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भक्तामर यंत्र ७
त्वत्संस्तवेन भवसन्ततिसन्निबद्धं
नोँ नोँ नोँ नोँ नोँ नोँ नोँ
" ह्रीं" अर्ह णमो बीअबुद्धीणं।”
सूर्यांशुभिन्नमिव शार्वरमन्धकारम् नोँ नोँ नोँ नोँ नोँ नोँ न निवारणं कुरु कुरु
Bhaktamara Yantra-7
(कम्प्यू
ह्रीं हंसीं श्रीं श्रीं क्रीं क्
नोँ नोँ नोँ नीँ नोँ नोँ :
पापं क्षणात् क्षयमुपैति शरीरभाजाम् ।
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ऋद्धि- ॐ ह्रीं अहं णमो वीअबुद्धीणं ।
मंत्र-ॐ ह्रीं हैं सीं श्रीं श्रीं क्रीं क्लीं सर्वदुरित सङ्कट क्षुद्रोपद्रव कष्टनिवारणं कुरु कुरु स्वाहा ।
प्रभाव सर्प कीलित हो जाता है, सारे पाप संकट, छोटे-मोटे उपद्रव दूर हो जाते हैं।
Spellbinding of audiences & removal of obstacles.
त्वत्संस्तवेन भवसंतति सन्निबद्धं पापं क्षणात् क्षयमुपैति शरीर भाजाम् । आक्रान्त - लोकमलिनीलमशेषमाशु सूर्यांशुभिन्नमिव शार्वरमन्धकारम् ॥ ७॥
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