Book Title: Vyutpatti Dipikabhidhan Dhundikaya Samarthitam Siddha Hem Prakrit Vyakaranam Part 02
Author(s): Vimalkirtivijay
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अकारादिवर्णक्रमेण चतुर्थपादान्तर्गता धात्वादेशाः
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आदेशः
सानुबन्धः निरनुबन्धः| सूत्राङ्कः धात्वङ्कः गणः पत्राङ्कः | पदम् | अर्थः णिलुक्क लाङ्च् श्लेषणे नि+ली
आत्मने [सक.] आश्लेष करना,भेंटना । [अक.] छिप जाना। णिलुक्क तुडत् तोडने
[सक.] तोडना । णिल्लस लस श्लेषण - क्रीडनयोः उद्+लस्
[अक.] विकसना। णिल्लुञ्छ मुच्लूती मोक्षणे
उभय | [सक.] त्याग करना । णिवह गम्लं गतौ
परस्मै | [सक.] गमन करना । णिवह नशौच अदर्शने
परस्मै | [अक.] भागना । णिवह पिष्टंप संचूर्णने
[सक.] पीसना। णिव्वड भू सत्तायाम्
[अक.] स्पष्ट होना, पृथक् होना । णिव्वर कथण वाक्यप्रबन्थे
[सक.] दुःख कहना। णिव्वर छिदंपी द्वैधीकरणे
[सक.] छेदन करना । णिव्वल मुच्रोंती मोक्षणे
[ सक.] दुःख को छोडना। णिव्वा श्रमूच् खेद-तपसोः
[अक.] विश्राम करना। णिव्वोल डुकंग करणे
[सक.] क्रोध से होठ को मलिन करना । णिसुढ णमं प्रवत्वे
[अक.] भार से आक्रान्त होकर नीचे नमना । णिहुव कमूङ् कान्तौ कामय्
[सक.] संभोग का अभिलाष करना । णिहोड वृग्ट् वरणे
[सक.] निवारण करना, निषेध करना । गम्लु गतौ
[सक.] गमन करना। णीण गम्लं गतौ
४६२ परस्मै | [सक.] गमन करना । णीरव भुजंप पालना-ऽभ्यवहारयोः बुभुक्ष( सन्नन्तः) ५
४२८/ परस्मै | [सक.] खाने को चाहना । णीरव क्षिपीत् प्रेरणे आ+क्षिप् | १४५
| [सक.] आक्षेप करना ।
नि+वारय्
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गम्
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