Book Title: Vruttabodh Author(s): Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha Publisher: Shwetambar Sadhumargi Jain Hitkarini Samstha View full book textPage 2
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सदा मे भारतीय हित में शान्त, करुण तथा बैं रस की प्रधानता रही: पन्तु र के कुछ दिन पहले इसे साहित्य-क्षेत्र में शृङ्गार का सार भाती तूफान आया था, जिसे में बड़े बड़े पण्डित और सौरियाचार्य पडकर भ्रष्ट गये- वे श्राप तो गये ही, साथ होली सोमा सदः के लिए भ्रष्ट करने का मार्ग खोल गये। काव्य, नाटक, छन्दःशास्त्र, कहां तक कहें, वैद्यक-शास्त्र तक में, वही पतित शृङ्गार किंवा काराभास का विष मिश्रित कर दिया गया, जिससे हमारा समाज गलिताङ्ग हो गया है। __ संस्कृत के छन्दो-ग्रन्थों में भी यही बात है। 'श्रुतबोध प्रादि के 'घन-पीन-पयोधर-भार-नते' वाले श्लोक कौनसा लौकिक गुरु अपने शिष्य को, पिता अपने पुत्र और पुत्री को यामा अपनी बेटी को निःसङ्कोच होकर पढ़ा सकती है? फिर यह प्रारम्भिक विषय है-काव्य-प्रासाद पर चढ़ने के लिए प्रथम सोढी है। बालक-बालिकाओं को नत-पीन-पयोधर' का अर्थ कोई कैसे समझा सकता है? और विना समझाए शिष्य मन्द-बुद्धि होगा। क्या हमारे समाज और साहित्य के लिए यह अभीष्ट है? - हिन्दी में इस विषय के अभाव की पूर्ति प्रख्यात कीर्ति बाबू भी जगन्नाथदास 'भानु' कवि ने 'छन्द-प्रभाकर' की रचना करके किरदी है। परन्तु, संस्कृत भाषा के क्षेत्र में अभी तक इधर किस निध्यान ही नहीं दिया है। इसी प्रभाव की पूर्ति के लिए यह पुस्तक लिखो गई है। प्राशा है, इस से हमारे साहित्य और समाज का कल्याण होगा। पुस्तक लिखने में सरलता पर विशेष ध्यान रखा गया है और उन भावों के लाने का प्रयास किया गया है, जो अति आवश्यक है। विशेषतः पाठशालाओं और विद्यालय-महाविद्यागयों के पाठ्य-ग्रन्थों में सम्मिलित होने योग्य इस में सामग्री रखी गयी है। For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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