Book Title: Vyutpatti Dipikabhidhan Dhundikaya Samarthitam Siddha Hem Prakrit Vyakaranam Part 02
Author(s): Vimalkirtivijay
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 335
________________ आदेशः ७५६ अयञ्छ अल्लत्थ अल्लिअ सानुबन्धः कृषीत् विलेखने क्षिपीत् प्रेरणे सप्लं गतौ | प्रापणे च क् गतौ लीच् श्लेषणे ४५७] अल्लिव |निरनुबन्धः सूत्राङ्कः धात्वङ्कः गणः | पत्राङ्क | पदम् । कृष् १८७ [सक.] खींचना, रेखा करना। उत्+क्षिप् ४५८ उभय | [सक.] ऊंचा फेंकना । उप+ सुप परस्मै | [सक.] समीप में जाना । अर्पय ४३७ परस्मै | [सक.] अर्पण करना । अर्पय ४३७| परस्मै | [सक.] अर्पण करना । आ+ ली |५४ ४४० आत्मने | [सक.] प्रवेश करना, आश्रय करना, आलिंगन करना। [अक.] संगत होना। ४६६ परस्मै | [सक.] देखना। अल्लिव आली ६६ आत्मने | [सक.] खुश करना । परस्मै | [सक.] देखना । परस्मै | [सक.] देखना। ४६६ ४६२॥ परस्मै | [सक.] गमन करना । ६६ अवअक्ख दृशं प्रेक्षणे अवअच्छ हलादैङ् सुखे च अवआस दृशं प्रेक्षणे अवक्ख दृशं प्रेक्षणे अवज्जस गम्लं गतौ अवयच्छ दृशं प्रेक्षणे अवयज्झ दृशं प्रेक्षणे अवयास श्लिषंच् आलिङ्गने अवसेह गम्लं गतौ अवसेह नशौच अदर्शने रचण् प्रतियत्ने अवहर गम्लं गतौ अवहर नशौच अदर्शने परस्मै | [सक.] देखना। परस्मै | [सक.] देखना। ४६६. श्लिष् ४६८॥ परस्मै | [सक.] आलिंगन करना । ४६२|| परस्मै | [सक.] गमन करना। अकारादिवर्णक्रमेण चतुर्थपादान्तर्गता धात्वादेशाः परस्मै | [अक.] भागना, पलायन करना । परस्मै | [सक.] निर्माण करना । अवह ४६२ परस्मै | [सक.] गमन करना । ४६५] परस्मै | [सक.] भागना, पलायन करना ।

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