Book Title: Agam 33A Maransamahim Dasamam Painnayam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदसणस्स पू. आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरूभ्यो नमः मरणसमाहि-दसमं पइण्णयं URIMIS मुनि दीपरत्नसागर Date : | | 2012 Jain Aagam Online Series-33/1 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३/१ गंथाणुक्कमो कमंको विसय | गाहा अणुक्कमो पिट्ठको मरणविहि-आरंभ १-१० १-१० ११-८३ ११-८३ ८४-९२ ८४-९२ आराहणा व मरण सरूवं आयरिय गुणाई आलोयणा वण्णणं तव भेयाई नाणाईगुण वण्णणं अप्पणो सोहि ९३-१२६ ९३-१२६ १२७-१२८ १२७-१२८ १२९-१५७ १२९-१५७ १५८-१७४ संलेहणा १७५-२०७ १५८-१७४ १७५-२०७ २०८-२५७ आउरपच्चक्खाणाइ पंचमहव्वय-रक्खा २०८-२५७ २५८-२६६ | २५८-२६६ २६७-४११ २६७-४१२ आराहणा, उवएसआइ विविह-उदाहरणाई मरण भेयाई निरुवणं आराहणा अनुचिंतन ४१२-५२४ ४१३-५२५ ५२५-५५० ५२६-५५१ बारस-भावणाओ ५५१-५६८ ५५२-५६९ पंडितमरण-उवसंहार ५६९-६३८ ५७०-६३९ ६३९-६६३ ६४०-६६४ [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [1] [३३/१|मरणसमाहित Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालब्रह्मचारी श्री नेमिनाथाय नमः नमो नमो निम्मलदंसणस्स ॐ ह्रीं नमो पवयणस्स ३३/१ मरणसमाहि - दसमं पइण्णयं [१] तिहुयणसरीरिवंदं सप्पवयण-रयणमंगलं नमिठं । समणस्स उत्तमढे मरणविही-संगहं वुच्छं ।। [२] सुणह सुयसारनिहसं ससमय-परसमय-वायनिम्मायं । सीसो समणगुणड्ढं परिपुच्छइ वायगं कंची ।। [३] अभिजाइ-सत्त-विक्कम-सुय-सील-विमुत्ति-खंतिगुण-कलियं । आयार-विनय-मद्दव विज्जा-चरणागरमुदारं ।। [४] कित्तीगुण गब्भहरं जसखाणिं तव-निहिं सुय-समिद्धं । सीलगुण-नाण-दंसण-चरित्त रयणागरं धीरं ।। [५] तिविहं तिकरणसुद्धं मयरहियं दुविह ठाण पुनरतं । विनएण कमविसुद्धं चस्सिरं बारसावत्तं ।। [६] दुओणयं अहाजायं एयं काऊण तस्स किइकम्मं । भत्तीइ भरिय-हियओ हरिसवसुब्भिन्न रोमंचो ।। [७] उवएस-हेउकुसलं तं पवयण-रयण-सिरिघरं भणइ । इच्छामि जाणिउं जे मरणसमाहिं समासेणं ।। [८] अब्भुज्जयं विहारं इच्छं जिनदेसियं विउपसत्थं । नाउँ महापुरिस देसियं तु अब्भुज्जयं मरणं ।। [९] तुब्भत्थ सामि ! सुअजलहि-पारगा समणसंघनिज्जवया । तुब्भं खु पायमूले सामन्नं उज्जमिस्सामि ।। [१०] सो भरिय-महुरजलहर गंभीरसरो निसण्णओ भणइ । सुण दाणि धम्मवच्छल ! मरणसमाहिं समासेणं [११] सुण जह पच्छिमकाले पच्छिम तित्थयर देसियमुयारं । पच्छा निच्छियपत्थं उर्वति अब्भुज्जयं मरणं [१२] पव्वज्जाई सव्वं काऊणाऽऽलोयणं च सुविसुद्धं । दंसणनाणचरिते निस्सल्लो विहर चिरकालं ।। [१३] आउव्वेयसमत्ती तिगिच्छिए जह विसारओ विज्जो । रोगाऽऽयंका गहिओ सो निरुयं आठरं कुणइ ।। [१४] एवं पवयण-सुयसार-पारगो सो चरितसुद्धीए । पायच्छित्तविहिण्णू तं अनगारं विसोहेइ ।। [१५] भणइ य तिविहा भणिया सुविहिय ! आराहणा जिणिंदेहिं । सम्मत्तम्मि य पढमा नाणचरित्तेहिं दो अन्ने ।। = = [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [2] [३३/१|मरणसमाहित Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा १६ [१६] सद्दहगा पत्तियगा रोयगा जे य वीरवयणस्स । सम्मत्तमनुसरंता दंसण-आराहगा हुंति ।। [१७] संसारसमावण्णे य छव्विहे मुक्खमस्सिए चेव । एए दुविहे जीवे आणाए सद्दहे निच्चं || [१८] धम्माऽधम्मागासं च पोग्गले जीवमत्थिकायं च । आणाए सद्दहंता सम्मत्ताराहगा भणिया || [१९] अरहंत-सिद्ध-चेइय-गुरूसु सुयधम्म साहुवग्गे य । आयरिय उवज्झाए पव्वयणे सव्वसंघे य ।। [२०] एएसु भत्तिजुत्ता पूयंता अहरहं अनन्नमना । सम्मत्तमनुसरिता परित्त संसारिया हुंति ।। [२१] सुविहिय ! इमं पइण्णं असद्दहंतेहि नेगजीवेहिं । बालमरणाणि तीए मयाइ काले अनंताई || [२२] एगं पंडियमरणं मरिऊण पुणो बहूणि मरणाणि । न मरंति अप्पमत्ता चरित्तमाराहियं जेहिं || [२३] दुविहम्मि अहक्खाए सुसंवुडा पुव्वसंगओमुक्का । जे उ चयंति सरीरं पंडिय - मरणं मयं तेहिं ।। [२४] एयं पंडिय-मरणं जे धीरा उवगया उवाएणं । तस्स उवाए उ इमा परिकम्मविही उ जुंजीया || [२५] जे कंस - संख-ताडण - मारुय-जिय-गगन-पंकय-तरुणं । सरिकप्पा सुय-कप्पिय आहार-विहार - चिट्ठागा ।। [२६] निच्चं तिदंडविरया तिगुत्तिगुत्ता तिसल्ल निस्सल्ला । तिविहेण अप्पमत्ता जगजीव दयावरा समणा ।। [२७] पंचमहव्वयसुत्थिय संपुण्णचरित्त सीलसंजुत्ता । तह तह मया महेसी हवंति आराहगा समणा [२८] इक्कं अप्पाणं जाणिऊण काऊण अत्तहिययं च । तो नाण-दंसण-चरित्त तव सुठिया मुनी हुंति ॥ [२९] परिणाम जोगसुद्धा दोसु य दो दो निरासयं पत्ता । इहलोए परलोए जीविय मरणासए चेव || [३०] संसारबंधणाणि य रागद्दोसनियलाणि छित्तूणं । सम्मद्दंसण सुनिसिय सुतिक्ख धिइमंडलग्गेणं ।। [३१] दुप्पणिहिए य पिहिऊण तिन्नि तिहिं चेव गारव विमुक्का । कायं मनं च वायं मन वयसा कायसा चेव || [३२] तवपरसुणा य छित्तूण तिन्नि उजु-खंति - विहिय-निसिएण | दुग्गइमग्गा नरएण मनवयसाकायए दंडे ।। [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [3] || [३३ / १ | मरणसमाहि] Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-३३ [३३] तं नाऊण कसाए चउरो पंचहि य पंच हंतूणं । पंचासवे उदिण्णे पंचहि य महव्वय गणेहिं || [३४] छज्जीवनिकाए रक्खिऊण छलदोसवज्जिया जइणो । तिगलेसा-परिहीणा पच्छिम-लेसा-तिगजुआ य ।। [३५] एक्कग-दुग-तिग-चठ-पण सत्तट्ठग-नवदसग-ठाणेसु । असुहेसु विप्पहीणा सुभेसु सय संठिया जे उ ।। [३६] वेयण वेयावच्चे इरियट्ठए य संजमट्ठाए । तह पाणवतियाए छठं पुण धम्मचिंताए । [३७] छसु ठाणेसु इमेसु य अन्नयरे कारणे समुप्पन्ने । कडजोगी आहारं करंति जयणा निमित्तं तु ।। [३८] जोएसु किलायंता सरीर संकप्प चेह्रमचयंता । अविकप्पऽवज्जभीरू उवेंति अब्भुज्जयं मरणं ।। [३९] आयंके उवसग्गे तितिक्खया बंभचेर गुत्तीसु । पाणि-दया तव-हेडं सरीर-परिहार वोच्छेयो [४०] पडिमासु सीहनिक्कीलियासु घोरे अभिग्गहाईसु । छच्चिय अभिंतरए बज्झे य तवे समनुरत्ता ।। [४१] अविकलसीलाऽऽयारा पडिवन्ना जे उ उत्तमं अट्ठ | पुव्विल्लाण इमाण य भणिआ आराहणा चेव ।। [४२] जह पुव्वद्दयगमणो करणविहीणोऽवि सागरे पोओ तीरासन्नं पावइ रहिओऽवि अवल्लगाईहिं ।। [४३] तह सुकरणो महेसी तिकरण आराहओ धुवं होइ । अह लहइ उत्तमळं तं अइलाभत्तणं जाणं ।। [४४] एस समासो भणिओ परिणामवसेण सुविहियजनस्स | इत्तो जह करणिज्जं पंडियमरणं तहा सुणह ।। [४५] फासेहिंति चरितं सव्वं सुहसीलयं पयहिऊणं । घोरं परीसहचमु अहियासिंतो धिइबलेणं ।। [४६] सद्दे रुवे गंधे रसे य फासे य निग्घिण धिईए | सव्वेसु कसाएसु य निहंतु परमो सया होहि ।। [४७] चइऊण कसाए इंदिए य सव्वे य गारवे हंतुं । तो मलिय राग दोसो करेह आराहणासुद्धिं ।। [४८] दंसण-नाण-चरिते पव्वज्जाईसु जो अ अइयारो । तं सव्वं आलोएहि निरवसेसं पणिहियप्पा ।। [४९] जह कंटएण विद्धो सव्वंगे वेयणद्दिओ होइ । तह चेव उद्धियंमि उ निस्सल्लो निव्वुओ होइ ।। दीपरत्नसागर-संशोधितः [4] [३३/१|मरणसमाहित Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-५० [५०] एवमनुद्धियदोसो माइल्लो तेन दुक्खिओ होइ । सो चेव चत्तदोसो सुविसुद्धो निव्वुओ होइ ।। [५१] राग-द्दोसाभिहया ससल्ल-मरणं मरंति जे मूढा | ते दुक्ख-सल्ल-बहुला भमंति संसार-कंतारे ।। [१२] जे पुण तिगारवजढा निस्सल्ला दंसणे चरिते य । विहरंति मुक्कसंगा खवंति ते सव्व दुक्खाइं [५३] सुचिरमवि संकिलिलैं विहरितं झाण-संवर-विहीणं । नाणी संवर-जुत्तो जिणइ अहोरत्त मित्तेणं ।। [५४] जं निज्जरेइ कम्मं असंवुडो सुबणाऽवि कालेणं । तं संवुडो तिगुत्तो खवेइ ऊसासमितेणं ।। [५५] सुबहुस्सुया वि संता जे मूढा सील-संजम-गुणेहिं । न करंति भावसुद्धिं ते दुक्खनिभेलणा हुति [५६] जे पुण सुय-संपन्ना चरित्त-दोसेहिं नोवलिप्पंति । ते सुविसुद्ध-चरित्ता करंति दक्खक्खयं साह || [५७] पुव्वमकारियजोगो समाहिकामोऽवि मरणकालम्मि । न भवइ परीसहसहो विसयसुह-पराइओ जीवो ।। [५८] तं एवं जाणंतो महत्तरं लाहगं सुविहिए । दंसण-चरित्तसुद्धीइ निस्सल्लो विहर तं धीर [५९] एत्थ पून भावनाओ पंच इमा हंति संकिलिटठाओ । आराहिंत सुविहिया जा निच्चं वज्जणिज्जाओ ।। [६०] कंदप्पा देवकिब्बिस अभिओगा आसुरी य संमोहा । एयाओ संकिलिट्ठा असंकिलिट्ठा हवइ छट्ठा || [६१] कंदप्प कोकुयाइय दवसीलो निच्चहासणकहाओ । विम्हाविंतो उ परं कंदप्पं भावनं कुणइ ।। [६२] नाणस्स केवलीणं धम्मायरियस्स संघ-साहूणं । माई अवण्णवाई किब्बिसियं भावनं कुणइ ।। [६३] मंताभिओगं कोउग भूईकम्मं च जो जने कुणइ । साय-रस-इडिढहे अभिओगं भावनं कणड || [६४] अनुबद्धरोस वुग्गह संसत्त तहा निमित्तपडिसेवी एएहिं कारणेहिं आसुरियं भावनं कुणइ ।। [६५] उम्मग्गदेसणा नाण दूसणा मग्गविप्पनासो य । मोहेण मोहयंतंसि भावनं जाण सम्मोहं ।। [६६] एयाउ पंच वज्जिय इणमो छट्ठीइ विहर तं धीर पंच समिओ तिगुत्तो निस्संगो सव्व संगेहिं ।। [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [5] [३३/१|मरणसमाहित Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-६७ [६७] एयाए भावनाए विहर विसुद्धाइ दीहकालम | काऊ अंतसुद्धिं दंसण नाणे चरित्ते य ।। [६८] पंचविहं जे सुद्धिं पंचविह विवेग संजुयमकाउं । इह उवनमंति मरणं ते उ समाहिं न पाविति । [६९] पंचविहं जे सुद्धिं पत्ता निखिलेण निच्छियमईया | पंचविहं च विवेगं ते ह् समाहिं परं पत्ता || [७०] लहिऊणं संसारे सुदुल्लहं कह वि मानुसं जम्मं । न हंति मरणदुलहं जीवा धम्मं जिणक्खायं ॥ [७१] किच्छा हि पावियम्मि वि सामण्णे कम्मसत्तिओसन्ना । सीयंति सायदुलहा पंकोसन्नो जहा नागो || [७२] जह कागणीइ हेठं मणि रयणाणं तु हार कोडिं । तह सिद्ध-सुह-परुक्खा अबुहा सज्जंति कामेसु || [७३] चोरो रक्खसपहओ अत्थत्थी हणइ पंथियं मूढो । इय लिंगी सुहरक्खसपहओ विसयाउरो धम्मं ॥ [७४] तेसु वि अलद्धपसरा अवियण्हा दुक्खिया गयमईया | समुवेंति मरणकाले पगाम भय भेरवं नरयं ।। [७५] धम्मो न कओ साहू न जेमिओ न य नियंसियं सहं । इण्हिं परं परासु त्ति य नेव य पत्ताई सुक्खाई || [ ७६ ] साहूणं नोवकयं परलोयच्छेय संजमो न कओ । दुहओऽवि तओ विहलो अह जम्मे धम्मरुक्खाणं ।। [७७] दिक्खं मइलेमाणा मोहमहावत्त सागराभिहया । तस्स अपडिक्कमंता मरंति ते बालमरणाई || [७८] इय अवि मोहपत्ता मोहं मोत्तूण गुरुसगासम्म । आलोइय निस्सल्ला मरिठं आराहगा तेऽवि ।। किं [७९] एत्थ विसेसो भण्णइ छलणा अवि नाम हुज्ज जिनकप्पे । पुन इयरमुणीणं तेण विही देसिओ इणमो || [८०] अप्पविहीणा जाहे धीरा सुयसारझरियपरमत्था । ते आयरिय विदिन्नं उवेंति अब्भुज्जयं मरणं ॥ [८१] आलोयणाइ संलेहणाइ खमणाइ काल उस्सग्गे । ओगासे संथारे निसग्ग वेरग्ग मुक्खाए || [८२] झाणविसेसो लेसा सम्मत्तं पायगमणयं चेव । चउदसओ एस विही पढमो मरणंमि नायव्वो || [८३] विनओवयार मानस्स भंजणा पूयणा गुरुजनस्स । तित्थयराण य आणा सुयधम्माऽऽराहणाऽकिरिया ।। [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [6] [३३/१| मरणसमाहि] Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-८४ [८४] छत्तीसाठाणेसु य जे पवयणसार झरिय परमत्था । तेसिं पासे सोही पन्नता धीरपुरिसेहिं ।। [८५] वयछक्कं कायछक्कं बारसगं तह अकप्प गिहिभाणं । पलियंक गिहिनिसिज्जा ससोभ पलिमज्जणं सिणाणं ।। [८६] आयारवं च उवधारवं च ववहार विहिविहिन्नू य । उव्वीलगा य धीरा परुवणाए विहिण्णू य ।। [८७] तह य अवायविहिन्नू निज्जवगा जिनमयम्मि गहियत्था । अपरिस्साई य तहा विस्सास-रहस्स-निच्छिडडा ।। [८८] पढमं अट्ठारसगं अट्ठ य ठाणाणि एव भणियाणि । इत्तो दस ठाणाणि य जेसु उवट्ठावणा भणिया ।। [८९] अणवट्ठतिगं पारंचिगं च तिगमेय छहि गिहीभूया । जाणंति जे 3 एए सुयरयणकरंडगा सूरी ।। [९०] सम्मइंसणचत्तं जे य वियाणंति आगमविहिन्नू । जाणंति चरित्ताओ य निग्गयं अपरिसेसाओ || [९१] जो आरंभे वट्ट चिअत्तकिच्चो अननुतावी य । सोगो अ भवे दसमो जेसूवठावणा भणिया ।। [९२] एएसु विहिविहण्णू छत्तीसा ठाणएसु जे सूरी | ते पवयण-सुहकेऊ छत्तीसगुण ति नायव्वा ।। [९३] तेसिं मेरु-महोयहि-मेयणि-ससि-सूर-सरिस-कप्पाणं । पायमूले अ विसोही करणिज्जा सुविहिजनेनं ।। [९४] काइय-वाइय-मानसिय सेवनं दुप्पओग संभूयं । जो अइयारो कोई तं आलोए अगूहिंतो ।। [९५] अमुगंमि इओ काले अमुगत्थे अमुगगामभावेणं । जं जह निसेवियं खलु जेण य सव्वं तहाऽऽलोए ।। [९६] मिच्छा-दंसणसल्लं मायासल्लं नियाणसल्लं च | तं संखेवा दुविहं दव्वे भावे य बोद्धव्वं ।। [९७] तिविहं तु भावसल्लं दंसण-नाणे चरित्तजोगे य । सच्चित्तऽचित्तेऽवि य मीसए यावि दव्वंमि ।। [९८] सुहुमंपि भावसल्लं अनुद्धरित्ता जो कुणइ कालं । लज्जाए गारवेण य नहु सो आराहओ भणिओ ।। [९९] तिविहं पि भावसल्लं समुद्धरित्ता 3 जो कुणइ कालं । पव्वजाई सम्मं स होइ आराहओ मरणे ।। [१००] तम्हा सुत्तर-मूलं अविकूलमविदुयं अनुव्विग्गो । निम्मोहिय मणिगूढं सम्म आलोयए सव्वं ।। [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [7] [३३/१|मरणसमाहित Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा - १०१ [१०१] जह बालो जंपतो कज्जमकज्जं च उज्जुयं भइ । तं तह आलोएज्जा माया - मयविप्पमुक्को य ।। [१०२] कयपावोऽवि मनूसो आलोइय निंदिउं गुरुसगासे । होइ अइरेग लहुओ ओहरियभरो व्व भारवहो ।। [१०३] लज्जाए गारवेण य जे नाssलोयंति गुरुसगासम्म । घंतं पि सुयसमिद्धा न हु ते आराहगा हुंति ।। [१०४] जह सुकुसलोऽवि विज्जो अन्नस्स कहेइ अत्तणो वाहिं । तं तह आलोयव्वं सुठु वि ववहारकुसलेणं ।। [१०५] जं पुव्वं तं पुव्वं जहानुपुव्विं जहक्कमं सव्वं । आलोइज्ज सुविहिओ कमकालविहिं अभिदंतो || [१०६] अत्तं-परजोगेहि य एवं समुवट्ठिए पओगेहिं । अमुगेहि य अमुगेहि य अमुयगसंठाण करणेहि ।। [१०७] वण्णेहि य गंधेहि य सद्द-फरिस - रस- रुव-गंधेहिं । पडिसेवणा कया पज्जवेहिं कया जेहि य जहिं च ।। [१०८] जो जोगओ अपरिणामओ अ दंसण चरित्त - अइयारो । छट्ठाण बाहिरो वा छट्ठाण ब्भंतरो वा वि ।। [१०९] तं उज्जुभावपरिणउ रागं दोसं च पयणु काऊणं । तिविहेण उद्धरिज्जा गुरुपामूले अगूहिंतो || [११०] न वि तं सत्थं च विसं च दुप्पउत्तु व्व कुणइ वेयालो । जंतं व दुप्पउत्तं सप्पु व्व पमाइणो कुद्धो [१११] जं कुणइ भावसल्लं अनुद्धियं उत्तमट्ठ कालम्मि | दुल्लह-बोहीयत्तं अनंत संसारियत्तं च ।। [११२] तो उद्धरंति गारवरहिया मूलं पुनब्भवलयाणं । मिच्छादंसण- सल्लं माया - सल्लं नियाणं च ।। [११३] रागेण व दोसेण व भएण हासेण तह पमाएणं । रोगेणाssयंकेण व वत्तीइ पराभिओगेणं ।। [११४] गिहिविज्जापडिएण व सपक्ख परधम्म - ओवसग्गेणं । तिरियंजोणिगएण व दिव्व मनूसोवसग्गेणं ।। [११५] उवहीइ व नियडी व तह सावयपेल्लिएण व परेणं । अप्पाण भएण कयं परस्स छंदानुवत्तीए || [११६] सहसक्कारमनाभोगओ य जं पवयणाहिगारेणं । सन्निकरणे विसोही पुण्णागारो य पण्णत्तो ॥ [११७] उज्जुअमालोइत्ता इत्तो अकरणपरिणाम जोगपरिसुद्धो । सो पयणुइ पइकम्मं सुग्गइमग्गं अभिमुइ ।। [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [8] || [३३ / १ | मरणसमाहि] Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-११८ [११८] उवही-नियडिपइट्ठो सोहिं जो कुणइ सोगईकामो | माई पलिकंचंतो करेइ बुंटुछियं मुढो || [११९] आलोयणाए दोसे दस दोग्गइबंधणे परिहरंतो । तम्हा आलोएज्जा मायं मुत्तूण निस्सेसं ।। [१२०] जे मे जाणंति जिणा अवराहा जेसु जेसु ठाणेसु । ते तह आलोएमी उवट्ठिओ सव्वभावेणं ।। [१२१] एवं उवट्ठियस्स वि आलोएउं विसुद्धभावस्स | जं किंचि वि विस्सरियं सहसक्कारेण वा चुक्कं ।। [१२२] आराहओ तह वि सो गारव-परिकंचुणा-मयविहूणो । जिनदेसियस्स धीरो सद्दहगो मुत्तिमग्गस्स ।। [१२३] आकंपण अनुमानन जं दिळं बायरं च सुहुमं च । छन्नं सद्दाउलगं बहुजन अव्वत्त तस्सेवी ।। [१२४] आलोयणाइ दोसे दस दुग्गइवड्ढणा पमुत्तूणं । आलोइज्ज सुविहिओ गारवमायामयविहूणो ।। [१२५] तो परियागं च बलं आगम कालं च कालकरणं च । पुरिसं जीअं च तहा खित्तं पडिसेवणविहिं च ।। [१२६] जोग्गं पायच्छितं तस्स अ दाऊण बिंति आयरिया । दंसण-नाण-चरिते तवे य कुणमप्पमायति ।। [१२७] अनसनमूणोयरिया वित्तिच्छेओ रसस्स परिचाओ । कायस्स परिकिलेसो छट्ठो संलीनया चेव ।। [१२८] विनए वेयावच्चे पायच्छिते विवेग सज्झाए । अभिंतरं तवविहिं छठं झाणं वियाणाहि ।। [१२९] बारसविहम्मि वि तवे अभिंतरबाहिरे कुसलदिढे । नवि अत्थि नवि य होही सज्झाय समं तवोकम्मं ।। [१३०] जे पयणुभत्तपाना सुयहेऊ ते तवस्सिणो समए । जो अ तवो सुयहीणो बाहिरयो सो छुहाहारो ।। [१३१] छठ्ठट्ठमदसमदुवालसेहिं अबहुसुयस्स जा सोही । ततो बहुतरगुणिया हविज्ज जिमियस्स नाणिस्स ।। [१३२] कल्लं कल्लंपि वरं हारो परिमिओ अ पंतो अ | न य खमणो पारणए बहु बहुतरो बहुविहो होइ ।। [१३३] एगाहेण तवस्सी हविज्ज नत्थित्थ संसओ कोइ । एगाहेण सुयहरो न होई धंतंपि तूरमाणो ।। [१३४] सो नाम अनसनतवो जेण मनो मंगुलं न चिंतेइ । जेण न इंदियहानी जेण य जोगा न हायति ।। दीपरत्नसागर-संशोधितः [9] [३३/१|मरणसमाहित Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-१३५ ? || [१३५] जं अन्नाणी कम्मं खवेइ बहुआहिं वासकोडीहिं । तं नाणी तिहिं गत्तो खवेड ऊसासमित्तेणं ।। [१३६] नाणे आउत्ताणं नाणीणं नाणजोगजुत्ताणं । को निज्जरं तुलिज्जा चरणे य परक्कमंताणं [१३७] नाणेण वज्जणिज्जं वज्जिज्जइ किज्जई य करिणज्जं । नाणी जाणइ करणं कज्जमकज्जं च वज्जेउं ।। [१३८] नाणसहियं चरितं नाणं संपायगं गुणसयाणं । एस जिणाणं आणा नत्थि चरित्तं विना नाणं ।। [१३९] नाणं सुसिक्खियव्वं नरेण लदधूण दुल्लहं बोहिं । जो इच्छइ नाउं जे जीवस्स विसोहणामग्गं ।। [१४०] नाणेण सव्वभावा नज्जंती सव्वजीवलोयंमि | तम्हा नाणं कुसलेण सिक्खियव्वं पयत्तेणं ।। [१४१] न हु सक्का नासेठं नाणं अरहंतभासियं लोए । ते धन्ना ते पुरिसा नाणी य चरित्तजुत्ता य ।। [१४२] बंधं मुक्खं गइरागइं च जीवाण जीवलोयम्मि । जाणंति सुयसमिद्धा जिनसासन चेइयविहिण्णू ।। [१४३] भदं सुबहुसुयाणं सव्वपयत्थेसु पुच्छणिज्जाणं । नाणेण जोऽवयारे सिद्धिं पि गएर [१४४] किं इत्तो लट्ठयरं अच्छेरययं व सुंदरतरं वा चंदमिव सव्वलोगा बहुस्सुयमुहं पलोयंति ।। [१४५] चंदाउ नीइ जोण्हा बहुस्सुयमुहाओ नीइ जिनवयणं । जं सोऊण सुविहिया तरंति संसार कंतारं ।। [१४६] चउदसपुव्वधराणं ओहीनाणीण केवलीणं च । लोगुत्तम पुरिसाणं तेसिं नाणं अभिन्नाणं ।। [१४७] नाणेण विना करणं न होइ नाणंपि करणहीनं तु | नाणेण य करणेण य दोहि वि दुक्खक्खयं होइ ।। [१४८] दढमूलमहाणंमि वि वरमेगोऽवि य सुयसीलसंपन्नो । मा ह सुय-सीलविगला काहिसि मानं पवयणम्मि || [१४९] तम्हा सुयम्मि जोगो कायव्वो होइ अप्पमत्तेणं । जेणऽप्पाण परं पि य दुक्खसमुद्दाओ तारेइ ।। [१५०] परमत्थम्मि सुदिठे अविणठेसु तव-संजमगुणेसु । लब्भइ गई विसुद्धा सरीरसारे विणट्ठम्मि ।। [१५१] अविरहिया जस्स मई पंचहिं समिईहिं तिहि वि गुत्तीहिं । न य कुणइ राग-दोसे तस्स चरितं हवइ सुद्धं ।। ? | [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [10] [३३/१|मरणसमाहित Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा १५२ [१५२] उक्कोसचरित्तोऽविय परिवडई मिच्छभावणं कु । किं पुण सम्मद्दिट्ठी सरागधम्मंमि वट्टंतो [१५३] तम्हा धत्तह दोसु वि काउं जे उज्जमं पयत्तेणं । सम्मत्तम्मि चरित्ते करणम्मि य मा पमाह || [१५४] जाव य सुई न नासइ जाव य जोगा न ते पराहीना । सद्धा व जा न हायइ इंदियजोगा अपरिहीना || [१५५] जाव य खेम सुभिक्खं आयरिया जाव अत्थि निज्जवगा । इड्ढीगारवरहिया नाण-चरण- दंसणंमि रया ।। [१५६] ताव खमं काउं जे सरीरनिक्खेवणं विउपसत्थं । समयपडागाहरणं सुविहियइट्ठं नियमजुत्तं ।। [१५७] हंदि अनिच्चा सद्धा सुई य जोगा य इंदियाइं च । तम्हा एयं नाउं विहरह तवसंजमुज्जुत्ता ।। [१५८] ता एयं नाऊणं ओवायं नाण- दंसण-चरिते । धीरपुरिसाणुचिन्नं करिंति सोहिं सुयसमिद्धा || [१५९] अब्भिंतरबाहिरियं अह ते काऊण अप्पणो सोहिं । तिविहेण तिविहकरणे तिविहे काले वियडभावा ।। [१६०] परिणामजोगसुद्धा उवहिविवेगं च गणविसग्गे य । अज्जाइयउवस्सयवज्जणं च विगईविवेगं च ।। [१६१] उग्गम-उप्पायण - एसणाविसुद्धिं च परिहरणसुद्धिं । सन्निहि-संनिचयंमि य तव वेयावच्चकरणे य ।। [१६२] एवं करंतु सोहिं नवसारय-सलिल नहयलसभावा । कम-काल- दव्व-पज्जव - अत्त पर जोग-करणे य ।। [१६३] तो ते कयसोहीया पच्छित्ते फासिए जहाथामं । पुप्फावकिन्नयम्मि य तवम्मि जुत्ता महासत्ता ।। [१६४] तो इंदियपरिकम्मं करिंति विसयसुहनिग्गहसमत्था । जयणाइ अप्पमत्ता रागद्दोसे पयणुयंता ।। [१६५] पुव्वमकारियजोगा समाहिकामा वि मरणकालम | न भवंति परीसहसहा विसयसुहपमोइया अप्पा || [१६६] इंदियसुह-साउलओ घोरपरीसह पराइय-परज्झो । अकयपरिकम्म कीवो मुज्झइ आराहणाकाले ।। [१६७] बाहंति इंदियाइं पुव्विं दुन्नियमियप्पयाराई । अकय-परिकम्म कीवं मरणे सुअसंपत्तं पि ॥ [१६८] आगममयप्पभाविय इंदियसुहलोलुयापइट्ठस्स । जइ वि मरणे समाही हुज्ज न सा होइ बहुयाणं ।। [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [11] ? ।। [३३/१| मरणसमाहि] Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा - १६९ [१६९] असमत्तसुओऽवि मुनी पुव्विं सुकय-परिकम्म-परिहत्थो । संजम-नियम-पइन्नं सुहुमत्तहिओ समण्णेइ ।। [१७०] न चयंति किंचि काउं पुव्विं सुकयपरिकम्मजोगस्स । खोहं परीसहचमू धिईबलपराइया मरणे ।। [१७१] तो तेऽवि पुव्वचरणा जयणाए जोगसंगह विहीहिं । तो ते करिंति दंसण चरित्तसइ भावनाहेउं ।। [१७२] जा पुव्वभाविया किर होइ सुई चरणदंसणे बहुहा । सा होइ बीयभूया कयपरिकम्मस्स मरणम्मि || [१७३] तं फासेहि चरितं तुमंपि सुहसीलयं पमुत्तूणं । सव्वं परीसहचमूं अहियासतो धिइबलेणं । [१७४] सद्दे रूवे गंधे रसे य फासे य सुविहिय सव्वेसु कसासु य निग्गहपरमो सया होहि ।। [१७५] सव्वे रसे पणीए निज्जूहेऊण पंतलुक्खेहिं । अन्नयरेणुवहाणेण संलिहे अप्पगं कमसो ।। [१७६] संलेहणा य दुविहा अब्भिंतरिया य बाहिरा चेव । अब्भितरिया कसा बाहिरिया होड़ य सरीरे ।। [१७७] उग्गम उप्पायण एसणाविसुद्धेण अन्नपानेणं । मिय-विरस-लुक्ख-लूहेण दुब्बलं कुणसु अप्पागं ।। [१७८] उल्लीणोल्लीणेहि य अहवन एगंतवद्धमानेहिं । संलिह सरीरमेयं आहारविहिं पयणुयंतो ।। [१७९] तत्तो अनुपुव्वेणाहारं उवहिं सुओवएसेणं । विविहतवोकम्मेहि य इंदियविक्कीलियाईहिं ।। [१८०] तिविहाहिं एसणाहि य विविहेहि अभिग्गहेहिं उग्गेहिं । संजममविराहिंतो जहाबलं संलिह सरीरं ।। [१८१] विविहाहि व पडिमाहि य बल वीरिय जई य संपहोइ सुहं । ताओ विन बाहिंती जहक्कमं संलिहंतम्मि || [१८२] छम्मासिया जहन्ना उक्कोसा बारसेव वरिसाइं । आयंबिलं महेसी तत्थ य उक्कोसयं बिंति ।। ! नेहिं । [१८३] छठ्ठट्ठमदसमदुवालसेहिं भत्तेहिं चित्तकट्ठेहिं । मिलहुकं आहारं करेहि आयंबिलं विहिणा ।। [१८४] परिवड्ढिओवहाणो ण्हारू विराविय वियड पांसुलि कडीओ । संलिहियतनुसरीरो अज्झप्परओ मुनी निच्चं || [१८५] एवं सरीर-संलेहणाविहिं बहुविहं पि फासिंतो । अज्झवसाणविसुद्धिं खणंपि तो मा पमाइत्था ।। [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [12] [३३/१| मरणसमाहि] Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा १८६ [१८६] अज्झवसाणविसुद्धी विवज्जिया जे तवं विगिट्ठमवि । कुव्वंति बाललेसा न होइ सा केवला सुद्धी । [१८७] एयं सरागसंलेहणा - विहिं जइ जई समायरइ । अज्झप्पसंजुयमई सो पावइ केवलं सुद्धिं ।। [१८८] निखिला फासेयव्वा सरीरसंलेहणाविही एसा । एत्तो कसायजोगा अज्झप्पविहिं परमं वुच्छं ।। [१८९] कोहं खमाइ मानं मद्दवया अज्जवेण मायं च । संतोसेण व लोहं निज्जिण चत्तारि वि कसाए । [१९०] कोहस्स व मानस्स व माया-लोभेसु वा न एएसिं । वच्चई वसं खणंपि हु दुग्गगईवड्ढणकराणं ।। [१९१] एवं तु कसायग्गिं संतोसेणं तु विज्झवेयव्वो । राग-द्दोसपवत्तिं वज्जेमाणस्स विज्झाइ || [१९२] जावंति केइ ठाणा उदीरगा हुंति हु कसायाणं । सावज्जं विमुत्तसंगो मुनी विहरे ।। [१९३] संतोवसंत-धिइमं परीसहविहिं व समहियासंतो । निस्संगयाइ सुविहिय ! संलिह मोहे कसाए य ।। [१९४] इट्ठाऽनिट्ठेसु सया सद्द-फरिस - रस- रुव-गंधेहिं । सुहदुक्खनिव्विसेसो जियसंगपरीसहो विहरे ।। [१९५] समिईसु पंचसमिओ जिणाहि तं पंच इंदिए सुठु । तिहिं गारवेहिं रहिओ होइ तिगुत्तो य दंडेहिं ।। [१९६] सन्नासु आसवेसु अ अट्टे रुद्दे अ तं विसुद्धप्पा | राग-द्दोस-पवंचे निज्जिणिरं सव्वणोज्जुत्तो || ? कस्स य सुक्खेहिं विम्हओ हुज्जा [१९७] को दुक्ख पाविजा को वा न लभिज्ज मुक्खं ? राग-द्दोसा जइ न हुज्जा ।। [१९८] नवि तं कुणइ अमित्तो सुठु विय विराहिओ समत्थो वि । जं दो वि अनिग्गहिया करेंति रागो य दोसो य ।। [१९९] तं मुयह राग-दोसे सेयं चिंतेह अप्पणो निच्चं । जं तेहिं इच्छह गुणं तं बुक्कह बहुतरं पच्छा ।। [२००] इहलोए आयासं अयसं च करेंति गुणविनासं च । पसवंति य परलोए सारीर - मनोगए दुक्खे | [२०१] धिद्धी अहो अकज्जं जं जाणंतोऽवि राग-दोसेहिं । फलमउलं कडुयरसं तं चेव निसेवए जीवो || [२०२] तं जइ इच्छसि गंतुं तीरं भवसायरस्स घोरस्स । तो तव-संजमभंडं सुविहिय [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [13] ! गिण्हाहि तूरंतो ।। ?I [३३ / १ | मरणसमाहि] Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा - २०३ [२०३] बहुभयकर-दोसाणं सम्मत्त चरित्तगुण- विनासणं । न हु वसमागंतव्वं रागद्दोसाण पावाणं ।। [२०४] जं न लहइ सम्मत्तं लद्धूण वि जं न एड् वेरग्गं । विसयसुहेसु य रज्जइ सो दोसो राग-दोसाणं ।। [२०५] भवसयसहस्स- दुलहे जाइ - जरा - मरणसागरुत्तारे । जिनवयणम्मि गुणागर ! खणमवि मा काहिसि पमायं ।। [२०६] दव्वेहिं पज्जवेहि य ममत्तसंगेहिं सुठु वि जियप्पा । निप्पणय-पेमरागो जइ सम्मं नेइ मुक्खत्थं ।। [२०७] एवं कयसंलेहं अब्भिंतर बाहिरम्मि संलेहे । संसारमुक्खबुद्धी अनियाणो दानि विहराहि ।। [२०८] एवं कहिय समाही तहविह संवेगकरण- गंभीरो । आउर-पच्चक्खाणं पुनरवि सीहावलोएणं ।। [२०९] न हु सा पुनरुत्तविही जा संवेगं करेइ भण्णंती । आउर-पच्चक्खाणे तेण कहा जोइया भुज्जो || [२१०] एस करेमि पणामं तित्थयराणं अनुत्तरगईणं । सव्वेसिं च जिणाणं सिद्धाणं संजयाणं च ।। [२११] जं किंचि वि दुच्चरियं तमहं निंदामि सव्वभावेणं । सामाइयं च तिविहं तिविहेण करेमऽणागारं || [२१२] अब्भिंतरं च तह बाहिरं च उवहीं सरीरं साहारं । मन वयण काय तिकरण - सुद्धोऽहं मित्ति पकरेमि || [२१३] बंधपओसं हरिसं रइमरइं दीनयं भयं सोगं । राग-द्दोस विसायं उस्सुगभावं च पयहामि ।। [२१४] रागेण व दोसेण व अहवा अकयन्नुया पडिनिवेसेणं । जो मे किंचि विभणिओ तमहं तिविहेण खामेमि || [२१५] सव्वेसु य दव्वेसु य उवट्ठिओ एस निम्ममत्ताए । आलंबनं च आया दंसण नाणे चरित्ते य ।। [२१६] आया पच्चक्खाणे आया मे संजमे तवे जोगो । जिनवयणविहिविलग्गो अवसेसविहिं तु दंसेहि ।। [२१७] मूलगुण उत्तरगुणा जे मे नाराहिया पमाएणं । ते सव्वे निंदामि पडिक्कमे आगमिस्साणं || [२१८] एगो सयंकडाई आया मे नाण- दंसणवलक्खो । संजोगलक्खणा खलु सेसा मे बाहिरा भावा ।। [२१९] पत्ताणि दुहसयाई संजोगस्साणुएण जीवेणं । तम्हा अनंतदुक्खं चयामि संजोग - संबंधं ।। [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [14] [३३ / १ | मरणसमाहि] Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा - २२० [२२०] अस्संजममन्नाणं मिच्छत्तं सव्वओ ममत्तं च । वे अजीवेय तं नंदे तं च गरिहामि ।। [२२१] परिजाणे मिच्छतं सव्वं अस्संजमं अकिरियं च । सव्वं चेव ममत्तं चयामि सव्वं च खामेमि || [२२२] जे मे जाणंति जिणा अवराहा जेसु जेसु ठाणेसु । ते तह आलोएमि उवट्ठिओ सव्वभावेणं ।। [२२३] उप्पन्ना उप्पन्ना माया अणुमग्गओ निहंतव्वा । आलोयण निंदण गरिहणाहिं न पुणोत्ति य बिइयं ।। [२२४] जह बालो जंपतो कज्जमकज्जं च उज्जुयं भणइ । तं तह आलोयव्वं मायं मुतूण निस्सेसं || [२२५] सुबहुंपि भावसल्लं आलोएऊण गुरुसगासम्म । निस्सल्लो संथारं उवेइ आराहओ होइ ।। [२२६] अप्पंपि भावसल्लं जे नालोयंति गुरुसगासम्म । धंतंपि सुसमिद्धा न हु ते आराहगा हुंति ।। [२२७] न वि तं विसं च सत्थं च दुप्पउत्तो व कुणइ वेयालो । जंतं व दुप्पउत्तं सप्पो व पमायओ कुविओ ।। [२२८] जं कुणइ भावसल्लं अनुद्धियं उत्तमट्ठकालम्मि । दुल्लह बोहीयत्तं अनंत संसारियत्तं च ।। [२२९] तो उद्धरंति गारव - रहिया मूलं पुनब्भवलयाणं । मिच्छादंसण सल्लं माया सल्लं नियाणं च ।। [२३०] कयपावोऽवि मणूसो आलोइय निंदिउं गुरुसगासे होइ अइरेग लहुओ ओहरिय भरुव्व भारवहो ।। [२३१] तस्स य पायच्छितं जं मग्गविऊ गुरू उवइति । तं तह अनुरियव्वं अनवत्थपसंगभीएणं ।। [२३२] दसदोसविप्पमुक्कं तम्हा सव्वं अमग्गमाणेणं । जं किंचि कयमकज्जं आलोए तं जहावत्तं ॥ [२३३] सव्वं पाणारंभं पच्चक्खामित्ति अलिय वयणं च । सव्वं अदिन्नदाणं अब्बंभ परिग्गहं चेव || [२३४] सव्वं च असनपानं चउव्विहं जा य बाहिरा उवही ।। अब्भिंतरं च वहिं जावज्जीवं तु वोसिरामि || [२३५] कंतारे दुब्भिक्खे आयंके वा महया समुप्पन्ने । जं पालियं न भग्गं तं जाणसु पालनासुद्धं ॥ [२३६] रागेण व दोसेण व परिणामेण व न दूसियं जं तु | तं खलु पच्चक्खाणं भावविसुद्धं मुणेयव्वं ॥ [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [15] ! [३३/१| मरणसमाहि] Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा - २३७ [२३७] पीयं थणयच्छीरं सागरसलिलाउ बहुयरं हुज्जा । संसारे संसरतो माऊणं अन्नमन्नाणं || [२३८] नत्थि किर सो पएसो लोए वालग्गकोडिमेत्तोऽवि । संसारे संसरतो जत्थ न जाओ मओ वाऽवि ।। [२३९] चुलसीई किर लोए जोणीणं पमुह सयसहस्साइं । इक्किक्कंमि य इत्तो अनंतखुत्तों समुप्पन्नो || [२४०] उड्ढमहे तिरियम्मि य मयाणि बालमरणाणिऽनंताणि । तो तानि संभरतो पंडिय-मरणं मरीहामि || [२४१] माया मित्ति पिया मे भाया भज्जत्ति पुत्त धूया य । एयाणि चिंतयंतो पंडिय मरणं मरीहामि || [२४२] मायापिइबंधूहिं संसारत्थेहिं पूरिओ लोगो । बहुजोणिनिवासीहिं न य ते ताणं च सरणं च ।। [२४३] इक्को जायइ मरइ इक्को अनुहवइ य दुक्कयविवागं । इक्को अनुसरइ जीओ जरमरण चउग्गईगुविलं ।। [२४४] उव्वेयणयं जम्मण मरणं नरएसु वेयणाओ अ । याणि संभरंतो पंडिय मरणं मरीहामि || [२४५] इक्कं पंडियमरणं छिंदइ जाईसयाणि बहुयाणि । तं मरणं मरियव्वं जेण मओ सुम्मओ होइ ।। [२४६] कइया णु तं सुमरणं पंडियमरणं जिनेहिं पन्नत्तं । सुद्धो उद्धियसल्लो पाओवगमं मरीहामि ।। [२४७] संसारचक्कवाले सव्वेऽवि य पुग्गला मए बहुसो । आहारिया य परिणामिया य न य तेसु तित्तोऽहं ॥ [२४८] आहारनिमित्तेणं मच्छा वच्चंतिऽनुत्तरं नरयं । सच्चित्ताहारविहिं तेण उ मनसाऽवि निच्छामि ।। [२४९] तणकट्ठेण व अग्गी लवणसमुद्दो व नइसहस्सेहिं । न इमो जीवो सक्को तिप्पेठं कामभोगेहिं ।। [२५०] लवणयमुहसामाणो दुप्पूरो धनरओ अपरिमिज्जो | नहु सक्को तिप्पेठं जीवो संसारियसुहेहिं ।। [२५१] कप्पतरुसंभवेसु य देवुत्तरकुरुवंसपसूएसुं । परिभोगेण न तित्तो न य नरविज्जाहरसुरेसुं । [२५२] देविंदचक्कवट्टित्तणाई रज्जाई उत्तम भोगा । पत्ता अनंतखुतो न यऽहं तित्तिं गओ तेहिं । [२५३] पयखीरुच्छुरसेसु य साऊसु महोदहीसु बहुसो वि । उववन्नो न य तण्हा छिन्ना ते सीयलजलेहिं || [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [16] [३३/१| मरणसमाहि] Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-२५४ [२५४] तिविहेण वि सुहमठलं जम्हा काम-रइ-विसयसुक्खाणं । बहुसोऽवि समनुभूयं न य तुह तण्हा परिच्छिन्ना ।। [२५५] जा काइ पत्थणाओ कया मए राग-दोसवसएणं । पडिबंधेणं बहुविहा तं निंदे तं च गरिहामि ।। [२५६] हंतूण मोहजालं छित्तूण य अट्ठकम्मसंकलियं । जम्मणमरण रहट्ट भित्तूण भवा णु मुच्चिहिसि ।। [२५७] पंच य महव्वयाई तिविहं तिविहेण आरुहेठणं । मनवयणकायगुत्तो सज्जो मरणं पडिच्छिज्जा ।। [२५८] कोहं मानं मायं लोहं पिज्जं तहेव दोसं च । चइऊण अप्पमत्तो रक्खामि महव्वए पंच ।। [२५९] कलहं अब्भक्खाणं पेसुन्नं पि य परस्स परिवायं । परिवज्जिंतो गुत्तो रक्खामि महव्वए पंच ।। [२६०] किण्हा नीला काठ लेसं झाणाणि अप्पसत्थाणि । परिवज्जिंतो गुत्तो रक्खामि महव्वए पंच ।। [२६१] तेऊ पम्हं सुक्कं लेसा झाणाणि सुप्पसत्थाणि । उवसंपन्नो जूतो रक्खामि महव्वए पंच ।। [२६२] पंचिंदिय संवरणं पंचेव निरंभिऊण कामगुणे । अच्चासायण विरओ रक्खामि महव्वए पंच ।। [२६३] सत्तभयविप्पमुक्को चत्तारि निरंभिऊण य कसाए | अट्ठमयट्ठाणजड्ढो रक्खामि महव्वए पंच ।। [२६४] मनसा मनसच्चविऊ वायासच्चेण करणसच्चेण | तिविहेण अप्पमत्तो रक्खामि महव्वए पंच ।। [२६५] एवं तिदंडविरओ तिकरणसुद्धो तिसल्लनिस्सल्लो । तिविहेण अप्पमत्तो रक्खामि महव्वए पंच ।। [२६६] सम्मत्तं समिईओ गुत्तीओ भावनाओ नाणं च । उवसंपन्नो जुत्तो रक्खामि महव्वए पंच ।। [२६७] संगं परिजाणामि सल्लंपि य उद्धरामि तिविहेणं । गुत्तीओ समिईओ मज्झं ताणं च सरणं च ।। [२६८] जह खुहियचक्कवाले पोयं रयणभरियं समुद्दम्मि | निज्जामया धरिती कयकरणा बुद्धिसंपन्ना ।। [२६९] तवपोयं गुणभरियं परीसहुम्मीहि धणियमाइद्धं । तह आराहिंति विऊ उवएसऽवलंबगा धीरा ।। [२७०] जइ ताव ते सुपुरिसा आयारोवियभरा निरवयक्खा | गिरिकुहर-कंदरगया साहंति य अप्पणो अटुं ।। [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [17] [३३/१|मरणसमाहित Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा - २७१ [२७१] जइ ताव सावयाकुलगिरिकंदर विसम दुग्ग मग्गेसु । धिइधणियबद्धकच्छा साहंति य उत्तमं अट्ठ ।। [२७२] किं पुन अनगारसहायगेण वेरग्ग-संगह-बलेणं । परलोएण न सक्का संसार महोदहिं तरिउं [२७३] जिनवयणमप्पमेयं महुरं कन्नामयं सुणंताणं । सक्का हु साहुमज्झा साहेउं अप्पणो अट्ठ ।। [२७४] धीरपुरिस पन्नत्तं सप्पुरिस निसेवियं परमघोरं । धन्ना सिलातलगया साहिंती अप्पणो अठ्ठे ।। [२७५] बाहेइ इंदियाइं पुव्वमकारिय पइट्ठचारिस्स । अकयपरिकम्म कीवं मरणेसु अ संपत्तंमि || [२७६] पुव्वमकारियजोगो समाहिकामो वि मरणकालम्मि | न भवइ परीसहसहो विसयसुह पराइओ जीवो || [२७७] पुव्विं कारियजोगो समाहिकामो य मरणकालम् । होइ उ परीसहसहो विसयसुह निवारिओ जीवो || [२७८] पुव्विं कारियजोगो अनियाणो ईहिऊण सुहभावो । ताहे मलियकसाओ सज्जो मरणं पडिच्छिज्जा ।। [२७९] पावाणं पावाणं कम्माणं अप्पणो सम्माणं । सक्का पलाइ जे तवेण सम्मं पठत्तेणं ।। [२८०] इक्कं पंडियमरणं पडिवज्जइ सुपुरिसो असंभंतो । खिप्पं सो मरणाणं काहिइ अंतं अनंताणं ।। [ २८१] कि तं पंडियमरणं ? कानि व आलंबणाणि भणियामि एयाइं नाऊणं किं आयरिया पसंसंति [२८२] अनसन पाठवगमनं आलंबन झाण भावनाओ य । एयाइं नाऊणं पंडिय मरणं पसंसंति ।। [२८३] इंदियसुहसाउलओ घोरपरीसह पराइय परज्झो । अकयपरिकम्म कीवो मुज्झइ आराहणाकाले ।। [२८४] लज्जाइ गारवेणं बहुस्सुयमएण वा वि दुच्चरियं । जेन कहिंति गुरूणं न हु ते आराहगा हुंति ।। [२८५] सुज्झइ दुक्करकारी जाणइ मग्गंति पाव कित्तिं । विनिगूहिंतो निंदं तम्हा आलोयणा सेया ।। [ २८६] अग्गिम्मि य उदयम्मि य पाणेसु य पाणबीयहरिएसुं । होइ मओ संथारो पडिवज्जइ जइ असंभंतो || [२८७] नवि कारणं तणमओ संथारो नवि य फासुया मूमी । अप्पा खलु संथारो होइ विसुद्धो मरंतस्स ।। [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [18] ? ।। ? ।। ? | [३३ / १ | मरणसमाहि] Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-२८८ [२८८] जिनवयणमनुगया मे होठ मई झाणजोगमल्लीणा | जह तम्मि देसकाले अमूढसन्नो चए देहं ।। [२८९] जाहे होइ पमत्तो जिनवयण रहिओ अणायत्तो । ताहे इंदियचोरा करेंति तव संजम विलोमं ।। [२९०] जिनवयणमनुगयमई जं वेलं होइ संवर पविट्ठो । अग्गी य वायसहिओ समूलडालं डहइ कम्मं ।। [२९१] जह डहइ वायसहिओ अग्गी हरिए वि रुक्खसंघाए । तह परिसकार सहिओ नाणी कम्मं खयं नेइ ।। [२९२] जह अग्गिंमि व पबले खडपुलियं खिप्पमेव झामेइ । तह नाणी वि सकम्म खवेइ ऊसासमित्तेणं ।। [२९३] न हु मरणम्मि उवग्गे सक्को बारसविहो सुयक्खंधो । सव्वो अनुचिंते धंतं पि समत्थ चित्तेणं ।। [२९४] इक्कम्मि वि जंमि पए संवेगं कुणइ वीयरागमए । वच्चइ नरो अविग्धं तं मरणं तेण मरितव्वं ।। [२९५] इक्कंमि वि जंमि पए संवेगं कुणइ वीयरागमए | सो तेण मोहजालं छिंदइ अज्झप्पओगेणं ।। [२९६] जेण विरागो जायइ तं तं सव्वायरेण करणिज्जं । मुच्चइ हु ससंवेगी अनंतओ होइ संवेगी ।। [२९७] धम्म जिनपन्नत्तं सम्मत्तमिणं सद्दहामि तिविहेणं । तसबायर भूयहियं पंथं निव्वाणमग्गस्स ।। [२९८] समणोऽहंति अ पढमं बीयं सव्वत्थ संजओमित्ति । सव्वं च वोसिरामी जिणेहिं जं जं पडिक्कुठं ।। [२९९] मनसाऽवि अचिंतणिज्जं सव्वं भासाइ भासणिज्जं च । काएण य अकरणिज्जं वोसिरि तिविहेण सावज्जं ।। [३००] अस्संजमवोसिरणं उवहि विवेगो तहा उवसमो अ | पडिरूवजोग विरिओ खंतो मुत्तो विवेगो अ || [३०१] एयं पच्चक्खाणं आठरजन आवईसु भावेणं । अन्नतरं पडिवन्नो जंपतो पावइ समाहिं ।। [३०२] मम मंगलमरिहंता सिद्धा साहू सुयं च धम्मो य । तेसिं सरणोवगओ सावज्जं वोसिरामित्ति ।। [३०३] सिद्ध उवसंपन्नो अरिहंते केवली य भावेण ।। इत्तो एगतरेण वि पएण आराहओ होइ ।। [३०४] समुइन्नवेयणो पुण समणो हिययम्मि किं निवेसिज्जा __ आलंबणं च काइं काऊण मुनी दुहं सहइ ? | ? || [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [19] [३३/१|मरणसमाहित Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-३०५ [३०५] नरएसु अनुत्तरेसु अ अनुत्तरा वेयणाओ पत्ताओ । वट्टतेण पमाए ताओ वि अनंतसो पत्ता ।। [३०६] एयं सयं कयं मे रिणं व कम्मं पुरा असायं तु । तमहं एस धुणामी मणम्मि सत्तं निवेसिज्जा ।। [३०७] नानाविहदुक्खेहि य समुइन्नेहि उ सम्म सहणिज्जं । न य जीवो उ अजीवो कयपुव्वो वेयणाईहिं ।। [३०८] अब्भुज्जयं विहारं इत्थं जिनदेसियं विउपसत्थं । नाउं महापुरिससेवियं जं अब्भुज्जयं मरणं ।। [३०९] जह पच्छिमम्मि काले पच्छिमतित्थयरदेसियमुयारं । पच्छा निच्छयपत्थं उवेइ अब्भुज्जयं मरणं ।। [३१०] छत्तीस मट्टियाहि य कडजोगी जोगसंगहबलेणं । उज्जमिऊणं बारस-विहेण तव-नियमठाणेणं ।। [३११] संसार-रंगमज्झे धिइ-बल-सन्नद्ध-बद्ध-कच्छाओ । हंतूण मोहमल्लं हराहि आराहण पडागं ।। [३१२ पोराणयं च कम्म खवेइ अन्नन्नबंधणायायं । कम्म-कलंकल-वल्लिं छिंदइ संथारमारूढो ।। [३१३] धीर-पुरिसेहिं कहियं सप्पुरिस-निसेवियं परमघोरं । उत्तिण्णोमि हु रंग हरामि आराहण पडागं ।। [३१४] धीर ! पडागाहरणं करेहि जह तंसि देसकालम्मि | सुत्तत्थमनुगुणितो धिइ-निच्चल-बद्ध-कच्छाओ ।। [३१५] चत्तारि कसाए तिन्नि गारवे पंच इंदियग्गामे । जिणिठं परीसहसहे हराहि आराहणपडागं ।। [३१६] न य मनसा चिंतिज्जा जीवामि चिरं मरामि जइ इच्छसि तरिठं जे संसारमहोअहिमपारं ।। [३१७] जइ इच्छसि नीसरिठं सव्वेसिं चेव पावकम्माणं । जिनवयण नाण दंसण चरित्त भावुज्जुओ जग्ग || [३१८] दंसण नाण चरिते तवे य आराहणा चउक्खंधा । सा चेव होइ तिविहा उक्कोसा मज्झिम जहन्ना ।। [३१९] आराहेऊण विऊ उक्कोसाऽऽराहणं चउक्खंधं । कम्मरय विप्पमुक्को तेणेव भवेण सिज्झिज्जा || [३२०] आराहेऊण विऊ मज्झिम आराहणं चउक्खधं । उक्कोसेण य चउरो भवे 3 गंतूण सिज्झिज्जा ।। [३२१] आराहेऊण विऊ जहन्नमाऽऽराहणं चउक्खधं । सत्तट्ठ भवग्गहणे परिणामेऊण सिज्झिज्जा ।। दीपरत्नसागर-संशोधितः [20] [३३/१|मरणसमाहित Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-३२२ [३२२] धीरेण वि मरियव्वं काउरिसेण वि अवस्स मरियव्वं । तम्हा अवस्स मरणे वरं खु धीरत्तणे मरिठं ।। [३२३] एयं पच्चक्खाणं अनुपालेऊण सुविहिओ सम्म । वेमाणिओ व देवो हविज्ज अहवा वि सिज्झिज्जा ।। [३२४] एसो सवियारकओ उवक्कमो उत्तमटठ-कालम्मि । इत्तो उ पुणो वुच्छं जो उ कमो होइ अवियारे ।। [३२५] साहू कयसलेहो विजिय परीसह कसाय संताणो । निज्जवए मग्गिज्जा सुयरयण रहस्सनिम्माए || [३२६] पंचसमिए तिगुत्ते अनिस्सिए राग दोस मयरहिए | कडजोगी कालण्णू नाण चरण दंसणसमिद्धे ।। [३२७] मरणसमाही कुसले इंगिय पत्थिय सभाव वेत्तारे । ववहारविहि विहिण्णू अब्भुज्जय मरणसारहिणो ।। [३२८] उवएस हेउ कारण गुणनिसढा नायकारणविहण्णू । विन्नाण नाण करणोवयार सुयधारण समत्थे ।। [३२९] एगंतगुणे रहिया बुद्धिइ चव्विहाइ उववेया । छंदण्णू पव्वइया पच्चक्खाणंमि य विहण्णू ।। [३३०] दुण्हं आयरियाणं दो वेयावच्चकरणनिज्जुत्ता । पानगवेयावच्चे तवस्सिणो वत्ति दो पत्ता ।। [३३१] उव्वत्तण परिवत्तण उच्चारुस्साव करणजोगेसं । दो वायग त्ति नज्जा असुत्तकरणे जहन्नेणं ।। [३३२] असद्दह वेयणाए पायच्छित्ते पडिक्कमणए य । जोगायकहाजोगे पच्चक्खाणे य आयरिओ ।। [३३३] कप्पाऽकप्प विहिन्नू दुवालसंग सुयसारही सव्वं । छत्तीसगुणोवेया पच्छित्त विसारया धीरा ।। [३३४] एए ते निज्जवया परिकहिया अट्ठ उत्तमट्ठम्मि | जेसिं गुणसंखाणं न समत्था पायया वुत्तुं ।। [३३५] एरिसयाण सगासे सूरीणं पवयणप्पवाईणं । पडिवज्जिज्ज महत्थं समणो अब्भुज्जयं मरणं ।। [३३६] आयरिय उवज्झाए सीसे साहम्मिए कुल गणे अ | जे मे किया कसाया सव्वे तिविहेण खामेमि ।। [३३७] सव्वस्स समणसंघस्स भगवओ अंजलिं करे सीसे | सव्वं खमावइत्ता खमामि सव्वस्स अहयंपि ।। [३३८] गरहित्ता अप्पाणं अपुणक्कारं पडिक्कमित्ताण । नाणम्मि दंसणम्मि अ चरित्त जोगाइयारे अ ।। [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [21] [३३/१|मरणसमाहित Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-३३९ [३३९] तो सीलगुणसमग्गो अनुवहयक्खो बलं च थामं च । विहरिज्ज तवसमग्गो अनियाणो आगमसहाओ || [३४०] तवसोसियंगमंगो संघि सिराजाल पागडसरीरो । किच्छाहि य परिहत्थो परिहरइ कलेवरं जाहे ।। [३४१] पच्चक्खाइ य ताहे अन्नन्न समाहिपत्तियं मित्ती । तिविहेणाऽऽहारविहिं दियसोग्गइ काय पगईए || [३४२] इहलोए परलोए निरासओ जीविए य मरणे य । सायानुभवे भोगे जस्स य अवहट्टणाऽऽईए || [३४३] निम्मम निरहंकारो निरासयोऽकिंचणो अपडिकम्मो । वोसठ विसट्ठंगो चत्तचियत्तेण देहेणं ।। [३४४] तिविहेण वि सहमाणो परीसहे दूसहे अ ऊसग्गे । विहरिज्ज विसयतण्हा रयमलमसुभं विहुणमाणो ।। [३४५] नेहक्खए व्व दीवो जह खयमुवणेइ दीववटि पि । खीणाऽऽहारसिणेहो सरीरवटि तह खवेइ ।। [३४६] एव परज्झा असई परक्कमे पुव्वभणियसूरीणं । पासम्मि उत्तमढे कुज्जा तो एस परिकम्मं ।। [३४७] आगरसमुट्ठियं तह अज्झुसिरवाग-तण-पत्त-कडए य । कटठसिला फलगंमि व अणभिज्जय निप्पकप्पंमि || (३४८] निस्संधिणा तणमि व सहपडिलेहेण जडपसत्थेणं । संथारो कायव्वो उत्तर-पुव्वस्सिरो वा वि ।। [३४९] दोसुत्थ अप्पमाणे अंधकारे समम्मि अ निसिढे । निरूवहयम्मि गुणमणे वणम्मि गुत्ते य संथारो ।। [३५०] जुत्ते पमाणरइओ उभओकाल पडिलेहणा सुद्धो । विहि विहिओ संथारो आरुहियव्यो तिगुत्तेणं ।। [३५१] आरूहिय चरित्तभरो अन्नेसु उ परमगुरुसगासम्मि | दव्वेसु पज्जवेसु य खिते काले य सव्वंमि ।। [३५२] एएसु चेव ठाणेसु चठसु सव्वो चठव्विहाहारो | तवसंजमु ति किच्चा वोसिरियव्वो तिगुत्तेणं ।। [३५३] अहवा समाहिहे कायव्वो पानगस्स आहारो । तो पानगं पि पच्छा वोसिरियव्वं जहाकाले ।। [३५४] निसिरिता अप्पाणं सव्वगुण समन्नियम्मि निज्जवए । संथारग संनिविट्ठो अनियाणो चेव विहरिज्जा ।। [३५५] इहलोए परलोए अनियाणो जीविए य मरणे य । वासीचंदनकप्पो समो य मानाऽवमानेसु ।। [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [22] [३३/१|मरणसमाहित Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-३५६ [३५६] अह महुरं फुडवियर्ड तहप्पसाय करणिज्ज विसयकयं । एज्ज कहं निज्जवओ सुईसमन्नाहरणहेउं ।। [३५७] इहलोए परलोए नाण चरण दंसणंमि य अवायं | दंसेड़ नियाणम्मि य माया-मिच्छत्त-सल्लेणं ।। [३५८] बालमरणे अवायं तह य उवायं अबालमरणम्मि | उस्सासरज्जुवेहानसे य तह गिद्धपढे य ।। [३५९] जह य अनुदुयसल्लो ससल्लमरणेण कइ मरऊणं । दंसण-नाणविहूणो मरेति असमाहिमरणेणं ।। [३६०] जह सायरसे गिद्धा इत्थि अहंकार पावसुयमत्ता । ओसन्न बाल-मरणा भमंति संसार-कंतारं ।। [३६१] अह मिच्छत्त ससल्ला मायासल्लेण जह ससल्ला य । जह य नियाण ससल्ला मरंति असमाहिमरणेणं ।। [३६२] जह वेयणावसट्टा मरंति जह केइ इंदिय वसट्टा । जह य कसायवसट्टा मरंति असमाहिमरणेणं ।। [३६३] जह सिद्धमग्गदुग्गइ सग्गग्गलमोडणाणि मरणाणि । मरिऊण केइ सिद्धिं उविंति सुसमाहिमरणेणं ।। [३६४] एवं बहुप्पयारं तु अवायं उत्तमट्ठकालम्मि | दंसंति अवायण्णू सल्लद्धरणे सुविहियाणं ।। (३६५] दिति य सिं उवएसं गरुणो नानाविहेहिं हेऊहिं । जेण सुगइं भयंतो संसारभयद्दुओ होई ।। [३६६] न हु तेसु वेयणं खलु अहो चिरम्मि ति दारूणं दुक्खं । सहणिज्जं देहेणं मनसा एवं विचिंतिज्जा ।। [३६७] सागरतरणत्थमई इयस्स पोयस्स उज्जए धूवे । जो रज्जु मुक्खकालो न सो विलंबत्ति कायव्वो ।। [३६८] तिल्लविहूणो दीवो न चिरं दिप्पइं जगम्मि पच्चक्खं । न य जलरहिओ मच्छो जिअइ चिरं नेव पठमाई ।। [३६९] अन्नं इमं सरीरं अन्नोऽहं इय मणम्मि ठाविज्जा | जं सुचिरेणऽवि मोच्चं देहे को तत्थ पडिबंधो [३७०] दूरत्थं पि विनासं अवस्सभावं उवट्ठियं जाण । जो अह वटटड़ कालो अनागओ इत्थ आसिण्हा ।। [३७१] जं सुचिरेण वि होहिइ अनावसं तंमि को ममीकारो देहे निस्संदेहे पिए वि सुयणत्तणं नत्थि ।। [३७२] उवलद्धो सिद्धिपहो न य अनुचिण्णो पमायदोसेणं । हा जीव ! अप्पवेरिय ! न हु ते एयं न तिप्पिहिइ ।। ? | [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [23] [३३/१|मरणसमाहि] Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-३७३ ? || ? || [३७३] नत्थि य ते संघयणं घोरा य परीसहा अहे निरया । संसारो य असारो अइप्पमाओ य तं जीव [३७४] कोहाइ कसाया खलु बीयं संसार-भेरवदुहाणं । तेसु पमत्तेसु सया कत्तो सुक्खो य मुक्खो वा [३७५] जाओ परव्वसेणं संसारे वेयणाओ घोराओ | पत्ताओ नारगत्ते अहणा ताओ विचिंतिज्जा ।। [३७६] इण्डिं सयं वसिस्स उ निरुवम सुक्खावसाण मुहकडुयं । कल्लाणमोसहं पिब परिणामसहं न तं दक्खं ।। [३७७] संबंधि-बंधवेसु अ न य अनुराओ खणंपि कायव्यो । ते च्चिय हंति अमित्ता जह जननी बंभदत्तस्स ।। [३७८] वसिऊण व सुहिमज्झे वच्चइ एगाणिओ इमो जीवो । मोत्तूण सरीरघरं जह कण्हो मरणकालम्मि ।। [३७९] इण्हिं व मुत्तेणं गोसे व सुए व अद्धरते वा । जस्स न नज्जइ वेला कदिवसं गच्छिई जीवो [३८०] एवमनुचिंतयंतो भावानुभावानुरत सियलेसो । तद्दिवस मरिउकामो व होई झाणम्मि उज्जुत्तो । [३८१] नरगतिरिक्खगईसु अ माणुसदेवत्तणे वसंतेणं । जं सुहदुक्खं पतं तं अनुचिंतिज्ज संथारे ।। [३८२ नरएस वेयणाओ अनोवमा सीयउण्हवेराओ । कायनिमित्तं पत्ता अनंतखुत्तो बहुविहाओ ।। [३८३] देवत्ते माणुसत्ते पराहिओगत्तणं उवगएणं । दुक्ख परिक्केसविही अनंतखुत्तो समनुभूया । [३८४] भिन्निंदिय-पंचिंदिय-तिरिक्खकायम्मि नेगसंठाणं । जम्मण-मरणऽरहट्टे अनंतखुतो गओ जीवो ।। [३८५] सुविहिय ! अईयकाले अनंतकाएसु तेन जीवेणं । जम्मण-मरणमनंतं बहुभवगहणं समनुभूयं ।। [३८६] घोरम्मि गब्भवासे कलमल-जंबाल-असुइ-बीभच्छे । वसिओ अनंतखुत्तो जीवो कम्मानुभावेणं ।। [३८७] जोणीमुह निग्गच्छंतेणं संसारे इमेण जीवेणं । रसियं अइबीभच्छं कडीकडाहंतरगएणं ।। [३८८] जं असियं बीभच्छं असुईघोरम्मि गब्भवासम्मि | तं चिंतिऊण सययं मुक्खम्मि मई निवेसिज्जा ।। [३८९] वसिऊण विमानेसु य जीवो पसरंतमणिमहेसु । वसिओ पुणो वि सो च्चिय जोणिसहस्संघयारेसुं । [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [24] [३३/१|मरणसमाहित Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-३९० [३९०] वसिऊण देवलोए निच्चुज्जोए सयंपभे जीवो । वसइ जलवेग कलमल विठले वलयामुहे घोरे ।। [३९१] वसिऊण सुर नरीसर चामीयर-रिद्धिमनहरघरेसु | वसिओ नरग निरंतर भयभेरवपंजरे जीवो ।। [३९२] वसिऊण विचित्तेसु य विमानगण भवनसोभ सिहरेसु । वसइ तिरिएसु गिरि गुहविवर महाकंदर दरीसु ।। [३९३] भुत्तूणवि भोगसूहं सुरनरखयरेसु पुण पमाएणं । पियइ नरएसु भेरव कलंत तउतंबपाणाई ।। [३९४] सोऊण मुइयनरवइभवे य जयसद्दमंगलवरबोघं । सुणइ नरएसु दुहपरं अक्कंदुद्दामसद्दाइं ।। [३९५] निहण हण गिण्ह दय पय उब्बंध पबंध बंध रुद्घाहिं । फाले लोले घोले थूरे खारेहिं से गत्तं ।। [३९६] वेयरणि खार कलिमल सल्लं कुसल करकयकुलेसु । वसिओ नरएसु जीवो हण-हणघण-घोर-सद्देसुं ।। [३९७] तिरिएसु व भेरवसद्द पक्खणपर-पक्खणच्छणसएसु । वसिओ उब्वियमाणो जीवो कुडिलम्मि संसारे ।। (३९८] मनुयत्तणे वि बहविह विनिवायसहस्सभेसणघणम्मि | भोगपिवासानुगओ वसिओ भय पंजरे जीवो । [३९९] वसियं दरीसु वसियं गिरीसु वसियं समुद्दमज्झेसु । रुक्खग्गेसु य वसियं संसारे संसरंतेणं ।। [४००] पीयं थण अच्छीरं सागरसलिलाओ बह्यरं होज्जा । संसारम्मि अनंते माईणं अन्नमन्नाणं ।। [४०१] नयनोदगं पि तासिं सागरसलिलाओ बह्यरं होज्जा । गलियं रुयमाणीणं माईणं अन्नमन्नाणं ।। [४०२] नत्थि भयं मरणसमं जम्मणसरिसं न विज्जए दुक्खं । तम्हा जर-मरणकरं छिंद ममत्तं सरीराओ || [४०३] अन्नं इमं सरीरं अन्नो जीवो त्ति निच्छियमईओ | दुक्खपरिक्केसकरं छिंदममत्तं सरीराओ ।। [४०४] जावइयं किंचि दुहं सारीरं मानसं च संसारे । पत्तो अनंतखुत्तो कायस्स ममत्तदोसेणं ।। [४०५] तम्हा सरीरमाई अभिंतर बाहिरं निरवसेसं । छिंद ममत्तं सुविहिय ! जइ इच्छसि मुच्चिठ दुहाणं ।। [४०६] सव्वे उवसग्ग परीसहे य तिविहेण निज्जिणाहि लहूं । एएसु निज्जिएसुं होहिसि आराहओ मरणे ।। [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [25] [३३/१|मरणसमाहित Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-४०७ [४०७] मा हु य सरीरसंताविओ य तं झाहि अट्टरुद्दाइं । सुठु विरुवियलिंगे वि अट्टरुद्दाणि रुवंति ।। [४०८] मित्त-सुय-बंधवाइसु इट्ठाऽनिट्टेसु इंदियत्थेसुं । रागो वा दोसो वा ईसि मणेणं न कायव्यो ।। [४०९] रोगाऽऽयंकेसु पुणो विउलासु य वेयणासुइन्नासु । सम्म अहियासंतो इणमो हियएण चिंतिज्जा ।। [४१०] बहुपलिय-सागराइं सड्ढाणि मे नरय-तिरियजाईसुं । किं पुन सुहावसाणं इणमो सारं नरदुहंति [४११] सोलस रोगायंका सहिया जह चक्किणा चउत्थेणं । वाससहस्सा सत्त उ सामण्णधरं उवगएणं ।।। [४१२] तह उत्तमट्ठकाले देहे निरवेक्खयं उवगएणं । तिलछित्तलावगा इव आयंका विसहियव्वा उ ।। [४१३] पारिव्वायगभत्तो राया पट्ठीइ सेट्ठिणो मूढो । अच्चुण्हं परमन्नं दासी य सुकोविय मनुस्सा ।। [४१४] सा य सलिलुल्ललोहियमंस वसापेसिथिग्गलं घित्तुं । उप्पइया पट्ठीओ पाई जह रक्खसवहु व्व ।। [४१५] तेन य निव्वेएणं निग्गंतूणं तू सुविहियसगासे । आरूहिय चरित्तभरो सीहोरसियं समारूढो || ४१६] तम्मि य महिहरसिहरे सिलायले निम्मले महाभागो । वोसिरइ थिरपइन्नो सव्वाहारं मह तनू य ।। [४१७] तिविहोवसग्ग सहिउँ पडिमं सो अद्धमासियं धीरो । ठाइ य पुव्वाभिमुहो उत्तमधिइ सत्तसंजुत्तो ।। [४१८] सा य पगलंतलोहिय मेयवसा मंसल परी पट्ठी । खज्जइ खगेहिं दूसह निसट्ठ चंचुप्पहारेहिं ।। [४१९] मसएहिं मच्छियाहि य कीडीहि वि मंससंपलग्गाहिं । खज्जंतो वि न कंपइ कम्मविवागं गणेमाणो || [४२०] रत्तिं च पयइविहसिय सियालियाहिं निरनुकंपाहिं । उवसग्गिज्जइ धीरो नानाविह रुवधारीहिं ।। [४२१] चिंतेइ य खरकरवय असिपंजर खग्ग मुग्गरपहाओ । इणमो न हु कट्ठयरं दुक्खं निरयग्गि दुक्खाओ ।। [४२२] एवं च गओ पक्खो बीओ पक्खो य दाहिणदिसाए | अवरेण वि पक्खो वि य समइक्कंतो महेसिस्स ।। [४२३] तह उत्तरेण पक्खं भगवं अविकंपमानसो सहइ । पडिओ य दुमासंते नमो त्ति वोत्तुं जिणिंदाणं ।। [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [26] [३३/१|मरणसमाहित Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा ४२४ [४२४] कंचनपुरम्मि सिट्ठी जिनधम्मो नाम सावओ आसी । तस्स इमं चरियपयं तउ एयं कित्तिम मुनिस्स || [४२५] जह तेन वितथमुणिणा उवसग्गा परमदूसहा सहिया । तह उवसग्गा सुविहिय ! सहियव्वा उत्तमट्ठमि || [४२६] निप्फेडियाणि दुन्नि वि सीसावेढेण जस्स अच्छीणि । न य संजमा चलिओ मेअज्जो मंदरगिरि व्व ।। [४२७] जो कुंचगावराहे पाणिदया कुंचगं पि नाऽऽइक्खे | जीवियमनुपेतं मेयज्जरिसिं नम॑सामि || [४२८] जो तिहिं पएहिं धम्मं समइगओ संजमे समारूढो । उवसम विवेग संवर चिलाइपुत्तं नम॑सामि || [४२९] सोएहिं अइगयाओ लोहियगंधेण जस्स कीडीओ । खायंति उत्तमंगं तं दुक्करकारयं वंदे ।। [४३०] देहो पिपीलियाहिं चिलाइपुत्तस्स चालणि व्व कओ । तनुओ वि मनपओसो न य जाओ तस्स तानुवरिं । [४३१] धीरो चिलाइपुत्तो मूइंगलियाहिं चालिणि व्व कओ । न य धम्माओ चलिओ तं दुक्करकारयं वंदे ॥ [४३२] गयसुकुमालमहेसी जह दड्ढो पिइवनंसि ससुरेणं । न य धम्माओ तं दुक्कर- कारयं वंदे ।। [४३३] जह तेन सो हुयासो सम्मं अइरेग दूसहो सहिओ । तह सहियव्व सुविहिय ! उवसग्गो देहदुक्खं च ।। [४३४] कमलामेलाहरणे सागरचंदो सुईहिं नभसेनं । आगंतूण सुरत्ता संपइ संपाइणो वारे ।। [४३५] जा तस्स खमा तइया भावो जा य दुक्करा पडिमा । तं अणगार ! गुणागर तुमं पि हियएण चिंतेहि ।। [४३६] सोऊण निसासमए नलिनिविमानस्स वण्णणं धीरो । संभरिय देवलोओ उज्जेनि अवंतिसुकुमालो ।। [४३७] घितूण समणदिक्खं नियमुज्झिय सव्व दिव्वआहारो । बाहिं वंसकुडंगे पायवगमनं निवण्णो उ ।। [४३८] वोसट्ठ निसट्ठंगो तहिं सो भुल्लुंकियाइ खइओ उ । मंदरगिरीनिक्कंपं तं दुक्करकारयं वंदे ।। [४३९] मरणंमि जस्स मुक्कं सुकुसुम गंधोदयं च देवेहिं । अज्ज वि गंधवई सा तं च कुडंगीसर ट्ठाणं ।। [४४०] जह तेन तत्थ मुणिणा सम्मं सुमणेण इंगिणी तिण्णा । तह तूरह उत्तमट्ठ तं च मने सन्निवेसेह || [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [27] [३३ / १ | मरणसमाहि] Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-४४१ [४४१] जो निच्छएण गिण्हइ देहच्चाए वि न अट्ठियं कुणइ । सो साहेइ सकज्जं जह चंदवडिंसओ राया ।। [४४२] दीवाभिग्गहधारी दूसहघनविनय निच्चल नगिंदो । जह सो तिण्णपइण्णो तह तूरह तुमं पइण्णंमि ।। [४४३] जह दमदंतमहेसी पंडव कोरव मुनी थुय गरहिओ । आसि समो दुण्हं पि हु एव समा होह सव्वत्थ ।। [४४४] जह खंदग सीसेहिं सुक्क महाझाण संसियमनेहिं । न कओ मनप्पओसो पीलिज्जतेसु जंतंमि ।। [४४५] तह धन्न सालिभद्दा अनगारा दो वि तवमहिड़ढीया । वेभारगिरि समीवे नालंदाए समीवंमि ।। [४४६] जुयल सिलासंथारे पायवगमनं उवागया जुगवं । मासं अनूनगं ते वोसट्ठ निसट्ठ सव्वंगा ।। [४४७] सीयाऽऽयवझडियंगा लग्गुद्धियमंस प्रहारुणि विनट्ठा । दो वि अनुत्तरवासी महेसिणो रिद्धिसंपन्ना ।। [४४८] अच्छेरयं च लोए ताण तहिं देवयानुभावेणं । अज्ज वि अट्ठिनिवेसं पंकि व्व सनामगा हत्थी ।। [४४९] जह ते समंसचम्मे बलविलग्गे वि नो सयं चलिया । तह अहियासेयव्वं गमने थेवं पिमं दुक्खं ।। [४५०] अयलग्गाम कुडुंबिय सुरइय सयदेव समणय सुभद्दा । सव्वे 3 गया खमगं गिरिगृहनिलयं नियच्छीय ।। [४५१] ते तं तवोकिलंतं वीसामेऊण विनयपुव्वागं । उवलद्ध पुण्ण-पावा फासुय सुमहं करेसीह ।। [४५२] सुगहिय सावयधम्मा जिनमहिमाणेसु जनियसोहग्गा | जसहरमुणिणो पासे निक्खंता तिव्वसंवेगा ।। [४५३] सुगिहिय जिनवयणामय परिपुट्ठा सीलसुरहिगंधड्ढा । विहरिय गुरुस्सगासे जिनवर-वसुपुज्ज-तित्थंमि ।। [४५४] कनगावलि मुत्तावलि रयणावलि सीहकीलियकलंता | काही य ससंवेगा आयंबिल वड्ढमाणं च ।। [४५५] आसरिया य मनोहर सिहरंतर संचरंत पुक्खरयं । आइकर चलण पंकय सिरसेविय माल हिमवंतं ।। [४५६] रमणिज्ज हरयतरुवर परहुअ सिहि भमर महुयरिविलोले । अमरगिरि विसय मनहर जिनवयण सुकानन्द्देसे || [४५७] तंमि सिलायल पुहवी पंच वि देहट्ठिईसु मुणियत्था । कालगया उववण्णा पंच वि अपराजियविमाणे ।। दीपरत्नसागर-संशोधितः] [28] [३३/१|मरणसमाहित Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-४५८ [४५८] ताओ चइऊण इहं भारहवासे असेस रिठदमना । पंडुनराहिव तनया जाया जयलच्छि भत्तारा ।। [४५९] ते कण्हमरणदूसह दुक्खसमुप्पन्न तिव्वसंवेगा । सुट्ठिय थेरसगासे निक्खंता खाय कित्तीया ।। [४६०] जिट्ठो चठदसपुव्वी चउरो इक्कारसंगवी आसी । विहरिय गुरुस्सगासे जस पडह भरंत जियलोया ।। [४६१] ते विहरिऊण विहिणा नवरि सुरळं कमेण संपत्ता । सोउं जिननिव्वाणं भत्तपरिन्नं करेसी य ।। ४६२] घोराभिग्गहधारी भीमो कंतग्ग गहिय भिक्खाओ । सत्तुंजयसेल सिहरे पाओवगओ गय भवोघो ।। [४६३] पुव्व विराहिय वंतर उवसग्गसहस्स मारुयनगिंदो । अविकंपो आसि मुनी भाईणं इक्क पासम्मि ।। [४६४] दो मासे संपुण्णे सम्म धिइ धणिय बद्धकच्छाओ । ताव उवसग्गिओ सो जाव उ परिनिव्वुओ भगवं ।। [४६५] सेसा वि पंडुपुत्ता पाओवगया निव्वुया सव्वे । एवं धिइसंपन्ना अन्ने वि दुहाओ मुच्चंति ।। [४६६] दंडो वि य अनगारो आयावणभूमिसंठिओ वीरो । सहिऊण बाणघायं सम्मं परिनिव्वुओ भगवं ।। [४६७] सेलम्मि चित्तकूडे सुकोसलो सुट्ठिओ उ पडिमाए | नियजननीए खइओ वग्घीभावं उवगयाए || [४६८] पडिमायगओ अ मुनी लंबेसु ठिओ बहूसु ठाणेसुं । तह वि य अकलुसभावो सा हु खमा सव्वसाहूणं ।। [४६९] पंचसयापरिवुडया वइररिसी पव्वए रहावत्ते । मुत्तूण खुड्डगं किर अन्नं गिरिमस्सिओ सुजसो || [४७०] तत्थ य सो उवलतले एगागी धीर निच्छयमईओ । वोसिरिऊण सरीरं उण्हम्मि ठिओ वियप्पाणो ।।। [४७१] ता सो अइसुकुमालो दिनयरकिरणग्गि तावियसरीरो | हविपिंइव्व विलीणो उववन्नो देवलोयम्मि || [४७२] तस्स य सरीरपूयं कासी य रहेहि लोगपाला 3 | तेन रहावत्तगिरी अज्ज वि सो विस्सुओ लोए ।। [४७३] भगवं पि वइरसामी बिइयगिरी देवयाइ कयपूओ । संपूइओऽत्थ मरणे कुंजरभरिएण सक्केणं ।। [४७४] पूइय सुविहियदेहो पयाहिणं कुंजरेण तं सेलं । कासीय सुरवरिंदो तम्हा सो कुंजरावत्तो ।। [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [29] [३३/१|मरणसमाहित Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-४७५ [४७५] तत्तो य जोगसंगह उवहाणक्खाणयम्मि कोसंबी । रोहगमवंतिसेनो रुज्झेड मणिप्पभो भासो ।। [४७६] धम्मगसुसीसजुयलं धम्मजसे तत्थ रण्णदेसम्मि । भत्तं पच्चक्खाइय सेलम्मि उ वच्छगातीरे ।। [४७७] निम्मम निरहंकारो एगागी सेलकंदर सिलाए । कासी य उत्तमढं सो भावो सव्वसाहूणं ।। [४७८] उण्हम्मि सिलावट्टे जह तं अरहण्णएण सुकुमालं । विग्घारियं सरीरं अनुचिंतिज्जा तमच्छाहं ।। [४७९] गुब्बर पाओवगओ सुबुद्धिणा निग्घिणेण चाणक्को । दड्ढो न य संचलिओ सा ह धिई चिंतिणिज्जा 3 ।। [४८०] जह सोऽवि सप्पएसी वोसट्ठ निसिट्ठचत्तदेहो उ । वंसीपत्तेहिं विनिग्गएहिं आगासमुक्खित्तो ।। [४८१] जह सा बत्तीसघडा वोसट्ठ-निसट्ठ-चत्तदेहागा । धीरा वाएण उ दीवएण विगलिम्मि ओलइया ।। [४८२] जंतेण करकरण व सत्थेहिं व सावएहिं विविहेहिं । देहे विद्धंस्संते ईसिं पि अकप्पणाखमणा ।। [४८३] पडिनीययाइ केसिं चम्मसे खीलएहिं निहणित्ता । महुघय मक्खियदेहे पिवीलियाणं तु दिज्जा हि ।। [४८४] जेन विरागो जायइ तं तं सव्वायरेण करणिज्जं | सुव्वइ हु ससंवेगो इत्थ इलापुत्त दिळंतो ।। [४८५] समुइण्णेसु य सुविहिय ! घोरेसु परीसहेसु सहणेणं । सो अत्थो सरणिज्जो जोऽघीओ उत्तरज्झयणे ।। [४८६] उज्जेनि हत्थिमित्तो सत्थसमग्गो वणम्मि कटठेणं । पायहरो संवरण चिल्लग भिक्खा वण सुरेसुं ।। [४८७] तत्थेव य धनमित्तो चेल्लगमरणं नईइ तण्हाए । निच्छिण्णेसुऽनज्जंत विंटिय विस्सारणं कासी ।। [४८८] मुनिचंदेण विदिन्नस्स रायगिहि परीसहो महाघोरो । जत्तो हरिवंस विहूसणस्स वुच्छं जिणिंदस्स ।। [४८९] रायगिहनिग्गया खलु पडिमा पडिवन्नगा मुनी चउरो | सीय विहूय कमेणं पहरे पहरे गया सिद्धिं ।। [४९०] उसिणे तगरऽरहन्नग चंपा मसएसु सुमनभद्दरिसी । खमसमण अज्जरक्खिय अचेलयत्ते अ उज्जेनी ।। [४९१] अरईय जाइसूकरो (मूओ) भव्यो अ दुलहबोहीओ । कोसंबीए कहिओ इत्थीए थूलभद्दरिसी ।। दीपरत्नसागर-संशोधितः [30] [३३/१|मरणसमाहित Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा ४९२ [४९२] कुल्लइरम्मि अ दत्तो चरियाई परीसहे समक्खाओ । सिट्ठिसुयतिगिच्छणणं अंगुलदीवो य वासम्मि [४९३] गयपुर कुरूदत्तसुओ निसीहिया अडविदेस पडिमाए । गावि कुविएण दड्ढो गयसुकुमालो जहा भगवं ।। [४९४] दो अनगारा धिज्जाइयाइ कोसंबि सोमदत्ताई । पाओवगया नदि नेसिज्जाए सागरे छूढा || [४९५] महुराइ महुरखमओ अक्कोसपरीसहे उ सविसेसो । ओ रायगिहम्म उ अज्जुनमालारदिट्ठतो ।। [४९६] कुंभारकडे नगरे खंदगसीसाण जंतपीलणया । एवंविहे कहिज्जइजह सहियं तस्स सीसेहिं ।। [४९७] तह झाणनाणजुत्तं गीए संठियस्स समुयाणं । तत्तो अलाभगंमि उ जह कोहं निज्जिणे कण्हो || [४९८] किसिपारासर ढंढो बीयं तु अलाभगे उदाहरणं । कण्हबलभद्दमन्नं चइऊण खमण्णिओ सिद्धो || [४९९] महुरा जियसत्तुसुओ अनगारो कालवेसिओ रोगे । मोग्गल्लसेलसिहरे खइओ किल सरसियालेणं ।। [५००] सावत्थी जियसत्तूतनओ निक्खमण पडिम तणफासे । वीरिय पविय विकिंचण कुसलेसण कड्ढणा सहनं ।। [५०१] चंपासु नंदगं चिय साहु दुगंछाइ जल्ल खठरंगे । कोसंब जम्म निक्खमण वेयणं साहु पडिमा || [५०२] महुराइ इंददत्तोऽसक्कारा पायछेयणे सड्ढो । पन्नाइ अज्जकालग सागरखमणो य दिट्ठतो ।। [५०३] नाणे असगडताओ खंभगनिधी अनहियासणो भद्दो | दंसणपरीसहम्मि उ आसाढभूई उ आयरिया ।। [५०४] चरियाए मरणम्मि उ समुइण्णपरीसहो मुनी एवं । भाविज्ज निउणजिनमय उवएस सुईइ अप्पाणं ।। [५०५] उम्मग्ग संपयायं मनहत्थिं विसयसुमरियमनंतं । नाणकुण धीरो धरेइ दित्तंपिव गइंदं ।। [५०६] एए उ अहासूरा महिड्दिए को व भाणि सत्तो किं वातिमूवमाए जिन गणधर थेरचरिएसुं ।। [५०७] किं चित्तं जइ नाणी सम्मद्दिट्ठी करंति उच्छाहं । तिरिएहि विदुरनुचरो केहि वि अनुपालिओ धम्म ।। [५०८] अरूणसिंह दट्ठणं मच्छो सण्णी महासमुद्दम । हा न गहिउ त्ति काले झसत्ति संवेगमावन्नो || [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [31] ? | [३३/१| मरणसमाहि] Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा ५०९ [५०९] अप्पाणं निदंतो उत्तरिऊणं महण्णवजलाओ । सावज्जजोगविरओ भत्तपरिण्णं करेसी य ।। [५१०] खगतुंड भिन्नदेहो दूसहसूरग्गि तावियसरीरो । कालं काऊण सुरो उववन्नो एव सहणिज्जं ।। [५११] सो वानरजूहवई कंतारे सुविहियानुकंपाए । भासुरवर बोंदिधरो देवो वेमाणिओ जाओ ।। [५१२] तं सीहसेन गयवर चरियं सोऊण दुक्करं रणे । को हु तवे पमायं करेज्ज जाओ मनुस्सेसुं [५१३] भुयगपुरोहियडक्को राया मरिऊण सल्लइवणम्मि । सुपसत्थ गंधहत्थी बहुभय गयभेलणो जाओ ।। [५१४] सो सीहचंद मुनिवर पडिमा पडिबोहिओ सुसंवेगो । पाणवहाऽलिय चोरिय अब्बंभ परिग्गहनियत्तो || [५१५] रागद्दोसनियत्तो छट्ठक्खमणस्स पारणे ताहे । आससिऊणं पंड आयवत्ततं जलं पासी || [५१६] खमगत्तण निम्मंसो धमनि सिरोजाल संतय सरीरो । विहरिय अप्पप्पाणो मुणिउवएसं विचिंतंतो ।। [ ५१७] सो अन्नया निदाहे पंकोसन्नो वनं निरुत्थारो । चिरवेरिएण दट्ठो कुक्कुडसप्पेणं घोरेणं ।। [५१८] जिनवयणमनुगुणितो ताहे सव्वं चउव्विहाहारं । वोसिरिऊण गइंदो भावेन जिने नम॑सीय || [५१९] तत्थ य वनयर सुरवर विम्हिय कीरंत पूय सक्कारो । मज्झत्थो आसी किर कलहेसु य जज्जरिज्जतो || [५२०] सम्मं सहिऊण तओ कालगओ सत्तमंमि कप्पम्मि । सिरितिलयम्मि विमाने उक्कोसठिई सुरो जाओ || [५२१] सुयदिट्ठिवायकहियं एयं अक्खाणयं निसामित्ता । पंडियमरणम्मि मइं दढं निवेसिज्ज भावेणं ॥ [५२२] जिनवयणमनुस्सट्ठा दो वि भुयंगा महाविसा घोरा । कासीय कोसियासय तणूस भत्तं मुइंगाणं || [५२३] एगो विमानवासी जाओ वरविज्जु पंजरसरीरो । बीओ 3 नंदनकुले बलु त्ति जक्खो महदिओ ।। [५२४] हिमचूल सुरुप्पती भद्दगमहिसी य थूलभद्दो य । वेरोवसमे कहणा सुरभावे दंसणे खमणो || [५२५] बावीसमानुपुव्विं तिरिक्ख मनुया वि भेसणट्ठा । विसायनुकंपरक्खण करेज्ज देवा उ उवसग्गं || [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [32] ? ।। [३३/१| मरणसमाहि] Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-५२६ [५२६] संघयण धिईजुत्तो नव-दसपुव्वी सुएण अंगा वा । इंगिणि पाओवगमं पडिवज्जइ एरिसो साहू ।। [५२७] निच्चल निप्पडिकम्मो निक्खिवए जं जहिं जहा अंगं । एयं पाओवगमं सनिहारि वा अनीहारिं । [५२८] पाओवगमं भणियं समविसमे पायवु व्व जह पडिओ । नवरं परप्पओगा कंपिज्ज जहा फल तरु व्व ॥ [५२९] तस-पाण-बीयरहिए विच्छिन्न वियारथंडिल विसुद्धे । एगंते निद्दोसे उविंति अब्भुज्जयं मरणं || [ ५३०] पुव्वभविय वेरेणं देवो साहरइ कोऽवि पायाले । मा सो चरिमसरीरो न वेयणं किंचि पाविज्जा । [५३१] उप्पन्ने उवसग्गे दिव्वे माणुस्सए तिरिक्खे य । सव्वे पराजिणित्ता पाओवगया पविहरति ।। [५३२] जह नाम असी कोसा अन्नो कोसो असी वि खलु अन्नो । इय मे अन्नो जीवो अन्नो देहु त्ति मन्निज्जा ।। [५३३] पुव्वाऽवर दाहिण उत्तरेण वाएहिं आवडतेहिं । जह नवि कंपइ मेरू तह झाणाओ नवि चलति ।। [५३४] पढमम्मि य संघयणे वट्टंते सेलकुड्डसामाणे । तेसिं पि य वुच्छेओ चउदसपुव्वीण वुच्छेए || [५३५] पुढवि दग अगनि मारूय तरुमाइ तसेसु कोई साहरइ । वोसट्ठ चत्तदेहो अहाउअं तं परिक्खिज्जा ।। [ ५३६] देवो नेहेण नए देवागमनं च इंदगमनं वा । जहियं इड्ढी कंता सव्वसुहा हुंति सुहभावा ।। [५३७] उवसग्गे तिविहे वि य अनुकूले चेव तह य पडिकूले । सम्मं अहियासंतो कम्मक्खय कारओ होइ ।। [५३८] एवं पाओवगमं इंगिनि पडिकम्म वण्यिं । तित्थयर गणहरेहि य साहूहि य सेवियमुयारं ।। [५३९] सव्वे सव्वद्धाए सव्वन्नू सव्वकम्मभूमीसु । सव्वगुरु सव्वहिया सव्वे मेरुसु अहिसित्ता ।। [५४०] सव्वाहि वि लद्धीहिं सव्वेऽवि परीसहे पराइत्ता । सव्वेऽवि य तित्थयरा पाओवगया उ सिद्धिगया ।। [५४१] अवसेसा अनगारा तीय पडुप्पन्न नागया सव्वे । केई पाओवगया पच्चक्खाणिंगिणिं केई || [५४२] सव्वा विअ अज्जाओ सव्वे वि य पढमसंघयणवज्जा | सव्वे य देसविरया पच्चक्खाणेण य मरति ॥ [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [33] [३३ / १ | मरणसमाहि] Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा ५४३ [५४३] सव्वसुहप्पभवाओ जीवियसाराओ सव्वजणिगाओ । आहाराओ रयणं न विज्जए उत्तमं लोए ।। [५४४] विग्गहगए य सिद्धे मुत्तुं लोगम्मि जत्तिया जीवा । सव्वे सव्वावत्थं आहारे हुंति आउत्ता ।। [५४५] तं तारिसगं रयणं सारं जं सव्वलोय रयणाणं । सव्वं परिच्चइत्ता पाओवगया पविहरति ॥ [५४६] एयं पाओवगमं निप्पडिकम्मं जिणेहिं पन्नतं । तं सोऊणं खमओ ववसाय परक्कमं कुणइ || [५४७] धीरपुरिस पन्नत्ते सप्पुरिस निसेविए परमरम्मे । धन्ना सिलायलगया निरावयक्खा निवज्जंति || [५४८] सुव्वंति य अनगारा घोरासु भयाणियासु अडवीसुं । गिरिकुहर कंदरासु य विजनेसु य रुक्खहेट्ठेसुं । [५४९] धीधणियबद्धकच्छा भीया जर मरण जम्मण सयाणं । सेलसिलासयणत्था साहंति उ उत्तमट्ठाई ।। [५५०] दीवोदहि रण्णेसु य खयरावहियासु पुनरवि य तासु । कमलसिरी महिलादिसु भत्तपरिन्ना कया थीसु ।। [५५१] जइ ताव सावयाकुल गिरिकंदर विसमकडगदुग्गासुं । साहिंति उत्तमट्ठ धिइधनिय सहायगा धीरा ।। [५५२] किं पुन अनगारसहायगेण अन्नुन्न संगहबलेणं । परलोए य न सक्का साहेउं अप्पणो अट्ठ [५५३] समुइन्नेसु य सुविहिय ! उवसग्ग महब्भएसु विविसुं । हियएण चिंतणिज्जं रयणनिही एस उवसग्गो || [ ५५४] किं जायं जइ मरणं अहं च एगाणिओ इहं पाणी । वसिओऽहं तिरियत्ते बहुसो एगागिओ रण्णे ।। [५५५] वसिऊणऽवि जनमज्झे वच्चइ एगागिओ इमो जीवो । मुत्तूण सरीरघरं मच्चुमुहा कड्ढिओ संतो ।। [५५६] जह बीहंति य जीवा विविहाण विहासियाण एगागी । तह संसारगएहिं जीवेहिं विहेसिया अन्ने || [५५७] सावयभयाभिभूओ बहूसु अडवीसु निरभिरामासु । सुरहि हरिण महिस सूयर करवोडिय रुक्ख छायासु ।। [५५८] गय गवय खग्ग गंडय वग्घ तरच्छऽच्छभल्लचरियासु भल्लुंकि कंक दीविय संचर सब्भाव किण्णासुं ।। [५५९] मत्तगइंद निवाडिय भिल्ल पुलिंदा विकुंडियवनासुं । वसिओडहं तिरियत्ते भीसण संसार चारम्मि || [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [34] ? ।। [३३ / १ | मरणसमाहि] Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-५६० [५६०] कत्थ य मुद्धमिगते बहुसो अडवीसु पयइ विसमासु । वग्घ महावडिएणं रसियं अडभीय हियएणं ।। [५६१] कत्थइ अइदुप्पिक्खो भीसण विगराल घोर वयणोडहं । आसि महंविय वग्घो रूरु महिस वराह विद्दवओ ।। [५६२] कत्थइ दुविहिएहिं रक्खस वेयाल भूयस्वेहिं । छलिओ वहिओ य अहं मनुस्सजम्मम्मि निस्सारो || [५६३] पयइकुडिलम्मि कत्थइ संसारे पाविऊण भूयत्तं । बहसो उव्वियमाणो मए वि बीहाविया सत्ता ।। [५६४] विरसं आरसमाणो कत्थई रणेस घाइओ अहयं । सावयगहणम्मि वने भयभीरू खुभियचित्तोऽहं ।। [५६५] पत्तं विचित्त विरसं दुक्खं संसारसागरगएणं । रसियं च असरणेणं कयंत दंतंतरगएणं ।। [५६६] तइया कीस न हायइ जीवो जइया सुसानपरिविद्धं । भल्लुंकि कंक वायससएसु ढोकिज्जए देहं ।। [५६७] ता तं निज्जिणिऊणं देहं मुत्तूण वच्चए जीवो । सो जीवो अविनासी भणिओ तेलुक्कदंसीहिं ।। [५६८] तं जड़ ताव न मुच्चइ जीवो मरणस्स उव्वियंतोऽवि | तम्हा मज्झ न जुज्जइ दाऊण भयस्स अप्पाणं ।।। [५६९] एवमनुचिंतयंता सुविहिय ! जरमरणभावियमईया । पावंति कयपयत्ता मरणसमाहिं महाभागा ।। [५७०] एवं भावियचित्तो संथारवरंमि सुविहिय ! सया वि । भावेहि भावनाओ बारस जिनवयण दिट्ठाओ ।। [५७१] इह इत्तो चउरंगे चउत्थमग्गं सुसाधम्मम्मि | वन्नेइ भावनाओ बारसिमो बारसंगविऊ || [५७२] समणेण सावएण य जाओ निच्चंपि भावणिज्जाओ । दढसंवेगकरीओ विसेसओ उत्तमम्मि || [५७३] पढमं अनिच्चभावं असरणगं एगयं च अन्नतं । संसारमसुभया वि य विविहं लोगस्सहावं च ।। [५७४] कम्मस्स आसवं संवरं च निज्जरणमुत्तमे य गुणे | जिनसासणम्मि बोहिं च दुल्लहं चिंतए मइमं ।। [५७५] सव्वट्ठाणाई असासयाई इह चेव देवलोगे य । सुर असुर नराईणं रिद्धि विसेसा सुहाइं वा ।। [५७६] माया पिईहिं सहवड्ढिएहिं मित्तेहिं पुत्त दारेहिं । एगयओ सहवासो पीई पणओऽविय अनिच्चो ।। [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [35] [३३/१|मरणसमाहित Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-५७७ [५७७] भवनेहिं व वनेहिं य सयनाssसनजाणवाहनाईहिं । संजोगोऽवि अनिच्चो तह परलोगेहिं सह तेहिं ।। [५७८] बल वीरिय रूव जोव्वण- सामग्गी सुभगया वपूसोभा । देहस्स य आरुग्गं असासयं जीवियं चेव || [५७९] जम्म जरा मरणभए अभिद्दुए विविह वाहिसंतत्ते । लोगम्मि नत्थि सरणं जिनिंदवर सासनं मुत्तुं ॥ [५८०] आसेहि य हत्थीहि य पव्वयमित्तेहिं निच्चमित्तेहिं । सावरण पहरणेहि य बलवयमत्तेहिं जोहेहिं || [५८१] महया भड चडगर पहकरेण अवि चक्कवट्टिणा मच्चू | नय जिव्व ई नीइबलेणावि लोगंमि || [५८२] विविहेहि मंगलेहि य विज्जा मंतोसही पओगेहिं । न वि सक्का तारेठं मरणा न वि रुण्ण सोएहिं || [ ५८३] पुत्ता मित्ताय पिया सयणो बंधवजनो य अत्था य । न समत्था ताएउ मरणा सिंदा वि देवगणा || [५८४] सयणस्स य मज्झगओ रोगाभिहओ किलिस्सइ इहेगो । सयणोऽवि य से रोगं न विरिंचइ नेव नासेइ || [५८५] मज्झम्मि बंधवाणं इक्को मरइ कलुणं रूयंताणं । न य णं अन्नेति तओ बंधुजनो नेव दाराई || [५८६] इक्को करेइ कम्मं फलम वि तस्सेक्कओ समनुहवइ । इक्को जायइ मरइ य परलोयं इक्कओ जाई || [५८७] पत्तेयं पत्तेयं नियगं कम्मफलमनुहवंताणं । को कस्स जए सयणो ? को कस्स व परजनो भणिओ ? को केण समं च परभवं जाई ? कस्स व को कं नियत्तेई [५८८] को केण समं जायइ को वा करेइ किंची [५८९] अनुसोयइ अन्नजनं अन्नभवंतरगयं तु बालजनो । न वि सोयइ अप्पाणं किलिस्समाणं भवसमुद्दे || [५९०] अन्नं इमं सरीरं अन्नोऽहं बंधवा वि मे अन्ने । एवं नाऊण खमं कुसलस्स न तं खमं काउं [५९१] हा ! जह मोहियमइणा सुग्गइमग्गं अजाणमाणेणं । भीमे भवकंतारे सुचिरं भमियं भयकरम्मि || [५९२] जोणिसयसहस्सेसु य असई जायं मयं वडनेगासु । संजोगविप्पओगा पत्ता दुक्खाणि य बहूणि ।। [५९३] सग्गेसु य नरगेसु य माणुस्से तह तिरिक्खजोणीसुं । जायं मयं च बहुसो संसारे संसरंतेणं ।। [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [36] ? ।। ? I ? ।। ? ।। [३३ / १ | मरणसमाहि] Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-५९४ ? || [५९४] निब्भत्थणाऽवमाननवह बंधन रूंधणा धनविनासो | नेगा य रोग सोगा पत्ता जाईसहस्सेसुं ।।। [५९५] सो नत्थि इहोगासो लोए वालग्ग कोडिमित्तोऽवि । जम्मण मरणाबाहा अनेगसो जत्थ न य पत्ता ।। [५९६] सव्वाणि सव्वलोए रूवी दव्वाणि पत्तपुव्वाणि । देहोवक्खर परिभोगयाइ दुक्खेसु य बहुसुं ।। [५९७] संबंधि बंधवते सव्वे जीवा अनेगसो मज्झं । विविहवह वेरजनया दासा सामी य मे आसी ।। [५९८] लोगसहावो धी धी जत्थ व माया मया हवइ धूया । पुत्तोऽवि य होइ पिया पिया वि पुततणमुवेइ ।। [५९९] जत्थ पियपुत्तगस्स वि माया छाया भवंतरगयस्स । तुट्ठा खायइं मंसं इत्तो किं कट्ठयरमन्नं [६००] धी संसारो जहियं जवाणओ परमरूवगव्वियओ | मरिऊण जायइ किमी तत्थेव कलेवरे नियए || [६०१] बहसो अनुभूयाइं अईयकालम्मि सव्वक्खाइं । पाविहिइ पुणो दुक्खं न करेहिइ जो जनो धम्मं ।। [६०२] धम्मेण विना जिनदेसिएण नन्नत्थ अत्थि किंचि सुहं । ठाणं वा कज्जं वा सदेव मनुयासुरे लोए || [६०३] अत्थं धम्म कामं जाणिय कज्जाणि तिन्नि मिच्छति । जं तत्थ धम्मकज्जं तं सुभमियराणि असुभाणि ।। [६०४] आयास किलेसाणं वेराणं आगरो भयकरो य । बहुदुक्ख दुग्गइकरो अत्थो मूलं अनत्थाणं ।। [६०५] किच्छाहि पाविठं जे पत्ता बभय किलेस दोसकरा | तक्खणसुहा बहुदुहा संसारविवद्धणा कामा ।। [६०६] नत्थि इहं संसारे ठाणं किंचि वि निरुवढुयं नाम | ससुराऽसुरेसु मनुए नरएसु तिरिक्खजोणीसुं ।। [६०७] बहुदुक्खपीलियाणं मइमूढाणं अणप्पवसगाणं । तिरियाणं नत्थि सुहं नेरडयाणं कओ चेव [६०८] हयगब्भवास जम्मण वाहि जरा मरण रोग सोगेहिं । अभिभूए माणुस्से बहुदोसेहिं न सुहमत्थि ।। [६०९] मंसऽट्ठियसंघाए मुत्त पुरीसभरिए नवच्छिड्डे । असुई परिस्सवंते सुहं सरीरम्मि किं अत्थि [६१०] इठ्ठजन विप्पओगो चवणभयं चेव देवलोगाओ । एयारिसाणि सग्गे देवा वि दुहाणि पाविति ।। ? || ? || [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [37] [३३/१|मरणसमाहित Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-६११ ? || [६११] ईसा विसाय मय कोह लोह दोसेहिं एवमाईहिं । देवा वि समभिभूया तेसु वि य कओ सुहं अत्थि [६१२] एरिसयदोसपुण्णे खुतो संसारसायरे जीवो । जं अइचिरं किलिस्सइ तं आसवहेऽयं सव्वं ।। [६१३] राग-द्दोसपमत्तो इंदियवसओ करेइ कम्माइं । आसवदारेहिं अविगुहेहिं तिविहेणं करणेणं ।। [६१४] धी धी मोहो जेणिह हियकामो खलु स पावमायरइ । न हु पावं हवइ हियं विसं जहा जीवियत्थिस्स ।। [६१५] रागस्स य दोसस्स य धिरत्थु जं नाम सद्दहंतोऽवि | पावेसु कुणइ भावं आठरविज्ज व्व अहिएसु ।। [६१६] लोभेण अहव घत्थो कज्जं न गणेइ आयअहियंपि । अइलोहेण विनस्सइ मच्छु व्व जहा गलं गिलिओ ।। [६१७] अत्थं धम्म कामं तिन्नि वि बुद्धो जनो परिच्चयइ । ताई करेइ जेहि 3 किलिस्सइ इह परभवे य ।। [६१८] हुंति अजुत्तस्स विनासगाणि पंचिंदियाणि पुरिसस्स | उरगा इव उग्गविसा गहिया मंतोसहीहि विनो ।। [६१९] आसवदारेहिं सया हिंसाईएहिं कम्ममासवइ । जह नावाइ विनासो छिद्देहि जलं उयहिमज्झे ।। [६२०] कम्मासवदाराई निरूभियव्वाइं इंदियाइं च | हंतव्वा य कसाया तिविहं तिविहेण मुक्खत्थं ।। [६२१] निग्गहिय कसाएहिं आसवा मूलओ हया हुंति । अहियाहारे मुक्के रोगा इव आउरजनस्स | [६२२] नाणेण य झाणेण य तवोबलेण य बला निरूंभंति । इंदिय विसय कसाया धरिया तुरगा व रज्जूहिं ।। [६२३] हंति गुणकारगाइं सुयरज्जूहिं धणियं नियमियाई । नियगाणि इंदियाई जइणो तुरगा इव सुदंता ।। [६२४] मन वयण कायजोगा जे भणिया करणसण्णिया तिन्नि । ते जुत्तस्स गुणकरा हुंति अजुत्तस्स दोसकरा | [६२५] जो सम्मं भूयाइं पासइ भूए अ अप्पभूए य । कम्ममलेण न लिप्पइ सो संवरियाऽऽसवदुवारो ।। [६२६] धन्ना सत्तहियाइं सुगंति धन्ना करंति सुणियाइं । धन्ना सुग्गइमग्गं मरंति धन्ना गया सिद्धिं ।। [६२७] धन्ना कलत्तनियलेहिं विप्पमुक्को सुसत्तसंजुत्ता । वारीओ व गयवरा घरवारीओ वि निप्फिडिया ।। [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [38] [३३/१|मरणसमाहित Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-६२८ [६२८] धन्ना उ करंति तवं संजम जोगेहिं कम्ममट्ठविहं । तवसलिलेणं मणिणो धुणंति पोराणयं कम्मं || [६२९] नाणमयवायसहिओ सीलुज्जलिओ तवो मओ अग्गी । संसारकरणबीयं दहइ दवग्गी व तणरासिं ।। [६३०] इणमो सुगइगइपहो सुदेसिओ उक्खिओ य जिनवरेहिं । ते धन्ना जे एयं पहमणवज्जं पवज्जति । [६३१] जाहे य पावियव्वं इह परलोए व होइ कल्लाणं । ता एयं जिनकहियं पडिवज्जइ भावओ धम्म ।। [६३२] जह जह दोसोवरमो जह जह विसएसु होइ वेरग्गं । तह तह विजाणयाहि आसन्नं से पयं परमं ।। [६३३] दुग्गो भवकंतारे भममाणेहिं सुचिरं पणढेहिं । दिट्ठो जिनोवदिट्ठो सुग्गइमग्गो कह वि लद्धो ।। [६३४] मानुस्स देस कुल काल जाइ इंदिय बलोवयाणं च । विन्नाणं सद्धा दंसणं च दुलहं सुसाहूणं ।। [६३५] पत्तेसु वि एएसुं मोहस्सुदएण दुल्लहो सुपहो । सुपहो कुपहबहुयतणेण य विसयसुहाणं च लोभेणं ।। [६३६] सो य पहो उवलद्धो जस्स जए बाहिरो जनो बहओ | संपत्ति च्चिय न चिरं तम्हा न खमो पमाओ भे ।। [६३७] जह जह दढप्पइण्णो समणो वेरग्गभावनं कुणइ । तह तह असुभं आयवहयं व सीयं खयमुवेइ ।। [६३८] एग अहोरत्तेण वि दढपरिणामो अनुत्तरं जंति । कंडरिओ पुंडरिओ अहरगई उड्ढ गमनेसु ।। [६३९] बारस वि भावनाओ एवं संखेवओ समत्ताओ | भावेमाणो जीवो जाओ समुवेइ वेरग्गं । [६४०] भाविज्ज भावनाओ पालिज्ज वयाई रयणसरिसाइं । विखमणे अइरा सिद्धिं पि पावहिसि ।। [६४१] कत्थइ सुहं सुरसमं कत्थइ निरओवमं हवइ दुक्खं । कत्थइ तिरियसरित्थं मानुसजाई बहुविचित्ता ।। [६४२] ठुण वि अप्पसुहं मानुस्सं नेगदोससंजुतं । सुठु वि हियमुवइटें कज्जं न मुणेइ मूढजनो ।। [६४३] जह नाम पट्टणगओ संते मुल्लंमि मूढभावेणं । न लहंति नरा लाहं मानुसभावं तहा पत्ता ।। [६४४] संपत्ते बल विरिए सब्भावपरिक्खणं अजाणता | न लहंति बोहिलाभं दुग्गइमग्गं च पावंति ।। [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [39] [३३/१|मरणसमाहित Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा - ६४५ [६४५] अम्मा पियरो भाया भज्जा पुत्ता सरीर अत्थो य । भवसागरंमि घोरे न हुंति ताणं च सरणं च ।। [६४६] न वि माया न वि य पिया न पुत्त दारा न चेव बंधुजनो । नविय धनं न वि धन्नं दुक्खमुइन्नं उवसमेंति । [६४७] जइया सयणिज्जगओ दुक्खत्तो सयण बंधुपरहीन । उव्वत्तइ परियत्तइ उरगो जह अग्गिमज्झमि || [६४८] असुइ सरीरं रोगा जम्मणसयसाहणं छुहा तण्हा । उन्हं सीयं वाओ पहाभिघाया य नेगविहा ।। [६४९] सोग जरा मरणाइं परिस्समो दीनया य दारिद्दं । तह य पियविप्पओगा अप्पियजन संपओगा य ।। [६५०] एयाणि य अन्नाणि अ मानुस्से बहुविहाणि दुक्खाणि । पच्चक्खं पेक्खंतो को न मरइ तं विचिंतंतो [६५१] लद्धूण वि मानुस्सं सुदुल्लहं केइ कम्मदोसेणं । साया सुहमनुरत्ता मरणसमुद्दे अवगाहिंति ।। [६५२] तेन उ इहलोगसुहं मोत्तूणं मानसंसियमईओ । विरतिक्खमरणभीरू लोग सुई करण दोगुंछी || [६५३] दारिद्द दुक्ख वेयण बहुविह सीउण्ह खु प्पिवासाणं । अरई भय सोग सामिय तक्कर दुब्भिक्ख मरणाई || [६५४] एएसिं तु दुहाणं जं पडिवक्खं सुहंति तं लोए । जं पुन अच्चतसुहं तस्स परुक्खा सया लोया ।। [६५५] जस्स न छुहा न तण्हा न य सीउण्हं न दुक्खमुक्किट्ठे । न य असुइयं सरीरं तस्सऽसनाईसु किं कज्जं [६५६] जह निंबदुमुप्पन्नो कीडो कडुयं पि मन्नए महुरं । तह मुक्खसुह परूक्खा संसारदुहं सुहं बिंति ।। [६५७] जे कडुय दुमुपन्ना कीडा वरकप्पपायव परुक्खा । तेसिं विसालवल्ली विसं व सग्गो य मुक्खो य ।। [६५८] तह परतित्थियकीडा विसयविसंकुर विमूढदिट्ठीया । जिनसासन कप्पतरूवर पारूक्खरसा किलिस्संति ।। [६५९] तम्हा सुक्खमहातरु सासयसिवफलय सुक्खसत्तेणं । मोत्तूण लोगसणं पंडियमरणेण मरियव्वं ॥ [६६०] जिनमयभाविअचित्तो लोगसुईमल विरेयणं काउं । धम्मंमि तओ झाणे सुक्के य मइं निवेसेह || [६६१] सुणह-जह जिनवयणामय (रस) भावियहियएण झाणवावारो । करणिज्जो समणेणं जं झाणं जेसु झायव्वं ॥ [दीपरत्नसागर-संशोधितः] [40] ? ।। ? ।। [३३/१| मरणसमाहि] Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाहा-६६२ [662] एयं मरणविभत्तिं मरणविसोहिं च नाम गुणरयणं / मरणसमाही तइयं संलेहणसयं चउत्थं च / / [663] पंचम भत्तपरिण्णा छठें आठरपच्चक्खाणं च / सत्तम महपच्चखाणं अट्ठम आराहणपइण्णो / / [664] इमाओ अट्ठसुयाओ भावा 3 गहियंमि लेस अत्थाओ | मरणविभत्ति रइयं बियं नाम मरणसमाहिं च / / मुनि दीपरत्नसागरेण संशोधितः सम्पादितश्च "मरणसमाहिं पइण्णयं सम्मत्तं" 33/1 "मरणसमाहिं - नवमं पइण्णयं” सम्मत्तं दीपरत्नसागर-संशोधितः [41] [३३/१|मरणसमाहित