Book Title: Vijay Vallabh Sansmaran Sankalan Smarika
Author(s): Pushpadanta Jain, Others
Publisher: Akhil Bharatiya Vijay Vallabh Swargarohan Arddhashatabdi Mahotsava Samiti

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Page 3
________________ ऊँ अहँ नमः श्रीमद् आत्म-वल्लभ-समुद्र-इन्द्र-रत्नाकर सूरि सद्गुरुभ्यो नमः नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं नमो आयरियाणं नमों उवज्झायाण नमो लोए सब्बसाहणं एसो पंचनमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसिं, पढ़मं हवइ मंगलं ।। "उत्तम जन गुणगान से, उत्तम गुण विकसंत। उत्तम निज संपद मिले, होवे भव का अंत।।" श्रीमद् विजय वल्लभ स्वर्गारोहण अर्द्धशताब्दी महोत्सव वर्ष 2003-2004 22.09.2003-110-10-2004 Com शुभ सद्प्रेरणा, आशीर्वाद एवं तारक निश्रा वर्तमान गच्छाधिपति श्रीमद् विजय रत्नाकर सूरीश्वर जी महाराज शुभाशीष श्रीमद् आत्म-वल्लभ-समुद्र-इन्द्र-रत्नाकर सूरि पाट परम्परा के आज्ञानुवर्ती आचार्य भगवंत एवं श्रमण-श्रमणी मंडल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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