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[ ४ ] लड़ने को आया। पृथ्वीराज भी ३ लाख राजपूत और पठान सवारों से फिर उसी सरस्वती नदी पर जाकर शहाबुद्दीन को धमकाने लगा। शहाबुद्दीन ने कहा कि मैं तो अपने भाई के हुक्म से लाचार हूँ। वह भेजता है तो आता हूँ। अब जो तुम कुछ मुहलत दो तो मैं भाई की मंजूरी मंगाकर सुलह करवू । सरहिंद से लेकर पंजाब और मुलतान तक के मुल्क तो हमारे पास रहें। बाकी हिन्दुस्तान तुम्हारा है। पृथ्वीराज मुहलत देकर गाफ़िल हो गया । सुलतान ने उसी रात को सोते हुए राजपूतों पर छापा मारा । राजपूत तो भी खब लड़े,मगर हार गये। खांडेराय और पृथ्वीराज मारे गये। शहाबुद्दीन अजमेर तक लूटमार करके दिल्ली पर गया । वहाँ के हाकिम ने लाचारी से नज़राना देकर पीछा छुड़ाया। शहाबुद्दीन दिल्ली से ७० कोस पर कस्बे कहराम में अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को छोड़ कर हिमालय पहाड़ में लूटमार करता हुआ गज़नी को चला गया। फिर कुतुबुद्दीन ने चढ़ाई करके मेरठ और दिल्ली के किले पृथ्वीराज और खांडेराय के भाई बेटों से छीन लिये और सन् ५८९ (संवत् १२५०) में कोल को जीत कर दिल्ली में अपना तख़्त जमाया। कोल से आगे कन्नौज के राजा जयचंद की अमलदारी थी। इसी वर्ष शहाबुद्दीन ने कन्नौज पर चढ़ाई की। जयचंद लड़ाई में कुतुबुद्दीन के तीर से मारा गया और कन्नौज का राज भी दिल्ली में शामिल हो गया।
पृथ्वीराज रासे में जो पृथ्वीराज का शहाबुद्दीन को ७ बेर पकड़ पकड़ कर छोड़ देना लिखा है, गलत है। उसके साल, संवत और नाम वगैरः कुछ भी मुसलमानों की तवारीख से नहीं मिलने
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