Book Title: Vyutpatti Dipikabhidhan Dhundikaya Samarthitam Siddha Hem Prakrit Vyakaranam Part 02
Author(s): Vimalkirtivijay
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 334
________________ परिशिष्ट - ९ ॥ अकारादिवर्णक्रमेण चतुर्थपादान्तर्गता धात्वादेशाः ॥ अकारादिवर्णक्रमेण चतुर्थपादान्तर्गता धात्वादेशाः . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . आदेशः सानुबन्धः निरनुबन्धः| सूत्राङ्कः धात्वतः गणः पत्राङ्कः | पदम् | अर्थः अइच्छ गम्लं गतौ ४६२/ परस्मै | [सक.] गमन करना । अई गम्लं गतौ | [सक.] गमन करना। अक्कुस गम्लं गतौ [सक.] गमन करना। अक्खोड कृषीत् विलेखने उभय | [सक.] म्यान से तलवार को खींचना । अग्घ राजग दीप्तौ [अक.] शोभना। अग्धव पूरण पूरणे आप्यायने) [सक.] पूर्ति करना। अग्घाड पूरण पूरणे( आप्यायने) | [सक.] पूर्ति करना। अङ्गम पूरण पूरणे( आप्यायने) परस्मै [सक.] पूर्ति करना। अच्छ आसिक् उपवेशने आत्मने | [अक.] बैठना। अञ्च कृषीत् विलेखने उभय [सक.] खींचना, रेखा करना, उठाना । क्वथे निष्पाके परस्मै | [सक.] क्वाथ करना। अट गतौ परस्मै [सक.] भ्रमण करना । अड्डक्ख क्षिपीत् प्रेरणे उभय [सक.] फेंकना, गिराना । अणच्छ कृषीत् विलेखने उभय [सक.] खींचना, रेखा करना, पढना, उच्चारण करना । अणुवज्ज गम्लं गतौ परस्मै | [सक.] गमन करना। अण्ह भुजंप पालना-ऽभ्यवहारयोः भुज परस्मै [सक.] भोजन करना, पालन करना, ग्रहण करना । अप्पाह दिशीत् अतिसर्जने सम्+दिश् उभय | [सक.] संदेश देना । अभिड गम्लं गतौ सम्+गम् | आत्मने | [सक.] संगति करना, मिलना। अब्भुत्त दीपैचि दीप्तौ प्र+दीप | आत्मने | [सक.] प्रकाशित होना,उत्तेजित होना । अब्भुत्त ष्णांक शौचे स्ना | | परस्मै | [ सक.] स्नान करना । अट्ट ७५५ .

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