Book Title: Jain Vangmay me Bramhacharya
Author(s): Vinodkumar Muni
Publisher: Vinodkumar Muni

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Page 204
________________ महाप्रज्ञ छोटी श्वास को वासना का वाहन मानते हैं। 14 ब्रह्मचर्य के विकास के लिए नियमित दीर्घ श्वास प्रेक्षा बहुत लाभकारी साधन है। इस प्रयोग का अभ्यासी मन की सूक्ष्मता को पकड़ने में सक्षम हो जाता है। वह जान जाता है कि कब वासना का उभार आने वाला है। ऐसा होने पर तत्काल दीर्घ श्वास का प्रयोग शुरू कर देने से वासना को श्वास का आलम्बन नहीं मिलेगा और वह प्रकट हुए बिना ही शान्त हो जाएगी। 143 3.11.11 अन्तर्यात्रा - प्रेक्षाध्यान साधना पद्धति के अनुसार हमारे शरीर में प्राण ऊर्जा के भण्डार का स्थान शक्ति केन्द्र (मूलाधार चक्र) है। प्राण ऊर्जा की खपत ऊपर के केन्द्रों पर होती है। जब प्राण ऊर्जा का प्रवाह नीचे के केन्द्रों तक ही होता है तब वासनाएं, उत्तेजनाएं उभरती हैं। प्रेक्षाध्यान में प्राण ऊर्जा को सभी केन्द्रों तक संतुलित रूप से पहुंचाने के लिए अन्तर्यात्रा का प्रयोग किया जाता है। इस प्रयोग में श्वास के साथ चित्त की यात्रा शक्ति केन्द्र से ज्ञान केन्द्र के बीच में की जाती है। इससे प्राण ऊर्जा का संतुलित विकास होता है और साधक अन्तर्मुखी बन जाता है, उसे बाहरी आकर्षण खींच नहीं पाते हैं। 3.11.12 अनिमेष प्रेक्षा - आचारांग सूत्र में काम-विजय का एक प्रयोग है - लोक दर्शन। लोक का अर्थ है - भोग्य वस्तु या विषय। भाष्यकार आचार्य महाप्रज्ञ इसकी व्याख्या में लिखते हैं - शरीर भोग्य वस्तु है। इसके तीन भाग हैं - (क) अधोभाग - नाभि के नीचे (ख) ऊर्ध्वभाग - नाभि के ऊपर (ग) तिर्यग् भाग - नाभि स्थान। शरीर के उपरोक्त तीन भागों को अनिमेष दृष्टि से देखने से, प्रेक्षा करने से तथा उसके विषय में कोई संवेदन न करने से व्यक्ति 'काम विजय' की क्षमता विकसित कर सकता है। 3.12 कायोत्सर्ग कायोत्सर्ग के दो अर्थ हैं - काया की ऐच्छिक प्रवृत्तियों का त्याग एवं ममत्व का विसर्जन। जैन वाङ्मय में अनेक उद्देश्यों से कायोत्सर्ग करने का विधान प्राप्त होता है। ब्रह्मचर्य साधना का मूलाधार आत्म रमण है, इसकी उपलब्धि का साधन भी कायोत्सर्ग है। प्रयोजन की दृष्टि से कायोत्सर्ग के दो प्रकार हैं- 146 (1) चेष्टा कायोत्सर्ग - यह अतिचार शुद्धि के लिए किया जाता है। अन्य दोष की तरह ब्रह्मचर्य जन्य दोष की शुद्धि के लिए चेष्टा कायोत्सर्ग किया जाता है। (2) अभिभव कायोत्सर्ग - विशेष विशुद्धि या प्राप्त कष्ट को सहने के लिए किया जाता है। ब्रह्मचर्य साधक पर अनेक बार उपसर्ग भी आ जाते हैं। जैन कथा साहित्य में राजा उदितोदित, श्रेष्ठी सुदर्शन आदि द्वारा ब्रह्मचर्य सुरक्षा एवं विकास के लिए कायोत्सर्ग का सहारा लेने का उल्लेख मिलता है। 148 187

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