Book Title: Yogasara Prabhrut
Author(s): Amitgati Acharya, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 13
________________ २३ भावार्थ:- अल्पज्ञ जीवों को नियम से दर्शनपूर्वक ही ज्ञान होता है। अतः क्षायोपशमिक चार ज्ञान एवं तीन अज्ञान दर्शनपूर्वक ही होते हैं। सर्वज्ञ जीवों को दर्शन और ज्ञान युगपत्/एकसाथ होते हैं। जीव अधिकार यदि सर्वज्ञ अवस्था में भी दर्शन और ज्ञान के होने में क्रम माना जायेगा तो जब जीव केवलदर्शन करेगा, तब वह केवलज्ञान न करने के कारण सर्वज्ञ नहीं रहेगा अर्थात् इस मान्यता के कारण कोई भी जीव सदा केवलज्ञानी नहीं हो पायेगा । अतः केवलदर्शन व केवलज्ञान को युगपत् मानना तर्कसंगत भी है । मिथ्याज्ञान और सम्यग्ज्ञान के कारण मिथ्याज्ञानं मतं तत्र मिथ्यात्वसमवायतः । सम्यग्ज्ञानं पुनर्जेनैः सम्यक्त्वसमवायतः ।।१२।। अन्वय :- तत्र (ज्ञानोपयोगे) मिथ्यात्वसमवायत: मिथ्याज्ञानं (भवति), पुन: सम्यक्त्वसमवायतः सम्यग्ज्ञानं (भवति इत्थं) जैनै: मतम् । सरलार्थ :- जैनदर्शन में ज्ञान को मिथ्यात्व के निमित्त से मिथ्याज्ञान और सम्यक्त्व के निमित्त से सम्यग्ज्ञान माना गया है। भावार्थ:- निमित्त-नैमित्तिक संबंध का कथन शास्त्र में दो द्रव्यों की भिन्न-भिन्न पर्यायों में ही मुख्यरूप से बताया जाता है। इस संबंध को जानकर ज्ञानी जीव एक द्रव्य अथवा एक द्रव्य की पर्या को दूसरे द्रव्य अथवा दूसरे द्रव्य की पर्याय का कर्त्ता नहीं मानते, नही समझते; अपितु मात्र निमित्त जानते/मानते हैं । अज्ञानी इस संबंध के आधार से द्रव्य को अथवा पर्यायों को परतंत्र मानते हैं । यहाँ इस श्लोक में एक ही जीवद्रव्य के दो गुणों के ( श्रद्धा और ज्ञान ) परिणमन में निमित्तनैमित्तिक संबंध का ग्रंथकार ज्ञान करा रहे हैं, कर्त्ता - कर्म संबंध का नहीं । मिथ्यात्व का स्वरूप और कार्य - वस्त्वन्यथापरिच्छेदो ज्ञाने संपद्यते यतः । तन्मिथ्यात्वं मतं सद्भिः कर्मारामोदयोदकम् ।।१३।। अन्वय :- यत: ज्ञाने वस्तु - अन्यथा - परिच्छेद: संपद्यते तत् मिथ्यात्वं (भवति इति) सद्भिः मतं । तत् कर्मारामोदयोदकं (कर्म - आरामस्य उदयस्य कृते उदकं इव अस्ति) । सरलार्थ:- जिसके कारण ज्ञान में वस्तु की अन्यथा / विपरीत जानकारी होती है, उसको सत्पुरुषों ने मिथ्यात्व माना है । वह मिथ्यात्व कर्मरूपी बगीचे को उगाने के लिये जल के समान है। भावार्थ:- जीव द्रव्य के अनंत गुणों में एक ज्ञान गुण ही सविकल्प है, अन्य सर्व गुण नियम से निर्विकल्प हैं। अत: एक ज्ञान गुण के आधार से ही अन्य गुणों की एवं अन्य गुणों के पर्यायों की जानकारी दी जाती है, दूसरा कुछ उपाय भी नहीं है । [C:/PM65/smarakpm65/annaji/yogsar prabhat.p65/23]

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