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________________ भक्तामर यंत्र -44 Bhaktamara Yantra. 44 स्तोत्रस्रजं तव जिनेन्द्र! गुणैर्निवद्धां " ही अहे णमो सनसाहूगी " नमो भगवते / / coccuTDADDED तं मानतुङ्ग मवशा समुपैति लक्ष्मीः // 44 // अट्टारस सहस्स सीलंगरथधारिणं नमः स्वाहा।" . महति महावीर वडमाण बुद्धिरिसीण न ही ही है ही है: भक्त्या मया रुचिरवर्णविचित्रपुष्याम् / Indian.h | ESSPAPE VEDEKol जा माद्धि ही अहं णमो सब्बसाहणं / मंत्र- नमो भगवते महिने महावीर बहाण बुद्धिरिसीण ऊ हाँ हाँ हाँ हः असि बाउसा ऑझा ग्वाहा / ॐनमा वंभचारिण अद्वारम सहस्य मीनगाथधारिणं नमः स्वाहा / प्रभाव-समस्त मनोकामनाएँ सिद्ध होती है तथा मनश्चितित व्यक्ति वेश होता है। Fulfilling of desires and bringing under spell desired persons. स्तोत्रस्त्रजं तव जिनेन्द्र ! गुणैर्निबद्धां, भक्त्या मया विविधवर्णविचित्रपुष्पाम् / धत्ते जनो य इह कंठगतामजसं, तं मानतुंगमवशा समुपैति लक्ष्मीः // 48 // 48
SR No.151002
Book TitleBhaktamara Stotra Yantras
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages48
LanguageHindi, English
ClassificationPresentation, Presentation, A000, & A010
File Size21 MB
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