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गाहा-६७
[६७] एयाए भावनाए विहर विसुद्धाइ दीहकालम | काऊ अंतसुद्धिं दंसण नाणे चरित्ते य ।। [६८] पंचविहं जे सुद्धिं पंचविह विवेग संजुयमकाउं । इह उवनमंति मरणं ते उ समाहिं न पाविति ।
[६९] पंचविहं जे सुद्धिं पत्ता निखिलेण निच्छियमईया | पंचविहं च विवेगं ते ह् समाहिं परं पत्ता ||
[७०] लहिऊणं संसारे सुदुल्लहं कह वि मानुसं जम्मं । न हंति मरणदुलहं जीवा धम्मं जिणक्खायं ॥
[७१] किच्छा हि पावियम्मि वि सामण्णे कम्मसत्तिओसन्ना । सीयंति सायदुलहा पंकोसन्नो जहा नागो ||
[७२] जह कागणीइ हेठं मणि रयणाणं तु हार कोडिं । तह सिद्ध-सुह-परुक्खा अबुहा सज्जंति कामेसु || [७३] चोरो रक्खसपहओ अत्थत्थी हणइ पंथियं मूढो । इय लिंगी सुहरक्खसपहओ विसयाउरो धम्मं ॥
[७४] तेसु वि अलद्धपसरा अवियण्हा दुक्खिया गयमईया | समुवेंति मरणकाले पगाम भय भेरवं नरयं ।। [७५] धम्मो न कओ साहू न जेमिओ न य नियंसियं सहं । इण्हिं परं परासु त्ति य नेव य पत्ताई सुक्खाई || [ ७६ ] साहूणं नोवकयं परलोयच्छेय संजमो न कओ । दुहओऽवि तओ विहलो अह जम्मे धम्मरुक्खाणं ।। [७७] दिक्खं मइलेमाणा मोहमहावत्त सागराभिहया । तस्स अपडिक्कमंता मरंति ते बालमरणाई ||
[७८] इय अवि मोहपत्ता मोहं मोत्तूण गुरुसगासम्म । आलोइय निस्सल्ला मरिठं आराहगा तेऽवि ।।
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[७९] एत्थ विसेसो भण्णइ छलणा अवि नाम हुज्ज जिनकप्पे । पुन इयरमुणीणं तेण विही देसिओ इणमो || [८०] अप्पविहीणा जाहे धीरा सुयसारझरियपरमत्था । ते आयरिय विदिन्नं उवेंति अब्भुज्जयं मरणं ॥ [८१] आलोयणाइ संलेहणाइ खमणाइ काल उस्सग्गे । ओगासे संथारे निसग्ग वेरग्ग मुक्खाए || [८२] झाणविसेसो लेसा सम्मत्तं पायगमणयं चेव । चउदसओ एस विही पढमो मरणंमि नायव्वो || [८३] विनओवयार मानस्स भंजणा पूयणा गुरुजनस्स । तित्थयराण य आणा सुयधम्माऽऽराहणाऽकिरिया ।।
[दीपरत्नसागर-संशोधितः]
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[३३/१| मरणसमाहि]