Book Title: Jain Vangmay me Bramhacharya
Author(s): Vinodkumar Muni
Publisher: Vinodkumar Muni

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Page 175
________________ 103. निशीथ 8/1-9,10 104. सूयगडो (1)/4/16 105. (अ) ठाणं 9/3 (ब) समवायांग 9/1 (स) उत्तराध्ययन 16/3,5; 32/12 (द) आवश्यक वृत्ति/ भाग 3: पृ. 104 106. सूयगडो (1)/4/टिप्पण संख्या 18 में उद्धृत/ सू. वृत्ति पत्र 106 107. समवाओ 9/1: टिप्पण संख्या 2 में उद्धृत-स्थानांग वृत्ति, पत्र 422 108. समवाओ 18/3 109. वही 18/3 का टिप्पण संख्या 1 110. दसवेआलियं 6/56,57,58 111. आचारांग भाष्यम् 5(4)/84,87 112. वही 5 (4)/87 113. सूयगडो (1)/4/5 114. वही (1)/4/5 टिप्पण संख्या 16 में उद्धृत-स्थानांग वृत्ति, पत्र 106 115. (अ) ठाणं 9/1 (ब) समवायांग 9/3 116. प्रश्नव्याकरण सूत्र (2)/4/ 117. दसवेआलियं 8/57 118. वही 8/54 119. वही 5(1)/15 120. वही 3/3 121. वही 2/9 122. (अ) उत्तरज्झयणाणि 16/6,4 (ब) वही 32/14,15 (सू) वही 35/4,5 उत्तरज्झयणाणि 22/34-46 उत्तरज्झयणाणि16/9 के टिप्पण में उद्धृत (अ) उत्तराध्ययन चूर्णि पृष्ठ: 242-243 प्रणीतं – गलत्स्नेहंतैलधृतादिभिः। (ब) उत्तराध्ययन बृहद् वृत्ति पत्र 426 प्रणीत गलद्विन्दु, उपलक्षणत्वादन्यमप्यत्यन्त धातु द्रककारिणम्। 158

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