Book Title: Visesavasyakabhasya Part 1
Author(s): Jinbhadrasuri, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 145
________________ विशेषावश्यकभाष्ये मच्छो महल्लकायो संखित्तो जो अ तीहि समएहि । 'स इर पयत्तविससेण सहमोगाहणं कुणति ॥५९०॥ सण्हतंरा सण्हतरो सुहुमो पणओ जहण्णदेहो य । सुबहुविसेसविसिट्ठो सहतरो सव्वदेहेसु ।।५९१॥ कि मच्छो गाहा । प्रश्नमात्रम् । मच्छो गाहा । सह० गाहा । उच्यतेयो योजनसहस्रायामो मत्स्यस्त्रिभिश्च समयैरात्मानं संक्षिपति, स किल प्रयत्नविशेषादतिसूक्ष्मावगाहनं कुरुते नान्यः । स एव सूक्ष्मः पनको जघन्यावगाहन इत्युत्तरोतरविशेषणा[त्] सूक्ष्मतरसूक्ष्मतमश्चेत्युक्तं भवति ॥५८९-५९१॥ . पढमवितिएऽतिसण्हो जमतित्थूलो चउत्थयातीसु । ततियसमयम्मि जोग्गो गहितो तो तिसमयाहारो ॥५९२॥ पढम० गाहा । प्रथमद्वितीयसमययोरतिसूक्ष्मः, चतुर्थादिष्वतिस्थूलः, तृतीयसमय एव तद(द)योग्य इत्यतस्तद्ग्रहणम् ॥५९२।। केयिं दो शससमया ततिओ पणयत्तणोक्वातम्मि । ___ अह तिसमयिओ आहारगो य मुहुमो य पणओ य ॥५९३॥ केयिं गाहा । केचिदाहुः-- मत्स्यायाम-विष्कम्भसंक्षेपसमयद्वयं चोपपादसमयश्चेत्येतेभ्यः त्रयः समयाः [यस्य स त्रिसमयोऽविग्रहाच्चाहारकः, ततश्च सूक्ष्मः पनकचेति ॥५९३॥ उववाते चेय तो जतो जहण्णो ण सेससमएसु । तो इर तदेहसमाणमोधिखेत्तं जहण्णं तु ॥५९४॥ उव० गाहा । उपपादसमय एवासी जघन्यावगाहनो न शेषसमयेषु, यतश्च जघन्यावगाहन एवोक्तो न विमध्यावगाहनः, अतस्तत्प्रमाणमवधिक्षेत्रं जघन्यमिति । तच्च न, त्रिसमयाहारकत्वस्य पनकविशेषणान्मत्स्यसमयद्वय(या)प्रसङ्गः । अन्यभवाहारकत्वे वा त्रिसमयाहारकविशेषणमनर्थकं त्रिसमयाहारकापेक्षया जघन्यावगाहनायाः । न च प्रथमसमयोपपन्नोऽपि सर्वथा निषिध्यति तेन यस्त्रिसमयोपपन्नजघन्यावगाहनतुल्यः । किन्तु न वयं सूत्राभिप्राय इति ॥५९४॥ सव्ववहुअगणिजीवा णिरंतरं जत्तियं भरेज्जंसु । खेत्तं सव्वदिसागं परमोधी खेत्तणिहिटो ॥३०॥५९५॥ १ सो किर को है। २ यरो जे । ३ मबिईए अति हे । ४ जोगो त । ५ के को हे। ६ दो ज्झस त । ७ तिसमभो को हे ।। ८ चेव को हे त । ९ भरि का है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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