Book Title: Visesavasyakabhasya Part 2
Author(s): Jinbhadrasuri, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 14
________________ नि० १६३] निर्गमद्वारे कुलकरविवरणम् । जं चेव आयुअं कुलगराण तं चेव होति तासि पि । जं पढमगस्स आयुं तावतियं होति हत्थिस्स ॥१५५।।१५६३॥ जं जस्स आयुगं खलु तं दसभाए समं विभइतूणं । मझिल्लीतिभाए कुलकरकालं वियाणाहि ॥१५६॥१५६४॥ पढमो य कुमारत्ते भागो चरिमो य वुड्ढभावम्मि । दारं । ते पतणुपेज्नदोसा सव्वे देवेसु उववण्णा ॥१५७॥१५६५॥ दो चेव सुवण्णेमुं उदधिकुमारेसु होन्ति दो चेव । दो दीवकुमारेमुं एगो णागेसु उववण्णो ॥१५८॥१५६६॥ . हत्थी छ चित्थीओ णागकुमारेसु होन्ति उववण्णा । एगा सिद्धिं पत्ता मरुदेवा णाभिणो पत्ती ॥१५९॥१५६७॥ हक्कारे मक्कारे धिक्कारे चेव डण्डणीतीओ । 'बोच्छं तासि विसेसं [१०२-द्वि०] अंधक्कम आणुपुबीए॥१६०॥१५६८। पढर्मवितियाण पढेमा ततियचउत्थाणे अभिणवा वितिया । पंचम छहस्स य सत्तमस्स ततिया अभिणवा" तु ॥१६१।१५६९।। सेसा तु "डंडणीती माणवकणिधीउ होति भरधस्स । उसभस्स गिहावासे असक्कतो आसि आहारो ॥१६२॥१५७०॥" "परिभासणा तु पहमा मण्डलिवन्धे" य होति "वितिया तु । चरगछविछेदे य उ भरधस्स चतुविधा णीती ॥१५७१।। णाभी विणीतभूमी मरुदेवी उत्तरामु साढा य । राया य वैइरणाभो विमाण सव्वदृसिद्धातो" ॥१६३॥१५७२॥ १ लठाति जे। २ चरो हा दी। ३ हुन्ति हा दी। ४ देवी हा म दी। ५ दंडनीईओ हा दी । दंडणीतौउ को । दंडनीतीओ म । ६ वुच्छं हा दी। ७ जहक्क हा म । जइक्क, दी। ८ °मवीयाण हा दी। ९ पढमो जे । १० °ण वि॰ जे। ११ वाओ म । १२ दंड को हा म दी । १३ निहीओ हा दी। १४ आचार्यहरिभद्रेण स्पष्ट मूलनियुक्तित्वेनोक्तेयं गाथा । १५ आचार्यहरिभद्रण दीपिकायां च नि दष्टेयं गाथा। १६ बंधमि हौं को हा। बंधो उ हो म । १७ बीया हा म दी। १८ 'छेआई भ हा म दी । १९ देवी हा म दी । २० उत्तरा य सा हा दी। उत्तरा असा म। २१ वयर म । २२ °द्धाउ को । अस्याः अनन्तरं For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org

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