास्वभावपरिणामगुणैः प्रयोज्य ः। भव भब वषट् सुधायै स्वाहा। गजगमन ने नमो जये विजये अपराजिते महालक्ष्मि सद्धर्मतत्त्वकथनैकपटुस्त्रिलोक्याः। क्ष रक्ष Louwchle 22 ke landke lablets lanche e lehtellekea -p ऋद्धि-ॐही अहं णमो जल्लोसहि पत्ताणं । मंत्र-ॐ नमो जये विजये अपराजिते महालक्ष्मि अमृतवर्षिणि अमृतं भव भव वषट् सुधायै स्वाहा । प्रभाव-चोरी, मारी, अकाल राजभव आदि नष्ट हो जाता है। Eradicating fear of State, pestilence and thefts. स्वर्गापवर्गगममार्ग - विमार्गणेष्टः, सद्धर्मतत्वकथनैक - पटुस्त्रिलोक्याः । दिव्यध्वनिर्भवति ते विशदार्थसत्व भाषास्वभाव - परिणामगुणैः प्रयोज्यः ॥ ३५ । 35 Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र ३२ उन्निद्र हेमनवपङ्कज पुञ्जकान्ति "ड्री अहं णमोविष्पोसहिपत्ताणं। ॐ ह्रीँ ह्रीँ श्रीँ ड्राँ ह्रीँ क्लीँ M पद्मानि तत्र विबुधाः परिकल्पयन्ति ॥३२॥ परमन्त्रान् छिन्द छिन्द मम समीहितं कुरु कुरु स्वाहा। H 리 you हूः H Bhaktamara Yantra 36 2 Σ " ह्री" श्री कलिकुण्ड स्वामिन् आगच्छ आगच्छ पर्युल्लसन्नखमयूखशिखाभिरामौ । ऋ ऋद्धि ॐ ह्रीं अहं णमो विप्पोसहिपत्ताणं । मंत्र-ॐ ह्रीं श्रीं कलिकुण्ड स्वामिन् आगच्छ आगच्छ आत्ममन्त्रान् आकर्षय आकर्षय आत्ममन्त्रान् रक्ष रक्ष परमन्त्रान् हिन्द छिन्द मम समीहितं कुरु कुरु स्वाहा । प्रभाव संपत्ति का लाभ होता है। Getting the benefit of wealth. उन्निद्र हेम - नवपंकज पुंजकान्ती, पर्युल्लसन्नखमयूख-शिखाभिरामौ । पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र ! धत्तः पद्मानि तत्र विबुधाः परिकल्पयन्ति ॥ ३६ ॥ 36 - Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र - ३३ Bhaktamara Yantra 37 इत्थं यथा तव विभूतिरभूज्जिनेन्द्र! ने ही अहं णमो सम्बोसहिपत्ताणं। दा दीदी दादा जी नाहक कुतो ग्रहगणस्य विकाशिनोऽ पि? ॥३॥ अप्रतिचक्रे ही ठः ठः स्वाहा" # नमो भगवति अप्रतिचक्रे ऐं क्लीन्यूँ धर्मोपदेशनविधौ न तथा परस्य। दी BA 22 che lo posible ऋद्धि-ॐ ही अहं णमो सम्बोसहिपत्ताणं । मंत्र-ॐ नमो भगवति अप्रतियों की जूं ही मनोवाञ्छिसिद्धये नमो नमः अप्रतिचक्र ही टाटः स्वाना। प्रभाव-दुर्जन वशीभूत होते है और उनका मुंह बन्द हो जाता है। Controlling the evil people and silencing them. इत्थं यथा तव विभूतिरभूज्जिनेन्द्रः धर्मोपदेशनविधौ न तथा परस्य । यादृक् प्रभा दिनकृतः प्रहतान्धकाराः तादृक्-कुतो ग्रहगणस्य विकाशिनोऽपि । ३७ 37 Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र - ३४ Bhaktamara Yantra-38 श्योतन्मदाविलविलोलकपोलमूल न ही अहँ णमो मणबलीण।" भयं भवति नो भवदाश्रितानाम् ॥३४॥ . देवि शासनदेवते ही नमो नमः स्वाहा। दृष्ट्वा “नमो भगवति अष्टमहानाग कुलोच्चाटिनि मत्त भ्रमभ्रमरनादविवृद्धकोपम्। Ulgunnahinenu 202012 ऋद्धि केही अहं णमो मणवलीणं । मंत्र-ॐ नमो भगवति अष्टमहानाग कुलोच्चाटिनि कालदष्ट मृतकोन्यापिनि परमन्त्रप्रणाशिनि देवि शासनदेवते ही नमो नमः स्वाहा । प्रभाव-हाथी का मद उतरता है और समृद्धियाँ बढ़ती है। Becalming the rogue elephant and increasing the prosperity. थ्योतन्मदाविलविलोल-कपोलमूल मत्तभ्रमद्-भ्रमरनाद - विवृद्धकोपम् । ऐरावताभमिभमुद्धतमापतन्तं दृष्ट्वा भयं भवति नो भवदाश्रितानाम् ॥ ३८ 38 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र - ३५ Bhaktamara Yantra - 35 Ling भिन्नेभकुम्भगलदुज्ज्वलशोणिताक्त " ही अहं णमो वयणबलीण क्रौं को क्रौं क्रौं नमो भ स नाक्रामति क्रमयुगाचलसंश्रितं ते ॥३५॥ अतो नापरमंत्र निवेदनाय नमः स्वाहा क्रो क्रौं नमो एषु वृत्तेषु वक्ष्यमाणाः तत् तत् भीहर मुक्ताफलप्रकरभूषितभूमिभागः । की | Inthan bishalineesh ऋद्धि-ॐ ही अर्ह णमो वयणबलीणं । मंत्र ॐ नमो एषु वृत्तेषु वक्ष्यमाणाः तत् तत् भीहर वृतवर्णाः एच मन्त्राः पुनः पुनः स्मर्तव्या अतो नापरमंत्र निवेदनाय नमः स्वाहा । प्रभाव-सिंह का भय नही रहता है। Removing of fear of lion. भिन्नेभ - कुम्भ - गलदुज्जवल - शोणिताक्तः मुक्ताफल प्रकर - भूषित भूमिभागः । बद्धक्रमः क्रमगतं हरिणाधिपोऽपिः नाक्रामति क्रमयुगाचलसंश्रितं ते ॥ ३९ ॥ 39 Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र -३६ Bhaktamara Yantra-36 DIL कल्पान्तकालपवनोद्धतवहिलकल्पं "ने ही अहँ णमो कायबलीणं।" सौ सौ सौ सौ त्वन्नामकीर्तनजलं शमयत्यशेषम् ॥२५॥ कुरु कुरु स्वाहा सौ * सौर "नेही श्री क्लीं ह्रां ह्रीं दावानलं ज्वलितमुज्जवलमुत्फुलिङ्गम्। 19000000 Dit lihtlede philafout by furbo bokeb ऋद्धि-ॐही अर्ह णमो कायवलीणं । मंत्र-ॐ हीं थीं की हॉ ही अग्निमुपशमनं शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा । प्रभाव-अग्नि का संकट/भव दूर होता है। Removing fear and danger of fire. कल्पांतकाल - पवनोद्धत - वह्निकल्पंः दावानलं ज्वलितमुज्जवलमुत्स्फुलिंगम् । विश्वं जिघत्सुमिव सम्मुखमापतन्तंः त्वन्नामकीर्तनजलं शमयत्यशेषम् ॥ ४० ॥ 40 Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र ३७ स्त्वन्नामनागदमनी हृदि यस्य पुंसः ॥३७॥ मनोवाञ्छितं कुरु कुरु स्वाहा।” रक्तेक्षणं समदकोकिलकण्ठनीलं " ह्रीँ" अहँ णमो खीरासवीणं ” ही श्री आदिदेव हो" क्रैं Bhaktamara Yantra-37 333 क्रोधोद्धतं फणिनमुत्फणमापतन्तम् । नमो श्रीँ श्रीँश्रू श्रः जलदेवि कमले ऋद्धि-ॐ ह्रीं अहं णमो खीरासवीणं । मंत्र ॐ नमो श्री श्री श्रृं श्रः जलदेवि कमले पद्मदनिवासिनि पद्मोपरिस्थिते सिद्धि देहि मनोवांछितं कुरु कुरु स्वाहा। प्रभाव सर्प के जहर का भय उपस्थित होता नहीं है। Removing fear of snake-poison. रक्तेक्षणं समदकोकिल - कण्ठनीलं, क्रोधोद्धतं फणिनमुत्फणमापतन्तम् । आक्रामति क्रमयुगेन निरस्तशंकस्त्वन्नाम नागदमनी हृदि यस्य पुंसः ॥ ४१ ॥ 41 Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र ३८ त्वत्कीर्तनात् तम इवाशु भिदामुपैति ॥३८॥ गहण सकल सहदे ॐ नमः स्वाहा वल्गत्तुरङ्गगजगर्जित भीमनाद "ॐ ह्रीँ" अहँ णमो सप्पिसविणं। " वं वं वं वं ज "fo /. य ह्रीँ श्रीँ न मः 新 坐 II e e 上 乐 ब Bhaktamara Yantra-38 अ 4 al. नमो नमिऊण विषहर विष प्रणाशनरो माजी बलं बलवतामपि भूपतीनाम् । ऋद्धि- ॐ ह्रीँ अहं णमो सप्पिसविणं । मंत्र ॐ नमो नमिऊण विपहर विप प्रणाशन रोग शोकदीप ग्रह कप्पदुमव्य जायई सुहनाम गहण सकलसुहदे ॐ नमः स्वाहा । प्रभाव-युद्ध भय मिट जाता है। Removing fear of war. वल्गत्तुरंग गजगर्जित - भीमनादमाजौ बलं बलवतामपि भूपतिनाम् ! उद्यद्दिवाकर मयूख - शिखापविद्धं, त्वत्-कीर्तनात् तम इवाशु भिदामुपैति ॥ ४२ ॥ 42 Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र ३९ स्त्वत्पादपङ्कजवनाश्रयिणो लभन्ते ॥ ३९ ॥ नमः शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा।” कुन्ताग्रभिन्नगजशोणितवारिवाह “र्ने ह्रीँ” अहँ णमो महुरसवीणं। ” घूँ धूं घू Bhaktamara Yantra-39 EELE العمل Cat ॐ नमो चक्रेश्वरी देवी चक्रधारिणी जिन शासनसेवाकारिणी वेगावतारतरणातुरयोधभीमे । क्रैं ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहं णमी महुरसवीणं । मंत्र-ॐ नमो चक्रेश्वरी देवी चक्रधारिणी जिनशासनसेवाकारिणी क्षुद्रोपद्रवविनाशिनी धर्मशान्तिकारिणी नमः शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा | प्रभाव-युद्ध का भय मिटता है और शान्ति प्राप्त होती है। युद्ध में शस्त्र का मार लगता नहीं है, राज्य से धन लाभ होता है। Acquiring peace, removing fear of war and weapons and getting wealth from the State. Bes कुन्ताग्रभिन्नगज - शोणितवारिवाह वेगावतार - तरणातुरयोध - भीमे । युद्धे जयं विजितदुर्जयजेयपक्षास्त्वत्पाद पंकजवनाश्रयिणो लभन्ते ॥ ४३ ॥ 43 Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र -४० Bhaktamara Yantra-40 . अम्भोनिधौ क्षुभितभीषणनक्रचक्र न ही अर्ह णमोअमिआसवीणं।" हा AAI स्त्रासं विहाय भवतः स्मरणाद व्रजन्ति ॥४०॥ मनश्चिन्तितं कुरु कुरु स्वाहा।" JAAT गर्न नमो रावणाय बिभीषणाय कुम्भकरणाय पाठीनपीठ भयदोल्बणवाडवाग्नौ। bihteiheolah hphalisa -shelhhane ऋद्धि-ॐ ही अर्ह णमो अमिआसवीणं । अम्भौनिधौ क्षुभितभीषणनक्रचक्रपाठीन पीठभयदोल्बणवाडवाग्नौ रंगत्तरंग - शिखरस्थित - यानपात्रास्त्रासं विहाय भवतःस्मरणाद् व्रजन्ति ॥ ४४ । मंत्र-ॐ नमो रावणाय विभीषणाय कुम्भकरणाय लइकाधिपतये महावलपराक्रमाय मनश्चिन्तितं कुरु कुरु स्वाहा । प्रभाव-समुद्र का भय दूर होता है। Removing fear of sea. 44 Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र ४१ उद्भूतभीषणजलोदरभार भुग्नाः " ह्रीँ अर्हं णमो अक्खीणमहाणसाणं। ” द्धं द्धं द्धं द्धं भ ग क्र. मर्त्या भवन्ति मकरध्वजतुल्यरूपाः ॥४१॥ कुरु कुरु स्वाहा। tar h ho रा 996/. -15 ba 2 如 2 य न 11 22 Bhaktamara Yantra - 41 2 " नमो भगवति क्षुद्रोपद्रवशान्तिकारिणि शोच्यां दशामुपगताश्च्युत- जीविताशाः । ॠ ऋद्धि-ॐ ह्रीं अर्ह णमो अक्खीणमहाणसाणं । मंत्र ॐ नमो भगवति क्षुद्रोपद्रवशान्तिकारिणि रोगकष्ट ज्वरोपशमनं कुरु कुरु स्वाहा । प्रभाव सर्व रोग नष्ट होता है तथा उपसर्गों दूर होते हैं। Removing diseases and obstacles. उद्भूतभीषणजलोदर - भारभुग्नाः शोच्यां दशामुपगताश्च्युतजीविताशाः । त्वत्पादपंकज-रजोऽमृतदिग्धदेहा, मर्त्या भवन्ति मकरध्वजतुल्यरूपाः ॥ ४५ ॥ 45 Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र -४२ Bhaktamara Yantra - 42 आपादकण्ठमुरुशृङ्खलवेष्टिताङ्गा "न ही अहँ णमो सिध्धिदयाणं। - सद्यः स्वयं विगतबन्धभया भवन्ति ॥४२॥ क्षाँ क्षीर् क्षौ क्षः स्वाहा।” ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं AL ऐ ऐ ऐ ऐ ऐ ऐं " नमो हाँ ही हूँ ह्रौ हूँ: गाढं बृहन्निगडकोटिनिघृष्ठजंड्याः ।। श्री / श्रीं մ մ մ մ մ մ 2:2 Asheshish ऋद्धि-ॐ हीं अह" णमो सिद्धिदयाणं । मंत्र ॐ नमो हॉ ही हूँ ही हः ठः ठः जः जः ओं क्षीं ही मः स्वाहा । प्रभाव जेल से जल्दी मुक्ति मिलती हैं। Getting instant release from the prison. आपाद - कण्ठमुरूश्रृंखल - वेष्टितांगा, गाढं बृहन्निगउकोटिनिघृष्टजंघाः । त्वन्नाममंत्रमनिशं मनुजाः स्मरन्तः, सद्यः स्वयं विगत-बन्धभया भवन्ति ॥ ४६ ॥ 46 Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र - ४३ Bhaktamara Yantra-43 मत्तद्धिपेन्द्र-मृगराज-दवानला-हि " ही अर्ह' णमो वड्डमाणाण।" भयहर भयहर भयहर भयहर भयहर , हरा यस्तावकं स्तवमिमं मतिमानधीते ॥१३॥ भयहर भयहर भयहर भयहर भयहर भयहर भयहर भयहर भयहर भयहर भयहर |भ या भयहर भवहर भयहर भयहर "ने नमो ह्रां ह्री हूँ ह्रौं सङ्ग्राम-वारिधि-महोदर-बन्धनोत्थम्। Yahahahetabahia ... |1022 24 HD bahbheemahilal isunee ऋद्धि-ॐ हीं अहं णमो बहमाणाणं । मत्तद्विपेन्द्र - मृगराज - दवानलाहि संग्राम - वारिधि- महोदर-बन्धनोत्थम् । तस्याशु नाशमुपयाति भयं भियेव, यस्तावकं स्तवमिमं मतिमानधीते ॥४७ ॥ मंत्र-ॐ नमो हाँ ही हूँ ही हः यः क्षः श्रीं ह्रीं फट् स्वाहा । प्रभाव-शत्रु परास्त होता है और शस्त्रादि के घाव शरीर में नहीं हो पाते । Defeating the enemy and becoming invulnerable to weapons. 47 Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक्तामर यंत्र -44 Bhaktamara Yantra. 44 स्तोत्रस्रजं तव जिनेन्द्र! गुणैर्निवद्धां " ही अहे णमो सनसाहूगी " नमो भगवते / / coccuTDADDED तं मानतुङ्ग मवशा समुपैति लक्ष्मीः // 44 // अट्टारस सहस्स सीलंगरथधारिणं नमः स्वाहा।" . महति महावीर वडमाण बुद्धिरिसीण न ही ही है ही है: भक्त्या मया रुचिरवर्णविचित्रपुष्याम् / Indian.h | ESSPAPE VEDEKol जा माद्धि ही अहं णमो सब्बसाहणं / मंत्र- नमो भगवते महिने महावीर बहाण बुद्धिरिसीण ऊ हाँ हाँ हाँ हः असि बाउसा ऑझा ग्वाहा / ॐनमा वंभचारिण अद्वारम सहस्य मीनगाथधारिणं नमः स्वाहा / प्रभाव-समस्त मनोकामनाएँ सिद्ध होती है तथा मनश्चितित व्यक्ति वेश होता है। Fulfilling of desires and bringing under spell desired persons. स्तोत्रस्त्रजं तव जिनेन्द्र ! गुणैर्निबद्धां, भक्त्या मया विविधवर्णविचित्रपुष्पाम् / धत्ते जनो य इह कंठगतामजसं, तं मानतुंगमवशा समुपैति लक्ष्मीः // 48 // 48