Book Title: Vyutpatti Dipikabhidhan Dhundikaya Samarthitam Siddha Hem Prakrit Vyakaranam Part 02
Author(s): Vimalkirtivijay
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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आदेशः
8001
पणाम
| निरनुबन्धः| सूत्राक-धात्वतः गणः | पत्राः | पदम् | अर्थः अर्पय्
४३७, परस्मै | [सक.] अर्पण करना, देने के लिए उपस्थित करना । अर्पय
परस्मै | [सक.] अर्पण करना, देने के लिए उपस्थित करना।
पणाम
३७|
सानुबन्धः क् प्रापणे च ऋक् गतौ गम्लं गतौ मृदश् क्षोदे मील निमेषणे
पद
गम्
६२
पन्नाड
५४॥
पम्मिल
प्र+मील
४८२॥
परस्मै | [सक.] गमन करना। परस्मै | [सक.] मर्दन करना । परस्मै | [अक.] विशेष संकोच करना । परस्मै | [सक.] भूलना, विस्मरण करना ।
[सक.] स्पर्श करना। [सक.] चोरी करना।
पम्हुस
४४४||
विस्मि प्र+मृश
पम्हुस
प्र+मुष्
स्मं चिन्तायाम् मशंत् आमर्शने मुषश् स्तेये स्मं चिन्तायाम् स्मं चिन्तायाम् डुकंग करणे सं गतौ
४४॥
परस्मै | [सक.] स्मरण करना, याद करना ।
पयर
४४
PREEEEEEEEEEEEEEE
पयल्ल
४४४॥
पयल्ल
परस्मै | [सक.] स्मरण करना । उभय |[अक.] शिथिलता करना, ढीला होना। परस्मै | [अक.] पसरना, फैलना । परस्मै | [सक.] भ्रमण करना, घूमना ।
[सक.] आलिंगन करना, संसर्ग करना ।
प्र+स भ्रम्
पर
भ्रमू चलने
श्लिष्
गम
परस्मै | [सक.] गमन करना ।
गम्
परिअत्त श्लिषंच् आलिङ्गने परिअल गम्लं गतौ परिअल्ल गम्लं गतौ परिआल वेष्टि वेष्टने परिल्हस स्रंसूअवस्त्रंसने परिवाड घटिष् चेष्टायाम् परिसाम शमूच् उपशमे
अकारादिवर्णक्रमेण चतुर्थपादान्तर्गता धात्वादेशाः
वेष्टय
४४०
परि+संस्
परस्मै | [सक.] गमन करना । आत्मने | [सक.] वेष्टन करना लपेटना । आत्मने [सक.] सरकना, गिर पडना ।
| [सक.] संगत करना, निर्माण करना । ४६३/ परस्मै | [अक.] शान्त होना ।
४७०
घटय्
शम्
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