Book Title: Jain Vangmay me Bramhacharya
Author(s): Vinodkumar Muni
Publisher: Vinodkumar Muni

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Page 216
________________ प्रतिष्ठित होना आवश्यक है। ब्रह्मचर्य में प्रतिष्ठापन हेतु बाह्य तप आहार-संयम, आसन, प्राणायाम आदि अनुकूल परिस्थितियां पैदा करते हैं। आन्तरिक तप, सत्संग, सेवा, स्वाध्याय, अनुप्रेक्षा, ध्यान और कायोत्सर्ग व्यक्ति को ब्रह्म में अर्थात् आत्मा में प्रतिष्ठित करते हैं। ब्रह्मचर्य के आध्यात्मिक अर्थ को साकार करने में पूर्णतः सहायक बनते हैं। ये साधन व्यक्ति को साध्य - आत्म-रमण या ब्रह्म-रमण तक पहुंचा देते हैं। ॐ अर्हम 199

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